
कंधे पर बैग टांग कर घर से निकलते हुए राजा ने मां से कहा कि वह 2 दिनों के लिए बाहर जा रहा है तो मां ने पूछा, ‘‘अरे कहां जा रहा है, यह तो बताए जा.’’ लेकिन जब बिना कुछ बताए ही राजा चला गया तो माधुरी ने झुंझला कर कहा, ‘‘अजीब लड़का है, यह भी नहीं बताया कि कहां जा रहा है?’’
यह 19 अक्तूबर, 2016 की बात है. मीरजापुर की कोतवाली कटरा के मोहल्ला पुरानी दशमी में अशोक कुमार का परिवार रहता था. उन के परिवार में पत्नी माधुरी के अलावा 4 बेटों में राजन उर्फ राजा सब से छोटा था. उस की अभी शादी नहीं हुई थी. अशोक कुमार के परिवार का गुजरबसर रेलवे स्टेशन पर चलने वाले खानपान के स्टाल से होता था.
अशोक कुमार के 2 बेटे उन के साथ ही काम करते थे, जबकि 2 बेटे गोपाल और राजा मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर स्थित होटल जननिहार में काम करते थे. चूंकि मीरजापुर और मुगलसराय स्टेशन के बीच बराबर गाडि़यां चलती रहती हैं, इसलिए उन्हें आनेजाने में कोई परेशानी नहीं होती थी.
राजा 2 दिनों के लिए कह कर घर से गया था, जब वह तीसरे दिन भी नहीं लौटा तो घर वालों ने सोचा कि किसी काम में लग गया होगा, इसलिए नहीं आ पाया. लेकिन जब चौथे दिन भी वह नहीं आया तो घर वालों को चिंता हुई. दरअसल इस बीच उस का एक भी फोन नहीं आया था. घर वालों ने फोन किया तो राजा का फोन बंद था. जब राजा से बात नहीं हो सकी तो उस की मां माधुरी ने उस के सब से खास दोस्त रवि को फोन किया. उस ने कहा, ‘‘राजा दिल्ली गया है. मैं भी इस समय बाहर हूं.’’
इतना कह कर उस ने फोन काट दिया था. राजा का फोन बंद था, इसलिए उस से बात नहीं हो सकती थी. उस के दोस्त रवि से जब भी राजा के बारे में पूछा जाता, वह खुद को शहर से बाहर होने की बात कह कर राजा के बारे में कभी कहता कि इलाहाबाद में है तो कभी कहता फतेहपुर में है. अंत में उस ने अपना मोबाइल बंद कर दिया.
जब राजा का कहीं पता नहीं चला तो परेशान अशोक कुमार मोहल्ले के कुछ लोगों को साथ ले कर कोतवाली कटरा पहुंचे और राजा के गायब होने की तहरीर दे कर गुमशुदगी दर्ज करा दी.
कोतवाली पुलिस ने गुमशुदगी तो दर्ज कर ली, लेकिन काररवाई कोई नहीं की. इस के बाद अशोक कुमार 26 अक्तूबर को समाजवादी पार्टी के युवा नेता और सभासद लवकुश प्रजापति के अलावा मोहल्ले के कुछ प्रतिष्ठित लोगों को साथ ले कर मीरजापुर के एसपी अरविंद सेन से मिले और उन्हें अपनी परेशानी बताई.
अशोक कुमार की बात सुन अरविंद सेन ने तत्काल कटरा कोतवाली पुलिस को काररवाई का आदेश दिया. कोतवाली पुलिस ने राजा के बारे में पता करने के लिए उस के दोस्त रवि से पूछताछ करनी चाही, लेकिन वह घर से गायब मिला. अब तक राजा को गायब हुए 10 दिन हो गए थे. रवि घर पर नहीं मिला तो पुलिस ने उस का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगवा दिया, क्योंकि उस ने अपना मोबाइल बंद कर दिया था.
पुलिस की लापरवाही से तंग आ कर बेटे के बारे में पता करने के लिए अशोक कुमार ने अदालत का दरवाजा खटखटाया. मामला न्यायालय तक पहुंचा तो पुलिस ने तेजी दिखानी शुरू की. 28 अक्तूबर, 2016 को राजा के दोस्त रवि और उस के पिता को एसपी औफिस के पास एक मिठाई की दुकान से पकड़ कर कोतवाली लाया गया. लेकिन उन से की गई पूछताछ में कोई जानकारी नहीं मिली तो पुलिस ने उन्हें छोड़ दिया. इसी तरह अगले दिन भी हुआ.
संयोग से उसी बीच एसपी अरविंद सेन ही नहीं, कोतवाली प्रभारी का भी तबादला हो गया. मीरजापुर जिले के नए एसपी कलानिधि नैथानी आए. दूसरी ओर कटरा कोतवाली प्रभारी की जिम्मेदारी इंसपेक्टर अजय श्रीवास्तव को सौंपी गई. अशोक कुमार 9 नवंबर को नए एसपी कलानिधि नैथानी से मिले. एसपी साहब ने तुरंत इस मामले में काररवाई करने का आदेश दिया. उन्हीं के आदेश पर कोतवाली प्रभारी ने अपराध संख्या 1232/2016 पर भादंवि की धारा 364 के तहत मुकदमा दर्ज कर के काररवाई शुरू कर दी.
इस घटना को चुनौती के रूप में लेते हुए एसपी कलानिधि नैथानी ने कोतवाली प्रभारी कटरा, प्रभारी क्राइम ब्रांच स्वाट टीम एवं सर्विलांस को ले कर एक टीम गठित कर दी. इस टीम ने मुखबिरों द्वारा जो सूचना एकत्र की, उसी के आधार पर 14 नवंबर, 2016 को राजा के दोस्त रवि कुमार को मीरजापुर के नटवां तिराहे से गिरफ्तार कर लिया.
उस से राजा के बारे में पूछा गया तो उस ने उस के गायब होने के पीछे की जो कहानी सुनाई, उसे सुन कर पुलिस वाले जहां हैरान रह गए, वहीं रवि के पकड़े जाने की खबर सुन कर कोतवाली आए राजा के घर वाले रो पड़े. क्योंकि उस ने राजा की हत्या कर दी थी.
उत्तर प्रदेश के जिला बुलंदशहर के थाना नरसैना के गांव रूखी के रहने वाले नरेश कुमार पीएसी में होने की वजह से मीरजापुर में परिवार के साथ रहते हैं. वह पीएसी की 39वीं वाहिनी में स्वीपर हैं. रवि कुमार उन्हीं का बेटा था. उस की दोस्ती राजा से हो गई थी, इसलिए कभी वह उस से मिलने मुगलसराय तो कभी उस के घर आ जाया करता था. दोनों में पक्की दोस्ती थी.
रवि का एक चचेरा भाई दीपेश उर्फ दीपू फिरोजाबाद के टुंडला की सरस्वती कालोनी में किराए का कमरा ले कर पत्नी के साथ रहता था. वह वहां दर्शनपाल उर्फ जेपी की गाड़ी चलाता था. जेपी की बहन राजमिस्त्री का काम करने वाले प्रवीण कुमार से प्यार करती थी. यह जेपी को पसंद नहीं था. उस ने बहन को समझाया . बहन नहीं मानी तो प्रेमी से उसे जुदा करने के लिए उस ने प्रवीण कुमार को ठिकाने लगाने का मन बना लिया.
यह काम वह अकेला नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने अपने ड्राइवर दीपेश उर्फ दीपू को साथ मिलाया और 13 अक्तूबर, 2016 को बहन के प्रेमी प्रवीण कुमार को अगवा कर लिया. दोनों उसे शहर से बाहर ले गए और गोली मार कर हत्या कर दी. दोनों के खिलाफ इस हत्या का मुकदमा थाना टुंडला में दर्ज हुआ. चूंकि इस मुकदमे में एससी/एसटी एक्ट भी लगा था, इसलिए पुलिस दोनों के पीछे हाथ धो कर पड़ गई. दर्शनपाल उर्फ जेपी तो गिरफ्तार हो गया, लेकिन दीपेश उर्फ दीपू फरार चल रहा था.
पुलिस उस की गिरफ्तारी के लिए जगहजगह छापे मार रही थी. पुलिस दीपेश को तेजी से खोज रही थी. इस स्थिति में पुलिस से बचने के लिए वह मीरजापुर आ गया था. टुंडला में घटी घटना के बारे में उस ने चचेरे भाई रवि को बता कर कहा, ‘‘रवि, मैं बुरी तरह फंस गया हूं. अगर तुम मेरी मदद करो तो मैं बच सकता हूं.’’
इस के बाद राजा और दीपेश ने योजना बनाई कि किसी ऐसे आदमी को खोजा जाए, जिसे टुंडला ले जा कर हत्या कर के उस की लाश को जला दिया जाए और लाश के पास दीपेश अपनी कोई पहचान छोड़ दे, जिस से पुलिस समझे कि लाश दीपेश की है और उस की हत्या हो चुकी है. इस के बाद पुलिस उस का पीछा करना बंद कर देगी.
जब ऐसे आदमी की तलाश की बात आई तो रवि को अपने दोस्त राजा उर्फ राजन की याद आई. क्योंकि राजा का हुलिया दीपेश से काफी मिलताजुलता था. फिर क्या था, दोनों ने राजा को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली, उसी योजना के तहत उस ने 18 अक्तूबर को राजा को फोन कर के कहा, ‘‘राजा, हम लोगों ने किराए पर एक गाड़ी की है, जिस से कल यानी 19 अक्तूबर को दिल्ली घूमने चलेंगे. मेरा चचेरा भाई दीपेश भी आया हुआ है, वह भी साथ चलेगा. मैं चाहता हूं कि तुम भी चलो.’’
राजा तैयार हो गया तो रवि ने 19 अक्तूबर, 2016 को पीएसी कालोनी के एक परिचित की गाड़ी बुक कराई और राजा को साथ ले कर दिल्ली के लिए चल पड़ा. योजना के अनुसार रास्ते में पैट्रोल खरीद लिया गया. इस के बाद उन्होंने बीयर खरीदी और राजा को जम कर पिलाई. वह नशे में हो गया तो रात 11 बजे के करीब फिरोजाबाद के थाना पचोखरा के गांव सराय नूरमहल और गढ़ी निर्भय के बीच सुनसान स्थान पर पेशाब करने के बहाने गाड़ी रुकवाई और राजा को उतार कर मारपीट कर पहले उसे बेहोश किया, उस के बाद पैट्रोल डाल कर जला दिया.
जब उन्हें विश्वास हो गया कि राजा मर गया है तो पहचान के लिए दीपेश ने अपना जूता राजा की लाश के पास रख दिया, जिस से बाद में उस लाश की पहचान उस की लाश के रूप में हो. इस के बाद दीपेश ने फिरोजाबाद पुलिस को मोबाइल से फोन कर के कहा, ‘‘मैं दीपेश उर्फ बाबू बोल रहा हूं. 3-4 बदमाश मेरा पीछा कर रहे हैं. मुझे बचा लीजिए अन्यथा ये मुझे मार डालेंगे.’’
जिस जगह पर रवि और दीपेश ने राजा को जलाया था, दीपेश का घर वहां से करीब 8 किलोमीटर दूर था. दीपेश ने इस जगह को यह सोच कर चुना था, जिस से पुलिस को लगे कि वह चोरीछिपे अपने गांव आया था. बदमाशों को पता चल गया तो उन्होंने उसे मार डाला. पुलिस को फोन कर के रवि और दीपेश फरार हो गए. जबकि पुलिस सर्विलांस के माध्यम से लोकेशन के आधार पर उन की तलाश में मीरजापुर से फिरोजाबाद तक उन के पीछे लगी थी. दीपेश तो फरार हो गया, लेकिन रवि मीरजापुर तो कभी सोनभद्र तो कभी सिगरौली जा कर छिपा रहा. आखिर ज्यादा दिनों तक वह पुलिस की नजरों से बच नहीं पाया और 14 नवंबर को उसे पकड़ लिया गया.
पूछताछ के बाद रवि की निशानदेही पर पुलिस ने पैट्रोल का डिब्बा, वह गाड़ी जेस्ट कार संख्या यूपी 63जेड 8586, जिस से वे राजा को ले गए थे, बरामद कर ली. इस के बाद उसे उस स्थान पर भी ले जाया गया, जहां उस ने दीपेश के साथ मिल कर राजा को जलाया था. राजा के पिता अशोक कुमार भी साथ थे, इसलिए उन्होंने राजा के अधजले कपड़ों को पहचान लिया था. पुलिस ने रवि को प्रैसवार्ता में पेश किया, जहां उस ने अपना अपराध स्वीकार कर के हत्या की सारी कहानी सुना दी.
घटना का खुलासा होने के बाद कोतवाली पुलिस ने राजा उर्फ राजन की गुमशुदगी हत्या में तब्दील कर आरोपी रवि को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. दीपेश उर्फ दीपू की तलाश में पुलिस ने ताबड़तोड़ छापे मारने शुरू कर दिए तो दबाव में आ कर उस ने फिरोजाबाद की अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया. अदालत ने उसे जेल भेज दिया था.
अजमत खान उत्तर प्रदेश पुलिस में सर्विलांस ऐक्सपर्ट सिपाही था. वह बुखार से पीडि़त हुआ. 11 अक्तूबर, 2015 को वह उत्तर प्रदेश के जनपद बुलंदशहर के जिला अस्पताल में इलाज के लिए पहुंचा. उस वक्त वहां तैनात इमर्जैंसी प्रभारी डाक्टर सचिन ने अजमत खान को 2 इंजैक्शन लगा दिए. अजमत खान खुश था कि अब उसे आराम मिल जाएगा, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. घर पहुंचने के 24 घंटे के अंदर ही अजमत खान के बदन में सूजन आ गई. हालत ज्यादा बिगड़ने पर उसे तुरंत एक प्राइवेट अस्पताल में भरती कराया गया. वहां पता चला कि बिना जांचपड़ताल किए और मर्ज को ठीक से समझे बिना ही दिए गए इंजैक्शनों ने उस की यह हालत की थी.
डाक्टर की यह करतूत जब सुर्खियों में आई, तो बजाय कोई कार्यवाही करने के अस्पताल प्रशासन ने उसे छुट्टी पर ही भेज दिया.
उधर अजमत खान का शरीर गलना शुरू हो गया. गंभीर हालत के चलते उसे दिल्ली के अपोलो अस्पताल में भरती कराया गया. उस के शरीर से खून रिसने लगा. वह कोमा में चला गया और उस के गुरदों ने भी काम करना बंद कर दिया. कई दिनों के बाद उस ने दम तोड़ दिया.
मामले ने तूल पकड़ा और आरोपी डाक्टर को मरीज की अनदेखी का जिम्मेदार माना गया. डाक्टर के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया गया. नौसिखिया डाक्टर भी हर बड़ेछोटे अस्पतालों में पाए जाते हैं. कहने को उन के पास डिगरियां होती हैं, लेकिन वे असल होती हैं या थोड़ीबहुत पढ़ाई कर के हासिल की गई होती हैं, इसे कोई नहीं जानता.
कई बार डिगरी लेने के तुरंत बाद ही डाक्टर अपना निजी अस्पताल खोल कर बैठ जाते हैं. वे अनुभव को तवज्जुह नहीं देते, जिस के नतीजे कभीकभी घातक साबित होते हैं.
गाजियाबाद के रहने वाले फूड इंस्पैक्टर शिवराज सिंह दिल की बीमारी से पीडि़त थे. 29 नवंबर, 2015 को उन्होंने एक लैब में ब्लड सैंपल दिया. सैंपल लेने वाला नौजवान नौसिखिया था. उस की लापरवाही से हाथ में इंजैक्शन से हवा चली गई. नतीजतन, शिवराज का हाथ सूज कर नीला पड़ गया.
उस लैब को चलाने वालों ने अपनी लापरवाही से पल्ला झाड़ने की कोशिश की, लेकिन पुलिस को खबर की गई, तो उन्होंने गलती मानी. पता चला कि लोगों का ब्लड सैंपल एक नौसिखिया ले रहा था. उस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी गई.
बरेली जिले की एक डाक्टर ने तो अनाड़ीपन की हदों को ही लांघ दिया. जचगी के दर्द के बाद नाजिम नामक नौजवान ने अपनी पत्नी मेराज को सुभाष नगर इलाके में डाक्टर राधा शर्मा के घर में बने अस्पताल में भरती कराया. डिलीवरी के दौरान उस से 10 हजार रुपए जमा कराने को कहा गया, जो उस ने जमा करा दिए.
मेराज ने नौर्मल डिलीवरी से एक बेटी को जन्म दिया. डाक्टर ने सिंकाई की बात कह कर नवजात के सीने पर इलैक्ट्रौनिक सिंकाई मशीन रख दी. इस से उस का सीना जल गया. कुछ देर बाद ही उस की मौत हो गई.
मामला बिगड़ने पर डाक्टर राधा शर्मा ने समझौते की कोशिश की, लेकिन इस बात की शिकायत पुलिस से की गई, तो पुलिस ने डाक्टर राधा शर्मा को गिरफ्तार कर लिया.
जांच में पता चला कि राधा शर्मा के पास एक ट्रेनिंग सैंटर से प्रसव सहायक का सर्टिफिकेट था. इस के बल पर उस ने खुद को डाक्टर घोषित कर के घर में ही अस्पताल खोल लिया था.
4 कमरों के अस्पताल में उस ने एक कमरे में ओपीडी बनाई हुई थी. फरवरी महीने में वह 2 नवजात बच्चों की मौत के मामले में जेल गई थी, लेकिन हाईकोर्ट से जमानत ले कर बाहर आ गई थी.
जेल से बाहर आ कर भी डाक्टर राधा शर्मा का अनाड़ीपन खत्म नहीं हुआ और न ही कोई सबक लिया गया. उस ने फिर से नया कारनामा कर दिया. इस के बाद पुलिस ने न केवल उस के अस्पताल को सील कर दिया, बल्कि उसे पेशेवर अपराधी घोषित कर दिया.
सहारनपुर के रहने वाले अनिल कुमार को बुखार था. वह एक डाक्टर के पास पहुंचा. उसे वहां इंजैक्शन लगाया गया. इस के बाद उस की तबीयत अचानक बिगड़ गई और देखते ही देखते उस की मौत हो गई. इस मामले में मुकदमा दर्ज करा दिया गया.
पता चला कि जिस ने अनिल को इंजैक्शन लगाया था, वह नौसिखिया कंपाउंडर टीटू था. बुलंदशहर जिले के किसान छोटू गिरी के 6 साला बेटे अजय की खेलते समय कुहनी की हड्डी टूट गई. वे उसे इलाज के लिए जिला अस्पताल ले गए. डाक्टर ने उस का एक्सरे कराया और प्लास्टर लगा दिया गया. अगले 5 दिनों में आराम मिलना तो दूर अजय की हालत और भी ज्यादा बिगड़ गई.
बाद में उन्होंने दिल्ली ले जा कर बेटे का इलाज कराया, तो पता चला कि डाक्टर ने हड्डी ही गलत तरीके से जोड़ दी थी, जिस की वजह से अजय बहुत परेशान था.
हड्डी जोड़ने वाले उस डाक्टर के खिलाफ पुलिस में शिकायत की गई.
गाजियाबाद जनपद में मोतियाबिंद के आपरेशन के चक्कर में 8 मरीजों की जिंदगी में अंधेरा छा गया. आंखों के एक अस्पताल के बाहर औफर वाला बोर्ड लगा था कि उन के यहां मोतियाबिंद का सफल आपरेशन केवल 2 हजार रुपए में किया जाता है.
डाक्टरों ने एक ही दिन में कई आपरेशन कर डाले. इसे लापरवाही कहें या नौसिखियापन, 8 मरीजों की एक आंख की रोशनी जाती रही. इन मरीजों में फूलवती, राजेंद्री देवी, जगवती, फरजाना, जुम्मन, अमाना खातून, शिक्षा देवी व नेपाल शामिल थे. मामले के खुलने पर अस्पताल के खिलाफ जांच बैठा दी गई.
इस तरह के मामले यह बताने के लिए काफी हैं कि मरीजों की जिंदगी से नौसिखिया डाक्टर किस हद तक खिलवाड़ कर रहे हैं.
लाला लाजपतराय मैडिकल कालेज के सुपरिंटैंडैंट डाक्टर सुभाष सिंह कहते हैं कि किसी डाक्टर को डिगरी मिल जाना ही काफी नहीं होता, उसे प्रैक्टिस भी करनी होती है. डाक्टरी का पेशा गंभीर है. मामूली सी लापरवाही भी किसी मरीज की जिंदगी ले सकती है.
इस मसले पर डाक्टर वीपी सिंह कहते हैं कि किसी डाक्टर पर शक हो, तो उस की जांच कराई जा सकती है. लापरवाही और अनाड़ीपन से बचने के लिए डाक्टर के बारे में उचित जांचपड़ताल भी मरीजों को कर लेनी चाहिए.
31 अक्तूबर, 2017 की शाम भोपाल में खासी चहलपहल थी. ट्रैफिक भी रोजाना से कहीं ज्यादा था. क्योंकि अगले दिन मध्य प्रदेश का स्थापना दिवस समारोह लाल परेड ग्राउंड में मनाया जाना था. सरकारी वाहन लाल परेड ग्राउंड की तरफ दौड़े जा रहे थे.
सुरक्षा व्यवस्था के चलते यातायात मार्गों में भी बदलाव किया गया था, जिस की वजह से एमपी नगर से ले कर नागपुर जाने वाले रास्ते होशंगाबाद रोड पर ट्रैफिक कुछ ज्यादा ही था. इसी रोड पर स्थित हबीबगंज रेलवे स्टेशन के बाहर तो बारबार जाम लगने जैसे हालात बन रहे थे.
एमपी नगर में कोचिंग सेंटर और हौस्टल्स बहुतायत से हैं, जहां तकरीबन 85 हजार छात्रछात्राएं कोचिंग कर रहे हैं. इन में लड़कियों की संख्या आधी से भी अधिक है. आसपास के जिलों के अलावा देश भर के विभिन्न राज्यों के छात्र यहां नजर आ जाते हैं.
शाम होते ही एमपी नगर इलाका छात्रों की आवाजाही से गुलजार हो उठता है. कालेज और कोचिंग आतेजाते छात्र दीनदुनिया की बातों के अलावा धीगड़मस्ती करते भी नजर आते हैं. अनामिका भी यहीं के एक कोचिंग सेंटर से पीएससी की कोचिंग कर रही थी. अनामिका ने 12वीं पास कर एक कालेज में बीएससी में दाखिला ले लिया था.
उस का मकसद एक अच्छी सरकारी नौकरी पाना था, इसलिए उस ने कालेज की पढ़ाई के साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी शुरू कर दी थी. सर्दियां शुरू होते ही अंधेरा जल्दी होने लगा था. इसलिए 7 बजे जब कोचिंग क्लास छूटी तो अनामिका ने जल्द हबीबगंज रेलवे स्टेशन पहुंचने के लिए रेलवे की पटरियों वाला रास्ता चुना.
रेलवे लाइनें पार कर शार्टकट रास्ते से जाती थी स्टेशन
अनामिका विदिशा से रोजाना ट्रेन द्वारा अपडाउन करती थी. उस के पिता भोपाल में ही रेलवे फोर्स में एएसआई हैं और उन्हें हबीबगंज में ही स्टाफ क्वार्टर मिला हुआ है पर वह वहां जरूरत पड़ने पर ही रुकती थी. उस की मां भी पुलिस में हवलदार हैं.
कोचिंग से छूट कर अनामिका हबीबगंज स्टेशन पहुंच कर विदिशा जाने वाली किसी भी ट्रेन में बैठ जाती थी. फिर घंटे सवा घंटे में ही वह घर पहुंच जाती थी, जहां उस की मां और दोनों बड़ी बहनें उस का इंतजार कर रही होती थीं.
रोजाना की तरह 31 अक्तूबर को भी वह शार्टकट के रास्ते से हबीबगंज स्टेशन की तरफ जा रही थी. एमपी नगर से ले कर हबीबगंज तक रेल पटरी वाला रास्ता आमतौर पर सुनसान रहता है. केवल पैदल चल कर पटरी पार करने वाले लोग ही वहां नजर आते हैं. बीते कुछ सालों से रेलवे पटरियों के इर्दगिर्द कुछ झुग्गीबस्तियां भी बस गई हैं, जिन मेें मजदूर वर्ग के लोग रहते हैं. यह शार्टकट अनामिका को सुविधाजनक लगता था, क्योंकि वह उधर से 10-12 मिनट में ही रेलवे स्टेशन पहुंच जाती थी.
अनामिका एक बहादुर लड़की थी. मम्मीपापा दोनों के पुलिस में होने के कारण तो वह और भी बेखौफ रहती थी. शाम के वक्त झुग्गीझोपडि़यों और झाडि़यों वाले रास्ते से किसी लड़की का यूं अकेले जाना हालांकि खतरे वाली बात थी, लेकिन अनामिका को गुंडेबदमाशों से डर नहीं लगता था.
उस वक्त उस के जेहन में यही बात चल रही थी कि विदिशा जाने के लिए कौनकौन सी ट्रेनें मिल सकती हैं. वैसे शाम 6 बजे के बाद विदिशा जाने के लिए 6 ट्रेनें हबीबगंज से मिल जाती हैं, इसलिए नियमित यात्रियों को आसानी हो जाती है. नियमित यात्रियों की भी हर मुमकिन कोशिश यही रहती है कि जल्दी प्लेटफार्म तक पहुंच जाएं. शायद देरी से चल रही कोई ट्रेन खड़ी मिल जाए और ऐसा अकसर होता भी था कि प्लेटफार्म तक पहुंचतेपहुंचते किसी ट्रेन के आने का एनाउंसमेंट सुनाई दे जाता था.
एमपी नगर से कोई एक किलोमीटर पैदल चलने के बाद ही रेलवे के केबिन और दूसरी इमारतें नजर आने लगती हैं तो आनेजाने वालों को उन्हें देख कर बड़ी राहत मिलती है कि लो अब तो पहुंचने ही वाले हैं.
बदमाश ने फिल्मी स्टाइल में रोका रास्ता
यही उस दिन अनामिका के साथ हुआ. पटरियों के बीच चलते स्टेशन की लाइटें दिखने लगीं तो उसे लगा कि वक्त पर प्लेटफार्म पहुंच ही जाएगी. जब दूर से आरपीएफ थाना दिखने लगा तो अनामिका के पांव और तेजी से उठने लगे.
लेकिन एकाएक ही वह अचकचा गई. उस ने देखा कि गुंडे से दिखने वाले एक आदमी ने फिल्मी स्टाइल में उस का रास्ता रोक लिया है. अनामिका यही सोच रही थी कि क्या करे, तभी उस बदमाश ने उस का हाथ पकड़ लिया. आसपास कोई नहीं था और थीं भी तो सिर्फ झाडि़यां, जो उस की कोई मदद नहीं कर सकती थीं. अनामिका के दिमाग में खतरे की घंटी बजी, लेकिन उस ने हिम्मत नहीं हारी और उस बदमाश से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी.
प्रकृति ने स्त्री जाति को ही यह खूबी दी है कि वह पुरुष के स्पर्श मात्र से उस की मंशा भांप जाती है. अनामिका ने खतरा भांपते हुए उस बदमाश से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश तेज कर दी. अनामिका ने उस पर लात चलाई, तभी झाडि़यों से दूसरा गुंडा बाहर निकल आया. तुरंत ही अनामिका को समझ आ गया कि यह इसी का ही साथी है.
मदद के लिए चिल्लाने का कोई फायदा नहीं हुआ
अभी तक तीनों रेल की पटरियों के नजदीक थे, जहां कभी भी कोई ट्रेन आ सकती थी. बाहर आए दूसरे गुंडे ने भी अनामिका को पकड़ लिया और दोनों उसे घसीट कर नजदीक बनी पुलिया की तरफ ले जाने लगे. अनामिका ने पूरी ताकत और हिम्मत लगा कर उन से छूटने की कोशिश की पर 2 हट्टेकट्टे मर्दों के चंगुल से छूट पाना अब नाममुकिन सा था. अनामिका का विरोध उन्हें बजाए डराने के उकसा रहा था, इसलिए वे घसीटते हुए उसे पुलिया के नीचे ले गए.
उन्होंने अनामिका को लगभग 100 फुट तक घसीटा लेकिन इस दौरान भी अनामिका हाथपैर चलाती रही और मदद के लिए चिल्लाई भी लेकिन न तो उस का विरोध काम आया और न ही उस की आवाज किसी ने सुनी.
आखिरकार अनामिका हार गई. दोनों गुंडों ने उस के साथ बलात्कार किया. इस बीच वह इन दोनों के सामने रोईगिड़गिड़ाई भी. इतना ही नहीं, उस ने अपनी हाथ घड़ी, मोबाइल फोन और कान के बुंदे तक उन के हवाले कर दिए पर इन गुंडों का दिल नहीं पसीजा. ज्यादती के पहले ही खींचातानी में अनामिका के कपड़े तक फट चुके थे.
उन दोनों की बातचीत से उसे इतना जरूर पता चल गया कि इन बदमाशों में से एक का नाम अमर और दूसरे का गोलू है. जब इन दोनों ने अपनी कुत्सित मंशाएं पूरी कर लीं तो अनामिका को लगा कि वे उसे छोड़ देंगे. इस बाबत उस ने उन दरिंदों से गुहार भी लगाई थी.
दीवाली का समय था. लखनऊ के भूतनाथ बाजार की हर दुकान में ग्राहकों की भीड़ लगी थी. सेल्समैन हर ग्राहक को बड़ी लालसाभरी नजरों से देख रहा था. उसे उम्मीद थी कि हर ग्राहक कुछ न कुछ खरीदारी जरूर करेगा, जिस से न केवल दुकानदारी होगी बल्कि उसे भी ज्यादा कमीशन मिलेगा. तभी एक ज्वैलरी शौप में 3 महिलाएं दाखिल होती हैं.
तीनों महिलाएं पहाड़ी वेशभूषा में हैं. सिर पर टोपी भी लगा रखी है. आमतौर पर धारणा होती है कि पहाड़ी लोग मेहनती और ईमानदार होते हैं. ऐसे में उन पर शंका की गुंजाइश कम होती है. तीनों महिलाएं सोने के जेवर देखने लगीं. कई तरह के जेवर देखे. मोलतोल किया. कुछ देर बाद जेवर पसंद न आने की बात कह कर वे दुकान से बाहर चली गईं.
जेवर दिखाने वाले सेल्समैन ने जब अपने जेवर रखने शुरू किए तो उसे पता चला कि 2 जोड़ी कंगन यानी 4 कंगन गायब हो चुके थे. सेल्समैन उन तीनों महिलाओं के झांसे में आ चुका था. मामला पुलिस तक गया. पुलिस की जांच में दुकान में लगे सीसीटीवी फुटेज में पाया गया कि कंगन उन महिलाओं ने ही चोरी किए थे. कुछ समय पहले इसी तरह एक ज्वैलरी शौप में एक लड़का और एक लड़की आए.
सोने की चेन खरीदने की बात की. सेल्समैन ने सोने की चेन दिखानी शुरू की. लड़की ने मुसलिमों वाला बुरका पहन रखा था. कई तरह के जेवर देखने के बाद उन लोगों ने 10 हजार रुपए की एक चेन खरीदी और चले गए. सेल्समैन को उस समय तक कुछ पता ही नहीं चल पाया था. बुरका पहने उस लड़की ने सोने के तमाम जेवर अपने पास रख लिए थे. पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज को देख कर उस को पकड़ा.
लड़की लखनऊ से 60 किलोमीटर दूर उन्नाव जिले की रहने वाली थी. उस का नाम ज्योति था. वह अपने प्रेमी के साथ मुंबई भाग गई थी. मुंबई जा कर जब पैसों की जरूरत महसूस हुई तो उस ने अपने प्रेमी के साथ इस तरह की घटनाएं करनी शुरू कीं. वह अपनी वेशभूषा बदलबदल कर अलगअलग शहरों में ऐसी घटनाओं को अंजाम देने लगी.
सोच का लाभ उठाने की कोशिश
अपराध की दुनिया में छोटीबड़ी तमाम तरह की ऐसी घटनाएं घटने लगी हैं जिन में महिलाएं शामिल होती हैं. ऐसे में जरूरी है कि महिला समझ कर बेखबर न रहें. महिलाएं भी वैसे ही अपराध की घटनाओं को अंजाम दे सकती हैं जैसे कोई दूसरा अपराधी देता है. दरअसल, महिलाओं को ले कर एक सोच बनी हुई है कि वे गलत काम नहीं कर सकतीं, क्रूर नहीं हो सकतीं और आपराधिक घटनाओं में हिस्सेदारी नहीं कर सकतीं.
ऐसे तमाम मामलों की जांच करने वाले पुलिस अधिकारी कहते हैं, ‘‘महिलाएं अगर काम करने की ठान लें तो वे अपराध की हर गतिविधि में शामिल हो सकती हैं. महिला अपराधियों से घटना की सचाई कुबूल करवा पाना ज्यादा कठिन होता है. वे अपनी मार्मिक बातों के साथ ही साथ आंसुओं से भी जांच की दिशा को भटकाने का काम करती हैं. महिलाओं के प्रति समाज में जो सोच बनी है उस का वे लाभ लेने की कोशिश करती हैं.’’
बात केवल साधारण चोरी और धोखा देने की नहीं है. हत्या, अपहरण और देहधंधा चलाने जैसे गंभीर अपराधों में भी महिलाओं की भूमिका दिखती रही है. खासकर अवैध संबंधों के खुलने पर जिस तरह से वे आक्रामक हो कर अपराध करती हैं, यह सोचने की बात है.
न रहें बेखबर
औरत अपराध नहीं कर सकती, यह धारणा बनानी गलत है. जिस तरह से समाज की सोच और नैतिक मूल्यों में गिरावट आई है, उस का प्रभाव महिलाओं पर भी पड़ रहा है. गुस्से और जरूरत के चलते वे भी अपराध की दलदल में धंसती जा रही हैं. ऐसे में इन से बेखबर रहने की जरूरत नहीं है. समाजशास्त्री डा. प्रभावती राय कहती हैं, ‘‘महिलाएं जब तरक्की की राह में आगे बढ़ रही हैं तो दुनियाभर की बुराइयां भी उन में आने लगी हैं. वे पहले जैसी संवेदनशील सोच से बाहर निकल रही हैं. वे वैसे ही अपराध कर रही हैं जैसे कोई पुरुष करता है. अपराध करने वाले इंसान की सोच एक जैसी ही होती है, उस में आदमी और औरत का फर्क खत्म हो चला है.’’
महिला अपराधों पर अध्ययन करने वाली वकील कीर्ति जायसवाल कहती हैं, ‘‘कई बार तो अपराध का ग्लैमर भी महिलाओं को लुभाता है. दूसरे, अब महिलाओं की जरूरतें भी बढ़ गई हैं. चोरी, लूट और धोखाधड़ी जैसे अपराधों में तो ज्यादातर महिलाएं पुरुषों के कहने पर ही आती हैं.
पुरुष अपराधी महिलाओं की छवि का लाभ उठाने के लिए उन को आगे कर देते हैं जिस से उन का काम करना सरल हो जाए. महिलाएं शुरुआत में थोड़े से लालच में इस तरह के काम करने लगती हैं. लेकिन एक बार अपराध की दलदल में फंसने के बाद वे इस से दूर नहीं जा पाती हैं और अपराधियों का मोहरा बन कर रह जाती हैं.’’
कीर्ति बताती है, ‘‘हम ने कई ऐसे मामले भी देखे हैं जहां महिलाएं शातिर अपराधियों की तिकड़म का शिकार हो जाती हैं. उन को जबरन अपराध में फंसा दिया जाता है. यह बात सच है कि अपराध में औरतों की भूमिका बढ़ती जा रही है. यह समाज के लिए सोचने की बात है.’’
बचना सरल नहीं
अपराध करने से पहले औरतों को यह लगता है कि वे अपराध कर के बच सकती हैं. लेकिन अब ऐसा नहीं है. जिस तरह से पुलिस की जांच से ले कर मीडिया की रिपोर्ट तक में महिला अपराधी होने पर मामला बढ़ जाता है. महिला अपराधी के शामिल होने से घटना पर मीडिया का रुख अलग ही हो जाता है.
उस घटना को स्पैशल दरजा हासिल हो जाता है. जिस से पुलिस पर दबाव पड़ता है और उसे घटना की तहकीकात जल्द से जल्द करनी होती है. यह बात ठीक है कि कुछ अपराधों में यदि महिला की उम्र कम है तो उस की पहचान को छिपाने की कोशिश मीडिया द्वारा की जाती है लेकिन उस के बाद भी महिला अपराधी के शामिल होने से घटना को ज्यादा कवरेज मिलने लगती है.
इसलिए अब यह नहीं सोचना चाहिए कि औरत होने का लाभ मिल सकेगा. महिलाओं को ऐसे अपराधों में शामिल होने से बचने की कोशिश करनी चाहिए. अपराध में शामिल होने से अपराधी के परिवार को तमाम तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. अगर अपराधी महिला हो तो ये मुश्किलें और बढ़ जाती हैं.
इस से न केवल उस को बल्कि उस के घर वालों को भी समाज के सामने शर्मिंदा होना पड़ता है. आज भी समाज में पुरुषप्रधान सोच है. यहां पर औरत के अपराध करने को अलग नजर से देखा जाता है. उस की अलग आलोचना होती है. औरत की आलोचना करते समय उस के घरपरिवार और बच्चों को भी शामिल कर लिया जाता है.
महिलाएं पुरुषों के मुकाबले ज्यादा संवेदनशील होती हैं इसलिए उन को अपराध के लिए सरलता से उकसाया जा सकता है. जरूरी है कि महिलाएं किसी भी तरह की आपराधिक घटना में पड़ने से पहले अपने घरपरिवार, बच्चों और खुद के बारे में जरूर सोचें. अपराध कर के बचना सरल नहीं है.
समाज में होती बेइज्जती
महिलाओं के अपराधी होने से समाज में घरपरिवार की इज्जत को बहुत नुकसान होता है. उन को सही निगाह से नहीं देखा जाता. थानाकचहरी और अस्पताल में जब जांच और पूछताछ के नाम पर महिलाओं को पेश किया जाता है तो उन को गिरी हुई नजर से देखा जाता है. महिलाओं के करीबी से करीबी दोस्त तक उन से पल्ला झाड़ने लगते हैं. बहुत मजबूरी में घर के लोग ही उन का साथ देते हैं.
ऐसी महिलाओं को कचहरी से जेल और अस्पताल लाने, ले जाने में प्रमुख भूमिका निभाने वाली महिला सिपाही दुर्गेश कुमारी कहती हैं, ‘‘जेल में पहले से बंद महिला अपराधी नई आने वाली महिला अपराधी के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करती है. जब उन को कचहरी में पेश किया जाता है तो वहां वकील से ले कर दूसरे लोग भी ऐसी महिलाओं को अच्छी नजरों से नहीं देखते हैं.’’पुलिस के एक अधिकारी कहते हैं ‘‘हत्या के एक मामले में जांच करते समय हम ने महिला आरोपी के परिवार वालों को भी बुलाया था. उन के सामने महिला आरोपी ने अपना अपराध कुबूल किया.
जिस समय महिला अपराधी ने अपराध कुबूल किया, उस के घर वाले बाहर टीवी पर देख रहे थे. वे रोने लगे. महिला आरोपी के परिवार की महिलाएं तो उसे बुराभला भी कहने लगी थीं. ऐसे में अगर बाद में महिला आरोप से मुक्त भी हो जाए तो भी उस की सचाई को कोई महसूस नहीं करता.’’
महिला के अपराध में शामिल होने का सब से बड़ा प्रभाव उस के बच्चों पर पड़ता है. वे घरपरिवार, गलीमहल्ले से ले कर स्कूल तक में अलगथलग पड़ जाते हैं. एक ऐसे ही बच्चे ने मां के जेल जाने के बाद स्कूल जाना बंद कर दिया.
उस के घर वालों ने उसे बहुत समझाया. इस के बाद भी वह स्कूल नहीं गया. उस ने कहा, ‘मुझे स्कूल के सभी बच्चे चिढ़ाते हैं. वे कहते हैं कि मेरी मां ने अपराध किया है.’ बहुत प्रयासों के बाद भी जब यह बच्चा स्कूल नहीं गया तो उस की एक साल की पढ़ाई खराब हो गई. अगले साल उस का ऐडमिशन दूसरे शहर के स्कूल में कराया गया. इस के बाद भी वह बच्चा हमेशा गुमसुम सा रहता और दूसरे बच्चों के बीच जाने से बचता रहता.
एक स्कूल की पिं्रसिपल कहती हैं, ‘‘हमें ऐसे बच्चों को संभालने में बड़ा प्रयास करने की जरूरत होती है. बच्चे मां के सब से करीब होते हैं. इस कारण से उन पर मां के कामकाज का सब से अधिक प्रभाव पड़ता है. देश की कानून व्यवस्था ऐसी है कि जिस में न्याय देर से होता है. ऐसे में अगर महिला अपराध से मुक्त भी हो जाए तो उस के खोए हुए मानसम्मान को वापस नहीं लौटाया जा सकता है. मीडिया और दूसरी जगहों पर उन खबरों को जगह कम ही दी जाती है जिन में महिला अपराध से मुक्त हो जाती हैं. ऐसे में समाज को सच का पता ही नहीं चल पाता है.’
महिलाओं को अपराध से खुद को अलग रखना चाहिए. किसी के बहकावे और षड्यंत्र में शामिल नहीं होना चाहिए. महिलाओं के अपराध में शामिल होने से केवल उन का भविष्य ही खराब नहीं होता, उन के घरपरिवार और बच्चोंका भविष्य भी प्रभावित होता है. ऐसे में जरूरी है कि महिलाएं खुद ही अपराधों से दूर रहें ताकि उन का जीवन सुखमय रहे, घरपरिवार का मानसम्मान बना रहे और बच्चों का भविष्य उज्ज्वल रहे, साथ ही समाज व वातावरण भी खुशनुमा बना रहे.
15 मई, 2017 की सुबह की बात है. समय 11-साढ़े 11 बजे सीकर जिले के शहर फतेहपुर के ज्वैलर ललित पोद्दार अपनी ज्वैलरी की दुकान पर थे. उन की पत्नी पार्वती और बेटा ध्रुव ही घर पर थे. बेटी वर्षा किसी काम से बाजार गई थी. उसी समय अच्छी कदकाठी का एक सुदर्शन युवक उन के घर पहुंचा. उस के हाथ में शादी के कुछ कार्ड थे. युवक ने ललित के घर के बाहर लगी डोरबेल बजाई तो पार्वती ने बाहर आ कर दरवाजा खोला. युवक ने हाथ जोड़ते हुए कहा, ‘‘नमस्ते आंटीजी, पोद्दार अंकल घर पर हैं?’’
पार्वती ने शालीनता से जवाब देते हुए कहा, ‘‘नमस्ते भैया, पोद्दारजी तो इस समय दुकान पर हैं. बताइए क्या काम है?’’
‘‘आंटीजी, हमारे घर में शादी है. मैं कार्ड देने आया था.’’ युवक ने उसी शालीनता से कहा.
युवक के हाथ में शादी के कार्ड देख कर पार्वती ने उसे अंदर बुला लिया. युवक ने सोफे पर बैठ कर एक कार्ड पार्वती की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘आंटीजी, यह कार्ड पोद्दार अंकल को दे दीजिएगा. आप लोगों को शादी में जरूर आना है. बच्चों को भी साथ लाइएगा.’’
पार्वती ने शादी का कार्ड देख कर कहा, ‘‘भैया आप को पहचाना नहीं.’’
‘‘आंटीजी, आप नहीं पहचानतीं, लेकिन पोद्दार अंकल मुझे अच्छी तरह से पहचानते हैं.’’ युवक ने कहा.
पार्वती ने घर आए, उस मेहमान से चायपानी के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘चायपानी के तकल्लुफ की कोई जरूरत नहीं है, आंटीजी. अभी एक कार्ड आप के भांजे अश्विनी को भी देना है. मैं उन का घर नहीं जानता. आप अपने बेटे को मेरे साथ भेज देतीं तो वह उन का घर बता देता. कार्ड दे कर मैं आप के बेटे को छोड़ जाऊंगा.’’
बाहर तेज धूप थी. इसलिए पार्वती बेटे को बाहर नहीं भेजना चाहती थीं. इसलिए उन्होंने टालने वाले अंदाज में कहा, ‘‘आप कार्ड हमें दे दीजिए. शाम को अश्विनी हमारे घर आएगा तो हम कार्ड दे देंगे.’’
पार्वती की बात सुन कर युवक ने मायूस होते हुए कहा, ‘‘कार्ड तो मैं आप को दे दूं, लेकिन पापा मुझे डांटेंगे. उन्होंने कहा है कि खुद ही जा कर अश्विनी को कार्ड देना.’’
युवक की बातें सुन कर पार्वती ने ड्राइंगरूम में ही वीडियो गेम खेल रहे अपने 13 साल के बेटे ध्रुव से कहा, ‘‘बेटा, अंकल के साथ जा कर इन्हें अश्विनी का घर बता दे.’’
ध्रुव मां का कहना टालना नहीं चाहता था, इसलिए वह अनमने मन से जाने को तैयार हो गया. वह युवक ध्रुव के साथ घर से निकलते हुए बोला, ‘‘थैंक्यू आंटीजी.’’
ध्रुव और उस युवक के जाने के बाद पार्वती घर के कामों में लग गईं. काम से जैसे ही फुरसत मिली उन्होंने घड़ी देखी. दोपहर के साढ़े 12 बज रहे थे. ध्रुव को कब का घर आ जाना चाहिए था. लेकिन वह अभी तक नहीं आया था. पार्वती ने सोचा कि ध्रुव वहां जा कर खेलने या चायपानी पीने में लग गया होगा. हो सकता है, अश्विनी ने उसे किसी काम से भेज दिया हो. यह सोच कर वह फिर काम में लग गईं.
थोड़ी देर बाद उन्हें जब फिर ध्रुव का ध्यान आया, तब दोपहर का सवा बज रहा था. ध्रुव को घर से गए हुए डेढ़ घंटे से ज्यादा हो गया था. पार्वती को चिंता होने लगी. 10-5 मिनट वह सेचती रहीं कि क्या करें. कुछ समझ में नहीं आया तो उन्होंने पति ललित पोद्दार को फोन कर के सारी बात बता दी. पत्नी की बात सुन कर ललित को भी चिंता हुई. उन्होंने पत्नी को तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘ध्रुव कोई छोटा बच्चा नहीं है कि कहीं खो जाए या इधरउधर भटक जाए. फिर भी मैं अश्विनी को फोन कर के पता करता हूं.’’
ललित ने अश्विनी को फोन कर के ध्रुव के बारे में पूछा तो अश्विनी ने जवाब दिया, ‘‘मामाजी, मेरे यहां न तो ध्रुव आया था और ना ही कोई आदमी शादी का कार्ड देने आया था.’’
अश्विनी का जवाब सुन कर ललित भी चिंता में पड़ गए. वह तुरंत घर पहुंचे और पार्वती से सारी बातें पूछीं. उन्होंने वह शादी का कार्ड भी देखा, जो वह युवक दे गया था. कार्ड पर लियाकत सिवासर का नाम लिखा था. ललित को वह शादी का कार्ड अपने किसी परिचित का नहीं लगा. उन्होंने कार्ड पर लिखे मोबाइल नंबरों पर फोन किया तो वे नंबर फरजी निकले.
ललित को किसी अनहोनी की आशंका होने लगी. उन के मन में बुरे ख्याल आने लगे. उन्हें आशंका इस बात की थी कि कहीं किसी ने पैसों के लालच में ध्रुव का अपहरण न कर लिया हो. इस की वजह यह थी कि वह फतेहपुर के नामीगिरामी ज्वैलर थे. राजस्थान के शेखावटी इलाके में उन का अच्छाखासा रसूख था. बेटे के घर न आने से पार्वती का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था.
ललित ने अपने कुछ परिचितों से बात की तो सभी ने यही सलाह दी कि इस मामले की सूचना पुलिस को दे देनी चाहिए. इस के बाद दोपहर करीब ढाई बजे ललित ने इस घटना की सूचना पुलिस को दे दी. सूचना मिलते ही पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी. पार्वती से पूछताछ की गई. शुरुआती जांच से यही नतीजा निकला कि ध्रुव का अपहरण किया गया है.
अपहर्त्ता प्रोफेशनल अपराधी हो सकते थे. क्योंकि रात तक फिरौती के लिए किसी अपहर्त्ता का फोन नहीं आया था. पुलिस को अनुमान हो गया था कि अपहर्त्ता ने ध्रुव के अपहरण का जो तरीका अपनाया था, उस से साफ लगता था कि उन्होंने रेकी कर के ललित पोद्दार के बारे में जानकारियां जुटाई थीं.
पुलिस ने फिरौती मांगे जाने की आशंका के मद्देनजर पोद्दार परिवार के सारे मोबाइल सर्विलांस पर लगवा दिए. लेकिन उस दिन रात तक ना तो किसी अपहर्त्ता का फोन आया और ना ही ध्रुव को साथ ले जाने वाले उस युवक के बारे में कोई जानकारी मिली. पुलिस ने ललित के घर के आसपास और लक्ष्मीनारायण मंदिर के करीब स्थित उस की दुकान के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली, लेकिन उन से पुलिस को कुछ हासिल नहीं हुआ.
पुलिस को अब तक केवल यही पता चला था कि ललित पोद्दार के घर जो युवक शादी का कार्ड देने आया था, उस की उम्र करीब 30 साल के आसपास थी. वह सफेद शर्ट पहने हुए था. अगले दिन सीकर के एसपी राठौड़ विनीत कुमार त्रिकमलाल ने ध्रुव का पता लगाने के लिए अपने अधीनस्थ अधिकारियों को दिशानिर्देश दिए. इस के बाद पुलिस ने उस शादी के कार्ड को आधार बना कर जांच आगे बढ़ाई.
परेशानी यह थी कि शादी के कार्ड पर किसी प्रिंटिंग प्रैस का नाम नहीं लिखा था, जबकि हर शादी के कार्ड पर प्रिंटिंग प्रैस का नाम जरूरी होता है. इस की वजह यह है कि राजस्थान सरकार ने बालविवाह की रोकथाम के लिए यह कानूनी रूप से जरूरी कर दिया है. पुलिस ने शादी के कार्ड छापने वाले प्रिंटिंग प्रैस मालिकों से बात की तो पता चला कि उस कार्ड में औफसेट पेंट का इस्तेमाल किया गया था.
उस पेंट का उपयोग फतेहपुर में नहीं होता था. सीकर में प्रिंटिंग प्रैस वाले उस का उपयोग करते थे. इस के बाद पुलिस ने सीकर, चुरू और झुंझुनूं के करीब डेढ़ सौ प्रैस वालों से पूछताछ की. इस जांच के दौरान एक नया तथ्य यह सामने आया कि ध्रुव के अपहरण से 4 दिन पहले से उसी के स्कूल में पढ़ने वाला छात्र अंकित भी लापता था. अंकित चुरू जिले के रतनगढ़ शहर का रहने वाला था. वह फतेहपुर के विवेकानंद पब्लिक स्कूल में पढ़ता था और हौस्टल में रहता था. गर्मी की छुट्टी में वह रतनगढ़ अपने घर गया था. वह 12 मई को दोपहर करीब सवा बारह बजे बाल कटवाने के लिए घर से निकला था, तब से लौट कर घर नहीं आया था.
तीसरे दिन आईजी हेमंत प्रियदर्शी एवं एसपी राठौड़ विनीत कुमार ने ध्रुव के घर वालों से मुलाकात की और उन्हें आश्वासन दिया कि ध्रुव का जल्द से जल्द पता लगा लिया जाएगा. उसी दिन यानी 17 मई को अपहर्त्ता ने ललित पोद्दार को फोन कर के बताया कि उन के बेटे ध्रुव का अपहरण कर लिया गया है. उन्होंने ध्रुव की उन से बात करा कर 70 लाख रुपए की फिरौती मांगी.
उन्होंने चेतावनी भी दी थी कि अगर पुलिस को बताया तो बच्चे को मार दिया जाएगा. ललित ने समझदारी से बातें करते हुए अपहर्त्ता से कहा कि आप तो जानते ही हैं कि नोटबंदी को अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है. भाइयों, परिवार वालों और रिश्तेदारों से पैसे जुटाने के लिए समय चाहिए. चाहे जितनी कोशिश कर लूं, 70 लाख रुपए इकट्ठे नहीं हो पाएंगे. बैंक से एक साथ ज्यादा पैसा निकाला तो पुलिस को शक हो जाएगा.
ललित ने अपहर्ता को अपनी मजबूरियां बता कर यह जता दिया कि वह 70 लाख रुपए नहीं दे सकते. बाद में अपहर्ता 45 लाख रुपए ले कर ध्रुव को सकुशल छोड़ने को राजी हो गए. अपहर्ताओं ने फिरौती की यह रकम कोलकाता में हावड़ा ब्रिज पर पहुंचाने को कहा. लेकिन बाद में वे फिरौती की रकम मुंबई में लेने को तैयार हो गए.
ललित का मोबाइल पहले से ही पुलिस सर्विलांस पर लगा रखा था. पुलिस को अपहर्ता और ललित के बीच हुई बातचीत का पता चल गया. इसी के साथ पुलिस को वह मोबाइल नंबर भी मिल गया, जिस से ललित को फोन किया गया था.
इसी बीच पुलिस ने शादी के उस कार्ड की जांच एक्सपर्ट से कराई तो पता चला कि वह एविडेक प्रिंटर से छपा था. शेखावटी के सीकर, चुरू व झुंझुनूं जिले में करीब 60 एविडेक प्रिंटर थे. इन प्रिंटर मालिकों से पूछताछ की गई तो पता चला कि वह कार्ड नवलगढ़ के एक प्रिंटर से छपवाया गया था. उस प्रिंटर के मालिक से पूछताछ में पता चला कि वह कार्ड फतेहपुर के किसी आदमी ने उस के प्रिंटर पर छपवाया था. उस आदमी से पूछताछ में पुलिस को अपहर्त्ता युवक के बारे में कुछ सुराग मिले.
इस के अलावा पुलिस ने 15 मई को ललित पोद्दार के मकान के आसपास घटना के समय हुई सभी मोबाइल कौल को ट्रेस किया. इस में मुंबई का एक नंबर मिला. यह नंबर साजिद बेग का था. काल डिटेल्स के आधार पर यह भी पता चल गया कि साजिद के तार फतेहपुर के रहने वाले अयाज से जुड़े थे.
जांच में यह बात भी सामने आ गई कि अपहर्ता मुंबई से जुड़ा है. इस पर पुलिस ने फतेहपुर से ले कर विभिन्न राज्यों के टोल नाकों पर जांच की और उन नाकों पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी. इस में सब से पहले शोभासर के टोल पर सफेद रंग की एसेंट कार पर जयपुर का नंबर मिला. अगले टोल नाके मौलासर पर इसी कार पर महाराष्ट्र की नंबर प्लेट लगी हुई पाई गई. आगे के टोल नाकों पर उसी कार पर अलगअलग नंबर प्लेट लगी हुई पाई गई. जांच में ये सारे नंबर फरजी पाए गए.
सीकर के एसपी ने मुंबई के पुलिस कमिश्नर से बात कर के ध्रुव के अपहरण की पूरी जानकारी दे कर अपराधियों को पकड़ने में सहायता करने का आग्रह किया. इसी के साथ एसपी के दिशानिर्देश पर एडिशनल एसपी तेजपाल सिंह ने 3 टीमें गठित कर के 3 राज्यों में भेजी. सब से पहले रामगढ़ शेखावाटी के थानाप्रभारी रमेशचंद्र को टीम के साथ मुंबई भेजा गया. यह टीम मुंबई पुलिस और क्राइम ब्रांच के साथ मिल कर आरोपियों की तलाश में जुट गई.
फतेहपुर कोतवाली के थानाप्रभारी महावीर सिंह ने लगातार जांच कर के ध्रुव के अपहरण में साजिद बेग और फतेहपुर के रहने वाले अयाज के साथ उस के संबंधों के बारे में पता लगाया.
एसपी ध्रुव के घर वालों को सांत्वना देने के साथ यह भी बताते रहे कि उन्हें अपहर्ता को किस तरह बातों में उलझा कर रखना है, ताकि पुलिस बच्चे तक पहुंच सके. पुलिस की एक टीम उत्तर प्रदेश और एक टीम पश्चिम बंगाल भी भेजी गई. पुलिस को संकेत मिले थे कि अपहर्ता धु्रुव को ले कर मुंबई, कोलकाता या कानपुर जा सकते हैं.
लगातार भागदौड़ के बाद सीकर पुलिस ने मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच की मदद से 21 मई की आधी रात के बाद मुंबई के बांद्रा इलाके से ध्रुव को सकुशल बरामद कर लिया. पुलिस ने उस के अपहरण के आरोप में साजिद बेग को मुंबई से गिरफ्तार कर लिया था. इस के अलावा उस की 2 गर्लफ्रैंड्स को भी गिरफ्तार किया गया. पुलिस ने वह एसेंट कार भी बरामद कर ली, जिस से ध्रुव का अपहरण किया गया था. सीकर पुलिस 22 मई की रात ध्रुव और आरोपियों को ले कर मुंबई से रवाना हुई और 23 मई को फतेहपुर आ गई.
पुलिस ने ध्रुव के अपहरण के मामले में मुंबई से साजिद बेग और उस की गर्लफ्रैंड्स यास्मीन जान और हालिमा मंडल को गिरफ्तार किया था. पूछताछ के बाद फतेहपुर के रहने वाले अयाज उल हसन उर्फ हयाज को गिरफ्तार किया गया. इस के बाद सभी आरोपियों से की गई पूछताछ में ध्रुव के अपहरण की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—
साजिद बेग पेशे से सिविल इंजीनियर था. वह बांद्रा, मुंबई में मछली बाजार में रहता था. उसे हिंदी, अंग्रेजी व मारवाड़ी का अच्छा ज्ञान था. वह मूलरूप से फतेहपुर का ही रहने वाला था. उस के दादा और घर के अन्य लोग मुंबई जा कर बस गए थे. फतेहपुर में साजिद का 2 मंजिला आलीशान मकान था. वह फतेहपुर आताजाता रहता था. उस की पत्नी भी पढ़ीलिखी है. उस का एक बच्चा भी है.
मुंबई स्थित उस के घर पर नौकरचाकर काम करते हैं. उस के पिता के भाई और अन्य रिश्तेदार भी मुंबई में ही रहते हैं. इन के लोखंडवाला, बोरीवली सहित कई पौश इलाकों में आलीशान बंगले हैं. वह मुंबई में बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन का काम करता था. मौजमस्ती के गलत शौक और व्यापार में घाटा होने की वजह से साजिद कई महीनों से आर्थिक तंगी से गुजर रहा था. उस पर करीब 30 लाख रुपए का कर्ज हो गया था. इसलिए वह जल्द से जल्द किसी भी तरीके से पैसे कमा कर अपना कर्ज उतारना चाहता था.
करीब 2 महीने पहले साजिद ने फतेहपुर के रहने वाले अपने बचपन के दोस्त अयाज उल हसन उर्फ हयाज को मुंबई बुलाया. वह 5 दिनों तक मुंबई में रहा. इस बीच साजिद ने उस से पैसे कमाने के तौर तरीकों के बारे में बात की. इस पर अयाज ने कहा कि फतेहपुर में किसी का अपहरण कर के उस के बदले में अच्छीखासी फिरौती वसूली जा सकती है. हालांकि उस समय यह तय नहीं हुआ था कि अपहरण किस का किया जाएगा.
साजिद ने अयाज को यह कह कर फतेहपुर वापस भेज दिया कि वह किसी ऐसी पार्टी का चयन करे, जिस से मोटी रकम वसूली जा सके. अयाज फतेहपुर आ कर योजना बनाने लगा. अयाज ने पिछले साल फतेहपुर के ज्वैलर ललित पोद्दार के मकान पर पेंट का काम किया था. इसलिए उसे ललित के घरपरिवार की सारी जानकारी थी. उस ने साजिद को ललित के बारे में बताया.
इस के बाद दोनों ने ललित के बेटे ध्रुव के अपहण की योजना बना ली. उसी योजना के तहत शादी का फरजी कार्ड नवलगढ़ से छपवाया गया. इस के बाद कार्ड से कैमिकल द्वारा प्रिंटिंग प्रैस का नाम हटा दिया गया. योजनानुसार साजिद 10 मई को मुंबई से कार ले कर फतेहपुर आ गया और दरगाह एरिया में रहने वाले अपने दोस्त अयाज से मिला. इस के बाद ध्रुव के अपहरण की योजना को अंतिम रूप दिया गया.
15 मई को शादी का कार्ड देने के बहाने साजिद ललित के घर से उस के बेटे धु्रव को अश्विनी के घर ले जाने की बात कह कर साथ ले गया और उसे घर के बाहर खड़ी एसेंट कार में बैठा लिया. उस ने धु्रव से कहा कि गाड़ी में पैट्रोल नहीं है, इसलिए पहले पैट्रोल भरवा लें, फिर अश्विनी के घर चलेंगे.
फतेहपुर में पैट्रोल पंप से पहले ही साजिद ने गाड़ी की रफ्तार बढ़ा दी तो ध्रुव को शक हुआ. वह शीशा खोल कर ‘बचाओबचाओ’ चिल्लाने लगा. इस पर साजिद ने उसे कोई नशीली चीज सुंघा दी, जिस से वह बेहोश हो गया.
ध्रुव को बेहोशी की हालत में पीछे की सीट पर सुला कर साजिद अपनी कार से मुंबई ले गया. बीचबीच में टोलनाकों से पहले उस ने 5 बार कार की नंबर प्लेट बदलीं.
साजिद ने अपहृत ध्रुव को मुंबई में अपनी 2 गर्लफ्रैंड्स के पास रखा. इन में एक गर्लफ्रैंड यास्मीन जान मुंबई के चैंबूर में लोखंड मार्ग पर रहती थी. तलाकशुदा यास्मीन को साजिद ने बता रखा था कि वह कुंवारा है. उस ने उसे शादी करने का झांसा भी दे रखा था. साजिद ने यास्मीन को धु्रव के अपहरण के बारे में बता दिया था. यास्मीन फिरौती में मिलने वाली मोटी रकम से साजिद के साथ ऐशोआराम की जिंदगी गुजारने का सपना देख रही थी. इसलिए उस ने साजिद की मदद की और धु्रव को अपने पास रखा.
साजिद की दूसरी गर्लफ्रैंड हालिमा मंडल मूलरूप से पश्चिम बंगाल की रहने वाली थी. वह पिछले कई सालों से बांद्रा इलाके में बाजा रोड पर रहती थी. उस के 2 बच्चे हैं. साजिद मुंबई पहुंच कर ध्रुव को सीधे हलिमा के घर ले गया था. उस ने उसे ध्रुव के अपहरण के बारे में बता दिया था. हालिमा ने भी फिरौती में मोटी रकम मिलने के लालच में साजिद का साथ दिया और ध्रुव को अपने पास रखा. वह ध्रुव को नींद की गोलियां देती रही, ताकि वह शोर न मचा सके.
फेसबुक पर एक पोस्ट में खुद को मुंबई का किंग बताने वाला साजिद इतना शातिर था कि ललित पोद्दार से या अयाज से बात करने के बाद मोबाइल स्विच औफ कर लेता था, ताकि पुलिस उसे ट्रेस न कर सके. ध्रुव को जहां रखा गया था, वहां से वह करीब सौ किलोमीटर दूर जा कर नए सिम से फोन करता था, ताकि अगर किसी तरह पुलिस मोबाइल नंबर ट्रेस भी कर ले तो उसी लोकेशन पर बच्चे को खोजती रहे.
साजिद के बताए अनुसार, टीवी पर आने वाले आपराधिक धारावाहिकों को देख कर उस ने ध्रुव के अपहरण की साजिश रची थी. सीरियलों को देख कर ही उस ने हर कदम पर सावधानी बरती, लेकिन पुलिस उस तक पहुंच ही गई. जबकि उस ने पुलिस से बचने के तमाम उपाय किए थे.
23 मई को पुलिस ध्रुव को ले कर फतेहपुर पहुंची तो पूरा शहर खुशी से नाच उठा. पुष्पवर्षा और आतिशबाजी की गई. 9 दिनों बाद बेटे को सकुशल देख कर पार्वती की आंखों से आंसू बह निकले. पिता ललित पोद्दार ने बेटे को गले से लगा कर माथा चूम लिया. सालासर मंदिर में लोगों ने फतेहपुर कोतवाली के थानाप्रभारी महावीर सिंह का सम्मान किया.
पुलिस ने ध्रुव के अपहरण के मामले में साजिद के अलावा यास्मीन जान, हालिमा मंडल और फतेहपुर निवासी अयाज को गिरफ्तार किया था. फतेहपुर के एक अन्य युवक की भी इस मामले में भूमिका संदिग्ध पाई गई. इस के अलावा उत्तर प्रदेश के एक गैंगस्टर नसरत उर्फ नागा उर्फ चाचा का नाम भी ध्रुव के अपहरण में सहयोगी के रूप में सामने आया है.
नसरत उर्फ नागा उत्तर प्रदेश के सिमौनी का रहने वाला था. वह फिलहाल मुंबई के गौरी खानपुर में रहता है. साजिद काफी समय से उस के संपर्क में था. उस के साथ नागा भी आया था. उस ने नागा को सीकर में ही छोड़ दिया था.
ध्रुव के अपहरण के बाद नागा साजिद के साथ हो गया था. दोनों ध्रुव को ले कर मुंबई गए थे. नागा पर उत्तर प्रदेश और मुंबई में हत्या के 3 मामले और लूट, चाकूबाजी, हथियार तस्करी, गुंडा एक्ट आदि के दर्जनों मामले दर्ज हैं. वह हिस्ट्रीशीटर है. कथा लिखे जाने तक सीकर पुलिस इस मामले में नागा की तलाश कर रही थी.
– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
सोमवार 6 दिसंबर, 2021 का दिन था. कड़कड़ाती ठंड छत्तीसगढ़ की हवाओं को सर्द बनाए हुए थी. शाम के लगभग 7 बज रहे थे. इंजीनियर शिवांग चंद्राकर अपने फार्महाउस से धीमी गति से बाइक चलाते हुए अपने घर मरौदा की ओर जा रहा था. तभी उस ने देखा कि कोई उसे हाथ दे रहा है, सामने अशोक खड़ा था. उसे देख कर शिवांग ने बाइक रोक दी.
शिवांग अशोक देशमुख को अच्छी तरह जानता था, जिसे वह अच्छी तरह जानता था. अशोक ने शिवांग चंद्राकर ने कहा, ‘‘भाई, मेरी बाइक खराब हो गई है. क्या तुम मुझे लिफ्ट दे सकते हो?’’
शिवांग चंद्राकर जानता था कि अशोक गांव का नामचीन व्यक्ति है, उस की उस से कभी नहीं बनी. मगर इंसानियत भी कोई चीज होती है, यह सोच कर उस ने मुसकरा कर कहा, ‘‘हांहां क्यों नहीं भाई, आओ बैठो बताओ कहां चलना है.’’
यह सुनना था कि अशोक देशमुख उछल कर शिवांग की बाइक पर बैठ गया.
अशोक ने शिवांग के कंधे पर हाथ रखा तो उसे महसूस हुआ मानो उस के हाथ में कोई कठोर चीज है. शिवांग को जाने क्यों महसूस हुआ कि कुछ गड़बड़ है, मगर अब वह क्या कर सकता था. चुपचाप बाइक चला रहा था, देखा सामने 2 लोग और खड़े मिले. वह भी उसे रुकने के लिए इशारा कर रहे थे.
उन्हें देख कर के शिवांग ने बाइक की गति तेज कर दी. मगर अशोक ने कंधे पर थपथपा कर कहा, ‘‘नहींनहीं, रुको.’’
मजबूर शिवांग ने बाइक रोकी. वही दोनों लोग उस के पास आ गए जो हाथ के इशारे से बाइक रुकवा रहे थे. शिवांग उन्हें थोड़ाथोड़ा जानता था.
तभी अशोक देशमुख ने शिवांग को कस कर पीछे से जकड़ लिया. शिवांग को महसूस हुआ मानो वह किसी बड़े खतरे में फंस चुका है. थोड़ी ही देर में उस के मस्तिष्क में अशोक देशमुख के साथ सारे विवाद घूमने लगे. उस ने अशोक के चंगुल से छूटने की कोशिश की. लेकिन उस ने पूरी ताकत से उसे जकड़ रखा था इसलिए छूट नहीं सका.
इसी बीच सामने खड़े दोनों व्यक्तियों ने आगे बढ़ कर उसे पकड़ा. उन में से एक ने उस के गले में नायलोन की रस्सी डाल कर कस दी. थोड़ी ही देर में दम घुटने से शिवांग की मौत हो गई.
इस के बाद अशोक देशमुख ने अपने साथियों के साथ मिल कर शिवांग के हाथ और पैर पकड़ कर लाश झाडि़यों के पास डाल दी. फिर अशोक अपने साथियों से बोला, ‘‘तुम लोग यहां रुको, मैं अभी कार ले कर आता हूं.’’
उस के दोनों साथियों में एक बसंत साहू था और दूसरा विक्की उर्फ मोनू देशमुख.
इस पर बसंत साहू ने कहा, ‘‘भैया जल्दी आना, यहां लोग आतेजाते रहते हैं किसी को भी शक हो सकता है.’’
‘‘हां, मैं जल्द ही कार ले कर आता हूं.’’
अशोक तेजी से चला गया. थोड़ी ही देर में अपनी कार ले कर के वहां आ गया और तीनों ने मिल कर शिवांग चंद्राकर के शव को कार की डिक्की में डाल दिया.
अशोक देशमुख कार चलाते हुए झरझरा में हरीश पटेल की खाली पड़ी जमीन पर ले गया. वहां हार्वेस्टर चलने से गड््ढे बने हुए थे. एक गड्ढे में शिवांग की लाश जलाने की व्यवस्था उन्होंने पहले ही कर रखी थी.
वहीं दोनों अन्य आरोपी अपनी मोटर बाइक से आ गए. फिर तीनों ने मिल कर मिट्टी का तेल डाल कर शिवांग चंद्राकर के शव में आग लगा दी.
दिसंबर का महीना था. लोग भीषण ठंड के कारण अपनेअपने घरों में दुबके हुए थे. कहीं ऐसे में लोगों को आग जलती हुई दिखती है तो दूसरे लोग यही समझते हैं कि ठंड दूर करने के लिए किसी ने अलाव जला रखा है.
यही वजह थी कि जब ये लोग शिवांग के शव को जला रहे थे तो लोगों ने कोई शक नहीं किया. जब आग बुझी तो शिवांग का शव आधा जल चुका था. तब वह उसे मिट्टी से ढक कर अपनेअपने घर चले गए.
छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले का चंदखुरी गांव अपनी खेतीकिसानी के कारण जिले भर में प्रसिद्ध है. लगभग 3 हजार की जनसंख्या का यह हरित अनुपम गांव शहर से लगा हुआ है. यहां के धनाढ्य लोगों को दाऊजी कह कर सम्मान के साथ संबोधित किया जाता है. अधिकांश लोगों का जीवनयापन खेतीकिसानी और शहर में नौकरी से गुजरबसर करना होता है.
31 वर्षीय अशोक देशमुख गांव की राजनीति करते हुए खेतीकिसानी करता था. हाल ही में हुए ग्राम पंचायत चुनाव में वह सरपंच का चुनाव चंद मतों से हार गया था. जिस का दोषी वह शिवांग चंद्राकर और उस के परिवार को ही मानता था. यही कारण था कि अशोक शिवांग से बदला लेने का मौका ढूंढ रहा था.
उस ने गांव के ही रहने वाले अपने खास दोस्त विक्की उर्फ मोनू देशमुख (20 वर्ष) और बसंत साहू (उम्र 24 वर्ष) जोकि गांव चंद्रपुरी में ही रहते थे, से एक दिन मौका देख कर बात की.
‘‘यार मोनू, आज मैं सरपंच होता, मेरी गांव में अच्छीखासी चलती. दो पैसे कमाता, तुम लोगों को भी हमेशा खिलातापिलाता, मगर एक आदमी की वजह से पूरा प्लान धरा का धरा रह गया.’’
इस पर मोनू और बसंत साहू ने उस की ओर देखा तो मोनू ने कहा, ‘‘भैया, मैं जानता हूं लेकिन अब क्या किया जा सकता है. चुनाव में इस ने तो आप का बैंड बजा दिया.’’
यह सुन कर के अशोक ने कहा, ‘‘अगर तुम लोग मेरे सच्चे दोस्त हो तो मेरा साथ दो, मैं इस को ऐसा सबक सिखाऊंगा कि जिंदगी में कभी हमारा कोई विरोध नहीं करेगा.’’
‘‘क्याक्या करना होगा, बताओ.’’
इस पर विक्की उर्फ मोनू ने गुस्से से भर कर कहा, ‘‘शिवांग के बड़े भाई धर्मेश ने मुझे थप्पड़ मारा था, इसलिए मैं भी इन से बदला लेना चाहता हूं. मैं तुम्हारे साथ हूं. शिवांग इंजीनियर क्या बन गया है, इस के घर के लोग अपने आप को बड़ा आदमी समझने लगे हैं.’’
यह सुन कर अशोक खुश होते हुए बोला, ‘‘बस, मेरे दोस्त, तुम ने मेरा दिल जीत लिया. मैं एक योजना बनाता हूं और इस को सबक सिखाते हैं.’’
इस पर बसंत साहू ने कहा, ‘‘हां, क्या है आखिर तुम्हारी योजना, भाई. बताओ?’’
‘‘यह बात है तो सुनो. मेरे दिमाग में बहुत दिनों से एक कीड़ा कुलबुला रहा है. सरपंच चुनाव में तो हार गया हूं. मगर इन से हम 25-50 लाख रुपए वसूल सकते हैं. इस से तुम दोनों की भी जिंदगी बन जाएगी. फिर जिंदगी भर ऐश करोगे.’’
यह सुन कर के दोनों खुशी से उछल पड़े और एक साथ बोले, ‘‘ऐसा है तो हम तुम्हारे साथ हैं जब जैसा कहोगे वैसा करेंगे.’’
7 दिसंबर, 2021 सुबह लगभग 11 बज रहे थे कि थाना पुलगांव के टीआई नरेश पटेल के पास 2 लोग आए.
उन में से एक ने थानाप्रभारी से कहा, ‘‘साहब, मैं दीपराज चंद्राकर हूं और गांव चंदखुरी से आया हूं. मेरा भांजा शिवांग चंद्राकर कल शाम से लापता है उस का कोई पता नहीं चल रहा है.’’ यह कहते दीपराज रोआंसा हो गया. उस की आंखें भर आई थीं.
थानाप्रभारी नरेश पटेल मामले की गंभीरता को समझ कर उन्हें भरोसा दिलाते हुए बोले, ‘‘तुम लोग चिंता मत करो, हम पूरी मदद करेंगे. तुम अभी गुमशुदगी दर्ज करवाओ.’’
इस के बाद दीपराज ने शिवांग चंद्राकर की गुमशुदगी दर्ज करा दी. गुमशुदगी दर्ज होने के पुलिस ने अपने स्तर से इंजीनियर शिवांग को ढूंढना शुरू कर दिया.
एक हफ्ता बीत गया था. शिवांग चंद्राकर का कहीं कोई पता नहीं चल रहा था. रिश्तेदारों के यहां मातापिता ने पता किया, मगर शिवांग की कोई जानकारी नहीं मिल रही थी.
धीरेधीरे लोगों में आक्रोश पैदा हो रहा था कि पुलिस शिवांग को आखिर क्यों नहीं ढूंढ पा रही है. मामला उच्च अधिकारियों तक पहुंचा. जब स्थिति बिगड़ने लगी तो पुलिस के आईजी ओ.पी. पाल के निर्देश पर एसएसपी ने केस को गंभीरता से लिया. इस के अलावा उस के पैंफ्लेट छपवा कर बताने वाले को 10 हजार रुपए का ईनाम देने की घोषणा की.
टीम में थानाप्रभारी नरेश पटेल, गौरव तिवारी, एसआई डुलेश्वर सिंह चंद्रवंशी, एएसआई राधेलाल वर्मा, नरेंद्र सिंह राजपूत, समीत मिश्रा, अजय सिंह, हैडकांस्टेबल संतोष मिश्रा, कांस्टेबल जावेद खान, प्रदीप सिंह, जगजीत सिंह, धीरेंद्र यादव, चित्रसेन, केशव साहू, लव पांडे, अलाउद्दीन, हीरामन, तिलेश्वर राठौर को शामिल किया गया.
इस सब के बावजूद पुलिस को शिवांग चंद्राकर की गुमशुदगी के बारे में कहीं कोई सुराग नहीं मिल रहा था और पुलिस हाथ पर हाथ धरे मानो बैठी हुई थी कि 5 जनवरी, 2022 को शिवांग चंद्राकर के बड़े भाई धर्मेश चंद्राकर ने थानाप्रभारी को सनसनीखेज जानकारी दी.
धर्मेश ने बताया, ‘‘सर, झरझरी कैनाल रोड के पास एक खेत में एक कंकाल और हड्डियां मिली हैं, टाइमैक्स घड़ी मिली है, जले हुए कपड़े हैं, देख कर लगता है कि यह शिवांग के ही होंगे.’’
थानाप्रभारी नरेश पटेल ने यह जानकारी उच्चाधिकारियों को दी. इस के बाद पुलिस अधिकारी फोरैंसिक टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां खुदाई कर के अस्थियां और एक मानव मुंड बरामद किया. फोरैंसिक विशेषज्ञ मोहन पटेल ने सूक्ष्मता से जांच शुरू की.
कंकाल और जले हुए कपड़ों व बालों के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता था कि यह आखिर किस का शव है.
शिवांग चंद्राकर का पूरा परिवार चिंतित था और लोगों द्वारा यह कयास लगाया जा रहा था कि यह शिवांग का कंकाल और अवशेष हो सकता है.
नरेश पटेल ने उच्चाधिकारियों को जानकारियां दे कर अवशेष की जांच डीएनए हेतु रायपुर भेजने की काररवाई शुरू कर दी.
इस के साथ ही जिले भर में यह चर्चा होने लगी कि 6 दिसंबर को लापता हुए शिवांग चंद्राकर की जब कोई जानकारी नहीं मिल रही है तो जरूर 5 जनवरी को मिले हुए कंकाल से उस का संबंध हो सकता है.
इस संदर्भ में स्थानीय समाचार पत्रों में भी इसी तरह की खबरें प्रकाशित हो रही थीं. और जब डीएनए जांच रिपोर्ट सामने आई तो यह स्पष्ट हो गया कि वह अस्थियां शिवांग की ही हैं.
पुलिस के सामने अब इस केस को खोलने की चुनौती थी. इस के लिए 5 जांच टीमें बनाई गईं और आईजी ओ.पी. पाल और एसएसपी बद्रीनारायण मीणा ने पुलिस टीमों के साथ मीटिंग करने के बाद दिशानिर्देश दिए.
पुलिस ने इस केस में करीब 500 लोगों से पूछताछ की. पुलिस ने जोरशोर से विवेचना प्रारंभ कर दी.
पुलिस ने इसी दरमियान छत्तीसगढ़ के चंद्रखुरी गांव के रहने वाले अशोक देशमुख से भी पूछताछ की. पुलिस को पता चला था कि सरपंच के चुनाव में अशोक की शिवांग से खटपट हुई थी. लेकिन अशोक खुद को बेकुसूर बताता रहा.
पुलिस ने उस के फोन की काल डिटेल्स की जांच की तो पाया कि उस दिन वह अपने घर में ही था. ऐसे में वह पुलिस की जांच से बाहर हो गया था.
इसी दरमियान एक दिन दूसरे संदिग्ध आरोपी विक्की उर्फ मोनू देशमुख से जब पूछताछ चल रही थी तो वह टूट गया. उस ने पुलिस को बताया कि शिवांग चंद्राकर की हत्या उस ने अशोक देशमुख और बसंत साहू के साथ मिल कर की थी.
पुलिस को उस ने अपने बयान में बताया कि शिवांग चंद्राकर के भाई धर्मेश ने एक विवाद में उसे थप्पड़ जड़ दिया था. जिस का बदला लेने के लिए वह अशोक देशमुख के साथ इस हत्याकांड में शामिल हो गया था.
उस ने अपने इकबालिया बयान में यह भी बता दिया कि अशोक देशमुख पिछला पंचायत पंच चुनाव हारने के कारण शिवांग चंद्राकर से बदला लेना चाहता था और उस से 30 लाख रुपए फिरौती की योजना बनाई थी.
मगर पुलिस की सक्रियता और गांव का सख्त माहौल देखते हुए उन लोगों ने फिरौती की योजना को दरकिनार कर के मौन रहना ही उचित समझा था.
यह जानकारी मिलने के बाद तत्परता दिखाते हुए टीआई नरेश पटेल की टीम ने उसी रात अशोक देशमुख और विक्की चंद्राकर को हिरासत में ले लिया और जब इन दोनों से पूछताछ की तो दोनों ही पुलिस जांच के सामने टूट गए और सब कुछ सचसच बयां कर दिया.
अशोक देशमुख ने बताया कि पंचायत चुनाव में वह सरपंच का चुनाव लड़ रहा था. मगर शिवांग देशमुख के पिता राजेंद्र देशमुख के कारण वह चुनाव हार गया था.
इस के साथ ही रेगहा में स्थित 15 एकड़ के कृषि फार्महाउस का विवाद भी इस का एक कारण था, जिसे राजेंद्र चंद्राकर ने उस से हथिया लिया था.
यहां एक रोचक बात यह भी सामने आई कि जांच में यह पाया गया कि अशोक देशमुख घर पर ही था तो फिर अब कैसे हत्यारा हो गया. पुलिस ने उस की पत्नी रजनी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि पति घर पर ही था. मोबाइल में 7 मिस काल दिखाई दे रही थीं.
अब सवाल यह था कि आखिर जब अशोक घर पर था तो पत्नी ने काल क्यों किया था और अशोक ने काल रिसीव क्यों नहीं कीं.
अशोक ने इस संदर्भ में खुलासा करते हुए बताया कि शिवांग चंद्राकर की हत्या के लिए उस ने लंबे समय तक एक योजना बनाई थी कि किस तरह हम हत्या के इस केस से बच सकते हैं और फिरौती भी हासिल कर सकते हैं?
इसी तारतम्य में यह सोचीसमझी योजना बनाई गई थी कि हत्या के दिन मोबाइल को घर में रखना है. ताकि कभी पुलिस वेरिफिकेशन हो तो एक नजर में यह माना जाए कि वह तो घर पर ही था. फिर भला हत्या कैसे कर सकता है.
इस तरह आरोपियों ने इंजीनियर शिवांग की बाइक पर लिफ्ट ले कर एकांत में गला घोट कर हत्या कर दी थी.
जांच के बाद पुलिस ने हत्याकांड में प्रयुक्त कार, मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली. गला घोटने में प्रयुक्त हुई नायलौन की रस्सी भी आरोपियों की निशानदेही पर बरामद कर ली.
तीनों आरोपियों अशोक देशमुख पुत्र रामनारायण देशमुख, विक्की उर्फ मोनू देशमुख और बसंत साहू को भादंवि की धारा 364, 365, 201, 120बी और 302 के तहत मामला दर्ज कर के 10 फरवरी, 2022 को गिरफ्तार कर लिया और अगले दिन 11 फरवरी को उन्हें मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी, दुर्ग, छत्तीसगढ़ के समक्ष पेश किया.
जहां मामले की गंभीरता को देखते हुए मजिस्ट्रैट ने तीनों आरोपियों को जेल भेजने का आदेश जारी कर दिया.
—कथा पुलिस सूत्रों और चर्चा पर आधारित
नई प्रेमिका का साथ मिलने पर वह कुकुकोवा को समय नहीं दे पा रहे थे. इतना ही नहीं, वह मारिया को अपना जीवनसाथी भी बनाना चाहते थे. कुकुकोवा अपनी उपेक्षा को महसूस कर रही थी. यह सब मारिया की वजह से हुआ था, इसलिए इस का दोषी वह मारिया को मान रही थी.
वह मारिया से ईर्ष्या करने लगी थी. इस की वजह से वह हमेशा तनाव में भी रहने लगी थी. और तो और वह फोन, ईमेल और डेटिंग ऐप के जरिए उस का पीछा भी करती थी. इस की शिकायत मारिया ने बुश से भी की थी. बुश को भी कुकुकोवा की यह हरकत पसंद नहीं आई. नतीजतन उन दोनों के बीच जबतब तकरार होने लगी. कुकुकोवा उन पर अपना एकाधिकार बनाए रखने की कोशिश करती थी.
एल्ली का कहना था कि कुकुकोवा बहुत जल्द गुस्से में आ जाती थी. दुकान की महंगी चीजों को फर्श पर फेंक देती थी. कई बार तो वह बुश का मोबाइल तक फेंक देती थी, पासपोर्ट छिपा देती थी और उन की गैरमौजूदगी में उन का पर्सनल कंप्यूटर चेक करती थी.
इसी तरह का एक वाकया एल्ली के जन्मदिन के अवसर पर भी हुआ. एल्ली अपने 18वें जन्मदिन के मौके पर पिता और कुकुकोवा के साथ दुबई में थी. एक मौल में महंगी खरीदारी को ले कर कुकुकोवा ने न केवल हंगामा खड़ा कर दिया था, बल्कि गुस्से में उस ने बुश पर अपना बैग फेंक कर हमला भी किया था.
बुश ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की, पर उस ने उसी दिन बुश का लैपटौप भी तोड़ डाला था. उस की वजह से एल्ली के जन्मदिन की खुशियों भरे माहौल में खलल पड़ गया. इंगलैंड वापस लौट कर बुश ने दुबई की घटना को नजरअंदाज करना ही बेहतर समझा.
कुकुकोवा की अजीबोगरीब आदतों को झेलना बहुत ही मुश्किल हो गया था. वह हमेशा तेवर में रहती थी. सितंबर, 2013 में कुकुकोवा बगैर कुछ बताए बुश के यहां से चली गई. वह एक जगह स्थिर नहीं रहती थी. एक शहर से दूसरे शहर घूमती रहती थी. बुश ने उस से संबंध खत्म कर लिए थे, लेकिन कुकुकोवा को लगता था कि बुश उसे फिर से अपना लेगा. इस के लिए वह अपने फेसबुक एकाउंट पर प्रेमसंबंधों का सबूत देने वाले चुंबन और गले लगने के वीडियो अपलोड करती रहती थी.
कुकुकोवा के परिजनों के अनुसार, हत्या की घटना के 2 सप्ताह पहले वह अपना पुश्तैनी घर छोड़ गई थी. उस वक्त उस के पिता बीमार चल रहे थे. बुश की हत्या की खबर जब अखबारों की सुर्खियां बन गईं और उस की पूर्व पत्नी समेत दूसरे परिजनों ने हत्या का आरोप सीधे तौर पर कुकुकोवा पर लगाया.
इस के बाद स्पेन समेत स्लोवाकिया की पुलिस भी सक्रिय हो गई और बुश की हत्या के 2 दिनों बाद ही कुकुकोवा को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया गया. उसे न्यायिक हिरासत में ले कर मलागा के निकट अल्हउरा डेला टोर्रो जेल में डाल दिया गया. उस की गिरफ्तारी से उस की मां लुबोमीर कुकुका (50) और पिता दानक कुकुकोवा (51) को काफी दुख हुआ. उन्हें लगा जैसे उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई है.
कुकुकोवा की वजह से उस के मातापिता की पूरे इलाके में काफी बदनामी हुई. इस के बावजूद वे बेटी को बचाने की कोशिश के लिए स्पेन गए. उन्होंने एक महंगा वकील किया, जिस की फीस जुटाने में उन का पुश्तैनी मकान तक बिक गया.
पुलिस के अनुसार, घटना वाली रात को कुकुकोवा बुश के उसी घर में थी, जिस में बुश ने अपनी नई प्रेमिका मारिया कोरातेवा को बुला रखा था. मारिया किसी वजह से कुछ देर के लिए बाहर चली गई थी. संभवत: वह वापस जाना चाहती थी. थोड़ी देर में ही उस ने गोली चलने की आवाज सुनी. यही गवाही मारिया ने कोर्ट में दी थी.
बुश के स्मार्टफोन पर डेटिंग ऐप के जरिए कुकुकोवा को पता चल चुका था कि बुश और मारिया 5 अप्रैल, 2014 की रात अपनी मुलाकात का पांचवां महीना पूरा होने पर जश्न मनाने वाले हैं. इस के लिए स्पैनिश विला कोस्टा डेल सोल में खास किस्म का रोमांटिक आयोजन किया गया था. इस से पहले ब्रिस्टल हवाई अड्डे पर बुश ने मारिया को 10,000 पाउंड की हीरे की एक अंगूठी भेंट की थी. इस के साथ ही उन्होंने कहा कि वे विला पर उस से एक खास बात पर चर्चा करना चाहते हैं.
घटना के बारे में मारिया ने बताया, ‘‘5 अप्रैल की सुबह जब हम लोग (मैं और बुश) विला पहुंचे, तब सूर्योदय नहीं हुआ था. हम लोगों ने एकदूसरे का हाथ थामे प्रेमी युगल की तरह हंसहंस कर बातें करते हुए विला में प्रवेश किया. विला के कर्मचारियों ने हमारा गर्मजोशी के साथ स्वागत किया. हम सहज भाव से कमरे में चले गए.’’
मारिया ने आगे बताया, ‘‘बुश ने कमरे की बत्ती जलाई. मुझे कमरे में कुछ अच्छा नहीं लगा. मैं ने दरवाजे के पास एक रैक में ‘ब्रा और किंकर्स’ टंगे देखे. यह देख कर मैं समझ गई कि निश्चित तौर पर यहां पहले से कोई औरतें आती होंगी. मैं बुश से थोड़ा आगे बढ़ी तो कुछ दूरी पर फर्श पर एक अधखुला सूटकेस पड़ा था, जिस में 2 कटार रखे दिखे. उसे देख कर मैं घबरा गई. मैं उलटे पैर मुड़ कर ऊपर की सीढि़यों पर चली गई.
‘‘जब मैं सब से ऊपर पहुंची, तब देखा कि वहां कुकुकोवा बिलकुल शांत, स्थिर एकदम चट्टान की तरह खड़ी थी. वह मुझे ही घूर रही थी. उस ने अपने बाल नीचे किए हुए थे और पाजामा पहन रखा था. ऊपर वह शार्ट्स पहने हुए थी. मैं ने पलभर के लिए उसे देखा और चिल्लाती हुई वहां से भाग कर घर से बाहर आ गई.’’
इसी बीच कुकुकोवा ने बुश पर 3 गोलियां दाग दीं. मारिया ने समझा कि टीवी या सीढि़यों से कोई भारी सामान गिर गया है. कुछ मिनट बाद ही कुकुकोवा बाहर आई तो उस के हाथ में गाड़ी की चाबी थी. उस ने मुझ से कहा, ‘‘कार से दूर हट जाओ.’’
उस वक्त वह बहुत ही शांत थी. मुझे आश्चर्य हुआ कि बुश ने उसे अपनी हमर कार की चाबी कैसे दे दी. इस से मारिया को शक हुआ. जब तक वह घर में जाने के लिए दरवाजे की तरफ बढ़ी, तब तक कुकुकोवा कार को तेजी से ड्राइव करते हुए फरार हो गई. मारिया विला के अंदर पहुंची तो बुश की रक्तरंजित लाश देख कर घबरा गई.
मारिया ने तुरंत बुश की बहन रशेल और पुलिस को बुलाया. पुलिस के साथ आई डाक्टरों की टीम ने बुश को मृत घोषित कर दिया.
बुश की हत्या के बाद जहां मारिया के सपने साकार होने से पहले ही चूरचूर हो गए, वहीं कुकुकोवा को पूरी जवानी जेल की सलाखों के पीछे गुजारनी होगी. उस के मातापिता पर तो जैसे पहाड़ ही टूट पड़ा है. न तो बुढ़ापे का कोई सहारा है और न ही सिर छिपाने को छत बची है. सब कुछ बेटी को जेल जाने से बचाने में खत्म हो गया है. रही बात एल्ली और बहन रशेल की, तो उन को बुश की यादों के सहारे जीना होगा.
वीडियो देख कर रश्मि पानीपानी हो गई. अब उसे लग रहा था कि उस ने और विवेक ने जो किया था, वह किसी ब्लू फिल्म से कम नहीं था. वह हैरान इस बात पर थी कि यह सब रिकौर्ड कैसे हुआ? जबकि विवेक ने कमरे में दाखिल होते ही अच्छे से ठोकबजा कर देख लिया था कि कमरे में कोई कैमरा वगैरह तो नहीं लगा.
पर जो हुआ था, वह कंप्यूटर स्क्रीन पर चल रहा था. वीडियो देख कर सकते में आ गई रश्मि ने तुरंत फोन कर के विवेक को अपने घर बुलाया. विवेक आया तो रश्मि ने उसे सारी बात बताई, जिसे सुन कर वह भी झटका खा गया. यह तो साफ समझ आ रहा था कि वीडियो उसी रात का था, पर इसे भेजने वाले की मंशा साफ नहीं हो रही थी कि वह क्या चाहता है, सिवाय इस के कि वह गलत मंशा से रश्मि पर दबाव बना रहा था.
दोनों गंभीरतापूर्वक काफी देर तक इस बिन बुलाई मुसीबत पर चरचा करते रहे. बात चिंता की थी, इस लिहाज से थी कि अगर यह वीडियो वायरल हो गया तो वे कहीं के नहीं रह जाएंगे. दोनों अब अपनी जवानी के जोश में छिप कर किए इस कृत्य पर पछता रहे थे. लंबी चर्चा के बाद आखिरकार उन्होंने तय किया कि भेजने वाले से उस की मंशा पूछी जाए.
लिहाजा उन्होंने इस बाबत मैसेज किया तो जवाब आया कि अगर इस वीडियो को वायरल होने से बचाना है तो ढाई लाख रुपए दे दो. अब तसवीर साफ थी कि उन्हें ब्लैकमेल किया जा रहा था. विवेक और रश्मि, दोनों निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों से थे, इसलिए ढाई लाख रुपए का इंतजाम करना उन की हैसियत के बाहर की बात थी. पर होने वाली बदनामी का डर भी उन के सिर चढ़ कर बोल रहा था.
आखिरकार विवेक ने सख्त और समझदारी भरा फैसला लिया कि जब पौकेट में इतने पैसे नहीं हैं तो बेहतर है कि पुलिस में रिपोर्ट लिखा दी जाए. दोनों अपनेअपने घर से बहाना बना कर बीती 1 मई को ग्वालियर पहुंचे और सीधे एसपी डा. आशीष खरे से मिले. मामले की गंभीरता और शादी के बंधन में बंधने जा रहे इन दोनों की परेशानी आशीष ने समझी और मामला पड़ाव थाने के टीआई को सौंप दिया.
पुलिस वालों ने दोनों को सलाह दी कि वे ब्लैकमेलर से संपर्क कर किस्तों में पैसा देने की बात कहें. रश्मि ने पुलिस की हिदायत के मुताबिक ब्लैकमेलर को फोन कर के कहा कि वह ढाई लाख रुपए एकमुश्त तो देने की स्थिति में नहीं हैं, पर 5 किस्तों में 50-50 हजार रुपए दे सकती है. इस पर ब्लैकमेलर तैयार हो गया.
सीधे उत्तम होटल पर छापा न मारने के पीछे पुलिस की मंशा यह थी कि ब्लैमेलर को रंगेहाथों पकड़ा जाए. ऐसा हुआ भी. आरोपी आसानी से पुलिस के बिछाए जाल में फंस गया और रश्मि से 50 हजार रुपए लेते धरा गया. जिस युवक को पुलिस ने पकड़ा था, उस का नाम भूपेंद्र राय था. वह उत्तम होटल में ही काम करता था.
भूपेंद्र को उम्मीद नहीं थी कि रश्मि पुलिस में खबर करेगी, इसलिए वह पकड़े जाने पर हैरान रह गया. पूछताछ में उस ने बताया कि वह तो बस पैसा लेने आया था, असली कर्ताधर्ता तो कोई और है.
वह कोई और नहीं, बल्कि होटल का 63 वर्षीय मैनेजर विमुक्तानंद सारस्वत निकला. उसे भी पुलिस ने तत्काल गिरफ्तार कर लिया. इन दोनों ने पूछताछ में मान लिया कि उन्होंने इस तरह कई जोड़ों को ब्लैकमेल किया था.
भूपेंद्र ने बताया कि इस होटल में उसे उस के बहनोई पंकज इंगले ने काम दिलवाया था. काम करतेकरते भूपेंद्र ने महसूस किया कि होटल में रुकने वाले अधिकांश कपल सैक्स करने आते हैं. लिहाजा उस के दिमाग में एक खुराफाती बात वीडियो बना कर ब्लैकमेल करने की आई, जिस का आइडिया एक क्राइम सीरियल से उसे मिला था.
भूपेंद्र ने दिल्ली जा कर नाइट विजन कैमरे खरीदे, जो आकार में काफी छोटे होते हैं. इन कैमरों को उस ने टीवी के औनऔफ स्विच में फिट कर रखा था. इस से कोई शक भी नहीं कर पाता था कि उन की हरकतें कैमरे में कैद हो रही हैं. आमतौर पर ठहरने वाले इस बात पर ध्यान नहीं देते कि टीवी का स्विच औन है, क्योंकि इस से कोई खतरा रिकौर्डिंग का नहीं होता.
ग्राहकों के जाने के बाद भूपेंद्र कैमरे निकाल कर फिल्म देखता था और जिन लोगों ने सैक्स किया होता था, उन के नामपते होटल में जमा फोटो आईडी से निकाल कर फेसबुक, व्हाट्सऐप या फिर सीधे मोबाइल फोन के जरिए ब्लैकमेल करता था. दोनों ने माना कि वे ब्लैकमेलिंग के इस धंधे से लाखों रुपए अब तक कमा चुके हैं. दोनों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.
मामला उजागर हुआ तो ग्वालियर में हड़कंप मच गया. पता यह चला कि कई होटलों में इस तरह के कैमरे फिट हैं और ब्लैकमेलिंग का धंधा बड़े पैमाने पर फलफूल रहा है. इस तरह की रिकौर्डिंग के विरोध में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने प्रदर्शन भी किया.
इस पर पुलिस ने कई होटलों में छापे मारे, पर कुछ खास हाथ नहीं लगा. क्योंकि संभावना यह थी कि भूपेंद्र की गिरफ्तारी के साथ ही ब्लैकमेलर्स ने कैमरे हटा दिए थे. हालांकि उम्मीद बंधती देख कुछ लोगों ने पुलिस में जा कर अपने ब्लैकमेल होने का दुखड़ा रोया.
जब यह सब कुछ हो गया तो विवेक और रश्मि ब्रेफ्रिकी से नोएडा वापस चले गए और दोबारा शादी की तैयारियों में जुट गए. पर एक सबक इन्हें मिल गया कि हनीमून मनाते वक्त होटल में इस बात का ध्यान रखेंगे कि टीवी के खटके में कैमरा न लगा हो और घर आने के बाद फिर फेसबुक पर यह मैसेज न मिले कि ‘ए सीक्रेट नाइट इन होटल.’