Top 10 Medical Crime Stories In Hindi: टॉप 10 मेडिकल क्राइम स्टोरीज हिंदी में

Top 10 Medical Crime Stories In Hindi : इन मेडिकल क्राइम स्टोरीज को पढ़कर आप जान पाएंगे कि चिकित्सा क्षेत्र में आज कल इलाज के नाम पर क्या क्या घोटाले किए जा रहे हैं. कहीं नकली दवाएं बेचीं जा रही हैं तो कही घटिया पेसमेकर लगा कर डाक्टर अपनी तिजोरियां भर रहे हैं. जिन डॉक्टर्स को हम भगवान् का दरजा देते हैं, वही अपने फायदे के लिए मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ करने से भी नहीं चूक रहे. मनोहर कहानियां के इस आर्टिकल में हम लेकर आए हैं ऐसी ही Top 10 Medical Crime Stories In Hindi

1. फरजी डाक्टर, औपरेशन धड़ाधड़, 9 मौतें

महेंद्र टेक्नीशियन होने के बाद भी मैडिकल सेंटर चला रहा था. यहां दलालों को 35 फीसदी की दलाली दे कर मरीजों को बुलाया जाता था, जिस के बाद उन की नकली ब्लड रिपोर्ट तैयार की जाती थी. ब्लड रिपोर्ट में फरजी बीमारियां दिखा कर लैब टेक्नीशियन उसी आधार पर उन लोगों का औपरेशन कर देता था.

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2. घटिया पेसमेकर से 200 की मौत

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जांच में पता चला है कि  डा. समीर सर्राफ ने कुछ मामलों में तो मरीजों को यूज्ड यानी कि इस्तेमाल किए गए पेसमेकर ही धोखे से लगा डाले थे. यानी कि यदि किसी मरीज की मौत हो गई थी तो धोखे से उस मरीज का पेसमेकर निकाल लिया और फिर उसी पेसमेकर को किसी दूसरे मरीज के अंदर प्लांट कर दिया, जबकि वह दूसरे मरीज से नए और ब्रांडेड पेसमेकर के पैसे पहले से ही वसूल चुका होता था.

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3. जहरीला कफ सिरप

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कुछ घंटे बाद इरफान की नींद खुल गई. वह बेचैनी की हालत में था. अचानक जोर की खांसी उठी और उसे उल्टियां होने लगीं. जफर ने दवाई दुकानदार के कहे अनुसार उसे दूसरी खुराक पिला दी. बच्चा फिर सो गया. गहरी नींद में सो रहे बच्चे को देख कर जफर एक बार फिर आश्वस्त हो गया कि उस का बेटा स्वस्थ होने की स्थिति में आ चुका है. किंतु उस ने बच्चे में एक बदलाव भी देखा. उस का पेट फूला हुआ था.

जफरुद्दीन तुरंत उसे ले कर जम्मू शहर के अस्पताल गए. डाक्टर को दिखाया. डाक्टर ने उस की हालत देख कर भरती कर लिया. उस का इलाज शुरू हुआ, लेकिन हालत सुधरने के बजाय दिनबदिन बिगड़ती चली गई और सप्ताह भर बाद इरफान की मृत्यु हो गई.

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4. चाइना गर्ल (फेंटानाइल) : दर्द से नहीं, जिंदगी से राहत

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राजेश ने जब तीसरी गोली खाई तो उसे पूरा विश्वास हो गया कि इस गोली को खाने से ऐसा नशा होता है, जो न तो किसी को पता चलता है और न कोई जान पाता है कि इसे खाने वाला कोई नशा किए है. जबकि गोली को खाते ही तुरंत नशा हो जाता है, जो कम से कम से 8 से 10 घंटे तक रहता है.

राजेश को उस के दोस्त ने मात्र 3 गोलियां ही ला कर दी थीं. उस ने तीनों गोलियां खा लीं. अब उस के पास उस दवा की एक भी गोली नहीं थी. वह दिन में पढ़ाई करता था और अपना खर्च चलाने के लिए सुबहशाम पार्ट टाइम नौकरी भी करता था. एक दिन अचानक राजेश की मौत हो गई.

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5. वर्षा वानखेड़े बनी मुन्नाभाई एमबीबीएस

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एक दिन अंबिकापुर (छत्तीसगढ़) के एसपी सुनील शर्मा के पास डा. खुशबू साहू नाम की महिला पहुंची. उस ने बताया, ”सर, मैं इस समय सरगुजा जिले के लहपटरा में स्थित सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में तैनात हूं. मुझे पता चला है कि मेरे नाम से होली क्रौस अस्पताल में कोई महिला डाक्टरी कर रही है. उस के कागजों की जांच कर कानूनी काररवाई की जाए.’‘

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6. यूट्यूबर बना नीम हकीम

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अब्दुल्ला पठान जानता था कि देसी दवाओं की तरफ देशवासियों का रुझान बढ़ रहा है और इस लाइन में खूब दौलत कमाई जा सकती है. इस ने किसी हकीम के पास, किसी वैद्य के पास पुड़िया बांधने, इलाज करने या उपचार करने का काम कभी नहीं सीखा. सरकारी संस्थान या प्राइवेट संस्थान में आयुर्वेदिक या यूनानी दवा की कोई पढ़ाई भी नहीं की.

इस की शैक्षिक योग्यता इंटरमीडिएट पास बताई गई है. मर्दाना ताकत, धात, नाइटफाल, टाइम बढ़ाना, लिकोरिया, वजन बढ़ाना, बालों का झड़ना, पेट का इलाज, पथरी का इलाज, चेहरे पर पिंपल आदि बीमारियों का इलाज देसी जड़ीबूटियों द्वारा करने का यह प्रचार करने लगा. स्त्री एवं पुरुषों के गुप्त रोगों के इलाज का सोशल मीडिया पर बैनर जारी कर दिया.

7. फर्जी डाक्टर नकली शादियां

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थाने में शिंदे से पूछताछ के बाद उस के बारे में जो कहानी सामने आई, वह चौंकाने वाली थी. बल्कि वह एक फरजी डाक्टर पाया गया. उस ने जालसाजी से 4 शादियां रचा रखी थीं. सभी में पत्नियों का नाम संयोग से पूजा था. बरामद 2 विवाह प्रमाणपत्र भी फरजी पाए गए. एक पर नाम डा. प्राजक्ता शिंदे दर्ज था, जबकि दूसरे पर डा. पूजा कुशवाहा का नाम लिखा था.

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8. आयुष्मान योजना में फरजीवाड़ा

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मैक्सकेयर हौस्पिटल के संचालक के कहने पर 4 जनवरी, 2022 से 17 जनवरी, 2022 तक जोहान मैक्सकेयर हौस्पिटल में एडमिट रहा. इस दौरान अस्पताल प्रबंधन ने  आयुष्मान कार्ड से फ्री इलाज न कर खालिद अली से पैसे जमा कराए थे.

लाखों रुपए लुटाने के बाद भी बेटे की हालत में सुधार होते न देख खालिद उसे पहले भोपाल के एम्स ले गए, वहां से डीआईजी बंगले के पास स्थित अस्पताल में भरती कराया गया. आखिरकार, चंद ही घंटों में मासूम जोहान को मृत घोषित कर दिया गया.

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9. डुप्लीकेट दवाओं का सरगना

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यह बात 2 मार्च, 2023 की है. दरअसल, वाराणसी शहर के मंडुआडीह थाना क्षेत्र के लहरतारा, सिगरा थाना क्षेत्र सहित कैंट के कई इलाकों में एसटीएफ टीम की रेड पड़ गई थी. एसटीएफ ने कैंट इलाके के रोडवेज के पीछे व लहरतारा, महेशपुर में छापेमारी की, जहां उसे पेटेंट दवा कंपनियों के नाम की भारी तादाद में एलोपैथी दवाएं मिली थीं, जिसे देख टीम में शामिल जवानों की आंखें फटी की फटी रह गई थीं.

सभी के मुंह से निकल पड़ा था, ”ओफ! इतना बड़ा नकली दवाओं का रैकेट…’‘

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10. पैरामैडिकल फ्रेंचाइजी से भरी तिजोरी

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पंकज ने आयुष पैरामैडिकल काउंसिल औफ इंस्टीट्यूट की स्थापना की. यह मैडिकल के क्षेत्र में उस का पहला संस्थान था. इस पैरामैडिकल के जरिए उस ने मध्यमवर्गीय बच्चों को शिकार बनाना शुरू किया था.

उस ने छात्रों को होम्योपैथ, योगासन आदि की डिग्रियां बांटनी शुरू की और हर छात्र से 2 से 3 लाख रुपए वसूले थे. धीरेधीरे उस की यह धोखे की दुकान चल पड़ी और उस ने संस्थान के कारोबार को विस्तार देने के लिए अपने पिता सुरेंद्र बाबू गुप्ता, भाई इंदीवर पोरवाल और पत्नी कंचन पोरवाल को बोर्ड औफ डायरेक्टर में जोड़ लिया और संस्थान को बढ़ाने लगा.

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फर्जी डाक्टर नकली शादियां

अपने बारे में पूर्णव शंकर शिंदे ने लोगों को बताया कि उस ने आस्ट्रेलिया से एमबीबीएस कर रखा है. उस की मुलाकात डा. पूजा से हुई तो उस ने खुद को अविवाहित बताया जबकि वह शादीशुदा था. उस से नजदीकी बढ़ा ली फिर जल्द शादी भी कर ली.

पूजा की डाक्टर की डिग्री शिंदे के लिए लौटरी लगने जैसी थी. उस ने पहली पत्नी प्राजक्ता के नाम डा. पूजा बदल कर फरजी डिग्री बना ली. इस तरह से बीएएमएस प्राजक्ता नकली एमबीबीएस डिग्रीधारी डा. पूजा बन गई.

ऐसा कर शिंदे ने एकएक कर 2 अन्य युवतियों से भी शादी रचा ली थी. उस की जालसाजी यहीं नहीं रुकी थी, बल्कि उन लड़कियों से शादी के बाद उन के पहचानपत्र में अहम बदलाव करवा दिया था. नए नाम के एफीडेविट और अखबारों में नाम बदलने का विज्ञापन दे कर सब के नाम डा. पूजा करा दिए थे. उस के बाद सभी की फरजी एमबीबीएस की डिग्री भी बनवा ली थीं.

इस के पीछे उस ने एक खास योजना बना रखी थी, लेकिन उसे अंजाम तक पहुंचाने से पहले ही वह पुलिस के हत्थे चढ़ चुका था. हालांकि इस की उस ने बुनियाद रख ली थी.

दिल्ली एनसीआर का ग्रेटर नोएडा पिछले एक दशक में तेजी से विकसित होने वाला उपनगर बन चुका है. वहां न केवल रिहायशी मल्टीस्टोरी बिल्डिंगों में लोगों ने रहना शुरू कर दिया है, बल्कि उन की हर जरूरी सुविधाओं के लिए नएनए संसाधन और सुविधाएं भी मिलने लगी हैं. उन्हीं में एक अतिआवश्यक जरूरत मैडिकल सुविधा की भी है. डाक्टर की निजी क्लीनिक से ले कर सुपरस्पैशलिटी अस्पताल तक खोले जा रहे हैं.

बात अगस्त 2023 की है. ग्रेटर नोएडा के घोड़ी बछेड़ा गांव के पास एक 35-36 साल का दिखने वाला व्यक्ति अस्पताल खोलने के लिए जगह तलाश रहा था. वह एक बड़ी गाड़ी में सवार था, जिस के नंबर प्लेट के पास ही भाजपा के महामंत्री की चमकती हुई बड़ी प्लेट भी लगी हुई थी.

उसी समय उस की कार के पास उत्तर प्रदेश पुलिस की गाड़ी आ कर रुकी. उस में बैठेबैठे पुलिस अधिकारी ने आवाज लगाई, ”अरे भाई, यह गाड़ी किस की है? कौन है इस का मालिक?’’

”मेरी है, क्या बात है?’‘ भाजपा नेमप्लेट वाली गाड़ी से उतरने वाला व्यक्ति बोला.

”क्या नाम है?…और कहां के महामंत्री हो भाई!’‘ पुलिसकर्मी ने पूछा.

”मैं पूर्णव शंकर शिंदे हूं. डाक्टर हूं, महाराष्ट्र के जलगांव जिले का भाजपा का महामंत्री भी हूं.’‘

”आप को पता नहीं है यूपी का नियम? नंबर प्लेट से बड़ी महामंत्री की इतनी बड़ी किसी भी तरह की प्लेट लगानी मना है.’‘ पुलिसकर्मी ने कहा.

”इस में क्या गलत है? प्रदेश में भाजपा सरकार है, केंद्र में भी वही है, मैं उस का एक सिपाही हूं.’‘ शिंदे बोला.

”नेम प्लेट कहीं और लगा लो…और हां, यहां क्या करने आए हो?’‘

”मुझे यहां पर एक बड़ा अस्पताल खोलना है. उस के लिए जगह तलाश रहा हूं.’‘ शिंदे बोला.

इसी बीच सवालजवाब करने वाले उस पुलिस वाले के कान में पास बैठे दूसरे पुलिसकर्मी ने कुछ कहा.

पुलिस को शिंदे पर क्यों हुआ शक

दरअसल, शिंदे से सवाल जवाब करने वाले दादरी कोतवाली इंसपेक्टर सुजीत उपाध्याय थे. उन के बगल में बैठे साइबर सेल प्रभारी आशीष यादव को शिंदे की गतिविधियों पर कुछ संदेह हुआ था और इसी संदेह के चलते उन्होंने एसएचओ को धीमे से कुछ कहा था.

अभी तक नरमी से पूछताछ करते हुए उपाध्याय के तेवर अचानक बदल गए थे. उन्होंने सख्ती के साथ आदेश के अंदाज में कहा, ”अपना ड्राइविंग लाइसेंस दिखाओ और गाड़ी के सभी कागज ले कर आओ.’‘

”क्या हुआ जो आप गुस्से में बोल रहे हैं… आप लोग जानते नहीं मैं कौन हूं?’‘ शिंदे भी थोड़ा रौब से बोला.

”तू जो भी है, पहले यहां आ.’‘ इस बार यादव बोले.

”अभी आता हूं.’‘ कहता हुआ शिंदे अपनी ड्राइविंग सीट के सामने के लौकर से गाड़ी के कागजात निकाल कर 4 कदम दूरी पर खड़ी यूपी पुलिस की गाड़ी के पास चला गया.

उस के कागजात ले कर दोनों पुलिसकर्मी उलटपुलट कर देखने लगे. कुछ सेकेंड बाद ही उपाध्याय पूछने लगे, ”तू नेता है या डाक्टर? गाड़ी जलगांव, महाराष्ट्र की है और तू यहां नोएडा में डाक्टरी करता है. गाड़ी भी महाराष्ट्र की है…माजरा क्या है?’‘

”कुछ भी नहीं, मैं तो…’‘

”…तू सेक्टर म्यू-दो में रहता है न! वहां भी तूने एक अस्पताल का बोर्ड लगा रखा है, लेकिन क्लिनिक कहां है?’‘ यादव ने बीच में ही कई सवाल दाग दिए.

”आप लोग तो मेरे साथ बहुत गलत बरताव कर रहे हैं…’‘

”मुझे लगता है कि गलत तो तुम कर रहे हो. और ये क्या है? तुम्हारे ड्राइविंग डाक्यूमेंट के साथ शादी का सर्टिफिकेट! वह भी 2-2…’‘ यादव 2 पेपर लहराते हुए बोले. यह सुनते ही शिंदे बोल पड़ा, ”ऐंऽऽ शादी सर्टिफिकेट! नहीं तो!’‘

”मैं गलत बोल रहा हूं. दोनों आर्यसमाज मंदिर के हैं. उन पर नंबर एक ही है. चलो मेरे साथ थाने, आगे की पूछताछ वहीं होगी.’‘ यादव सख्ती से बोले.

”नहीं नहीं, आप को कुछ गलतफहमी हो गई है. एक असली और दूसरा उस की ही फोटोकापी है.’‘ शिंदे ने सफाई दी.

”फिर दोनों में नाम अलगअलग कैसे हैं? एक में डा. पूजा कुशवाहा लिखा है और दूसरे में प्राजक्ता शिंदे!’‘ यादव बोले.

”चलोचलो, तुम्हारी गाड़ी मेरा कांस्टेबल ले आएगा, तुम मेरे साथ पुलिस गाड़ी में बैठो.’‘ इस बार उपाध्याय बोले.

शिंदे ने किस तरह की 4 शादियां

थाने में शिंदे से पूछताछ के बाद उस के बारे में जो कहानी सामने आई, वह चौंकाने वाली थी. बल्कि वह एक फरजी डाक्टर पाया गया. उस ने जालसाजी से 4 शादियां रचा रखी थीं. सभी में पत्नियों का नाम संयोग से पूजा था. बरामद 2 विवाह प्रमाणपत्र भी फरजी पाए गए. एक पर नाम डा. प्राजक्ता शिंदे दर्ज था, जबकि दूसरे पर डा. पूजा कुशवाहा का नाम लिखा था.

उस ने बताया कि डा. प्राजक्ता शिंदे उस की पहली पत्नी है. वह बीएएमएस है. वह उसे छोड़ चुकी है. नोएडा आने से पहले वह दिल्ली के वसंत विहार में रहता था. वहीं उस की मुलाकात साल 2019 में दिल्ली की एमबीबीएस डा. पूजा कुशवाहा से हुई थी, जिस के बाद में उस ने शादी कर ली.

कुछ दिन बाद ही पूजा को पता चला कि शिंदे शादीशुदा है. उस के साथ डा. प्राजक्ता रहती थी. इस पर डा. पूजा ने आरोपी के खिलाफ कानूनी काररवाई करने की धमकी दे डाली. तभी वह दिल्ली से प्राजक्ता को ले कर नोएडा चला आया. अपने साथ डा. पूजा की डिग्री और उस के दूसरे दस्तावेज भी ले आया, जिन के आधार पर उस ने पहली पत्नी प्राजक्ता की फरजी एमबीबीएस की डिग्री बना ली.

दरअसल, बीएएमएस आयुर्वेद के डाक्टर की पढ़ाई का एक हिस्सा है. साढ़े 5 साल का स्नातक कोर्स करने के बाद बैचलर औफ आयुर्वेदिक मैडिसिन एंड सर्जरी (बीएएमएस) की डिग्री दी जाती है. दूसरा फरजीवाड़ा उस ने यह किया कि 2-2 बीवियां होने के बावजूद उस ने वैवाहिक वेबसाइट से वर तलाशने वाली युवतियों से नंबर ले कर उन से संपर्क करना शुरू कर दिया. उन्हें अपने बारे में डाक्टर बताता था.

डाक्टरी की डिग्री की वजह से युवतियां असानी से उस के झांसे में फंस जाती थीं. युवतियों को प्रेमजाल में फांसने में माहिर पूर्णव शंकर शिंदे खुद को विदेशी शिक्षा प्राप्त एक प्रतिभाशाली और अमीर डाक्टर बताता था.

वह ग्रेटर नोएडा के एक गांव शाहबेरी में किराए पर रहने लगा था. वहीं उस ने अश्वपूर्व फाउंडेशन और अश्वपूर्व मल्टी हौस्पिटल के नाम का एक आकर्षक बोर्ड लगा दिया था.

बोर्ड पर अपना और पहली पत्नी को एमबीबीएस डाक्टर दर्शाते हुए नाम लिखवा लिया था. साथ ही फाउंडेशन का जीएसटी रजिस्ट्रैशन भी करवा लिया था. पहली पत्नी उस के साथ रहती थी. जब कोई मरीज आता था, तब उस का पहली पत्नी डा. प्राजक्ता ही उपचार करती थी.

शिंदे ने राजनीतिक पहुंच का रुतबा दिखा कर न केवल फाउंडेशन व अस्पताल के नाम पर लोन लिया, बल्कि 2-2 जीएसटी रजिस्ट्रैशन नंबर जारी करवा लिए थे. यही नहीं, वह जीएसटी रिफंड का धंधा भी करता था. ऐसा कर वह सरकार के राजस्व में लाखों रुपए का चूना लगा चुका था.

उस ने पत्नी प्राजक्ता को पूजा कुशवाहा के नाम पर पेश कर फाइनैंस कंपनी से लोन लिया था. गाड़ी और स्कूटी को भी फाइनैंस करवा रखा था. एसबीआई और दूसरे बैंक समेत अन्य फाइनैंस कंपनियों से लोन व क्रेडिट कार्ड ले रखे थे. उस के नाम आदित्य बिरला कैपिटल फाइनैंस से 5 लाख का लोन था, जो अश्वपूर्वा मल्टी स्पैशलिटी हौस्पिटल के नाम पर ले रखा था.

उस ने एक कंपनी प्राजक्ता के साथ पार्टनरशिप में बना रखी थी. यहां तक कि अपना ड्राइविंग लाइसैंस भी कपिल त्यागी के नाम से बना रखा था. यह कहना गलत नहीं होगा कि वह जालसाजी का पूरा लबादा ओढ़े हुए था.

अपनी पहचान पत्र को बदलने के लिए जनप्रतिनिधियों के फरजी हस्ताक्षर भी कर लेता था. उस के पास से एक पैन कार्ड करेक्शन का फार्म भी बरामद किया गया, जिस पर पूजा शिंदे नाम लिखा था. उस के द्वारा दादरी विधायक तेजपाल नागर के फरजी हस्ताक्षर दुरुपयोग करने की बात भी सामने आई.

क्यों बनवाए नेताओं के लेटर पैड

पुलिस ने जांच में पाया कि शिंदे ने 5 महीने पहले ही महाराष्ट्र की एक युवती के साथ धोखा दे कर शादी की थी. फिलहाल वह गर्भवती है. उस युवती को धोखा होने के बारे में थोड़ी सी भी आशंका नहीं थी.

मामले की तहकीकात पूरी होने के बारे में एडिशनल डीसीपी अशोक कुमार ने बताया कि  मुंबई के जुहू निवासी पूर्णव शंकर शिंदे खुद को एमबीबीएस डाक्टर बताता था. इस के पास एक एंबुलेंस भी है, जिस पर अश्वपूर्वा हौस्पिटल लिखा है. यही नहीं वह एक एसेंट गाड़ी चलाता था और फरजी हौस्पिटल बना कर लोन ले लेता था. पकड़ में न आए, इसलिए आयकर भी दाखिल करता था.

आरोपी शिंदे पहली बार 2015 में एक मैडिकल छात्रा पूजा से मिला था. तब वह आगरा से मैडिकल की पढ़ाई कर रही थी. उसे उस ने अपने आप को बिजनैसमैन बताया था. उस ने उस से आर्यसमाज मंदिर में शादी कर ली थी. उन का विवाह कुछ दिनों तक ही चला था. उस के बाद उस ने अपने राज्य की लड़की से शादी रचा ली थी.

कुछ समय बाद ही डा. पूजा कुशवाहा को पता चला कि पूर्णव शंकर शिंदे की एक पत्नी पहले से है. इस के बाद दोनों में अनबन हो गई. शातिर पूर्णव शंकर शिंदे पुत्र सर्वानंद शंकर को गैलेक्सी गोलचक्कर अजायबपुर से गिरफ्तार किया गया था. उस के पास से विधायक के लैटर पैड बरामद किए गए, जिन का इस्तेमाल दस्तावेज बनाने के लिए करता था. उस ने बताया कि उस ने शादी के बाद पत्नी का नाम पूजा पुत्री चंद्रपाल रखा था.

इस बारे में उस ने बताया कि उसे पूजा नाम से लगाव हो गया था, फिर इसी के अनुसार वह आधार कार्ड में संशोधन करवा लेता था. तीसरी शादी करने के बाद युवती का नाम पूजा पुत्री चंद्रपाल रखने के लिए उसी ने विधायक के लेटर पैड का प्रयोग किया था.

साथ ही उस ने अन्य महिलाओं के आधार कार्ड व पैन कार्ड को अपने हिसाब से अपडेट कराने के लिए आर्यसमाज मंदिर के विवाह प्रमाणपत्र का प्रयोग किया था. उस के पास से 2 महिलाओं के विवाह प्रमाणपत्र भी मिले. साथ ही उस के पास से 6 कोरे प्रमाणपत्र भी मिले.

एक के बाद क्यों कर रहा था फरजीवाड़ा

आरोपी शिंदे ने हौस्पिटल का प्रमाण देने के लिए सभी चीजों का प्रयोग किया था. जिन में से एक एंबुलेंस आरोपी के कब्जे से बरामद कर ली गई. एंबुलेंस पर चारों तरफ अश्वपूर्वा मल्टी स्पेशलिटी हौस्पिटल बड़े लाल रंग के अक्षरों में लिखा गया था.

इस एंबुलेंस के नंबर को चैक करने पर पता चला कि वह किसी लीलावती मल्टीस्पैशलिटी हौस्पिटल के नाम पर रजिस्टर्ड है, जिस की 2017 में वैधता खत्म हो चुकी थी. इस के साथ ही आरोपी द्वारा अपना रौब जमाने के लिए एक कार का प्रयोग किया जाता था. उस पर बड़े अक्षरों में जिला महामंत्री भारतीय जनता पार्टी, जिला जलगांव, महाराष्ट्र लिखा था.

यही नहीं, आरोपी द्वारा एक अन्य फरजी कंपनी भी बना रखी थी. जिस का नाम अश्वपूर्वा एक्सरे एमेजिंग सेंटर प्राइवेट लिमिटेड रखा गया था. उस के 2 पार्टनरों में एक शिंदे की पत्नी प्राजक्ता पूर्णव शिंदे थी.

इस प्रकार कंपनी बना कर अभियुक्त द्वारा फाउंडेशन और हौस्पिटल के फरजी बिल बनाए जाते थे. उन को प्रस्तुत कर जीएसटी रिफंड प्राप्त किया जाता था. इस से सरकार को राजस्व की हानि होती थी. आरोपी द्वारा बनाए गए हौस्पिटल के स्थान पर असल में बरतनों की दुकान है.

पूर्णव शंकर शिंदे का मकसद डा. पूजा के एजुकेशनल डाक्यूमेंट का प्रयोग कर अलगअलग महिलाओं के दस्तावेजों को अपडेट कर उन का नाम डा. पूजा करना तथा उन के आधार कार्ड व पैन कार्ड के सिबिल स्कोर के आधार पर लोन लेना व उन को वापस नहीं करना था.

सभी आरोपी महिलाओं के नाम को पूजा के नाम पर इसलिए करना चाहता था कि उस के पास एक ही सैट एजुकेशनल दस्तावेज थे. जिन को चैक करने पर वह असली पाए जाते थे. इस कारण से वह अन्य सभी महिलाओं, जिन को वह शादी के लिए झांसे में लेता था, के आधार व पैन कार्ड मे पूजा पुत्री चंद्रपाल की जन्मतिथि अपडेट करवा लेता था.

पुलिस ने आरोपी पूर्णव शंकर शिंदे से पूछताछ कर उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

आयुष्मान योजना में फरजीवाड़ा

आयुष्मान योजना में फरजीवाड़ा – भाग 3

आयुष्मान कार्ड किसी से न करें शेयर

डा. राकेश बोहरे  (चीफ मैडिकल एंड हेल्थ औफिसर) नरसिंहपुर

सरकार जरूरतमंद लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए कई योजनाएं चला रही है, जिन के जरिए मरीज को हौस्पिटल में एडमिट कर कैशलेस इलाज किया जाता है, लेकिन सरकारी योजनाओं में बड़े पैमाने पर धांधली भी कुछ प्राइवेट हौस्पिटलों द्वारा की जा रही है.

नैशनल हेल्थ अथौरिटी (एनएचए) आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य स्कीम को ले कर पहले ही एंटी फ्रौड गाइडलाइंस जारी कर चुका है. इस के अलावा विभाग ने राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों में भी नैशनल एंटी फ्रौड यूनिट (एनएएफयू) गठित की है, जो इस योजना से संबंधित फरजीवाड़े की राज्य स्तर पर निगरानी कर सकें. सरकार इस स्कीम को जीरो टेलरेंस अप्रोच के तहत लागू कर रही है.

इस योजना का लाभ उठाने वाले लाभार्थियों को जरूरी दस्तावेजों को जमा करना पड़ता है और साथ ही उन्हें रोगी की औनबेड फोटो भेजनी पड़ती है. इस के अलावा इस स्कीम का फायदा उठाने के लिए आधार बेस्ड वेरिफिकेशन भी किया जाता है.

गांवों में रहने वाली देश की बड़ी आबादी अभी भी इतनी शिक्षित नहीं है कि वह सरकारी योजनाओं की जानकारी को पूरी तरह से समझ सके. जब किसी परिवार का कोई सदस्य गंभीर बीमारी का शिकार हो जाता है तो घर वाले उसे उन प्राइवेट हौस्पिटल में ले जाते हैं, जहां उसे मुफ्त इलाज मिलता है.

मरीज का इलाज शुरू होते ही फारमेलिटी के नाम पर सभी दस्तावेज जमा करवा लिए जाते हैं. रोगी की गंभीर हालत का खतरा दिखा कर कई बार जांच और दवाइयों के नाम पर कुछ रुपए भी जमा करवा लिए जाते हैं. बाद में पता चलता है कि प्राइवेट हौस्पिटल ने इलाज पर खर्च रुपयों से अधिक रुपए सरकारी खजाने से निकाल लिए.

आयुष्मान भारत योजना के तहत सरकार इलाज के लिए 5 लाख रुपए तक की मदद करती है. रोगी इस योजना के तहत रजिस्टर्ड किसी भी अस्पताल में अपना इलाज करा सकते हैं. इस के लिए सरकार के द्वारा 5 लाख रुपए तक की मदद की जाती है. कई दफा ठग रोगी की निजी जानकारियां चुरा कर इस स्कीम के तहत जालसाजी कर लेते हैं. इस के लिए उन की अस्पताल के साथ भी सांठगांठ रहती है.

इस से बचने के लिए अपनी निजी जानकारियों समेत इलाज से संबंधित जानकारियों को किसी के साथ शेयर नहीं करनी चाहिए. साथ ही यदि कोई प्राइवेट हौस्पिटल सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं का मुफ्त लाभ देने में कोताही बरते या मरीज के परिवार से रुपए वसूले तो इस की शिकायत जरूर करनी चाहिए.

जिस तरह एटीएम कार्ड के जरिए साइबर फ्रौड की घटनाएं देश में बढ़ रही हैं, उसी तरह आजकल कुछ जालसाज भी लोगों को आयुष्मान कार्ड की आड़ में भी लूट रहे हैं.

ऐसे लोग प्राइवेट हौस्पिटल के डाक्टर्स के साथ मिल कर या कोई अन्य तरीकों से बीमा के पैसे निकालने की कोशिश कर रहे हैं. हाल ही में छत्तीसगढ़ मैडिकल काउंसिल ने 5 ऐसे डाक्टरों को पकड़ा, जो कार्डधारकों की झूठी मैडिकल रिपोर्ट बनाते थे और फिर उन के आयुष्मान कार्ड से इलाज के नाम का बिल लगा कर मोटी रााशि निकाल लिया करते थे.

इन सभी डाक्टरों को निलंबित कर दिया गया है. ऐसे में आप के लिए भी जरूरी है कि आप कुछ बातों का ध्यान रखें, ताकि आप धोखाधड़ी से बच सकें.

अगर आप आयुष्मान योजना के कार्डधारक हैं तो आप को भूल कर भी किसी के साथ अपने इस कार्ड की डिटेल्स शेयर नहीं करनी चाहिए. आप के इस कार्ड का गलत इस्तेमाल कर के कोई भी इस से उपचार के बहाने पैसे निकाल सकता है.

कोशिश करें कि कार्ड को अपने पास ही रखें और जरूरत पड़ने पर अधिकारियों को ही इसे दें. अन्यथा आप के कार्ड की जानकारी ले कर कोई भी इस का गलत इस्तेमाल कर सकता है.

अगर आप आयुष्मान कार्ड बनवा चुके हैं और आप को कस्टमर केयर बन कर कोई काल करता है और फिर आप से आप की बैंकिंग जानकारी अपडेट करने के लिए मांगता है तो आप को ऐसे काल्स से सावधान रहना है, क्योंकि ये जालसाज के काल्स होते हैं और ये आप को ठग सकते हैं.

जालसाज केवाईसी करवाने के नाम पर भी लोगों को ठग रहे हैं. इसलिए आप को ऐसे लोगों से सावधान रहना है, ये लोग आप को मैसेज, वाट्सऐप या ईमेल पर फरजी लिंक भेज कर भी चपत लगा सकते हैं.

आयुष्मान योजना में फरजीवाड़ा – भाग 2

पुलिस को क्यों दर्ज करनी पड़ी रिपोर्ट

जानकारी में पता चला कि मैक्सकेयर हौस्पिटल द्वारा 2 बार में उस के कार्ड से लगभग 75 हजार रुपए निकाले गए हैं. यह जानकारी मिलते ही खालिद ने 2 अगस्त, 2022 को एसपी (भोपाल) से मिल कर मैक्सकेयर हौस्पिटल की धोखाधड़ी की शिकायत की, मगर कोई काररवाई नहीं हुई. हौस्पिटल संचालक डा. अल्ताफ मसूद  (Dr. Altaf Masood) के रसूख के चलते खालिद की शिकायत नक्कारखाने में तूती की आवाज बन कर दब गई.

तभी खालिद ने भोपाल के प्रसिद्ध वकील शारिक चौधरी (Advocate Shariq Choudhry) के बारे में सुना था कि वह लोगों की मदद करते हैं. एक दिन खालिद ने एडवोकेट शारिक चौधरी से मुलाकात कर अपने साथ हुई धोखाधड़ी की जानकारी उन्हें विस्तार से दी.

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तब एडवोकेट शारिक चौधरी ने सीआरपीसी की धारा 156 के तहत माननीय न्यायाधीश संदीप कुमार नामदेव प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट भोपाल की अदालत में परिवाद दायर किया. तब कोर्ट ने 8 नवंबर, 2023 को एसपी को आदेश दे कर एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए.

भोपाल के टीला जमालपुरा स्थित हाउसिंग बोर्ड कालोनी निवासी 28 साल के खालिद अली की शिकायत पर भोपाल की तलैया पुलिस ने फतेहगढ़ स्थित मैक्सकेयर चिल्ड्रन अस्पताल के संचालक अल्ताफ मसूद पर धोखाधड़ी,  फरजी दस्तावेज तैयार करने के मामले में केस दर्ज कर लिया.

एफआईआर के बाद तलैया पुलिस थाने के एसआई कर्मवीर सिंह जब जांच के लिए अस्पताल पहुंचे तो अस्पताल संचालक वहां से गायब हो गया. एसआई शर्मा ने मौजूद स्टाफ से जोहान के इलाज संबंधी फाइल की जांच कर बयान दर्ज किए. जांच के दौरान इलाज करने वाला डाक्टर अस्पताल से नदारद मिला.

3 महीने तक मासूम को हौस्पिटल में भरती रखा गया, जिस में कई बार में दवाइयों और इलाज के नाम पर 3 लाख से अधिक रुपए वसूल लिए. खालिद जब भी बिल मांगता, अस्पताल प्रबंधन उसे टके सा जबाव दे देता, ”मरीज के डिस्चार्ज होने के समय पूरे बिल दे दिए जाएंगे, आप चिंता न करें.’‘

आखिरकार मासूम जोहान की मौत हो गई और बाद में पता लगा कि अस्पताल की ओर से आयुष्मान कार्ड से भी बच्चे के इलाज के नाम पर रकम सरकारी खजाने से ली गई है, जबकि खालिद के परिवार को इस की जानकारी नहीं दी गई थी. खालिद ने सब से पहले इस फरजीवाड़े की शिकायत पुलिस थाने में की तो सुनवाई नहीं हुई. तब जा कर कोर्ट में परिवाद दायर किया.

धोखाधड़ी का पता चलते ही खालिद ने सभी संबंधित सरकारी विभागों में इस की शिकायत की और आयुष्मान योजना के भोपाल औफिस से आए वेरीफिकेशन काल वालों को भी बताया कि उस ने अपने बेटे के इलाज का पूरा भुगतान कर दिया है. इस के बाद भी कहीं से कोई काररवाई नहीं हुई.

आखिरकार खालिद ने एडवोकेट शारिक चौधरी के माध्यम से धोखाधड़ी का परिवाद कोर्ट में दायर कर दिया. इस पर कोर्ट ने सुनवाई करते हुए पुलिस को धारा 120बी, 420, 468 और 471 के तहत एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए. इस के बाद भोपाल की तलैया पुलिस थाने में अस्पताल के संचालक डा. अलताफ मसूद के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज कर लिया.

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खालिद अली ने बताया कि डा. अल्ताफ मसूद सरकारी योजनाओं में जम कर भ्रष्टाचार कर रहा है और उस के खिलाफ शिकायतें भी हो रही हैं, मगर अपनी राजनीतिक पहुंच के चलते उस पर कोई काररवाई नहीं होती है.

भोपाल की तलैया पुलिस ने आयुष्मान भारत योजना के औफिस को पत्र लिख कर जानकारी चाही है कि इस योजना का लाभ हासिल करने और इलाज के दौरान भुगतान के कौन से नियम हैं. कथा लिखे जाने तक डा. अल्ताफ मसूद पर कोई काररवाई नहीं हुई थी.

आयुष्मान कार्ड धारकों में मध्य प्रदेश अव्वल

‘आयुष्मान भारत योजना’ के सब से ज्यादा आयुष्मान कार्डधारक मध्य प्रदेश में ही हैं. यहीं पर सब से ज्यादा लापरवाही देखी जा रही है. कैग की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि मध्य प्रदेश में आयुष्मान के लिए जिला स्तर पर शिकायत निराकरण समितियों का गठन नहीं किया गया है.

आयुष्मान योजना में सूचना शिक्षा और संवाद का प्लान तो बनाया, लेकिन उसे लागू नहीं किया गया. कैग की पैन इंडिया औडिट रिपोर्ट में अनियमितताओं के सब से ज्यादा मामले मध्य प्रदेश में ही हैं. मध्य प्रदेश में कई संदिग्ध कार्ड और मृत लोगों को भी लाभार्थी के रूप में रजिस्ट्रैशन की जानकारी पाई गई है.

कैग की रिपोर्ट के अनुसार मध्य प्रदेश में करीब 25 अस्पताल ऐसे हैं, जिन्होंने क्षमता से अधिक बैड आक्यूपेंसी दिखाई. यानी कि इन अस्पतालों ने एक दिन में बैड क्षमता से ज्यादा मरीजों की भरती दिखा कर क्लेम लिया है. भोपाल के जवाहरलाल नेहरू कैंसर अस्पताल और अनुसंधान केंद्र में 20 मार्च, 2023 तक 100 बैड थे, लेकिन इस में 233 मरीजों को दिखाया गया.

कैग की रिपोर्ट में सरकारी अस्पताल समेत कुल 24 अस्पतालों के नाम शामिल हैं. कैग की रिपोर्ट में कहा गया डिफाल्टिंग अस्पतालों से होने वाली रिकवरी के मामले में मध्य प्रदेश के आंकड़े सब से खराब हैं.

आयुष्मान भारत योजना में 2022 में जबलपुर के एक निजी अस्पताल ने फरजीवाड़ा कर के सरकार को साढ़े 12 करोड़ का चूना लगाया था. इस अस्पताल ने मुन्नाभाई एमबीबीएस फिल्म की तरह 4 हजार मरीजों को होटल में भरती कर के फरजी इलाज किया. अस्पताल ने कथित मरीजों के साथ उन्हें लाने वालों तक को कमीशन बांटा था.

जबलपुर पुलिस की टीम ने स्वास्थ्य विभाग के साथ मिल कर 26 अगस्त, 2022 को सेंट्रल इंडिया किडनी अस्पताल में छापा मारा था. उस समय अस्पताल के अलावा बाजू में होटल वेगा में भी छापा मारा गया था. जांच के दौरान होटल वेगा और अस्पताल में आयुष्मान कार्डधारी मरीज भरती पाए गए थे.

अस्पताल संचालक डा. दुहिता पाठक और उस के पति डा. अश्विनी कुमार पाठक ने कई लोगों को फरजी मरीज बना कर यहां रखा था. होटल के कमरे में 3-3 लोग भरती पाए गए थे. अस्पताल ने फरजीवाड़ा कर के सरकार को साढ़े 12 करोड़ रुपए का चूना लगाया था.

अस्पताल ने कथित मरीजों के साथ उन्हें लाने वालों तक को कमीशन बांटा था. इस के बाद पुलिस ने डाक्टर दंपति के खिलाफ विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया था और डाक्टर दंपति को जेल की हवा खानी पड़ी थी.

इस मामले की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया गया था. एसआईटी जांच में यह खुलासा हुआ था कि आयुष्मान भारत योजना के तहत सेंट्रल इंडिया किडनी हौस्पिटल में 2 से ढाई साल में लगभग 4 हजार मरीजों का इलाज हुआ था, जिस के एवज में सरकार द्वारा तकरीबन साढ़े 12 करोड़ रुपए का भुगतान अस्पताल को किया गया था.

इस के साथ ही इस बात के भी दस्तावेज मिले हैं कि दूसरे राज्यों के मरीजों का उपचार भी सेंट्रल इंडिया किडनी अस्पताल में हुआ था, जोकि गैरकानूनी है.

एसआईटी ने सेंट्रल इंडिया किडनी अस्पताल में कार्यरत कर्मचारियों से भी पूछताछ की, जिस में कई कर्मचारियों ने बताया कि वह अस्पताल में आयुष्मान योजना का लाभ लेने वाले लोगों को भरती करवाते थे तो अस्पताल संचालक दुहिता पाठक और उस के पति डा. अश्विनी पाठक बतौर कमीशन 5 हजार रुपए देते थे.

कमीशन लेने के लिए कर्मचारियों ने कई बार एक ही परिवार के लोगों को अलगअलग तारीखों में भरती किया था. उन के नाम पर आयुष्मान योजना का फरजी बिल लगा कर लाखों रुपए की वसूली की गई थी.

—कथा c, पीड़ित परिवार से बातचीत और पुलिस सूत्रों पर आधारित

डुप्लीकेट दवाओं का सरगना

उड़ीसा में नकली दवाएं बरामद होने के बाद पता चला कि नकली दवाओं की खेप वाराणसी से देश के अलगअलग क्षेत्रों में भेजी जाती हैं. इस के पुख्ता सबूत मिलने के बाद से एसटीएफ की टीम जुट गई थी. पिछले कुछ महीनों से एसटीएफ की टीम नकली दवाओं के गैंग पर नजर भी बनाए हुए थी कि इसी बीच गुरुवार को नकली दवाओं के गैंग के सरगना अशोक कुमार के वाराणसी के सिगरा थाना क्षेत्र की चर्च कालोनी में मौजूद होने की पुख्ता जानकारी मिली.

ऐसे में टीम ने घेराबंदी कर के अशोक को एक मकान से गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में बुलंदशहर के सिकंदराबाद थाना क्षेत्र की टीचर्स कालोनी के रहने वाले अशोक कुमार ने कई खास जानकारियां दीं. उस की निशानदेही पर चर्च कालोनी के एक मकान में रखी 108 पेटी नकली दवाएं बरामद की गईं. इस के अलावा 4 लाख 40 हजार रुपए नकद, फरजी बिल, अन्य दस्तावेज तथा एक फोन बरामद किया.

उस से पूछताछ में मंडुवाडीह थाना क्षेत्र के महेशपुर लहरतारा स्थित गोदाम में भारी मात्रा में नकली दवाएं होने की जानकारी मिली तो वहां से भी एसटीएफ ने गोदाम में छापा मार कर 208 पेटी नकली दवाएं बरामद कर लीं, जो अलगअलग 316 कार्टन में पैक थीं.

उत्तर प्रदेश के शहर वाराणसी का कैंट यानी शहर का सब से व्यस्त इलाका, कैंट रेलवे स्टेशन, रोडवेज बस डिपो यहीं मौजूद होने से नाकेनाके पर पुलिस का यहां पहरा भी होता है, लेकिन 2 मार्च, 2023 को अचानक बड़ी संख्या में पुलिस बल की दौड़धूप, पुलिस के वाहनों के बजते सायरन बरबस ही लोगों को सोचने को मजबूर कर रहे थे कि आखिरकार माजरा क्या है?

फिर खयाल आया कि हो न हो कोई वीवीआईपी शहर में आया हो, इसलिए सुरक्षा व्यवस्था कड़ी की गई हो? क्योंकि यहां अकसर वीआईपी आते रहते हैं. बातों और कयासों का दौर चल ही रहा था कि तभी शहर के कुछ हिस्सों में एसटीएफ की छापेमारी की खबर फैलने लगी.

तभी कैंट चौराहे पर तैनात पुलिस वाहन में लगा वायरलेस घनघना उठा. दूसरी ओर से आवाज आई, ”हर आनेजाने वाले वाहनों की गहनता से जांच कराई जाए, कोई भी संदिग्ध व्यक्ति या वाहन नजर आए तो उसे रोका जाए.’‘

इतना सुनते ही पुलिस जीप का चालक बुदबुदाया, ”आज भी सुकून से रोटी मिलनी तो दूर चाय भी नसीब नहीं होती दिखाई दे रही है…’‘ बड़बड़ाते हुए उस ने लहरतारा की ओर गाड़ी घुमा दी.

यह बात 2 मार्च, 2023 की है. दरअसल, वाराणसी शहर के मंडुआडीह थाना क्षेत्र के लहरतारा, सिगरा थाना क्षेत्र सहित कैंट के कई इलाकों में एसटीएफ टीम की रेड पड़ गई थी. एसटीएफ ने कैंट इलाके के रोडवेज के पीछे व लहरतारा, महेशपुर में छापेमारी की, जहां उसे पेटेंट दवा कंपनियों के नाम की भारी तादाद में एलोपैथी दवाएं मिली थीं, जिसे देख टीम में शामिल जवानों की आंखें फटी की फटी रह गई थीं. सभी के मुंह से निकल पड़ा था, ”ओफ! इतना बड़ा नकली दवाओं का रैकेट…’‘

खैर, एसटीएफ टीम ने इस की फौरन सूचना अपने उच्चाधिकारियों को देने के साथ ही मौके से नकली दवा कारोबार के सरगना को मौके से गिरफ्तार कर लिया, जिन की निशानदेही पर टीम ने कैंट रोडवेज के पीछे चर्च कालोनी व ट्रांसपोर्ट क्षेत्र लहरतारा के महेशपुर से भारी तादाद में एलोपैथी नकली दवाएं बरामद कीं, जिन की कीमत 7.5 करोड़ बताई गई. विभिन्न नामीगिरामी कंपनियों के नाम पर बनी ये नकली दवाएं 316 बड़े डिब्बों में पैक थीं.

पता चला कि नकली दवाओं का कारोबार करने वाले गिरोह का गिरफ्तार सरगना अशोक कुमार पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर का निवासी है. उस ने पूछताछ में वाराणसी के 3 लोगों समेत 12 लोगों के नामों का खुलासा किया था, जो इस नकली दवा कारोबार से जुड़े थे.

पुलिस के मुताबिक नकली दवा कारोबार की जड़ें काफी गहरी होने के साथसाथ देश के कई राज्यों से होते हुए पड़ोसी देशों बांग्लादेश तक में अपनी गहरी जड़ें जमा चुकी हैं, जिन की कहानी कुछ इस प्रकार से है—

देश में दवा का काफी बड़ा कारोबार है, अमूमन आज हर एक व्यक्ति की निर्भरता दवाओं पर हो गई है. ऐसे में देश में नकली दवा का कारोबार भी तेजी से न केवल पनपा है, बल्कि इन की जड़ें भी काफी गहरी हो चली हैं. कुछ महीने पहले उड़ीसा में बारगढ़ व झाडड़ूकड़ा में नकली दवा के बरामद होने और उस के तार वाराणसी से जुड़े होने की जानकारी होने पर वाराणसी पुलिस सहित एसटीएफ की टीम सक्रिय हो गई थी.

उड़ीसा की घटना के बाद सक्रिय हुए वाराणसी एसटीएफ प्रभारी विनोद सिंह काफी दिनों से नकली दवाओं के कारोबार की छानबीन और सरगना को दबोचने के लिए जाल बिछाए हुए थे. 2 मार्च, 2023 को वह अपनी टीम के साथ बैठ कर इसी पर रणनीति बना रहे थे कि कैसे व किस प्रकार से इस कारोबार के साथ गैंग का खुलासा करना है कि तभी उन का एक विश्वासपात्र साथी सैल्यूट मारते हुए उन के पास आया और धीरे से उन के कान में कुछ बुदबुदाने लगा.

उस की बात सुनते ही खुशी के मारे एसटीएफ प्रभारी विनोद सिंह उछल कर बोल पड़े, ”फिर देर किस बात की है, तुम पहुंच कर नजर रखो, मैं भी पहुंच रहा हूं.’‘

इतना कह कर विनोद सिंह ने फोन कर अपने उच्चाधिकारियों को इस सूचना से अवगत कराया. उन के दिशानिर्देशों के बाद वह भी पुलिस टीम के साथ निकल गए.

कौन था नकली दवाओं का सरगना

नकली दवाओं का कारोबारी अशोक कुमार पुलिस के हत्थे चढ़ चुका था. भारी मात्रा में नकली दवा बरामद होने के बाद भी गैंग का सरगना अशोक कुमार एसटीएफ टीम को बरगलाने के साथसाथ खुद को फंसाए जाने की बात कहता रहा. वह बारबार बस यही कह रहा था,  ”साहब, मैं बेकुसूर हूं, इन दवाओं से मेरा कोई लेनादेना नहीं है. दूसरे लोगों ने मुझे फंसाया है.’‘

”ठीक है तो तुम्हीं बताओ कि किन लोगों ने तुम्हें फंसाया है?’‘

इस सवाल पर वह पूरी तरह से एसटीएफ टीम से नजरें बचा कर नीचे की ओर देखने लगा. उसे बोलते नहीं बन रहा था कि वह अब क्या सफाई दे.

सही जानकारी देने पर पुलिस ने उसे बख्श देने की बात कही तो वह पूरी तरह से टूट गया और रट्टू तोते की तरह बोलने लगा था. उस ने कई नामों का खुलासा किया, जो इस गोरखधंधे में उस के साथी थे.

उन में रोहन श्रीवास्तव (प्रयागराज), रमेश पाठक (पटना), दिलीप (बिहार), अशरफ (पूर्णिया), लक्ष्मण (हैदराबाद), नीरज चौबे शिवपुर (वाराणसी), डा. मोनू, रेहान, बंटी, ए.के. सिंह, शशांक मिश्रा आशापुर (वाराणसी), अभिषेक कुमार सिंह न्यू बस्ती परासी (सोनभद्र) थे.

पुलिस के मुताबिक पकड़े गए अशोक कुमार ने बताया कि वह इन्हीं साथियों की मदद से अपने कमरे व गोदाम पर दवाएं स्टोर करता था. बसों पर माल रखने वाले कुलियों के द्वारा बसों, ट्रांसपोर्ट के माध्यमों से कोलकाता, उड़ीसा, बिहार, हैदराबाद व उत्तर प्रदेश के वाराणसी, आगरा, बुलंदशहर में दवा कारोबार करने वालों को सप्लाई किया करता था.

जांच में पता चला कि नकली दवा का धंधा करने वाले गिरोह के सरगना अशोक कुमार ने वर्ष 1987 में बुलंदशहर के किसान इंटरकालेज से हाईस्कूल की पढ़ाई की, लेकिन फेल होने पर पढ़ाई छोड़ दी. इस के बाद गद्ïदे की फैक्ट्री में मजदूरी करने लगा था.

वर्ष 2003 में मजदूरी छोड़ कर 7 साल आटोरिक्शा चलाया पर फायदा नहीं होने के कारण फिर से गद्ïदे की कंपनी में नौकरी करने लगा और लगातार 10 साल तक काम किया. काम के बदले उसे हर महीने 12 हजार रुपए मिलते थे.

एक बार फिर से नौकरी छूट गई और वह फिर से आटो चलाने लगा. इसी दौरान उस की मुलाकात बुलंदशहर के ही नीरज से हुई. नीरज एलोपैथी की नकली दवाओं का काम करता था. नीरज से मिल कर अशोक अपने आटो से नकली दवाओं की सप्लाई करने लगा. यहीं से उसे इस काले कारोबार के बारे में जानकारी हुई.

शुरू में वह नीरज से ही थोड़ीबहुत नकली दवाएं खरीद कर स्थानीय झोलाछाप डाक्टरों को बेचने लगा था. कहते हैं कि आमदनी होने पर व्यक्ति की हसरतें भी बढ़ने लगती हैं, कुछ ऐसा ही अशोक के साथ भी हुआ. नकली दवा का कारोबार चलने पर उस की आमदनी भी बढ़ने लगी थी. जब आमदनी बढ़ी तो लालच भी बढ़ने लगा.

वर्ष 2019 में अमरोहा (यूपी) में नीरज की बेची गई नकली दवा पकड़ी गई थी. इस में नीरज का नाम आने के बाद पुलिस ने नीरज को गिरफ्तार कर लिया था.

इस मामले में नीरज के पिता ने पुलिस वालों के ही खिलाफ अपहरण का मुकदमा दर्ज कराया था, जिस के बाद अशोक वहां से भाग कर 3 साल से वाराणसी में आ कर कैंट रोडवेज बस डिपो के पीछे चर्च कालोनी में किराए पर रहने लगा.

इस के बाद उस ने लहरतारा में किराए पर गोदाम ले कर हिमाचल प्रदेश से नामीगिरामी पेटेंट दवा कंपनियों के नाम की नकली दवाएं बनाने वालों पंचकूला के अमित दुआ, हिमाचल प्रदेश के बद्ïदी के सुनील व रजनी भार्गव से संपर्क कर नकली दवाएं, फरजी बिल्टी व बिल से ट्रांसपोर्ट के माध्यम से मंगाने लगा था.

एसटीएफ टीम के मुताबिक बाहर से दवाएं मंगा कर अशोक रोडवेज बसों में सामान रखने वाले कुलियों के माध्यम से उन्हें प्रदेश के अलगअलग जिलों और अन्य राज्यों में वाराणसी में रह कर भेजा करता था.

नकली दवाओं की आपूर्ति से अशोक को तगड़ा मुनाफा होने लगा था. जिस नकली दवा पर कीमत 100 रुपए दर्ज होती थी, वह उसे हिमाचल प्रदेश से 30 रुपए में मिलती थी. उसे वाराणसी तक लाने पर लगभग 10 रुपए खर्च होते थे. इन दवाओं पर 35 से 40 फीसदी की बचत हो जाती थी.

अशोक कुमार द्वारा नकली दवा कारोबार में शामिल होने की बात स्वीकार कर लेने और उस की निशानदेही पर एसटीएफ प्रभारी विनोद कुमार सिंह ने ड्रग इंसपेक्टर अमित बंसल की मौजूदगी में बरामद दवाओं को सील किया. अशोक कुमार के खिलाफ सिगरा थाने में भादंसं की धारा 420, 468, 471 आदि के तहत मुकदमा दर्ज कर उसे जेल भेज दिया है.

दूसरी ओर गिरफ्तार अशोक कुमार ने पूछताछ में वाराणसी के 3 लोगों समेत दूसरे 12 लोगों के नामों का खुलासा किया, जो इस नकली दवा कारोबार के धंधे के साझेदार थे. खबर मिलने पर वे सभी अंडरग्राउंड हो गए थे, जिन्हें पुलिस तलाश रही थी.

नकली दवाओं के साथ फरजी मैडिकल रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश में महज नकली दवाओं का ही कारोबार नहीं, बल्कि फरजी मैडिकल रिपोर्ट तैयार करने का भी काम किया जाता है. अगस्त 2023 में ऐसा ही एक मामला सामने आया था, जिस में 2 सरकारी डाक्टरों को फौरन गिरफ्तार भी कर लिया गया था.

दरअसल, जून महीने में दलित समुदाय के सदस्यों पर हमला करने के आरोप में सुरेंद्र विश्वकर्मा और अमित विश्वकर्मा के खिलाफ 2 मुकदमे दर्ज हुए थे. शिकायतकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि हमले में उन्हें गंभीर चोटें आईं.

सोनभद्र जिला अस्पताल में तैनात डाक्टरों की मेडिको-लीगल रिपोर्ट के आधार पर एफआईआर दर्ज की गई थी. जांच के बाद पुलिस ने सोनभद्र के जिला अस्पताल में तैनात 2 डाक्टरों को पैसे के बदले फरजी मैडिकल रिपोर्ट तैयार करने के आरोप में गिरफ्तार किया.

गिरफ्तार किए गए डाक्टरों की पहचान डा. पुरेंदु शेखर सिंह और डा. दयाशंकर सिंह के रूप में की गई. दोनों की उम्र 50 वर्ष के आसपास थी. उन पर भादंसं की धारा 420 (धोखाधड़ी और बेईमानी से संपत्ति की डिलीवरी के लिए प्रेरित करना), 468 (धोखाधड़ी के उद्ïदेश्य से जालसाजी) और 471 (जाली दस्तावेज या इलेक्ट्रौनिक रिकौर्ड को असली के रूप में उपयोग करना) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था.

सोनभद्र के सीओ राहुल पांडे के मुताबिक चूंकि सोनभद्र वाराणसी भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम अदालत के क्षेत्राधिकार में आता है, ऐसे में गिरफ्तार दोनों डाक्टरों को वाराणसी की एक अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था.

दोनों मामलों की जांच के दौरान सुरेंद्र और अमित ने कहा कि उन पर झूठे आरोप लगाए गए हैं. उन्होंने यह भी दावा किया कि शिकायतकर्ताओं को कोई चोट नहीं आई थी. सुरेंद्र और अमित ने दावा किया कि जिला अस्पताल के डाक्टरों द्वारा कथित तौर पर झूठा मेडिको-लीगल तैयार किया गया था.

अपने दावे के समर्थन में सुरेंद्र और अमित ने कहा कि शिकायतकर्ताओं ने जिला अस्पताल से अपना मैडिकल परीक्षण कराया और बताया कि उन के शरीर पर चोट के झूठे निशान हैं.

वहीं, उन्होंने दूसरे अस्पताल से अपनी मैडिकल जांच कराई, जिस में कहा गया कि उन के शरीर पर कोई चोट नहीं पाई गई है. उन्होंने दावा किया कि कथित तौर पर जिला अस्पताल के कर्मचारियों को पैसे दे कर झूठी मैडिकल रिपोर्ट हासिल की गई.

दोनों रिपोर्टों के आधार पर, अगस्त में अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था, जिस में कहा गया था कि अस्पतालों में झूठी मैडिकल रिपोर्ट तैयार की जा रही थी. जिस की शिकायत के बाद वाराणसी भ्रष्टाचार इकाई ने 2 डाक्टरों को गिरफ्तार किया.

ऐसे बच सकते हैं नकली दवाओं से

डा. ए.के. सिन्हा, वरिष्ठ चिकित्सक, मंडलीय अस्पताल, मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश

देश में दवाओं का एक लंबा कारोबार है. किसी आम व्यक्ति के बस की बात नहीं है कि वह आसानी से

दवाओं की पहचान कर सके. फिर भी जहां तक हो सके, जेनेरिक दवाएं और चिकित्सक के परामर्श, प्रतिष्ठित मैडिकल दुकान से ही लें, साथ ही साथ दवा का बिल भी लेना न भूलें. ताकि दवाओं के गलत और नकली होने की दशा में उस की पहचान हो सके.

मिर्जापुर मंडलीय अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक डा. ए.के. सिन्हा का मानना है कि प्रत्येक तीमारदार और मरीज को डाक्टर द्वारा लिखी हुई दवाओं का ही सेवन करना चाहिए और प्रतिष्ठित दुकानों से ही दवा वह भी रसीद के साथ लेनी चाहिए. इस से नकली दवाओं के जाल में फंसने से काफी हद तक बचा जा सकता है.

वह कहते हैं कि अकसर लोग सस्ती दवा के चक्कर में बिना डाक्टरी परामर्श के ही दवा लेने के साथ ही इस का सेवन भी करना शुरू कर देते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक तो होता ही है. यह जोखिम के साथसाथ जेब पर भी भारी पड़ता है.

वह कहते हैं कि देश में मैडिकल सिस्टम व्यापक पैमाने पर दिनप्रतिदिन व्यापक रूप लेता जा रहा है, ऐसे में कुछ लोग चंद पैसों के लिए जीवनरक्षक दवाओं की आड़ में नकली दवाओं का कारोबार कर लोगों की जान से खिलवाड़ करते आ रहे हैं. ऐसे लोगों पर कठोरतम काररवाई होनी चाहिए, ताकि दोबारा कोई इस प्रकार का धंधा करने का साहस तो क्या सोचने की भी हिम्मत न कर सके.

आयुष्मान योजना में फरजीवाड़ा – भाग 1

3 महीने तक चले इलाज के दौरान डाक्टरों ने कई बार जोहान को ब्लड देने की मांग की, तब एक बार खालिद और एक बार दादा जाकिर अली ने भी उसे खून दिया था. जबकि 2 बार खालिद के परिचितों ने जोहान के लिए ब्लड डोनेट किया था.

मैक्सकेयर हौस्पिटल (Max care Hospital) के डाक्टरों का ध्यान जोहान की सेहत के बजाय रुपए वसूलने पर ज्यादा था, इसलिए जोहान की हालत में कोई सुधार नहीं आया. रुपए खर्च कर परिवार के लोग थक चुके थे.

परिवार के लोग जोहान की हालत देख कर चिंतित हो जाते थे, उस के शरीर में केवल हड्डी और चमड़ी ही बची थी. एक दिन खालिद ने अस्पताल की संचालक डाक्टर से सवाल किया, ”सर, हमारे लाखों रुपए खर्च हो चुके हैं. आखिर बच्चे की हालत में सुधार क्यों नहीं हो रहा? सुधार की जगह हमें गिरावट ही दिख रही है. डाक्टर साहब, उस की हालत कब सुधरेगी. अब तो हमारे पास पैसे भी नहीं बचे हैं.’‘

इस पर डाक्टर ने झल्ला कर जबाव दिया, ”हम लोग उस का इलाज कर रहे हैं न, पैसों की इतनी दिक्कत है तो किसी खैराती अस्पताल में जा कर उस का इलाज कराओ.’‘

जनवरी की वह रात बहुत सर्द थी. कमरे के अंदर भी हाथपांव ठंड की वजह से सुन्न हो रहे थे. मध्य प्रदेश के जिला भोपाल (Bhopal) के टीला जमालपुरा स्थित हाउसिंग बोर्ड कालोनी में रहने वाले 28 वर्षीय खालिद अली का 3 महीने का बेटा जोहान भी ठंड की वजह से परेशान था, उसे सांस लेने में दिक्कत हो रही थी. अपनी अम्मी की बाजू में लेटे जोहान के बदन की गरमाहट से उस की अम्मी का बुरा हाल था. उस ने घड़ी देखी, उस समय रात के 2 बज रहे थे. सुबह होने में अभी काफी वक्त था. शौहर खालिद गहरी नींद में खर्राटे भर रहा था.

परेशान हो कर वह बैड से उठी और बाजू के बैड पर सो रहे शौहर खालिद को झिंझोड़ते हुए बोली, ”जल्दी से उठिए, मुझे जोहान की तबीयत ठीक नहीं लग रही.’‘

”क्या हुआ, तुम मुझे सोने भी नहीं  देती?’‘खालिद ने आंखें मलते हुए लापरवाही से कहा.

”जोहान तेज बुखार से तप रहा है, उसे सर्दी भी है और उस की सांसें तेज चल रही हैं. जल्दी उठिए, उसे अस्पताल ले जाना पड़ेगा.’‘जोहान की अम्मी बोली.

तब तक खालिद नींद से पूरी तरह जाग चुका था, उस ने उठ कर जोहान की नब्ज टटोली और बीवी से बोला, ”जल्दी से तैयार हो जाओ, जोहान को तुरंत अस्पताल ले जाना होगा.’‘

तब तक खालिद के अब्बू जाकिर अली भी जाग चुके थे. उन्हें जैसे ही पोते की तबीयत खराब के बारे में बताया गया तो वह भी चिंता में पड़ गए. तब तक खालिद ने एक परिचित आटोरिक्शा वाले को फोन कर दिया था. रिक्शा आतेआते सुबह के 4 बज चुके थे. दादा जाकिर ने अच्छी तरह समझाते हुए कहा, ”बेटा, जोहान को फतेहगढ़ के मैक्सकेयर अस्पताल ही ले कर जाना.’‘

”हां अब्बू, तुम चिंता मत करो, हम वहीं ले कर जा रहे हैं.’‘खालिद ने आटोरिक्शा में बैठते हुए कहा.

चंद मिनटों में ही खालिद अपनी बीवी और बीमार बेटे को ले कर फतेहगढ़ इलाके में स्थित बच्चों के मशहूर मैक्सकेयर चिल्ड्रन हौस्पिटल पहुंच गया. इमरजेंसी वार्ड से जोहान को आईसीयू में भरती करा दिया. यह बात 4 जनवरी, 2022 की है.

इस के पहले भी जोहान को सर्दी जुकाम होने पर 26 नवंबर, 2021 को मैक्सकेयर हौस्पिटल में भरती कराया गया था. उस समय जोहान को हौस्पिटल में 6 दिसंबर, 2021 तक भरती रखा गया था.

डाक्टरों ने बुखार के मरीज को 3 महीने क्यों किया भरती

जब खालिद ने पहली बार अपने बेटे को मैक्सकेयर हौस्पिटल में भरती कराया था, तभी उस ने हौस्पिटल के संचालक डा. अल्ताफ मसूद से कहा था, ”सर, मेरे पास आयुष्मान कार्ड है, क्या इलाज में यह काम आएगा?’‘

”देखिए, हमारा हौस्पिटल अभी आयुष्मान योजना के पैनल में शामिल नहीं है, लेकिन जल्द ही हो जाएगा. आप के बेटे की हालत नाजुक है, ऐसे में आप अभी पेमेंट कर दें, यदि आगे लाभ मिलेगा तो इलाज का पैसा आप को वापस मिल जाएगा.’‘

बात बेटे जोहान की सेहत की थी, इसलिए खालिद ने बिना देर किए इलाज और जांच के लिए करीब 37 हजार रुपए जमा कर दिए. 28 साल का खालिद अली अपने 3 महीने के बेटे जोहान की सेहत के लिए हमेशा सचेत रहता था. वह नहीं चाहता था कि उस के मासूम बेटे जोहान को किसी भी तरह की तकलीफ हो.

मैक्सकेयर हौस्पिटल के संचालक के कहने पर 4 जनवरी, 2022 से 17 जनवरी, 2022 तक जोहान मैक्सकेयर हौस्पिटल में एडमिट रहा. इस दौरान अस्पताल प्रबंधन ने  आयुष्मान कार्ड से फ्री इलाज न कर खालिद अली से पैसे जमा कराए थे.

लाखों रुपए लुटाने के बाद भी बेटे की हालत में सुधार होते न देख खालिद उसे पहले भोपाल के एम्स ले गए, वहां से डीआईजी बंगले के पास स्थित अस्पताल में भरती कराया गया. आखिरकार, चंद ही घंटों में मासूम जोहान को मृत घोषित कर दिया गया.

जोहान की मौत का सदमा खालिद की बीवी को सब से ज्यादा लगा. बेटे की मौत के बाद उसे ऐसा लगा जैसे उस का सब कुछ चला गया.

खालिद अली ने अपने 3 महीने के बेटे को इलाज के लिए जनवरी, 2022 में भोपाल के फतेहगढ़ इलाके में मैक्सकेयर चिल्ड्रन अस्पताल में भरती कराया था. चूंकि खालिद के पास सरकार की आयुष्मान भारत योजना (Ayushman Bharat Yojna) का आयुष्मान कार्ड था. लिहाजा उस ने अस्पताल संचालक से कार्ड के माध्यम से इलाज की गुहार लगाई थी. लेकिन अस्पताल संचालक ने आयुष्मान कार्ड (Ayushman Card) के जरिए इलाज करने से साफ मना कर दिया.

अस्पताल संचालक द्वारा उसे बताया गया कि अभी यह अस्पताल योजना का लाभ देने के लिए लिस्ट में शामिल नहीं है. जबकि खालिद से सारे दस्तावेज जमा करवा लिए गए थे. अस्पताल ने बाद में खालिद से 37 हजार रुपए जमा भी करवाए और इलाज के नाम पर लाखों रुपए की दवाइयां भी उस ने खरीदीं. इलाज और दवाओं के कोई बिल भी अस्पताल की ओर से नहीं दिए गए.

खालिद अली ने एलएलबी की पढ़ाई की थी और कानून की उसे जानकारी भी थी, लिहाजा हौस्पिटल द्वारा की गई धोखाधड़ी पर वह चुप नहीं बैठा. अखबारों में खालिद ने आयुष्मान कार्ड घोटाले की खबरें पढ़ीं तो खालिद को शक हुआ कि कहीं उस के साथ भी हौस्पिटल द्वारा फ्राड तो नहीं किया गया है. उस ने आयुष्मान भारत योजना के भोपाल औफिस में सूचना के अधिकार के तहत एक आरटीआई दाखिल कर अपने कार्ड से हुए भुगतान की जानकारी मांग ली.

एक दिन खालिद को आयुष्मान भारत योजना की ओर से वेरीफिकेशन काल आई. काल करने वाले ने खालिद से पूछा, ”क्या आप खालिद अली बोल रहे हैं?’‘

”हां, मैं खालिद अली ही बोल रहा हूं.’‘खालिद ने जबाव दिया.

”क्या आप के बच्चे का इलाज मैक्सकेयर हौस्पिटल में चल रहा है?’‘काल करने वाले ने पूछा.

”हां जी, इलाज तो चला था, मगर अब बेटे की मौत हो चुकी है.’‘खालिद ने बताया.

”क्या आप के बेटे का इलाज आयुष्मान भारत योजना के तहत फ्री हुआ था. अस्पताल ने रुपए तो नहीं लिए?’’

पैसे की बात सुनते ही खालिद सकते में आ गया और उस ने बताया, ”मगर हम ने तो इलाज के लिए पूरा बिल अस्पताल को दिया है.’‘

वेरीफिकेशन करने वाले ने बताया कि अस्पताल की ओर से आयुष्मान कार्ड के खाते से भी पैसे निकाले गए हैं.

पैरामैडिकल फ्रेंचाइजी से भरी तिजोरी

इस फरवाड़े का जन्म 1998 में हुआ, जिस की नींव आगरा के लोटस इंस्टीट्यूट में पड़ी थी. लोमड़ी से भी शातिर दिमाग वाले पंकज पोरवाल ने मैडिकल लाइन में अपना पहला कदम रखा और आयुष पैरामैडिकल काउंसिल औफ इंडिया की नींव रखी. पंकज पोरवाल ने सन 2013 में दिल्ली के एनसीबी चिट फंड संस्थान से अब्दुल कलाम ग्रुप औफ इंस्टीट्यूट पैरामैडिकल का रजिस्ट्रैशन कराया.

अब्दुल कलाम ग्रुप औफ इंस्टीट्यूट पैरामैडिकल की फ्रेंचाइजी लेने के लिए लोगों का तांता लगने लगा. एक फ्रेंचाइजी के लिए 3 से 4 लाख रुपए तय हुआ था. रेवड़ी की तरह फ्रेंचाइजी बांटने का काम उत्तर प्रदेश से शुरू किया गया था. जांचपड़ताल में पता चला कि फरजी पैरामैडिकल बोर्ड के जरिए उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि बिहार, उत्तराखंड और पंजाब समेत कुल 427 फरजी कालेज खोले गए. फ्रेंचाइजी के नाम पर मोटी रकम वसूली गई.

उस दिन 10 सितंबर, 2023 की तारीख थी. उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के एसएसपी डा. गौरव ग्रोवर ने कैंट सर्किल के एएसपी (ट्रेनी) मानुष पारिख की अगुवाई में एक टीम को इस गोरखधंधे के मुख्य आरोपी पंकज पोरवाल को गिरफ्तार करने के लिए आगरा के शाहगंज थाने रवाना किया था.

दरअसल, गोरखपुर जिले के चौरीचौरा के रहने वाले विजय प्रताप सिंह ने जुलाई 2023 में अदालत में सीआरपीसी की धारा 156 (3) के अंतर्गत एक वाद दाखिल किया था.

कोर्ट में दाखिल वाद में उन्होंने आरोप लगाया था कि साल 2020 में उस ने पंकज पोरवाल को करीब साढ़े 3 लाख रुपए दे कर अब्दुल कलाम पैरामैडिकल इंस्टीट्यूट की फ्रेंचाइजी ली थी और कुशीनगर जिले के हाटा कस्बे में जननी पैरामैडिकल नर्सिंग साइंस कालेज के नाम पर उसे संचालित करता रहा.

बाद के दिनों में पता चला कि उस के साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ है. उस ने जो फ्रेंचाइजी पंकज पोरवाल से ली थी, वो फरजी निकला. फिर उस ने कसया थाने में डायरेक्टर पंकज पोरवाल के खिलाफ एक तहरीर दी, जिस का परिणाम यह निकला था कि पुलिस ने उस का मुकदमा दर्ज करने के बजाय उसे ही जेल की सलाखों के पीछे धकेल दिया था.

जेल से जमानत पर छूटने के बाद विजय प्रताप सिंह ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था और कोर्ट के माध्यम से चौरीचौरा थाने में डायरेक्टर पंकज पोरवाल के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था.

उसी मुकदमे के आधार पर एसएसपी ग्रोवर ने मामले की जांच करवाई तो घटना सच पाई गई और आरोपी पंकज पोरवाल को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस की टीम 10 सितंबर, 2023 को आगरा भेजी थी. इस मामले की जांच गोरखपुर जिले के गुलरिहा थाने के एसएचओ अतुल कुमार को सौंपी गई थी.

एसएचओ अतुल कुमार पुलिस टीम के साथ 10 सितंबर, 2023 को आरोपी पंकज पोरवाल को गिरफ्तार करने के लिए रवाना हो गए थे. अगले दिन वह पुलिस टीम के साथ आगरा के शाहगंज थाने पहुंचे और वहां के थानेदार समीर सिंह से पूरी बात बता कर अब्दुल कलाम ग्रुप औफ इंस्टीट्यूट पैरामैडिकल के डायरेक्टर आरोपी पंकज पोरवाल को गिरफ्तार कराने में सहयोग मांगा तो वह सहर्ष तैयार हो गए.

अब्दुल कलाम ग्रुप औफ इंस्टीट्यूट पैरामैडिकल का औफिस 15 गणेश नगर, सुचेता, आगरा में स्थित था. संयुक्त पुलिस टीम ने अपनी कार्यशैली अति गोपनीय रखी ताकि भ्रष्ट पुलिस को किसी बात का पता न चले और वह सीधे तौर पर आरोपी को कोई लाभ न पहुंचा सके. इसी के बाद इंस्टीट्यूट पर दबिश डालने की योजना बनी थी.

यह मात्र संयोग ही था. डायरेक्टर पंकज पोरवाल को औफिस आ कर बैठे मुश्किल से 20 मिनट ही बीते होंगे कि पुलिस टीम आ धमकी और पंकज पोरवाल को गिरफ्तार कर लिया. उस के औफिस को पूरी तरह से खंगाला. औफिस में रखे उस के लैपटाप और ड्राअर में रखे समस्त डाक्यूमेंट्स अपने कब्जे में ले लिए. उस के बाद पुलिस आगरा से गोरखपुर के लिए रवाना हो गई.

12 सितंबर, 2023 को गुलरिहा पुलिस आरोपी पंकज पोरवाल को गुलरिहा थाने ले कर पहुंची और इस की जानकारी इंसपेक्टर ने एएसपी मानुष पारिख को दे दी.

कौन था इस गोरखधंधे का मास्टरमाइंड

सूचना पा कर एएसपी मानुष पारिख गुलरिहा थाने पहुंच गए. सामने एक कुरसी पर खुद बैठे और दूसरी कुरसी पर पंकज को बैठा दिया. फिर उन्होंने उस से सख्ती से पूछताछ करनी शुरू की. एएसपी पारिख के तीखे सवालों से पंकज बुरी तरह कांपने लगा था. वह समझ गया कि उस का बचना अब मुश्किल है. बेहतर यही होगा कि उन के सवालों का जवाब बिना किसी हीलाहवाली के दे दे.

आखिरकार, पंकज पोरवाल एएसपी के सामने टूट गया और अपना जुर्म कुबूल करते हुए कहा, ”हां सर, ये सच है कि फरजी पैरामैडिकल का बड़ा कारोबार मैं ने साथियों के साथ मिल कर चलाया था. मेरे इस कारोबार में मेरे कई लोग बराबर के भागीदार थे. मैं ने और मेरे साथियों ने मिल कर 3 से 4 लाख रुपए ले कर प्रदेश के कई जिलों में 14 फरजी कालेजों की फ्रेंचाइजी दी है.’’

इस के बाद वह एकएक कर सारी कहानी विस्तारपूर्वक बताता चला गया. जिसे सुन कर पुलिस अधिकारियों के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई. समाज में कैसेकैसे शातिर लोग छिपे हुए हैं, जिन्हें देख कर कोई कह नहीं सकता है कि इन समाज के खतरनाक जालसाजों से कैसे पेश आना चाहिए? जो अपने निजी स्वार्थ के चलते हजारों विद्यार्थियों के जीवन को गर्त में झोंकने में तनिक भी नहीं झिझके.

खैर, एएसपी पारिख ने आरोपी पंकज से पूछताछ करने के बाद पूरी जानकारी पुलिस कप्तान डा. गौरव ग्रोवर को दी. एसएसपी ग्रोवर ने भी अपने स्तर से पूछताछ की. आरोपी का बयान सुन कर वे भी चौंके बिना नहीं रह सके. अगले दिन 13 सितंबर को एसएसपी ग्रोवर ने पुलिस लाइन में प्रैस कौन्फ्रैंस आयोजित की.

पत्रकारवार्ता के दौरान एसएसपी गौरव ग्रोवर ने पत्रकारों को पंकज पोरवाल के गोरखधंधे की जानकारी दी. आरोपी पोरवाल ने निर्भीक हो कर पत्रकारों के सवालों का जबाव दिया. बाद में पुलिस ने आरोपी को अदालत में पेश कर केंद्रीय जेल बिछिया, गोरखपुर भेज दिया.

इस के बाद पुलिस उस के अन्य सहयोगियों सुरेंद्र बाबू गुप्ता (पिता), इंदीवर पोरवाल (भाई), कंचन पोरवाल (पत्नी), जयवीर प्रसाद पोरवाल (चाचा), दोस्तों नरेश कुमार, कमल कांत, सुरेंद्र कुमार, दर्शन कुमार खत्री, मोहित कुमार, अनिरुद्ध कुमार, निखिल कुमार, कुलदीप वर्मा और प्रेमचंद और महिला मित्र रुचि गुप्ता की तलाश में जुट गई, जिस में कंचन पोरवाल को छोड़ कर सभी आरोपी सलाखों के पीछे भेज दिए गए थे.

पुलिस पूछताछ में आरोपी पंकज पोरवाल द्वारा दिए गए बयान से कहानी कुछ ऐसे सामने आई—

55 वर्षीय पंकज पोरवाल मूलरूप से उत्तर प्रदेश के शहर आगरा के शाहगंज थानाक्षेत्र के सुचेता गांव का रहने वाला था. सुरेंद्र बाबू गुप्ता के 2 बेटों में पंकज बड़ा था. वह बेहद होशियार और उतना ही परिश्रमी भी था. यही नहीं वह पढ़ालिखा भी था.

वह अपने जीवन में अपनी मेहनत से इतना पैसा कमाना चाहता था कि लोग उस की गिनती देश के एक धनाढ्य के रूप में करें. पर कैसे? इसी जद््दोजेहद में वह दिनरात जुटा रहा. आखिरकार उस ने रास्ता निकाल ही लिया, वह रास्ता अपराध की डगर से हो कर जाता था.

पंकज ने कैसे रखी जुर्म की बुनियाद

पंकज ने आयुष पैरामैडिकल काउंसिल औफ इंस्टीट्यूट की स्थापना की. यह मैडिकल के क्षेत्र में उस का पहला संस्थान था. इस पैरामैडिकल के जरिए उस ने मध्यमवर्गीय बच्चों को शिकार बनाना शुरू किया था.

उस ने छात्रों को होम्योपैथ, योगासन आदि की डिग्रियां बांटनी शुरू की और हर छात्र से 2 से 3 लाख रुपए वसूले थे. धीरेधीरे उस की यह धोखे की दुकान चल पड़ी और उस ने संस्थान के कारोबार को विस्तार देने के लिए अपने पिता सुरेंद्र बाबू गुप्ता, भाई इंदीवर पोरवाल और पत्नी कंचन पोरवाल को बोर्ड औफ डायरेक्टर में जोड़ लिया और संस्थान को बढ़ाने लगा.

आयुष पैरामैडिकल कांउसिल औफ इंस्टीट्यूट की स्थापना के डायरेक्टर पंकज पोरवाल ने सन 2013 में दिल्ली के एनसीबी चिट फंड संस्थान से अब्दुल कलाम ग्रुप औफ इंस्टीट्यूट का रजिस्ट्रैशन कराया.

संस्थान ने उसे रजिस्ट्रैशन नंबर- 8901190 आवंटित किया था और साल 2015 में उत्तर प्रदेश सरकार से रजिस्ट्रैशन कराया. इस के तहत उस ने छात्रों को एएनएम, जीडीए, मैडिकल ड्रेसर, सीएमएस, डीएमआईटी, डीएमआरटी, एक्सरे, ईसीजी, सीएमएलटी, सीसीसीई, डेंटल नर्सिंग, डेंटल हाइजीनिस्ट, डीओटीटी, डायलिसिस टेक्नीशियन, डिप्लोमा इन हैल्थ सेनेटरी, औप्थलैमिक असिस्टैंट, डीपीटी और एचडीएचएचएम कोर्स पढ़ाने का फैसला लिया और बदले में छात्रों से मोटी रकम वसूलने की भी  योजना बनाई.

इस के बाद संस्थान को और विस्तार करते हुए उस ने अपने दोस्तों नरेश कुमार, कमलकांत, सुरेंद्र कुमार, दर्शन कुमार खत्री, मोहित कुमार, अनिरुद्ध कुमार, निखिल कुमार, कुलदीप वर्मा, प्रेमचंद और महिला मित्र रुचि गुप्ता को संस्थान का दायित्व सौंप दिया था.

इस के बाद शातिर दिमाग पंकज पोरवाल के घर में जैसे लक्ष्मीजी स्थाई रूप से बैठ ही गई थीं. घर में नोटों की बारिश होने लगी थी. अब्दुल कलाम इंस्टीट्यूट के दाखिले में कोर्स के हिसाब से प्रति छात्र ढाई से 3 लाख रुपए की रकम वसूली जा रही थी. संस्थान का नाम बड़ा हुआ और देश के कई राज्यों में नाम फैलने लगा तो उस ने इसे कैश करने का मन बना लिया. उस ने इस की फ्रेंचाइजी देनी शुरू कर दीं.

पूरे देश में कैसे बांटीं 427 फ्रेंचाइजी

अब्दुल कलाम ग्रुप औफ इंस्टीट्यूट पैरामैडिकल का फ्रेंचाइजी लेने के लिए लोगों का तांता लगने लगा. एक फ्रेंचाइजी के लिए 3 से 4 लाख रुपए तय हुआ था. रेवड़ी की तरह फ्रेंचाइजी बांटने का काम उत्तर प्रदेश से शुरू किया गया.

पहली फ्रेंचाइजी की नींव जीवन छवि पैरामैडिकल कालेज, प्रयागराज में पड़ी और संचालनकर्ता थे निरंकार त्रिपाठी. इन्होंने फ्रेंचाइजी लेने के लिए 4 लाख रुपए दिए. इस के साथ शंभुनाथ तिवारी कालेज औफ नर्सिंग गंगौली, अयोध्या, संचालक चंद्रदेव तिवारी, छत्रपति शिवाजी कालेज औफ साइंस एंड पैरामैडिकल देवरिया, संचालक प्रशांत कुमार कुशवाहा ने फ्रेंचाइजी ली.

इस के अलावा वंश पैरामैडिकल कालेज सिरसागंज, जिला फिरोजपुर, संचालक कमल किशोर, प्रतिभा पैरामैडिकल एंड नर्सिंग कालेज ट्रस्ट, देवरिया, संचालक प्रतिभा सिंह, जननी पैरामैडिकल नर्सिंग साइंस, पालिका परिषद, कुशीनगर, संचालक विजय प्रताप सिंह, सौय शाक्य पैरामैडिकल देवरिया, संचालक रमाकांत कुशवाहा, मां विंध्यवासिनी पैरामैडिकल कालेज, गोरखपुर, संचालिका गिरिजा त्रिपाठी, अपमूर्णानंद पैरामैडिकल, बलिया, संचालक गुप्तेश्वर पांडेय ने भी उस से फ्रेंचाइजी ली.

रुद्रा पैरामैडिकल कालेज, वाराणसी, संचालक डा. पवन साहनी, आल इंडिया पैरामैडिकल, सीतापुर, राजीव विश्वास, सतीशचंद्र इंस्टीट्यूट, शाहजहांपुर, संचालक मुकेश शुक्ला, सान हौस्पिटल, बरेली, संचालक डा. फहीम खान, वासु पैरामैडिकल, बुलंदशहर, संचालिका रुचि गुप्ता को भी फ्रेंचाइजी दी गई. ये आंकड़े कोरोना काल के पहले तक के हैं, जिन में किसी ने 3 लाख तो किसी ने 4 लाख रुपए दिए. कोरोना काल खत्म होने के बाद उत्तर प्रदेश के 40 जिलों में फ्रेंचाइजी दी गई.

पंकज पोरवाल की जालसाजी का यह कारोबार उत्तर प्रदेश के साथसाथ बिहार, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों में तेजी से पांव पसारने लगा. और जहांजहां पैरामैडिकल की फ्रेंचाइजी ली गई, वहांवहां बच्चों ने अपने सुनहरे भविष्य की कल्पना लिए लाखों रुपए खर्च कर उस में दाखिला लिया.

18 जनवरी, 2022 को राष्ट्रीय खबर टीवी चैनल पर अपने 14 मिनट 21 सेकेंड के साक्षात्कार में पंकज पोरवाल ने खुद स्वीकार किया है कि उस ने देश भर में कुल 427 फ्रेंचाइजी खोली हैं.

सनद रहे, एक सेंटर खोलने के एवज में 4 लाख रुपए के हिसाब से यह कुल रकम 17 करोड़ 8 लाख रुपए की बनती है और इस दौरान तकरीबन 4 हजार विद्यार्थियों ने अपना भविष्य दांव पर लगा कोर्स के हिसाब से प्रति छात्र से ढाई से 3 लाख रुपए लिए जाते थे. इस हिसाब से यह रकम भी करोड़ों के आसपास पहुंचती है, लेकिन यह लोग बच्चों को उज्जवल भविष्य के सुनहरे सपने दिखा कर धोखे की चाबी से अपनी तिजोरियां भर रहे थे.

शिकायतकर्ता को ही क्यों जाना पड़ा जेल

जुर्म की जिस खोखली बुनियाद पर करीब 24 साल से वह अपराध की फसल काट रहा था, वह बुनियाद पूरी तरह ढह चुकी थी. आयुष पैरामैडिकल के प्रमाणपत्र और मार्कशीट पर तो छात्रों को होम्योपैथिक विभागों में सरकारी नौकरियां तो मिल जाती थीं, लेकिन जब वे अब्दुल कलाम ग्रुप औफ इंस्टीट्यूट पैरामैडिकल के प्रमाणपत्रों और मार्कशीटों को ले कर सीएमओ औफिस में रजिस्ट्रैशन करवाने जाते थे तो उन्हें अपने ठगे जाने की जानकारी मिलती थी.

ऐसी ही एक घटना कुशीनगर जिले में सामने आई. जननी पैरामैडिकल नर्सिंग साइंस, कुशीनगर, संचालक विजय प्रताप सिंह को उन के छात्रों ने अपने ठगे जाने की जानकारी दे कर जब हंगामा किया तो वह सक्रिय हुए और अब्दुल कलाम ग्रुप औफ इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर पंकज पोरवाल के खिलाफ एक लिखित शिकायत कोतवाली हाटा को दी.

संचालक विजय प्रताप सिंह के शिकायत पत्र सौंपने से पहले ही कुछ पीड़ित छात्र अपने साथ हुई धोखाधड़ी के संबंध में शिकायत दर्ज करा चुके थे. पुलिस उस कंप्लेंट की जांच कर रही थी, उसी दौरान संस्थान के संचालक विजय प्रताप भी अपनी शिकायत ले कर थाने पहुंच गए थे. फिर क्या था पुलिस ने विजय की शिकायत दर्ज करने से पहले ही छात्रों की शिकायत पर उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. ये जनवरी 2013 की बात थी.

भले ही पुलिस ने विजय सिंह को गिरफ्तार कर के जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया था, लेकिन उस के दिल में अभीअभी छात्रों के साथ हुए धोखे का मलाल कुलांचे भर रहा था. वह पछतावे की आग में जल रहा था और ठान लिया था कि छात्रों के भविष्य के साथ हुए खिलवाड़ का जब तक वह बदला नहीं ले लेगा, तब तक वह चुप बैठने वाला नहीं है.

डिप्लोमा और मार्कशीटों ने कैसे खोली पोल

करीब 6 महीने बाद जमानत पर विजय जेल से छूट कर बाहर आया. बाहर आते ही उस ने जुलाई 2020 में अदालत का दरवाजा खटखटाया और अब्दुल कलाम ग्रुप औफ इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर पंकज पोरवाल के खिलाफ पैरामैडिकल के नाम पर छात्रों के साथ की गई धोखाधड़ी के संबंध में दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 156 (3) के तहत गोरखपुर सेशन कोर्ट में एक रिट दाखिल करवाई.

मुकदमा दर्ज हो जाने के बाद यह मामला एसएसपी डा. गौरव ग्रोवर के संज्ञान में आया तो उन्होंने छात्रों के भविष्य से जुड़े इस गंभीर मामले की जांच के लिए सीओ (कैंट सर्किल) ट्रेनी आईपीएस मनीष पारिख को पुटअप

किया. उन्होंने अपनी जांच में पाया कि अब्दुल कलाम ग्रुप औफ एजुकेशन बोर्ड (इंस्टीट्यूट) आगरा को कानूनी मान्यता नहीं है. अब्दुल कलाम ग्रुप औफ एजुकेशन बोर्ड का खाता आगरा के एचडीएफसी बैंक में था. खाते का संचालन संयुक्त रूप से पंकज पोरवाल और उस की पत्नी कंचन पोरवाल के नाम से किया जाता था.

109 फ्रेंचाइजी उत्तर प्रदेश के 40 जिलों सहित बिहार, उत्तराखंड, पंजाब में होने का खुलासा हो चुका था. फ्रेंचाइजी देने के नाम पर 3 से 4 लाख रुपए संचालक पंकज पोरवाल वसूल करता था. पैरामैडिकल से संबंधित कोर्स कराने के लिए ढाई से 3 लाख वसूली होती थी.

यही नहीं, संचालित बोर्ड में मार्कशीट व प्रमाणपत्रों पर पंकज पोरवाल द्वारा एग्जाम कंट्रोलर के स्थान पर सगे भाई इंदीवर पोरवाल और आयुष पैरामैडिकल के प्रमाणपत्र पर उस के पिता सुरेंद्र बाबू गुप्ता के हस्ताक्षर होते थे. और तो और रजिस्ट्रैशन के बाद अवैध तरीके से शिक्षण संस्थान बनाए गए थे.

जांच में एक ऐसी चौंकाने वाली बात पता चली थी कि एएसपी मानुष के पैरों तले से जमीन खिसकती नजर आई. जांच में यह पता चला कि विद्यार्थियों को दी जाने वाली डिग्री पर अंगरेजी में साफसाफ लिखा जाता था कि किसी भी सरकारी या प्राइवेट नौकरी में यह डिग्री इस्तेमाल नहीं की जा सकती है. अब्दुल कलाम इंस्टीट्यूट और आयुष पैरामैडिकल काउंसिल औफ इंस्टीट्यूट के नाम से अंकपत्र और प्रमाणपत्र देते थे, यह सब फरजी होते थे.

एसएसपी डा. गौरव ग्रोवर ने बताया कि नियमानुसार संस्था को खोलने के लिए उत्तर प्रदेश स्टेट पैरामैडिकल या अटल बिहारी बाजपेयी मैडिकल यूनिवर्सिटी में पंजीकरण कराना होता है. मगर इस संस्था का पंजीकरण नहीं था. डीजीएसई और सीएसओ दफ्तर में कोई प्रमाण नहीं मिला, इसी से संस्था के फरजी होने का पता चला.

करोड़ों रुपए की संपत्ति हुई बरामद

पुलिस ने जब आरोपी का औफिस खंगाला तो वहां 2 कंप्यूटरों में फ्रेंचाइजी का विवरण मिला. 109 फ्रेंचाइजी से संबंधित फार्म में मूल प्रति उपलब्ध थे.

पैरामैडिकल से संबंधित किताबें, पैरामैडिकल से संबंधित मार्कशीट का प्रमाणपत्र, विभिन्न कोर्स से संबंधित किताबें, फ्रेंचाइजी के नाम पर ली गई धनराशि की रसीदें, दंपति का अपराध से अर्जित 1400 स्क्वायर फीट संपत्ति, पंकज पोरवाल का मकान थाना अंतर्गत शाहगंज, आगरा, 3 बीएचके फ्लैट और अर्द्धनिर्मित मकान के कागजात आगरा के मिले, 1200 स्क्वायर फीट का एक प्लौट के कागजात जो शाहगंज, आगरा में मौजूद है, मिला और एक और प्लौट आगरा में होने की बात भी सामने आई है.

उसी औफिस से एचडीएफसी बैंक के संयुक्त खाते में मौजूद राशि 90467.68 रुपए, एसबीआई शाहगंज के खाते में पंकज पोरवाल की राशि 41171. 55 रुपए, एसबीआई शाखा जयपुर हाउस में पत्नी कंचन पोरवाल की राशि 5 लाख 77 हजार रुपए, केनरा बैंक साकेत कालोनी, आगरा में कंचन का खाता, सैंट्रल बैंक अछल्दा इटावा में कल्पना पोरवाल (साली) और कंचन पोरवाल के खाते में 16 लाख रुपए के बैंक पासबुक मिले, जो पुलिस ने अपने कब्जे में ले लीं और उन के तमाम अकांउट को फ्रीज करा दिया, ताकि वो न तो रुपए निकाल सके.

खैर, कथा लिखे जाने तक डायरेक्टर पंकज पोरवाल, सुरेंद्र बाबू गुप्ता (पिता), इंदीवर पोरवाल (भाई), कंचन पोरवाल (पत्नी), जयवीर प्रसाद पोरवाल (चाचा), दोस्तों नरेश कुमार, कमलकांत, सुरेंद्र कुमार, दर्शन कुमार खत्री, मोहित कुमार, अनिरुद्ध कुमार, निखिल कुमार, कुलदीप वर्मा और प्रेमचंद गिरफ्तार हो चुके थे और महिला मित्र रुचि गुप्ता फरार थी. सभी आरोपी जेल के सलाखों के पीछे कैद थे.

कंचन पोरवाल अभी भी फरार चल रही है. इतने बड़े पैमाने पर फरजीवाड़े से देश भर में हड़कंप मचा हुआ है. आखिर इस के लिए दोषी कौन है? क्यों नहीं किसी भी राज्य के सरकारों को इस फरजीवाड़े का पता चला? कैसे कई सालों तक फरजीवाड़े की दुकान बेखौफ चलती रही? समाज के सामने एक बहुत बड़ा प्रश्न खड़ा है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

8 लाख में नकली डाक्टर

एसटीएफ ने जब अपनी जांच आगे बढाई तो उन्हें यह जानकारी मिली थी कि बाबा ग्रुप औफ कालेज, मुजफ्फरनगर के मालिक इमरान व इम्लाख हैं. पता चला कि इम्लाख तो कोतवाली मुजफ्फरनगर का हिस्ट्रीशीटर भी था. इम्लाख ने अपने भाई इमरान के साथ मुजफ्फरनगर के थाना बरला क्षेत्र में बाबा ग्रुप औफ कालेज के नाम से एक मैडिकल डिग्री कालेज खोल रखा है, जो बी फार्मा, बीए व बीएससी आदि कोर्स संचालित करता है.

जब भारतीय चिकित्सा परिषद के अधिकारियों से इस फरजीवाड़े के बारे में एसटीएफ के अधिकारियों ने पूछताछ की तो उन्होंने एसटीएफ को कोई सहयोग नहीं किया. इस के बाद भारतीय चिकित्सा परिषद के कुछ अधिकारी गुपचुप तरीके से डाक्टरों के इस फरजीवाड़े में आरोपियों की गुप्त रूप से मदद करने लगे.

20 नवंबर, 2023 का दिन था. उस दिन देहरादून के सीओ अनिल जोशी द्वारा 18 फरजी बीएएमएस डाक्टरों के खिलाफ विवेचना पूरी कर के चार्जशीट अदालत में भेजी गई थी. ये सभी डाक्टर फरजी बीएएमएस डिग्री द्वारा उत्तराखंड के कई स्थानों पर प्रैक्टिस कर रहे थे. स्थानीय प्रशासन, एसटीएफ व पुलिस भी इन फरजी डाक्टरों को बिना ठोस प्रमाण के हाथ डालने से बच रही थी.

लेकिन यह मामला इन तीनों एजेंसियों के संज्ञान में था कि कुछ फरजी बीएएमएस डिग्रीधारक डाक्टर उत्तराखंड के कई स्थानों पर डाक्टरी कर रहे थे. यह मामला सीएमओ देहरादून के संज्ञान में भी था तो वह भी अपने स्तर से इन फरजी डाक्टरों की तलाश में लगे हुए थे.

वर्ष 2023 के जनवरी माह में जब इन फरजी डाक्टरों के खिलाफ आवाज उठनी शुरू हुई थी तो देहरादून के डीएम व एसएसपी ने इस बाबत एक बैठक बुलाई थी. इस बैठक में इन दोनों अधिकारियों ने फरजी डाक्टरों को चिह्निïत करने तथा उन के खिलाफ सुबूत जुटा कर जेल भेजने के निर्देश आयुष अग्रवाल, एसएसपी (एसटीएफ) को दिए थे.

आला अधिकारियों का निर्देश पा कर एसटीएफ के एसएसपी सक्रिय हो गए और उन्होंने खुफिया विभाग व स्थानीय पुलिस से मिल कर इन फरजी बीएएमएस डाक्टरों को चिह्नित करने को कहा था. इस के बाद पुलिस व एसटीएफ ने आसपास के क्षेत्रों के ऐसे डाक्टरों की पहचान करने का काम शुरू कर दिया था.

इन फरजी डाक्टरों की पहचान करने के काम में स्वास्थ्य विभाग भी पीछे नहीं रहा था. कुछ भागदौड़ के बाद स्वास्थ्य विभाग, पुलिस व एसटीएफ ने कुछ फरजी डाक्टरों की पहचान कर ली. एसटीएफ के सामने इस बात की चुनौती थी कि उन के खिलाफ ठोस सुबूत कैसे जुटाए जाएं?

गोपनीय जांच में यह भी सामने आया कि उन में से ज्यादातर बीएएमएस डाक्टरों के पास भारतीय चिकित्सा परिषद उत्तराखंड में रजिस्ट्रैशन था, जिसे परिषद ने उन्हें उन की डिग्री के आधार पर जारी कर रखा था. ऐसे रजिस्ट्रैशन के बाद कुछ डाक्टरों ने क्लीनिक भी खोल रखे थे. आम जनता उन्हें असली डाक्टर समझ कर उन से इलाज करा रही थी. सच्चाई यह थी कि ये डाक्टर आम जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहे थे.

एसटीएफ के एसएसपी आयुष अग्रवाल को यह भी जानकारी मिली कि ऐसे फरजी डाक्टरों की संख्या अधिक है.

कहां से प्राप्त की थीं फरजी डिग्रियां

एसटीएफ की शुरुआती जांच में कई आयुर्वेदिक डाक्टरों का भी फरजीवाड़ा पाया गया. इस बाबत जब चिकित्सा बोर्ड से सूचना मांगी गई तो एसटीएफ ने 36 फरजी डाक्टरों की पहचान कर ली. कुछ डाक्टरों के पास राजीव गांधी हैल्थ एंड साइंस यूनिवर्सिटी बेंगलुरु तथा बाबा ग्रुफ औफ कालेज मुजफ्फरनगर की फरजी डिग्रियां भी थीं.

एसटीएफ की टीम को जब बाबा ग्रुप औफ कालेज के फरजीवाड़े की जानकारी हुई तो टीम ने 10 जनवरी, 2023 को इस के संचालक इमरान पुत्र इलियास को उस के शेरपुर, मुजफ्फरनगर कालेज से ही गिरफ्तार कर लिया था.

इस के बाद इमरान के कब्जे से एसटीएफ ने कई राज्यों के विश्वविद्यालयों की फरजी ब्लैंक डिग्रियां, फरजी मोहरें, कई फरजी पेपर व जाली दस्तावेज बरामद किए थे. इमरान ने पूछताछ के दौरान बताया था कि उस ने काफी लोगों को 8-8 लाख रुपए ले कर बीएएमएस की फरजी डिग्रियां दी थीं तथा वह खुद 10वीं पास है.

इस के बाद एसटीएफ इमरान को ले कर देहरादून आ गई थी. एसटीएफ ने देहरादून के मोहल्ला प्रेम नगर में प्रैक्टिस करने वाले फरजी डाक्टर प्रीतम सिंह निवासी अंबेवाला श्यामपुर देहरादून तथा मुनीष अहमद निवासी सुमनपुरी अधोईवाला थाना रायपुर देहरादून को भी गिरफ्तार कर लिया था. ये दोनों डाक्टर भी फरजी डिग्री के आधार पर प्रैक्टिस कर रहे थे.

एसटीएफ के एसआई दिलबर सिंह नेगी द्वारा नेहरू कालोनी थाने में इन के खिलाफ फरजी डिग्री द्वारा प्रैक्टिस करने का मुकदमा आईपीसी की धाराओं 420, 467, 468, 471 व 120बी के तहत दर्ज कर लिया गया था. एसटीएफ ने इन तीनों आरोपियों के कब्जे से उन की जाली डिग्रियां, 102 खाली डिग्रियां, 48 अलग अलग कालेजों के लिफाफे, अलगअलग यूनिवर्सिटीज के लैटर पैड व लिफाफे आदि सामान बरामद किए.

इस के बाद पुलिस ने इन तीनों आरोपियों को कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया था. मामले की गंभीरता को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग, जिला प्रशासन व एसटीएफ ने इन डाक्टरों के फरजीवाड़े की विशेष जांच टीम (एसआईटी) से जांच कराने का फैसला किया था.

गठित की गई एसआईटी में एएसपी (क्राइम) सर्वेश पंवार, एएसपी चंद्रमोहन सिंह, सीओ नरेंद्र पंत, इंसपेक्टर अब्दुल कलाम, थानेदार यादवेंद्र बाजवा, नरोत्तम बिष्ट, दिलबर सिंह नेगी, हैडकांस्टेबल संदेश यादव, वीरेंद्र नौटियाल, कांस्टेबल महेंद्र नेगी, मोहन असवाल, दीपक चंदोला व कादर खान को शामिल किया गया. एसआईटी ने इस मामले की जांच शुरू कर दी थी.

एसटीएफ यह समझ गई कि बिना भारतीय चिकित्सा परिषद के अधिकारियों की सांठगांठ के इन फरजी डाक्टरों के रजिस्ट्रैशन नहीं हो सकते. इस कारण भारतीय चिकित्सा परिषद के कर्मचारी वीरेंद्र मैठाणी, अंकुर माहेश्वरी, विवेक रावत व विमल प्रसाद भी एसटीएफ के रडार पर आ गए.

इस के बाद 27 जनवरी, 2023 को एसआईटी के प्रभारी सर्वेश पंवार को जानकारी मिली थी कि 4 फरजी डाक्टर रोशन कुमार काला, अजय कुमार काला, मनोज नेगी तथा अनुराग नौटियाल भी फरजी डिग्री के सहारे देहरादून में प्रैक्टिस कर रहे हैं.

इन चारों को पूछताछ के लिए थाना नेहरू कालोनी में बुलाया गया था. जब इन चारों ने अपनी अपनी डिग्रियां एसटीएफ को दिखाईं तो इन चारों की डिग्रियां भी फरजी पाई गईं.

इस के बाद सर्वेश पंवार ने इन चारों को गिरफ्तार कर लिया था और उन्हें एक प्रैसवार्ता के दौरान मीडिया के सामने पेश किया गया. आरोपियों का कहना था कि इम्लाख खान जो कि बाबा ग्रुप औफ कालेज मुजफ्फरनगार का संचालक है, उस ने उन्हें ये फरजी डिग्रियां 8-8 लाख रुपए के हिसाब से दी थीं. वर्ष 2021 से इन्हीं डिग्रियों के आधार पर वह चिकित्सा कार्य कर रहे हैं.

इस के बाद एसटीएफ ने रोशन काला निवासी शिवलोक कालोनी रायपुर देहरादून, अजय काला निवासी शिवलोक कालोनी रायपुर देहरादून, मनोज नेगी निवासी पुष्प विहार, रायपुर, देहरादून तथा अनुराग नौटियाल निवासी रांझावाला देहरादून को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. टीम ने इन आरोपियों के बैंक खातों की भी जांच शुरू कर दी.

2 फरवरी, 2023 को एसटीएफ ने फरजी डिग्रियां रकम ले कर बांटने के मुख्य आरोपी इम्लाख को भी मुजफ्फरनगर स्थित उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. उसे पूछताछ के लिए थाना नेहरू कालोनी लाया गया. यहां पर इम्लाख से एसटीएफ, सीओ अनिल जोशी तथा एसएचओ (नेहरू कालोनी) लोकेंद्र बहुगुणा ने गहन पूछताछ की.

पूछताछ में इम्लाख ने बताया था कि देहरादून के मोहल्ला मोथरोवाला स्थित भारतीय चिकित्सा परिषद का रजिस्ट्रार वीरेंद्र मैठाणी, अंकुर माहेश्वरी, वीरेंद्र रावत, विमल विजल्वाण उस के इस फरजीवाड़े में सहयोग करते हैं.

फिर एसटीएफ ने वीरेंद्र मैठाणी निवासी गांव ओणी पौड़ी गढ़वाल हाल निवासी धर्मपुर देहरादून, विवेक रावत निवासी रेसकोर्स देहरादून, विमल प्रसाद निवासी सिद्ध विहार, देहरादून तथा अंकुर माहेश्वरी निवासी हरीपुर, देहरादून को आईपीसी की धाराओं 420, 467, 468, 471, 120 बी तथा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13 डी के तहत गिरफ्तार कर लिया गया.

इन चारों से पूछताछ करने के बाद इन्हें कोर्ट में पेश किया गया था, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया था. इस के बाद एसटीएफ द्वारा एक फरजी बीएएमएस डाक्टर मोहम्मद जावेद निवासी चूना भट्टा रोड अधोईवाला, देहरादून को गिरफ्तार किया गया.

मोहम्मद जावेद भी फरजी डिग्री के आधार पर भारतीय चिकित्सा परिषद में रजिस्ट्रैशन कराने के बाद क्षेत्र में डाक्टरी कर रहा था. जावेद सीओ अनिल जोशी, एसएचओ लोकेश बहुगुणा, विवेचनाधिकारी अमित ममगई तथा सिपाहियों आशीष राठी व बृजमोहन द्वारा पकड़ा गया था.

फिर एसआईटी ने मुखबिरों की सूचना पर फरजी डाक्टरों को पकड़ने का अभियान शुरू कर दिया था और अनेक फरजी डाक्टर पकड़े गए थे. इन फरजी डाक्टरों में अशफाक अहमद निवासी गांव भैंसराव, जिला सहारनपुर, ज्योति पत्नी अशोक निवासी हसनपुर मदनपुर हरिद्वार, मोहम्मद गुफरान निवासी चमेलियन रोड, किदारा दिल्ली, सैय्यद निवासी कालेवाला हरिद्वार तथा इसलाम निवासी गांव अलावलपुर, जिला सहारनपुर आदि थे.

पकड़े गए सभी आरोपियों के खिलाफ पहले तो एसआईटी ने साक्ष्य जुटाए थे और इन सभी के खिलाफ जांच पूरी कर के 6 अप्रैल, 2023 को चार्जशीट कोर्ट में भेज दी थी.

एसआईटी को जो फरजी बीएएमएस डाक्टरों की सूचना मिली थी, उन में से 10 ऐसे फरजी डाक्टर थे, जिन के एड्रैस की पुष्टि नहीं हो पाई थी. इस बाबत सीओ अनिल जोशी का कहना है कि उन्होंने 20 नवंबर, 2023 को 18 फरजी डाक्टरों इनाम, मसूद, अली, प्रकाश, लोकेश, डोली, फरकान, नाजिम, सोमा महापात्र, माखन सिंह, फरमान, दर्शन शर्मा, आसिफ, मंजुम, सैय्यद, इश्तखार, सलीम आदि के खिलाफ चार्जशीट अदालत में भेज दी है. यह सभी उत्तराखंड के अलगअलग क्षेत्रों में प्रैक्टिस कर रहे थे.

कथा लिखे जाने तक इस मामले की जांच सीओ अनिल जोशी द्वारा की जा रही थी. इस फरजी डाक्टर के मामले के ज्यादातर आरोपी हाईकोर्ट नैनीताल से जमानत करा कर जेल से बाहर आ चुके हैं. इसी दौरान देहरादून में नए पुलिस कप्तान अजय सिंह को तैनात किया गया था. अजय सिंह ने एसआईटी को शेष बचे हुए फरजी बीएएमएस डाक्टरों को शीघ्र ही गिरफ्तार करने के निर्देश दिए हैं.

—कथा एसआईटी सूत्रों पर आधारित

यूट्यूबर बना नीम हकीम

शुरू के दिनों में Youtuber Abdulla Pathan लंबाई बढ़ाने के तरीके, शोल्डर की एक्साइज, बौडी बिल्डर कैसे बनें जैसे विषयों पर वीडियो बना बना कर सोशल मीडिया पर पोस्ट करता था. देसी दवाओं के इलाज के बैनर पोस्ट करने पर यूनानी यानी देसी दवाओं का इलाज कराने मरीज उत्तर प्रदेश से ही नहीं, दूसरे सूबों से भी आने लगे.

कुछ ऐसे मरीज भी आए, जो विदेश में रह रहे थे. इन में जो रोगी इलाज से एक महीने में ही सही हो गए, उन का इंटरव्यू अब्दुल्ला पठान ने फेसबुक पर डालने शुरू कर दिए. जिस से इस की शोहरत दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ गई.

एक नीम हकीम का इतना बड़ा जलवा देख लोग आश्चर्यचकित रह गए. दवाखाने के बाहर मेला सा लगने लगा. कई तरह के फ्रूट, जूस, मूंगफली, पकौड़ी समोसे आदि सामान बेचने के ठेले लग गए और उन का भी रोजगार चलने लगा. इसी दौरान कुछ शिक्षित लोग इस का दवाखाना बंद करने के लिए अधिकारियों से शिकायत करने लगे.

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उत्तर प्रदेश के जनपद मुरादाबाद की तहसील बिलारी के टाउन कुंदरकी में एक नीम हकीम अब्दुल्ला पठान के दवाने पर 16 अक्तूबर, 2023 को जिले में पहली बार स्वास्थ्य विभाग, आयुर्वेद विभाग, होम्योपैथी विभाग व ड्रग्स विभाग के अधिकारियों की संयुक्त टीम ने मिल कर छापेमारी की. बड़ी संख्या में वहां पर आयुर्वेद दवाएं बिना पैकिंग के पाई गईं, जिन में 36 दवाओं को सील कर के उन के सैंपल जांच के लिए प्रयोगशाला भेजे गए.

पूरे जनपद में यह मामला चर्चा में रहा. तमाम तरह की अफवाहें भी उड़ीं. इस नीम हकीम की दुकान सील कर दी गई. यह बात तो ठीक है कि छापेमारी के दौरान अब्दुल्ला पठान अपनी दुकान पर नहीं मिला था.

ब्लौककुंदरकी के गांव ढकिया (जुम्मा)  निवासी अब्दुल वहीद के 6 बेटे और एक बेटी सहित भरापूरा परिवार है. अब्दुल्ला पठान सहित 4 भाई लंबेचौड़े पहलवान जैसी बौडी के हैं. 2 भाइयों की कदकाठी साधारण है. अब्दुल्ला पठान का एक भाई अब्दुल मलिक इस समय ढकिया जुम्मा का प्रधान है. एक भाई अब्दुल खालिद संविदा पर ब्लौक में जूनियर इंजीनियर है.

एक भाई अब्दुल हफीज का मर्डर लगभग 15 साल पहले हो गया था. उस समय इन का एक चचेरा भाई भी साथ था. दोनों कुंदरकी कस्बे के पास में ही खेत पर काम कर रहे थे. तभी बदमाशों ने दोनों को गोलियों से भून दिया. दरअसल, ये सभी भाई काफी दबंग और हेकड़ प्रवृत्ति के रहे हैं.

जाति से पठान होने के कारण भी ये लोग अपना रुतबा कायम रखना चाहते थे. बताते हैं कि किसी ने उन की ट्रौली चुरा ली थी. चोरी के आरोप में इन्होंने गांव के चौकीदार के भाई को बुरी तरह पीटा था और थाने ले गए थे.

यह मामला तो जैसेतैसे निपट गया था, लेकिन डबल मर्डर केस में इन्होंने अन्य 4 लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई थी. अब्दुल्ला पठान का एक भाई सीआरपीएफ में है और एक पुलिस में है. बहन की शादी हो चुकी है. गांव में रंजिश के चलते ये लोग कस्बा कुंदरकी में लाइनपार मोहल्ले में बस गए थे. गांव में इन की खेतीबाड़ी है.

सभी रिश्तेदार और खानदान के लोग अभी गांव में रहते हैं. गांव में इन का आनाजाना लगा रहता है. इन के पिता अब्दुल वाहिद भी बढ़िया पर्सनालिटी के पहलवान थे. आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी. अब्दुल्ला पठान की ननिहाल कुंदरकी की है. अब्दुल्ला पठान और अन्य भाई अपनी नानी के घर रह कर पढ़ाई करते थे. अब्दुल्ला पठान को शारीरिक ताकत दिखाने का शौक लग गया.

करतब देख लोग हो जाते हैरान

पहलवानी और वर्जिश तो वह खूब करता ही था. उस ने तरह तरह के वजन उठाने का सार्वजनिक रूप से प्रदर्शन करना शुरू कर दिया. अपने एक हाथ से एक आदमी और दूसरे हाथ से दूसरे आदमी को एक साथ उठाए जाने का प्रदर्शन करना काफी चर्चित रहा. उस ने लोगों को ट्रौली खींच कर दिखाई. ट्रक खींच के दिखाया. हाथ से नारियल फोड़ा और भी तरहतरह के प्रदर्शन अपनी शारीरिक ताकत के दिखाता रहा.

इस की इन कलाओं की वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने लगीं. तब उस ने सोचा कि क्यों न यूट्यूब आदि सोशल मीडिया पर अपना अकाउंट बना लिया जाए. तब उस ने अपनी ताकत के प्रदर्शन की वीडियो और फोटो यूट्यूब, फेसबुक, इंस्टाग्राम आदि सोशल मीडिया पर डालनी शुरू कर दीं.

इस से इस की शोहरत बढ़ती चली गई. प्रदेश ही नहीं देश के अन्य प्रदेशों में भी इस की ताकत के प्रदर्शन होने लगे. चैनल पर तरहतरह के लोग सवाल करने लगे. किसी ने पूछा कि आप क्या क्या खाते हो. तब उस ने दिल्ली खारी बावली बाजार में जा कर अपनी वीडियो बनाई, जहां तरहतरह के मेवे, बादाम, काजू, पिस्ता आदि बिकते हैं.

लोगों को दिखाया कि वह यहां से खरीद कर मेवे खाता है. इसी दौरान उसे दिल्ली की आयुर्वेद और यूनानी दवाओं की दुकानों का थोक बाजार दिखाई दिया, जहां से बड़ी संख्या में हकीम और वैद्य दवा खरीद कर ले जाते हैं. उधर यह सोशल मीडिया पर भी हकीमों के और वैद्यों की रील और वीडियो देखता रहता था, जो तरहतरह की बीमारियों के इलाज की दवाएं बताते थे और स्वयं तैयार की गई दवाओं को बेचने का प्रचार भी करते थे.

शोहरत बढ़ जाने से सोशल मीडिया से आमदनी भी होने लगी. तभी इस ने हिकमत की लाइन में अपना भविष्य तलाशना शुरू किया. इस ने अपनी दुकान कुंदरकी के मोहल्ला मेन बाजार में खोली, लेकिन कामयाबी नहीं मिली.

फिर एक पैट्रोल पंप के निकट अपना यूनानी दवाओं का क्लीनिक स्थापित किया. अब्दुल्ला पठान की हिकमत यहां भी नहीं चली. तब उस ने कुंदरकी में ही स्थित जेएलएम इंटर कालेज के पास मेन हाईवे पर अपनी दुकान खोली और सोशल मीडिया पर बड़ी से बड़ी बीमारियों का देसी दवाओं से इलाज करने का प्रचार शुरू किया.

अब्दुल्ला आम इंसान से कैसे बना खास

अब्दुल्ला पठान जानता था कि देसी दवाओं की तरफ देशवासियों का रुझान बढ़ रहा है और इस लाइन में खूब दौलत कमाई जा सकती है. इस ने किसी हकीम के पास, किसी वैद्य के पास पुड़िया बांधने, इलाज करने या उपचार करने का काम कभी नहीं सीखा. सरकारी संस्थान या प्राइवेट संस्थान में आयुर्वेदिक या यूनानी दवा की कोई पढ़ाई भी नहीं की.

इस की शैक्षिक योग्यता इंटरमीडिएट पास बताई गई है. इंजीनियङ्क्षरग लाइन में जाना चाहता था, लेकिन उस में सफलता नहीं मिली. मर्दाना ताकत, धात, नाइटफाल, टाइम बढ़ाना, लिकोरिया, वजन बढ़ाना, बालों का झड़ना, पेट का इलाज, पथरी का इलाज, चेहरे पर पिंपल आदि बीमारियों का इलाज देसी जड़ीबूटियों द्वारा करने का यह प्रचार करने लगा. स्त्री एवं पुरुषों के गुप्त रोगों के इलाज का सोशल मीडिया पर बैनर जारी कर दिया.

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इस से मरीज आने शुरू हो गए. पिछले 2 सालों से यह हालत हो गई कि 3 से 4 सौ मरीज तक प्रतिदिन दवाई लेने इस के पास आते देखे गए. जबकि औनलाइन दवाई मंगाने वालों की भी लंबी सूची प्रतिदिन रहती थी. इस तरह देखते ही देखते अब्दुल्ला पठान करोड़पति हो गया और इस के रसूख बड़ेबड़े लोगों से होने लगे. पुलिस विभाग के अधिकारी हों या स्वास्थ्य विभाग के, सभी से अब्दुल्ला पठान के मधुर संबंध रहते. बड़ीबड़ी पार्टियों और कार्यक्रमों में अब्दुल्ला पठान को बुलाया जाने लगा.

एक केंद्रीय मंत्री के साथ भी इस की मौजूदगी सोशल मीडिया पर जारी वीडियो में देखी गई. और भी वीडियो और फोटो अब्दुल्ला पठान अपने सोशल मीडिया पर जारी करता रहा.

गौशाला के दान ने कैसे किया परेशान

अब्दुल्ला पठान औफिशल नाम के यूट्यूब चैनल पर लगभग 10 लाख 27 हजार सब्सक्राइबर बताए गए हैं. यह चैनल 13 सितंबर, 2017 को रजिस्टर किया गया. इस ने 6 फरवरी, 2018 को पहला वीडियो अपने चैनल पर जारी किया था.

वर्तमान जिलाधिकारी मानवेंद्र सिंह, जिन्होंने कुछ ही महीने पहले मुरादाबाद के जिलाधिकारी का कार्यभार संभाला था. उन्होंने जनपद में गौशालाओं के निर्माण के लिए जनता से सहयोग राशि देने का आह्वान किया था. इस में सहयोग के लिए अब्दुल्ला पठान ने एक लाख रुपए का चैक दिया.

अब्दुल्ला पठान का गौशाला के लिए यह सहयोग समाचार पत्रों और सोशल मीडिया में खूब हाईलाइट हुआ. क्योंकि अब तक यह एक सेलिब्रिटी बन चुका था.

बताते हैं कि जिलाधिकारी ने जांच करवाई कि एक लाख रुपए भेंट करने वाला व्यक्ति क्या करता है? तब पता चला कि यह यूट्यूबर  होने के साथसाथ देसी दवाओं से इलाज करने का धंधा करता है. यानी एक नीम हकीम खतरे जान भी है.

जिलाधिकारी के आदेश पर अब्दुल्ला पठान के क्लीनिक पर छापा मारने की तैयारी की गई और कई विभागों के अधिकारियों की भारीभरकम टीम अब्दुल्ला पठान के शफाखाने पर जांच करने पहुंच गई. काफी संख्या में उस वक्त मरीज भी मौजूद थे.

भारी पुलिस बल और अधिकारियों की टीम देख कर शफाखाने पर अफरातफरी मच गई. लोग दवा ले कर भागते नजर आए. भारी पुलिस बल के साथ पहुंचे अधिकारियों ने क्लीनिक पर कब्जा कर के बड़ी तादाद में रखी देसी जड़ीबूटियों की जांच शुरू कर दी. यह बात 16 अक्तूबर, 2023 की है.

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26 अक्तूबर को यूट्यूब पर अब्दुल्ला पठान ने फिर एक वीडियो जारी कर कहा कि उस का अस्पताल सील नहीं हुआ है. यह अफवाह उड़ाई गई है. किसी तरह की कोई बंदिश नहीं है. स्वास्थ्य विभाग का काम है. वह जांच करते रहते हैं. सैंपल लेते रहते हैं, लेकिन क्लीनिक पर कोई असर नहीं पड़ेगा.

उस ने अपने रोगियों से अपील करते हुए कहा कि सभी मरीज आएं, यहां से दवाई लेने में कोई परेशानी उन्हें नहीं होगी. दूसरे ही दिन यानी 27 अक्तूबर, 2023 को अब्दुल्ला पठान का फेसबुक की रील पर पुलिस की वरदी में एक वीडियो वायरल हुआ. यह बात पुलिस के संज्ञान में पहुंची. तब उस के खिलाफ थाना कुंदरकी में रिपोर्ट दर्ज की गई.

इस बारे में एसपी (देहात) संदीप कुमार ने बताया कि पुलिस की वरदी में वायरल होना संज्ञान में आया है. रिपोर्ट दर्ज हो गई है. जांच कर पुलिस उस के खिलाफ कानूनी काररवाई करेगी. उधर अब्दुल्ला पठान का कहना है कि सोशल मीडिया की रील में वह एक रोल मात्र जैसी है, इस का तात्पर्य पुलिस बन कर किसी को ठगना नहीं है. यह तो वैसा ही है जैसे फिल्मों में पुलिस की वरदी में सीन होते हैं.

बहरहाल, नीम हकीम अब्दुल्ला पठान के खिलाफ इस तरह की काररवाई होने से उस का धंधा लगभग चौपट सा हो गया है. एक चौथाई मरीज भी उस के पास आते नहीं देखे जा रहे हैं. स्वास्थ्य विभाग की टीम क्या काररवाई करती है, यह जांच रिपोर्ट आने के बाद ही पता चलेगा.

उधर क्षेत्र के लोगों का कहना है कि ऐसे झोलाछाप डाक्टरों के खिलाफ काररवाई होती है, जो बिना किसी डिग्री या डिप्लोमा के एलोपैथी दवाओं से इलाज करते पाए जाते हैं. उन के क्लीनिक सील होते हैं.

लेकिन ऐसा कोई झोलाछाप डाक्टर नहीं है, जिस ने अपना धंधा बंद कर के कोई दूसरा कारोबार शुरू किया हो. देसी दवाओं से इलाज करने वाले नीम हकीम डाक्टर चाहे वह यूनानी हो या आयुर्वेदिक उन के खिलाफ इस तरह की छापेमारी जनपद में होती पहली बार देखी है.

फरजी डाक्टरों और नीम हकीमों से बचें

डा. मोहम्मद शायगान, एमबीबीएस, एमडी

डा. मोहम्मद शायगान एमबीबीएस, एमडी जनपद मुरादाबाद के कस्बा बिलारी के निवासी हैं. 2 साल तक दिल्ली के एम्स में काम कर चुके हैं और बिलारी में इन का अपना क्लीनिक है. जिला मुख्यालय पर भी प्रैक्टिस करते हैं. इन्होंने सोशल मीडिया पर खुद को हकीम और वैद्य बता कर दवाइयां बनाने वालों, इलाज करने वालों और औनलाइन दवाइयां बेचने वालों पर अपनी बेबाक टिप्पणी की और कहा कि बिना डिग्री डिप्लोमा के क्लीनिक चलाने वालों पर काररवाई अवश्य होनी चाहिए.

dr.-shaygaan

उन्होंने बताया कि हमारी दुनिया में कोई भी कार्य करने के लिए उस के मानक एवं गुणवत्ता निर्धारित किए जाते हैं. कार्य योग्यता अनुसार किए जाते हैं. योग्यता, पढ़ाई और प्रशिक्षण से आती है. अब इसी तथ्य को हम डाक्टरी पेशे में रख कर देख सकते हैं.

समस्त संसार एवं भारतवर्ष में मानव जीवन कल्याण के लिए हमारे पूर्वजों ने कठिन परिश्रम एवं विद्या के अनुसरण से इंसान की विभिन्न बीमारियां ज्ञात कीं और उन के उपचार के लिए अलगअलग औषधियों का गहन अध्ययन किया. उस समय वे लोग वैद्य या हकीम कहलाए.

आज के समय में यह उपाधि प्राप्त करने के लिए पूरी एक नियमित पढ़ाई करनी होती है. इस परिश्रम को सफल करने के बाद ही कोई वैध/हकीम या डाक्टर कहलाता है.

अब कोई व्यक्ति बिना डिग्री या परिश्रम के कोई काम करेगा और वह भी इस प्रकार का, जो सीधे मानव स्वास्थ्य और जीवन को प्रभावित करे तो यह बहुत ही चिंता का विषय है. अब चाहे वह आयुर्वेद हो या एलोपैथ, बिना डिग्री के कार्य करना ऐसा है जैसे बिना ड्राइविंग लाइसेंस के गाड़ी चलाना. दोनों ही परिस्थितियों में जान का खतरा है. ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त काररवाई होनी चाहिए. क्योंकि हम किसी के जीवन को भी अज्ञानता के कारण खतरे में नहीं डाल सकते.

मो. आसिफ कमल ‘एडवोकेट’