आम के बागान में दफनाई गई लाश किसकी निकली

इदरीस घरपरिवार वाला था, उस की कमाई भी अच्छी थी. लेकिन शादीशुदा फरीदा के मोह में उस ने ऐसी राह चुनी जो उसे कब्र तक ले गई. मुरादाबाद से करीब 30 किलोमीटर दूर स्थित कस्बा कांठ के मोहल्ला पट्टीवाला के रहने वाले कारोबारी इदरीस 11 जनवरी, 2018 को गायब  हो गए. दरअसल, इदरीस की कांठ में ही कपड़ों की सिलाई की फैक्ट्री है. उन की फैक्ट्री में सिले कपड़े कई शहरों के कारोबारियों को थोक में सप्लाई होते हैं

11 जनवरी को वह प्रतापगढ़ और सुलतानपुर के कारोबारियों से पेमेंट लेने के लिए घर से निकले थे. जब भी वह पेमेंट के टूर पर जाते तो फोन द्वारा अपने परिवार वालों के संपर्क में रहते थे. घर से निकलने के 2 दिन बाद भी जब उन का कोई फोन नहीं आया तो उन की पत्नी कनीजा ने बड़े बेटे शहनाज से पति को फोन कराया तो इदरीस का फोन स्विच्ड औफ मिला. शहनाज ने अब्बू को कई बार फोन मिलाया, लेकिन हर बार फोन बंद ही मिला. इस पर कनीजा भी परेशान हो गई.

इदरीस की फैक्ट्री के रिकौर्ड में उन सारे कारोबारियों के नामपते फोन नंबर दर्ज थे, जिन के यहां फैक्ट्री से तैयार माल जाता था. चूंकि इदरीस प्रतापगढ़ और सुलतानपुर के लिए निकले थे, इसलिए शहनाज ने प्रतापगढ़ और सुलतानपुर के कारोबारियों को फोन कर के अपने अब्बू के बारे में पूछा. कारोबारियों ने शहनाज को बता दिया कि इदरीस उन के पास आए तो थे लेकिन वह 11 जनवरी को ही पेमेंट लेकर चले गए थे. पता चला कि दोनों कारोबारियों ने इदरीस को 5 लाख रुपए दिए थे. यह जानकारी मिलने के बाद इदरीस के घर वाले परेशान हो गए. सभी को चिंता होने लगी

इदरीस ने जानपहचान वाले सभी लोगों को फोन कर के अपने अब्बू के बारे में पूछा लेकिन उसे उन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. तभी कनीजा शहनाज के साथ प्रतापगढ़ पहुंच गईं. वहां के एसपी से मुलाकात कर उन्होंने पति के गायब होने की बात बताई. एसपी ने इदरीस का फोन सर्विलांस पर लगवा दिया. इस से उस की अंतिम लोकेशन अमरोहा जिले के गांव रायपुर कलां की पाई गई. यह गांव अमरोहा देहात थाने के अंतर्गत आता है. प्रतापगढ़ पुलिस ने उन्हें अमरोहा देहात थाने में संपर्क करने की सलाह दी

30 जनवरी, 2018 को शहजाद और कनीजा थाना अमरोहा देहात पहुंचे. उन्होंने इदरीस के गुम होने की जानकारी थानाप्रभारी धर्मेंद्र सिंह को दी. थानाप्रभारी ने शहनाज की तरफ से उस के पिता की गुमशुदगी दर्ज कर ली. शहनाज ने शक जताया कि उस के घर के सामने रहने वाली फरीदा और उस के पति आरिफ ने ही उस के पिता को कहीं गायब किया होगा. रहस्य से उठा परदा मामला एक कारोबारी के गायब होने का था, इसलिए थानाप्रभारी ने सूचना एसपी सुधीर यादव को दे दी. एसपी सुधीर यादव ने सीओ मोनिका यादव के नेतृत्व में एक जांच टीम गठित की. टीम में थानाप्रभारी धर्मेंद्र सिंह, एसआई सुनील मलिक, डी.पी. सिंह, महिला एसआई संदीपा चौधरी, कांस्टेबल सुखविंदर, ब्रजपाल सिंह आदि को शामिल किया गया.

पुलिस ने सब से पहले इदरीस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकाली तो पता चला कि इदरीस के घर के सामने रहने वाली फरीदा ने 13 जनवरी को इदरीस के मोबाइल पर 50 बार काल की थी. शहनाज ने भी फरीदा और उस के पति पर शक जताया था, इसलिए पुलिस को भी फरीदा पर शक हो गया. पुलिस ने फरीदा और उस के पति आरिफ को पूछताछ के लिए उठा लिया. उन दोनों से पुलिस ने इदरीस के बारे में सख्ती से पूछताछ की. पुलिस की सख्ती के आगे फरीदा और उस के पति ने स्वीकार कर लिया कि उन्होंने शहजाद की हत्या कर उस की लाश बशीरा के आम के बाग में दफन कर दी है.

थानाप्रभारी धर्मेंद्र सिंह ने इदरीस का कत्ल हो जाने वाली बात एसपी को बता दी. यह जानकारी पा कर एसपी सुधीर कुमार थाना अमरोहा देहात पहुंच गए. उन की मौजूदगी में थानाप्रभारी ने अभियुक्तों को रायपुर कलां निवासी बशीरा के आम के बाग में लेजा कर खुदाई कराई तो इदरीस की लाश करीब 5 फीट नीचे दबी मिलीपुलिस ने वह लाश अपने कब्जे में ले ली. जरूरी कार्रवाई कर के पुलिस ने इदरीस की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. फरीदा और आरिफ ने पूछताछ के दौरान इदरीस की हत्या की जो कहानी बताई, वह अवैध संबंधों पर आधारित निकली

इदरीस की कांठ में ही कपड़ों की सिलाई करने की फैक्ट्री थी. उस की फैक्ट्री में फरीदा नाम की महिला भी सिलाई करती थी. वह इदरीस के घर के सामने ही रहती थी. उस का पति साइकिल मरम्मत करता था. अन्य कारीगरों के मुकाबले इदरीस फातिमा का बहुत खयाल रखता था. इतना ही नहीं, वह अन्य कारीगरों से उसे ज्यादा पेमेंट करता था. इस मेहरबानी की वजह यह थी कि इदरीस फरीदा को चाहने लगा था. इदरीस की कोशिश रंग लाई और उस के फरीदा से प्रेम संबंध बन गए.

इदरीस और फरीदा दोनों ही बालबच्चेदार थे, जहां इदरीस के 5 बच्चे थे, वहीं फरीदा भी 2 बच्चों की मां थी. करीब डेढ़ साल से दोनों के नाजायज संबंध चले रहे थे. इसी दौरान फरीदा एक और बेटे की मां बन गई. इदरीस फरीदा के छोटे बेटे को अपना बेटा बताता था, इसलिए वह उस का कुछ खास ही खयाल रखता था. इदरीस फरीदा को बहुत चाहता था. वह चाहता था कि फरीदा जिंदगी भर के लिए उस के साथ रहे, इसलिए वह फरीदा पर निकाह करने का दबाव बना रहा था.

समझाने पर भी नहीं माने फरीदा और इदरीस उधर इदरीस और फरीदा के प्रेमसंबंधों की जानकारी पूरे मोहल्ले को थी. फरीदा के पति आरिफ ने भी फरीदा को बहुत समझाया कि उस की वजह से परिवार की मोहल्ले में बदनामी हो रही है. वह इदरीस से मिलना बंद कर दे. उधर इदरीस के पिता बाबू ने भी इदरीस को समझाया कि वह क्यों अपनी घरगृहस्थी और कारोबार को बरबाद करने पर तुला है. फरीदा को भूल कर वह अपने परिवार पर ध्यान दे.

लेकिन इदरीस फरीदा के प्रेमजाल में ऐसा फंसा था कि उसे छोड़ने के लिए तैयार नहीं था. उस के सिर पर एक ही धुन सवार थी कि फरीदा अपने पति को तलाक दे कर उस के साथ निकाह कर ले. वह यही दबाव फरीदा पर लगातार बना रहा था, पर फरीदा ऐसा करने को मना कर रही थी. वह कह रही थी कि जैसा चला आ रहा है, वैसा ही चलता रहने दे.

घटना के करीब 15 दिन पहले जब रात में फरीदा के पास इदरीस का फोन आया तो फोन की घंटी बजने से आरिफ की नींद खुल गई. फरीदा लिहाफ के अंदर ही इदरीस से बातें करने लगी. किसीकिसी फोन के स्पीकर की आवाज इतनी तेज होती है कि पास का आदमी भी बातचीत सुन सकता है. फरीदा के पास भी ऐसा ही फोन था. वह अपने प्रेमी इदरीस से जो भी बात कर रही थी, वह आरिफ भी सुन रहा था. इदरीस उस से कह रहा था कि वह अपने पति आरिफ को ठिकाने लगवा दे. इस काम में वह उस की पूरी मदद करेगा. उस के बाद हम दोनों निकाह कर लेंगे.

अपनी हत्या की बात सुन कर आरिफ के होश उड़ गए. उस ने उस समय पत्नी से कुछ भी कहना मुनासिब नहीं समझा. सुबह होते ही आरिफ ने इस बारे में पत्नी से बात की. वह झूठ बोलने लगी. इस बात पर दोनों के बीच नोकझोंक भी हुई. इस के बाद आरिफ ने फरीदा को विश्वास में लिया और घरगृहस्थी का वास्ता दे कर कहा, ‘‘देखो फरीदा, इदरीस कितना गिरा हुआ आदमी है, वह मेरी हत्या कराने पर तुला है. अपने स्वार्थ में वह तुम्हारी भी हत्या करवा सकता है. तुम खुद सोच लो कि अब क्या चाहती हो. यहां रहोगी या उस के साथ?’’

फरीदा ने अपने बच्चों का वास्ता देकर आरिफ से कहा, ‘‘मैं इसी घर में तुम्हारे और बच्चों के साथ रहूंगी. उस के साथ नहीं जाऊंगी.’’ बन गई कत्ल की भूमिका आरिफ ने सोचा कि आज नहीं तो कल इदरीस उस के लिए नुकसानदायक साबित होगा, इसलिए उस ने तय कर लिया कि वह इदरीस को सबक सिखाएगा. इस काम में उस ने पत्नी फरीदा को भी मिला लिया. फरीदा ने पति को यह भी बता दिया कि इदरीस पार्टियों से पेमेंट लेने के लिए प्रतापगढ़ और सुलतानपुर गया हुआ है. इस पर आरिफ ने उस से कहा कि किसी बहाने से उसे बुला लो तो बाकी का काम वह कर देगा

आरिफ के साले फरियाद को यह पता था कि इदरीस की वजह से उस की बहन के घर में तनाव रहता है, इसलिए आरिफ के कहने पर फरियाद भी इदरीस की हत्या के षडयंत्र में शामिल हो गया. उधर प्रतापगढ़ और सुलतानपुर के कारोबारियों से करीब 5 लाख रुपए का कलेक्शन कर के इदरीस 13 जनवरी को कांठ लौट रहा था. सफर में उस ने अपना फोन साइलेंट मोड पर लगा लिया था. फरीदा ने इदरीस से बात करने के लिए फोन किया पर इदरीस को इस का पता नहीं चला. फरीदा उसे लगातार फोन कर रही थी

कांठ पहुंचने पर इदरीस ने जैसे ही अपना फोन देखा तो प्रेमिका की 50 मिस्ड काल देख कर चौंक गया. उसे लगा कि पता नहीं क्या बात है जो उस ने इतनी बार फोन मिलाया. इदरीस ने फरीदा को फोन कर के कहा, ‘‘फरीदा, मेरा फोन साइलेंट मोड पर था, इसलिए तुम्हारी काल के बारे में पता नहीं लगा. बताओ, क्या बात है?’’ ‘‘मैं ने तय कर लिया है कि मैं आरिफ को तलाक देकर तुम से निकाह करूंगी. इसी बारे में तुम से बात करना चाह रही थी.’’ फरीदा बोली, ‘‘मैं चाहती हूं कि तुम अभी कांठ बसअड्डे पर आ जाओ, वहीं पर हम बात कर लेंगे.’’

प्रेमिका के मुंह से अपने मन की बात सुन कर इदरीस खुश हो गया. उस ने कहा, ‘‘फरीदा, मैं कुछ देर में ही वहां पहुंच रहा हूं. तुम भी जल्द पहुंच जाना.’’ ‘‘ठीक है, तुम जाओ, मैं वहीं मिलूंगी.’’ फरीदा बोली. इदरीस थोड़ी देर में बसअड्डे पर पहुंच गया. फरीदा अपने पति के साथ वहां पहले से ही मौजूद थी. औपचारिक बातचीत के बाद फरीदा ने कहा, ‘‘रायपुर खास गांव में मेरे भाई के यहां खाने का इंतजाम है. वहां चलते हैं, वहीं बातचीत हो जाएगी.’’

इदरीस खानेपीने का शौकीन था. उस समय भी वह शराब पिए हुए था, इसलिए फरीदा के साथ रायपुर खास गांव जाने के लिए तैयार हो गया. जब वह वहां पहुंचा तो फरीदा के भाई फरियाद ने इदरीस का गर्मजोशी से स्वागत किया. उस ने चिकन बना रखा थाकुछ देर बातचीत के बाद फरियाद ने उस से खाना खाने को कहा तो शराब के शौकीन इदरीस ने शराब पीने की इच्छा जताई. इस पर फरियाद ने कहा कि यह सब घर पर संभव नहीं है. पीनी है तो कांठ बसअड्डे पर ठेका है, वहीं पर पी लेंगे.

इदरीस को मिली मौत की दावत इदरीस बसअड्डे पर जाने के लिए तैयार हो गया. इदरीस और आरिफ फरियाद की मोटरसाइकिल पर बैठ कर कांठ बसअड्डे पहुंच गए. इदरीस ने पैसे देकर एक बोतल रम मंगा ली. फरियाद एक बोतल रम और पकौड़े ले आया तो आरिफ बोला, ‘‘चलो, बाग में बैठ कर पिएंगे. उस के बाद खाना खाएंगे. वहीं बात भी हो जाएगी.’’

शराब की बोतल और पकौड़े लेकर तीनों मोटरसाइकिल से आम के बाग में पहुंच गए. बाग में बैठ कर तीनों ने शराब पी. योजना के अनुसार आरिफ फरियाद ने कम पी और इदरीस को कुछ ज्यादा ही पिला दी थी. इदरीस जब ज्यादा नशे में हो गया तो आरिफ इदरीस से बोला, ‘‘देखो इदरीस भाई, तुम पैसे वाले हो. मैं छोटा सा एक साइकिल मैकेनिक हूं. मेरी तुम्हारी क्या बराबरी. तुम यह बताओ कि मेरा घर क्यों बरबाद कर रहे हो. तुम्हारी वजह से वैसे भी मोहल्ले में मेरी बहुत बदनामी हो गई है. अब तो पीछा छोड़ दो.’’

देखो आरिफ, तुम एक बात ध्यान से सुन लो. मैं फरीदा से बहुत प्यार करता हूं. अब फरीदा मेरी है. उसे मुझ से कोई भी अलग नहीं कर सकता. तुम्हें यह भी बताए देता हूं कि उस का जो 5 महीने का बच्चा है, वह मेरा ही है.’’ आरिफ भी नशे में था. यह सुनते ही उस का और फरियाद का खून खौल उठा. दोनों ने उस से कहा कि लगता है तू ऐसे नहीं मानेगा. इस के बाद दोनों ने इदरीस के गले में पड़े मफलर से उस का गला घोंट दिया, जिस से उस की मौत हो गई. 

इदरीस की हत्या करने के बाद उन्होंने उस की लाश मोटरसाइकिल से बाग के बीचोबीच लेजा कर डाल दी. तलाशी लेने पर इदरीस की जेब से 5 लाख रुपए और एक मोबाइल फोन मिला. दोनों ही चीजें उन्होंने निकाल लीं. उस के बाद फरियाद घर से फावड़ा ले आया. आरिफ और फरियाद ने करीब 5 फुट गहरा गड्ढा खोद कर इदरीस की लाश दफन कर दी. लाश ठिकाने लगा कर वे अपने घर लौट गए. इदरीस की जेब से मिले पैसे दोनों ने आपस में बांट लिए.

पुलिस ने फरीदा, उस के पति आरिफ के बाद फरियाद को भी गिरफ्तार कर लिया. उन की निशानदेही पर पुलिस ने 70 हजार रुपए, इदरीस का मोबाइल फोन और फावड़ा बरामद कर लिया. पुलिस ने 11 फरवरी, 2018 को तीनों अभियुक्तों को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक तीनों अभियुक्त जेल में बंद थे.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कांस्टेबल सीताराम ने करीब 1000 करोड़ की डकैती होते हुए बचाई

एक कांस्टेबल सीताराम की समझबूझ से 926 करोड़ रुपए की डकैती होने से बच गई. चूंकि डकैती हो नहीं पाई, इसलिए यह मामला ज्यादा बड़ा नहीं लगता, लेकिन डकैती हो गई होती तो…  

पुलिस कांस्टेबल सीताराम की जयपुर की सी स्कीम के रमेश मार्ग स्थित ऐक्सिस बैंक की चेस्ट ब्रांच में ड्यूटी थी. 5 फरवरी की रात करीब 2 बजे वह बैंक की चेस्ट ब्रांच पर पहुंच गया. सीताराम जब पहुंचा तो बैंक का निजी सुरक्षा गार्ड प्रमोद मेनगेट पर तैनात था. सीताराम को आया देख कर प्रमोद ने उसे नमस्कार किया. सीताराम ने भी उस के अभिवादन का जवाब देते हुए पूछा, ‘‘प्रमोदजी, बैंक के अंदर आज ड्यूटी पर कौनकौन हैं?’’

कड़ाके की ठंड में रात में बैंक के बाहर ड्यूटी दे रहे प्रमोद ने जवाब में कहा, ‘‘साहब, रतिराम और मानसिंह ड्यूटी पर हैं.’’ ‘‘ठीक है प्रमोदजी, उन दोनों से मेरी अच्छी पटरी बैठती है.’’ सीताराम ने अपनी टोपी सिर पर लगाते हुए कहा, ‘‘दोनों से बात करते हुए पता ही नहीं लगता कि कब रात गुजर गई.’’ कह कर कांस्टेबल सीताराम बैंक के अंदर जाने लगा, तभी जैसे उसे कुछ याद आया. उस ने पलट कर प्रमोद से कहा, ‘‘भैयाजी, ठंड ज्यादा पड़ रही है. रात का समय है. संभल कर होशियारी से ड्यूटी करना.’’

सीताराम की इस बात पर प्रमोद ने हंसते हुए कहा, ‘‘भाईसाहब, आप देखते ही हो कि मैं अपनी ड्यूटी पर किस तरह मुस्तैद रहता हूं.’’ प्रमोद की बात सुन सीताराम हंसते हुए अंदर बैंक में चला गया. सीताराम ने बैंक के अंदर पहुंच कर देखा तो उस के साथी पुलिसकर्मी रतिराम और मानसिंह रेस्टहाउस में थे. सीताराम ने अपनी बंदूक संभाली और ड्यूटी पर खड़ा हो गया. सीताराम को बैंक के अंदर आए हुए करीब आधा घंटा ही हुआ होगा कि उस ने बैंक के बाहर मेनगेट से किसी के कूद कर आने और कुछ टूटने जैसी आवाज सुनी. सीताराम चौंकन्ना हो गया. वह बैंक के अंदर बनी खिड़की से मुंह बाहर निकाल कर चिल्लाया, ‘‘कौन है?’’

सीताराम के चिल्लाने पर जवाब में कोई आवाज नहीं आई तो उस ने बाहर झांक कर देखा. उसे 4-5 लोग नजर आए. रात करीब ढाई बजे बैंक के अंदर लोगों को देख कर सीताराम एक बार तो घबरा गया, लेकिन तुरंत ही उस ने खुद को संभाला और हिम्मत से काम लेते हुए बंदूक लेकर थोड़ा बाहर तक आया

बाहर देखा तो उसे 10 से भी ज्यादा लोग नजर आए. उन के हाथों में हथियार थे. किसी ने रूमाल से तो किसी ने मंकी कैप से और किसी ने मफलर से चेहरे ढंक रखे थे. इन में से 4-5 लोग बैंक का मेनगेट फांद कर अंदर गए थे. इन्होंने बैंक की बिल्डिंग का चैनल गेट भी खोल लिया था

इतने सारे हथियारबंद लोगों को देख कर सीताराम समझ गया कि उन लोगों के इरादे ठीक नहीं हैं. वे बदमाश हैं और बैंक लूटने आए हैं. सीताराम ने इधरउधर देखा कि बैंक का गार्ड प्रमोद कहीं नजर जाए, लेकिन उसे वह कहीं नजर नहीं आया. सीताराम को लगा कि इन बदमाशों को नहीं रोका गया तो ये लोग बैंक लूट ले जाएंगे और हो सकता है किसी को मार भी डालें.

सीताराम ने एक पल सोचा कि अंदर रेस्टहाउस से अपने साथी पुलिसकर्मियों रतिराम मानसिंह को बुलाने जाए या नहीं. इतना समय नहीं था. अगर वह साथी पुलिसकर्मियों को बुलाने जाता तो हो सकता था तब तक बदमाश बैंक के अंदर चेस्टरूम तक पहुंच जाते. सीताराम ने तुरंत फैसला लिया. उस ने बदमाशों को ललकारा और अपनी बंदूक से हवाई फायर कर दिया.

फायर होते ही बदमाश हड़बड़ा गए और तेजी से मेनगेट फांद कर वापस भागने लगे. उन के साथी जो बैंक के बाहर खड़े थे, वे भी फटाफट वहां खड़ी गाड़ी में बैठ गए. इस के बाद सभी बदमाश गाड़ी से भाग गए बदमाशों के भागने पर सीताराम बैंक की बिल्डिंग से बाहर निकला तो देखा बाहर ड्यूटी पर तैनात बैंक के गार्ड प्रमोद के हाथपैर बंधे हुए थे. सीताराम ने उस के हाथपैर खोले. प्रमोद  बेहद घबराया हुआ था. वह सीताराम से लिपट कर बोला, ‘‘भाईसाहब, आज तो आप ने हमारी जान बचा ली वरना वे बदमाश हमें मार सकते थे.’’

सीताराम ने उसे ढांढस बंधाते हुए कहा कि चिंता मत करो, जो बदमाश आए थे, वे भाग गए हैं. तब तक हवाई फायर की आवाज सुनकर बैंक के रेस्टहाउस से पुलिसकर्मी रतिराम मानसिंह भी वहां गए. यह सारा घटनाक्रम मुश्किल से 3 मिनट में हो गया था. कांस्टेबल सीताराम ने सब से पहले फोन कर के पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दी. सूचना देने के 5-7 मिनट में ही पुलिस गश्ती दल बैंक के बाहर पहुंच गया. पुलिस के गश्ती दल ने बैंक के निजी सुरक्षा गार्ड प्रमोद कुमार से पूछताछ की. करौली के रहने वाले प्रमोद ने बताया कि ऐक्सिस बैंक प्रशासन ने उसे बाहरी हिस्से में सुरक्षा की जिम्मेदारी दे रखी है

प्रमोद ने पुलिस को बताया कि रात करीब ढाई बजे वह बैंक के बाहरी हिस्से में राउंड ले रहा था. जब वह पीछे की ओर चैकिंग करने गया था, तभी बैंक के आगे वाले हिस्से के गेट से किसी के कूदने की आवाज आई. इस पर वह मेनगेट की तरफ आया तो देखा कि 2 युवकों ने मुंह पर नकाब पहना हुआ था और उन के हाथों में पिस्तौलें थीं

मैं उन्हें रोक ही रहा था कि 3 और युवक मेनगेट से बैंक के अंदर गए. उन लोगों ने पिस्तौल कनपटी पर लगा कर मुझे पकड़ कर नीचे गिरा दिया. मुझ से चाबी छीन ली, उसी चाबी से एक युवक ने चेस्ट ब्रांच के गेट से पहले वाले चैनल गेट का ताला खोल लिया. एक युवक ने मेरा मुंह बंद कर दिया और 2 युवक मेरे ऊपर बैठ गए. बाकी बचे एक युवक ने मेरे हाथ बांध दिए.

वे मेरे पैर बांध रहे थे, तभी बैंक के अंदर से सीताराम के चिल्लाने की आवाज आई. इस पर बदमाश घबरा गए. इस के कुछ सैकेंड बाद ही गोली चलने की आवाज सुनाई दी. गोली चलने की आवाज सुन कर सभी बदमाश बैंक के गेट को फांद कर बाहर भाग गए.  प्रमोद ने बताया कि जो बदमाश बैंक के अंदर घुसे थे, उन्होंने आपस में कोई बात नहीं की थी. फायरिंग की आवाज सुन कर सिर्फ इतना कहा कि भागो यहां से. इस के बाद सीताराम ने आ कर मुझे संभाला और पुलिस को सूचना दी.

रात को ही ऐक्सिस बैंक के अफसरों को मौके पर बुलाया गया. राजधानी जयपुर में बैंक लूटने के प्रयास की सूचना मिलने पर जयपुर पुलिस कमिश्नरेट के आला अफसर रात को ही मौके पर पहुंच गए. बैंक के अफसरों ने बताया कि राजस्थान में ऐक्सिस बैंक की सभी शाखाओं में इसी चेस्ट ब्रांच से पैसा जाता है. पूरे राज्य से जमा हो कर पैसा भी इसी चेस्ट ब्रांच में आता है. बैंक अफसरों से पुलिस अधिकारियों को पता चला कि इस चेस्ट ब्रांच में वारदात के समय 926 करोड़ रुपए रखे हुए थे. इतनी बड़ी रकम की बात सुन कर पुलिस अफसर हैरान रह गए.

अगर पुलिस कांस्टेबल सीताराम हिम्मत दिखा कर गोली नहीं चलाता तो शायद बदमाश बैंक लूटने में कामयाब हो जाते. अगर यह बैंक लुट जाती तो यह भारत की अब तक की सब से बड़ी बैंक डकैती होती. सीताराम के गोली चलाने से यह बैंक डकैती होने से बच गई थी. कांस्टेबल सीताराम की ओर से बदमाशों को ललकारने के लिए चलाई गई गोली बैंक के सामने बाईं ओर एक मकान की खिड़की में जा कर लगी. गोली लगने से खिड़की का कांच टूटा तो मकान मालिक और उन के परिवार की नींद खुल गई. उन्होंने बाहर कर पता किया तो बैंक में डकैती के प्रयास का पता चला. तब तक पुलिस भी मौके पर पहुंच गई थी. पुलिस ने रात को जयपुर से बाहर निकलने वाले सभी रास्तों पर कड़ी नाकेबंदी करवा दी. 6 फरवरी को कांस्टेबल सीताराम की रिपोर्ट के आधार पर जयपुर के अशोक नगर थाने में मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

6 फरवरी को सुबह से पुलिस और ऐक्सिस बैंक के आला अफसरों का मौके पर जमावड़ा लगा रहा. जयपुर के पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल ने भी मौके पर पहुंच कर बैंक के सुरक्षा इंतजामों के बारे में जानकारी ली. पुलिस को जांचपड़ताल के दौरान 4 बड़े खाली कट्टे (बोरी) मिले. ये कट्टे बदमाश अपने साथ लाए थे, लेकिन गोली की आवाज सुन कर भागते समय छोड़ गए.

बदमाशों का पता लगाने के लिए पुलिस ने बैंक के अंदरबाहर और आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी तो पता चला कि बदमाश 7 सीटर इनोवा गाड़ी से आए थे. इस गाड़ी से 11 बदमाश बाहर निकले और 2 बदमाश अंदर ही बैठे रहे. बाहर निकले सभी बदमाशों के चेहरे ढंके हुए थे. इन में से 4-5 बदमाशों के हाथ में पिस्तौल और बाकी के हाथों में डंडे और सरिए थे. इस इनोवा का नंबर तो साफ दिखाई नहीं दे रहा था, लेकिन राजस्थान के नागौर जिले की नंबर सीरीज जरूर नजर आ रही थी.

लिस की जांच में पता चला कि बैंक की इस चेस्ट ब्रांच में लिमिट से करीब 3 सौ करोड़ रुपए ज्यादा रखे हुए थे. नियमानुसार बैंक को यह राशि रिजर्व बैंक में जमा करानी चाहिए थी. यह बात सामने आने पर करेंसी चेस्ट में सुरक्षा मापदंडों को ले कर चूक और लिमिट से ज्यादा कैश रखने के मामले में रिजर्व बैंक के महाप्रबंधक करेंसी पी.के. जैन ने ऐक्सिस बैंक से रिपोर्ट मांगी.

बहरहाल, ऐक्सिस बैंक में देश की सब से बड़ी डकैती टल गई थी. कांस्टेबल सीताराम की सूझबूझ से बदमाशों को भागना पड़ा. सीताराम जयपुर का हीरो बन गया था. सीताराम की सतर्कता और बहादुरी से 926 करोड़ रुपए की बैंक डकैती टल जाने पर जयपुर पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल ने राजस्थान के पुलिस महानिदेशक .पी. गल्होत्रा से बात की और दिलेरी दिखाने वाले कांस्टेबल सीताराम को पुरस्कृत करने की सिफारिश की. डकैती तो टल गई थी, लेकिन जयपुर पुलिस के लिए बैंक में घुसने वाले बदमाशों का पता लगाना सब से पहली चुनौती थी. इस के लिए पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल ने अपने मातहत अधिकारियों की मीटिंग कर के वारदात के लिए आए बदमाशों का पता लगाने को कहा.

विचारविमर्श में यह बात सामने आई कि 7 सीटर इनोवा में 13 लोगों का बैठना आसान नहीं है. इस का मतलब बदमाशों के पास कोई दूसरा वाहन भी रहा होगा, लेकिन सीसीटीवी फुटेज में दूसरा वाहन नजर नहीं आ रहा था. इनोवा गाड़ी भी चोरी की होने या उस पर फरजी नंबर प्लेट होने की आशंका थी. इस बात पर भी विचार किया गया कि बैंक में वारदात करने से पहले बदमाशों ने रैकी जरूर की होगी. अगर उन्होंने रैकी की थी तो उन्हें इस बात का पता रहा होगा कि बैंक की इस चेस्ट ब्रांच में 3-4 पुलिसकर्मी हमेशा मौजूद रहते हैं.

एक सवाल यह भी उठा कि बदमाशों की संख्या करीब 13 थी और उन में 4-5 के पास पिस्तौल भी थीं तो वे केवल एक गोली चलने से घबरा क्यों गए? बैंक में डकैती डालने की हिम्मत करने वाले बदमाश डर कर भागने के बजाय मरनेमारने पर उतारू हो जाते हैं. इस से संदेह हुआ कि बदमाश कहीं नौसिखिया तो नहीं थे. इस के अलावा बदमाशों को इस बात का अंदाजा नहीं था कि बैंक में 926 करोड़ रुपए होंगे. पुलिस ने वारदात की जानकारी मिलने के तुरंत बाद जयपुर से बाहर निकलने वाले रास्तों पर नाकेबंदी कर दी थी. फिर भी बदमाशों का कोई सुराग नहीं मिला था. इस से यह बात भी उठी कि बदमाश जयपुर शहर के ही रहने वाले तो नहीं हैं.

पचासों तरह के सवालों का हल खोजने के लिए पुलिस कमिश्नर ने 4 आईपीएस अधिकारियों के सुपरविजन में एक दरजन टीमें गठित कीं. इन टीमों में सौ से ज्यादा पुलिसकर्मियों को शामिल किया गया. अलगअलग टीमों को अलग जिम्मेदारियां सौंपी गईंपुलिस टीमों ने मुख्य रूप से बैंक कर्मचारियों और वहां तैनात गार्डों से पूछताछ, बैंक से रुपए लाने ले जाने वाली 3 निजी सिक्योरिटी एजेंसियों के मौजूदा और पुराने कर्मचारियों से पूछताछ, जयपुर से निकलने वाले रास्तों पर स्थित टोल नाकों पर सीसीटीवी फुटेज, जयपुर के आसपास हाइवे और कस्बों में स्थित होटल, ढाबों पर हुलिए के आधार पर बदमाशों की जानकारी हासिल करने, इस तरह की वारदात करने वाले गिरोहों की जानकारी जुटाने आदि बिंदुओं पर अपनी जांचपड़ताल शुरू की.  

दूसरी ओर, पुलिस कमिश्नर ने रिजर्व बैंक में जयपुर के सभी पब्लिक सैक्टर और निजी सैक्टर के बैंक अधिकारियों, रिजर्व बैंक के अधिकारियों और गोल्ड लोन देने वाली कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की. इस मीटिंग में पुलिस कमिश्नर ने कहा कि सभी बैंक सुरक्षा व्यवस्था के बारे में रिजर्व बैंक की गाइडलाइन का पूरी तरह पालन करें

इस के अलावा उन्होंने सुरक्षा के खास प्रबंधों के साथसाथ अलार्म और हौटलाइन की आवश्यक व्यवस्था करने को भी कहा. कैश लाने ले जाने से पहले मौकड्रिल करने की भी बात की. उन्होंने राय दी कि बैंक के सीसीटीवी कैमरे अपग्रेड किए जाएं, जिन में कम से कम 90 दिन का बैकअप होना चाहिए. अलार्म सिस्टम भी जरूर लगाए जाएं.

वारदात के दूसरे दिन पुलिस के अधिकारी और जवान सभी बिंदुओं पर विचार कर जांचपड़ताल करते रहे, लेकिन यह भी पता नहीं चल सका कि बदमाश किस रास्ते से वापस गए. दूसरे और तीसरे दिन भी पुलिस को बदमाशों के बारे में कोई महत्त्वपूर्ण सुराग हाथ नहीं लगा. इस बीच जयपुर से पुलिस की टीमें नागौर, पाली, अजमेर, भीलवाड़ा, सीकर झुंझुनूं आदि जिलों में गईं और संदिग्ध बदमाशों की तलाश की

9 फरवरी को जयपुर पुलिस को इस मामले में उम्मीद की कुछ किरणें नजर आईं. कई जगह फुटेज में नजर आया कि बदमाशों की इनोवा गाड़ी के पीछे वाली बाईं ओर की लाइट टूटी हुई थी. इसी वजह से गाड़ी चलने पर यह लाइट नहीं जलती थी. इसी आधार पर पुलिस जयपुर से अजमेर की ओर टोल नाकों पर ऐसी इनोवा कार की तलाश में जुटी रही.

इसी दिशा में पुलिस आगे बढ़ी तो पता चला कि दूदू के पास एक बार के बाहर इनोवा कार रुकी थी. वहां लगे सीसीटीवी कैमरों में कुछ लोगों की तसवीर गई थी. इन लोगों ने कानों में सोने की मुर्की पहन रखी थीं. चेहरे भी ढंके हुए नहीं थे. इस से यह अंदाजा लगाया गया कि बदमाश जोधपुरपाली की तरफ के हो सकते हैं. दूदू में होटल पर रुकने के बाद यह गाड़ी ब्यावर की ओर चली गई थी.

इसी बीच जांचपड़ताल में पता चला कि ऐक्सिस बैंक में बदमाश जो कट्टे छोड़ गए थे, वे पाली जिले की रायपुर तहसील के बर गांव में एक दुकान से खरीदे गए थे. इन कट्टों पर बर गांव की परचून की दुकान का नाम लिखा था. पुलिस उस दुकानदार तक पहुंची. हालांकि दुकानदार से बदमाशों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली, लेकिन इस से यह अंदाजा जरूर लग गया कि बदमाशों का पाली जिले से कोई कोई संबंध जरूर था.

पुलिस को बदमाशों की इनोवा कार की लोकेशन ब्यावर तक मिल गई थी. इस बीच महाराष्ट्र के नंबरों का पता चलने पर एक पुलिस टीम महाराष्ट्र भेजी गई. ब्यावर से पुलिस टीम सीसीटीवी फुटेज के आधार पर इनोवा कार का पीछा करते हुए जोधपुर तक पहुंच गई.

10 फरवरी को पाली जिले की पुलिस को कुछ जानकारियां मिलीं. इस के अगले  दिन 11 फरवरी को जोधपुर पुलिस कमिश्नरेट के महामंदिर थानाप्रभारी सीताराम को सूचना मिली कि जोधपुर के कुछ बदमाश कहीं बाहर कोई बड़ी वारदात कर के आए हैं

इस पर जोधपुर पुलिस की एक टीम बदमाशों की तलाश में जुटी और शाम तक 6 बदमाशों प्रकाश जटिया, पवन जटिया, धर्मेंद्र जटिया, जयप्रकाश जटिया, दिनेश लुहार और प्रमोद बिश्नोई को पकड़ लिया. ये छहों लोग जोधपुर के रहने वाले थे. जोधपुर पुलिस कमिश्नर अशोक कुमार राठौड़ ने इस की सूचना जयपुर पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल को दी. इस पर जयपुर से एक टीम रवाना हो कर रात को ही जोधपुर पहुंच गई

पकड़े गए 6 बदमाशों से बाकी लुटेरों का भी पता चल गया. जयपुर जोधपुर पुलिस उन की तलाश में जुट गई. 12 फरवरी को पुलिस ने 2 और बदमाशों को पकड़ लिया. इन में अनूप बिश्नोई को जोधपुर के बनाड इलाके से पकड़ा गया, जबकि झुंझुनूं के बदमाश विकास चौधरी को जैसलमेर से गिरफ्तार किया गया. विकास चौधरी आजकल जैसलमेर के शिकारगढ़ इलाके में रह रहा था.

इन बदमाशों से की गई पूछताछ में सामने आया कि लूट की योजना जोधपुर के ओसियां  के सिरमंडी निवासी हनुमान बिश्नोई उर्फ लादेन ने बनाई थी. लादेन ही इस गिरोह का सरगना है. लादेन ने जयपुर में ऐक्सिस बैंक की चेस्ट ब्रांच की रैकी कर रखी थी. तिजोरी के ताले तोड़ने के लिए उस ने प्रमोद बिश्नोई के सहयोग से जोधपुर की जटिया कालोनी के रहने वाले प्रकाश, पवन, धर्मेंद्र जयप्रकाश को तैयार किया था

तिजोरी तोड़ने के लिए ये बदमाश जोधपुर से ही औजार ले कर चले थे. हनुमान उर्फ लादेन इस योजना में प्रकाश बिश्नोई से बराबर का हिस्सा मांग कर पार्टनर बना था. बाकी बदमाशों को 20 हजार से 10 लाख रुपए तक का लालच दिया गया था. लादेन और प्रकाश ने अपने भाड़े के साथियों को यह नहीं बताया था कि जयपुर में बैंक लूटने जाना है. उन्हें बताया गया था कि जयपुर में हवाला की रकम लूटनी है.

5 फरवरी को लादेन के नेतृत्व में 15 बदमाश जोधपुर से 2 गाडि़यों में सवार हो कर जयपुर के लिए चले. उन्होंने रास्ते में जयपुर-अजमेर के बीच दूदू के पास एक गाड़ी छोड़ दी. इनोवा गाड़ी से सभी बदमाश उसी रात जयपुर पहुंचे और ऐक्सिस बैंक की चेस्ट ब्रांच पर धावा बोल दिया. बैंक में तैनात पुलिस कांस्टेबल के गोली चलाने से सभी बदमाश डर कर भाग निकले थे.

प्रकाश बिश्नोई जनवरी 2014 में राइकाबाग में रोडवेज बस स्टैंड पर रात्रि गश्त कर रहे पुलिस के एक एएसआई राजेश मीणा की हत्या का भी अभियुक्त था. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. घटना के समय वह जमानत पर छूटा हुआ था. इस गिरोह के सरगना जोधपुर निवासी हनुमान उर्फ लादेन को 20 फरवरी को जयपुर से गिरफ्तार कर लिया गया. जोधपुर के ही रहने वाले राजकुमार, किशोर नायक, लखन शर्मा और संदीप विश्नोई को पंजाब के मोहाली से पकड़ा गया. रविंद्र के पास से एक करोड़ 5 लाख की पुरानी करेंसी मिली

ये लोग रिजर्व बैंक से नोट बदलवाने के चक्कर में थे, क्योंकि एनआरआई कोटे के तहत अभी भी नोट बदले जा रहे थे. पूछताछ के बाद जेल भेज दिया गया. गिरफ्तार किए गए आठों बदमाशों को पुलिस जोधपुर से जयपुर ले आई. बदमाशों से उन के साथियों और आपराधिक वारदातों के बारे में पूछताछ की गई. ऐक्सिस बैंक में लूट के प्रयास के दौरान उपयोग किए गए हथियारों के बारे में भी पता लगाया गया. गिरफ्तार फरार बदमाशों का आपराधिक रिकौर्ड भी खंगाला गया. यह भी पता लगाया गया कि इस वारदात में बैंक के किसी नएपुराने कर्मचारी का सहयोग तो नहीं था. देश की सब से बड़ी बैंक लूट की वारदात को विफल करने का हीरो कांस्टेबल सीताराम ही रहा. हालांकि जयपुर पुलिस ने वैज्ञानिक तरीकों से जांचपड़ताल के जरिए बदमाशों को पकड़ कर अपनी साख जरूर बचा ली.

यह भी दिलचस्प रहा कि 11 फरवरी को जोधपुर में जब 6 बदमाश पकड़े जा रहे थे, उसी समय जयपुर में राजस्थान के पुलिस महानिदेशक .पी. गल्होत्रा ने कांस्टेबल सीताराम को हैडकांस्टेबल के पद पर विशेष पदोन्नति दी. जयपुर पुलिस कमिश्नरेट में आयोजित समारोह में पुलिस महानिदेशक ने कहा कि ड्यूटी के दौरान उत्कृष्ट कार्य कर के सीताराम ने राजस्थान पुलिस की शान बढ़ाई है.

राजस्थान के सीकर जिले के पूनियाणा गांव के रहने वाले सीताराम के मातापिता पढ़लिख नहीं सके थे. वे मेहनतमजदूरी करते थे. पिता टोडाराम मां प्रेम ने अपने एकलौते बेटे सीताराम को अपना पेट काट कर पढ़ाया लिखाया. सीताराम ने सीनियर सेकैंडरी तक की पढ़ाई सीकर में दांतारामगढ़ से की. 12वीं में वह क्लास टौपर रहा. कालेज की पढ़ाई रेनवाल से की. मातापिता की ख्वाहिश थी कि सीताराम शिक्षक बन जाए. सीताराम ने बीएड करने के साथ शिक्षक बनने की तैयारी शुरू भी की थी, लेकिन तभी वह कांस्टेबल के पद पर भरती हो गया

उस ने साल 2015 में नौकरी जौइन की. प्रोबेशन पीरियड पूरा होने के बाद उसे बैंक की चेस्ट ब्रांच में सुरक्षा के लिए तैनात कर दिया गया था. डेढ़ साल पहले ही उस की शादी हुई थी. सीताराम के मातापिता और गांव के लोगों को ही नहीं, आज राजस्थान पुलिस के कांस्टेबल से ले कर पुलिस महानिदेशक तक सभी को उस पर गर्व है.

 

खेत में बुलाया फिर उस्तरे से काटा गला

प्यार में कभीकभी जिद खतरनाक साबित होती है. महेंद्र सावित्री पर भाग कर शादी करने का दबाव डाल रहा था. पर वह ऐसा करने के लिए तैयार नहीं हुई. तब गुस्से में तमतमाए महेंद्र ने ऐसा कदम उठाया कि…   

त्तर प्रदेश के जिला सीतापुर के थाना महमूदाबाद का एक गांव है बेहटी मानशाह. इसी गांव का रामकुमार 19 फरवरी, 2018 को बड़ी बेचैनी से घर के आंगन में इधर से उधर चक्कर लगा रहा था. बारबार उस की निगाहें एक उम्मीद से दरवाजे की तरफ उठतीं और फिर अगले ही पल निराश हो कर दूसरी ओर देखने घूम जातींरामकुमार की बेचैनी की वजह थी, उस की 19 वर्षीय बेटी सावित्री, जो शाम 5 बजे सिरौली में लगने वाले बाजार के लिए निकली थी, लेकिन रात में काफी देर होने के बाद भी वह घर नहीं लौटी थी. एकलौती बेटी के साथ कोई अनहोनी हो गई हो, इस आशंका से उस का दिल घबरा रहा था.

सावित्री गांव की ही शांति नाम की एक महिला के साथ बाजार गई थी. रामकुमार शांति के घर पता लगाने के लिए गया. शांति का घर गांव की सीमा पर एकांत में था. वह शांति के घर पहुंचा तो वह घर पर ही मिल गईरामकुमार ने उस से बेटी के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि सावित्री उस के साथ बाजार गई तो थी, लेकिन बीच रास्ते में ही उसे कोई काम याद गया था तो वह वापस लौट आई थी.

शांति की बात सुन कर रामकुमार के दिमाग में विचार आया कि अगर वह बीच रास्ते से लौट आई थी तो अभी तक घर क्यों नहीं पहुंची. आखिर क्या हुआ उस के साथ. वह शांति के घर से वापस लौट आया. चूंकि उस समय काफी रात हो गई थी. मोहल्ले के लोग भी अपनेअपने घरों में सो गए थे, पर बेटी की चिंता में वह पूरी रात नहीं सो पाया.

अगले दिन सुबह होते ही वह अपने दोनों बेटों मुकेश और सुरेश के साथ सावित्री की खोज में लग गया. तीनों इधरउधर सावित्री को ढूंढ ही रहे थे कि गांव के कुछ लोगों ने रामकुमार को बताया कि सावित्री की लाश सुरेश के गन्ने के खेत में लगे यूकेलिप्टस के पेड़ से बंधी हुई है. यह खबर मिलते ही रामकुमार दोनों बेटों के साथ मौके पर पहुंच गया. वहां पेड़ से उस की बेटी की लाश बंधी मिली. बेटी की लाश देख कर वह फूटफूट कर रोने लगा. गांव के तमाम लोग भी वहां पहुंच चुके थे. किसी ने फोन द्वारा इस की सूचना थाना महमूदाबाद को भी दे दी.

सूचना पाकर थानाप्रभारी रंजना सचान पुलिस टीम के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गईं. जाने से पहले उन्होंने मामले की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी थी. पुलिस ने घटनास्थल का मुआयना किया. सावित्री की लाश यूकेलिप्टस के पेड़ से बंधी थी. उस के गले पर किसी तेज धारदार हथियार से काटने के निशान थे.घटनास्थल का निरीक्षण करने पर वहां हत्या से संबंधित कोई सबूत नहीं मिल सका. इसी बीच एसपी आनंद कुलकर्णी, एएसपी मार्तंड प्रताप सिंह, सीओ  (महमूदाबाद) जावेद खान भी वहां पहुंच गए.

उच्चाधिकारियों ने भी लाश और घटनास्थल का निरीक्षण किया. उन्होंने मृतका के पिता रामकुमार वहां मौजूद अन्य लोगों से भी पूछताछ की. इस के बाद एसपी आनंद कुलकर्णी थानाप्रभारी रंजना सचान को जरूरी दिशानिर्देश दे कर चले गए. थानाप्रभारी ने मौके की जरूरी काररवाई करने के बाद सावित्री की लाश पोस्टमार्टम के लिए सीतापुर के जिला अस्पताल भेज दी.

थानाप्रभारी ने रामकुमार की तहरीर के आधार पर अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धाराओं 302/201 और एससी/एसटी एक्ट 3 (2) 5 के तहत मुकदमा दर्ज करवा दिया. पुलिस ने जांच की तो यह बात सामने आई कि शांति ही सावित्री को बाजार के बहाने अपने साथ ले गई थी. लिहाजा शांति पुलिस के शक के दायरे में गई.

21 फरवरी, 2018 को शाम करीब साढ़े 7 बजे थानाप्रभारी रंजना सचान शांति के घर पहुंचीं. वह घर पर ही मिल गई. पूछताछ के लिए वह उसे थाने ले आईं. उन्होंने शांति से जब सख्ती से पूछताछ की तो घटना का राजफाश हो गयाउस से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसी रात करीब 10 बजे सावित्री के गांव के ही रहने वाले उस के प्रेमी महेंद्र यादव उर्फ सगुनी को सिरौली तिराहे से गिरफ्तार कर लिया. शांति और महेंद्र यादव से पूछताछ के बाद सावित्री की हत्या की जो कहानी सामने आई,

वह इस प्रकार निकली

महेंद्र यादव बेहटी मानशाह गांव के रहने वाले राजबहादुर यादव का बेटा था. महेंद्र के अलावा राजबहादुर यादव के एक बेटी 3 बेटे और थे. राजबहादुर खेतीकिसानी से परिवार का ठीक से पालनपोषण कर रहा थावह अपनी बेटी और 3 बेटों की शादी कर चुका था. केवल महेंद्र ही शादी के लिए रह गया था. वह सब से छोटा था, जिस से उस पर कोई जिम्मेदारी भी नहीं थी. इसलिए वह दिन भर दोस्तों के साथ इधरउधर घूमताफिरता रहता था.

राजबहादुर के मकान से कुछ ही दूरी पर रामकुमार अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में 2 बेटों मुकेश और सुरेश के अलावा एक बेटी सावित्री थी. करीब 14 साल पहले रामकुमार की पत्नी जयदेवी गांव के ही एक व्यक्ति के साथ भाग गई थी, जिस के बाद वह आज तक नहीं लौटी. रामकुमार ने बिन मां के बच्चों को बड़े प्यार से पाला. उन्हें किसी प्रकार की तकलीफ नहीं होने दी. उस ने पिता के साथसाथ मां का भी फर्ज अदा किया. उस की एकलौती बेटी सावित्री ने घर की जिम्मेदारी बखूबी संभाल ली थी.

एक दिन सावित्री घर का खाना बना कर निपटी तो उस ने देखा कि घर में पीने का पानी नहीं है. वह बाल्टी लेकर अपने घर से कुछ दूरी पर स्थित सार्वजनिक हैंडपंप पर पहुंची. वहां कुछ औरतें पहले से पानी भर रही थीं. वहीं पास में ही एक मकान के चबूतरे पर महेंद्र अपने 2 दोस्तों के साथ बैठा बातें कर रहा था. उन सब से अंजान सावित्री झुक कर हैंडपंप चला रही थी. हैंडपंप के हत्थे के साथसाथ उस का शरीर भी ऊपरनीचे हो रहा था. अचानक महेंद्र की नजर सावित्री पर पड़ी तो महेंद्र के दिल की घंटी बज उठी. सावित्री को लेकर महेंद्र के मन में चाहत पैदा हो गई. 

हालांकि महेंद्र ने इस से पहले भी सावित्री को देखा था, पर उस के दिल में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था. महेंद्र जिद्दी स्वभाव का था. उस ने उसी समय तय कर लिया था कि वह सावित्री को हर हाल में पा कर रहेगा. उस दिन महमूदाबाद कस्बे में महाशिवरात्रि का मेला था, जिस से उस दिन वहां ज्यादा चहलपहल शोरगुल था. बच्चों बड़ों में उत्साह बना हुआ था. महेंद्र भी मेले में घूमने गया. अचानक उस की निगाह सावित्री पर चली गई

वह अपनी एक सहेली के साथ आई थी. सावित्री एक दुकान पर खड़ी अपने लिए कंगन देख रही थी. वह काफी बनसंवर कर मेले में आई थी. सचमुच उस दिन वह बेहद खूबसूरत दिख रही थी. दूर खड़ा महेंद्र उस की खूबसूरती को निहार रहा था और मन ही मन हसीन कल्पना कर रहा था. वह यह भी सोच रहा था कि कैसे सावित्री से बात शुरू कर के नजदीकियां बढ़ाए. तभी सावित्री की सहेली एक दूसरी दुकान पर कुछ सामान खरीदने चली गई तो महेंद्र खुश हो उठा और वह सावित्री के पास पहुंच गया. सावित्री उस समय कंगन पसंद कर रही थी, तभी महेंद्र ने कहा, ‘‘सावित्री, तुम पर यह लाल वाला कंगन ज्यादा अच्छा लगेगा.’’

अपना नाम सुन कर पहले तो सावित्री चौंकी. जब उस ने नजरें उठा कर देखा तो महेंद्र को देखते ही वह बोली, ‘‘अरे महेंद्र तुम, तुम इस बिसाती की दुकान से क्या खरीद रहे हो?’’

 ‘‘मैं तो कुछ नहीं खरीद रहा लेकिन इधर घूमते समय मैं ने तुम्हें यहां देखा तो चला आया. वैसे आज तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो.’’ महेंद्र ने तारीफ की.

अपनी तारीफ सुन कर सावित्री खुश होते हुए बोली, ‘‘तुम भी कोई कम हैंडसम नहीं हो.’’

‘‘सचतुम्हारे मुंह से यह सुन कर मुझे अच्छा लगा. तो ठीक है, तुम वही लाल कंगन ले लो. मुझे अच्छे लग रहे हैं.’’ मुसकराते हुए महेंद्र ने कहा.

‘‘ठीक है, मैं लाल कंगन ही ले लेती हूं.’’ सावित्री ने दुकानदार की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘भैया, ये लाल कंगन पैक कर देना.’’

सावित्री ने मुसकराते हुए उस की बात मान ली तो महेंद्र का दिल तेजी से धड़क उठा. महेंद्र ने झट से दुकानदार को कंगन के पैसे दे दिए. यह देख कर सावित्री मना करने लगी. तब महेंद्र ने कहा, ‘‘कम से कम नई दोस्ती के नाम पर पैसे देने दो. वैसे भी मैं कोई अजनबी तो हूं नहीं, तुम्हारा पड़ोसी ही हूं. इसलिए इतना तो हक बनता है मेरा.’’

‘‘ठीक है, मैं तुम्हारी बात मान लेती हूं. लेकिन अब तुम मेरे लिए पैसे खर्च नहीं करोगे.’’ मुसकराते हुए सावित्री ने कहा.

‘‘करूंगा…लेकिन सिर्फ एक जगह. मेरा मतलब है कि मेले में तुम्हारा मुंह मीठा जरूर कराऊंगा.’’ महेंद्र ने कहा तो सावित्री मुसकरा पड़ी. बात को आगे बढ़ाते हुए महेंद्र ने कहा, ‘‘सावित्री, चलो न. सामने की मिठाई की दुकान पर दोनों चलते हैं. वहीं बैठ कर कुछ खाएंगे.’’

‘‘हम दोनों नहीं, बल्कि हम तीनों खाएंगे. मेरी सहेली भी मेरे साथ मेले में आई है.’’ सावित्री अभी बता ही रही थी कि उस की सहेली वहां गई

सावित्री को महेंद्र के साथ बातें करते देख वह चहक उठी, ‘‘अरे तुम महेंद्र भैया के साथ? लगता है जानपहचान आगे बढ़ाई जा रही है.’’

‘‘अरे, हम दोनों पड़ोसी हैं तो क्या बात भी नहीं कर सकते. अब चलो मिठाई खाने दुकान पर.’’ महेंद्र ने कहा तो वे दोनों महेंद्र के साथ मिठाई की दुकान पर पहुंच गईं. वहां तीनों ने मिठाई और समोसे का स्वाद लिया. इस के बाद तीनों एक साथ मेला भी घूमे.

उस दिन के बाद से महेंद्र और सावित्री अकसर एकदूसरे से मिलने लगे और अपने दिल की बात करने लगे. महेंद्र स्मार्ट तो था ही, व्यवहार में भी मिलनसार था, इसलिए सावित्री बरबस उस की ओर आकर्षित होती चली गई. उस के दिल में भी महेंद्र के प्रति चाहत पैदा हो गई. एक दिन दोनों ने एकदूसरे से अपने प्रेम का इजहार भी कर दिया. इतना ही नहीं, उन्होंने जीवन भर साथ निभाने का वादा भी किया.

एक दिन मौसम सुहाना था और बारिश होने की पूरी संभावना थी. ऐसे में दोनों एकांत में बैठे प्रेमालाप कर रहे थे. वे एकदूसरे का हाथ थामे हुए थे, तभी रिमझिम फुहारें पड़ने लगीं. तब दोनों बारिश से बचने के लिए सुरक्षित जगह की ओर भागे. वे एक टूटेफूटे घर में घुस गए, जिस में कोई नहीं रहता था. दोनों एकदूसरे को देख कर मुसकरा रहे थे. पानी की फुहारों से भीग कर सावित्री के कपड़े उस के तन से चिपक गए थे. सुनसान जगह के साथ मौसम का भी साथ मिला तो उन के दिल के साथ उन के तन भी एक हो गए. 

तनमन से एक होने के बाद मुलाकातों का सिलसिला भी बढ़ गया. गांव में कोई जोड़ा प्यार की पींगें बढ़ाए और गांव वालों को पता चले, यह तो संभव नहीं होता. जल्द ही उन दोनों के रंगढंग से गांव के लोग वाकिफ हो गए कि उन के बीच क्या खिचड़ी पक रही है. सावित्री के पिता रामकुमार को जब बेटी के इश्क की बात पता चली तो उस के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई. रामकुमार काफी समझदार था. वह जानता था कि ऐसे मामलों में बेटी के साथ मारपीट या बंदिश लगाने से कुछ नहीं होगा, बल्कि बैठ कर उसे प्यार से समझाना ही ठीक रहेगा.

उसी दिन रामकुमार ने सावित्री से बात की. उस समय रामकुमार के अलावा उस के घर में और कोई नहीं था. रामकुमार ने बेटी को समझाया कि उस की और महेंद्र की बिरादरी अलगअलग है, इसलिए उन के बीच कोई रिश्ता नहीं हो सकता. और फिर यदि कल को कहीं महेंद्र ही बदल गया तो उस की तो जिंदगी बदतर हो जाएगी. इसलिए ऐसे में जिंदगी को जानबूझ कर परेशानियों में डालना अक्लमंदी का काम नहीं है. पिता के मुंह से निकला एकएक शब्द सावित्री के दिमाग में बैठता चला गया. उसे अपने पिता के बातों में अपनी भलाई दिखी. इसलिए उस ने फैसला कर लिया कि अब वह महेंद्र से कोई रिश्ता नहीं रखेगी. अपने इस फैसले से उस ने पिता को भी अवगत करा दिया. बेटी की समझदारी पर रामकुमार भी खुश हो गया.

इस के बाद महेंद्र ने कई बार सावित्री से मिलने की कोशिश की लेकिन सावित्री उस से नहीं मिली. सावित्री में अचानक आए इस परिवर्तन से महेंद्र हैरत में पड़ गया. वह समझ नहीं पा रहा था कि जो सावित्री पहले उस के साथ विवाह करने को तैयार थी, वह अचानक बदल कैसे गई? सावित्री के एकदम पलट जाने से महेंद्र बौखला गया. वह कई बार सावित्री से मिला और उसे समझाने की लाख कोशिश की लेकिन सावित्री नहीं मानी.

महेंद्र और सावित्री का मिलन कराने में गांव की शांति उर्फ संगीता नाम की महिला की खास भूमिका थी. महेंद्र की उस से पहले से ही दोस्ती थी. वह शांति को भाभी बुलाता था. शांति का पति गोपी एक ईंट भट्ठे पर मजदूर था. शांति के 2 बेटे एक बेटी थी. इस के बावजूद वह गांव की उन कथित भाभियों में से थी, जो गांव के जवान बच्चों का भविष्य बिगाड़ने में लगी रहती हैं. जब सावित्री और महेंद्र खेतों में मिलते थे तो शांति उन की चौकीदारी का काम करती थी. किसी के आने पर वह उन को आगाह कर देती थी. जब महेंद्र ने सावित्री से भाग कर विवाह कर लेने की बात कही तो सावित्री तैयार नहीं हुई

महेंद्र ने इस काम में शांति को लगाया. शांति ने भी सावित्री को समझाने की भरपूर कोशिश की लेकिन सावित्री नहीं मान रही थी. इसके बाद महेंद्र ने गांव के ही अपने दोस्त दयानंद मिश्रा, पिंटू यादव और शांति के साथ एक योजना बनाई. योजना के अनुसार 19 फरवरी, 2018 को महेंद्र दयानंद मिश्रा उर्फ पप्पू और पिंटू यादव को ले कर सुरेश के गन्ने के खेत में पहुंचा. फिर शांति से कह कर सावित्री को बाजार जाने के बहाने वहां बुला लिया. सावित्री के वहां पहुंचते ही महेंद्र ने अपने साथियों के साथ मिल कर सावित्री को पकड़ कर खेत में ही खड़े यूकेलिप्टस के पेड़ से बांध दिया.

महेंद्र ने सावित्री से एक बार फिर भाग कर विवाह करने के बारे में पूछा तो सावित्री ने साफ मना कर दिया. बेवफा माशूका के मुंह से ‘न’ सुन कर महेंद्र आगबबूला हो उठा. उस ने सावित्री की नाक पर एक जोरदार घूंसा मारा, जिस से सावित्री बिलख कर रोने लगी और बेहोश हो गई. महेंद्र ने अपने साथियों के साथ मिल कर सावित्री के गले में पड़े दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया. 

सावित्री जीवित न रह जाए, इसलिए जेब से उस्तरा निकाल कर महेंद्र ने उस का गला भी रेत दिया. ऐसा उस ने एक बार नहीं कई बार किया. गला कटने से सावित्री की मौत हो गई. हत्या करने के बाद वे सभी वहां से फरार हो गए.

लेकिन उन का गुनाह पुलिस के सामने ही गया. थानाप्रभारी रंजना सचान ने शांति और महेंद्र की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त उस्तरा और खून से सने कपड़े घटनास्थल से मात्र 100 मीटर की दूरी पर एक गेहूं के खेत से बरामद कर लिए. आवश्यक लिखापढ़ी करने के बाद दोनों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक पुलिस ने पिंटू यादव को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था, जबकि दयानंद मिश्रा फरार था. मामले की विवेचना सीओ (महमूदाबाद) जावेद खान कर रहे थे.द्य

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

वो ऐसा साइबर क्राइम जिसने भाजपा और कांग्रेस दोनों को हिला दिया

 फेसबुक डाटा के आधार पर क्या कोई कंपनी मतदाताओं की सोच और मन बदल सकती है? इस मामूली से सवाल का जवाब अगरहांहै तो यह लोकतंत्र के लिए भी घातक है और देश के लिए भी. अमेरिका में चूंकि ऐसा हो चुका है, इसलिए अगले साल होने वाले चुनाव के मद्देनजर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही डरी हुई हैं. आखिर क्यों?    

प्राइवेट कंपनी में एकाउंटेंट सचिन अरोड़ा की उस दिन छुट्टी थी, इसलिए उस ने सोचा क्यों कुछ देर फेसबुक में ही समय गुजारा जाए. अभी उस ने  फेसबुक खोला ही था कि सामने एक खूबसूरत तसवीर के साथ एक आकर्षक इबारत चमकी, ‘जानिए आप की शक्ल देशविदेश के किस महान एक्टर से मिलती है.’

सचिन को हमेशा यह खुशफहमी रही थी कि उस की शक्ल विनोद खन्ना से मिलती है, इसलिए उस ने यह पढ़ते ही सोचा क्यों आजमा कर देख लिया जाए कि उस का अनुमान सही भी है या नहीं. अत: उस ने तुरंत उस पौइंट पर क्लिक कर दिया, जहां से यह जानने के लिए कदम दर कदम आगे बढ़ना था.

पहली क्लिक के बाद ही बारीक अक्षरों में लिखी यह बात सामने आई कि अगर आप इस मनोरंजक क्विज में भाग लेते हैं तो इस ऐप को, जिस ने यह क्विज डेवलप की है, क्या मिलेगा? साथ ही जवाब में लिखा था, आप की सार्वजनिक प्रोफाइल, तसवीरें और आप के कमेंट.

सचिन ने सोचा ऐसी कौन सी खास चीजें हो सकती हैं. इसलिए वह नेक्स्ट के बाद नेक्स्ट बटन क्लिक करता गया. हालांकि उसे बाद में निराशा हुई, क्योंकि ऐप ने उसे हौलीवुड के एक्टर टौम हैंक जैसा बताया था, जिसे वह जानता तक नहीं था.

बहरहाल, इस पहेली में टाइम पास कर के सचिन यह सब भूल गया था, लेकिन कुछ महीनों बाद उसे तब आश्चर्य हुआ जब एक असहिष्णुता संबंधी औनलाइन वोटिंग में उस ने अपने आप को उन लोगों के विरुद्ध मोर्चाबंदी करते हुए पाया, जो सरकार की सांस्कृतिक गतिविधियों में हस्तक्षेप कर रहे थे

सचिन को तो शायद यह पूरा मामला पता ही नहीं चलता, अगर उस के एक दोस्त ने व्यंग्य करते हुए यह कहा होता कि आजकल कलाकारों का बहुत विरोध कर रहे हो. सचिन को इस से ही पता चला कि उस के नाम और तसवीरों का किसी ने दुरुपयोग किया है.

दरअसल, हाल के सालों में हम ने भले ही ध्यान दिया हो, लेकिन फेसबुक में इस तरह के खेलों की बाढ़ गई है, जिस में कहा जाता है कि जानिए आप किस हीरो की तरह लग रहे हैं? पिछले जन्म में क्या थे? या आप उद्योगपति होते तो किस के जैसे होते? या फिर आप खिलाड़ी के रूप में किस खेल के लिए ज्यादा उपयुक्त हैं?

ऐसी तमाम पहेलियों में भाग लेने के लिए आमंत्रित करने वाले कार्यक्रमों की इंटरनेट में बाढ़ गई है. इन में लोग रुचि से भाग भी लेते हैं. सब से पहले इस तरह के सवाल आने शुरू हुए थेआप 60 साल बाद कैसे दिखेंगे? आप की जोड़ी किस हीरोइन या हीरो के साथ जमती है? मनोवैज्ञानिक रूप से आकर्षित करने वाले टाइमपास खेलों की यह शृंखला लगातार बढ़ती गई तो ऐसा यूं ही नहीं हुआ, बल्कि इस के पीछे एक पूरी साजिश थी.

दरअसल, आम लोग भले ही न जानते हों लेकिन इन खेलों के जरिए पर्सनल डाटा चुराने का बहुत ही सोचासमझा खेल चल रहा था. इस डाटा चोरी की बात शायद इतनी डरावनी नहीं लगती, अगर पिछले दिनों इस बात का खुलासा न होता कि इसी तरह डाटा चुरा कर कुछ कंपनियों ने डोनाल्ड ट्रंप को अमेरिका का राष्ट्रपति बनवा दिया है.

जी हां, ये सब उन साइको प्रोफाइल विकसित करने वाली कंपनियों का खेल है, जिस को लेकर आज पूरी दुनिया में हंगामा है. वास्तव में ये कंपनियां आम लोगों को सोशल मीडिया में विशेषकर फेसबुक जैसे लोकमंच में मनोवैज्ञानिक रूप से फांसती हैं

अपने सहज मानवीय आकर्षण वाले सवालों के जरिए ये कंपनियां लोगों को अपने जाल में फांस कर उन का प्रकट रूप में तो मनोरंजन करती हैं, लेकिन इस मनोरंजन के पीछे उन का असली मकसद इन लोगों की मेल आईडी, तसवीरें और तमाम पर्सनल जानकारियां हासिल करना होता है

बाद में एकत्र की गई इन प्रोफाइल जानकारियों को ये कंपनियां कारपोरेट सेक्टर से ले कर विभिन्न मार्केटिंग एजेंसियों तक को बेच देती हैं. अब यह खुलासा इसलिए खौफनाक लगने लगा है, क्योंकि पता चला है कि ये अपना डाटा राजनीतिक पार्टियों को भी बेचती हैं और वे इस डाटा के जरिए मतदाताओं का ब्रेनवाश कर के मनपसंद नतीजे हासिल करने की कोशिश करती हैं.

2 बड़े अखबारों के स्टिंग से  घबराई भाजपा, कांग्रेस गत 17 मार्च, 2018 को अमेरिका और ब्रिटेन के 2 अखबारों ने जब इस बात का खुलासा किया कि अमेरिकी चुनावों में मौजूदा राष्ट्रपति ट्रंप के पक्ष में इस तरह के खेल का किस तरह से इस्तेमाल किया गया तो पूरी दुनिया में हड़कंप मच गया. इस खुलासे के बाद भारत में भी हंगामा मचा हुआ है. 

देश की दोनों मुख्य राजनीतिक पार्टियां भाजपा और कांग्रेस डर रही हैं कि कहीं अमेरिका की तरह यहां भी अगले साल होने वाले चुनाव में राजनीतिक फायदे के लिए इस तरह के तथ्यों का इस्तेमाल किया जाए. इसीलिए दोनों पार्टियां एकदूसरे पर आरोप लगा रही हैं कि वे देश के आम मतदाताओं का निजी डाटा हासिल कर के उन का राजनीतिक ब्रेनवाश कर रही हैं. हालांकि चुनाव आयुक्त .के. रावत ने साफतौर पर इनकार करते हुए कहा है कि ऐसा कुछ नहीं हो रहा, हो सकता है

लेकिन अमेरिका में घटी घटना ने साबित कर दिया है कि जब अमेरिकी मतदाताओं का ब्रेनवाश हो सकता है तो हिंदुस्तानी मतदाताओं का क्यों नहीं?  कांग्रेस ने तो भाजपा पर आरोप भी लगा दिया है कि भाजपा ने 2014 का चुनाव फेसबुक के जरिए इसी तरह से मतदाताओं का ब्रेनवाश कर के जीता था. हालांकि इस के लिए डाटा चोरी का आरोप नहीं लगाया गया. बहरहाल, डर की यह पूरी कहानी कहां और कैसे सामने आई, इस पर हम आगे बात करेंगे. फिलहाल अमेरिका में डाटा लीक के दुरुपयोग के जरिए जो डर पूरी दुनिया के सामने आया है, वह यह है कि इस साल और अगले साल दुनिया के 2 दरजन देशों में होने जा रहे आम चुनावों में इंटरनेट कंपनियां हारजीत का फैसला कर सकती हैं.

कुल मिला कर यह डर वैसा ही है, जैसा 1970 के दशक में हुआ करता था. तब राजनीतिक पार्टियों को लगता था कि उन के धाकड़ विरोधी जीतने के लिए बूथ कैप्चरिंग कर लेंगे. यह भी एक किस्म से कैप्चरिंग की ही आशंका हैफर्क बस यह होगा कि तब भौतिक रूप से लठैतों और हथियारों की बदौलत यह काम होता था और अब आशंका है कि सोशल मीडिया के मनोवैज्ञानिक कब्जे के जरिए यह खेल खेला जाएगा. बहरहाल, यह आशंका कहां से पैदा हुई और कैसे कदम दर कदम आगे बढ़ी, इस का सिलसिला कुछ यूं शुरू होता है.

वाट्सऐप के कोफाउंडर ब्रायन एक्टन ने फैलाई सनसनी 21 मार्च, 2018 को शाम 5 बज कर 18 मिनट पर किए गए अपने एक ट्वीट से मैसेजिंग ऐप वाट्सऐप के कोफाउंडर ब्रायन एक्टन ने तब हड़कंप मचा दिया, जब उन्होंने सभी से अपना फेसबुक एकाउंट डिलीट करने को कहा. एक्टन ने ट्वीट किया, ‘यह प्तडिलीट फेसबुक का वक्त है.’एक्टन का यह ट्वीट ऐसे समय में आया, जब पौलिटिकल डाटा एनालिस्ट कंपनी कैंब्रिज एनालिटिका पर अमेरिका के 5 करोड़ फेसबुक यूजर्स का डाटा चुरा कर, उस का गलत इस्तेमाल करने का आरोप लगा था. 

अमेरिकी अखबार न्यूयार्क टाइम्स और ब्रिटेन के अखबार औब्जर्वर के एक संयुक्त स्टिंग से यह खुलासा हुआ है कि ब्रिटेन की कैंब्रिज एनालिटिका नामक कंपनी ने फेसबुक के 5 करोड़ यूजर्स के बारे में विस्तृत जानकारियां एकत्र कर के उन की अनुमति के बिना उन का दुरुपयोग किया.

यह सब 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के समय हुआ और माना जाता है कि डोनाल्ड ट्रंप को राष्ट्रपति बनवाने के लिए किया गया. स्टिंग के मुताबिक कंपनी ने एक ऐप बनाया और उस के जरिए इन जानकारियों का कई किस्म से दुरुपयोग किया. मालूम हो कि इस कंपनी ने ऐप के जरिए वोटरों के व्यवहार की भविष्यवाणी की थी, जिस में डोनाल्ड ट्रंप को जीतता हुआ बताया गया था.इस खुलासे के बाद से माना जा रहा है कि फेसबुक मुश्किल में है. चूंकि कैंब्रिज एनालिटिका ने यह डाटा फेसबुक से हासिल किया था, इस वजह से यह आशंका जताई जा रही है कि फेसबुक में किसी का भी डाटा सुरक्षित नहीं है.

इस आशंका का एक कारण यह भी है कि स्टिंग से यह भी पता चलता है कि कंपनी के पास 5 और देशों के फेसबुक यूजर्स का डाटा है, जिस में से एक देश भारत भी है. इस असुरक्षा के बाद अब बड़ा सवाल यह पैदा हो गया है कि क्या फेसबुक जिंदा भी रहेगा या बंद हो जाएगा?

लेकिन सवाल यह भी है कि अगर फेसबुक बंद हो गया तो इस प्लेटफार्म में मौजूद असंख्य अनंत डाटा का क्या होगा? लोगों के एकाउंट में मौजूद अपार जानकारियों, तसवीरों और वीडियोज का क्या होगा? क्या फेसबुक का हश्र भी सोशल मीडिया वेबसाइट माईस्पेस डौटकौम जैसा होगा

गौरतलब है कि माईस्पेस डौटकौम पर भी साल 2011 में इसी तरह डाटा बेचने का आरोप लगा था. माना गया था कि उस ने भी अपने यूजर्स के डाटा को चोरीछिपे एक एजेंसी को बेच दिया थाक्या होगा फेसबुक का और उस के यूजर्स के डाटा का इस आरोप के बाद जिस माईस्पेस डौटकौम को साल 2005 में रूपर्ट मर्डोक ने 58 करोड़ डालर में खरीदा था, उसे साल 2011 में महज 3.5 करोड़ डालर में बेचना पड़ा. क्योंकि इस खुलासे के बाद साइट की विश्वसनीयता बिलकुल खत्म हो गई थी. नतीजतन उस की सदस्य संख्या नहीं बढ़ रही थी. यही कारण था कि रूपर्ट की कंपनी न्यूज कारपोरेशन को मजबूरी में अपनी इस कंपनी को औनलाइन विज्ञापन कंपनी स्पेसिफिक मीडिया को बेचना पड़ा था.

लेकिन माईस्पेस डौटकौम को तो फिर भी ग्राहक मिल गया था, मगर क्या फेसबुक को भी कोई ग्राहक मिल पाएगा? यह इसलिए भी संभव नहीं है, क्योंकि दोनों के आकार में जमीनआसमान का फर्क हैजब माईस्पेस डौटकौम को बेचना पड़ा था, उस समय उस की सदस्य संख्या महज 3 करोड़ के आसपास थी, जबकि फेसबुक के सदस्यों की संख्या इस समय करीब 2.1 अरब है. इस में इस के सक्रिय उपभोक्ताओं की संख्या 1 अरब 40 करोड़ है. ये फेसबुक के वे सदस्य हैं, जो हर दिन फेसबुक का चक्कर काटते हैं.

यही वजह है कि दुनिया की कोई भी कारपोरेट कंपनी फिलहाल फेसबुक के अधिग्रहण की नहीं सोच पा रही. लेकिन स्टिंग औपरेशन से हुए खुलासे ने फेसबुक की नींव हिला कर रख दी है. इस खुलासे के  बाद फेसबुक के शेयरों में भारी गिरावट आई है. इन पंक्तियों के लिखे जाने तक यह गिरावट 8 फीसदी से ज्यादा हो चुकी थी, जिस के कारण मार्क जकरबर्ग को 350 अरब रुपए से ज्यादा का नुकसान हो चुका है, जबकि कंपनी को अब तक इस से 600 फीसदी से ज्यादा का नुकसान हो चुका है. इस वजह से भी कारपोरेट दुनिया में फेसबुक के भविष्य को ले कर हड़कंप मचा हुआ है.

बहरहाल, फेसबुक के अस्तित्व की आशंकाओं और अनुमानों वाले सवालों के जवाब हम बाद में जानेंगे, पहले हम इस विषय पर बात करते हैं कि आखिर हम इस सब पर बात ही क्यों कर रहे हैंअमेरिका और ब्रिटेन के इन 2 अखबारों के इस साझा स्टिंग से आखिर हमारा क्या लेनादेना? लेनादेना है, जैसा कि पहले ही लिखा जा चुका है कि इस स्टिंग से पता चलता है कि कैंब्रिज एनालिटिका ने सिर्फ अमेरिका के फेसबुक यूजर्स का ही डाटा नहीं चुराया है, बल्कि उस ने ब्रिटेन, दक्षिण कोरिया और भारत सहित 5 देशों के फेसबुक यूजर्स के डाटा की चोरी की है.

हकीकत पर परदा डालने की कोशिश हालांकि कैंब्रिज एनालिटिका ने इस का खंडन किया है, लेकिन इस स्टिंग के प्रकाश में आने के बाद भारत के कानून और सूचना मंत्री रविशंकर प्रसाद ने साफसाफ कहा है कि यदि फेसबुक डाटा का दुरुपयोग भारतीय चुनावों को प्रभावित करने की कोशिश में किया गया तो यह कतई सहन नहीं किया जाएगा. उन्होंने 17 मार्च, 2018 को इस खुलासे के बाद फेसबुक को कड़ी चेतावनी दी, जिस में यहां तक कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो भारत सरकार फेसबुक के विरुद्ध कड़े से कड़ा कदम उठाएगी.

हालांकि कैंब्रिज एनालिटिका ने कहा है कि उस ने फेसबुक के भारतीय उपभोक्ताओं का कोई डाटा नहीं चुराया है और ही उस का चुनाव को प्रभावित करने का कोई इरादा है. फेसबुक के मालिक जकरबर्ग ने तो इस संबंध में भारत से स्पष्ट तौर पर माफी भी मांगी है और फेसबुक में डाटा संबंधी सुरक्षा को और मजबूत करने की बात भी कही हैफिर भी अगर इस सब से भारत के राजनीतिक गलियारों में एकदूसरे के विरुद्ध आरोपप्रत्यारोप का सिलसिला थम नहीं रहा तो इस के पीछे बड़ी वजह यही है कि सभी राजनीतिक पार्टियां डरी हुई हैं कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में मतदाताओं के मतों का अपहरण करने की कोशिश की जा सकती है.

इस आशंका की वजह से देश की दोनों बड़ी राजनीतिक पार्टियोंकांग्रेस और भाजपा का एकदूसरे पर यह आरोप लगाना है कि उस का कैंब्रिज एनालिटिका से संबंध है. भारतीय जनता पार्टी की तरफ से कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सवाल उठाया है कि आखिर कांग्रेस का कैंब्रिज एनालिटिका से इस कदर प्रेम क्यों हैभाजपा की तरफ से कांग्रेस पर यह भी आरोप लगाया गया है कि राहुल गांधी की सोशल मीडिया प्रोफाइल में कैंब्रिज एनालिटिका की क्या भूमिका है? क्या कांग्रेस अब चुनाव जीतने के लिए डाटा चोरी का इस्तेमाल करेगी, जैसा कि इस कंपनी ने अमेरिका में किया. चूंकि हाल ही में राहुल गांधी के ट्विटर पर फालोअर्स की संख्या काफी बढ़ी है तो भाजपा का आरोप यह भी है कि ये फरजी फालोअर्स हैं, जिन्हें ऐसे ही डाटा जगलरी के जरिए हासिल किया गया है.

कांग्रेस की सफाई और आरोप में दम है इस पर कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने भाजपा की खबर ली है. उन्होंने भाजपा को इन आरोपों के बदले खूब खरीखोटी सुनाई है. सुरजेवाला के मुताबिक भाजपा फेक न्यूज की फैक्ट्री है, वही इस तरह की कंपनियों का सहारा लेती है. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने या कांग्रेस के अध्यक्ष ने कभी भी इस कंपनी की किसी भी तरह की कोई मदद नहीं ली है. अगर स्वतंत्र रूप से कैंब्रिज एनालिटिका के दावों की बात करें तो उस का कहना है कि साल 2010 में बिहार विधानसभा चुनाव में उस ने काम किया था.

कैंब्रिज एनालिटिका की वेबसाइट में मौजूद विवरण में एक जगह यह दावा किया गया है कि हमारे प्रयासों से हमारे ग्राहक की बड़ी जीत हुई. हम ने जितना टारगेट किया, उस की 90 फीसदी सीटें हमारे क्लाइंट को मिलीं. अगर इतिहास में पीछे मुड़ कर जाने की कोशिश करें कि साल 2010 में बिहार विधानसभा में किस को जीत मिली थी तो निश्चित रूप से वह भाजपा और जेडीयू का गठबंधन था, जिसे भारी बहुमत मिला था

जनता दल यूनाइटेड ने तब 141 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 115 सीटें जीती थी जबकि भारतीय जनता पार्टी जिस ने सिर्फ 102 सीटों पर चुनाव लड़ा था, उस ने 91 सीटें जीती थीं. इस तरह देखा जाए तो तथ्यात्मक रूप से यह भारतीय जनता पार्टी है, जिस ने 2010 के विधानसभा चुनाव में 90 फीसदी सीटें जीती थीं. इस तरह कैंब्रिज एनालिटिका के दावे में वही फिट हो रही है.

यही नहीं, रणदीप सुरजेवाला का यह भी कहना है कि साल 2010 में कैंब्रिज एनालिटिका की इंडियन पार्टनर ओवलेनो बिजनैस नाम की कंपनी वास्तव में भाजपा की साथी पार्टी के सांसद के बेटे की थी और तब ओबीआई की सेवाओं का राजनाथ सिंह ने अपने लिए इस्तेमाल किया था

रणदीप सुरजेवाला भाजपा पर आरोप लगाते हैं कि भाजपा फेक स्टेटमेंट, फेक कौन्फ्रैंस के साथसाथ फेक डाटा का सहारा लेने वाली पार्टी है. इसी क्रम में कांग्रेस आईटी सेल की प्रभारी दिव्या स्पंदना का कहना है कि कैंब्रिज एनालिटिका राइट विंग पार्टियों के साथ मिल कर काम करती है, लिबरल्स के साथ नहीं और सब को पता है कि राइट विंग कौन है.

कुल मिला कर अब यह डाटा लीक इतना डरावना क्यों है, इसे समझ लेते हैं. दरअसल, भारत में फेसबुक के करीब 20 करोड़ सक्रिय उपभोक्ता हैं, जिस में ज्यादातर की उम्र 18 से 35 साल के बीच हैसमाजशास्त्रियों और मनोविदों का मानना है कि ये लोग राजनीतिक दलों द्वारा फैलाई गई अफवाहों को सच मान लेते हैं और उसी के मुताबिक उन के बारे में अपनी राय बना लेते हैंकहने का मतलब यह है कि ये लोग तात्कालिक माहौल के प्रभाव में कर अपना मतदान करते हैं. ऐसे में आशंका है कि परदे के पीछे रहने वाली ये डाटा विश्लेषक कंपनियां चोरी से हासिल किए गए डाटा के जरिए आगामी चुनावों में अपनी सेवा लेने वाली राजनीतिक पार्टियों को कृत्रिम माहौल बना कर जिताने की कोशिश करेंगी, जैसा कि आरोप है कि 2 साल पहले अमेरिका में ट्रंप के लिए ऐसा माहौल बनाया गया.

क्या भारतीय वोटरों को भ्रमित कर के मतदान कराया जाएगा? चूंकि भारत में 20 करोड़ से ज्यादा फेसबुक के सक्रिय उपभोक्ता हैं और उन में से 90 फीसदी 35 साल से कम उम्र के हैं. ये उपभोक्ता आमतौर पर हमेशा अपने जैसे तमाम दूसरे लोगों के साथ जुड़े रहते हैं और इस तरह एकदूसरे की बातों से प्रभावित होते हैं. इसलिए आशंका है कि ऐसी जानकारियों को व्यक्तिगत स्तर पर प्रसारित किया जाएगा, जिस से कि इन लोगों का दिमाग बदल जाए

चूंकि लोगों का वास्तविक इंटरैक्शन बहुत कम हो गया है, जबकि आभासी मेलमिलाप बहुत बढ़ गया है, इसलिए यह माना जा रहा है कि उपभोक्ता एकदूसरे को प्रभावित करेंगे. लब्बोलुआब यह है कि साल 2019 में राजनीतिक पार्टियां मतदाताओं के बीच अपने लोकप्रिय समर्थन के बजाय आंकड़ों के जोड़तोड़ और भ्रामक माहौल से उपजी भावनात्मक स्थितियों के जरिए चुनाव जीतने की कोशिश करेंगी

यह भी माना जा रहा है कि साल 2016 में अमेरिका में राष्ट्रपति ट्रंप ऐसे ही चुनाव जीते थे. यही वजह है कि कैंब्रिज एनालिटिका के डाटा चोरी संबंधी खबर के खुलासे से भारत में हड़कंप मच गया है. इंटरनेट के जानकारों का मानना है कि यह आशंका पूरी तरह से हवाहवाई नहीं है. कैंब्रिज एनालिटिका या कोई भी कंपनी जिस के पास किसी समुदाय विशेष का बड़े पैमाने पर व्यक्तिगत डाटा हो, वह ऐसा माहौल रच सकती है, जिस के मनोविज्ञान में उलझ कर मतदाता वैसा ही निर्णय ले जैसा कि कोई शातिर कंपनी उन से निर्णय लिवाने की कोशिश करे

स्टिंग औपरेशन के दौरान यह बात सामने आई है कि कैंब्रिज एनालिटिका लोगों के डाटा से उन की साइकोलौजिकल प्रोफाइलिंग करती है और उसी प्रोफाइलिंग के आधार पर किसी उम्मीदवार के समर्थन में या उस के विरोधी के खिलाफ सूचनाएं प्लांट की जाती हैं. कुल मिला कर नतीजा यह होता है कि मत देने वाले मतदाता का मन बदल जाता है और वह अपना वोट उसे दे देता है, जिसे वह इस तरह के प्रभाव में आने के पहले अपना वोट नहीं देना चाहता हो.

मतदाता का मन बदलने का षडयंत्र यह पूरा किस्सा शायद महज एक अनुमान ही होता, अगर ब्रिटेन के चैनल-4 ने कैंब्रिज एनालिटिका कंपनी के बड़े अधिकारियों का स्टिंग औपरेशन प्रसारित किया होता. इस प्रसारण के बाद ही पूरी दुनिया को पता चला कि यह कंपनी दुनिया के तमाम राजनीतिक दलों के लिए सोशल मीडिया में कैंपेन चलाती है और अपने क्लाइंट या ग्राहकों को जितवाने के लिए हर वह हथकंडा अपनाती है, जिस से कि मतदाता का मूड बदला जा सके.

फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल मीडिया पर जो लोग ज्यादा से ज्यादा समय बिताते हैं और अपने दिलदिमाग की तमाम बातों को यहां दर्ज करते हैं. ये कंपनियां इन्हीं बातों से इन के मनोविज्ञान का अध्ययन करती हैं. फिर उसी अध्ययन के आधार पर इन्हें भावनात्मक बाहुपाश में कैद करने के लिए चक्रव्यूह रचती हैं. देश की 2 सब से बड़ी राजनीतिक पार्टियां अगर इस डाटा लीक से डरी हुई हैं और एकदूसरे पर गंभीर से गंभीरतम आरोप लगा रही हैं तो इस के पीछे बहुत बड़ा कारण लोगों की साइकोलौजिक प्रोफाइलिंग करने वाली कैंब्रिज एनालिटिका जैसी कंपनियों के कामकाज का तौरतरीका भी है

इस तरह की कंपनियां सोशल मीडिया प्लेटफार्म से डाटा चुरा कर मनोवैज्ञानिक कैंपेन विकसित करती हैं. यही नहीं, ये कंपनियां नेताओं के भाषण, राजनीतिक पार्टियों के घोषणापत्रों तक को अपने इन्हीं सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक विश्लेषणों के आधार पर तैयार करवाती हैं

कहने का मतलब यह है कि अगर भाजपा यह घोषणा करे कि वह अगले साल, इस महीने, इस तारीख तक अयोध्या में मंदिर बनवा देगी तो हो सकता है यह भाजपा के नेताओं के बजाए मतदाताओं का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करने वाली कंपनी का निष्कर्ष हो और जो किसी पार्टी के नेता विशेष के मुंह से जारी हुआ हो. द्य

                               

लड़की ने लड़के को दी निर्वस्त्र फोटो वायरल करने की धमकी

दिन पर दिन साइबर क्राइम बढ़ता जा रहा है. ज्योंज्यों टेक्नोलौजी आगे बढ़ती जाएगी, साइबर क्राइम और भी बढ़ेगा. यह एक ऐसा अपराध है जो हजारों किलोमीटर दूर बैठा आदमी किसी को भी शारीरिक, मानसिक और आर्थिक हानि पहुंचा सकता है. पढि़ए और जानिए साइबर क्राइम के बारे में…

पु घटना -1

कपड़ों के शोरूम के मालिक प्रशांत कुमार दोपहर में ग्राहक न होने की वजह से शोरूम के सेल्समैनों से बात कर रहे थे कि उन के मोबाइल की घंटी बजी. अनजान नंबर था, इसलिए उन्होंने लापरवाही से फोन रिसीव कर जैसे ही कान से लगाया, दूसरी ओर से कहा गया, ‘‘जी, मैं स्टेट बैंक से बोल रहा हूं.’’

प्रशांत कुमार का सारा लेनदेन भारतीय स्टेट बैंक से ही होता था इसलिए उन्हें लगा कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं है. इसलिए सचेत होते हुए उन्होंने कहा, ‘‘जी कहिए, क्या बात है.’’

‘‘दरअसल आप के डेबिट कार्ड का पिन ब्लौक हो गया है इसलिए आप उस का नंबर, एक्सपायरी डेट और सीवीवी नंबर बता देते तो उस का नया पिन नंबर जेनरेट कर देते.’’ दूसरी ओर से कहा गया. प्रशांत कुमार को पता था कि बैंक की ओर से अकसर इस तरह के मैसेज आते रहते हैं कि ‘आप किसी को अपने डेबिट/के्रडिट कार्ड का नंबर, एक्सपायरी डेट और सीवीवी नंबर न बताएं, क्योंकि बैंक किसी से यह सब नहीं पूछता.’ प्रशांत कुमार तुरंत जान गए कि फोन करने वाला कोई ठग है. उन्होंने तुरंत कहा, ‘‘भाई साहब, बेवकूफ समझते हो क्या?’’

उनका इतना कहना था कि दूसरी ओर से फोन काट दिया गया. दरअसल, फोन करने वाला ठग था. अगर प्रशांत कुमार उस के द्वारा मांगी गई जानकारी बता देते तो वह ठग समझ जाता कि यह आदमी बेवकूफ है. इसके बाद वह ओटीपी नंबर पूछ कर उन के खाते से पैसे निकाल लेता.

प्रशांत कुमार समझदार आदमी थे, इसलिए बच गए. लेकिन ये ठग इसी तरह न जाने कितने लोगों से कार्ड नंबर, एक्सपायरी डेट, सीवीवी नंबर, पूछ कर रोजाना ठगते हैं. लोगों को ठगी से बचने के लिए ही बैंक अब मैसेज भेजने लगे हैं कि आप किसी को अपने डेबिट/क्रेडिट कार्ड का नंबर, एक्सपायरी डेट और सीवीवी नंबर न बताएं. इस के बावजूद लोग ठगी का शिकार बन रहे हैं.

घटना-2

प्रशासनिक नौकरी की तैयारी करने वाले राजेश शर्मा को सोशल मीडिया इसलिए पसंद था, क्योंकि इस से उसे थोड़ीबहुत जानकारी तो मिलती ही थी, पढ़ाई करतेकरते थक जाने पर फेसबुक या चैट साइट खोल कर दोस्तों से थोड़ीबहुत चैट कर के मूड फ्रैश हो जाता था. राजेश युवा तो था ही कुंवारा भी था, दूसरे घर वालों से दूर अकेला रह रहा था. राजेश के ऐसे दोस्त भी थे, जिन से वह हर तरह की चैट कर लेता था. इस में अश्लील चैट भी शामिल था. इस तरह की चैट करने वालों में ज्यादातर अधेड़ उम्र के लोग थे.

अधेड़ लोगों से अश्लील चैट कर के राजेश अपना मूड जरूर फ्रैश कर लेता था. लेकिन इसमें उसे वह आनंद नहीं आता था, जो वह चाहता था. उस का मन करता था कि कोई लड़की हो, जिस से वह इस तरह का चैट करे. इस के लिए उस ने चैट साइट ऐप टिंडर डाउनलोड किया और लड़कियों को मैसेज भेजने लगा. मैसेज का किसी ने जवाब दिया तो किसी ने टाल दिया. किसी का जवाब आता तो उसे खुशी होती कि शायद अब बात बन जाएगी. क्योंकि ज्यादातर लड़कियों के जवाब नकारात्मक होते थे.

राजेश भी हिम्मत हारने वालों में नहीं था. उस की कोशिश जारी थी. जो लड़कियां जवाब देतीं थीं, वे भी 2-4 दिन जवाब दे कर शांत हो जाती थीं. किसी ने बात आगे बढ़ाई भी तो बाद में कहने लगती थी कि अब बात तभी होगी, जब उस का फोन रिचार्ज कराओगे. चैट करने के लालच में राजेश ने एक बार एक लड़की का फोन रिचार्ज कराया भी. लेकिन फोन रिचार्ज होते ही उस लड़की ने राजेश को ब्लौक कर दिया. इस से राजेश को निराशा तो हुई लेकिन एक सीख यह मिल गई कि दुनिया बहुत चालाक है.

इस घटना के बाद कुछ दिनों तक तो राजेश शांत रहा, लेकिन उस का मन नहीं माना और वह फिर पहले की ही तरह लड़कियों को मैसेज भेजने लगा. आखिर उस की कोशिश रंग लाई और उसे एक लड़की मिल गई, जो उस के मैसेज के वैसे ही जवाब देने लगी, जैसा वह चाहता था. राजेश रोज रात में उस लड़की से चैटिंग करने लगा. दोनों के मैसेज ऐसे होते थे, जिन्हें पतिपत्नी या प्रेमीप्रेमिका ही भेज सकते थे. कुछ ही दिनों में मैसेज के आदानप्रदान के साथ एकदूसरे को फोटो भी भेजे जाने लगे. फिर एक दिन लड़की ने राजेश से अपने निर्वस्त्र यानी नग्न फोटो भेजने को कहा. राजेश को उस लड़की पर इतना भरोसा हो चुका था कि उस ने बिना कुछ सोचे लड़की को अपने नग्न फोटो भेज दिए. राजेश ने जब लड़की से उसी तरह के अपने फोटो भेजने को कहा तो उस ने बहाना बना कर फोटो भेजने से मना कर दिया. राजेश ने उस की बात पर विश्वास कर के उस पर दबाव भी नहीं डाला.

लड़की ने राजेश को अपनी बातों के जाल में फंसा कर उस के कई नग्न फोटो मांग लिए. इस के बाद एक दिन लड़की ने जो रंग दिखाया, उसे देख राजेश परेशान हो उठा. लड़की ने राजेश के फोटो सोशल मीडिया पर डालने की धमकी दे कर उस से पैसे मांगे. राजेश को अपनी इज्जत बचानी थी, सो किसी तरह रुपयों का इंतजाम किया. जब वह लड़की को रुपए देने पहुंचा तो पता चला वह लड़की नहीं, 45-46 साल का आदमी था. राजेश ने अपने वे फोटो डिलीट कराने के लिए अपनी हैसियत के हिसाब से रुपए तो दिए ही उसे उस की मनमानी भी सहनी पड़ी.

अच्छा यह हुआ कि वह आदमी एक बार में ही मान गया, वरना पता नहीं राजेश को कब तक उस की दुर्भावना का शिकार होना पड़ता. हो सकता है, उस ब्लैकमेलर ने सोचा हो कि जो मिलता है, लेकर किनारे हो जाओ. क्योंकि उसे यह डर भी था कि ज्यादा लालच करने पर राजेश पुलिस के पास भी जा सकता है. मजे लेने के चक्कर में राजेश ने इधरउधर से इंतजाम कर के पैसे तो दिए ही, उस आदमी की मनमानी भी झेली. उस के साथ जो हुआ शायद ही वह जीवन में इसे भूल पाए. अब वह मोबाइल देख कर डर जाता है. राजेश ही नहीं सोशल मीडिया के नाम से सुष्मिता भी घबराने लगी है क्योंकि उस के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है. लेकिन उस का मामला राजेश के मामले से कुछ अलग है.

घटना-3

सुष्मिता भी सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय थी. लेकिन फेसबुक हो या चैटसाइट टिंडर, उस की फ्रैंडलिस्ट में जो भी लोग थे, सभी उस की जानपहचान वाले थे. इन में ज्यादातर उस के कालेज के मित्र थे. फालतू लोगों को न तो वह फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजती थी और न ही रिक्वेस्ट आने पर स्वीकार करती थी. चैटिंग भी वह कुछ ही दोस्तों से करती थी, जिस में पढ़ाई से संबंधित बातें ज्यादा होती थीं. किसी वजह से वह 15-20 दिन सोशल मीडिया से दूर रही. एक दिन उस ने अपनी चैट साइट खोली तो उस में एक दोस्त का मैसेज पढ़ कर दंग रह गई. उस ने दोस्त को लताड़ना चाहा तो उस ने कहा कि उसी ने तो इस तरह की फूहड़ चैटिंग की थी. उस ने तो केवल उस के मैसेज के जवाब भर दिए थे.

इस से सुष्मिता की हैरानी और बढ़ गई, क्योंकि 15-20 दिनों से उस ने किसी से चैटिंग की ही नहीं थी. उस ने दोस्त को झूठा साबित करना चाहा तो उस ने चैटिंग के स्क्रीन शौट ले कर भेज दिए. चैटिंग के फोटो देख कर सुष्मिता परेशान ही नहीं हुई बल्कि डिप्रेस हो गई. क्योंकि वह चैटिंग इतनी अश्लील थी कि उस तरह की चैटिंग करने की कौन कहे, सुष्मिता सोच भी नहीं सकती थी. इस डिप्रेशन से उबरने में उसे काफी समय लगा. सुष्मिता ने सचमुच वह चैटिंग नहीं की थी. उस के चैटरूम में घुस कर किसी ने उस के दोस्त से उस की ओर से चैटिंग की थी. पहले तो सुष्मिता के उस दोस्त को भी हैरानी हुई थी कि सुष्मिता को यह क्या हो गया है?

लेकिन उस ने सोचा कि जब वह ही इस तरह की फूहड़ चैटिंग कर रही है तो उसे क्यों परेशानी होगी. मजे लेने के लिए उस ने भी उसी तरह के जवाब देने शुरू कर दिए थे. लेकिन जब असलियत खुली कि वह चैटिंग सुष्मिता ने नहीं, बल्कि उस की ओर से किसी और ने की थी तो वह काफी शर्मिंदा हुआ था.

घटना-4

ऐसा ही कुछ हुआ प्रदीप के साथ. 15 साल का प्रदीप भी सोशल मीडिया पर खूब सक्रिय था. मौका मिलते ही वह फेसबुक खोल कर बैठ जाता और यह देखता कि उस के फोटो और पोस्ट को कितने लोगों ने लाइक किया और उस पर किस ने क्या कमेंटस लिखे. उसकी अपने कुछ दोस्तों से चैटिंग भी होती थी. प्रदीप सोशल मीडिया पर सक्रिय जरूर था. लेकिन अपनी उम्र को देखते हुए वह सावधानी भी बरतता था. उस की फ्रैंडलिस्ट में ज्यादा लोग नहीं थे, जो थे वे पढे़लिखे और समझदार लोग थे.

इतनी सावधानी बरतने के बावजूद प्रदीप के साथ गड़बड़ हो गई. एक दिन उस के साथ पढ़ने वाली एक लड़की अपनी मम्मी के साथ उस के घर आई और अपने फोन पर मैसेंजर में उस का मैसेज दिखाते हुए बोली, ‘‘प्रदीप, मैं तो तुम्हें बहुत अच्छा लड़का समझती थी, पर तुम ने मुझे यह कैसा मैसेज भेजा है?’’  प्रदीप उस मैसेज को देख कर हैरान रह गया, क्योंकि उस ने वैसा मैसेज भेजा ही नहीं था. उस ने लाख सफाई दी, लेकिन न तो लड़की ने उस की बात पर विश्वास किया न ही उस की मां ने. दरअसल वह मैसेज था, ‘आई लव यू’. लड़की और उस की मां इसी मैसेज से खफा थीं.

उन से जो बना, वह तो उन्होंने कहा है, जातेजाते धमकी भी दे गईं कि फिर कभी ऐसा मैसेज भेजा तो प्रिंसिपल से उस की शिकायत कर देंगी. इस बार वे उसे इसलिए छोड़ रही हैं, क्योंकि उस की मां ने उन से हाथ जोड़ कर उस की गलती के लिए माफी मांगी है.

इस मामले में भी कुछ वैसा ही हुआ था, जैसे ऊपर की घटनाओं में हुआ था. प्रदीप ही नहीं उस की मां को भी इस गलती के लिए शर्मिंदा ही नहीं होना पड़ा था, बल्कि हाथ जोड़ कर माफी भी मांगनी पड़ी. दरअसल किसी और ने प्रदीप की ओर से वह मैसेज उस के साथ पढ़ने वाली उस लड़की को भेज दिया था.

इस बात को न वह लड़की समझ पाई थी, न ही उस की मां. उन्हें ही नहीं, इस बात का पता तो प्रदीप और उस की मां को भी नहीं चला था. प्रदीप सिर्फ इतना जानता था कि उस ने यह मैसेज नहीं भेजा था. यह सब कैसे हुआ, उसे पता भी नहीं था.

दरअसल, यह सब एक तरह का साइबर अपराध है, जो धीरेधीरे आम होता जा रहा है. लेकिन इस के बारे में बहुत कम लोगों को पता है. इंटरनेट के तेजी से हो रहे प्रचारप्रसार के साथ अब साइबर अपराध भी उसी तेजी से बढ़ रहा है. युवा और महिलाएं ही नहीं, बच्चे भी औनलाइन चैटिंग, डेटिंग ऐप के चक्कर में फंस कर प्रभावित हो रहे हैं. बैंकिंग, इनफोर्मेशन, बीमा कंपनियां और शेयर मार्केट ही नहीं, सरकारें तक इस अपराध से खासा प्रभावित हैं.

 

एक लिंक से ठगी किसी की निजी जानकारी प्राप्त कर के धोखाधड़ी, डेबिट/के्रडिट कार्ड का ब्यौरा पता कर के चूना लगाना तो आम हो गया. लगभग रोज ही अखबारों में इस तरह की ठगी की खबरें आती रहती हैं. इस साइबर क्राइम से आम लोगों के साथसाथ कारपोरेट जगत और सरकारें भी परेशान हैं. क्योंकि इस की वजह से अन्य लोग ही नहीं, बड़ीबड़ी कंपनियों के साथ सरकारें भी लुट रही हैं.

अभी पिछले दिनों आम लोगों के लुटने की बड़ी खबर आई थी, जिस में क्लिक से पैसा कमाने की ललक ने लाखों लोगों को चूना लगा दिया. ऐसा करने वाली ‘सोशलट्रेड डौट बिज’ अकेली कंपनी नहीं थी. इसी तरह की एक कंपनी और थी ऐडकैश. दोनों ही कंपनियों के कारोबार का पैटर्न एक जैसा था. पहले इन्होंने विज्ञापन दिया कि ‘घर बैठे लाइक करें और पैसे कमाएं.’ इस तरह का विज्ञापन देख कर फटाफट पैसा कमाने की होड़ में लाखों लोग इन कंपनियों के झांसे में आ गए.

 

दरअसल, सोशल मीडिया के बढ़ते क्रेज में सभी चाहते हैं कि उन के फालोअर्स की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी बढ़े. इसी बात को ध्यान में रखकर पहले इन कंपनियों ने नेताओं और सेलिब्रेटी को जोड़ा यानी ग्राहक बनाया. उनके साथ ईमानदारी से डील हुई. इस तरह कंपनियों ने फालोअर्स बढ़ाए और बदले में फीस ली. लेकिन असली खेल तो आम लोगों के साथ शुरू हुआ.

सेलिब्रिटी को जोड़ने के बाद कंपनियों ने लिंक्स को अपना मार्केटिंग हथियार बनाया. आम लोगों को नेता और सेलिब्रिटी के लिंक दिखा कर कंपनियों ने उन्हें जोड़ा. इस स्कीम के तहत लोगों को मेंबर बनाया गया. यहीं से शुरू हुआ असली खेल. 10 हजार रुपए फीस ले कर उन्हें मेंबर बनाया गया और बिजनैस मौडल के अनुसार, उस के लिंक को बूस्ट किया गया. मेंबरशिप के लिए ग्राहक को अपना पैन नंबर देना पड़ता था.

जबकि परदे के पीछे दूसरी डील हो रही थी, जिस के तहत कंपनियां मेंबरशिप लेने वाले ग्राहक से 5 लिंक क्लिक करवाती थीं और एक क्लिक का 5 रुपए देती थीं. अगर कोई मेंबर 2 नए मेंबर जोड़ता था तो उस के लिंक डबल हो जाते थे. लिंक डबल होने का मतलब मिलने वाला पैसा भी डबल. इस तरह मेंबर जितने मेंबर जोड़ता था, उस के लिंक बढ़ते जाते थे.

ये कंपनियां खुद को कानूनी रूप से सही साबित करने के लिए 10 प्रतिशत टीडीएस काट कर पैसे देती थीं. शुरूशुरू में ये कंपनियां रोज के हिसाब से पैसे देती थीं. कंपनी के सदस्यों की संख्या लाखों में होने की वजह से बैंक सवाल उठाने लगे कि आखिर इन्हें इतने अधिक पैसे क्यों दिए जा रहे हैं. इस के बाद कंपनियां हफ्ते में, फिर महीने में पैसे देने लगीं. बैंकों ने फिर सवाल उठाया तो कंपनियां रुपए के बदले प्वाइंट देने लगीं. मेंबर जब चाहे प्वाइंट के बदले पैसे ले सकता था.

घर बैठे कमाई का मौका देख कर लोगों ने एक पैन कार्ड पर कईकई आईडी बना लीं. इस के लिए उन्हें सालाना 11 हजार रुपए की फीस देनी पड़ती थी. लेकिन बदले में उन्हें ज्यादा लिंक्स मिल रहे थे. बाद में कपंनियां सख्ती बरतते हुए एक पैन कार्ड पर एक ही मेंबर बनाने लगीं. इस पर लोगों ने अपने घर के अन्य लोगों के नाम आईडी बना डालीं. अगर ऐडकैश कंपनी की बात की जाए तो उस से करीब 6-7 लाख लोग जुड़ चुके थे. एडकैश का विज्ञापन तो व्हाट्सऐप पर भी धड़ल्ले से चल रहा था.

शुरूशुरू में वे कंपनियां वादे के अनुसार लाइक करने के लिए लिंक्स और बदले में नियमित पैसे देती रहीं. शनिवार और रविवार छुट्टी होती थी. इन दोनों दिन लिंक्स नहीं मिलते थे. धीरेधीरे सर्वर खराब होने का बहाना बना कर लिंक्स देना कम कर दिया गया, जिस से लोग नाराज हुए. जबकि नए मेंबर बनाने का काम उसी तरह चलता रहा. कंपनी फीस तो जमा कर लेती थी, लेकिन आईडी बनाने में आनाकानी करने लगी थी. बात यहीं तक सीमित नहीं रही, आगे चल कर कंपनियां पौइंट पर पैसे देने से आनाकानी करने लगीं. इस के बाद लोगों ने पुलिस में शिकायत की तो पता चला कि यह एक तरह की साइबर ठगी थी, जिस में इन कंपनियों ने लोगों को खरबों का चूना लगाया था. यह तो रही आम लोगों की ठगी की बात, जो यह नहीं जानते कि ऐसा भी हो सकता है.

डेबिट कार्ड के पिन की चोरी इसका सब से बड़ा उदाहरण है 4 महीने पहले हुई आम आदमी के डेबिट कार्ड के पिन की चोरी. बैंक को इस बात की जानकारी हो गई थी, इस के बावजूद बैंकों ने यह बात ग्राहकों को नहीं बताई. एक तरह से देखा जाए तो साइबर क्राइम से बड़ा अपराध वित्त मंत्रालय, रिजर्व बैंक और बैंकिंग प्रबंधन ने किया. डेबिट कार्ड की ही बात क्यों की जाए, आम आदमी के तमाम तथ्य आधार नंबर से चुराए जा चुके हैं. देश भर में करीब 65 लाख डेबिट कार्डों का डाटा चुराए जाने की आशंका है. लेकिन संबंधित बैंकों ने अपना कारोबार बचाने की गरज से इस का खुलासा नहीं किया.

भारतीय स्टेट बैंक तो अब किसी तरह खुलासा कर रहा है. जबकि निजी बैंकों में उस से कहीं बड़ा संकट होने के बावजूद वे अपने व्यावसायिक हितों को देखते हुए जब तक संभव है, कोई जानकारी देने से बचेंगे. फिलहाल बैंकों ने अपने ग्राहकों से पिन बदलवाने या फिर पुराना कार्ड ब्लौक कर नया कार्ड देना शुरू कर दिया है. ताज्जुब की बात तो यह है कि अभी तक किसी बैंक ने इस मामले में एफआईआर तक दर्ज नहीं कराई है. यही नहीं, इस मामले में सरकार को भी कोई सूचना नहीं दी गई है. जबकि महाराष्ट्र पुलिस की साइबर सेल ने बैंकों को पत्र लिखा है.

4 महीने से आम आदमी के डेबिट कार्ड के पिन चोरी हो रहे थे, बैंकों को इस बात की जानकारी भी थी, लेकिन वे चुप्पी साधे थे. एक तरह से देखा जाए तो यह साइबर अपराध से बड़ा अपराध हमारे वित्त मंत्रालय रिजर्व बैंक और बैंकिंग प्रबंधन का है. जबकि बैंकिंग के नियमों और आरबीआई के ड्राफ्ट के अनुसार, खाताधारकों द्वारा धोखाधड़ी की सूचना दिए जाने पर बैंक को 10 कार्य दिवसों के अंदर ग्राहक के खाते से गायब हुआ पैसा वापस करना होता है. इस के लिए ग्राहक को 3 दिन के अंदर धोखाधड़ी की सूचना देनी होगी और उसे यह दिखाना होगा कि उस की तरफ से कोई लेनदेन नहीं किया गया और बिना उस की जानकारी के पैसा गलत तरह से गायब हुआ है.

संकट सिर्फ यही नहीं है कि 32 लाख डेबिट कार्ड साइबर अपराधियों के कब्जे में हैं, बल्कि वीसा, मास्टर कार्ड समेत विदेश से संचालित एटीएम और डिजिटल लेनदेन में वायरस संक्रमण से जमापूंजी भी खतरे में है. भारतीय स्टेट बैंक ने लाखों डेबिट कार्ड बदल दिए हैं. अन्य बैंकों ने सुरक्षित लेनदेन के लिए ग्राहकों को निर्देश जारी कर दिए हैं, लेकिन क्या एटीएम या नेट बैंकिंग से पिन बदल देने से आप की जमापूंजी की सुरक्षा की गारंटी है. क्योंकि पुराना पिन लीक हो सकता है तो नया पिन भी तो लीक हो सकता है.

इंटरनेट औफ थिंग्स और साइबर क्राइम इंटरनेट नित नई तरक्की कर रहा है, जिस से यह जिंदगी का एक जरूरी अंग बन गया है. इस से न सिर्फ संचार जगत में क्रांतिकारी बदलाव हुए हैं, बल्कि जीवनशैली ही बदल गई है. शिक्षा, मैडिकल, हेल्थ, मनोरंजन, सभी क्षेत्रों में इंटरनेट अपने कारनामे दिखा रहा है. इंटरनेट औफ थिंग्स के जरिए ऐसे कारनामे करने को तैयार हैं, जिस के बारे में हम सोच भी नहीं सकते. वैसे यह कंप्यूटर आधारित तकनीक रही है, लेकिन स्मार्ट फोन के आने से यह धारणा खत्म हो गई है.

स्मार्ट फोन के आने से इंटरनेट के वे सारे काम अब फोन पर किए जा सकते हैं, जो पहले कंप्यूटर पर किए जाते थे. स्मार्ट फोन से कई मूलभूत बदलाव आए हैं. अब फोन ही नहीं, घर गाड़ी और किचन भी स्मार्ट होंगे. मसलन घर के बाहर रहते हुए भी घर की देखभाल की जा सकेगी. आप घर पहुंचने से पहले ही एसी चला सकते हैं. यानी जो काम पहले हम मैनुअली करते थे, अब वही काम औटो मोड पर होंगे. इस के लिए वहां किसी के मौजूद रहने की जरूरत नहीं होगी और यह सब होगा इंटरनेट औफ थिंग्स के जरिए. लेकिन जिस तरह हर मांबाप को बच्चों की अच्छाईबुराई का डर होता है, उसी तरह फादर आफ इंटरनेट कहे जाने वाले विंट सर्फ भी इंटरनेट औफ थिंग्स (आईओटी) को ले कर थोड़ा डरे हुए हैं. चूंकि आईओटी अप्लायंसेज और साफ्टवेयर से मिल कर बना है, इसलिए साफ्टवेयर को ले कर उन्हें डर है, क्योंकि साफ्टवेयर को हैक किया जा सकता है. यही एक तरह का साइबर अपराध होगा.

साइबर क्राइम आज एक बढ़ती हुई वैश्विक समस्या है. इस में किसी व्यक्ति की निजी जानकारी पता कर के धोखाधड़ी करना, क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड के बारे में पता कर के चूना लगाना, अहम सूचनाओं की चोरी करना, ब्लैकमेलिंग, कौपीराइट और ट्रेडमार्क फ्रौड, पोर्नोग्राफी डिटेल या अन्य एकाउंट हैक करना, वायरस भेज कर धमकी भरे मैसेज भेजना शामिल है. इस तरह के अपराध कोई अकेले नहीं, बल्कि संगठित गिरोह बना कर किए जाते हैं. पिछले साल साइबर क्राइम से लगभग एक खरब डौलर का चूना लगाया गया है. जबकि इस के शिकार हुए लोगों को पता नहीं कि वे खुद को कैसे सुरक्षित बनाएं. पुलिस के पास भी कोई ऐसी आधारभूत सुविधाएं नहीं हैं कि वह कुछ मदद कर सकें. जबकि दिनोंदिन साइबर अपराध बढ़ता ही जा रहा है.

साइबर आतंकवाद और साइबर युद्ध साइबर आतंकवाद का मतलब आतंकवादी गतिविधियों में इंटरनेट आधारित हमले यानी कंप्यूटर वायरस जैसे साधनों के माध्यम से कंप्यूटर नेटवर्क में जानबूझ कर बडे़ पैमाने पर किया गया व्यवधान, विशेष रूप से इंटरनेट से जुड़े निजी कंप्यूटर पर. इसी तरह साइबर युद्ध भी इंटरनेट और कंप्यूटर के माध्यम से लड़ा जाता है. अनेक विकासशील देश लगातार साइबर आतंकवाद या युद्ध चलाते हैं, यही नहीं वे किसी संभावित साइबर हमले के लिए तैयार भी रहते हैं. लगातार तकनीक पर बढ़ती जा रही निर्भरता के कारण अब लगभग सभी देशों को साइबर हमले की चिंता सताने लगी है. ऐसे हमलों में वायरस की मदद से वेबसाइटें ठप कर दी जाती हैं और सरकार एवं उद्योग जगत को पंगु बना दिया जाता है.

साइबर युद्ध में तकनीकी उपकरणों एवं अवसंरचना को भारी नुकसान होता है. कुशल साइबर योद्धा किसी भी देश की विद्युत ग्रिडों में हैकिंग द्वारा घुस कर अत्यधिक गोपनीय सैन्य और अन्य जानकारियां प्राप्त कर सकता है. यही नहीं, हैकर किसी कंपनी के कंप्यूटरों पर वायरस द्वारा कब्जा कर के तमाम डाटा एनक्रिप्ट (कूटरचित) कर देते हैं. बाद में डाटा को वापस काम लायक बनाने यानी डीक्रिप्ट करने के लिए ये कंपनी की हैसियत के हिसाब से फिरौती वसूलते हैं. कंपनियां अपनी साख बचाने के लिए चुपचाप फिरौती दे भी देती हैं. यह फिरौती हैकर डालर में नहीं, बल्कि बिटकौइन में लेते हैं. बिटकौइन साइबर जगत की पसंदीदा डिजिटल क्रिप्टोकरेंसी है. इंटरनेट पर लेनदेन के लिए पूरी तरह सुरिक्षत, गुप्त और अनामी रूप से रह कर लेनदेन हेतु ही इस

करेंसी को डिजाइन किया गया है. इस का कोई भौतिक रूप नहीं है, इसलिए इसे डिजिटल करेंसी कहा जाता है. इस करेंसी की कीमत मांग और सप्लाई के आधार पर रोज निर्धारित होती है. इस पर किसी का अधिकार नहीं है. एक बार साइबर संसार में आ जाने के बाद जिस के पास जितनी बिटकौइन होती है, वही उस का मालिक होता है. संक्षेप में यह समझ लें कि बिटकाइन के जरिए किया गया इंटरनेटी व्यापार, खरीदबिक्री, भुगतान का किसी को पता नहीं चलता. इसीलिए हैकर बिटकौइन में भुगतान मांगते हैं, ताकि उन तक पहुंचना किसी भी सूरत में संभव न हो. हैकर पूरी दुनिया को अपना शिकार मानते हैं. इसलिए पूरी तरह अंतरराष्ट्रीय होते हुए भी विविध क्षेत्रों में क्षेत्रीय भाषाओं में बातचीत करते हैं. इस के लिए ये स्वचालित गूगल अनुवादक का उपयोग करते हैं.

दुनिया में बढ़ते साइबर खतरे इंटरनेट की व्यापकता और आम लोगों तक इस की आसान पहुंच के कारण औनलाइन कारोबार या कामकाज का दायरा दुनिया भर में तेजी से बढ़ा है. लेकिन इस सुगमता के साथ साइबर अपराध में आई नई चुनौती भी लगातार विकराल हो रही है. अन्य अपराधों की तरह साइबर अपराधों में अपराधी अपराध स्थल पर खुद मौजूद नहीं होता.

इस में मुख्य रूप से तकनीक का इस्तेमाल होता है. भारत में जहां ज्यादातर इंटरनेट उपयोगकर्ता नए हैं, उन्हें आसानी से शिकार बनाया जा सकता है. कभी लुभावने विज्ञापनों से तो कभी आकर्षक उपहारों और इनामी योजनाओं के ईमेल या वेबसाइट पर भड़कीले विज्ञापन डाल कर. चूंकि इस्तेमाल करने वाला इन की बारीकियों को ज्यादा नहीं जानता, इसलिए आसानी से शिकार बन जाता है.

छोटीछोटी कंपनियां व्यवसाय बढ़ाने के लिए औनलाइन गतिविधियों को बढ़ावा देती हैं, पर लागत खर्च को कम करने के लिए औनलाइन सुरक्षा पर ध्यान नहीं देतीं. ऐसे में उन के लिए हमेशा खतरा बना रहता है. साइबर अपराध अब सोशल नेटवर्किंग हैकिंग तक ही नहीं रह गया है, इस ने भी अपना बिजनैस बढ़ा लिया है. अब यह बिजनैस सिर्फ बैडरूम और एक सिस्टम तक नहीं रहा, इस का भी दायरा काफी बड़ा है.

सरकारें भी शामिल हैं इस अपराध में क्योंकि इस अपराध में अब कई देशों की सरकारें, औनलाइन गैंग और बड़े अपराधी शामिल हैं, जिन का साथ दे रहे हैं औनलाइन फोरम. दरअसल, औनलाइन फोरम एक तरह का बाजार है, जहां पर अपराधी चोरी किया हुआ डेटा खरीद या बेच सकते हैं.

भारत के किसी भी शहर से लेकर विदेशों तक साइबर क्राइम करवाने में एक कम्युनिटी मदद कर रही है. बस एक क्लिक में कहीं का भी डेटा आप के पास हाजिर हो जाएगा. इतना ही नहीं, कई ऐसी भी साइट्स हैं, जो ऐसे कामों को अंजाम देने की ट्रेनिंग देती हैं. माना जा रहा है कि देश में चलने वाले काल सेंटर भी भीतरी धोखाधड़ी में लगे हैं. भारत समेत चीन, रूस और ब्राजील जैसे देश इस साइबर अपराध से परेशान हैं.

हालांकि भारत में इस मामले में जागरूकता बढ़ी है और सरकार ने सन 2000 में आईटी एक्ट बनाया और सन 2008 में उसे संशोधित भी किया, लेकिन साइबर अपराध पर इस से कुछ खास फर्क नहीं पड़ा. देश में साइबर अपराध से निपटने के लिए जो आईटी एक्ट बना है, उस में वेबसाइट ब्लौक करने तक का प्रावधान है, लेकिन यह एक्ट देश के अंदर भी पूरी तरह से लागू नहीं हो पा रहा है.

कानूनी प्रावधानों के बावजूद अकसर लोग किसी के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट कर देते हैं. लगातार डेबिट/क्रेडिट कार्डों से धोखाधड़ी हो रही है. नियमानुसार पुलिस आपत्तिजनक पोस्ट करने वाले से पोस्ट हटाने को कहती है, अगर वह हटा लेता है तो ठीक, नहीं तो उसे 3 साल तक की सजा हो सकती है. कंप्यूटर द्वारा किया गया कोई भी अपराध साइबर क्राइम में आता है. जिस में 7 साल की जेल हो सकती है. लेकिन इंटरनेट से धोखा देने और रकम उड़ाने की खबरें रोज आ रही हैं. क्योंकि यहां डेबिट/क्रेडिट कार्ड की डिटेल्स को हैक करना आसान है.

भारत में साइबर क्राइम से निपटने के लिए कानून तो बने हैं, लेकिन साइबर अपराध से जुड़े कानून ज्यादा कारगर नहीं हैं. क्योंकि एक तो जल्दी लोग शिकायत नहीं करते, अगर करते भी हैं, तो सबूत नहीं दे पाते. फिर कड़ी सजा न होने की वजह से अपराधी डरते भी नहीं हैं. इस की एक वजह यह भी है कि इस में तुरंत जमानत मिल जाती है. इसलिए साइबर अपराध से बचने के लिए खुद ही ऐहतियात बरतें तो ज्यादा ठीक रहेगा.

इस की एक वजह यह भी है कि पुलिस वालों को खुद ही पता नहीं कि जिस अपराध की शिकायत उन से की जा रही है, वह किस धारा के अंतर्गत आता है. इस के अलावा उन के पास साइबर अपराध करने वाले तक पहुंचने का कोई उपाय भी नहीं है. इस के लिए उन्हें दूसरों का ही सहारा लेना पड़ता है.

माया को 26 साल बाद पता चला क्यों थी बीमार

महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी ऐसी अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिन के बारे में वे किसी से चर्चा तक नहीं कर पातीं. पैडवूमन के नाम से मशहूर हो चुकी माया विश्वकर्मा ऐसी ही महिलाओं को इस तरह से जागरूक कर
रही हैं कि…

अभिनेता अक्षयकुमार की फिल्म ‘पैडमैन’ ने उन्हें पैडमैन के रूप में ख्याति दिलाई है तो देश में अब एक एनआरआई माया विश्वकर्मा पैडवूमन के किरदार में तेजी से उभर कर सामने आई हैं. उन्होंने मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाके में न केवल सैनिटरी पैड बनाने की यूनिट लगाई है, बल्कि वह इस बारे में गांवगांव जा कर महिलाओं को जागरूक भी कर रही हैं. दूरदराज के सरकारी स्कूल कालेजों में माया छात्राओं की क्लास लगा कर उन से माहवारी में उपयोग किए जाने वाले सैनिटरी पैड के इस्तेमाल पर खुलेआम चर्चा करती हैं.

ऐसे में छात्राएं भी बेहिचक उन से सवाल पूछ कर अपनी जिज्ञासाओं का समाधान खोजती हैं. जागरूकता फैलाने के लिए फरवरी माह में माया ने ग्रामीण इलाकों की सैकड़ों महिलाओं एवं किशोरियों को नरसिंहपुर के सिनेमा हाल में पैडमैन फिल्म दिखाई. उन के प्रयास का ही नतीजा है कि महिलाएं जिस समस्या पर पहले खुल कर बात नहीं करती थीं अब खुलेआम बेहिचक बातचीत करती नजर आने लगी हैं. माया ने 45 दिनों में 22 आदिवासी जिलों में जनजागरूकता यात्रा निकालकर एक साहसिक काम किया है.

देश के ग्रामीण इलाकों की करीब 80 फीसदी महिलाएं आज भी अपनी माहवारी के कठिन दिनों में होने वाली परेशानियों को किसी से साझा नहीं कर पातीं. हालात ये हैं कि बेटी अपनी मां, पत्नी अपने पति से भी इस विषय पर बात करने से कतराती है. पिछले 2 वर्ष से मासिक धर्म के दौरान साफसफाई पर कार्य कर रही अप्रवासी भारतीय माया विश्वकर्मा ने महिलाओं की इसी झिझक को दूर करने एवं सैनिटरी नैपकिन के उपयोग के प्रति महिलाओं को जागरूक करने का एक अभियान चलाया है. यही कारण है कि अब माया को पैडवूमन के नाम से जाना जाता है.

मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के मेहरा गांव में जन्मी माया विश्वकर्मा की कहानी महिलाओं के लिए प्रेरणादायक है. साईंखेड़ा कस्बे के सरकारी स्कूल से हायर सेकेंडरी स्कूल की पढ़ाई करने के बाद माया के घर के हालात ऐसे नहीं थे कि वह आगे की पढ़ाई कर सकें. ऐसे में उन्होंने बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर अपनी कालेज की पढ़ाई पूरी की. ऐसे हालात में पोस्टग्रैजुएट कर के माया ने आर्थिक रूप से कमजोर उन छात्राओं के लिए एक उदाहरण पेश किया जो किसी वजह से कालेज तक नहीं पहुंच पातीं. माया एक डाक्टर बनना चाहती थीं. उन्होंने मैडिकल की प्रवेश परीक्षा पास की और दिल्ली के एम्स अस्पताल में उन्हें मैडिकल की पढ़ाई पूरी करने का मौका मिला. एमबीबीएस करने के बाद माया ब्लड कैंसर पर रिसर्च के लिए अमेरिका के कैलिफोर्निया पहुंच गईं. इस के साथसाथ वह समाजसेवा से भी जुड़ी रहीं.

माया अरविंद केजरीवाल से परिचित थीं. राजनीतिक पार्टी बनाने के बाद सन 2014 में अरविंद केजरीवाल ने उन्हें लोकसभा चुनाव लड़ने का औफर दिया तो माया ने होशंगाबाद संसदीय क्षेत्र से आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा. वह यह चुनाव तो नहीं जीत सकीं, लेकिन इस चुनाव ने माया का कार्यक्षेत्र ही नहीं, बल्कि सोच जरूर बदल दी.

चुनाव प्रचार के दौरान माया को गांव में भी ठहरना पड़ता था. इसी दौरान औरतों से मुलाकात के दरम्यान उन्होंने यह बात महसूस की कि पीरिएड्स को लेकर उन्हें काफी परेशानियों से गुजरना पड़ता है. बस उसी समय उन्होंने ठान लिया कि वह इस दिशा में कुछ ठोस काम करेंगी.

माया ने राजनीति से तौबा कर लिया और वह गांवों में जा कर महिलाओं के समूह से मिल कर पीरियड्स और दूसरी समस्याओं पर बात करने लगीं. तब उन्होंने महसूस किया कि जिस तरह से पीरियड्स संबंधी समस्याएं आ रही हैं उन के मूल में साफसफाई और जागरूकता की कमी है. इसलिए ग्रामीण और आदिवासी महिलाओं को जागरूक करने की दिशा में माया ने कदम उठाया.
माया अपनी आपबीती बताते हुए कहती हैं कि ‘26 साल की उम्र तक मैंने भी कभी सैनिटरी पैड का इस्तेमाल नहीं किया. न तो इस के लिए मेरे पास पैसे थे और ना ही मुझे इस की जानकारी थी. उन दिनों में अनुपयोगी कपड़ों के इस्तेमाल से सेहत संबंधी परेशानियों का भी सामना किया.’

 

उन्हें पहली बार उन की मामी ने कपड़े के इस्तेमाल के बारे में बताया था. लेकिन कपड़े के उपयोग से उन्हें कई प्रकार के इंफेक्शन से शारीरिक परेशानियों का सामना भी करना पड़ा था. दिल्ली के एम्स में पढ़ाई के दौरान माया को पता चला कि उन के इंफेक्शन की वजह यही कपड़े थे.

मध्य प्रदेश के स्कूलकालेजों में जा कर माया सेमिनार कर छात्राओं के बीच सैनिटरी पैड की चर्चा ही नहीं करतीं बल्कि पैड के इस्तेमाल करने के तरीके भी सिखाती हैं. नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक 15 से 24 साल की लड़कियों में केवल 42 फीसदी ही सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं. इस वजह से माया का यह अभियान प्रदेश के 22 आदिवासी विकासखंडों को फोकस कर के चलाया जा रहा है.

पैडवूमन के नाम से मशहूर हो चुकीं माया का लंबे समय से यह सपना था कि वह सैनिटरी पैड बनाने की मशीन लगा कर अपने अभियान को आगे बढ़ाएं. इस के लिए वह बाकायदा भारत में पैडमैन के नाम से मशहूर अरुणाचलम मुरुगनंथम से मुलाकात करने तमिलनाडु गईं तो पता चला कि जिस मशीन से पैड बनाने का कार्य किया जाता है, उस में हाथ का काम ज्यादा होता है. माया को इस से बेहतर मशीन की दरकार थी. माया ने पैडमैन के अनुभवों का लाभ लिया.

माया ने अपने दोस्तों से पैसे उधार लेकर और सुकर्मा फाउंडेशन के जरिए नरसिंहपुर के झिरना रोड पर छोटे से गांव में 2 कमरों के मकान में सैनिटरी पैड बनाने की मशीनें लगा लीं. मशीनों पर काम करने के लिए उन्होंने 10 महिलाओं को इस में रोजगार दिया.

उन के यहां रोजाना करीब एक हजार पैड बनाए जाते हैं. पैड के बारे में जानकारी देते  हुए माया कहती हैं, ‘हम 2 तरह के पैड बनाते हैं एक तो वुड पल्प जिस में काटन का इस्तेमाल होता है और दूसरा पालीमर शीट के साथ बनाया जाता है. इस दौरान काम करने वाली महिलाओं और दूसरों की हाइजीन संबंधी जरूरतों का भी ध्यान रखा जाता है.’

फिल्म पैडमैन के संबंध में पूछे जाने वाले सवाल पर माया कहती हैं कि इस तरह की फिल्में पीरिएड्स जैसे विषयों पर जागरूकता पैदा करती हैं, लेकिन मैं उन इलाकों में काम करती हूं जहां न तो थिएटर हैं और न ही इंटरनेट. ऐसे इलाकों में काम करने के लिए पैडवूमन की जरूरत है और इसे मैं ने पूरा करने का संकल्प लिया है. उन का कहना है कि लोग मुझे किसी भी नाम से बुलाएं इस से कोई फर्क नहीं पड़ता. परंतु मैं चाहती हूं कि महिलाएं पीरिएड्स और पैड के बारे में जानें और समझें.
बहरहाल यह कदम माया को पैडवूमन के तौर पर लोकप्रिय तो बना ही रहा है साथ ही ग्रामीण महिलाओं के स्वास्थ्य सुधार में उपयोगी सिद्ध हो रहा है.
— लेख माया विश्वकर्मा से हुई
बातचीत पर आधारित

परीक्षा के दिन कहां गायब हुआ बिजनैसमैन का बेटा अर्णव

 

संतोष लखनऊ के एक बड़े बिजनैसमैन अनूप अग्रवाल के यहां ड्राइवर था. मोटी फिरौती पाने के लालच में संतोष ने अपने 2 दोस्तों के साथ मिलकर अपने मालिक के बेटे अर्णव का अपहरण कर लिया था. लेकिन पुलिस की तत्पर काररवाई की वजह से उन के मंसूबे पूरे नहीं हो सके.

‘‘संतोष तुम्हारे पास पैसे तो बहुत होते हैं, फिर भी तुम पैसों की चिंता में रहते हो, क्यों भाई? तुम्हारा मालिक भी तुम पर कितना भरोसा करता है. पैसा, गाड़ी सब तुम्हारे भरोसे पर रखा है.’’ प्रिंटिंग प्रैस में काम करने वाले अजय ने अपने दोस्त संतोष को समझाते हुए कहा.

‘‘यार तुम लोगों को लगता है कि जो पैसा, गाड़ी है, वह मेरे लिए है. तुम लोग बहुत भोले और नासमझ हो. तुम्हें पता होना चाहिए कि हर मालिक अपने काम से काम रखता है. जब तक उस का काम रहता है, तब तक गाड़ी और पैसा सब देगा. काम निकलने के बाद न गाड़ी देगा और न पैसा. हम जैसों को कुत्ता समझते हैं. एक गलती करो तो 10 गाली मिलती हैं और नौकरी से निकालने की धमकी अलग.’’ संतोष पर शराब का नशा चढ़ चुका था. वह अपने मन की भड़ास निकालते हुए बोला.

‘‘संतोष, तुम अजय भाई की बात को समझो कि वह कहना क्या चाहते हैं? हम तीनों में सब से ज्यादा खुशहाल तुम्हारा ही मालिक है. तुम ही कुछ कर सकते हो.’’ संतोष और अजय के तीसरे दोस्त सर्वेश ने दोनों के बीच में हस्तक्षेप करते हुए कहा.

‘‘बात तो हम समझते हैं अजय भाई, पर करें क्या. यह नहीं समझ आ रहा है. हम उस से कैसे पैसे निकालें. तुम लोग बताओ, हम हर काम करने को तैयार हैं.’’ संतोष ने कहा.
‘‘संतोष भाई, तुम्हारा मालिक मोटी मुरगी है. बस तुम उस की कमजोर नस दबा दो, वह खुद मुंहमांगी रकम दे देगा.
फिल्में नहीं देखते, मालिकों से कैसे पैसा लिया जाता है.’’ अजय ने संतोष को समझाया.
‘‘बात समझ में आ गई अजय भाई, हम रोजाना उस के बेटे को स्कूल छोड़ने जाते हैं. एक दिन हम यही तोता अपने पिंजरे में पाल लेंगे और तभी आजाद करेंगे, जब पैसा मिलेगा नहीं तो तोते को दुनिया से आजाद कर देंगे.’’

शराब के नशे में संतोष यह सोच ही नहीं पा रहा था कि उस के कदम अपराध की तरफ बढ़ रहे हैं. बातों में उस के दोस्त अजय और सर्वेश उसे उकसा रहे थे. बातोंबातों में तीनों ने एक ही झटके में मोटा पैसा कमाने की योजना बना ली. असल में संतोष राणा प्रताप मार्ग स्थित सूर्योदय कालोनी में रहने वाले अनूप अग्रवाल के घर में गाड़ी चलाने का काम करता था. अनूप अग्रवाल लखनऊ के बड़े बिजनैसमैन थे. उन की बेटी मुंबई में पढ़ रही थी. बेटा अर्णव लामार्टीनियर कालेज में पढ़ता था.

लामार्टीनियर कालेज लखनऊ का सब से मशहूर कालेज है और सब से सुरिक्षत इलाके में बना है. जहां से कुछ ही दूरी पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का आवास है. सूर्योदय कालोनी से लामार्टीनियर कालेज की दूरी बामुश्किल 3 किलोमीटर है. अनूप रोज अपने ड्राइवर संतोष के साथ अपनी कार से उसे स्कूल भेजते थे, वही दोपहर में अर्णव को लेने भी जाता था.

अनूप ने 10 माह पहले ही संतोष को अपने यहां ड्राइवर रखा था. संतोष मूलरूप से सीतापुर जिले के खैराबाद का रहने वाला था. वह अनूप के बिजनैस से जुड़े लेनदेन के काम भी करता था. उसे पूरे व्यापार के बारे में पता था. संतोष अनूप के घर से कुछ ही दूरी पर किराए का कमरा लेकर रहता था.

ऐसे में जरूरत पड़ने पर वह जल्दी ही अनूप के घर आ जाता था. अपने दोस्तों के साथ नशे में हुई बातचीत के बाद संतोष अब कुछ ऐसा करना चाहता था, जिस से उसे बहुत सारा पैसा मिल जाए. अनूप की अच्छी कमाई देख कर उसे लालच आ चुका था.

19 मार्च, 2018 की सुबह करीब 9 बजे थे. संतोष अर्णव को एसयूवी कार से स्कूल के लिए घर से निकला. साढ़े 9 बजे से उस की परीक्षा थी. वह जल्दी से जल्दी स्कूल पहुंचना चाहता था. रोजाना वह अपने घर से हजरतगंज होते स्कूल जाता था. लेकिन उस दिन संतोष ने कार 1090 चौराहे से गोमती नगर की तरफ मोड़ दी. अर्णव ने कारण पूछा तो संतोष बोला, ‘‘हजरतगंज में जाम है. स्कूल के लिए देर हो जाएगी.’’ अर्णव कक्षा 9 में पढ़ता था. उसे परीक्षा की टेंशन थी, इसलिए वह चुपचाप अपनी बुक्स देखने लगा.

अर्णव को लेकर कार 1090 चौराहे पहुंची तो संतोष का दोस्त अजय गाड़ी के सामने आ गया. संतोष दरवाजा खोल कर गाड़ी के नीचे उतरा तो उसे डांटने लगा. जब तक अर्णव कुछ समझ पाता, तब तक संतोष अपनी सीट पर बैठ गया और अजय अर्णव की बगल बैठ गया.

अजय ने बैठते ही उस की कमर से तमंचा लगा कर उसे चुप रहने के लिए कहा. गाड़ी वापस मुड़ कर सीतापुर रोड की तरफ जाने लगी. इस बीच अर्णव को नशे का इंजेक्शन देकर बेहोश कर दिया गया था. अर्णव को इन लोगों ने बोरे में भर कर पिछली सीट पर डाल दिया. गाड़ी अब सीतापुर रोड से होते हुए आगे निकल गई थी.

अर्णव को स्कूल छोड़ कर जब संतोष घर नहीं आया तो पहले घर वालों को लगा कि वह कहीं किसी काम से चला गया होगा. लेकिन स्कूल से फोन आ गया कि अर्णव की आज परीक्षा थी, वह स्कूल नहीं आया. इस पर घर वालों से संतोष के मोबाइल नंबर पर फोन करना शुरू किया तो वह बंद मिला.
कुछ देर में यह बात साफ हो गई कि ड्राइवर संतोष अर्णव को लेकर गायब हो गया है. इसके बाद घर, परिवार के लोग और रिश्तेदार एकत्र हो गए. मोहल्ले में कोहराम मच गया. तत्काल लखनऊ पुलिस को सूचना दी गई.

उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री ब्रजेश पाठक के अग्रवाल परिवार से करीबी रिश्ते थे, उन से यह बात बताई गई. उन्होंने लखनऊ के एसएसपी से कहा. लखनऊ के एसएसपी दीपक कुमार ने तुरंत पुलिस की एक टीम बना कर एएसपी (पूर्वी) सर्वेश कुमार मिश्रा को इस मामले को संभालने को कहा.
लामार्टिनियर कालेज लखनऊ का प्रतिष्ठित कालेज है. वहां के बच्चे के अपहरण की सूचना से उत्तर प्रदेश पुलिस के आला अफसर भी चौकन्ने हो गए. डीजीपी ओ.पी. सिंह ने आईजी सुजीत पांडे को मामले में त्वरित काररवाई करने के लिए कहा.

स्थानीय पुलिस के साथ उत्तर प्रदेश की स्पैशल टास्क फोर्स को भी इस में लगा दिया गया. एसटीएफ के आईजी अमिताभ यश छुट्टी पर थे. उन की छुट्टी रद्द कर के उन्हें भी मामले में लगा दिया गया. अनूप अग्रवाल का घर हजरतगंज थाना क्षेत्र में आता है. वहां के इंसपेक्टर आनंद शाही भी छुट्टी पर थे. उन्हें भी तुरंत बुलाया गया. पूरे लखनऊ की पुलिस एक घंटे में अलर्ट हो गई. गाड़ी नंबर सभी थानों को भेज दिया गया. टोल प्लाजा पर कार का नंबर चेक किया गया तो यह बात साफ हो गई कि कार सीतापुर जिले की तरफ गई है.

इंटौला थाने के इंसपेक्टर शिवशंकर सिंह ने बताया कि अनूप की गाड़ी टोल प्लाजा से 9 बज कर 29 मिनट 52 सेकेंड पर गुजरी है. इस में 3 लोग दिख रहे थे. सीसीटीवी फुटेज में ड्राइवर का चेहरा साफ नहीं दिखा, पर पुलिस को यह पता चल चुका था कि कार अर्णव को ले कर सीतापुर की तरफ गई है. यह सूचना मिलते ही लखनऊ पुलिस ने सीतापुर पुलिस से संपर्क किया. उन्होंने एसपी आनंद कुलकर्णी को इस घटना की सूचना दे दी.

इस के बाद सीतापुर पुलिस ने घेराबंदी तेज कर दी. लखनऊ पुलिस ने संतोष का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा रखा था. सीओ हजरतगंज अभय कुमार मिश्रा, इंसपेक्टर आनंद शाही और इंसपेक्टर कृष्णानगर अंजनी पांडेय ड्राइवर संतोष की काल डिटेल्स खंगाल रहे थे. इस में 3 फोन नंबर ऐसे मिले, जिन की सुबह 10 बजे से आपस में बातचीत हुई थी. इन में एक नंबर बंद हो गया था,

जबकि बाकी के 2 नंबरों की लोकेशन सीतापुर के मानपुर गांव में दिख रही थी. मानपुर गांव खैराबाद पुलिस थाना क्षेत्र में आता है. वहां की पुलिस को एलर्ट किया गया. खैराबाद की पुलिस जब मानपुर पहुंची तो पुलिस को मोड़ पर ही कुछ लोग मिल गए उन्होंने बताया कि एक लाल रंग की कार खेत की तरफ गई है. पुलिस वहां गई तो ड्राइवर संतोष और अर्णव खेत में ही मिल गए. सीतापुर पुलिस ने जब इन लोगों को पकड़ा, तब तक अर्णव के पिता अनूप को लेकर लखनऊ पुलिस भी वहां पहुंच चुकी थी.

पूछताछ में संतोष ने बताया कि अपहरण की साजिश उस ने अपने मौसेरे भाई कासिमपुर सीतापुर निवासी सर्वेश यादव और पारा रोड निवासी दोस्त अजय के साथ मिल कर रची थी. लखनऊ से अर्णव को अगवा करने में संतोष और अजय शामिल थे.

सर्वेश ने उन के छिपने की व्यवस्था की थी. कार को खेत में खड़ा कर के संतोष और अर्णव को वहीं छोड़ कर सर्वेश और अजय टोह लेने लखनऊ चले गए थे. पुलिस ने जब अर्णव को बरामद किया तो उस ने बताया कि ड्राइवर संतोष ने उसे बताया था कि बदमाशों ने दोनों को अगवा कर लिया है. उस ने मुझे भी चुपचाप खेत में छिपे रहने को कहा था. अगवा करने वाले कुछ भी कर सकते हैं,इसलिए हम ने शोर नहीं मचाया. कार में ही अर्णव का बैग मिला. पुलिस संतोष और अर्णव को लेकर लखनऊ चली आई जिस ने भी अपहरण की घटना में ड्राइवर संतोष का नाम सुना हैरान था कि वह ऐसा कैसे कर सकता है.

पुलिस के साथ पिता को देख कर अर्णव उन से लिपट कर रोने लगा था. उसे पिता ने बताया कि संतोष ने ही यह सारा काम किया है. तब अर्णव को भरोसा हुआ कि संतोष कितना बुरा आदमी है. अर्णव को सकुशल बरामद कर के पुलिस ने राहत की सांस ली. लखनऊ के एसएसपी दीपक कुमार का अगला प्रयास 2 अपहर्त्ताओं अजय और सर्वेश को गिरफ्तार करना था. पुलिस ने उन की तलाश शुरू कर दी. 20 मार्च की शाम को पुलिस को पता चला कि दोनों फरार अभियुक्त बैकुंठ धाम के पास गोमती नदी के किनारेहैं. पुलिस ने वहां पर घेराबंदी की तो खुद को फंसता देख अभियुक्तों ने पुलिस टीम पर फायर कर दिया.

इसके जवाब में पुलिस ने भी फायरिंग की तो अजय के पैर में गोली लग गई. वह घायल हो गया. दूसरा अभियुक्त फरार हो गया. अजय के पिता सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते हैं. उन के साथ ही वह रहता था. पिता को यह पता भी  नहीं था कि बेटा अपहरण में लिप्त है.

मुठभेड़ में शामिल पुलिस टीम के सीओ (हजरतगंज) अभय कुमार मिश्रा, इंसपेक्टर आनंद कुमार शाही, अंजनी कुमार पांडेय, शिवशंकर सिंह, एसआई आशीष द्विवेदी, कांस्टेबल सुदीप, राम निवास, अनीस, यशकांत, सुधीर, वीर सिंह के कार्य की एसएसपी ने भी सराहना करते हुए उन्हें पुरस्कृत किया. डीजी ओ.पी. सिंह ने पुलिस टीम को चाय पार्टी दी.

डीजीपी ने आईजी सुजीत पांडेय, एसएसपी दीपक कुमार, सीतापुर के एसपी आनंद कुलकर्णी की भी तारीफ की. जिस तरह से पुलिस ने केवल 4 घंटे में बच्चे को बरामद कर बदमाशों को पकड़ा उस से लगता है कि अगर पुलिस सही तरह से तालमेल मिला कर काम करे तो अपराधियों के हौसले पस्त होते देर नहीं लगेगी.
कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित कथा में कुछ पात्रों के नाम परिवर्तित हैं.

डायन निकालने के नाम पर लड़कियों के प्राइवेट पार्ट्स से खिलवाड़ करता था अघोरी

आज के कंप्यूटर युग में टेक्नोलौजी भले ही कितनी भी उन्नत हो गई हो, भारत में कहींकहीं अंधविश्वास का अंधेरा इतना गहरा है कि बदलाव की किरणें वहां पहुंच ही नहीं सकतीं. यही वजह है कि राजस्थान में आज भी औरतों को डायन बता कर जुल्म ढाए जाते हैं.

जून की दहकती दोपहर का दहला देने वाला दृश्य था. बीहड़ सरीखे सघन जंगल के बीच बने विशाल मंदिर के बाहर लंबेचौड़े दालान में एकत्र सैकड़ों स्त्रीपुरुषों की भीड़ टकटकी लगाए उस लोमहर्षक मंजर को देख रही थी. सुर्ख अंगारों की तरह दहकती आंखों और शराब के नशे में धुत अघोरी जैसे लगने वाले 2 भोपे (ओझा) बेरहमी के साथ 4 युवतियों की जूतों से पिटाई कर रहे थे.

अंगारे सी बरसती धूप की चुभन और दर्द से बेहाल युवतियां चीखती चिल्लाती तपते आंगन में लोटपोट हुई जा रही थीं. धूप से बचने के लिए तमाशाई आंगन के ओसारों की छाया में सरक आए थे. जिस निर्विकार भाव से लोग इस जल्लादी जुल्म का नजारा देख रहे थे, उस से लगता था कि यह सब उन के लिए नया नहीं था. लगभग एक घंटे तक अनवरत चलने वाली इस दरिंदगी से युवतियां बुरी तरह लस्तपस्त और निढाल हो चुकी थीं. उन पर गुर्राते और गंदी गालियों की बौछार करते भोपे उन्हें बालों से घसीटते हुए फिर से खड़ा करने की मशक्कत में जुट गए.

नारकीय यातना का यह सिलसिला यहीं नहीं थमा, अब उन्हें पीठ के बल रेंगतेघिसटते मंदिर की तपती सुलगती 200 सीढि़यां तय करनी थी. जल्लादी जुल्म ढाने वाले आतताइयों को भी मात करने वाले इन दरिंदों की चाबुक सरीखी फटकार के आगे बेबस युवतियों ने यह काम भी किया. तब तक उन के कपड़े तारतार हो चुके थे, पीठ और कोहनियां छिलने के साथ बुरी तरह लहूलुहान हो गई थीं. हांफती, कराहती, बिलखती युवतियों पर कहर अभी थमा नहीं था.

यातना का दुष्चक्र उन्हें मारे जाने वाले जूतों के साथ आगे बढ़ता रहा. पांव उठाने तक में असमर्थ इन युवतियों को जूते सिर पर रख कर और मुंह में दबा कर 2 किलोमीटर नंगे पांव चलते देखना तो और भी भयावह था. और इस से भी कहीं ज्यादा दर्दनाक और दयनीय दृश्य था, उन जूतों में भर कर पीया जाने वाला जलकुंड का गंदा पानी.

आतंक और भय से थर्राई हुई युवतियों को जूतों में भर कर पानी पिलाया जाने वाला पानी कैसा था, इस की कल्पना मात्र ही विचलित करने वाली थी. बांक्याराणी मंदिर परिसर में ही बना है हनुमान मंदिर. इस के निकट बने जलकुंड में दिन भर में लगभग 300 से ज्यादा महिलाएं स्नान करती हैं.

समझा जा सकता है कि कुंड का पानी कितना मैला रहा होगा. इसी गंदे पानी को युवतियों को जूतों में भर कर पीने को बाध्य किया गया और वह भी एक बार नहीं लगातार 7 बार. मंदिर की जिन सीढि़यों पर महिलाओं को पीठ के बल रेंग कर उतरना होता है, वह सफेद संगमरमर की है, जो गर्मियों में भट्ठी की तरह सुलगती हैं. नतीजतन औरतों की पीठ न केवल छिल जाती है, बल्कि उस पर फफोले भी पड़ जाते हैं.

जुल्म की इंतहा तो तब होती है, जब सीढि़यां उतर चुकने के बाद भोपा उन्हें अपने सामने ज्वाला मंदिर में बिठाता है और लहूलुहान और निढाल युवतियों पर एक बार फिर जूते बरसाता है. पीड़ा से रोतीबिलखती युवतियों की दहला देने वाली चीखपुकार जब वहां मौजूद उन के परिजन ही नहीं सुनते तो और कौन सुनेगा?

भोपों के रूप में अंधविश्वास का क्रूर चेहरा राजस्थान में अंधविश्वास का यह वीभत्स और क्रूर चेहरा सिर्फ भीलवाड़ा जिले के बांक्याराणी मंदिर का ही नहीं है, बल्कि राजसमंद, बांसवाड़ा और चित्तौड़गढ़ भी महिलाओं को डायन घोषित कर के उन के कथित निवारण के नाम पर असहनीय अत्याचार के अड्डे बन गए हैं. अंधविश्वास की वजह से किसी को डायन बता कर भयानक यातनाएं देना और मार डालना सिद्ध करता है कि राजस्थान के पूर्वोत्तर समाज का एक बड़ा हिस्सा आदिम युग में जी रहा है.

इस सूबे का आदिवासी समुदाय आज भी आधुनिकता और बर्बरता के बीच असहज अस्तित्व में फंसा हुआ है. आदिवासी बहुल इलाकों में स्त्रियों को डायन घोषित कर उन्हें प्रताडि़त करना, यहां तक कि मार डालना सदियों पुराना चलन है. प्रेत निवारण की परंपरा का मूल स्वरूप क्या था और उस की शुरुआत कैसे हुई? यह जानने के लिए हमें राजस्थान के आदिवासी बहुल बांसवाड़ा के गांवों में अपने दिवंगत पूर्वजों के नाम पर पत्थर गाड़ने की परंपरा को जानना होगा,

जिसे ‘चीरा’ कहा जाता है. गाजेबाजे के साथ गाड़े गए ‘चीरे’ पर लोकदेवता की तसवीर उकेरी जाती है और विधिवत परिवार के पूर्वज का नाम अंकित किया जाता है. ये चीरे आमतौर पर खुली जगहों में होते हैं, लेकिन कहींकहीं टापरों में स्थापित किए जाते हैं. चीरे मृत स्त्रियों के नाम पर भी गाड़े जाते हैं, लेकिन बहुत कम. इन को ‘मातोर’ कह कर पूजा जाता है. ऐसे कई शिलाखंडों पर तो साल, नाम आदि भी खुदे होते हैं. जिस गांव में चीरा स्थापित किया जाना होता है, उस स्थान पर गांव की कुंवारी कन्या दूध, जल आदि से ‘बावजी’ को स्नान कराती है और कुमकुम आदि से पूजा करती है.

संभवत: ‘बावजी’ शब्द लोक देवता के लिए इस्तेमाल किया जाता है. गांव के बाहर निर्धारित स्थल ‘गोदरा’, जहां चीरे स्थापित किए जाने होते हैं, उस जगह के जानकार को खत्री कहा जाता है. खत्री चीरे के भूतवंश की पूरी जानकारी कवितामय लहजे में सुनाता है. शिलाखंडों में कथित रूप से रह रही आत्मा के आह्वान की अलग प्रक्रिया है.

खत्री ही मृतात्माओं से संवाद स्थापित करता है. उस समय खत्री के हावभाव और बोली असामान्य हो जाती है, फिर शुरू होता है भविष्य कथन और कष्ट निवारण का क्रम. मृतात्मा, जिसे खाखरिया देव माना जाता है, खत्री उस का इन शब्दों के साथ आह्वान करता है, ‘कूंकड़ो बोल्यो, नेकालू साल्यो, कालू देवती, सोनावाला ने भला, वैसे हैं भाई कारूदेव, जोड़ी रा हुंकार है…’

इस अवसर पर निकट बैठे भोपों द्वारा कांसे की थाली और ढोलमजीरों से विशेष तरह का संगीत पैदा किया जाता है, जिस की सम्मिलित ध्वनि वातावरण को अजीब माहौल में बदल देती है. आदिवासियों की प्रचलित परंपराओं को समझें तो इन देवरों के भोपे अपनी जानकारी के मुताबिक लोगों की समस्याओं के निवारण के लिए विशेष गणित का सहारा लेते हैं. यही है आदिवासियों की अपने पुरखों को ‘देव स्वरूप’ में सम्मानित करने की परंपरा. लेकिन अब ये सारी परंपराएं नष्ट हो चुकी हैं और आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों ने भोपों का रूप धारण कर नशे के उन्माद में लूटखसोट और यौनाचार को अपना कारोबार बना लिया है. अन्यथा आदिवासियों में चीरा प्रथा व्याधियों का उपचार करने, समस्याओं का निवारण करने और पूर्वजों की मृत आत्माओं का आह्वान करने की है.

बावजी आदिवासियों के लोकदेवता को कहाडायन के नाम पर मौत का नंगा नाच आदिवासी जिलों में अब तक 105 स्त्रियों को डायन का बाना पहना कर अभिशप्त घोषित किया जा चुका है, जबकि 8 महिलाओं की पीटपीट कर हत्या की जा चुकी है. साथ ही 2 दरजन महिलाओं को मारपीट कर गांवों से निकाला जा चुका है. जाता है. कुछ अरसा पहले बांसवाड़ा के पड़ारिया गांव में तैनात एक शिक्षक ने चीरे की परंपरा को वृक्षारोपण से जोड़ दिया था, लेकिन यह सब तभी तक चला, जब तक शिक्षक का दूसरी जगह स्थानांतरण नहीं हो गया. चीरों के निकट काफी संख्या में दरख्त बन चुके फलदार पेड़ इस बात की तसदीक करते हैं. दूसरी ओर सरकार ने यहां कुछ भी संवारने की पहल तक नहीं की.

स्वस्थ महिलाओं को डायन बनाने के ये आंकड़े पिछले 4 साल के हैं, लेकिन क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो के आंकड़े 4 तक भी नहीं पहुंचते. काला जादू के नाम पर भोपे आज भी आदिवासी इलाकों में अपना सिक्का जमाए हुए हैं. आस्था यहां अकसर बदला लेने का हथियार बन चुकी है.

प्रेतों से मुक्ति पाने की कहानी जहां से शुरू होती है, उसे देखना ही दहशत पैदा करता है. पीडि़त महिलाओं के परिजन ही मंदिर पहुंच कर उन्हें भोपों के हवाले कर देते हैं. भोपा इन्हें उलटे पांवों चला कर मंदिर परिसर में ले आता है. महिला को पीठ मंदिर की तरफ रखनी होती है तथा हथेलियों को प्रणाम की मुद्रा में रखना होता है.

महिला को सुलगती जमीन पर नंगे पांव चलना होता है. भोपों के बारे में कहा जाता है कि निर्दयता और दुर्दांतता में इन का कोई सानी नहीं होता. अपने जल्लादी काम में ये प्रोफेशनल की तरह पारंगत होते हैं. इन की फीस कोई निश्चित नहीं होती, हालांकि 5 सौ से हजार रुपए में ये अपनी सेवाएं उपलब्ध कराते हैं. इन भोपों को नकदी के साथ दारू भी देनी होती है, अपना काम ये नशे में धुत्त हो कर ही करते हैं. भोपों के कारोबार में मर्द और औरतें दोनों शामिल होते हैं.

बांक्याराणी मंदिर एक ट्रस्ट के अधीन है, लेकिन इस वीभत्स कारोबार में ट्रस्ट के अध्यक्ष की कोई भूमिका नहीं होती. अलबत्ता ट्रस्ट के अध्यक्ष नारायणलाल गुर्जर की मजबूरी चौंकाती है. उन का कहना है, ‘भोपों की मनमानी मंदिर ट्रस्ट के लिए मुसीबत बनी हुई है.’
नारायणलाल कहते हैं, ‘महिलाओं को इतनी दारूण यातना देना पूरी तरह अमानवीय और शैतानी कृत्य है. ट्रस्ट पूरी तरह इस के खिलाफ है. लेकिन फिर भी ये लोग डराधमका कर मनमानी पर उतारू हैं.’

बांक्याराणी मंदिर में प्रेत बाधा निवरण के नाम पर स्त्रियों के भयावह उत्पीड़न की खबरें मीडिया में सुर्खियां बनीं तो राजस्थान महिला आयोग की अध्यक्ष सुमन शर्मा बांक्याराणी मंदिर पहुंचीं भी, लेकिन पुलिस अधिकारियों को फटकार लगाने के अलावा वह कुछ नहीं कर सकीं. भोपों की भयावह कारस्तानियों का खुलासा होने पर हाईकोर्ट ने संज्ञान ले कर पुलिस प्रशासन को फटकार लगाते हुए जवाब मांगा कि बताएं कितने भोपों पर काररवाई की गई.

हाईकोर्ट की जोधपुर खंडपीठ के न्यायाधीश गोपालकृष्ण व्यास ने इस बात पर हैरानी जताई कि महिलाओं को कोई डायन कैसे बता सकता है? कानून होने के बाद भी इस तरह के मामले क्यों हो रहे हैं?
विद्वान न्यायाधीश ने तो यहां तक कहा, ‘भोपे किसी महिला को डायन न बना पाएं और उन्हें प्रताडि़त न कर सकें, इस के लिए जागरुकता अभियान चलाया जाए.’ लेकिन हाईकोर्ट की इस हिदायत पर अमल नहीं हुआ.

नतीजतन भोपों के हौसले आज भी बुलंद हैं और महिलाएं आज भी जूते मुंह में दबाए उत्पीड़न का दर्द सहने को मजबूर हैं. घिनौनी आस्था के मल कुंड में डूबे लोगों का रूझान तब बुरी तरह चौंकाता है, जब नवरात्रों में भोपों के दरबार में लोगों की भीड़ का सैलाब उमड़ने लगता है. हाईकोर्ट की सख्ती और पुलिस की दबिश का भोपों की मनमानी पर कोई असर तो क्या होता, इस के उलट वे और बेलगाम हो गए. अब तक प्रदेश के आदिवासी इलाकों में ही अंधविश्वास की परत मोटी करने वाले इन भोपों को फिल्म ‘पद्मावत’ विवाद से उफान में आए चेतन मृत्यु प्रकरण ने शहरी इलाकों में घुसपैठ करने का अवसर दे दिया.

खबरिया चैनलों ने टीवी स्क्रीन पर जो फुटेज दिखाए, उस का वर्णन करें तो नशे की तरंग और उन्माद में डूबे उन्मत्त भोपे पूरे दबदबे के साथ लोगों को डरा रहे थे और सूबे पर अंधविश्वास की काली चादर फैलाने में जुटे थे. तांत्रिकों का उत्पात और हवा में तलवारें भांजते हुए उन का डरावना अट्टहास. बदहवास लोग खबरिया चैनलों पर चकित भाव से देख रहे थे. इशारा साफ था कि भोपों को चेतन की घटना ने मौत का नाच दिखाने का अवसर दे दिया था.

भोपे अपना उन्मादी चेहरा तब दिखा रहे थे, जब तत्कालीन पुलिस महानिदेशक अजीत सिंह यह कह कर हटे ही थे कि हम ने भोपों के गिर्द शिकंजा सख्त कर दिया है. लेकिन कथित तांत्रिक चेतन के आत्मघात की घटना पर उन्मत्त भोपों ने भयाक्रांत करने वाली उछलकूद मचा कर इस बात को हवा में उड़ा दिया.
सवाल है कि भीलवाड़ा जिले के गांव निंबाहेड़ा जाटान की महिला भोपी झूमरी जीभ लपलपाते हुए कैसे तलवार चमकाने का दुस्साहस कर रही थी? सिगरेट के धुआंधार कश लगाती हुई झूमरी अपने आप को 9 देवियों का अवतार बता रही थी. कांता भोपी तो निरंतर भाला घुमाते हुए अपना दरबार लगाए हुए थी. जाहिर है कि कानून इन के ठेंगे पर था.

आतंक का गहराता साया डायन बता कर उत्पीड़न की ज्यादातर घटनाएं भीलवाड़ा और राजसमंद जिलों में हुई हैं. भीलवाड़ा के भोली गांव के दबंगों की बेटी बीमार हुई तो रामकन्या को डायन घोषित कर दिया गया. लगभग एक महीने तक दबंगों की कैद में रहने के बाद बमुश्किल छुड़ाई गई रामकन्या को 6×4 फीट की अंधेरी कोठरी में बंद कर के रखा गया था. गांव के दबंग जाट शिवराज की 9वीं कक्षा में पढ़ने वाली बेटी पूजा बीमार हुई तो भोपे के कहने पर नजला रामकन्या पर गिरा.

भोपे का कहना था, ‘इसे डायन खा रही है.’ भोपे की बात पर शिवराज का शक रामकन्या पर गया, जिस का घर पूजा के स्कूल के पास ही था. नतीजतन रामकन्या को डायन करार दे दिया गया. जिस बदतर हालत में रामकन्या को दबंगों की कैद से छुड़ाया गया, उसे देख कर डाक्टर का कहना था कि ये जिंदा कैसे बच गई? इस की हालत तो बहुत खराब है.

भीलवाड़ा में महिलाओं की स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां 20 साल में डायन प्रताड़ना के 87 मामले आ चुके हैं और इन में एक दरजन से ज्यादा महिलाओं की मौत हो चुकी है. तंत्रमंत्र की ओट में इन भोपों की व्यभिचारी मानसिकता को समझें तो चित्तौड़गढ़ जिले के पुरोली गांव का बाबा सिराजुद्दीन महिलाओं के शरीर से डायन निकालने के करतबी तरीकों में निर्लज्जता के साथ उन के प्राइवेट पार्ट्स को टटोलता है.

भीलवाड़ा जिले के भुवास गांव के भोपा देवकिशन की दरिंदगी तो देखने वालों के शरीर में सिहरन पैदा कर देती है. यह भोपा महिलाओं की पीठ पर पूरी निर्ममता से कोड़े बरसाता है और देखने वाले उफ्फ भी नहीं करते. भीलवाड़ा जिले की सुहाणा तहसील के आगरपुरा गांव की विधवा महिला रामगणी के पति और 2 बेटों की मौत के बाद उस की पुश्तैनी जमीन हथियाने के लिए पड़ोसियों ने रामगणी समेत परिवार की सभी महिलाओं को डायन घोषित कर दिया था.

कितने ही मामले संपत्ति के लिए राजसमंद जिले के रणका गांव के दबंग परिवार में एक मौत क्या हुई, डोलीबाई को डायन बता कर उसे जगहजगह गरम सलाखों से दागा गया. राजसमंद के थाली का तलागांव की केशीबाई को डायन बता नंगा कर के गधे पर बिठा कर पूरे गांव में घुमाया गया. दबंगों की नजर उस की संपत्ति पर थी.

भीलवाड़ा जिले के बालवास गांव की नंदू देवी का पूरा परिवार पिछले साढ़े 4 साल से गांव के बाहर रहने को मजबूर है. पड़ोसी डालू का बेटा क्या बीमार हुआ, भोपे ने इस का इलजाम नंदू देवी पर डाल दिया. इस के बाद तो पूरे गांव ने मिल कर उसे पीटा और गांव से बाहर कर दिया. नंदू देवी गांव आने वाले हर अजनबी से पूछती है, ‘मैं डायन होती तो क्याआज मेरा पूरा परिवार जीवित रहता?’

भीलवाड़ा की करेड़ा तहसील के ऊदलपुरा गांव की गीता बलाई की जिंदगी उसी के परिजनों ने छीन ली. पति के मंदबुद्धि होने के कारण घर और खेती का सारा काम गीता ही संभाल रही थी, जो उस की जेठानी को बरदाश्त नहीं हुआ. गीता पर डायन होने का आरोप लगा कर जेठानी उसे घनोप माता मंदिर ले गई, जहां नवरात्रों में उसे 11 दिनों तक भूखाप्यासा रखा गया. बाद में गीता जब कुएं से पानी निकाल रही थी तो जेठानी ने उसे धक्का दे दिया. कुएं में एक पेड़ पर गीता का शव 10 दिनों तक लटका रहा.

चाहे भोपा हो या भोपी, शराब के नशे में धुत्त ये डरावने चेहरे डायन निकालने के नाम पर पूरी हैवानियत पर उतारू रहते हैं. भोपों के ठौरठिकानों को अंधविश्वास की अदालतों का नाम दिया जाए तो गलत नहीं होगा.
अंधविश्वास की परत दर परत दबे इन आदिवासी इलाकों में यह सवाल आज भी अनुत्तरित है कि आखिर महिलाएं ही डायन क्यों बनती हैं? और ऐसी कौन सी वजह होती है कि महिलाओं को सामान्य जीवनयापन करतेकरते एकाएक डायन करार दे दिया जाता है? सूत्र बताते हैं कि डायन प्रताड़ना के अधिकांश मामलों में संपत्ति और जमीन हड़पने के लिए उन के नातेरिश्तेदार ही ऐसी साजिश रचते हैं. कई मामलों में लोगों ने अदावत और रंजिश के चलते महिलाओं को डायन करार दे दिया.

अलबत्ता यह एक कड़वी सच्चाई यह है कि डायन बनने का नजला अधिकांशत: उन्हीं महिलाओं पर गिरता है, जो गरीब, निराश्रित या दलित वर्ग से होती हैं. स्वाभाविक रूप से प्रश्न उठता है कि आखिर क्यों इन आदिवासी इलाकों में अंधविश्वास का अंधेरा इतना घना हो गया है कि डायन से निजात पाने के लिए आने वाली महिलाओं की कतार नहीं

थमती और न ही उन के परिजन उन्हें दहशत के तंदूर में धकेलने से बाज आते हैं?
एक पुलिस अधिकारी का कहना है कि कुछ मामलों में तो डायन बता कर की गई हत्याएं भूमाफिया का काम है. बेइंतहा दर्द की ऐसी ढेरों अंतहीन कथाएं हैं, जिन में भोपों का कहर टूटा और सामान्य जीवनयापन करने वाली औरतों को यातनाएं भुगतने के लिए छोड़ दिया गया. वरिष्ठ पत्रकार लक्ष्मीचंद पंत कहते हैं, ‘इन घटनाओं से अगर हमारी नसें नहीं चटखीं और दिल बेचैन नहीं हुआ तो मानवीय रिश्तों की बंदिशें कैसे बच पाएंगी?’

भाजीतरकरी के भाव कैसे बिके लीक पेपर

28 लाख छात्रों के भविष्य निर्धारित करने वाले 10वीं और 12वीं के प्रश्नपत्र लीक होना कोई छोटी बात नहीं है. गलती सरकार भी मान रही है और सीबीएसई भी. लेकिन तो अभी पेपर लीक करने वाला मास्टरमाइंड सामने आया और ही इस बात का खुलासा हुआ कि ऐसा हुआ कैसे?     

सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक से डाटा लीक होने की खबर के बाद भारत सरकार ने फेसबुक के सीईओ मार्क जकरबर्ग को एक नोटिस भेजा था. आईटी मंत्रालय के इस नोटिस के जवाब में जकरबर्ग ने 7 दिन की मियाद खत्म होने का इंतजार न कर के 3 अप्रैल को ही जवाब दे दिया था. यह जवाब था— मोदी सेठ, जिन के घर शीशे के बने होते हैं वो दूसरों के घर पर पत्थर नहीं फेंका करते. पहले अपने यहां के सीबीएसई पेपर संभाल लो, फिर मुझ से डाटा लीक पर जवाब लेना.

हर कोई जानता है कि बी.आर. चोपड़ा निर्देशित अपने वक्त की हिट फिल्मवक्तमें यह डायलौग अक्खड़ स्वभाव के अभिनेता राजकुमार ने खलनायक रहमान के सामने बोला था. दरअसल, यह सोशल मीडिया पर हुआ अभिजात्य किस्म का हंसीमजाक था, जिस ने एक गंभीर संदेश दिया था कि लीक के मामले में हम पहले खुद के गिरहबान में झांक लें फिर किसी और पर अंगुली उठाना सही है.

सीबीएसई पेपर लीक मामले को फिल्मी अंदाज में ही समझने की कोशिश करें तो 70 के दशक के हिंदी फिल्मों के बैंक डकैती के वे दृश्य सहज याद हो आते हैं, जिन में खलनायक बैंक लूटने के लिए बैंक में घुस कर धांयधांय नहीं करता था, बल्कि वह उस वैन के नीचे छिप जाता था, जिस में नकदी ले जाई जाती थी.

जैसे ही वैन स्टार्ट होती थी, खलनायक नीचे से सेंध लगा कर तिजोरी तक पहुंचता था और वैन में रखी तिजोरी पर ऐसे हाथ साफ करता था कि किसी को कानोंकान खबर तक नहीं होती थी. वैन का ड्राइवर वैन चलाता रहता था और सिक्योरिटी गार्ड हाथ में राइफल लिए यूं ही इधरउधर ताकते हुए सतर्कता दिखाने की एक्टिंग करते रहते थे. फिर कोई पुल या रेलवे फाटक आता था, जहां वैन के रुकते ही खलनायक नीचे के रास्ते से ही छूमंतर हो जाता था.

वैन के मुकाम पर पहुंचने के बाद डकैती का हल्ला मचता. पुलिस कर जांच करती थी और मीटिंग में आला अफसर झल्लाते हुए कड़क आवाज में हिदायत देता रहता था कि दिनदहाड़े कैश वैन लुट गई. यह हमारे डिपार्टमेंट के लिए शरम की बात है. जल्दी से जैसे भी हो डकैतों को पकड़ो. आम पब्लिक और मीडिया वाले हमारी हंसी उड़ा रहे हैं.

रहस्य बनती लीक डकैती फिल्मों में विलेन को पकड़ना मजबूरी होती थी, इसलिए लुटेरे किसी तरह धर लिए जाते थे. लेकिन सीबीएसई पेपर लीक मामले की बात जरा अलग है. यह एक ऐसा अहिंसक अपराध है, जिस में शक की सुई कश्मीर से ले कर कन्याकुमारी तक घूम रही है लेकिन वह खलनायक पकड़ में नहीं रहा है, जिस ने पेपर उड़ाने में सेंधमारी की थी. देश भर की पुलिस और दूसरी जांच एजेंसियां इधरउधर छापे मार कर तथाकथित पेपर लीक करने वालों को खोज रही हैं, लेकिन यह पता नहीं कर पा रही हैं कि आखिर पेपर लीक कब, कैसे और कहां से हुआ था.

सेंट्रल बोर्ड औफ सेकेंडरी एजूकेशन यानी सीबीएसई हर साल 10वीं और 12वीं बोर्ड के इम्तहान आयोजित करता है. इस साल यह परीक्षा 8 मार्च से शुरू हुई थी. 1952 से इस बोर्ड की स्थापना का एक खास मकसद एक ऐसे राष्ट्रीय पाठ्यक्रम को आकार देना था, जिस से उन सरकारी कर्मचारियों के बच्चों को सहूलियत रहे जिन के तबादले होते रहते हैं

राज्यों के माध्यमिक शिक्षा मंडलों और सीबीएसई में काफी अंतर होता है. सीबीएसई सिलेबस से पढ़ना प्रतिष्ठा की बात समझी जाती है, इसलिए बीते 2 दशकों से बड़ी तादाद में प्राइवेट स्कूलों ने इस से संबंद्धता लेनी शुरू कर दी थी

एफिलिएशन मिलने के बाद प्राइवेट स्कूल वाले बड़ी शान से लिखने और बताने लगे कि उन का स्कूल सीबीएसई से संबद्ध या मान्यताप्राप्त है. इन स्कूलों में पढ़ना फैशन की बात हो चली है. देखते ही देखते अभिभावकों में भी होड़ लगने लगी कि बच्चे को सीबीएसई वाले स्कूल में पढ़ाएं. नर्सरी क्लास से ही बच्चों को ऐसे स्कूलों में दाखिला दिलाया जाने लगा जिन में सीबीएसई का पाठ्यक्रम हो.

जब काम बढ़ने लगा और छात्रों की संख्या भी लाखों की तादाद में जाने लगी तो सीबीएसई को 4 जोनों में बांट दिया गया. इस से कार्यालयीय और दीगर कामों में सहूलियत होने लगी. मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत काम करने वाले सीबीएसई की साख और पूछपरख दिनोंदिन बढ़ने लगी.

हर साल की तरह इस साल भी सीबीएसई ने बोर्ड परीक्षाओं का टाइमटेबल वक्त रहते घोषित कर दिया था. देश भर के केंद्रों पर इम्तहान परंपरागत ढंग से शुरू हुए और शुरुआत ठीकठाक रही. हालांकि इस साल बोर्ड ने अपनी कार्यशैली में कई अहम बदलाव किए थे, लेकिन इन की जानकारी हर किसी को नहीं थी

शिक्षा जगत से जुड़े लोग ही इन बदलावों से वाकिफ थे. आम लोगों को इतना जरूर मालूम था कि कुछ राजनैतिक वजहों के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय स्मृति ईरानी से छीन कर प्रकाश जावड़ेकर को दे दिया था और पिछले साल दिसंबर में सीबीएसई का चेयरमैन अनीता करवाल को बनाया था, जो गुजरात कैडर की 1988 बैच की तेजतर्रार और खूबसूरत आईएएस अधिकारी हैं

अनीता करवाल के बारे में भी हर कोई जानता है कि वह नरेंद्र मोदी की पसंदीदा अधिकारी हैं, लिहाजा उन की नियुक्ति पर किसी को हैरानी नहीं हुई थी. क्योंकि हर एक प्रधानमंत्री अहम पदों पर अपने पसंद और भरोसे के अधिकारियों की नियुक्ति करता है.

परीक्षाएं सुचारू रूप से शुरू हुई थीं लेकिन 23 मार्च, 2018 को एक अफवाह दिल्ली से उड़ी कि 12वीं कक्षा का अर्थशास्त्र का पेपर लीक हो गया है. इस खबर या अफवाह पर किसी ने ध्यान नहीं दिया था, क्योंकि खुद सोशल मीडिया पर सक्रिय लोग जानतेसमझते हैं कि यह अफवाहों और गपशप का अड्डा है. दूसरे अर्थशास्त्र की परीक्षा 26 को होनी थी और भरोसा न करने की तीसरी खास वजह यह थी कि इस के साथ कोई प्रमाण नहीं थे. लिहाजा यह पोस्ट तूल नहीं पकड़़ पाई, लोगों ने इसे शरारत समझ कर खारिज कर दिया.

पर यह अफवाह या शरारत नहीं थी. यह बात 26 मार्च को अर्थशास्त्र की परीक्षा के दिन ही उजागर हुई, जब वाकई यह पुष्टि हो गई कि सोशल मीडिया पर ही 12वीं का अर्थशास्त्र का पेपर लीक हो कर लाखों मोबाइल फोनों में कैद है. कई वाट्सऐप ग्रुप में इस परचे के स्क्रीन शौट और हाथ से लिखी आंसरशीट तक वायरल हुई थी.

पेपर लीक हो जाने के बाद भी लोग इस पर यकीन नहीं कर रहे थे तो इस की वजह लोगों का यह मानना था कि सीबीएसई एक विश्वसनीय संस्था है और मुमकिन है पेपर हो जाने के बाद इसे महज तूल पकड़ाने की गरज से वायरल किया गया हो, जिस से बेवजह का हड़कंप मचे. न्यूज चैनल्स ने इस खबर को चलाना शुरू किया तो लोगों का ध्यान इस तरफ गया कि बात में सच्चाई है. और यह कोई मामूली बात नहीं है

26 मार्च की शाम होतेहोते देश की राजधानी दिल्ली गरमा उठी थी और अब तरहतरह की नईनई बातें सामने आने लगी थीं, जिन का सार यह था कि वाकई अर्थशास्त्र का पेपर परीक्षा से पहले बाजार में आ चुका था. लेकिन इस गोरखधंधे की जड़ें कहां हैं, यह अंदाजा कोई नहीं लगा पा रहा था. सीबीएसई की तरफ से यह बयान आया कि अर्थशास्त्र का पेपर लीक नहीं हुआ है, यह अफवाह भर है. यह दावा भी बोर्ड ने किया कि उस ने सभी परीक्षा केंद्रों की जांच कराई है और कहीं से पेपर लीक होने के प्रमाण नहीं मिले हैं. इस के बाद लोग एक बार फिर असमंजस में घिरते नजर आए.

प्रधानमंत्री का दखल जो लोग पेपर लीक होने के प्रति आश्वस्त थे, वे धीरेधीरे गुस्साने लगे थे. ये वे अभिभावक थे, जिन के बच्चों ने यह परीक्षा दी थी. यह दिन खासतौर से दिल्ली और एनसीआर में काफी गहमागहमी वाला था

हरियाणा और पंजाब की तरफ से भी पेपर लीक होने की बातें सामने आने लगी थीं. अब तक सीबीएसई की चेयरपरसन अनीता करवाल और मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर का कोई बयान सामने नहीं आया था. इसी गफलत में 28 मार्च, 2018 को 10वीं का गणित पेपर भी लीक हो गया. और इस तरह हुआ कि इस कड़वी सच्चाई को हर किसी को हजम करना पड़ा कि देश में बोर्ड के वे पेपर भी लीक होने लगे हैं जिन के लीक होने से छात्रों का भविष्य, मेहनत और कैरियर प्रभावित होता है.

28 मार्च की शाम होतेहोते यह बात आम हो गई थी कि पेपर लीक हुए हैं और भाजीतरकारी के भाव बिके भी हैं. 12वीं का अर्थशास्त्र का पेपर लगभग 8 लाख छात्रों ने और 10वीं गणित का इम्तहान 16.38 लाख छात्रों ने दिया था

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बोर्ड पेपर लीक जैसे गंभीर मसले पर खामोश बैठे मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर की जम कर क्लास लगाई तो प्रशासनिक और राजनैतिक गलियारों में खासी हलचल मच गई. नरेंद्र मोदी ने सख्त नाराजगी दिखाते हुए प्रकाश जावड़ेकर से केवल सफाई मांगी बल्कि उचित काररवाई करने को भी कहा.

दरअसल, नरेंद्र मोदी की नाराजगी की वजह जायज थी. बीती 25 फरवरी, 2018 को वह अपने पसंदीदा रेडियो कार्यक्रममन की बातमें बोर्ड के छात्रों से रूबरू हुए थे. दूसरी कई बातों के साथ उन्होंने उन्हें परीक्षा के बाबत तनावमुक्त और बेफिक्र रहने को भी कहा था

यह वाकई अफसोस की बात थी कि जिस देश में प्रधानमंत्री छात्रों को चिंतामुक्त रहने का आश्वासन दें, उस में ही परीक्षा के पेपर कुछ इस तरह लीक हो जाएं कि छात्रों की चिंता कई गुना बढ़ जाए. इस के अलावा वे तरहतरह की अनिश्चितताओं से घिर जाएं. नरेंद्र मोदी की दूसरी चिंता सरकार की गिरती साख है. यह उन के कार्यकाल में पहला उजागर मामला था, जिस का दोष वे किसी और पार्टी  खासतौर से कांग्रेस के सर नहीं मढ़ सकते थे.

इस फटकार से हड़बड़ाए प्रकाश जावडे़कर ने सब से पहले तो पेपर लीक होने की बाबत खेद व्यक्त किया और फिर परंपरागत ढर्रे वाली बातें कह डालीं कि जांच होगी, दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा. मैं भी अभिभावक हूं, इसलिए अभिभावकों का दर्द समझता हूं और लीक हुए दोनों पेपर रद्द किए जाते हैं. जल्द ही दूसरी तारीखों का ऐलान भी किया जाएगा वगैरहवगैरह.

 इधर छात्रों और अभिभावकों ने जगहजगह विरोध प्रदर्शन करने शुरू कर दिए थे, जिस की शुरुआत दिल्ली के जंतर मंतर, सीबीएसई के औफिस और प्रकाश जावडे़कर के घर से हुई. जैसे ही दोबारा परीक्षा का ऐलान किया गया तो छात्रों और अभिभावकों का गुस्सा और बढ़ गया कि अब नए सिरे से सारी कवायद करनी पड़ेगी. ऐसे में बोर्ड परीक्षाओं के माने क्या रह गए और सीबीएसई इस की जिम्मेदारी क्यों नहीं ले रहा.

अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो रहा था कि प्रश्नपत्र लीक कैसे और कहां से हुए, लेकिन मीडिया के जरिए ये बातें जरूर सामने आने लगी थीं कि लीक हुए पेपर 35 हजार रुपए से ले कर 200 रुपए तक में बिके थे, जिस की शुरुआत दिल्ली के बवाना इलाके के एक स्कूल से हुई थी. इन सच्चाइयों या खबरों से छात्रों का गुस्सा और बढ़ने लगा था. अब पहली बार सीबीएसई की चेयरपरसन अनीता करवाल सामने आईं और वही रटेरटाए बयान दे कर गायब हो गईं कि जांच होगी, दोषी जेल जाएंगे.

शक की सुई सीबीएसई की तरफ मुड़ना स्वाभाविक बात थी, क्योंकि पेपर सेट करने से ले कर परीक्षा केंद्रों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी उस की ही होती है. इन परीक्षाओं की विश्वसनीयता और गोपनीयता अगर भंग हुई थी तो इस की जिम्मेदारी भी सीबीएसई की ही बनती थी, जिस से वह बचने और मुकरने की कोशिश तब से ले कर अब तक कर रहा है.

कहां से लीक सीबीएसई को पाकसाफ बताने में प्रकाश जावड़ेकर और अनीता करवाल ने कोई कसर नहीं छोड़ी. इन दोनों ने पेपर लीक होने को दिल्ली के कुछ कोचिंग सेंटरों को दोषी ठहराया, इस से इन की जगहंसाई ही हुई. क्योंकि मामूली सी अक्ल रखने वाला भी इस बात को समझ रहा था कि जब पेपर सीबीएसई बनाता है तो उसे कोई कोचिंग वाला कैसे लीक कर सकता है. हां, वह अपना धंधा चमकाने के लिए इन्हें बेच जरूर सकता है. लेकिन इस के लिए जरूरी है कि सीबीएसई का कोई अफसर उसे पेपर बेचे.

कोई भी अपराध तब तक अपराध नहीं माना जाता, जब तक कि पुलिस एफआईआर दर्ज कर ले. चूंकि कुछ करना था इसलिए सीबीएसई की शिकायत पर दिल्ली पुलिस ने आईपीसी की धाराओं 420, 468 और 471 के तहत मामला दर्ज कर के काररवाई शुरू कर दी. जल्द ही एक एसआईटी (स्पैशल इनवैस्टीगेशन टीम) का भी गठन कर डाला, जिस की कमान पुलिस अधिकारी आर.पी. उपाध्याय को सौंप दी गई.

 इधर 29 मार्च, 2018 को पेपर लीक होने के विरोध में देश भर में प्रदर्शन होने लगे थे. दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन कर रहे छात्रों ने आरोप लगाया कि अकेले अर्थशास्त्र या गणित का ही नहीं, बल्कि 10वीं और 12वीं के सारे पेपर लीक हुए हैं. लिहाजा पूरी परीक्षा दोबारा होनी चाहिए.

 जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन कर रहे छात्रों में से एक छात्र राहुल ने बताया कि पेपर सीबीएसई के अधिकारियों की मिलीभगत से लीक हुए हैं और 2-2 हजार रुपए में बिके हैं. यह हमारे भविष्य से खिलवाड़ है. हरकत में आई पुलिस काररवाई के नाम पर दिल्ली के कोचिंग सेंटरों पर ही छापामारी कर के यह जताने की कोशिश कर रही थी कि पेपर यहीं से लीक हुए हैं. पुलिस ने दिल्ली के द्वारका, रोहिणी और राजेंद्रनगर इलाकों के कोचिंग सेंटरों पर छापे मारे और कोचिंग सेंटर संचालकों सहित छात्रों से भी पूछताछ की.

 पुलिस वाले छात्रों और कोचिंग संचालकों के मोबाइल फोन खंगाल रहे थे जैसे लीक का राज उन्हीं में छिपा हो. हो यह रहा था कि पुलिस वाले उन छात्रों को तंग कर रहे थे, जिन्हें कहीं से लीक पेपर मिला था. एक के बाद एक कइयों के मोबाइल खंगाले गए, लेकिन लीक सोर्स पुलिस को नहीं मिलना था सो नहीं मिला.

प्रकाश जावड़ेकर जोर इस बात पर दे रहे थे कि लीक सोर्स ढूंढा जा रहा है. छात्रों और अभिभावकों का बढ़ता विरोध प्रदर्शन देख कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी मौका ताड़ कर हमलावर हो उठे. उन्होंने ताना माराकितने लीक, डाटा लीक, आधार लीक, चुनाव की तारीखें लीक, एसएससी के पेपर लीक और अब सीबीएसई के पेपर लीक. लेकिन हमारा चौकीदार वीक.’

छात्रों की परेशानियों को कम करने के बजाय और बढ़ाते सीबीएसई की तरफ से कहा गया कि लीक हुए पेपरों की परीक्षा दोबारा होगी, जिन की तारीखों की घोषणा जल्द कर दी जाएगी

दिल्ली के एक अभिभावक पेशे से वकील अलख श्रीवास्तव ने तुक की बात यह कही कि लीक प्रभावित छात्रों को एकएक लाख रुपए का मुआवजा दिलाया जाए.

31 मार्च को एक सनसनी भरी खबर यह आई कि दरअसल सीबीएसई के पेपर दिल्ली से नहीं बल्कि पटना से लीक हुए थे. झारखंड के चतरा जिले के एसपी .बी. वारियार ने दावा किया कि लीक हुआ प्रश्नपत्र पटना से चतरा आया था. इस बाबत बिहार और झारखंड से कोई दरजन भर लोगों को गिरफ्तार किया गया है. एसआईटी ने पटना के कृष्णनगर से गया स्थित शेरधारी निवासी अमित कुमार छपरा के आकाश कुमार को गिरफ्तार कर लिया.

पेपर लीक के तार जुड़े थे दिल्ली से बताया यह गया कि इन दोनों के तार दिल्ली से जुड़े हैं और ये दिल्ली के शिक्षा माफिया की मदद से सीबीएसई के पेपर लीक कर पैसों के बदले छात्रों को प्रश्नपत्र मुहैया कराते हैं. पुलिस ने चतरा के एक कोचिंग इंस्टीट्यूट स्टडी विजन के संचालक सतीश पांडेय सहित 3 लोगों को गिरफ्तार किया

सतीश पांडेय अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का जिला संयोजक भी है. इन कथित आरोपियों ने 28 मार्च का पेपर 27 मार्च को ही उपलब्ध करा दिया था. इस दिन एसआईटी ने 9 नाबालिग छात्रों को भी गिरफ्तार कर उन्हें हजारीबाग स्थित बाल सुधार गृह भेजा.

यह निहायत ही हास्यास्पद और बचकानी बात थी. पुलिस जड़ तक पहुंचने के बजाय पत्तियां तोड़ रही थी. पेपर अगर पटना में लीक हुए थे तो आरोपियों तक कहां से और कैसे आए, इस बात का कोई संतोषजनक जवाब पुलिस के पास नहीं था. सुधार गृह भेजे गए जब नाबालिग कोई पेशेवर या आदतन मुजरिम नहीं थे तो उन्हें सुधार गृह क्यों भेजा गया?

 पेपर लीक होने की बात अब गंभीर चिंता के बजाय मजाक का विषय बन गई, यह बात एक बार फिर 7 अप्रैल, 2018 को साबित हुई. इस दिन दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने हिमाचल प्रदेश के ऊना के डीएवी स्कूल के एक शिक्षक राकेश कुमार को लीक मामले का आरोपी मानते हुए गिरफ्तार कर लिया.

डीएवी स्कूल ऊना की अपनी साख है. यह सीबीएसई का परीक्षा केंद्र नहीं था, बल्कि इस बार वहां के जवाहर नवोदय विद्यालय को परीक्षा केंद्र बनाया गया था. सीबीएसई ने डीएवी स्कूल के प्रिंसिपल अमित महाजन को परीक्षा के लिए अधीक्षक बनाया था. अमित महाजन ने परीक्षा की जिम्मेदारी एक शिक्षक राकेश कुमार को सौंप दी थी.

 राकेश कुमार दूसरे कई लाख शिक्षकों की तरह पढ़ाने के साथसाथ कोचिंग सेंटर भी चलाता था. सीबीएसई के प्रश्नपत्र बैंक लौकर में रखे जाते हैं. 23 मार्च को जब राकेश कुमार 12वीं का कंप्यूटर साइंस का पेपर निकाल कर केंद्र तक पहुंचाने बैंक गया तो उस ने वहां रखा 28 मार्च को होने वाले अर्थशास्त्र के पेपर का बंडल भी उठा लिया. फिर उसे गायब कर लीक कर दियाइस काम में उस का साथ देने वाले अमित और अशोक भी धर लिए गए. दरअसल राकेश की कोचिंग का एक छात्र अर्थशास्त्र में कमजोर था, जिस के लिए राकेश ने यह पेपर उड़ाया था. बाद में उस ने यह पेपर चंडीगढ़ में रहने वाले अपने एक रिश्तेदार को भी वाट्सऐप के जरिए भेजा था.

लीक के बाद हर कहीं से खबरें आने लगी थीं कि पेपर यहां से लीक हुआ. इन छापों की पुलिसिया काररवाई से लोग जरूर कंफ्यूज हो रहे थे कि पेपर बना कहां था और लीक कहां से हुआ. मान लिया जाए कि ऊना के राकेश कुमार ने 12वीं का अर्थशास्त्र का पेपर लीक किया तो 10वीं का गणित का पेपर लीक होने का जिम्मेदार कौन है? ऐसे ही कई सवालों का जवाब किसी को नहीं मिल रहा और ही मिलने की उम्मीद है.

पेपर कहांकहां से और कैसे लीक हो सकते हैं, यह समझने के लिए सीबीएसई की प्रक्रिया को समझना जरूरी है. प्रक्रिया को देख कर लगता है कि सीबीएसई के अधिकारियों की मिलीभगत के बिना पेपर लीक होना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन सी बात हैसीबीएसई के बारे में कहा जाता है कि प्रश्नपत्र बना कर उन्हें परीक्षा केंद्रों तक पहुंचाने की उस की पूरी प्रक्रिया इतनी फूलप्रूफ है कि पेपर कहीं से लीक हो ही नहीं सकते. लेकिन इस के बाद भी हो गए तो जाहिर है यह वही मिलीभगत और साजिश थी, जिस ने 28 लाख छात्रों की मेहनत पर पानी फेर दिया

सभी छात्र अब तक शक कर रहे हैं कि सारे पेपर लीक हुए थे यानी इस परीक्षा प्रणाली को अविश्सनीय बनाने का मास्टरमाइंड हिंदी फिल्मों के खलनायक जैसा है, जिस तक पुलिस कथा लिखने तक नहीं पहुंच पाई थी. ऐसा भी नहीं है कि पुलिस ने सीबीएसई को एकदम बख्श दिया हो या क्लीन चिट दे दी हो. उस ने कुछ अधिकारियों से पूछताछ की, खासतौर से परीक्षा नियंत्रक से जिन्होंने सीबीएसई की परीक्षा प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताया. इस जानकारी का कोई खास उपयोग पुलिस वालों ने क्यों नहीं किया, यह जरूर शक पैदा करने वाली बात है.

प्रश्नपत्र बनाने की प्रक्रिया सामान्यत: अगस्त महीने से शुरू हो जाती है. जिस के तहत सीबीएसई देश भर के शिक्षकों में से कुछ को छांट कर उन्हें विषयवार प्रश्नपत्र बनाने की जिम्मेदारी देती है. इन शिक्षकों की योग्यता के अलग पैमाने होते हैं. ये शिक्षक प्रश्नपत्रों के 3 से 4 सेट सीबीएसई को भेजते हैं

इन में से कोई एक सेट सीबीएसई लेती है, पर यह शिक्षकों को नहीं मालूम रहता कि परीक्षा के लिए उन का बनाया प्रश्नपत्र ही लिया जाएगा. सीबीएसई यह सुनिश्चित करती है कि पेपर बनाने वाले शिक्षक कहीं कोचिंग या ट्यूशन पढ़ाते हों और उन का कोई नजदीकी रिश्तेदार बोर्ड के इम्तहान में शामिल हो रहा हो.

अलगअलग विषयों के प्रश्नपत्र जब छांट लिए जाते हैं तो उन्हें छपाई के लिए भेजा जाता है. इन प्रिंटिंग प्रेसों की जानकारी बेहद गोपनीय रहती है, जो देश भर में कहीं भी हो सकती है. सीबीएसई में नोटिफाइड प्रेसों में से किस प्रेस को काम दिया गया है, यह जानकारी महत्त्वपूर्ण और गिने हुए अधिकारियों को ही रहती है. जिस प्रिंटिंग प्रेस में पेपर छपते हैं, उस में सीसीटीवी कैमरे लगे होना जरूरी होता है.

कड़ी प्रक्रिया से गुजरने के बाद छात्रों तक पहुंचते हैं प्रश्नपत्  पेपर उतने ही छपवाए जाते हैं, जितने छात्र परीक्षा में शामिल हो रहे होते हैं. छपाई के बाद से प्रश्नपत्र सीधे परीक्षा केंद्र नहीं पहुंचाए जाते बल्कि उन्हें परीक्षा केंद्रों के नजदीक किसी बैंक के लौकर में रखा जाता है. ऐसे बैंकों को कस्टोडियन बैंक या कलेक्शन सेंटर कहा जाता है. यह जानकारी बैंक मैनेजर के अलावा परीक्षा केंद्र अधीक्षक को ही रहती है.

 जिस दिन परीक्षा होती है, उस दिन एक बैंक कर्मचारी, सीबीएसई का एक प्रतिनिधि और परीक्षा केंद्र यानी स्कूल का प्रतिनिधि मौजूद रहता है. ये तीनों जब सुनिश्चित कर लेते हैं कि रखे हुए पेपरों के बंडल सीलबंद हैं और उन से किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं की गई है, इस के बाद ही पेपर के बंडल बैंक से सीधे परीक्षा केंद्र पहुंचाए जाते हैं. जिस वाहन में प्रश्नपत्र जाते हैं, उस में एक सिक्योरिटी गार्ड भी रहता है

परीक्षा केंद्र पर प्रश्नपत्र पेपर शुरू होने के आधे घंटे पहले खोले जाते हैं और ड्यूटी दे रहे शिक्षकों को कमरों में मौजूद छात्रों की संख्या के हिसाब से दिए जाते हैं. फिर ड्यूटी दे रहे शिक्षक प्रश्नपत्र वितरित करते हैं.

देखा जाए तो प्रक्रिया वाकई फूलप्रूफ है लेकिन इस में कई छेद हैं, जिन से हो कर कोई भी प्रश्नपत्र लीक हो सकता है या किया जा सकता है. पहला झोल तो यही है कि छपाई के प्रश्नपत्र जब सीबीएसई मुख्यालय में रखे रहते हैं, तब वहां के अधिकारी ही इन्हें उड़ा सकते हैं. ऐसा साल 2004 और 2011 में हो भी चुका है.

दूसरा छेद बैंक लौकर हैं, जहां प्रश्नपत्र लंबे समय तक रखे रहते हैं. बैंक अधिकारी कभी भी ताला खोल कर प्रश्नपत्र लीक कर सकते हैं. साल 2006 में 12वीं का बिजनैस स्टडीज का पेपर बैंक से ही लीक हुआ था

यह मामला बड़ा दिलचस्प है. हरियाणा के पानीपत शहर में पुलिस ढूंढ तो रही थी वाराणसी बम ब्लास्ट के आरोपियों को, लेकिन जगहजगह की छापेमारी में पुलिस के हाथ ये प्रश्नपत्र लग गए थे, जिन में 6 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया था. उन में बैंक मैनेजर कैशियर भी शामिल थे. यानी बैंक लौकर में रखे प्रश्नपत्रों के लीक होने की गारंटी नहीं है.

 बैंक से परीक्षा केंद्र तक के रास्ते में पेपर के लीक होने की गुंजाइश काफी कम है क्योंकि उस वक्त पेपर उड़ाने का कोई खास फायदा नहीं होता. उस समय तक छात्र परीक्षा केंद्र पहुंच चुके होते हैं. दूसरे इतनी जल्द बंडल को सील पैक नहीं किया जा सकता. इस में वाहन में मौजूद तीनों लोगों की मिलीभगत जरूरी है.

इस साल के पेपर लीक से एक नई बात या तरीका यह उजागर हुआ कि पेपर लेने गया स्कूल का प्रतिनिधि अगले पेपर का भी बंडल उठा सकता है. यह जरूर चिंता वाली बात है कि सीबीएसई का कोई जोर इन बैंकों पर नहीं है और सारे पेपर एक साथ इस तरह क्यों रखे जाते हैं कि आने वाली परीक्षाओं के प्रश्नपत्रों का बंडल भी शिक्षक उठा ले जाए.

साफ दिख रहा है कि ऊना और पटना की सनसनी सिर्फ लीपापोती थी, जिस से लोग भ्रमित हों और ऐसा हो भी रहा है. लोग इस लीक कांड को दूसरे कांडों की तरह भूलने लगे हैं. सीबीएसई ने बवाल से बचने के लिए गणित का पेपर दोबारा कराने का फैसला ले कर कोई बुद्धिमानी का काम नहीं किया है, बल्कि यह संदेशा दिया है कि अगर कोई पेपर सीमित स्थान में लीक हुआ है तो उसे लीक हुआ नहीं माना जाएगा.

जाह्नवी की अनदेखी क्यों पुलिसिया काररवाई कितनी खोखली और बनावटी थी, इस बात का अंदाजा लगाने कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं. परीक्षा के 9 दिन पहले ही लुधियाना की रहने वाली एक 17 वर्षीय छात्रा जाह्नवी बहल ने इस कांड का पहले ही परदाफाश कर दिया था, पर अफसोस इस बात का है कि तब भी उस की बात पर ध्यान नहीं दिया गया था और अब भी नहीं दिया जा रहा. जाह्नवी लुधियाना के बसंत सिटी इलाके में रहती है और पक्खोवाल रोड स्थित डीएवी स्कूल की 12वीं की कौमर्स की छात्रा है. जाह्नवी के पिता अश्विनी बहल नौकरीपेशा हैं और मां नंदिनी गृहिणी हैं.

17 मार्च को ही जाह्नवी ने पेपर लीक का ब्यौरा अपनी शिकायत के साथ लुधियाना के पुलिस कमिश्नर आर.एन. ढोके को भेजा था. कमिश्नर ने जांच की जिम्मेदारी एडीसीपी रतन बराड़ को सौंप दी थी. पुलिस ने कोई जांच की हो, ऐसा लग नहीं रहा बावजूद इस के कि जाह्नवी ने पेपर लीक कराने वाले का फोन नंबर भी दिया था.

जाह्नवी ने अकेले पुलिस को ही नहीं बल्कि समझदारी दिखाते हुए उस ने शिकायत की प्रतियां सीबीएसई के औफिस और प्रधानमंत्री कार्यालय को भी भेजी थींइस के बावजूद काररवाई होना इस शक को यकीन में बदल रहा है कि पेपर लीक कांड के तार बहुत लंबे हैं. अगर वक्त रहते पुलिस काररवाई करती तो होता यह कि दोनों पेपर तुरंत रद्द करने पड़ते जिस में घाटा या नुकसान उन लोगों का होता जो इन का कारोबार कर रहे थे.

पेपर वक्त रहते रद्द हो जाते तो बिकते नहीं, इसलिए काररवाई का होना बड़े घपले की तरफ इशारा कर रहा है. जिस किसी ने भी पेपर लीक किए, उसे पैसे बनाने का मुकम्मल मौका मुहैया कराया गया. पर लाख टके का सवाल यह है कि वह कौन है, जिस ने पेपर बेचे? अब जब भी वह पकड़ा जाएगा, तभी राज से परदा उठ पाएगा.

अकेली जाह्नवी ने ही नहीं बल्कि एक और अज्ञात जागरूक नागरिक जिसे व्हिसल ब्लोअर करार दिया गया, पेपर लीक होने के मामले में सीबीएसई औफिस को आगाह करता रहा थासीबीएसई इस बात को मान चुकी है कि इस व्हिसल ब्लोअर ने मेल के जरिए पेपर लीक होने की बात बताई थी. जाने यह कोई क्यों नहीं बता रहा कि इस शिकायत या जानकारी पर समय से कोई एक्शन क्यों नहीं लिया गया था. सांप निकल जाने के बाद अब लकीर क्यों पीटी जा रही है.

मुमकिन है देरसबेर पुलिस असल अपराधी तक पहुंच जाए, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी होगी और छात्रों के नुकसान की भरपाई तो किसी भी सूरत में नहीं हो पाएगी. साल 2018 जिन अपराधों के लिए याद किया जाएगा, उन में से एक सीबीएसई पेपर लीक मामला भी होगा. द्य

           

एकतरफा प्यार में प्रधान के बेटे से गरदन काट डाली

ताकतवर पिता के बिगड़ैल बेटे कोई कोई गुल खिलाते ही हैं, क्योंकि उन्हें पिता और परिवार का संरक्षण मिलता है. प्रधान कृपाशंकर के बेटे प्रिंस ने भी यही किया. लेकिन रागिनी को मार कर उसे क्या मिला?  

खुशमिजाज रागिनी दुबे सुबह तैयार हो कर अपनी छोटी बहन सिया के साथ घर से पैदल ही स्कूल के लिए निकली थी. वह बलिया जिले के बांसडीह की रहने वाली थी. दोनों बहनें सलेमपुर के भारतीय संस्कार स्कूल में अलगअलग कक्षा में पढ़ती थीं. रागिनी 12वीं कक्षा में थी तो सिया 11वीं में

उस दिन रागिनी महीनों बाद स्कूल जा रही थी. स्कूल जा कर उसे अपने बोर्ड परीक्षा फार्म के बारे में पता करना था कि परीक्षा फार्म कब भरा जाएगा. वह कुछ दिनों से स्कूल नहीं जा पाई थी, इसलिए परीक्षा फार्म के बारे में उसे सही जानकारी नहीं थी.

दोनों बहनें पड़ोस के गांव बजहां के काली मंदिर के रास्ते हो कर स्कूल जाती थीं. उस दिन भी वे बातें करते हुए जा रही थीं, जब दोनों काली मंदिर के पास पहुंची तभी अचानक उन के सामने 2 बाइकें कर रुक गईं. दोनों बाइकों पर 4 लड़के सवार थे. अचानक सामने बाइक देख रागिनी और सिया सकपका गईं, वे बाइक से टकरातेटकराते बचीं.

‘‘ये क्या बदतमीजी है, तुम ने हमारा रास्ता क्यों रोका?’’ रागिनी लड़कों पर गुर्राई.

‘‘एक बार नहीं, हजार बार रोकूंगा.’’ उन चारों में से एक लड़का बाइक से नीचे उतरते हुए बोला. उस का नाम प्रिंस उर्फ आदित्य तिवारी था. प्रिंस आगे बोला, ‘‘जाओ, तुम्हें जो करना हो कर लेना. तुम्हारी गीदड़भभकी से मैं डरने वाला नहीं, समझी.’’

 ‘‘देखो, मैं शराफत से कह रही हूं, हमारा रास्ता छोड़ो और स्कूल जाने दो.’’ रागिनी बोली.

 ‘‘अगर रास्ता नहीं छोड़ा तो तुम क्या करोगी?’’ प्रिंस ने अकड़ते हुए कहा.

‘‘दीदी, छोड़ो इन लड़कों को. मां ने क्या कहा था कि इन के मुंह मत लगना. इन के मुंह लगोगी तो कीचड़ के छींटे हम पर ही पड़ेंगे. चलो हम ही अपना रास्ता बदल देते हैं.’’ सिया ने रागिनी को समझाया.

‘‘नहीं सिया नहीं, हम बहुत सह चुके इन के जुल्म. अब और बरदाश्त नहीं करेंगे. इन दुष्टों ने हमारा जीना हराम कर रखा है. इन से जितना डरोगी, उतना ही ये हमारे सिर पर चढ़ कर तांडव करेंगे. इन्हें इन की औकात दिखानी ही पड़ेगी.’’

‘‘ झांसी की रानी,’’ प्रिंस गुर्राया,  ‘‘किसे औकात दिखाएगी तू, मुझे. तुझे पता भी है कि तू किस से पंगा ले रही है. प्रधान कृपाशंकर तिवारी का बेटा हूं, मिनट में छठी का दूध याद दिला दूंगा. तेरी औकात ही क्या है. मैंने तुझे स्कूल जाने से मना किया था ना, पर तू नहीं मानी.’’

‘‘हां, तो.’’ रागिनी डरने के बजाए प्रिंस के सामने तन कर खड़ी हो गई. ‘‘तुम मुझे स्कूल जाने से रोकोगे, ऐसा करने वाले तुम होते कौन हो?’’

‘‘दीदी, क्यों बेकार की बहस किए जा रही हो,’’ सिया बोली, ‘‘चलो यहां से.’’

‘‘नहीं सिया, तुम चुप रहो.’’ रागिनी सिया पर चिल्लाई, ‘‘कहीं नहीं जाऊंगी यहां से. रोजरोज मर के जीने से तो अच्छा होगा कि एक ही दिन मर जाएं. कम से कम जिल्लत की जिंदगी तो नहीं जिएंगे. इन दुष्टों को इन के किए की सजा मिलनी ही चाहिए.’’ रागिनी सिया पर चिल्लाई.

  ‘‘तूने किसे दुष्ट कहा?’’ प्रिंस गुस्से से बोला.

  ‘‘तुझे और किसे…’’ रागिनी भी आंखें दिखाते हुए बोली.

आतंक पहुंचा हत्या तक इस तरह दोनों के बीच विवाद बढ़ता गया. विवाद बढ़ता देख कर प्रिंस के सभी दोस्त अपनी बाइक से नीचे उतर कर उस के पास जा खड़े हुए. सिया रागिनी को समझाने लगी कि लड़कों से पंगा मत लो, यहां से चलो. लेकिन उस ने बहन की एक नहीं सुनी. गुस्से से लाल हुए प्रिंस ने आव देखा ताव उस ने रागिनी को जोरदार धक्का मारा

रागिनी लड़खड़ाती हुई जमीन पर जा गिरी. अभी वह संभलने की कोशिश कर ही रही थी कि वह उस पर टूट पड़ा. पहले से कमर में खोंस कर रखे चाकू से उस ने रागिनी के गले पर ताबड़तोड़ वार करने शुरू कर दिए. कुछ देर तड़पने के बाद रागिनी की मौत हो गई. उस की हत्या कर वे चारों वहां से फरार हो गए.

घटना इतने अप्रत्याशित तरीके से घटी थी कि तो रागिनी ही कुछ समझ पाई थी और ही सिया. आंखों के सामने बहन की हत्या होते देख सिया के मुंह से दर्दनाक चीख निकल पड़ी. उस की चीख इतनी तेज थी कि गांव वाले अपनेअपने घरों से बाहर निकल आए और जहां से चीखने की आवाज रही थी, वहां पहुंच गए. उन्होंने मौके पर पहुंच कर देखा तो रागिनी खून से सनी जमीन पर पड़ी थी. वहीं उस की बहन उस के पास बैठी दहाड़ें मार कर रो रही थी

दिनदहाड़े हुई दिन दहला देने वाली इस घटना से सभी सन्न रह गए. लोग आपस में चर्चा कर रहे थे कि समाज में कानून नाम की कोई चीज नहीं रह गई है. बदमाशों के हौसले इतने बुलंद हो गए हैं कि राह चलती बहूबेटियों का जीना तक मुश्किल हो गया है. इस बीच किसी ने फोन द्वारा घटना की सूचना बांसडीह रोड थानाप्रभारी बृजेश शुक्ल को दे दी थी. 

गांव वाले रागिनी को पहचानते थे. वह पास के गांव बांसडीह के रहने वाले जितेंद्र दुबे की बेटी थी, इसलिए उन्होंने जितेंद्र दुबे को भी सूचना दे दी. बेटी की हत्या की सूचना मिलते ही घर में कोहराम मच गया, रोनापीटना शुरू हो गया. उन्हें जिस अनहोनी की चिंता सता रही थी आखिरकार वो हो गई.

जितेंद्र दुबे जिस हालत में थे, उसी हालत में घटनास्थल की तरफ दौडे़. वह बजहां गांव के काली मंदिर के पास पहुंचे तो वहां उन की बेटी की लाश पड़ी थी

लाश के पास ही छोटी बेटी सिया दहाड़े मार कर रो रही थी. बेटी की रक्तरंजित लाश देख कर जितेंद्र भी फफकफफक कर रोने लगे. उन्हें 2-3 दिन पहले ही कुछ शरारती तत्व घर पर धमकी दे कर गए थे कि रागिनी स्कूल गई तो वह दिन उस की जिंदगी का आखिरी दिन होगा. आखिरकार वे अपने मंसूबों में कामयाब हो गए.

सूचना पा कर एसआई बृजेश शुक्ल फोर्स के साथ मौके पे पहुंच चुके थे. उन्होंने शव का मुआयना किया. मृतका के गले पर अनेक घाव थे. चूंकि पूरी वारदात मृतका की छोटी बहन सिया के सामने घटित हुई थी, इसलिए उस ने एसआई बृजेश शुक्ल को सारी बातें बता दीं. उस ने बताया कि बजहां गांव के रहने वाले ग्राम प्रधान कृपाशंकर तिवारी का बेटा प्रिंस उर्फ आदित्य तिवारी, प्रधान का ही भतीजा सोनू तिवारी, नीरज तिवारी और दीपू यादव ने दीदी की हत्या की है

मौके की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. पुलिस ने जितेंद्र दुबे की तहरीर पर ग्रामप्रधान कृपाशंकर तिवारी, उस के बेटे आदित्य उर्फ प्रिंस, सोनू तिवारी, नीरज तिवारी और दीपू यादव के खिलाफ हत्या और छेड़छाड़ की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया

पुलिस ने मामले की जांच की तो पता चला कि ग्रामप्रधान कृपाशंकर का बेटा प्रिंस सालों से रागिनी को तंग किया करता था. वह रागिनी से एकतरफा प्यार करता था. कई बार वह रागिनी से अपने प्यार का इजहार कर चुका था लेकिन रागिनी न तो उस से प्यार करती थी और न ही उस ने उस के प्रेम पर अपनी स्वीकृति की मोहर ही लगाई थी. 

पहले तो रागिनी उस की हरकतों को नजरअंदाज करती रही. लेकिन जब पानी सिर के ऊपर जाने लगा तो उस ने अपने घर वालों को प्रिंस की हरकतों के बारे में बता दिया.

बेटी की परेशान जान कर जितेंद्र को दुख भी हुआ और गुस्सा भी आया. बात बेटी के मानसम्मान से जुड़ी हुई थी, भला वह इसे कैसे सहन कर सकते थे. वह उसी समय शिकायत लेकर ग्राम प्रधान कृपाशंकर तिवारी के घर जा पहुंचे. संयोग से कृपाशंकर घर पर ही मिल गए. जितेंद्र ने उन के बेटे की हरकतों का पिटारा उन के सामने खोल दिया. लेकिन कृपाशंकर ने उन की शिकायत पर कोई ध्यान नहीं दिया. प्रधानी के घमंड में चूर कृपाशंकर तिवारी ने जितेंद्र को डांटडपट कर भगा दिया.

जितेंद्र दुबे ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि प्रधान से उस के बेटे की शिकायत करनी उन्हें भारी पड़ जाएगी. अगर उन्हें इस बात का खयाल होता तो वह शिकायत कभी नहीं करते.

बाप ने दी बेटे को शह शिकायत का परिणाम उल्टा यह हुआ कि शाम के समय जब प्रिंस कहीं से घूम कर घर लौटा तो कृपाशंकर ने उस से पूछा, ‘‘बांसडीह के पंडित जितेंद्र तुम्हारी शिकायत ले कर यहां आए थे. वे कह रहे थे कि उन की बेटी को आतेजाते तंग करते हो, क्या बात है?’’ 

इस पर प्रिंस ने सफाई देते हुए कहा, ‘‘पापा, यह सब गलत है, झूठ है. मैं ने उस की बेटी के साथ कभी बदसलूकी नहीं की. मैं तो उस की बेटी को जानता तक नहीं, छेड़ने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता. मुझे बदनाम करने के लिए पंडितजी झूठ बोल रहे होंगे.’’

‘‘ठीक है, मैं जानता हूं बेटा. मुझे तुझ पर पूरा भरोसा है कि तू ऐसावैसा कोई काम नहीं करेगा. वैसे मैं ने पंडितजी को डांट कर भगा दिया है.’’

‘‘ठीक किया पापा,’’ प्रिंस के होंठों पर जहरीली मुसकान उभर आई.प्रिंस ने उस समय तो पिता की आंखों में धूल झोंक कर खुद को बचा लिया. पुत्रमोह में अंधे कृपाशंकर को भी बेटे की करतूत दिखाई नहीं दी. नतीजा यह हुआ कि प्रिंस की आंखों में दुबे की बेटी रागिनी के लिए नफरत और गुस्से का लावा फूट पड़ा. उसे लगा कि पंडित की हिम्मत कैसे हुई कि उस के घर शिकायत करने गया. प्रिंस ने उन्हें सबक सिखाने की ठान ली. आखिर उस ने वही किया, जो उस ने मन में ठान लिया था.

दिनदहाड़े रागिनी की हत्या के बाद आसपास के इलाके में दहशत फैल गई थी. मामला बेहद गंभीर था, इसलिए एसपी सुजाता सिंह ने अपराधियों को गिरफ्तार करने के सख्त आदेश दिए. कप्तान का आदेश पाते ही एसआई बृजेश शुक्ल अपनी पुलिस टीम के साथ आरोपियों को तलाशने में जुट गए

8 अगस्त, 2017 को पुलिस ने जिले से बाहर जाने वाले सभी रास्तों को सील कर दिया. पुलिस को इस का लाभ भी मिला. बलिया से हो कर गोरखपुर जाने वाली रोड पर 2 आरोपी प्रिंस उर्फ आदित्य तिवारी और दीपू यादव उस समय पुलिस के हत्थे चढ़ गए जब वह जिला छोड़ कर गोरखपुर जा रहे थे.

दोनों को गिरफ्तार कर के पुलिस उन्हें थाना बांसडीह रोड ले आई. दोनों आरोपियों से रागिनी दुबे की हत्या के बारे में गहनता से पूछताछ की गई. पहले तो प्रिंस ने पुलिस को अपने पिता की ताकत की धौंस दिखाई लेकिन कानून के सामने उस की अकड़ ढीली पड़ गई. आखिर दोनों ने पुलिस के सामने घुटने टेकने में ही भलाई समझी. उन्होंने अपना जुर्म कबूल कर लिया. बाकी के 3 आरोपी मौके से फरार हो गए थे.

 दोनों आरोपियों से की गई पूछताछ और बयानों के आधार पर दिल दहला देने वाली जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.

55 वर्षीय जितेंद्र दुबे मूलत: बलिया जिले के बांसडीह में 6 सदस्यों के परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां और 1 बेटा अमन था. निजी व्यवसाय से वह अपने परिवार का भरण पोषण करते थे. उन का परिवार संस्कारी था

बेटियों पर गर्व था दुबेजी को उन की तीनों बेटियां गांव में मिसाल के तौर पर गिनी जाती थीं, क्योंकि तीनों ही अपने काम से काम रखती थीं. वे न तो अनर्गल किसी दूसरे के घर उठतीबैठती थीं और न ही फालतू की गप्पें लड़ाती थीं. वे पढ़ाई के साथ घर के काम में भी हाथ बंटाती थीं. दुबेजी बेटियों को बेटे से कम नहीं आंकते थे. तभी तो उन की पढ़ाई पर पानी की तरह पैसा बहाते थे. बेटियां भी पिता के विश्वास पर हमेशा खरा उतरने की कोशिश करती थीं.

तीनों बेटियों में नेहा बीए में पढ़ती थी, रागिनी 11वीं पास कर के 12वीं में गई थी जबकि सिया 11वीं में थी. स्वभाव में रागिनी नेहा और सिया दोनों से बिलकुल अलग थी. रागिनी पढ़ाईलिखाई से ले कर घर के कामकाज तक सब में अव्वल रहती थीं. वह शरमीली और भावुक किस्म की लड़की थी. जरा सी डांट पर उस की आंखों से आंसुओं की धारा बह निकलती थी.

बात 2015 के करीब की है. रागिनी और सिया दोनों सलेमपुर के भारतीय संस्कार स्कूल में अलगअलग कक्षा में पढ़ती थीं. उस समय रागिनी 10वीं में थी और सिया 9वीं में. दोनों बहनें घर से रोजाना बजहां गांव हो कर पैदल ही स्कूल के लिए जातीआती थीं. बजहां गांव के ग्राम प्रधान कृपाशंकर तिवारी का बेटा प्रिंस उर्फ आदित्य उन्हें स्कूल आतेजाते बड़े गौर से देखा करता था.

प्रिंस पहली ही नजर में रागिनी पर फिदा हो गया था. थी तो रागिनी साधारण शक्लसूरत की, मगर उस में गजब का आकर्षण था. रागिनी और सिया जब भी स्कूल जाया करती, वह उन के इंतजार में गांव के बाहर 2-3 दोस्तों के साथ खड़ा रहता था

वह उन्हें तब तक निहारता रहता था जब तक रागिनी और सिया उस की आंखों से ओझल नहीं हो जाती थीं. जबकि दोनों बहनें उस की बातों को नजरअंदाज कर के बिना कोई प्रतिक्रिया किए स्कूल के लिए निकल जाती थीं.

ऐसा नहीं था कि दोनों बहनें उन के इरादों से अंजान थीं, वे उन के मकसद को भलीभांति जान गई थीं. रागिनी प्रिंस से जितनी दूर भागती थी, प्रिंस उतना ही उस की मोहब्बत में पागल हुआ जा रहा था.

17 वर्षीय आदित्य उर्फ प्रिंस उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के बजहां गांव का रहने वाला था. उस का पिता कृपाशंकर तिवारी गांव का प्रधान था. प्रधान तिवारी की इलाके में तूती बोलती थी. उस से टकराने की कोई हिमाकत नहीं करता था. जो उस से टकराने की जुर्रत करता भी था, वह उसे अपनी पौवर का अहसास करा देता था. उस की सत्ता के गलियारों में अच्छी पहुंच थी. ऊंची पहुंच ने प्रधान तिवारी को घमंडी बना दिया था.

ग्रामप्रधान कृपाशंकर तिवारी का बेटा प्रिंस भी उसी के नक्शेकदम पर चल रहा था. पिता की ही तरह प्रिंस भी अभिमानी स्वभाव का था. जिसे चाहे वह उस से उलझ जाता था और मारपीट पर आमादा हो जाता था. वह जब भी चलता था उस के साथ 5-7 लड़कों की टोली चलती थीउस की टोली में नीरज तिवारी, सोनू तिवारी और दीपू यादव खासमखास थे. ये तीनों प्रिंस के लिए किसी भी हद तक जाने को हमेशा तैयार रहते  थे. इसीलिए वह इन पर पानी की तरह पैसा बहाता था.

घातक बनी एकतरफा मोहब्बत प्रिंस रागिनी से एकतरफा मोहब्बत करता था. उसे पाने के लिए वह किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार था जबकि रागिनी उस से प्यार करना तो दूर उस से बात तक करना उचित नहीं समझती थी.

रागिनी के प्यार में प्रिंस इस कदर पागल था कि उस ने खुद को कमरे में कैद कर लिया था. न तो यारदोस्तों से पहले की तरह ज्यादा मिलता था और न ही उन से बातें करता था. प्रिंस की हालत देख कर उस के दोस्त नीरज और दीपू परेशान रहने लगे थे. यार की जिंदगी की सलामती के खातिर तीनों दोस्तों ने फैसला किया कि चाहे कुछ भी क्यों न हो जाए, वह उस का प्यार यार के कदमों में ला कर डालेंगे.

नीरज, सोनू और दीपू तीनों ने मिल कर एक दिन रागिनी और सिया को स्कूल जाते समय रास्ते में रोक लिया. तीनों के अचानक से रास्ता रोकने से दोनों बहनें बुरी तरह से डर गईं, ‘‘ये क्या बदतमीजी है? तुम ने हमारा रास्ता क्यों रोका? हटो हमें स्कूल जाने दो.’’ रागिनी हिम्मत जुटा कर बोली. ‘‘हम तुम्हारे रास्ते से भी हट जाएंगे और तुम्हें स्कूल भी जाने देंगे, बस तुम्हें हमारी कुछ बातें माननी होंगी.’’ नीरज बोला.

‘‘न तो मैं तुम्हारी कोई बात मानूंगी और न ही सुनूंगी. बस तुम हमारा रास्ता छोड़ दो. हमें स्कूल के लिए देर हो रही है.’’ रागिनी नाराजगी भरे लहजे में बोली.

‘‘देखो रागिनी, ये किसी की जिंदगी और मौत की सवाल है. मेरी बात सुन लो, फिर चली जाना.’’ नीरज ने कहा.

‘‘मैंने कहा , मैं तुम्हारी कोई बात नहीं सुनने वाली. क्या मुझे ऐसीवैसी लड़की समझ रखा है. जो राह चलते आवारा किस्म के लड़के के मुंह लगे.’’ रागिनी बोली.

 ‘‘देखो रागिनी, तुम्हारा गुस्सा अपनी जगह जायज है. मैं जानता हूं कि तुम ऐसीवैसी लड़की नहीं, खानदानी लड़की हो. लेकिन तुम ने मेरी बात नहीं सुनी तो मेरा भाई जो तुम से प्यार करता है, मर जाएगा. तुम उसे बचा लो.’’ नीरज रागिनी के सामेन गिड़गिड़ाया.

‘‘तुम्हारा भाई मरता है तो मेरी बला से. मैं उसे प्यार नहीं करती. एक बात कान खोल कर सुन लो कि आज के बाद इस तरह की वाहियात बात फिर मेरे सामने मत दोहराना, वरना इन का परिणाम बहुत बुरा होगा, समझे.’’ नीरज को खरीखोटी सुनाती हुई रागिनी और सिया चली गईं.

रागिनी की बातें नीरज के दिल को लग गई थी. उसे कतई उम्मीद नहीं थी कि रागिनी उसे ऐसा जवाब दे सकती है. रागिनी की बातों से उसे काफी गहरा आघात पहुंचा था. चूंकि मामला उस के भाई के प्यार से जुड़ा हुआ था इसलिए उस ने रागिनी के अपमान को अमृत समझ कर पी लिया था. उस समय तो नीरज और उस के दोस्तों ने उसे कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन नीरज ये बात अपने तक सीमित नहीं रख सका.

उस ने घर जा कर यह बात प्रिंस से बता दी. भाई की बात सुन कर प्रिंस गुस्से से उबल पड़ा कि रागिनी की ऐसी मजाल जो उस ने उस के प्यार को ठुकरा दिया. अगर वो मेरे प्यार को ठुकरा सकती है तो मैं भी उसे जीने नहीं दूंगा. अगर वो मेरी नहीं हो सकती तो मैं किसी और की भी नहीं होने दूंगा.

प्रिंस के गुस्से को नीरज और उस के दोस्तों ने और हवा दे दी थी. रागिनी के प्यार में मर मिटने वाला जुनूनी आशिक प्रिंस ठुकराए जाने के बाद एकदम फिल्मी खलनायक बन गया था

उस दिन के बाद से रागिनी जब भी कहीं आतीजाती दिखती थी, प्रिंस चारों दोस्तों के साथ मिल कर अश्लील शब्दों की फब्तियां कस कर उसे जलील करता, उसे छेड़ता रहता था. और तो और वह दोस्तों को लेकर उस के घर तक धमकाने के लिए पहुंच जाता था.

लिख दिया मौत का परवाना प्रिंस के इस रवैये से उस के घर वाले परेशान हो गए थे. डर के मारे रागिनी ने घर से बाहर निकलना छोड़ दिया था. उस ने स्कूल जाना भी  बंद कर दिया था. प्रिंस का खौफ रागिनी के दिल में बैठ गया था. जब बात हद से आगे बढ़ गई तो रागिनी ने पिता जितेंद्र दुबे ने बांसडीह रोड थाने में प्रिंस और उस के दोस्तों के खिलाफ लिखित शिकायत की

लेकिन प्रधान कृपाशंकर की राजनैतिक पहुंच की वजह से मामला वहीं रफादफा हो गया था. इस के बाद प्रिंस और भी उग्र हो गया. वह सोचता था कि जितेंद्र दुबे ने उस के खिलाफ थाने में शिकायत करने की जुर्रत कैसे की.

बात अप्रैल, 2017 की है. प्रिंस अपने तीनों दोस्तों नीरज, सोनू और दीपू यादव को लेकर जितेंद्र दुबे के घर गया और उन्हें धमकाया कि आज के बाद तुम्हारी बेटी रागिनी अगर स्कूल पढ़ने गई तो वो दिन उस की जिंदगी का आखिरी दिन होगा. इस की धमकी के बाद रागिनी के घर वाले डर गए. उन्होंने उसे स्कूल भेजना बंद कर दिया. वह कई महीनों तक स्कूल नहीं गई

इस वर्ष उस का इंटरमीडिएट था. स्कूल में परीक्षा फार्म भरे जा रहे थे. परीक्षा फार्म भरने के लिए वह 8 अगस्त, 2017 को छोटी बहन सिया के साथ स्कूल जा रही थी. पता नहीं कैसे प्रिंस को रागिनी के आने की खबर मिल गई और उस ने उस का गला रेत कर हत्या कर दी.

बहरहाल, पुलिस ने रागिनी हत्याकांड के नामजद 5 आरोपियों में से 2 आरोपियों प्रिंस और दीपू यादव को तो गिरफ्तार कर लिया. बाकी के 3 आरोपी प्रधान कृपाशंकर, नीरज तिवारी और सोनू फरार होने में कामयाब हो गए. आरोपियों को गिरफ्तार करने को ले कर मृतका की बड़ी बहन नेहा तिवारी सैकड़ों छात्रछात्राओं के साथ कलेक्टे्रट परिसर पहुंची और धरने पर बैठ गई

उन लोगों ने परिवार के सदस्यों को मिल रही धमकी के लिए पुलिस प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया. कांग्रेस के नेता सागर सिंह राहुल ने भी लापरवाही बरतने के लिए पुलिस प्रशासन को कोसा. तब कहीं जा कर बाकी के आरोपियों प्रधान कृपाशंकर तिवारी, सोनू तिवारी और नीरज तिवारी ने कोर्ट में आत्मसमर्पण किया.

कथा लिखे जाने तक पांचों में से किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हुई थी. होनहार बेटी की मौत से पिता जितेंद्र दुबे काफी दुखी हैं. उन्होंने शासनप्रशासन से गुहार लगाई है कि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा देने वाली सरकारें यदि बेटियों की सुरक्षा नहीं कर सकतीं तो उन्हें पैदा होने से पहले ही कोख में मार देने की इजाजत दे दें, ताकि बेटियों को ऐसी जिल्लत और जलालत की मौत रोजरोज मरना पड़े.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित