Facebook पर रिक्वेस्ट भेज पाकिस्तानी जासूस लड़कियां भारत के अधिकारियों को फंसाती

फेसबुक  (Facebook) और वाट्सऐप सोशल मीडिया के ऐसे आसान और सर्वसुलभ साधन हैं, जो परिचितों, मित्रों से निरंतर संपर्क बनाए रखने का जरिया तो हैं ही, लेकिन अब इन माध्यमों का उपयोग जासूसी के लिए भी होने लगा है. उत्तर प्रदेश एटीएस ने ऐसे ही मामले का भंडाफोड़ किया…   

दे के लिए रक्षा उपकरण बनाने वाली कंपनी में काम करने वाले विकास को इस बात का पता तक नहीं था कि वह एक विदेशी युवती के चक्कर में फंस कर हनीट्रैप का शिकार हो रहा है. सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने वाले तमाम भारतीयों की तरह विकास भी खाली समय में फेसबुक पर एक्टिव हो जाता था. एक दिन फेसबुक पर उसे एक पाकिस्तानी युवती सना और एक कश्मीरी युवती की फ्रैंड रिक्वेस्ट मिली. अधिकांश युवक लड़कियों से दोस्ती करना पसंद करते हैं. विकास को भी लड़कियों से दोस्ती करना अच्छा लगता था, इसलिए उस ने दोनों की फ्रैंड रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली.

उन युवतियों के विकास के अलावा भारत में अन्य दोस्त भी थे. दोनों लड़कियां अपने उन दोस्तों के बारे में भी विकास से बातें किया करती थीं. धीरेधीरे उन के बीच आपस में निजी बातें होने लगीं. दोस्ती, लाइफस्टाइल और एकदूसरे की हौबीज से शुरू हुई बातचीत में कभीकभी काम के बारे में ज्यादा बात हो जाती थी. विदेशी युवतियां बातचीत में इतनी माहिर थीं कि उन की हकीकत का पता ही नहीं चला. वह अकसर रात में ही बात करती थीं. ज्यादातर बातें आपसी पसंदनापसंद की होती थीं. विकास को यह पता भी नहीं था कि इस के पीछे कोई वजह हो सकती है. कुछ दिन की बातचीत से विकास को यह अनुभव हो रहा था कि उस की महिला दोस्त उस के कामकाज के बारे में ज्यादा बात करती हैं. एक बार पाकिस्तानी महिला दोस्त सना ने उस से पूछा, ‘‘विकास, तुम अपने औफिस में क्याक्या करते हो?’’

‘‘मैं औफिस में डिजाइन वर्क देखता हूं. यह बहुत महत्त्वपूर्ण होता है. इस में मैं कई लोगों को सहयोग भी करता हूं.’’ विकास ने उसे बताया.

‘‘अच्छा, कभी हमें भी अपने डिजाइन दिखाओ. हम भी देखें कि तुम कैसे डिजाइन करते हो?’’ सना ने कहा.

‘‘नहीं भाई, यह बहुत ही कौन्फीडेंशियल होता है. हर किसी को नहीं दिखाया जा सकता.’’ कह कर विकास ने बात टाल दी.

कुछ दिन शांत रह कर सना ने इधरउधर की बातें कीं और फिर एक दिन वह घूमफिर कर डिजाइन और उस के काम की चर्चा करने लगी. विकास यह तो समझ रहा था कि इस तरह की जानकारी किसी को नहीं देनी चाहिए, पर वह सना की बातों में फंस जाता था. सना को वह इतना पसंद करता था कि वह उस से बातचीत किए बिना अधूराअधूरा महसूस करता था. उन के बीच वीडियो कौलिंग भी होने लगी थी. सना की अंगरेजी भाषा पर अच्छी पकड़ थी. वह फर्राटेदार अंगरेजी बोलती थी. इस के अलावा जब वह विकास से बात करती तो उस की बातों में अपनत्व झलकता था. वह उसे अपने फोटो भी भेजती थी. अलगअलग रोमांटिक अंदाज में खींचे गए उस के फोटो विकास के दिल में हलचल पैदा कर देते थे.

विकास को उस पर किसी तरह की शंका हो, इस के लिए सना अपने घरपरिवार के बारे में भी विकास को बताती थी. उस ने खुद को अविवाहित बताया था. विकास से वह भारत की बहुत तारीफ करती थी. कई बार वह विकास को यह भी बता चुकी थी कि इस बार वह ईद के मौके पर भारत घूमने आएगी. तब दोनों खूब घूमेंगे और मस्ती करेंगे. सना की यह बात सुन कर विकास मानो आसमान में उड़ने लगा था. उस ने उसी समय तय कर लिया था कि वह सना को घुमाने कहांकहां ले कर जाएगा.

विकास ने उस से कहा, ‘‘सना, वैसे तो हमें लंबी छुट्टी नहीं मिलती, क्योंकि आजकल हम लोग बहुत ही खास मिशन पर काम कर रहे हैं. लेकिन जब तुम भारत आओगी तो हम तुम्हारे साथ घूमने जरूर चलेंगे. मेरे लिए तुम्हारे साथ घूमना सपने जैसा है.’’

‘‘विकास, तुम चिंता मत करो, मैं जब भारत आऊंगी तो दोनों खूब ऐश करेंगे. तुम्हें तो पता ही है कि भारत पाकिस्तान में रहने वालों की बात छोड़ दी जाए तो बाकी देशों के लोग कितना घूमते हैं. केवल हम लोगों के ही पास घूमने और मजे करने का समय नहीं होता

‘‘तुम चिंता मत करो, बस अपनी बातें मुझ से शेयर करते रहो. इस तरह बातचीत करते रहने से हमारी दोस्ती मजबूत होती रहेगी.’’ सना ने विकास को समझाने की पूरी कोशिश की. विकास को अब सना की बातों में सच्चाई नजर आने लगी थी. वह उस के और करीब जाने लगा. अब वह अपने औफिस की बातें भी सना से शेयर करने लगा. बीचबीच में वह अपने काम के फोटो भी सना से शेयर करता थासना भी विकास की पर्सनल बातों से अधिक औफिस के कामों में रुचि लेने लगी थी. सना के साथ ही साथ एक और लड़की से भी उस की दोस्ती हो गई, जिस का नाम निक्की था. निक्की खुद को कश्मीरी बताती थी.

निक्की की बातों का फोकस कश्मीर को ले कर चल रही भारत की गतिविधियों पर था. वह उसे अपने बहुत ही ग्लैमरस फोटो भेजा करती थी. कई बार तो विकास अपनी तरफ से डिमांड कर देता था कि इस तरह की फोटो भेजो. निक्की उसे उसी तरह के फोटो भेज देती थीनिक्की हर दिन नए अंदाज में फोटो भेजने में माहिर थी. ऐसे में विकास जल्दी ही उस के जाल में फंस गया. वह यह पूछा करती थी कि कश्मीर में युद्ध कैसे होता है. वहां के लिए कैसी तैयारी होती है. इन सवालों से विकास को यह समझ गया कि वह किसी जाल में फंसता जा रहा है, इसलिए उस ने निक्की से दूरी बनानी शुरू कर दी.

खुफिया विभाग को इस बात की जानकारी मिल रही थी कि कुछ विदेशी ताकतें भारत की महत्त्वपूर्ण जानकारियां हासिल करने के लिए हनीट्रैप का सहारा ले रही हैं. इस के बाद खुफिया विभाग ने डेढ़ सौ से अधिक फेसबुक खातों को निशाने पर लिया. इस से कई ऐसे खाते मिले जो संदिग्ध लग रहे थे. उत्तर प्रदेश एटीएस और मिलिट्री इंटेलीजेंस ने जासूसी के आरोप में 8 अक्तूबर, 2018 को डीआरडीओ के सीनियर इंजीनियर निशांत को गिरफ्तार किया. आरोप है कि उस ने ब्रह्मोस मिसाइल यूनिट से अहम तकनीकी जानकारियां चोरी कर के अमेरिका और पाकिस्तान में हैंडलर्स तक पहुंचाईं. यह इंजीनियर अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए की एक महिला एजेंट के जाल में फंसा था

आरोपी के लैपटौप को चैक किया गया तो उस के लैपटौप में कई संवेदनशील जानकारियां मौजूद थीं. जांच में इस बात की भी पुष्टि हुई कि वह पाकिस्तान के किसी व्यक्ति के साथ फेसबुक पर चैटिंग करता था. आरोपी निशांत अग्रवाल डीआरडीओ के ब्रह्मोस एयरोस्पेस में 4 साल से सीनियर सिस्टम इंजीनियर के पद पर कार्यरत था. वह हाइड्रोलिक न्यूमेटिक्स और वारहेड इंटीग्रेशन प्रोडक्शन डिपार्टमेंट के 40 लोगों की टीम को लीड करता थानिशांत ब्रह्मोस की सीएसआर और आर ऐंड डी ग्रुप का सदस्य भी था. फिलहाल वह ब्रह्मोस के नागपुर और पिलानी साइट्स के प्रोजेक्ट का कामकाज देख रहा था

पिछले साल यूनिट की ओर से उसे युवा वैज्ञानिक का पुरस्कार मिला था. वह बहुत प्रतिभाशाली था. निशांत पर आरोप लगा कि वह सोशल मीडिया से खुफिया एजेंसियों को जानकारी भेजता था. निशांत दिल्ली में मौजूद अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए की एजेंट के करीब था. उस की बातचीत पाकिस्तान के हैंडलर से भी होती थी. वह मिसाइल तकनीक की जानकारियां भेजने के लिए सोशल मीडिया के एनक्रिप्टेड कोडवर्ड और गेम के चैट जोन का इस्तेमाल कर रहा था. मामला प्रकाश में आने पर सेना के वरिष्ठ अधिकारी भी इस मामले पर नजर बनाए हुए हैं. जांच एजेंसी यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि आरोपी ने मिसाइल से जुड़ी कौनकौन सी सूचनाएं लीक की हैं. इस से पहले पुलिस ने कानपुर से एक महिला को भी गिरफ्तार किया था.

आईजी (एटीएस) असीम अरुण की अगुआई में कुछ समय पहले एटीएस ने बीएसएफ की एक महिला सिपाही को गिरफ्तार किया था, जिसे फेसबुक से फंसाया गया था. जांच के दौरान 2 फेसबुक की आईडी मिली थीं, जिन के आधार पर एटीएस ने जांच करते हुए गुजरात में निशांत की डिटेल चैक की तो उस के लैपटौप में कई संवेदनशील जानकारियां मिलीं. निशांत रुढ़की का रहने वाला है. उस के पास अतिगोपनीय दस्तावेज थे. उस ने कितने दस्तावेज किसी और को दिए, इस पर जांच चल रही है. उस से फेसबुक के द्वारा संपर्क साधा गया था. वहां से जौब औफर करने के बाद उसे फंसाया गया

उस के पास 2 लड़कियों की फेसबुक आईडी थीं, जो फरजी पाई गईं. इन का आईपी एड्रेस पाकिस्तान का पाया गया. लड़कियों की आईडी के जरिए वह लोगों को अपने जाल में फांसता था. लड़कियों की इन आईडी से किनकिन लोगों से संपर्क किया गया था, पुलिस जांच करने लगी. सेना के जंगी बेड़े में शामिल ब्रह्मोस मिसाइल परमाणु हथियारों के साथ हमला करने में सक्षम है. यह 3700 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से 290 किलोमीटर तक मार करने की क्षमता रखती है. कम ऊंचाई पर उड़ान भरने के कारण यह राडार की पकड़ में भी नहीं आती. इसे डीआरडीओ ने विकसित किया है

ब्रह्मोस मिसाइल को ले कर विदेशियों में एक डर बना हुआ है. ऐसे में वह इस बात की फिराक में रहते हैं कि भारत की रक्षा संबंधी ज्यादा से ज्यादा जानकारी हासिल हो सके. आज के दौर में जासूसी करना सरल हो गया है. क्योंकि अब सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जरिए जासूसी होने लगी है. फेसबुक और वाट्सऐप के जरिए लोगों को हनीट्रैप में फंसाना सरल हो गया है. ऐसे में जरूरी है कि कुछ ऐसे उपाय हों, जिस से हमारे खास लोगों को फंसाया जा सके.

   —कहानी में कुछ पात्रों के नाम परिवर्तित हैं

 

नकली Police बनकर प्रेमी और प्रेमिका ने गांव वालो को ठगा

भगवानदास और ज्योति ने नकली पुलिस बन कर कमाई का रास्ता तो निकाल लिया था, पर वे ये नहीं सोच सके कि नकली और असली का फर्क पता चल ही जाता है. आखिर…

मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिला मुख्यालय से महज 5 किलोमीटर दूर एक गांव है कुम्हड़ी. आदिवासी बहुल इस छोटे से गांव में रहने वाले उम्मेद ठाकुर की 24 वर्षीय बेटी ज्योति की पुलिस में सिपाही की नौकरी लगने की जानकारी से गांव के लोग बहुत खुश थे.  गांव के युवक जब ज्योति को पुलिस की वरदी में देखते तो उन की आंखों में भी पुलिसिया रौब वाली इस नौकरी को पाने के सपने सजने लगते थे. ज्योति के पिता उम्मेद ठाकुर गांव वालों को बताते थे कि उन का दामाद सूरज धुर्वे पुलिस में दरोगा है, उस की पुलिस अधिकारियों से अच्छी जानपहचान है.

इसी जानपहचान की बदौलत उस ने ज्योति की सिपाही के पद पर नौकरी लगवा दी. गांव वाले उम्मेद ठाकुर की ही नहीं बल्कि उस की बेटी ज्योति की भी बहुत तारीफ करते और ज्योति से पुलिस में भरती होने के उपाय पूछते थे. तब ज्योति उन्हें कड़ी मेहनत करने और खूब पढ़ाई करने की सलाह देती थी. पिछले करीब एक महीने से गांव वाले देख रहे थे कि रात के समय उम्मेद ठाकुर के घर रोज पुलिस की नेमप्लेट लगी एक बोलेरो गाड़ी आती थी. सब लोग समझते थे कि उम्मेद ठाकुर की लड़की ज्योति पुलिस में है, ड्यूटी के बाद पुलिस की गाड़ी उसे छोड़ने आती होगी. नीली बत्ती लगी हूटर बजाती हुई वह बोलेरो गाड़ी जब उम्मेद के घर की तरफ आती तो उसे देखने के लिए अन्य लोगों के अलावा पढ़ेलिखे नवयुवक भी आ जाते.

गाड़ी से पुलिस की वरदी पहने एक साधारण कदकाठी और करीब 25 साल के युवक के साथ ज्योति नीचे उतरती तो गांव वाले उन्हें नमस्कार के साथ खूब सम्मान देते थे. पुलिस की वरदी पहने युवक के कंधे पर 2 स्टार लगे थे. सामने शर्ट की जेब के ऊपर लगी नेमप्लेट पर उस का नाम सूरज कुमार धुर्वे एसआई लिखा हुआ था. पुलिस बेल्ट में रिवौल्वर और सिर पर पुलिस कैप लगी रहती. गांव में बारबार आने वाले पुलिस दरोगा सूरज धुर्वे गांव के लोगों को पुलिसिया धौंस के साथ यह प्रलोभन भी देने लगे थे कि कुछ पैसे खर्च करो तो हम आप के बेटेबेटियों की पुलिस में भरती करवा देंगे. वह यह भी बताता कि उस की पुलिस मुख्यालय (भोपाल) में ऊंची पहुंच है, जिस के बूते पर उस ने ज्योति को पुलिस में भरती करा दिया है.

इसी साल के जुलाई महीने में यह गाड़ी ग्रामीण इलाकों में कुछ ज्यादा ही घूमने लगी थी. दरोगा सूरज धुर्वे गांव के कुछ युवाओं से पुलिस में नौकरी लगवाने के नाम पर खुलेआम पैसों की मांग करता था. एक दिन तो दरोगा सूरज एक मामले में ग्राम पंचायत के रोजगार सहायक का वारंट ले कर आया. उस के साथ ज्योति भी थी. इन दोनों ने रोजगार सहायक से 10 हजार रुपए ऐंठ लिए. आए दिन ये लोग क्षेत्र की किसी भी सड़क पर वाहन चैकिंग करने लगते. फिर गाड़ी के कागजों में कोई कमी निकाल कर या हेलमेट न पहनने के नाम पर वसूली करते थे. इस से लोगों में इन के प्रति नाराजगी भी दिखने लगी थी. पुलिस के इन दोनों कर्मचारियों की गतिविधियों की चर्चा जिला मुख्यालय नरसिंहपुर में भी होने लगी थी. इस के बाद तो लोग इन की कदकाठी और गतिविधियों को ले कर शंकित भी रहने लगे थे.

जब कुछ ग्रामीणों को इन की गतिविधियों पर शक हुआ तो कुम्हड़ी गांव के ही कालूराम मल्लाह और गंजन लोधी ने इस की सूचना थानाप्रभारी आर.के. गौतम को दी. थानाप्रभारी ने जब अपने स्तर से दरोगा सूरज धुर्वे और आरक्षक ज्योति की जांच की तो चौंकाने वाली जानकारी हाथ लगी. पता चला कि इस जिले में इस नाम का व्यक्ति पुलिस महकमे में पदस्थ नहीं है. थानाप्रभारी ने पुलिस अधीक्षक डी.एस. भदौरिया और एसडीपीओ राकेश पेंड्रो को इस मामले की सूचना दे दी. इस के बाद एसपी डी.एस. भदौरिया ने उन तथाकथित पुलिस वालों को गिरफ्तार करने के लिए एसडीपीओ के नेतृत्व में पुलिस टीम बनाई. टीम ने मुखबिरों को बता दिया कि जैसे ही सूरज धुर्वे और ज्योति पुलिस वरदी में दिखे, उन्हें सूचित कर दें.

19 जुलाई, 2018 की शाम को जैसे ही सूरज धुर्वे और ज्योति हूटर बजाती हुई गाड़ी में कुम्हड़ी गांव पहुंचे तो मुखबिर ने थानाप्रभारी आर.के. गौतम को इत्तला दे दी. सूचना मिलते ही पुलिस टीम कुम्हड़ी गांव पहुंच गई. टीम ने ग्रामीणों को ठगी का शिकार बना रहे तथाकथित दरोगा सूरज कुमार धुर्वे, आरक्षक ज्योति ठाकुर और वाहन चालक बृजेश मेहरा को धर दबोचा. पुलिस ने इन के पास से पुलिस को नकली आईडी कार्ड, एमपी49 टी1054 नंबर की बोलेरो गाड़ी जब्त की, जिस में हूटर और वायरलैस सेट लगा था. ग्रामीणों ने फिल्मों में नकली पुलिस की भूमिका निभाते ऐसे कई किरदार देखे थे परंतु नरसिंहपुर जिले में असल जिंदगी में भी नकली पुलिस बन कर ठगी करने वाला यह मामला पहली बार सामने आया था.

जिले के आला पुलिस अफसरों को जब इस की जानकारी मिली तो उन के होश उड़ गए. आरोपियों को पुलिस अभिरक्षा में ले कर की गई पूछताछ में पुलिस को जो जानकारी मिली, वह काफी चौंकाने वाली थी. प्रैसवार्ता का आयोजन कर एसडीपीओ आर.के. पेंड्रो ने बताया कि मूलरूप से सिंगरौली जिले के देवसर गांव का रहने वाला युवक भगवान दास, एसआई सूरज धुर्वे बन कर घूम रहा था. उस ने पुलिस का फरजी आईकार्ड भी बना रखा था. वहीं उस के साथ रह रही कुम्हड़ी गांव के उम्मेद ठाकुर की बेटी ज्योति ठाकुर फरजी महिला आरक्षी बन कर घूमती थी. दोनों करीब 7 महीने पहले जबलपुर रेलवे स्टेशन पर पहली बार एकदूसरे से मिले थे.

पहली ही मुलाकात में दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ गई थीं. महज नौवीं कक्षा तक पढ़े ये दोनों युवकयुवती प्यार की दुनिया में खो कर सुनहरे सपने तो सजा रहे थे लेकिन इन के बीच बेरोजगारी दीवार बन कर खड़ी थी. पैसों की तंगी से परेशान दोनों ने पैसा कमाने के लिए नकली पुलिस बनने की योजना बनाई थी.

पुलिस की वरदी इन्होंने जबलपुर के किसी टेलर से तैयार कराई थी. पुलिस वरदी में उपयोग होने वाली नेमप्लेट, स्टार, नकली रिवौल्वर, हूटर भी जबलपुर से खरीदे थे. आरोपी भगवानदास उर्फ सूरज कुमार खुद को डीजी पुलिस का करीबी बता कर लोगों से काम कराने के नाम पर वसूली करता था. वह और ज्योति पतिपत्नी के रूप में रह रहे थे. दोनों ने गांव नंदवारा निवासी राजेश की उक्त नंबर की बोलेरो जीप 22 हजार महीना किराए पर ले रखी थी. उस कार को उन्होंने पुलिस वाहन की तरह तैयार करवा लिया था, जिस में 2 जगह अंगरेजी में पुलिस लिखा हुआ था. इस वाहन में पुलिस वाहन की तरह ही एंप्लीफायर व हूटर भी लगे हुए थे. इसे राजेश का चचेरा भाई 32 वर्षीय ब्रजेश चलाता था.

ब्रजेश मेहरा का कहना था कि वह तो केवल ड्राइवर की नौकरी कर रहा था. उसे यह नहीं पता था कि ये नकली पुलिस वाले हैं. ये लोग जिस जगह के लिए गाड़ी ले कर चलने को कहते थे, वह चल देता था. फिल्म बंटी बबली की तर्ज पर सामने आए इस मामले ने क्षेत्र में गहमागहमी बढ़ा दी थी. जिले में नकली पुलिस के पकड़े जाने की घटना सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बन गई थी. बहरहाल, पुलिस ने ज्योति ठाकुर, भगवानदास उर्फ सूरज धुर्वे और बोलेरो चालक ब्रजेश मेहरा के खिलाफ भादंवि की धारा 419, 420, 471 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर के उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर और जनचर्चा पर आधारित

युवाओं का रोल मौडल बना गैंगस्टर दुर्लभ कश्यप

युवाओं का रोल मौडल बना गैंगस्टर दुर्लभ कश्यप – भाग 3

दुर्लभ के स्टाइल में उतरी सोनिया

अक्तूबर, 2022 में वाराणसी के सिगरा में भाजपा नेता पशुपतिनाथ सिंह की हत्या के आरोप में पुलिस ने जिन लडक़ों को गिरफ्तार किया था, उन में से अधिकतर दुर्लभ कश्यप के फैन निकले थे. मुठभेड़ में गिरफ्तार 307 गैंग के सरगना राहुल सरोज के मोबाइल में दुर्लभ कश्यप पर बने कई वीडियो भी मिले थे.

यही नहीं, राहुल के इंस्टाग्राम पर रील और फेसबुक पर वीडियो भी दुर्लभ कश्यप से हूबहू मेल खाती है. माथे पर तिलक, आंखों में काजल, कंधे पर गमछा, हलकी दाढ़ी और गले में रुद्राक्ष की माला पहनने वाला राहुल भी दुर्लभ की स्टाइल में रहता था. उस के 307 गैंग में जयप्रकाश नगर, चंदुआ, छित्तूपुर, शिवपुरवा, माधोपुर के 40 से 45 नौजवान शामिल हैं. सभी वाट्सऐप ग्रुप 307 के सदस्य हैं, जिस का एडमिन राहुल सरोज, विकास राजभर और पवन हैं.

क्राइम ब्रांच ने राहुल और पवन के मोबाइल खंगाले तो कई वीडियो और फोटो निकल कर सामने आए. राहुल के इंस्टाग्राम और फेसबुक पर पोस्ट भी खतरनाक और चेतावनी वाले थे. दुर्लभ कश्यप का तो अंत हो गया, लेकिन आज भी कई युवा उसे अपना रोल मौडल मानते हैं.

ऐसी ही एक युवती को उज्जैन पुलिस ने जनवरी 2023 में गिरफ्तार किया. युवती ने सोशल मीडिया पर रिवौल्वर और चाकू के साथ अपने कुछ फोटो और वीडियो अपलोड किए थे. उस ने दुर्लभ की तरह ही माथे पर टीका लगा कर और गले में गमछा डाले हुए कुछ फोटो भी अपलोड किए तो पुलिस ने उस के खिलाफ आम्र्स ऐक्ट के तहत केस दर्ज कर लिया.

उज्जैन के पंवासा मल्टी के पास से एक युवती को रास्ते में धारदार चाकू लहराते हुए आतेजाते लोगों को धमकाते हुए देखा गया था. सूचना मिलने पर पुलिस ने घेराबंदी कर युवती को गिरफ्तार कर उस के पास से चाकू बरामद किया. युवती का नाम सोनिया उर्फ नेपु थापा था. वह 19 साल की थी और नानाखेड़ा के आनंद नगर इलाके में रहती थी.

छोटी उम्र में ही उस के पिता का देहांत हो गया था, तब से मां के साथ अकेली रहती थी. सोशल मीडिया पर सोनिया काफी ऐक्टिव है, जब पुलिस ने उस का इंस्टाग्राम अकाउंट देखा तो पिस्टल के साथ और नशा करते हुए कई फोटो दिखाई दिए. उस ने कुछ फोटो के कैप्शन में 307 और 302 भी लिख रखा था. इस के अलावा हुक्का पीते, डांस करते, सिगरेट के छल्ले उड़ाते और शराब पीते हुए वह अन्य कई फोटो व वीडियो में नजर आ रही थी.

दुर्लभ कश्यप सोशल मीडिया पर काफी पापुलर था और सोनिया उस से काफी प्रभावित है. वह उस की तरह दिखना चाहती है और उसे अपना रोल मौडल समझती है. उस ने पुलिस को बताया था कि दुर्लभ कश्यप की वीडियो वह सोशल मीडिया पर देखा करती थी और उस ने कुछ फोटो और वीडियो डाले हैं, जिस में खुद को दुर्लभ जैसा लुक देने की कोशिश की है.

दुर्लभ की मौत की कहानी

18 साल की उम्र में दुर्लभ कश्यप के खिलाफ 9 केस दर्ज हो गए थे. वह जेल से भी गैंग चलाता रहा. 2 साल जेल में बंद रहने के बाद कोरोना काल के दौरान साल 2020 में उस की रिहाई हो गई. वह कुछ दिन इंदौर में रह कर मां के पास उज्जैन लौट आया.

कहा जाता है कि बुराई का अंजाम बुरा ही होता है. ठीक वैसे ही दुर्लभ का बढ़ता कद अपराध की दुनिया के दूसरे बादशाहों को खटकने लगा था. उस की दुश्मनी दिनरात बढ़ती जा रही थी. ऐसे में उज्जैन के ही शाहनवाज गैंग ने दुर्लभ को खत्म करने का प्लान बनाया था.

6 सितंबर, 2020 को दुर्लभ अपने घर में कुछ दोस्तों के साथ मां के हाथ की बनाई दाल बाटी खाने के बाद रात को अपने साथियों के साथ घर से निकला था.

देर रात सडक़ों पर घूमते हुए दुर्लभ अपने साथियों से बोला, “यार, चाय पीने का मन हो रहा है, लेकिन आसपास की दुकानें तो बंद नजर आ रही हैं.”

“भाई, उधर हेलावाड़ी इलाके की एक दुकान देर रात तक खुली रहती है, वहां पर चल कर चाय की चुस्कियां लेंगे.” गैंग का एक साथी राजदीप बोला.

इस के बाद बाइक से दुर्लभ अपने साथियों के साथ हेलावाड़ी इलाके की चाय की दुकान पर पहुंच गया. इस दौरान पहले से शाहनवाज गैंग के लोग वहां मौजूद थे. जब दुर्लभ का शाहनवाज से आमनासामना हुआ तो दुर्लभ ने शाहनवाज पर गोली चला दी. गोली उस की गरदन के पास से हो कर निकली थी.

बदले में शाहनवाज के साथियों ने दुर्लभ को घेर कर चाकू से उस के पेट, पीठ, चेहरे, गरदन पर ताबड़तोड़ 34 वार किए. दुर्लभ के दोस्त इस दौरान उसे छोड़ कर भाग गए थे. दोनों के बीच जबरदस्त गैंगवार हुई, जिस में दुर्लभ की चाकुओं से गोदगोद कर हत्या कर दी गई.

घटना के बाद सुबह 4 बजे जीवाजीगंज थाने की पुलिस व उज्जैन के तत्कालीन सीएसपी ए.आर. नेगी मौके पर पहुंचे थे. एफएसएल अधिकारी डा. प्रीति गायकवाड़ ने घटनास्थल से 3 चप्पलें भी जब्त कराई थीं. पुलिस ने दुर्लभ की मां पद्मा को घटनास्थल पर ले जा कर दुर्लभ की शिनाख्त कराई. दुर्लभ के पिता भी सुबह अस्पताल पहुंचे.

चाय की दुकान चलाने वाला अमन उर्फ भूरा घटना का मुख्य चश्मदीद था, जिसे पुलिस ने फरियादी बनाया. उस की रिपोर्ट पर दुर्लभ, राजदीप, अमित सोनी, अभिषेक शर्मा समेत एक अन्य के खिलाफ हत्या के प्रयास समेत अन्य धारा में केस दर्ज किया.

दुकानदार ने बताया, “दुर्लभ ने कहासुनी के बाद जैसे ही गोली चलाई, शाहनवाज घायल हो कर सडक़ पर बैठ गया. इस के बाद भगदड़ मच गई. इरफान व अमन उस्ताद उसे अस्पताल ले कर भागे. मैं भी घबरा कर भाग गया था.”

दूसरे पक्ष से दुर्लभ के खास साथी अभिषेक शर्मा की रिपोर्ट पर जीवाजीगंज पुलिस ने घायल शाहनवाज, शादाब, हिस्ट्रीशीटर रमीज, राजा व भूरा के खिलाफ हत्या की धाराओं में केस दर्ज किया.

अभिषेक ने बताया, “दुर्लभ के घर दाल बाटी खाने के बाद रात करीब डेढ़ बजे सिगरेट व चाय पीने दुकान पर गए थे. वहां शाहनवाज व शादाब से किसी बात पर दुर्लभ का झगड़ा हो गया और दुर्लभ को चाकू मारने लगे. चायवाला अमन उर्फ भूरा चिल्ला कर कह रहा था कि शादाब भाई इसे जान से खत्म कर दो, जिंदा मत छोडऩा.”

दुर्लभ की मां इस सदमे को बरदाश्त नहीं कर सकी थीं. उज्जैन में वह एकदम अकेले पड़ गई थीं, यही वजह रही कि उन्होंने भी बेटे के गम में 7 महीने बाद दम तोड़ दिया था.

दुर्लभ के जीवन पर बनी फिल्में

छोटी उम्र में अपराध की दुनिया का एक ऐसा बेताज बादशाह जिस की दहशत से न सिर्फ धार्मिक नगरी उज्जैन कांपती थी, बल्कि मालवा के इलाकों में उस के अपराध की तूती बोलने लगी थी. एक ऐसा गैंगस्टर जो औनलाइन गैंग चलाता था और कई वारदातों को अंजाम दे कर उज्जैन में बड़े गैंगस्टरों की लिस्ट में शामिल हो गया था.

उज्जैन का दुर्लभ कश्यप एक ऐसा ही गैंगस्टर था, जिस ने नाबालिग अवस्था में ही जुर्म की दुनिया में अपना नाम बनाया. उसी समय उज्जैन के एसपी सचिन अतुलकर हुआ करते थे.

एक बार जेल विजिट के दौरान उन्होंने दुर्लभ को देख कर कहा था, “तू जेल में ही सेफ है, उम्र से ज्यादा दुश्मनी पाल ली है, बाहर निकलेगा तो कोई मार देगा.”

दुर्लभ कश्यप अपने आसपास के युवाओं के बीच इतना प्रसिद्ध था कि लोग उसे लायन औफ उज्जैन कहते थे. आज भी उस के नाम पर उज्जैन में गैंग चल रहे हैं. इतना ही नहीं, दुर्लभ कश्यप के जीवन पर फिल्में भी बन चुकी हैं. ‘शूटर’ फिल्म में शानदार अभिनय करने वाले पंजाबी फिल्मों के अभिनेता जय रंधावा ने इस फिल्म में दुर्लभ की भूमिका निभाई है.

गैंगस्टर दुर्लभ पर फिल्म निर्माता मोहित मनाल, निर्देशक रोहित कुमार आर्यन ने ‘गैंगस्टर दुर्लभ कश्यप’ नाम की फिल्म बनाई है. यूट्यूब चैनल और ओटीटी प्लेटफार्म पर भी दुर्लभ के जीवन से जुड़ी फिल्में आसानी से देखी जा सकती हैं. कुछ भी हो, अपराध की दुनिया के युवाओं के लिए दुर्लभ कश्यप एक रोल मौडल है.

—कथा मीडिया रिपोर्ट पर आधारित

युवाओं का रोल मौडल बना गैंगस्टर दुर्लभ कश्यप – भाग 2

दुर्लभ और उस के साथी उज्जैन के दानी गेट इलाके में उस जगह बैठा करते थे, जहां मुर्दों का दाह संस्कार किया जाता था. दाह संस्कार करने वाले कुछ लोग काला पंछा यानी गमछा कंधे पर डाला करते थे. अपने आप को वजनी दिखाने के लिए इस गैंग के लोगों ने भी गमछा डालना शुरू कर किया. बाद में कंधों पर पंछा और खड़ा लाल टीका दुर्लभ गैंग की पहचान बन गए.

सोशल मीडिया के जरिए दिखाई ताकत

दुर्लभ कश्यप का फेसबुक अकाउंट था, जिस के जरिए वह अपराध फैलाता था. दुर्लभ सोशल मीडिया पर हमेशा सक्रिय रहता था. वह खुद को और अपने गैंग को प्रमोट करने के लिए फेसबुक का सहारा लेता था. दुर्लभ ने अपने एक सोशल मीडिया प्रोफाइल पर अपने आप को कुख्यात बदमाश और नामी अपराधी लिख रखा था.

दुर्लभ कश्यप का फेसबुक पर स्टेटस था कि वह कुख्यात बदमाश, हत्यारा और अपराधी है. कोई सा भी विवाद हो, कैसा भी विवाद हो तो उस से संपर्क करें. टीनएज में ही उसे अपराध करने का शौक चढ़ गया था. सोशल मीडिया पर उस के स्टाइल और पर्सनैलिटी से प्रभावित हो कर टीनएजर और युवा उस से जुडऩे लगे थे.

दुर्लभ कश्यप की फैन फालोइंग हर उगते सूरज के साथ बढऩे लगी. लोगों का साथ पा कर वह और मजबूत होने लगा. इस से वह शहर में छोटीमोटी वारदातें करने लगा. जुर्म करने के लिए अपने पेज पर विज्ञापन भी लिखता था. इस के अलावा सोशल मीडिया पर ही लोगों को धमकियां भी देता था. उस के अपराध का मुख्य जरिया सोशल मीडिया था. वह फेसबुक और वाट्सऐप के जरिए आपराधिक कामों को अंजाम देता था. वह हर रोज फेसबुक पोस्ट के जरिए रंगदारी, हफ्ता वसूली, लूटपाट और सुपारी लेता था.

दुर्लभ कश्यप चर्चा में उस वक्त आया, जब उस ने खुलेआम फेसबुक पर यह कहना शुरू कर दिया कि वह किसी से भी किसी के लिए विवाद कर सकता है, एवज में बस उसे पैसा चाहिए. दुर्लभ का सब से बड़ा हथियार था सोशल मीडिया. दुर्लभ गैंग के लोगों की प्रोफाइल पर हथियारों के साथ धमकाने और दहशत फैलाने वाली पोस्ट भी डाली जाती थी.

गैंग के लोगों की फेसबुक आईडी का संचालन करने के लिए भी उस ने एक टीम बना रखी थी, जो दहशत फैलने वाली पोस्ट करते थे. इस आईडी से जेल में बंद लोगों की भी फोटो पोस्ट की गई थी. उज्जैन में कम उम्र के लडक़ों के बीच दुर्लभ की लोकप्रियता बढऩे लगी थी. उस के गैंग में धीरेधीरे 100 से भी ज्यादा लड़के जुड़ चुके थे, जिन का उज्जैन में आतंक फैल चुका था. उस के नाम से चाय वाले से ले कर बड़ेबड़े बिजनैसमैन तक थरथर कांपते थे.

इस से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि एक 16 साल की लड़के ने किस तरह का आतंक मचा रखा था.
दुर्लभ कश्यप गैंग किसी कारपोरेट कंपनी की तरह काम करता था. गैंग का अपना स्टाइल और ड्रेस कोड था. बड़े बाल, माथे पर लाल टीका, आंखों में सुरमा, काला गमछा दुर्लभ गैंग की पहचान थी. गैंग के इसी स्टाइल के युवा और टीनएजर फैन हुए जा रहे थे.

सोशल मीडिया पर लोकप्रियता के चलते देखते ही देखते यह ग्रुप गैंग में बदल गया. दुर्लभ कश्यप का गैंग फेसबुक से चल रहा था. दुर्लभ कश्यप ने 17 साल की उम्र में फेसबुक पर एक पोस्ट डाल कर दहशत फैला दी थी. 18 साल की उम्र में कई सारे अपराध कर के वह बहुत ही कम उम्र में गैंगस्टरों की लिस्ट में शामिल हो गया.

वह गैंग के सदस्यों से रंगदारी, हफ्ता वसूली, लूटपाट जैसे अपराध करवाता था. जब सोशल मीडिया पर उस ने अपने इन्हीं कामों के लिए सुपारी लेने की पोस्ट शेयर की तो पुलिस ने इन्हें उठाना शुरू किया. तत्कालीन एसपी सचिन अतुलकर ने 2018 में दुर्लभ कश्यप के गैंग का परदाफाश कर दिया और 2 दरजन से अधिक लडक़ों को गिरफ्तार कर लिया.

दुर्लभ कश्यप बना युवा अपराधियों का रोल मौडल

कच्ची उम्र में ही दुर्लभ के इरादे जुर्म की दुनिया का बादशाह बनने के थे. उस के रहनसहन और कपड़े पहनने का अंदाज इस कदर युवाओं में पापुलर हो गया था कि कई लोग उस के इस अंदाज को फालो करने लगे थे. उसे बिल्लियों से बहुत प्यार था. वह अपने साथ कई बार बिल्ली भी रखता था.

पिछले साल 2022 में मध्य प्रदेश के सागर शहर में 60 साल के शिवकुमार दुबे, 57 साल के कल्याण लोधी, मंगल अहिरवार की सिर कुचल कर हत्या की गई. अगले दिन सोनू वर्मा नाम के युवक का भी मर्डर हो गया. इन सब में एक बात कौमन थी कि ये सभी चौकीदार थे.

कत्ल में एक नाम खुला 19 साल के शिवप्रसाद धुर्वे का. उसे भोपाल के कोहएफिजा इलाके के बसस्टैंड से पकड़ा गया. शिव प्रसाद धुर्वे ने जो नाम लिया, उसे सुन कर पुलिस चौंक गई. उस ने बताया, “वह भी दुर्लभ कश्यप की तरह मशहूर होना चाहता था.”

गिरफ्तारी के दौरान शिवकुमार धुर्वे पुलिस से हंसते हुए बोला, “एक और को निपटा दिया. काम के वक्त सोने वाले लोग मुझे पसंद नहीं. जितने भी चौकीदारों की हत्या की गई, वे सब काम के वक्त सो रहे थे. “

दुर्लभ गैंग का एक और सदस्य चयन बोहरा 14 जुलाई, 2022 को इंस्टाग्राम पर लाइव देखा गया. चयन और उस के साथी पार्टी कर रहे थे. इस पार्टी से 2 दिन पहले ही चयन और उस के एक साथी ने इंदौर में अनिल दीक्षित नाम के एक हिस्ट्रीशीटर पर गोलियां दागी थीं. जिस रोज चयन इंस्टाग्राम पर लाइव था, उसी दिन अनिल की मौत हुई. चयन ने इस वारदात को अंजाम देने से पहले इंस्टाग्राम पर ऐलान तक किया था. पुलिस ने इन पर 30 हजार रुपए का ईनाम घोषित किया. दोनों को 10 दिनों के भीतर अरेस्ट किया गया.

उज्जैन से 500 किलोमीटर दूर महाराष्ट्र का औरंगाबाद शहर. फरवरी, 2022 में एक दिन पुलिस को शिकायत मिली कि शुभम नाम के युवक पर हमला किया गया है. शुभम के पिता मनगटे अपने घर से कुछ ही दूरी पर किराने की दुकान चलाते हैं.

6 फरवरी, 2022 की रात का वक्त. कुछ लडक़ों ने मनगटे से सिगरेट देने को कहा. मनगटे बोले कि आधी रात का वक्त हो गया है और अब दुकान बंद कर रहे हैं. यह सुन सिगरेट मांग रहे युवकों ने लोहे की रौड और धारदार हथियार से मनगटे और उन के 22 साल के बेटे शुभम पर हमला कर दिया.

शुभम पर हमला करने वाले लडक़ों ने खुद को दुर्लभ कश्यप गैंग का बताया. जानकारी इस बात की भी मिली कि इस गैंग के लोग दुकानदारों से मुफ्त सामान लेते हैं और आनेजाने वाले लोगों को परेशान करते हैं. दिलचस्प बात यह है कि दुर्लभ अपनी जिंदगी में कभी औरंगाबाद नहीं आया. फिर इस गैंग ने खुद को दुर्लभ के साथ कैसे जोड़ा?

युवाओं का रोल मौडल बना गैंगस्टर दुर्लभ कश्यप – भाग 1

साल 2018 के अक्तूबर महीने की बात है. 2 महीने बाद मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने थे. विधानसभा चुनाव में सुरक्षा के मद्देनजर अपराधियों की धरपकड़ में उज्जैन पुलिस लगी हुई थी. उस समय महाकाल की नगरी उज्जैन शहर में कम उम्र के लड़कों के एक गैंग का तहलका मचा हुआ था. यह गैंग आए दिन शहर में बलवा कर शहर की शांति व्यवस्था को भंग कर रहा था.

इस गैंग का सरगना एक नाबालिग उम्र का मासूम सी सूरत वाला लड़का दुर्लभ कश्यप था, जिसे पुलिस ने शांति भंग करने के अपराध में गिरफ्तार किया था. उज्जैन के तत्कालीन एसपी सचिन अतुलकर एक प्रैस कौन्फ्रैंस कर रहे थे. दुर्लभ कश्यप और उस के 23 साथियों की मीडिया के सामने परेड कराई गई.  सचिन अतुलकर की कोशिश थी कि चुनाव से पहले पेशेवर अपराधियों को नियंत्रण में कर लिया
जाए.

उस वक्त दुर्लभ 18 साल का भी नहीं था और मीडिया वाले उस के चेहरे से भी अनजान थे. प्रैस कौन्फ्रैंस चल ही रही थी कि एक पत्रकार ने सवाल किया, “इन लड़कों में से दुर्लभ कौन है?”

“आप देखिए, वो खुद ही हाथ उठा कर बताएगा,” एसपी ने जबाव दिया.

फिर पुलिस अधिकारियों के पीछे खड़े लड़कों की टोली में से एक फटी शर्ट वाले लड़के ने बहुत अलग अंदाज में अपना हाथ ऊपर उठाया. दुर्लभ के इस अनोखे अंदाज में उठाए हाथ का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. यह वही वक्त था, जिस के साथ दुर्लभ सोशल मीडिया पर लोगों के बीच पहचान हासिल करने में सफल हो गया. दुर्लभ कश्यप ने अपने आप को गैंगस्टर साबित करने के लिए सोशल मीडिया साइट फेसबुक पर बाकायदा इश्तहार दे रखा था.

दुर्लभ कश्यप का जन्म 8 नवंबर, 2000 को उज्जैन में जीवाजीगंज के अब्दालपुरा में हुआ था. वह पिता मनोज कश्यप तथा माता पद्मा का इकलौता बेटा था. दुर्लभ की मां पद्मा कश्यप उज्जैन के क्षीरसागर स्कूल में शिक्षिका थीं. दुर्लभ के पिता मुंबई में नौकरी करने के बाद इंदौर शिफ्ट हो गए.

दुर्लभ का कुछ समय इंदौर में भी बीता. एक संभ्रांत व संपन्न परिवार के मनोज कश्यप ने बाद में अपना व्यवसाय शुरू किया. तब से ही इन का परिवार उज्जैन में रहने लगा था. मनोज कश्यप व पद्मा ने अपने बेटे का नाम ‘दुर्लभ’ भी इसलिए रखा था कि वह बड़ा हो कर कुछ अलग और अच्छा करेगा.

उन की उम्मीद थी कि वह सब से हट कर कुछ बड़ा काम करेगा, जिस से उन का नाम रोशन हो. दुर्लभ पढ़लिख कर डाक्टर या इंजीनियर बने, इस के लिए दुर्लभ की मां पद्मा ने उसे शहर के नामी स्कूल में दाखिला कराया था.

एक दिन दुर्लभ को स्कूल भेजते वक्त मां ने दुर्लभ से कहा, “बेटा, अच्छे से पढ़ाई करना और एक दिन हमारा नाम रोशन करना.”

“मां तुम ने मेरा नाम दुर्लभ रखा है, देखना एक दिन मेरा नाम इस शहर की गलीगली में गूंजेगा.” दुर्लभ ने मां को जबाब देते हुए कहा. दुर्लभ का नाम रोशन हुआ भी, पर अपराध की दुनिया में.

दुर्लभ के मातापिता कुछ निजी समस्याओं के कारण एकदूसरे से अलग रहने लगे थे. दुर्लभ भी कभी अपनी मां के साथ तो कभी अपने पिता के साथ रहता था. मातापिता दोनों ही उसे अपनी जान से ज्यादा प्यार करते थे. घर में किसी भी चीज की कमी नहीं थी. दुर्लभ की हर ख्वाहिश मांबाप पूरी करते थे, जिस का नतीजा यह हुआ कि लाड़प्यार में वह बिगड़ गया.

दुर्लभ सिगरेट पीने का आदी हो गया. काली शर्ट पहने हुए लड़के , आंखों में काजल, माथे पर अलग तरह का खड़ा लाल टीका, कंधे पर काला पंछा या कहें गमछा और एक नाम दुर्लभ कश्यप. फेसबुक पर तलाशेंगे तो इस नाम के कई अकाउंट्स, पेज और ग्रुप सामने आ जाएंगे. युवाओं में दुर्लभ खासा प्रचलित था.

वह अपने गैंग में अकसर कम उम्र के लड़कों को शामिल किया करता था. दुर्लभ वैसे तो बहुत ही शांत स्वभाव का था, लेकिन बचपन में ही बुरी संगत में पड़ गया था. वह कुछ गैंगस्टरों की दबंगई और
ठाठबाट से बहुत प्रभावित हुआ, इसलिए उस ने कच्ची उम्र में ही बड़ा गैंगस्टर बनने का ख्वाब देख लिया और उसी राह पर निकल पड़ा.

आवारा किस्म के लड़के स्कूल में पढ़ते वक्त ही दुर्लभ के फैन बन चुके थे. वे उसे कोहिनूर के नाम से बुलाते थे. महज 15 साल की उम्र में उस ने फेसबुक पर हथियारों के साथ फोटो डालने शुरू कर दिए और अपनी बदमाशी का प्रचार करना शुरू कर दिया. दुर्लभ का मकसद था कि वह अपना खुद का एक गैंग बनाए, जिस में वह कामयाब भी हुआ. कई नाबालिग लड़के उस के साथ जुड़ते चले गए.

दुर्लभ कश्यप कैसे बना गैंगस्टर

दुर्लभ कश्यप ने 15 साल की उम्र में 10वीं क्लास का इम्तिहान दिया, लेकिन 10वीं में फेल होते ही उस की संगति आवारा किस्म के लड़कों के साथ बढऩे लगी. जिस तरह पूत के पांव पालने में दिखाई दे जाते हैं, ठीक उसी तरह दुर्लभ के तौरतरीकों ने स्कूल में पढ़ते समय ही यह साबित कर दिया था कि वह एक दिन अपराधी ही बनेगा.

देखते ही देखते वह उज्जैन का मशहूर हिस्ट्रीशीटर बन गया था. दुर्लभ कश्यप जब 16 साल का हुआ तो पढ़ाई छोड़ उसे गैंगस्टर बनने की धुन सवार हो गई. वह निकल पड़ा ऐसे रास्ते पर जहां जाना तो बड़ा आसान था, लेकिन वहां से वापसी करना बहुत ही मुश्किल था.

उज्जैन में कार्तिक मेले में उठने वाले पार्किंग के ठेके से दुर्लभ के गैंगस्टर बनने की कहानी शुरू होती है. हेमंत बोखला के जरिए दुर्लभ डागर परिवार के करीबी राहुल किलोसिया के कौन्टैक्ट में आया था. किलोसिया को अपना कारोबार चलाने के लिए कुछ लड़कों की जरूरत थी. यहीं से दुर्लभ और उस के साथियों को पनाह दी जाने लगी.

राहुल किलोसिया ने उज्जैन के बाहरी इलाके में मौजूद एक फार्महाउस को दुर्लभ और उस के साथियों के लिए खोल दिया था. गैंग के लड़के यहां आते और शराबगांजे के नशे में डूब कर खूब मौजमस्ती करते. बदले में ये लड़के किसी भी वारदात को अंजाम देने के लिए तैयार रहते थे.

दुर्लभ कश्यप पर जनवरी, 2018 में पहली बार हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ था. 11-12 जनवरी, 2018 की दरमियानी रात दुर्लभ और उस के साथियों का सामना टाक परिवार से जुड़े कुछ लड़कों से हुआ. इस गैंगवार में कई लड़के घायल हुए. दोनों गुट अपनेअपने साथियों को ले कर उज्जैन के सिविल अस्पताल पहुंचे तो यहां फिर से दोनों गैंग आपस में टकरा गए.

दुर्लभ गैंग के लड़कों ने अर्पित उर्फ कान्हा पर चाकू से हमला किया. 13 जनवरी, 2018 को उस की मौत हो गई. इस मामले में दुर्लभ और उस के साथियों को आरोपी बनाया गया. दुर्लभ और उस का साथी राजदीप उस वक्त नाबालिग थे, जिस की वजह से उन्हें उज्जैन के बाल सुधार गृह भेज दिया गया. 4 महीने काटने के बाद दोनों को इस केस में जमानत मिल गई. दुर्लभ को फोटो खिंचवाने का बहुत शौक था. वह उज्जैन के अलगअलग पेशेवर फोटोग्राफर्स से अपनी फोटो खिंचवाता था.