पति और बच्चे नहीं, प्यार चाहिए था संतोष को

कविता को ज्यादा देर तक बिस्तर पर पड़ी रहना अच्छा नहीं लगता था, इसलिए वह उठी और चाय बनाने के लिए सीढि़यां उतर कर भूतल पर बनी रसोई में आ गई. रसोई से ही उस ने भूतल पर बने कमरे की ओर देखा तो उस का दरवाजा आधा खुला था. कविता के मन में आया कि वह कमरे का दरवाजा खोल कर देखे कि उस का दूसरा बेटा निक्की, जेठ बनवारीलाल और उन के तीनों बच्चे जाग गए हैं या नहीं?

कविता दरवाजे के पास पहुंची तो उसे कमरे के अंदर से बाहर की ओर खून बहता हुआ दिखाई दिया. खून देख कर कविता परेशान हो गई. उस ने कमरे में झांका तो अंदर जो दिखाई दिया, उस से उस की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. कमरे के अंदर बैड पर उस के जेठ बनवारीलाल और एक बच्चा तथा 3 बच्चे जमीन पर लहूलुहान पडे़ थे. उन के शरीर से अभी भी खून रिस रहा था.

कविता अपने बेटे और जेठ समेत उन के तीनों बच्चों को इस हालत में देख कर सन्न रह गई. उस के मुंह से आवाज तक नहीं निकली. वह समझ नहीं पा रही थी कि यह क्या हो गया है?

जेठ और बच्चों को लहूलुहान देख कर चेतनाशून्य हुई कविता पल भर वह चेतनाशून्य हो कर खड़ी यह सब देखती रही. उसे लगा कि वह जमीन पर गिर जाएगी तो उस ने दीवार का सहारा ले कर खुद को संभाला. दीवार का सहारा लेने से उस की चेतना लौटी तो वह जोरजोर से रोने और चिल्लाने लगी.

कविता के रोने और चिल्लाने की आवाज सुन कर ऊपर के कमरे में सो रही जेठानी संतोष भी नीचे आ गई. उस ने भी कमरे के अंदर का नजारा देखा तो फूटफूट कर रोने लगी. उस के पति और 3 बेटों के साथ देवर का भी एक बेटा मरणासन्न हालत में पड़ा था. देवरानी और जेठानी की चीखपुकार सुन कर पड़ोसी भी आ गए. आने वाले लोग भी कमरे के अंदर का दृश्य देख कर रो पड़े.

यह घटना राजस्थान के अलवर शहर की शिवाजीपार्क कालोनी में घटी थी. आने वाले लोगों में से किसी ने इस घटना की सूचना पुलिस को दे दी थी. पुलिस के आने से पहले कुछ पड़ोसियों ने कमरे में लहूलुहान पड़े बनवारीलाल, उस के बच्चों और भतीजे की नब्ज टटोली तो उन में से 3 बच्चें में जीवन के कोई लक्षण नजर नहीं आए, लेकिन बनवारीलाल और एक बच्चे की सांस चलती महसूस हुई.

थोड़ी देर बाद थाना शिवाजी पार्क पुलिस मौके पर पहुंची तो कालोनी के लोगों की मदद से बनवारीलाल और उस बच्चे को राजीव गांधी सामान्य अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. इस के बाद अन्य 3 बच्चों की लाशों को भी एंबुलेंस से अस्पताल पहुंचाया गया. वहीं से सारी काररवाई पूरी कर पांचों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया.

राजस्थान के शांत शहरों में गिने जाने वाले अलवर शहर में एक ही परिवार के 5 लोगों की हत्या से शहर में सनसनी फैल गई थी. इस घटना ने शहरवासियों को बेचैन कर दिया था. शिवाजी पार्क के जिस मकान में यह घटना घटी थी, उस के सामने आसपास के लोगों की भीड़ एकत्र हो गई थी. घटना की जानकारी मिलने पर एसएसपी पारस जैन, एसपी राहुल प्रकाश सहित अन्य पुलिस अधिकारी और शहर के विधायक बनवारीलाल सिंघल, कांग्रेस जिलाध्यक्ष टीकाराम जूली तथा अन्य कई पक्षविपक्ष के नेता आ गए थे.

हत्यारे की तलाश में घटनास्थल से सबूत जुटाती पुलिस एक ही परिवार के 5 लोगों को गला रेत कर बेरहमी से मारा गया था. उन का खून कमरे में फैला हुआ था. कमरे में खून से सने पैरों के निशान भी मिले थे. शुरुआती जांच में पुलिस को लगा कि पांचों हत्याएं रंजिश की वजह से की गई हैं. मारने से पहले पांचों को कोई जहरीला पदार्थ खिलाया गया था, जिस से वे अचेत हो गए थे. इस के बाद उन की हत्याएं की गई थीं. जिस तरह हत्याएं हुई थीं, उस से साफ लग रहा था कि हत्या करने वाले परिवार के परिचित थे. उन की संख्या 2 या 3 रही होगी.

पुलिस ने डौग स्क्वौयड एवं एफएसएल की टीम को बुला लिया था, डौग स्क्वौयड से पुलिस को कोई खास सुराग नहीं मिला. एफएसएल टीम ने अपना काम कर लिया तो पुलिस जांच में जुट गई. घर में घुसने के 2 दरवाजे थे. एक दरवाजा कमरे से बाहर खुलता था तो दूसरा गैलरी में खुलता था.

पुलिस ने मृतक बनवारीलाल के छोटे भाई मुकेश की पत्नी कविता से पूछताछ की तो उस ने बताया कि रात में दरवाजों की कुंडी अंदर से बंद की गई थी. लेकिन सुबह जब वह नीचे आई तो गैलरी का दरवाजा खुला हुआ था.

पुलिस कविता से पूछताछ कर ही रही थी कि मृतक बनवारीलाल की पत्नी संतोष बेहोश हो गई. उसे सामान्य अस्पताल ले जा कर भरती कराया गया. आगे की जांच में पुलिस अधिकारियों के सामने कुछ ऐसे सवाल खड़े हुए जिन के जवाब तुरंत नहीं मिले. 

शिवाजी पार्क में 40-42 गज के छोटेछोटे और एकदूसरे से सटे हुए मकान बने हैं. इन मकानों में अगर प्रेशर कुकर की सीटी भी बजती है तो पड़ोसी को सुनाई देती है. लेकिन 5 लोगों को एकएक कर के मारा गया होगा, इस के बावजूद मकान में ऊपर की मंजिल पर सो रही संतोष और कविता को उन की चीखें सुनाई नहीं दी?

पड़ोसियों की कौन कहे, मकान में रहने वालों तक को घटना की भनक नहीं लगी. जब दरवाजे की कुंडी अंदर से बंद थी तो कातिल मकान के अंदर कैसे आए? अगर दुश्मनी की वजह से पांचों लोगों की हत्या की गई तो ऊपर के कमरे में सो रही संतोष, कविता और उस के बेटे विनय को कातिलों ने क्यों जीवित छोड़ दिया?

मकान में लूटपाट या चोरी जैसी कोई बात नजर नहीं आई. वैसे भी बनवारीलाल छोटीमोटी नौकरी करता था. उस के पास कोई बड़ी पूंजी या धनदौलत नहीं थी, जिसे लूटने के लिए कोई आता. पूछताछ में यह जरूर पता चला था कि बनवारीलाल की स्कूटी गायब है.

पूछताछ में कविता ने पुलिस को यह भी बताया था कि उन का पैतृक गांव गारू है, जो अलवर जिले की कठूमर तहसील में पड़ता है. गांव में उन की 7-8 बीघा जमीन है, जिस के बंटवारे को ले कर चाचा व ताऊ ससुर से विवाद चल रहा है. इस के अलावा उन की किसी से कोई रंजिश नहीं है.

पूछताछ में यह भी पता चला था कि मृतक बनवारीलाल शर्मा अलवर के पास मत्स्य औद्योगिक क्षेत्र में स्थित हैवल्स कंपनी में इलेक्ट्रीशियन थे. शिवाजी पार्क के इस मकान में वह अपने छोटे भाई मुकेश के साथ करीब डेढ़ साल से किराए पर रह रहे थे. उन के परिवार में पत्नी संतोष के अलावा 3 बेटे, 17 साल का अमन उर्फ मोहित, 15 साल का हिमेश उर्फ हैप्पी और 12 साल का अज्जू उर्फ लोकेश था.

कैसे आया छोटा भाई मुकेश शक के दायरे में बनवारीलाल के छोटे भाई मुकेश के परिवार में पत्नी कविता के अलावा 2 बेटे, 11 साल का निक्की उर्फ अखिलेश और 8 साल का विनय था. मुकेश भजन व जागरण मंडलियों में गाताबजाता था. वह घटना से 2 दिन पहले 1 अक्तूबर, 2017 को पाली जिले के जैतारण कस्बे में जाने की बात कह कर घर से गया था.

जाते समय मुकेश अपना मोबाइल फोन अपने पिता मुरारीलाल को दे गया था. उन दिनों मुरारीलाल पत्नी के साथ बेटों और पोतों से मिलने अलवर आए हुए थे. संयोग से 2 अक्तूबर को ही वह पत्नी के साथ गांव चले गए थे. बनवारीलाल की पत्नी संतोष और मुकेश की पत्नी कविता सगी बहनें थीं.

मुकेश के बड़े भाई, 3 भतीजों और एक बेटे की हत्या की गई थी. उस का कुछ अतापता नहीं था. ना ही वह घर वालों को कोई मोबाइल नंबर भी नहीं बता गया था कि उस से संपर्क किया जा सकता. बनवारीलाल के परिवार में मर्द के नाम पर केवल मुकेश का 8 साल का बेटा विनय बचा था.

इन हत्याओं की सूचना गांव गारू गए मुरारीलाल को दी गई तो वह भाग कर अलवर आ गए. बेटे और पोतों की लाशें देख कर 80 साल के मुरारीलाल सुधबुध खो बैठे. वह एक ही बात की रट लगाए थे कि अपने इन बूढे़ कंधों पर अपने बेटे और पोतों की लाशें कैसे उठाएंगे? उन की तो किसी से ऐसी दुश्मनी भी नहीं थी, फिर किसी ने उन के परिवार को इस तरह क्यों उजाड़ दिया.

पुलिस ने 4 डाक्टरों के पैनल से पांचों लाशों का पोस्टमार्टम कराया. पोस्टमार्टम में पता चला कि हत्या से पहले सभी को जहर दिया गया था. पांचों के गले पर 8 से 10 सेंटीमीटर गहरे घाव थे. जिस से उन की भोजन व श्वांस नली कट गई थी. घर वाले पांचों लाशों को गांव ले गए, जहां गमगीन माहौल में पांचों का एक ही चिता पर अंतिम संस्कार कर दिया गया. इस घटना से गांव का हर आदमी दुखी था.

पुलिस ने मामले की तह तक पहुंचने के लिए पड़ोसियों से भी पूछताछ की. इस पूछताछ में ऐसी कोई बात सामने नहीं आई, जिस से 5 लोगों की जघन्य हत्या के कारणों का पता चलता. पुलिस ने शिवाजी पार्क और आसपास के इलाकों में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकाल कर खंगाली. इन में रात 12 बजे से डेढ़ बजे के बीच कालोनी की एक गली से एक मोटरसाइकिल निकलती दिखाई दी.

सीसीटीवी कैमरों की फुटेज में कुछ नहीं मिला इस से पुलिस को कोई मदद नहीं मिल सकी. पुलिस को बनवारीलाल की उस स्कूटी की तलाश थी, जो वारदात के बाद से गायब थी. रात तक पुलिस को उस स्कूटी के बारे में कोई सुराग नहीं मिला. इस के अलावा भी कोई ऐसा सुराग नहीं मिला था, जिस से पुलिस कातिलों तक पहुंच पाती. पुलिस ने आसपास के पार्क, मकान और नालेनालियों में उस हथियार की तलाश की, जिस से पांचों लोगों की हत्या की गई थी. लेकिन काफी प्रयास के बाद भी हथियार नहीं मिले.

जमीनी रंजिश की आशंका को ध्यान में रखते हुए पुलिस ने गारू गांव जा कर मुरारीलाल के घर वालों तथा रिश्तेदारों से गहन पूछताछ की. मृतक बनवारीलाल और पत्नी संतोष के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स भी निकलवा कर चेक की गई. पहले दिन की जांच में इस जघन्य हत्याकांड की शक की सुई परिवार वालों के आसपास ही घूमती नजर आई.

इस में जमीनी रंजिश के अलावा छोटे भाई मुकेश पर भी पुलिस को शक था. इस की वजह यह थी कि वह 2 दिन पहले ही घर से बाहर जाने की बात कह कर गया तो अभी तक लौट कर नहीं आया था. वह अपना मोबाइल फोन भी पिता को दे गया था.

अस्पताल में भरती मृतक बनवारीलाल की पत्नी संतोष को छुट्टी मिल गई तो वह पहले वह गांव गारू गई. वहां से वह भरतपुर जिले के नगर कस्बे में रह रहे अपने एक रिश्तेदार के यहां चली गई और उसी दिन रात में कस्बे के ही सरकारी अस्पताल में भरती हो गई. आधी रात के बाद उसे वहां से छुट्टी दे दी गई तो वह अपने उसी रिश्तेदार के यहां चली गई.

अगले दिन यानी 4 अक्तूबर को पुलिस को बनवारीलाल की गायब स्कूटी शहर की कृषि उपज मंडी मोड़ के पास मिल गई. पुलिस ने स्कूटी से फिंगरप्रिंट उठा कर जांच के लिए विधि विज्ञान प्रयोगशाला भिजवा दिए.

जिस जगह स्कूटी मिली थी, उस के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली गई तो एक स्कूटी पर रात को 2 लोग जाते दिखाई दिए.

जहां स्कूटी मिली थी, वहां से अलवर रेलवे स्टेशन पास ही था. इस के अलावा दिल्ली, भरतपुर, मथुरा और आगरा के लिए बसें भी उधर से ही जाती थीं. इस से अंदाजा लगाया कि हत्यारे स्कूटी को वहां छोड़ कर ट्रेन या बस से चले गए होंगे.

इस जघन्य हत्याकांड की जानकारी मिलने पर जयपुर से आईजी हेमंत प्रियदर्शी भी अलवर आए. उन्होंने घटनास्थल का तो निरीक्षण किया ही, एसपी निवास पर पुलिस अधिकारियों के साथ मीटिंग भी की, जिस में मामले की जांच के बारे में जानकारी ले कर खुलासे के लिए कुछ दिशानिर्देश भी दिए.

एसपी ने एक बार फिर किया घटनास्थल का निरीक्षण दूसरी ओर एसपी राहुल प्रकाश को मृतक की पत्नी संतोष के भरतपुर जिले के नगर कस्बे में पहुंचने की जानकारी मिली तो उन्होंने वहां जा कर उस से और उस की छोटी बहन कविता से पूछताछ की.

वहां से लौट कर उन्होंने उसी दिन रात साढ़े 10 बजे एक बार फिर शिवाजी पार्क जा कर घटनास्थल का निरीक्षण किया.

तीसरे दिन पुलिस ने गारू गांव जा कर बनवारीलाल की पत्नी संतोष, मातापिता, चाचाताऊ और घर के अन्य लोगों से अलगअलग पूछताछ की. संतोष और कविता उसी दिन नगर से गारू पहुंची थीं.

राहुल प्रकाश ने रेलवे स्टेशन जा कर रात की ड्यूटी वाले रेल कर्मचारियों, स्टाल वालों, कुलियों और अन्य लोगों से पूछताछ की. लेकिन इस पूछताछ में उन का कोई भला नहीं हुआ, इसलिए उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा.

उसी दिन राहुल प्रकाश ने एक बार फिर संतोष और उस की 2 बहनों को अलवर के पुलिस अन्वेषण भवन में बुला कर पूछताछ की. इस के अलावा पुलिस मुकेश के बारे में भी पता करती रही, क्योंकि 5 दिन बीत जाने के बाद भी उस का कुछ अतापता नहीं था.

काफी भागदौड़ और मुखबिरों से पुलिस को कुछ ऐसे सबूत मिले, जिन से इस जघन्य हत्याकांड की गुत्थी सुलझने की उम्मीद नजर आई. इस के बाद कडि़यां जोड़ते हुए पुलिस की कई टीमें बना कर विभिन्न जगहों पर भेजी गईं. एक पुलिस टीम संतोष को पूछताछ के लिए अलवर ले आई.

संतोष से गहन पूछताछ के बाद पुलिस को मंजिल मिलती नजर आई. 7 अक्तूबर, 2017 को पुलिस ने इस मामले का खुलासा करते हुए मृतक बनवारीलाल की पत्नी संतोष शर्मा, उस के प्रेमी हनुमान प्रसाद जाट और भाड़े के 2 हत्यारों कपिल धोबी और दीपक धोबी को गिरफ्तार कर लिया.

इन से पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई. वह छोटे से गांव की ऐसी महत्त्वाकांक्षी युवती की कहानी है, जिस ने परिवार के गुजरबसर और आत्मरक्षा के लिए ताइक्वांडो सीखा. इसी ताइक्वांडो की बदौलत कई देशों में घूमते हुए वह ऊंचे ख्वाब देखती रही.

सपने सच करने के लिए साड़ी और सलवार सूट पहनने वाली वह युवती शौर्ट शर्ट और पैंट पहन कर गले में टाई लगा कर सोसाइटी के एक वर्ग में उठनेबैठने लगी, जहां उस के दोस्त पर दोस्त बनते गए. पैसे भी आने लगे. लेकिन उस की यह आजादी पति और बेटे को पसंद नहीं आई. उन्होंने उसे रोकना चाहा तो उस ने परिवार को ही तबाह कर दिया.

अलवर जिले के रैणी के पास एक छोटे से गांव के रहने वाले ब्रजमोहन शर्मा की बेटी संतोष उर्फ संध्या शर्मा की शादी करीब 19 साल पहले गारू गांव के रहने वाले बनवारीलाल शर्मा से हुई थी. बनवारीलाल सीधासादा इंसान था. गांव में रह कर वह खेतीबाड़ी करता था, उसी से उस का गुजरबसर हो रहा था. जब संतोष की शादी हुई थी, वह मात्र 17 साल की थी. जबकि बनवारीलाल 27 साल का था.

इस तरह दोनों की उम्र में करीब 10 साल का अंतर था. संतोष ने भी अन्य लड़कियों की तरह हसीन ख्वाब देखे थे. संतोष पढ़ीलिखी थी, इसलिए उस के ख्वाब भी बड़े थे. वह सुंदर भी थी. शादी के बाद उस की सुंदरता में और निखार आ गया था.

गांव में पलीबढ़ी संतोष शर्मा की महत्त्वाकांक्षाएं संतोष को बनवारीलाल से कोई परेशानी नहीं थी. बस, परेशानी थी तो यह कि वह भोलाभाला था. उसे दुनियादारी से ज्यादा मतलब नहीं रहता था. वह अपने घरपरिवार में ही रमा रहता था, जबकि संतोष चाहती थी कि वह उसे घुमाएफिराए, सिनेमा दिखाए, होटल में खाना खिलाए और उस की फरमाइशें पूरी करे. लेकिन बनवारीलाल को इन बातों से कोई मतलब नहीं था.

संतोष जैसी खूबसूरत और पढ़ीलिखी पत्नी पा कर बनवारीलाल खुश था. उस के पिता मुरारीलाल और उन की पत्नी भी संतोष जैसी बहू पा कर खुश थीं. संतोष ने बूढे़ मुरारीलाल को जल्दी ही दूसरी खुशियां भी दे दी थीं. उसे लगातार 3 बेटे ही हुए थे. बच्चों के पैदा होने से मुरारीलाल खुशी से फूले नहीं समा रहे थे.

पति और ससुराल वाले भले ही खुश थे, लेकिन गांव में रहते हुए संतोष को अपनी इच्छाएं दम तोड़ती नजर आ रही थीं. हालांकि उस की छोटी बहन कविता भी उसी घर में ब्याही थी. संतोष कभीकभी अपने मन की बात कविता से कह भी देती थी.

अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए संतोष ने पति बनवारीलाल को गांव छोड़ कर अलवर में चल कर रहने के लिए राजी कर लिया. कई सालों पहले बनवारीलाल संतोष और तीनों बच्चों के साथ अलवर आ गया और छोटामोटा काम करने लगा. बाद में उसे हैवल्स कंपनी में इलैक्ट्रीशियन की नौकरी मिल गई. गांव से शहर आ कर रहने के बाद बनवारीलाल के परिवार के खर्चे बढ़ गए तो संतोष ने आगे बढ़ कर ताइक्वांडो सीख कर लड़केलड़कियों को इस की ट्रेनिंग दे कर पैसे कमाने का विचार किया.

बनवारीलाल क्या कहता, वह तो खुद बढ़ते खर्चे से परेशान था. संतोष की इच्छा पर उस ने उसे ताइक्वांडो सीखने की इजाजत दे दी. ताइक्वांडो सीखने के दौरान ही संतोष की दोस्ती हनुमानप्रसाद जाट से हो गई.

 25 साल का हनुमानप्रसाद अलवर जिले के बड़ौदामेव कस्बे के होलीचौक का रहने वाला था. वह ताइक्वांडो का अच्छा खिलाड़ी था. वह 2 बार नेशनल स्तर पर खेल चुका था. वह पढ़ाई में भी अच्छा था. संस्कृत से एमए करने के बाद वह उदयपुर की सुखाडि़या यूनिवर्सिटी से शारीरिक शिक्षक का कोर्स कर रहा था.

हनुमानप्रसाद से दोस्ती हुई तो वह संतोष को कई प्रतियोगिताओं में राजस्थान से बाहर भी खेलने के लिए ले गया. साथसाथ खेलने और दोस्ती होने से संतोष गठीले बदन के हनुमानप्रसाद की ओर आकर्षित होने लगी. उम्र में वह संतोष से 11 साल छोटा था, लेकिन जब प्यार होता है तो वह न जातिपांत देखता है और न ही उम्र या गरीबीअमीरी. यही संतोष के साथ भी हुआ. संतोष और हनुमानप्रसाद के बीच प्यार ही नहीं हुआ, बल्कि शारीरिक संबंध भी बन गए.

ताइक्वांडो सीख कर संतोष अलवर में लड़कियों को इस का प्रशिक्षण देने लगी. वह कई शिक्षण संस्थाओं में भी स्कूली बच्चों को ताइक्वांडो का प्रशिक्षण देती थी. 35-36 साल की संतोष शौर्ट शर्टपैंट व टाई पहन कर 20 साल की कालेज गर्ल से ज्यादा नहीं लगती थी. खूबसूरत वह थी ही, इसीलिए हनुमानप्रसाद उस पर जान छिड़कता था. करीब 5 महीने पहले संतोष ताइक्वांडो खेलने के लिए नेपाल और श्रीलंका भी गई थी.

 हनुमानप्रसाद अपनी पढ़ाई करने उदयपुर चला गया तो संतोष 2 बार उदयपुर भी गई. हनुमानप्रसाद उदयपुर के आजादनगर में किराए का कमरा ले कर रहता था. संतोष जब भी उदयपुर जाती, वह उसे होटल में ठहराता और खुद भी उस के साथ होटल में रहता.

संतोष ने संध्या शर्मा नाम से फेसबुक पर अपनी प्रोफाइल बना रखी थी. इस में उस ने खुद को इंगलिश मीडियम स्कूल व अलवर के राजर्षि कालेज में पढ़ा बताते हुए स्टेटस सिंगल यानी अविवाहित डाल रखी थी. संध्या वाले फेसबुक पेज पर विजेताओं को पुरस्कार वितरित करती संतोष की टाई वाली कई फोटो व ताइक्वांडो खेलते हुए कई फोटो लगी हुई थीं.

 जब घर वालों को पता चला संतोष के प्यार का कहते हैं, इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. यही संतोष के साथ भी हुआ. हनुमानप्रसाद से उस के संबंधों की जानकारी बनवारीलाल और बड़े बेटे अमन उर्फ मोहित को हो गई. बापबेटों ने इस का विरोध किया, तो घर में लगभग रोज ही कलह होने लगी. संतोष ने यह बात अपने प्रेमी हनुमानप्रसाद को बताई तो उस ने रोजाना की इस कलह से छुटकारा दिलाने के लिए संतोष के साथ मिल कर उस के पति बनवारीलाल और बच्चों को रास्ते से हटाने की योजना बना डाली.

उसी योजना के तहत हनुमानप्रसाद ने अलवर के पास गुजूकी गांव के रहने वाले कपिल धोबी से संपर्क किया. कपिल ने मदद के लिए अपने परिचित दीपक उर्फ बगुला धोबी को साथ मिला लिया. इन दोनों को हनुमानप्रसाद ने पैसे का लालच दे कर बनवारीलाल की हत्या के लिए राजी किया था. हत्या के लिए हनुमानप्रसाद ने 12 सौ रुपए में एक चाकू औनलाइन खरीदा जिसे उदयपुर के अपने पते पर मंगाया था.

एक चाकू उस ने बाजार से खरीदा. फिंगरप्रिंट न आ सकें, इस के लिए हनुमानप्रसाद ने हाथ में पहनने वाले ग्लव्स भी बाजार से खरीदे. योजनाबद्ध तरीके से हनुमानप्रसाद जाट, कपिल धोबी और दीपक धोबी 2 अक्तूबर, 2017 की रात करीब 10 बजे शिवाजी पार्क पहुंचे. वे बनवारीलाल के मकान के पास पहुंचे तो संतोष ने छत से उन्हें इशारे से थोड़ी देर बाद आने को कहा.

इस के बाद संतोष ने पति और बच्चों को रात के खाने में दही और नमकीन के रायते में जहरीला पदार्थ मिला कर खिला दिया. इस से बनवारीलाल और चारों बच्चे अचेत हो गए. रात करीब एक बजे हनुमानप्रसाद भाड़े के दोनों हत्यारों कपिल और दीपक के साथ शिवाजी पार्क पहुंचा तो संतोष ने नीचे आ कर दरवाजा खोल दिया.

हनुमानप्रसाद और उस के दोनों साथियों ने कमरे में जा कर अपने साथ लाए चाकुओं से पहले बनवारीलाल का गला रेत दिया. उस के बाद एकएक कर के चारों बच्चों के गले काट दिए. बेहोश होने की वजह से कोई भी चीखाचिल्लाया नहीं.

जब हनुमानप्रसाद और उस के साथी बनवारीलाल और बच्चों के गले रेत रहे थे तो संतोष सीढि़यों पर खड़ी हो कर यह सब देख रही थी. 5 लोगों की हत्या कर के जब तीनों जाने लगे तो संतोष ने बनवारीलाल की स्कूटी की चाबी और 3 हजार रुपए हनुमानप्रसाद को दिए.

स्कूटी से हनुमानप्रसाद, कपिल और दीपक कृषि उपज मंडी के पास पहुंचे और वहीं मोड़ के पास उसे खड़ी कर के अपने कपड़े बदले और औटो पकड़ कर राजगढ़ चले गए. वे राजगढ़ से ट्रेन पकड़ कर जयपुर जाना चाहते थे.

लेकिन उन्हें वहां से ट्रेन नहीं मिली तो वे दूसरे औटो से राजगढ़ से बांदीकुई चले गए, जहां से सभी जयपुर चले गए. जयपुर से हनुमानप्रसाद तो उदयपुर चला गया, जबकि दीपक और कपिल अलवर आ कर अपने गांव गुजूकी चले गए.

संतोष ने खुद को बताया बेकसूर  5 दिनों तक पथराई आंखों से हर आनेजाने वाले को देख रहे मुरारीलाल को जब पता चला कि पुलिस ने बहू सहित 4 लोगों को बेटे और पोतों की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया है तो उन्होंने भर्राई आवाज में कहा, बहू समेत सभी हत्यारों को फांसी पर लटका देना चाहिए, इस से कम सजा उन्हें नहीं मिलनी चाहिए. हम ने उन का क्या बिगाड़ा था, जो मेरा परिवार इस तरह उजाड़ दिया.

गिरफ्तारी के बाद संतोष खुद को बेकसूर बता रही थी. उस का कहना था कि वह निर्दोष है. उसे फंसाया जा रहा है. उस का हनुमानप्रसाद से कोई संबंध नहीं है. हनुमानप्रसाद और उस के साथियों ने ही उस के पति और बच्चों की हत्या की है. उन की हत्या उन्होंने क्यों की, यह तो वही बताएंगे.

पुलिस का मानना है कि अगर संतोष के सासससुर एक दिन पहले गांव नहीं चले गए होते तो शायद उन की भी हत्या हो जाती. संतोष ने उन्हें रोकने की काफी कोशिश की थी, लेकिन वे नहीं रुके थे. पुलिस ने 8 अक्तूबर को संतोष, हनुमानप्रसाद, कपिल और दीपक को अतिरिक्त सिविल जज एवं न्यायिक मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश कर रिमांड की मांग की. मजिस्ट्रैट ने चारों आरोपियों को 13 अक्तूबर तक के लिए पुलिस रिमांड पर दे दिया.

रिमांड अवधि के दौरान आईजी हेमंत प्रियदर्शी ने भी अलवर आ कर आरोपियों से पूछताछ की. पुलिस हनुमान को ले कर उदयपुर गई, जहां आजादनगर स्थित उस के किराए के कमरे से स्कूटी की चाबी, उदयपुर आने का टिकट, कपडे़जूते आदि बरामद कर लिए गए. कमरे में औनलाइन शापिंग द्वारा मंगवाए गए चाकू का बिल भी मिला.

पुलिस ने गिरफ्तार अभियुक्तों की निशानदेही पर राजगढ़ के रेलवे स्टेशन के पास एक गड्ढे में छिपा कर रखे 2 चाकू व तीन जोड़ी गलव्स भी बरामद किए. बहरहाल, प्यार में अंधी संतोष ने अपने परिवार को पूरी तरह तबाह कर दिया. उस के ऊंचे सपनों ने उसे जेल के सीखचों के पीछे पहुंचा दिया.

प्रेमी और भाड़े के कातिलों के हाथों पूरे परिवार को मरवाने के बाद संतोष अब चैन से नहीं रह सकेगी. उस की छोटी बहन कविता अपना दुख किसी से नहीं कह पा रही है उस के बेटे निक्की ने ताई का क्या बिगाड़ा था, जो उसे भी मरवा दिया.

कविता का दुख यह भी है कि उस का पति मुकेश कथा लिखे जाने तक घर नहीं लौटा था. लगता है, इस बात का उसे पता ही नहीं चला है कि उस की भाभी ने उस की बगिया उजाड़ दी है.      ?

 —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

   सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2017

टूटा जाल शिकारी का : असफल योजना बनी कारावास की सजा

28अक्तूबर, 2019 को ग्रेटर नोएडा की फास्ट ट्रैक कोर्ट-2 में काफी भीड़ थी. दोनों पक्षों के वकील, पुलिस और तीनों आरोपी चंद्रमोहन शर्मा, प्रीति नागर, विदेश अदालत में मौजूद थे. उस दिन फास्ट ट्रैक कोर्ट के न्यायाधीश निरंजन कुमार एक ऐसे केस में सजा सुनाने वाले थे, जिस में शातिराना ढंग से खुद को मृत साबित करने के लिए चंद्रमोहन शर्मा ने एक पागल व्यक्ति को अपनी कार में बैठा कर जिंदा जला दिया था.

दोनों पक्षों की बहस पूरी हो चुकी थी. पिछली तारीख पर अदालत चंद्रमोहन को भादंवि की धारा 302 के तहत दोषी भी ठहरा चुकी थी. उस दिन सिर्फ फैसला सुनाया जाना था. प्राथमिक काररवाई निपटाने के बाद न्यायाधीश निरंजन कुमार ने फैसला सुनाते हुए चंद्रमोहन को आजीवन कारावास की सजा सुनाई.

दरअसल 28 अक्तूबर, 2019 को ग्रेटर नोएडा की फास्ट ट्रैक कोर्ट-2 के न्यायाधीश निरंजन कुमार ने जो फैसला सुनाया, उस की शुरुआत 7 जून, 2014 की शाम को तब हुई थी, जब शाम करीब 7 बजे अचानक एक लड़की का अपहरण हो गया.

दिल्ली से सटे गौतमबुद्ध नगर जिले के ग्रेटर नोएडा में अल्फा- 2, सेक्टर के मकान नंबर आई-33 में रहने वाले संतराम नागर की बेटी प्रीति नागर (22) अपने घर के बाहर से रहस्यमय ढंग से गायब हो गई.

प्रीति नागर शाम के अंधेरे में घर के बाहर बिछी चारपाई उठाने आई थी और गायब हो गई. चूंकि उस वक्त इलाके में बिजली नहीं थी इसलिए किसी ने भी प्रीति को कहीं आतेजाते नहीं देखा था. प्रीति को इधरउधर तलाश करने के बाद उस के पिता संतराम ने पुलिस कंट्रोल रूम को 100 नंबर पर फोन कर के इत्तिला दे दी.

सूचना मिलने के बाद कासना थाने की पुलिस मौके पर पहुंच गई. संतराम नागर ने पुलिस को वे सारी बातें बता दीं, जो प्रीति के गायब होने से जुड़ी थीं. पुलिस ने संतराम नागर व आसपड़ोस के लोगों के बयान दर्ज किए. फिर अगली सुबह संतराम की शिकायत पर थाना कासना में धारा 364 के तहत प्रीति के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर ली गई.

8 जून को प्रीति के अपहरण की जांच का केस एसआई विनय शर्मा के सुपुर्द कर दिया गया. जांच का काम संभालते ही जांच अधिकारी शर्मा अपनी टीम के साथ संतराम के घर पहुंचे और विवेचना शुरू कर दी.

तमाम बिंदुओं पर पूछताछ और जांच करने के बाद विनय शर्मा किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाए. प्रीति का कहीं भी कोई सुराग नहीं मिला. अचानक 2 महीने बाद 9 अगस्त, 2014 को प्रीति के पिता संतराम के मोबाइल पर एक अनजान नंबर से काल आई. काल करने वाले ने अपना नाम बताए बिना कहा कि वह तिरुपति बालाजी से बोल रहा है और उन की बेटी प्रीति उस के पास है.

फोन करने वाले ने बताया कि प्रीति कुछ गलत लोगों के चंगुल में फंस गई थी, लेकिन किसी तरह वह बच गई और अब उस के पास है. फोनकर्ता ने संतराम से आगे कहा कि वह तिरुपति बालाजी पहुंच जाएं, वह उन से बालाजी में मिलेगा और उन की बेटी उन के सुपुर्द कर देगा. काफी अनुरोध करने पर भी उस ने अपना नामपता नहीं बताया.

संतराम ने कासना थाने जा कर इस फोन के बारे में जांच अधिकारी विनय शर्मा को बताया.

शर्मा ने तुंरत उस फोन के बारे में साइबर सेल से जानकारी हासिल की तो पता चला कि जिस नंबर से संतराम को काल आई थी, उस की लोकेशन बंगलुरु के एक पीसीओ की थी.

विनय शर्मा ने थानाप्रभारी समरपाल सिंह और एसएसपी को इस जानकारी से अवगत कराया तो उन्होंने 13 अगस्त, 2014 को विनय शर्मा को कांस्टेबल धामा के साथ बंगलुरु रवाना कर दिया. उन के साथ संतराम भी अपने साले के साथ बंगलुरु पहुंच गए.

बंगलुरु पहुंच कर विनय शर्मा सब से पहले उस पीसीओ पर पहुंचे, जहां से संतराम के मोबाइल पर फोन किया था. लेकिन उस पीसीओ के संचालक से फोन करने वाले की पहचान के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं मिल सकी. संयोग से उसी दिन संतराम के मोबाइल पर लोकल नंबर से एक और काल आई.

फोन उसी व्यक्ति का था, जिस ने पहले फोन किया था. लेकिन इस बार फोन करने वाला काफी गुस्से में था उस ने पुलिस को साथ ले कर आने के लिए संतराम को खूब खरीखोटी सुनाई. संतराम ने उसे समझाने की कोशिश की कि उस का इरादा गलत नहीं था, लेकिन फोन करने वाला इतने गुस्से में था कि उस ने प्रीति का बुरा अंजाम करने की धमकी दे कर फोन काट दिया.

संतराम ने जब उसी नंबर पर काल बैक की तो फोन स्विच्ड औफ हो चुका था. जांच अधिकारी विनय शर्मा संतराम के साथ ही थे. वे समझ गए कि फोन करने वाला उन पर नजर रख रहा है. जिस नंबर से संतराम को फोन आया था, विनय शर्मा ने वह नंबर नोएडा में बैठी अपनी साइबर टीम को भेज दिया तो पता चला कि वह नंबर बंगलुरु के ही एक पीसीओ का है.

विनय शर्मा ने तत्काल पता नोट किया और बताए गए पते पर पहुंच गए. पीसीओ के मालिक से जब फोन करने वाले की बाबत जानकारी मांगी, तो वह उस के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं दे सका. क्योंकि पीसीओ पर तमाम लोग आते हैं और सब के बारे में जानकारी रखना पीसीओ वाले के लिए संभव नहीं होता.

निराश हो कर 1-2 दिन बाद संतराम बंगलुरु से नोएडा लौट आए. अब जांच के सारे दरवाजे बंद हो चुके थे. लेकिन उच्चाधिकारियों  के आदेश के कारण विनय शर्मा अपने कांस्टेबल धामा के साथ वहीं रुके रहे और अपनी जांचपड़ताल करते रहे.

इस बीच संतराम जब नोएडा पहुंच गए तो 15 अगस्त को उसी अज्ञात फोन करने वाले ने फिर फोन किया. उस ने संतराम से कहा कि उन की लड़की के गिड़गिड़ाने की वजह से वह उसे छोड़ देगा, लेकिन शर्त यह है कि वह इस बार अकेला आए और अगली सुबह तिरुपति बालाजी मंदिर के बाहर उस का इंतजार करे.

संतराम ने तुरंत फ्लाइट पकड़ी और तिरुपति बालाजी मंदिर पहुंच गए. इस दौरान उन्होंने फोन कर के विनय शर्मा को भी ये बात बता दी थी. फलस्वरूप 16 अगस्त की सुबह विनय शर्मा संतराम व उन के साले के साथ फोन करने वाले का इंतजार करने लगे.

लेकिन अज्ञात फोनकर्ता ने इस बार भी धोखा दे दिया . देर शाम तक इंतजार करने के बाद वे फिर निराश हो गए, क्योंकि न तो फोन करने वाला आया और न ही उस की कोई काल आई. हालांकि इस बार जांच अधिकारी ने सावधानी बरतते हुए खुद को संतराम के से दूर रखा था. निराश हो कर संतराम नोएडा लौट आए.

वह यह मान बैठे थे कि उन्हें कोई परेशान करने के लिए ऐसा कर रहा है. लेकिन विनय शर्मा इस बार भी वापस नहीं लौटे. और प्रीति के फोटो के आधार पर थानेथाने जा कर वह उस की तलाश करते रहे.

जिस वक्त पुलिस टीम प्रीति को बंगलुरु में तलाश कर रही थी, 22 अगस्त, 2014 को संतराम ने विनय शर्मा को फोन कर के बताया कि उन के पास फोन करने वाले का एक और धमकी भरा फोन आया है. इस बार उस ने प्रीति को जान से मारने की धमकी दी है.

संतराम ने बताया कि इस बार फोनकर्ता ने एक अन्य नंबर का इस्तेमाल किया था. विनय शर्मा के मांगने पर संतराम ने उन्हें वह नंबर नोट करा दिया.

एसआई विनय शर्मा ने वह नंबर साइबर टीम को भेज कर पता करा लिया कि वह नंबर बंगलुरु में हांसे कोटे इलाके के एक पीसीओ का है.

पता मिलते ही विनय शर्मा पीसीओ मालिक के पास पहुंच गए. यहां भी पीसीओ संचालक से उन्होंने फोनकर्ता की जानकारी जुटाने की कोशिश की, मगर कोई खास सफलता नहीं मिली. फिर भी इस बार उन्हें एक क्लू जरूर मिल गया.

विनय शर्मा की नजर पीसीओ के सामने स्थित एक ज्वैलरी शौप पर पड़ी. ज्वैलरी शौप के बाहर सीसीटीवी कैमरा लगा था. सीसीटीवी कैमरा देखते ही विनय शर्मा का चेहरा खिल उठा. उन्होंने पीसीओ के संचालक के साथ जा कर ज्वैलरी शौप संचालक को अपना परिचय दिया और सीसीटीवी फुटेज दिखाने का अनुरोध किया.

ज्वैलरी शौप के मालिक ने विनय शर्मा को सहयोग करते हुए उक्त समय की वीडियो फुटेज दिखा दी.

संयोग की बात थी कि पीसीओ ज्वैलरी शौप के सीसीटीवी कैमरे की रेंज में था. विनय शर्मा के साथ सीसीटीवी देख रहे पीसीओ संचालक ने सफेद पैंट, काली जैकेट और काले जूते पहने एक गंजे व्यक्ति को देख कर बताया कि उस के पीसीओ पर वही शख्स आया था. काल करने के बाद वह वापस चला गया था. वापस लौटते हुए उस शख्स का चेहरा पूरी तरह कैमरे की जद में आ गया था.

उस आदमी की वेशभूषा देख कर ज्वैलरी शौप के मालिक ने बताया कि यह व्यक्ति जो ड्रेस पहने है, वह कोलार में दुपहिया वाहन बनाने वाली होंडा फैक्ट्री के कर्मचारियों की ड्रेस है. यह सुराग डूबते को तिनके का सहारा मिलने जैसा था.

आगे की छानबीन के लिए विनय शर्मा ने ज्वैलरी शौप के संचालक से उस फुटेज की कौपी ले कर अपनी टीम के साथ कोलार के नस्सापुर स्थित टू व्हीलर बनाने वाली होंडा कंपनी के औफिस में पहुंच गए. जांच अधिकारी ने मैनेजर को पूरा मामला बताया. उस से पूछा गया कि क्या पिछले कुछ महीनों में उन के यहां किसी उत्तर भारतीय कर्मचारी ने नौकरी जौइन की है. इस के जवाब में मैनेजर ने उन्हें पिछले 3 महीनों में नौकरी जौइन करने वाले 3 कर्मचारियों का फोटो समेत बायोडाटा मिल गया.

तीनों बायोडाटा देखने के बाद विनय शर्मा की नजर एक शख्स पर अटक गई, क्योंकि वह उन का जानापहचाना था.

वह शख्स चंद्रमोहन शर्मा था, लेकिन बायोडाटा में उस का नाम नितिन लिखा था, जिस ने 6 मई, 2014 को फिटर कर्मचारी के रूप में उन के यहां नौकरी जौइन की थी. उस ने अपना मूल पता हरियाणा, हिसार लिखवाया था.

चंद्रमोहन को विनय अच्छी तरह जानते थे. क्योंकि वह नोएडा का एक आरटीआई एक्टिविस्ट था और वह उस से कई बार मिले भी थे. लेकिन उन्हें यह समझ नहीं आ रहा था कि चंद्रमोहन यहां क्या कर रहा है और उस ने अपना नाम नितिन क्यों लिखवाया है. साथ ही प्रीति की तलाश करतेकरते उन्हें चंद्रमोहन की बंगलुरु में उपस्थिति समझ नहीं आ रही थी.

विनय शर्मा ने अपने मोबाइल से बायोडाटा में लगी फोटो ले कर अपने एसएचओ समरजीत सिंह को भेजी और उन्हें पूरी बात बताई.

कुछ देर में इंसपेक्टर समरजीत सिंह ने विनय शर्मा को जो कुछ बताया, उस से उन के दिमाग की नसें हिल गईं. समरजीत सिंह ने बताया कि नितिन नाम का शख्स चंद्रमोहन शर्मा ही है और वह उस के मर्डर केस की जांच कर रहे हैं. समरजीत सिंह ने विनय शर्मा को बिना वक्त गंवाए नितिन को पकड़ने की हिदायत दी.

मामले की तसवीर अब काफी हद तक साफ हो चुकी थी. विनय शर्मा के कहने पर नितिन शर्मा उर्फ चंद्रमोहन को एचआर मैनेजर ने फैक्ट्री से बुलवा लिया. पुलिस को सादे लिबास में देख कर कथित नितिन शर्मा घबरा गया. विनय शर्मा को वह पहले से ही जानता था. विनय शर्मा ने उसे यह नहीं बताया कि उन्हें उस की मौत के ड्रामे के बारे में कोई जानकारी है.

उन्होंने उस से सब से पहले प्रीति के बारे पूछताछ शुरू की. चंद्रमोहन को पता नहीं था कि विनय शर्मा को उस के बारे में सब पता चल चुका है. उस ने बताया कि प्रीति से उस ने शादी कर ली है. वह अपनी इच्छा से अपना घर छोड़ कर उस के साथ आई है.

चंद्रमोहन विनय कुमार को काउंटी कट्टा इलाके में अपने किराए के घर पर भी ले गया, जहां वह प्रीति के साथ रहता था. विनय शर्मा ने घर में घुसते ही प्रीति को पहचान लिया, क्योंकि नोएडा से इतनी दूर वह उसी तलाश में आए थे.

विनय शर्मा ने 27 अगस्त, 2014 को स्थानीय पुलिस के सहयोग से प्रीति व चंद्रमोहन को हिरासत में ले लिया. दोनों को स्थानीय अदालत में पेश कर के उन्होंने उन्हें ट्रांजिट रिमांड पर लिया और उन्हें ग्रेटर नोएडा के कासना थाने ले आए.

विनय शर्मा ग्रेटर नोएडा से बंगलुरु जिस प्रीति की तलाश में गए थे, वह मकसद पूरा हो चुका था. लेकिन इसी के साथ खुद को मुर्दा साबित कर के प्रीति के साथ मौज कर रहा वह चंद्रमोहन नाम का कथित मृतक भी उन के हाथ लग गया था.

29 अगस्त को पुलिस ने प्रीति नागर और चंद्रमोहन को अदालत में पेश कर के 3 दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया. रिमांड की अवधि में चंद्रमोहन व प्रीति से अलगअलग पूछताछ की गई, तो उन की प्रेम कहानी तथा चंद्रमोहन द्वारा रची गई गहरी साजिश का भी परदाफाश हो गया.

चंद्रमोहन शर्मा आरटीआई कार्यकर्ता और आम आदमी पार्टी का सक्रिय सदस्य था. वह ग्रेटर नोएडा के अल्फा-2 में आई ब्लौक के मकान नंबर 480 में रहता था. चंद्रमोहन के परिवार में पत्नी सविता तथा 2 बच्चे थे, 12 वर्ष का बेटा तथा 7 वर्ष की बेटी.

हुआ यूं था कि 17 मई, 2014 को चंद्रमोहन की पत्नी सविता ने थाना कासना में आ कर एक लिखित तहरीर दी थी. तहरीर में सविता ने लिखा था कि उस का पति चंद्रमोहन 30 अप्रैल, 2014 से लापता था. 2 मई को उस की जली हुई लाश उसी की कार में मिली थी. तहरीर में सविता ने आरोप लगाया था कि उस के पति की मौत दुर्घटना में नहीं हुई, बल्कि उस की हत्या की गई है.

सविता की तहरीर के मुताबिक कासना क्षेत्र के बृजेश, शानी, राजकुमार उर्फ राजू, बबलू उर्फ आनंद और प्रवीण ने गांव कासना के मंदिर की जमीन पर अवैध कब्जा कर रखा था. उस का पति गांव की तरफ से मंदिर की जमीन के मुकदमे में पैरवी कर रहा था, इसलिए उपरोक्त सभी लोग चंद्रमोहन से दुश्मनी रखते थे.

इन सभी लोगों से चंद्रमोहन ने अपनी जान का खतरा भी बताया था, जिस के संबंध में 30 अप्रैल, 2014 को ही थाना कासना में तत्कालीन थानाप्रभारी वीरपाल सिंह को शिकायत दे कर प्राथमिकी भी दर्ज कराई थी, जिस में चंद्रमोहन ने आरोप लगाया था कि 28 अप्रैल को ड्यूटी पर जाते समय उस से रंजिश मानने वाले बृजेश ने अपने साथियों के साथ परी चौक के पास उसे जान से मारने की धमकी दी थी.

सविता ने अपनी तहरीर में आरोप लगाया था कि उक्त सभी व्यक्तियों ने साजिश कर के उस के पति चंद्रमोहन की हत्या कर लाश को कार समेत जला दिया है, ताकि घटना को दुर्घटना का रूप दिया जा सके.

सविता की तहरीर के आधार पर कासना पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 147, 302 के तहत वाद पंजीकृत कर के नामजद आरोपियों से पूछताछ करने का प्रयास किया तो पता चला कि वे फरार हैं.

चंद्रमोहन शर्मा की मौत का प्रकरण कुछ इस तरह सामने आया था. 1/ 2 मई, 2014 की रात करीब 12 बजे ग्रेटर नोएडा के अंसल प्लाजा के निकट होंडा कंपनी के सामने जेपी ग्रीन के पास एक जली हुई कार मिली थी. कार की ड्राइविंग सीट पर जो शख्स बैठा था, वह भी बुरी तरह जल कर कोयला हो चुका था.

जली कार में लाश की सूचना पा कर कासना थाना पुलिस मौके पर पहुंची. प्रथमदृष्टया पुलिस ने अनुमान लगाया कि यह हादसा रहा होगा. गैस रिसने से कार आग का गोला बन गई होगी. कार ड्राइव करने वाले को इतनी भी मोहलत नहीं मिली कि दरवाजा खोल कर वह बाहर निकल पाता.

वह सीट पर बैठेबैठे ही जल कर मर गया. कार का रजिस्ट्रेशन नंबर और चेसिस नंबर सहीसलामत था. उसी के माध्यम से पुलिस ने अगले दिन आरटीओ से मालूमात की तो पता चला वह कार चंद्रमोहन की थी. पुलिस उस पते पर पहुंची, जिस पते पर कार पंजीकृत थी.

वहां पता चला कि वह घर चंद्रमोहन का है. चंद्रमोहन तो नहीं मिला, लेकिन उस की पत्नी जरूर पुलिस को मिल गई. पुलिस ने चंद्रमोहन की पत्नी सविता को बुला कर कार में लाश की शिनाख्त कराई. सविता ने लाश के साथ कार की भी शिनाख्त कर दी.

चंद्रमोहन के परिजनों ने उस की लाश की शिनाख्त 2 मई को ही कर दी थी. पहली नजर में पुलिस को ये मामला दुर्घटनावश आग लगने से हुई मौत का लग रहा था. लेकिन कुछ रोज बाद सविता ने इस मामले में हत्या की आशंका जताते हुए 5 लोगों को नामजद करा दिया.

जिस के बाद कासना पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 147, 302 के तहत वाद पंजीकृत कर नामजद आरोपियों की गिरफ्तारी की प्रक्रिया शुरू कर दी. लेकिन सभी आरोपी फरार हो गए. इस केस के जांच अधिकारी कासना थाने के एसएचओ समरजीत सिंह थे.

होंडा टू व्हीलर कंपनी में मैकेनिक की हैसियत से काम करने वाला चंद्रमोहन सामाजिक कार्यों तथा राजनीति में गहरी रुचि रखता था. इसी कारण वह आरटीआई कार्यकर्ता होने के साथ अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का सक्रिय सदस्य बन गया था.

चंद्रमोहन का जीवन सुख में बीत रहा था. 15 वर्ष पहले उस ने सविता से प्रेम विवाह किया था. उन के 2 बच्चे भी थे. निजी उपयोग के लिए चंद्रमोहन ने एक शेवरले कार भी खरीद ली थी.

चंद्रमोहन के सुखी जीवन में उथलपुथल तब हुई, जब प्रीति से उस की आंखें लड़ीं. आसपास रहने के कारण प्रीति और सविता की दोस्ती हो गई थी. सविता से मिलने के लिए प्रीति अकसर उस के घर पर आती थी. इसी दौरान चंद्रमोहन पत्नी की सहेली के आकर्षण में बंध गया. चंद्रमोहन उम्र में प्रीति से कई साल बड़ा था, वह विवाहित तथा 2 बच्चों का पिता भी, इस के बावजूद 22 साल की प्रीति उसे अपना बनाने का सपना देखने लगी.

पहले आंखोंआंखों में उन की रसीली बातें हुई, फिर कभी रूबरू तो कभी फोन पर बातें होने लगीं. चंद्रमोहन ने प्रेम निवेदन किया, तो प्रीति ने उसे सशर्त स्वीकार कर लिया. शर्त यह थी कि चंद्रमोहन उसे मौजमजे की चीज नहीं समझेगा. उस से विवाह कर के जीवन भर साथ निभाएगा.

15 साल पहले जब चंद्रमोहन ने सविता से प्रेम विवाह किया था, तब वह बेहद हसीन थी. लेकिन वक्त की धूप ने सविता के रंगरूप को झुलसाया, तो घरपरिवार की जिम्मेदारियां निभातेनिभाते वह निचुड़ सी गई. बनावसिंगार से भी वह दूर रहने लगी थी. इसी वजह से चंद्रमोहन को वह बासी और रूखीफीकी महसूस होने लगी थी.  वह खुद भी सविता से ऊबा हुआ था. यही कारण था कि उस ने प्रीति की विवाह वाली शर्त मंजूर कर ली.

बस इस के बाद दोनों की बेमेल प्रेम कहानी शुरू हो गई. प्रेम की पगडंडियां तय करतेकरते कुछ महीने बीत गए, तो प्रीति ने चंद्रमोहन पर विवाह के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया.

एक बीवी के होते चंद्रमोहन दूसरा विवाह नहीं कर सकता था. उसे मालूम था कि यह कानूनन जुर्म है. सविता को तलाक वह दे नहीं सकता था, क्योंकि करीबी रिश्तेदारों पर सविता की अच्छीखासी पकड़ थी. तलाक देता, तो सभी एकजुट हो कर चंद्रमोहन का गला दबाने आ जाते.

चंद्रमोहन समझ नहीं पा रहा था, किस तरह सविता से पीछा छुड़ाए. एक तो चंद्रमोहन को कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था, दूसरी ओर प्रीति विवाह के लिए दबाव बनाए हुए थी. विवाह में अनावश्यक विलंब होता देख प्रीति उसे जेल भिजवाने और पत्नी से दोनों का रिश्ता बताने की धमकी भी देने लगी.

चंद्रमोहन ऐसा कुछ नहीं चाहता था, जिस से उस का जीना हराम हो जाए. जब उसे कोई राह नहीं सूझी, तब उस ने प्रीति से गुप्तरूप से विवाह करने का निश्चय कर लिया.

28 नवंबर, 2013 को चंद्रमोहन प्रीति को दादरी स्थित आर्यसमाज मंदिर में ले गया और वहां उस से प्रेम विवाह कर लिया.

प्रीति खुश थी. उस ने मान लिया कि आज चंद्रमोहन ने मांग में सिंदूर भरा है, तो कल घर भी ले जाएगा. चंद्रमोहन इसलिए खुश था कि वक्ती तौर पर ही सही, कुछ समय के लिए मुसीबत से निजात तो मिल गई.

चंद्रमोहन व प्रीति अलगअलग रहते रहे. प्रीति ने अपने परिवार में रहते हुए किसी को अपनी शादी की भनक नहीं लगने दी. दूसरी तरफ चंद्रमोहन भी अपने परिवार से प्रीति के साथ की गई दूसरी शादी का राज छिपाता रहा.

जब शादी को कुछ सप्ताह बीत गए और कोई सकारात्मक रास्ता निकलता नहीं दिखा तो प्रीति ने चंद्रमोहन पर फिर दबाव बनाना शुरू कर दिया कि वह जल्द से जल्द अपने घर से सविता की छुट्टी करे और उसे घर ले जाए.

पहले प्रीति से प्रेम और फिर विवाह कर के चंद्रमोहन बुरी तरह फंस गया था. न वह सविता को घर से निकाल सकता था, न ही प्रीति के बगैर रह सकता था. प्रीति भी अब अपने मायके में रहने को राजी नहीं थी. प्रीति ने जब चंद्रमोहन पर लगातार दबाव बनाना शुरू किया तो बहुत सोचनेसमझने के बाद चंद्रमोहन ने एक खौफनाक योजना बना डाली.

चंद्रमोहन ने जो योजना बनाई थी, उसे अकेले अंजाम दे पाना संभव नहीं था. अत: योजना को अमली जामा पहनाने के लिए उस ने अपने साले विदेश शर्मा को नकद रुपए देने का लालच दिया. साथ ही उस ने सविता को उस के बदले होंडा कंपनी में नौकरी मिलने का लालच दे कर साजिश में शामिल कर लिया.

दरअसल, अंसल प्लाजा के आसपास एक विक्षिप्त युवक घूमा करता था. उस की और चंद्रमोहन की कदकाठी में काफी समानता थी. उस विक्षिप्त युवक को देख कर चंद्रमोहन के दिमाग में एक आइडिया आया था कि क्यों न वह उस पागल को मार कर स्वयं को मुर्दा साबित कर दें.

परिजन व पुलिस उसे मुर्दा मान लेंगे, तो कोई उस की तलाश नहीं करेगा. प्रीति को ले कर वह कहीं दूर चला जाएगा और आगे का उस के संग जीवन गुजारेगा.

प्रीति भी चंद्रमोहन की इस योजना से सहमत हो गई. आपसी विचारविमर्श के बाद 30 अप्रैल, 2014 को योजना को अंतिम रूप दे दिया गया और अगले दिन यानी 1 मई की रात को उसे क्रियान्वित करने का निर्णय लिया गया. योजना को अंजाम देने के लिए चंद्रमोहन ने तुगलपुर स्थित पैट्रोल पंप से एक डिब्बे में 3 लीटर पैट्रोल भरवा कर कार में रख लिया.

1 मई की रात को 11 बजे सविता का भाई विदेश अंसल प्लाजा के आसपास घूमने वाले पागल युवक को बहलाफुसला कर मोटरसाइकिल पर बैठा लाया. चंद्रमोहन अपनी कार में बैठा पहले से उस का इंतजार कर रहा था.

चंद्रमोहन ने एक सुनसान जगह पर कार रोकी और विक्षिप्त युवक को पिछली सीट पर बैठा कर अपनी बेल्ट से उस का गला घोंट कर मार डाला.

इस के बाद चंद्रमोहन ने अपने कपडे़ उतार कर विदेश को दिए, जिन्हें विदेश ने पागल के पहने कपड़े उतार कर उसे चंद्रमोहन के कपड़े पहना दिए. अपना फोन व पर्स भी चंद्रमोहन ने उस की जेब में रख दिया.

चंद्रमोहन ने पहले से ही अपने लिए एक जोड़ी कपड़े गाड़ी में रख रखे थे, जो उस ने खुद पहन लिए. इस के बाद चंद्रमोहन और विदेश ने मृत पड़े विक्षिप्त युवक का शरीर उठा कर गाड़ी की पिछली सीट पर रखा और कार को ड्राइव करते हुए अंसल प्लाजा के निकट होंडा कंपनी के सामने वाली जेपी ग्रीन वाली रोड पर ले गए.

पागल युवक के मृत शरीर को उन्होंने पिछली सीट से हटा कर ड्राइविंग सीट पर बैठाया गया और फिर सीट बेल्ट से उसे कस दिया, ताकि वह जीवित भी हो तो कार से उतर कर भाग ना सके. तब तक आधी रात का वक्त हो चला था. चंद्रमोहन और विदेश ने प्लास्टिक की कैन में भरा पैट्रोल कार पर चारों तरफ और भीतर की सीटों के साथ विक्षिप्त युवक पर अच्छी तरह से छिड़का. इस के बाद उन्होंने कार में आग लगा दी.

चंद पलों में ही कार धूधू कर के जलने लगी. कार को धूधू जलता देख दोनों मोटरसाइकिल से फरार हो गए. आधी रात का वक्त था. वहां से गुजरती कुछ गाडि़यों ने जब कार जलती देखी तो रुक गए. लेकिन तब तक कार इतनी बुरी तरह जल चुकी थी कि उसे बुझाने की हिम्मत किसी की नहीं हुई. किसी ने फायर ब्रिगेड को फोन कर दिया.

सूचना मिलने के 15-20 मिनट बाद दमकल की गाड़ी भी मौके पर पहुंच गई. कुछ देर में आग पर काबू तो पा लिया गया. लेकिन तब तक कार जल कर कोयला हो चुकी थी. दमकलकर्मियों ने देखा कि कार की ड्राइविंग सीट पर बैठे एक व्यक्ति की भी जलने से मौत हो गई थी.

मौके से फरार होने के बाद विदेश तो अपने घर चला गया, जबकि चंद्रमोहन ने ट्रेन से बंगलुरु की राह पकड़ ली. बंगलुरु पहुंच कर चंद्रमोहन ने सब से पहले अपने सिर के बाल और मूंछ मुंडवाई. फिर अपने शातिरदिमाग का इस्तेमाल कर जोड़तोड़ से उस ने नितिन शर्मा के नाम की एक आईडी बनवा ली.

नई आईडी बनवाते समय उस ने अपना पता नलवा, हिसार, हरियाणा दर्ज कराया. उस के बाद चंद्रमोहन ने अपनी पहचान से जुड़े दूसरे नकली दस्तावेज भी तैयार करवा लिए. इतना सब होने के बाद चंद्रमोहन ने अगले 4 दिनों में इन तमाम दस्तावेजों के बल पर होंडा टू व्हीलर कंपनी में नौकरी भी पा ली.

बंगलुरु में अज्ञातवास के दौरान चंद्रमोहन सेलफोन के माध्यम से प्रीति के साथ निरंतर संपर्क में रहा. आईडी बन जाने के बाद 7 जून को चंद्रमोहन प्रीति को ले जाने के लिए दिल्ली आया.

फोन के माध्यम से योजना पहले ही बन चुकी थी. योजना के तहत 7 जून की रात 8 बजे प्रीति अपने घर से इस तरह का नाटक कर के लापता हुई ताकि सब को लगे उस का अपहरण हो गया है.

प्रीति अपने लापता होने की घटना को अपहरण का रंग देना चाहती थी, इसलिए घर से बाहर निकलते ही उस ने हलक से हल्की सी चीख भी निकाली. किस्मत ने भी उस वक्त उस का साथ दिया और बिजली गुल हो गई.

घर से कुछ दूर पर ही प्रीति को एक आटोरिक्शा मिल गया, जिसे पकड़ कर वह दिल्ली पहुंच गई, जहां तय स्थान पर वह चंद्रमोहन से मिली. चंद्रमोहन ने पहले ही नई दिल्ली से बंगलुरु जाने वाली कर्नाटक एक्सप्रेस में 2 बर्थ आरक्षित करा रखी थीं.

दोनों सीधे नई दिल्ली स्टेशन जा कर ट्रेन में सवार हो गए और अगले दिन बंगलुरु पहुंच गए. बंगलुरु पहुंचने के बाद चंद्रमोहन ने नकली आईडी से 2 सिम कार्ड खरीदे. वे जिन नंबरों को इस्तेमाल करते थे, वे नंबर दोनों ने किसी को नहीं दिए थे.

रिमांड अवधि में जब पुलिस ने चंद्रमोहन से संतराम को फोन करने का कारण पूछा, तो चंद्रमोहन ने बताया कि वह पुलिस को गुमराह करना चाहता था, इसीलिए उस ने पीसीओ पर जा कर संतराम को फोन कर के कहा था कि उन की बेटी उस के पास है.

लेकिन उस वक्त चंद्रमोहन ने यह कल्पना तक नहीं की थी कि उस की यही गलती उस की गिरफ्तारी का आधार बन जाएगी. क्योंकि इसी एक फोन काल का पीछा करतेकरते पुलिस प्रीति की तलाश में बंगलुरु पहुंच गई बंगलुरु में पुलिस जब प्रीति तक पहुंची तो पुलिस के हाथ चंद्रमोहन की गरदन तक पहुंच गए.

पुलिस रिमांड में हुई पूछताछ के दौरान इस मामले के जांच अधिकारी कासना थानाप्रभारी समरजीत सिंह ने 31 अगस्त, 2014 को चंद्रमोहन की निशानदेही पर जेपी ग्रीन की दीवार से 200 मीटर की दूरी पर फेंकी गई वह प्लास्टिक की कैन भी बरामद कर ली, जिस में पैट्रोल ला कर चंद्रमोहन ने पागल व्यक्ति के ऊपर डाल कर आग लगाई थी.

पुलिस ने अदालत में बतौर गवाह पैट्रोल पंप के उस सेल्समैन को भी पेश किया, जिस से चंद्रमोहन ने कैन में पैट्रोल खरीद कर भरवाया था.

पुलिस ने इस मामले में चंद्रमोहन के साले विदेश को भी हत्या में सहयोग करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. बाद में तीनों आरोपियों को आवश्यक पूछताछ के बाद जेल भेज दिया गया.

जांच अधिकारी समरजीत सिंह ने 23 नवंबर, 2014 को एक विक्षिप्त युवक को कार में जला कर हत्या करने के आरोप में और खुद की पहचान छिपा कर दूसरे राज्य में छिपने के मुकदमे में हत्या की धारा 302 के साथ भादंसं की धारा 201, 202, 120बी, 420, 467, 468 व 471 की धारा भी जोड़ दी और आरोपपत्र अदालत में पेश कर दिया.

आरोपपत्र पर सुनवाई के दौरान ही बचावपक्ष की दलीलों के आधार पर अभियुक्ता प्रीति और विदेश के खिलाफ लगाए गए कुछ आरोपों को अदालत ने खारिज कर दिया था. बाद में मार्च, 2016 में यह वाद सुनवाई के लिए सत्र न्यायालय में भेज दिया गया.

इस मामले की जांच के दौरान पुलिस ने अदालत में चंद्रमोहन द्वारा कालोर की होंडा कंपनी में नौकरी पाने के लिए दी गई नकली आईडी व दूसरे दस्तावेज साक्ष्य के तौर पर पेश किए, जिस से उस के खिलाफ अपनी पहचान छिपाने के लिए जालसाजी करने और नकली दस्तावेज तैयार करने के आरोप सही पाए गए.

सरकारी वकील जिला सहायक शासकीय अधिवक्ता हरीश सिसोदिया ने अभियोजन की तरफ से ठोस सबूत दिए, लेकिन अभियोजन पक्ष इस बात को साबित नहीं कर पाया कि इस मामले में चंद्रमोहन के साले विदेश की कोई भूमिका थी. इसलिए अदालत ने उसे दोषी न पा कर बरी कर दिया.

अभियोजन की तरफ से चंद्रमोहन और प्रीति की दादरी के आर्यसमाज मंदिर में हुई शादी के प्रमाण भी अदालत में पेश किए गए. इतना ही नहीं, अभियोजन पक्ष की तरफ से ऐसे कई ठोस साक्ष्य और गवाह अदालत में पेश गए, जिस से ये साबित हो गया कि चंद्रमोहन ने एक साजिश के तहत अपनी प्रेमिका के साथ रहने के लिए अपनी मृत्यु का झूठा नाटक रचा.

खुद को मरा साबित करने के लिए चंद्रमोहन ने एक विक्षिप्त व्यक्ति की हत्या कर उस के शव को अपनी कार में डाल कर कार समेत जला दिया. चूंकि प्रीति को चंद्रमोहन के अपराध की जानकारी थी और उस ने ये जानकारी छिपाई, इसलिए उसे 6 माह के कारावास की सजा मिली.

प्रीति जेल से जमानत मिलने के पूर्व पहले ही न्यायालय की तरफ से मिली सजा काट चुकी थी, इसलिए उसे जेल नहीं जाना पड़ा. जबकि विदेश को इस मामले में अदालत ने साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया.

—कथा पुलिस की जांच व न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय के तथ्यों पर आधारित है

 

प्यार, प्रॉपटी और पत्रकार

कमलेश जैन वरिष्ठ पत्रकार थे, जो पिछले 24 सालों से इस काम में लगे थे. इसलिए पिपलिया मंडी क्षेत्र में ही नहीं, मंदसौर जिले में भी उन की अच्छी पहचान थी.

दैनिक अखबारों के पत्रकार दिन भर समाचार जुटा कर शाम को समाचार तैयार कर के अपने अखबार के लिए भेजते हैं. कमलेश और उन के सहयोगी अवतार भी जुटाए समाचारों को अंतिम रूप देने में लगे थे.

उसी समय एक मोटरसाइकिल उन के औफिस के ठीक सामने आ कर रुकी, जिस पर 2 युवक सवार थे. उन में से एक तो मोटरसाइकिल पर ही बैठा रहा, पीछे बैठा युवक उतर कर कमलेश के औफिस में घुस गया. अवतार को लगा कि किसी समाचार के सिलसिले में आया होगा, क्योंकि औफिस में अकसर लोग समाचारों के सिलसिले में आते रहते हैं. इसलिए अवतार ने उस की ओर ध्यान नहीं दिया. वह अपने काम में लगे रहे.

लेकिन जब एक के बाद एक, 2 गोलियों के चलने की आवाज कमलेश जैन के चैंबर से आई तो वह सन्न रह गए. वह कमलेश के चैंबर में पहुंचते, उस के पहले ही वह युवक तेजी से बाहर निकला और बाहर खड़ी मोटरसाइकिल पर बैठ कर अपने साथी के साथ भाग गया. इस के बाद कमलेश की हालत देख कर उन्होंने शोर मचा दिया, जिस से आसपास के लोग इकट्ठा हो गए.

किसी ने फोन कर के यह जानकारी पुलिस को दे दी तो थाना पिपलिया मंडी के टीआई अनिल सिंह तत्काल दलबल के साथ मौके पर पर पहुंच गए. सब से पहले उन्होंने कमलेश को इलाज के लिए नजदीक के अस्पताल पहुंचाया.

उन की हालत गंभीर थी, इसलिए उन्हें मंदसौर के जिला अस्पताल भेज दिया गया. लेकिन अस्पताल पहुंचने से पहले ही उन्होंने रास्ते में दम तोड़ दिया. उन की मौत की खबर सुन कर तमाम पत्रकार और उन के शुभचिंतक अस्पताल पहुंच गए. सभी हैरान थे कि एक पत्रकार की हत्या क्यों कर दी गई?

नेताओं और पत्रकारों ने किया प्रदर्शन कमलेश के घर वालों ने उन की हत्या के मामले में 7 लोगों कमल सिंह, जसवंत सिंह, जितेंद्र उर्फ बरी उर्फ जीतू, इंदर सिंह उर्फ बापू उर्फ विक्रम सिंह और शकील के खिलाफ नामजद रिपोर्ट लिखाई. कमलेश जैन की हत्या से कस्बे और पुलिस महकमे में हलचल मची हुई थी. अगले दिन पत्रकार कमलेश की शवयात्रा के समय जिले भर के पत्रकार, राजनीतिक दलों के नेताओं ने हत्याकांड की निंदा करते हुए हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने की मांग की.

मामला एक वरिष्ठ पत्रकार की हत्या का था. पत्रकारों, राजनीतिज्ञों के अलावा तमाम सामाजिक संगठनों का भी पुलिस पर दबाव पड़ रहा था. लिहाजा पुलिस नामजद अभियुक्तों की तलाश में जुट गई. पुलिस को अभियुक्तों के राजस्थान के एक गांव में होने की जानकारी मिली तो पुलिस की एक टीम राजथान रवाना हो गई. इस टीम ने वहां एक गांव से 5 अभियुक्तों को हिरासत में ले लिया.

हत्या से कुछ दिनों पहले इन लोगों से कमलेश का विवाद हुआ था, इसलिए पुलिस को उम्मीद थी कि इन की गिरफ्तारी से मामले का खुलासा हो जाएगा. लेकिन पुलिस पूछताछ में जब साफ हो गया कि घटना वाले दिन वे पिपलिया मंडी में नहीं थे, तो पुलिस थोड़ा निराश हुई.

पुलिस ने तरीके से नामजद लोगों के बारे में जानकारी निकलवाई, इस में साफ हो गया कि इन लोगों का कमलेश से विवाद जरूर था, लेकिन हत्या में इन का हाथ नहीं है, इसलिए पुलिस ने उन्हें छोड़ दिया.

इस के बाद पुलिस ने नए सिरे से मामले की जांच शुरू की. 35 दिन बाद भी कमलेश जैन के हत्यारों का पता न लगने से लोगों में पुलिस के प्रति आक्रोश बढ़ रहा था. पत्रकार और सामाजिक संगठन विरोध प्रदर्शन कर रहे थे. इस बीच मंदसौर के पुलिस अधीक्षक ओ.पी. त्रिपाठी दंगा कांड में निलंबित हो चुके थे. उसी मामले में पिपलिया मंडी के टीआई अनिल सिंह को भी पुलिस मुख्यालय भेज दिया गया था.

दरअसल, मध्य प्रदेश के किसानों ने प्याज का मूल्य बढ़ाने को ले कर पूरे सूबे में जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन किया था. मंदसौर में प्रदर्शन के समय पुलिस ने किसानों पर लाठीचार्ज कर दिया था, जिस के बाद किसान उग्र हो गए थे और वहां दंगा भड़क उठा था. इस के बाद प्रशासन को मंदसौर में कर्फ्यू तक लगाना पड़ा था. इसी मामले में एसपी ओ.पी. त्रिपाठी को निलंबित कर दिया गया था.

ओ.पी. त्रिपाठी के निलंबित होने के बाद मनोज कुमार सिंह को मंदसौर का नया एसपी बनाया गया तो कमलेश सिंघार को थाना पिपलिया मंडी का थानाप्रभारी बना दिया गया. नए एसपी ने कमलेश जैन की हत्या वाले मामले को एक चुनौती के रूप में ले कर सीएसपी राकेश शुक्ला तथा थानाप्रभारी कमलेश सिंघार के साथ मीटिंग कर कमलेश जैन के हत्यारों को जल्द गिरफ्तार करने का निर्देश दिया.

तमाम जांच के बाद भी पुलिस को नहीं मिला क्लू

सीएसपी राकेश मोहन शुक्ल, टीआई कमलेश सिंघार सुलझे हुए पुलिस अधिकारी हैं, इसलिए उन्होंने जांच की शुरुआत मृतक कमलेश जैन के व्यवसाय से की. जांच में उन्हें पता चला कि लगभग 2 दशक से पत्रकारिता से जुड़े कमलेश जैन का इलाके में कई लोगों से विवाद चल रहा था. कमलेश के औफिस के पास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी गई तो पता चला कि हत्यारे कुछ ही सैकेंड में कमलेश की हत्या कर मोटरसाइकिल से खत्याखेड़ी की ओर भाग गए थे.

पहले पुलिस का ध्यान सीसीटीवी फुटेज की तरफ नहीं गया था. इस फुटेज से पता चला था कि हत्यारों की मोटरसाइकिल शाम 7 बज कर 54 मिनट और 47 सैकेंड पर कमलेश के औफिस के सामने आ कर रुकी थी. उस के बाद उन में से एक आदमी उतर कर कमलेश के औफिस में गया और कुछ ही समय में उन्हें गोलियां मार कर बाहर आया और मोटरसाइकिल पर बैठ कर चला गया. इस काम में उसे केवल 12 सैकेंड लगे थे.

इस से पुलिस को लगा कि हत्यारा काफी शातिर था. पुलिस यह भी अंदाजा लगा रही थी कि हत्यार सुपारी किलर भी हो सकते हैं. कमलेश अपराधियों के खिलाफ भी लिखते थे. कहीं उन्हें अपने किसी समाचार या लेख की वजह से तो जान से हाथ नहीं धोना पड़ा.

इस बात का पता लगाने के लिए पुलिस ने पिछले 6 महीने में कमलेश की अखबारों में छपी खबरों का अध्ययन किया. इस के अलावा कमलेश से रंजिश रखने वालों के बारे में पता किया, पर सफलता नहीं मिली.

कई महिलाओं से थे कमलेश के संबंध जब किसी भी तरह अपराधियों के बारे में कोई सुराग हाथ नहीं लगा तो टीआई कमलेश सिंघार ने अपनी टीम को कमलेश के निजी जीवन के बारे में पता करने में लगा दिया. क्योंकि कमलेश 47 साल के होने के बावजूद अविवाहित थे. पुलिस को पता चला कि जिस दिन उन की हत्या हुई थी, उस के 2 दिन बाद यानी 2 जून, 2017 को वह शहर के एक प्रतिष्ठित परिवार की विधवा बहू संध्या से शादी करने वाले थे.

पुलिस ने उन के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो पता चला कि उन के कई महिलाओं से संबंध थे. संध्या सहित करीब 10 महिलाओं से उन की देर रात तक मोबाइल पर बातें होती रहती थीं. थानाप्रभारी ने इन महिलाओं के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि जिन महिलाओं से उन की बातचीत होती थी, उन का संबंध मीडिया से बिलकुल नहीं था.

यह भी पता चला कि इन महिलाओं से कमलेश के काफी करीबी संबंध थे. जिन में से प्रीति और कमलेश के संबंधों की जानकारी आसपास के लोगों के अलावा उस के पति को भी थी. लेकिन कमलेश की पहुंच के आगे वह चुप था.

थानाप्रभारी ने कमलेश की अन्य प्रेमिकाओं से पूछताछ की तो पता चला कि कमलेश और संध्या शादी करना चाहते थे. इस बात को ले कर संध्या की ससुराल वाले खुश नहीं थे. संध्या की ससुराल वालों को यह बात प्रीति ने ही बताई थी, क्योंकि प्रीति को शक था कि कमलेश की संध्या से नजदीकी की वजह से वह उस से दूर हो रहा था.

कमलेश सिंघार ने संध्या और उस की ससुराल वालों के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर जांच की तो पता चला कि कमलेश की हत्या से पहले और बाद में संध्या के जेठ सुधीर की अपने दोस्त धीरज अग्रवाल से कई बार बात हुई थी. सुधीर के बारे में पुलिस को पहले से ही पता था कि पिपलिया मंडी के कई नामी अवैध धंधेबाजों तथा अफीम तस्करों से उस के संबंध हैं.

कमलेश सिंघार ने सुधीर जैन के बाद धीरज अग्रवाल के फोन नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई, जिस में पता चला कि जबजब सुधीर और धीरज के बीच बात होती थी, उस के बाद धीरज अग्रवाल प्रतापगढ़, राजस्थान जेल में बंद पिपलिया मंडी के कुख्यात बदमाश आजम लाला से बात करता था.

घटना वाले दिन भी उस ने आजम लाला के नाबालिग बेटे रज्जाक से बात की थी. संदेह वाली बात यह थी कि घटना वाले दिन कमलेश की हत्या के समय रज्जाक की लोकेशन पिपलिया मंडी की थी.

आजम लाला का बेटा रज्जाक वैसे तो नाबालिग था, पर इस उम्र में ही उस के खिलाफ कई गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हो चुके थे. इस से कमलेश सिंघार को लगा कि कमलेश की हत्या के मामले में सुधीर जैन, धीरज अग्रवाल, आजम लाला और उस का बेटा एक महत्त्वपूर्ण कड़ी हो सकते हैं. लेकिन नामीगिरामी करोड़पति व्यापारी पर हाथ डालना उन के लिए आसान नहीं था.

आजम लाला के नाबालिग बेटे रज्जाक को पुलिस ने किया गिरफ्तार कमलेश सिंघार एसपी मंदसौर मनोज सिंह के निर्देश पर आजम लाला के बेटे रज्जाक को पूछताछ के लिए थाने ले आए. उस से की गई पूछताछ में सारी घटना सामने आ गई. पता चला कि कमलेश और संध्या के संबंधों से नाराज संध्या के जेठ सुधीर जैन ने अपने दोस्त धीरज अग्रवाल के माध्यम से आजम लाला और मंदसौर जेल में बंद गोपाल संन्यासी को कमलेश की हत्या की 50 लाख की सुपारी दी थी.

पूरा सच सामने आ गया तो छापा मार कर संध्या के जेठ सुधीर जैन और उस के दोस्त धीरज अग्रवाल तथा हत्या का षडयंत्र रचने वाले धर्मेंद्र मारू को गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि हत्या वाले दिन रज्जाक के साथ कमलेश की हत्या के लिए मोटरसाइकिल पर आया रज्जाक का चचेरा भाई सुलेमान लाला पुलिस को चकमा दे कर फरार हो गया.

इस के बाद हत्या में प्रयुक्त पिस्टल और मोटरसाइकिल बरामद कर ली गई. पूछताछ के बाद सभी आरोपियों को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया गया.

पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में इश्क की नदी में तैरने वाले कमलेश जैन की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी—

कमलेश जैन कस्बा पिपलिया मंडी में पत्रकारिता के क्षेत्र में अच्छीखासी पकड़ रखते थे. गैरकानूनी काम करने वालों से अकसर कमलेश जैन का विवाद होता रहता था. लेकिन उन की एक कमजोरी हुस्न थी. जिस के कारण कई महिलाओं से उन के संबंध बन गए थे. कमलेश की सब से चर्चित प्रेमिका प्रीति थी. प्रीति के ऊपर वह दिल खोल कर पैसे खर्च करते थे.

प्रीति के पति को भी पता था कि उस की पत्नी के संबंध कमलेश से हैं, लेकिन कमलेश के रुतबे की वजह से वह चुप था. प्रीति भी कमलेश की दीवानी थी. वह कमलेश पर अपना अधिकार समझने लगी थी. लेकिन कुछ महीनों से संध्या प्रीति के इस अधिकार के बीच दीवार बन कर खड़ी हो गई थी.

मंदसौर निवासी संध्या की शादी पिपलिया मंडी के रईस व्यवसायी के छोटे भाई नवीन के साथ हुई थी. सुधीर जैन करीब 1 अरब की संपत्ति के मालिक थे. इन संपत्तियों में उन के 3 भाइयों का हिस्सा था. सुधीर जैन ने यह संपत्ति गोपाल संन्यासी तथा आजम लाला की मेहरबानी से बनाई थी.

चर्चा है कि सुधीर जैन और उस के भाई नवीन द्वारा इलाके की विवादित जमीन औनेपौने दामों पर खरीद कर आजम लाला, गोपाल संन्यासी जैसे बदमाशों की मदद से कब्जा कर के बाजार के दामों पर बेच कर मोटी कमाई की थी.

सुधीर के छोटे भाई नवीन की अचानक मौत हो गई तो संध्या विधवा हो गई. देखा जाए तो एक तिहाई संपत्ति संध्या की थी, लेकिन भाई की मौत के बाद सुधीर के मन में लालच आ गया था. उस ने संध्या को थोड़ीबहुत संपत्ति दे कर अलग कर दिया. काफी कहने के बाद भी जब संध्या को प्रौपर्टी से हिस्सा नहीं मिला तो वह अपने मायके में जा कर रहने लगी.

वह जानती थी कि उस के जेठ सुधीर जैन ने उस के साथ धोखा किया है. वह अपने हिस्से की जायदाद लेना चाहती थी. ससुराल में रहते हुए उस ने सुना था कि कमलेश जैन एक ईमानदार पत्रकार है और वह सच्चाई का साथ देता है, इसलिए वह अपनी संपत्ति के मामले में मदद के लिए पत्रकार कमलेश जैन के पास पहुंची.

कमलेश ने लालच में बनाए संध्या से संबंध

काफी खूबसूरत और जवान संध्या जैन कमलेश की जातिबिरादरी की भी थी. उसे पता चला कि कमलेश की अभी शादी नहीं हुई है तो उस का दिन उस पर आ गया. संध्या की खूबसूरती पर कमलेश भी मर मिटा था. कमलेश ने सोचा कि अगर संध्या से उस की शादी हो जाती है तो उस के हिस्से की करोड़ों की संपत्ति का वह मालिक बन जाएगा. इसलिए वह संध्या की मदद करने लगा.

लगातार मिलने मिलाने से संध्या और कमलेश के बीच प्रेमसंबंध बन गए. उन के संबंध इस मुकाम पर पहुंच गए कि उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया.

जीवन में संध्या के आने के बाद कमलेश ने पुरानी प्रेमिका प्रीति से नाता तोड़ लिया था. जबकि प्रीति कमलेश को छोड़ना नहीं चाहती थी, क्योंकि प्रीति का ज्यादातर खर्चा कमलेश ही उठाता था. यही वजह थी कि प्रीति संध्या से चिढ़ रही थी.

जब प्रीति को पता चला कि कमलेश जैन संध्या से 3 जून, 2017 को शादी करने जा रहे हैं तो प्रीति ने कमलेश और संध्या के संबंधों की शिकायत संध्या के जेठ सुधीर जैन से कर दी.

इस से प्रीति को लगा कि संध्या पर अंकुश लग जाएगा. सुधीर को जब संध्या और कमलेश के संबंधों का पता चला तो उसे बहुत गुस्सा आया. उसे लगा कि अगर संध्या ने कमलेश से शादी कर ली तो कमलेश का सहारा पा कर वह अपने हिस्से की सारी जायदाद ले कर मानेगी.

कमलेश जैन के रहते सुधीर संध्या पर दबाव नहीं बना सकता था, जिस से सुधीर जैन को करोड़ों की जायदाद हाथ से जाती दिखाई देने लगी. सुधीर की यह परेशानी उस के दोस्त धीरज अग्रवाल से छिपी नहीं थी, इसलिए उस ने उसे सलाह दी कि इस तरह चुप बैठने से काम नहीं चलेगा, हमें कोई ठोस काररवाई करनी होगी.

सुधीर जैन की तरह धीरज अग्रवाल भी गैरकानूनी तरीके से पैसा कमा रहा था. सुधीर की ही तरह उस के भी कई कुख्यात बदमाशों से संबंध थे. धीरज की बात सुधीर की समझ में आ गई. उस ने कमलेश को रास्ते से हटाने के लिए धीरज से मदद मांगी. धीरज इस के लिए तैयार हो गया.

प्रतापगढ़ जेल में बंद आजम लाला तथा मंदसौर जेल में बंद गोपाल संन्यासी से धीरज के अच्छे संबंध थे. धीरज दोनों से जेल जा कर मिला. उन्होंने कमलेश की हत्या के लिए 50 लाख रुपए मांगे. बात तय हो गई. इस के बाद सुधीर जैन से 5 लाख रुपए ले जा कर अखपेरपुर में आजम लाला के बेटे रज्जाक को दे दिए. बाकी के रुपए कमलेश की हत्या के बाद दिए जाने थे.

50 लाख की सुपारी मिलते ही बदमाश हो गए सक्रिय  5 लाख रुपए हाथ में आते ही आजम लाला ने प्यादे तलाशने शुरू कर दिए. परंतु मंदसौर जिले में अधिकांश अपराधियों पर पुलिस का शिकंजा कसा था. कई तो जेल में बंद थे तथा कई भूमिगत हो चुके थे, इसलिए आजम को शूटर मिलने में परेशानी हो रही थी. दूसरी ओर प्रीति ने सुधीर को बता दिया था कि संध्या और कमलेश 3 जून को शादी करने वाले हैं, इसलिए सुधीर हर हाल में 3 जून से पहले कमलेश की हत्या करवा देना चाहता था.

धीरज अग्रवाल ने यह बात आजम को बताई तो आजम ने कमलेश की हत्या का काम अपने नाबालिग बेटे रज्जाक को सौंप दिया. रज्जाक नाबालिग उम्र में ही अपने बाप के कदमों पर चल पड़ा था. वह तमाम आपराधिक वारदातों को अंजाम दे चुका था, इसलिए वह हिस्ट्रीशीटर बन गया था.

पिता का आदेश मिलते ही उस ने कमलेश की हत्या की साजिश रचनी शुरू कर दी. इस के लिए उस ने चौपाटी बस्ती निवासी धर्मेंद्र धारू को फरजी सिम दे कर कमलेश पर नजर रखने की जिम्मेदारी सौंप दी. धर्मेंद्र ने रज्जाक को कमलेश के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि कमलेश सुबह से शाम तक समाचार के लिए इधरउधर भटकने के बाद शाम 7 बजे तक लवली चौराहे पर स्थित अपने औफिस आ जाता है.

रज्जाक ने अपने काम के लिए यही समय तय किया. कमलेश की हत्या की योजना बना कर रज्जाक अपने चचेरे भाई सुलेमान उर्फ सत्तू लाला के साथ मोटरसाइकिल से पिपलिया मंडी पहुंच गया. घटना के समय सुलेमान मोटरसाइकिल ले कर सड़क पर खड़ा था, जबकि नाबालिग रज्जाक ने कमलेश के चैंबर में जा कर उसे गोली मार दी थी. अपने काम को अंजाम दे कर वह सुलेमान के साथ वहां से भाग गया था.

इस तरह प्यार और प्रौपर्टी के चक्कर में पत्रकार कमलेश जैन मारा गया. इस ब्लाइंड मर्डर का पर्दाफाश करने वाली पुलिस टीम की एसपी मनोज सिंह ने काफी सराहना की है.   ?

 

डोर से कटी पतंग : ख़ुशी को क्यों करनी पड़ी आत्महत्या

18 अक्तूबर, 2019 को करवाचौथ था. खुशी उर्फ मोहसिना बानो ने भी पहली बार व्रत रखा था. मोहसिना बानो मुसलिम थी. उस ने अपनी मरजी से महेंद्र को पति के रूप में चुना था. चूंकि उस ने महेंद्र से शादी कर ली थी, इसलिए अपना नाम खुशी उर्फ परी रख लिया था. महेंद्र से शादी के बाद वह लखनऊ के थाना सरोजनी नगर क्षेत्र के गांव दादूपुर की नई कालोनी में रहने लगी थी.

पति की दीर्घायु के लिए उस ने पूरे दिन निर्जला व्रत रखा था. पड़ोसी महिलाओं से पूछ कर उस ने दिन में पूजा वगैरह भी की थी.

लाल रंग के जोड़े में सजनेसंवरने के बाद उस ने अपने पैरों में महावर लगाई, मांग में गहरे लाल रंग का सिंदूर भरा. साजशृंगार के बाद वह काफी खूबसूरत लग रही थी.

शाम के 7 बज चुके थे लेकिन महेंद्र घर नहीं लौटा था. भूखे पेट रह कर उस ने महेंद्र का मनपसंद खाना भी बना लिया था. उसे महेंद्र के लौटने का इंतजार था ताकि चंद्रमा निकलने पर वह अर्ध्य दे सके. खुशी मन ही मन काफी उल्लासित थी.

उस ने कई बार महेंद्र को फोन किया, लेकिन बात नहीं हो पाई. शाम को 5 बजे भी उस ने काल रिसीव नहीं की. पति के फोन न उठाने पर खुशी को बहुत गुस्सा आया. काफी देर बाद महेंद्र ने उस की काल रिसीव की तो खुशी ने इतना ही कहा कि तुम घर जल्दी आ जाओ. मैं इंतजार कर रही हूं. इतना कह कर खुशी ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

चंद्रमा निकल आया, लेकिन महेंद्र घर नहीं लौटा. पड़ोस की सभी महिलाएं अपनेअपने पति को देख कर चंद्रमा को अर्घ्य दे रही थीं. लेकिन खुशी पति के न आने से परेशान थी. वह खुशी की काल भी रिसीव नहीं कर रहा था. खुशी सोचसोच कर परेशान थी कि कम से कम आज पूजा के समय तो उन्हें घर पर होना चािहए था.

चंद्रमा निकलने के 2 घंटे बाद भी महेंद्र घर नहीं लौटा तो खुशी ने उसे गुस्से में वाट्सऐप मैसेज भेजे, उन का भी उस ने कोई जवाब नहीं दिया. रात करीब 12 बजे महेंद्र घर लौटा तो वह इस स्थिति में नहीं था कि पत्नी खुशी से कुछ कह सके.

अगले दिन लखनऊ के ही थाना बंथरा के निकटवर्ती जंगल में पुराहीखेड़ा से नरेरा गांव की तरफ जाने वाले रास्ते पर लोगों ने सुबहसुबह एक युवती का शव पड़ा देखा. शव खेत की सिंचाई के लिए बनाई गई नाली में अर्द्ध नग्नावस्था में था. किसी ने इस की सूचना पुलिस को दे दी.

सूचना पा कर थाना बंथरा के थानाप्रभारी रमेश कुमार रावत अपने साथ इंसपेक्टर (क्राइम) प्रहलाद सिंह, एसएसआई शिव प्रताप सिंह, एसआई अरुण प्रताप सरोज, सिपाही जी.एल. सोनकर, हैडकांस्टेबल अरविंद कुमार और अविनाश चौरसिया को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंचे.

पुलिस ने घटना स्थल का निरीक्षण किया तो देखा,युवती के हाथपैरों में महावर और मेहंदी लगी थी. उस का चेहरा थोड़ा सा झुलसा हुआ था. मेहंदी रची हथेली पर ‘एम’ लिखा हुआ था. माथे पर बिंदी और मांग में सिंदूर था. घटनास्थल पर शव के पास नीले रंग की पालीथिन में एसिड की 3 खाली शीशियां मिली थीं, जिन में से एक शीशी में बचा हुआ थोड़ा सा एसिड था.

लाश के पास ही नीले रंग का एक पर्स भी पड़ा मिला. पर्स की तलाशी ली गई तो उस में एक मोबाइल फोन मिला. पुलिस ने मौके पर मिला फोन और शीशियां अपने कब्जे में ले लीं.

निरीक्षण में पुलिस को युवती के गले पर किसी चीज के कसने के गहरे निशान दिखे. नाक से खून रिस कर सूख चुका था. उस के पैरों में न तो पायल थीं न ही बिछिया. नाक में सोने का एक फूल जरूर नजर आ रहा था. पुलिस ने वहां जमा भीड़ से लाश की शिनाख्त करानी चाही, लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका.

पुलिस ने अनुमान लगाया कि युवती शायद कहीं बाहर की रहने वाली रही होगी. उस की हत्या कहीं और कर, शव यहां ला कर फेंक दिया है.

पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद शव पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया. इस के बाद थानाप्रभारी रमेश कुमार रावत ने महिला की बरामद की गई लाश के फोटो जिले के सभी थानों में भेजने के अलावा वाट्सऐप पर डाल दिए ताकि उस की शिनाख्त हो सके. इस के अलावा अज्ञात महिला की लाश बरामद करने की सूचना समाचारपत्रों में भी प्रकाशित करा दी.

22 अक्तूबर, 2019 को 2 व्यक्ति थाना बंथरा पहुंचे. थानाप्रभारी रमेश कुमार रावत ने उन से पूछा तो उन में एक व्यक्ति ने अपना नाम मुश्ताक अहमद बताया. वह गांव हामी का पुरवा जगदीशपुर, जिला अमेठी का रहने वाला था. उस ने अखबार में छपी युवती की तसवीर दिखाते हुए बताया कि ये जो फोटो छपी है, मेरी बेटी मोहसिना बानो (27) की है.

मुश्ताक अहमद ने आगे बताया कि करीब 8 साल पहले उस ने मोहसिना बानो का निकाह अपने गांव के ही मोहम्मद नसीम के साथ किया था. निकाह के बाद वह अपने शौहर के साथ मुंबई में रहने लगी थी. अब से करीब 4 महीने पहले मोहसिना मुंबई से कहीं गायब हो गई थी.

हम सब ने उसे काफी तलाश किया, लेकिन उस का कोई पता नहीं चला. जब उस की कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली तो दामाद मोहम्मद नसीम ने 29 जून, 2019 को पवई (मुंबई) थाने में मोहसिना के गुम होने की सूचना लिखाई थी.

मुश्ताक ने आगे बताया कि साथ आए मेरे भतीजे अरमान ने अखबार में छपी तसवीर पहचानी तो हम लोग यहां आए. मुझे विश्वास है कि मोहसिना मुंबई से जिस व्यक्ति के साथ भागी थी, उसी ने उस की हत्या कर लाश खेतों में डाली होगी.

थानाप्रभारी ने मुश्ताक अहमद को मोर्चरी ले जा कर लाश दिखाई तो उस ने लाश की शिनाख्त अपनी बेटी मोहसिना के रूप में कर दी. लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद थानाप्रभारी ने मुश्ताक की तहरीर पर अज्ञात के खिलाफ हत्या कर लाश छिपाने का मामला दर्ज कर लिया. मुकदमा दर्ज हो गया तो थानाप्रभारी ने खुद ही इस केस की जांच शुरू कर दी.

थानाप्रभारी ने सब से पहले मृतका के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. उस से पता चला कि उस की ज्यादा बातें महेंद्र से होती थीं. महेंद्र भेलपुर कालोनी (जगदीशपुर) का रहने वाला था. पुलिस ने महेंद्र के बारे में पूछताछ की तो पता चला वह मोहसिना का पति था.

उसी के साथ मोहसिना मुंबई से भाग कर आई थी और अपना नाम खुशी रख कर उसी के साथ रह रही थी. महेंद्र भी शादीशुदा था. उस की पहली पत्नी गांव में रहती थी.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने महेंद्र की काल डिटेल्स देखी तो पता चला कि संदीप नाम के युवक से महेंद्र की अकसर बातें होती थीं. जांच करने पर पता चला कि संदीप अमेठी जिले के गांव नियावा का रहने वाला था, जो महेंद्र की बोलेरो चलाता था.

इन दोनों से पूछताछ करने के बाद ही जांच आगे बढ़ सकती थी. लिहाजा पुलिस ने इन दोनों की तलाश शुरू कर दी. दोनों में से कोई भी घर पर नहीं मिला तो उन की खोजखबर के लिए मुखबिर लगा दिए गए. मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने 24 अक्तूबर, 2019 को रात करीब 12 बजे दोनों को दादूपुर गांव के शराब ठेके के पास से हिरासत में ले लिया.

महेंद्र और संदीप से मोहसिना के बारे में पूछताछ की गई तो महेंद्र ने बताया कि उस ने मोहसिना की हत्या नहीं की थी. करवाचौथ वाली रात को जब वह घर पहुंचा तो वह मृत अवस्था में थी. उस ने तो उस की लाश केवल ठिकाने लगाई थी. दोनों से विस्तार से पूछताछ के बाद मोहसिना की मौत की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी.

मोेहसिना बानो जनपद अमेठी के गांव हामी का पुरवा, जगदीशपुरके रहने वाले मुश्ताक अहमद की बेटी थी. मोहसिना अपने परिवार में सब से बड़ी थी.

उस के अलावा उस की 2 बहनें व एक भाई और था. मोहसिना आधुनिक विचारों की महत्त्वाकांक्षी युवती थी. वह बहुत चतुर दिमाग की थी. घर के रोजमर्रा के काम निपटाने के बाद वह वाट्सऐप व फेसबुक पर लगी रहती थी.

फेसबुक पर नएनए लोगों से दोस्ती कर के उन से घंटों बातें करना उस का शगल बन गया था. कभीकभी तो वह किसी से फोन पर घंटों बातें किया करती थी. एक दिन उस की अम्मी नूरजहां ने उस की फोन पर हो रही रोमांस भरी बातें सुन लीं.

तब उन्होंने झल्लाते हुए मोहसिना को आड़े हाथों लेते हुए कहा, ‘‘तुझे दीनमजहब की बातों का बिलकुल डर नहीं है. पता नहीं किसकिस से बतियाती रहती है. तेरी यह बातें ठीक नहीं हैं, इन बातों से बदनामी के सिवा कुछ नहीं मिलता.’’

एक दिन यह बात नूरजहां ने अपने पति मुश्ताक अहमद को बताई और कहा कि मोहसिना के लिए अब कोई लड़का देख लो. कहीं ऐसा न हो कि हम हाथ मलते ही रह जाएं.

पत्नी की बात सुन कर मुश्ताक अहमद की चिंता बढ़ गई. वह मोहसिना के लिए लड़का देखने लगे. इसी दौरान मुश्ताक के भतीजे अरमान ने अपने खानदानी भाई नसीम के बारे में चर्चा की. नसीम मुंबई में रहता था.

इस के बाद मुश्ताक ने नसीम के पिता सुलेमान से बात की. बात परिवार की थी, इसलिए सुलेमान मोहसिना के साथ बेटे का विवाह करने के लिए तैयार हो गए. सामाजिक रीतिरिवाज से सन 2011 में मोहसिना का निकाह नसीम से कर दिया गया.

शादी के कुछ दिनों बाद नसीम मोहसिना को अपने साथ मुंबई ले गया. वह मुंबई के पवई इलाके में रहता था. मोहसिना मुंबई क्या पहुंची, जैसे उसे खुशियों का जहां मिल गया.

उस ने शौहर नसीम के साथ अपनी जिंदगी के 8 साल हंसीखुशी से बिता दिए. इस दौरान वह 3 बेटों की मां बन गई. मुंबई में रह कर वह पूरी तरह आजाद हो गई. नसीम के काम पर चले जाने के बाद वह सैरसपाटा करने निकल जाती और शाम को वापस लौटती.

साल 2018 दिसंबर की बात है. परिवार में किसी की शादी का कार्यक्रम था. मोहसिना अपने शौहर के साथ मुंबई से अपने गांव हामी का पुरवा जगदीशपुर आई हुई थी.

शादी के बाद नसीम उसे एकदो महीने के लिए उस के मायके में छोड़ गया. मोहसिना की ससुराल भी गांव में थी, इसलिए कुछ दिन वह ससुराल में भी रह लेती थी. अब वाट्सऐप पर बातें करना उस की रोजाना की आदतों में शुमार था.

शादी के दौरान ही मोहसिना की मुलाकात महेंद्र नाम के युवक से हुई थी. वह अपनी बोलेरो गाड़ी से वहां कोई सामान ले कर आया था. महेंद्र रसिक स्वभाव का था. पहली ही नजर में

वह मोहसिना की तरफ आकर्षित हो गया था. सामान उतारने के दौरान जब वह घर में बैठ कर चाय पी रहा था तो उस ने मोहसिना से उस के बारे में पूछ लिया. मोहसिना ने बताया कि वह मुंबई में अपने शौहर के साथ रहती है.

बातोंबातों में महेंद्र ने मोहसिना से उस का मोबाइल नंबर और मुंबई का पता भी पूछ लिया था.

मोहसिना के पूछने पर महेंद्र ने बताया कि वह अमेठी जिले के गांव कठौरा कमरोली का रहने वाला है, लेकिन इस समय भेल कालोनी जगदीशपुर, अमेठी में रह रहा है. उस की बोलेरो गाड़ी बुकिंग पर अलगअलग शहरों में जाती रहती है.

मोहसिना ने पूछा क्या आप को मुंबई की बुकिंग भी मिलती है. महेंद्र ने बताया कि महीने में 1-2 बुकिंग उसे मुंबई की मिल जाती हैं. तब वह अपने ड्राइवर संदीप के साथ वहां जाता है. इसी बहाने उस का मुंबई में घूमनाफिरना भी हो जाता है.

मोहसिना ने कहा कि अब की बार जब मुंबई आना हो तो उस के पास पवई जरूर आए. महेंद्र ने उस से इस बात का वादा कर दिया.

उस दिन की मुलाकात के बाद मोहसिना और महेंद्र की मोबाइल और वाट्सऐप पर अकसर बातचीत होने लगी. अपनी बातों के प्रभाव से महेंद्र ने मोहसिना को अपने जाल में फांस लिया. मोहसिना अपने दिल की बात उस से कह लेती थी. दोनों के बीच होने वाली बातों का दायरा बढ़ने लगा. यह दायरा उन्हें प्यार के मुकाम तक ले गया.

इस बीच उन्होंने 2-3 बार चोरीछिपे मुलाकात भी कर ली. फिर एक दिन मोहसिना अपने मायके से पति के साथ मुंबई चली गई. जाने से पहले उस ने महेंद्र से कह दिया कि वह मुंबई का चक्कर जल्द लगा ले ताकि मुंबई में वह साथसाथ घूमफिर सके.

मोहसिना के मुंबई पहुंचने के बाद भी उस की महेंद्र से पहले की तरह वाट्सऐप पर रोजाना बातचीत चलती रही. वह शाम को पति के सामने भी वाट्सऐप और फेसबुक पर व्यस्त रहती थी. नसीम ने उसे काफी समझाया लेकिन वह नहीं मानी.

एक दिन महेंद्र को मुंबई की बुकिंग मिल गई. यह जानकारी उस ने मोहसिना को दी तो वह काफी खुश हुई. उसे लगा जैसे उस की मुंहमांगी मुराद मिल गई हो. बुकिंग ले कर महेंद्र जब मुंबई पहुंचा तो वह मोहसिना से बांद्रा रेलवे स्टेशन के बाहर मिला.

महेंद्र से मिल कर वह बहुत खुश थी. इस के बाद महेंद्र ने उसे अपनी गाड़ी से घुमाया. दोनों ने काफी देर तक जुहू चौपाटी पर मस्ती की. इस के बाद महेंद्र उसे एक होटल में ले गया, जहां दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. इस के बाद महेंद्र ने उसे उस के बच्चों के स्कूल के पास छोड़ दिया. स्कूल से बच्चों को साथ ले कर मोहसिना वापस घर लौट आई.

महेंद्र मुंबई में 2 दिन रुका. दोनों दिन उस ने मोहसिना के साथ खूब मौजमस्ती की. नसीम मोहसिना की इस बात से बिलकुल अंजान था. महेंद्र व मोहसिना की यह मुलाकात ऐसे प्यार में बदली कि दोनों ने जीवनभर साथ रहने का इरादा कर लिया. मुंबई में मोहसिना की महेंद्र से हुई मुलाकात यादगार बन कर रह गई. वह दिनरात सपने बुनने लगी.

वह पंख लगा उड़ कर महेंद्र के पास पहुंच जाना चाहती थी. महेंद्र ने भी मुंबई में मुलाकात के दौरान मोहसिना से वादा किया कि जब वह उस के साथ लखनऊ आ कर रहने लगेगी तो वह दरोगाखेड़ा में एक मकान खरीद कर उस के अलग रहने का बंदोबस्त कर देगा.

बातों के दौरान ही मोहसिना को यह जानकारी मिल ही गई थी कि महेंद्र पहले से ही विवाहित है और उस की पत्नी अपने बच्चों के साथ उस के पुश्तैनी घर कठौरा कमरोली, जनपद अमेठी में रहती है. महेंद्र अब हर महीने मोहसिना से मिलने मुंबई जाने लगा. वहां कुछ समय बिताने के बाद वह जगदीशपुर लौट आता था. एक दिन महेंद्र ने मोहसिना को वाट्सऐप मैसेज भेजा कि वह अपने पति का साथ छोड़ कर रहने के लिए लखनऊ आ जाए.

मोहसिना महेंद्र की इतनी दीवानी हो चुकी थी कि उस की खातिर वह अपने पति और बच्चों को छोड़ कर जून 2019 के महीने में अकेले ही मुंबई से भाग कर लखनऊ आ गई और महेंद्र के पास आ कर रहने लगी. मोहसिना के घर से गायब होने के बाद पति नसीम ने उसे काफी तलाश किया.

वह कई दिनों तक अपनी रिश्तेदारियों में और अन्य जगहों पर उसे तलाश करता रहा. जब उस का कोई पता नहीं चला तो 29 जून, 2019 को उस ने मुंबई के पवई थाने में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

मोहसिना जब महेंद्र के पास पहुंची तो वह कुछ दिनों तक मोहसिना के साथ सरोजनी नगर थाने के दरोगाखेड़ा में किराए के मकान में रहा.

इस के बाद उस ने दादूपुर गांव के पास नई कालोनी में 9 लाख रुपए का मकान खरीद लिया. यह मकान उस ने अपने दोस्त संदीप के नाम से खरीदा था. मोहसिना उसी मकान में रहने लगी. वह जब भी लखनऊ आता तो रात को मोहसिना के पास रहता. दादूपुर के मकान की बागडोर महेंद्र ने मोहसिना को सौंप दी थी.

इस के बाद महेंद्र ने एक मंदिर में उस से शादी भी कर ली. शादी के बाद उस ने अपना नाम खुशी उर्फ परी रख लिया था. वह हिंदू महिला की तरह ही रहती थी.

पड़ोस में रहने वाली महिलाओं को पता नहीं था कि खुशी मुसलिम है और उस ने अपने पति व बच्चों को छोड़ कर महेंद्र के साथ दूसरी शादी की है. चूंकि खुशी उर्फ मोहसिना बातूनी थी इसलिए वह जल्दी ही मोहल्ले के लोगों से घुलमिल गई.

समाज, घरपरिवार, शौहर और अपने 3 बेटों की परवाह न कर के मोहसिना पता नहीं किस नशे में मदमस्त हो कर प्रेमी महेंद्र के साथ लखनऊ में रह कर जिंदगी को ढो रही थी.

धीरेधीरे मोहसिना की परीक्षा की वो घड़ी आ गई, जहां महिलाओं को धर्म और संयम की मर्यादाओं से गुजरना पड़ता है. यानी करवाचौथ का त्यौहार आ गया. खुशी ने भी पड़ोसिनों के साथ करवाचौथ का निर्जला व्रत रखा.

उस दिन महेंद्र घर पर अपनी ब्याहता और बच्चों से मिलने कठौरा कमरोली चला गया. उधर खुशी उस का इंतजार कर रही थी. उस का यह पहला व्रत था इसलिए उस के मन में ज्यादा उत्सुकता थी. लेकिन फोन करने के बावजूद महेंद्र उस के पास नहीं पहुंचा.

रात को जब चंद्रमा दिखाई दिया तो पूजा के समय भी महेंद्र खुशी के पास मौजूद नहीं था. इस से खुशी को गुस्सा आ गया. उस ने वाट्सऐप पर महेंद्र को एक भावुक मैसेज भेजा, जिस में उस ने कहा कि तुम बेवफा निकले. मैं ने तुम्हारे प्यार की खातिर अपने बच्चे, पति और समाज को छोड़ा लेकिन तुम ने मेरी भावनाओं की कद्र नहीं की.

मैं सारे दिन (करवाचौथ वाले दिन) प्रतीक्षा करती रही, न तुम आए और न ही तुम ने फोन पर बताया कि कहां हो, इसे मैं क्या समझूं. जहां तक मैं समझती हूं, शायद तुम्हें मेरे प्यार की जरूरत नहीं रह गई है, तुम्हारी नजर में औरत सिर्फ एक खिलौना है, तुम्हें मेरे प्यार की नहीं जिस्म की ज्यादा जरूरत थी, इस से ज्यादा मैं क्या जानू.

महेंद्र ने पुलिस को बताया कि 18-19 अक्तूबर, 2019 की रात को 12 बजे जब वह दादूपुर दरोगाखेड़ा के मकान पर आया तो उस ने देखा खुशी उर्फ मोहसिना गले में फंदा डाले पंखे से लटकी हुई थी.

उस ने आत्महत्या कर ली थी. पत्नी को इस हालत में देख वह घबरा गया और उस ने नायलोन की डोरी का फंदा काट कर खुशी के शव को नीचे उतारा.

साथ ही उस ने अपने दोस्त संदीप को बोलेरो गाड़ी ले कर आने को कहा. संदीप रात 2 बजे करीब बोलेरो ले कर बंथरा पहुंचा. फिर दोनों ने खुशी उर्फ मोहसिना के शव को ठिकाने लगाने और सबूत नष्ट करने के उद्देश्य से बोलेरो में डाला. फिर उसे 5 किलोमीटर दूर पुराई खेड़ा, थाना बंथरा इलाके के एक खेत में डाल आए.

मोहसिना का शव ले जाते समय महेंद्र टौयलैट क्लीन करने वाला ऐसिड साथ ले गया था. वह एसिड उस ने खुशी उर्फ मोहसिना के चेहरे पर डाल दिया, जिस से चेहरा थोड़ा झुलस गया था. घबराहट की वजह से वे दोनों खुशी उर्फ मोहसिना का पर्स, मोबाइल फोन और एसिड की खाली शीशियां वहीं छोड़ कर भाग निकले.

अगले दिन पुलिस को खुशी उर्फ मोहसिना की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई, जिस में मौत की वजह गले में फंदा डाल कर दम घुटना बताया गया. पुलिस ने हत्या की जगह आत्महत्या के लिए प्रेरित करने का मामला दर्ज कर दिया. आरोपी महेंद्र और संदीप की निशानदेही पर पुलिस ने लाश ठिकाने लगाने में प्रयुक्त हुई महेंद्र की बोलेरो नंबर यूपी 36 टी 2331 भी बरामद कर ली.

पुलिस ने दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

पत्नी की विदाई : पति ने रची खून की साजिश

पिछले 2-3 दिनों से 20 वर्षीय नैंसी मानसिक और शारीरिक रूप से बहुत परेशान थी. इस की वजह यह थी कि उस का 21 वर्षीय पति साहिल चोपड़ा उसे प्रताडि़त कर रहा था. इस दौरान उस ने नैंसी की कई बार पिटाई भी कर दी थी.

नैंसी ने यह बात अपने घर वालों तक को नहीं बताई. इस की वजह यह थी कि उस ने घर वालों के विरोध के बावजूद साहिल से लव मैरिज की थी.

साहिल और उस की शादी को अभी 8 महीने ही हुए थे. पति के प्यार की जगह वह उस के जुल्मोसितम सह रही थी. नैंसी ने भले ही यह बात अपने मातापिता को नहीं बताई थी, लेकिन अपनी सहेली प्रांजलि और सरानिया को 10 नवंबर, 2019 को वाट्सऐप पर मैसेज भेज दी थी. इस मैसेज में उस ने पति द्वारा ज्यादा प्रताडि़त करने की जानकारी दी थी. इतना ही नहीं, उस ने सहेलियों को यह भी कह दिया था कि यदि 2 दिनों तक उस का फोन न मिले तो समझ लेना, साहिल ने उस की हत्या कर दी है.

दिल्ली की ही रहने वाली प्रांजलि और सरानिया नैंसी की पक्की सहेलियां थीं. दोनों समझ नहीं पा रही थीं कि नैंसी को बहुत प्यार करने वाला साहिल नैंसी पर हाथ क्यों उठाने लगा. इस की वजह क्या है, यह तो नैंसी से मुलाकात के बाद ही पता चल सकती थी. बहरहाल, वे रोजाना नैंसी से बातें करने लगीं.

लेकिन 2 दिन बाद ही नैंसी का फोन स्विच्ड औफ हो गया. प्रांजलि और सरानिया परेशान हो गईं कि नैंसी का फोन क्यों बंद है. नैंसी पति साहिल चोपड़ा के साथ पश्चिमी दिल्ली के जनकपुरी स्थित बी-1 ब्लौक में रह रही थी. सरानिया और प्रांजलि ने नैंसी की ससुराल देखी थी, इसलिए 13 नवंबर, 2019 को दोनों नैंसी से मिलने उस की ससुराल पहुंच गईं.

ससुराल में जब नैंसी दिखाई नहीं दी तो उन्होंने उस के बारे में उस की सास रोसी से पूछा. रोसी ने बताया कि नैंसी और साहिल घूमने के लिए हरिद्वार गए हैं. दूसरे कमरे में साहिल के दादा बैठे हुए थे. पूछने पर उन्होंने बताया कि पतिपत्नी फ्रांस घूमने गए हैं.

दादा की बात सुन कर दोनों चौंकीं क्योंकि नैंसी के पास पासपोर्ट नहीं था. फिर वह विदेश कैसे जा सकती है. प्रांजलि और सरानिया जब नैंसी के ससुर अश्विनी चोपड़ा से बात की तो उन्होंने दोनों के जयपुर घूमने जाने की बात बताई.

घर के 3 लोगों द्वारा अलगअलग तरह की बातें दोनों सहेलियों को हजम नहीं हुईं. इस के बाद वे अपने घर चली गईं. उन्होंने इधरउधर फोन कर के नैंसी के बारे में पता लगाने की कोशिश की, पर कोई जानकारी नहीं मिली.

नैंसी की ये दोनों फ्रैंड्स अपनी दुनिया में व्यस्त हो गईं. 28 नवंबर को प्रांजलि व सरानिया ने फिर से नैंसी का नंबर मिलाया तो वह बंद मिला. तब उन्होंने उसी दिन यह जानकारी नैंसी के पिता संजय शर्मा को दे दी.

बेटी के लापता होने की जानकारी पा कर संजय शर्मा के होश उड़ गए. वह पश्चिमी दिल्ली के ही हरिनगर में रहते थे. बेटी नैंसी के बारे में पता करने के लिए वह उसी दिन उस की ससुराल जनकपुरी पहुंच गए. वहां साहिल की मां ने उन्हें बताया कि साहिल और नैंसी घर से 20 लाख से ज्यादा के जेवर ले कर कहीं भाग गए हैं.

संजय शर्मा को उन की बात पर विश्वास नहीं हुआ. काफी पूछताछ करने के बाद भी जब उन्हें कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला तो अगले दिन 23 नवंबर को वह थाना जनकपुरी पहुंचे.

संजय शर्मा ने थानाप्रभारी जयप्रकाश से मुलाकात कर बेटी नैंसी के शादी करने से ले कर उस के गायब होने तक की बात विस्तार से बता दी. साथ ही उन्होंने नैंसी के पति साहिल, ससुर अश्विनी चोपड़ा और साहिल की बुआ के खिलाफ दहेज उत्पीड़न और अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

रिपोर्ट दर्ज करने के कई दिन बाद भी पुलिस ने नैंसी का पता लगाने की कोशिश नहीं की. तब संजय शर्मा ने डीसीपी और एसीपी से संपर्क किया. जब मामला उच्च अधिकारियों के संज्ञान में आया तो थानाप्रभारी को काररवाई करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

थानाप्रभारी जयप्रकाश साहिल के घर पहुंचे तो वह घर पर नहीं मिला. उस के मातापिता यही कहते रहे कि साहिल नैंसी को ले कर कहीं घूमने गया है. लेकिन तब से दोनों के फोन बंद आ रहे हैं. घर वालों को कुछ चेतावनी दे कर थानाप्रभारी लौट आए.

थाने लौटने के बाद उन्होंने नैंसी और साहिल के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. साहिल चोपड़ा की काल डिटेल्स से पुलिस को पता चला कि 11 नवंबर की रात और 12 नवंबर को वह शुभम और बादल नाम के लड़कों के संपर्क में था. इन दोनों के साथ उस की लोकेशन हरियाणा के पानीपत की थी. जांच में पता चला कि शुभम उत्तर प्रदेश के जिला मुजफ्फरनगर का और बादल करनाल के घरोंडा गांव का रहने वाला है.

ये तीनों पानीपत क्यों गए थे, यह जानकारी तीनों में से किसी से पूछताछ करने पर ही मिल सकती है. साहिल तो घर से लापता था, इसलिए पुलिस टीम सब से पहले करनाल के गांव घरोंडा स्थित बादल के घर पहुंची. वह घर पर मिल गया. पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया.

उस की निशानदेही पर पुलिस ने शुभम को भी उस के घर से हिरासत में ले लिया. पूछताछ में पता चला कि शुभम साहिल के औफिस में काम करता था और बादल शुभम का ममेरा भाई था.

दिल्ली ला कर जब दोनों से नैंसी के बारे में सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि नैंसी अब दुनिया में नहीं है. साहिल ने उस की हत्या कर लाश पानीपत में फेंक दी थी. थानाप्रभारी ने यह जानकारी उच्चाधिकारियों को दे दी.

चूंकि नैंसी के पिता संजय शर्मा ने साहिल और उस के घर वालों के खिलाफ अपहरण और दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया था, इसलिए पुलिस ने साहिल के घर वालों को थाने बुलवा लिया.

किसी तरह साहिल चोपड़ा को जब यह खबर मिली कि उस के घर वालों को पुलिस ने थाने में बैठा रखा है तो वह खुद भी थाने पहुंच गया. साहिल को यह पता नहीं था कि पुलिस उस की साजिश का न सिर्फ परदाफाश कर चुकी है बल्कि शुभम और बादल पकड़े भी जा चुके हैं.

पुलिस ने साहिल से नैंसी के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस ने 11 नवंबर, 2019 को नैंसी को पश्चिम विहार फ्लाईओवर के पास छोड़ दिया था.

थानाप्रभारी जयप्रकाश समझ गए साहिल बेहद चालाक है, आसानी से अपना जुर्म नहीं कबूलेगा. लिहाजा उन्होंने हिरासत में लिए गए शुभम और बादल को साहिल के सामने  बुला लिया. उन दोनों को देखते ही साहिल हक्काबक्का रह गया. उस के चेहरे का रंग उड़ गया.

अब उस के सामने सच बोलने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा था, लिहाजा उस ने स्वीकार कर लिया कि वह अपनी पत्नी नैंसी की हत्या कर चुका है. अपने कर्मचारी शुभम और उस के दोस्त बादल के साथ नैंसी की हत्या करने के बाद उन लोगों ने उस की लाश पानीपत में ठिकाने लगा दी थी.

इस के बाद एडिशनल डीसीपी समीर शर्मा की मौजूदगी में साहिल चोपड़ा, शुभम और बादल से पूछताछ की गई तो नैंसी की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह झकझोर देने वाली थी—

पश्चिमी दिल्ली के हरिनगर के रहने वाले संजय शर्मा इलैक्ट्रिक मोटर वाइंडिंग का काम करते थे. उन की बड़ी बेटी नैंसी शर्मा (17 वर्ष) करीब 3 साल पहले विकासपुरी में कंप्यूटर सेंटर में जाती थी. वह कंप्यूटर कोर्स कर रही थी. वहीं पर उस की मुलाकात साहिल चोपड़ा (18 वर्ष) से हुई. साहिल चोपड़ा का पास में ही सेकेंडहैंड कारों की सेल परचेज का औफिस था. साहिल से पहले यह व्यवसाय उस के पिता अश्विनी चोपड़ा संभालते थे.

साहिल चोपड़ा का कार सेल परचेज का व्यवसाय अच्छा चल रहा था, इसलिए वह खूब बनठन कर रहता था. नैंसी शर्मा और साहिल की मुलाकात धीरेधीरे दोस्ती में बदल गई. दोनों ही जवानी के द्वार पर खड़े थे, इसलिए आकर्षण में बंध कर एकदूसरे को चाहने लगे.

इस के बाद नैंसी साहिल के साथ कार में बैठ कर सैरसपाटे करने लगी. उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. इतना ही नहीं, उन्होंने जीवन भर साथ रहने का वादा भी कर लिया था.

नैंसी उस समय नाबालिग थी, इस के बावजूद वह साहिल के साथ लिवइन रिलेशन में रहने लगी. करीब 3 साल तक सुभाषनगर में लिवइन रिलेशन में रहने के बाद दोनों ने 27 मार्च, 2019 को गुरुद्वारे में शादी कर ली.

नैंसी ने शादी अपने घर वालों की मरजी के बिना की थी, इसलिए वह उस से खुश नहीं थे. घर वालों को शादी की सूचना भी उस समय मिली, जब नैंसी ने अपनी ससुराल पहुंच कर वाट्सऐप पर शादी के फोटो भेजे.

दरअसल, नैंसी तब छोटी ही थी, जब उस की मां उसे और पिता को छोड़ कर कहीं चली गई थी. वह अपने साथ छोटे बेटे को ले गई थी. नैंसी की परवरिश उस की दादी और चाची ने की थी. संजय शर्मा बिजनैस के सिलसिले में राजस्थान जाते रहते थे. बाद में उन्होंने दूसरी शादी कर ली.

बेटी बालिग थी. उस ने साहिल चोपड़ा से शादी अपनी मरजी से की थी, इसलिए वह कर भी क्या सकते थे. जवान बेटी के इस तरह चले जाने पर उन्हें बदनामी के साथ दुख भी अधिक हुआ.

नैंसी जनकपुरी के बी-ब्लौक स्थित अपनी ससुराल में पति के साथ खुश थी. साहिल उस का हर तरह से खयाल रखता था. बहरहाल, उन की जिंदगी हंसीखुशी बीत रही थी. लेकिन उन की यह खुशी ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकी. नैंसी और साहिल के बीच कुछ महीनों बाद ही मतभेद शुरू हो गए.

इस की वजह यह थी कि नैंसी अकसर फोन पर व्यस्त रहती थी. देर रात तक वह किसी से फोन पर बातें करती थी. साहिल का कहना था कि दिन में वह किसी से भी बात करे, उसे कोई ऐतराज नहीं है लेकिन उस के औफिस से लौटने के बाद उस के पास भी बैठ जाया करे.

साहिल जब नैंसी से पूछता कि वह किस से बात करती है तो वह कह देती कि दोस्तों से बात करती है. पत्नी की यह बात साहिल को गले इसलिए नहीं उतरती थी, क्योंकि शादी से पहले नैंसी ने उसे बताया था कि उस का कोई भी दोस्त नहीं है.

जब शादी से पहले उस का कोई दोस्त नहीं था तो शादी होते ही अब कौन ऐसे नए दोस्त बन गए जो घंटों तक उस से बतियाने लगे. यही बात साहिल के दिल में वहम पैदा कर रही थी. नैंसी की बातों और व्यवहार से साहिल को शक था कि उस की पत्नी का जरूर किसी से कोई चक्कर चल रहा है, जिसे वह उस से छिपा रही है.

पति या पत्नी दोनों के मन में संदेह पैदा हो जाए तो वह कम होने के बजाए बढ़ता जाता है और फिर कभी भी विस्फोट के रूप में सामने आता है. जिस नैंसी को साहिल दिलोजान से प्यार करता था, वही उस के साथ कलह करने लगी थी. कभीकभी तो दोनों के बीच विवाद इतना बढ़ जाता था कि साहिल उस की पिटाई भी कर देता था.

साहिल का उग्र रूप देख कर नैंसी को महसूस होने लगा था कि साहिल को अपना जीवनसाथी चुनना उस की बड़ी भूल थी. उसे इतनी जल्दी फैसला नहीं लेना चाहिए था.

चूंकि उस ने अपनी पसंद से की शादी थी, इसलिए इस की शिकायत वह अपने पिता से भी नहीं कर सकती थी. हां, अपनी सहेलियों से बात कर के वह अपना दर्द बांट लिया करती थी.

साहिल पत्नी की रोजरोज की कलह से तंग आ चुका था. आखिर उस ने फैसला कर लिया कि रोजरोज की किचकिच से अच्छा है कि नैंसी का खेल ही खत्म कर दे. इस बारे में साहिल ने अपने औफिस में काम करने वाले शुभम (24) से बात की. शुभम साहिल का साथ देने को तैयार हो गया.

साहिल को शुभम ने बताया कि उस का एक ममेरा भाई है बादल, जो करनाल के पास स्थित घरोंडा गांव में रहता है. उसे भी साथ ले लिया जाए तो काम आसान हो जाएगा.

साहिल ने शुभम से कह दिया कि इस बारे में वह बादल से बात कर ले. शुभम ने बादल से बात की तो उस ने हामी भर ली. योजना को कैसे अंजाम देना है, इस बारे में साहिल ने बादल और शुभम के साथ प्लानिंग की. बादल ने सलाह दी कि नैंसी को किसी बहाने पानीपत ले जाया जाए और किसी सुनसान इलाके में ले जा कर उस का काम तमाम कर दिया जाए.

योजना को कहां अंजाम देना है, इस की रेकी के लिए तीनों लोग 10 नवंबर, 2019 को पानीपत गए. काफी देर घूमने के बाद उन्हें रिफाइनरी के पास की सुनसान जगह ठीक  लगी. रेकी करने के बाद तीनों दिल्ली लौट आए.

इसी बीच नैंसी और साहिल के बीच की कलह चरम पर पहुंच गई, तभी नैंसी ने अपनी सहेलियों प्रांजलि और सरानिया को फोन कर के बता दिया था कि आजकल साहिल उस के साथ मारपीट करने लगा है. उस ने उस के घर से बाहर जाने पर भी पाबंदी लगा दी है, उस के साथ कुछ भी हो सकता है.

नैंसी को शायद पति का व्यवहार देख कर अपनी मौत की आहट मिल गई थी, तभी तो उस ने सहेलियों से कह दिया था कि अगर 2 दिनों तक उस का फोन न मिले तो समझ लेना कि साहिल ने उस की हत्या कर दी है.

चूंकि साहिल को अपनी योजना को अंजाम देना था, इसलिए उस ने 11 नवंबर को सुबह से ही नैंसी के साथ प्यार भरा व्यवहार शुरू कर दिया. पति का बदला रुख देख कर नैंसी भी खुश हो गई. दोनों ने खुशी के साथ लंच किया.

लंच करने के दौरान ही साहिल ने नैंसी से कहा, ‘‘नैंसी, आज मुझे पानीपत में किसी से उधार की रकम लानी है. रकम ज्यादा है, इसलिए मैं चाहता हूं कि तुम भी पिस्टल ले कर मेरे साथ चलो.’’

नैंसी के पास एक पिस्टल थी, जो उसे उस के किसी दोस्त ने 2 साल पहले गिफ्ट में दी थी. नैंसी ने उस पिस्टल के साथ कई फोटो भी खिंचवा रखे थे. पति के कहने पर नैंसी उस के साथ पानीपत जाने को तैयार हो गई.

शाम करीब साढ़े 6 बजे साहिल पत्नी को ले कर घर से अपनी कार में निकला. शुभम और बादल को भी उस ने घर पर बुला रखा था. शुभम कार चला रहा था और बादल शुभम के बराबर वाली सीट पर बैठा था. जबकि साहिल और नैंसी कार की पिछली सीट पर थे. कार में ही साहिल ने पत्नी से पिस्टल ले कर उस में 2 गोलियां डाल ली थीं.

नैंसी को यह पता नहीं था कि उस का पति उस के सामने ही मौत का सामान तैयार कर रहा है. उन्हें पानीपत पहुंचतेपहुंचते रात हो गई. शुभम कार को रिफाइनरी के पास ददलाना गांव की एक सुनसान जगह पर ले गया. वहीं पर साहिल ने बाथरूम जाने के बहाने कार रुकवा ली. इस से पहले कि नैंसी कुछ समझ पाती, आगे की सीट पर बैठे शुभम और बादल ने उसे दबोच लिया.

तभी साहिल ने नैंसी के सिर से सटा कर गोली चला दी, लेकिन गोली नहीं चली और हड़बड़ाहट में साहिल के हाथ से पिस्टल छूट कर नीचे गिर गई. नैंसी अब पूरा माजरा समझ गई थी कि पति उसे यहां मारने के लिए लाया है. वह साहिल के सामने अपनी जान बचाने की गुहार लगाने लगी, लेकिन पत्नी के गिड़गिड़ाने का उस पर असर नहीं हुआ.

साहिल ने फुरती से कार में गिरी पिस्टल और गोली उठाई. गोली उस ने दोबारा लोड की और नैंसी के सिर से सटा कर गोली चला दी. इस बार गोली उस के सिर के आरपार हो गई. तभी उस ने दूसरी गोली भी मार दी.

गोली लगते ही नैंसी के सिर से खून का फव्वारा फूट पड़ा और वह सीट पर ही लुढ़क गई. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई. फिर तीनों ने उस की लाश उठा कर झाडि़यों में फेंक दी. साहिल ने उस का मोबाइल अपने पास रख लिया. लाश ठिकाने लगा कर तीनों दिल्ली लौट आए. साहिल अपने घर जाने के बजाए दोनों साथियों के साथ जनकपुरी सी-1 ब्लौक और डाबड़ी के बीच स्थित एक लौज में रुका.

अपनी कार उस ने पास में ही स्थित सीतापुरी इलाके में ऐसी जगह खड़ी की, जहां स्थानीय लोग अपनी कारें खड़ी करते थे. यह इलाका चानन देवी अस्पताल के नजदीक है. नैंसी का मोबाइल साहिल ने सुभाषनगर मैट्रो स्टेशन के पास फेंक दिया था.

अगले दिन शुभम और बादल अपनेअपने घर चले गए. साहिल भी इधरउधर छिपता रहा.

तीनों आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस उन्हें ले कर पानीपत में उसी जगह पहुंची, जहां उन्होंने नैंसी की लाश ठिकाने लगाई थी. उन की निशानदेही पर पुलिस ने ददलाना गांव की झाडि़यों से नैंसी की सड़ीगली लाश बरामद कर ली. जरूरी काररवाई कर पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए नैंसी की लाश पानीपत के सरकारी अस्पताल में भेज दी.

इस के बाद पुलिस के तीनों आरोपियों को कोर्ट में पेश कर उन का 2 दिन का रिमांड लिया. रिमांड अवधि में आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस ने चानन देवी अस्पताल के नजदीक खड़ी साहिल की कार बरामद की. कार की मैट के नीचे छिपाई गई वह पिस्टल भी पुलिस ने बरामद कर ली, जिस से नैंसी की हत्या की गई थी. पुलिस नैंसी का मोबाइल बरामद नहीं कर सकी.

आरोपी साहिल चोपड़ा, शुभम और बादल से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

खून में डूबे कस्मे वादे : प्रेमी बना जान का दुश्मन

दोपहर के करीब 3 बजे थे. महाराष्ट्र के शहर अंबानगरी, जिसे लोग अब अमरावती के नाम से जानते हैं, की

सड़कों पर काफी भीड़ थी. सड़क किनारे गोपाल प्रभा मंगल कार्यालय है, उस के सामने जानामाना शाह कोचिंग सेंटर है, जिस की क्लास छूटी थी.

सेंटर से बाहर निकलने वाले छात्रछात्राओं की वजह से भीड़ और बढ़ गई थी. सड़क की चहलपहल से अलग साइड में खड़ा एक युवक बड़ी बेसब्री से क्लास से निकलते छात्रछात्राओं को देख रहा था.

ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी का इंतजार कर रहा हो. थोड़ी देर बाद उस का इंतजार खत्म हो गया. सारे छात्र और छात्राओं के निकलने के कुछ देर बाद 2 छात्राएं बाहर निकलीं और आपस में बातें करते हुए बस स्टौप की ओर जाने लगीं. साइड में खड़ा युवक उन के पीछे लग गया.

इस के पहले कि दोनों छात्राएं बस स्टौप तक पहुंच पातीं, युवक ने आगे आ कर उन का रास्ता रोक लिया. उस ने जिन छात्राओं का रास्ता रोका था, वह उन में से एक छात्रा से बात करना चाहता था. उन में एक छात्रा का नाम अर्पिता था और दूसरी का अपर्णा. दोनों लड़कियां फ्रैंड थीं.

अचानक इस तरह सामने आए युवक को देख कर अर्पिता के दिल की धड़कन बढ़ गई. डरीसहमी अर्पिता ने एक बार अपनी फ्रैंड अपर्णा की तरफ देखा. फिर उस ने हिम्मत जुटा कर युवक की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘तुषार, तुम यहां?’’

‘‘गनीमत है, तुम ने मुझे पहचाना तो. मैं तो समझा था कि तुम मुझे भूल गई होगी. मैं यहां क्यों आया हूं, यह बात तुम अच्छी तरह जानती हो.’’ तुषार के होंठों पर कुटिल मुसकान तैर गई.

‘‘बेकार की बातें छोड़ो और हट जाओ हमारे रास्ते से. हमारी बस निकल जाएगी.’’ अर्पिता ने रोष में कहा.

‘‘बसें तो आतीजाती रहेंगी. यह बताओ कि तुम मेरे पास कब आओगी? मेरी इस बात का जवाब दिए बिना तुम यहां से नहीं जाओगी. तुम मुझ से कटीकटी क्यों रहती हो? तुम्हारे घर वाले मुझे तुम से नहीं मिलने देते. आखिर मेरी गलती क्या है, हम दोनों ने एकदूसरे से प्यार किया है, शादी की है.’’ तुषार ने अर्पिता को विनम्रता से समझाने की कोशिश की.

‘‘वह सब हमारी नादानी और बचपना था. अब उन बातों का कोई मतलब नहीं है. मैं सब भूल चुकी हूं, तुम भी भूल जाओ.’’ कह कर अर्पिता उस के बगल से हो कर निकलने लगी. लेकिन तुषार ने उसे निकलने नहीं दिया. वह उस के सामने अड़ कर खड़ा हो गया.

‘‘ऐसे कैसे भूल जाऊं, मैं तुम्हें प्यार करता हूं. तुम्हें अपनी पत्नी मानता हूं. भले ही हमारी शादी घर वालों की मरजी से न हुई हो लेकिन मंदिर में ही सही, हुई तो है. तुम मेरी पत्नी हो और पत्नी ही रहोगी.’’ तुषार ने अर्पिता से कड़े शब्दों में कहा.

‘‘देखो तुषार, तुम मेरी बातों को समझने की कोशिश करो. मैं अपना कैरियर देख रही हूं. तुम अपना कैरियर देखो, उसी में हमारी भलाई है. तुम मुझे अपने दिल से निकाल कर हकीकत की दुनिया में आ जाओ, यही दोनों के लिए अच्छा है.’’

अर्पिता की सहेली अपर्णा ने भी तुषार को समझाने की कोशिश की कि वह उसे भूल जाए. अर्पिता और अपर्णा की बातों से परेशान हो कर तुषार का चेहरा क्रोध से तमतमा उठा.

‘‘तो क्या यह तुम्हारा आखिरी फैसला है?’’ तुषार ने अर्पिता की आंखों में आंखें डाल कर पूछा.

‘‘हां, यही मेरा आखिरी फैसला है. मैं अपने परिवार और समाज के खिलाफ नहीं जा सकती. मेरा परिवार जो कह रहा है, मुझे वही करना होगा.’’ अर्पिता ने कहा.

उस का स्पष्ट जवाब सुन कर तुषार आपा खो बैठा और उस ने कपड़ों के अंदर छिपा कर लाया चाकू बाहर निकाल लिया. उस के हाथों में चाकू देख कर अर्पिता और अपर्णा दोनों बुरी तरह घबरा गईं.

इस के पहले कि वे दोनों कुछ बोल पातीं, तुषार ने अर्पिता के पेट, सीने और गले पर लगभग 18 वार कर दिए. अपर्णा ने जब अपनी फ्रैंड अर्पिता की मदद करने की कोशिश की तो तुषार ने उसे भी बुरी तरह जख्मी कर दिया. तुषार के इस हमले से दोनों जमीन पर गिर पड़ीं और मदद के लिए चीखनेचिल्लाने लगीं.

अर्पिता और अपर्णा की चीखपुकार से आनेजाने वाले लोगों के कदम रुक गए. कुछ मिनटों तक तो किसी की समझ में नहीं आया कि माजरा क्या है. लोग मूक बने खून में डूबी लड़कियों को देखते रहे. जब समझ में आया तो लोग अर्पिता और अपर्णा की मदद के लिए आगे बढ़े. लोगों को अर्पिता और अपर्णा की मदद करते देख तुषार समझ गया कि अब उस का वहां रुकना ठीक नहीं है.

वह चाकू घटनास्थल पर फेंक कर भागने की कोशिश करने लगा. लेकिन उस के कारनामों से क्रोधित कुछ लोग उस के पीछे पड़ गए. वहां मौजूद कुछ लोगों ने आटो रोक कर अर्पिता और अपर्णा को स्थानीय अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने अर्पिता को मृत घोषित कर दिया और घायल अपर्णा के उपचार में जुट गए.

दूसरी तरफ तुषार का पीछा कर रहे लोगों ने उसे ईंटपत्थरों से घायल कर के दबोच लिया. उन्होंने उस की जम कर पिटाई की. गुस्साए लोग उसे छोड़ने को तैयार नहीं थे.

इस घटना की खबर थोड़ी दूरी पर स्थित राजापेठ पुलिस थाने की पुलिस को लगी तो वह तुरंत हरकत में आ गई. थानाप्रभारी किशोर सूर्यवंशी अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने सब से पहले लोगों की गिरफ्त में फंसे तुषार को अपनी कस्टडी में लिया. थानाप्रभारी ने इस मामले की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम को भी दे दी.

थानाप्रभारी किशोर सूर्यवंशी ने अपने सहयोगियों के साथ घटनास्थल का निरीक्षण किया. घटनास्थल पर पड़े रक्तरंजित चाकू और रक्त सनी मिट्टी का नमूना ले कर उसे सील कर दिया गया. इस के बाद पुलिस ने वहां मौजूद प्रत्यक्षदर्शियों के बयान लिए. वहां से वह सीधे अस्पताल चले गए.

यह घटना 9 जुलाई, 2019 की थी. कुछ ही मिनटों में दिल दहलाने वाली इस वारदात की खबर पूरे शहर में फैल गई. मामले की जानकारी पा कर अमरावती के सीपी संजय वाबीस्कर, डीसीपी जोन-2 शशिकांत सातव और एसीपी (राजापेठ) बलिराम डाखरे भी पुलिस टीम के साथ अस्पताल पहुंच गए.

अस्पताल पहुंच कर उन्होंने वहां के डाक्टरों से मिल कर बात की और मृत अर्पिता और घायल अपर्णा का सरसरी निगाह से निरीक्षण किया. फिर थानाप्रभारी किशोर सूर्यवंशी को जरूरी निर्देश दे कर लौट गए.

थानाप्रभारी ने अपनी टीम के साथ मृतका अर्पिता की फ्रैंड अपर्णा का विस्तृत बयान लिया. इस के बाद हत्या का केस नामजद दर्ज कर के अर्पिता के शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया. पुलिस ने थाने लौट कर इस घटना की जानकारी अर्पिता और अपर्णा के घर वालों को दी. साथ ही केस की जांच की जिम्मेदारी इंसपेक्टर संभाजी पाटिल व दत्ता नखड़े को सौंप दी.

इस घटना की खबर मिलते ही अर्पिता के परिवार वाले रोतेपीटते राजापेठ पुलिस थाने पहुंचे. जांच अधिकारियों ने उन्हें सांत्वना दे कर उन से पूछताछ की. अर्पिता के घर वालों ने बताया कि तुषार उन की बेटी अर्पिता से एकतरफा प्यार करता था और उस पर शादी के लिए दबाव बनाता रहता था. वह सालों से उन की बेटी के पीछे पड़ा था.

उन्होंने बताया कि तुषार अर्पिता को अकसर छेड़ता और परेशान करता था. साथ ही धमकियां भी देता था. उस ने अर्पिता से शादी का एक फरजी वीडियो भी तैयार कर रखा था, जिसे वह सोशल मीडिया पर डालने की धमकी देता था.

दोनों के परिवारों की अपनीअपनी कहानी  उन लोगों ने इस की शिकायत वडनेरा पुलिस थाने में भी की थी. लेकिन पुलिस ने उस पर कोई काररवाई नहीं की. पुलिस ने उस से वह वीडियो डिलीट करवाया और माफीनामा ले कर छोड़ दिया था.

तुषार के परिवार वालों ने भी अर्पिता पर कुछ इसी तरह का आरोप लगाया था. उन के अनुसार अर्पिता ने तुषार से प्यार किया था, उसे सपना दिखाया था. यहां तक कि दोनों ने मंदिर में जा कर शादी भी कर ली थी. तुषार का कोई कसूर नहीं था. अर्पिता ने उसे अपने प्रेमजाल में फंसा कर धोखा दिया था, जिस से हताश हो कर उस ने इस तरह का कदम उठाया.

दोनों के घर वालों के बयानों में कितनी सच्चाई थी, इस का पता लगाने के लिए जांच अधिकारियों ने जब गहराई से जांच की तो असफल प्रेम कहानी सामने आई.

22 वर्षीय तुषार अमरावती जिले के तालुका भातकुली गांव मलकापुर का रहने वाला था. उस के पिता का नाम किरण मसकरे था. वह गांव के एक गरीब किसान थे. उन का और उन के परिवार का गुजारा गांव के संपन्न किसानों के खेतों में मेहनतमजदूरी कर के होता था.  परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण तुषार ने इंटरमीडिएट के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी. परिवार में उस के मातापिता के अलावा एक बड़ा भाई और एक छोटी बहन थी.

सुंदर और महत्त्वाकांक्षी अर्पिता तुषार के पड़ोसी गांव कठवा वहान की रहने वाली थी. उस के पिता का नाम दत्ता साहेब ठाकरे था. ठाकरे गांव के प्रतिष्ठित और संपन्न किसान थे. उन के परिवार में अर्पिता के अलावा उस की मां और एक बड़ा भाई था. अर्पिता पढ़ाई लिखाई में तो तेज थी ही, व्यवहारकुशल भी थी. तुषार मसकरे उस की खूबसूरती और व्यवहार का कायल था.

गांव में उच्चशिक्षा की व्यवस्था नहीं थी. अर्पिता दत्ता ठाकरे की लाडली बेटी थी. वह उसे उच्चशिक्षा दिलाना चाहते थे. इसलिए उन्होंने अर्पिता को पूरी आजादी दे रखी थी. लेकिन यह जरूरी नहीं कि आदमी जो सोचे वह हो ही जाए. दत्ता ठाकरे की भी यह चाहत पूरी नहीं हो सकी.

18 वर्षीय अर्पिता और तुषार की लव स्टोरी सन 2017 में तब शुरू हुई थी, जब दोनों ने गांव के हाईस्कूल से निकल कर तालुका के भातकुली केशरभाई लाहोटी इंटर कालेज में दाखिला लिया. दोनों एक ही क्लास में थे, दोनों के गांव भी आसपास थे. जल्दी ही दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं.

कालेज में कई युवकयुवतियों ने अर्पिता से दोस्ती के लिए हाथ बढ़ाए, लेकिन अर्पिता ने उन्हें महत्त्व नहीं दिया. वह मन ही मन तुषार से प्रभावित थी. अर्पिता को जितना भी समय मिलता, तुषार के साथ बिताती थी. तुषार भी अर्पिता जैसी दोस्त पा कर खुश था.

कालेज आनेजाने के लिए अर्पिता के पास स्कूटी थी. तुषार का घर अर्पिता के रास्ते में पड़ता था, इसलिए वह तुषार को अकसर अपनी स्कूटी पर उस के घर तक छोड़ देती थी. इस के चलते दोनों कब एकदूसरे के करीब आ गए, उन्हें पता ही नहीं चला. पहले दोनों में दोस्ती हुई, फिर प्यार हो गया. इस बात का दोनों को तब पता चला जब उन के दिलों की बेचैनी बढ़ने लगी.

इंटरमीडिएट करतेकरते उन की चाहत इतनी बढ़ गई कि दोनों ने अपने प्यार का इजहार कर लिया. इस के साथ ही दोनों ने साथसाथ जीनेमरने की कसमें भी खा लीं. इतना ही नहीं, दोनों ने सालवर्डी जा कर एक मंदिर में विवाह भी कर लिया. इस विवाह का वीडियो भी बनाया गया था.

जब तक दोनों एक ही कालेज में पढ़ते रहे, उन के प्यार और शादी की किसी को भनक तक नहीं लगी. लेकिन जब अर्पिता ग्रैजुएशन के लिए दूसरे कालेज में गई और तुषार ने पढ़ाई छोड़ दी तो उन के बीच दूरी आ गई.

इसी बीच उन के प्यार और प्रेम विवाह की खबर उन के घर वालों के कानों तक भी पहुंच गई. अर्पिता के पिता ने बेटी के अच्छे भविष्य के लिए उस का दाखिला अमरावती के मधोल पेठ स्थित महात्मा फूले विश्वविद्यालय में करा दिया था. उस ने बीकौम फर्स्ट ईयर में एडमिशन लिया था.

दोनों के परिवार रह गए सन्न तुषार की पारिवारिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह आगे की पढ़ाई कर पाता. आर्थिक स्थिति कमजोर होने की वजह से वह गांव वालों के खेतों में किराए का ट्रैक्टर चला कर अपने परिवार की आर्थिक मदद करने लगा.

अर्पिता से दूरियां बढ़ जाने के कारण तुषार का एकएक दिन बेचैनी में गुजरता था. जल्दी ही उस का धैर्य जवाब देने लगा. जब उसे लगने लगा कि अब वह अर्पिता के बिना नहीं रह सकता तो वह फोन पर बात कर के या गांव आतेजाते अर्पिता पर दबाव बनाने लगा कि वह अपनी पढ़ाई छोड़ कर उस के पास आ जाए.

इस बात की खबर जब दोनों परिवारों तक पहुंची तो उन के होश उड़ गए. इस हकीकत जान कर तुषार के परिवार वाले सन्न रह गए तो अर्पिता के घर वालों के पैरों के नीचे से जैसे जमीन खिसक गई. उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस बेटी के भविष्य के लिए वह उसे उच्चशिक्षा दिलाना चाहते हैं, वह ऐसा कर बैठेगी.

मामला काफी नाजुक था. फिर भी उन्होंने अर्पिता को आड़े हाथों लिया. उसे उस के भविष्य, मानसम्मान और समाज के बारे में काफी समझायाबुझाया. साथ ही तुषार से दूर रहने की सलाह भी दी.

अर्पिता ने जब अपने परिवार की बातों पर गहराई से सोचविचार किया तो उसे अपनी भूल पर पछतावा हुआ. तुषार के साथ वह उज्ज्वल भविष्य की कल्पना नहीं कर सकती थी, न ही तुषार उस के काबिल था. सोचविचार कर अर्पिता ने तुषार से दूरी बना ली.

अर्पिता की दूरियां तुषार से बरदाश्त नहीं हुई. एक दिन वह बिना किसी डर के अर्पिता का हाथ मांगने उस के घर चला गया. उस ने उस के परिवार को धमकी देते हुए कहा कि अगर आप लोग अर्पिता का हाथ मेरे हाथ में नहीं देंगे तो वह उसे जबरन ले जाएगा. क्योंकि वह अर्पिता के साथ मंदिर में शादी कर चुका है. उस के पास शादी का वीडियो भी है. तुषार ने यह भी कहा कि अगर उस की बात नहीं मानी गई तो वह वीडियो को सोशल मीडिया पर वायरल कर देगा.

बात मानसम्मान की थी. उस की इस धमकी से अर्पिता का परिवार काफी डर गया. बात उन की इज्जत की थी. उन्होंने इस की शिकायत पुलिस में कर दी. पुलिस की काररवाई से तुषार को बहुत गुस्सा आया. वह अर्पिता और उस के परिवार के प्रति रंजिश रखने लगा. उस ने अर्पिता को कई बार फोन किया लेकिन उस ने फोन नहीं उठाया.

फलस्वरूप उसे अर्पिता से सख्त नफरत हो गई. अंतत: प्रेमाग्नि में जलते तुषार ने एक खतरनाक योजना बना ली. उस ने फैसला कर लिया कि अगर अर्पिता ने उस के मनमुताबिक उत्तर नहीं दिया तो वह उसे किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ेगा. अर्पिता उस की पत्नी है और उस की ही रहेगी.

अपनी योजना को फलीभूत करने के लिए तुषार अपने एक दोस्त से मिला और उस से एक तेजधार वाले लंबे फल के चाकू की मांग की. उस का कहना था कि गांव के आसपास उस के बहुत सारे दुश्मन हो गए हैं, जिन से वह डरता है. दोस्त ने उस की बातों पर विश्वास कर के उस के लिए चाइना मेड एक चाकू का बंदोबस्त कर दिया.

चाकू का इंतजाम हो जाने के बाद तुषार घटना के दिन सुबहसुबह मधोल पेठ पहुंच कर अर्पिता का इंतजार करने लगा. बाद में जब उसे मौका मिला तो उस ने अर्पिता और उस की फ्रेंड पर हमला बोल दिया. इस हमले में अर्पिता की जान चली गई और उस की फ्रैंड अपर्णा बुरी तरह घायल हुई. इस के पहले कि वह भाग पाता, लोगों ने उसे दौड़ा कर पकड़ लिया.

इस घटना के कुछ घंटों बाद इस वारदात को ले कर पूरा अमरावती शहर एक हो गया. राजनीतिक पार्टियां और सामाजिक संगठन एकजुट हो कर पुलिस प्रशासन के खिलाफ नारे लगाने लगे.

वे अभियुक्त तुषार मसकरे को कड़ी से कड़ी सजा देने की मांग कर रहे थे. बहरहाल, तुषार मसकरे ने अपना गुनाह स्वीकार कर लिया था. पूछताछ के बाद उसे अदालत पर पेश कर के जेल भेज दिया गया. द्य

साजिश का शिकार प्रीती : क्या था हत्या का राज

न्यूआजाद नगर स्थित ग्रामसमाज की जमीन पर एक सफेद प्लास्टिक की बोरी पड़ी थी. कुत्तों का झुंड बोरी को नोचने में लगा था. तभी कुछ मजदूरों की नजर कुत्तों के झुंड पर पड़ी. ये मजदूर डूडा कालोनी के पास प्रधानमंत्री आवास योजना निर्माण के काम में लगे थे.

चूंकि हवा के झोंकों के साथ दुर्गंध भी आ रही थी, इसलिए उत्सुकतावश 2-3 मजदूर वहां पहुंचे. उन्होंने कुत्तों को भगा कर बोरी पर नजर डाली तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि बोरी के अंदर लाश है. मजदूरों ने बोरी में लाश होने की जानकारी अपने ठेकेदार को दी. उस ने यह जानकारी तुरंत धाना विधनू को दे दी.

थानाप्रभारी अनुराग सिंह को लाश की सूचना मिली तो वह विचलित हो उठे. उन्होंने यह सूचना अपने अधिकारियों को दी और पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उस समय वहां ज्यादा भीड़ नहीं थी.

अनुराग सिंह ने बोरी से लाश निकलवाई तो तेज झोंका आया. उन्होंने नाक पर रूमाल रख कर शव का निरीक्षण किया. शव किसी युवती का था, जिस के गले में काले रंग के दुपट्टे का फंदा था. संभवत: उस की हत्या गला घोंट कर की गई थी.

मृतका क्रीम कलर की छींटदार कुरती और काली जींस पहने थी. उस के बाएं हाथ की कलाई में कलावा तथा दाएं हाथ पर टैटू बना था. एक हाथ में स्टील का कड़ा और दूसरे हाथ में काले रंग का कंगन था. उस की उम्र 30 साल के आसपास थी, रंग गोरा था.

शव से बदबू आने से ऐसा लग रहा था कि उस की हत्या 2 दिन पहले की गई थी. साथ ही यह भी कि हत्या कहीं और की गई थी और शव को बोरी में बंद कर यहां सुनसान जगह पर फेंका गया था.

अनुराग सिंह अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी (साउथ) रवीना त्यागी तथा सीओ शैलेंद्र सिंह भी आ गए. इन अधिकारियों ने भी घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया.

साथ ही वहां मौजूद लोगों से शव के संबंध में पूछताछ की, लेकिन कोई भी शव की पहचान नहीं कर पाया. पुलिस ने शव के विभिन्न कोणों से फोटो खिंचवा कर उसे पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय भिजवा दिया. यह 2 अगस्त, 2019 की बात है.

दूसरे दिन युवती के हुलिए सहित उस की लाश पाए जाने की खबर स्थानीय समाचार पत्रों में छपी तो श्यामनगर निवासी रिटायर्ड मेजर विद्याशंकर शर्मा का माथा ठनका. उन्होंने पूरी खबर विस्तार से पढ़ी, फिर पत्नी और बेटे मनीष को जानकारी दी.

पुलिस ने दर्ज नहीं की थी रिपोर्ट दरअसल, विद्याशंकर शर्मा की 30 वर्षीय विवाहित बेटी प्रीति शर्मा पिछले 2 दिन से घर वापस नहीं आई थी. उन्होंने श्यामनगर पुलिस चौकी जा कर गुमशुदगी दर्ज कराने का प्रयास किया था, लेकिन पुलिस ने उन्हें टरका दिया था. खबर पढ़ कर शर्माजी घबरा गए.

विद्याशंकर शर्मा ने अपने बेटे मनीष और अन्य घरवालों को साथ लिया और पोस्टमार्टम हाउस पहुंच गए. वहां जा कर उन्होंने विधनू थानाप्रभारी अनुराग सिंह से बातचीत कर के अज्ञात युवती का शव दिखाने का अनुरोध किया.

अनुराग सिंह ने युवती का शव दिखाया तो विद्याशंकर शर्मा फफक पड़े, ‘‘सर, यह लाश मेरी बेटी प्रीति की है. मैं ने इसे हाथ में बंधे कलावा, कड़ा और टैटू से पहचाना है.’’

लाश की पहचान होते ही विद्याशंकर के घर में कोहराम मच गया. मनीष बहन की लाश देख कर रो पड़ा. उस की पत्नी कंचन भी सिसकने लगी. सब से ज्यादा बुरा हाल मनीष की मां मधु शर्मा का था. वह दहाड़ मार कर रो रही थीं. उन की बहू कंचन तथा परिवार की अन्य औरतें उन्हें धैर्य बंधा रही थीं.

लाश की शिनाख्त होने के बाद थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने मृतका प्रीति शर्मा के पिता विद्याशंकर शर्मा से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि 2 दिन पहले प्रीति को उस की सहेली वैदिका तथा उस का पति सत्येंद्र अपने घर ले गए थे. उस के बाद प्रीति वापस नहीं लौटी.

पुलिस ने वैदिका तथा उस के पति सत्येंद्र से पूछा तो दोनों बहाना बनाने लगे. पुलिस को संदेह हुआ कि कहीं प्रीति का सामान लूटने के लिए उस की हत्या वैदिका और उस के पति सत्येंद्र ने मिल कर तो नहीं की है. इस संदेह की वजह यह थी कि प्रीति जब घर से निकली थी, तब वह कई आभूषण पहने थी. पर्स, मोबाइल व एटीएम कार्ड उस के पास थे, जो लाश के पास नहीं मिले. पहने हुए आभूषण भी गायब थे.

थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने मृतका प्रीति शर्मा के भाई मनीष शर्मा से पूछताछ की तो उस ने बताया कि प्रीति की हत्या में उस की सहेली वैदिका और उस का पति सत्येंद्र ही शामिल हैं. इस के अलावा प्रशांत द्विवेदी नाम का युवक भी शामिल है. इन तीनों ने ही हत्या की योजना बनाई और प्रीति को मौत की नींद सुला दिया.

‘‘प्रशांत द्विवेदी कौन हैं?’’ सिंह ने पूछा.  ‘‘सर, प्रशांत द्विवेदी मेरी बहन का प्रेमी है. उस ने प्रीति को अपने प्यार के जाल में फंसा लिया था और शादी का झांसा दे कर उस का शारीरिक शोषण करता था. जब प्रीति ने शादी का दबाव बनाया तो उस ने प्रीति की सहेली वैदिका के साथ मिल कर उसे मार डाला.’’

‘‘तुम्हारी बहन प्रीति तो ब्याहता थी? वह प्रशांत के जाल में कैसे फंस गई?’’ अनुराग सिंह ने सवाल किया.  ‘‘सर, प्रीति का अपने पति से मनमुटाव था. कोर्ट में दोनों के तलाक का मुकदमा चल रहा है. पति से मनमुटाव के बाद वह मायके आ कर रहने लगी थी. पति की उपेक्षा से ऊबी प्रीति को प्रशांत का साथ मिला तो वह उस की ओर आकर्षित हो गई और उस के साथ शादी के सपने संजोने लगी. पर प्रशांत छलिया निकला, वह उस से शादी नहीं करना  चाहता था.’’

‘‘कहीं प्रीति की हत्या मुकदमे से छुटकारा पाने के लिए उस के पति ने ही तो नहीं कर दी?’’ सिंह ने शंका जाहिर की.

‘‘नहीं सर, प्रीति के ससुराल वाले हत्या जैसा जोखिम नहीं उठा सकते. प्रीति का पति पीयूष शर्मा एयरफोर्स में है और अंबाला में तैनात है. ससुर भुजराम शर्मा रोडवेज से रिटायर हैं. उन पर हमें भरोसा है.’’

पूछताछ के बाद अनुराग सिंह को लगा कि प्रीति की हत्या या तो अवैध रिश्तों के चलते हुई या फिर प्रीति की सहेली वैदिका ने उस के साथ विश्वासघात किया है. उन्होंने वैदिका, उस के पति सत्येंद्र तथा प्रीति के प्रेमी प्रशांत द्विवेदी को हिरासत में ले लिया. थाने ला कर तीनों से अलगअलग पूछताछ की गई.

वैदिका ने बताया कि प्रीति उस की घनिष्ठ सहेली थी. स्वर्णजयंत विहार में उस का ब्यूटी पार्लर है, जहां प्रीति मेकअप कराने आती थी. जब पति से उस का मनमुटाव हुआ तो उस ने भी ब्यूटी पार्लर चलाने की इच्छा जाहिर की. तब मैं ने उस की मदद की. प्रीति का मेरे घर आनाजाना था.

वैदिका का संदिग्ध बयान  30 जुलाई को फोन कर उस ने मुझे अपने घर बुलाया था. उसे कुछ सामान खरीदना था सो वह मेरे साथ गई थी. सामान खरीदने के बाद वह वापस घर चली गई थी. उस के बाद क्या हुआ, उस की हत्या किस ने और क्यों की, उसे पता नहीं है.

वैदिका के पति सत्येंद्र ने बताया कि वह प्राइवेट नौकरी करता था. उस की नौकरी छूट गई है और वह बेरोजगार है. प्रीति, उस की पत्नी की सहेली थी. उस का घर में आनाजाना था. सो उस से अच्छा परिचय था. उस की हत्या किस ने और क्यों की, उसे नहीं पता. इसी बीच किसी का फोन आया तो अनुराग फोन पर बतियाने लगे.

थानाप्रभारी का ध्यान फोन पर केंद्रित हुआ तो वैदिका अपने पति से खुसरफुसर करने लगी. उस ने पति को जुबान बंद रखने का भी इशारा किया. अनुराग सिंह समझ गए कि वैदिका कुछ छिपा रही है और पति को भी ऐसा करने को मजबूर कर रही है. फिर भी उन्होंने वैदिका से कुछ नहीं कहा.

पूछताछ के बाद अनुराग सिंह ने दोनों को इस हिदायत के साथ घर जाने दिया कि जब भी उन्हें बुलाया जाए, थाने आ जाएं. शहर छोड़ कर भी कहीं न जाएं.

थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने मृतका प्रीति शर्मा के प्रेमी प्रशांत द्विवेदी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह हैलट अस्पताल का कर्मचारी है. प्रीति से उस की मुलाकात 6 महीने पहले तब हुई थी, जब वह अपने भाई मनीष की 10 वर्षीय बेटी परी का इलाज कराने आई थी.

अस्पताल में दोनों की दोस्ती हुई और फिर दोस्ती प्यार में बदल गई. वे दोनों शादी भी करना चाहते थे, लेकिन प्रीति का तलाक नहीं हुआ था. इसलिए उस ने प्रीति से कहा था कि तलाक होने के बाद शादी कर लेंगे. प्रशांत ने यह भी कहा कि उसे प्रीति का उस की सहेली वैदिका के घर जाना अच्छा नहीं लगता था, क्योंकि वैदिका और उस का पति सत्येंद्र प्रीति से किसी न किसी बहाने पैसे वसूलते रहते थे.

कभी वे तंगहाली का रोना रोते तो कभी मकान का किराया देने का. उसे शक है कि प्रीति की सहेली वैदिका ने ही उस के साथ घात किया है. उस के गहने और नकदी लूट कर उस की हत्या कर दी और शव सुनसान जगह पर फेंक दिया.

प्रशांत द्विवेदी के बयान से थानाप्रभारी अनुराग का शक वैदिका तथा उस के पति सत्येंद्र पर और भी गहरा गया. उन्हें लगा कि प्रीति शर्मा की हत्या का राज उन दोनों के ही पेट में छिपा है. उन्होंने प्रशांत को तो थाने से जाने दिया, लेकिन वैदिका पर नजरें गड़ा दीं. अनुराग सिंह ने प्रीति शर्मा तथा उस की सहेली वैदिका के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई.

पता चला कि प्रीति और वैदिका की लगभग हर रोज बातें होती थीं. प्रीति की एक अन्य नंबर पर भी ज्यादा बातें होती थीं. उस नंबर को ट्रेस किया गया तो पता चला कि वह प्रीति के प्रेमी प्रशांत द्विवेदी का है.

30 जुलाई, 2019 को भी प्रीति शर्मा की फोन पर वैदिका से कई बार बात हुई थी. रात 8 बजे के बाद उस का फोन बंद हो गया था. इस का मतलब यह था कि हत्या के बाद उस के मोबाइल का स्विच औफ कर दिया गया था.

थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने अब तक की जांच से एसपी (साउथ) रवीना त्यागी को अवगत कराया. साथ ही प्रीति की सहेली वैदिका तथा उस के पति सत्येंद्र पर हत्या का शक भी जताया. मामला हत्या का था, इसलिए रवीना त्यागी ने दोनों को गिरफ्तार कर के पूछताछ करने का आदेश दिया.

आदेश मिलते ही अनुराग सिंह ने 5 अगस्त की सुबह स्वर्ण जयंती विहार स्थित वैदिका के किराए वाले मकान पर छापा मार कर वैदिका और उस के पति को गिरफ्तार कर लिया. दोनों को थाना विधनू लाया गया. थाने आते समय दोनों के मुंह लटक गए थे. उन के चेहरों पर घबराहट और डर की परछाई साफ नजर आ रही थी.

अनुराग सिंह ने वैदिका और सत्येंद्र को अपने कक्ष में आमनेसामने बैठाया और कुछ देर उन के चेहरों के हावभाव पढ़ने की कोशिश करते रहे. उस के बाद उन्होंने पूछा, ‘‘सचसच बताओ, तुम दोनों ने प्रीति की हत्या क्यों और कैसे की?’’

‘‘सर, हम ने प्रीति की हत्या नहीं की. हम दोनों को फंसाया जा रहा है.’’

‘‘फिर झूठ, नरम व्यवहार का मतलब यह नहीं है कि तुम झूठ पर झूठ बोलते जाओ. हमें सच उगलवाना भी आता है.’’

कहते हुए उन्होंने महिला सिपाही ऊषा यादव तथा कांस्टेबल बलराम को बुला कर कहा, ‘‘इन दोनों को डार्क रूम में ले चलो. हम भी देखते हैं कि ये कब तक सच नहीं बोलते.’’

खुल गया हत्या का राज थानाप्रभारी अनुराग सिंह के तेवर देख कर वैदिका और सत्येंद्र डर गए. उन्हें लगा कि सच बोलने में ही भलाई है. अत: वे दोनों हाथ जोड़ कर बोले, ‘‘सर, हमें माफ कर दो. हम से गलती हो गई. पैसों की तंगी के कारण प्रीति की हत्या हम दोनों ने ही की थी. हम अपना जुर्म कबूल करते हैं.’’

जुर्म कबूल करने के बाद वैदिका और सत्येंद्र ने प्रीति का मोबाइल, पर्स, ज्वैलरी आदि सामान बरामद करा दिया. पुलिस ने हत्या के बाद लाश फेंकने में इस्तेमाल की गई सत्येंद्र की मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली.

अनुराग सिंह ने प्रीति शर्मा की हत्या का राज खोलने और उस का सामान बरामद करने की जानकारी एसपी (साउथ) रवीना त्यागी तथा सीओ शैलेंद्र सिंह को दे दी. पुलिस अधिकारी थाना विधनू आ गए. उन्होंने वैदिका तथा उस के पति सत्येंद्र से प्रीति की हत्या के संबंध में विस्तृत जानकारी हासिल की. फिर प्रैसवार्ता कर हत्यारोपियों को मीडिया के समक्ष पेश कर घटना का खुलासा कर दिया.

कातिलों ने हत्या का जुर्म कबूल कर के सामान भी बरामद करा दिया था. थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने मृतका के पिता विद्याशंकर शर्मा को वादी बना कर भादंवि की धारा 302, 201 के तहत वैदिका तथा उस के पति सत्येंद्र के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया. पुलिस जांच में सहेली द्वारा सहेली के साथ विश्वासघात करने की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आई.

कानपुर महानगर के थाना चकेरी क्षेत्र में एक मोहल्ला है श्यामनगर. इसी मोहल्ले के ई ब्लौक में विद्याशंकर शर्मा अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी मधु शर्मा के अलावा एक बेटा मनीष तथा बेटी प्रीति थी. विद्याशंकर शर्मा सेना के मेजर पद से रिटायर हुए थे. विद्याशंकर का परिवार संपन्न था और वह इज्जतदार व्यक्ति थे.

विद्याशंकर शर्मा खुद पढ़ेलिखे व्यक्ति थे, इसलिए उन्होंने अपने बेटे मनीष और बेटी प्रीति को भी खूब पढ़ायालिखाया था. मनीष पढ़लिख कर जब काम पर लग गया तो उन्होंने उस का विवाह कंचन नाम की खूबसूरत युवती के साथ कर दिया.

कंचन पढ़ीलिखी तथा मृदुभाषी थी. ससुराल में आते ही उस ने सभी का दिल जीत लिया था. शादी के एक साल बाद कंचन ने बेटी परी को जन्म दिया.

प्रीति मनीष से छोटी थी. वह दिखने में जितनी सुंदर थी, पढ़ाई में भी उतनी ही तेज थी. खालसा गर्ल्स कालेज से उस ने इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद बीए की डिग्री बृहस्पति महाविद्यालय, किदवईनगर से हासिल की थी. यही नहीं, स्वरोजगार के लिए उस ने ब्यूटीशियन का पूरा कोर्स भी कर रखा था. प्रीति को बनसंवर कर रहना तथा स्वच्छंद घूमना पसंद था.

प्रीति जवान हुई तो विद्याशंकर शर्मा को उस के ब्याह की चिंता सताने लगी. वह प्रीति का विवाह धूमधाम से किसी ऐसे युवक से करना चाहते थे, जो पढ़ालिखा हो और सरकारी नौकरी में हो.

हालांकि प्रीति का हाथ मांगने के लिए कई रिश्तेदारों ने कोशिश की, लेकिन विद्याशंकर ने उन्हें मना कर दिया था. कारण यह कि उन के लड़के या तो व्यापारी थे या फिर प्राइवेट कंपनी में काम करते थे. काफी दौड़धूप के बाद विद्याशंकर शर्मा को एक लड़का पसंद आ गया. लड़के का नाम था पीयूष.

पीयूष के पिता भुजराम शर्मा चकेरी थाना क्षेत्र में आने वाले मोहल्ला कोयलानगर में रहते थे. वह रोडवेज से रिटायर हुए थे. कोयलानगर में उन का अपना आलीशान मकान था, जिस में वह परिवार के साथ रहते थे. परिवार में पत्नी सुधा शर्मा के अलावा एक ही बेटा था पीयूष. पीयूष पढ़ालिखा युवक था. उस का चयन वायुसेना में हो गया था. ट्रेनिंग के बाद वह अंबाला में कार्यरत था.

विद्याशंकर शर्मा ने पीयूष को देखा तो वह उन्हें अपनी बेटी प्रीति के योग्य लगा. लेनदेन की बात तय होने के बाद दोनों परिवारों में सहमति बनी कि शादी तब तय मानी जाएगी, जब प्रीति और पीयूष एकदूसरे को पसंद कर शादी को राजी हो जाएंगे. नियत तिथि पर पीयूष और प्रीति ने एकदूसरे को देखा, आपस में बातचीत की. अंतत: दोनों शादी को राजी हो गए. उस के बाद 20 फरवरी, 2015 को प्रीति का विवाह पीयूष शर्मा के साथ धूमधाम से हो गया.

विद्याशंकर शर्मा ने शादी में काफी खर्च किया था. उन्होंने बेटी को आभूषणों के अलावा उस के ससुराल पक्ष को वह हर सामान दिया था, जिस की उन्होंने डिमांड की थी. शर्माजी ने हंसीखुशी से लाल जोड़े में लिपटी अपनी लाडली बेटी को विदा किया.

सास की वजह से मतभेद बढ़े पतिपत्नी में प्रीति शर्मा खूबसूरत थी. ससुराल में उसे जिस ने भी देखा, उसी ने उस के रूपसौंदर्य की तारीफ की. पीयूष भी पढ़ीलिखी और खूबसूरत पत्नी पा कर खुश था. मुंहदिखाई रस्म के दौरान जब परिवार की महिलाएं प्रीति का घूंघट उठा कर देखतीं और उस के रूपसौंदर्य की तारीफ करतीं तो सास सुधा शर्मा का सीना गर्व से तन जाता. प्रीति भी ससुराल वालों के व्यवहार से खुश थी. उसे खुशी इस बात की भी थी कि उस का पति स्मार्ट और सभ्य है.

जब गौने के बाद प्रीति ससुराल आई तो उसे सास का व्यवहार थोड़ा तल्ख लगा. सुधा शर्मा ने घर का सारा काम प्रीति को सौंप दिया. काम करने के बावजूद उसे सास की डांट सहनी पड़ती थी. कभी वह दाल में कम नमक को ले कर डांटती तो कभी साफसफाई को ले कर. कभीकभी दहेज कम देने को ले कर भी ताना मारतीं.

सास के तानों से प्रीति का दिल छलनी होने लगा. वह मानसिक प्रताड़ना से परेशान रहने लगी. पति उस से कोसों दूर था, वह अपनी पीड़ा कहती भी तो किस से. एक रोज उस की मां का फोन आया तो प्रीति के सब्र का बांध टूट गया. उस ने फोन पर ही सारी पीड़ा मां को बताई और फूटफूट कर रोने लगी. मां ने उसे धैर्य बंधाया और उस की सास को समझाने का भरोसा दिया.

मधु शर्मा ने प्रीति की प्रताड़ना को ले कर उस की सास से शिकायत की तो वह गुस्से में बोली, ‘‘तुम्हारी बेटी इतनी नाजुक और कोमल है तो घर के काम के लिए नौकरचाकर लगवा दो या फिर इसे अपने घर बुला लो. मुझे कामचोर बहू की जरूरत नहीं है.’’

शिकायत के बाद सास का जुल्म और बढ़ गया. अब वह प्रीति के खानेपीने, उठनेबैठने और सजनेसंवरने पर भी सवाल खड़े करने लगी.

लगभग 3 महीने बाद पीयूष जब छुट्टी पर घर आया तो मां ने प्रीति के खिलाफ उस के कान भरे. इस पर पीयूष का व्यवहार भी प्रीति के प्रति कठोर हो गया. उस ने प्रीति से साफ कह दिया कि उसे घर का काम करना पड़ेगा. मां जो कहेगी, उसे बरदाश्त करना होगा. साथ ही मर्यादा में रहना पड़ेगा. मां से बगावत वह बरदाश्त नहीं करेगा.

पति की बात सुन कर प्रीति अवाक रह गई. वह जान गई कि पीयूष मातृभक्त है. उसे पत्नी की कोई चिंता नहीं है. घर में तनाव को ले कर पीयूष और प्रीति के बीच दरार पड़ गई. पीयूष को जहां अपनी सरकारी नौकरी का घमंड था, वहीं प्रीति को भी अपनी खूबसूरती का अहंकार था. इस अहंकार और घमंड ने प्रीति और पीयूष के जीवन को गर्त में धकेल दिया.

इधर पीयूष का साथ मिला तो सास सुधा प्रीति पर और जुल्म करने लगी. अब वह सीधे तौर पर दहेज के रूप में रुपयों की मांग करती. प्रीति रुपया लाने को राजी नहीं होती तो वह उसे प्रताडि़त करती.

प्रीति आखिर कब तक जुल्म सहती, एक साल बीततेबीतते वह ससुराल में इतनी ज्यादा परेशान हो गई कि उस ने ससुराल छोड़ दी और मायके में आ कर रहने लगी. कुछ महीने बाद पीयूष उसे लेने आया तो प्रीति ने उस के साथ जाने से साफ मना कर दिया.

मायके में प्रीति कुछ समय तक असामान्य और गुमसुम रही. लेकिन जब मांबाप ने उसे समझाया और दहेज उत्पीड़न जैसी बुराई से लड़ने की हौसलाअफजाई की तो उस ने भी लड़ने की ठान ली. उस ने पिता और भाई के सहयोग से पति पीयूष, ससुर भुजराम शर्मा तथा सास सुधा शर्मा के विरुद्ध थाना चकेरी में दहेज उत्पीड़न की रिपोर्ट दर्ज करा दी. साथ ही तलाक का मुकदमा भी कायम करा दिया.

मुकदमा करने के बाद प्रीति ने थाना चकेरी पुलिस पर दबाव बनाया कि वह आरोपियों को जल्द बंदी बनाए.

उधर पीयूष और उस के मातापिता को प्रीति द्वारा दहेज उत्पीड़न का मुकदमा कायम कराने की जानकारी हुई, तो वे घबरा गए. गिरफ्तारी से बचने के लिए भुजराम शर्मा मकान में ताला लगा कर अंडरग्राउंड हो गए. पीयूष वायुसेना में था, गिरफ्तार होने पर उस की नौकरी खतरे में पड़ सकती थी.

दौड़धूप कर के पीयूष ने गिरफ्तारी के विरुद्ध हाइकोर्ट से स्टे ले लिया. स्टे मिलने के बाद पीयूष ने ससुराल वालों से समझौते की पहल की. प्रीति शर्मा पहले तो तैयार नहीं हुई, लेकिन मांबाप के समझाने पर तैयार हो गई. उस ने समझौते के लिए 10 लाख रुपए की मांग रखी, जो उस के मांबाप ने शादी में खर्च किए थे.

पीयूष दहेज उत्पीड़न का मुकदमा खत्म करने तथा तलाक मिलने पर 10 लाख रुपए देने को राजी हो गया. उस ने 5 लाख रुपए प्रीति को कोर्ट के माध्यम से दे दिए और बाकी रुपए तलाक मिलने के बाद देने का वादा किया.

प्रीति ने खोला ब्यूटी पार्लर प्रीति की एक घनिष्ठ सहेली थी वैदिका. वह अपने पति सत्येंद्र के साथ स्वर्ण जयंती विहार में रहती थी. यह क्षेत्र थाना विधनू के अंतर्गत आता है. वैदिका किराए पर सुलभ पांडेय के मकान में रहती थी. मकान के बाहरी भाग में उस ने ब्यूटी पार्लर खोल रखा था. प्रीति सजनेसंवरने उस के पार्लर में जाती थी.

आतेजाते दोनों में गहरी दोस्ती हो गई थी. वैदिका का पति सत्येंद्र मूलरूप से बिल्हौर थाने के कल्वामऊ गांव का रहने वाला था. बेहतर जिंदगी की उम्मीद से वह कानपुर शहर आया था. सत्येंद्र प्राइवेट नौकरी करता था, जबकि वैदिका ब्यूटी पार्लर चलाने लगी थी.

प्रीति ने भी ब्यूटीशियन का कोर्स कर रखा था, अत: सहेली के घर आतेजाते उस ने वैदिका से ब्यूटी पार्लर खोलने की इच्छा जाहिर की. वैदिका ने भरपूर मदद का आश्वासन दिया तो प्रीति ने श्याम नगर में अपने घर से कुछ दूरी पर एक दुकान किराए पर ले ली. फिर वैदिका की मदद से दुकान को सजा कर ब्यूटी पार्लर चलाने लगी.

चूंकि प्रीति व्यवहारकुशल, हंसमुख और सुंदर थी, इसलिए कुछ ही माह बाद उस का ब्यूटी पार्लर अच्छी तरह चलने लगा. उस के यहां महिलाओं, लड़कियों की भीड़ उमड़ने लगी. उसे अच्छी आमदनी होने लगी थी. प्रीति सहेली वैदिका की भी आर्थिक मदद करने लगी.

प्रीति की अपनी भाभी कंचन से खूब पटती थी. कंचन की बेटी का नाम परी था. परी अपनी बुआ प्रीति से खूब हिलीमिली थी. प्रीति भी परी को खूब प्यार करती थी. जनवरी 2019 में परी एक दिन अकस्मात बीमार पड़ गई. मनीष ने उसे हैलट अस्पताल के न्यूरो साइंस वार्ड में इलाज हेतु भरती कराया. चूंकि परी प्रीति से बहुत प्यार करती थी, इसलिए उस ने परी की देखभाल के लिए हैलट अस्पताल में डेरा जमा लिया.

हैलट अस्पताल में ही प्रीति की मुलाकात प्रशांत द्विवेदी से हुई. प्रशांत द्विवेदी न्यूरो साइंस डिपार्टमेंट का कर्मचारी था. परी की देखभाल के लिए उस का आनाजाना लगा रहता था.

प्रशांत के पिता पुलिस विभाग में हैडकांस्टेबल थे और औरेया जिले के फफूंद थाने में तैनात थे. प्रशांत ने खूबसूरत प्रीति को देखा तो वह उस के दिल में रचबस गई. परी की देखभाल के बहाने प्रशांत प्रीति से नजदीकियां बढ़ाने लगा. वह शरीर से हृष्टपुष्ट व दिखने में स्मार्ट था. प्रीति को भी उस की नजदीकी और लच्छेदार बातें अच्छी लगने लगीं. उस के दिल में प्रशांत के प्रति प्यार उमड़ने लगा.

एक दिन प्रशांत ने मौका देख कर प्रीति का हाथ थाम लिया और बोला, ‘‘प्रीति मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. यदि मुझे तुम्हारा साथ मिल जाए तो मेरा जीवन सुधर जाएगा. तुम्हारे बिना अब मैं खुद को अधूरा समझने लगा हूं. बोलो दोगी मेरा साथ?’’

प्रीति अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली, ‘‘प्रशांत, प्यार तो मैं भी तुम्हें करने लगी हूं. लेकिन तुम्हें पता नहीं है कि मैं शादीशुदा हूं. कोर्ट में पति से मेरा तलाक का मामला चल रहा है.’’

‘‘मुझे तुम्हारे बीते कल से कोई मतलब नहीं. रही बात तलाक की तो आज नहीं तो कल निपट ही जाएगा. मैं बस तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं.’’

‘‘मुझे डर लग रहा है प्रशांत, कहीं तुम ने धोखा दे दिया तो?’’ प्रीति ने आशंका जताई.

‘‘कैसी बातें कर रही हो प्रीति, मैं तुम्हारा साथ जीवन भर निभाऊंगा.’’ प्रशांत ने वादा किया.

इस के बाद प्रीति और प्रशांत का प्यार परवान चढ़ने लगा. दोनों साथ घूमनेफिरने और मौजमस्ती करने लगे. उन के बीच की सारी दूरियां मिट गईं. देह संबंध भी बन गए. प्रीति ने अपने और प्रशांत के बारे में अपनी सहेली को भी बता दिया था. प्रशांत और प्रीति, वैदिका के घर मिलने लगे थे.

जब कभी उन का मिलन नहीं हो पाता था, तब दोनों मोबाइल फोन पर बतिया कर अपने दिल की बात एकदूसरे को बता देते थे. प्रीति के भाई को दोनों के प्रेमिल संबंधों का पता चल गया था, लेकिन वह कभी इस का विरोध नहीं करता था.

एक दिन प्रीति ने प्रशांत के सामने शादी का प्रस्ताव रखा तो उस ने टाल दिया. शादी को ले कर दोनों में विवाद भी हुआ. लेकिन प्रशांत ने यह कह कर प्रीति को शांत कर दिया कि हम तलाक के बाद तुरंत शादी कर लेंगे. क्योंकि तलाक के पहले शादी करने से तुम मुसीबत में फंस सकती हो. प्रीति को यह बात समझ में आ गई और उस ने शादी की रट छोड़ दी.

इधर प्रीति प्रशांत के साथ मौजमस्ती कर रही थी, जबकि उस की सहेली वैदिका की आर्थिक हालत बहुत खराब हो गई थी. दरअसल, वैदिका के पति सत्येंद्र की नौकरी छूट गई थी और उस का पार्लर भी बंद हो गया था.

उस के ऊपर कई महीने का मकान का किराया बकाया था. अन्य लोगों से लिया कर्ज भी बढ़ गया था. ऊपर से प्रीति ने भी मदद देनी बंद कर दी थी. ऐसे में उसे कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि वह कर्ज कैसे चुकाए या फिर मकान का किराया कैसे भरे.

एक दिन प्रीति वैदिका के घर आई तो उस की नजर प्रीति के शरीर के आभूषणों पर पड़ी, जो लगभग 2 लाख के थे. आभूषण देख कर वैदिका ने पति सत्येंद्र के साथ मिल कर सहेली प्रीति से घात करने की योजना बनाई. इस के बाद वह समय का इंतजार करने लगी.

30 जुलाई, 2019 को वैदिका अपने पति सत्येंद्र के साथ प्रीति के घर पहुंची. उस ने बताया कि वह ब्यूटी पार्लर का सामान बेच रही है, चल कर देख लो और जो तुम्हारे मतलब का हो उसे खरीद लो.

प्रीति सहेली की चाल समझ नहीं पाई और उस के साथ उस के घर पर आ गई. घर पर वैदिका ने उस का खूब आदरसत्कार किया. प्रीति जाने लगी तो उस ने यह कह कर रोक लिया कि खाना खा कर जाना. वैदिका ने शाम को खाना बनाया फिर रात 8 बजे तीनों ने बैठ कर खाना खाया.

खाना खाने के बाद प्रीति पलंग पर लेट गई. तभी वैदिका और सत्येंद्र ने प्रीति को दबोच लिया. वह चिल्लाने लगी तो सत्येंद्र ने उस के मुंह में कपड़ा ठूंस दिया और वैदिका ने प्रीति के दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया.

प्रीति की हत्या के बाद वैदिका और सत्येंद्र ने मिल कर प्रीति के गले की सोने की चैन, 2 अंगूठी, सोने का कड़ा, कान की बाली और नाक की लौंग उतार ली. इतना ही नहीं, वैदिका ने प्रीति के पर्स से नकद रुपया, मोबाइल तथा एटीएम कार्ड भी निकाल लिया.

इस के बाद दोनों ने मिल कर प्रीति के शव को प्लास्टिक की बोरी में तोड़मरोड़ कर भरा और मोटरसाइकिल पर रख कर न्यू आजाद नगर की ग्रामसमाज की खाली पड़ी जमीन पर फेंक आए. आभूषणों और नकदी को सुरक्षित कर के उन्होंने मोबाइल व पर्स को घर में छिपा दिया.

इधर जब प्रीति देर रात तक नहीं लौटी तो विद्याशंकर शर्मा को चिंता हुई. उन्होंने वैदिका से पूछा तो उस ने बता दिया कि प्रीति सामान ले कर वापस घर चली गई थी. जब 2 दिन तक प्रीति का कुछ पता नहीं चला तो विद्याशंकर गुमशुदगी दर्ज कराने श्यामनगर चौकी गए पर पुलिस ने उन्हें टरका दिया.

उधर 2 अगस्त, 2019 को कुछ मजदूरों ने एक प्लास्टिक बोरी में लाश देखी, जिसे कुत्ते नोच रहे थे. मजदूरों ने ठेकेदार को बताया. तब ठेकेदार ने लाश की सूचना थाना विधनू की पुलिस को दी. विधनू थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने केस की जांच की तो सारे भेद खुल गए.

6 अगस्त, 2019 को थाना विधनू पुलिस ने अभियुक्त सत्येंद्र तथा वैदिका को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जिला कारागार भेज दिया गया. मामले की विवेचना थानाप्रभारी कर रहे हैं.द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सेक्स स्केंडल : ब्लैकमेलिंग से हुए कई शिकार

यह देह व्यापार और ब्लैकमेलिंग का वैसा और कोई छोटामोटा मामला नहीं है, जिस में लोगों को पता चल जाए कि पकड़े गए लोगों के नाम, वल्दियत और मुकाम क्या हैं, बल्कि इस हाईप्रोफाइल मामले की हैरतअंगेज बात यह है कि इस में उन औरतों के नाम और पहचान उजागर हो जाना है, जो अपने हुस्न के जाल में मध्य प्रदेश के कई नेताओं और आईएएस अफसरों को फंसा कर करोड़ों रुपए कमा चुकी हैं.

खूबसूरत, स्टायलिश, सैक्सी और जवान औरत किसी भी मर्द की कमजोरी हो सकती है, लेकिन जब वे मर्द अहम ओहदों पर बैठे हों तो चिंता की बात हो जाती है. क्योंकि इन की न केवल समाज में इज्जत और रसूख होता है, बल्कि ये वे लोग हैं जो सरकार की नीतियांरीतियां बनाते हैं.

इन के कहने पर करोड़ों का लेनदेन होता है. सूटबूट में चमकते दिखने वाले इन खास लोगों में बस एक बात आम लोगों जैसी होती है, वह है जवान औरत का चिकना शरीर देखते ही उस पर बिना सोचेसमझे फिसल जाना.

फिसल तो गए, लेकिन अब इन का गला सूख रहा है. नींद उड़ी हुई है और हलक के नीचे निवाला भी नहीं उतर रहा. वजह यह डर है कि खुदा न खास्ता अगर नाम और रंगरलियां मनाते वीडियो उजागर और वायरल हो गए तो कहीं मुंह दिखाने के काबिल नहीं रह जाएंगे.

जांच एजेंसियां यह भी पूछेंगी कि इन बालाओं पर लुटाने के लिए ढेर सारी रकम आई कहां से थी और ब्लैकमेलिंग से बचने के लिए इन्हें कैसे उपकृत किया गया. यानी ब्लैकमेलिंग की रकम का बड़ा हिस्सा एक तरह से सरकार दे रही थी.

यह है मामला इंदौर नगर निगम के एक इंजीनियर हरभजन सिंह ने 17 सितंबर, 2019 को पुलिस में रिपोर्ट लिखाई कि 2 औरतें उसे ब्लैकमेल कर रही हैं. पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर मामले की जांच शुरू कर दी. इंजीनियर हरभजन से भोपाल की आरती दयाल की दोस्ती थी. आरती एक एनजीओ चलाती है. इस ने कृषि, ग्रामीण व पंचायत विभाग से एनजीओ के नाम पर मोटी फंडिंग ली थी.

बल्लभ भवन के ग्राउंड फ्लोर पर बैठने वाले एक आईएएस, भोपाल-इंदौर में कलेक्टर रहे एक आईएएस के अलावा और कई अफसर और नेताओं से उस के नजदीकी संबंध थे. सबंध भी इतने गहरे कि भोपाल व इंदौर में कलेक्टर रह चुके एक आईएएस अफसर ने तो उसे मीनाल रेजिडेंसी जैसे पौश इलाके में एक महंगा फ्लैट दिला दिया था. यह आईएएस अफसर भोपाल और इंदौर के कलेक्टर भी रह चुके हैं.

आरती इस अफसर को ब्लैकमेल कर रही थी, जिस से पीछा छुड़ाने के लिए इस अफसर ने उसे होशंगाबाद रोड पर एक प्लौट भी दिलाया था. आरती ने इस के बाद भी उस का पीछा छोड़ा या नहीं, यह तो वही जाने लेकिन आरती ने दूसरा शिकार हरभजन सिंह को बनाया.

उस ने हरभजन की दोस्ती नरसिंहगढ़ की 18 साल की छात्रा मोनिका यादव से करा दी. कम उम्र में ही दुनियादारी में माहिर हो गई मोनिका ने हरभजन को अपना दीवाना बना लिया, जिस के चलते हरभजन उस का भजन करने लगा और आरती उतारने के लिए एक दिन उसे एक होटल के कमरे में ले गया.

मोनिका और उस की गुरुमाता आरती ने प्यार के इस पूजापाठ को कैमरे में कैद कर लिया ताकि सनद रहे और वक्त जरूरत काम आए. उधर मोनिका के गुदाज बदन और नईनई जवानी का रस चूस रहे हरभजन को पता ही नहीं चला कि सैक्स करते वक्त वह कैसा लगता है और कैसीकैसी हरकतें करता है.

यह सब मोनिका और आरती ने उसे चलचित्र के जरिए दिखा कर अपनी दक्षिणा, जिसे ब्लैकमेलिंग कहते हैं, मांगी तो वह सकपका उठा.  बेचारा साबित हो गया हरभजन 8 महीने ईमानदारी से पैसे देता रहा. लेकिन हद तब हो गई जब इन दोनों ने एक बार में ही 3 करोड़ रुपए की मांग कर डाली. इस भारीभरकम मांग से उस के सब्र का बांध टूट गया तो उस ने इंदौर के पलासिया थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी.

पुलिस को मामला इतना दिलचस्प लगा कि उस ने बिना हेलमेट वालों के चालान वगैरह बनाने जैसा अपना पसंदीदा काम एक तरफ रखते हुए तुरंत काररवाई शुरू कर दी.

ऐसे मौकों पर पुलिस जाने क्यों समझदार हो जाती है. उस ने प्लान बनाया और मोनिका व आरती को रकम की पहली किस्त 50 लाख रुपए लेने इंदौर बुलाया. ये दोनों इंदौर पहुंचीं तो विजय नगर इलाके में इन्हें यू आर अंडर अरेस्ट वाला फिल्मी डायलौग मारते हुए गिरफ्तार कर लिया.

2-2 श्वेताएं जिसे पुलिस कहानी का खत्म होना मान रही थी, दरअसल वह कहानियों की शुरुआत थी. पूछताछ में आरती ने बताया कि ब्लैकमेलिंग के इस खेल में और भी महिलाएं शामिल हैं, जिन में से 2 के एक ही नाम हैं यानी श्वेता जैन. पहली श्वेता जैन 39 साल की है. वह भाजपा में सक्रिय है. इस ने अपने हुस्नजाल में एक पूर्व सीएम को फंसाया, जिस ने उसे भोपाल के मीनाल रेजिडेंसी में एक फ्लैट दिलवाया था.

यह बुंदेलखंड, मालवा-निमाड़ के एक पूर्वमंत्री की भी करीबी है. इन्हीं संबंधों का फायदा उठा कर इस ने एक एनजीओ को फंडिंग भी कराई थी. इसे सागर के एक कलेक्टर के संग उन की पत्नी ने पकड़ा था. उस के पति का नाम विजय जैन है. जबकि दूसरी श्वेता जैन के पति का नाम स्वप्निल जैन है.

48 साल की यह श्वेता भोपाल की सब से महंगी टाउनशिप रिवेरा में रहती है. तलाकशुदा आरती ने बड़ी शराफत और पूरी ईमानदारी से बताया कि वह छतरपुर की रहने वाली है और वहां भी 10 लोगों को ब्लैकमेल कर चुकी है. यानी यह उस का फुलटाइम जौब है.

भोपाल पुलिस ने भी सड़क चलते वाहन चालकों को बख्शते हुए इन श्वेताओं को गिरफ्तार कर लिया. ये दोनों भी बड़ी शानोशौकत वाली निकलीं. सागर की रहने वाली श्वेता जैन के यहां से पुलिस ने 14 लाख 17 हजार रुपए बरामद किए.

यह श्वेता एक इलैक्ट्रिक कंपनी की भी मालकिन निकली. इस के पास से 2 महंगी कारें मर्सिडीज और औडी भी मिलीं. इस श्वेता ने सन 2013 में सागर विधानसभा से चुनाव लड़ने के लिए भाजपा से टिकट भी मांगा था. लेकिन भाजपा के ही एक बड़े नेता ने उस का टिकट कटवा दिया था. इस के बावजूद भी उस के भाजपा नेताओं से अच्छे और गहरे संबंध थे.

दूसरी श्वेता (स्वप्निल वाली) के पास से भी एक औडी कार मिली. यह भी पता चला कि वह मूलत: जयपुर की रहने वाली है और उस का पति पेशे से थेरैपिस्ट है, जिसे अकसर पब पार्टियों में देखा जाता है.

इस श्वेता ने एक पूर्व सांसद की सीडी बनवा कर 2 करोड़ रुपए वसूले थे. भाजपा के एक कद्दावर नेता ने तो ब्लैकमेलिंग पर चुनाव के पहले इसे दुबई भेज दिया था, जहां से वह 10 महीने बाद लौटी थी. फिलहाल 3 कलेक्टरों के तबादलों में इस की अहम भूमिका रही थी.

इन दोनों को भाजपा विधायक बृजेंद्र सिंह ने मकान किराए पर दिया था. इस के पहले ये एक दूसरे भाजपा विधायक दिलीप सिंह परिहार के मकान में किराए पर रहते थे. इस मकान में इन दिनों भोपाल की सांसद साध्वी प्रज्ञा भारती रह रही हैं.

पूरी छानबीन का सार यह रहा कि दोनों खूबसूरत श्वेताओं के पास बेशुमार दौलत और जायदाद है. साथ ही ऐशोआराम के तमाम सुखसाधन भी मौजूद हैं.

2-2 मास्टरमाइंड इतना होने के बाद और भी महिलाओं के नाम सामने आए, इन में से असली मास्टरमाइंड कौन है, यह तय होना अभी बाकी है. कुछ लोग सागर वाली श्वेता को ही मास्टरमाइंड  मान रहे हैं तो कुछ की नजर में असली सरगना बरखा भटनागर है.

बरखा अपने पहले पति को तलाक दे चुकी है और उस ने दूसरी शादी अमित सोनी से की है. अमित सोनी कभी कांगे्रस के आईटी सेल से जुड़ा था और सन 2015 में बरखा भी कांग्रेस में आ गई थी.

ये दोनों भी एक एनजीओ चलाते हैं जो एग्रीकल्चर से जुड़े प्रोजेक्ट लेता है. सन 2014 में बरखा का नाम देह व्यापार के एक मामले में आया था. तब से वह सक्रिय राजनीति से अलग हो गई थी. इसी दौरान उस की मुलाकात श्वेता जैन से हुई थी.

बरखा वक्तवक्त पर कई कांग्रेसी दिग्गजों के साथ अपने फोटो सोशल मीडिया पर शेयर करती रहती थी. वर्तमान में 2 मंत्रियों और एक पूर्व प्रदेश अध्यक्ष से इस के अच्छे संबंध हैं. अपनी पहुंच के चलते इस ने एनजीओ के लिए काफी डोनेशन भी लिया था. सागर वाली श्वेता को एक बार सागर में एक कलेक्टर साहब की पत्नी ने रंगेहाथों पकड़ा था.

नरसिंहगढ़ निवासी बीएससी में पढ़ रही मोनिका यादव को आरती ने गिरोह में शामिल किया था, जो जवान थी और जल्द ही अफसरों और नेताओं को अपने हुस्न जाल में फंसाने में माहिर हो गई थी. कई नेताओं के यहां भी उस का आनाजाना था. आरती ने ही इसे अपने साथ जोड़ा था.

इन पर नकाब क्यों जब राज खुलने शुरू हुए तो यह भी पता चला कि इन पांचों की तूती प्रशासनिक गलियारों में भी बोलती थी. इन के कहने पर तबादले होते थे, नियुक्तियां भी होती थीं और ठेके भी मिलते थे. ये 3 पूर्व मंत्रियों सहित 7 आईएएस अफसरों को ब्लैकमेल कर रही थीं, वह भी पूरी दिलेरी से.

हाल तो यह भी था कि इन के पकड़े जाने के बाद कई अफसर पुलिस हेड क्वार्टर फोन कर पुलिस अधिकारियों के सामने गिड़गिड़ा रहे थे कि उन का नाम सामने न आए. इन के मोबाइलों में कइयों की ब्लू फिल्में हैं.

लेकिन पुलिस उन के नाम उजागर नहीं कर रही है. आमतौर पर जैसा कि ऊपर बताया गया है कि ऐसे मामलों में पुलिस महिलाओं के नाम छिपाती है और पुरुषों के उजागर कर देती है. पर यह मामला ऐसा है जिस में महिलाओं के नाम और फोटो उजागर किए गए लेकिन उन महापुरुषों के नहीं, जिन की वजह से रायता फैला.

पुलिस इन सफेदपोशों के चेहरों पर क्यों नकाब ढके हुए है, यह बात भी उजागर है कि कथित आरोपी महिलाओं को उस ने गुनहगार मान कर उन की जन्म कुंडलियां मीडिया के जरिए बांच दीं, लेकिन अय्याश और रंगीनमिजाज नेताओं और अफसरों को वह बचा रही है.

जबकि जनता को पूरा हक है कि वह इन के बारे में जानें. ऐसा होगा, ऐसा लग नहीं रहा क्योंकि सरकार नहीं चाहती कि इन सफेदपोशों की बदनामी हो.

महज हरभजन द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर पर सारी काररवाई होना पुलिस की नीयत और मंशा को शक के कटघरे में खड़ी कर रही है. जिनजिन रसूखदारों के साथ इन के आपत्तिजनक फोटो व वीडियो मिले हैं, उन के नाम उजागर हों तो समझ आए कि वाकई ये ब्लैकमेलर हैं.      द्य

 

पति की गर्दन पर प्रेमी का वार

रविवार 14 जुलाई, 2019 का दिन था. दोपहर का समय था. जालौर के एसपी हिम्मत अभिलाष टाक को फोन पर सूचना मिली कि बोरटा-लेदरमेर ग्रेवल सड़क के पास वन विभाग की जमीन पर एक व्यक्ति का नग्न अवस्था में शव पड़ा है.

एसपी टाक ने तत्काल भीनमाल के डीएसपी हुकमाराम बिश्नोई को घटना से अवगत कराया और घटनास्थल पर जा कर काररवाई करने के निर्देश दिए. एसपी के निर्देश पर डीएसपी हुकमाराम बिश्नोई तत्काल घटनास्थल की ओर रवाना हो गए, साथ ही उन्होंने थाना रामसीन में भी सूचना दे दी. उस दिन थाना रामसीन के थानाप्रभारी छतरसिंह देवड़ा अवकाश पर थे. इसलिए सूचना मिलते ही मौजूदा थाना इंचार्ज साबिर मोहम्मद पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

घटनास्थल पर आसपास के गांव वालों की भीड़ जमा थी. वहां वन विभाग की खाई में एक आदमी का नग्न शव पड़ा था. आधा शव रेत में दफन था. उस का चेहरा कुचला हुआ था. शव से बदबू आ रही थी, जिस से लग रहा था कि उस की हत्या शायद कई दिन पहले की गई है.

वहां पड़ा शव सब से पहले एक चरवाहे ने देखा था. वह वहां सड़क किनारे बकरियां चरा रहा था. उसी चरवाहे ने यह खबर आसपास के लोगों को दी थी. कुछ लोग घटनास्थल पर पहुंचे और पुलिस को खबर कर दी.

मौके पर पहुंची पुलिस ने शव को खाई से बाहर निकाल कर शिनाख्त कराने की कोशिश की, मगर जमा भीड़ में से कोई भी मृतक की शिनाख्त नहीं कर सका. शव से करीब 20 मीटर की दूरी पर किसी चारपहिया वाहन के टायरों के निशान मिले. इस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि हत्यारे शव को किसी गाड़ी में ले कर आए और यहां डाल कर चले गए.

पुलिस ने घटनास्थल से साक्ष्य एकत्र किए. शव के पास ही खून से सनी सीमेंट की टूटी हुई ईंट भी मिली. लग रहा था कि उसी ईंट से उस के चेहरे को कुचला गया था. कुचलते समय वह ईंट भी टूट गई थी.

मौके की सारी काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए राजकीय चिकित्सालय की मोर्चरी भिजवा दिया. डाक्टरों की टीम ने उस का पोस्टमार्टम किया.

जब तक शव की शिनाख्त नहीं हो जाती, तब तक जांच आगे नहीं बढ़ सकती थी. शव की शिनाख्त के लिए पुलिस ने मृतक के फोटो वाट्सऐप पर शेयर कर दिए. साथ ही लाश के फोटो भीनमाल, जालौर और बोरटा में तमाम लोगों को दिखाए. लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका.

सोशल मीडिया पर मृतक का फोटो वायरल हो चुका था. जालौर के थाना सिटी कोतवाली में 2 दिन पहले कालेटी गांव के शैतानदान चारण नाम के एक शख्स ने अपने रिश्तेदार डूंगरदान चारण की गुमशुदगी दर्ज कराई थी.

कोतवाली प्रभारी को जब थाना रामसीन क्षेत्र में एक अज्ञात लाश मिलने की जानकारी मिली तो उन्होंने लाश से संबंधित बातों पर गौर किया. उस लाश का हुलिया लापता डूंगरदान चारण के हुलिए से मिलताजुलता था. कोतवाली प्रभारी बाघ सिंह ने डीएसपी भीनमाल हुकमाराम को सारी बातें बताईं.

मारा गया व्यक्ति डूंगरदान चारण था इस के बाद एसपी जालौर ने 2 पुलिस टीमों का गठन किया, इन में एक टीम भीनमाल थाना इंचार्ज साबिर मोहम्मद के नेतृत्व में गठित की गई, जिस में एएसआई रघुनाथ राम, हैडकांस्टेबल शहजाद खान, तेजाराम, संग्राम सिंह, कांस्टेबल विक्रम नैण, मदनलाल, ओमप्रकाश, रामलाल, भागीरथ राम, महिला कांस्टेबल ब्रह्मा शामिल थी.

दूसरी पुलिस टीम में रामसीन थाने के एएसआई विरधाराम, हैडकांस्टेबल प्रेम सिंह, नरेंद्र, कांस्टेबल पारसाराम, राकेश कुमार, गिरधारी लाल, कुंपाराम, मायंगाराम, गोविंद राम और महिला कांस्टेबल धोली, ममता आदि को शामिल किया गया.

डीएसपी हुकमाराम बिश्नोई दोनों पुलिस टीमों का निर्देशन कर रहे थे. जालौर के कोतवाली निरीक्षक बाघ सिंह ने उच्चाधिकारियों के आदेश पर डूंगरदान चारण की गुमशुदगी दर्ज कराने वाले उस के रिश्तेदार शैतानदान को राजदीप चिकित्सालय की मोर्चरी में रखी लाश दिखाई तो उस ने उस की शिनाख्त अपने रिश्तेदार डूंगरदान चारण के रूप में कर दी.

मृतक की शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने उस के परिजनों से संपर्क किया तो इस मामले में अहम जानकारी मिली. मृतक की पत्नी रसाल कंवर ने पुलिस को बताया कि उस के पति डूंगरदान 12 जुलाई, 2019 को जालौर के सरकारी अस्पताल में दवा लेने गए थे.

वहां से घर लौटने के बाद पता नहीं वे कहां लापता हो गए, जिस की थाने में सूचना भी दर्ज करा दी थी. रसाल कंवर ने पुलिस को अस्पताल की परची भी दिखाई. पुलिस टीम ने अस्पताल की परची के आधार पर जांच की.

पुलिस ने राजकीय चिकित्सालय जालौर के 12 जुलाई, 2019 के सीसीटीवी फुटेज की जांच की तो पता चला कि डूंगरदान को काले रंग की बोलेरो आरजे14यू बी7612 में अस्पताल तक लाया गया था.

उस समय डूंगरदान के साथ उस की पत्नी रसाल कंवर के अलावा 2 व्यक्ति भी फुटेज में दिखे. उन दोनों की पहचान मोहन सिंह और मांगीलाल निवासी भीनमाल के रूप में हुई. पुलिस जांच सही दिशा में आगे बढ़ रही थी.

पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज जांच के बाद गांव के विभिन्न लोगों से पूछताछ की तो सामने आया कि मृतक डूंगरदान चारण की पत्नी रसाल कंवर से मोहन सिंह राव के अवैध संबंध थे. इस जानकारी के बाद पुलिस ने रसाल कंवर और मोहन सिंह को थाने बुला कर सख्ती से पूछताछ की.

मांगीलाल फरार हो गया था. रसाल कंवर और मोहन सिंह राव ने आसानी से डूंगरदान की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया.

केस का खुलासा होने की जानकारी मिलने पर पुलिस के उच्चाधिकारी भी थाने पहुंच गए. उच्चाधिकारियों के सामने आरोपियों से पूछताछ कर डूंगरदान हत्याकांड से परदा उठ गया.

पुलिस ने 16 जुलाई, 2019 को दोनों आरोपियों मृतक की पत्नी रसाल कंवर एवं उस के प्रेमी मोहन सिंह राव को कोर्ट में पेश कर 2 दिन के रिमांड पर ले लिया. रिमांड के दौरान उन से विस्तार से पूछताछ की गई तो डूंगरदान चारण की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस तरह थी—

मृतक डूंगरदान चारण मूलरूप से राजस्थान के जालौर जिले के बागौड़ा थानान्तर्गत गांव कालेटी का निवासी था. उस के पास खेती की थोड़ी सी जमीन थी. वह उस जमीन पर खेती के अलावा दूसरी जगह मेहनतमजदूरी करता था. उस की शादी करीब एक दशक पहले जालौर की ही रसाल कंवर से हुई थी.

करीब एक साल बाद रसाल कंवर एक बेटे की मां बनी तो परिवार में खुशियां बढ़ गईं. बाद में वह एक और बेटी की मां बन गई. जब डूंगरदान के बच्चे बड़े होने लगे तो वह उन के भविष्य को ले कर चिंतित रहने लगा.

गांव में अच्छी पढ़ाई की व्यवस्था नहीं थी, लिहाजा डूंगरदान अपने बीवीबच्चों के साथ गांव कालेटी छोड़ कर भीनमाल चला गया और वहां लक्ष्मीमाता मंदिर के पास किराए का कमरा ले कर रहने लगा. भीनमाल कस्बा है. वहां डूंगरदान को मजदूरी भी मिल जाती थी. जबकि गांव में हफ्तेहफ्ते तक उसे मजदूरी नहीं मिलती थी.

आशिकी के लिए दोस्ती डूंगरदान के पड़ोस में ही मोहन सिंह राव का आनाजाना था. मोहन सिंह राव पुराना भीनमाल के नरता रोड पर रहता था. वह अपराधी प्रवृत्ति का रसिकमिजाज व्यक्ति था. उस की नजर रसाल कंवर पर पड़ी तो वह उस का दीवाना हो गया. मोहन सिंह ने इस के लिए ही डूंगरदान से दोस्ती की थी. इस के बाद वह उस के घर आनेजाने लगा.

मोहन सिंह रसाल कंवर से भी बड़ी चिकनीचुपड़ी बातें करता था. जब डूंगरदान मजदूरी करने चला जाता और उस के बच्चे स्कूल तो घर में रसाल कंवर अकेली रह जाती. ऐसे मौके पर मोहन सिंह उस के यहां आने लगा. मीठीमीठी बातों में रसाल को भी रस आने लगा. मोहन सिंह अच्छीखासी कदकाठी का युवक था.रसाल और मोहन के बीच धीरेधीरे नजदीकियां बढ़ने लगीं.

थोड़े दिनों के बाद दोनों के बीच अवैध संबंध कायम हो गए. इस के बाद रसाल कंवर उस की दीवानी हो गई. डूंगरदान हर रोज सुबह मजदूरी पर निकल जाता तो फिर शाम होने पर ही घर लौटता था.

रसाल और मोहन पूरे दिन रासलीला में लगे रहते. डूंगरदान की पीठ पीछे उस की ब्याहता कुलटा बन गई थी. दिन भर का साथ उन्हें कम लगने लगा था. मोहन चाहता था कि रसाल कंवर रात में भी उसी के साथ रहे, मगर यह संभव नहीं था. क्योंकि रात में पति घर पर होता था.

ऐसे में एक दिन मोहन सिंह ने रसाल कंवर से कहा, ‘‘रसाल, जीवन भर तुम्हारा साथ तो निभाऊंगा ही, साथ ही एक प्लौट भी तुम्हें ले कर दूंगा. लेकिन मैं चाहता हूं कि तुम्हारे बदन को अब मेरे सिवा और कोई न छुए. तुम्हारे तनमन पर अब सिर्फ मेरा अधिकार है.’’

‘‘मैं हर पल तुम्हारा साथ निभाऊंगी.’’ रसाल कंवर ने प्रेमी की हां में हां मिलाते हुए कहा.

रसाल के दिलोदिमाग में यह बात गहराई तक उतर गई थी कि मोहन उसे बहुत चाहता है. वह उस पर जान छिड़कता है. रसाल भी पति को दरकिनार कर पूरी तरह से मोहन के रंग में रंग गई. इसलिए दोनों ने डूंगरदान को रास्ते से हटाने का मन बना लिया. लेकिन इस से पहले ही डूंगरदान को पता चल गया कि उस की गैरमौजूदगी में मोहन सिंह दिन भर उस के घर में पत्नी के पास बैठा रहता है.

यह सुनते ही उस का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. गुस्से से भरा डूंगरदान घर आ कर चिल्ला कर पत्नी से बोला, ‘‘मेरी गैरमौजूदगी में मोहन यहां क्यों आता है, घंटों तक यहां क्या करता है? बताओ, तुम से उस का क्या संबंध है?’’ कहते हुए उस ने पत्नी का गला पकड़ लिया.

रसाल मिमियाते हुए बोली, ‘‘वह तुम्हारा दोस्त है और तुम्हें ही पूछने आता है. मेरा उस से कोई रिश्ता नहीं है. जरूर किसी ने तुम्हारे कान भरे हैं. हमारी गृहस्थी में कोई आग लगाना चाहता है. तुम्हारी कसम खा कर कहती हूं कि मोहन सिंह से मैं कह दूंगी कि वह अब घर कभी न आए.’’

पत्नी की यह बात सुन कर डूंगरदान को लगा कि शायद रसाल सच कह रही है. कोई जानबूझ कर उन की गृहस्थी तोड़ना चाहता है. डूंगरदान शरीफ व्यक्ति था. वह बीवी पर विश्वास कर बैठा. रसाल कंवर ने अपने प्रेमी मोहन को भी सचेत कर दिया कि किसी ने उस के पति को उस के बारे में बता दिया है. इसलिए अब सावधान रहना जरूरी है.

उधर डूंगरदान के मन में पत्नी को ले कर शक उत्पन्न तो हो ही गया था. इसलिए वह वक्तबेवक्त घर आने लगा. एक रोज डूंगरदान मजदूरी पर गया और 2 घंटे बाद घर लौट आया. घर का दरवाजा बंद था. खटखटाने पर थोड़ी देर बाद उस की पत्नी रसाल कंवर ने दरवाजा खोला. पति को अचानक सामने देख कर उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं.

डूंगरदान की नजर कमरे में अंदर बैठे मोहन सिंह पर पड़ी तो वह आगबबूला हो गया. उस ने मोहन सिंह पर गालियों की बौछार कर दी. मोहन सिंह गालियां सुन कर वहां से चला गया. इस के बाद डूंगरदान ने पत्नी की लातघूंसों से खूब पिटाई की. रसाल लाख कहती रही कि मोहन सिंह 5 मिनट पहले ही आया था. मगर पति ने उस की एक न सुनी.

पत्नी के पैर बहक चुके थे. डूंगरदान सोचता था कि गलत रास्ते से पत्नी को वापस कैसे लौटाया जाए. वह इसी चिंता में रहने लगा. उस का किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था. वह चिड़चिड़ा भी हो गया था. बातबात पर उस का पत्नी से झगड़ा हो जाता था.

आखिर, रसाल कंवर पति से तंग आ गई. यह दुख उस ने अपने प्रेमी के सामने जाहिर कर दिया. तब दोनों ने तय कर लिया कि डूंगरदान को जितनी जल्दी हो सके, निपटा दिया जाए.

रसाल कंवर पति के खून से अपने हाथ रंगने को तैयार हो गई. मोहन सिंह ने योजना में अपने दोस्त मांगीलाल को भी शामिल कर लिया. मांगीलाल भीनमाल में ही रहता था.

साजिश के तहत रसाल और मोहन सिंह 12 जुलाई, 2019 को डूंगरदान को उपचार के बहाने बोलेरो गाड़ी में जालौर के राजकीय चिकित्सालय ले गए. मांगीलाल भी साथ था. वहां उस के नाम की परची कटाई. डाक्टर से चैकअप करवाया और वापस भीनमाल रवाना हो गए. रास्ते में मौका देख कर रसाल कंवर और मोहन सिंह ने डूंगरदान को मारपीट कर अधमरा कर दिया. फिर उस का गला दबा कर उसे मार डाला.

इस के बाद डूंगरदान की लाश को ठिकाने लगाने के लिए बोलेरो में डाल कर बोरटा से लेदरमेर जाने वाले सुनसान कच्चे रास्ते पर ले गए, जिस के बाद डूंगरदान के शरीर पर पहने हुए कपड़े पैंटशर्ट उतार कर नग्न लाश वन विभाग की खाली पड़ी जमीन पर डाल कर रेत से दबा दी. उस के बाद वे भीनमाल लौट गए.

भीनमाल में रसाल कंवर ने आसपास के लोगों से कह दिया कि उस का पति जालौर अस्पताल चैकअप कराने गया था. मगर अब उस का कोई पता नहीं चल रहा. तब डूंगरदान की गुमशुदगी उस के रिश्तेदार शैतानदान चारण ने जालौर सिटी कोतवाली में दर्ज करा दी.

पुलिस पूछताछ में पता चला कि आरोपी मोहन सिंह आपराधिक प्रवृत्ति का है. उस ने अपने साले की बीवी की हत्या की थी. इन दिनों वह जमानत पर था. मोहन सिंह शादीशुदा था, मगर बीवी मायके में ही रहती थी. भीनमाल निवासी मांगीलाल उस का मित्र था. वारदात के बाद मांगीलाल फरार हो गया था.

थाना रामसीन के इंचार्ज छतरसिंह देवड़ा अवकाश से ड्यूटी लौट आए थे. उन्होंने भी रिमांड पर चल रहे रसाल कंवर और मोहन सिंह राव से पूछताछ की.

रिमांड अवधि समाप्त होने पर पुलिस ने 19 जुलाई, 2019 को दोनों आरोपियों रसाल कंवर और मोहन सिंह को फिर से कोर्ट में पेश कर दोबारा 2 दिन के रिमांड पर लिया और उन से पूछताछ कर कई सबूत जुटाए. उन की निशानदेही पर मृतक के कपड़े, वारदात में प्रयुक्त बोलेरो गाड़ी नंबर आरजे14यू बी7612 बरामद की गई. मृतक डूंगरदान के कपडे़ व चप्पलें रामसीन रोड बीएड कालेज के पास रेल पटरी के पास से बरामद कर ली गईं.

पूछताछ पूरी होने पर दोनों आरोपियों को 21 जुलाई, 2019 को कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. पुलिस तीसरे आरोपी मांगीलाल माली को तलाश कर रही है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पति का टिफिन, पत्नी का हथियार

मूलरूप से उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के रहने वाले धर्मवीर सिंह की नौकरी जब दिल्ली पुलिस में लगी तो वह दिल्ली  में ही रहने लगे थे. बाद में उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी क्षेत्र की हरित विहार कालोनी में उन्होंने एक आलीशान मकान बना लिया. यहीं पर

रहते हुए वह 3 बच्चों  के पिता बने.  राजीव वर्मा उन के तीनों बच्चों  में सब से बड़ा बेटा था, उस से छोटा उपेंद्र और फिर इकलौती बेटी मीनाक्षी थी. तीनों बच्चों को पढ़ालिखा कर वह उन की शादी कर चुके थे.

धर्मवीर सिंह भी 5 साल पहले दिल्ली  पुलिस से सब इंसपेक्टर पद से सेवानिवृत्तहो चुके थे. रिटायर होने के बाद उन्होंने बुराड़ी क्षेत्र में ही प्रोपर्टी डीलिंग का काम शुरू कर दिया था. छोटा बेटा उपेंद्र दिल्ली की आजादपुर मंडी में आढ़त का कारोबार करता है. जबकि बड़ा बेटा राजीव वर्मा एनसीआर के जानेमाने ओएसिस बिल्डर के यहां मार्केटिंग मैनेजर की नौकरी करता था.

राजीव ने मार्केटिंग का कोई कोर्स तो नहीं किया था लेकिन ग्रैजुएशन करने के बाद उस ने गाजियाबाद के कई बिल्डरों के यहां प्रोडक्शन से ले कर मार्केटिंग तक का काम किया था.

कई कंपनियों में तजुर्बा लेने के बाद पिछले कई साल से ओएसिस बिल्डर कंपनी में काम कर रहा था. अपनी मेहनत और तजुर्बे के कारण राजीव मार्केटिंग मैनेजर की पोस्ट तक पहुंच गया था.

राजीव वर्मा (38) की जिंदगी बेहद खुशगवार गुजर रही थी. परिवार में खूबसूरत पत्नी थी जिस का नाम था शिखा (34) और उन का एक बेटा था आकाश जिस की उम्र 14 साल थी. आकाश बुराड़ी के ही एक स्कूल में 9वीं कक्षा में पढ़ रहा था.

राजीव और शिखा ने करीब 16 साल पहले प्रेम विवाह किया था. ये उन दिनों की बात है जब राजीव गाजियाबाद में एक रियल एस्टेट कंपनी के औफिस में मार्केटिंग एग्जीक्यूटिव की नौकरी करता था. उन्हीं दिनों उस की मुलाकात शिखा से हुई थी.

शिखा मूल रूप से मेरठ के रहने वाले एक ब्राह्मण परिवार की लड़की थी. उस के पिता की मौत हो चुकी थी. 2 भाइयों के बीच वह इकलौती बहन थी.  मेरठ में उस के परिवार का नामचीन मिष्ठान भंडार है, जिसे शिखा के भाई संभालते हैं.

शिखा अपने मामा के पास रह कर गाजियाबाद के एक कालेज से ग्रैजुएशन की पढ़ाई कर रही थी. एक दिन किसी दोस्त के परिवार में शादी समारोह के लिए प्रगति मैदान के विवाह मंडप में गई थी. संयोग से वहीं पर उस की मुलाकात राजीव से हुई.

राजीव आकर्षक व्यक्तित्व का युवक था जबकि छरहरे बदन और तीखे नयन नख्शके कारण शिखा भी उस वक्त यौवन के ऐसे उभार पर थी कि पहली नजर में कोई देख ले तो दीवाना हो जाए. पहली ही मुलाकात में दोनों ने एकदूसरे को पसंद कर लिया. फोन नंबर का लेनदेन हो गया और इस के बाद अकसर फोन पर बातें होने लगीं.

जल्दी ही बात मुलाकातों तक पहुंच गई. यही मुलाकातें बाद में प्यार में बदल गई और दोनों का प्यार इस मुकाम पर पहुंच गया कि राजीव और शिखा ने शादी करने का फैसला कर लिया. लेकिन एक परेशानी थी कि दोनों की जाति अलग थी. शिखा एक रूढि़वादी ब्राह्मण परिवार की लड़की थी. इसलिए दोनों ने परिवार वालों को बताए बिना पहले आर्य समाज मंदिर में शादी कर ली उस के बाद उन्होंने परिवार वालों को शादी के बारे में बताया.

आमतौर पर अगर प्रेम विवाह में लड़का या लड़की किसी नीची जाति के न हों तो थोडे़बहुत विरोध के बाद परिवार वाले ऐसे शादी के बंधन को स्वीकार कर लेते हैं. परिजनों और शिखा की शादी को भी दोनों के परिवार ने थोडे़ विरोध के बाद मान्यता दे दी. राजीव अच्छा कमाता था, खूबसूरत था, इधर शिखा भी सुंदर थी और अच्छी संपन्न परिवार की लड़की थी, लिहाजा सब कुछ ठीक हो गया.

अचानक आ गई मुसीबत  शिखा राजीव जैसे हैंडसम पति को पा कर खुश थी. बेटा होने के बाद तो  उस की खुशियों में चारचांद लग गए. ऐसे ही हंसीखुशी से उन की जिंदगी बीत रही थी कि अचानक एक ऐसा हादसा हुआ कि इस परिवार की खुशियों को जैसे ग्रहण लग गया.

राजीव एक बड़ी कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर था इसलिए अब उस की जिम्मेदारियां भी बढ़ गई थीं. उस की कंपनी का कार्पोरेट औफिस नोएडा के सेक्टर 2 में है लेकिन ग्रेटर नोएडा में 2 अलगअलग साइटों पर उस की कंपनी के प्रोजेक्ट का काम चल रहा था. दोनों साइटों पर ही मार्केटिंग का काम राजीव वर्मा ने संभाल रखा था.

वह कभी औद्योगिक क्षेत्र साइट-सी तिलपता के पास 130 मीटर रोड के किनारे बने ओएसिस वेनेसिया हाइट्स वाली साइट के दफ्तर जाता तो कभी एक्सप्रैस वे पर बन रहे प्रोजेक्ट वाली साइट पर.

23 जुलाई, 2019 की दोपहर करीब साढे़ 12  बजे का वक्त था. राजीव वर्मा अपनी सफेद रंग की क्रीटा कार में सवार हो कर कंपनी की साइट के लिए निकला दफ्तर के बाहर बनी पार्किंग में गाड़ी खड़ी कर के दरवाजा खोल कर वह कार से बाहर निकला ही था कि तभी पार्किंग के समीप एक मोटरसाइकिल आ कर रुकी. बाइक पर 2 लोग थे. उन में से एक राजीव के नजदीक पहुंच गया और उस ने राजीव पर गोलियां बरसानी शुरू की दीं. जो युवक गोली चला रहा उस ने अपने मुंह पर रूमाल बांधा हुआ था, जबकि बाइक पर बैठा युवक हैलमेट लगाए हुए था.

एक के बाद एक ताबड़तोड़ 5 गोलियां चलीं जिन में से 4 गोलियां राजीव को जबकि एक गोली कार पर जा कर लगी. सब कुछ इतनी जल्दी हुआ था कि किसी को कुछ समझ नहीं आया.

साइट के गेट पर बने औफिस में दरवाजे के भीतर शुभम और योगपाल नाम के 2 कर्मचारी खडे़ थे उन्होंने गोलियां चलती देखीं तो बाहर निकले और 2 हमलावरों को हाथ में पिस्तौल लिए देख वे उन्हें पकड़ने के लिए आगे बढ़े तो हमलावारों ने पिस्तौल का रुख उन की ओर कर धमकी दी कि अगर कोई आगे बढ़ा तो वे उसे भी गोली मार देंगे.

लिहाजा दोनों कर्मचारी वहीं खड़े हो कर शोर मचाने लगे. तब तक गोलियां लगने के बाद राजीव खून से लथपथ लहरा कर जमीन पर गिर चुका था.

दोनों बदमाशों ने जब देखा कि राजीव खून से लथपथ हो कर जमीन पर गिर चुका है और जल्दी भीड़ एकत्र हो सकती है तो उन्होंने वहां से मोटरसाइकिल दौड़ा दी. चंद मिनटों में ही हमलावर वारदात को अंजाम दे कर आंखों से ओझल हो गए.

शुभम और योगपाल उन के हाथ में थमी पिस्तौल के कारण हाथ मलते रह गए. उन के फरार होते ही दोनों ने चीखपुकार मचा कर साइट पर काम करने वाले कुछ दूसरे कर्मचारियों को एकत्र किया.

कुछ लोगों ने खून से लथपथ पडे़ राजीव कुमार को उन्हीं की गाड़ी में डाला, 2-3 लोग गाड़ी में और सवार हुए और तत्काल उसे ग्रेटर नोएडा के ही कैलाश अस्पताल ले गए. लेकिन उस की स्थिति ऐसी नहीं थी वहां उपचार हो पाता इसलिए डाक्टर ने राजीव को नोएडा वाले कैलाश अस्पताल में रेफर कर दिया गया. इस दौरान योगपाल नाम के कर्मचारी ने 100 नंबर पर काल कर के इस घटना की सूचना पुलिस को दे दी थी.

चूंकि जिस जगह वारदात हुई थी वह इलाका सूरजपुर कोतवाली के अंतर्गत आता है. पीसीआर की गाड़ी चंद मिनटों में ही घटनास्थल पर पहुंच गई. पीसीआर को सारी घटना की जानकारी मिली तो उन्होंने आगे की काररवाई के लिए कोतवाली सूरजपूर को इस घटना की इत्तला दे दी.

सूचना मिलते ही सूरजपुर कोतवाली के एसएचओ मुनीष प्रताप सिंह एसएसआई दिलीप सिंह और एसआई विकास को ले कर घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए. घटनास्थल पर पहुंचने के बाद जब ये पता चला कि हमले में घायल राजीव कुमार को नोएडा के कैलाश अस्पताल ले जाया गया है तो पुलिस टीम भी कैलाश अस्पताल पहुंच गई.

पुलिस जुट गई जांच में  वारदात की सूचना मिलने के बाद क्षेत्राधिकारी तनु उपाध्याय, एसपी देहात रणविजय सिंह और एसएसपी वैभव कृष्ण भी कैलाश अस्पताल पहुंच गए.

ओएसिस बिल्डर कंपनी की तरफ से इस वारदात की जानकारी राजीव कुमार के परिजनों को भी दे दी गई थी. खबर पा कर राजीव के पिता धर्मवीर सिंह, भाई उपेंद्र , पत्नी शिखा समेत अन्य परिजन भी अस्पताल पहुंच गए. चिकित्सकों ने बताया कि राजीव कुमार को 4 गोलियां लगी हैं. उन की जान तो बच जाएगी लेकिन खून ज्यादा बहने के कारण उन के शरीर में फंसी चारों गोलियों को निकालने में वक्त लगेगा.

इस वारदात को सब से पहले कंपनी के 2 कर्मचारियों योगपाल और शुभम ने देखा था. लिहाजा सब से पहले पुलिस ने उन से ही पूछताछ कर घटना की जानकारी ली. उन से पूछताछ के बाद राजीव के परिजनों से पूछताछ का सिलसिला शुरू हुआ. जिस के पास जो भी जानकारी थी सबने पुलिस को दे दी.

लेकिन न तो कंपनी का कोई कर्मचारी और न ही कोई परिजन ये बता सके कि राजीव पर ये हमला किसने किया अथवा जान लेने की कोशिश किसने की. परिजन ये भी नहीं बता सके कि राजीव की किसी से कोई रंजिश थी. पुलिस के आला अधिकारियों ने अस्पताल के बाद घटनास्थल का भी निरीक्षण किया.

बिल्डर और वहां काम करने वाले दूसरे कर्मचारियों से भी पूछताछ की लेकिन कोई भी घटना के पीछे के कारणों या फिर राजीव की किसी से रंजिश के बारे में जानकारी नहीं दे पाया. इंसपेक्टर मुनीष प्रताप सिंह को अब तक की छानबीन से इस बात का आभास जरूर हो गया था कि बदमाशों ने जिस तरीके से घटना को अंजाम दिया, उस से लगता था कि वे पेशेवर हैं.

उन्हें ये भी आशंका लग रही थी कि हो सकता है वारदात को अंजाम दिलाने के लिए भाडे़ के बदमाशों का इस्तेमाल किया गया हो. क्योंकि बदमाशों ने अपने चेहरे पूरी तरह ढक रखे थे और उन्हें राजीव के साइट पर पहुंचने की सटीक जानकारी थी, इसलिए वे शायद पहले ही बाइक से आ कर वहां खड़े हो गए होंगे.

ब्लाइंड मर्डर का नहीं मिला सुराग  मुनीष प्रताप ने बिल्डर की साइट के आसपास के लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि बदमाश शायद पहले से ही कुछ दूरी पर घात लगा कर राजीव के आने का इंतजार कर रहे थे. तभी तो राजीव के कार से उतरते ही उस पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई थीं. राजीव जब गाड़ी से उतरा तो उस के एक हाथ में मोबाइल और दूसरे में लंच बौक्स का बैग था.

एसएचओ मुनीष प्रताप ने मृतक राजीव के भाई उपेंद्र की शिकायत पर अज्ञात बदमाशों के खिलाफ भादंस की धारा हत्या के प्रयास की धारा 307 में मुकदमा दर्ज कर लिया. इस की विवेचना की जिम्मेदारी एसएसआई दिलीप सिंह को सौंप दी गई.

चूंकि केस पूरी तरह ब्लाइंड था, न तो परिजनों ने और न ही राजीव के औफिस वालों ने किसी पर शक जाहिर किया था इसलिए मामले का खुलासा करने के लिए एसएचओ मुनीष प्रताप सिंह ने 3 टीमों का गठन कर दिया.

एक टीम की अगुवाई खुद वे कर रहे थे जिस में उन्होंने एसआई विकास और हैडकांस्टेबल विनय को शामिल किया. दूसरी टीम में जांच अधिकारी एसएसआई दिलीप सिंह के साथ हैडकांस्टेबल साहब सिंह और सतीश शर्मा को रखा था. जबकि महिला एसआई सरिता सिंह को सर्विलांस टीम के कांस्टेबल नीरज के साथ राजीव वर्मा के मोबाइल की सीडीआर निकालकर इसे खंगालने के काम पर लगाया गया.

इस दौरान चश्मदीदों से पूछताछ करने पर पता चला था कि हमले के दौरान राजीव कुमार ने गोली चलाने वाले बदमाश से जान बख्शने की गुहार लगाते हुए कहा था ‘अरे भाई मुझे क्यों मार रहे हो, लगता है तुम को कोई गलतफहमी हो गई है. जिसे आप मारना चाहते हो वह मैं नहीं हूं.’

लेकिन इस के बावजूद बदमाश नहीं रुके और उन पर 3 गोलियां और दागी थीं. ये पता चलने के बाद एसएचओ मुनीष प्रताप को लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि बदमाशों का निशाना कोई और हो और गलती से उन्होंने राजीव को गोली मार दी हो. इस शक की एक खास वजह ये थी कि राजीव के पास सफेद रंग की क्रेटा कार थी और उन के बिल्डर मालिक के पास भी उसी रंग की क्रेटा कार थी.

इसीलिए इंसपेक्टर मुनीष को लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी ने कारोबारी रंजिश, लेनदेन के विवाद अथवा किसी दूसरे कारण से बिल्डर को मारने के लिए बदमाश भेजे हों और कार एक जैसी होने के कारण बिल्डर की जगह हमलावरों ने राजीव को निशाना बना लिया हो.

अपनी शंका का निवारण करने के लिए इंसपेक्टर मुनीष प्रताप ने बिल्डर को बुला कर कई बार उस से कुरेदकुरेद कर पूछताछ की. लेकिन उन्हें कहीं से भी ये जानकारी नहीं मिली कि ये मामला पहचान की गफलत में हुए हमले से जुड़ा है.

पुलिस को जांच में ये भी पता चला था कि बदमाशों ने जिस जगह वारदात को अंजाम दिया है, वहां सीसीटीवी कैमरा तो लगा था लेकिन वो कैमरा खराब था. अगर कैमरा काम कर रहा होता तो हमलावरों की पहचान करना आसान हो जाता.

इस जानकारी के बाद पुलिस को शंका हुई कि कहीं ऐसा तो नहीं कि हमले में कंपनी का ही कोई आदमी शामिल हो और उसी ने सीसीटीवी कैमरा घटना से कुछ समय पहले बंद कर दिया हो. जांच पड़ताल की गई तो साफ हो गया कि कैमरा काफी दिनों से बंद था.

लेकिन एक बात साफ लग रही थी कि बदमाशों को इस बात की पक्की जानकारी थी कि राजीव वर्मा किस समय साइट पर आते हैं. ऐसे में मुनीष कुमार को ये भी शक हुआ कि कहीं बदमाश दिल्ली से ही तो राजीव की कार का पीछा नहीं कर रहे थे. हो सकता है उन्हें रोड पर वारदात करने का मौका न मिला हो. जिस के चलते उन्होंने साइट पर पहुंच कर कार से उतरते समय घटना को अंजाम दिया हो.

लिहाजा मुनीष प्रताप ने उसी दिन दिल्ली  से बिल्डर साइट की तरफ आने वाले कई रास्तों पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी खंगालवाई, लेकिन इस में कहीं से भी संदिग्ध  हमलावरों को पकड़ने का कोई सुराग नहीं लग सका.

कई दिन गुजर चुके थे. सीओ तनु उपाध्याय लगातार हमले की इस घटना की जांच पर नजर रख रही थीं. इस मामले में राजीव की किसी से रंजिश या लेनदेन के विवाद की कोई जानकारी सामने नहीं आई थी. इस के बाद पुलिस ने दूसरे बिंदुओं पर भी जांच शुरू कर दी.

पुलिस ने तफ्तीश की बदली थ्यौरी  आमतौर पर हत्या या हत्या के प्रयास की किसी वारदात में अगर पुरानी रंजिश या विवाद का कोई कारण सामने नहीं आता है तो पुलिस पुरानी पद्धति से तफ्तीश शुरू करती है. यानि जर, जोरू और जमीन की थ्यौरी को जांच का आधार बनाती है. मुनीष प्रताप ने भी इसी थ्यौरी से जांच को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया.

इंसपेक्टर मुनीष  महिला एसआई सरिता मलिक व कुछ दूसरे स्टाफ को ले कर खुद ही पड़ताल करने के लिए राजीव वर्मा के बुराड़ी स्थित घर पहुंच गए.

इंसपेक्टर मुनीष ने राजीव के परिवार के प्रत्येक सदस्य के अलावा आसपड़ोस के लोगों से भी कुरेदकुरेद कर पूछताछ की. इस पूछताछ में कई महत्त्वपूर्ण जानकारी हाथ लग गई. दरअसल जिस दिन राजीव पर हमला हुआ, उस से अगले दिन उस के अपने इकलौते बेटे का बर्थडे मनाने के लिए पहले से ही एक बडे़ समारोह की योजना बनाई हुई थी.

होना तो ये चाहिए था कि राजीव के अस्पताल में होने के कारण इस समारोह को टाल देना चाहिए था. लेकिन राजीव की पत्नी  शिखा ने पति के अस्पताल में होने के बावजूद अगले दिन बड़े जोश के साथ धूमधाम से बेटे का जन्मदिन मनाया था. ये जानकारी काफी हैरान करने वाली थी.

इस के साथ ही ये भी पता चला कि एक डेढ़ साल से राजीव के अपनी पत्नी शिखा से संबध ठीक नहीं थे. दोनों के बीच अकसर झगड़ा होता था. हालांकि राजीव के परिजनों ने ऐसी किसी जानकारी से इनकार किया लेकिन आसपड़ोस के लोगों ने बताया कि राजीव वर्मा शिखा से सीधे मुंह बात नहीं करता था और उसे अकसर डांटता रहता था.

इंसपेक्टर मुनीष प्रताप को लगा कि हो न हो इसी झगडे़ में हमले की वजह छिपी हो सकती है. पुलिस टीम ने तब तक राजीव के फोन की काल डिटेल्स निकाल कर उस में उन तमाम लोगों से पूछताछ कर चुकी थी जो नंबर संदिग्ध लगे. लेकिन इस पूरी कवायद में कोई अहम जानकारी नहीं मिली.

लिहाजा इंसपेक्टर मुनीष प्रताप ने राजीव की पत्नी शिखा के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाल कर उस की छानबीन शुरू करा दी क्योंकि उन्हें  लग रहा था कि पति से झगडे़ की वजह से भी शिखा ऐसी किसी साजिश को अंजाम दे सकती है.

शिखा के मोबाइल पर आनेजाने वाले नंबरों की जांचपड़ताल शुरू हुई तो घर परिवार वालों के अलावा केवल एक ही ऐसा अंजान नंबर था जिस पर अकसर बात होती थी और वाट्सएप मैसेज और किए जाते थे.

जब जानकारी ली गई तो पता चला कि यह नंबर बुराड़ी में ही चंदन विहार कालोनी के रहने वाले रोहित कश्यप का है. हालांकि काल डिटेल्स से कोई शक करने वाली बात सामने नहीं आई थी. ये नंबर राजीव वर्मा की काल डिटेल्स में भी सामने आया था तभी पता चला था कि राजीव वर्मा और उस की पत्नी शिखा रोहित कश्यप के जिम में वर्क आउट करने जाते थे. राजीव सुबह जाता था जबकि शिखा उस वक्त जाती थी. जब भी उसे वक्त मिलता था.

यानी एक तरह से रोहित कश्यप वो शख्स था जो पतिपत्नी की जिंदगी में कामन था. दोनों ही उस के जिम में वर्क आउट करने जाते थे. इसलिए स्वाभाविक था कि वे दोनों ही उस से किन्हीं कारणों से फोन पर बात करते होंगे. लेकिन शिखा उस से वाट्सएप चैट और काल करती थी. ये सवाल गौर करने लायक था.

शिखा को ले कर इंसपेक्टर मुनीष के मन में संदेह का कीड़ा तो पहले ही कुलबुला रहा था. इसलिए उन्होंने रोहित के बारे में विस्तार से जानने के लिए उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवा कर छानबीन शुरू कर दी. बस छानबीन होते ही महत्त्वपूर्ण क्लू पुलिस के हाथ लग गया.

दरअसल जिस दिन राजीव वर्मा पर हमला हुआ उस दिन और उस से एक दिन पहले रोहित कश्यप के मोबाइल की लोकेशन उसी जगह मिली थी जहां राजीव पर हमला हुआ. ये जानकारी महज संयोग नहीं हो सकती थी. दिलचस्प बात ये थी कि वारदात से पहले और बाद में शिखा के फोन से रोहित कश्यप के फोन पर वाट्सएप काल भी की गई थी. बस इंसपेक्टर मुनीष के लिए इतना सबूत काफी था.

प्रेमीप्रेमिका हुए गिरफ्तार  उन्होंने 11 अगस्त, 2019 को एक विशेष टीम का गठन किया. एसआई सरिता मलिक शिखा को उस के घर से और एसएसआई दिलीप सिंह ने अपनी टीम के साथ रोहित कश्यप को उस के जिम से हिरासत में ले लिया. दोनों को सूरजपुर थाने लाया गया. सीओ तनु उपाध्याय के सामने दोनों से सारे सबूत दिखा कर कड़ी पूछताछ की गई तो वे अपना गुनाह कबूल करने से बच नहीं सके.

शिखा ने बता दिया कि उसी ने अपने जिम ट्रेनर प्रेमी के प्यार में पड़ कर अपने पति की हत्या करने के लिए रोहित को 1 लाख 20 हजार रुपए की सुपारी दी थी.

पुलिस ने दोनों से विस्तृत पूछताछ के बाद अगली सुबह रोहित के दोस्त गोविंदपुरी (दिल्ली) निवासी रोहन उर्फ मनीष को भी गिरफ्तार कर लिया. तीनों से पूछताछ में राजीव वर्मा शूटआउट केस का सनसनीखेज खुलासा हो गया.

शादी के बाद एक बेटा होने के बाद भी शिखा की खूबसूरती में कोई कमी नहीं आई थी लेकिन घर में कामकाज करने के कारण उस का फिगर बेडौल हो गया था. शरीर पर काफी चर्बी चढ़ने लगी थी, जिस कारण वह मोटी हो गई.

राजीव हालांकि पत्नी को बेहद प्यार करता था लेकिन शिखा के लगातार बढ़ रहे मोटापे के कारण पत्नी के प्रति उस का आकर्षण कम हो रहा था.

अब राजीव शिखा को अपने साथ दोस्तों के यहां अथवा किसी पार्टी में ले जाने से कतराने लगा था. राजीव अकसर शिखा पर उस का वजन बढ़ने के कारण कमेंट करता रहता था कि क्या वो खुद को शीशे में नहीं देखती, कितनी मोटी हो गई है.

इन कमेंट्स से तंग आ कर शिखा ने वजन कम करने का फैसला कर लिया था. राजीव की सलाह पर उसने भी नजदीक के चंदन विहार मोहल्ले में स्थित उसी जिम को जौइन कर लिया जहां राजीव जाता था.

शिखा अकसर दोपहर बाद या शाम को जिम में जाती थी. जिम का ट्रेनर रोहित उसे प्यार भरी नजरों से देखता था. एक तरफ जहां पति की नजरों में शिखा को तिरस्कार दिखता था तो रोहित की प्यार भरी नजरों के कारण वह जल्द ही उसके आकर्षण में बंध गई.

रोहित कश्यप वैसे तो 8वीं पास था लेकिन उस का शरीर बेहद आकर्षक था कोई लड़की अगर एक बार उस के चेहरे और सुडौल बदन को देख ले तो उस के मोहपाश में फंसे बिना नहीं रह सकती थी. हालांकि 9 साल पहले रोहित ने भी एक बाल्मिकी लड़की से प्रेम विवाह किया था, जो आईटीओ पर एक संस्था में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी है.

खुद रोहित पहले भिवानी के एक जिम में ट्रेनर की नौकरी करता था लेकिन 2 साल पहले उसने बुराड़ी में अपना जिम खोल लिया था. लेकिन अब अपनी पत्नी से उस का भी अकसर झगड़ा होता रहता था.

जब रोहित ने देखा कि शिखा धीरेधीरे उस के मोहपाश में बंध रही है तो उसने एक और कदम आगे बढ़ाया और वह वर्कआउट कराते वक्त न सिर्फ उस के नाजुक अंगों को सहला देता बल्कि अकसर उस के फिगर और उस की खूबसूरती की तारीफ भी कर देता. बस यही वो खूबी थी जिस के कारण धीरेधीरे शिखा रोहित के प्यार में डूबती चली गई.

जिम में वर्कआउट करतेकरते कब दोनों की नजदीकी प्यार में बदली और कब दोनों के बीच अवैधसंबध कायम हो गए पता ही नहीं चला. बहकी हुई औरत को जब किसी गैरमर्द के शरीर की गंध लग जाती है तो उस का विवेक भी गलत दिशा में चल पड़ता है. दोनों के नाजायज रिश्ते को एक साल से ज्यादा हो गया था.

वर्कआउट करने के बावजूद शिखा का मोटापा कम नहीं हो रहा था. पति राजीव के ताने अब और ज्यादा बढ़ गए थे. जिस कारण दोनों में अकसर झगड़ा भी हो जाता था. पति के ताने अब शिखा को शूल की तरह चुभने लगे थे. जब ताने बरदाश्त से बाहर हो गए तो 2 महीना पहले एक दिन शिखा ने मन की बात रोहित से कह दी. शिखा ने रोहित से कहा कि अगर वह उस से प्यार करता है तो किसी भी तरह राजीव को उस की जिदंगी से निकालना होगा.

शिखा के इरादे जानकर रोहित सहम गया.  राजीव से बदला लेने और अपने रास्ते से हटाने की ठान ली. इस के लिए उसने रोहित को 1 लाख 20 हजार रुपए दिए. रोहित ने अपने पहचान वाले आदमी से एक पिस्तौल खरीदी. उस ने अपने एक दोस्त रोहन को भी इस प्लान में शामिल किया.

शिखा ने बताया कि उसने ही राजीव को मारने की प्लानिंग की थी. उस ने कहा कि जिस दिन राजीव ग्रेटर नोएडा स्थित साइट पर जाता था, वहां दोस्तों के साथ खाना शेयर करने के चलते उस दिन अपनी मनपसंद का अधिक खाना पैक करा कर ले जाता था और नोएडा की साइट पर जाने पर खाना कम पैक कराता. लंच बौक्स से ही जानकारी मिल जाती थी कि वह किस दिन कौन सी साइट पर जा रहा है. 23 जुलाई को राजीव ने कम खाना पैक कराने पर शिखा समझ गई कि राजीव नोएडा जाएगा. इस पर लोकेशन की जानकारी उस ने अपने प्रेमी रोहित को दे दी. रोहित अपने दोस्त के साथ बाइक से पीछा कर ग्रेटर नोएडा आया और घटना को अंजाम दिया.

पुलिस ने आरोपियों के कब्जे से घटना में इस्तेमाल की गई पल्सर मोटरसाइकिल व एक पिस्तौल और कारतूस बरामद कर लिए. रोहित और शिक्षा से पूछताछ के बाद पुलिस ने तीसरे आरोपी रोहन को भी गिरफ्तार कर लिया. तीनों आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक राजीव का अस्पताल में इलाज चल रहा था. उस की हालत खतरे से बाहर थी.