
कहा जाता है- हरि अनंत हरि कथा अनंता वैसे ही समाज की आम भाषा में यह कहा जा सकता है – नाबालिक के यौन शोषण की कहानी अनंत है.
यह सच है कि इसके लिए सरकार ने नियम कायदे बना दिए हैं कानून बन चुका है. और जब बच्चों के साथ यौन शोषण करने वालों में कोई कोई पुलिस पकड़ में आता है तो चर्चा का सबब बन जाता है कि कैसा अनर्थ हो रहा है.कुल मिलाकर के यह बात दोहराई जाती है कि नाबालिग के यौन शोषण की कहानी अनंत है
आइए… आज इस रिपोर्ट में हम इस महत्वपूर्ण सामाजिक मसले पर ऐसे पक्ष उद्घाटित कर रहे हैं जो आपको चौकाएंगे. दरअसल, बच्चों के शोषण की अनेक घटनाएं हो रही हैं ऐसे में इस महत्वपूर्ण मसले पर सामाजिक दृष्टिकोण से हर एक तरीके से रोक लगाने की आवश्यकता है. यहां यह बताना भी लाजिमी होगा कि 10 मासूम बच्चों में सिर्फ 7 बच्चे यौन शोषण के आज भी शिकार हो रहे हैं और नाम मात्र के मामले ही सामने आ रहे हैं उसके अनुसार बच्चों के साथ दुष्कर्म करने वाले आसपास के परिजन परिवारिक इष्ट मित्र ही पाए गए हैं.
और नाबालिग की शादी कर दी!
ऐसे ही एक सनसनीखेज मामले में छत्तीसगढ़ के जिला रायगढ़ के थाना लैलूंगा की पुलिस द्वारा एक बालिका को परवरिश व घरेलू काम कराने के नाम पर सुन्दरगढ़ (ओडिशा) ले जाकर उसकी जबरजस्ती युवक के साथ शादी कराने वाले आरोपी पिता-पत्र को ओडिशा से पकड़ लिया गया है. हमारे संवाददाता को जांच अधिकारी लक्ष्मण प्रसाद पटेल ने बताया – बालिका की मां दिनांक 15 मई को थाना लैलूंगा में रिपोर्ट दर्ज कर बताई कि रोजी मजदूरी का काम कर अपने बच्चों का पालन पोषण कर ती है. करीब चार माह पहले सुन्दरगढ़, ओडिशा में रहने वाला ईश्वर महाकुल उसकी पंद्रह वर्षीय बेटी रानी (काल्पनिक नाम) को अपने साथ ले गया और वादा किया कि बालिका घर का काम काज करेगी, मैं उसे बेटी की तरह रख कर पढ़ाऊंगा.
भरोसा कर महिला ने अपने परिवारवालों से सलाह लेकर जान परिचित होने के कारण उस व्यक्ति के साथ बेटी को भेज दिया. कुछ माह बाद अपने रिस्तेदारो के साथ अपनी बेटी को देखने सुंदरगढ़ ओडिशा गई तो देखा ईश्वर महाकुल के घर में बालिका से बहुत ज्यादा काम कराया जा रहा था, यही नही नाबालिक बालिका की शादी ईश्वर महाकुल ने अपने बेटे गणेश बारीक के साथ जबरजस्ती करा दी है.
लेकिन इस से अलग औद्योगिक थाना इलाके में कब्रिस्तान के पास बसे राजीव नगर में 4 युवक बेवजह ही सड़क पर यहां से वहां चक्कर लगाते हुए कालोनी के एक तिमंजिला मकान पर नजर लगाए हुए थे.
यह मकान गोविंद सेन का था. लगभग 50 वर्षीय गोविंद सेन का स्टेशन रोड पर अपना सैलून था. उन का रिश्ता ऐसे परिवार से रहा जिस के पास काफी पुश्तैनी संपत्ति थी. पारिवारिक बंटवारे में मिली बड़ी संपत्ति के कारण उन्होंने राजीव नगर में यह आलीशान मकान बनवा लिया था.
इस की पहली मंजिल पर वह स्वयं 45 वर्षीय पत्नी शारदा और 21 साल की बेटी दिव्या के साथ रहते थे. जबकि बाकी मंजिलों पर किराएदार रहते थे. उन की एक बड़ी बेटी भी थी, जिस की शादी हो चुकी थी.
इस परिवार के बारे में आसपास के लोग जितना जानते थे, उस के हिसाब से गोविंद सिंह की पत्नी घर पर अवैध शराब बेचने का काम करती थी. जबकि उन की बेटी को खुले विचारों वाली माना जाता था. लोगों का मानना था कि दिव्या एक ऐसी लड़की है जो जवानी में ही दुनिया जीत लेना चाहती थी. उस की कई युवकों से दोस्ती की बात भी लोगों ने देखी, सुनी थी.
पिता के सैलून चले जाने के बाद वह दिन भर घर में अकेली रहती थी. मां शारदा और बेटी दिव्या से मिलने आने वालों की कतार लगी रहती थी. मोहल्ले वाले यह सब देख कर कानाफूसी करने के बाद ‘हमें क्या करना’ कह कर अनदेखी करते देते थे.
25 नवंबर की रात जब चारों ओर देव दिवाली की धूम मची हुई थी. राजीव नगर की इस गली मे घूम रहे युवक कोई साढे़ 7 बजे के आसपास गोविंद के घर के सामने से गुजरे और सीढ़ी चढ़ कर ऊपर चले गए. सामने के मकान से देख रहे युवक ने जानबूझ कर इस बात पर खास ध्यान नहीं दिया. जबकि उन का चौथा साथी गोविंद के घर जाने के बजाय कुछ दूरी पर जा कर खड़ा हो गया.
रात कोई सवा 9 बजे थकाहारा गोविंद दूध की थैली लिए घर लौटा. गोविंद सीढि़यां चढ़ कर ऊपर पहुंच गया. इस के कुछ देर बाद वे तीनों युवक उन के घर से निकल कर नीचे आ गए.
जिस पड़ोसी ने उन्हें ऊपर जाते देखा था, संयोग से उस ने तीनों को वापस उतरते भी देखा तो यह सोच कर उस के चेहरे पर मुसकराहट तैर गई कि घर लौटने पर उन युवकों को अपने घर में मौजूद देख कर गोविंद सेन की मन:स्थिति क्या रही होगी.
तीनों युवकों ने नीचे खड़ी दिव्या की एक्टिवा स्कूटी में चाबी लगाने की कोशिश की, लेकिन संभवत: वे गलत चाबी ले आए थे. इसलिए उन में से एक वापस ऊपर जा कर दूसरी चाबी ले आया, जिस के बाद वे दिव्या की एक्टिवा पर बैठ कर चले गए.
26 नवंबर की सुबह के 8 बजे रतलाम में रोज की तरह सड़कों पर आवाजाही शुरू हो गई थी. लेकिन गोविंद सेन के घर में अभी भी सन्नाटा पसरा हुआ था. कुछ देर में उन के मकान में किराए पर रहने वाली युवती ज्वालिका अपने कमरे से बाहर निकल कर दिव्या के घर की तरफ गई.
दिव्या की हमउम्र ज्वालिका एक प्राइवेट अस्पताल में नौकरी करती थी. गोविंद की बेटी भी एक निजी कालेज से बीएससी की पढ़ाई के साथ नर्सिंग का कोर्स कर रही थी. महामारी के कारण आजकल क्लासेस बंद थीं, इसलिए वह अपनी बड़ी बहन की कंपनी में नौकरी करने लगी थी.
ज्वालिका और दिव्या एक ही एक्टिवा इस्तेमाल करती थीं. जब जिस को जरूरत होती, वही एक्टिवा ले जाती. लेकिन इस की चाबी हमेशा गोविंद के घर में रहती थी. सो काम पर जाने के लिए एक्टिवा की चाबी लेने के लिए ज्वालिका जैसे ही गोविंद के घर में दाखिल हुई, चीखते हुए वापस बाहर आ गई.
उस की चीख सुन कर दूसरे किराएदार भी बाहर आ गए. उन्हें पता चला कि गोविंद के घर के अंदर गोविंद, उस की पत्नी और बेटी की लाशें पड़ी हैं. घबराए लोगों ने यह खबर नगर थाना टीआई रेवल सिंह बरडे को दे दी.
कुछ ही देर में वह अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए और मामले की गंभीरता को देखते हुए इस तिहरे हत्याकांड की खबर तुरंत एसपी गौरव तिवारी को दी.
कुछ ही देर में एसपी गौरव तिवारी एएसपी सुनील पाटीदार, एफएसएल अधिकारी अतुल मित्तल एवं एसपी के निर्देश पर माणकचौक के थानाप्रभारी अयूब खान भी मौके पर पहुंच गए.
तिहरे हत्याकांड की खबर पूरे रतलाम में फैल गई, जिस से मौके पर जमा भारी भीड़ जमा हो गई. मौकाएवारदात की जांच में एसपी गौरव तिवारी ने पाया कि शारदा का शव बिस्तर पर पड़ा था, जिस के सिर में गोली लगी थी. उन की बेटी दिव्या की लाश किचन के बाहर दरवाजे पर पड़ी थी. दिव्या के हाथ में आटा लगा हुआ था और आधे मांडे हुए आटे की परात किचन में पड़ी हुई थी.
इस से साफ हुआ कि पहले बिस्तर पर लेटी हुई शारदा की हत्या हुई होगी. गोली की आवाज सुन कर दिव्या बाहर आई होगी तो हत्यारों ने उसे भी गोली मार दी होगी. गोविंद की लाश दरवाजे के पास पड़ी थी, इस का मतलब उस की हत्या सब से बाद में हुई थी. उन के पैरों में जूते थे और हाथ में दूध की थैली.
पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारे 2 हत्या करने के बाद भागना चाहते होंगे, लेकिन भागते समय ही गोविंद घर लौट आए, जिस से उन की भी हत्या कर दी गई होगी. पड़ोसियों ने गोविंद को 9 बजे घर आते देखा था. उस के बाद 3 लोगों को घर से बाहर जाते देखा. इस से यह साफ हो गया कि शारदा और दिव्या की हत्या 9 बजे के पहले की गई होगी. जबकि गोविंद की हत्या 9 बजे हुई होगी. पुलिस ने जांच शुरू की तो गोविंद सेन के परिवार के बारे में जो जानकरी निकल कर सामने आई, उस से पुलिस को शक हुआ कि हत्याएं प्रेम प्रसंग या अवैध संबंध को ले कर की गई होंगी.
लेकिन गोविंद के एक रिश्तेदार ने इस बात को पूरी तरह गलत करार देते हुए बताया कि गोविंद ने कुछ ही समय पहले 30 लाख रुपए में गांव की अपनी जमीन बेची थी.
दूसरा घटना के दिन ही शारदा और दिव्या ने डेढ़ लाख रुपए की ज्वैलरी की खरीदारी की थी, जो घर में नहीं मिली. इस कारण पुलिस लूट के एंगल से भी जांच करने में जुट गई. चूंकि मौके पर संघर्ष के निशान नहीं थे और हत्यारे गोविंद की बेटी की एक्टिवा भी साथ ले गए थे. इस से यह साफ हो गया कि वे जो भी रहे होंगे, परिवार के परिचित रहे होंगे और उन्हें गाड़ी की चाबी रखने की जगह भी मालूम थी.
हत्यारों ने वारदात का दिन देव दिवाली का सोचसमझ कर चुना. इसलिए आतिशबाजी के शोर में किसी ने भी पड़ोस में चलने वाली गोलियों की आवाज पर ध्यान नहीं दिया था.
मामला गंभीर था इसलिए आईजी राकेश गुप्ता ने मौके का निरीक्षण करने के बाद हत्यारों की गिरफ्तारी पर 30 हजार रुपए के ईनाम की घोषणा कर दी.
वहीं एसीपी गौरव तिवारी ने 10 थानों के टीआई और लगभग 60 पुलिसकर्मियों की एक टीम गठित कर दी, जिस की कमान थानाप्रभारी अयूब खान को सौंपी गई. इस टीम ने इलाके के पूरे सीसीटीवी कैमरे खंगाले, इस के अलावा घटना के समय राजीव नगर में स्थित मोबाइल टावर के क्षेत्र में सक्रिय 70 हजार से अधिक फोन नंबरों की जांच शुरू की.
दिव्या को एक बोल्ड लड़की के रूप में जाना जाता था. उस की कई लड़कों से दोस्ती थी. कुछ दिन पहले उस ने एक अलबम ‘मैनूं छोड़ के…’ में काम किया था. इस अलबम में भी उस की एक दुर्घटना में मौत हो जाती है. पुलिस ने उस के साथ काम करने वाले युवक अभिजीत बैरागी से भी पूछताछ की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.
घटना वाले दिन से ले कर चंद रोज पहले तक दिव्या ने जिन युवकों से फोन पर बात की थी, उन सभी से पुलिस ने पूछताछ की. गोविंद सेन की एक्टिवा देवनारायण नगर में लावारिस खड़ी मिली. तब पुलिस ने वहां भी चारों ओर लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज जमा कर हत्यारों का पता लगाने की कोशिश शुरू की.
जिस में दोनों जगहों के फुटेज से 2 संदिग्ध युवकों की पहचान कर ली गई, जिन्हें घटना से पहले इलाके में पैदल घूमते देखा गया था. और बाद में वही युवक दिव्या की एक्टिवा पर जाते हुए सीसीटीवी कैमरे में कैद हुए.
जाहिर है हर बड़ी घटना के आरोपी भले ही कितनी भी दूर क्यों न भाग जाएं, वे घटना वाले शहर में पुलिस क्या कर रही है. इस बात की जानकारी जरूर रखते हैं, यह बात एसपी गौरव तिवारी जानते थे. इसलिए उन्होंने जानबूझ कर जांच के दौरान मिले महत्त्वपूर्ण सुराग को मीडिया के सामने नहीं रखा था.
दरअसल, जब पुलिस सीसीटीवी के माध्यम से हत्यारों के भागने के रूट का पीछा कर रही थी तभी देवनारायण नगर में आ कर दोनों संदिग्धों ने दिव्या की एक्टिवा छोड़ दी थी. वहां पहले से एक युवक स्कूटर ले कर खड़ा था, जिसे ले कर वे वहां से चले गए. जबकि स्कूटर वाला युवक पैदल ही वहां से गया था.
इस से एसपी को शक था कि तीसरा युवक स्थानीय हो सकता है, जो आसपास ही रहता होगा. बात सही थी, वह अनुराग परमार उर्फ बौबी था, जो विनोबा नगर में रहता था.
इंदौर से बीटेक करने के बाद भी उस के पास कोई काम नहीं था. वह इस घटना में शामिल था और पुलिस की गतिविधियों पर नजर रखे हुए था. इसलिए जब उसे पता चला कि पुलिस को उस का कोई फुटेज नहीं मिला तो वह लापरवाही से घर से बाहर घूमने लगा.
जिस के चलते नजर गड़ा कर बैठी पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर पूछताछ की. उस से मिली जानकारी के 4 दिन बाद ही पुलिस ने दाहोद (गुजरात) से लाला देवल निवासी खरेड़ी गोहदा और वहीं से रेलवे कालोनी रतलाम निवासी गोलू उर्फ गौरव को गिरफ्तार कर लिया. उन से पता चला कि पूरी घटना का मास्टरमांइड दिलीप देवले है, जो खरेड़ी गोहद का रहने वाला है.
यही नहीं पूछताछ में यह भी साफ हो गया कि जून 20 में दिलीप देवल ने ही अपने ताऊ के बेटे सुनीत उर्फ सुमीत चौहान निवासी गांधीनगर, रतलाम और हिम्मत सिंह देवल निवासी देवनारायण के साथ मिल कर डा. प्रेमकुंवर की हत्या की थी. जिस से पुलिस ने सुनीत और हिम्मत को भी गिरफ्तार कर लिया.
इन से पता चला कि तीनों हत्याएं लूट के इरादे से की गई थीं. दिलीप के बारे में पता चला कि वह रतलाम में ही छिप कर बैठा है. पुलिस को यह भी पता चला कि वह मिडटाउन कालोनी में किराए के मकान में रह रहा है. और पुलिस तथा सीसीटीवी कैमरे से बचने के लिए पीछे की तरफ टूटी बाउंड्री से आताजाता है.
यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने पीछे की तरफ खाचरौद रोड पर उसे घेरने की योजना बनाई, जिस के चलते 2 दिसंबर, 2020 को वह पुलिस को दिख गया. पुलिस टीम ने उसे ललकारा तो दिलीप ने पुलिस पर गोलियां चलानी शुरू कर दीं, जवाबी काररवाई में पुलिस ने भी गोलियां चलाईं.
कुछ ही देर में मास्टरमाइंड दिलीप मारा गया. इस प्रकार असंभव से लगने वाले तिहरे हत्याकांड के सभी आरोपियों को पुलिस ने महज 5 दिन में सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. इस में टीम प्रभारी अयूब खान और 2 एसआई सहित 5 पुलिसकर्मी भी घायल हुए.
लौकडाउन में घर में सैलून चलाना महंगा पड़ा गोविंद को गोविंद सेन पिछले 22 साल से स्टेशन रोड पर सैलून चलाते थे. लौकडाउन के दौरान वह चोरीछिपे अपने घर बुला कर लोगों की कटिंग करते रहे. दिलीप भी उन से कटिंग करवाने घर जाया करता था. जहां उस ने गोविंद की अमीरी देख कर उन्हें शिकार बनाने की योजना बनाई थी.
दिलीप के साथियों ने बताया कि शारदा और दिव्या की हत्या करने की योजना तो वे पहले से ही बना कर आए थे. लेकिन अंतिम समय में गोविंद भी अपनी दुकान से लौट कर आ गए थे. इसलिए उन की भी हत्या करनी पड़ी. आरोपियों ने बताया कि उस के घर से उन्हें 30 लाख रुपए मिलने की उम्मीद थी. लेकिन उन्हें केवल 20 हजार नकद और कुछ जेवर ही मिले थे.
दिलीप अपने कारनामों का कोई सबूत नहीं छोड़ना चाहता था. इसलिए लूट के दौरान सामने वाले की सीधे हत्या कर देता था.
दिलीप अब तक एक ही तरीके से 6 हत्याएं कर चुका था, इसलिए पुलिस उसे साइकोकिलर मानती थी. दिलीप के साथियों का कहना था कि पुलिस से बचने के लिए हत्या तो करनी ही पड़ेगी मर्डर इज मस्ट.
राधा नाम की जिस औरत की वजह से प्रांशु का कत्ल किया गया, उस बेचारी को इस अपराध की भनक तक नहीं थी. इस की वजह शायद यह थी कि वह लल्लन और प्रांशु को जो देह सुख दे रही थी, वह उस गरीब की मजबूरी थी. उस ने सोचा भी न होगा कि दो दोस्तों… रायबरेली के डलमऊ थानाक्षेत्र में एक गांव है गुरदीन का पुरवा मजरा रसूलपुर. गंगाघाट के पास
खेल रहे कुछ बच्चों ने वहां एक युवक की लाश पड़ी देखी. बच्चों ने लाश देखी तो शोर मचा कर आसपास के लोगों को बुला लिया. कुछ ही देर में यह खबर दूरदूर तक फैल गई. खबर सुन कर रसूलपुर गांव के प्रधान भी वहां पहुंच गए. उन्होंने फोन कर के घटना की सूचना डलमऊ थाने को दे दी.
सूचना पा कर इंसपेक्टर श्रीराम पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मृतक की उम्र लगभग 20-25 साल थी. उस के गले पर रस्सीनुमा किसी चीज से कसे जाने के निशान थे, शरीर पर भी चोट के निशान थे.
घटनास्थल के आसपास का निरीक्षण किया गया तो वहां से लगभग 2 किलोमीटर दूर हीरो कंपनी की एक बाइक लावारिस खड़ी मिली. संभावना थी कि वह मृतक की ही रही होगी.
इसी बीच सीओ (डलमऊ) आर.पी. शाही भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने लाश व घटनास्थल का निरीक्षण किया, वहां मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त कराई, लेकिन कोई भी लाश को नहीं पहचान सका. पुलिस अभी अपना काम कर ही रही थी कि एक व्यक्ति कुछ लोगों के साथ वहां पहुंचा. उस ने लाश देख कर उस की शिनाख्त अपने 20 वर्षीय बेटे प्रांशु तिवारी के रूप में की. यह बात 25 फरवरी, 2020 की है.
शिनाख्त करने वाले मदनलाल तिवारी थे और वह डलमऊ कस्बे के शेरंदाजपुर मोहल्ले में रहते थे. मदनलाल तिवारी ने बताया कि प्रांशु एक दिन पहले 24 फरवरी की शाम 7 बजे घर से निकला था.
उसे उस के दोस्त पिंटू जोशी और पप्पू जोशी बुला कर ले गए थे. ये दोनों डलमऊ में टिकैतगंज में रहते हैं. संभवत: उन्होंने ही प्रांशु को मारा होगा. मदनलाल तिवारी से प्रारंभिक पूछताछ के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.
थाने आ कर इंसपेक्टर श्रीराम ने मदनलाल की लिखित तहरीर पर पिंटू जोशी व पप्पू जोशी के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.
इंसपेक्टर श्रीराम ने केस की जांच शुरू की. सब से पहले उन्होंने गांव के लोगों से पूछताछ की. पता चला मृतक प्रांशु तिवारी के सुरजीपुर गांव की राधा नाम की महिला से नाजायज संबंध थे. जब इस बात की और गहराई से छानबीन की गई तो राधा के प्रांशु के अलावा प्रांशु के पड़ोसी अशोक निषाद उर्फ कल्लन से भी नाजायज संबंध होने की बात सामने आई.
इस बात को ले कर दोनों में विवाद भी हो चुका था. यह जानकारी मिलने के बाद इंसपेक्टर श्रीराम ने सोचा कि कहीं प्रांशु की हत्या इसी महिला से संबंधों के चलते तो नहीं हुई. पुलिस को यह भी पता चला कि पिंटू जोशी और पप्पू जोशी आपराधिक प्रवृत्ति के हैं.
इंसपेक्टर श्रीराम का शक तब और मजबूत हो गया, जब कल्लन अपने घर से फरार मिला. पिंटू और पप्पू भी फरार थे. इंसपेक्टर श्रीराम ने उन का पता लगाने के लिए अपने विश्वस्त मुखबिरों को लगा दिया.
घटना से 2 दिन बाद यानी 27 फरवरी को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर आरोपी पिंटू जोशी, पप्पू जोशी और अशोक निषाद उर्फ कल्लन को सुरजीपुर शराब ठेके के पीछे मैदान से गिरफ्तार कर लिया.
कोतवाली में जब उन से सख्ती से पूछताछ की गई तो तीनों ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और अपने चौथे साथी डलमऊ के भीमगंज मोहल्ला निवासी राजकुमार का नाम भी बता दिया.
राधा उत्तर प्रदेश के जिला रायबरेली के डलमऊ थानाक्षेत्र के गांव सुरजीपुर में रहती थी. 35 वर्षीय राधा 2 बच्चों की मां थी. उस के पति का नाम बबलू था जो कहीं बाहर रह कर नौकरी करता था. अपनी नौकरी से वह इतने पैसे नहीं जुटा पाता कि उस के बीवीबच्चों का खर्च चल सके. बड़ी मुश्किल से परिवार की दोजून की रोटी मिल पाती थी.
एक तो पति घर से दूर और उस पर आर्थिक अभाव. दोनों ही बातों ने राधा को परेशान कर रखा था. शरीर की आग तो बुझना दूर पेट की आग को शांत करने तक के लाले पड़े थे. ऐसे में राधा का तनमन बहकने लगा. बड़ी उम्मीद ले कर वह अपनी जरूरत के पुरुष को तलाशने लगी.
अशोक निषाद उर्फ कल्लन डलमऊ कस्बे के शेरंदाजपुर मोहल्ले में रहता था. कल्लन के पिता राजेंद्र शराब के एक ठेके पर सेल्समैन थे. कल्लन के 2 भाई और एक बहन थी. कल्लन सब से बड़ा था.
22 वर्षीय कल्लन भी सुरजीपुर के शराब ठेके पर सेल्समैन की नौकरी करता था. डलमऊ से सुरजीपुर की दूरी महज 2 किलोमीटर थी. काम पर वह अपनी बाइक से आताजाता था.
कल्लन ने राधा के हुस्न को देखा तो उसे पाने की चाहत पाल बैठा. उस के पति के काफी समय से दूर होने और आर्थिक अभाव के बारे में कल्लन जानता था. राधा से नजदीकी बढ़ाने के लिए वह उस से हमदर्दी दिखाने लगा.
राधा कल्लन के बारे में सब जानती थी. वह उस से 12 साल छोटा था. राधा को समझते देर नहीं लगी कि कल्लन उस से क्यों हमदर्दी दिखा रहा है. यह बात समझते ही उस के चेहरे पर मुसकान और आंखों में चमक आ गई. फिर उस का झुकाव भी कल्लन की ओर हो गया.
एक दिन कल्लन राधा के घर के सामने से जा रहा था तो राधा घर की चौखट पर बैठी थी. उस समय दूरदूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था. अच्छा मौका देख कर कल्लन बोला, ‘‘राधा, मुझे तुम्हारे बारे में सब पता है. तुम्हारी कहानी सुन कर ऐसा लगता है कि तुम्हारी जिंदगी में सिर्फ दुख ही दुख है.’’
‘‘कल्लन, मैं ने तुम्हारे बारे में जो सुन रखा था, तुम उस से भी कहीं ज्यादा अच्छे हो, जो दूसरों का दुख बांटने की हिम्मत रखते हो. वरना इस जालिम दुनिया में कोई किसी के बारे में कहां सोचता है.’’
‘‘राधा, दुनिया में इंसानियत अभी भी जिंदा है. खैर, तुम चिंता मत करो. आज से मैं तुम्हारा हर तरह से खयाल रखूंगा. चाहो तो बदले में तुम मेरा कुछ काम कर दिया करना.’’
‘‘ठीक है, तुम मेरे बारे में इतना सोच रहे हो तो मैं भी तुम्हारा काम कर दिया करूंगी.’’
यह सुन कर कल्लन ने राधा के कंधे पर सांत्वना भरा हाथ रखा तो राधा ने अपनी गरदन टेढ़ी कर के उस के हाथ पर अपना गाल रख कर आशा भरी नजरों से उस की तरफ देखा. कल्लन ने मौके का फायदा उठाने के लिए राधा के हाथों पर 5 सौ रुपए रखते हुए कहा, ‘‘ये रख लो, तुम्हें इन की जरूरत है.’’
राधा तो वैसे भी अभावों में जिंदगी गुजार रही थी, इसलिए उस ने कल्लन द्वारा दिए गए पैसे अपनी मट्ठी में दबा लिए. इस से कल्लन की हिम्मत और बढ़ गई. वह हर रोज राधा से मिलने उस के घर जाने लगा.
वह राधा के बच्चों के लिए खानेपीने की चीजें ले कर आता था. कभीकभी वह राधा को पैसे भी देता था. इस तरह वह राधा का खैरख्वाह बन गया.
राधा हालात के थपेड़ों में डोलती ऐसी नाव थी, जिस का मांझी उस के पास नहीं था. इसलिए वह कल्लन के अहसान अपने ऊपर लादती चली गई.
स्वार्थ की दीवार पर अहसानों की ईंट पर ईंट चढ़ती जा रही थी, जिस के चलते राधा भी कल्लन का पूरा ख्याल रखने लगी थी. वह उसे खाना खाए बिना नहीं जाने देती थी. लेकिन कल्लन के मन में तो राधा की देह की चाहत थी, जिसे वह हर हाल में पाना चाहता था.
एक दिन उस ने कहा, ‘‘राधा, तुम खुद को अकेली मत समझना. मैं हर तरह से तुम्हारा बना रहूंगा.’’
यह सुन कर राधा उस की तरफ चाहत भरी नजरों से देखने लगी. कल्लन समझ गया कि वह पूरी तरह शीशे में उतर चुकी है, इसलिए उस के करीब आ गया और उस के हाथ को अपनी दोनों हथेलियों के बीच दबा कर बोला, ‘‘सच कह रहा हूं राधा, तुम्हारी हर जरूरत पूरी करना अब मेरी जिम्मेदारी है.’’
हाथ थामने से राधा के शरीर में भी हलचल पैदा हो गई थी. कल्लन के हाथों की हरकत बढ़ने लगी थी. इस का नतीजा यह निकला कि दोनों बेकाबू हो गए और अपनी हसरत पूरी कर के ही माने.
कल्लन ने राधा की सोई हुई भावनाओं को जगाया तो उस ने देह सुख की खातिर सारी नैतिकताओं को ठेंगा दिखा दिया. कल्लन और राधा के अवैध संबंध बने तो फिर बारबार दोहराए जाने लगे.
राधा को कल्लन के पैसों का लालच तो था ही, अब वह उस से खुल कर पैसे मांगने लगी. कल्लन चूंकि उस के जिस्म का लुत्फ उठा चुका था, इसलिए पैसे देने में कोई गुरेज नहीं करता था. इस तरह एक तरफ राधा की दैहिक जरूरतें पूरी होने लगी थीं तो दूसरी तरफ कल्लन उस की आर्थिक जरूरतें पूरी करने लगा था. काफी अरसे बाद राधा की जिंदगी में फिर से रंग भरने लगे थे.
डलमऊ के शेरंदाजपुर मोहल्ले में कल्लन के पड़ोस में मदनलाल तिवारी का परिवार रहता था. मदनलाल पूर्व सैनिक थे. वह सन 2003 में सेना से रिटायर हुए थे. परिवार में उन की पत्नी अनीता के अलावा एक बेटी व 3 बेटे प्रांशु, अजीत और बऊआ थे.
20 वर्षीय प्रांशु बीए द्वितीय वर्ष की पढ़ाई कर रहा था. उस की और कल्लन की अच्छी दोस्ती थी. दोनों साथ खातेपीते थे.
एक दिन शराब के नशे में कल्लन ने प्रांशु को अपने और राधा के संबंधों के बारे में बता दिया. यह सुन कर प्रांशु चौंका. यह उस के लिए चिराग तले अंधेरा वाली बात थी.
कुंवारा प्रांशु किसी भी औरत के सान्निध्य के लिए तरस रहा था. राधा की हकीकत पता चली तो उसे अपनी मुराद पूरी होती दिखाई दी. राधा अपने शबाब का दरिया बहा रही थी और उसे खबर तक नहीं थी. वह भी राधा से बखूबी परिचित था.
प्रांशु के दिमाग में तरहतरह के विचार आने लगे. वह सोचने लगा कि जब कल्लन राधा के साथ रातें रंगीन कर सकता है तो वह क्यों नहीं.
अगले दिन प्रांशु कल्लन से मिला तो बोला, ‘‘तुम राधा से मेरे भी संबंध बनवाओ, नहीं तो मैं तुम्हारे संबंधों की बात पूरे गांव में फैला दूंगा.’’
कल्लन का राधा से कोई दिली लगाव तो था नहीं, वह तो उस की वासना की पूर्ति का साधन मात्र थी. उसे दोस्त के साथ बांटने में कोई परेशानी नहीं थी. वैसे भी प्रांशु का मुंह बंद करना जरूरी था.
इसलिए उस ने राधा को प्रांशु की शर्त बताते हुए समझाया, ‘‘देखो राधा, अगर हम ने उस की बात नहीं मानी तो वह हमारी पोल खोल देगा. पूरे गांव में हमारी बदनामी हो जाएगी. इसलिए तुम्हें उसे खुश करना ही पड़ेगा.’’
राधा के लिए जैसा कल्लन था, वैसा ही प्रांशु भी था. उस ने हां कर दी. इस बातचीत के बाद कल्लन ने यह बात प्रांशु को बता दी. फलस्वरूप वह उसी दिन शाम को राधा के घर पहुंच गया. दोनों पहले से ही बखूबी परिचित थे, दोनों में बातें भी होती थीं.
सारी बातें चूंकि पहले से तय थीं, इसलिए दोनों के बीच अब तक बनी संकोच की दीवार गिरते देर नहीं लगी. प्रांशु से शारीरिक संबंध बने तो राधा को एक अलग तरह की सुखद अनुभूति हुई. प्रांशु कल्लन से अधिक सुंदर, स्वस्थ था और बिस्तर पर खेले जाने वाले खेल का भी जबरदस्त खिलाड़ी था.
जोश में भी वह होश व संयम से खेल को देर तक खेलता था. जबकि कल्लन इस के ठीक विपरीत था.
राधा की ख्वाहिशों का उसे बिलकुल भी ख्याल नहीं रहता था. ऐसे में राधा प्रांशु के ज्यादा नजदीक आने लगी और कल्लन से दूरी बनाने लगी. प्रांशु के संपर्क में आने के बाद वह कल्लन को और उस के अहसानों को भूलने लगी.
कल्लन को भी समझते देर नहीं लगी कि राधा प्रांशु की वजह से उस से दूरी बना रही है. यह बात उसे अखरने लगी. राधा को फंसाने की सारी मेहनत उस ने की और प्रांशु बिना किसी मेहनत के फल खा रहा था. इस बात को ले कर प्रांशु और कल्लन में मनमुटाव रहने लगा.
इसी बीच कल्लन का रोड एक्सीडेंट हो गया और उस के एक पैर में फ्रैक्चर हो गया. जब उस का प्रांशु से विवाद हुआ तो प्रांशु ने कल्लन से कहा कि वह उस की दूसरी टांग भी तुड़वा देगा. कल्लन को उस की यह धमकी चुभ गई. इस के बाद उस ने कांटा बने प्रांशु को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया.
कल्लन की दोस्ती डलमऊ के ही मोहल्ला टिकैतगंज में रहने वाले शातिर अपराधी पिंटू जोशी और पप्पू उर्फ गिरीश जोशी से थी. ये दोनों प्रांशु के भी दोस्त थे.
कल्लन ने पिंटू जोशी से प्रांशु की हत्या करने को कहा. उस ने हत्या की एवज में 25 हजार रुपए देने की बात भी कही. पिंटू तो अपराधी था ही, इसलिए वह प्रांशु की हत्या करने को तैयार हो गया. उस की सहमति के बाद कल्लन ने सुपारी की रकम के आधे पैसे यानी साढ़े 12 हजार रुपए पिंटू को दे दिए.
पिंटू ने पप्पू के साथसाथ इस योजना में भीमगंज मोहल्ला निवासी राजकुमार को भी शामिल कर लिया. चारों ने मिल कर प्रांशु की हत्या की योजना बनाई.
24 फरवरी की शाम 7 बजे पिंटू और पप्पू जोशी कल्लन की बाइक से प्रांशु के घर पहुंचे. पार्टी देने की बात कह कर वे प्रांशु को सुरजीपुर ले गए.
वहां ये लोग शराब के ठेके के पीछे खाली पड़े मैदान में पहुंचे तो वहां कल्लन और राजकुमार पहले से मौजूद थे. सब ने वहां बैठ कर शराब पी और खाना खाया गया. पिंटू कल्लन और प्रांशु के बीच सुलह कराने का नाटक करते हुए प्रांशु को मनाने लगा. इस बात पर प्रांशु और कल्लन के बीच देर रात तक बहस चलती रही. फिर प्रांशु के शराब के नशे में होने पर सब ने मिल कर क्लच वायर से गला कस कर उस की हत्या कर दी.
पिंटू और पप्पू कल्लन की बाइक पर प्रांशु की लाश रख कर उसे गुरदीप का पुरवा में गंगाघाट के किनारे ले गए. उन्होंने उस की लाश फेंक दी और फरार हो गए. घटना के बाद से सभी अपने घरों से फरार हो गए थे. लेकिन मुखबिर की सूचना पर गिरफ्तार कर लिए गए.
पुलिस ने अभियुक्तों से पूछताछ करने के बाद उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त हीरो बाइक नंबर यूपी33क्यू 6990 भी बरामद कर ली. हत्या में प्रयुक्त क्लच वायर भी बरामद कर लिया गया. फिर आवश्यक कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के तीनों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक अभियुक्त राजकुमार को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर पाई थी. द्य
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
Top 10 Social crime story of 2022 : इन सामाजिक क्राइम स्टोरी को पढ़कर आप जान पाएंगे कि इस बदलते समाज में क्या क्या हो रहा है और किस तरह के बदलाव से समाज प्रभावित हो रहा है और समाज में हो रहे अपराध और धोखाधड़ी से आप स्वयं को और अपने आस पास के लोगों को कैसे जागरूक करने के लिए पढ़े ये मनोहर कहानियां Top 10 Social crime story in Hindi
आईजी साहब ने उन पर एक नजर डाली. कुरसी पर बैठने का संकेत किया. इस के बाद उन से पूछा, ‘‘आप लोगों का कैसे आगमन हुआ? बताइए, क्या समस्या है?’’ तभी उन में से एक ने कहा, ‘‘सर, हम चकेरी थाने के श्यामनगर मोहल्ले में रहते हैं. हमारे घर के पास अजय सिंह का आलीशान मकान है. उस मकान में वह खुद तो नहीं रहते लेकिन उन्होंने मकान किराए पर दे रखा है. मकान की पहली मंजिल पर 2 अफसर रहते हैं पर भूतल पर जो किराएदार है, उस की गतिविधियां बेहद संदिग्ध हैं. उस के घर पर अपरिचित युवकयुवतियों का आनाजाना लगा रहता है. हम लोगों को शक है कि वह किराएदार अपनी पत्नी के सहयोग से सैक्स रैकेट चलाता है.
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जसप्रीत की बातों से गुरतेज को लगता कि वही गलत है. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि कौन सच है और कौन झूठा? लेकिन एक बात तय थी कि कोई न कोई तो झूठ बोल रहा था. काफी सोचनेविचारने के बाद भी गुरतेज को इस समस्या का कोई हल नजर नहीं आया. इसी तरह ऊहापोह में कुछ दिन और बीत गए, इस बार उस के छोटे भाई जगतार ने एक दिन उस से कहा, ‘‘भाई, आप होश में आ जाइए, कहीं ऐसा न हो कि पानी सिर के ऊपर से गुजर जाए और आप को इस की खबर तक न लगे.’’
इस बार भाई जगतार ने जसप्रीत के बारे में खबर दी तो उसे पूरा विश्वास हो गया कि सभी सच थे, झूठ जसप्रीत ही बोल रही थी. इसलिए उस दिन गुरतेज ने सख्ती से काम लिया. उस ने जसप्रीत को खूब डांटाफटकारा.
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50 साला मकान मालिक लाखन सिंह अपने मकान में अकेले ही रहते थे. उन का बेटा अपने परिवार के साथ किसी बड़े शहर में रहता था. लाखन सिंह ने अपने मकान के चौक में पानी के लिए बोरिंग लगा रखा था. जब वे नहाते थे, तब उन के गठीले बदन को देख कर सुचित्रा का दिल उन्हें पाने को मचल उठता था. एक रात जब लाखन सिंह शौच के लिए जाने लगे, तो उन्होंने बैड पर सोती हुई सुचित्रा को झीने कपड़ों में देखा.
उन का दिल उसे पाने के लिए मचलने लगा. 10 साल पहले उन की बीवी की मौत हो चुकी थी. उस के बाद उन्होंने किसी औरत से जिस्मानी संबंध नहीं बनाए थे.
उस समय सुचित्रा भी जागी हुई थी, पर वे सोती समझ बैड के पास खड़े हो कर उस के शरीर को गौर से देखने लगे. अचानक सुचित्रा ने उन की ओर मुसकराते हुए एक मादक अंगड़ाई ली और अपने बैड पर बिठा लिया.
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दिल कंपा देने वाला मंजर बिखेरता हुआ, वह आदमी बाजार चौराहा पार कर के थाना बबेरू के गेट पर जा कर रुका. पहरे पर तैनात सिपाही की नजर जब उस पर पड़ी तो वह घबरा गया, फिर हिम्मत जुटा कर अपनी ड्यूटी निभाने के लिए पूछा, ‘‘कौन हो तुम. और तुम्हारे हाथ में ये कटा सिर किस का है?’’ ‘‘यह सब बातें हम बड़े दरोगा साहब को बताएंगे. उन्हें बुलाओ.’’ उस रौद्र रूपधारी आदमी ने जवाब दिया.‘‘ठीक है, तुम इस कुर्सी पर बैठो. मैं दरोगा साहब को बुला कर लाता हूं.’’उस आदमी ने कटा सिर जमीन पर रखा फिर कंधा से फरसा टिका कर इत्मीनान से कुर्सी पर बैठ गया. पहरे वाला सिपाही बदहवास हालत में थाना इंचार्ज जयश्याम शुक्ला के कक्ष में पहुंचा, ‘‘सर एक आदमी आया है. उस के हाथ में फरसा और महिला का कटा सिर है.
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अख्तरी बेगम का कहना है कि इस कारोबार में काहिल और बीमार हों, तब भी औरतें ‘सवारी’ पर जाती हैं और ‘गाडि़यों’ का काम शौकिया और पार्टटाइम कमाने वाली औरतों के लिए है. लेकिन धंधा चाहे ‘सवारी’ का हो या ‘गाड़ी’ का, एक बार जो औरत इस राह पर आ जाती है, उस का अंत उम्र ढल जाने के बाद या तो फुटपाथ पर पागलों की शक्ल में या कहीं दलालों के साथ कमीशनखोर के लैवल पर जा कर खत्म होता है. वे न तो मां रह पाती हैं, न बीवी, न बेटी और न बहन.
अजमेर और जयपुर में ज्यादातर ‘सवारियों’ को विदेश भेजा जाता है. विदेशों से आने वाले, जिन्हें यहां का गरम गोश्त भा जाता है, अपने देश में हमारे यहां से अपनी रातें रंगीन करने का सामान मंगाना ज्यादा पसंद करते हैं.
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रोड स्थित अपने अपार्टमेंट में 23 जून, 1987 को मृत पाई गई थी. पुलिस को इस की सूचना उस के मंगेतर ने दी थी. उस के शरीर पर कई जख्म थे. जबकि पियर्स की लाश उसी साल 5 महीने बाद 24 नवंबर को उन के घर से 40 मील दूर बांध के पानी में तैरती हुई बरामद हुई थी.
उन की मौत के सिलसिले में हुई जांच में हत्या और दुष्कर्म के जो सुराग मिले थे, उस के अनुसार मृतकों के शरीर, अंगवस्त्र, तौलिए, बैडशीट आदि से मिले एक जैसे डीएनए को सबूत का आधार बनाया गया था.
उस डीएनए वाले व्यक्ति का पता लगाने के लिए 15 दिसंबर, 1987 को अदालती आदेश के बाद ब्रिटिश पुलिस ने जांचपड़ताल शुरू कर दी थी. फोरैंसिक वैज्ञानिकों द्वारा 1999 में डीएनए जांच के आधुनिक तरीके अपनाए गए थे और इस के लिए एक नैशनल लेवल पर डेटाबेस तैयार किया गया था.
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हाईप्रोफाइल मामला होने के कारण कोर्ट परिसर और आसपास सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे. इस विशेष अदालत में इन आतंकियों को कड़ी सुरक्षा के बीच लाया गया था. फैसले को ले कर कोर्टरूम पत्रकारों, वकीलों व अन्य लोगों से भरा हुआ था. सभी को इस फैसले का बड़ी ही बेसब्री से इंतजार था. निर्धारित समय पर विशेष अदालत के जज मुजीबुर रहमान कोर्टरूम में आ कर अपनी कुरसी पर बैठे तो वहां मौजूद सभी लोगों की नजरें उन पर जम गईं.
आगे बढ़ने से पहले आइए हम इस आतंकवादी हमले को याद कर लें. यह आतंकवादी हमला इतना वीभत्स था कि विश्वभर में इस की गूंज सुनाई दी. इस आतंकवादी हमले ने बंगलादेश को ही नहीं, भारत सहित कई देशों को स्तब्ध कर दिया था. दूतावास इलाके में हमला होने से बंगलादेश की छवि धूमिल हुई थी. इस के बाद पुलिस ने जगहजगह छापेमारी कर सैकड़ों संदिग्धों को हिरासत में लिया था.
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जब सारी जमापूंजी खर्च हो गई और कोई फायदा नहीं हुआ तो रूप सिंह दवा बंद कर के तंत्रमंत्र से अपनी जीवन की बुझती ज्योति को जलाने की कोशिश करने लगा. वह एक मुसीबत से जूझ ही रहा था कि अचानक एक और मुसीबत उस समय आ खड़ी हुई, जब जुलाई, 2016 के आखिरी सप्ताह में एक दिन उस की 16 साल की बेटी सत्यवती अचानक गायब हो गई. एकलौती होने की वजह से सत्यवती ही मीराबाई और रूप सिंह के लिए सब कुछ थी.
उस के अलावा पतिपत्नी के पास और कुछ नहीं था. इसलिए बेटी के गायब होने से दोनों परेशान हो उठे. रूप सिंह बीमारी की वजह से लाचार था, इसलिए मीराबाई अकेली ही बेटी की तलाश में भटकने लगी. जब बेटी का कहीं कुछ पता नहीं चला तो आधी रात के आसपास वह रोतीबिलखती थाना खातेगांव जा पहुंची.
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किसी व्यक्ति ने नाले में पड़े सूटकेसों की जानकारी जिला पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. पुलिस कंट्रोल रूम ने बिना किसी विलंब के इस मामले की जानकारी वायरलैस द्वारा प्रसारित कर दी. इस से घटना की जानकारी जिले के सभी पुलिस थानों और अधिकारियों को मिल गई. चूंकि मामला नेरल पुलिस थाने के अंतर्गत आता था, इसलिए नेरल थानाप्रभारी तानाजी नारनवर ने सूचना के आधार पर थाने के ड्यूटी अफसर को मामले की डायरी तैयार कर घटनास्थल पर पहुंचने का आदेश दिया.
ड्यूटी अफसर डायरी बना कर अपने सहायकों के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. घटनास्थल थाने से करीब 15-20 मिनट की दूरी पर था, वह पुलिस वैन से जल्द ही वहां पहुंच गए.
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गैंगरेप की बात सुन कर ड्यूटी अफसर ने लड़की से उस का नामपता पूछ कर उसे सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘तुम वहीं रुको, हम पुलिस की गाड़ी भेज रहे हैं.’’
सुबहसुबह गैंगरेप की सूचना मिलने पर कंट्रोल रूम में मौजूद पुलिसकर्मी परेशान हो उठे थे. ड्यूटी अफसर ने तुरंत वायरलैस संदेश दे कर पैट्रोलिंग पुलिस टीम को मौके पर जाने को कहा. इस के बाद पुलिस अधिकारियों को वारदात की सूचना दी गई. एमएनआईटी यानी मालवीय नैशनल इंस्टीट्यूट औफ टेक्नोलौजी राजस्थान का जानामाना इंस्टीट्यूट है, जो जयपुर के बीच मालवीय नगर, झालाना डूंगरी में स्थित है.
कड़ाके की ठंड में सुबह 5 बजे लोगों का घर में रजाई से बाहर निकलने का मन नहीं होता. लेकिन ठंड हो या गरमी, पुलिस को तो अपनी ड्यूटी करनी ही होती है. सूचना पा कर जयपुर (पूर्व) के पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंच गए.
दीप्ति के फेसबुक अकांउट में तो पुलिस को ऐसा कोई संदिग्ध नहीं मिला, जिस से कातिल तब पहुंचने में मदद मिलती. लेकिन फेसबुक की जांचपड़ताल में यह जरूर पता चला कि दीप्ति का फेसबुक अकाउंट आखिरी बार 29 नवंबर को अपडेट हुआ था. उस दिन दीप्ति ने ही एक मैसेज डाला था. इस से पहले उस ने 27 नवंबर को दिमाग अपसेट होने का एक मैसेज डाला था.
इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि संभवत: वह अपनी मां की मौत के बाद काफी दुखी रही होगी. पुलिस को अंदेशा हुआ कि कोई परिचित व्यक्ति दीप्ति की इस स्थिति का फायदा उठाना चाह रहा होगा.
धारूहेड़ा पुलिस दीप्ति की हत्या की गुत्थी सुलझाने में बुरी तरह उलझ कर रह गई थी. उस की हत्या किस कारण से की गई और वह दिल्ली से धारूहेड़ा कैसे पहुंची, इस का अभी तक पता नहीं चला पाया था. हत्यारों का कोई सुराग नहीं मिला था. यह खुलासा भी नहीं हो पाया था कि उस की हत्या दिल्ली में की गई थी या हरियाणा में.
अभी पुलिस प्रयासों में जुटी ही थी कि 11 दिसंबर की शाम को रेवाड़ी जिले की एसएसपी नाजनीन भसीन के पास सूरत पुलिस के एक उच्चाधिकारी का फोन आया, जिन्होंने बताया कि सूरत के थाना सरथाना की पुलिस ने हेमंत लांबा नाम के शख्स को गिरफ्तार किया है, जिस ने एक टैक्सी चालक तथा दिल्ली में रहने वाली अपनी प्रेमिका दीप्ति की हत्या करने का जुर्म कबूल किया है.
पकड़े गए युवक ने पुलिस को बताया है कि दीप्ति की हत्या कर के उस ने शव को धारूहेड़ा इलाके में फेंक दिया था. पूरी जानकारी मिलने के बाद रेवाड़ी एसएसपी को दीप्ति हत्याकांड से जुड़ी तमाम बातें याद आ गईं.
उन्होंने सूरत के पुलिस अधिकारी को आवश्यक जानकारी दे कर अपनी टीम के तत्काल सूरत पहुंचने का आश्वासन दिया.
उसी दिन उन्होंने पुलिस हैडक्वार्टर से डीएसपी हंसराज के साथ इंसपेक्टर सुधीर कुमार को सूरत रवाना कर दिया. देर रात तक रेवाड़ी से गई पुलिस टीम सड़क के रास्ते सफर तय कर के सूरत के पुलिस स्टेशन सरथाना पहुंच गई, जहां उन्होंने एसएचओ टी.आर. चौधरी से मुलाकात की.
बातचीत में पता चला कि जिस हेमंत लांबा को पुलिस ने पकड़ा है, उस ने केवल दीप्ति की ही हत्या नहीं की, बल्कि इस चक्कर में उस ने एक और हत्या को भी अंजाम दिया था.
34 वर्षीय हेमंत लांबा को इंसपेक्टर सुधीर कुमार के समक्ष लाया गया, तो वह उसे देख कर चौंक पड़े, क्योंकि वह कोई साधारण इंसान नहीं, बल्कि बेहद आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक था. पुलिस ने उस से सूरत में ही पूछताछ शुरू कर दी.
हेमंत लांबा फिटनैस इंडस्ट्री का जानामाना नाम था. उस की पहचान एक बौडी बिल्डर व फिटनैस एक्सपर्ट के तौर पर होती थी. वह नैशनल अवार्डी बीटेक सिविल इंजीनियर था. वह बौडी स्टेरोन हेल्थकेयर प्रा. लि. दिल्ली का चेयरमैन व बौडी स्टेरोन नैशनल बौडी बिल्डिंग ऐंड स्पोर्ट्स फेडरेशन का राष्ट्रीय महासचिव भी था. उस ने लार्जस्ट स्पोर्ट्स ऐंड फिटनैस चैंपियनशिप का आयोजन भी किया था.
इस के अलावा वह लांबा ग्रुप औफ इंडस्ट्रीज का चेयरमैन भी था. हेमंत लांबा उत्तम नगर, दिल्ली के विश्वास पार्क निवासी एक समृद्ध परिवार का युवक था. नामचीन आदमी होने के साथ वह अय्याश भी था.
वह लड़कियों को कपड़े की तरह बदलता था. 3 महीने पहले हेमंत और दीप्ति की जानपहचान फेसबुक के जरिए हुई थी. जल्द ही दोनों की मेलमुलाकातें होने लगीं और दोनों एकदूसरे पर जान छिड़कने लगे. दोनों अक्सर साथ घूमते, होटलों में खाना खाते और साथसाथ शौपिंग करते. हेमंत ने उस से शादी करने का वादा किया था.
पिछले कुछ दिनों से दीप्ति हेमंत पर दबाव बना रही थी कि वह उसे कहीं घुमाने के लिए ले चले. दीप्ति की इसी जिद के कारण 6 दिसंबर को हेमंत ने उसे फोन कर के कहा कि आज वह उसे लौंग ड्राइव पर ले जाना चाहता है. सुन कर दीप्ति खुश हुई.
6 दिसंबर को वह दीप्ति को घुमाने के बहाने अपनी अकोर्ड गाड़ी में ले कर निकला. दिन भर दोनों इधरउधर साथ घूमते रहे. हमेशा की तरह एक बार फिर दीप्ति ने हेमंत से शादी करने की ख्वाहिश जताई तो हेमंत ने कहा कि वह जल्द ही उस की ये ख्वाहिश पूरी करेगा.
उस दिन दोनों बेहद खुश थे. शाम को जब दीप्ति ने घर चलने के लिए कहा तो हेमंत बोला कि जब लौंग ड्राइव पर निकले हैं तो घर जाने की क्या जल्दी है. अभी तो रात बाकी है. चलते हैं कहीं दिल्ली से दूर.
कहते हुए हेमंत ने गाड़ी गुड़गांव की तरफ मोड़ दी. शाम का धुंधलका शुरू होते ही हेमंत ने शराब और बीयर की बोतलें ले लीं. फिर 2-3 घंटे तक इधरउधर गाड़ी घुमाते हुए हेमंत खुद भी शराब के पैग लेता रहा और दीप्ति को भी 2-3 बीयर के कैन पिला दिए.
रात के करीब 10 बजे जब हेमंत और दीप्ति दोनों पर शराब का अच्छाखासा सुरूर छा गया, तो हेमंत ने गुड़गांव के पास एक सुनसान जगह पर गाड़ी रोक दी.
सुनसान जगह देख हेमंत ने दीप्ति को अपनी लाइसैंसी रिवौल्वर से एक के बाद एक 2 गोली मार कर उस की हत्या कर दी. हत्या के बाद उस ने शव को डिक्की में डाला और अगली सीट पर फैले खून को कपडे़ व पानी से साफ कर दिया. इस के बाद उस ने कार धारूहेड़ा की तरफ बढ़ा दी.
रात करीब 11 बजे उस ने नंदरामपुर बास रोड पर एक सुनसान जगह देख गाड़ी रोकी और दीप्ति का शव डिक्की से निकाल कर खाली प्लौट में एक फेंक दिया. दीप्ति का मोबाइल उस ने अपनी जेब में डाल लिया था. दीप्ति का शव फेंकने के बाद हेमंत वापस दिल्ली लौट आया.
दिल्ली आ कर उस ने हत्या में इस्तेमाल की गई अपनी गाड़ी को 6 दिसंबर की रात में ही एक डीलर को बेचने की कोशिश की, लेकिन गाड़ी नहीं बिकी तो वह मायापुरी पहुंचा. वहां उस ने रात को 1 बजे गाड़ी एक कबाड़ी को बेच दी. गाड़ी बेचने से हेमंत की जेब में बड़ी रकम आ गई थी.
रात करीब ढाई बजे हेमंत ने अपने साथ लाए दीप्ति के फोन से जयपुर के लिए ओला कैब बुक की. जनकपुरी का रहने वाला कैब चालक देवेंद्र सिंह अपनी इनोवा गाड़ी से हेमंत को ले कर जयपुर की ओर चल पड़ा.
रास्ते में करीब 4 बजे हेमंत ने दीप्ति के मोबाइल से उस के पिता के मोबाइल नंबर पर दीप्ति की तरफ से वाट्सऐप मैसेज किया कि वह ठीक है.
सुबह करीब 9 बजे हेमंत जयपुर पहुंचा और वहां के एक होटल में ठहर गया. वहां उस ने वाईफाई के जरिए दीप्ति के मोबाइल पर इंटरनेट चलाया तो उसे सोशल मीडिया पर चल रही खबरों के जरिए पता चला कि धारूहेड़ा पुलिस ने दीप्ति का शव बरामद कर लिया है और उस की पहचान भी हो चुकी है.
इस से हेमंत को लगा कि अब पुलिस जल्द ही यह भी पता लगा लेगी कि दीप्ति की हत्या किस ने की है. उसे लगा कि अब पुलिस उस तक पहुंच जाएगी.
शहरी चकाचौंध और ग्लैमर ने आज देह धंधे के माने ही बदल दिए हैं. यह काफी हाईटैक हो गया है. देश में आज तकरीबन 1370 रैडलाइट एरिया हैं. इन में सब से ज्यादा देह धंधे वाला एरिया कोलकाता और मुंबई का है. अकेले मुंबई रैडलाइट एरिया का ही करोड़ों रुपए का साप्ताहिक आंकड़ा है. राजस्थान, उत्तर प्रदेश और ओडिशा ऐसे राज्य हैं, जहां देह धंधे की प्रथा का लंबा इतिहास रहा है. जयपुर ‘सवारियों’ के खेल में काफी तरक्की कर रहा है. इस वजह से गरम गोश्त के बेचने वालों की बांछें खिलती जा रही हैं.
प्रशासन या राज्य ने इस ओर इसलिए भी अपनी आंखें बंद कर रखी हैं, क्योंकि उन का इस से करीबी ताल्लुक है. आखिरकार नेताओं और अफसरों की मौजमस्ती का भी तो सवाल है.
राजस्थान का कोई भी शहर इस गरम गोश्त के कारोबार से अछूता नहीं है. इन इलाकों में ज्यादातर ‘सवारियों’ का धंधा होता है. या यों कहें कि इधर इस धंधे की खास क्वालिटी है, जिस का नाम ‘सवारी’ दिया गया है. यानी वे औरतें जिन्हें इस शहर से उस शहर में जिस्म के भिखारियों के आगे भेजा जाता है. जिस औरत का इस्तेमाल लोकल लैवल पर किया जाता है, उसे ‘गाड़ी’ कहते हैं. राजस्थान में जहां ‘सवारियों’ का ज्यादा काम होता है, वे इलाके हैं जयपुर, कोटा, अलवर, डूंगरपुर, किशनगढ़, जोधपुर, गंगानगर, नागौर, जैसलमेर और सीकर. बाकी इलाकोें में ‘गाडि़यों’ और ‘सवारियों’ का खूब कारोबार होता है.
ये बातें देश के तमाम रैडलाइट एरिया में पिछले 3 सालों से रिसर्च कर रहे एक पत्रकार, लेखक मोहम्मद जावेद अनवर सिद्दीकी के आंकड़ों से हासिल हुई हैं.
‘सवारियों’ और ‘गाडि़यों’ के इस नायाब कारोबार से अजमेर भी अछूता नहीं रहा है. यहां गरम गोश्त के कारोबारी भी अपनी ‘सवारियों’ और ‘गाडि़यों’ के लिए मन्नतें मांगने आते हैं, क्योंकि यहां हर किसी की मुरादें पूरी होती हैं.
पिछले 4 साल से अख्तरी बेगम (बदला हुआ नाम) ‘सवारियों’ को लाने और उन्हें सफर पर भेजने तक का सारा कारोबार करती है. उस के पास दलाल माल ला कर बेचते हैं और ज्यादातर वह ट्रेनिंग पाई ‘सवारियों’ का ही कारोबार करती है.
अख्तरी बेगम का कहना है कि इस कारोबार में काहिल और बीमार हों, तब भी औरतें ‘सवारी’ पर जाती हैं और ‘गाडि़यों’ का काम शौकिया और पार्टटाइम कमाने वाली औरतों के लिए है. लेकिन धंधा चाहे ‘सवारी’ का हो या ‘गाड़ी’ का, एक बार जो औरत इस राह पर आ जाती है, उस का अंत उम्र ढल जाने के बाद या तो फुटपाथ पर पागलों की शक्ल में या कहीं दलालों के साथ कमीशनखोर के लैवल पर जा कर खत्म होता है. वे न तो मां रह पाती हैं, न बीवी, न बेटी और न बहन.
अजमेर और जयपुर में ज्यादातर ‘सवारियों’ को विदेश भेजा जाता है. विदेशों से आने वाले, जिन्हें यहां का गरम गोश्त भा जाता है, अपने देश में हमारे यहां से अपनी रातें रंगीन करने का सामान मंगाना ज्यादा पसंद करते हैं.
जाहिर है, इस कारोबार का रुतबा भी कम लुभावना नहीं होगा. इस में मोटी कमाई तो होती ही है, ज्यादा खतरा भी नहीं रहता. बस, अच्छी ‘सवारियों’ को इकट्ठा करना और उन्हें विदेशी भूखों के हवाले कर देना, बाकी वे जानें और उन का काम. उसे तो बस हवाईजहाज तक ले जाने की जिम्मेदारी निभानी होती है.
एक ‘सवारी’ से जो कारोबार का ग्राफ बनता है, जरा उस पर भी गौर करें. अमूमन देश के अलगअलग इलाकों से 12 साल से 21 साल की उम्र की लड़कियों को ‘सवारी’ के लिए चुन कर लाया जाता है.
आमतौर पर गरम गोश्त के विदेशी ग्राहक हमारे यहां के सौदागरों को अपनी पसंद और बजट भेजते हैं और उन्हें उन की पसंद की ‘सवारियां’ मुहैया करा दी जाती हैं. उन ‘सवारियों’ को विदेशों में काम के बहाने भेजा जाता है. कुछ ‘सवारियां’, जो पहली बार इस धंधे में आती हैं, उन्हें विदेश जा कर मोटी कमाई का लालच दे कर इस दलदल में उतार दिया जाता है.
‘सवारी’ एक बार विदेश क्या गई, उस का सबकुछ या तो लुट जाता है या फिर मिजाज ही ऐसा बन जाता है कि चाहत ही नहीं होती इस धंधे से बाहर आने की. जब तक हुस्न का जलवा रहता है, ‘सवारियां’ उड़नछू होती रहती हैं, फिर उम्र ढलने तक इतनी सोच उन में आ जाती है कि उन्हें इस कारोबार की सारी जानकारी हो जाती है और या तो वे इस कारोबार की रानी बन जाती हैं या अपनी जिंदगी अलगथलग काटने पर मजबूर हो जाती हैं.
राजस्थान से जो ‘सवारियां’ जाती हैं, वे काफी सैक्सी और कम उम्र की गठीली बालाएं होती हैं. जब वे सजतीसंवरती हैं, तो सचमुच बेहोश कर देती हैं. उन का भाव भी सब से ज्यादा होता है. खाड़ी देशों के गरम गोश्त के भूखे उन्हें देखते ही कुछ भी लुटाने को तैयार हो जाते हैं.
‘सवारियों’ में कुंआरियों का होना ही जरूरी नहीं है. इन में शादीशुदा भी होती हैं, जिन के मर्द इस बात से अनजान नहीं होते हैं कि उन की पटरानी किसी पराए मर्द की रातें रंगीन करने विदेश जा रही हैं. रही बात वीजा की, तो इस में भी कोई मुश्किल नहीं होती है.
औरतों को इन अंधी गलियों में धकेलने वाले कई देशों में फैले गिरोहों के लोगों द्वारा इन की सभी जरूरतें पूरी कर दी जाती हैं.
चांदी (बदला हुआ नाम) बताती है कि उसे एक ट्रक ड्राइवर से प्यार हो गया था. उस ने बड़ेबड़े सपने दिखाए थे और वह उस के साथ भाग आई अपने बंगाल से अजमेर. मांबाप, भाईबहन सब थे, मगर दुनिया की रंगीनियत देख कर वह बहक गई. पति था तो, लेकिन मनमौजी. वह भी कहीं कामधाम नहीं करता था और ऊपर से उसे मारतापीटता भी था.
सब से बड़ी बात तो यह थी कि उस मर्द से देह सुख भी चांदी को नहीं मिलता था. उस की सखीसहेलियां अपने पति की बातें उसे बताती रहती थीं, तो बेचारी चांदी सिसक कर रह जाती थी. शायद इसी कमजोरी को भांप गया था वह ट्रक ड्राइवर.
ट्रक ड्राइवर ने चांदी को खूब भोगा. उसी दौरान चांदी को मिल गई रजिया. रजिया ‘सवारियों’ को खाड़ी देशों में भेजने की ठेकेदार थी. उस ने उसे सारी बातें खूब समझा कर बताईं, जिसे सुन कर चांदी की समझमें बस इतनी बात आई कि अगर एक बार वह ‘सवारी’ बन गई, तो जिंदगीभर मौज से कटेगी. फिर तो अपने बापभाई को भी वह तार देगी. मायके की गरीबी छूमंतर हो जाएगी. उस ने ‘सवारी’ बन जाना कबूल कर लिया और दुबई चली गई.
बंगाल से दिल्ली, दिल्ली से जयपुर और जयपुर से अजमेर, इन तमाम जगहों पर लोगों ने चांदी को खूब भोगा और फिर वह दुबई चली गई. उस के साथ पहली बार दुबई जाने वाली एक और औरत थी. उस औरत के बारे में बताया गया कि वह अब तक अपने ही देश में जो विदेशी लोग आते हैं, उन को खुश करने होटलों में जाती रही है. सो, उसे उन लोगों के साथ रात बिताने की पूरी जानकारी है.
उस औरत के साथ चांदी को दुबई में एक होटल में ठहराया गया था. रोज सुबह उसी होटल में एक गाड़ी आ जाती थी, जो उसे ले कर शेखों के हरम तक पहुंचा आती थी.
शेख रातभर चांदी को खूब नोचखसोट कर सुबह तक तकरीबन बेहोशी की हालत में छोड़ दिया करते थे. फिर वही गाड़ी आती थी, जो उसे होटल में छोड़ आती थी.
होटल में आ कर जब चांदी को कुछ होश आता, तो अपनी ही अंटी में से पैसे जो उसे रात को शेख से मिलते थे, होटल और गाड़ी वाले को देने होते थे. वह खापी कर कुछ देर आराम करती और तब तक फिर से दूसरी रात के लिए बुकिंग आ जाती थी.
इस तरह एक साल बीत गया और उस ने 19 हजार रियाल जमा कर लिए.
कुछ और पैसों के लालच में चांदी ने अपने एजेंटों से बात की, तो उस ने उसे वीजा के लिए किसी के बारे में बताया, लेकिन फिर क्या हुआ उसे पता ही नहीं, क्योंकि उसे जब उस रात शेख ने नोचने की शुरुआत की तो वह इतना वहशियाना था कि बेचारी बेहोश हो गई और जब होश में आई तो हवाईजहाज में थी. फिर दिल्ली में आ पहुंची.
अब वह ऐसा काम नहीं करेगी, इतना सोचते हुए बाहर आई. एयरपोर्ट पर एक गाड़ी खड़ी थी, जिस में चांदी को उस के एजेंट के आदमी बिठा ले गए. वह कुछ सोच पाती, उस से पहले उस के सपनों ने दम तोड़ दिया.
‘हिंदुस्तान के प्रमुख देह व्यापार और उस के बदलते परिदृश्य’ विषय पर रिसर्च करने वाले मोहम्मद जावेद अनवर सिद्दीकी ने जयपुर, अलवर, कोटा, नागौर, गंगानगर, जोधपुर, बीकानेर, अजमेर, सीकर, बाड़मेर, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, टोंक, हनुमानगढ़, भरतपुर, बूंदी और बांसवाड़ा में जा कर सभी रैडलाइट इलाकों की छानबीन की.
इस से जो खास बातें सामने आई हैं, उन के मुताबिक पूरे देश में राजस्थान तीसरा ऐसा प्रमुख राज्य है, जहां से देश के बाहर ‘सवारियां’ भेजने का कारोबार होता है.
यह चौंकाने वाली बात है कि अगर सरकार देह व्यापार की मंडियों से टैक्स वसूल करने लगे, तो अकेला यह व्यापार देश की तमाम पंचवर्षीय योजनाओं को पूरा करने के लिए काफी है.
कोटा, राजस्थान की 2 पढ़ीलिखी सहेलियां रूबी और सविता (बदला हुआ नाम) पिछले 5 साल से जिस्मफरोशी का धंधा कर रही हैं. अब वे पछतावा नहीं कर रही हैं, बल्कि कहती हैं कि इतनी रईसी क्या बाहर मिलेगी?
बनारस से धंधे की शुरुआत करते हुए इन दोनों ने अब तक 3 बार ‘सवारी’ का सफर पूरा किया है. अब तो वे अपने ही देश में रह कर इस धंधे को अंजाम दे रही हैं. जिस्म की खरीदफरोख्त का काम अब बदनाम बस्तियों से होते हुए राज्य के गंवई इलाकों के घरों की चौखट तक को पार कर गया है. माहौल ऐसा बन गया है कि लोग अपनी पत्नी, सौतेली या कमजोर बहन, भांजी या दूसरी औरतों को गरम गोश्त की गलियों में खुद भेजते हैं, जिस के एवज में बैठेबिठाए बेहतर आमदनी हो जाती है.
यह बात भी कम चौंकाने वाली नहीं है कि कहींकहीं नौकरी की जरूरत ने भी कमसिन लड़कियों को जिस्म की तस्करी में फंसा दिया है.
साल 2015 में दिल्ली पुलिस ने नौकरी का झांसा दे कर जिस्मफरोशी के जाल में फांस कर गांव की औरतों और जवान होती कमसिन बालिकाओं को अरब देशों में बेचने वाले एक गिरोह का परदाफाश किया था. इस में 80 फीसदी राजस्थान की थीं, जो अपने घरबार की गरीबी, भुखमरी से जूझते लाचार मांबाप और कुपोषण की शिकार भाईबहनों की खातिर नौकरी करने घर से बाहर निकल गई थीं.
दिल्ली में पकड़े गए गरम गोश्त के सौदागरों ने जाहिर किया कि वे राजस्थान के जयपुर, अजमेर, ब्यावर और अलवर इलाकों से गांव की लड़कियों और औरतों को नौकरी का झांसा दे कर अपने जाल में लपेट लेते थे. इन अबलाओं को दिल्ली में सब से पहले इस गहरी अंधेर नगरी से रूबरू कराया जाता है, फिर कुछ खास गुर बताते हुए इस पेशे में उतार दिया जाता है.
कभी एकएक दाने को मुहताज जयपुर बाजार के तंग महल्ले के टूटेफूटे मकान में रहने वाली शायरा (बदला हुआ नाम) ने 40 लाख रुपए में एक मकान खरीद कर लोगों को चौंका दिया.
इस की खबर पुलिस को भी मिली, तो उस ने फौरन शायरा को दबोच लिया और उस के बाद यह राज खुला कि शायरा ‘सवारियों’ की कारोबारियों में से एक है.
जयपुर और अजमेर से शायरा महिला डांस म्यूजिकल ग्रुप की आड़ में गांवों से लाई गई बेबस लड़की को विदेश भेजने का काम करती थी. किराए के गुंडेमवालियों के बल पर वह एक शातिर कारोबारी बन गई थी. आज डांस स्कूल और म्यूजिकल ग्रुप की आड़ में राजस्थान के कई इलाकों में जिस्मफरोशी का काम चल रहा है. हकीकत यह है कि अजमेर इन दिनों इस धंधे की खास मंडी बना हुआ है.
मास्टरमाइंड और सब से बड़े रेगिस्तानी कारोबारी के रूप में सलाम उर्फ टोपीबाज का नाम सामने आया है. सलाम खुद तो मुंबई में रहता है, लेकिन जयपुर और अजमेर में इस के 3 खास एजेंट काम संभालते हैं.
इन एजेंटों के साथ उन की खास सैक्रेटरी की हैसियत से एकएक औरत भी रहती है. इन को एरिया में घूम रहे दलाल और सड़कछाप गुंडों के जरीए माल मिलता है. बताते हैं कि सलाम का नैटवर्क पिछले 10-12 सालों से चल रहा है. इस पर हाथ क्या नजर तक उठाने के लिए पुलिस को कई बार सोचना पड़ता है.
चाहे सलाम मुंबई में रहे या अजमेरजयपुर में, उस का नैटवर्क अब इतना तगड़ा हो गया है कि किसी भी तरह की अड़चन इस के कारोबार को डिस्टर्ब नहीं कर सकती है.
अब तो सलाम ने अपना कारोबार कंप्यूटराइज्ड कर लिया है. इंटरनैट या मोबाइल फोन पर ही सारा काम निबटा लिया जाता है.
जिस्म के सौदागरों का काम करने का तरीका भी कुछ अजीब सा है. ये देहात से लाई गई लड़कियों को डांस की टे्रनिंग देते हैं. उन के घर वालों को कहा जाता है कि उन की लाड़ली को विदेश में काम करने के लिए ले जा रहे हैं, जहां ये बहुत सारा रुपया कमा सकेंगी. मांबाप इजाजत देने से गुरेज नहीं करते, फिर उन्हें 20-25 हजार रुपए थमा दिए जाते हैं, जो उन्हें गरीबी के अंधेरे में किसी चांद से कम नहीं लगते. उन से यह भी कहा जाता है कि उन की बेटी विदेश से उन्हें मोटी रकम भेजती रहेगी. जब ये मासूम लड़कियां डांस की कुछ टे्रनिंग ले कर अरब देशों की जमीन पर उतार दी जाती हैं, तब जा कर इन्हें पता चलता है कि इन की मासूमियत को यहां शेखों की बांहों में मसला जाएगा.
क्या कोई बता सकता है कि लोग चंद सिक्कों में जो मासूम देह खरीदते हैं, वे आती कहां से हैं और कैसे?
इस सवाल का जवाब मिलेगा पश्चिम बंगाल के बागानों से, उत्तरपूर्व के पहाड़ों से, कश्मीर की सुनहरी वादियों से, दक्षिण भारत के समुद्री घाटों से और नेपाल के गांवों से. मुंबई के कमाठीपुरा, फारस रोड, फाकलैंड रोड और पीला हाउस जैसे इलाकों में हर महीने सैकड़ों नई नाबालिग लड़कियां पहुंचाई जाती हैं.
गरीबी की चक्की में पिसती ये भोलीभाली 10 से 12 साल की मासूम लड़कियों ने सिर्फ इतनी ही गलती की थी कि उन्होंने अपने लिए एक बेहतर जिंदगी का सपना देख लिया था. कई तो परिवार की सताई हुई होती हैं, कई दुबई जा कर खूब ज्यादा पैसा कमाने की तमन्ना लिए होती हैं, कइयों को मुंबई आ कर फिल्मी सितारे से शादी करनी होती है या खुद हीरोइन बनने का सपना देख रही होती हैं.
नेपाल बौर्डर पर तकरीबन हर थाने और सोनौली व भैरवाट्रांजिट कैंप में ऐसे बोर्ड लगे हैं, जिन पर नेपाल से गायब हुई ऐसी तमाम लड़कियों के फोटो चस्पां होते हैं, जिन्हें देह धंधे की भेंट चढ़ा दिया जाता है.
इन तथाकथित गुमशुदा नाबालिग और बालिग लड़कियों को कभी बरामद नहीं किया जा सका है, यह रिकौर्ड उन पुलिस थानों में मिल सकता है. अलबत्ता, उन में से तकरीबन 90 फीसदी लड़कियों के घर वाले जान चुके होते हैं कि उन की लाड़ली परदेश में पैसा कमा रही है. थानों में लगे पुराने फोटो उम्मीदों की तरह धुंधले भी होते जाते हैं.
मोईती, नेपाल के एक सदस्य के पास एक गांव का बाशिंदा आता है और अपनी पत्नी को किसी लोगों के द्वारा बहलाफुसला कर भगा ले जाने की बाबत शिकायत करता है, उस के बारे में जब तहकीकात की जाती है, तो पता चलता है कि उस की बीवी मुंबई में है और अच्छीखासी कमाई कर रही है. लिहाजा, उसे परेशान होने की जरूरत नहीं है.
इस खबर के साथ बेचारे के हाथ में एक हजार रुपए थमा दिए जाते हैं और बताया जाता है कि अब हर महीने उसे उस की बीवी की ओर से 2 हजार रुपए मिलेंगे, सो वह अपनी जबान बंद ही रखे.
वह आदमी कुछ दिनों तक तो यों ही खोजता फिरा, फिर बाद में जब पता लगा कि उस की बीवी पुणे के बुधवारपेठ रैडलाइट इलाके में एक कोठे पर काजल नामक बाई के पास है, तो वह थाने से पुलिस के साथ चल पड़ा अपनी बीवी की छुड़ाने को. जुगत काम आई और पुलिस दस्ते ने उस की बीवी को सुरक्षित बरामद कर लिया. पुलिस ने उस की बीवी के साथ 5 नेपाली दलालों को भी पकड़ लिया.
कुछ गिरोह नेपाल के पहाड़ों और तराई में बसे गांवों की गरीब नाबालिग लड़कियों के जत्थे को मुंबई की देह मंडी में झोंक देते हैं. इस बारे में कोई तय आंकड़ा भी मुहैया नहीं है, जिस से पता चले कि कितनी लड़कियां हर साल नेपाल की तराइयों से ला कर मुंबई में बेच दी जाती हैं.
लेकिन सरकारी सूत्रों की अगर मानें, तो जाहिर होता है कि 4 से 5 हजार लड़कियों को बहलाफुसला कर नेपाल के रास्ते भारत की सब से बड़ी देह मंडी कमाठीपुरा में बेच दिया जाता है. इन में से 40 फीसदी बहलाफुसला कर, 30 फीसदी जबरन, जिस में उन के घर और रिश्तेनातेदारों की रजामंदी होती है. 30 फीसदी पैसे कमाने की खातिर इस दलदल में आती हैं.
10 मार्च, 2016 की सुबह सैकड़ों लोग भोपाल के पौश इलाके टीटी नगर के कस्तूरबा स्कूल के सामने बने शीतला माता मंदिर के इर्दगिर्द इकट्ठा हो रहे थे. उस दिन वहां कोई धार्मिक जलसा नहीं हो रहा था और न ही यज्ञहवन या भंडारा था. भीड़ गुस्से में थी. कुछ लोगों के हाथ में लोहे के सरिए थे. देखते ही देखते लोगों ने मंदिर के पीछे बनी दीवार तोड़ डाली, जो इस मंदिर के 58 साला पुजारी राजेंद्र शर्मा के घर की थी.
अभी भीड़ तोड़फोड़ कर ही रही थी कि दनदनाती हुई पुलिस की गाडि़यां आ खड़ी हुईं. पुलिस वाले नीचे उतरे और भीड़ को तितरबितर करने की कोशिश करने लगे, लेकिन उन के पास लोगों खासतौर से औरतों के इस सवाल का कोई जवाब नहीं था कि जब परसों उन की बेटी की इज्जत इसी मंदिर में लुट रही थी, तब पुलिस कहां थी?
इस सवाल के जवाब से ज्यादा अहम पुलिस वालों के लिए यह था कि भीड़ पुजारी के घर को और ज्यादा नुकसान न पहुंचा पाए, लिहाजा, पुलिस वालों ने औरतों को समझाया और 4 लोगों को तोड़फोड़ और बलवे के इलजाम में गिरफ्तार कर लिया.
यों फंसाया शिकार
कस्तूरबा नगर में झुग्गीझोंपडि़यां भी काफी तादाद में हैं. यहां के बाशिंदों की अपनी अलगअलग परेशानियां हैं, जिन्हें दूर करने वे इस मंदिर में अपना माथा झुकाने आया करते थे. मंदिर का पुजारी राजेंद्र शर्मा नकद चढ़ावा और प्रसाद बटोरता था और इस के एवज में भगवान की तरफ से गारंटी भी देता था कि यों ही चढ़ावा चढ़ाते रहो, आज नहीं तो कल जब भी तुम्हारी बारी आएगी, भगवान जरूर सुनेगा और परेशानी दूर करेगा.
ऐसी ही एक हैरानपरेशान औरत ललिता बाई (बदला नाम) थी, जिस का पति जगन्नाथ प्रसाद (बदला नाम) शराब की लत का शिकार हो कर निकम्मा हो चला था. नशे में धुत्त रहने वाले जगन्नाथ को घरगृहस्थी तो दूर की बात है, जवान हो रही बेटी आशा (बदला नाम) की भी चिंता नहीं थी कि वह 12 साल की हो रही है और जैसेतैसे 5वीं जमात तक पहुंची है.
ललिता की चिंता यह थी कि अगर पति ने नशा करना नहीं छोड़ा, तो बेटी के हाथ पीले करना मुश्किल हो जाएगा. काफी समझाने के बाद भी जगन्नाथ की शराब की लत नहीं छूटी, तो ललिता उसे मंदिर ले गई और पुजारी राजेंद्र शर्मा के आगे अपना दुखड़ा रोया. पुजारी राजेंद्र शर्मा तो मानो इसी दिन का इंतजार कर रहा था. उस ने ललिता को एक टोटका बता दिया कि रोजाना मंदिर में दीया लगाओ, तो जगन्नाथ की शराब की लत छूट सकती है.
इस मशवरे के पीछे इस पुजारी की मंशा यह थी कि जगन्नाथ के घर से रोज दीया रखने तो ललिता आने से रही, क्योंकि माहवारी के दिनों में औरतें मंदिर में पैर रखना तो दूर की बात है, नजदीक से भी नहीं गुजरतीं. ऐसे में जाहिर है कि कभी न कभी ललिता अपनी बेटी आशा को भेजेगी और तभी वह अपनी हवस की आग बुझा लेगा. और ऐसा हुआ भी. 8 मार्च, 2016 की शाम को दीया रखने आशा आई, तो ललिता की तो नहीं, पर राजेंद्र शर्मा की मुराद पूरी हो गई. जैसे ही आशा ने दीया लगाया, तो राजेंद्र ने उसे मंदिर की एक परिक्रमा लगाने को भी कहा.
आशा ने मंदिर का चक्कर लगाया और मंदिर के सामने आ खड़ी हुई. इस पर राजेंद्र ने उसे एक और दीया मंदिर के भीतर आ कर लगाने को कहा. जैसे ही वह दीया लगाने मंदिर के अंदर गई, तो हवस के इस पुजारी ने उसे खींच लिया और इज्जत तारतार कर दी. अपनी हवस पूरी करने के बाद राजेंद्र शर्मा ने रोती कराहती आशा को धमकी दी कि अगर किसी को कुछ बताया, तो अंजाम अच्छा नहीं होगा.
घर आ कर आशा ने मां ललिता को अपने साथ मंदिर में हुई ज्यादती की बात बताई, तो ललिता का खून खौल गया. ललिता ने कुछ खास लोगों को बात बता कर सीधे थाने का रुख किया. मंदिर की तरह थाने में भी ललिता की सुनवाई नहीं हुई और मौजूदा पुलिस वाले उसे टरकाने की कोशिश करते हुए रिपोर्ट लिखने में आनाकानी करने लगे, पर अब तक महल्ले के काफी लोग थाने के बाहर जमा हो चुके थे. लिहाजा, पुलिस को पुजारी राजेंद्र शर्मा के खिलाफ बलात्कार की रिपोर्ट लिखनी पड़ी और उसे गिरफ्तार भी करना पड़ा.
दूसरे दिन 9 मार्च, 2016 को जैसे ही मंदिर में नाबालिग से बलात्कार की खबर आम हुई, तो लोगों ने जीभर कर पुजारी राजेंद्र शर्मा को कोसा, लेकिन यह कम ही लोगों ने सोचा कि मंदिर में बैठी शीतला माता ने क्यों नहीं आशा की इज्जत बचाई? क्यों फिल्मों की तरह उस का त्रिशूल उड़ कर राजेंद्र शर्मा की छाती में जा घुसा? क्यों किसी सांप ने आ कर उसे नहीं डसा, जो मंदिर में हैवानियत कर रहा था?
ऐयाशी के अड्डे
देवी ने कुछ नहीं किया, तो 10 मार्च, 2016 को गुस्साए लोगों ने ही इंसाफ करने की ठान ली, पर पुलिस बीच में आ गई, तो मामला आयागया हो गया. लेकिन यह हादसा कई सच उजागर कर गया कि मंदिर बलात्कार करने के लिए महफूज जगह है, क्योंकि ये भगवान के घर हैं, इसलिए यहां कुछ गलत नहीं हो सकता. लेकिन हकीकत में मंदिर हमेशा से ही पंडेपुजारियों की ऐयाशी के अड्डे रहे हैं.
घनी बस्तियों में बने मंदिरों में तो दुकानदारी के खराब होने के डर से थोड़ाबहुत लिहाज चलता है, पर शहर से दूर सुनसान और नदी किनारे बने मंदिरों में शाम होते ही चिलम सुलग उठती है और गांजे के धुएं से पूरा माहौल ही गंधाने लगता है. दिनभर तो साधुसंत घरघर जा कर भीख मांगते हैं और शाम को अफीमगांजा और शराब के सेवन से अपनी थकान उतारते हैं.
भोपाल की बस्तियों में बने नाजायज मंदिरों पर कब्जा जमाने की नीयत से ज्यादातर पुजारी वहीं पर ही घर बना कर रहने लगे हैं, क्योंकि जमीनों के दाम आसमान छू रहे हैं और अहम बात यह कि अगर इलाका रिहायशी हो, तो दुकान खुद ब खुद चल पड़ती है.
लोग सुबहशाम मंदिर का घंटा बजाते हैं, पैसाप्रसाद चढ़ाते हैं और पुजारी की भी खासी इज्जत करते हैं, क्योंकि वही उन्हें बताता है कि किस उपाय से कौन सा दुख दूर होगा. पति जगन्नाथ की शराब पीने की आदत तो इस से नहीं छूटी, उलटे नाबालिग बेटी की इज्जत देवी की आंखों के सामने तारतार होते लुट गई. इस से कुछ लोगों की आंखें खुलीं, तो उन्होंने बलवा कर डाला, जो समस्या का हल नहीं कहा जा सकता.
समस्या का हल है भगवान और उस का राग अलाप कर दोनों हाथों से पैसा बटोरते पंडेपुजारियों की असलियत समझना कि देवी या देवता कुछ नहीं कर सकते, लेकिन इन की आड़ में पुजारी जो न करे सो कम है. सालभर मंदिरों में धार्मिक जलसे हुआ करते हैं. गरीबों से कहा जाता है कि भगवान सभी की गरीबी दूर करेगा.
ऐसा होता तो अब तक देश में एक भी गरीब न बचता, लेकिन चढ़ावे के चक्कर में गरीब हर तरफ से लुटपिट रहा है और उन की औरतों की इज्जत ये पुजारी कैसे करते हैं, भोपाल की 2 वारदातों ने इसे उजागर किया है. हालांकि आसाराम बापू जैसे भी नाबालिग लड़की की इज्जत अपने आश्रम में ही लूटने के इलजाम में जेल की सजा काट रहे हैं, पर उन से यह सबक कौन सीखता है कि मंदिर जाने से पाप नहीं धुलते, बल्कि पाप होने देने के मौके बढ़ जाते हैं.
यह भी बनी शिकार
दानदक्षिणा ले कर भक्तों के लोकपरलोक सुधरवाने का दावा करने वाले पुजारियों का खुद का लोक कितना बिगड़ा होता है, इस की एक और मिसाल भोपाल में ही 15 मार्च, 2016 को देखने में आई. 38 साला गोमती (बदला नाम) को उस के पति ने तलाक दे दिया था, इसलिए वह रोजगार और काम की तलाश में रायसेन से भोपाल चली आई और बाग दिलकुशा इलाके में किराए के मकान में रहने लगी.
घर के पास बने मंदिर में गोमती रोज जाने लगी, तो पुजारी दुर्गा प्रसाद दुबे ने उसे अपनी बातों के जाल में फंसा लिया और 6 साल तक उस का जिस्मानी शोषण किया. इस के एवज में शादी का वादा भी किया. पर जब दुर्गा प्रसाद दुबे का जी गोमती से भरने लगा, तो वह शादी के वादे से मुकरने लगा. घरों में झाड़ूपोंछा और बरतनकपड़े धो रही गोमती जैसेतैसे अपने जवान होते बेटे का पेट पालती थी. वह पुजारी की बीवी बनने का सपना देखने लगी थी. जब यह ख्वाब टूटा, तो वह भी सीधे थाने गई और पुजारी की ज्यादतियों और देह शोषण के खिलाफ रिपोर्ट लिखाई. पुलिस ने दुर्गा प्रसाद दुबे को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.