गर्लफ्रेंड को जीबी रोड बेचने आए प्रेमी ने की एसएचओ से डील

दिल्ली के थाना कमला मार्केट के थानाप्रभारी सुनील कुमार ढाका के सरकारी मोबाइल फोन पर  लगातार ऐसी काल्स आ रही थीं, जिस में फोन करने वाला अपने बारे में कुछ न बता कर उन से ही पूछता था कि आप कौन हैं और कहां से बोल रहे हैं? जब वह उसे अपने बारे में बताते तो फोन करने वाला तुरंत काल डिसकनेक्ट कर देता.

शुरुआत में तो वह यही समझ रहे थे कि शायद किसी से गलत नंबर लग जा रहा है. पर जब रोजाना ही अलगअलग नंबरों से ऐसी काल्स आने लगीं तो उन्हें शक हुआ. क्योंकि फोनकर्ता पुलिस का नाम सुनते ही फोन काट देता था. वह यह जानना चाहते थे कि आखिर फोन करने वाला कौन है और वह चाहता क्या है. क्योंकि एक ही फोन पर लगातार रौंग काल आने की बात गले नहीं उतर रही थी.

इस के बाद उन के पास एक अनजान नंबर से काल आई तो उन्होंने फोन करने वाले से झूठ बोलते हुए कहा, ‘‘मैं अशोक बोल रहा हूं, आप कौन हैं और किस से बात करनी है?’’

‘‘जी, मैं ने जीबी रोड फोन मिलाया था.’’ उस ने कहा.

जीबी रोड दिल्ली का बदनाम रेडलाइट एरिया है. लेकिन अब इस का नाम बदल कर श्रद्धानंद मार्ग हो गया है. यहां पर मशीनरी पार्ट्स का बड़ा मार्केट है और उन्हीं दुकानों के ऊपर तमाम कोठे हैं, जहां सैकड़ों की संख्या में वेश्याएं धंधा करती हैं. रोड का नाम कागजों में भले ही बदल गया है, लेकिन लोगों की जबान पर आज भी जीबी रोड ही रटा हुआ है.

जैसे ही उस आदमी ने जीबी रोड का नाम लिया, थानाप्रभारी उस के फोन करने का आशय समझ गए. वह बात को आगे बढ़ाते हुए बोले, ‘‘आप ने सही जगह नंबर मिलाया है. मैं वहीं से बोल रहा हूं. बताइए, किसलिए फोन किया है?’’

‘‘मैं वहां पूरी रात एंजौय करना चाहता हूं, कितना खर्च आएगा.’’ उस ने पूछा.

इस बात पर थानाप्रभारी को गुस्सा तो बहुत आया कि वह पुलिसिया भाषा में उसे सही खुराक दे दें, लेकिन उन्होंने गुस्सा जाहिर करना उचित नहीं समझा. उन्होंने बड़े प्यार से कहा, ‘‘आप यहां आ जाइए. जिस लड़की को पसंद करेंगे, उसी के हिसाब से पैसे बता दिए जाएंगे. आप जब यहां आएंगे तो मैं यकीन दिलाता हूं कि खुश हो कर ही जाएंगे. आप यहां मार्केट में आने के बाद मेरे इसी नंबर पर फोन कर देना, मैं किसी को भेज दूंगा.’’

इतना कह कर थानाप्रभारी ने उस से पूछा, ‘‘वैसे एक बात यह बताओ कि मेरा यह नंबर आप को कहां से मिला?’’

‘‘यह नंबर एक सैक्स साइट पर था. मैं जीबी रोड की एक वीडियो देख रहा था. उसी में यह फोन नंबर था. वहीं से ले कर मैं आप को फोन कर रहा हूं.’’ उस आदमी ने कहा.

सैक्स साइट पर पुलिस का फोन नंबर होने की बात पर थानाप्रभारी चौंके. जब नंबर वहां है तो ऐसे ही लोगों के फोन आएंगे. चूंकि उन की फोन पर बातचीत जारी थी, इसलिए उन्होंने कहा, ‘‘मैं तो यह सोच रहा था कि यह नंबर हमारे किसी कस्टमर ने आप को दिया होगा.’’

‘‘नहीं, कस्टमर ने नहीं दिया, सैक्स साइट से ही लिया है.’’ उस ने कहा.

‘‘कोई बात नहीं, आप जब आएं तो मुझे बता देना. अच्छी व्यवस्था करा दूंगा.’’ उन्होंने कहा और काल डिसकनेक्ट कर दिया.

इस तरह के फोन काल्स से थानाप्रभारी परेशान थे. इस से बचने के 2 ही रास्ते थे. पहला यह कि वह अधिकारियों से बात कर इस नंबर के बदले कोई दूसरा नंबर ले लें और दूसरा यह कि जिस सैक्स साइट पर उन का यह नंबर डाला गया है, वहां से यह नंबर हटवा दें.

इंटरनेट पर सैक्स से संबंधित तमाम साइटें हैं. यह फोन नंबर पता नहीं किस साइट पर है. फिर भी थानाप्रभारी ने गूगल पर कई साइट्स खोजीं, लेकिन उन्हें अपना नंबर नहीं मिला. जिस फोन नंबर से उन के पास फोन आया था, उन्होंने उसी नंबर को रिडायल किया. पर वह नंबर स्विच्ड औफ पाया गया. उन्होंने सोचा कि अब की बार इस तरह का किसी का फोन आएगा तो उस से साइट का नाम भी पूछ लेंगे.

19 नवंबर, 2017 को भी थानाप्रभारी अपने औफिस में बैठे थे, तभी सुबह करीब पौने 9 बजे उन के मोबाइल पर किसी ने फोन कर के पूछा, ‘‘क्या आप जीबी रोड से बोल रहे हैं?’’

यह सुन कर थानाप्रभारी झुंझलाए लेकिन खुद पर काबू पाते हुए उन्होंने फोन करने वाले से कहा, ‘‘हां, मैं वहीं से बोल रहा हूं. कहिए, कैसे याद किया?’’

‘‘दरअसल, बात यह है कि मेरे पास एक न्यू ब्रैंड टैक्सी है. मैं उसे बेचना चाहता हूं.’’ उस आदमी ने धीरे से कहा.

चूंकि जीबी रोड थाना कमला मार्केट इलाके में ही है. यहां पर टैक्सी धंधा करने वाली महिला को कहते हैं, इसलिए वह समझ गए कि यह किसी लड़की का सौदा करना चाहता है. जो लड़की या महिला यहां लाई जाती है, वह यहीं की हो कर रह जाती है.  उस आदमी की बात से लग रहा था कि वह इस क्षेत्र का पुराना खिलाड़ी है, क्योंकि वह कोड वर्ड का प्रयोग कर रहा था. उस लड़की की जिंदगी बचा कर थानाप्रभारी उस गैंग तक पहुंचना चाहते थे, इसलिए उन्होंने कहा, ‘‘यह बताओ कि टैक्सी किस हालत में है?’’

‘‘एकदम न्यू ब्रैंड है. बस यह समझ लो कि वह अभी सड़क पर भी नहीं उतरी है.’’ उस ने कहा, ‘‘वह केवल 15 साल की है.’’

15 साल की है तो उसे जरूर प्रेमजाल में फांस कर या नौकरी के बहाने लाया गया होगा. उस की नीयत को भांप कर थानाप्रभारी ने उस से बातचीत जारी रखी, ‘‘ठीक है, हम उसे खरीद लेंगे.’’

‘‘कितने रुपए देंगे उस टैक्सी के?’’ वह बोला.

‘‘देखो भाई, हम बिना देखे उस के दाम कैसे बता सकते हैं. अच्छा, यह बताओ कि वह है कैसी? आप हमें उस के फोटो वगैरह दिखाइए, उस के बाद ही बताया जाएगा.’’

‘‘वह एकदम स्लिम है और लंबाई करीब 5 फुट है.’’ उस ने बताया, ‘‘मैं उस के फोटो भी दिखा दूंगा. कोई लफड़ा तो नहीं होगा.’’

‘‘लफड़ा किस बात का. देखो, तुम्हें बेचना है और हमें खरीदना तो इस में लफड़े की कोई बात ही नहीं है.’’

‘‘आप को एक बात ध्यान रखना है कि किसी भी तरह वह लड़की अपने घर वालों को फोन न कर पाए. अगर उस ने फोन कर दिया तो हम दोनों ही फंसेंगे.’’ उस ने आशंका जताते हुए कहा.

‘‘यहां आने के बाद किसी का भी घर लौटना मुमकिन नहीं होता. और तो और बाद में जब तुम भी यहां आओगे तो वह तुम्हें भी यहां नहीं दिखेगी.’’ थानाप्रभारी ने कहा.

‘‘तुम से मिलने मैं आ जाऊंगा, तभी बात करते हैं.’’

‘‘ठीक है आ जाना, पर तुम यहां कोठे पर मत आना, क्योंकि इस तरह के सौदे बाहर ही होते हैं. दूसरी जगह कहां मिलना है, इस बारे में हम फोन कर के तय कर लेंगे.’’ थानाप्रभारी ने कहा.

इस पूरी बातचीत में थानाप्रभारी सुनील ढाका ने यह जाहिर नहीं होने दिया कि वह पुलिस अधिकारी हैं. वह कोठों के दलालों की स्टाइल में ही बात करते रहे.

इस के बाद भी उस दिन 3-4 बार उसी आदमी ने फोन कर इस संबंध में बात की. इस बातचीत में उस ने तय कर लिया कि कल वह नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर आएगा और वहां बैठ कर आपस में बात की जाएगी.

‘‘ठीक है, तुम वहां आ जाना. मैं 2 लड़कों गुलाब और सुंदर को भेज दूंगा. लड़की का फोटो वगैरह देख कर वे डील फाइनल कर लेंगे. इस के बाद तुम लड़की ले आना और वहीं हम तुम्हें पैसे दे देंगे.’’ थानाप्रभारी ने कहा. इसी के साथ उन्होंने गुलाब का फोन नंबर भी उसे दे दिया.

थानाप्रभारी ने इस मामले की जानकारी एसीपी अमित कौशिक और डीसीपी मंजीत सिंह रंधावा को दे दी. मामला एक लड़की की जिंदगी उजड़ने से बचाना था, इसलिए डीसीपी ने कहा कि वह बातचीत में ऐहतियात बरतें. लड़की बेचने वालों को किसी तरह का शक नहीं होना चाहिए, वरना गड़बड़ हो सकती है.

डीसीपी के निर्देश के बाद सुनील कुमार ढाका ने उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई, जिस से उन के पास लड़की का सौदा करने वाले का फोन आया था. उस फोन की लोकेशन गुड़गांव की आ रही थी.

20 नवंबर को थानाप्रभारी उस आदमी से फोन द्वारा संपर्क में रहे. उस ने बताया कि वह दिल्ली के लिए मैट्रो से चल पड़ा है. शाम 4, साढ़े 4 बजे तक वह नई दिल्ली पहुंच जाएगा.

‘‘ठीक है, तुम नई दिल्ली मैट्रो स्टेशन पहुंचो, मेरे दोनों लड़के गुलाब और सुंदर वहां पहुंच जाएंगे. तुम उन से बात कर लेना.’’ थानाप्रभारी ने कहा.

थानाप्रभारी ने उसे अपने कांस्टेबल गुलाब का फोन नंबर दे दिया था, इसलिए वह गुलाब के संपर्क में आ गया. उस ने बताया कि वे 2 लोग आ रहे हैं और शाम साढ़े 4 बजे मैट्रो के गेट नंबर-4 के बाहर मिलेंगे. कांस्टेबल सुंदर और गुलाब मैट्रो के गेट नंबर 4 के बाहर खड़े हो गए.

मैट्रो ट्रेन से उतरने के बाद उस आदमी ने गुलाब से बात की तो गुलाब ने बताया कि वह मैट्रो के गेट नंबर 4 पर खड़ा है. कुछ देर बाद वहां 2 युवक पहुंचे. उन्होंने अपने नाम अमर और रंजीत बताए. अमर गुलाब से बातें करने लगा और रंजीत वहां से कुछ दूर जा कर खड़ा हो गया. अमर ने अपने मोबाइल फोन में उस लड़की की फोटो गुलाब को दिखाई, जिस का सौदा करना था. 15 साल की वह लड़की वास्तव में खूबसूरत थी. अमर ने उस लड़की के साढ़े 3 लाख रुपए मांगे.

‘‘साढ़े 3 लाख तो बहुत ज्यादा है. मैं कल ही बंगाल से 70-70 हजार में 2 लड़कियां लाया हूं. भाई, जो मुनासिब है ले लो.’’ गुलाब ने कहा.

‘‘देखिए, मेरे पास इस के अलावा 5 लड़कियां और हैं. अगर सही पैसों में तुम से डील हो जाती है तो सारी की सारी तुम्हें ही दे दूंगा.’’ अमर ने कहा.

‘‘हमारे पास भी आल इंडिया से लड़कियां आती हैं. हमारे आदमी हर स्टेट में हैं. वे हम से जुड़ कर मोटी कमाई कर रहे हैं. तुम भी ऐसा कर सकते हो.’’

दोनों ही तरफ से लड़की का मोलभाव होने लगा. अंत में बात 2 लाख 30 हजार रुपए में तय हो गई. अमर ने कहा कि वह लड़की को यहीं ले आएगा और किसी बहाने से उसे छोड़ कर चला जाएगा.

गुलाब और सुंदर अमर और रंजीत से इस तरह बातचीत कर रहे थे, जैसे वे सचमुच में पक्के धंधेबाज हों. गुलाब ने उन के साथ सेल्फी ली और एक दुकान पर बैठ कर चायनाश्ता भी किया. कुछ ही देर की बातचीत में वे सब एकदूसरे से घुलमिल गए. अमर ने बताया कि वह कल 11-12 बजे के बीच लड़की को यहां ले आएगा. लौटते समय गुलाब ने अमर को एक हजार रुपए थमा दिए.

‘‘ये पैसे किस बात के?’’ अमर ने पूछा.

‘‘इन्हें ऐसे ही रख लो. इतनी दूर से आए हो, किराएभाड़े के लिए हैं. घबराओ मत, इन्हें मैं सौदे की रकम से नहीं काटूंगा. वह पैसे तो लड़की के मिलते ही तुम्हें हाथोंहाथ दे दूंगा.’’ गुलाब ने कहा.

इस के बाद अमर और रंजीत मैट्रो से ही वापस चले गए.  कांस्टेबल गुलाब ने विश्वास बनाए रखने के लिए उन से यह भी नहीं पूछा कि वे कहां से आए हैं. अगले दिन दोपहर डेढ़ बजे अमर ने फोन कर के गुलाब से कहा, ‘‘आप लोग गुड़गांव बसअड्डे पर आ जाइए. यहीं पर लड़की भी दिखा दूंगा और पैसे ले कर सौंप भी दूंगा.’’

थानाप्रभारी ने कांस्टेबल गुलाब से पहले ही कह दिया था कि डील करते समय वह किसी भी तरह की जल्दबाजी नहीं करेंगे. उन से खरीदार की तरह ही बातचीत करें. इसी बात को ध्यान में रखते हुए गुलाब ने उस दिन गुड़गांव आने से मना कर दिया.

उन्होंने कहा कि हम आज गुड़गांव नहीं आ सकते, क्योंकि आज उन्हें अपने एक रिश्तेदार के यहां शादी में जाना है. अगर ज्यादा जल्दी हो तो वे लड़की को ले कर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर आ जाएं.

कुछ देर सोच कर अमर ने कहा, ‘‘ठीक है, आप लोग कल ही गुड़गांव आ जाइए.’’

‘‘हां, यही ठीक रहेगा.’’ गुलाब ने उस की बात का समर्थन करते हुए कहा.

अमर सुनील कुमार ढाका और गुलाब से फोन पर दिन में कईकई बार बातें कर रहा था, लेकिन अगले दिन यानी 21 नवंबर को उन के पास अमर का कोई फोन नहीं आया. इस से थानाप्रभारी को आशंका हुई कि कहीं उसे उन के पुलिस होने की भनक तो नहीं लग गई.

यदि ऐसा हुआ तो गड़बड़ हो जाएगी. अगर उस ने किसी तरह लड़की कोठे पर पहुंचा दिया तो वहां लड़की को तलाश पाना मुश्किल हो जाएगा.

वह गुलाब से इसी मुद्दे पर बात कर रहे थे कि तभी 11 बजे के करीब अमर का फोन आ गया. उस ने कहा, ‘‘आप लोग गुड़गांव आ जाइए. मैं बसअड्डे के पास आप का इंतजार करूंगा. यहीं पर आप लड़की को देख लेना.’’

थानाप्रभारी ने एएसआई विजय, कांस्टेबल गुलाब और सुंदर को निर्देश दे कर गुड़गांव भेज दिया. तीनों गुड़गांव पहुंच गए. रास्ते भर गुलाब अमर से फोन पर बातचीत करते रहे.

जब वह वहां पहुंचे तो अमर और उस का साथी बसअड्डे के पास ही खड़े मिले. चूंकि वे गुलाब और सुंदर को ही जानते थे, इसलिए एएसआई विजय बसअड्डे के पास एक दुकान पर खड़े हो गए. गुलाब ने अमर से लड़की के बारे में पूछा तो उस ने कहा कि वह अभी उसे ले कर नहीं आया है. उस ने मोबाइल फोन में लड़की के कुछ अन्य फोटो उन्हें दिखाए.

इस बार उस के मोबाइल में लड़की के अलगअलग तरह के फोटो थे. उस ने कहा कि वह लड़की को यहीं ले आता है, वे यहीं पैसे दे कर लड़की को ले जाएं.

‘‘लेकिन अभी हम पैसे नहीं लाए हैं. ऐसी बात थी तो पहले बता देते, हम पैसे ले कर आते. अब बताइए, क्या करें.’’ गुलाब ने कहा.

‘‘करना क्या है, हम चाह रहे थे कि यह मामला आज ही निपट जाए.’’ अमर ने कहा.

‘‘कोई बात नहीं, आज नहीं तो कल निपट जाएगा. लेकिन हम चाहते हैं कि लड़की को ले कर तुम दिल्ली आ जाओ. पैसे वहीं मिल जाएंगे.’’

अगले दिन 22 नवंबर, 2017 को अमर अपने दोस्त और उस लड़की को ले कर मैट्रो से दिल्ली के लिए निकल पड़ा. दिल्ली के लिए निकलने से पहले उस ने गुलाब को फोन कर के बता दिया.

कांस्टेबल गुलाब ने यह बात थानाप्रभारी को बता दी. थानाप्रभारी ने एक पुलिस टीम बनाई, जिस में एसआई दिनेश कुंडू, एएसआई सर्वेश, विजय, कांस्टेबल गुलाब, सुंदर, महिला कांस्टेबल मधु को शामिल किया. गवाही के लिए वह किसी स्थानीय आदमी को साथ रखना चाहते थे. इस के लिए उन्होंने मोहम्मद हफीज उर्फ बबलू प्रधान से बात की और उसे अपनी टीम के साथ नई दिल्ली मैट्रो स्टेशन पर ले गए.

चूंकि अमर ने मैट्रो के गेट नंबर 4 के पास मिलने को कहा था, इसलिए उस गेट के आसपास सभी पुलिसकर्मी तैनात हो गए.

दिल्ली पहुंच कर अमर ने गुलाब को फोन किया तो गुलाब अपने साथी सुंदर के साथ वहां पहुंच गए. वह अमर को पहचानते थे, इसलिए मैट्रो के गेट नंबर 4 के पास उन्होंने अमर को खड़े देखा तो वह उस से बड़ी गर्मजोशी से मिले.

उन्होंने उसे 20 हजार रुपए दे कर बाकी के पैसे लड़की सौंपते समय देने को कहा. वहां अमर अकेला था. उस ने लड़की को अपने साथी रंजीत के साथ वहां से थोड़ी दूरी पर खड़ी कर दिया था.

अमर जल्द ही अपनी बकाया की रकम ले कर लड़की को उन के हवाले कर वहां से खिसक जाना चाहता था, इसलिए वह गुलाब को उस जगह ले गया, जहां रंजीत के साथ लड़की खड़ी थी. लड़की को देख कर गुलाब ने अपने सिर को खुजाया. यह उन का इशारा था. इस के बाद थानाप्रभारी सहित उन की टीम के सदस्य वहां पहुंच गए. उन्होंने अमर और उस के साथी को हिरासत में ले लिया.

गुलाब और सुंदर को जीबी रोड कोठे का दलाल समझने वाले अमर और रंजीत को जब पता चला कि वे दलाल नहीं, बल्कि पुलिस वाले हैं तो उन के होश उड़ गए. जिस मनीषा नाम की लड़की को वे बेचने लाए थे, उसे महिला कांस्टेबल मधु ने अपनी हिफाजत में ले लिया.

थाने ले जा कर जब अमर और रंजीत से पूछताछ की गई तो पता चला कि वे दोनों बिहार के रहने वाले थे और वह लड़की भी बिहार की थी.

लड़की को अपने प्यार के जाल में फांस कर उसे रेडलाइट एरिया में बेचने की कोशिश करने की उन्होंने जो कहानी बताई, वह बहुत ही हैरान कर देने वाली थी—

24 साल का अमर मूलरूप से बिहार के सुपौल जिले के इरारी गांव के रहने वाले लक्ष्मण का बेटा था. इसी गांव के रहने वाले रंजीत शाह से उस की अच्छी दोस्ती थी. अमर दिल्ली और गुड़गांव में पहले नौकरी कर चुका था.

मई, 2017 की बात है. अमर बिहार के मोतिहारी जिले में अपने एक जानकार के यहां आयोजित भोज में गया था. वहीं पर मनीषा से उस की मुलाकात हुई. 15 साल की मनीषा खूबसूरत के साथ हंसमुख भी थी. वह भी परिवार के साथ उसी भोज में आई थी. पहली मुलाकात में ही दोनों एकदूसरे से काफी प्रभावित हुए. उसी दौरान उन्होंने अपने फोन नंबर एकदूसरे को दे दिए.

भोज से घर लौटने के बाद अमर के दिलोदिमाग में मनीषा ही घूमती रही. अगले दिन मन नहीं लगा तो उस ने मनीषा को फोन लगा दिया. दोनों में औपचारिक बातें हुईं. इस के बाद उन के बीच बातों का सिलसिला शुरू हो गया. धीरेधीरे बातों का दायरा बढ़ता गया और वह प्यार के बंधन में बंधते गए. दोनों ही एकदूसरे को इतना चाहने लगे कि उन्होंने शादी करने का फैसला ले लिया.

इस के बाद योजना बना कर दोनों 15 अक्तूबर, 2017 को अपनेअपने घरों से भाग निकले. 15 साल की मनीषा अपना घर छोड़ कर मोतिहारी रेलवे स्टेशन पर पहुंच गई, जहां अमर अपने दोस्त रंजीत के साथ उस का इंतजार कर रहा था.  मोतिहारी से तीनों दिल्ली आ गए. दिल्ली से मैट्रो द्वारा गुड़गांव पहुंच गए. चूंकि गुड़गांव से अमर और रंजीत अच्छी तरह वाकिफ थे, इसलिए गुड़गांव सेक्टर-10 के शक्तिनगर में रह रहे अपने जानकार की मदद से एक कमरा किराए पर ले लिया.

चूंकि अमर ने मनीषा से शादी करने का वादा किया था, इसलिए अपने ही कमरे में 2 दोस्तों के सामने उस ने मनीषा से शादी कर ली. अग्नि के फेरे लगा कर पर मनीषा की मांग में सिंदूर भर दिया. इस के बाद दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे.

शादी के बाद अमर ने मनीषा को बताया कि वह शादीशुदा तो है ही, उस का एक बच्चा भी है. इस पर मनीषा ने हैरानी से कहा, ‘‘तुम ने यह बात पहले क्यों नहीं बताई?’’

‘‘तुम ने कभी पूछा ही नहीं, इसलिए मैं ने नहीं बताया. लेकिन तुम परेशान मत होओ, भले ही मैं शादीशुदा हूं, तुम्हारा पूरा खयाल रखूंगा. पहली पत्नी से मेरा एक बच्चा है. एक बच्चा मैं तुम से चाहता हूं. मैं वादा करता हूं कि तुम्हें हर तरह से खुश रखने की कोशिश करूंगा.’’ अमर ने कहा.

मनीषा बिना सोचेसमझे ऐसा कदम उठा चुकी थी जो उस के लिए नुकसानदायक साबित हुआ था. वह अमर से शादी कर चुकी थी. इसलिए घर वापस जाना उस ने जरूरी नहीं समझा. लिहाजा उस ने तय कर लिया कि अब चाहे जो भी हो, वह अमर के साथ ही रहेगी. आगे जो होगा, देखा जाएगा. वह अमर के साथ हंसीखुशी से रहने लगी.

15-20 दिनों बाद अमर का मनीषा से मन भर गया. अब मनीषा उसे गले की हड्डी लगने लगी. वह उस से छुटकारा पाना चाह रहा था. इस बारे में उस ने दोस्त रंजीत से बात की. उसे अकेली छोड़ कर वह जा नहीं सकता, क्योंकि बाद में मनीषा द्वारा पुलिस से शिकायत करने पर उस के फंसने की आशंका थी. अगर वह उस की हत्या कर देता तो भी उस के जेल जाने की आशंका थी.

ऐसे में रंजीत ने उसे कोठे पर बेचने की सलाह दी. कोठे पर जाने के बाद कोई भी लड़की बाहर नहीं आ सकती और इस में उन्हें अच्छीखासी रकम भी मिल जाती. दोस्त का यह आइडिया अमर को पसंद आ गया. उन्होंने जीबी रोड के कोठों का नाम सुना था. वे उसे दिल्ली के जीबी रोड के किसी कोठे पर बेचना चाहते थे.

वे ऐसे किसी दलाल को नहीं जानते थे, जो उन का यह काम करा देता. वे सीधे कोठे पर यह सोच कर नहीं जा रहे थे कि सौदा न पटने पर कहीं कोठे वाली पुलिस से पकड़वा न दे. लिहाजा वे मनीषा को कोठे पर बेचने का कोई और तरीका खोजने लगे.

आजकल ज्यादातर लोगों के पास स्मार्टफोन है, जिन पर इंटरनेट का खूब प्रयोग होता है. इस स्मार्टफोन ने लोगों को स्मार्ट बना दिया है. उन्हें कोई भी जानकारी चाहिए, झट गूगल पर सर्च करने बैठ जाते हैं. रंजीत के दिमाग में जाने क्या आया कि वह गूगल पर सैक्स से संबंधित साइट्स खोजने लगा. इस के बाद उस ने यूट्यूब पर जीबी रोड रेडलाइट एरिया से संबंधित वीडियो देखीं.

एक वीडियो में जीबी रोड के कोठों के अंदर के दृश्य भी दिखाए गए थे. वीडियो देखते देखते रंजीत की नजर दीवार पर लिखे एक फोन नंबर 8750870424 पर गई, जहां लिखा था कि कोई भी समस्या या शिकायत इस नंबर पर करें.

यह फोन नंबर दिल्ली के कमला मार्केट थाने के थानाप्रभारी का था. यह फोन नंबर मध्य जिला के डीसीपी ने इस आशय से जीबी रोड के कोठों पर लिखवाया था कि किसी जरूरतमंद लड़की से जबरदस्ती धंधा कराए जाने पर वह इस नंबर पर शिकायत कर सके.

रंजीत को यह जानकारी नहीं थी कि यह नंबर पुलिस का है. उस ने सोचा कि यह कोठे के संचालक का होगा. दोनों दोस्तों ने तय कर लिया कि इस फोन नंबर पर बात कर के वे मनीषा को बेचने की कोशिश करेंगे.

रंजीत ने अमर को यह बात पहले बता दी थी कि मनीषा का सौदा जितने रुपयों का होगा, उस में से एक लाख रुपए वह लेगा. इन रुपयों को खर्च करने का प्लान भी उस ने बना लिया था. रंजीत ने तय कर लिया था कि वह कोई पुरानी कार खरीद कर अपने घर ले जाएगा. इस के बाद अमर ने उसी नंबर पर फोन किया.

जैसे ही अमर ने पूछा कि आप जीबी रोड से बोल रहे हैं तो थानाप्रभारी सुनील कुमार ढाका ने हां कह दिया. क्योंकि इस से पहले भी उन के पास ऐसी कई काल आ चुकी थीं. उन्होंने अमर से ऐसे बात की, जैसे वह किसी कोठे के संचालक हों.

उन की इसी समझदारी पर मनीषा कोठे पर बिकने से बच गई. उन्होंने अमर और रंजीत के खिलाफ भादंवि की धारा 120बी, 363, 366ए, 376, 370 और पोक्सो एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. उन्हें गिरफ्तार कर 23 नवंबर, 2017 को न्यायालय में महानगर दंडाधिकारी कपिल कुमार के समक्ष पेश कर एक दिन का रिमांड लिया.

रिमांड अवधि में पूछताछ करने के बाद उन्हें फिर से 24 नवंबर को कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने मनीषा को चाइल्ड वेलफेयर सोसायटी भेज दिया.

थानाप्रभारी के इस कार्य की पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक, डीसीपी मंदीप सिंह रंधावा ने भी सराहना की है. उन्होंने इसे एक सच्ची समाजसेवा बताया. मनीषा बिहार के मोतिहारी जिले के लौकी थानाक्षेत्र की थी. लिहाजा थानाप्रभारी सुनील कुमार ढाका ने इंटरनेट से मोतिहारी के एसएसपी औफिस का नंबर हासिल किया. फिर उन्होंने एसएसपी औफिस से थाना लौकी का फोन नंबर लिया.

वहां के थानाप्रभारी रामचंद्र चौपाल को उन्होंने मनीषा के बरामद होने की सूचना दी तो उन्होंने बताया कि मनीषा एक गरीब परिवार की है. घर वालों ने उस के भाग जाने की रिपोर्ट तक दर्ज नहीं कराई थी.

बहरहाल, थानाप्रभारी रामचंद्र चौपाल ने मनीषा के घर वालों को मनीषा के दिल्ली से बरामद होने की जानकारी दे दी. कथा संकलन तक मनीषा के घर वाले दिल्ली नहीं पहुंच सके थे. मामले की जांच थानाप्रभारी सुनील कुमार ढाका कर रहे हैं.

जीबी रोड के कोठे में लिखे इस फोन पर भले ही किसी शोषिता ने पुलिस से शिकायत न की हो, पर इस नंबर ने एक लड़की को शोषित होने से जरूर बचा लिया. देश भर के सभी रेडलाइट एरिया में यदि स्थानीय पुलिस के नंबर इसी तरह प्रसारित किए जाएं तो और भी तमाम लड़कियां देह व्यापार के धंधे में जाने से बच सकती हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. मनीषा परिवर्तित नाम है.

कलम और खाकी वरदी की साजिश

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के कैंट क्षेत्र में एक ऐतिहासिक और पौश कालोनी है, जिसे राम प्रसाद बिस्मिल पार्क के नाम से जाना जाता है. अमर शहीद पं. रामप्रसाद बिस्मिल का इस कालोनी से गहरा संबंध था. उन्होंने यहीं छिप कर अंग्रेजों से लोहा लिया था.

इस वीआईपी कालोनी में विभिन्न रोगों के कई विख्यात चिकित्सकों के अपने निजी नर्सिंगहोम हैं. इसी पौश कालोनी में मनोरोगियों के पूर्वांचल के जानेमाने चिकित्सक 65 वर्षीय रामशरण दास उर्फ रामशरण श्रीवास्तव रहते हैं. उन का आवास और नर्सिंगहोम दोनों ही बिस्मिल पार्क रोड पर स्थित हैं.

रोज की तरह 16 मई, 2019 की सुबह निर्धारित समय पर डा. रामशरण दास अपने क्लीनिक पर जा कर बैठे और मरीजों को देखने लगे. 4 घंटे मरीजों को देखने के बाद दोपहर करीब 2 बजे वह लंच करने घर जाने के लिए  उठे ही थे कि उन के मोबाइल की घंटी बज उठी. उन्होंने मोबाइल के स्क्रीन पर डिस्पले हो रहे नंबर को ध्यान को देखा.

नंबर किसी अपरिचित का था. उन्होंने काल रिसीव नहीं की. फोन कमीज की जेब में रख कर वह घर की ओर बढ़ गए. उन्होंने सोचा कोई परिचित होगा तो दोबारा काल करेगा. क्लीनिक से निकल कर जैसे ही वह घर की तरफ बढे़ तभी दोबारा फोन की घंटी बजने लगी.

डा. रामशरण दास ने कमीज की जेब से फोन निकाल कर देखा तो उस पर डिस्पले हो रहा नंबर पहले वाला ही था. उन्होंने काल रिसीव कर हैलो कहा तो दूसरी ओर से रोबीली सी आवाज आई, ‘‘क्या मैं डा. रामशरण श्रीवास्तव से बात कर रहा हूं?’’

‘‘हां, मैं डा. रामशरण श्रीवास्तव ही बोल रहा हूं.’’ अपना नाम सुन कर वे चौंके. दरअसल, लोग डाक्टर को रामशरण दास के नाम से जानते थे. लेकिन फोन करने वाले ने उन्हें रामशरण श्रीवास्तव कह कर संबोधित किया तो वह चौंके, क्योंकि ये नाम उन के करीबी ही जानते थे. उन्होंने चौंकते हुए पूछा, ‘‘आप कौन बोल रहे हैं?’’

‘‘मैं ट्रांसपोर्ट नगर पुलिस चौकी से चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह बोल रहा हूं.’’ फोन करने वाले ने अपना परिचय दिया.

‘‘जी, बताइए मैं आप की क्या मदद कर सकता हूं.’’ परिचय जानने के बाद डा. रामशरण ने सम्मानपूर्वक सवाल किया.

‘‘डाक्टर साहब, आप शाम को ट्रांसपोर्ट नगर पुलिस चौकी पर आ कर मुझ से मिल लीजिए. ज्योति सिंह नाम की एक महिला ने आप के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है.’’ यह सुन कर डाक्टर दास हतप्रभ रह गए. उन्होंने बुझे मन से पूछा, ‘‘महिला ने मेरे खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है, लेकिन मैं तो ऐसी किसी महिला को नहीं जानता जिसे मुझ से कोई शिकायत हो.’’

‘‘शाम को जब आप चौकी पर आएंगे तो पता चल जाएगा.’’ इतना कह कर दूसरी ओर से फोन काट दिया गया.

एक पल के लिए डा. रामशरण दास को ये बात मजाक लगी. उन्होंने सोचा कि किसी परिचित को उन का मोबाइल नंबर मिल गया  होगा और वह मजाक कर रहा होगा. लेकिन मन ही मन वे परेशान भी थे.

आखिर कौन ऐसी महिला है जिस ने उन के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है. इसी उधेड़बुन में वह घर पहुंचे और जल्दी ही लंच कर के क्लीनिक लौट आए. उन का घर नर्सिंगहोम परिसर में द्वितीय तल पर था.

उन के मन में बारबार फोन करने वाले व्यक्ति की बातें गूंज रही थीं. क्लीनिक आने के बाद वे कुछ देर वहां बैठे और फिर सच्चाई जानने के लिए शाम 6 बजे के करीब ड्राइवर को ले कर कार से ट्रांसपोर्टनगर चौकी जा पहुंचे.

चौकी पहुंच कर उन्होंने पहरे पर तैनात संतरी से चौकी प्रभारी शिवप्रकाश सिंह से मिलने की बात कही. संतरी ने उन्हें चौकी प्रभारी शिवप्रकाश सिंह से मिलवा दिया. खाकी वरदी पहने शिवप्रकाश सिंह रिवाल्विंग चेयर पर बैठे थे. डा. रामशरण दास ने उन्हें अपना परिचय दिया तो उन्होंने डाक्टर दास का गर्मजोशी से स्वागत किया. डाक्टर सामने खाली पड़ी कुरसी पर बैठ गए.

चौकी इंचार्ज का यह एटिट्यूड देख कर डा. रामशरण दास को थोड़ा अजीब महसूस हुआ. फिर भी उन्होंने इसे नजरअंदाज कर दिया था. उन से थोड़ी देर इधरउधर की बात करने के बाद शिव प्रकाश उन्हें ले कर विजिटर रूम में चले गए. कमरे में 2 अलगअलग कुरसियां पड़ी थीं. एक कुरसी पर चौकी इंचार्ज खुद बैठ गए और दूसरी पर डाक्टर दास.

शिवप्रकाश ने एक फाइल से शिकायती पत्र निकाला और डाक्टर की ओर बढ़ा दिया. शिकायती पत्र किसी ज्योति सिंह नाम की युवती ने दिया था. उस में लिखा था कि 6 मार्च, 2019 की शाम को वह डाक्टर दास के क्लीनिक पर गई थी. वह अंतिम मरीज थी और क्लीनिक में सन्नाटा था.

रात हो गई थी. डाक्टर दास ने कहा कि रात में अकेली कैसे जाओगी, मैं तुम्हें घर छोड़ दूंगा. उन्होंने उसे कार में बैठाया और ट्रांसपोर्टनगर स्थित अमरुतानी (अमरुद का बगीचा) ले गए. जहां उन्होंने उस के साथ रेप किया. चीखने पर उन्होंने जान से मारने की धमकी दी. बाद में उसे कुछ रुपए दे कर भगा दिया.

पत्र दिखा कर चौकी इंचार्ज सिंह ने डाक्टर दास से कहा कि यह पत्र स्पीडपोस्ट के जरिए 12 मार्च, 2019 को मिला था, लेकिन चुनावी  व्यस्तता की वजह से वह इस शिकायत की जांच नहीं कर सके.

शिकायती पत्र में महिला द्वारा रेप की बात का जिक्र देख कर डाक्टर दास के दिल की धड़कनें बढ़ गईं. पत्र पढ़ कर उन की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या बोले. उन के चेहरे पर खुद ब खुद परेशानी और डर के मिलेजुले भाव उभर आए.

शिकायती पत्र फाइल में रखते हुए चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह ने डाक्टर दास से कहा, ‘‘रेप के मामलों में बड़ेबड़े बर्बाद हो जाते हैं. इसी शहर के डाक्टर डी.पी. सिंह, विधायक कुलदीप सेंगर या फिर मंत्री गायत्री प्रसाद को देखें, आज तक जेल में सड़ रहे हैं. सोच लो, मैं मदद करने की कोशिश करूंगा.’’

रेप के हश्र की जो तसवीर चौकी इंचार्ज ने डाक्टर दास के सामने पेश की थी, उसे सुन कर वह एक बार फिर पसीना पसीना हो गए. लेकिन उन्हें चौकी इंचार्ज की मदद करने वाली बात खटकी. उस समय डाक्टर दास वापस क्लीनिक लौट आए.

वह अपने क्लीनिक पर लौट तो जरूर आए लेकिन उन का हाल बेहाल था. वे इस सोच में डूबे थे कि उन की किसी ज्योति सिंह से कभी मुलाकात हुई थी या नहीं. आखिर वह उन पर ऐसा घिनौना आरोप क्यों लगा रही है. फिर उन्होंने दूसरे नजरिए से सोचना शुरू कर दिया. यानी कहीं उन्हें फंसाने के लिए उन के विरुद्ध कोई बड़ी साजिश तो नहीं रची जा रही.

उन्होंने जब से शिकायती पत्र पढ़ा था, परेशान होते हुए भी इस बात को किसी से बता नहीं पा रहे थे. वजह यही कि लोग सुन कर उन के बारे में क्या सोचेंगे. बात मीडिया तक पहुंच गई तो उन की इज्जत की धज्जियां उड़ जाएंगी.

काफी सोचविचार के बाद डाक्टर दास को जब कोई रास्ता नहीं सूझा तो उन्होंने इस बारे में अपनी पत्नी को सब कुछ बता दिया. बात सुन कर पत्नी भी परेशान हो गईं. दोनों इस नतीजे पर पहुंचे कि सोचने से कुछ नहीं होगा. इस मुसीबत से निकलने के लिए उन्हें कोई कारगर रास्ता तलाश करना होगा.

उसी रात 10 बजे के करीब उन के मोबाइल पर एक फोन और आया. डिसप्ले नंबर देख कर उन का चेहरा खुशी से खिल उठा. वह नंबर एक परिचित का था, जो शहर के न्यूज चैनल सिटी वन का पत्रकार था. उस का नाम प्रणव त्रिपाठी था. उसे डाक्टर दास बेटे की तरह मानते थे और स्नेह भी करते थे.

डा. रामशरण दास ने काल रिसीव करते हुए कहा, ‘‘कैसे हो बेटा?’’

‘‘फर्स्टक्लास डाक्टर अंकल,’’ उत्तर दे कर प्रणव ने उन से पूछा, ‘‘और आप कैसे हैं अंकल?’’

‘‘क्या बताऊं बेटा, ठीक भी हूं और नहीं भी.’’ डाक्टर दास ने नर्वस हो कर कहा.

‘‘बात क्या है, अंकल. ऐसी बात तो आप ने कभी नहीं की. मेरे लायक सेवा हो बताइए, मैं आप की पूरी मदद करूंगा.’’

‘‘नहीं बेटा, तुम ने मेरे लिए इतना सोचा, यही मेरे लिए काफी है. आज के जमाने में कोई कहां दूसरे के लिए सोचता है. एक बात है, जिस में तुम्हारी मदद की जरूरत है.’’ सकुचाते हुए डाक्टर दास बोेले.

‘‘हां…हां… अंकल बताइए. मैं आप के लिए क्या कर सकता हूं?’’

‘‘तुम तो न्यूज चैनल के रिपोर्टर हो और पुलिस विभाग में तुम्हारी अच्छी पकड़ भी है.’’

‘‘हां, अंकल है, पुलिस अधिकारियों से मेरे अच्छे संबंध हैं. पर बात क्या है?’’

इस के बाद डा. रामशरण दास ने प्रणव त्रिपाठी को पूरी बात बता दी. उन की बात सुन कर उस ने मदद करने की हामी भी भर दी. प्रणव से बात करने के बाद डाक्टर दास को थोड़ी शांति मिली. मन का बोझ कुछ कम हो गया. उस रात उन्होंने आराम की भरपूर नींद ली.

अगली सुबह वह उठे तो खुद को तरोताजा महसूस कर रहे थे. दिन भर वे अपने क्लीनिक में व्यस्त रहे. फिर रात को वे खा पी कर सो गए. रात एक बजे ट्रांसपोर्ट नगर के चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह अकेले ही डा. दास के रामप्रसाद बिस्मिल पार्क स्थित आवास पर पहुंच गए. उस समय डा. दास गहरी नींद में थे.

डाक्टर दास के आवास पर पहुंच कर शिवप्रकाश ने डोरबेल बजाई तो उन की नींद खुल गई. उन्होंने दरवाजा खोला तो चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह को देख कर अवाक रह गए. उन्होंने उसे ड्राइंगरूम में ले जा कर बैठा दिया और खुद कपड़े चेंज कर के उस के पास जा बैठे.

करीब 2 घंटे तक शिवप्रकाश सिंह वहीं बैठा रहा और रेप के शिकायत वाले लेटर को मुद्दा बना कर उन से पूछताछ करता रहा. बाद में उस ने कहा, ‘‘देखो डाक्टर, शिकायत करने वाली लड़की ज्योति और मुझे 5-5 लाख रुपए दे दो, वरना जेल भेज दूंगा. उस के बाद क्या होगा तुम समझना.’’

चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह की बात और आवाज में बदतमीजी और रुआब आ गया था. उस की धमकी सुन कर डाक्टर दास बुरी तरह परेशान हो गए. कोई रास्ता न देख उन्होंने शिवप्रकाश से अगले दिन दोपहर तक का समय मांग लिया.

चौकी इंचार्ज के वहां से जाने के बाद डाक्टर दास ने थोड़ी राहत की सांस ली. वह समझ गए कि ये पूरी साजिश पैसों के लिए रची गई है. इस खेल में उन का कोई परिचित भी है, जो उन से संबंधित पूरी जानकारी चौकी इंचार्ज को दे रहा है. ऐसा कौन है यह बात उन की समझ में नहीं आ रही थी. यह बीती 17 मई की बात है.

खैर, अगले दिन 18 मई, 2019 की दोपहर चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह डाक्टर रामशरण दास के क्लीनिक पर पहुंच गए. उस समय डाक्टर दास मरीजों की जांच करने में व्यस्त थे. क्लीनिक पहुंचते ही शिवप्रकाश सिंह ने कंपाउंडर से अपने आने की सूचना उन्हें भेजवा दी.

चौकी इंचार्ज के आने की सूचना मिलते ही डाक्टर साहब परेशान हो गए. वे समझ गए कि बिना पैसे लिए उस से पीछा छूटने वाला नहीं है. उन्होंने सफेद रंग के बैग में 2 हजार और 5 सौ रुपए के नोटों के बंडल बना कर 8 लाख रुपए जमा कर लिए थे. उन्होंने कंपाउंडर से कह कर चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह को अपने चैंबर मे बुलवा लिया.

कंपाउंडर की सूचना मिलते ही शिवप्रकाश डा. दास के चैंबर में जा पहुंचा. चैंबर में डा. दास अकेले थे. शिवप्रकाश को देखते ही उन का खून खौल उठा, लेकिन वे अपने गुस्से को पी गए. वे उसे एक पल के लिए भी बरदास्त नहीं करना चाहते थे. इसलिए उन्होंने रुपए से भरा बैग उसे दे दिया.

रुपए मिलते ही चौकी इंचार्ज के चेहरे पर एक अजीब सी चमक आ गई. जैसे ही रुपए से भरा बैग ले कर चौकी इंचार्ज क्लीनिक से जाने लगा, वैसे ही डा. दास ने चौकी इंचार्ज के सामने उस महिला से मिलने की अपनी इच्छा जाहिर कर दी, जिस ने उन पर दुष्कर्म का आरोप लगाया था. रामशरण दास की बात सुन कर चौकी इंचार्ज शिवप्रसाद नहीं कुछ बोला और वहां से रुपयों से भरा बैग ले कर चला गया.

शिवप्रकाश सिंह के क्लीनिक से जाने के बाद रामशरण दास पत्नी को साथ ले कर सीधे इंडियन मैडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डा. एस.पी. गुप्ता के घर जा पहुंचे और अपने साथ हुई शरमनाक घटना के बारे में उन्हें विस्तार से बता कर उन से मदद की मांग की.

बात काफी गंभीर थी. आईएमए के अध्यक्ष डा. एस.पी. गुप्ता ने सचिव राजेश गुप्ता को तुरंत अपने आवास पर बुलाया. साथ ही संगठन के सभी पदाधिकारियों को भी बुलवा लिया. आईएमए के पदाधिकारी डाक्टर दास को ले कर एसएसपी के औफिस गए. चूंकि उस दिन चुनाव था, इसलिए डाक्टर सुनील गुप्ता की एसएसपी से मुलाकात नहीं हो पाई.

डा. दास को ले कर सभी पदाधिकारी शिकायत करने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पीआरओ द्वारिका तिवारी से मिलने गोरखनाथ मंदिर जा पहुंचे. इन लोगों ने पीआरओ द्वारिका प्रसाद से मुलाकात कर के उन्हें लिखित शिकायत दे दी.

पीआरओ तिवारी ने उसी समय यह बात मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बता दी. डा. दास के साथ हुई ठगी से मुख्यमंत्री बुरी तरह आहत हुए. उन्होंने उसी समय हौट लाइन पर गोरखपुर (जोन) के पुलिस महानिरीक्षक जयनारायण सिंह से बात की और इस घटना की पूरी जानकारी दी. साथ ही घटना की जांच कर के 2 दिनों के अंदर रिपोर्ट देने का आदेश दिया.

मुख्यमंत्री  योगी आदित्यनाथ की फटकार से आईजी आहत हुए. चूंकि एक तो मामला उन के ही विभाग से जुड़ा हुआ था, दूसरे ठगी का आरोप विभाग के एक एसआई पर लगाया जा रहा था, इसलिए उन्होंने इस मामले की जांच एएसपी रोहन प्रमोद बोत्रे को सौंप दी. उन्होंने बोत्रे को 24 घंटे में रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया. यह बात 19 मई, 2019 की है.

एएसपी रोहन बोत्रे ने जांच शुरू की तो मामला सच पाया गया. डा. रामशरण दास के यहां लगे सीसीटीवी कैमरे के रिकौर्ड में एसआई शिवप्रकाश सिंह के वहां आने और जाने के फुटेज मौजूद थी. उन्होंने ज्योति सिंह द्वारा दिए गए आवेदन की जांच की तो काफी बड़ा झोल सामने आया, जिसे जान कर एएसपी बोत्रे के पैरों तले से जमीन खिसक गई.

जिस ज्योति सिंह नाम की युवती द्वारा डा. रामशरण दास पर अमरुतानी (अमरूद का बगीचा) में ले जा कर जबरन दुष्कर्म करने और जान से मारने की धमकी देने का आरोप लगाया गया था, दरअसल, वह एसआई शिवप्रकाश सिंह के दिमाग की महज एक कोरी कल्पना थी. हकीकत में ज्योति सिंह नाम की कोई युवती थी ही नहीं.

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                       आरोपी पत्रकार प्रणव और एसआई शिवप्रकाश सिंह 

ठगी कर के पैसा कमाने के लिए शिवप्रसाद सिंह ने इस चरित्र को जोड़ कर एक झूठी कहानी बनाई थी. वह इस खेल में अकेला नहीं था. उस के साथ एक और बड़ा खिलाड़ी शामिल था, जो फिल्म ‘मोहरा’ में नसीरुद्दीन शाह के पात्र की तरह परदे के पीछे छिप कर खेल खेल रहा था, ताकि उस का चेहरा बेनकाब न हो सके.

वह कोई और नहीं बल्कि डा. रामशरण दास का बेहद करीबी और न्यूज चैनल सिटी वन का तथाकथित रिपोर्टर प्रणव त्रिपाठी था. डा. दास को जब इस हकीकत का पता लगा तो उन्हें अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ.

इस मामले की पटकथा प्रणव त्रिपाठी के शैतानी दिमाग की उपज और एसआई शिवप्रकाश सिंह की खाकी वरदी के मेलजोल से लिखी गई थी. एएसपी बोत्रे की जांच में पूरी हकीकत सामने आ गई.

एएसपी रोहन प्रमोद बोत्रे ने डाक्टर रामशरण दास के साथ हुई ठगी का परदाफाश 24 घंटे में कर दिया. जांच में डाक्टर दास के दिए गए 2 हजार और 5 सौ रुपए के नोटों में से प्रणव त्रिपाठी और शिवप्रकाश ने महज 2000 रुपए ही खर्च किए थे. बाकी के 7 लाख 98 हजार रुपए बरामद कर लिए गए.

राजघाट पुलिस ने एसआई शिव प्रकाश सिंह और तथाकथित पत्रकार प्रणव त्रिपाठी के खिलाफ भादंवि की धारा 388, 689, 120बी, 506, 419, 420, 468, 471 के तहत केस दर्ज कर के दोनों को गिरफ्तार कर लिया. उन्हें अदालत के सामने पेश किया गया. अदालत ने कागजी काररवाई कर के दोनों आरोपियों को जेल भेजने का आदेश दिया.

खाकी वर्दी के गुरूर में चूर और मीडिया के ग्लैमर की शान में डूबे दोनों आरोपियों ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन ऐसा भी आएगा, जब वे खुद कहानी बन कर रह जाएंगे. एएसपी रोहन प्रमोद बोत्रे की पूछताछ में दोनों आरोपियों ने अपना जुर्म कबूलते हुए जो कहानी बताई. वह कुछ इस तरह थी.

30 वर्षीय शिवप्रकाश सिंह मूलरूप से वाराणसी के सारनाथ का रहने वाला था. उस के पिता वाराणसी में पुलिस विभाग में तैनात थे. वे ईमानदार इंसान थे. कुछ साल पहले उन का आकस्मिक निधन हो गया था.

शिवप्रकाश सिंह उन का बड़ा बेटा था. आश्रित कोटे में पिता की जगह पर शिवप्रकाश सिंह की नियुक्ति हो गई. नियुक्ति के पश्चात सन 2011 में उस की ट्रेनिंग हुई और फिर गोरखपुर में तैनाती मिल गई.

शिवप्रकाश सिंह अपने पिता के आचरण के विपरीत आचरण वाला युवक था. उस की नजर में पुलिस विभाग महज रुपए उगाने की फैक्ट्री मात्र था. वाराणसी से टे्रेनिंग से ले कर जब अपने गोरखपुर जौइन किया तो उस की पहली तैनाती राजघाट थाने की ट्रांसपोर्टनगर चौकी पर हुई.

यह चौकी ठीक राष्ट्रीय राजमार्ग और पौश कालोनी के बीचोबीच थी. इस चौकी पर तैनाती के लिए एसआई रैंक के अफसर मोटी रकम घूस देने के लिए तैयार रहते थे. जब से शिवप्रकाश की तैनाती हुई थी, तभी से उस ने ट्रक चालकों और व्यापारियों से वसूली करना शुरू कर दिया था. लेकिन वह इस छोटीमोटी ऊपरी कमाई से खुश नहीं था. उसे किसी ऐसे आसामी की तलाश थी, जिसे एक बार हलाल कर के मोटी रकम मिल सके.

शिवप्रकाश सिंह की करतूतों की शिकायतें बड़े अधिकारियों तक भी गईं. लेकिन वह अपनी चिकनीचुपड़ी बातों और व्यवहार से अधिकारियों को ऐसे झांसे में लेता था कि उस का बाल तक बांका नहीं हो पाता था. इस से उस की हिम्मत बढ़ गई थी.

चौकी इंचार्ज शिव प्रकाश सिंह की दोस्ती न्यूज चैनल सिटी वन के तथाकथित पत्रकार प्रणव त्रिपाठी से थी. दोनों में अच्छी पटती थी. प्रणव कैंट इलाके के अलहलादपुर मोहल्ले का रहने वाला था. मध्यमवर्गीय परिवार का प्रणव बेहद चालाक और शातिर दिमाग था.

चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह प्रणव त्रिपाठी की इस अदा का कायल था. दोस्ती होने की वजह से दोनों का साथसाथ उठनाबैठना था. बात इसी साल के फरवरी महीने की है. एक दिन दोनों ट्रांसपोर्टनगर चौकी में बैठे थे. शाम का वक्त था.

शिवप्रकाश और प्रणव दोनों चाय की चुस्की ले रहे थे. तभी बातोंबातों में चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश ने प्रणव से कहा, ‘‘यार, किसी मोटे आसामी का इंतजाम क्यों नहीं करते, जिस से एक ही झटके में लाखों का वारान्यारा हो जाए.’’

प्रणव ने मुसकराते हुए जवाब दिया, ‘‘है एक मोटा आसामी मेरी नजर में.’’

‘‘कौन है?’’ शिवप्रकाश ने पूछा, ‘‘बताओ मेरी हथेलियों में खुजली हो रही है.’’

‘‘इसी शहर का जानामाना मानसिक रोग विशेषज्ञ डा. रामशरण श्रीवास्तव.’’

‘‘वाकई आदमी तो सही चुना है, एक ही बार में मोटी रकम मिल सकती है.’’

इस के बाद चौकी इंचार्ज शिव प्रकाश सिंह डा. रामशरण श्रीवास्तव को अपने चंगुल में फांसने के लिए ऐसी युक्ति सोचने लगा जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

काफी सोचने के बाद उस ने एक जबरदस्त योजना बनाई. योजना बनाने के बाद शिवप्रकाश ने दोस्त और तथाकथित पत्रकार प्रणव को चौकी पर बुलाया और उसे योजना के बारे में बता दिया. योजना सुन वह भी चकित हुए बिना नहीं रह सका.

चौकी इंचार्ज शिवप्रकाश सिंह की योजना सुन कर प्रणव त्रिपाठी ने कहा कि वह इस के सफल होने तक बीच में कभी सामने नहीं आएगा. वह परदे के पीछे रह कर डाक्टर की सारी गोपनीय सूचनाएं देता रहेगा.

इस पर शिव प्रकाश राजी हो गया. योजना के मुताबिक, 6 मार्च, 2019 को एक काल्पनिक किरदार ज्योति सिंह द्वारा डा. रामशरण श्रीवास्तव के विरुद्ध दुष्कर्म का शिकायती पत्र लिखा गया.

डा. रामशरण श्रीवास्तव उर्फ रामशरण दास को प्रणव त्रिपाठी कैसे जानता था, जरा इस पहलू भी पर गौर करें. तकरीबन 4 साल पहले डा. रामशरण दास का एक परिचित प्रणव को नौकरी दिलाने के लिए उन के क्लीनिक पर लाया था.

उस के आग्रह पर डाक्टर दास ने प्रणव को अपने यहां नौकरी पर रख लिया. उस ने थोड़े ही दिनों में अपने अच्छे व्यवहार से डाक्टर दास का दिल और भरोसा जीत लिया. डाक्टर दास उस पर आंख मूंद कर विश्वास करने लगे.

प्रणव त्रिपाठी क्लीनिक के साथसाथ डाक्टर दास का कोर्टकचहरी का काम भी देखता था. लिखनेपढ़ने का शौकीन प्रणव उसी दौरान मझोले किस्म के दैनिक और साप्ताहिक समाचार पत्रों में खबरें लिखने लगा.

दिमाग से तेजतर्रार प्रणव ने उन्हीं खबरों को आधार बना कर पुलिस विभाग में अपनी पैठ बनानी शुरू कर दी थी. उस की इस कला को देख कर डाक्टर दास उस से खुश रहते थे. धीरेधीरे वे उसे अपने मुंह बोले बेटे की तरह मानने लगे थे.

इसी बीच प्रणव को ड्रग लेने का चस्का लग गया. जब उसे ड्रग नहीं मिलता था तो वह बीमार पड़ जाता था. तकरीबन एक महीने तक डाक्टर दास ने उस का इलाज किया.

इस के बाद डाक्टर दास ने उसे नौकरी से हटा दिया. फिर वह जुगाड़ लगा कर न्यूज चैनल सिटी वन से जुड़ गया था और खबर देने लगा था. इस चैनल की आड़ में वह अपना उल्लू भी सीधा करता था.

व्यापारियों से उसे जेब खर्च की मोटी रकम मिल जाती थी. डाक्टर दास के यहां से नौकरी से निकाले जाने के बाद भी उस ने उन से संबंध नहीं तोड़ा था. वह बराबर उन के संपर्क में बना रहता था.

बहरहाल, योजना बनाने के बाद इसे अमल में लाने की प्रक्रिया शुरू कर दी. लेकिन शिवप्रकाश यहीं पर एक बड़ी गलती कर बैठा. तथाकथित ज्योति का जो शिकायती पत्र थाने भेजा जाना चाहिए था, वह उस ने स्पीड पोस्ट से पुलिस चौकी के पते पर पोस्ट कर दिया था. यह गलती उसे भारी पड़ गई.

इस चक्रव्यूह में फंसे डाक्टर दास ने 3 लाख एक करीबी मित्र से ले कर शिवप्रकाश को 8 लाख रुपए दिए थे. इतने से भी शिवप्रकाश और प्रणव का लालच कम नहीं हुआ और डा. दास से 2 लाख रुपए और मांगने लगे. ये लोग डा. दास से 2 लाख रुपए की उगाही कर पाते, इस से पहले ही साजिश का भंडाफोड़ हो गया.

उस्तादों के उस्ताद : अजीबोगरीब चोरी का राज

7 मार्च 2019 की बात है. राजस्थान के सीकर जिले के नीमकाथाना शहर के पुलिस थाने में नागौर जिले के शेरानी आबाद के रहने वाले सुलतान खां ने एक रिपोर्ट दर्ज कराई. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि वह अपने भाई इरफान के साथ दिल्ली एयरपोर्ट से सऊदी अरब से आए अपने परिचित इरफान और वली मोहम्मद को ले कर अपनी स्कौर्पियो गाड़ी से नागौर जिले के डीडवाना शहर जा रहा था.

शाम करीब 4 बजे नीमकाथाना बाईपास पर बने रेलवे अंडरपास के नीचे उन की स्कौर्पियो गाड़ी के आगे एक कैंपर गाड़ी और पीछे स्विफ्ट कार आ कर रुकीं. दोनों कारों से उतरे लोगों ने हमारी कार रोक ली और हथियार दिखा कर हमें गाड़ी से उतार दिया.

दोनों गाडि़यों से आए बदमाशों ने हम से 30 हजार रुपए नकद, कपड़े, प्रैस, थर्मस, स्पीकर और काजूबादाम वगैरह लूट लिए. इस के बाद बदमाश अपनी कैंपर कार में मेरे भाई इरफान का अपहरण कर ले गए. साथ ही हमें सड़क पर छोड़ कर हमारी स्कौर्पियो भी ले भागे.

पुलिस ने सुलतान खां की रिपोर्ट दर्ज कर ली. हालांकि रिपोर्ट में ऐसी कोई बड़ी बात नहीं थी. कोई बड़ी लूटपाट भी नहीं हुई थी, लेकिन अपहरण का मामला गंभीर था. पुलिस ने तुरंत काररवाई करते हुए इलाके में चारों तरफ नाकेबंदी करवा दी. पुलिस ने अपहृत इरफान की तलाश शुरू की, तो रात को सीकर जिले में ही हांसनाला मंदिर के पास इरफान और लूटी गई स्कौर्पियो गाड़ी मिल गई.

स्कौर्पियो गाड़ी में इरफान और वली मोहम्मद से लूटी गई रकम, प्रैस, स्पीकर और थर्मस आदि सामान नहीं मिले. फिर भी लूटी गई गाड़ी और अपहृत युवक के मिल जाने से पुलिस ने राहत की सांस ली. बदमाशों ने इरफान को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया था. न तो उस से कोई मारपीट की गई थी और न कोई धमकी वगैरह दी गई थी.

हालांकि लूटी गई रकम और अन्य सामान बहुत ज्यादा नहीं था, फिर भी यह गंभीर बात थी कि दिनदहाड़े लूट हुई थी. अगर पुलिस साधारण मामला समझ कर कोई काररवाई नहीं करती, तो हो सकता था भविष्य में कोई बड़ी वारदात हो जाती. नीमकाथाना के थाना प्रभारी राजेंद्र यादव ने इसी बात को ध्यान में रखते हुए लूटपाट की जांच शुरू की.

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पुलिस ने जांच शुरू की, तो पता चला लूटपाट करने वाले बदमाशों की दोनों गाडि़यां सुलतान और उस के साथियों की स्कौर्पियो का पीछा करती हुई नीमकाथाना तक आई थीं. सवाल यह था कि सुलतान की स्कौर्पियो का पीछा कहां से किया गया था.

थानाप्रभारी राजेंद्र यादव के दिमाग में एक सवाल बारबार कौंध रहा था कि 2 गाडि़यों में सवार बदमाश केवल 30 हजार रुपए, कपड़े, प्रैस व स्पीकर जैसे छोटेमोटे सामान के लिए दिनदहाड़े लूट की वारदात को क्यों अंजाम देंगे? या तो बदमाशों को सुलतान और उस के साथियों के पास मोटी रकम होने की सूचना थी, जिस की वजह से उन्होंने लूटपाट की.

दूसरी बात यह थी कि अगर बदमाशों का मकसद इरफान का अपहरण ही था, तो वे उसे छोड़ क्यों गए? बदमाशों ने इरफान को कोई नुकसान भी नहीं पहुंचाया था. ये सवाल थानाप्रभारी को बारबार परेशान कर रहे थे.

समझ से परे थी लूट की वारदात

इन सवालों का सही जवाब या तो बदमाशों के पकड़े जाने पर मिल सकता था या फिर इस बारे में पीडि़त ही कुछ बता सकते थे. इसलिए थानाप्रभारी ने रिपोर्ट दर्ज कराने वाले सुलतान खां और उस के साथी इरफान खां से पूछताछ की. लेकिन उन से ऐसी कोई बात पता नहीं चली जिस से बदमाशों और उन के असल मकसद का पता चल सकता.

सुलतान और इरफान ने लूटपाट करने वाले बदमाशों के बारे में कोई भी जानकारी होने से साफ इनकार कर दिया. उन्होंने सीधे तौर पर किसी पर शक भी जाहिर नहीं किया. ऐसी स्थिति में लूटपाट करने वाले बदमाशों को तलाशना पुलिस के लिए चुनौती से कम नहीं था.

नीमकाथाना के थानाप्रभारी राजेंद्र यादव ने सीकर के एसपी डा. अमनदीप सिंह कपूर के सामने हाजिर हो कर अपने दिमाग में उठ रहे सारे सवाल बताए. एसपी साहब भी थानाप्रभारी की बातों से सहमत थे. उन्होंने थानाप्रभारी से इस मामले की फाइल ले कर एफआईआर और इस के बाद की पुलिस की काररवाई पर सरसरी नजर दौड़ाई. उन्हें लगा कि राजेंद्र यादव की बातों में दम है.

एसपी ने थानाप्रभारी से पूछा, ‘‘राजेंद्र, तुम इस केस को कैसे सौल्व करना चाहते हो?’’

‘‘सर, यह केस सौल्व तो तभी होगा जब बदमाश पकड़े जाएंगे.’’ थानाप्रभारी ने एसपी साहब से कहा, ‘‘सर, सब से पहले हमें यह पता लगाना होगा कि सुलतान और उस के साथियों की स्कौर्पियो गाड़ी का पीछा कहां से शुरू किया गया था.’’

अपनी बात जारी रखते हुए थानाप्रभारी ने एसपी साहब से कहा, ‘‘सर, इस के लिए हमें दिल्ली एयरपोर्ट तक जाना पड़ेगा. इस के साथ हमें दिल्ली से नीमकाथाना तक रास्ते में जहांजहां भी सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, वहां पर 7 मार्च की दोपहर की फुटेज देखनी पड़ेगी. इसी से हमे बदमाशों का सुराग मिल सकता है.’’

‘‘राजेंद्र, तुम्हारा आइडिया अच्छा है.’’ एसपी डा. अमनदीप सिंह कपूर ने थानाप्रभारी की हौसलाअफजाई करते हुए कहा, ‘‘तुम जल्दी से जल्दी यह काम पूरा करो. उम्मीद है तुम्हें कामयाबी जरूर मिलेगी.’’

‘‘थैंक यू सर.’’ थानाप्रभारी राजेंद्र यादव ने एसपी साहब को सैल्यूट किया और वहां से निकल गए.

थानाप्रभारी ने नीमकाथाना पहुंचते ही दिल्ली जाने की तैयारी शुरू कर दी. कुछ देर बाद वे अपने 2 मातहतों को ले कर गाड़ी से दिल्ली के लिए रवाना हो गए.

मिली एक बड़ी सफलता

दिल्ली के इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पहुंच कर उन्होंने एयरपोर्ट के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरों की 7 मार्च की फुटेज निकलवा कर देखी. इस में सुलतान खां और उस के साथियों की स्कौर्पियो के पीछे एक ब्रेजा गाड़ी नजर आई.

इस के बाद पुलिस ने दिल्ली से नीमकाथाना तक के रास्ते में टोल नाके और अन्य जगहों पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवा कर देखी. इन में भी वह ब्रेजा गाड़ी इरफान व वली मोहम्मद की स्कौर्पियो के पीछे पीछे आती हुई नजर आई.

इस ब्रेजा गाड़ी के नंबर के आधार पर पुलिस ने नागौर जिले के लाडनूं थाना इलाके के तितरी गांव के रहने वाले चैन सिंह राजपूत को पकड़ा. चैन सिंह से पूछताछ की गई, तो सुलतान खान के साथियों से की गई लूट की वारदात की गुत्थी सुलझ गई. लेकिन उस ने जो कुछ बताया, उसे सुन कर पुलिस भी हैरान रह गई.

थानाप्रभारी राजेंद्र यादव ने एसपी साहब को सारी बातें बताई. एसपी साहब ने राजेंद्र को शाबासी देते हुए चैन सिंह के बताए बाकी अपराधियों को पकड़ने और माल बरामद करने के निर्देश दिए. साथ ही जिले के कुछ अन्य पुलिस अफसरों को सदर थानाप्रभारी के साथ सहयोग करने के लिए लगा दिया.

पुलिस टीमों ने भागदौड़ कर नागौर जिले के डीडवाना थाना इलाके के कोलिया गांव के रहने वाले इकबाल उर्फ भाणू खां, सीकर जिले के रानोली के रहने वाले विजय कुमार उर्फ बिज्जू भाट, नीम का थाना सदर थाना इलाके के चला गांव निवासी बलराम मील और ढाणी खुड़ालिया तन डहरा जोहड़ी गुहाला के रहने वाले जवान सिंह उर्फ रामस्वरूप जाट को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने गिरफ्तार पांचों आरोपियों की निशानदेही पर डेढ़ करोड़ रुपए की कीमत का 4 किलो 300 ग्राम सोना, वारदात में इस्तेमाल की गईं 3 गाडि़यां ब्रेजा, कैंपर और स्विफ्ट के अलावा 315 बोर का एक कट्टा बरामद किया.

सिर्फ  30 हजार रुपए की लूट का करोड़ों रुपए की लूट में खुलासा होने पर जयपुर रेंज के आईजी एस. सेंगाथिर भी सीकर आ गए. उन्होंने आरोपियों से पूछताछ की और एसपी डा. अमनदीप सिंह कपूर और अन्य मातहत अधिकारियों को बधाई दी.

आरोपियों से पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह सोने के तस्करों की आपसी रंजिश की कहानी है. उस्तादों के उस्ताद बनने की यह कहानी सरकारी सिस्टम को भी अंगूठा दिखाती है कि किस तरह विदेशों से तस्करी कर सोना भारत में लाया जा रहा है. इस के अलावा विदेशों में बैठे तस्कर ही अपने सहयोगियों से सोने की लूट भी करवा रहे हैं.

यह बात किसी से छिपी नहीं है कि विदेशों से रोजाना चोरी छिपे बड़ी मात्रा में सोना भारत लाया जाता है. विदेशों से अधिकांश सोना हवाई मार्ग से ही आता है. तस्करी से जुड़े लोग सोना लाने और कस्टम से बचने के नएनए तरीके अपनाते हैं. कुछ तस्करों की एयरपोर्ट पर सुरक्षा अधिकारियों या एयरलाइंस के कर्मचारियों से मिलीभगत भी होती है. इस से वे सुरक्षित बाहर निकल आते हैं.

राजस्थान में भी सोने की तस्करी करने वाले कई गिरोह सक्रिय हैं. इन गिरोहों के लोग दिल्ली या जयपुर एयरपोर्ट पर सोना ले कर आते हैं. इन में कभीकभी कुछ लोग पकड़े भी जाते हैं, जबकि अधिकांश तस्कर सुरक्षा व्यवस्थाओं को धता बता कर सोना लाने में सफल हो जाते हैं.

सोने की ऐसे होती है तस्करी

सीकर, चूरू व झुंझुनूं जिले के शेखावटी इलाके के करीब 5 लाख लोग खाड़ी देशों में काम करते हैं. इन में अधिकतर कामगार हैं, जो भवन निर्माण कार्यों से जुड़े हैं. कोई आरसीसी लेंटर डालने का काम करता है, तो कोई टाइल्स लगाने का काम. ये लोग साल छह महीने में एक बार अपने घर आते रहते हैं.

खाड़ी देशों में सक्रिय सोने के तस्कर शेखावटी के इन लोगों को लालच दे कर अपने कैरियर के रूप में इस्तेमाल करते हैं. बदले में इन कैरियर को हवाई टिकट का पैसा और कुछ खर्चा दे दिया जाता है. एयरपोर्ट से बाहर निकलने पर तस्कर गिरोह के लोग इन कैरियरों से सोना ले लेते हैं. एयरपोर्ट पर पकड़े जाने पर कैरियर अगर फंस जाता है, तो बाहर बैठे तस्कर गिरोह के सदस्य अपनी कोशिशें करते हैं. कोशिश कामयाब हो जाती है तो ठीक, वरना ये लोग उस कैरियर से पल्ला झाड़ लेते हैं.

नागौर जिले के खुनखुना थाना इलाके के शेरानी आबाद के रहने वाले शेर मोहम्मद और लाल मोहम्मद सऊदी अरब से कैरियर के माध्यम से तस्करी का सोना मंगवाते हैं. इन में लाल मोहम्मद अब सऊदी अरब में रहता है. जबकि शेर मोहम्मद और लाल मोहम्मद में आजकल रंजिश चल रही है.

रंजिश का कारण यह है कि करीब डेढ़ साल पहले लाल मोहम्मद की ओर से सऊदी अरब से मंगाए गए सोने की लूट हो गई थी. लाल मोहम्मद को इस लूट में शेर मोहम्मद का हाथ होने का शक था. इस के बाद लाल मोहम्मद के साथ एक बार फिर धोखा हो गया. लाल मोहम्मद के लिए सऊदी अरब से तस्करी का सोना ले कर आया एक कैरियर दिल्ली से निर्धारित गाड़ी में न आ कर दूसरी गाड़ी में बैठ कर चला गया था.

बाद में लाल मोहम्मद ने उस का अपहरण कर अपना सोना वसूल किया था. इस मामले में नागौर जिले के खुनखुना थाने में मुकदमा दर्ज हुआ था. इस में पुलिस ने लाल मोहम्मद, चैन सिंह, मोहम्मद अली, अली मोहम्मद, अब्दुल हकीम आदि के खिलाफ चालान पेश किया था.

आजकल सऊदी अरब में रह कर भी लाल मोहम्मद अपने विरोधी शेर मोहम्मद की गतिविधियों की सारी जानकारियां रखता था. चूरू जिले के बीदासर गांव का रहने वाला वली मोहम्मद 3 साल से सऊदी अरब में रह रहा था. वह वहां आरसीसी लेंटर डालने का काम करता था. बीदासर गांव का ही रहने वाला इरफान करीब 9 महीने से सऊदी अरब में रह कर टाइल्स लगाने का काम करता था.

तस्कर देते हैं लालच

वली मोहम्मद और इरफान भारत में अपने घर आना चाहते थे. सोने के तस्कर शेर मोहम्मद को यह बात पता चली, तो उस ने सऊदी अरब में सक्रिय अपने लोगों के माध्यम से इन दोनों को सोना लाने के लिए राजी कर लिया. उस ने दोनों को सऊदी अरब से दिल्ली तक का हवाई जहाज का फ्री टिकट और दिल्ली से गांव तक जाने के लिए टैक्सी कराने का वादा किया था.

दूसरी तरफ सऊदी अरब में रह रहे शेर मोहम्मद के विरोधी लाल मोहम्मद को यह बात पता चल गई कि बीदासर के इरफान और वली मोहम्मद नाम के 2 युवक शेर मोहम्मद के लिए सोना ले जाएंगे. इस पर लाल मोहम्मद ने योजना बना कर इन दोनों से संपर्क कर उन्हें लालच दिया और अपनी योजना में शामिल कर लिया.

सऊदी अरब में तस्करी के लिए सोने को पिघला कर अलगअलग रूपों में ढाल दिया जाता है. फिर उस सोने को पारे की परत चढ़ा कर ऐसा रंग दे दिया जाता है कि वह एल्युमीनियम नजर आता है. इस एल्युमीनियम रूपी सोने को इलैक्ट्रौनिक सामान का पार्ट बना दिया जाता है. इस तरह इलैक्ट्रौनिक उपकरण के रूप में तस्करी का सोना भारत आता है.

निश्चित दिन सऊदी अरब में शेर मोहम्मद के लोगों ने बीदासर के इरफान और वली मोहम्मद को भारत ले जाने के लिए 7 स्पीकर और एक प्रैस में छिपा कर 5 किलो सोना सौंप दिया. इस के बाद शेर मोहम्मद के लोग इन दोनों से मोबाइल के माध्यम से लगातार संपर्क में रहे. वहीं, लाल मोहम्मद भी इरफान और वली मोहम्मद से संपर्क बनाए हुआ था. इन से लाल मोहम्मद को पता चल गया था कि वे किस दिन कौन सी फ्लाइट से दिल्ली पहुंचेंगे.

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स्पीकर में पारे से एल्युमीनियम के रंग में रंगी सोने की प्लेटों को चिपकाया गया था जबकि इलैक्ट्रिक प्रैस में सोने की प्लेट को सिल्वर रंग दे कर नट से कस दिया गया था. इरफान और वली मोहम्मद हवाई जहाज से दिल्ली एयरपोर्ट पर उतर कर बाहर आ गए. कहा जाता है कि सोने के तस्कर शेर मोहम्मद की दिल्ली एयरपोर्ट पर कस्टम व सुरक्षा अधिकारियों से मिलीभगत थी, इसलिए इरफान और वली मोहम्मद को न तो किसी ने रोका और ना ही उन के सामान की जांच की.

सऊदी अरब से सोना ले कर आ रहे इरफान और वली मोहम्मद को दिल्ली से लाने के लिए शेर मोहम्मद ने सुलतान खां और उस के भाई इरफान को स्कौर्पियो गाड़ी ले कर भेजा.

लूटने की बना ली योजना

दूसरी तरफ लाल मोहम्मद ने सऊदी अरब से ईमो कालिंग के जरिए अपने ड्राइवर नागौर जिले के लाडनूं के तितरी निवासी चैन सिंह राजपूत को सोना ले कर आ रहे इरफान और वली मोहम्मद से माल लूटने को कहा.

उस ने चैन सिंह को इरफान और वली मोहम्मद की फोटो सहित फ्लाइट नंबर वगैरह की सारी जानकारी दे दी. इस पर चैन सिंह ने अपने परिचित बदमाशों इकबाल, विजय कुमार उर्फ बिज्जू, जवान सिंह उर्फ रामस्वरूप, बलराम और 3 अन्य लोगों को साथ ले कर सोना लूटने की योजना बनाई.

योजना के मुताबिक चैन सिंह और उस का एक साथी नरेंद्र सिंह ब्रेजा गाड़ी ले कर 7 मार्च को फ्लाइट आने के समय से काफी पहले ही दिल्ली एयरपोर्ट पहुंच गए. उन्होंने फ्लाइट आने के बाद एयरपोर्ट से बाहर निकल रहे यात्रियों में फोटो के आधार पर इरफान और वली मोहम्मद को पहचान लिया. चैन सिंह व उस का साथी नरेंद्र उन पर नजर रखते रहे.

इरफान और वली मोहम्मद जब सुलतान खां व उस के भाई इरफान के साथ उन की स्कौर्पियो में बैठ गए, तो चैन सिंह व उस का साथी अपनी ब्रेजा गाड़ी से उन के पीछे पीछे चलते रहे. बीच बीच में ये लोग अपने साथियों को सूचना भी देते रहे.

दिल्ली से जयपुर वाले नैशनल हाइवे नंबर 8 पर गुड़गांव, धारूहेड़ा, शाहजहांपुर, नीमराना, बहरोड़ हो कर ये लोग कोटपुतली पहुंच गए. कोटपुतली से नीमकाथाना जाने के लिए हाइवे से अलग रास्ता है. नीमकाथाना में बाइपास पर चैन सिंह के बाकी साथी एक कैंपर और एक स्विफ्ट कार में सोना ला रहे इरफान और वली मोहम्मद की स्कौर्पियो गाड़ी का इंतजार कर रहे थे.

दोनों कैरियरों के साथ सुलतान और उस के भाई की स्कौर्पियो गाड़ी जब नीमकाथाना में रेलवे अंडरपास पर पहुंची, तो चैन सिंह के साथियों ने अपनी दोनों गाडि़यां उन की स्कौर्पियो के आगे पीछे लगा कर सुलतान, उस  के भाई इरफान और दोनों कैरियर वली मोहम्मद व इरफान को गाड़ी से नीचे उतार लिया.

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                                  वली मोहम्मद व इरफान

बदमाशों ने इन चारों को अपनी कैंपर गाड़ी में बैठा लिया. इन लोगों ने सुलतान की स्कौर्पियो अपने कब्जे में ले ली. रेलवे अंडरपास से ऊपर चढ़ाई पर सुलतान और उस का भाई इरफान बदमाशों से संघर्ष करने लगे, लेकिन दोनों कैरियर चुपचाप बैठे रहे. इस दौरान बदमाशों की गाड़ी की गति धीमी हो गई, तो दोनों कैरियर इरफान व वली मोहम्मद कूद कर भाग निकले. मौका मिलने पर सुलतान भी किसी तरह बच कर भाग निकला.

बदमाशों ने गाड़ी रोक कर उन्हें पकड़ने का प्रयास किया, लेकिन शहर के बीच और दिन का समय होने के कारण उन्हें फंसने का डर हुआ. इस पर वे सुलतान के भाई इरफान और उन की स्कौर्पियो को ले कर भाग गए.

बाद में सुलतान ने पुलिस को 30 हजार रुपए नकद और इलैक्ट्रौनिक सामान लूटने और इरफान का अपहरण होने की सूचना दी, तो पुलिस ने नाकेबंदी करा दी. नाकेबंदी के दौरान बदमाश हांसनाला मंदिर के पास इरफान और स्कौर्पियो को छोड़ कर भाग गए.

लेकिन स्कौर्पियो में से वह सारा इलैक्ट्रौनिक सामान ले गए, जो इरफान और वली मोहम्मद सऊदी अरब से लाए थे. इसी इलैक्ट्रौनिक सामान में 5 किलोग्राम सोना छिपा कर रखा हुआ था. सुलतान ने पुलिस में जो रिपोर्ट दर्ज कराई, उस में केवल इलैक्ट्रौनिक सामान लूटने की बात कही थी, सोने का जिक्र नहीं किया था.

बाद में चैन सिंह सहित 5 बदमाशों की गिरफ्तारी से 5 किलोग्राम सोने की लूट का भंडाफोड़ हुआ. बाद में पुलिस ने सऊदी अरब से सोना लाने वाले चूरू के बीदासर निवासी इरफान और वली मोहम्मद को भी गिरफ्तार कर लिया. नागौर जिले के मकराना निवासी एक आरोपी नरेंद्र सिंह को भी पुलिस ने बाद में गिरफ्तार किया.

वह दिल्ली एयरपोर्ट से चैन सिंह के साथ ब्रेजा गाड़ी से सुलतान और दोनों कैरियरों का पीछा कर रहा था. इस वारदात में चैन सिंह के साथ मिल कर लूट व अपहरण की वारदात करने वाले कुछ बदमाश कथा लिखे जाने तक फरार थे. पुलिस उन की तलाश कर रही थी.

सभी पुलिस वालों को मिली पदोन्नति

इस के साथ ही 700 ग्राम सोने के बारे में भी पता किया जा रहा है. पुलिस ने 6 स्पीकर और एक प्रैस में भरा 4 किलो 300 ग्राम सोना ही बरामद किया है. एक स्पीकर खाली मिला था. पुलिस को अंदेशा है कि आरोपियों ने एक स्पीकर में भरा सोना खुर्दबुर्द कर दिया होगा.

पुलिस का कहना है कि गिरफ्तार आरोपी विजय कुमार उर्फ बिज्जू भाट राजस्थान के कुख्यात अपराधी आनंद पाल के गिरोह से जुड़ा हुआ था. आनंद पाल के एनकाउंटर के बाद वह राजू ठेहठ गैंग से जुड़ गया. वह अवैध हथियारों की सप्लाई भी करता है. बिज्जू के खिलाफ फायरिंग व लूट के 7 मामले दर्ज हैं. वह 5 हजार रुपए का इनामी बदमाश है.

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                         गिरफ्तार आरोपियों के साथ सीकर पुलिस टीम

इकबाल उर्फ भाणू खां नागौर जिले के कुचामन थाने का हिस्ट्रीशीटर है. कुचामन और डीडवाना में उस के खिलाफ  9 मुकदमे दर्ज हैं. चैन सिंह के खिलाफ  खुनखुना व लाडनूं थाने में अपहरण, मारपीट व शराब तस्करी के 8 मामले दर्ज हैं. जवान सिंह उर्फ रामस्वरूप चर्चित भढाढर हत्याकांड का मुख्य आरोपी है. वह लूट व डकैती की कई वारदातों में भी शामिल रहा है.

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                आईजी एस. सेंगाथिर और एसपी डा. अमनदीप सिंह कपूर

एसपी डा. अमनदीप सिंह कपूर का दावा है कि शेर मोहम्मद हर साल 5 से 7 बार कैरियरों के माध्यम से सऊदी अरब से सोना मंगवाता है. सोने की तस्करी से जुड़े इस मामले की सीबीआई और फेरा को भी जानकारी दी जाएगी. सोना लूट की यह योजना लाल मोहम्मद ने सऊदी अरब में बैठ कर ही बनाई थी, इसलिए उस के खिलाफ  भी काररवाई की जाएगी.

जयपुर रेंज के आईजी एस. सेंगाथिर ने शेखावटी की अब तक की सब से बड़ी सोने की तस्करी का खुलासा करने वाली पुलिस टीम में शामिल नीमकाथाना के डीएसपी रामावतार सोनी, थानाप्रभारी राजेंद्र यादव, साइबर सेल के सबइंसपेक्टर मनीष शर्मा, हैड कांस्टेबल सुभाषचंद, कांस्टेबल कर्मवीर यादव व मुकेश कुमार की पदोन्नति की सिफारिश करने की बात कही है.

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घर में रखी तलवार की धार : वृद्ध दंपति की हत्या

4 अप्रैल की सुलगती दुपहरी में राजस्थान के जिला बूंदी के कलेक्ट्रेट में विजय कुमार पहली बार आया था. उस की उम्र तकरीबन 35 साल के आसपास रही होगी. वह सेना में नायब सूबेदार था. फौजी होने के बावजूद कलेक्टर ममता शर्मा के चेंबर में प्रवेश करते ही पता नहीं क्यों उस पर घबराहट हावी होने लगी थी और दिल बैठने लगा था. जिला कलेक्टर के सामने खड़े होते ही उस के पैर कांपने लगे और पूरा बदन पसीने से तरबतर हो गया.

आखिरकार हिम्मत जुटा कर अपना परिचय देने के बाद वह बोला, ‘‘मैडम, 8 जनवरी, 2018 को मेरे मातापिता की निर्दयता से हत्या कर दी गई. पुलिस न तो आज तक उन के शवों को बरामद कर पाई और न ही इस मामले में निष्पक्षता से जांच की गई.

‘‘मैं पुलिस के बड़े अधिकारियों से भी मिल चुका हूं, लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है. हत्यारे छुट्टे घूम रहे हैं. इतना ही नहीं, वे इस कदर बेखौफ हैं कि मुझे ओर मेरे परिवार को भी जान से मारने की धमकी देते हैं.’’ कहतेकहते विजय कुमार की आंखों से आंसू टपकने लगे.

हिचकियां लेते हुए उस ने कहा, ‘‘मैडम, मेरे सैनिक होने पर धिक्कार है. कानून की बेरुखी और जलालत झेलने से तो अच्छा है कि मैं अपने परिवार समेत आत्महत्या कर लूं. ऐसी जिंदगी से तो मौत भली. हम तो बस अब इच्छामृत्यु की अनुमति चाहते हैं.’’

यह कहते हुए उस ने जिला कलेक्टर की तरफ एक दरख्वास्त बढ़ा दी जो महामहिम राष्ट्रपति को लिखी गई थी. उस दरख्वास्त में विजय कुमार ने परिवार सहित इच्छामृत्यु की अनुमति देने की मांग की थी.

जिला कलेक्टर ममता शर्मा ने एक बार सरसरी तौर पर सामने खड़े युवक का जायजा लिया. उन की हैरानी का पारावार नहीं था. लेकिन जिस तरह पस्ती की हालत में वह अटपटी मांग कर रहा था, उस के तेवरों ने एक पल को तो उन्हें हिला कर रख दिया था.

वह बोलीं, ‘‘कैसे फौजी हो तुम? जानते हो इच्छामृत्यु की कामना कायर करते हैं, फौजी नहीं. हौसला रखो और पूरा वाकया मुझे एक कागज पर लिख कर दो. याद रखो कानून से ऊपर कोई नहीं है. तफ्तीश में हजार अड़चनें हो सकती हैं. गुत्थी सुलझाने में वक्त लग सकता है. तुम लिख कर दो, मैं इसे देखती हूं.’’

अब तक सामान्य हो चुके विजय कुमार ने सहमति में सिर हिलाया और कलेक्टर के चेंबर से बाहर निकल गया. आखिर ऐसा क्या हुआ था कि एक फौजी का देश की कानून व्यवस्था से भरोसा उठ गया और वह अपने परिवार समेत इच्छामृत्यु की मांग करने लगा. सब कुछ जानने के लिए हमें एक साल पहले लौटना होगा.

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      विजय कुमार

विजय कुमार राजस्थान के बूंदी जिले के लाखेरी कस्बे का रहने वाला है. लाखेरी स्टेशन के नजदीक ही उस का पुश्तैनी मकान है. जहां उस के मातापिता हजारीलाल और कैलाशीबाई स्थाई रूप से रहते थे. हजारीलाल के लाखेरी स्थित मकान में नवलकिशोर नामक किराएदार भी अपने परिवार के साथ रहता था. उस की बाजार में किराने की दुकान थी.

हजारीलाल के 2 मकान कोटा में थे. कोटा के रायपुरा स्थित निधि विहार कालोनी में उन के बेटे विजय कुमार का परिवार रहता था. उस के परिवार में उस की पत्नी ममता और 2 छोटे बच्चों के अलावा उस का छोटा भाई हरिओम था.

विजय सेना में नायब सूबेदार था और उस की तैनाती चाइना बौर्डर पर थी. विजय छुट्टियों में ही घर आ पाता था. हजारीलाल का मझला बेटा विनोद इंदौर की किसी इंडस्ट्री में गार्ड लगा हुआ था. हजारीलाल का एक और मकान रायपुरा से तकरीबन एक किलोमीटर दूर डीसीएम चौराहे पर स्थित था.

इस तिमंजिला मकान में दूसरी मंजिल हजारीलाल ने अपने लिए रख रखी थी. वह अपनी पत्नी के साथ 10-15 दिनों में कोटा आते रहते थे ताकि बेटे के परिवार की खैर खबर ले सकें. अलबत्ता वे रुकते इसी मकान में थे.

उस मकान का नीचे वाला तल उन्होंने बैंक औफ बड़ौदा को किराए पर दिया हुआ था, जहां बैंक का एटीएम भी था. तीसरी मंजिल पर करोली के मानाखोर का घनश्याम मीणा पत्नी राजकुमारी के साथ किराए पर रह रहा था.

हजारीलाल और घनश्याम मीणा का परिवार एकदूसरे से काफी घुलामिला था. घनश्याम पर तो हजारीलाल का अटूट भरोसा था. दंपति जब कोटा में होते थे तो अकसर उन का वक्त बेटे विजय कुमार के परिवार के साथ ही गुजरता था. लेकिन रात को वह अपने डीसीएम चौराहे के पास स्थित घर पर लौट आते थे.

अलबत्ता दोनों के बीच टेलीफोन द्वारा संपर्क बराबर बना रहता था. हजारीलाल वक्त गुजारने के लिए प्रौपर्टी के धंधे से भी जुडे़ हुए थे. इस धंधे में अंगद नामक युवक उन का मददगार बना हुआ था.

अंगद रायपुरा स्थित विजय कुमार के मकान के पीछे ही रहता था. बिहार का रहने वाला अंगद विजय कुमार का अच्छा वाकिफदार था. ट्यूशन से गुजारा करने वाला अंगद विजय के बच्चों को भी ट्यूशन पढ़ाता था. अंगद प्रौपर्टी के कारोबार के मामले में पारखी था इसलिए हजारीलाल भी उस का लोहा मानते थे.

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               हजारीलाल और उनकी पत्नी कैलाशीबाई

सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. इसी बीच अजीबोगरीब घटना ने ठहरे हुए पानी में जैसे हलचल मचा दी. दरअसल हजारीलाल की पत्नी कैलाशीबाई की अलमारी से उन का मंगलसूत्र गायब हो गया. हीराजडि़त मंगलसूत्र काफी कीमती था.

लिहाजा घर के सभी लोग परेशान हो गए. कैलाशीबाई का रोना भी वाजिब था. घर में बाहर का कोई शख्स आया नहीं था औैर किराएदार घनश्याम पर उन्हें इतना भरोसा था कि उस से पूछना भी हजारीलाल दंपति को ओछापन लगा. आखिर मंगलसूत्र की चोरी का गम खाए हजारीलाल दंपति माहौल बदलने के लिए लाखेरी लौट गए.

इस बाबत उन्होंने अपने बेटे विजय कुमार की पत्नी ममता को भी जानकारी दे दी. लेकिन असमंजस में डूबी बहू भी सास को तसल्ली देने के अलावा क्या कर सकती थी. हजारीलाल तो इस सदमे को पचा गए लेकिन कैलाशीबाई के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे.

एक स्त्री के सुहाग की निशानी मंगलसूत्र का इस तरह चोेरी चले जाना उन के लिए सब से बड़ा अपशकुन था. उन्होंने एक ही रट लगा रखी थी कि आखिर कौन था जो उन का मंगलसूत्र चुरा ले गया. पत्नी को लाख समझा रहे हजारीलाल की तसल्ली भी कैलाशीबाई के दुख को कम नहीं कर पा रही थी.

5 जनवरी, 2018 को हजारीलाल को अपने किराएदार घनश्याम मीणा का फोन मिला तो उन की आंखें चमक उठीं. उस ने बताया कि करोली के मानाखोर कस्बे में एक भगतजी हैं जिन पर माता की सवारी आती है.

माता की सवारी आने पर भगतजी में अद्भुत शक्ति पैदा हो जाती है और उस समय वह भूत भविष्य के बारे में सब कुछ बता देते हैं. आप का मंगलसूत्र कहां और कैसे गायब हुआ, यह सब भगतजी बता देंगे. आप कहो तो मैं आप को वहां ले चलूंगा ताकि मंगलसूत्र का पता लग सके.

हजारीलाल और उन की पत्नी पुराने विचारों के थे लिहाजा टोनेटोटकों में ज्यादा ही विश्वास करते थे. लिहाजा उन्होंने आननफानन में करोली जाने का प्रोग्राम बना लिया. तय कार्यक्रम के अनुसार घनश्याम और उस की पत्नी राजकुमारी उन्हें ले जाने के लिए लाखेरी पहुंच गए.

हजारीलाल ने तब अपने बड़े बेटे के परिवार को खबर करने और सब से छोटे बेटे हरिओम को भी साथ ले चलने की बात कही तो घनश्याम ने उन्हें समझाते हुए कहा, ‘‘यह बातें गोपनीय रखनी होती हैं. माता की सवारी पर अविश्वास करोगे तो मातारानी कुपित हो सकती हैं. तब अहित हुआ तो हम कुछ नहीं कर पाएंगे.’’ यह कहते हुए घनश्याम ने अपनी पत्नी की तरफ देखा तो उस ने भी सहमति में सिर हिला दिया.

हजारीलाल के मन में संदेह का कीड़ा तो कुलबुलाया लेकिन मौके की नजाकत को देखते हुए वह चुप लगा गए. लेकिन हजारीलाल ने अपने अचानक करोली जाने की बात मौका मिलते ही अपने किराएदार नवलकिशोर को जरूर बता दी. हजारीलाल ने नवलकिशोर को जो कुछ बताया उस ने सुन लिया. इस में उसे एतराज होता भी तो क्यों. घनश्याम को उस ने देखा भी नहीं था तो पूछताछ करता भी तो किस से.’’

लेकिन नवलकिशोर उस वक्त जरूर कुछ अचकचाया, जब सोमवार 8 जनवरी, 2018 को एक शख्स लाखेरी स्थित मकान पर पहुंचा. उस के हाथ में चाबियों का गुच्छा था और वह दरवाजा खोलने की कोशिश कर रहा था.

नवलकिशोर को हजारीलाल की गैरमौजूदगी में किसी अजनबी द्वारा मकान का दरवाजा खोलना अटपटा लगा तो उस ने फौरन टोका, ‘‘अरे भाई आप कौन हो और यह क्या कर रहे हो?’’

इतना सुनते ही वह आदमी कुछ हड़बड़ाया फिर बोला, ‘‘मेरा नाम घनश्याम है और मैं हजारीलालजी के डीसीएम चौराहे के पास वाले मकान में रहता हूं. हजारीलालजी के भेजने पर ही मैं यहां आया हूं. दरअसल करोली में भगतजी का भंडारा हो रहा है. हजारीलालजी ने मुझे यहां अपने कपड़े लेने के लिए भेजा है.’’

नवलकिशोर को यह तो मालूम था कि हजारीलाल पत्नी के साथ करौली गए हुए हैं लेकिन उसे घनश्याम की बातों पर तसल्ली इसलिए नहीं हुई कि हजारीलाल किसी को अपने घर की चाबियां भला कैसे सौंप सकते हैं. अपना शक दूर करने के लिए नवलकिशोर ने कहा, ‘‘ठीक है, आप उन से मोबाइल पर मेरी बात करवा दो.’’

घनश्याम ने यह कह कर नवलकिशोर को निरुत्तर कर दिया कि गांव देहात में नेटवर्क काम नहीं करने से उन से बात नहीं हो सकती. नवलकिशोर की शंका दूर नहीं हुई. उस ने एक पल सोचते हुए कहा, ‘‘तो ठीक है कोटा में हजारीलाल जी के बेटेबेटियां रहते हैं, उन से बात करवा दो?’’

घनश्याम ने यह कह कर टालने की कोशिश की कि उन का बेटा तो चाइना बौर्डर पर तैनात है और कोटा में रह रही उस की पत्नी का मोबाइल नंबर मुझे मालूम नहीं है. लेकिन नवलकिशोर तो जिद ठाने बैठा था. उसे घनश्याम की नानुकर खटक रही थी. वह अपनी शंका दूर करने पर तुला था. उस ने कहा ठीक है उन की पत्नी का नंबर मुझे मालूम है. मैं कर लेता हूं उन से बात.

घनश्याम कोई टोकाटाकी करता, तब तक नवलकिशोर अपने मोबाइल पर विजय कुमार की पत्नी ममता का नंबर मिला चुका था. लेकिन संयोग ही रहा कि ममता का फोन स्विच्ड औफ निकला. आखिर हार कर नवलकिशोर ने घनश्याम से कहा, ‘‘कोटा में हजारीलाल जी के परिवार का कोई तो होगा, जिस का नंबर आप को मालूम हो.’’

‘‘हां, उन की बेटी माया का नंबर मालूम है.’’ घनश्याम ने अचकचाते हुए कहा.

‘‘ठीक है तो फिर उन्हीं से बात करवा दो?’’ कहते हुए नवलकिशोर ने घनश्याम के चेहरे पर नजरें गड़ा दीं.

मोबाइल पर माया इस बात की तसदीक तो नहीं कर सकी कि उस के पिता करोली गए हुए हैं और किसी को उन्होंने कपड़े लाने के लिए भेजा है. अलबत्ता इतना जरूर कह दिया कि घनश्याम हमारे कोटा वाले मकान में किराएदार हैं. मैं इन को जानती हूं. अगर ये मांबाऊजी के कपड़े लेने के लिए आए हैं तो ले जाने देना. लेकिन बाद में चाबी अपने पास ही रख लेना.

नवलकिशोर को अब क्या ऐतराज होना था? घनश्याम रात को वहीं रुक गया और बोला कि सुबह को हजारीलालजी के कपड़े आदि ले कर चला जाएगा. लेकिन अगली सुबह नवलकिशोर की जब आंखें खुलीं तो उस ने देखा कि घनश्याम वहां से जा चुका था.

अब नवलकिशोर के शक का कीड़ा कुलबुलाना लाजिमी था कि  इस तरह घनश्याम का चोरीछिपे जाने का क्या मतलब. नवलकिशोर को ज्यादा हैरानी तो इस बात की थी कि उसे चाबी सौंप कर जाना चाहिए था. लेकिन वो चाबी भी साथ ले गया.

मंगलसूत्र की गुमशुदगी को ले कर कैलाशीबाई किस हद तक सदमे में थीं, इस बात को उन की बहू ममता अच्छी तरह जानती थी. क्योंकि उस की अपनी सास से फोन पर बात होती रहती थी. एक दिन ममता ने अपने देवर हरिओम से कहा कि वह लाखेरी जा कर मां को ले आए ताकि बच्चों के बीच रह कर उन का दुख कुछ कम हो सके.

भाभी के कहने पर हरिओम ने 9 जनवरी को पिता हजारीलाल को फोन लगाया. लेकिन उन का फोन स्विच्ड औफ होने के कारण बात नहीं हो सकी. हरिओम सोच कर चुप्पी साध गया कि शायद फोन बंद कर के वह सो रहे होंगे.

ममता भाभी को भी उस ने यह बता दिया. अगले दिन ममता के कहने पर हरिओम ने फिर पिता को फोन लगाया. उस दिन भी उन का फोन बंद मिला. यह सिलसिला लगातार जारी रहा तो न सिर्फ हरिओम के लिए बल्कि ममता के लिए भी यह हैरानी वाली बात थी.

ममता के मुंह से बरबस निकल पड़ा, ऐसा तो आज तक कभी नहीं हुआ. वह अंदेशा जताते हुए बोली, ‘‘भैया, जरूर अम्माबाऊजी के साथ कोई अनहोनी हो गई है.’’ ममता ने देवर को सहेजते हुए कहा, ‘‘तुम ऐसा करो, नवलकिशोर से बात करो. शायद उसे कुछ मालूम हो.’’

हरिओम ने नवलकिशोर से बात की. उस ने जो कुछ बताया उसे जान कर ममता और हरिओम दोनों सन्न रह गए. नवलकिशोर ने तो यहां तक बताया कि उस ने घनश्याम द्वारा कपड़े ले जाने की बाबत तस्दीक करने के लिए भाभी को फोन भी लगाया था, लेकिन फोन स्विच्ड औफ मिला. लेकिन माया ने बात कराने पर उस की शंका दूर हुई थी.

ममता वहीं सिर थाम कर बैठ गई. उस के मुंह से सिर्फ इतना ही निकला, ‘‘अम्मा बाऊजी हमें बिना बताए करोली कैसे चले गए. घर की चाबी तो अम्मा किसी को देती ही नहीं थीं. घनश्याम चाबी ले कर लाखेरी वाले घर कैसे पहुंच गया.

इस के बाद तो मंगलसूत्र की चोरी को ले कर भी ममता का शक पुख्ता हो गया. उस ने हरिओम से कहा, ‘‘भैया घर से अम्मा का मंगलसूत्र भी जरूर घनश्याम ने ही चुराया होगा. तुम जरा घनश्याम को फोन तो लगाओ.’’

हरिओम ने फोन किया तो उस के मुंह से अस्फुट स्वर ही निकल पाए, ‘‘भाभी घनश्याम का फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा है. मैं उसे डीसीएम चौराहे के घर पर जा कर पकड़ता हूं.’’ कहने के साथ ही हरिओम फुरती से बाहर निकल गया.

करीब एक घंटे बाद हरिओम लौट आया. उस का चेहरा फक पड़ा हुआ था. हरिओम का चेहरा देखते ही ममता माजरा समझ गई. अटकते हुए उस ने कहा, ‘‘नहीं मिला ना?’’

हरिओम भी वहीं सिर पकड़ कर बैठ गया, ‘‘भाभी वो तो अपनी पत्नी के साथ सारा सामान ले कर वहां से रफूचक्कर हो चुका है.’’

बहुत कुछ ऐसा घटित हो चुका था. जिस की किसी को उम्मीद नहीं थी. अब ममता के लिए अपने पति को सब कुछ बताना जरूरी हो गया था. ममता ने फोन से बौर्डर पर तैनात पति को पूरा माजरा बता दिया. विजय उस समय सिर्फ इतना ही कह कर रह गया कि तुम थाने में अम्मा बाऊजी के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दो. किराएदार घनश्याम की बाबत भी सब कुछ बता देना. फिर मैं छुट्टी ले कर आता हूं.

इस के साथ ही विजय ने इंदौर में रह रहे अपने मंझले भाई विनोद को भी फोन कर पूरी बात बता दी और कहा कि तुम फौरन पहले लाखेरी पहुंचो और पता करो कि उन के साथ क्या हुआ है.

मातापिता जिस तरह रहस्यमय ढंग से लापता हुए, सुन कर विजय अचंभित हुआ. इस से पहले ममता ने उद्योग नगर थाने में अपने ससुर हजारीलाल और सास कैलाशीबाई की गुमशुदगी की सुचना दर्ज करा दी थी.

अपने परिवार समेत करोली के मानाखोर गांव में पहुंचे विजय ने घनश्याम मीणा और कथित भगतजी की तलाश करने की भरपूर कोशिश की ताकि मां बाऊजी का पता चल सके, लेकिन उस के हाथ निराशा ही लगी. छानबीन करने पर उसे पता चला कि भगतजी नामक कोई तांत्रिक वहां था ही नहीं. घनश्याम के बारे में उसे पुख्ता जानकारी नहीं मिल सकी.

विजय ने पुलिस से संपर्क किया उस ने उद्योग नगर पुलिस के जांच अधिकारी सुरेंद्र सिंह से आग्रह किया कि आप एक बार करोली का चक्कर लगा लीजिए. वह वहां गए लेकिन उन की कोशिश निरर्थक रही. फिर जांच अधिकारी सुरेंद्र सिंह ने काल डिटेल्स का हवाला देते हुए कहा कि मामला लाखेरी का है. इसलिए मामले की रिपोर्ट लाखेरी में ही  करानी होगी.

विनोद भी लाखेरी पहुंच चुका था. उस ने भाई विजय को जो कुछ बताया उस से रहेसहे होश भी फाख्ता हो गए. घर की अलमारियों और संदूक के ताले टूटे पड़े थे. उन में रखे हुए अचल संपत्तियों के दस्तावेज, सोनेचांदी के जेवर और नकदी गायब थी. इस से स्पष्ट था कि कपड़े लेने के बहाने आया घनश्याम सब कुछ बटोर कर ले गया.

27 जनवरी, 2018 को विजय ने लाखेरी थाने में मामले की रिपोर्ट दर्ज करवाते हुए घनश्याम मीणा पर ही अपना शक जताया. इस मौके पर विजय के साथ आए उस के भाई विनोद ने चोरी गए सामान का पूरा ब्यौरा पुलिस को दिया. पुलिस ने रिपोर्ट में भादंवि की धारा 365 व 380 और दर्ज कर के जांच एसआई नंदकिशोर के सुपुर्द कर दी. दिन रात की भागदौड़ के बावजूद पुलिस के हाथ कोई ठोस सुराग नहीं लगा.

एसपी योगेश यादव सीओ नरपत सिंह तथा थानाप्रभारी कौशल्या से जांच की प्रगति का ब्यौरा बराबर पूछ रहे थे. लेकिन कोई उम्मीद जगाने वाली बात सामने नहीं आ रही थी.

इस बीच पुलिस ने गुमशुदा हजारीलाल दंपति के फोटोशुदा ईनामी इश्तहार भी बंटवाए और सार्वजनिक स्थानों पर चस्पा करवा दिए. इस के बाद पुलिस ने घनश्याम मीणा के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. इस का नतीजा जल्दी ही सामने आ गया.

काल डिटेल्स से पता चला कि घनश्याम मीणा की ज्यादातर बातचीत करोली जिले के लांगरा कस्बे के मुखराम मीणा से ही हो रही थी. लक्ष्य सामने आ गया तो पुलिस की बांछें खिल गईं. सीओ सुरेंद्र सिंह ने एसपी योगेश यादव को बताया तो उन्होंने करोली के एसपी अनिल कयाल से जांच में सहयोग करने की मांग की.

नतीजतन सीओ सुरेंद्र सिंह और थानाप्रभारी कौशल्या की अगुवाई में गठित पुलिस टीम ने करोली के लांगरा कस्बे से मुखराम मीणा को दबोच लिया. अखबारी सुर्खियों में ढली इस खबर में करोली एसपी अनिल कयाल ने मुखराम मीणा की 4 फरवरी को गिरफ्तारी की तस्दीक कर दी और कहा कि मुखराम के साथियों और गुमशुदा दंपति को तलाशने में पुलिस टीमें पूरी तरह जुटी हुई हैं.

पुलिस पूछताछ में मुखराम बारबार बयान बदल रहा था. उस ने स्वीकार किया कि घनश्याम और उस की पत्नी राजकुमारी के साथ हम हजारीलाल और उस की पत्नी कैलाशीबाई को ले कर टैंपो से साथलपुर के जंगल में पहुंचे थे. वहां उन्होंने दोनों की अंघेरे में हत्या कर दी थी. मुखराम ने बताया कि काम को अंजाम देने के बाद वह साथलपुर गांव चले गए थे.

चूकि पुलिस को उस से और भी पूछताछ करनी थी, इसलिए उसे 5 फरवरी को मुंसिफ न्यायालय लाखेरी में पेश कर 5 दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया.

मुखराम के बताए स्थान तक लाखेरी पुलिस दल के साथ भरतपुर जिले की लागरा पुलिस के एएसआई राजोली सिंह तथा डौग स्क्वायड टीम के कांस्टेबल देवेंद्र, ओमवीर और हिम्मत सिंह भी थे. मुखराम द्वारा बताई गई हत्या वाली जगह से पुलिस को साड़ी के टुकड़े, खून सने पत्थर और एक हड्डी का टुकड़ा तो मिला लेकिन लाशों का कहीं कोई अतापता नहीं था.

मुखराम अपने उसी बयान पर अड़ा था कि महिला की हत्या तो हम ने यहीं पत्थरों से की थी और शव को भी यहीं गाड़ दिया था. इस के बाद शव कहां गया यह पता नहीं. बरामद चीजों को जब खोजी कुत्ते को सुंघाया तो वो पहले वाली जगह पर जा कर ठिठक गया.

पुलिस ने घटनास्थल से हत्या में इस्तेमाल हुए पत्थर भी जब्त कर लिए. पुलिस की सख्ती के बावजूद मुखराम सवालों का जवाब देने से कतराता रहा.

हत्या में सहयोगी रहे घनश्याम और उस की पत्नी राजकुमारी कहां हैं? और हजारीलाल की हत्या कहां की गई? वृद्ध दंपति की हत्या की आखिर क्या वजह थी आदि पूछने पर मुखराम ने बताया कि कोटा में हजारीलाल का तकरीबन 50 लाख रुपए की कीमत का एक प्लौट है. घनश्याम और उस की पत्नी इस पर नजर गड़ाए हुए थे.

उन्होंने हजारीलाल से औनेपौने दामों में इस प्लौट का सौदा करने की कोशिश की लेकिन बात नहीं बनी. उस प्लौट को हड़पने के लिए ही उन के मारने की योजना बनाई थी. उन्होंने मुझे अच्छी रकम देने का वादा कर इस योजना में शामिल किया था.

पुलिस ने आखिर तेवर बदलते तो मुखराम ने मुंह खोलने में देर नहीं की. उस ने बताया कि हजारीलाल की हत्या साथलपुर के पास स्थित धमनिया के जंगल में की थी. धमनियां जंगल में मुखराम की बताई गई जगह पर हजारीलाल के कपड़े और खून सने पत्थर तो मिले लेकिन शव नहीं मिला.

घनश्याम मीणा और उस की पत्नी राजकुमारी के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि घनश्याम अपनी पत्नी के साथ केरल के कालीघाट में रह रहा है. मुखराम से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

घनश्याम मीणा और राजकुमारी को गिरफ्तार करने के लिए एक पुलिस टीम कालीघाट रवाना हो गई. इत्तफाक से ये दोनों घर पर ही मिल गए. 8 अप्रैल को उन्हें गिरफ्तार कर पुलिस राजस्थान लौट आई.

पूछताछ में घनश्याम मीणा और उस की पत्नी राजकुमारी ने जो बताया उसे सुन कर तो पुलिस अधिकारियों का मुंह खुला का खुला रह गया. क्योंकि हत्या में ट्यूटर और प्रौपर्टी के बिजनैस में हजारीलाल का विश्वसनीय बना रहने वाला अंगद भी शामिल था. पुलिस इधरउधर खाक छान रही थी और अंगद बिना किसी डर के विजय के पड़ोस में बैठ कर चैन की बंसी बजा रहा था.

पता चला कि पूरी घटना का सूत्रधार और ताना बाना बुनने वाला अंगद ही था. उस पर हजारीलाल का जितना अटूट भरोसा था, कमोबेश विजय का भी उतना ही था. घर पर बेरोकटोक आनेजाने और मीठी बातों से रिझाने वाले अंगद पर शंका होती भी तो कैसे. जबकि सच्चाई यह थी कि डीसीएम इलाके में हजारीलाल के लगभग 50 लाख के प्लौट पर अंगद की शुरू से ही निगाहें थीं.

विश्वसनीयता की आड़ में अंगद इस प्लौट को किसी तरह फरजी दस्तावेजों के जरिए हड़पने की ताक में था. लेकिन हजारीलाल पर उस का दांव नहीं चल पा रहा था. आखिरकार उसे एक ही रास्ता सूझा कि हजारीलाल दंपति को मौत के घाट उतार कर ही यह प्लौट कब्जाया जा सकता था.

अपनी योजना का तानाबाना बुनते हुए उस ने पहले घनश्याम मीणा को उन के डीसीएम चौराहे के पास स्थित घर में किराए पर रखवाया. फिर मीणा को उन का विश्वास जीतने में भी मदद की.

आखिरकार जब हजारीलाल का घनश्याम पर अटूट भरोसा हो गया तो पहले उस ने किसी तरह कैलाशीबाई का कीमती मंगलसूत्र चोरी कर लिया. मंगलसूत्र की चोरी से हताश निराश दंपति को जाल में फंसाने के लिए तांत्रिक तक पहुंच बनाने का पासा फेंका.

अंगद ने घनश्याम से कहा कि वह योजना में किसी विश्वसनीय व्यक्ति को मोटे पैसों का लालच दे कर शामिल कर ले. तब घनश्याम ने करोली के रहने वाले अपने एक वाकिफकार मुखराम को योजना में शामिल किया. सारा काम घनश्याम, राजकुमारी और मुखराम ने ही अंजाम दिया. अंगद तो अपनी जगह से हिला भी नहीं.

पुलिस ने कोटा से अंगद को भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पुलिस ने भले ही हत्या की गुत्थी सुलझा ली. लेकिन लाख सिर पटकने के बाद भी शव बरामद नहीं किए जा सके.

कथा लिखने तक चारों अभियुक्तों की जमानत हो चुकी थी. कानून के जानकारों का कहना है कि जब लाश ही बरामद नहीं होगी तो अभियुक्तों को सजा कैसे मिलेगी. सवाल यह है कि हर तरह से समर्थ पुलिस आखिरकार हजारीलाल दंपति के शव बरामद क्यों नहीं कर सकी.

विजय कुमार तो दोहरे आघात से छटपटा रहा है. एक तो वृद्ध माता पिता की निर्मम हत्या, फिर शवों की बरामदगी तक नहीं हुई. विजय का दुख इन शब्दों में फूट पड़ता है कि कैसा बेटा हूं, मांबाप की हत्या हुई और मैं कुछ नहीं कर पाया. उन की अंत्येष्टि तक नहीं हो सकी.

विजय मंत्रियों से ले कर उच्च अधिकारियों तक से इंसाफ की दुहाई दे चुका है. लेकिन उस की कहीं सुनवाई नहीं हो रही थी. एक तरफ तो विश्वास और इंसाफ की हत्या का दर्द तो दूसरी तरफ हत्यारे बेखौफ घूमते हुए उसे मुंह चिढ़ा रहे हैं. ताज्जुब की बात तो यह है कि क्लेक्टर से गुहार लगाने के बावजूद भी इस केस में कोई प्रगति नहीं हुई.

—कथा पुलिस और पारिवारिक सूत्रों पर आधारित

श्रेयांश-प्रियांश हत्याकांड : मासूमियत बनी मौत

श्रेयांश-प्रियांश हत्याकांड : मासूमियत बनी मौत – भाग 3

सौदा तय हो जाने के बाद ब्रजेश रावत को उम्मीद थी कि आरोपी बच्चों को छोड़ देंगे. इधर चित्रकूट सतना और बांदा सहित पूरे मध्य प्रदेश में लोग सड़कों पर आ कर पुलिसिया लापरवाही के खिलाफ धरने प्रदर्शन दे रहे थे, जिस से कुछ और हुआ न हुआ हो लेकिन इन छहों पर बाहरी दबाव बनने लगा था.

20 लाख रुपए देने से ब्रजेश रावत को इकलौता सुकून इस बात का मिला था कि आरोपियों ने 19 फरवरी को उन से फोन पर बच्चों की बात करा दी थी. बेटों की आवाज सुन कर उन्हें आस बंधी थी कि वे सलामत हैं और आरोपी अगर वादे पर खरे उतरे तो बेटे जल्द घर होंगे और उन की किलकारियों से घर फिर गूंजेगा.

आरोपियों ने बच्चों के साथ कोई खास बुरा बर्ताव नहीं किया था लेकिन उन्हें सुलाने के लिए जरूर नींद की गोलियां खिलाई थीं. बच्चों को व्यस्त रखने के लिए वे उन्हें मोबाइल पर वीडियो गेम खेलने देते थे. अब तक सब कुछ उन की योजना के मुताबिक हो रहा था और इन्होंने फिरौती में मिले 20 लाख रुपयों का बंटवारा भी कर लिया था, जिस का सब से बड़ा हिस्सा पदम शुक्ला को मिला था. एक आरोपी ने तो पैसे मिलते ही बाइक लेने का अपना सपना भी पूरा कर लिया था.

पुलिस अभी भी हवा में हाथपैर मार रही थी. इस मामले की एक हैरत वाली बात यह थी कि ब्रजेश शुक्ला का सेल फोन सर्विलांस पर रखा था लेकिन आरोपियों की पहचान उन के पास आ रहे फोन काल्स से नहीं हो पा रही थी. फिरौती के पैसे भी ब्रजेश रावत ने उत्तर प्रदेश पुलिस के जरिए दिए थे, जिस की भनक मध्य प्रदेश पुलिस को नहीं लगी थी.

नवगठित इस गैंग के सदस्य कितने शातिर थे इस का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि रामकेश पहले की तरह ही रावत परिवार के दूसरे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने के लिए जाता रहा था.

इसी बहाने वह घर के सदस्यों से प्रियांश और श्रेयांश के बारे में पूछ कर ताजा अपडेट हासिल कर लेता था और साथियों को बता देता था. उस की हकीकत से बेखबर रावत परिवार उस की खातिरदारी पहले की तरह करता रहा था.

होहल्ले के चलते इन छहों को अब पकड़े जाने का डर सताने लगा था और ब्रजेश रावत की जेब से और पैसा निकालने की उम्मीदें भी खत्म हो चली थीं. इसलिए इन्होंने शायद बच्चों को छोड़ने का फैसला कर लिया था.

जब फैसला हो गया तो बच्चों को छोड़ने का मन बना चुके आरोपियों को यह खटका लगा कि कहीं ऐसा न हो कि बच्चे जा कर उन की पहचान उजागर कर दें. इन लोगों ने अब तक जिस जुर्म को छिपा रखा था, बच्चों के छोड़ने पर वह खुल सकता था. इसलिए दोनों के कत्ल का इरादा बन गया.

लेकिन इस से पहले मन में आ गए डर को दूर करने की गरज से इन लोगों ने श्रेयांश और प्रियांश से पूछा कि छूट कर वे पुलिस को उन की पहचान यानी नाम वगैरह तो नहीं बता देंगे.

मासूमियत की यह इंतहा ही थी कि दोनों बच्चों ने ईमानदारी से जवाब दे दिया कि वे उन्हें  पहचान लेंगे. यह जवाब सुनना था कि हथकडि़यां इन की आंखों के आगे झूलती नजर आने लगीं. जिस से अब तक के किए धरे पर तो पानी फिरता ही साथ ही हाथ आए 20 लाख रुपयों का लुत्फ भी जाता रहता.

अपना जुर्म छिपाने के लिए इन्होंने दोनों मासूमों के हाथपैर जंजीर से बांधे, फिर उन्हें क्लोरोफार्म सुंघा कर बेहोश किया. इस के बाद पत्थर बांध कर उन्हें यमुना नदी के उगासी घाट पर पानी में फेंक दिया. यह 21 फरवरी की बात है.

साथ पैदा हुए साथ पले बढ़े और पढ़ेलिखे जुड़वां श्रेयांश और प्रियांश की लाशें भी साथसाथ 3 दिन पानी में तैरती रहीं और वे मरे भी साथ में. दोनों के शरीर पर वही स्कूल यूनिफार्म थी जो उन्होंने 12 फरवरी को स्कूल जाते वक्त पहनी थी.

लाशें बरामद हुईं तो इन मासूमों की हत्या को ले कर ऐसा बवाल मचा कि पूरा बुंदेलखंड इलाका त्राहित्राहि कर उठा. राजनेताओं ने भी चित्रकूट में बहती मंदाकिनी नदी में खूब हाथ धोए. भाजपाई और कांग्रेसी बच्चों की मौतों पर अफसोस जताते एकदूसरे को कोसते रहे.

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पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री कमलनाथ को निशाने पर रखा तो कांग्रेसी भी यह कहने से नहीं चूके कि यह सब भाजपाइयों का कियाधरा है.

राजनीतिक बवंडर से परे यह हुआ था कि आईटी से इंजीनियरिंग कर रहे 2 आरोपी बेहतर समझ रहे थे कि अगर वे अपने सेल फोन से ब्रजेश रावत से बात करेंगे तो फौरन धर लिए जाएंगे, इसलिए वे फोन काल के लिए या तो इंटरनेट का सहारा ले रहे थे या फिर बहाने बना कर राहगीरों का फोन इस्तेमाल कर रहे थे जिस से पता नहीं चल रहा था कि अपराधी हैं कौन और कहां से फोन कर रहे हैं.

कहावत पुरानी लेकिन सटीक है कि अपराधी कितना भी चालाक क्यों हो कोई न कोई भूल कर ही देता है ऐसा ही इस मामले में हुआ.

एक राहगीर से फोन मांग कर उन्होंने ब्रजेश रावत को फोन किया था तो उस राहगीर को बातचीत का मसौदा सुन इन पर शक हुआ था. हर किसी की तरह उसे भी श्रेयांश और प्रियांश के अपहरण के बारे में मालूम था.

ये लोग जिस का भी फोन लेते थे उसे यह कहना नहीं भूलते थे कि जिस नंबर पर फोन किया है उसे डिलीट कर देना. लेकिन इस समझदार और भले आदमी ने ऐसा नहीं किया और चुपचाप बिना इन की जानकारी के उन की बाइक का फोटो भी खींच लिया.

तब पुलिस ने इस राहगीर के नंबर पर फोन किया तो उस ने बाइक के फोटो पुलिस को दे दिए. इस बाइक के नंबर की बिना पर छानबीन की गई तो वह रोहित द्विवेदी की निकली. पुलिस ने उस की गरदन दबोच कर सख्ती की तो उस ने श्रेयांश और प्रियांश की हत्या का राज खोल दिया और पुलिस ने एक के बाद एक छहों हत्यारों को गिरफ्तार कर लिया.

हत्यारों की गिरफ्तारी की खबर भी आग की तरह फैली और लोगों ने चित्रकूट में बेकाबू हो कर सदगुरु ट्रस्ट पर पत्थर फेंके, वाहन जलाए, तोड़फोड़ की. इस के बाद पूरे मध्य प्रदेश में इन मासूमों को श्रद्धांजलियां दी गईं और हर किसी ने इन हैवानों के लिए मौत की सजा की मांग की.

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श्रेयांश और प्रियांश के शवों का पोस्टमार्टम बांदा में किया गया, जिस के बाद दोनों के शव रावत परिवार को सौंप दिए गए.

इन पंक्तियों के लिखे जाने तक कई बातें स्पष्ट नहीं हुई थीं, जिन के कोई खास माने भी नहीं वजह आरोपी अपना जुर्म स्वीकार चुके हैं. पिस्टल, बाइक, 17 लाख रुपए के अलावा वह बोलेरो कार भी बरामद की जा चुकी है. जिस में इन दोनों को चित्रकूट से बाहर ले जाया गया था.

चूंकि इस पर भी भाजपा का झंडा लहरा रहा था इसलिए पुलिस वालों ने उसे नहीं रोका. ब्रजेश रावत लगातार शक जताते रहे कि पकड़े गए लड़के तो मोहरे थे असल अपराधी और कोई है इसलिए मामले की सीबीआई जांच होनी चाहिए. छानबीन में यह बात भी सामने आई थी कि आरोपियों के संबंध उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेता राजा भैया से थे. सीबीआई जांच होगी या नहीं यह तो नहीं पता, लेकिन मध्य प्रदेश सरकार ने जरूर एक जांच कमेटी गठित कर दी है जो कई बिंदुओं पर जांच कर रही है.

मुमकिन है कुछ हैरान कर देने वाली बातें सामने आएं, लेकिन यह सच है कि चित्रकूट में लाखों की भीड़ जमा रहती है, इसलिए यहां अपराधों की दर बढ़ रही है. सच यह भी है कि निकम्मे और गुंडे किस्म के युवकों ने शार्टकट से पैसा कमाने के लिए एक हंसतेखेलते घर के जुड़वां चिराग बुझा दिए, जिस की भरपाई कोई जांच पूरी नहीं कर सकती.

श्रेयांश-प्रियांश हत्याकांड : मासूमियत बनी मौत – भाग 2

श्रेयांश और प्रियांश कहां और किस हाल में हैं इस का अंदाजा कोई नहीं लगा पा रहा था. सदमे में डूबे रावत परिवार के सदस्य बच्चों की खैरियत को लेकर चिंतित थे. हर किसी का रोरो कर बुरा हाल था खासतौर से ब्रजेश रावत की पत्नी बबीता रावत का जो बच्चों की जुदाई के गम में होश खो बैठी थी.

पुलिस भागादौड़ी करती रही, दावे करती रही लेकिन 20 लाख रुपए देने के बाद भी बच्चे वापस नहीं लौटे तो रावत परिवार किसी अनहोनी की आशंका से कांपने लगा.

आशंका गलत नहीं निकली. 24 फरवरी को पुलिस ने उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के बबेरू के पास यमुना नदी से प्रियांश और श्रेयांश की लाशें बरामद कीं. इन दोनों मासूमों के शव जंजीर से बंधे हुए थे.

आस और उम्मीदें तो पहले ही टूट चुकी थीं, जिन पर मोहर लगने के बाद 12 फरवरी से ज्यादा हाहाकार मचा. अब हर कोई यह जानने को बेताब था कि अपहरणकर्ता कौन थे, कैसे पकड़े गए और इन्होंने कैसे हैवानियत दिखाते हुए फिरौती की रकम लेने के बाद भी मासूमों पर कोई रहम नहीं किया. प्रदेश भर में पुलिसिया प्रणाली के खिलाफ फिर जम कर हल्ला मचा, धरनेप्रदर्शन हुए और उम्मीद के मुताबिक फिर सियासत गरमाई.

पूरे घटनाक्रम में सुकून देने वाली इकलौती बात यह थी कि हत्यारे पकड़े गए थे, जिन की तादाद 6 थी. हत्यारों को पकड़ने में पुलिस की भूमिका कोई खास नहीं थी, क्योंकि वे इत्तफाकन धरे गए थे. 24 फरवरी को फिर एक बार सनसनी मची और इतनी मची कि पुलिस वालों और सरकार को जवाब देना मुश्किल हो गया.

श्रेयांश और प्रियांश के शव इस दिन उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में यमुना नदी के बबेरू घाट पर मिले थे. दोनों शव के हाथ पैर बंधे हुए थे.

हैवानों ने इन मासूमों की कैसे जान ली होगी, इस के पहले यह जानना जरूरी है कि हत्यारे थे कौन और इतने शातिराना ढंग से उन्होंने कैसे इस वारदात को अंजाम दिया था. जब एक एक कर 6 हत्यारे पकड़े गए तो दिल को दहला देने वाली कहानी कुछ इस तरह सामने आई, जिस ने साबित भी कर दिया कि लोग बेवजह पुलिस को नहीं कोस रहे थे.

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इस वारदात का मास्टरमाइंड पदम शुक्ला निकला, जिस के पिता रामकरण शुक्ला, पुरोहित और सद्गुरु सेवा संघ ट्रस्ट में संस्कृत के प्राचार्य हैं. पदम शुक्ला का छोटा भाई विष्णुकांत शुक्ला भाजपा और बजरंग दल से जुड़ा है. जानकीकुंड में रहने वाला शुक्ला परिवार भी चित्रकूट में किसी पहचान का मोहताज नहीं है, लेकिन इस की वजह इन के कुकर्म ज्यादा हैं.

अपहरण और हत्या का दूसरा अहम किरदार रामकेश यादव है जो मूलरूप से बिहार का रहने वाला है और पढ़ाई पूरी करने के बाद चित्रकूट में किराए का मकान ले कर रहता था. रामकेश रावत परिवार के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने जाता था.

उस का रावत परिवार में वही मान सम्मान था जो आमतौर पर ट्यूटर्स का होता है, रामकेश के दिल में अपराध का बीज यहीं से अंकुरित हुआ और इस से पेड़ बना पदम शुक्ला के दिमाग में.

इसमें कोई शक नहीं कि ब्रजेश रावत के पास पैसों की कमी नहीं थी, जिस का गुरुर उन्हें कभी नहीं रहा. संभ्रांत और संस्कारित रावत परिवार का वैभव रामकेश ने देखा तो इस रामनगरी में एक और रावण आकार लेने लगा.

पैसों की तंगी तो रामकेश को भी नहीं थी लेकिन रावत परिवार की दौलत देख उसके दिल में खयाल आया था कि अगर श्रेयांश और प्रियांश को अगुवा कर लिया जाए तो फिरौती में इतनी रकम तो मिल ही जाएगी कि फिर जिंदगी ऐशोआराम से कटेगी.

पाप का पौधा कितनी जल्दी वृक्ष बन जाता है, यह इस हत्याकांड से भी उजागर होता है. रामकेश ने जब यह आइडिया पदम से साझा किया तो उस की बांछें खिल उठीं. फिर क्या था देखते ही देखते योजना बन गई और उस का पूर्वाभ्यास भी होने लगा. अपनी नापाक मुहिम को सहूलियत से पूरा करने के लिए इन दोनों ने अपने जैसे 4 और राक्षसों को साथ मिला लिया.

रातों रात मालामाल हो जाने के लालच के चलते इस नवगठित गिरोह में बहलपुर का रहने वाला विक्रमजीत, हमीरपुर का अपूर्व उर्फ पिंटू उर्फ पिंटा यादव, बांदा का लक्की सिंह तोमर और राजू द्विवेदी भी शामिल हो गए.

22 से 24 साल की उम्र के ये सभी अपराधी अभी पढ़ रहे थे. पदम आईटी सब्जेक्ट से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था. लकी तोमर उस का सहपाठी था. राजू द्विवेदी एग्रीकल्चर फैकल्टी के एग्रोनामी विषय से एमएससी कर रहा था और पिंटू यादव उस का सहपाठी था. ये पांचों ग्रामोदय विश्वविद्यालय के छात्र थे.

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जब गिरोह बन गया तो इन शातिरों ने अपहरण की योजना बनाई. इस बाबत इन के बीच दरजनों मीटिंगें हुईं जिन में संभावित खतरों पर विचार कर उन से बचने के उपाय खोजे गए. पदम का घर घटनास्थल से पैदल दूरी पर है, वह उस इलाके के चप्पेचप्पे से वाकिफ था.

12 फरवरी को श्रेयांश और प्रियांश का अपहरण करने के बाद ये लोग कहीं ज्यादा दूर नहीं भागे थे, जैसा कि हर कोई अंदाजा लगा रहा था. बबुली कौल गिरोह का नाम भी इन्होंने जानबूझ कर अपहरण के वक्त लिया था जिस के चलते पुलिस ने मान लिया था कि हो न हो इस कांड में इसी गिरोह का हाथ है.

श्रेयांश और प्रियांश को इन्होंने 3 दिन चित्रकूट के ही एक मकान में रखा जो लक्की सिंह से किराए पर लिया गया था. आमतौर पर ऐसे हादसों में होता यह है कि अपराधी घटनास्थल से दूर जा कर फिरौती मांगते हैं, जिस से किसी की भी, खासतौर से पुलिस की निगाह में न आएं. जिस मकान में दोनों मासूमों को रखा गया था वह एसपीएस के नजदीक ही है. इस चालाकी की तरफ पुलिस का ध्यान ही नहीं गया.

जिस बाइक से अपहरण किया गया था उस पर कोई नंबर प्लेट नहीं थी, बल्कि नंबर प्लेट पर रामराज्य लिखा हुआ था. बाइक पर भाजपा का झंडा लगा होने के कारण पुलिस वाले उसे रोकने की हिमाकत नहीं कर पाए थे.

चूंकि पदम का भाई बजरंग दल का संयोजक था, इसलिए पुलिस वालों ने रामराज्य को ही बाइक का नंबर मान लिया था. चित्रकूट और बांदा का हर एक पुलिसकर्मी पदम के भाई विष्णुकांत और उस की बाइक तक को पहचानता है, जिस के छोटे बड़े भाजपा नेताओं से अच्छे संबंध हैं. कई बड़े नेताओं के साथ खिंचाए फोटो उस ने फेसबुक पर श्ेयर भी कर रखे हैं.

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वारदात के तीसरे दिन ही इन्होंने ब्रजेश रावत से फिरौती के 2 करोड़ रुपए मांगे थे लेकिन सौदा 20 लाख रुपए में पट गया था जो ब्रजेश रावत ने इन्हें दे भी दिए थे. जब चित्रकूट में बच्चों को रखना इन्हें जोखिम का काम लगने लगा तो उन्हें वे रोहित द्विवेदी गांव बबेरू ले गए. उस ने ही श्रेयांस और प्रियांश के यहां रहने का इंतजाम किया था. रोहित का पिता ब्रह्मदत्त द्विवेदी सिक्योरिटी गार्ड है.

श्रेयांश-प्रियांश हत्याकांड : मासूमियत बनी मौत – भाग 1

प्रसिद्ध धार्मिक नगरी चित्रकूट (Chitrakoot) का एसपीएस यानी सदगुरु पब्लिक स्कूल (Sadguru Public Schook) अपने आप में एक ब्रांड है. अंग्रेजी माध्यम के इस स्कूल में मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश दोनों राज्यों के बच्चे पढ़ते हैं, चित्रकूट (मध्य प्रदेश) से महज 6 किलोमीटर दूर स्थित है, (Karwi) कर्बी जिले (उत्तर प्रदेश) के सैकड़ों बच्चे यहां रोजाना पढ़ने के लिए बस से आते हैं.

इन्हीं सैकड़ों बच्चों में से श्रेयांश रावत (Shreyansh Rawat) और प्रियांश रावत (Priyansh Rawat) की पहचान कुछ अलग हट कर थी. क्योंकि ये दोनों जुड़वां भाई (Twins Brother) भी थे और हमशक्ल भी. दोनों को पहचानने में कोई भी धोखा खा जाता था. 5-5 साल के ये मासूम अभी एलकेजी में पढ़ रहे थे.

जुड़वां होने के अलावा एक और दिलचस्प बात यह भी थी कि रावत परिवार के ये दोनों ही नहीं बल्कि 11 बच्चे एसपीएस में पढ़ रहे थे. इन में से 2 श्रेयांश और प्रियांश (Shreyansh and Priyansh) के सगे बड़े भाई देवांश और शिवांश भी थे.

इन चारों भाइयों के पिता ब्रजेश रावत (Brajesh Rawat) चित्रकूट के जाने माने तेल व्यापारी हैं. आयुर्वेदिक तेलों का कारोबार करने वाले ब्रजेश रावत ईमानदार, कर्मठ और मिलनसार व्यक्ति हैं. तेल के अपने पुश्तैनी कारोबार को उन्होंने अपनी मेहनत के दम पर ऊंचाइयों पर पहुंचाया है. इसी वजह से कर्बी से ले कर चित्रकूट तक उन की अपनी एक अलग पहचान है.

अपने कारोबार में मशगूल रहने वाले ब्रजेश रावत हर लिहाज से सुखी और संपन्न कहे जा सकते हैं. कर्बी के रामघाट में उन का बड़ा मकान है, जिस में पूरा रावत परिवार संयुक्त रूप से रहता है. उन के घर में हर वक्तचहलपहल रहती है जिस की बड़ी वजह वे 11 बच्चे भी हैं जो एसपीएस में पढ़ते थे.

ईश्वर में अपार श्रद्धा रखने वाले ब्रजेश रावत ने कभी सपने में भी उम्मीद नहीं की होगी कि कभी उन के साथ भी ऐसी कोई अनहोनी होगी जो जिंदगी भर उन्हें सालती रहेगी और जिन श्रेयांश और प्रियांश की मासूम किलकारियां और शरारतों से उन का घर आबाद रहता है, उन की यादें उम्र भर उन्हें काटने को दौड़ती रहेंगी.

रोजाना की तरह 12 फरवरी को भी दोपहर में लगभग 12 बजे एसपीएस की बसें लाइन से लग गई थीं. बच्चे अपनी बसों का नंबर पढ़ते हुए उन में सवार हो रहे थे. छोटी कक्षाओं के बच्चों में स्कूल की छुट्टी के बाद घर जाने की खुशी ठीक वैसी ही होती है जैसी जेल से लंबी सजा काट कर रिहा हुए कैदियों की होती है.

क्लास से लाइन में लग कर बाहर आए प्रियांश और श्रेयांश भी अपनी बस में सवार हो गए, जिस में ड्राइवर और कंडक्टर के अलावा एक केयरटेकर भी थी. जब बस के सभी बच्चे आ कर अपनीअपनी सीटों पर बैठ गए तो गेट बंद होने के बाद ड्राइवर ने बस स्टार्ट कर दी. इस बस का नंबर था एमपी19-0973.

स्कूल कैंपस से बस अभी 500 मीटर का फासला भी तय नहीं कर पाई थी कि न जाने कहां से एक लाल रंग की बाइक आई और बस के सामने रुक गई.

ड्राइवर ने अचकचा कर बस धीमी की लेकिन जब तक वह माजरा समझ पाता तब तक बाइक पर सवार दोनों युवक नीचे उतर आए. उन में से एक के हाथ में पिस्टल थी. दोनों युवकों ने चेहरा भगवा कपड़े से ढक रखा था. फिल्मी स्टाइल में ही बस के गेट तक आए बदमाशों ने डरावनी चेतावनी दी और श्रेयांश और प्रियांश को नीचे उतार लिया.

कोई कुछ समझ या कर पाता इस के पहले ही दोनों ने श्रेयांश और प्रियांश को बाइक पर बीच में बैठाया और आंधीतूफान की तरह जैसे आए थे, वैसे ही उड़नछू हो गए. कहां गए यह कोई उन्हें ढंग से भी नहीं देख पाया.

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यह जरूर है कि हर किसी को समझ आ गया कि दिन दहाड़े स्कूल बस में से दोनों का अपहरण हो गया है और अपहरणकर्ताओं का टारगेट श्रेयांश और प्रियांश ही थे, क्योंकि अगर किसी को भी उठाना होता तो बच्चे आगे की सीटों पर भी बैठे थे. लेकिन बदमाशों ने पीछे की सीट पर बैठे दोनों भाइयों को ही उठाया था यानी अपहरण की यह वारदात पूर्वनियोजित थी.

बाइक के नजरों से दूर होते ही कंडक्टर ड्राइवर और केयरटेकर सहित बच्चों का डर खत्म हुआ तो खासी हलचल मच गई. देखते ही देखते यह बात चित्रकूट की तंग और संकरी गलियों से होती हुई देश भर में फैल गई कि 2 जुड़वां भाईयों का दिनदहाड़े अपहरण हो गया.

अपहरण के बाद मिनटों में वारदात की खबर पुलिस और ब्रजेश रावत तक पहुंच गई. ब्रजेश भागेभागे स्कूल आए, लेकिन वहां उन के जिगर के ये दोनों जुड़वां टुकड़े नहीं थे. थी तो ऊपर बताई गई दास्तां जो हर किसी ने अपने शब्दों मे बयां की, जिस का सार यह था कि एक बाइक पर 2 नकाबपोश बदमाश आए. उन्होंने बाइक अड़ा कर बस रोकी, पिस्टल लहरा कर धमकाया और श्रेयांश व प्रियांश को बीच में बैठा कर उड़नछू हो गए.

मौके पर आई पुलिस के हाथ नया कुछ नहीं लगा, सिवाय उन सीसीटीवी फुटेज के जो स्कूल के कैमरों में कैद हो गई थी. इन फुटेज को देखने के बाद पुलिस वालों ने अंदाजा लगाया कि अपहरणकर्ताओं की उम्र 25-26 साल के लगभग है और उन की हरकतें देख लगता है कि वे पेशेवर हैं. पूछताछ में यह बात भी सामने आई कि 2 संदिग्ध युवक कुछ दिनों से स्कूल की रैकी कर रहे थे. चूंकि स्कूल में अभिभावकों और दूसरे लोगों की आवाजाही लगी रहती है इसलिए किसी ने उन से कुछ पूछा या कहा नहीं था.

सीसीटीवी फुटेज में दोनों के चेहरे नहीं दिखे क्योंकि उन्होंने भगवा कपड़ा बांध रखा था लेकिन यह जरूर पता चला कि एक बदमाश काली और दूसरा सफेद रंग की टी शर्ट पहने हुए था. यह आशंका भी जताई गई कि दोनों बदमाश बच्चों को ले कर अनुसुइया आश्रम की तरफ भागे हैं और बीच में उन की बाइक रजौरा के पास गिरी भी थी.

चंद घंटों में ही मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में इस हादसे पर खासा बवाल मचा तो पुलिस भी एक्शन में आ गई. सतना के एसपी संतोष सिंह गौर ने कहा कि उत्तर प्रदेश पुलिस की मदद से बच्चों की सुरक्षित वापसी की कोशिशें की जा रही हैं.

अब तक यह भी कहा जाने लगा था कि बदमाश बच्चों को ले कर बीहड़ों में कूद गए होंगे और जल्द ही ब्रजेश रावत से फिरौती मांगेंगे. आशंका यह भी जताई गई कि इस वारदात के पीछे साढ़े 5 लाख के ईनामी बबुली कोल गिरोह का हाथ हो सकता है.

पुलिस ने संदिग्ध लोगों को पकड़ कर उन से पूछताछ शुरू कर दी थी, लेकिन हाथ कुछ नहीं लग रहा था. चित्रकूट को छूती मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमाओं को सीज कर दिया गया. कर्बी के एसपी मनोज कुमार भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. पुलिस टीमों ने हर जगह बच्चों और बदमाशों को तलाशना शुरू कर दिया.

ब्रजेश रावत ने बारबार यह बात दोहराई कि उन का किसी से भी व्यक्तिगत या पारिवारिक विवाद नहीं है और न ही अब तक यानि घटना वाले दिन तक उन से किसी ने फिरौती मांगी है. घंटों के सघन अभियान के बाद भी प्रियांश और श्रेयांश का कोई सुराग नहीं लग रहा था. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने डीजीपी वी.के. सिंह को तलब किया था. इसलिए पुलिस ने मुस्तैदी दिखाते अपने महकमे के उन सभी अधिकारियों को चित्रकूट बुलवा भेजा, जो कभी भी एंटी डकैत गतिविधियों का हिस्सा रहे थे.

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ये तजुर्बेकार अधिकारी नौसिखिए अपराधियों के सामने किस तरह गच्चा खा रहे थे. यह खुलासा बाद में 13 फरवरी को हुआ. उसी दिन आईजी ने मोर्चा संभालते हुए एसआईटी गठित कर डाली, जिस के तहत दोनों राज्यों की पुलिस के लगभग 500 जवान विंध्य के बीहड़ों में बच्चों को तलाशते रहे. अपराधियों का सुराग देने पर डेढ़ लाख रुपए के ईनाम का ऐलान भी किया गया लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात रहा.

इसी बीच उम्मीद के मुताबिक अपहरणकर्त्ताओं ने रावत परिवार से संपर्क कर के मासूमों की रिहाई के एवज में 2 करोड़ रुपए मांगे. 19 फरवरी को रावत परिवार ने उन्हें 20 लाख रुपए दिए भी, लेकिन इस के बाद भी उन्होंने बच्चों को रिहा नहीं किया.

अब तक सार्वजनिक रूप से पुलिस की कार्यप्रणाली और लापरवाही की आलोचना होने लगी थी. चित्रकूट में तो आक्रोश था ही, कर्बी और सतना में भी लोगों ने सड़कों पर विरोध प्रदर्शन किए. अब भाजपाई और कांग्रेसी भी राजनीति पर उतर आए थे, जिस से लगा कि इन नेताओं को बच्चों की सलामती और जिंदगी से प्यारी अपनी आरोपप्रत्यारोप की परंपरागत राजनीति है.

गर्लफ्रेंड के लिए विमान का अपहरण

गर्लफ्रेंड के लिए विमान का अपहरण – भाग 3

बिरजू का इश्क कहां तक था कि इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह अपने प्यार के लिए रायल एयरलाइंस कंपनी खोलने को तैयार हो गए. उन्होंने यह भी सोच लिया था कि उन की इस एयरलाइंस का सारा कामकाज उन की गर्लफ्रेंड ही देखेगी, लेकिन उस का हेडक्वार्टर मुंबई होगा. क्योंकि सल्ला यही चाहते थे कि वह मुंबई आए.

बिरजू ने इशारे इशारे में यह बात अपनी गर्लफ्रेंड को बता भी दी, लेकिन वह इस के लिए भी तैयार नहीं हुई. उस का कहना था कि यह एक तरह का मजाक है, इसलिए वह जहां नौकरी कर रही है, उसे करने दें.

जब बिरजू को लगा कि अब गर्लफ्रेंड किसी भी तरह मुंबई नहीं जाने वाली तो उन्होंने एक साजिश रची. उन्होंने सोचा कि वह ऐसा क्या करें कि जेट एयरवेज ही बंद हो जाए या फिर उस का दिल्ली का औफिस बंद हो जाए. इस के लिए उन्होंने उसे बदनाम करने की योजना बनाई.

इसी के बाद उन्होंने प्लेन हाइजैकिंग की यह साजिश रची और उन्होंने जो लेटर लिखा, उस में लिखा कि अगर यह प्लेन दिल्ली लैंड करेगा तो ब्लास्ट हो जाएगा. उन का सोचना था कि दिल्ली आने के बाद पैसेंजर शोर मचाएंगे तो यह मीडिया में आएगा, जिस से जेट एयरवेज की बदनामी होगी.

हो सकता है इस के बाद जेट एयरवेज अपना दिल्ली का औफिस बंद कर दे. इस के बाद तो उन की गर्लफ्रेंड मजबूरन मुंबई आ जाएगी, क्योंकि जब दिल्ली में नौकरी ही नहीं रहेगी तो वह मुंबई आ ही जाएगी. यही सोच कर उन्होंने यह साजिश रची थी.

यहां तक तो ठीक था, लेकिन बिरजू सल्ला की बदनसीबी यह थी कि इस घटना के 9-10 महीने पहले 2016 में संसद ने एक कानून बनाया था ‘एंटी हाइजैकिंग ऐक्ट 2016’. इस ऐक्ट में यह था कि अगर कोई व्यक्ति किसी प्लेन को हाइजैक करता है और उस हाइजैकिंग के दौरान किसी मुसाफिर या क्रू मेंबर की मौत हो जाती है तो एंटी हाइजैकिंग ऐक्ट के तहत उस पर मुकदमा चलेगा और इस की सजा मौत होगी.

ऐक्ट में यह भी लिखा था कि अगर कोई व्यक्ति प्लेन को हाइजैक करने की कोशिश करता है या किसी तरह की अफवाह फैलाता है यानी बम या हाइजैक करने की खबर देता है तो उस व्यक्ति पर भी एंटी हाइजैकिंग ऐक्ट के तहत मुकदमा चलेगा और उस व्यक्ति को उम्रकैद तक की सजा हो सकती है.

2016 में यह कानून बन गया था. बिरजू को इस कानून के बारे में जानकारी नहीं थी. उन का सोचना था कि अगर वह पकड़े भी गए तो छोटा मोटा मामला है, 2-4 महीने में बाहर आ जाएंगे. लेकिन उन की बदनसीबी ही थी कि 2016 में यह कानून बना और 2017 में 30 अक्तूबर को उन्होंने यह कांड कर दिया.

पूरी जांच के बाद यह मामला एनआईए को सौंप दिया गया. क्योंकि यह आतंकवाद से जुड़ी घटना थी. इसलिए यह पता करना था कि कहीं इस में किसी आतंकवादी संगठन का हाथ तो नहीं है. एनआईए ने पूरे मामले की जांच की और फिर एनआईए की स्पैशल कोर्ट में चार्जशीट दाखिल कर दी.

चार्जशीट दाखिल होने के बाद बिरजू सल्ला पर एनआईए की स्पैशल कोर्ट में मुकदमा चला. 11 जून, 2019 लोअर कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया. यह फैसला बिरजू सल्ला की सोच से बिलकुल अलग था. एंटी हाइजैकिंग ऐक्ट बनने के बाद यह पहला मुकदमा था, जो बिरजू के खिलाफ चला था.

चूंकि कानून बन चुका था कि हाइजैकिंग के दौरान किसी की मौत हो जाती है तो मौत की सजा और हाइजैकिंग की कोशिश की जाती है, वह भले ही ड्रामा ही क्यों न हो, हाइजैकर को उम्रकैद की सजा होगी.

यह दूसरी चीज बिरजू के खिलाफ थी, क्योंकि उन्होंने झूठ में कहा था कि प्लेन में हाइजैकर हैं और कार्गो में बम रखा है. अगर प्लेन पीओके नहीं ले जाया गया तो सभी मारे जाएंगे. इस तरह 30-35 मिनट सभी पैसेंजरों ने जो कष्ट भोगा यानी ऐसी स्थिति में मौत सामने नजर आती है, इस बात को बड़ी गंभीरता से लिया गया और 2016 के उस एंटी हाइजैकिंग ऐक्ट की धारा 3(1), 3(2)(ए), 4बी के तहत दोषी ठहराते हुए एनआईए की स्पैशल कोर्ट ने बिरजू सल्ला को बाकी जीवन के लिए आजीवन कारावास की सजा सुना दी थी.

हाईकोर्ट के फैसले से मिली राहत

इश्क में पागल बिरजू सल्ला कहां अपनी गर्लफ्रेंड को मुंबई लाना चाहते थे और कहां अब उन की पूरी उम्र जेल में गुजरने वाली थी. 11 जून, 2019 को यह सजा सुनाई गई थी. पर इतना ही नहीं, उन की तमाम प्रौपर्टी भी जब्त करने का आदेश दिया गया था. उन पर 5 करोड़ रुपए का जुरमाना भी लगाया गया था.

5 करोड़ की इस राशि के बारे में कहा गया था बिरजू से मिलने वाली इस राशि को चालक दल और यात्रियों में बांट दिया जाए. इस में से एकएक लाख रुपए पायलटों को, 75-75 हजार रुपए एयरहोस्टेस को तो 25-25 हजार रुपए सवारियों को बांटने का आदेश दिया गया था.

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सजा सुनाए जाने के बाद बिरजू सल्ला को अहमदाबाद की साबरमती जेल भेज दिया गया. घर वालों ने एनआईए के इस फैसले के खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट में अपील की. जिस की सुनवाई साल 2023 में शुरू हुई और 8 अगस्त, 2023 को हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति ए.एस. सुपेहिया और एम.आर. मेंगडे की पीठ ने अपने फैसले में बिरजू सल्ला को बरी करते हुए कहा कि एनआईए यह साबित नहीं कर पाई कि विमान के वाशरूम में पाया गया नोट बिरजू सल्ला ने ही रखा था.

न्यायमूर्ति श्री सुपेहिया ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह भी साबित नहीं कर सका कि आरोपी ने अकेले अपने औफिस में बैठ कर वह धमकी भरा नोट तैयार किया था.

उच्च न्यायालय ने कहा कि जैसा कि शुरुआती जांच में कहा गया है कि सल्ला ने बताया है कि जेट एयरवेज की कर्मचारी अपनी प्रेमिका के लिए एयरलाइन को बदनाम करने के लिए उन्होंने यह अपराध किया था, लेकिन आगे चल कर जांच के दौरान उस के इस मकसद ने अपना महत्त्व खो दिया. इसलिए जो भी सबूत पेश किए गए हैं, उन के अध्ययन से पता चलता है कि वे संदेहात्मक हैं, जो आरोपी को अपराधी नहीं घोषित करते.

जो भी सबूत हैं, वे स्पष्ट रूप से अपीलकर्ता को अपहरण जैसे गंभीर आरोप में दोषी सिद्ध नहीं करते. इसलिए संदेह से भरे सबूतों के आधार पर अपहरण के अपराध में अपीलकर्ता दोषी ठहराने और सजा देने के ट्रायल कोर्ट के फैसले से सहमत नहीं हैं और अपीलकर्ता को बरी करने का आदेश दिया जाता है.

बिरजू सल्ला को अपहरण के आरोप से बरी करते हुए उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि बिरजू सल्ला पर लगाए गए 5 करोड़ रुपए के जुरमाने को भी रद्द किया जाता है.

एयरलाइन के पायलट और चालक दल को ट्रायल कोर्ट ने जिन्हें रुपए देने का आदेश दिया था, अगर उन्होंने रुपए लिए हैं तो वे पैसे वापस करें. जुरमाने की राशि उच्च न्यायालय ने बिरजू को वापस करने का आदेश दिया. इसी के साथ यह भी आदेश दिया कि अगर राज्य सरकार यह रुपया वापस नहीं ले पाती तो खुद यह पैसा अपने पास से सल्ला को वापस करे.

इस तरह बिरजू को हाईकोर्ट से राहत तो मिल गई, लेकिन वह गर्लफ्रेंड के चक्कर में 6 साल की जेल काट कर बाहर आए.