देवर को बचाने के लिए ननद की हत्या

उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के गैनी गांव में छोटेलाल कश्यप अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में उन की पत्नी रामवती के अलावा 2 बेटे नरेश व तालेवर, 2 बेटियां सुनीता व विनीता थीं. छोटेलाल खेती किसानी का काम करते थे. इसी की आमदनी से उन्होंने बच्चों की परवरिश की. बच्चे शादी लायक हो गए तो उन्होंने बड़े बेटे नरेश का विवाह नन्ही देवी नाम की युवती से करा दिया.

कालांतर में नन्ही ने एक बेटे शिवम व एक बेटी सीमा को जन्म दिया. बाद में उन्होंने बड़ी बेटी सुनीता का भी विवाह कर दिया. अब 2 बच्चे शादी के लिए रह गए थे. छोटेलाल उन दोनों की शादी की भी तैयारी कर रहे थे.

इसी बीच दूसरे बेटे तालेवर ने ऐसा काम कर दिया, जिस से उन की गांव में बहुत बदनामी हुई. तालेवर ने सन 2014 में अपने ही पड़ोस में रहने वाली एक महिला के साथ रेप कर दिया था. जिस के आरोप में उस को जेल जाना पड़ा था.

उधर छोटेलाल की छोटी बेटी विनीता भी 20 साल की हो चुकी थी. यौवन की चमक से उस का रूपरंग दमकने लगा था. वह ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं थी, पर उसे फिल्म देखना, फैशन के अनुसार कपड़े पहनना अच्छा लगता था. उस की सहेलियां भी उस के जैसे ही विचारों की थीं, इसलिए उन में जब भी बात होती तो फिल्मों की और उन में दिखाए जाने वाले रोमांस की ही होती थी. यह उम्र का तकाजा भी था.

विनीता के खयालों में भी एक अपने दीवाने की तसवीर थी, लेकिन यह तसवीर कुछ धुंधली सी थी. खयालों की तसवीर के दीवाने को उस की आंखें हरदम तलाशती थीं. वैसे उस के आगेपीछे चक्कर लगाने वाले युवक कम नहीं थे, लेकिन उन में से एक भी ऐसा न था, जो उस के खयालों की तसवीर में फिट बैठता हो.

बात करीब 2 साल पहले की है. विनीता अपने पिता के साथ एक रिश्तेदारी में बरेली के कस्बा आंवला गई, जो उस के यहां से करीब 13 किलोमीटर दूर था. वहां से वापसी में वह आंवला बसअड्डे पर खड़ी बस का इंतजार कर रही थी तभी एक नवयुवक जोकि वेंडर था, पानी की बोतल बेचते हुए उस के पास से गुजरा.

उस युवक को देख कर विनीता का दिल एकाएक तेजी से धड़कने लगा. निगाहें तो जैसे उस पर ही टिक कर रह गई थीं. उस के दिल से यही आवाज आई कि विनीता यही है तेरा दीवाना, जिसे तू तलाश रही थी. उस युवक को देखते ही उस के खयालों में बनी धुंधली तसवीर बिलकुल साफ हो गई.

वह उसे एकटक निहारती रही. उसे इस तरह निहारता देख कर वह युवक भी बारबार उसी पर नजर टिका देता. जब उन की निगाहें आपस में मिल जातीं तो दोनों के होंठों पर मुसकराहट तैरने लगती.

उसी समय बस आ गई और विनीता अपने पिता के साथ बस में बैठ गई. वह पिता के साथ बस में बैठ जरूर गई थी, पर पूरे रास्ते उस की आंखों के सामने उस युवक का चेहरा ही घूमता रहा. विनीता उस युवक के बारे में पता कर के उस से संपर्क करने का मन बना चुकी थी.

अगले ही दिन सहेली के यहां जाने का बहाना बना कर विनीता आंवला के लिए निकल गई. बसअड्डे पर खड़े हो कर उस की आंखें उसे तलाशने लगीं. कुछ ही देर में वह युवक विनीता को दिख गया. पर उस युवक ने विनीता को नहीं देखा था.

विनीता उस पर नजर रख कर उस का पीछा कर के उस के बारे में जानने की कोशिश में लग गई. कुछ देर में ही उस ने उस युवक के बारे में किसी से जानकारी हासिल कर उस का नाम व मोबाइल नंबर पता कर लिया. उस युवक का नाम हरि था और वह अपने परिवार के साथ आंवला में ही रहता था.

एक दिन हरि सुबह के समय अपनी छत पर बैठा था, तभी उस का मोबाइल बज उठा. हरि ने स्क्रीन पर बिना नंबर देखे ही काल रिसीव करते हुए हैलो बोला.

‘‘जी, आप कौन बोल रहे हैं?’’ दूसरी ओर से किसी युवती की मधुर आवाज सुनाई दी तो हरि चौंक पड़ा.

वह बोला, ‘‘आप कौन बोल रही हैं और आप को किस से बात करनी है?’’

‘‘मैं विनीता बोल रही हूं. मुझे अपनी दोस्त से बात करनी थी, लेकिन लगता है नंबर गलत डायल हो गया.’’

‘‘कोई बात नहीं, आप को अपनी दोस्त का नंबर सेव कर के रखना चाहिए. ऐसा होगा तो दोबारा गलती नहीं होगी.’’

‘‘आप पुलिस में हैं क्या?’’

‘‘जी नहीं, आम आदमी हूं.’’

‘‘किसी के लिए तो खास होंगे?’’

‘‘आप बहुत बातें करती हैं.’’

‘‘अच्छी या बुरी?’’

‘‘अच्छी.’’

‘‘क्या अच्छा है, मेरी बातों में?’’

अब हंसने की बारी थी हरि की. वह जोर से हंसा, फिर बोला, ‘‘माफ करना, मैं आप से नहीं जीत सकता.’’

‘‘और मैं माफ न करूं तो?’’

‘‘तो आप ही बताइए, मैं क्या करूं?’’ हरि ने हथियार डाल दिए.

‘‘अच्छा जाओ, माफ किया.’’

दरअसल विनीता को हरि का मोबाइल नंबर तो मिल गया था. लेकिन विनीता के पास खुद का मोबाइल नहीं था, इसलिए उस ने अपनी सहेली का मोबाइल फोन ले कर बात की थी. पहली ही बातचीत में दोनों काफी घुलमिल गए थे. दोनों के बीच कुछ ऐसी बातें हुईं कि दोनों एकदूसरे के प्रति अपनापन महसूस करने लगे.

फिर उन के बीच बराबर बातें होने लगीं.  विनीता ने हरि को बता दिया था कि उस दिन अनजाने में उस के पास काल नहीं लगी थी बल्कि उस ने खुद उस का नंबर हासिल कर के उसे काल की थी और उन की मुलाकात भी हो चुकी है.

जब हरि ने मुलाकात के बारे में पूछा तो विनीता ने आंवला बसअड्डे पर हुई मुलाकात का जिक्र कर दिया. हरि यह जान कर बहुत खुश हुआ क्योंकि उस दिन विनीता का खूबसूरत चेहरा आंखों के जरिए उस के दिल में उतर गया था.

इस के बाद दोनों एकदूसरे से रूबरू मिलने लगे. इसी बीच एक मुलाकात में दोनों ने अपने प्यार का इजहार भी कर दिया. दिनप्रतिदिन उन का प्यार प्रगाढ़ होता जा रहा था. विनीता तो दीवानगी की हद तक दिल की गहराइयों से हरि को चाहने लगी थी.

धीरेधीरे उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. प्रेम दीवानों के प्यार की खुशबू जब जमाने को लगती है तो वह उन दीवानों पर तरहतरह की बंदिशें लगाने लगता है. यही विनीता के परिजनों ने किया. विनीता के घर वालों को पता चल गया कि वह जिस लड़के से मिलती है, वह बदमाश टाइप का है.

इसलिए उन्होंने विनीता पर प्रतिबंध लगाने शुरू कर दिए. लेकिन तमाम बंदिशों के बाद भी विनीता हरि से मिलने का मौका निकाल ही लेती थी.

धीरेधीरे दोनों के इश्क के चर्चे गांव में होने लगे. गांव के लोगों ने कई बार विनीता को हरि के साथ देखा. इस पर वह तरहतरह की बातें बनाने लगे. गांव वालों के बीच विनीता के इश्क के चर्चे होने लगे. इस से छोटेलाल की गांव में बदनामी हो रही थी.

घरपरिवार के सभी लोगों ने विनीता को खूब समझाया लेकिन प्यार में आकंठ डूबी विनीता पर इस का कोई असर नहीं हुआ. पूरा परिवार गांव में हो रही बदनामी से परेशान था. रोज घर में कलह होती लेकिन हो कुछ नहीं पाता था.

29 सितंबर की सुबह करीब 8 बजे विनीता अपनी भाभी नन्ही देवी के साथ दिशामैदान के लिए खेतों की तरफ गई थी. कुछ समय बाद नन्ही देवी घर लौटी तो विनीता उस के साथ नहीं थी. घर वालों ने उस से विनीता के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि जब वह दिशामैदान के बाद बाजरे के खेत से बाहर निकली तो उसे विनीता नहीं दिखी.

उस ने सोचा कि विनीता शायद अकेली घर चली गई होगी. लेकिन यहां आ कर पता चला कि वह यहां पहुंची ही नहीं है. नन्ही ने कहा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि विनीता अपनी किसी सहेली के यहां चली गई हो.

कुछ ही देर में गांव के एक किसान चंद्रपाल ने विनीता के घर पहुंच कर बताया कि रामानंद शर्मा के बाजरे के खेत में विनीता की लाश पड़ी है. उस समय छोटेलाल पत्नी के साथ डाक्टर के पास दवा लेने गए थे. छोटेलाल के धान के खेत के बराबर में ही रामानंद का बाजरे का खेत था.

यह खबर सुन कर सभी घर वाले लगभग दौड़ते हुए घटनास्थल पर पहुंचे. विनीता की लाश देख कर सब बिलखबिलख कर रोने लगे. इसी बीच वहां गांव के काफी लोग पहुंच गए थे. ग्रामप्रधान भी मौके पर थे. उन्होंने घटना की सूचना स्थानीय थाना अलीगंज को दे दी.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी विशाल प्रताप सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. विनीता के पेट में गोली लगने के निशान थे. निशान देख कर ऐसा लग रहा था कि किसी ने काफी नजदीक से गोली मारी है. इस का मतलब था कि हत्यारे को विनीता काफी अच्छी तरह से जानती थी. इसी बीच रोतेबिलखते छोटेलाल और उन की पत्नी भी वहां पहुंच गए.

थानाप्रभारी विशाल प्रताप सिंह ने नन्ही और बाकी घर वालों से आवश्यक पूछताछ की. फिर विनीता की लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.

थाने वापस आ कर उन्होंने छोटेलाल कश्यप की लिखित तहरीर पर गांव के ही इंद्रपाल, हरपाल, उमाशंकर और धनपाल के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. तहरीर में हत्या का कारण इन लोगों से रंजिश बताया गया था.

थानाप्रभारी सिंह ने केस की जांच शुरू की तो पता चला कि विनीता का भाई तालेवर अपने मकान के पीछे रहने वाली युवती से दुष्कर्म के मामले में 2014 से जेल में बंद है. पुलिस को पता चला कि जिस युवती ने रेप का आरोप लगाया था, छोटेलाल ने उस युवती के पिता को भी विनीता की हत्या में आरोपी बनाया गया था.

साथ ही विनीता के किसी हरि नाम के युवक से प्रेम संबंध की बात पता चली. बेटी की इस हरकत से घर वाले काफी परेशान थे. इस से पुलिस का शक विनीता के परिवार पर केंद्रित हो गया.

थानाप्रभारी ने सोचा कि कहीं एक तीर से दो शिकार करने की कोशिश तो नहीं की गई. विनीता से छुटकारा तो मिलता ही साथ ही तालेवर को जेल भेजने वाले को भी जेल की चारदीवारी में कैद कराने में सफल हो जाते.

पूरी घटना की जांच में यही निष्कर्ष निकला कि परिवार का ही कोई सदस्य इस घटना में शामिल है. लेकिन मांबाप तो थे नहीं, उन का बेटा नरेश गांव में नहीं था. बची बेटे की पत्नी नन्ही जो विनीता के साथ ही गई थी और अकेली वापस लौटी थी. नन्ही पर ही हत्या का शक गहराया. थानाप्रभारी ने गांव के लोगों से पूछताछ की तो ऐसे में एक व्यक्ति ऐसा मिल गया, जिस ने ऐसा कुछ बताया कि थानप्रभारी की आंखों में चमक आ गई.

इस के बाद 2 अक्तूबर को उन्होंने नन्ही देवी को घर से पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. जब महिला आरक्षी की उपस्थिति में नन्ही से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह टूट गई. उस ने विनीता की हत्या अपने नाबालिग बेटे शिवम के साथ मिल कर किए जाने की बात स्वीकार कर ली और पूरी कहानी बयान कर दी.

विनीता के हरि नाम के युवक से प्रेम संबंध की बात से घर का हर कोई नाराज था. समझाने के बावजूद भी विनीता नहीं मान रही थी. गांव में हो रही बदनामी से घर वालों का जीना मुहाल हो गया था.

नन्ही अपनी ननद विनीता की कारगुजारियों से कुछ ज्यादा ही खफा थी. वह अपने परिवार को बदनामी से बचाना चाहती थी. इसलिए उस ने विनीता की हत्या अपने नाबालिग बेटे शिवम से कराने का फैसला कर लिया.

इस हत्या में उस इंसान को भी फंसा कर  जेल भेजने की योजना बना ली, जिस की बेटी से दुष्कर्म के मामले में उस का देवर तालेवर जेल में बंद था. उस इंसान के जेल जाने पर उस से समझौते का दबाव बना कर वह देवर तालेवर को जेल से छुड़ा सकती थी. घर में एक .315 बोर का तमंचा पहले से ही रखा हुआ था. नन्ही ने शिवम के साथ मिल कर विनीता की हत्या की पूरी योजना बना ली.

29 सितंबर की सुबह 8 बजे नन्ही ने बेटे शिवम को तमंचा ले कर घर से पहले ही भेज दिया. फिर विनीता को साथ ले कर दिशामैदान के लिए खुद घर से निकल पड़ी. विनीता को ले कर नन्ही अपने धान के खेत के बराबर में बाजरे के खेत में पहुंची. शिवम वहां पहले से मौजूद था.

विनीता के वहां पहुंचने पर शिवम ने तमंचे से विनीता पर फायर कर दिया. गोली सीधे विनीता के पेट में जा कर लगी. विनीता जमीन पर गिर कर कुछ देर तड़पी, फिर शांत हो गई.

विनीता की लीला समाप्त करने के बाद शिवम ने अपने धान के खेत में तमंचा छिपाया और वहां से छिपते हुए निकल गया. नन्ही भी वहां से घर लौट गई. लेकिन पुलिस के शिकंजे से वह न अपने आप को बचा सकी और न ही अपने बेटे को.

थानाप्रभारी विशाल प्रताप सिंह ने नन्ही को मुकदमे में 120बी का अभियुक्त बना दिया. शिवम की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त तमंचा भी पुलिस ने बरामद कर लिया.

आवश्यक लिखापढ़ी के बाद नन्ही को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया, और शिवम को बाल सुधार गृह.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में शिवम नाम परिवर्तित है.

इंसाफ की राह : किस की थी वो दुआ? – भाग 6

अली भाई की भी हालत खराब थी. वे अली भाई को ले कर अंदर पहुंचे तो जज अपनी सीट पर बैठे थे. उन्होंने इफ्तिखार अहमद की ओर देख कर पूछा, ‘‘आप की बच्ची घर पहुंच गई?’’

‘‘जी सर, लेकिन अगवा हुई बच्ची मेरी नहीं थी. सिर्फ उस का नाम दुआ था.’’ इफ्तिखार अहमद ने कहा.

‘‘लेकिन आप ने तो कहा था कि वह बच्ची आप की थी?’’ जज ने हैरानी से कहा.

‘‘जी सर, जब मुझे पता चला कि मेरी बेटी दुआ का अपहरण कर लिया गया है और वह बेरहम अपराधियों के हाथों में है तो मैं परेशान हो उठा. उसे सकुशल छोड़ने के लिए मुझ से कहा गया कि मैं अली भाई की जमानत में रुकावट न डालूं. आप अंदाजा नहीं लगा सकते कि उस समय मेरी क्या हालत हुई होगी. लेकिन जब उन लोगों ने दुआ से मेरी बात कराई तो मुझे पता चल गया कि वह मेरी बेटी दुआ नहीं है .

‘‘क्योंकि मेरी दुआ हकलाती है. वह साफ नहीं बोल पाती, जिस का इलाज चल रहा है. जबकि उस बच्ची ने मुझ से साफ लहजे में बात की थी. उसी से मैं समझ गया था कि अपहर्ताओं ने गलत बच्ची को उठा लिया है.

सच्चाई जान कर भी मेरे जमीर ने ये गंवारा नहीं किया कि मैं अपनी कामयाबी के लिए एक मासूम को बलि चढ़ा दूं. दूसरी ओर मैं यह भी नहीं चाहता था कि अहम मुकदमे का जालिम गुनहगार छूट जाए.’’ इफ्तिखार अहमद ने पूरी बात एक ही सांस में कह दी.

‘‘बच्ची का अपहरण किन लोगों ने किया था?’’ जज ने पूछा.

‘‘अपहरण करने वाले अली भाई के आदमी थे.’’

‘‘आप ने उन्हें देखा था?’’

‘‘नहीं सर, आते समय कोर्ट के बाहर वाली लालबत्ती पर एक भिखमंगे ने मुझे एक मोबाइल फोन दिया था. उसी से अपहर्त्ताओं ने मुझे अपहरण की जानकारी दी थी.’’ इफ्तिखार अहमद ने कहा.

‘‘ऐसे में आप कैसे कह सकते हैं कि वे अली भाई के आदमी थे?’’ जज ने पूछा.

‘‘क्योंकि उन्होंने मुझे अली भाई की जमानत में रुकावट न डालने के लिए कहा था. उन की बात न मानने पर उन्होंने बच्ची को मार देने की धमकी दी थी.’’

‘‘यह सरासर झूठ है, एक तरह से अली भाई के खिलाफ साजिश है.’’ अली भाई का वकील चीखा.

जज ने उसे घूरते हुए गुस्से से कहा, ‘‘अभी आप खामोश रहें, आप से भी पूछा जाएगा.’’

‘‘यह सच है सर, इस का सुबूत यह है कि जिस बच्ची का अपहरण हुआ था, वह मेरे घर में मौजूद है, क्योंकि अली भाई की जमानत मंजूर होने के बाद अपहर्त्ता उसे मेरे घर के सामने छोड़ गए थे.’’ इफ्तिखार अहमद ने खुलासा किया.

‘‘सर, यह मेरे मुवक्किल के खिलाफ साजिश रची गई है.’’ अली भाई के वकील ने एक बार फिर जोर लगाया.

‘‘जी सर, इस मामले में मुलजिम की जमानत का कोई चांस नहीं था, क्योंकि वह दर्जनों बेगुनाह लोगों का कातिल है. इसलिए इन के साथियों ने मेरी बेटी ‘दुआ’ के अपहरण की साजिश रची. मगर अपहर्त्ताओं ने गलती से मेरी बेटी ‘दुआ’ की जगह दूसरी बच्ची का अपहरण कर लिया. ऐसा शायद नाम की वजह से हुआ, क्योंकि उस का भी नाम दुआ था.’’

‘‘जब वह आप की बेटी नहीं थी तो आप ने अपहर्त्ताओं की बात क्यों मानी?’’ जज ने पूछा.

‘‘सर, वह भले मेरी दुआ नहीं थी, लेकिन किसी न किसी की तो दुआ थी. वह भी उस से उतना ही प्यार करता होगा, जितना मैं अपनी दुआ से करता हूं. मैं ने आप से मदद भी बहुत हिम्मत कर के मांगी थी. अगर उस बच्ची को कुछ हो जाता तो मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाता. मुझ पर आप का एहसान है, जिस की वजह से बच्ची मेरे घर में महफूज है.’’

अब तक अली भाई के वकील ने खुद को काफी हद तक संभाल लिया था. उस ने कहा, ‘‘सर, इस बात का क्या सुबूत है कि यह काम अली भाई ने करवाया था?’’

‘‘सुबूत है सर, अली भाई की जेब में वह मोबाइल फोन मौजूद है, जिस पर अपहर्त्ताओं ने मुझ से बात की थी. मुझे वह नंबर भी याद है, जिस नंबर से उन्होंने फोन किया था. उस नंबर को मोबाइल में देखा जा सकता है. यही नहीं, जब फोन करने वाला पकड़ा जाएगा तो खुद ही सारी कहानी सुना देगा.’’ इफ्तिखार अहमद ने कहा.

इफ्तिखार अहमद की दलीलें सुन कर अली भाई का चेहरा उतर गया. उन का हाथ जेब तक जाता, उस से पहले ही एक पुलिस वाले ने उन की जेब से वह मोबाइल फोन निकाल कर जज के सामने रख दिया. जज ने मोबाइल फोन का काल लौग चैक किया तो इफ्तिखार अहमद द्वार बताए फोन नंबर से उस पर फोन आए थे.

इस के बाद सारा मामला खुल गया. जज ने नाराज होते हुए कहा, ‘‘अली भाई, तुम शरीफ आदमी के रूप में शातिर अपराधी हो. तुम्हें सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए. मैं देखता हूं, तुम कैसे बचते हो?’’

हुआ यह था कि इफ्तिखार अहमद ने मुकदमे की फाइल में संक्षेप में सारी स्थिति लिख कर जज के सामने पेश कर दी थी. जज ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए फौरन ऐक्शन लिया और अली भाई की जमानत मंजूर कर ली. लेकिन जमानत की रकम इतनी ज्यादा रख दी कि उस की व्यवस्था करने में समय लगे.

इस के बाद इफ्तिखार अहमद की कोशिश पर अली भाई ने अपने आदमियों से बच्ची को उस के घर पहुंचाने के लिए कह दिया. उन के वकील ने ऐतराज किया, लेकिन अली भाई को यकीन हो गया था कि अब उस की जमानत हो चुकी है, इसलिए कोई कुछ नहीं कर सकता. यही सोच कर उस ने अपना फैसला नहीं बदला.

बच्ची के रिहा होते ही जज की ओर से बुलाए गए सीआईडी वालों ने मामला संभाल लिया.

एक टीम इफ्तिखार अहमद के घर पहुंच गई. मदीहा ने पति से पूछ कर बच्ची को उन के हवाले कर दिया. उसी बीच स्कूल की प्रिंसिपल और बच्ची के मांबाप भी वहां पहुंच गए तो बच्ची उन्हें सौंप दी गई.

एकएक खबर जज तक पहुंच रही थी. इस के बाद जज के आदेश पर इलाके के थाने में इस अपहरण की भी अली भाई और उस के साथियों के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दर्ज की गई. इस तरह अली भाई के खिलाफ एक और मामला दर्ज हो गया. अदालत से उसे सीधे जेल भेज दिया गया.

अली भाई के आदमी खूंखार नजरों से इफ्तिखार अहमद को घूर रहे थे. उन्होंने जज से कहा, ‘‘सर, मैं ने तो अपना फर्ज पूरा किया, लेकिन मुझे अली भाई के आदमियों से खतरा महसूस हो रहा है, अगर मुझे या मेरे परिवार के किसी सदस्य को कुछ हुआ तो इस का जिम्मेदार अली भाई होगा.’’

जज ने इफ्तिखार अहमद को तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘आप बिलकुल चिंता न करें. आप की पूरी हिफाजत की जाएगी.’’

पूरी तरह आश्वस्त और खुश हो कर इफ्तिखार अहमद बाहर आए तो मीडिया वालों ने उन्हें घेर लिया.

जब सभी चैनलों पर यह दिखाया जा रहा था कि एडवोकेट इफ्तिखार के साथ क्या हुआ और उन्होंने इस मुश्किल का कैसे मुकाबला किया तो लाखों लोगों के साथ नन्ही दुआ भी अपने पापा को टीवी स्क्रीन पर देख कर खुश हो रही थी.

इंसाफ की राह : किस की थी वो दुआ? – भाग 5

जज के इस फैसले से परेशान अली भाई ने अपने वकील को बुला कर कुछ कहा तो वह फोन करने लगा. मीडिया वाले इस ब्रेकिंग न्यूज को अपने चैनलों तक पहुंचाने के लिए भागे. पीडि़त इफ्तिखार अहमद को बुराभला कह रहे थे, ‘‘आप ने हमारा बेड़ा गर्क कर दिया. हमें कतई यकीन नहीं था कि आप ऐसा करेंगे. मरने वालों की जो इंसाफ की गुहार ले कर हम आप के पास आए थे, वह बेकार चली गई.’’

इफ्तिखार अहमद ने एक सर्द आह भरी. मुकदमा करने वाले गुस्से से बड़बड़ाते चले गए. इस के बाद इफ्तिखार अहमद ने अली भाई के पास जा कर धीरे से कहा, ‘‘अली भाई, आप का काम हो गया, अब आप मेरी बच्ची को छोड़ दें.’’

अली भाई ने हैरानी से अपने वकील की ओर देखते हुए कहा, ‘‘वकील साहब, यह किस बच्ची की बात कर रहे हैं?’’

‘‘पता नहीं सर, शायद आज इन की तबीयत ठीक नहीं है.’’ अली भाई के वकील ने इफ्तिखार अहमद का मजाक उड़ाते हुए कहा.

‘‘अली भाई, आप अच्छी तरह जानते हैं कि मैं किस बच्ची की बात कर रहा हूं. आप की जमानत हो गई है. अब आप अपने आदमियों से कहें कि मेरी बच्ची को छोड़ दें, अन्यथा मैं इस मामले को कहीं और ले कर जाऊंगा. इफ्तिखार अहमद ने गुस्से से कहा.’’

‘‘आराम से वकील साहब. इतनी जल्दी क्या है? जमानत तो हो जाने दीजिए.’’ अली भाई ने कहा.

‘‘मैं अब पलभर सब्र नहीं कर सकता. वैसे भी छुट्टी होने का समय हो गया है. अगर बच्ची समय पर घर नहीं पहुंची तो मेरी बीवी फौरन स्कूल फोन करेगी. वहां से पता चलेगा कि बच्ची स्कूल पहुंची ही नहीं तो वह मुझे फोन करेगी. मेरा मोबाइल फोन गाड़ी में पड़ा है. मुझ से बात नहीं होगी तो वह पुलिस को फोन करेगी. मेरी बात समझ में आ रही है न?’’ इफ्तिखार ने इतनी सारी बात एक सांस में कह डाली.

अली भाई सोच में पड़ गया. शातिर आदमी था, इसलिए समझ गया कि अगर मामला खुल गया तो जमानत रद्द हो जाएगी. उस पर एक मामला और बन जाएगा. पौने 12 बज रहे थे. 1 बजे छुट्टी होती थी. सवा बजे बच्ची को घर पहुंच जाना चाहिए.

अली भाई ने धीरे से कहा, ‘‘तुम अपनी बीवी को फोन करो कि वह सब्र करे, बच्ची घर पहुंच जाएगी.’’

‘‘वह पल भर भी सब्र नहीं कर सकती. वह तुरंत अपने भाई डीएसपी सफदर खान को फोन करेगी. वह एंटी टेररिस्ट स्क्वायड में हैं, आप ने उन का नाम सुना ही होगा? मुझ पर एकएक पल भारी पड़ रहा है. अगर मैं ने सब्र खो दिया तो आप की जमानत पर होने वाली रिहाई रद्द हो जाएगी.’’

इफ्तिखार अहमद का इतना कहना था कि अली भाई और उन का वकील परेशान हो गया. आपस में थोड़ी खुसरफुसुर कर के अली भाई ने कहा, ‘‘ठीक है, 1 बजे बच्ची को घर के दरवाजे पर छोड़ दिया जाएगा.’’

उन के वकील ने कहा, ‘‘सर, अभी जमानत की रकम आने में एक घंटा है.’’

अली भाई ने कहा, ‘‘अब कोई फर्क नहीं पड़ता.’’

इफ्तिखार अहमद ने भिखमंगे द्वारा दिया गया मोबाइल फोन निकाल कर अली भाई को देते हुए कहा, ‘‘आप की अमानत है. मैं ने अपना काम कर दिया. अब मुझे इजाजत दें.’’

अली भाई ने कहा, ‘‘ठीक है, आप जा सकते हैं, लेकिन एक बजे से पहले नहीं.’’

मीडिया की दखलंदाजी रोकने के लिए अदालत में ज्यादा लोग अली भाई के ही होते थे. एक बजते ही इफ्तिखार अहमद अपनी कार की ओर भागे. कार में बैठ कर तुरंत मदीहा को फोन किया. लेकिन दूसरी ओर से फोन नहीं उठा.

तभी किसी ने उन की कार का शीशा ठकठकाया. उन्होंने उस की ओर देखा तो उस ने शीशा खोलने का इशारा किया. उन्होंने कार का शीशा नीचे किया तो उस ने पूछा, ‘‘आप की बच्ची घर पहुंच गई?’’

‘‘यही पता करने के लिए तो घर फोन कर रहा हूं, लेकिन फोन ही नहीं उठ रहा.’’ इफ्तिखार अहमद ने कहा.

‘‘जैसे ही बच्ची के घर पहुंचने की जानकारी आप को हो, आप कार से बाहर आ कर इस की छत पर 2 बार हाथ पटक दीजिएगा.’’ इतना कह कर वह आदमी तेजी से चला गया.

इफ्तिखार अहमद ने घर फोन किया तो इस बार मदीहा ने फोन रिसीव कर लिया. उन के ‘हैलो’ करते ही इफ्तिखार अहमद  ने गुस्से से पूछा, ‘‘इतनी देर तक कहां थी? दुआ घर आ गई?’’

‘‘हां, दुआ तो घर आ गई है, लेकिन एक अजीब बात है.’’

‘‘दूसरी बच्ची कहां है?’’ इफ्तिखार अहमद ने जल्दी से पूछा.

‘‘इस का मतलब आप जानते हैं?’’ मदीहा ने हैरानी से पूछा.

‘‘तुम उस बच्ची को भी अंदर कर के दरवाजा ठीक से बंद कर लो. जब तक मैं न आऊं, दरवाजा बिलकुल मत खोलना. स्कूल फोन कर के उस बच्ची के बारे में बता दो, लेकिन बच्ची को किसी को देना मत.’’ जल्दी जल्दी इफ्तिखार अहमद ने पूरी बात समझा दी.

‘‘क्या बात है, कोई खतरा है क्या?’’ मदीहा ने पूछा.

‘‘मैं घर आ कर सब बताता हूं, अभी जितना कहा है, बस उतना करो.’’

कह कर इफ्तिखार अहमद सुकून से बाहर निकले और कार की छत पर 2 बार हाथ मार कर अदालत की ओर रवाना हो गए. रजिस्ट्रार के कमरे में जमानत की काररवाही चल रही थी. अली भाई बरामदे में खड़े थे, तभी कुछ लोगों ने उन्हें घेर लिया.

वे किसी तरह की वर्दी में नहीं थे, इसलिए उन के वकील ने परेशान हो कर पूछा, ‘‘तुम लोग कौन हो? अली भाई की जमानत हो चुकी है?’’

‘‘जमानत तो हो चुकी थी, लेकिन जमानत देने वाले जज ने उसे रद्द कर के मुलजिम को अदालत में ले आने के लिए कहा है.’’ उन में से एक आदमी ने कहा.

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है?’’ वकील ने ऐतराज जताया.

वे लोग पुलिस की मदद से अली भाई को ले कर अदालत की ओर बढ़े तो उन का वकील पीछेपीछे लपका. वह उन लोगों को समझाने लगा, लेकिन उन लोगों ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया.

इंसाफ की राह : किस की थी वो दुआ? – भाग 4

इफ्तिखार अहमद का खून खौल रहा था. लेकिन उस समय वह पूरी तरह से मजबूर थे. अपनी जगह पर बैठ कर वह मुकदमे की फाइल देखने लगे. ठीक 11 बजे जज ने सीट संभाली. अली भाई के वकील ने खड़े हो कर कहा, ‘‘सर, मैं अलीभाई की जमानत की अर्जी देना चाहता हूं.’’

जज ने एकदम से कहा, ‘‘अभी तो जुर्म पर बहस होनी है. उस के बाद ही जमानत की अर्जी दी जा सकती है.’’

वकील जल्दी से बोला, ‘‘सर, बहस होती रहेगी, आप अर्जी तो ले लीजिए. मेरा मुवक्किल 70 साल का बूढ़ा और बीमार आदमी है. वह समाज का एक सम्मानित आदमी है. ऐसे आदमी को जमानत मिल जानी चाहिए. जनाब वकील इस्तगासा को भी इस जमानत पर कोई ऐतराज नहीं है.’’

बचाव पक्ष के वकील की इस बात पर वहां मौजूद लोग हैरान रह गए. जज को भी हैरानी हुई. उन्होंने इफ्तिखार अहमद की ओर देख कर कहा, ‘‘मि. इफ्तिखार अहमद, सचमुच आप को इस अर्जी पर कोई ऐतराज नहीं है?’’

सकुचाते हुए इफ्तिखार अहमद खड़े हुए, ‘‘जी नहीं सर, मानवीय आधार पर मुझे कोई ऐतराज नहीं है.’’

जज हैरानी से इफ्तिखार अहमद को देखते रह गए. इस के बाद उन्होंने अली भाई के वकील से कहा, ‘‘ठीक है, आप जमानत की अरजी दे दीजिए.’’

इस के बाद मुकदमा करने वालों में से एक आदमी ने इफ्तिखार अहमद के पास आ कर कहा, ‘‘वकील साहब, आप यह क्या कर रहे हैं? जमानत पर छूटते ही यह आदमी गायब हो जाएगा, आप ऐतराज करें.’’

इफ्तिखार अहमद ने झुंझला कर कहा, ‘‘आप लोग परेशान मत हों, ऐसा कुछ नहीं होगा. मुझे मेरा काम करने दें.’’

अरजी लगते ही बचाव पक्ष के वकील में जोश सा आ गया. अब वह अली भाई की जमानत के लिए तरह तरह की दलीलें देने लगा. परेशान हो कर जज ने कहा, ‘‘पहले जुर्म तय हो जाने दो, उस के बाद जमानत पर विचार किया जाएगा.’’

इस पर वकील ने ढिठाई से कहा, ‘‘जनाब, दोनों मामले साथसाथ भी तो चल सकते हैं.’’

जज ने इफ्तिखार अहमद से पूछा, ‘‘इस बारे में आप का क्या विचार है वकील साहब?’’

इफ्तिखार अहमद ने सकुचाते हुए कहा, ‘‘मेरे खयाल से वकील साहब ठीक ही कह रहे हैं.’’

जज ने खीझ कर कहा, ‘‘दोनों मामले साथसाथ कैसे चल सकते हैं? पहले छोटे मोटे कर्मचारियों पर आरोप लगा. दोबारा मामले की जांच कराई गई तो अली भाई और उन के साथी इस मामले में फंस गए. जब तक अपराध तय नहीं हो जाता, जमानत पर बात कैसे हो सकती है?’’

अली भाई के वकील ने बीमारी, उम्र, हैसियत, पिछला रिकौर्ड, सामाजिक कार्यों के उदाहरण दे कर उस ने जमानत की अरजी एक बार फिर जज के सामने पेश की तो जज ने इफ्तिखार अहमद से पूछा, ‘‘आप इस जमानत के लिए राजी हैं?’’

‘‘जी सर, मुलजिम की उम्र, बीमारी और हैसियत को देखते हुए मुझे इन की जमानत होने में कोई ऐतराज नहीं है, बल्कि समर्थन में मैं ने कुछ पौइंट्स लिख रखे हैं, जिन्हें मैं आप की खिदमत में पेश करना चाहता हूं.’’ इफ्तिखार अहमद ने सुकून से कहा.

‘‘इजाजत है, आप पेश कर सकते हैं.’’ जज ने कहा. इफ्तिखार अहमद ने मुकदमे की फाइल खोल कर जज के सामने रखते हुए कहा, ‘‘सर, ये कुछ पौइंट्स हैं, इन्हें देख कर यकीनन आप मेरी बात से सहमत हो जाएंगे कि मुलजिम की जमानत से मुकदमे पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा.’’

एक नजर इफ्तिखार अहमद पर डाल कर जज फाइल पढ़ने लगे. फाइल पढ़ते हुए उन का चेहरा भावशून्य रहा. इफ्तिखार अहमद, अली भाई का वकील और मुकदमा करने वालों की नजरें जज पर टिकी थीं कि वह क्या कहने वाले हैं.

फाइल पढ़ने के बाद जज ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘इफ्तिखार अहमद, आप के पौइंट्स काबिलेगौर हैं. अदालत इन्हीं पौइंट्स को ध्यान में रख कर जमानत की अरजी पर विचार करेगी.’’

इफ्तिखार अहमद के साथ बचाव पक्ष के वकील ने भी सुकून की सांस ली. सिर्फ मुकदमा करने वाले परेशान थे. अली भाई मुसकरा रहा था. उन का वकील जमानत के लिए दलीलें दे रहा था. इफ्तिखार अहमद ने एक बार भी ऐतराज नहीं किया.

करीब 12 बजे थोड़ी देर के लिए अदालत को स्थगित कर के जज अपने चैंबर में चले गए. मुकदमा पूरी तरह अली भाई के पक्ष में हो गया था. जज के आते ही मुकदमा करने वाले लोग इफ्तिखार अहमद के पास आ कर कहने लगे, ‘‘वकील साहब, आप यह क्या कर रहे हैं? लगता है, आप अली भाई से मिल गए है?’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. आप लोग बिलकुल चिंता न करें. अगर उसे जमानत मिल भी गई तो वह सजा से नहीं बच पाएगा.’’

जब वे लोग बहस करने लगे तो तबीयत खराब होने का बहाना कर के इफ्तिखार अहमद आगे बढ़ गए. वह उन्हें कैसे समझाते कि एक बच्ची की जिंदगी का सवाल है.

10 मिनट बाद ही जज आ कर अपनी सीट पर बैठ गए. आगे की काररवाही शुरू हुई. वकील सफाई ने जमानत की बात की तो जज ने सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘इस्तगासा वकील की ओर से ऐतराज न होने की वजह से अदालत अली भाई की जमानत की अरजी 50 करोड़ रुपए की निजी जमानत पर मंजूर करती है.’’

जमानत की बात सुन कर अली भाई और उन के वकील के चेहरे पर जो खुशी उभरी थी, 50 करोड़ रुपए की बात सुन कर लुप्त हो गई. वकील ने झट कहा, ‘‘सर, जमानत की रकम बहुत ज्यादा है.’’

‘‘कोई ज्यादा नहीं है. अली भाई की प्रौपर्टी, कंपनियां, शेयर्स वगैरह मिला कर 10 अरब से ज्यादा की संपत्ति है. उस पर 50 करोड़ रुपए की जमानत कोई ज्यादा नहीं है.’’ जज ने सोच समझ कर जवाब दिया.

‘‘सर, जमानत की रकम बहुत ज्यादा है. इस में कुछ समय लगेगा.’’ अली भाई के वकील ने बेबसी से कहा.

जज ने तुरंत कहा, ‘‘इस हालत में जमानत पर रिहाई अगली पेशी तक के लिए मुल्तवी की जा सकती है.’’

‘‘नहीं… नहीं सर, जमानत की रकम का बंदोबस्त जल्दी ही हो जाएगा.’’ वकील ने कहा.

‘‘जब तक जमानत की रकम जमा नहीं की जाती, मुलजिम अली भाई पुलिस की निगरानी में रहेगा. जमानत की रकम जमा होने के बाद ही उसे रिहा किया जाएगा.’’ कह जज साहब उठे और अपने चैंबर में चले गए.

इंसाफ की राह : किस की थी वो दुआ? – भाग 3

इफ्तिखार अहमद को लगा कि यह आदमी अदालत की काररवाही से अच्छी तरह वाकिफ है. इसे पता है कि अदालत में जज अच्छे वकीलों की बात का जल्दी विरोध नहीं करते. अगर दलीलें न दी जाएं तो केस कमजोर हो जाता है.

मगर इफ्तिखार अहमद वकील थे, उन्होंने तर्क जारी रखे, ‘‘इस तरह नहीं होता. अगर मैं दलीलें नहीं दूंगा तो खुद शक के घेरे में आ जाऊंगा. अगर मैं ने अली भाई के विरोध में दलीलें नहीं दीं तो जज समझ जाएगा कि मुझ पर दबाव डाला गया है. इस के बाद तो जमानत की उम्मीद और कम हो जाएगी. मेरी जरा भी लापरवाही पर जज को संदेह हो सकता है.’’

इफ्तिखार अहमद के इन तर्कों पर वह आदमी सोच में पड़ गया. इस के बाद उस ने कहा, ‘‘ठीक है, मैं तुम से थोड़ी देर बाद बात करता हूं. और हां, एक बात याद रखना, तुम्हारे ऊपर हमारी नजर रहेगी, किसी से बात करने की कोशिश मत करना.’’

‘‘ठीक है जी, मैं किसी से कोई बात नहीं करूंगा, क्योंकि मुझे अपनी बेटी दुनिया में सब से प्यारी है.’’

और फोन कट गया.

इफ्तिखार अहमद ऐसी जगह खड़े थे, जहां आसानी से उन पर नजर रखी जा सकती थी. पार्किंग में गाडि़यां आजा रही थीं, लोग भी आजा रहे थे. उन्होंने घड़ी देखी, साढ़े 9 बज रहे थे. उसी समय उन का अपना फोन बजा. उन्हें एक मुकदमा और देखना था, उसी मुवक्किल का था. लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया. वह उस के आदेश की अवहेलना भला कैसे कर सकते थे, बेटी की जिंदगी का सवाल था.

थोड़ी देर बाद भिखमंगे वाला फोन बजा. उन्होंने फोन रिसीव कर के कान से लगाया तो दूसरी ओर से कहा गया, ‘‘तुम्हें जो कहा गया है, तुम वही करना.’’

‘‘तुम ने जो कहा है, मैं वही करूंगा. अगर इस के बाद भी अली भाई की जमानत नहीं हुई तो…’’

‘‘किसी भी हालत में अली भाई की जमानत होनी चाहिए. उस के बाद ही तुम्हारी दुआ की जान बच सकती है. इस के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है,’’ उस ने सख्त लहजे में कहा, ‘‘और हां, किसी से फोन पर भी बात मत करना, वरना सजा तुम्हारी बेटी को मिलेगी.’’

इफ्तिखार अहमद ने झुंझला कर मोबाइल फोन बगल वाली सीट पर पटक दिया. उस आदमी की बातचीत का अंदाज बता रहा था कि वह पेशेवर मुजरिम है. वह काफी चालाक लग रहा था.

अली भाई के लोगों ने काफी सोचविचार कर योजना बनाई थी. अली भाई खुद सामने नहीं आया था. स्कूल से दुआ का अपहरण करने वाला भी सामने नहीं आया था. दुआ कहां और किस के पास है, उन की निगरानी कौन कर रहा है? इस का कुछ पता नहीं था. इफ्तिखार अहमद को लग रहा था कि जैसे उन के हाथपैर बांध कर उन्हें पानी में डाल दिया गया हो और उन से कहा जा रहा हो कि तैरो. वे लोग मुजरिम थे, लेकिन इस समय उन के जुर्म से ज्यादा अहम उन की मजबूरी थी.

मुकदमा बहुत महत्त्वपूर्ण था. अदालत ने मुजरिमों की सख्त निगरानी का आदेश दे रखा था. बख्तरबंद गाडि़यों में उन्हें लाया जाता था. उन्हें लाने ले जाने में पुलिस काफी सतर्क रहती थी. जब उन्होंने देखा कि अली भाई की जमानत का कोई उपाय नहीं है तो उन्होंने यह युक्ति अपनाई थी.

इफ्तिखार अहमद इस नए मसले को सुलझाने की कोई तरकीब सोच रहे थे. उन की चिंता यह थी कि दुनिया लाख गलत काम कर रही हो, लेकिन उन्हें अपनी ईमानदारी और पेशे की लाज रखनी है. आज पहली बार वह अपने उसूलों के खिलाफ कुछ करने जा रहे थे, क्योंकि वह काफी दबाव में थे.

10 बज गए थे. शीशे बंद होने की वजह से गरमी लग रही थी. वह खिड़की भी नहीं खोल सकते थे. उन्होंने इंजन स्टार्ट कर के एसी चला दिया और मुकदमे की फाइल खोल कर देखने लगे कि अली भाई का वकील जमानत के लिए क्या क्या दलीलें दे सकता है.

सब से मजबूत दलील अली भाई की हैसियत और दौलत थी. उस का कारोबार बाहर के मुल्कों तक फैला था. उस की कई कंपनियां थीं. वह करोड़ों का टैक्स अदा करता था. उस के नाम से कई अनाथाश्रम चलते थे. यह पहला मौका था, जब उस के ऊपर मुजरिम की हैसियत से मुकदमा चल रहा था. यह दलील भी दी जा सकती थी कि उस का नाम इसीएल में है, इसलिए वह देश छोड़ कर नहीं भाग सकता. इस के अलावा उसे चंदा लेने वालों की हमदर्दी भी हासिल थी.

एक बार फिर फोन बजा. इफ्तिखार अहमद ने फोन रिसीव किया तो उस आदमी ने हुक्म दिया, ‘‘अब तुम अदालत जा सकते हो. लेकिन न कहीं रुकोगे, न किसी से मिलोगे और न किसी से बात करोगे. अपने मिलने जुलने वालों से भी दूर रहोगे.’’

‘‘अगर कोई मिलने आ गया तो?’’

‘‘सिर्फ सलाम कर के व्यस्तता का बहाना बना कर आगे बढ़ जाओगे. याद रखना, हमारे आदमी तुम्हारे आसपास होंगे. कोई इशारा किया या बात की तो हमें फौरन पता चल जाएगा.’’

‘‘मैं कुछ नहीं करूंगा. अब मैं कार से बाहर निकल सकता हूं?’’

‘‘हां, अब तुम बाहर आ जाओ, लेकिन अपना मोबाइल फोन कार में ही छोड़ दो. हमारा दिया मोबाइल फोन वाइबे्रट पर लगा कर जेब में रख लो.’’

इफ्तिखार अहमद पौने 11 बजे अदालत पहुंचे. उस भीड़ में यह पता लगाना मुश्किल था कि उन पर कौन नजर रख रहा है. पुलिस अली भाई को अंदर ले आई. 70 साल की उम्र में भी वह पूरी तरह सेहतमंद थे. अपने वकील से बात करते समय उस ने इफ्तिखार अहमद की ओर देखा. उस के होठों पर तैरती हंसी और आंखों की चमक देख कर इफ्तिखार अहमद को समझते देर नहीं लगी कि यह सब कुछ उस के इशारे पर हुआ है.

इंसाफ की राह : किस की थी वो दुआ? – भाग 2

एडवोकेट इफ्तिखार अहमद बैड पर लेटे इंतजार कर रहे थे कि दुआ कब आ कर उन्हें उठाए. उन की सुबह दुआ के उठाने और रात बालों में अंगुलियां फेरने से होती थी. वह सोच ही रहे थे कि दुआ आ कर उन के सिरहाने बैठ गई. सोने का नाटक कर रहे इफ्तिखार अहमद ने उसे दबोच लिया.

दुआ ने हंसते हुए कहा, ‘‘नाश्ता तैयार है, आप जल्दी से फ्रैश हो कर आ जाइए.’’

इफ्तिखार अहमद नीचे आए तो बेटे उन से मिल कर स्कूल चले गए. वह दुआ के साथ बैठ कर उस से बातें करते हुए नाश्ता करने लगे. दुआ की वैन का हौर्न सुनाई दिया तो मदीहा उस का लंचबौक्स, बोतल और बैग ले कर वैन तक छोड़ने चली गई.

इफ्तिखार अहमद ने टीवी चालू किया तो अली भाई वाले मुकदमे से संबंधित खबरें आ रही थीं. मीडिया अली भाई को मानवता का दुश्मन बताते हुए समाज विरोधी घोषित कर रहा था. कहा जा रहा था कि यह लापरवाही से नहीं, बल्कि ऐसा जानबूझ कर किया गया था. इसलिए ऐसे आदमी को कतई जमानत नहीं मिलनी चाहिए. इसी के साथ इफ्तिखार अहमद की तारीफ करते हुए कहा जा रहा था कि वह किसी भी हालत में उस की जमानत नहीं होने देंगे.

इफ्तिखार अहमद ने खुदा का शुक्र अदा किया कि एक बार फिर मीडिया इस मामले में पूरी दिलचस्पी ले रहा है. दुआ को छोड़ कर आई मदीहा ने टीवी पर आ रही खबरों को देख कर मुकदमे की काररवाही के बारे में पूछा.

इफ्तिखार अहमद ने जो बताया, उसे सुन कर उस ने कहा, ‘‘अल्लाह करे, अली भाई की जमानत न हो. ऐसे लोगों को तो सरेआम फांसी पर चढ़ा देना चाहिए. और हां, आप कब तक वापस आ जाएंगे. दुआ को डाक्टर के यहां ले जाना है.’’

इफ्तिखार ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘शायद मुझे कुछ देर हो जाए, इसलिए तुम अनस के साथ डाक्टर के यहां चली जाना.’’

इफ्तिखार अहमद ने अली भाई के मुकदमे की फाइल निकाल कर एक बार फिर सारे पौइंट्स ध्यान से पढ़े. उन का पूरा ध्यान इस मुकदमे पर था. 9 बजे वह घर से निकल गए. सुबह के समय सड़क पर बहुत ज्यादा भीड़ होती थी. कोर्ट से पहले वाली लालबत्ती पर उन की कार रुकी तो भिखमंगों ने उन की कार को घेर लिया.

एक भिखमंगे ने कार का शीशा ठकठकाया. इफ्तिखार ने उस की ओर देख कर इशारे से मना कर दिया. लेकिन वह लगातार शीशा ठकठकाता रहा. उन्होंने दोबारा उस की ओर देखा तो उस ने अपनी हथेली उन के सामने कर दी. उस की हथेली पर काले स्केच से ‘दुआ’ लिखा था. इस के बाद उस ने एक पुराना मोबाइल फोन दिखाया तो इफ्तिखार अहमद ने शीशा खोल दिया.

भिखमंगे ने जल्दी से मोबाइल फोन इफ्तिखार अहमद की गोद में फेंक दिया और खुद भीड़ में गायब हो गया. उन्होंने उसे आवाज भी दी, लेकिन लौटने की कौन कहे, उस ने पलट कर भी नहीं देखा. उस के जाने के बाद उन्होंने मोबाइल उठाया तो उस की स्क्रीन पर भी ‘दुआ’ लिखा था.

इफ्तिखार अहमद परेशान हो उठे, दिमाग चकराने लगा. उसी समय हरी बत्ती हो गई. उन्होंने कार आगे बढ़ा दी. चंद मिनट बाद ही वह कोर्ट की पार्किंग में पहुंच गए. लेकिन उन का दिमाग ‘दुआ’ और ‘मोबाइल’ की गुत्थी में उलझा हुआ था.

मोबाइल भले ही पुराना था, लेकिन जानी मानी कंपनी का था. वह मोबाइल देख रहे थे कि तभी उस की घंटी बजने लगी. उन्होंने धड़कते दिल से फोन रिसीव किया तो दूसरी ओर से पूछा गया, ‘‘एडवोकेट इफ्तिखार अहमद?’’

‘‘जी बोल रहा हूं, यह कैसा मजाक है, मोबाइल फोन पर मेरी बेटी का नाम क्यों लिखा है?’’

दूसरी ओर से जवाब में कहा गया, ‘‘वकील साहब, यह मजाक नहीं, हकीकत है. तुम्हारी बेटी दुआ मेरे कब्जे में है.’’

इफ्तिखार अहमद को आघात सा लगा. पल भर के लिए उन का दिमाग सुन्न सा हो गया कि यह आदमी क्या कह रहा है? वह चीखे, ‘‘तुम्हारा दिमाग तो ठीक है, मेरी बेटी स्कूल गई है.’’

‘‘वह घर से स्कूल के लिए निकली जरूर थी, लेकिन पहुंची नहीं.’’

कांपती आवाज में इफ्तिखार अहमद ने कहा, ‘‘तुम झूठ बोल रहे हो.’’

‘‘तुम्हारे ऐसा कहने से हकीकत बदल नहीं जाएगी. हम ने उसे स्कूल के गेट के सामने से इतनी सफाई से उठा लिया है कि किसी को कानो कान खबर नहीं हुई.’’ फोन करने वाले ने बड़े ही रूखे लहजे में कहा.

इफ्तिखार की जान पर बन आई. उन का शरीर कांपने लगा. जल्दी ही खुद पर काबू पाते हुए उन्होंने कहा, ‘‘मेरे खयाल से तुम झूठ बोल रहे हो. अगर मेरी बेटी दुआ तुम्हारे पास है तो मेरी उस से बात कराओ.’’

‘‘जरूर करो,’’ उस आदमी ने कहा, ‘‘लो, अपने पापा से बात करो.’’

‘‘दुआ,’’ इफ्तेखार तड़प उठे. तभी दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘पापा, मुझे बचा लो. ये लोग मुझे पकड़ लाए हैं. पापा, मुझे आप के पास आना है.’’

बच्ची बुरी तरह से रो रही थी. इफ्तिखार अहमद की धड़कन रुक सी गई, लेकिन वह कुछ कहते, उस को पहले ही बच्ची से मोबाइल फोन ले लिया गया. इस के बाद उस आदमी ने कहा, ‘‘मेरे खयाल से अब तुम्हें तसल्ली हो गई होगी?’’

इफ्तिखार अहमद ने सूखे होठों पर जुबान फेरते हुए कहा, ‘‘तुम चाहते क्या हो?’’

उस आदमी ने हंसते हुए कहा, ‘‘अब विश्वास हो गया न कि तुम्हारी बेटी दुआ हमारे पास है.’’

‘‘जी…’’

‘‘और यह भी मानते हो कि हम इस के साथ कुछ भी कर सकते हैं, इसे मार भी सकते हैं?’’ उस ने मजाक उड़ाते हुए कहा.

‘‘जी. आगे बोलो, तुम चाहते क्या हो? काम की बात करो.’’

दूसरी ओर से कहा गया, ‘‘वकील साहब, काम की बात यह है कि आप अली भाई की जमानत का कोर्ट में विरोध नहीं करेंगे.’’

इफ्तिखार अहमद चौंके, ‘‘तुम अली भाई के आदमी हो?’’

‘‘तुम चाहो तो यही समझ लो. आज हर हालत में अली भाई को जमानत पर रिहा होना चाहिए.’’ दूसरी ओर से धमकी दी गई.

‘‘अगर ऐसा नहीं हो सका तो..?’’

‘‘तो यह तुम्हारी बच्ची के हक में अच्छा नहीं होगा. उस के टुकड़े कर के तुम्हें भेज दिए जाएंगे.’’ उस ने दांत पीसते हुए कहा.

‘‘पहली बात तो मामला अदालत में है, दूसरी बात जज अली भाई के खिलाफ है. मैं कोशिश न भी करूं, तब भी जमानत होना आसान नहीं है.’’ इफ्तिखार अहमद ने कहा.

‘‘मैं कुछ नहीं जानता. अगर आज जमानत नहीं हुई तो तुम अपनी बेटी को फिर कभी नहीं देख पाओगे.’’ उस आदमी ने चेतावनी दी.

‘‘खुदा के लिए मेरी बात सुनो, यह मेरे वश में नहीं है. अगर मैं अदालत में कोई भी दलील न दूं, तब भी मुझे नहीं लगता कि अली भाई की जमानत होगी. क्योंकि अदालत ने पहले से ही उन्हें जमानत न देने का मन बना लिया है. इसलिए मुझे नहीं लगता कि अली भाई की जमानत हो सकेगी.’’ इफ्तिखार अहमद बेबसी से गिड़गिड़ाए.

‘‘तुम्हें इस की चिंता करने की जरूरत नहीं है. अली भाई का वकील अपना काम करेगा. वह अदलत को कायल कर के अली भाई की जमानत मंजूर करा लेगा. तुम्हें उन के वकील का विरोध करने के बजाय समर्थन करना है. अगर तुम ने समर्थन कर दिया तो जज राजी हो जाएगा. जज तुम्हारा विरोध नहीं करेगा.’’

इंसाफ की राह : किस की थी वो दुआ? – भाग 1

आंख खुलते ही इफ्तिखार अहमद को किचन से आने वाली बच्चों की आवाजें सुनाई दीं. वे आवाजें खुशी से चहकने की थीं. बच्चे इस तरह चहक रहे थे, जैसे परिंदे रात खत्म होने पर सुबह का उजाला देख कर चहकते हैं. उन आवाजों में सब से प्यारी आवाज दुआ की थी.

दुआ इफ्तिखार अहमद की छोटी बेटी थी. बहुत ही प्यारी, एकदम बार्बी डौल जैसी. इफ्तिखार अहमद हाईकोर्ट के मशहूर और कामयाब वकील थे. उन के मुकदमा हाथ में लेते ही सामने वाला समझ लेता था कि वह मुकदमा हार चुका है. अदालत में उन के खड़े होते ही जज भी होशियार हो जाता. क्योंकि उन की दलीलें कानून की बेहतरीन मिसालें होती थीं और दुनिया भर के माने हुए कानूनी उदाहरण उन की बहस का हिस्सा होते थे.

आम लोग ही नहीं, उन के साथी वकील और जज भी उन्हें कानून का जिन्न कहते थे. लेकिन उन लोगों को पता नहीं था कि इस जिन्न की जान अपनी नन्ही सी बेटी दुआ में बसती है. वह दुनिया में अगर सब से ज्यादा किसी से मोहब्बत करते थे तो वह उन की बेटी दुआ थी. किसी से हार न मानने वाले इफ्तिखार अहमद नन्ही सी दुआ के सामने छोटी से छोटी बात पर घुटने टेक देते थे.

इफ्तिखार अहमद के 4 बच्चे थे, 3 बेटे और बेटी दुआ. बच्चों में वही सब से छोटी थी. 6 साल की दुआ का स्कूल में एक साल पहले ही दाखिला कराया गया था. इफ्तिखार अहमद अभी उस का दाखिला नहीं कराना चाहते थे, लेकिन उन की बीवी मदीहा, जो एक स्कूल में पढ़ाती थी, की जिद के आगे उन की एक न चली और नजदीक के एक स्कूल में उस का दाखिला करा दिया गया था.

लेकिन दुआ का दाखिला कराने से पहले इफ्तिखार अहमद ने खुद स्कूल जा कर प्रिंसिपल और वहां पढ़ाने वाली अध्यापिकाओं से मिल कर तसल्ली की थी. जब वहां की प्रिंसिपल और अध्यापिकाओं ने उन्हें तसल्ली कराई थी कि वे दुआ को संभाल लेंगी, इस के बाद ही उन्होंने वहां उस का नाम लिखाया था.

इफ्तिखार आंखें बंद किए उन आवाजों का मजा ले रहे थे. तभी उन्हें याद आया कि आज का दिन उन के लिए बहुत खास है. आज अली भाई के मुकदमे की तारीख थी और उस की जमानत पर सुनवाई होनी थी. अली भाई एक फार्मास्युटिकल कंपनी का मालिक था. कुछ महीने पहले उस की कंपनी की बनी एक दवा के इस्तेमाल से बीमारी और मौत का सिलसिला सा चल पड़ा था.

जांच और परीक्षण के बाद पता चला था कि उस दवा में एक कैमिकल की मात्रा जरूरत से कई गुना ज्यादा थी. वही मौत का कारण बन गया था. अली भाई पैसे वाला आदमी था. सरकार में बैठे लोगों तक उस की पहुंच थी. लोगों को दिखाने के लिए पुलिस ने काररवाई की और कंपनी के कुछ छोटेमोटे कर्मचारियों को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

लेकिन मीडिया इस से संतुष्ट नहीं हुआ और उस ने असलियत का पता लगा लिया. कंपनी के कैमिकल इंजीनियर का स्टिंग कर के पता कर लिया था कि इस मामले में गलती किस की थी. स्टिंग में कैमिकल इंजीनियर कह रहा था कि इस मामले में पूरी की पूरी गलती कंपनी के मालिक अली भाई की थी. उस ने उन से कहा था कि इस केमिकल की वजह से दवा फायदा पहुंचाने के बजाय खाने वाले को नुकसान पहुंचा सकती है. इसलिए इस का उपयोग करना ठीक नहीं होगा.

लेकिन कैमिकल और दवा इतनी ज्यादा बन चुकी थी कि अगर उसे बेकार किया जाता तो कंपनी को करोड़ों का नुकसान होता. इसलिए अली भाई ने कहा था कि दवा बना कर बाजार में भेजो, बाद में जो होगा, देखा जाएगा. दवा के इस्तेमाल से जब दर्जनों लोग मर गए तो मीडिया के शोर मचाने पर हाईकोर्ट ने उन्हीं खबरों के आधार पर खुद ही इस मामले को संज्ञान में लिया था.

इसीलिए इस मामले की पुलिस ने उल्टीसीधी जांच कर के छोटेमोटे कर्मचारियों को जेल भेज कर जो रिपोर्ट पेश की थी, उस पर कोर्ट को विश्वास नहीं हुआ था. पुलिस ने तो कंपनी के मालिक अली भाई को साफ बचा लिया था, लेकिन जब कैमिकल इंजीनियर का स्टिंग दिखाया गया तो कोर्ट ने उस रिपोर्ट को सिरे से खारिज कर दिया और दूसरे एक ईमानदार पुलिस अधिकारी से मामले की जांच कराई.

इस जांच अधिकारी ने मेहनत लगन और ईमानदारी से मामले की नए सिरे से जांच शुरू की. लेकिन उस पर दबाव डाल कर जांच रुकवा दी गई. मीडिया ने होहल्ला मचाया तो जांच फिर से शुरू हुई. इस तरह रिपोर्ट आने में काफी समय लग गया.

इस दूसरी जांच की रिपोर्ट के अनुसार, जिस दवा से इतनी मौतें हुई थीं, उसे बनवाने और बाजार में भेजने की जिम्मेदारी अली भाई पर आ गई थी. उस के असर को जानते हुए भी उन्होंने दवा बना कर बाजार में भेजने का आदेश दिया था. सच्चाई सामने आने के बाद अदालत ने उन्हें गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया था. अदालत के आदेश के बाद भी उन की गिरफ्तारी आसानी से नहीं हो सकी थी.

अली भाई के पास पैसों की कमी तो थी नहीं. उन्होंने अच्छे से अच्छे वकील किए. एक तरह से उन्होंने वकीलों की पूरी पैनल ही खड़ी कर दी थी. इन वकीलों ने सरकार को उस के पक्ष में करने के लिए पूरा जोर लगा दिया था. पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा था. जेल में उसे हर सुविधाओं वाला सेल मिला था. उन के लिए खाना भी घर से आता था. मोबाइल और इंटरनेट की सुविधा भी मिली थी.

दबाव की वजह से सरकारी वकील अली भाई वाले मुकदमे की पैरवी मन से नहीं कर रहा था. उस के रुख को देखते हुए यही लग रहा था कि वह अली भाई को सजा से बचाना चाहता है. उस के रवैए से यही लग रहा था कि जल्दी ही अली भाई को जमानत मिल जाएगी. कहा जा रहा था कि जमानत मिलते ही वह विदेश भाग जाएगा.

अली भाई को पूरा विश्वास था कि जो हालात चल रहे हैं, उसे जल्दी ही जमानत मिल जाएगी. लेकिन अचानक इस में एक बाधा खड़ी हो गई. जिन लोगों के घर वाले अली भाई की कंपनी की दवा खा कर मरे थे, उन्होंने सरकारी वकील पर अविश्वास जताते हुए अपने वकील के रूप में इफ्तिखार अहमद को अदालत में खड़ा कर दिया. सरकारी वकील के रवैए से अदालत भी संतुष्ट नहीं था. इसलिए इफ्तिखार अहमद को मुकदमे की पैरवी की इजाजत मिल गई.

शक्की शौहर की भयानक करतूत : पत्नी और मासूम बच्चों की बेरहमी से हत्या

मौसी के हुस्न का शिकारी

नय अपने दोस्त पिंटू के साथ होटल खोलना चाहता था, इसलिए उसे 15 हजार रुपयों की सख्त जरूरत थी. उस ने पिंटू को पूरा भरोसा दिलाया था कि रुपयों  की व्यवस्था कर लेगा. क्योंकि उसे विश्वास था कि उस की मौसी इंद्रा उसे रुपए दे देंगी. लेकिन मौसी ने तो रुपए देने से साफ मना कर दिया था. यह बात विनय को बड़ी नागवार लगी थी, क्योंकि मौसी के इस तरह मना कर देने से दोस्त के सामने उस की बड़ी बेइज्जती हुई थी.

इस बात को ले कर पिंटू अकसर उस की हंसी उड़ाने लगा था. मजबूरी में विनय खून का घूंट पी कर रह जाता था. तब उसे मौसी पर बहुत गुस्सा आता था. धीरेधीरे उस का यह गुस्सा इस कदर बढ़ता गया कि उस ने धोखा देने वाली मौसी को सबक सिखाने का निश्चय कर लिया. वह उस की हत्या कर के उस के घर में रखी नकदी और गहने लूट लेना चाहता था.

हमेशा की तरह 27 जनवरी को जब पिंटू ने विनय को चिढ़ाने के लिए रुपयों के बारे में पूछा तो उस ने गंभीर हो कर कहा, ‘‘चिंता मत करो दोस्त, अब बहुत जल्द रुपयों की व्यवस्था हो जाएगी.’’

‘‘वह कैसे, मौसी रुपए देने को तैयार हो गई क्या? पहले तो उस ने मना कर दिया था, अब कैसे राजी हो गई?’’ पिंटू ने उसे जलाने के लिए मुसकराते हुए कहा.

‘‘भई सीधी अंगुली से घी न निकले तो अंगुली टेढ़ी कर देनी चाहिए. मौसी सीधे रुपए नहीं दे रही न, देखो अब मैं कैसे उस से रुपए लेता हूं.’’ विनय ने कहा.

‘‘भई, जरा हमें भी तो बता मौसी से कैसे रुपए लेगा?’’ पिंटू ने हैरानी से पूछा.

‘‘मौसी के पास काफी गहने हैं. घर खर्च के लिए 10-5 हजार रुपए हमेशा घर में रखे ही रहते हैं. इस के अलावा आलोक भैया बिजनैस करते हैं, उन के भी कुछ न कुछ रुपए रखे ही रहते होंगे. मैं सोच रहा हूं मौसी की हत्या कर के उन के गहने और रुपए हथिया लूं.’’ विनय ने कहा, ‘‘अब तू बता, तेरा क्या इरादा है? इस मामले में तू मेरा साथ देगा या नहीं?’’

‘‘यार जिंदगी का सवाल है. इसलिए मैं तेरा साथ देने को तैयरा हूं. लेकिन पकड़े गए तो जिंदगी बनने के बजाय बिगड़ जाएगी.’’ पिंटू ने चिंता व्यक्त की.

‘‘मैं ने ऐसी योजना बना रखी है कि किसी को पता ही नहीं चलेगा. फिर मौसी पूरे दिन घर में अकेली ही रहती हैं. हम अपना काम कर के आराम से चुपचाप चले जाएंगे. बस इतना ध्यान रखना होगा कि कोई पड़ोसी न देखने पाए.’’ विनय ने कहा.

पिंटू ने हामी भर दी तो विनय ने उसे अपनी योजना समझा कर अगले दिन यानी 28 जनवरी को ही उसे अंजाम देने की तैयारी कर ली. अगले दिन सुबह ही पिंटू विनय के घर पहुंच गया. दोनों ट्रक से उन्नाव के लिए रवाना हो गए. विनय की मौसी का घर उन्नाव बाईपास के पूरननगर में था. इसलिए दोनों बाईपास पर ही उतर गए. वहां से दोनों पैदल ही चल पड़े.

जिस समय विनय पिंटू के साथ अपनी मौसी इंद्रा के घर पहुंचा, उस के मौसा प्रकाशचंद्र श्रीवास्तव अपनी ड्यूटी पर राजकीय आयुर्वेदिक औषधालय जा चुके थे तो मौसेरा भाई आलोक लुकइयाखेड़ा स्थित अपनी कंप्यूटर की दुकान पर. इंद्रा घर में अकेली ही थी. विनय ने घंटी बजाई तो उन्होंने झट दरवाजा खोल दिया.

विनय और पिंटू को देख कर इंद्रा ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आओ, अंदर आओ. आज बहुत दिनों बाद आए हो?’’

‘‘हां, आप से मिले बहुत दिन हो गए थे, इसीलिए सोचा कि चलो आज मौसी से मिल आते हैं.’’ कहते हुए विनय अंदर आ गया.

‘‘बहुत अच्छा किया. इधर कई दिनों से तुम्हारी याद आ रही थी.’’ इंद्रा ने विनय के कंधे पर हाथ रख कर सोफे पर बैठते हुए कहा, ‘‘तुम दोनों बैठो, मैं चाय बना कर लाती हूं.’’

इतना कह कर इंद्रा रसोई में चाय बनाने चली गई तो विनय और पिंटू अपनी योजना को अंजाम देने के बारे में खुसुरफुसुर करने लगे. विनय ने टीवी की आवाज तेज कर दी, जिस से हत्या करते समय मौसी चीखे भी तो उस की आवाज उसी में दब जाए. इंद्रा ने चाय और नमकीन ला कर रखी तो सभी खानेपीने लगे.

चाय पीते हुए विनय ने कहा, ‘‘मौसी, मैं आप से होटल खोलने के लिए 15 हजार रुपए कब से मांग रहा हूं. लेकिन आप दे नहीं रहीं हैं. आप के अलावा कोई दूसरा मेरी मदद नहीं कर सकता, इसलिए आप कैसे भी रुपयों की व्यवस्था कर दीजिए.’’

‘‘मैं तुम्हें न जाने कितने रुपए दे चुकी हूं, इस का तुम्हारे पास कोई हिसाब है. जब देखो, तब तुम रुपए लेने आ जाते हो,’’ इंद्रा ने नाराज हो कर कहा, ‘‘तुम्हारी आदत पड़ गई है, मुझ से रुपए ऐंठने की. लेकिन अब मैं तुम्हें एक कौड़ी नहीं दूंगी. अगर तुम ने ज्यादा परेशान किया तो तुम्हारी शिकायत तुम्हारे मौसा से कर दूंगी.’’

मौसी की बातें सुन कर विनय गुस्से से पागल हो उठा. वह तो पिंटू के साथ उस की हत्या की योजना बना कर ही आया था, इसलिए फुरती से उठा और सामने बैठी मौसी को दबोच कर बोला, ‘‘तू मौसा से मेरी शिकायत करेगी, शिकायत तो तब करेगी, जब जिंदा रहेगी. मैं अभी तुझे जान से मारे देता हूं.’’

कह कर विनय ने अपने गले में लिपटा मफलर निकाला और मौसी के गले में लपेट कर कसने लगा. दबाव से इंद्रा की सांस रुकने लगी तो वह छटपटाने लगी. उस ने बचाव के लिए हाथपैर बहुत मारे, लेकिन गुस्से में पागल विनय फंदे को कसता गया. कुछ देर छटपटाने के बाद इंद्रा का शरीर शिथिल पड़ गया.

विनय को लगा कि मौसी का खेल खत्म हो गया है तो उस ने मफलर छोड़ दिया. उस के मफलर छोड़ते ही इंद्रा लुढ़क गई. विनय के साथ आए पिंटू को लगा कि अगर इंद्रा जिंदा रह गई तो उन का भेद खुल जाएगा. उस के बाद उन्हें जेल की हवा खानी पड़ेगी. यह सोच कर पिंटू ने घर में रखी सिल उठा कर इंद्रा के सिर पर पटक दिया, जिस से उस का सिर फट गया.

इंद्रा की हत्या करने के बाद विनय और पिंटू अलमारी की चाबी ढूंढ़ने लगे. जल्दी ही उन्हें चाबी मिल गई. विनय ने अलमारी खोल कर उस के लौकर में रखे सोने के एक जोड़ी झुमके, सोने की एक जंजीर, अंगूठी, 1 जोड़ी चांदी की पायल निकाल लिए. विनय को अलमारी में उतने रुपए नहीं मिले, जितने कि उसे उम्मीद थी. अलमारी से उसे मात्र 15 सौ रुपए ही मिले. चलते समय उस ने मौसी का मोबाइल भी ले लिया था. घर से निकल कर उन्होंने बाहर से दरवाजे की कुंडी बंद कर दी और भाग गए. घर से बाहर आते ही विनय ने मौसी के मोबाइल का स्विच औफ कर दिया था.

दोपहर को आलोक को कोई काम पड़ा तो उस ने अपनी मम्मी इंद्रा को फोन किया. लेकिन मम्मी के फोन का स्विच औफ था. काफी देर यही हाल रहा तो परेशान हो कर वह घर आ गया. उस ने दरवाजे पर बाहर से कुंडी लगी देखी तो सकते में आ गया. उसे लगा कि शायद मम्मी घर पर नहीं हैं. दरवाजा खोल कर वह घर के अंदर दाखिल हुआ तो खून से सनी मम्मी की लाश देख कर वह चीखने लगा. उस का चीखना सुन कर आसपड़ोस वाले आ गए.

इंद्रा की खून से सनी लाश देख कर पड़ोसियों को समझते देर नहीं लगी कि कोई उस की हत्या कर गया है. सूचना पा कर प्रकाशचंद्र श्रीवास्तव भी आ गए. अलमारी खुली थी और उस में रखे गहने, नकदी और उन की पत्नी का मोबाइल गायब था. लूट और हत्या के इस मामले की जानकारी थाना कोतवाली को दी गई.

एक महिला की हत्या और लूट की सूचना मिलते ही प्रभारी निरीक्षक धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी सिपाहियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने डौग स्क्वायड और फोरेंसिक टीम को भी बुला लिया था. सारी काररवाई निपटाने के बाद कोतवाली प्रभारी धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी मृतका इंद्रा के बेटे आलोक कुमार श्रीवास्तव को साथ ले कर कोतवाली आ गए, जहां उस की तहरीर पर हत्या और लूट का मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

अभियुक्तों तक पहुंचने का पुलिस के पास एक ही सूत्र था, मृतका का मोबाइल. पुलिस ने उसे सर्विलांस पर लगवा दिया. लेकिन मोबाइल का स्विच औफ था, इसलिए उस की लोकेशन नहीं मिल रही थी. पुलिस ने इंद्रा के हत्यारों तक पहुंचने के लिए बहुत हाथपैर मारे, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

इस मामले का खुलासा न होते देख पुलिस अधीक्षक रतन कुमार श्रीवास्तव ने अपर पुलिस अधीक्षक रामकिशन यादव और क्षेत्राधिकारी (सदर) मनोज अवस्थी की देखरेख में एक पुलिस टीम गठित की, जिस का नेतृत्व प्रभारी निरीक्षक धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी को ही सौंपा गया.

टीम का गठन होते ही संयोग से घटना के लगभग महीने भर बाद इंद्रा के मोबाइल की लोकेशन कानपुर के नौबस्ता की मिल गई. उस नंबर का भी पता चल गया, जो नंबर उस में उपयोग में लाया जा रहा था.

पुलिस टीम ने लोकेशन और नंबर के आधार पर उस आदमी को पकड़ लिया, जिस के पास वह मोबाइल फोन था. पूछताछ में उस ने बताया कि यह मोबाइल फोन उस ने सपई गांव के रहने वाले पिंटू सिंह चंदेल से खरीदा था.

पुलिस को उस आदमी से पिंटू का पता मिल गया था. छापा मार कर पुलिस ने 3 मार्च को पिंटू सिंह चंदेल को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. प्रभारी निरीक्षक धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी ने कोतवाली ला कर जब उस से इंद्रा की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उस ने बिना किसी हीलाहवाली के स्वीकार कर लिया कि मृतका की बहन के बेटे विनय के साथ मिल कर उस ने इस घटना को अंजाम दिया था.

पिंटू से पूछताछ के बाद पुलिस ने विनय की तलाश में उस के घर छापा मारा. लेकिन वह नहीं मिला. तब पुलिस ने पिंटू को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

पुलिस विनय श्रीवातस्तव की तलाश में पूरे जोरशोर से लग गई थी, लेकिन पुलिस से बचने के लिए वह छिप गया था. आखिर 13 मार्च को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर विनय को भी गिरफ्तार कर लिया.

जब उस का दोस्त पकड़ा जा चुका था तो विनय के झूठ बोलने का सवाल ही नहीं था. इसलिए उस ने मौसी की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. इस पूछताछ में उस ने जो कहानी सुनाई, वह हैरान करने वाली थी. क्योंकि विनय के अपनी मां समान ही नहीं, उम्र में दोगुनी से भी ज्यादा मौसी से अवैध संबंध थे. इस तरह अवैध संबंधों की नींव पर टिकी लूट और हत्या की यह कहानी कुछ इस प्रकार थी.

उत्तर प्रदेश के जिला उन्नाव के थाना कोतवाली के मोहल्ला पूरननगर में रहते थे प्रकाशचंद्र श्रीवास्तव. वह राजकीय आयुर्वेदिक औषधालय में वार्डब्वाय थे. उन के परिवार में पत्नी इंद्रा के अलावा बेटा आलोक और बेटी ज्योति थी. पढ़ाई पूरी कर के आलोक ने लुकइयाखेड़ा में कंप्यूटर की दुकान खोल ली थी. ज्योति की भी पढ़ाई पूरी हो गई तो प्रकाशचंद्र ने उस की शादी कर दी थी.

इंद्रा की बड़ी बहन मंजूलता की शादी कानपुर के थाना नौबस्ता के सरस्वतीनगर के रहने वाले अरुणकुमार श्रीवास्तव के साथ हुई थी. अरुण कुमार लोहिया फैक्ट्री में नौकरी करते थे. उन के कुल 3 बेटे थे, विकास, विनय और विनीत. पढ़ाई पूरी होने के बाद विकास ने लिटिल स्टार एंजल स्कूल में नौकरी कर ली थी, तो बीकौम करने के बाद विनय जूते का काम करने लगा था. सब से छोटे विनीत ने बीकौम कर के लैपटौप रिपेयरिंग का काम शुरू कर दिया था. 6 साल पहले अरुण कुमार की मौत हो गई तो घर की सारी जिम्मेदारी मंजूलता पर आ गई थी.

विनय का मन जूते के काम में कम, क्रिकेट खेलने में ज्यादा लगता था. मैच खेलने के चक्कर में ही वह इधरउधर घूमता रहता था. खाली होने की वजह से वह अकसर अपनी मौसी इंद्रा के घर भी चला जाता था, जहां वह कईकई दिनों तक रुका रहता था. इंद्रा उस का बहुत खयाल रखती थी.

एक तो प्रकाशचंद्र की उम्र हो गई थी, दूसरे बच्चे सयाने हो गए थे, इसलिए वह पत्नी में कम ही रुचि लेते थे जबकि इंद्रा चाहती थी कि पति रोजाना उस के पास आए और उसे संतुष्ट करे. पति से इच्छा पूरी न होने से इंद्रा का मन भटकने लगा तो वह, किसी युवक की तलाश में रहने लगी. लेकिन उसे इस बात का भी डर सता रहा था कि किसी युवक से संबंध बनाने पर अगर बात खुल गई तो बड़ी बदनामी होगी.

तब वह किसी ऐसे युवक की तलाश में लग गई, जिस से संबंध बनाने पर किसी को पता न चल सके. ऐसा युवक वही हो सकता था, जिस से उस के घरेलू संबंध हों यानी जिस के घर आनेजाने पर किसी को संदेह न हो. इस बारे में उस ने काफी सोचाविचारा तो उस की नजर अपनी बहन के बेटे विनय पर टिक गई. क्योंकि विनय उस के घर में ही रहता था. दूसरे बहन का बेटा होने की वजह से जल्दी उस पर कोई संदेह भी नहीं कर सकता था.

विनय उस उम्र में था, जिस उम्र में स्त्री देह कुछ ज्यादा ही आकर्षित करती है. तब रिश्तेनाते का भी खयाल नहीं रहता. विनय की शादी भी नहीं हुई थी. ऐसे में इंद्रा ने रिश्ते नाते, लाजशरम त्याग कर अपनी देह को उस के सामने परोसा तो जवानी की दहलीज पर खड़े विनय को फिसलते देर नहीं लगी. मौसी की देह तो उस के लिए अंधे सियार को पीपल ही मेवा की तरह लगा. वह निश्चिंत हो कर मौसी के साथ मौज करने लगा.

इंद्रा ने विनय को हिदायत दे रखी थी कि यह बात वह अपने दोस्तों तक को भी नहीं बताएगा. इसलिए विनय ने यह बात कभी किसी को नहीं बताई. उस का जब भी मन होता, वह मौसी के यहां आ जाता और जितने दिन मन होता, आराम से रहता. मौसा और मौसेरे भाई के जाने के बाद वही दोनों घर पर रह जाते थे, इसलिए उन का जो मन होता, आराम से करते.

इंद्रा विनय को न सिर्फ शारीरिक सुख देती थी, बल्कि उसे अपने आकर्षण में बांधे रहने के लिए उस की छोटीमोटी जरूरतें भी पूरी करती थी. वह उसे जेब खर्च के लिए रुपए भी देती थी. विनय को दोहरा लाभ था, इसलिए वह मौसी से खूब खुश रहता था.

क्रिकेट खेलने में ही विनय की दोस्ती कानपुर के थाना बिधनू के गांव सपई के रहने वाले वीरेंद्र सिंह चंदेल के बेटे पिंटू से हो गई थी. पिंटू नौबस्ता में चाय की दुकान चलाता था. विनय का जूते के काम में मन नहीं लगता था, इसलिए उस ने पिंटू के साथ होटल खोलने की योजना बनाई. होटल खोलने के लिए उसे 15 हजार रुपयों की जरूरत थी.

विनय को पूरा यकीन था कि मौसी इंद्रा उसे ये रुपए दे देंगी. इसीलिए उस ने बड़े ही विश्वास के साथ पिंटू से कह दिया था कि उस की मौसी एक बार मांगने पर रुपए दे देंगी. लेकिन मौसी ने रुपए नहीं दिए. उसी का नतीजा था कि नाराज हो कर विनय ने पिंटू के साथ मिल कर उन के यहां लूट के इरादे से उन की हत्या कर दी थी.

पूछताछ के बाद प्रभारी निरीक्षक धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी ने विनय को पत्रकारों के सामने भी पेश किया. प्रेसवार्त्ता करा कर उन्होंने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक विनय और पिंटू की जमानत नहीं हुई थी.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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