क्या दूसरी शादी करना जुर्म है?

केस-1

पेशे से वीडियोग्राफर 32 वर्षीय सुरेंद्र सिंह दांगी मूलत: सीहोर जिले का रहने वाला था और नौकरी के सिलसिले में भोपाल के शंकराचार्य नगर में किराए के मकान में रहता था. शादीविवाह में वीडियोग्राफी से उसे खासी कमाई हो जाती थी. लेकिन दूसरों की खुशियों के माहौल को कैमरे में कैद करने वाले सुरेंद्र सिंह की अपनी जिंदगी नर्क जैसी बनी हुई थी.

पहली बीवी की मौत के बाद उस ने अपने गांव दोराहा की ही एक लड़की सविता (परिवर्तित नाम) से शादी कर ली थी. जिस से 2 साल पहले उसे एक बेटी भी हुई थी. बेटी हुई तो सुरेंद्र को मानो जीने का मकसद मिल गया, लेकिन वह चाह कर भी पहली बीवी को नहीं भूल पा रहा था.

इस पर आए दिन उस की तनातनी सविता से होने लगी थी. अंतत: नाराज सविता उसे अकेला छोड़ कर बेटी को ले कर मायके चली गई तो तनाव में जी रहे सुरेंद्र ने बीते 1 अक्तूबर को फांसी का फंदा लगा कर जान दे दी.

मरने से पहले उस ने अपने सुसाइड नोट में सविता को लिखा कि मैं तुम्हें इतना प्यार करता हूं कि कभी सही और गलत का फैसला नहीं कर पाया. अब मुझे पता चला है कि तुम ने कभी मुझे प्यार ही नहीं…मैं तुम से नफरत करता हूं.

केस-2

56 साल के सुरेश सिंह भोपाल के ही कमलानगर इलाके में रहते थे. वे केंद्र सरकार के एक महकमे के मुलाजिम थे. सुरेश की पहली बीवी सीमा की मौत सन 2002 में हो गई थी, जिस से उन्हें एक बेटा भी था. साल 2004 में उन्होंने दूसरी शादी कर ली थी. दूसरी बीवी का नाम भी इत्तफाक से सीमा ही था.

शादी के बाद से ही इन मियांबीवी में खटपट होने लगी थी. सीमा का दुखड़ा यह था कि शौहर के पास खासी जायदाद और पैसा है, जिस में से वे उसे कुछ नहीं दे रहे. सुरेश बेटे पर ज्यादा ध्यान देते थे जो जबलपुर के एक इंजीनियरिंग कालेज में पढ़ रहा था.

सीमा आए दिन पति से पैसा और जायदाद अपने नाम कर देने की जिद पर अड़ी रहती थी. जैसे ही उसे पता चला कि सुरेश ने अपने जीपीएफ की 80 फीसदी रकम पहली बीवी से पैदा हुए बेटे के नाम कर दी है तो वह मारे गुस्से के आपा खो बैठी और भोपाल आ कर उन से झगड़ने लगी.

ऐसे ही एक झगड़े में उस ने बीती 28 अगस्त की अलसुबह शौहर की हत्या कर दी और अपना जुर्म छिपाने के लिए पड़ोसियों से यह बताया कि सुरेश की मौत सांप के काटने से हुई है. लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह साफ हो गया कि सुरेश की मौत गला दबाने से हुई थी. आखिर सीमा को अपना जुर्म स्वीकार करना पड़ा. पुलिस हिरासत में होते हुए भी वह पति पर ये आरोप लगाती रही कि उस ने उसे पाईपाई का मोहताज बना दिया था और जायदाद में से कुछ नहीं दिया था.

इन दोनों ही मामलों में मर्दों ने दूसरी शादी की थी, जोकि कतई गुनाह नहीं था. लेकिन एक बड़ी दिक्कत यह थी कि दूसरी बीवी से इन की पटरी नहीं बैठी थी. इस की एक अहम वजह यह भी थी कि ये दोनों पहली बीवी को भूल नहीं पा रहे थे और पहली बीवी की चाहत को अलग तरीके से जाहिर कर रहे थे. सुरेश अपने बेटे से लगाव के जरिए तो सुरेंद्र पहली बीवी की यादों के सहारे.

गुनाह या गलती

यह एक गलती थी, क्योंकि दूसरी बीवी कतई नहीं चाहती कि उस का शौहर उस का ध्यान न रख कर किसी भी तरह पहली बीवी को इतना याद करता रहे कि उसे अपनी अहमियत दोयम दरजे की और जिस्मानी जरूरत पूरी करने की गुडि़या सरीखी लगने लगे. ऐसे में उन्होंने वही किया, जो ज्यादा से ज्यादा वे कर सकती थीं. सविता अपने जज्बाती शौहर को अकेला छोड़ कर मायके चली गई तो सीमा ने पति का काम ही तमाम कर डाला.

ये मामले तो वे थे, जिन में शौहर की पहली बीवी मर चुकी थी पर उन मामलों में भी जिंदगी दुश्वार हो जाती है जब शौहर पहली बीवी से तलाक ले कर दूसरी शादी करता है और बारबार उस का जिक्र दूसरी बीवी से कर के उसे नीचा दिखाने की कोशिश करता रहता है. ऐसे में दूसरी का कलपना कुदरती बात है.

एक दास्तां

भोपाल के ही एक सरकारी स्कूल की 44 वर्षीय टीचर निर्मला (बदला नाम) का कहना है कि उस की उम्र 40 साल की थी, जब उस ने एक सरकारी मुलाजिम नरेश (बदला नाम) से शादी की थी. नरेश का अपनी पहली बीवी से तलाक हुआ था. चूंकि निर्मला की उम्र बढ़ रही थी, इसलिए घर वालों ने तलाकशुदा से उस का रिश्ता तय कर दिया था.

बकौल निर्मला शादी के 2 साल तो ठीकठाक गुजरे. इस दौरान अकसर नरेश पहली बीवी के बारे में बताता रहता था कि वह कितनी झगड़ालू, जालिम, बेगैरत और बिगड़े चालचलन की थी, जिस के चलते उस की जिंदगी नर्क बन गई थी. शौहर की आपबीती सुन कर निर्मला को उस से हमदर्दी होती थी और वह हर मुमकिन कोशिश करती थी कि उसे इतना प्यार दे कि वह पहली बीवी और ज्यादतियों को भूल जाए.

भले ही निर्मला की शादी देर से हुई थी, पर शादीशुदा जिंदगी को ले कर उस के अपने अरमान और ख्वाहिशें थीं. दोनों की पगार अच्छी थी, इसलिए वह चाहती थी कि वह और नरेश अच्छी जिंदगी जिएं. प्यारमोहब्बत की बातें करें, गृहस्थी जमाएं और घूमेंफिरें. पर नरेश अकसर पहली बीवी की कहानी ले कर बैठ जाता था, जिस से कुछ ही दिनों में उसे खीझ होने लगी थी.

इस बाबत उस ने शौहर को समझाया कि जो हुआ उसे भूल जाओ, अब क्या फायदा. अब क्यों न हम नए सिरे से जिंदगी शुरू करें. लेकिन नरेश अपने गुजरे कल से बाहर नहीं आ पा रहा था, जिस से आए दिन कलह होने लगी. जब भी निर्मला रोमांटिक मूड में होती थी और नरेश को लुभाती थी, तब वह पहली बीवी का पुराण खोल कर बैठ जाता था, जिस से उस का मूड औफ हो जाता था.

निर्मला ने अपनी तरफ से ईमानदारी से कोशिश की थी, लेकिन यहां नरेश गलती करते अनजाने में उस से ज्यादती कर रहा था. वह बीवी के जज्बातों, जरूरतों, ख्वाहिशों और अरमानों को समझ ही नहीं पा रहा था. ऐसे में एक दिन निर्मला ने गुस्से में कह ही दिया कि जब उसे नहीं भूल पा रहे तो मुझ से शादी क्यों की.

इस से नरेश की मर्दानगी को ठेस लगी और वह यह सोचते हुए फिर मायूस रहने लगा कि पहली बीवी ने तो ज्यादती की ही थी, अब दूसरी भी उसे नहीं समझ रही. उस की नजर में दूसरी बीवी की जिम्मेदारी यह थी कि वह अपने अरमानों का गला घोंट कर उस की रामायण सुनती रहे, तभी अच्छी है.

दरअसल, होता यह है कि अकसर मर्द की दूसरी शादी उस औरत से होती है जो पहली बार शादी करती है. इसलिए उस की ख्वाहिशें अलग होती हैं जबकि इस के उलट शौहर के लिए यह नई बात नहीं होती. दूसरी बीवी उस के लिए जिस्मानी जरूरत पूरी करने का जरिया भर होती है, जिस से वह उसे समझ नहीं पाता और दूसरी शादी भी टूटने के कगार पर पहुंच जाती है.

समाज और परिवार के दबाव के चलते न भी टूटे तो दोनों एक छत के नीचे अजनबी बन कर रह जाते हैं. शौहर और बीवी दोनों यह सोच कर जिंदगी का लुत्फ नहीं उठा पाते कि शादी कर के आखिर उन्हें क्या मिला.

शौहर ध्यान दें

अगर मर्द दूसरी शादी करे तो एक अच्छी और नई जिंदगी के लिए यह जरूरी है कि वह इन बातों पर ध्यान दे —

  •      दूसरी बीवी केवल जिस्मानी जरूरतें पूरी करने का जरिया नहीं है, यह सोच कर उसे ही सब कुछ माने और       उस की ख्वाहिशों और अरमानों को पूरा करने की कोशिश करने की कोशिश करे.
  •      यदि पहली बीवी के बच्चे हों तो दूसरी बीवी को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, उसे उस के तमाम हक       देना जरूरी है.
  •      उस के सामने बारबार पहली बीवी की याद या जिक्र नहीं करते रहना चाहिए, इस से उसे खीझ ही               होगी.
  •      अगर पहली बीवी से औलाद है तो उसे शादी के बाद किसी भरोसेमंद रिश्तेदार के यहां या फिर हौस्टल       में रखने की कोशिश करनी चाहिए. लेकिन बीवी उस का पूरा ध्यान रखे तो ऐसा करना जरूरी भी नहीं      और इस बाबत उस का शुक्रगुजार होना चाहिए.
  •      अगर उम्र 40 के लगभग हो जाए और बच्चे 8-10 साल के हों तो दूसरी शादी करने से बचना चाहिए.           आमतौर पर दूसरी बीवी उतना ध्यान बच्चे का नहीं रख पाती, जितनी यानी सगी मां की तरह उस से             उम्मीद की जाती है.
  •      खुद को दूसरी बीवी के मुताबिक ढालने की कोशिश करना चाहिए.
  •      उस की जरूरतों और पैसों का पूरा खयाल रखना चाहिए.

जरूरी नहीं कि हर दूसरी शादी नाकाम हो, लेकिन इस के लिए जरूरी है कि पतिपत्नी दोनों मिल कर नई जिंदगी को खुशनुमा बनाएं. इसलिए बीवी को भी चाहिए कि वह शौहर को इस बात का अहसास न कराए कि उस ने दूसरी शादी कर के उस पर कोई अहसान किया है.

पहली बीवी को ले कर शौहर पर ताने मारते रहना भी अक्ल की नहीं, बल्कि कलह को न्यौता देने वाली बात है. दूसरी बीवी को कोशिश यह करनी चाहिए कि वह धीरेधीरे पति का दिल जीते और उसे पुरानी जिंदगी से बाहर निकलने में मदद करे. बेशक यह बेहद कठिन और सब्र वाला काम है, लेकिन बिना इस के शादी कामयाब भी नहीं होती.

लड़की से लड़का क्यों बनी स्वाति?

यह कहानी स्वाति से शिवाय बने (Swati to Shivaay) 35 साल के एक सौफ्टवेयर इंजीनियर की है, जिन्होंने 3 साल की लंबी मशक्कत के बाद अपना जेंडर फीमेल (Gender Change) से बदल कर मेल करवा लिया.

स्वाति का फ्रस्ट्रेशन तब और बढ़ गया, जब आठवीं क्लास में आते ही उसे पीरियड शुरू हो गए. वह अंदर ही अंदर घुटन महसूस करने लगी. उसे अपने शरीर से ही नफरत होने लगी थी. हायर सेकेंडरी पास होते ही, घर वालों ने उस की शादी के लिए लड़का भी देखना शुरू कर दिया.

एकदो रिश्ते आए भी, मगर उस की हेयर स्टाइल और कपड़े देख कर वे हैरान रह जाते.  एक दिन उस की मम्मी उर्मिला ने उसे पास बिठाया और उस के सिर पर हाथ रखते हुएकहा, ”देख स्वाति, अब तो तू बड़ी हो रही है. अपने बाल बढ़ा ले और लड़के वाले कपड़े पहनना छोड़ दे.’’

मगर स्वाति इस के लिए कतई तैयार नहीं थी. उस ने मम्मी से दोटूक कह दिया, ”देखो मम्मी, मुझे बारबार टोका मत करो, मैं तो लड़के के रूप में ही अच्छी हूं.’’

घर में सब से लाडली होने के कारण कोई भी उस से कुछ भी कहने के बजाय खामोश हो जाता. मगर आसपास रहने वाले लोग स्वाति के घर वालों को ताना देने लगे थे, इस से स्वाति का मानसिक तनाव बढ़ता जा रहा था.

बचपन से ही स्वाति शरीर से भले ही लड़की थी, मगर उसे अपना वह शरीर कतई पसंद नहीं था. उस के बाल, कपड़े इस तरह के थे कि कोई अनजान व्यक्ति उसे लड़का ही समझता था. लड़कियों के स्कूल में पढऩे जाने पर जब उसे यूनिफार्म में सलवार कमीज पहनने को मजबूर किया जाता तो वह स्कूल से बंक मारने लगी.

स्वाति ने बताया कि उस की आत्मा यही कहती थी कि ‘मैं वह नहीं हूं, जो दिखाई देती हूं. मेरा दिमाग और शरीर एकदूसरे से मेल नहीं खाते थे. कभीकभी मुझे अपने ही शरीर से चिढ़ सी होने लगी थी.’

आखिरकार एक दिन खुद को मजबूत करते हुए स्वाति ने घर वालों से बात की. उस ने मम्मीपापा से साफ कह दिया, ”तुम मुझे भले ही लड़की समझते हो, मगर मुझे फीलिंग लड़कों वाली आती है. मैं तो अपना जेंडर चेंज करा कर लड़का बनना चाहता हूं.’’

इतना सुन कर घर वालों की स्थिति और खराब हो गई. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आखिर इस लड़की के साथ क्या किया जाए. स्वाति के रंगढंग देख उस के पापा पवन ने पत्नी उर्मिला से कहा, ”देखो, ये लड़की समाज में हमारी बदनामी करने पर तुली हुई है.’’

उर्मिला यह कह कर अपने पति को समझा देती कि ‘स्वाति अभी नादान है. उम्र के साथ सब कुछ समझ जाएगी.’

ताप्ती नदी के किनारे बसे मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के बैतूल (Baitul) में संजय कालोनी में रहने वाले पवन सूर्यवंशी और पत्नी उर्मिला सूर्यवंशी की 4 बेटियों और एक बेटे में स्वाति सब से छोटी थी.

बैतूल (Baitul) के सिविल लाइंस इलाके की संजय कालोनी में रहने वाले पवन सूर्यवंशी मसाले और सब्जी का बिजनैस करते थे. एक सड़क हादसे में अपना एक पैर खोने के बाद घर की जिम्मेदारी पत्नी उर्मिला पर आ गई. उर्मिला ने अपने बेटे बेटियों की परवरिश में कोई कमी नहीं रखी. आज उन की 2 बड़ी बेटियां श्रद्धा और संगीता हौस्पिटल में एकाउंटेंट हैं, जबकि छोटी बेटी बबीता एक नर्स है. बड़ा बेटा कृष्णा सरकारी स्कूल में टीचर है.

स्वाति स्कूल में भी पहनती थी लड़कों के कपड़े

स्वाति का जन्म 6 मार्च, 1988 को हुआ था. उस की स्कूली शिक्षा बैतूल के गवर्नमेंट स्कूल में हुई थी. पहले तो सब कुछ ठीक था, लेकिन जैसेजैसे उम्र बढ़ती गई, स्वाति को अपने शरीर को ले कर अजीब सी फीलिंग आने लगी. 8वीं पास होतेहोते एक दिन लगा कि उसे शरीर लड़की का जरूर दे दिया है, लेकिन वह लड़की नहीं है. क्योंकि उसे भगवान ने मुझे गलत बौडी दे दी. हर काम लड़कों वाले करना पसंद थे.

मसलन लड़कों जैसे रहना, कपड़े पहनना अच्छा लगता था. गेम भी लड़कों वाले ही खेलती थी. यहां तक कि यदि उसे कोई लड़कियों की तरह संबोधन से बुलाता तो उसे बहुत बुरा लगता था. पवन सूर्यवंशी का पूरा परिवार धार्मिक विचारों वाला था. इस वजह से घर के सभी लोगों ने उसे शिवाय कहना शुरू कर दिया. उस के बाद तो सभी उसे शिवाय के नाम से ही पुकारने लगे.

घर वालों ने जब स्वाति का एडमिशन 9वीं क्लास में गल्र्स स्कूल में करा दिया तो वहां ड्रेस के रूप में सलवारकमीज चलती थी. उसे यह पहनना पसंद नहीं था. यही वजह थी कि वह स्कूल जाना पसंद नहीं करती थी. जिस दिन ड्रेस चेंज होती थी, सिर्फ उसी दिन स्कूल जाती थी. इसी जद्दोजहद में दिन बीतते गए और स्वाति 12वीं में पहुंच गई.

रहनसहन, कपड़े और लड़कों के साथ खेलने की वजह से घर वालों का दबाव बढऩे लगा था जोकि स्वाति को कतई पसंद नहीं था. अब स्वाति में लड़कियों के शरीर में होने वाले शारीरिक परिवर्तन भी होने लगे थे.

पीरियड की शुरुआत और अपनी छाती पर आए उभार देख कर उसे अच्छा नहीं लगता था. इस कारण उस का फ्रस्ट्रेशन और बढऩे लगा था. उसे अपने शरीर से चिढ़ होने लगी थी. स्वाति को यह सब रास नहीं आ रहा था और वह इस से डिप्रेशन में जाने लगी थी.

स्वाति का रुझान बचपन से ही बास्केट बाल खेल के प्रति रहा था. ऐसे में स्कूल में पढ़ते समय जब स्वाति लड़कियों के साथ बास्केट बाल खेलती तो उसे अजीब सा लगता था. तब उन के कोच रविंद्र गोटे स्वाति को लड़कों के साथ खेलने के लिए प्रोत्साहित करते थे.

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बास्केट बाल गेम लड़कियों के ज्यादा खेलने की वजह से स्वाति उर्फ शिवाय बाद में फुटबाल खेलने लगी. बड़ी होने पर स्वाति को पुलिस में रहे कोच संजय ठाकुर ने काफी प्रोत्साहित किया. संजय ठाकुर उसे लड़कों जैसी फिटनैस रखने और सभी खेलों में भाग लेने के लिए कहते थे.

कोच संजय ठाकुर उस के खेल से प्रभावित हो कर अकसर यही कहते थे, ”स्वाति, तुझे तो लड़का होना चाहिए था, कुदरत ने तुझे लड़की क्यों बना दिया.’’  बस यही बात उस समय स्वाति को कचोटने लगी थी.

2006 में गवर्नमेंट गल्र्स स्कूल बैतूल से हायर सेकेंडरी परीक्षा पास करने के बाद स्वाति ने भोपाल के कालेज से 2010 में बीसीए पास कर लिया. बीसीए की पढ़ाई के दौरान उसे काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा. उस समय स्वाति से यह सब सहन नहीं हो रहा था, इसलिए उस ने फैसला किया कि वह अपना जेंडर जरूर चेंज कराएगी.

उस ने इस के लिए इंटरनेट और सोशल मीडिया का सहारा लिया. इंटरनेट पर उस ने  खूब सर्च किया और बहुत सारी जानकारी हासिल की. वह जेंडर चेंज के लिए 2010 से 2015 तक लगातार कई तरह की जानकारियां जुटाती रही.

बौडी बिल्डर आर्यन पाशा से हुई प्रभावित

स्वाति ने यूट्यूब पर आर्यन पाशा का एक वीडियो देखा था, जिसे देख कर उसे मालूम हुआ कि आर्यन पाशा का जन्म 1991 में नायला नाम की एक लड़की के रूप में हुआ था. आर्यन पाशा की मां को सब से पहले पता चला कि वह एक महिला शरीर में फंसा हुआ लड़का था.

जब वह 16 वर्ष का था तो पाशा की मां ने उसे लिंग परिवर्तन सर्जरी(Gender Change Surgery) के बारे में बताया. 2011 में जब पाशा सिर्फ 19 साल का था, तब उस ने दिल्ली एनसीआर के एक अस्पताल में सर्जरी के द्वारा अपना जेंडर चेंज कराया.

इस बदलाव के बाद उस ने 12वीं कक्षा में अपने स्कूल में टौप किया, फिर उस ने अपने सभी दस्तावेजों में खुद को ‘पुरुष’ के रूप में पहचाना और यहां तक कि अपने लिए एक नया नाम आर्यन भी लिया.

स्नातक पाठ्यक्रम के लिए दिल्ली के एक प्रमुख विश्वविद्यालय में प्रवेश से इनकार करने के बाद अंतत: उस ने मुंबई विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और कानून की पढ़ाई की. आर्यन बाद में बौडी बिल्डर बना और पुरुष वर्ग में बौडी बिल्डिंग इवेंट मसल मेनिया में प्रतिस्पर्धा करने वाला पहला भारतीय ट्रांसमैन बन गया. वह पोडियम पर दूसरे स्थान पर रहा.

इस के बाद स्वाति एक्सपर्ट डाक्टर से भी मिली और डाक्टर से बात कर यह जाना कि इस की सर्जरी की क्या प्रक्रिया है. जब सारी बातें साफ हो गईं तो उस ने उन लोगों से भी मुलाकात की, जिन्होंने अपना जेंडर चेंज करवाया था.

स्वाति ने इस के लिए आर्यन पाशा और राजवीर सिंह जैसे जेंडर चेंज करने वाले लोगों से मुलाकात की. इस के बाद अपने इरादे मजबूत कर लिए तो एक दिन सारी बातें घर वालों के सामने रख दीं और उन्हें जेंडर चेंज करवाने के लिए मनाना शुरू किया.

पहले तो घर वालों ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया. उस के पीछे आर्थिक स्थिति का कमजोर होना तो था ही, समाज में नकारात्मक सोच का डर भी घर वालों को था. यही वजह रही कि घर वालों ने ऐसा करने की इजाजत नहीं दी. उस वक्त स्वाति के लिए शादी के लिए रिश्ते भी आने शुरू हो गए थे.

3 साल का वक्त लगा जेंडर बदलने में

यह बात उस के तनाव को और बढ़ा रही थी. उस ने घर वालों को काफी मनाया समझाया और कुछ ऐसे लोगों से घर वालों की मुलाकात कराई, जो जेंडर चेंज कराने के बाद अपना पारिवारिक जीवन बेहतर ढंग से जी रहे थे.

राजवीर सिंह से मुलाकात और काफी कोशिशों के बाद मम्मीपापा के सोचने का नजरिया बदला. इस काम में स्वाति की 3 बहनों ने भी काफी सपोर्ट किया. आखिरकार लंबी मशक्कत के बाद घर वाले  जेंडर चेंज करवाने के लिए राजी हुए.

शिवाय को बाइक चलाने का भी शौक है. अब जेंडर चेंज सर्जरी करा कर स्वाति से शिवाय सूर्यवंशी बन गया है. जेंडर चेंज के बारे में जब हम ने शिवाय से बातचीत की तो खुशी और आत्मविश्वास से लबरेज नजर आया.

लंबी बातचीत में शिवाय (स्वाति) ने बताया कि एक बार यूट्यूब पर आर्यन पाशा को देखा था, आर्यन लड़की से लड़का बना और फिर बौडी बिल्डर बन गया. यह वीडियो मेरे लिए प्रेरणास्रोत रहा और इस के बाद मैं ने भी लड़का बनने की ठान ली.

जेंडर चेंज सर्जरी की शुरुआत 2020 में हुई थी. दिल्ली के एक निजी हौस्पिटल में उस ने 3 स्टेप में सर्जरी कराई है. जानेमाने सर्जन डा. नरेंद्र कौशिक ने उस की सर्जरी की थी.

पहली सर्जरी 2020 में जब शुरू हुई तो साइकोलौजिस्ट डा. राजीव ने मानसिक टेस्ट किया और डा. अरविंद कुमार ने हारमोंस थैरेपी की थी, जिस में हारमोंस चेंज होते हैं. इस थैरेपी के कुछ दिनों बाद ही वाइस चेंज होने लगी थी और चेहरे पर दाढ़ीमूंछ आने लगी थीं.

वहीं दूसरी टौप सर्जरी में शिवाय के दोनों ब्रेस्ट को बौडी से रिमूव किया गया था. थर्ड सर्जरी में बौटम पार्ट की सर्जरी की गई थी. इस सर्जरी के दौरान यूट्रस निकाला गया और सब से लास्ट में पेनिस डेवलप किया गया था. हर सर्जरी के बाद 3 माह का आराम करना होता था. शिवाय ने हर सर्जरी के बाद 5 से 6 महीने का गैप लिया.

अभी कुछ महीने पहले ही शिवाय की चौथी सर्जरी हुई थी, जिस में स्किन टाइट करवाई गई है. इस के बाद आराम किया और अब नवंबर 2023 से इंदौर में रह कर फिर से अपना जौब शुरू कर दिया है. पूरी सर्जरी में लगभग 10 लाख रुपए खर्च हुए थे.

शिवाय ने बताया कि वह पहले ही सर्जरी कराना चाहता था, लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने से सर्जरी नहीं करा पाया.

शिवाय सूर्यवंशी ने बताया, ”सर्जरी करवा कर मैं बहुत खुश हूं. अब लगता है कि मुझे जो शरीर चाहिए था, वह मिल गया है.’’

दस्तावेजों में लिंग बदलवाना नहीं था आसान

शिवाय के परिवार में भी लोग खुश हैं.  शिवाय के बड़े भाई कृष्णा सूर्यवंशी ने बताया, ”पहले जरूर हम ने इस का विरोध किया था, लेकिन बाद में पूरे परिवार ने सहयोग किया.  अब उन्हें एक भाई और मिल गया है, जिस से उन्हें काफी मदद मिल रही है. हम पहले 5 भाईबहन थे. स्वाति सब से छोटी बहन थी. अब स्वाति के शिवाय बनने से 3 बहन और 2 भाई हो गए हैं.’’

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जेंडर चेंज करवाने के बाद सब से चुनौतीपूर्ण काम पहचान दस्तावेजों में नाम व जेंडर बदलने का था. इस के लिए स्वाति से शिवाय बन कर सब से पहले बैतूल कलेक्टर के समक्ष उपस्थित हो कर आवेदन किया.

कलेक्टर औफिस से जारी किए गए पत्र के साथ शिवाय सूर्यवंशी ने बोर्ड औफ सेकेंडरी एजुकेशन, भोपाल के साथ माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल जहां से बीसीए किया और देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर जहां से एमबीए किया था, वहां आवेदन किया. आवेदन के साथ उस ने जेंडर चेंज सर्जरी के समस्त डाक्यूमेंट्स भी पेश किए.

इस आधार पर हाईस्कूल और हायर सेकेंडरी स्कूल परीक्षा की मार्कशीट जो स्वाति नाम से बनी है, वहीं अब स्वाति का नाम परिवर्तित हो कर शिवाय हो गया है. जेंडर फीमेल से मेल हो गया है. इसी तरह बीसीए, एमबीए की मार्कशीट के साथ आधार कार्ड, पैन कार्ड, बैंक पासबुक और वोटर आईडी कार्ड में भी उस का नाम बदल कर अब शिवाय सूर्यवंशी हो गया है.

शिवाय के सभी दस्तावेज पहले स्वाति सूर्यवंशी नाम से थे, लेकिन सर्जरी के बाद उस के सभी दस्तावेजों में भी नाम बदल चुका है. शिवाय ने अब ऐसे लोगों को, जो जेंडर चेंज के लिए सर्जरी कराना चाहते हैं, उन्हें जागरूक करना शुरू कर दिया है. शिवाय एमपी वाला चैनल बनाया है. बहुत सारे लोग इस संबंध में पूछताछ करते हैं शिवाय ने बताया कि अधिकांश लोग लड़का से लड़की बनना पसंद करते हैं.

जेंडर चेंज करने वाले माहिर डाक्टर बताते हैं कि जिन लोगों को जेंडर डायसफोरिया होता है, वो इस प्रकार का औपरेशन कराते हैं. इस बीमारी में लड़का, लड़की की तरह और लड़की, लड़के की तरह जीना चाहती है. एक का लड़के से लड़की बनना और दूसरे का लड़की से लड़का बनना जिसे मैडिकल टर्म में ‘जेंडर डिस्फोरिया’ या बौडी वर्सेस सोल कहते हैं. यानी शरीर और आत्मा की लड़ाई.

आसान नहीं होता जेंडर चेंज कराना

कई लड़के और लड़कियों में 12 से 16 साल के बीच जेंडर डायसफोरिया के लक्षण शुरू हो जाते हैं, लेकिन समाज के डर की वजह से ये अपने मातापिता को इन बदलावों के बारे में बताने से डरते हैं.

आज भी समाज में कई ऐसे लड़केलड़कियां हैं, जो इस समस्या के साथ जिंदगी गुजार रहे हैं, लेकिन इस बात को किसी से बताने से डरते हैं. लेकिन जो हिम्मत जुटा कर कदम उठाते हैं. वे जेंडर चेंज के लिए सर्जरी कराने का फैसला लेते हैं.

हालांकि जेंडर चेंज कराने वालों को समाज में एक अलग ही नजरिए से देखा जाता है और उन से लोग कई तरह के सवालजवाब भी करते हैं.

सैक्स-रिअसाइनमेंट सर्जरी या फिर जेंडर चेंज सर्जरी कराना एक चुनौतीपूर्ण काम होता है. इस का खर्च भी लाखों रुपए में है और इस सर्जरी को कराने से पहले मानसिक तौर पर भी तैयार रहना पड़ता है. यह सर्जरी हर जगह उपलब्ध भी नहीं है. कुछ मैट्रो सिटी के अस्पतालों में ही ऐसे सर्जन मौजद हैं, जो सैक्स-रिअसाइनमेंट सर्जरी को कर सकते हैं.

सैक्स चेंज कराने के इस औपरेशन के कई लेवल होते हैं. यह प्रक्रिया काफी लंबे समय तक चलती है. फीमेल से मेल बनने के लिए करीब 32 तरह की प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है. मेल से फीमेल बनने में 18 चरण होते हैं.

सर्जरी को करने से पहले डाक्टर यह भी देखते हैं कि लड़का और लड़की इस के लिए मानसिक रूप से तैयार हैं या नहीं. इस के लिए मनोरोग विशेषज्ञ की सहायता ली जाती है. इस के साथ ही यह भी देखा जाता है कि शरीर में कोई गंभीर बीमारी तो नहीं है.

जेंडर चेंज कराने की प्रक्रिया में सब से पहले डाक्टर एक मानसिक टेस्ट करते हैं. मानसिक टेस्ट में फिट होने के बाद इलाज के लिए हारमोंस थेरेपी शुरू की जाती है. यानी जिस लड़के को लड़की वाले हारमोंस की जरूरत है, वो इंजेक्शन और दवाओं के जरिए उस के शरीर में पहुंचाए जाते हैं.

इस इंजेक्शन के करीब 3 से 4 डोज देने के बाद बौडी में हार्मोनल बदलाव होने लगते हैं. फिर इस का प्रोसीजर शुरू किया जाता है.

दूसरे चरण में पुरुष या महिला के प्राइवेट पार्ट और चेहरे की शेप को बदला जाता है. महिला से पुरुष बनने वाले में पहले ब्रेस्ट को हटाया जाता है और पुरुष का प्राइवेट पार्ट डेवलप किया जाता है.

पुरुष से महिला बनने वाले व्यक्ति में उस के शरीर से लिए गए मांस से ही महिला के अंग बना दिए जाते हैं. इस में ब्रेस्ट और प्राइवेट पार्ट शामिल होता है. ब्रेस्ट के लिए अलग से 3 से 4 घंटे की सर्जरी करनी पड़ती है. यह सर्जरी 4 से 5 महीने के गैप के बाद ही की जाती है.

जेंडर चेंड सर्जरी की पूरी प्रक्रिया में कई डाक्टर शामिल होते हैं. इस में मनोरोग विशेषज्ञ, सर्जन, गायनेकोलौजिस्ट और एक न्यूरो सर्जन भी मौजूद रहता है. डाक्टर बताते हैं कि यह सर्जरी 21 साल से अधिक उम्र के लोगों पर ही की जाती है. इस से कम उम्र में मातापिता की ओर से लिखित में सहमति लेने के बाद ही औपरेशन किया जाता है.

डाक्टर से होने वाली है शिवाय की शादी

जिस स्वाति के लिए घर वाले शादी के लिए लड़का देख रहे थे, जेंडर बदलने के बाद सौफ्टवेयर इंजीनियर शिवाय सूर्यवंशी अब एक डाक्टर से शादी करने जा रहा है. जेंडर चेंज करवाने के दौरान ही शिवाय की मुलाकात इंदौर की रहने वाली एक लड़की से हौस्पिटल में हुई थी, जो बीएएमएस का कोर्स कंपलीट कर चुकी है और उस का खुद का क्लीनिक भी है.

सर्जरी के दौरान शिवाय को अपनी मंगेतर से काफी सपोर्ट मिला था. दोनों के परिवार वाले भी इस रिश्ते से काफी खुश हैं. शिवाय की यह अरेंज कम लव मैरिज होगी. कुछ ही दिनों बाद शिवाय मंगेतर के साथ परिणय सूत्र में बंधने जा रहा है. शिवाय ने बाद में महर्षि महेश योगी यूनिवर्सिटी से एमएससी (आईटी) पास करने के साथ सौफ्टवेयर डेवलपमेंट का कोर्स किया  है. फिलहाल वह विदेशी कंपनियों के कुछ प्रोजैक्ट को फ्रीलांस के तौर पर कर रहा है. इस के अलावा शिवाय आलमाइटी सोल्यूशन सौफ्टवेयर कंपनी को भी अपनी सेवाएं दे रहा है.

शिवाय के पास हर दिन उन लोगों के फोन आते हैं, जो जेंडर चेंज तकनीक की जानकारी हासिल करना चाहते हैं. शिवाय ऐसे लोगों से खुशमिजाज हो कर बात करता है और लोगों की जेंडर सर्जरी संबधी जिज्ञासाओं का समाधान भी करता है.

यूट्यूब चैनल से दिया जा रहा है संदेश

एक छोटे से नगर में रह कर जेंडर चेंज कराने वाले शिवाय ने बताया कि उस के पास रोज ही ऐसे नौजवानों के फोन काल आते हैं, जो इस तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं. शिवाय ऐसे युवाओं को फोन पर ही मार्गदर्शन करता है.

अपने चैनल के माध्यम से शिवाय जेंडर चेंज सर्जरी के साथ ही दस्तावेजों में नामपता बदलने की जानकारी भी विस्तार से देता है. उस के चैनल को बड़ी संख्या में युवा फालो भी कर रहे हैं.

शिवाय ने बताया कि इस तरह की समस्याओं से परेशान युवक युवतियां घुटघुट कर जीते हैं. घर वाले उन की फीलिंग्स को नहीं समझते और निराश हो कर युवक युवतियां आत्महत्या जैसा कदम तक उठा लेते हैं.

शिवाय का कहना है कि इस तरह की समस्या का सामना करने वाले नौजवान युवकयुवतियां डरने के बजाय अपना आत्मविश्वास जगाएं और बिना संकोच किए अपने घर वालों से बातचीत कर अपना जेंडर चेंज करा सकते हैं. आजकल तो सरकार की आयुष्मान योजना का लाभ उठा कर भी जेंडर चेंज सर्जरी कराई जा सकती है.

—कथा शिवाय सूर्यवंशी से की गई लंबी बातचीत पर आधारित

आशू की अजीब दास्तान : दो बूंद प्यार की चाहत

आशू यानी आशीष कुमार जब सजधज कर निकलता है तो युवक ही नहीं, बड़ेबूढ़े भी उसे देखते रह जाते हैं. उस के रूप सौंदर्य पर लोग इस कदर मोहित हो जाते हैं कि उसे जीवनसाथी के रूप में पाने की कल्पना करने लगते हैं. यही नहीं, जब वह कातिल अदाओं के साथ स्टेज पर नृत्य करता है तो नवयुवकों के साथ बुड्ढे भी बहकने लगते हैं.

आशू के इन गुणों को देख कर लगता है कि वह कोई लड़की है. लेकिन ऊपर जो नाम लिखा है, उस से साफ पता चलता है कि वह लड़की नहीं, लड़का है. इलाहाबाद का बहुचर्चित डांसर एवं ब्यूटीशियन आशीष कुमार उर्फ आशू बेटे के रूप में पैदा हुआ था, इसीलिए घर वालों ने उस का नाम आशीष कुमार रखा था. बाद में सभी उसे प्यार से आशू कहने लगे थे. लेकिन लड़का होने के बावजूद उस का रूपसौंदर्य ही नहीं, उस में सारे के सारे गुण लड़कियों वाले हैं.

आशू का जन्म उत्तर प्रदेश के जिला इलाहाबाद के मोहल्ला जीटीबीनगर में रहने वाले विनोद कुमार शर्मा के घर हुआ था. पिता इलाहाबाद में ही व्यापार कर विभाग में बाबू थे. परिवार शिक्षित, संस्कारी और संपन्न था. 4 भाइयों और 2 बहनों में तीसरे नंबर का आशू पैदा भले ही बेटे के रूप में हुआ था, लेकिन जैसेजैसे वह बड़ा होता गया, उस में लड़कियों वाले गुण उभरते गए. उस के हावभाव, रहनसहन एवं स्वभाव सब कुछ लड़कियों जैसा था. वह लड़कों के बजाय लड़कियों के साथ खेलता, उन की जैसी बातें करता.

जब कभी उसे मौका मिलता, वह अपनी बहनो के कपड़े पहन कर लड़कियों की तरह मेकअप कर के आईने में स्वयं को निहारता.  मां और बहनों ने कभी उसे रोका तो नहीं, लेकिन उस के भविष्य को ले कर वे चिंतित जरूर थीं.

आशू जिन दिनों करेली के बाल भारती स्कूल में कक्षा 6 में पढ़ता था, स्कूल के वार्षिकोत्सव में पहली बार उसे नृत्य के लिए चुना गया. कार्यक्रम के दौरान जब आशू को लड़की के रूप में सजा कर स्टेज पर लाया गया तो लोग उसे देखते रह गए. लड़की के रूप में उस ने नृत्य किया तो उस का नृत्य देख कर लोगों ने दांतों तले अंगुली दबा ली.

इस के बाद मोहल्ले में ही नहीं, शहर में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में आशू को नृत्य के लिए बुलाया जाने लगा. चूंकि उस समय आशू बच्चा था, इसलिए घर वाले उसे उन सांस्कृतिक कार्यक्रमों में जाने से मना नहीं करते थे. लेकिन आशू बड़ा हुआ तो लोग उस के हावभाव को ले कर उस के पिता और भाइयों के सामने अशोभनीय ताने मारने लगे, जिस से उन्हें ठेस लगने लगी.

आखिकार एक दिन आशू को ले कर घर में हंगामा खड़ा हो गया. पिता और भाइयों ने उस से साफ कह दिया कि वह पढ़ाई पर ध्यान दे, कहीं किसी कार्यक्रम में जाने की जरूरत नहीं है. लेकिन आशू स्वयं को रोक नहीं पाया. मौका मिलते ही वह कार्यक्रमों में भाग लेने पहुंच जाता.

आशू की हरकतों से घर वाले स्वयं को बेइज्जत महसूस करते थे. लोग उसे ले कर तरहतरह की चर्चा करते थे. कोई उसे किन्नर कहता था तो कोई शारीरिक रूप से लड़की कहता. जब बात बरदाश्त से बाहर हो गई तो घर वालों ने कक्षा 8 के बाद उस की पढ़ाई छुड़ा दी.

अब तक आशू काफी समझदार हो चुका था. पढ़ाई छुड़ा दिए जाने के बाद वह घर में बैठबैठे बोर होने लगा. घर में सिर्फ मां और बहनें ही उस से बातें करती थीं, वही उस की पीड़ा को भी समझती थीं. क्योंकि वे स्त्री थीं. वे हर तरह से उसे खुश रखने की कोशिश करती थीं.

वक्त गुजरता रहा. पिता और भाई भले ही आशू के बारे में कुछ नहीं सोच रहे थे, लेकिन मां उस के भविष्य को ले कर चिंतित थी. उस ने उसे अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए पति से गंभीरता से विचार किया. अंतत: काफी सोचविचार के बाद आशू की पसंद के अनुसार उसे नृत्य और ब्यूटीशियन का कोर्स कराने का फैसला लिया गया.

आशू को नृत्यं एवं ब्यूटीशियन की कोचिंग कराई गई. चूंकि उस में नृत्य एवं ब्यूटीशियन का काम करने की जिज्ञासा थी, इसलिए जल्दी ही वह इन दोनों कामों में निपुण हो गया. इस के बाद उस ने अपना ब्यूटीपार्लर खोल लिया. इस काम में आशू ने पैसे के साथसाथ अच्छी शोहरत भी कमाई.

घर वाले आशू के इस काम से खुश तो नहीं थे, लेकिन विरोध भी नहीं करते थे. वह जब तक घर पर रहता, पिता और भाइयों से डराडरा रहता, क्योंकि वे उस के लड़की की तरह रहने से घृणा करते थे. आशू बड़ा हो गया. लेकिन खुशियां और आनंद उस के लिए सिर्फ देखने की चीजें थीं, क्योंकि वह घर में घुटनभरी जिंदगी जीने को मजबूर था.

आशू चूंकि अपने गुजरबसर भर के लिए कमाने लगा था, इसलिए खुशियां और आनंद पाने के लिए वह अपना घर छोड़ने के बारे में सोचने लगा. क्योंकि वह पिता और भाइयों की उपेक्षा एवं घृणा से त्रस्त हो चुका था. मजबूर हो कर 7 साल पहले आशू ने दिल मजबूत कर के घर छोड़ दिया और कैंट मोहल्ले में किराए पर कमरा ले कर आजादी के साथ रहने लगा. आशू के लिए यह एक नया अनुभव था.

आजाद होने के बाद आशू में लड़की होने की कसक पैदा होने लगी. कहा जाता है कि मनुष्य जैसा सोचता है, वैसा ही बन जाता है. आशू के साथ भी ऐसा ही हुआ. उस की भी कमर लड़कियों की तरह पतली होने लगी और नीचे के हिस्से भरने लगे. उस का रूपसौंदर्य औरतों की तरह निखरने लगा. कुछ ही दिनों में वह पूरी तरह से औरत लगने लगा.

आशू को लड़कियों जैसा ऐसा रूप मिला था कि वह जब कभी स्टेज पर नृत्य करता लोग देखते रह जाते थे. आज स्थिति यह है कि वह इलाहाबाद शहर का मशहूर डांसर माना जाता है. इस समय वह अतरसुइया में रहता है. वह जो कमाता है, उस का अधिकांश हिस्सा समाजसेवा पर खर्च करता है. यही वजह है कि लोग उसे सम्मान की नजरों से देखते हैं.

आशू उपेक्षित एवं तिरस्कृत गरीब परिवार के लड़केलड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने में उन की आर्थिक मदद तो करता ही है, अपने ‘जया बच्चन नृत्य एवं संगीत स्कूल’ में नि:शुल्क नृत्य भी सिखाता है. उस के इस स्कूल में 25 लड़के एवं 20 लड़कियां नृत्य सीख रही हैं. इस के अलावा वह लड़केलड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ब्यूटीशियन का कोर्स भी कराता है.

आशू को सब से बड़ा दुख इस बात का है कि परिवार में इतने लोगों के होते हुए भी वह अकेला है. जबकि दुखसुख बांटने के लिए एक साथी की जरूरत होती है. लेकिन उस की स्थिति ऐसी है कि वह किसी को अपना साथी नहीं बना सकता. औरत के लिए मर्द तो मर्द के लिए औरत के प्यार की जरूरत होती है, लेकिन आशू का तन मर्द का है तो मन औरत का. ऐसे में उसे न तो मर्द का प्यार मिल पा रहा है, न औरत का.

महिला सिपाही बनेंगी मर्द?

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर और गोंडा में तैनात 2 महिला कांस्टेबलों द्वारा लिंग परिवर्तन के लिए मुख्यालय से अनुमति मांगना विभाग में चर्चा का विषय बन चुका था.  इतना ही नहीं हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाली महिला सिपाहियों ने अपने आवेदन को संवैधानिक अधिकार बताया. इस तरह की मांग करने वाली गोरखपुर और गोंडा के अलावा सीतापुर और अयोध्या की भी 2 सिपाही हैं.

चारों ने पहले डीजी औफिस में अरजी दे कर जेंडर बदलवाने के लिए अनुमति भी मांग चुकी हैं. महिलाओं की अरजी जब उच्चाधिकारियों के पास पहुंची, तब वे भी हैरान हो गए.

अयोध्या की ऐसी महिला सिपाही ने नाम नहीं बताने की शर्त पर बताया कि उस का उत्तर प्रदेश पुलिस में साल 2019 में सेलेक्शन हुआ था. उस की पहली तैनाती गोरखपुर थी. लिंग परिवर्तन के लिए वह फरवरी से दौड़ रही है. उस ने बताया कि गोरखपुर में वह एसएसपी, एडीजी फिर डीजी मुख्यालय तक जा चुकी है. उन्हीं में एक नीलम भी है. उस ने अपने भीतर मर्दानापन के एहसास के चलते हुए कई चौंकाने वाली बातें भी बताईं.

कहानी उत्तर प्रदेश पुलिस की महिला सिपाही नीलम की है. उस की पहली तैनाती उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर में हुई थी. उस ने पुलिस में भरती की सभी परीक्षाएं पास की थीं. लिखित परीक्षा से ले कर फिजिकल तक. शारीरिक जांच परीक्षा में उस ने दूसरे प्रतियोगियों की तुलना में काफी बेहतर प्रदर्शन किया था. चाहे ग्राउंड के 4 चक्कर लगाने की परीक्षा हो या फिर लौंग जंप और हाई जंप, सभी में एक सधे हुए एथलीट की तरह उस ने फिजिकल परीक्षा लेने वाले पुलिस अधिकारी को हैरान कर दिया था.

तब उन के मुंह से अनायास निकल पड़ा था, ”वाह! तुम्हें तो ओलंपिक में जाना चाहिए था.’‘

जवाब में वह सिर्फ यही बोल पाई थी, ”छोटे गांव शहर वाले को पूछता कौन है साहबजी. सिपाही की यही नौकरी मिल जाए, बहुत है मेरे लिए.

यह 2019 बात की है. अयोध्या की रहने वाली नीलम का उत्तर प्रदेश पुलिस में कांस्टेबल के पद पर सेलेक्शन हो गया था. उस की पहली तैनाती गोरखपुर में हुई थी. ड्यूटी पर नीलम के मिजाज और हावभाव दूसरी महिला सिपाहियों से कुछ अलग थे. बोलचाल, चालढाल, उठनेबैठने का स्टाइल उसे सामान्य लड़की से अलग करता था.

वह एकदम अलग दिखती थी. चाहे ड्यूटी पर पुलिस की पुरुष वाली वरदी में हो या फिर घरपरिवार में. सामान्य जीवन में उसे मर्दों वाले कपड़े ही पसंद आते थे. जींसपैंट, शर्ट टीशर्ट उस की खास पोशाक थी. मेकअप सुंदर दिखने के लिए नहीं, बल्कि चेहरे की साफसफाई के लिए करती थी.

उस की आवाज भले ही महीन हो, लेकिन बोलने का लहजा औरत की आवाज से एकदम अलग था. खास तरह की खनक. एकदम स्पष्ट और तने हुए शब्दों में सटीक बातें करने की शैली. अपने अधिकारियों को अदब के साथ सरनेम से बुलाना. पुरुष सिपाहियों और अधिकारियों को मिस्टर सिंहजी और मिस्टर पांडे साहब या मिस्टर यादवजी  कहना आदि बातें उसे औरों से अलग करने के लिए काफी थीं. कानूनी धाराएं तो उस की जुबान पर रहती थीं.

बहुत जल्द ही वह अपने थाने के स्टाफ के बीच लोकप्रिय हो गई थी. साथ काम करने वाले सिपाही से ले कर अधिकारी तक उस की तारीफ करते थे और वह उन के लिए एक मिसाल थी. अधिकारियों द्वारा उस की अनुपस्थिति में गाहेबगाहे उन की खूबियों की चर्चा होती थी.

इस के बावजूद नीलम खुद को असहज महसूस करती थी. खासकर जब से उस ने पुलिस की वरदी पहनी और ड्यूटी जौइन की, तब से उस में अलग तरह के बदलाव आ गए थे. घरपरिवार और दूसरे लोग भी कहने लगे थे. खासकर उस की सहेलियां और रिश्तेदारी में लड़कियां बोलती थीं, ”तू तो बहुत बदल गई पुलिस बन कर!’‘

बुलेट पर बैठी नीलम यह सुन कर हेलमेट पहनती हुई सिर्फ मुसकरा दी थी. उन्हें एक तीखी नजर से देखती हुई, तुरंत बाइक का गियर बदल कर एक्सेलेटर घुमा दिया था. बाइक की तेजी से घुरघुराती हुई घर्रघर्र और फटफट की भारी आवाज सुन दूर खड़े लड़के भी देखने लगे थे. चंद सेकेंड बाद वे बुलट पर जाती नीलम को देख रहे थे…आहें भर रहे थे.

सैक्स चेंज कराने की जिद पर अड़ गई नीलम

साल 2023 की जनवरी का महीना था. नीलम यूपी पुलिस के अतिरिक्त महानिदेशक (एडीजी) रैंक के एक अधिकारी के सामने दोनों हाथ जोड़े खड़ी थी. विनम्रता के साथ बोली, ”साहबजी, मैं ने एक एप्लीकेशन दी थी, उस का क्या हुआ?’‘

”क्या नाम है तुम्हारा?’‘ अधिकारी ने फाइलें पलटते हुए पूछा.

”जी, साहबजी क…क..नीलम!’‘ अटकती हुई बोली.

”पूरा नाम बोलो, पूरा.’‘

”जी, नीलम सिंह साहबजी!’‘

”अच्छा तो तू वही लड़की है, जेंडर डिस्फोरिया वाली कांस्टेबल!’‘ पुलिस अधिकारी बोले.

”जी साहबजी, सही पहचाना आप ने. क्या हुआ मेरी एप्लीकेशन का, कोई जवाब आया क्या?’‘

”जवाब? कैसा जवाब चाहिए तुम्हें? मनमरजी है क्या? नौकरी पाओ फीमेल बन कर और जब मिल जाए तब मर्द बनने की गुहार लगाओ, फिर प्रमोशन…!’‘ पुलिस अधिकारी ने कहा.

”लेकिन साहबजी, आप मेरी समस्या को समझिए. मैं कितनी उलझन में हूं. कितनी तकलीफ में हूं इसे भी तो समझिए,’‘ नीलम बोली.

”क्या समझूं मैं? जब तुम्हें पता था कि तुम्हारे शरीर में मर्दानापन है, मेल के लक्षण हैं, तब सैक्स चेंज पहले करवा लेती. फिर नौकरी का आवेदन करती.’‘

”तब तक इतना नहीं पता था सर, नौकरी लगे 3 साल हो गए. कोरोना आ गया. 2 साल तो उसी में निकल गए. तब कहां मालूम था कि आगे चल कर जीना मुश्किल जो जाएगा.’‘

”तुम्हारा जीना मुश्किल? अरे तुम ने तो एप्लीकेशन दे कर यूपी पुलिस को मुश्किल में डाल दिया है,’‘ एडीजी बोले.

”मैं ने क्या किया है सर, हम ने तो अपनी समस्या बताई और कहा कि इस हाल में ड्यूटी निभाने में परेशानी है. अगर मेरे आपरेशन करवा देने से बात बन जाती है तो हर्ज क्या है?’‘ नीलम बोली.

तब तक एडीजी साहब अपने सामने कुछ और डाक्यूमेंट निकाल चुके थे. उन में एक तो नीलम की एप्लीकेशन थी, जिस पर विभाग के कई पुलिस अधिकारियों के दस्तखत थे. उस के साथ कुछ अनुशंसा पत्र थे. नीलम के अलावा कई और सिपाही भी थीं, जो अपना जेंडर चेंज कराना चाहती थीं.

2 पन्ने के दूसरे डाक्यूमेंट को उठा कर पढ़ने के बाद बोले, ”यह रही तुम्हारी एप्लीकेशन की काररवाई की रिपोर्ट. तुम्हारी एप्लीकेशन के आधार को किंग जार्ज मैडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ को विभाग ने लिखा था. उस का जवाब आया है.’‘

”क्या कहा है मैडिकल वालों ने? मेरी जांच के लिए कब बुलाया है?’‘ नीलम उत्सुकता से बोली.

”जांच के लिए बुलावा! सपना देख रही हो!… इस में लिखा है कि अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले, चिकित्सा से पहले कानूनी राय लेनी होगी. महिलाओं और लैंगिक मुद्दे का मामला है.’‘ पुलिस अधिकारी ने कहा.

”इस का मतलब अभी कुछ नहीं हुआ है मेरी रिक्वेस्ट का?’‘ नीलम बोली.

”कैसे कुछ नहीं हुआ है? विभाग के अपने नियम हैं. अस्पताल के अपने. दोनों के बीच तालमेल बिठाने पर ही तो कुछ होगा.’‘

”वह कब तक होगा?’‘ नीलम ने उत्सुकता दिखाई.

”देखो, तुम जितना आसान समझती हो, उतना है नहीं. तुम्हारी नौकरी महिला कांस्टेबल के पद पर लग चुकी है. ऐसे में कई नियमों को लांघना पड़ेगा.’‘ एडीजी ने समझाने की कोशिश की.

”विभाग से कोई मदद नहीं मिलेगी?’‘

”विभाग इस में जो कर सकता है कर रहा है. पत्राचार किया जा रहा है. इस समस्या की तुम अकेली कांस्टेबल नहीं हो. एक और गोंडा थाने की कांस्टेबल का मामला भी है. तुम दोनों कांस्टेबलों ने लिंग परिवर्तन की अनुमति के लिए आवेदन किया है. तुम लोगों ने विभिन्न कारणों का उल्लेख किया है. किंतु…’‘

एडीजी के बोलने के क्रम में नीलम बीच में ही बोल पड़ी, ”किंतु परंतु क्यों करते हैं साहबजी, आप के हाथों में ही तो सब कुछ है.’‘

”पहले तुम विभागीय बात को समझने की कोशिश करो. लिंग परिवर्तन की अनुमति देने में मुख्य समस्या यह है कि यदि सर्जरी के बाद उन्हें पुरुष कांस्टेबल माना जाता है तो उस के लिए पुरुष कांस्टेबलों के लिए आवश्यक अन्य शारीरिक मानदंड कैसे मेल खाएंगे? पुरुष और महिला वर्ग के लिए ऊंचाई, दौड़ने की क्षमता और कंधे की ताकत जैसे अलगअलग शारीरिक मानदंड हैं,’‘ एडीजी बोले.

”क्या आप को नहीं मालूम कि महाराष्ट्र में एक कांस्टेबल ललिता का सैक्स चेंज ड्यूटी पर रहते हुए किया जा चुका है. तो फिर मेरा क्यों नहीं?’‘ नीलम ने उदाहरण और तर्क दिया.

”हर राज्य के कुछ अपने नियम भी होते हैं. यूपी पुलिस में पुरुषों और महिलाओं के लिए भरती मानदंडों का सख्ती से पालन किया जाता है और महिला मानदंड के तहत नौकरी पाने के बाद लिंग बदलना मानदंडों की अवहेलना होगी.’‘ एडीजी बोले.

इस पर नीलम उदास हो गई. निराश मन से वापस गोरखपुर लौट आई, किंतु शांत नहीं बैठी.

नीलम ने एक वकील से संपर्क किया और इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपनी समस्या को ले कर याचिका दायर कर दी. वकील ने याचिका में महिला सैक्स चेंज को ले कर कुछ उदाहरणों के डाक्यूमेंट भी लगा दिए. नीलम ने याचिका मे सैक्स चेंज करवाने की अनुमति मांगी.

यूपी की राज्य पुलिस के सामने इस तरह का पहला मामला आया था. सुनवाई के क्रम मे कोर्ट ने मामले को गंभीरता से लेते हुए यूपी पुलिस से सवालजवाब किए. यूपी पुलिस अपना तर्क रखते हुए बोली कि महिला पुलिस के रूप में भरती होने के बाद कांस्टेबलों को अपना लिंग बदलने की अनुमति कैसे दे सकते हैं.

इस के जवाब में अदालत ने मुख्यालय से महिला कांस्टेबल के अनुरोध पर योग्यता के आधार पर पुनर्विचार करने और भविष्य में दोबारा सामने आने वाले ऐसे ही मामलों के लिए कुछ मानदंड तैयार करने को कहा.

आखिर कब पूरी होगी इन की इच्छा

इस कहानी के लिखे जाने तक उत्तर प्रदेश पुलिस के शीर्ष अधिकारी दुविधा में फंसे हुए थे. गोरखपुर और गोंडा में तैनात 2 महिला सिपाहियों द्वारा लिंग परिवर्तन के लिए मुख्यालय से अनुमति मांगना विभाग में चर्चा का विषय बन चुका था.

इतना ही नहीं हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाली महिला सिपाही ने अपने आवेदन को संवैधानिक अधिकार बताया. इस तरह की मांग करने वाली गोरखपुर और गोंडा के अलावा सीतापुर और अयोध्या की भी 2 सिपाही हैं.

चारों पहले डीजी औफिस में अरजी दे कर जेंडर बदलवाने के लिए अनुमति भी मांग चुकी हैं. महिलाओं की अरजी जब उच्चाधिकारियों के पास पहुंची, तब वे भी हैरान हो गए. महिला सिपाहियों की अरजी को देखते हुए चारों जिलों में पुलिस अधीक्षकों को डीजी औफिस की ओर से पत्र लिख कर उन की काउंसलिंग कराने के लिए कहा गया.

अयोध्या की ऐसी महिला सिपाही ने नाम नहीं बताने की शर्त पर बताया कि उस का उत्तर प्रदेश पुलिस में साल 2019 में सेलेक्शन हुआ था. उस की पहली तैनाती गोरखपुर थी. लिंग परिवर्तन के लिए वह फरवरी से दौड़ रही हैं. उस ने बताया कि गोरखपुर में वह एसएसपी, एडीजी फिर डीजी मुख्यालय तक जा चुकी है.

उन्हीं में एक नीलम भी है. उस ने अपने भीतर मर्दानापन के एहसास के चलते हुए कई चौंकाने वाली बातें भी बताईं. पुलिस विभाग में पुरुष बनने के सवाल पर अधिकारियों को उस ने बताया कि पढ़ाई के दौरान ही उस के हारमोंस चेंज होने लगे थे. इस के बाद से ही उन का जेंडर बदलवाने की इच्छा होने लगी.

सब से पहले उस ने दिल्ली में एक बड़े डाक्टर से कई चरणों में काउंसलिंग करवाई थी. डाक्टर ने जांचपड़ताल के बाद उस का जेंडर डिस्फोरिया बताया. डाक्टर की रिपोर्ट के आधार पर ही उस ने लिंग बदलवाने की अनुमति मांगी है.

नीलम ने यह भी बताया कि उस का स्टाइल पुरुष जैसा है. वह पुरुष जैसा दिखना ही नहीं, उसी तरह की जिंदगी जीना चाहती है. फिलहाल वह बाल और पहनावे पुरुषों की तरह रखती है. बाइक से चलना पसंद है. पैंटशर्ट पहनना सहज लगता है.

उस ने बताया कि जब वह स्कूल जाती थी, तभी से उसे लड़कियों की तरह काम करना अटपटा लगता था. स्कूल में उस की चालढाल की वजह से कई लोग उसे लड़का कहते थे, जो उसे बहुत अच्छा लगता था. बहरहाल, अब देखना यह है कि इन पुलिसकर्मियों की सैक्स चेंज कराने की इच्छा कब पूरी होगी?

महिला सिपाही ललिता से बनी ललित 

महाराष्ट्र पुलिस की कांस्टेबल ललिता साल्वे राज्य की पहली महिला सिपाही थी, जिसे सैक्स चेंज करवाने की लंबी कानूनी प्रक्रिया और जटिल इलाज के दौर से गुजरना पड़ा था. उस ने अपने औपरेशन के लगभग 4 साल पहले शरीर में परिवर्तन देखे थे और डाक्टरी परीक्षण कराया था.

उस के बाद बाद महाराष्ट्र पुलिस ने लिंग परिवर्तन सर्जरी की सलाह दी थी. उस का आपरेशन 2017 में किया गया था और उसी साल 25 मई को ललिता से ललित बनने का सफर खत्म हो गया था.

महाराष्ट्र पुलिस का यह अनोखा मामला 29 साल की महिला कांस्टेबल ललिता साल्वे का था. उस की 2009 में महाराष्ट्र पुलिस में नियुक्ति हुई थी. उस की पोस्टिंग बीड थाने में हुई थी. उस ने नौकरी करते कुछ समय बाद ही महसूस किया कि वह लड़के के रूप में ज्यादा बेहतर काम कर सकती है.

इस बारे में उस ने डाक्टरी जांच करवाई, तब मालूम हुआ कि जेंडर आइडेंटिटी डिसऔर्डर से प्रभावित है. उसे सही और अच्छी जिंदगी गुजारनी है तो उस के लिए सेक्स चेंज कराना अच्छा रहेगा.

इस सलाह को ललिता ने अपने घर वालों को बताया और उन से सहयोग मांगा. इस में परिवार ने पूरा सपोर्ट किया. उस के बाद ही ललिता ने अपने विभाग के अधिकारियों और डीजीपी स्टेट डेप्यूटी जनरल सतीश माथुर से सैक्स चेंज सर्जरी की अनुमति मांगी थी. साल्वे ने यह भी कहा था कि वह सर्विस में बनी रहना चाहती है.

तब अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक राजेंद्र सिंह ने कहा कि महाराष्ट्र पुलिस के इतिहास में यह अपनी तरह का पहला मामला है. फिर भी उसे अनुमति नहीं मिली थी.

इसी सिलसिले में साल्वे को ड्यूटी में शामिल होने के बाद एक पुरुष कांस्टेबल को दिए जाने वाले लाभ का भी मसला सामने आया था. साल्वे ने पहले लिंग परिवर्तन सर्जरी कराने के लिए छुट्टी देने के लिए राज्य पुलिस विभाग से संपर्क किया था.

विभाग ने मांग खारिज कर दी थी, क्योंकि पुरुष और महिला कांस्टेबलों के लिए पात्रता मानदंड अलगअलग थे, जिस में ऊंचाई और वजन की आवश्यकताएं भी शामिल थीं. विभागीय अनुमति नहीं मिलने पर ही ललिता ने नवंबर 2017 में मुंबई हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. मांग की थी कि राज्य पुलिस को उन्हें छुट्टी देने के लिए निर्देश जारी किए जाएं.

1988 में जन्मी साल्वे ने एक याचिका में बौंबे हाईकोर्ट को बताया था कि उस ने लगभग 4 साल पहले अपने शरीर में परिवर्तन देखा था और डाक्टरी जांच कराई थी, जिस में उस के शरीर में वाई क्रोमोसोम की उपस्थिति की पुष्टि हुई थी.

जहां पुरुषों में एक्स और वाई सैक्स क्रोमोसोम होते हैं, वहीं महिलाओं में 2 एक्स क्रोमोसोम होते हैं. डाक्टरों ने कहा था कि उसे लिंग डिस्फोरिया है और उसे लिंग परिवर्तन सर्जरी कराने की सलाह दी थी.

इस पर कोर्ट ने पुलिस को पत्र लिखा था. सभी कानूनी आधार को देखते हुए बीड के एसपी जी. श्रीधर ने भी इस की पुष्टि करते हुए लिखा कि उन्हें महिला कांस्टेबल की याचिका के संबंध में जवाब दिए और सैक्स चेंज की अनुमति मिली. सर्जरी के लिए अपनी चिकित्सीय फिटनेस स्थापित करने के लिए साल्वे को एक्सरे स्कैन, इलैक्ट्रोकार्डियोग्राफी (ईसीजी) जांच और रक्त परीक्षण जैसी कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ा था.

जानलेवा गेम ‘ब्लू व्हेल’

इसी 4 सितंबर की बात है. रात के 11 बजने वाले थे. राजस्थान की सूर्य नगरी कहलाने वाले जोधपुर में लोग दिनभर की भागदौड़ के बाद सोने की तैयारी कर रहे थे. कुछ लोग रात का भोजन कर के टहलने निकल गए थे. कुछ लोग कायलाना सिद्धनाथ की पहाडि़यों के आसपास भी टहल रहे थे.

इसी बीच टहल रहे लोगों ने देखा कि 16-17 साल की एक किशोरी ने पहाडि़यों से नीचे कायलाना झील के पानी में छलांग लगा दी. उम्रदराज लोगों में मानवता जागी. उन्होंने वहां घूम रहे और उधर आ रहे कुछ युवाओं से कहा कि वे झील में कूद कर उस किशोरी की जान बचाने की कोशिश करें. तैरना जानने वाले 3-4 युवकों ने आगे बढ़ कर झील में छलांग लगा दी. किशोरी झील में जीवन और मौत से संघर्ष करते हुए हाथपैर चला रही थी.

उन युवकों ने किशोरी को सकुशल पानी से बाहर निकाल लिया. बाहर आ कर वह चिल्ला कर कहने लगी, ‘‘मुझे झील में कूदने दो, टास्क पूरा करना है. अगर तुम ने मुझे बचा लिया तो मेरी मम्मी मर जाएंगी.’’ वहां मौजूद लोगों ने बालिका को समझाबुझा कर शांत किया.

सूचना मिलने पर राजीव गांधी नगर थाना पुलिस भी मौके पर पहुंच गई. थाने ले जा कर किशोरी से पूछताछ की गई तो पता चला कि वह 17 वर्षीया किशोरी जोधपुर के मंडोर क्षेत्र में रहने वाले बीएसएफ जवान की बेटी है और 10वीं में पढ़ती है. उस किशोरी के पास एंड्रायड फोन था. पता चला कि पिछले कुछ दिनों से वह मोबाइल पर ब्लू व्हेल गेम खेल रही थी. उस ने इस गेम की सारी स्टेज पार कर ली थीं. किशोरी ने अपने घर वालों को यह गेम खेलने की भनक तक नहीं लगने दी थी. आखिरी टास्क के रूप में उसे 4 सितंबर को पहाड़ी से कूद कर अपनी जान देनी थी.

आखिरी टास्क को पूरा करने के लिए ही वह 4 सितंबर को दोपहर में परिवार वालों से सहेलियों के साथ बाजार जाने की बात कह कर घर से स्कूटी पर निकली थी. उस ने बाजार से एक चाकू खरीदा और उस से अपने दाहिने हाथ की कलाई पर व्हेल की आकृति उकेर कर ए.एस. लिख दिया. शाम को उस ने अपना मोबाइल रास्ते में फेंक दिया.

उस का यह मोबाइल एक भले आदमी को मिल गया, जिस ने मोबाइल पुलिस को सौंप दिया. रात करीब पौने 11 बजे वह स्कूटी ले कर कायलाना-सिद्धनाथ की पहाडि़यों के पास पहुंच गई. स्कूटी खड़ी कर के वह पहाड़ी पर चढ़ने लगी. रात का घना अंधेरा होने के कारण एक बार वह फिसली भी, लेकिन उस ने हिम्मत नहीं हारी. वह फिर पहाड़ी पर चढ़ी और कायलाना झील में कूद गई.

उस की किस्मत अच्छी थी कि लोगों ने उसे देख लिया और बचा लिया. बाद में पुलिस ने किशोरी को उस के मातापिता के हवाले कर दिया. घर जा कर जब दूसरे दिन भी उस के दिमाग से गेम का भूत नहीं उतरा तो उस ने कई तरह की दवाओं की गोलियां खा कर आत्महत्या करने का प्रयास किया.

जब उल्टीसीधी दवाएं खाने से उस की तबीयत बिगड़ गई तो घर वाले उसे कायलाना रोड स्थित एक निजी अस्पताल ले गए, जहां डाक्टरों ने किशोरी की मानसिक व शारीरिक स्थिति को देखते हुए आईसीयू वार्ड में भर्ती करा दिया. अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान इस किशोरी ने मीडिया से कहा कि कोई बच्चा भूल कर भी इस गेम के चक्कर में ना फंसे, इसे खेलना तो दूर डाउनलोड भी नहीं करें.

कैसे पड़ी चक्कर में

किशोरी ने बताया कि टीवी पर ब्लू व्हेल की खबर देखने के बाद उसे लगा कि यह झूठ होगा, लेकिन जिज्ञासावश उसने मोबाइल में यह गेम डाउनलोड कर लिया. जब उस ने गेम खेलना शुरू किया तो वह पूरी तरह गेम खेलती रही. कई स्टेप पूरे करने के बाद उस की औनलाइन चैट चलती रही. चैट के दौरान उसे मरने के लिए 4 औप्शन दिए गए. ऐसा नहीं करने पर उस की मां की जान को खतरा बताया गया. गेम के चक्कर में उस के दिमाग ने कुछ इस तरह काम करना बंद कर दिया कि वह कुछ समझने के काबिल नहीं रही.

ब्लू व्हेल गेम के इस मामले को गंभीरता से ले कर राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर पीठ के न्यायाधीश गोपाल कृष्ण व्यास ने 6 सितंबर को इसे संज्ञान में लिया. उन्होंने किशोरों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बच्चों व उन के अभिभावकों में जागरूकता लाने के लिए स्कूलों में कैंप लगाने के निर्देश जारी किए. वहीं, दूसरी ओर राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग ने संज्ञान ले कर राज्य के प्रमुख गृह सचिव से रिपोर्ट मांगी कि इस खेल को रोकने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं.

राजस्थान के पुलिस महानिदेशक अजीत सिंह के निर्देश पर जोधपुर के थाना मंडोर की पुलिस ने उस किशोरी का मोबाइल और लैपटौप जब्त कर लिया. दोनों चीजों को साइबर एक्सपर्ट के पास भेजा गया है, ताकि पता चल सके कि छात्रा ने यह गेम कहां से डाउनलोड किया था. पुलिस ने किशोरी के परिजनों को हिदायत दी है कि वे उस की गतिविधियों पर नजर रखें और कोई भी संदिग्ध बात नजर आने पर पुलिस को सूचना दें. किशोरी को 7 सितंबर को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी.

ब्लू व्हेल का एक और शिकार

जोधपुर की इस घटना से पहले 21 अगस्त को जयपुर के करणी विहार का रहने वाला 10वीं का एक 16 साल का छात्र गायब हो गया था. उस के गायब होने की रिपोर्ट जयपुर के करणी विहार पुलिस थाने में दर्ज कराई गई. लापता छात्र की तलाश के दौरान पता चला कि वह औनलाइन ब्लू व्हेल गेम खेलता था.

पूरी दुनिया में कई बच्चों की जान लेने वाले ब्लू व्हेल गेम का पता चलने पर उस छात्र की तलाश के लिए वैशाली नगर एसीपी रामअवतार सोनी के निर्देशन में एक पुलिस टीम गठित की गई. पुलिस ने छात्र के मोबाइल की लोकेशन के आधार पर पता लगाया कि वह जयपुर से मुंबई पहुंच गया है. पुलिस ने 25 अगस्त को उस छात्र को मुंबई के चर्चगेट रेलवे स्टेशन पर पकड़ कर आखिरी क्षणों में बचा लिया.

गेम का आखिरी चरण पार करने के लिए उस ने बाजार से चाकू खरीद लिया था. टास्क के तहत उसे एक ऊंची इमारत पर चढ़ना था. वह उस इमारत की लोकेशन के लिए मोबाइल पर आने वाले मैसेज के इंतजार में था, तभी जयपुर से गई पुलिस टीम और उस के घर वाले वहां पहुंच गए थे.

पूछताछ में पुलिस को छात्र ने बताया कि उस ने 5-7 दिन पहले मोबाइल के ब्राउजर पर ब्लू व्हेल लिख कर सर्च किया. एक पेज पर जौइन करने का विकल्प दिया गया था. उसे पहला टास्क मिला कि हाथ की नस काट कर फोटो शेयर करो. इस से छात्र डर गया, लेकिन टास्क पूरा करना था. इसलिए उस ने इंटरनेट से ऐसी ही एक फोटो निकाल कर शेयर कर दी. इस के बाद उसे 21 अगस्त को इंदौर जाने का टास्क मिला.

वह उसी दिन जयपुर से टे्रन द्वारा इंदौर पहुंच गया. इंदौर में अगला टास्क मुंबई पहुंच कर चाकू खरीदने का मिला. इस पर उस ने मुंबई पहुंच कर चाकू खरीद लिया. इस के बाद उसे आखिरी चरण में ऊंची इमारत पर जाने का टास्क मिलने वाला था. वह चर्चगेट स्टेशन पर बैठा, इसी मैसेज का इंतजार कर रहा था.

पुलिस ने बताया कि छात्र के पास 2 मोबाइल और 4 सिम थीं. वह इन्हें बदलबदल कर इस्तेमाल कर रहा था. इस वजह से उस की लोकेशन तलाशने में काफी परेशानियां आईं.

पुलिस की आईटी टीम ने मोबाइल हैंडसेट के आईएमईआई नंबर से उस की लोकेशन का पता लगाया. परिवार वालों के मुताबिक छात्र बहुत सीधा, कम बातें करने और इंटरनेट से दूर रहने वाला था. उस के फेसबुक पेज पर फ्रैंड लिस्ट में परिवार व परिचितों में केवल 4-5 लोग हैं. उन्हें तो यह भी नहीं पता था कि वह अपना खुद का मोबाइल भी रखता था.

जयपुर के इस बालक और जोधपुर की बालिका को तो आखिरी मौके पर बचा लिया गया, लेकिन दुनिया भर में बच्चों की जान ले रहा सुसाइड गेम ब्लू व्हेल आजकल सब से ज्यादा सुर्खियों में है. भारत में रोजाना कहीं न कहीं से किसी बच्चे या युवा के इस गेम में सुसाइड करने की खबरें आ रही हैं. देश का शायद ही कोई ऐसा राज्य हो, जहां इस तरह की घटना न हुई हो.

मुंबई भी अछूता नहीं

इस साल जुलाई महीने में ब्लू व्हेल उस समय चर्चा में आया, जब मुंबई के अंधेरी ईस्ट की शेर-ए-पंजाब कालोनी में 14 साल के एक बच्चे मनप्रीत सिंह साहनी ने 7वीं मंजिल से कूद कर आत्महत्या कर ली थी. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस ने इस बालक की आत्महत्या के लिए ब्लू व्हेल गेम को दोषी बताया था.

बताया गया कि मनप्रीत ने ब्लू व्हेल गेम का टास्क पूरा करने के लिए यह कदम उठाया था. उस ने 9वीं कक्षा में पढ़ने वाले अपने दोस्त को मैसेज भेजा था कि गेम का टास्क पूरा करने के लिए मैं बिल्डिंग से कूद रहा हूं. हो सकता है मनप्रीत से पहले भी ब्लू व्हेल गेम के चक्कर में किसी बालक या युवा ने अपनी जान गंवाई हो, लेकिन ज्यादा चर्चा न होने से ऐसी कोई घटना उभर कर सामने नहीं आई.

इस के बाद तो ऐसा सिलसिला शुरू हुआ कि रोजाना किसी न किसी राज्य से इस तरह की खबरें आने लगीं. हालांकि आधिकारिक तौर पर केंद्र सरकार के पास अभी तक कोई ऐसा आंकड़ा नहीं है, जिस से यह पता चल सके कि इस गेम के चक्कर में कितने युवाओं की जान जा चुकी है और कितने ऐसे युवा हैं, जिन की जान बचा ली गई है.

जुलाई के चौथे सप्ताह में केरल के तिरुवंतपुरम में 11वीं कक्षा में पढ़ने वाले एक छात्र मनोज ने संदिग्ध हालत में खुदकुशी कर ली. उस का शव कमरे में पंखे से लटका हुआ मिला. घर वालों का कहना है कि ब्लू व्हेल गेम ने उन के बेटे की जान ले ली. पिछले कई महीनों से उस के व्यवहार में बदलाव आ गया था.

कुछ महीने पहले मनोज ने इस गेम के बारे में अपनी मां अनु को बताया था, बाद में वह झूठ भी बोलने लगा था. मनोज कब्रिस्तान जैसी जगहों पर अकेला चला जाता था. उस के शरीर पर कई तरह के निशान बने हुए थे. वह रातरात भर जागता और सुबह 5 बजे सोता था. पुलिस ने उस के मोबाइल की जांच की.

अगस्त के दूसरे सप्ताह में पश्चिम बंगाल में बेस्ट मिदनापुर के आनंदपुर कस्बे में रहने वाले अंकन डे का शव बाथरूम में पाया गया. अंकन ने अपने सिर को प्लास्टिक बैग से ढका हुआ था और बैग को गर्दन के पास कस कर बांधा हुआ था. उस की मौत दम घुटने से हुई थी. 10वीं कक्षा के छात्र अंकन के दोस्तों ने बाद में बताया कि वह ब्लू व्हेल गेम खेल रहा था.

दिल्ली में भी दस्तक

अगस्त के तीसरे सप्ताह में दिल्ली के द्वारका में रहने वाले 17 साल के किशोर की जान उस की मां की सतर्कता से बच गई. बच्चे ने इस गेम के आधे पौइंट पार कर लिए थे. अगले चरण में उस ने गेम के निर्देश के तहत अपने चेहरे पर ज्योमेट्री बौक्स के टूल से जख्म बना लिए थे. मां ने साइकियाट्रिस्ट डाक्टरों की मदद ली. अब इस किशोर की हालत स्थिर है. इस से पहले उस का व्यवहार बदल गया था और वह अकेला रहने लगा था. पूछने पर सही जवाब भी नहीं देता था.

अगस्त के चौथे सप्ताह में उत्तर प्रदेश के शहर हमीरपुर में 13 साल के पार्थ ने पंखे से लटक कर फांसी लगा ली. घर वाले उसे अस्पताल भी ले गए, लेकिन उस की जान नहीं बचाई जा सकी. वह जयपुरिया स्कूल में 7वीं कक्षा में पढ़ता था. बताया गया कि ब्लू व्हेल गेम का टास्क पूरा करने के लिए उस ने यह कदम उठाया था. अपनी जान देने से पहले वह मोबाइल मे ब्लू व्हेल गेम खेल रहा था. इस दौरान वह अचानक कमरे में गया और बैड के ऊपर कुर्सी रख कर अंगौछे के सहारे पंखे से लटक गया.

ब्लू व्हेल बन गया फांसी

अगस्त महीने के ही आखिरी दिनों में तमिलनाडु के मदुरै में ब्लू व्हेल गेम खेल रहे 19 साल के विग्नेश ने फांसी लगा कर अपनी जान दे दी. वह बीकौम द्वितीय वर्ष का छात्र था. उस ने सुसाइड नोट में लिखा कि ब्लू व्हले गेम नहीं, बल्कि खतरा है. एक बार इस में घुसने के बाद निकल नहीं सकते. उस ने अपने हाथ पर व्हेल का निशान भी बनाया था. मां ने जब इस निशान के बारे में पूछा तो विग्नेश ने कहा था कि चिंता मत करो.

विग्नेश की मौत के दूसरे दिन अगस्त के आखिर में पुडुचेरी की सैंट्रल यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले 23 साल के एमबीए के छात्र शशि कुमार वोरा ने हौस्टल के कमरे में फांसी लगा कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली. वह मूलत: असम का रहने वाला था. उस ने ब्लू व्हेल गेम की चुनौती पूरी करते हुए आत्महत्या की थी. पुलिस ने वोरा के मोबाइल फोन की जांच करने के बाद इस बात की पुष्टि की थी कि आत्महत्या करने से पहले वह ब्लू व्हेल गेम खेल रहा था.

अगस्त महीने के आखिरी दिन ही गुजरात के बनासकांठा में ब्लू व्हेल गेम खेलते हुए एक युवक ने साबरमती नदी में छलांग लगा कर आत्महत्या कर ली.

20 साल के अशोक मुलाणा ने अपनी जान देने से पहले फेसबुक पर एक वीडियो मैसेज पोस्ट किया, जिस में उस ने कहा कि मैं जिंदगी से परेशान हो गया हूं. मेरा शिकार ब्लू व्हेल गेम ने किया है, इसलिए सुसाइड कर रहा हूं, मेरे परिवार में किसी की कोई गलती नहीं है.

अशोक 4 बहनों का एकलौता भाई था. उस के पिता परथीभाई की मौत हो चुकी थी. वह 3 महीने से नौकरी पर भी नहीं जा रहा था. दूसरी ओर पुलिस ने इस युवक के ब्लू व्हेल गेम का शिकार होने की बात से इनकार किया है.

सितंबर के पहले दिन असम के गुवाहाटी में एक लड़के ने खुद को काट लिया. नौगांव में 5वीं कक्षा में 2 बच्चों की अपने हाथ की कलाई पर व्हेल बनाने की कोशिश करते समय खून बहने पर बचा लिया गया. जोरहाट में एक छात्र ने फेसबुक पोस्ट कर ब्लू व्हेल की एडवांस स्टेज पर पहुंचने की पोस्ट डाली. इस के बाद वह लापता हो गया.

सितंबर के पहले सप्ताह में ही मध्य प्रदेश के दमोह में सात्विक नाम का छात्र ब्लू व्हेल गेम की आखिरी स्टेज का चैलेंज पूरा करने के लिए टे्रन के आगे घुटने टेक कर बैठ गया. इस से उस के परखच्चे उड़ गए. वह विज्ञान का 11वीं का छात्र था. जहां सात्विक की मौत हुई, वहां से कुछ ही दूरी पर लगे सीसीटीवी कैमरे में इस घटना के कुछ फुटेज पुलिस ने देखे. पुलिस ने सात्विक के मोबाइल की भी जांच की. बताया गया कि घटना से कुछ दिनों पहले से वह हर जगह मोबाइल ले कर जाता था. वह ब्लू व्हेल गेम खेलने की वजह से काफी परेशान था. उस ने दोस्तों से कहा था कि मेरे पास वक्त कम है.

हिमाचल प्रदेश के सोलन में सितंबर के दूसरे सप्ताह में ब्लू व्हेल गेम का पहला मामला सामने आया. इस का पता तब चला, जब एक निजी स्कूल में छठी कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे के घर वालों ने उस की कलाई पर ब्लेड के कट के निशान देखे. पूछने पर बच्चे ने बताया कि स्कूल के दूसरे छात्र भी इस गेम को खेल रहे हैं. गेम के टास्क के तहत उस ने कलाई पर कट लगाए हैं. खुद के पास मोबाइल न होने के कारण वह दोस्त के मोबाइल से और कैफे में जा कर यह खतरनाक गेम खेलता था.

उत्तर प्रदेश में पसरे पांव

उत्तर प्रदेश के हमीरपुर में ब्लू व्हेल से दूसरी मौत सितंबर के दूसरे सप्ताह में हुई. इस घटना में 21 साल के दीपक वर्मा ने अपने घर की दूसरी मंजिल की छत से नीचे छलांग लगा दी थी. दूसरी घटना में लखनऊ के पौश इलाके इंदिरा नगर में 14 साल के आदित्यवर्द्धन ने अपने घर पर कमरे में फांसी लगा ली थी. दोस्तों ने बताया कि आदित्य 2 सप्ताह से मोबाइल पर ब्लू व्हेल गेम खेल रहा था.

कानपुर में एक छात्र की जान अध्यापकों की सतर्कता से बच गई. बर्रा के जरौली स्थित सरदार पटेल इंटर कालेज में 11वीं में पढ़ने वाला 16 साल का छात्र इस गेम के चक्कर में फंस कर क्लास में बैठा सुसाइड नोट लिख रहा था, तभी एक टीचर की नजर उस पर पड़ गई. कई दिनों से इस छात्र को गुमशुम देख कर शिक्षक उस पर नजर रखे हुए थे.

अभी 14 सितंबर को पता चला कि छत्तीसगढ़ के बालोद में एक साथ 6 छात्र ब्लू व्हेल गेम के चक्कर में फंस कर अपनी कलाई काट बैठे. जांच में पता चला कि इन में से एक ही छात्र गेम खेलता था, बाकी को उसी ने चैलेंज दिया था. इन सभी छात्रों के हाथों पर ब्लेड से काटने के निशान मिले.

गेम खेलने वाले एक छात्र ने बताया कि जब उसे ब्लू व्हेल गेम का पता चला तो इस के लिए ब्लू व्हेल लिख कर इंटरनेट पर सर्च किया. इस कोशिश में एक वीडियो आया, जिस में कलाई काट कर ब्लू व्हेल या एफ 57 का निशान बनाना था. खेलने का मन हुआ तो उस ने अपनी कलाई काट ली. दूसरे दिन उस ने अपने दोस्तों को दिखा कर कहा कि यह टास्क सिर्फ मैं पूरा कर सकता हूं. तुम सब डरपोक हो. जोश में आ कर उस के 5 दोस्तों ने कलाई पर वैसे ही कट बना लिए.

जानलेवा औनलाइन गेम ब्लू व्हेल चैलेंज सन 2013 में रशिया में लौंच हुआ था. इसे द ब्लू व्हेल गेम भी कहते हैं. इस की शुरुआत फिलिप बुदेइकिन नामक 21 साल के युवा ने की थी. वह साइकोलौजी का छात्र था, लेकिन यूनिवर्सिटी से निकाल दिया गया था. बाद में फिलिप को 16 युवाओं को आत्महत्या के लिए उकसाने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया. उसे 3 साल की सजा सुनाई गई. अभी वह जेल में है. गिरफ्तारी के बाद जब उस से यह गेम बनाने का कारण पूछा गया तो उस का जवाब था कि मैं समाज में कचरे को साफ करना चाहता हूं.

फिलिप की जगह बाद में दूसरे लोगों ने यह काम संभाल लिया. इस ग्रुप से जुडे़ लोग ऐसे बच्चों की तलाश में रहते हैं, जो सोशल मीडिया पर टौर्चर, हिंसा या अपवाद का कंटेंट शेयर करते हैं. संपर्क के बाद गेम में शामिल करने के लिए वाट्सऐप, फेसबुक या मैसेंजर का इस्तेमाल किया जाता है.

इस गेम को डाउनलोड नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह कोई सौफ्टवेयर या एप्लीकेशन नहीं है. इस गेम को खेलने के लिए एक लिंक होता है, जो भी यूजर इस लिंक को ऐक्टिव करता है, वह एडमिन के शिकंजे में आ जाता है.

ऐसे दिया जाता है टास्क

50 दिन के गेम में रोजाना एक टास्क दिया जाता है. शुरुआती टास्क अपेक्षाकृत आसान होते हैं. जैसे सुबह 4 बजे उठना या रात भर जागना. 49 टास्क तक आतेआते चैलेंज इतने मुश्किल हो जाते हैं कि खेलने वाले की जान तक चली जाती है. इन में एडमिनिस्टे्रेटर को फोटो प्रूफ भी देने होते हैं. मसलन इस में शरीर पर कट लगाना, हाथ की नसें काट लेना, ब्लेड या चाकू से कलाई पर व्हेल का निशान बनाना, शरीर में सुइयां चुभाना जैसी चीजें शामिल होती हैं. कोई लड़का या लड़की 49वें टास्क तक भी चलता रहे तो 50वां टास्क होता है खुद की जान ले लो.

यह गेम भारत समेत चीन, अमेरिका, फ्रांस, इंगलैंड, पश्मिची यूरोप एवं कई अन्य देशों में करीब 150 से ज्यादा लोगों की जान ले चुका है. कुछ समय पहले रशियन पुलिस ने 17 साल की एक लड़की को गिरफ्तार किया था. पुलिस ने उसे ब्लू व्हेल औनलाइन गेम की मास्टरमाइंड बताया. एक समाचार एजेंसी ने रूस की इंटीरियर मिनिस्ट्री के कर्नल इरिना वौक के हवाले से कहा था कि आरोपी लड़की गेम बीच में छोड़ने वालों को जान से मारने की धमकी और उन के परिवार की हत्या जैसी धमकियां दे कर मासूमों को खुदकुशी करने के लिए मजबूर करती थी.

रशियन पुलिस को उस लड़की के कमरे से हौरर किताबें, डरावनी पेंटिंग, सुसाइड के लिए मजबूर करने वाले फोटो, डीवीडी और विवादित उपन्यास मिले थे, साथ ही साइकोलौजी के छात्र फिलिप बुदेइकिन के फोटो भी मिले थे. रूस की पुलिस के मुताबिक पहले इस लड़की ने खुद गेम खेला था, लेकिन उस ने आखिरी टास्क पूरा करने के लिए सुसाइड नहीं किया. इस के बाद वह गेम की एडमिनिस्ट्रेटर बन गई.

भारत सहित दुनिया के कई देशों में चिंता का कारण बन रहा ब्लू व्हेल गेम गूगल पर आजकल काफी सर्च किया जा रहा है. गूगल ट्रेंड रिपोर्ट्स में बताया गया है कि ब्लू व्हेल गेम सर्च में 3 महीने से भारत टौप पर है. कुछ समय पहले कोलकाता गूगल सर्च में टौप पर था. इस के बाद पहले स्थान पर कोच्चि आ गया है. तिरुवनंतपुरम दूसरे और कोलकाता तीसरे नंबर पर है. भारत में दिल्ली, गुड़गांव, मुंबई व भोपाल 32वें स्थान पर हैं. इस गेम को खोजने वालों में सितंबर के पहले सप्ताह में  राजस्थान 7वें नंबर पर था.

भारत सरकार की चिंता

ब्लू व्हेल गेम को ले कर भारत सरकार काफी चिंतित है. कई राज्य सरकारों ने भी चिंता जताई है. केंद्र सरकार ने 11 अगस्त को इस गेम पर रोक लगाते हुए सभी इंटरनेट कंपनियों गूगल, फेसबुक, वाट्सऐप, इंस्टाग्राम, माइक्रोसौफ्ट, याहू आदि को निर्देश जारी कर कहा था कि ये कंपनियां इस गेम को अपने प्लेटफौर्म से हटा दें.

केंद्र सरकार का मानना है कि आने वाले समय में साइबर हमला और इस तरह के लिंक बड़ी चुनौती बन सकते हैं. केंद्र सरकार की साइबर अपराध से संबंधित संस्था सीईआरटी भी इस गेम के बारे में जांच कर रही हैं. पुलिस की साइबर सेल को भी अलर्ट किया गया है.

कई राज्य सरकारों ने विद्यार्थियों के घर वालों और टीचर्स के लिए गाइडलाइन जारी की है. विभिन्न राज्यों की पुलिस ने भी ऐतिहासिक कदम उठाए हैं. राजस्थान के पुलिस महानिदेशक अजीत सिंह ने सभी पुलिस अधीक्षकों को ब्लू व्हेल गेम की रोकथाम के लिए स्कूल कालेजों में व्यापक जागरूकता अभियान चलाने के निर्देश दिए हैं. कई जगह अदालतों में याचिकाएं दायर कर इस गेम पर रोक लगाने की मांग की गई है.

इतना सब कुछ होने के बावजूद अभी तक यह गेम युवाओं की जान ले रहा है. बच्चों को इस से बचाने के लिए अभिभावकों को खासतौर से सतर्क रहने की जरूरत है. ब्लू व्हेल गेम विरोधी वीडियो भी यूट्यूब पर आ गए हैं. न्यूज प्रोड्यूसर ख्याली चक्रवर्ती के ब्लू व्हेल विरोधी वीडियो को हफ्तेभर में ही 1 करोड़ 30 लाख से ज्यादा हिट मिले हैं. सायकोलौजी की पढ़ाई करने वाली ख्याली ने इस गेम की रिसर्च करने के बाद वीडियो बना कर यूट्यूब पर डाला है.

सर्वोच्च न्यायालय का आदेश

‘ब्लू व्हेल गेम’ जैसे जानलेवा खेल से लोगों का चिंतित होना स्वाभाविक ही है. ब्लू व्हेल पर बैन लगाने के लिए मदुरै के 73 साल के अधिवक्ता एन.एस. पोन्नैया ने 15 सितंबर को सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की है, जिस में कहा गया है कि यह गेम अब तक 200 लोगों की जान ले चुका है, लेकिन केंद्र सरकार ने इस से निपटने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया है. केंद्र सरकार को चाहिए कि वह इस गेम के विरोध में जागरूकता अभियान चलाए. इसी बीच कोलकाता हाईकोर्ट में ऐसी ही एक याचिका दायर की गई है. वहां के हाईकोर्ट ने इस संबंध में पश्चिम बंगाल सरकार को निर्देश भी जारी कर दिए हैं.

सर्वोच्च न्यायालय ने भी पोन्नैया की याचिका के आधार पर केंद्र सरकार को 3 सप्ताह में जवाब देने को कहा है, साथ ही कोर्ट ने इस मामले में अटार्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल से इस मामले में सहयोग करने को कहा है. ?