24 जून, 2023 का दिन था. शाम के पौने 5 बजे का समय था. 36 वर्षीया सुधा चौधरी अपने 17 साल के बेटे अनुराग के साथ स्कूटी द्वारा नदबई बस स्टैंड से कासगंज रोड पर स्थित अपने घर की ओर आ रही थी. तभी रास्ते में बाइक सवार 2 बदमाश उस का पीछा करने लगे. उन दोनों ने ही मुंह पर कपड़ा बांध रखा था. उस समय स्कूटी उस का बेटा अनुराग चला रहा था.
उस की स्कूटी जब सरस्वती मैरिज होम के पास स्थित मंदिर के नजदीक पहुंची ही थी कि बाइक पर पीछा कर रहे युवकों में से पीछे बैठे युवक ने स्कूटी के बराबर पहुंचते ही सुधा चौधरी पर 2 गोलियां चलाईं. गोली लगते ही सुधा की चीख निकल गई. उस के शरीर से खून का फव्वारा फूट पड़ा. जब तक लोग माजरा समझते, बाइक सवार हमलावर फरार हो गए थे. दिनदहाड़े हुई इस वारदात के बाद इलाके में सनसनी फैल गई थी. सुधा चौधरी का बेटा अनुराग बालबाल बच गया था.
यह घटना राजस्थान के जिला भरतपुर के नदबई कस्बे में घटी थी. सुधा चौधरी के एक गोली कंधे से होती हुई हार्ट तक पहुंच गई थी, यही गोली मौत का कारण बनी थी. दूसरी गोली उन की कमर से नीचे लगी थी. गोलियां लगते ही सुधा चौधरी स्कूटी से गिर पड़ी थी.
स्कूटी रोक कर अनुराग लोगों की मदद से अपनी मम्मी को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र नदबई ले गया. डाक्टर ने सुधा चौधरी को मृत घोषित कर दिया था. अस्पताल द्वारा थाना नदबई को फोन पर घटना की इत्तिला दे दी गई.
दिनदहाड़े एक महिला को सरेराह गोलियों से भूनने की खबर मिलते ही नदबई थाना के एसएचओ श्रवण पाठक पुलिस टीम के साथ अस्पताल पहुंच गए थे. इस के बाद उन्होंने घटनास्थल पर पहुंच कर शुरुआती जांच शुरू कर दी. आसपास के दुकानदारों से भी उन्होंने वारदात के बारे में पूछताछ की.
पुलिस ने सुधा चौधरी के शव को कब्जे में ले कर मोर्चरी में रखवा दिया. मृतका का बेटा अनुराग सिसकसिसक कर रो रहा था. उसे श्रवण पाठक ने दिलासा दे कर चुप कराया और घटना के बारे में पूछताछ की. एसएचओ श्रवण पाठक ने शव मोर्चरी में रखवाने के बाद उच्चाधिकारियों को घटना की खबर दे दी.
अनुराग ने पुलिस को दी घटना की जानकारी
घटना की खबर पा कर मृतका के मायके से एवं नदबई में रहने वाले आसपड़ोस के लोग भी अस्पताल व घटनास्थल पर पहुंच गए थे. हर कोई हैरत में था कि सुधा चौधरी जैसी दयालु, समझदार एवं हर किसी के दुखसुख में शामिल रहने वाली महिला की हत्या किस व्यक्ति ने और क्यों कर डाली.
सवाल अपनी जगह थे, मगर सच यही था कि 15 वर्ष से सुधा अपने पति पुष्पेंद्र चौधरी से अलग रह रही थी. पुष्पेंद्र सिंह सीआरपीएफ में नौकरी करता था. पुष्पेंद्र ने करीब 3 साल पहले सुशीला चौधरी नामक युवती से दूसरी शादी कर ली थी. पुष्पेंद्र 27 जुलाई, 2022 को दुर्घटना में चल बसा था.
सुधा और पुष्पेंद्र का तलाक नहीं हुआ था. बगैर तलाक लिए पुष्पेंद्र ने सुशीला से शादी कर ली थी. वह शादी कानून के हिसाब से मान्य नहीं थी. पुलिस को जैसेजैसे जानकारी मिल रही थी, मामला पेचीदा लगने लगा था.
मृतका सुधा के बेटे अनुराग चौधरी (17 साल) ने पुलिस को अपने बयान में बताया, “मैं और मेरी मम्मी सुधा चौधरी (36 वर्ष) पिछले 15 सालों से कासगंज रोड नदबई में अपने पिता पुष्पेंद्र सिंह चौधरी से अलग रह रहे थे. मम्मी का पार्टनरशिप में भरतपुर में औक्सीजन गैस प्लांट है. मम्मी हमेशा की तरह 24 जून, 2023 की सुबह नदबई से भरतपुर गैस प्लांट पर गई थीं. दोपहर साढ़े 3 बजे भरतपुर से बस में बैठ कर वह नदबई आईं.
“उन्होंने बस में बैठने के बाद मुझे फोन कर के स्कूटी लाने को कहा था. वह स्कूटी ले कर नदबई बस स्टैंड पर पहुंच गया था. भरतपुर वाली बस से उतरीं और मेरे पीछे स्कूटी पर बैठ गईं. बाजार से मम्मी ने कुछ खरीदारी की और फिर दोनों स्कूटी से घर की तरफ रवाना हो गए.
“जब स्कूटी कासगंज रोड पर देवी मां के मंदिर के पास पहुंची, तभी बाइक सवार 2 बदमाश स्कूटी के समीप पहुंचे और पीछे बैठे व्यक्ति ने दोनों हाथों में लिए कट्टों से मम्मी पर 2 फायर झोंके और फरार हो गए.”
घटना की खबर मिलते ही सीओ (नदबई) नीतिराज सिंह भी घटनास्थल पर पहुंचे और घटना की जानकारी ली. घटनास्थल का मौका मुआयना किया. उन के निर्देश पर पुलिस ने आसपास के सीसीटीवी फुटेज खंगाले तो काले रंग की बाइक पर 2 व्यक्ति नजर आए. एसएचओ श्रवण पाठक ने सीसीटीवी फुटेज खंगालने के बाद संभावित स्थानों पर दबिश दी.
अनुराग ने अपने नाना बदन सिंह निवासी सालाबाद, हाथरस (उत्तर प्रदेश) के साथ 24 जून, 2023 को थाने पहुंच कर अपनी मम्मी की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई.
चाचा के खिलाफ लगाई रिपोर्ट
अनुराग ने पुलिस को बताया था कि उस के चाचा मनोज चौधरी व सुशीला ने हत्या कराई है, क्योंकि पहले भी माधव के चचेरे भाई शिशुपाल के साथ मिल कर चाचा मनोज ने उन्हें मारने की धमकी दी थी. अनुराग ने आरोप लगाया कि मम्मी की हत्या में दादी रामदेई व बाबा के भाई गुटयारी उर्फ फत्ते का भी हाथ है.
अनुराग की तहरीर पर पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज कर लिया. अनुराग व उस के नाना बदन सिंह द्वारा दी गई जानकारी के बाद पुलिस आरोपियों की खोजबीन करने लगी.
उधर 24 जून, 2023 की शाम को मैडिकल बोर्ड गठित कर सुधा चौधरी के शव का पोस्टमार्टम करा कर पुलिस ने शव परिजनों को सौंप दिया.
इस केस को सुलझाने के लिए भरतपुर के एसपी मृदुल कच्छावा के निर्देश पर विशेष पुलिस टीम का गठन किया गया. इस टीम में मनीषा लाडो (आरपीएस प्रोबेशनर), लखनपुर एसएचओ श्रवण पाठक एएसआई ओम प्रकाश, कांस्टेबल अमित, जयदेव, सुकेश मीना, थाना लखनपुर के एसएचओ, एसएचओ (कुम्हेर) गौरव कुमार, डीएसटी टीम के एएसआई बलदेव सिंह व बाबूलाल, हैडकांस्टेबल वीरेंद्र, सत्यवीर गिरधारी, जगदीश, अमर सिंह, कांस्टेबल लक्ष्मण सिंह आदि शामिल थे.
पुलिस टीम ने सर्वप्रथम सुधा चौधरी की ससुराल बुढ़वारी खुर्द जा कर ससुराल वालों से पूछताछ की. पता चला कि मनोज चौधरी गांव से फरार हो गया है. यह साफ संकेत था कि जरूर सुधा चौधरी हत्याकांड में मनोज का हाथ है. अगर वह निर्दोष था तो फरार क्यों हुआ था.
क्या सच में मनोज ने ही अपने भाभी की हत्या करवाई थी? या इस हत्या के पीछे कोई और था? जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग.
यशपाल को कोई उपाय नहीं सूझा तो उस ने परमिंदर से छुटकारा पाने के लिए अदालत में तलाक का मुकदमा दायर कर दिया. तलाक के लिए उस ने पत्नी पर चरित्रहीनता का आरोप लगाया था, इसलिए उस ने अदालत में बच्चों का डीएनए टेस्ट कराने का भी मुकदमा दायर कर दिया था.
इन दोनों ही मामलों में तारीखों पर तारीखें पड़ रही थीं. इस से यशपाल को लगा कि पुलिस ही नहीं, जज भी उस की चरित्रहीन पत्नी की सहायता कर रहे हैं.
जबकि अदालत तलाक के मुकदमे को इसलिए लटकाए रहती है कि शायद पतिपत्नी में समझौता हो जाए. बहरहाल सन 2012 में अदालत ने परमिंदर कौर के पक्ष में फैसला सुना दिया. इस के बाद यशपाल ने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में अपील दायर की, जहां से उस की अपील खारिज कर दी गई.
अदालतों की इस कार्यवाही से यशपाल इस तरह बौखला गया कि वह लोअर कोर्ट से ले कर हाईकोर्ट तक के जजों को धमकी भरे पत्र लिख कर भेजने लगा. इसी के साथ उस ने उन लोगों की एक सूची भी तैयार कर ली, जिन की वह हत्या करना चाहता था. उस की उस सूची में डीएसपी, एसपी, आईजी, डीआईजी, डीजीपी, लोअर कोर्ट के जज से ले कर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के अलावा पत्नी, बच्चे, साला और कई बैंकों के मैनेजर भी थे. इस सूची में करीब 50 लोग थे.
यशपाल लगातार सभी को धमकी भरे पत्र भेजने लगा तो पटियाला के पुलिस अधीक्षक को हाईकोर्ट की ओर से आदेश मिला कि धमकी भरे पत्र भेजने वाले इस आदमी को हिरासत में ले कर पूछताछ की जाए कि वह ऐसा क्यों कर रहा है? उस की मैडिकल जांच भी कराई जाए.
हाईकोर्ट के आदेश पर पुलिस अधीक्षक ने कोतवाली प्रभारी जसविंदर सिंह टिवाणा को यशपाल को हिरासत में ले कर पूछताछ करने और उस का मैडिकल कराने का आदेश दिया. पुलिस पूछताछ में वह पत्नी की बेवफाई की बातें करता रहा.
इस के बाद उस का चैकअप कराया गया तो डा. बी.एस. सिद्धू के अनुसार वह डेल्यूजनल डिसौर्डर का शिकार पाया गया. इस बीमारी का रोगी अपने दिमाग में कोई भ्रम पाल लेता है. फिर वह जैसा सोचता है, उसे वैसा ही दिखाई देता है.
पुलिस को इन बातों से क्या लेनादेना था. उस ने रिपोर्ट तैयार कर के मैडिकल रिपोर्ट सहित हाईकोर्ट भेज दी. पुलिस के चंगुल से छूटने के बाद यशपाल सिंह ने एक बार फिर पटियाला की सिविल कोर्ट में मैडम पवलीन कौर की अदालत में मुकदमा दायर कर दिया. इस मुकदमे में भी डीएनए टेस्ट की मांग की गई थी.
दूसरी ओर परमिंदर कौर ने भी सरदार हरपाल सिंह की अदालत में डोमेस्टिक वायलेंस का मुकदमा दायर कर दिया था. मुकदमेबाजी करते हुए यशपाल सिंह सब की हत्याओं की योजनाएं भी बना रहा था. वह लैपटौप पर हौलीवुड की फिल्में देखता और हत्याएं करने की तकनीकें खोजता रहता. बेटी हरमीत की हत्या के लिए उस ने इंटरनेट के माध्यम से एक दवा ढूंढ़ निकाली थी, जो धतूरे के बीजों से तैयार की जाती थी.
लेकिन तमाम कोशिश के बाद भी उसे वह दवा नहीं मिली. चाय की पत्ती से निकोटिन जैसा जहर बनाने का आइडिया भी उस ने इंटरनेट से ढूंढ़ निकाला. लेकिन इस में भी उसे सफलता नहीं मिली. 10 अक्तूबर, 2013 को मैडम पवलीन कौर के सुझाव पर यशपाल सिंह की बेटी हरमीत कौर उस के साथ रहने आ गई तो उस ने उस की हत्या की कोशिश और तेज कर दी. लेकिन वह उस की हत्या कुछ इस तरह से करना चाहता था कि उस पर किसी तरह की आंच न आए. इस के लिए वह इसी तरह की फिल्में देखने लगा.
22 फरवरी, 2014 की सुबह बैंक जाने के पहले रात भर पढ़ाई करने के बाद हरमीत कौर गहरी नींद सो रही थी, तभी मुर्गा काटने वाला छुरा ले कर यशपाल उस के कमरे में जा पहुंचा. हौलीवुड की फिल्म से लिए आइडिया के अनुसार उस ने हरमीत की गरदन की मुख्य नस एक ही झटके से काट दी. उसी बीच दर्द से तड़प कर हरमीत ने उसे पकड़ना चाहा तो उस के कुछ बाल उस की मुट्ठी में आ गए थे. दूसरी नस भी उस ने उसी तरह फुरती से काट दी थी. इस के बाद उस छुरे को गरदन में फंसा छोड़ कर वह कमरे में ताला बंद कर के बैंक चला गया.
दोपहर बाद बैंक से लौट कर कोतवाली गया, जहां कोतवाली प्रभारी जसविंदर सिंह टिवाणा को मनगढं़त कहानी सुना दी. लेकिन पुलिस ने घटनास्थल के निरीक्षण में ही ताड़ लिया था कि यह हत्या यशपाल के अलावा किसी और ने नहीं की है.
कोतवाली पुलिस ने यशपाल को सक्षम अदालत में पेश कर के सुबूत जुटाने के लिए 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड के दौरान यशपाल सिंह इंसपेक्टर जसविंदर सिंह टिवाणा से कहता रहा कि वह जितना चाहें पैसे ले लें, लेकिन उसे 2 दिनों के लिए छोड़ दें, ताकि वह अपने अन्य दुश्मनों को भी सबक सिखा सके. क्योंकि एक हत्या में भी उतनी ही सजा होगी, जितनी 5 हत्याओं में.
हरमीत कौर की हत्या की एक वजह यह भी थी कि वह 1 मार्च, 2014 को 18 वर्ष की हो रही थी. यशपाल उस पर यह दबाव डाल रहा था कि वह उस की बहन के पास कनाडा चली जाए. उस का सोचना था कि बालिग होने पर वह अपनी मरजी की मालिक हो जाएगी तो उसे छोड़ कर अपनी मां के पास जाएगी.
मां के साथ रहते हुए वह भी उसी की तरह चरित्रहीन हो जाएगी. जबकि हरमीत कौर चाहती थी कि किसी तरह मम्मीपापा में सुलह हो जाए तो पूरा परिवार एक साथ रह सके. उस की अच्छी सोच ने उसे मौत की नींद सुला दिया तो बाप की गंदी सोच ने उसे जेल पहुंचा दिया.
रिमांड अवधि समाप्त होने पर कोतवाली पुलिस ने यशपाल को एक बार फिर अदालत में पेश किया, जहां अदालत के आदेश पर उसे जिला जेल भेज दिया गया.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
जांच में यह साफ हो गया था कि वहां कोई बाहरी आदमी नहीं आ सकता था, क्योंकि सभी दरवाजे ज्यों के त्यों बंद पाए गए थे. यशपाल सिंह ने भी बताया था कि वह घर आया तो हरमीत का दरवाजा अंदर से बंद था. उसी ने दरवाजा खोला था.
बहरहाल, पुलिस को यशपाल पर ही संदेह हो गया था. लेकिन पुलिस ने उसे गिरफ्तार नहीं किया. उस के बारे में पता करते हुए उस पर नजर रखी जाने लगी.
पुलिस का संदेह तब और बढ़ गया, जब यशपाल सिंह ने बेटी का अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया. जबकि उस के पास किसी चीज की कमी नहीं थी और हरमीत उसी के साथ रहते हुए मारी गई थी. पोस्टमार्टम के बाद हरमीत का अंतिम संस्कार उस की मां ने भाई परमजीत सिंह सिद्धू की मदद से किया था.
पूछताछ के दौरान पुलिस ने गौर किया था कि यशपाल से जब भी कोई सवाल पूछा जाता था, वह ठीक से जवाब देने के बजाय नजरें झुका कर बहस करने लगता था. ऐसी ही बातों से पुलिस को लगा कि हरमीत की हत्या किसी और ने नहीं, यशपाल सिंह ने ही की है तो उसे मनोवैज्ञानिक तरीके से घेरा गया.
फिर पुलिस द्वारा पूछे गए सवालों से वह इस तरह भावुक हुआ कि उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उस ने अपनी बेटी हरमीत कौर की हत्या की जो कहानी सुनाई, सुनने वाले दंग रह गए. सनक में एक बाप इस तरह भी दरिंदा हो सकता है, ऐसा उन्होंने पहली बार देखा था.
यशपाल सिंह शुरू से ही ऐसा नहीं था. कभी वह भी अपनी बीवीबच्चों से बहुत प्यार करता था. बीवी बैंक में मैनेजर थी तो वह खुद भी बैंक में ही असिस्टेंट मैनेजर था. सुंदर से 2 बच्चे थे, जो अच्छी शिक्षा ग्रहण कर रहे थे. रुपएपैसे, मानप्रतिष्ठा की भी कमी नहीं थी.
लगभग 7 साल पहले यशपाल ने एक फिल्म देखी, जो अवैध संबंधों पर बनी थी. पतिपत्नी अलगअलग कंपनियों में नौकरी करते थे. एक साथ काम करने पर न चाहते हुए भी महिलाओं को सहकर्मियों से शिष्टाचारवश घुलमिल कर रहना पड़ता है. ऐसे में फिल्म के हीरो को संदेह हो गया था कि उस की पत्नी का अपने सहकर्मी पुरुषों से अवैध संबंध है.
उस फिल्म ने यशपाल के दिलोदिमाग पर ऐसा असर छोड़ा कि उसे भी पत्नी पर संदेह होने लगा. वह खुद को फिल्म का हीरो और पत्नी को हीरोइन मान बैठा. फिर क्या था, हंसताखेलता, पत्नीबच्चों से प्यार करने वाला यशपाल उसी फिल्म के बारे में सोचसोच कर धीरेधीरे मानसिक रोगी हो गया. रातदिन वह परमिंदर कौर के बारे में ही सोचता रहता.
इस के बाद घर का माहौल बिगड़ने लगा. जहां खुशियां छाई रहती थीं, वहां रात दिन क्लेश रहने लगा. यशपाल को परमिंदर कौर चरित्रहीन लगने लगी तो बात मारपीट तक पहुंच गई. यशपाल को लगने लगा था कि दोनों बच्चे उस के नही, परमिंदर के किसी प्रेमी के हैं.
यशपाल सिंह के मन का वहम बढ़ता गया और एक दिन इसी बात को मुद्दा बना कर उस ने परमिंदर कौर को घर से निकाल दिया. पति ने घर से निकाल दिया तो वह अपने भाई परमजीत सिंह सिद्धू के घर रहने चली गई. दोनों बच्चे भी उसी के साथ चले गए. परमजीत सिंह ग्रामीण बैंक मानसा ब्रांच के मैनेजर थे. यह 7 साल पहले की बात है.
पटियाला के रहने वाले सरदार कावर सिंह सिद्धू की 2 संतानें थीं, बेटा परमजीत सिंह सिद्धू और बेटी परमिंदर कौर. वह प्रशासनिक अधिकारी थे. 9 अप्रैल, 1993 को उन्होंने अपनी बेटी परमिंदर कौर का विवाह पटियाला के ही रहने वाले स्व. अमर सिंह के बेटे यशपाल सिंह के साथ किया था.
अमर सिंह की 4 संतानें थीं. 2 बेटे और 2 बेटियां. शादी के बाद दोनों बेटियों में से एक कनाडा चली गई थी तो दूसरी आस्ट्रेलिया. बड़े बेटे की मौत हो गई थी. यहां सिर्फ यशपाल रह गया था. जबकि उस के ज्यादातर रिश्तेदार विदेशों में रहते थे.
यशपाल और परमिंदर कौर सुखपूर्वक रह रहे थे. परमिंदर कौर बहुत ही साधारण, धार्मिक और संकोची स्वभाव की थीं. दोनों 2 बच्चों के मातापिता बन गए थे. बेटी हरमीत कौर इस समय आईआईटी की तैयारी कर रही थी, जबकि बेटा रिपुदमन सिंह मैट्रिक में पढ़ रहा था.
यशपाल सिंह ने परमिंदर को घर से निकाला तो वह अपने भाई परमजीत सिंह सिद्धू के घर रहने चली गई थी. इस से यशपाल का संदेह और बढ़ गया था. उसे लगा कि परमिंदर का चक्कर जरूर किसी से है, तभी वह अपने भाई के घर रहने चली गई है. दरअसल परमिंदर को घर से निकालने के बाद वह सनक में भूल गया था कि उसी ने उसे घर से निकाला था. चिढ़ कर उस ने अपने साले के खिलाफ थाने में तो शिकायत दर्ज कराई ही, अदालत में भी मुकदमा दायर कर दिया था.
जब उस की इन शिकायतों पर कोई काररवाई नहीं हुई तो नाराज हो कर उस ने पुलिस अधिकारियों, लोअर कोर्ट, सेशन कोर्ट के जजों को ही नहीं, पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को भी अंजाम भुगतने के धमकी भरे पत्र लिखने शुरू कर दिए थे.
उसी बीच गुस्सा शांत होने पर परमिंदर कौर पति को समझाने की गरज से घर लौट आई थी. लेकिन यशपाल पत्नी, साले, पुलिस प्रशासन और न्यायालय से भड़का हुआ था, इसलिए वह इन सब को सबक सिखाना चाहता था. पत्नी वापस आ गई तो उस ने सोचा, पहले इसे ही खत्म कर देते हैं. इस के लिए कहीं से वह बम टाइमर ले आया और 4 गैस सिलेंडरों के साथ जोड़ कर टाइम सैट कर दिया. इस के बाद खुद बाजार चला गया. उस ने सोचा था कि विस्फोट होने पर मकान के साथ बीवीबच्चे भी उड़ जाएंगे. लेकिन संयोग से ऐसा कुछ नहीं हुआ.
विस्फोट क्यों नहीं हुआ, लौट कर यशपाल चैक करने लगा तो छेड़छाड़ में सिलेंडर में आग लग गई, जिस में वह झुलस गया. पड़ोसियों ने आ कर किसी तरह आग पर काबू पाया और उसे ले जा कर अस्पताल में भरती कराया. इस तरह पत्नी को ऊपर पहुंचाने के चक्कर में वह स्वयं अस्पताल पहुंच गया. अस्पताल से लौटने के बाद उस ने फिर से परमिंदर को ठिकाने लगाने की कोशिश शुरू कर दी. परमिंदर को जब पता चला कि यशपाल उसे मारने की कोशिश कर रहा है तो वह फिर से उसे छोड़ कर चली गई.
दोपहर बाद बैंक की छुट्टी होने पर पौने 3 बजे के आसपास यशपाल सिंह जगदीशपुरा स्थित अपने घर पहुंचे तो जेब से चाबी निकाल कर कमरे का ताला खोला और अंदर जा कर हाथ में लिया सामान टेबल पर रख दिया. इस के बाद उन्होंने बेटी के कमरे की ओर देखा. दरवाजा बंद था, इसलिए वह होठों ही होठों में बड़बड़ाए, ‘‘हरमीत अभी तक सो रही है?’’
हरमीत को आवाज देते हुए उन्होंने दरवाजे को धकेला तो वह खुल गया. कमरे में अंधेरा था. लाइट जलाने के बाद जैसे ही उन की नजर बेड पर पड़ी, भय से उन का शरीर कांप उठा और मुंह से चीख निकल गई. बेड पर उन की 17 वर्षीया बेटी हरमीत कौर की खून से लथपथ लाश पड़ी थी.
यशपाल सिंह भाग कर बेड के पास पहुंचे और हरमीत की नब्ज टटोली कि शायद वह जिंदा हो लेकिन हरमीत मर चुकी थी. उस की गरदन आधी से ज्यादा कटी हुई थी, बाकी में बीचोबीच एक चाकू घुसा हुआ था. गरदन की कटी नसें स्पष्ट दिखाई दे रही थीं. किसी ने बड़ी बेरहमी से उस की हत्या कर दी थी.
यशपाल सिंह लाश के पास बैठ कर रोने लगे. काफी देर तक रोने के बाद मन थोड़ा हलका हुआ तो उन्हें लगा कि इस तरह रोने से काम नहीं चलेगा. इस हत्या की सूचना पुलिस को देनी चाहिए. वह उठे और ताला लगा कर थाना कोतवाली पटियाला की ओर चल पड़े.
कोतवाली पहुंच कर यशपाल सिंह ने बेटी की हत्या की सूचना इंसपेक्टर जसविंदर सिंह टिवाणा को दी तो वह हैरान रह गए. क्योंकि यशपाल सिंह भीड़भाड़ वाले जिस इलाके में रहते थे, वहां दिनदहाड़े इस तरह घर में घुस कर हत्या करना आसान नहीं था.
बहरहाल, एएसआई प्रीतपाल सिंह और हेडकांस्टेबल कुलदीप सिंह को साथ ले कर इंसपेक्टर जसविंदर सिंह यशपाल सिंह के घर जा पहुंचे. वह एक शानदार कोठी थी. बरामदे में पहुंच कर इंसपेक्टर जसविंदर सिंह ने पूछा, ‘‘लाश कहां है?’’
‘‘जी, उधर कमरे में.’’ कह कर यशपाल ताला खोल कर पुलिस वालों को उस कमरे में ले गए, जहां बेड पर हरमीत कौर की लाश पड़ी थी.
मृतका के सिरहाने बेड पर कापीकिताबों का ढेर लगा था. एक किताब हाथ के पास पड़ी थी. शायद वह पढ़ते पढ़ते सो गई थी. सोते हुए में ही उस की हत्या की गई थी. उस का गला सामने की ओर से काटा गया था. चाकू अभी भी उस की गरदन में घुसा था. पुलिस ने देखा, बेड के आसपास कहीं खून नहीं था. चित्त पड़ी होने की वजह से शायद गरदन से बहा खून कपड़ों में समा गया था.
इंसपेक्टर जसविंदर सिंह टिवाणा ने इस हत्या की सूचना पुलिस अधीक्षक हरदयाल सिंह मान, डीएसपी (सिटी) केसर सिंह को देने के साथ क्राइम टीम को फोन कर के घटनास्थल पर बुला लिया था.
लाश का निरीक्षण करते समय इंसपेक्टर जसविंदर सिंह को मृतका की दाईं मुट्ठी में कुछ बाल दिखाई दिए. इस का मतलब मृतका ने हत्यारे से संघर्ष किया था. लेकिन बिस्तर पर ऐसे कोई चिह्न नहीं दिखाई दे रहे थे. उन्होंने बेड पर रखी कापीकिताबों के ढेर में से एक नोटबुक उठा कर देखी तो उस के प्रथम पृष्ठ पर लिखा था, ‘लड़ना नहीं, आपस में प्यार से मिल कर रहना.’
इस के बाद उन्होंने अन्य नोटबुक उठा कर देखीं तो यही लाइन लगभग सभी कापी किताबों में लिखी थी. मृतका ने अपनी सभी कापी किताबों में यह लाइन क्यों लिखी थी, यह इंसपेक्टर जसविंदर सिंह की समझ में नहीं आया?
क्राइम टीम ने अपना काम कर लिया तो घटनास्थल की अपनी सारी काररवाई निपटा कर पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद थाने आ कर मृतका हरमीत कौर के पिता यशपाल सिंह की ओर से हत्या का यह मुकदमा अज्ञात के खिलाफ दर्ज कर लिया गया. यह 22 फरवरी, 2014 की बात है.
पूछताछ में यशपाल सिंह ने घटना के बारे में जो बताया था, पुलिस को उस में तमाम पेंच नजर आ रहे थे. उन्होंने बताया था कि जुलाई, 2008 से उन का अपनी पत्नी परमिंदर कौर से झगड़ा चल रहा था. वह अलग रहती थी. उस ने तलाक ले लिया था. उन की 2 संतानें थीं, 18 वर्षीया बेटी हरमीत कौर, जिस की हत्या हो चुकी थी और 16 वर्षीय बेटा रिपुदमन सिंह. पहले दोनों बच्चे मां के साथ ही रहते थे.
अक्तूबर, 2013 में अदालत के सुझाव पर बेटी हरमीत कौर उन के पास रहने आ गई थी. लेकिन अदालत ने हरमीत को पिता के साथ रहने का कोई लिखित आदेश नहीं दिया था. बस सुझाव दिया था. इसी सुझाव पर मांबाप का झगड़ा खत्म करने की गरज से हरमीत पिता के पास रहने आ गई थी.
यशपाल सिंह मालवा ग्रामीण बैंक बुग्धाकलां में असिस्टेंट मैनेजर थे. उन की पत्नी परमिंदर कौर भी माल रोड, पटियाला में कोऔपरेटिव बैंक में मैनेजर थीं. मृतका हरमीत कौर आईआईटी की तैयारी कर रही थी, इसलिए रातरात भर जाग कर पढ़ती थी.
जगदीशपुरा कालोनी वाली जिस कोठी में यशपाल सिंह बेटी हरमीत कौर के साथ रह रहे थे, वह उन के बहनोई रणजीत सिंह चहल की थी. चूंकि वह परिवार के साथ कनाडा में रहते थे, इसलिए उन्होंने यह कोठी यशपाल सिंह को देखभाल के लिए सौंप रखी थी. पत्नी से मनमुटाव होने के बाद गुरुनानक नगर की टैंक वाली गली की अपनी कोठी छोड़ कर वह इसी कोठी में रहने आ गए थे. जबकि उन की पत्नी परमिंदर कौर उसी गली में किराए पर रह रही थीं.
पूछताछ में यशपाल ने पुलिस को बताया था कि सुबह जब वह बैंक जाने के लिए घर से निकले थे तो हरमीत सो रही थी. सामने वाले दोनों कमरों के बीच एक दरवाजा था. एक कमरे में हरमीत सोती थी और दूसरे में वह खुद सोते थे. हरमीत बाहर वाला दरवाजा अंदर से बंद कर लेती थी. बीच वाला दरवाजा खुला रहता था. सुबह जाते समय यशपाल अपने कमरे के दरवाजे पर ताला लगा देते थे. हरमीत सो कर उठती थी तो अपना दरवाजा खोल कर बरामदे में आ जाती थी और पिता के कमरे का ताला खोल देती थी.
दिन के 11 बजे के बाद साफसफाई वाली आती थी. उस समय तक हरमीत जाग गई होती थी. लेकिन सफाई वाली के अनुसार उस दिन वह काम पर आई तो हरमीत सो कर नहीं उठी थी.