मासूम की लाश पर लिखी सपनों की इबारत – भाग 3

रुद्राक्ष की हत्या हुए 15 दिन से ज्यादा बीत चुके थे. दीपावली का त्योहार भी निकल गया था. एडीजी (अपराध) अजीत सिंह शेखावत इस मामले को ले कर चिंतित भी थे और बेचैन भी. वह ठीक से सो तक नहीं पा रहे थे. उन्हें जयपुर से कोटा आए कई दिन हो गए थे. पुलिस महानिदेशक ओमेंद्र भारद्वाज उन से रोजाना रिपोर्ट ले रहे थे. मुख्यमंत्री कार्यालय के अधिकारी भी लगातार उन से संपर्क बनाए हुए थे. पुलिस की विफलता और लोगों में बढ़ता जनाक्रोश मीडिया में सुर्खियां बना हुआ था.

शेखावत की परेशानी वाजिब थी. मामला एक मासूम के अपहरण और हत्या का था, जिस में अपराधी अंकुर पाडि़या की हकीकत भी पता चल चुकी थी और पुलिस ने उस के खिलाफ सुबूत भी जुटा लिए थे. लेकिन अंकुर पुलिस को चकमा पर चकमा दे रहा था. पुलिस डालडाल रहती, तो वह पातपात चलता. पुलिस उस की चालों को समझ ही नहीं पा रही थी.

पुरानी कहावत है कि बकरे की मां आखिर कब तक खैर मनाएगी. इस मामले में भी यही हुआ. घटना के 18 दिनों बाद आखिर 27 अक्टूबर को अंकुर पुलिस के हत्थे चढ़ ही गया. उसे उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में एक होटल से गिरफ्तार कर लिया गया.

होटल में वह फर्जी नाम से रुका हुआ था. संयोग से अंकुर के भाई अनूप से की गई पूछताछ में उन के कारनामों और भविष्य की साजिशों का ऐसा घिनौना चेहरा सामने आया कि पुलिस भी हतप्रभ रह गई.

रुद्राक्ष का अपहरण कर के उस की हत्या करने वाला मुख्य आरोपी अंकुर इतना शातिर था कि वह आत्महत्या की झूठी कहानी गढ़ कर राजस्थान से बाहर ऐश की जिंदगी जीने के सपने देख रहा था. उस ने अपना हुलिया भी बदल लिया था. पहचान छिपाने के लिए उस ने सिर के बाल कटवा लिए थे और दाढ़ी बढ़ा ली थी.

पूछताछ में हुए खुलासे के बाद पुलिस ने अंकुर का लिखा एक सुसाइड नोट बरामद किया, जिस में उस ने लिखा था कि मुझे पैसों के लिए प्रताडि़त किया गया. इस के बाद कुछ लोगों ने गुमराह कर के मुझ से रुद्राक्ष के अपहरण और हत्या का अपराध करवाया. रुद्राक्ष को अगवा करने के बाद मैं ने उन्हें सौंप दिया था. मैं ने अपराध किया है, इसलिए अब मैं जिंदा नहीं रहना चाहता. मैं खुद को खत्म कर रहा हूं. पुलिस व मेरे परिवार को जब तक यह ‘सुसाइड नोट’ मिलेगा, तब तक मेरी लाश चंबल में कहीं दूर बह चुकी होगी.

हकीकत में अंकुर का आत्महत्या करने का कोई इरादा नहीं था. वह इस सुसाइड नोट के जरिए पुलिस और लोगों को गुमराह करना चाहता था. अंकुर का मानना था कि सुसाइड नोट के आधार पर पुलिस मान लेती कि उस की मौत हो चुकी है. इस के बाद वह अपने भाई अनूप की तरह किसी बड़े शहर में नाम बदल कर अपना बिजनेस शुरू करता.

अंकुर ने इस सुसाइड नोट में पुलिस व जनता को भावुक करने के लिए यह भी लिखा था कि वह अपने मातापिता व पत्नी से माफी मांगता है. उस ने जो काम किया, उस की वजह से मातापिता व उस की पत्नी को दुखी होना पड़ा, इस के लिए वह क्षमा चाहता है. अंकुर ने प्लास्टिक सर्जरी करवा कर अपना चेहरा बदलवाने का प्लान भी बना लिया था, ताकि जिंदगी भर वह किसी की पहचान में न आए.

उस का इरादा था कि मामला शांत हो जाने के बाद वह भारत से भाग कर फ्रांस में जा बसेगा और दूसरी शादी कर लेगा.

अंकुर जैसा ही शातिर उस का भाई अनूप था. अनूप के खिलाफ राजस्थान के विभिन्न पुलिस थानों में 39 केस दर्ज थे. इन में ज्यादातर मामले ठगी के थे, जिन में से कई मामलों में उसे सजा भी हो चुकी थी. वह जयपुर सेंट्रल जेल में बंद था. 18 नवंबर, 2009 को कोटा से पेशी पर लौटते समय अनूप पुलिस टीम को चकमा दे कर भाग गया था.

पुलिस हिरासत से भाग कर कई महीने इधरउधर रहने के बाद अनूप लखनऊ में बस गया था. उस ने उत्तर प्रदेश में फरजी ड्राइविंग लाइसेंस भी बनवा लिया था. फिलहाल वह लखनऊ स्थित गोमतीनगर के विराम खंड के एक मकान में नाम बदल कर रह रहा था. मकान मालिक व अड़ोसपड़ोस के लोगों को उस ने खुद को दिल्ली निवासी बता कर अपना नाम संतोष बताया था. जिस मकान में वह रहता था, उस का किराया 20 हजार रुपए महीने था.

लखनऊ में अनूप एक मोबाइल शौप पर मैनेजर की नौकरी करता था. उस के घर काम करने वाली नौकरानी रानी ने पुलिस को बताया कि अनूप की एक गर्लफ्रैंड है, दोनों की मुलाकात एक मौल में होम एप्लांसेस की दुकान में हुई थी. अनूप के ठाठबाठ व रईसी रहनसहन देख कर वह उस से इंप्रेस हो गई थी. अपनी गर्लफ्रैंड को वह महंगी गाडि़यों में घुमाता था. अनूप के घर पर आए दिन पार्टियां होती रहती थीं. व्हाट्स एप पर अनूप ने अपने प्रोफाइल स्टेटस पर खुद को किंगसाइज लाइफ शो कर रखा था.

पूछताछ में यह भी खुलासा हुआ कि अनूप पाडि़या लखनऊ में रहते हुए देह व्यापार के लिए रशियन लड़कियों की सप्लाई करता था. इस के लिए वह अपने ग्राहकों से 30 हजार से 50 हजार रुपए तक लेता था.

रशियन लड़कियां वह दिल्ली के एक दलाल के मार्फत लखनऊ बुलवाता था. दिल्ली से हवाई जहाज से लखनऊ आने के बाद ये लड़कियां अनूप के बताए ठिकाने पर चली जाती थीं. लड़कियों को सप्लाई करने के लिए वह हर बार अलग ड्रेस कोड तय करता था, ताकि एयरपोर्ट पर आने के बाद वह खुद या उस का एजेंट लड़की को आसानी से पहचान सके. रशियन लड़कियों के वीजा की व्यवस्था दिल्ली का दलाल करता था.

दोनों भाई ठगी करने में माहिर थे. अंकुर ने एक कोचिंग संस्थान में फेकल्टी के विभागाध्यक्ष रहे गोपाल चतुर्वेदी से जमीन के नाम पर 55 लाख रुपए ठग लिए थे. इस के लिए उस ने गोपाल से उदयपुर में पार्टनरशिप में 5 करोड़ रुपए की जमीन खरीदने की बात तय की थी. अंकुर ने गोपाल को वह जमीन दिखा भी दी थी. इतना ही नहीं, उस ने रजनीश जिंदल के नाम से एक फरजी इकरारनामा बनवा कर गोपाल से 55 लाख रुपए ले भी लिए थे.

बाद में जमीन मालिक से मिलवाने के लिए अंकुर गोपाल को दिल्ली ले गया और होटल ली-मेरेडियन में उन्हें रजनीश जिंदल के बजाय अपने भाई अनूप से मिलवा दिया. अनूप ने गोपाल चतुर्वेदी को अपना परिचय रजनीश जिंदल के रूप में दिया और उदयपुर की जमीन खुद की बताई. बाद में इस जमीन के फर्जीवाड़े की बात सामने आने पर गोपाल को दोनों ठग भाइयों की असलियत पता चली. इस संबंध में कोटा के बोरखेड़ा थाने में मुकदमा दर्ज है.

अंकुर ने पूछताछ में पुलिस को बताया कि महंगे शौक और सट्टेबाजी के कारण उस पर एक करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज हो गया था. कर्ज चुकाने के लिए ही उस ने रुद्राक्ष का अपहरण करने की योजना बनाई थी. इस के लिए वह दिल्ली के गफ्फार मार्केट से 8 नए मोबाइल सिम खरीद कर लाया था. इस के बाद उस ने क्लोरोफार्म का इंतजाम किया.

रुद्राक्ष का अपहरण करने के लिए उस ने पार्क की कई दिनों तक रैकी की थी. इस बीच उस ने रुद्राक्ष को बहकाफुसला कर उस से उस के परिवार के बारे में पूछ लिया था. चौकलेट के चक्कर में रुद्राक्ष उस से काफी घुलमिल गया था.

9 अक्टूबर की शाम को रुद्राक्ष हनुमान मंदिर पार्क में पहुंचा और वहां मौजूद बच्चों के साथ खेलने लगा. इसी दौरान अंकुर पाडि़या भी वहां पहुंच गया. थोड़ी देर बातचीत के बाद वह रुद्राक्ष को बड़ी चौकलेट दिलाने के बहाने पार्क से बाहर ले आया. पार्क के बाहर उस की माइक्रा निशान कार खड़ी थी. वह रुद्राक्ष को उसी में बैठा कर चल दिया. उस ने पहले उसे चौकलेट दिलाई, फिर थोड़ी देर कार से उसे इधरउधर घुमाता रहा.

जाना अनजाना सच : जुर्म का भागीदार – भाग 3

जिस कमरे में अनवर मुझे ले गया, उस में हलका अंधेरा था. मैं ने देखा, एक कोने में एक लड़का फैल्ट हैट पहने म्यूजिक सुन रहा था. मैं अनवर की अम्मी के सीने से लग कर उन के मुंह से अपने लिए दुलहन शब्द सुनने को बेताब थी.

‘‘अम्मी को जल्दी बुलाइए न,’’ कह कर मैं अनवर को हैरानी से देखने लगी. दिल में तूफान सा छाया हुआ था जो अनवर की अम्मी के दीदार से ही शांत हो सकता था. बाहर अंधेरा स्याह होता जा रहा था.

‘‘अम्मी गुसलखाने में हैं.’’ अनवर ने मुझे कुरसी पर बैठा कर गिलास थमाते हुए कहा, ‘‘तब तक कोक पियो.’’ अनवर की आंखों का बदलता रंग देख कर मैं ने जल्दी से कोक पी लिया. लेकिन यह क्या, मुझे सब कुछ धुआंधुआं सा लगने लगा. मैं होश खोती जा रही थी.

तभी अनवर ने मेरे गाल पर एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया. उस वक्त उस की आंखें बारूद उगल रही थीं. यह इंतकाम की आग थी. वह गुस्से में बोला, ‘‘मैं मवाली हूं, गुंडा हूं, बदचलन हूं. यही कहा था ना तेरी मां ने.’’

धीरेधीरे मैं पूरी तरह बेहोश हो गई, विरोध की कतई क्षमता नहीं थी. अनवर की दुलहन बनने का मेरा ख्वाब टूट चुका था. जब मुझे थोड़ाथोड़ा होश आना शुरू हुआ तो मुझे अनवर और उस के साथी की हंसी सुनाई दी. अनवर का दोस्त थोड़ी दूर गलियारे में उस से कह रहा था, ‘‘अनवर, आज जैसा मजा पहले कभी नहीं आया.’’

अनवर और उस के दोस्त की जहरीली हंसी मेरे दिल में नश्तर की तरह चुभ रही थी. मैं लड़खड़ाते हुए उठी, पूरा बदन दर्द से बेहाल था. मेरे कपड़े, मेरा लहूलुहान जिस्म, मेरी तबाही की कहानी कह रहे थे. मैं चुपचाप बाहर आ गई. बाहर से स्कूटर ले कर मैं घर लौट आई. तब तक पूरा शहर अंधेरे के आगोश में डूब चुका था. गनीमत यह थी कि अब्बू टुअर पर थे. इस काली रात की कहानी जानने वाला मेरे अलावा कोई नहीं था.

मैं ने जब अम्मी को बताया तो वह चीख पड़ीं, मुझे बुरी तरह डांटा, पीटा. मैं सारी रात सिसकती रही. उस के बाद हर रात मेरी सिसकियां अंधेरों में घुटती रहीं. मम्मी भी किटी पार्टियां अटैंड करना, सैरसपाटा, शौपिंग सब भूल गई थीं. मेरी जैसी मांओं के लिए, जिन के पास अपने बच्चों की देखभाल का वक्त न हो, इस से बड़ी सजा और हो भी क्या सकती थी?

अम्मी ने मुझे सख्त हिदायत दी थी कि इस राज को परदे में ही रखूं. फिर जल्दीबाजी में मेरी शादी मेराज से कर दी गई थी. मेरी पसंदनापसंद या मरजी के बारे में पूछना भी मुनासिब नहीं समझा गया था. मैं होमली लड़की थी. शादी की बात आई तो नए अरमान फिर से जेहन में करवट लेने लगे. शौहर के कदमों के नीचे औरत का स्वर्ग होता है. मैं उसी स्वर्ग की कल्पना करने लगी.

मेरा निकाह हो गया. मैं सुहागसेज पर बैठी अपने शौहर के आने का बेताबी से इंतजार कर रही थी, मेरी आंखों में भावी जीवन के गुलाबी सपने तैर रहे थे. तभी किसी के कदमों की आहट पास आती सुनाई दी तो मैं खुद में सिमट गई. मैं ने घूंघट की ओट से देखा तो मेराज की सुनहरी शेरवानी से सजा फूलों सा महकता व्यक्तित्व नजर आया. उन्होंने धीरे से करीब आ कर मेरा घूंघट पलटा तो ऐसे चौंके जैसे किसी नागिन को देख लिया हो.

मुझे पर टेढ़ी नजर डाल कर मेराज बाहर चले गए. बस, उस दिन के बाद हम दोनों के बीच एक अदृश्य सी दीवार बन गई. हम ने सालों साथ गुजारे तो सिर्फ इसलिए क्योंकि दो बड़े परिवारों की इज्जत का मामला था. हम साथ रह कर भी नदी के दो किनारे बने रहे. मैं देवर और ननदों को पालने, बड़ा करने में लगी रही और मेराज बिजनैस में. मैं चाह कर भी नहीं जान पाई कि मेराज को मुझ से क्या शिकायत थी, वह मुझ से क्यों दूर रहना चाहते थे. अब तक यही स्थिति थी.

रात गहरा रही थी. नैनी झील के किनारे लगी लाइटों की रोशनी पानी की लहरों पर लहराती हुई बड़ी अच्छी लग रही थी, लेकिन अब उसे देखने का मन नहीं था. मैं मेराज के सीने से लिपटी उन में अपने हिस्से का प्यार खोज रही थी. मन चाह रहा था, सालों की चाह आज ही पूरी कर लूं.

तभी मेराज गंभीर स्वर में बोले, ‘‘क्या तुम किसी अनवर को जानती हो?’’

अनवर का नाम सुन कर मैं एक ही झटके में खयालों से बाहर आ गई. मैं ने डर कर कांपती आवाज में पूछा, ‘‘क्यों, आप उसे कैसे जानते हैं?’’

‘‘क्योंकि वह मेरा जिगरी दोस्त था. जिस रोज तुम उस के पास आई थीं, मैं ही कैप लगाए म्यूजिक सुन रहा था. अंधेरे की वजह से तुम मुझे पहचान नहीं सकी थीं. आगे क्या हुआ, तुम जानती ही हो. जब हमारा निकाह हुआ, मुझे भी मालूम नहीं था कि जिसे मेरा जीवनसाथी बनाया जा रहा है, वह तुम हो. यही वजह थी कि सुहागरात में घूंघट उठाते वक्त मैं चौंक गया था. गलती अनवर की थी और मैं उस में भागीदार था. इस के बावजूद मेरे मन में तुम्हें ले कर दुर्भावना बनी रही कि तुम्हें मेरी बीवी नहीं होना चाहिए था. लेकिन अब मेरी सोच बदल गई है. गलत मैं था, तुम नहीं.’’

लंबी खामोशी जब टूटती है तो उस की गूंज भी देर तक सुनाई देती है. डाल से बिछड़े पत्ते की तरह मैं बद्हवास थी, तभी इन का कोमल स्वर सुनाई दिया, ‘‘तुम ने वहां आ कर जो भूल की थी, उस में मैं भी तो बराबर का गुनहगार हूं.’’ इन के सीने से लगी मैं कांप रही थी. हम दोनों ही शर्मसार थे और एकदूसरे की चाहत में बेताब भी.

सपना का अधूरा सपना – भाग 3

अभिनय ने आर्यसमाज मंदिर में विधिविधान से सपना से शादी कर के सभी को मिठाई खिलाई. इस के बाद प्रार्थना को उस के घर भेज दिया और सपना को साथ ले कर लोहियानगर स्थित अपने घर आ गया. अभिनय के घर वालों ने सपना को बहू के रूप में स्वीकार कर के उस का भव्य स्वागत किया.

प्रार्थना घर पर पहुंची तो उसे अकेली देख कर घर वालों ने सपना के बारे में पूछा. जब उस ने कहा कि बाजार में सपना उसे चकमा दे कर भाग गई है तो घर वाले बौखला उठे. उन्होंने तुरंत सपना को फोन किया. जब सपना ने बताया कि उस ने अभिनय से शादी कर ली है और अब वह उसी के यहां रहेगी तो कुंवरपाल सपना को समझाने लगा कि उस के इस कदम से उस की कालोनी और समाज में बड़ी बदनामी होगी, इसलिए वह वापस आ जाए.

लेकिन जब सपना ने साफसाफ कह दिया कि अब वह किसी भी सूरत में अभिनय को छोड़ कर नहीं आ सकती तो खीझ कर कुंवरपाल ने फोन काट दिया. इस के बाद पतिपत्नी ने प्रार्थना की जम कर पिटाई की. इस तरह सपना की करनी की सजा प्रार्थना को भोगनी पड़ी.

अगले ही दिन कुंवरपाल ने अपने दोनों सालों नंदकिशोर तथा राधाकिशन को बुलाया और उन से पूछा कि अब क्या किया जाए? एक बार उन के मन में आया कि क्यों न वे अभिनय को मार दें. लेकिन जब इस बात पर उन्होंने गहराई से विचार किया तो उन्हें लगा कि इस मामले में अभिनय की क्या गलती है, भाग कर शादी तो सपना ने की है, इसलिए जो सजा दी जाए, उसे दी जाए. इस तरह सपना घर वालों की आंखों का कांटा बन गई.

कुंवरपाल अकसर फोन कर के सपना को समझाता और धमकी देता रहता था कि उस ने जो किया है, वह ठीक नहीं किया है, वह वापस आ जाए, इसी में उस की भलाई है. अगर उस ने उस का कहना नहीं माना तो वह उसे छोड़ेगा नहीं, भले ही उसे पूरी उम्र जेल में बितानी पड़े. इस तरह सिर नीचा कर के जीने से तो अच्छा है, वह पूरी जिंदगी जेल में ही काट दे.

अभिनय के घर वालों ने सपना को बहू के रूप में स्वीकार तो कर लिया था, लेकिन अभिनय के पिता शिशुपाल सिंह जादौन के मन में एक कसक थी कि वह अपने बेटे की शादी धूमधाम से नहीं कर सके. इसलिए वह चाहते थे कि सपना के घर वाले उस की शादी धूमधाम से कर दें. सपना जानती थी कि उस का बाप ऐसा कतई नहीं करेगा, इसलिए उस ने ससुर से कह दिया कि ऐसा होना नामुमकिन है.

शिशुपाल सिंह को लगा कि बेटे की शादी धूमधाम से नहीं हो सकती तो वह अपने घर इस शादी की दावत कर के अपने परिचितों और रिश्तेदारों को बता दें कि उन के बेटे ने प्रेम विवाह कर लिया है. वह दावत की तैयारी कर रहे थे कि एक दिन कुंवरपाल पत्नी उर्मिला और साली के साथ उन के घर आ पहुंचा.

कुंवरपाल और उस की पत्नी ने सपना और उस की ससुराल वालों से कहा कि जो हो गया, सो हो गया. अब वे अपनी बेटी की शादी सामाजिक रीतिरिवाज के अनुसार धूमधाम से करना चाहते हैं. इसलिए शादी की तारीख तय कर के वे सपना को अपने साथ ले जाना चाहते हैं.

सपना मांबाप के साथ घर जाना तो नहीं चाहती थी. लेकिन अभिनय और उस के ससुर शिशुपाल सिंह ने समझाबुझा कर उसे कुंवरपाल के साथ भेज दिया.

आखिर वही हुआ, जिस बात का सपना को डर था. घर आने के बाद कुंवरपाल सपना को इस बात के लिए राजी करने लगा कि उस ने एटा के जिस लड़के के साथ उस की शादी तय की है, वह उस के साथ शादी कर ले. सपना इस के लिए तैयार नहीं थी. उस का कहना था कि एक बार उस ने अभिनय से शादी कर ली है तो वह अब किसी दूसरे से शादी क्यों करे.

25 जुलाई की शाम को भी कुंवरपाल ने सपना से एटा वाले लड़के से शादी करने की बात कही. लेकिन सपना ने साफ मना कर दिया. इस के बाद रात का खाना खा कर जब घर के सभी लोग सो गए तो कुंवरपाल दबे पांव सपना के कमरे में पहुंचा. अंदर से सिटकनी बंद कर के उस ने एक बार फिर सपना को शादी के लिए मनाना चाहा. लेकिन सपना नहीं मानी तो वह उसे मनाने के लिए करंट लगाने लगा. इसी करंट लगाने में सपना बेहोश हो गई.

सपना का इस तरह बेहोश हो जाना कुंवरपाल को खतरे की घंटी लगा. उस ने सोचा कि अब इस का जिंदा रहना ठीक नहीं है, इसलिए उस ने उस की गर्दन और हाथ पर तार लपेट कर प्लग में लगा दिया, जिस से सपना तड़पतड़प कर मर गई.

सपना को मौत के घाट उतार कर कुंवरपाल ने यह बात पत्नी उर्मिला को बताई तो वह सन्न रह गई. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उस का पति इतना घिनौना काम भी कर सकता है. कुंवरपाल ने गुस्से में सपना को मार तो डाला, लेकिन अब उसे अपने किए पर पछतावा हो रहा था. अब उसे जेल जाने का भी डर सताने लगा था. उस समय रात के 2 बज रहे थे.

पुलिस से बचने के लिए उस ने अन्य बच्चों को जगाया और उन्हें घर से बाहर कर के सपना के मोबाइल फोन का स्विच औफ कर दिया. उन्होंने बच्चों को इस बात की जानकारी नहीं होने दी कि सपना के साथ क्या हुआ है. घर में बाहर से ताला लगा कर कुंवरपाल पत्नी और अन्य बच्चों के साथ फरार हो गया.

पूछताछ के बाद उत्तर कोतवाली पुलिस ने अपनी ही बेटी की हत्या के आरोप में कुंवरपाल सिंह यादव को जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक बाकी कोई गिरफ्तार नहीं हुआ था. पुलिस उन की तलाश कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

फरेब के जाल में फंसी नीतू – भाग 3

एक समझदार ससुर की तरह बाबूलाल मऊ नीतू के मायके पहुंचा और दुनिया की ऊंच नीच और इज्जत दुहाई देते उसे मना कर वापस ले आया. यह पिछले साल नवरात्रि की बात है. नीतू दोबारा ससुराल आ गई. पत्नी क्यों मायके चली गई थी और फिर वापस क्यों आ गई और सेक्स से अंजान रामजी को इन बातों से कोई सरोकार नहीं था.

हालात देख बाबूलाल के मन में पाप पनपा और उस ने नीतू से नजदीकियां बढ़ानी शुरू कर दीं. किसी नएनवेले आशिक की तरह बाबूलाल नीतू की हर पसंदनापसंद का खयाल रखने लगा तो नीतू भी उस की तरफ झुकने लगी. आखिर उसे भी पुरुष सुख की जरूरत थी, जिसे वह कहीं बाहर से हासिल करती तो बदनामी भी होती और गलत भी वही ठहराई जाती.

देहसुख का अघोषित अनुबंध तो बाबूलाल और नीतू के बीच हो गया लेकिन पहल कौन और कैसे करे, यह दोनों को समझ नहीं आ रहा था. मियांबीवी राजी तो क्या करेगा काजी वाली बात इन दोनों पर इसलिए लागू नहीं हो रही थी कि दोनों के बीच कोई काजी था ही नहीं. दोनों भीतर ही भीतर सुलगने लगे थे पर शायद लोकलाज का झीना सा परदा अभी बाकी था.

यह परदा भी एक दिन टूट गया जब आंगन में नहाती नीतू को बाबूलाल ने देखा. उस के दुधिया और भरे मांसल बदन को देखते ही बाबूलाल के जिस्म में चीटियां सी रेंगी तो सब्र ने जवाब दे दिया. एकाएक उस ने नीतू को जकड़ लिया.

नीतू ने कोई एतराज नहीं जताया. वह तो खुद पुरुष संसर्ग के लिए बेचैन थी. उस दिन जो हुआ नीतू के लिए किसी मनोकामना के पूरी होने से कम नहीं था. बाबूलाल को भी सालों बाद स्त्री सुख मिला था, सो वह भी निहाल हो गया.

अब यह रोजरोज का काम हो गया था. दोनों को रोकनेटोकने वाला कोई नहीं था. रामजी जैसे ही बिस्तर पर आ कर सोता था, नीतू सीधे बाबूलाल के कमरे में जा पहुंचती थी.

उम्र और रिश्तों का लिहाज नाजायज संबंधों में नहीं होता और आमतौर पर उन का अंत में किसी तीसरे का रोल जरूर रहता है. पर इन दोनों पर यह बात लागू नहीं थी. ससुर की मर्दानगी पर निहाल हो चली नीतू ने एक दिन बाबूलाल से साफ कह दिया कि अब मुझ से शादी करो नहीं तो…

इस ‘नहीं तो’ में छिपी धमकी बाबूलाल को समझ आ रही थी और मजबूरी भी, लेकिन जो जिद नीतू कर रही थी उसे वह पूरी नहीं कर सकता था. अब जा कर बाबूलाल को समाज और रिश्तों के मायने समझ आए. समझाने और मना करने पर नीतू झल्लाने लगी थी, जिस से बाबूलाल घबराया हुआ रहने लगा था. नीतू की लत तो उसे भी लग गई थी पर उस पर लदी शर्त उस से पूरी करते नहीं बन रही थी.

साफ है बाबूलाल बहू के जिस्म को तो भोगना चाहता था लेकिन समाज को ठेंगा बता कर उसे पत्नी बनाने की बात सोचते ही उस के पैरों तले से जमीन खिसकने लगती थी. जितना वह समझाता था नीतू उसी तादाद में एक बेतुकी जिद पर अड़ती जा रही थी.

अब बाबूलाल नीतू से बचने के बहाने ढूंढने लगा था, जिन में से एक उसे मिल भी गया था कि फसल पक रही है, इसलिए उसे चौकीदारी के लिए खेत पर सोना पड़ेगा. इस के लिए उस ने खेत में झोपड़ी भी डाल ली थी.

नीतू जब शहर से मजदूरी कर लौटती थी तब तक बाबूलाल खेत पर जा चुका होता था. कुछ दिन ऐसे ही बिना मिले गुजरे तो नीतू का सब्र जवाब देने लगा. वैसे भी वह महसूस रह रही थी कि बाबूलाल अब उस में पहले जैसी दिलचस्पी नहीं लेता. 25 मार्च को नीतू जब सहेलियों के साथ लौटी तो उसे याद आया कि अगले दिन उसे मायके जाना है.

मायके जाने से पहले वह अपनी प्यास बुझा लेना चाहती थी. इसलिए सीधे खेत पर पहुंच गई और बाबूलाल को इशारा किया कि आज रात वह यहीं रुकेगी तो बाबूलाल के हाथ के तोते उड़ गए, क्योंकि रात में दूसरे किसान तंबाकू और बीड़ी के लिए उस के पास आते रहते थे.

समझाने की कोशिश बेकार थी फिर भी बाबूलाल ने दूसरे किसानों के आनेजाने की बात बताई तो नीतू ने खुद अपने हाथों से अपने कपड़े उतार लिए और धमकी देते हुए बोली, ‘‘खुले तौर पर मुझ से बीवी की तरह पेश आओ नहीं तो पुलिस में रिपोर्ट लिखा दूंगी.’’ उस दिन सुबह वह बाबूलाल से कह भी रही थी कि रात में घर पर ही मिलना.

रोजरोज की धमकियों और परेशानियों से तंग आ गए बाबूलाल को कुछ नहीं सूझा तो उस ने बेरहमी से नीतू की हत्या कर दी और स्तनों को खरोंचा, जिस से मामला सामूहिक बलात्कार का लगे. नीतू का गुप्तांग भी उस ने इसी वजह के चलते जलाया था.

नीतू की हत्या पर वह उस की लाश को कंधे पर उठा कर ले गया और आम के बाग में फेंक आया. पुलिस को दिए शुरुआती बयान में वह रामजी को फंसा देना चाहता था जिस से खुद साफ बच निकले. पर ऐसा नहीं हो पाया.

ससुर बहू के अवैध संबंधों का यह मामला अजीब इस लिहाज से है कि इसे और ज्यादा ढोने की हिम्मत नीतू में नहीं बची थी और वह अधेड़ ससुर को ही पति बनाने पर उतारू हो आई थी यानी राजकुमार, हेमामालिनी, कमल हासन और पद्मिनी कोल्हापुरे अभिनीत फिल्म ‘एक नई पहेली’ की तर्ज पर वह अपने ही पति की मां बनने तैयार थी.

बड़ी गलती बाबूलाल की है जिस की सजा भी वह भुगत रहा है. उस ने पहले पागल बेटे की शादी करा दी और जब बेटा बहू की शारीरिक जरूरतें पूरी नहीं कर पाया तो खुद पाप की दलदल में उतर गया.

नीतू रखैल की तरह नहीं रहना चाह रही थी. साथ ही वह दुनियादारी की परवाह भी नहीं कर रही थी, इसलिए उस से छुटकारा पाने के लिए बाबूलाल को उस की हत्या ही आसान रास्ता लगा पर कानून के हाथों से वह भी नहीं बच पाया.

षडयंत्र : पैसों की चाह में – भाग 3

अभियुक्त स्वर्ण सिंह और उस का साला कुलविंदर सिंह शुरू से जमीनजायदाद के फर्जी काम करते आ रहे थे. पर ज्यादा पढ़ेलिखे न होने की वजह से वे छोटीमोटी ठगी तक ही सीमित थे. लेकिन रोहित कुमार यानी अमित कुमार से मिलने के बाद उन के पर निकल आए थे. उसी के कहने पर वे किसी बड़े काम की तलाश में लग गए थे. इसी तलाश में अमरजीत सिंह पर उन की नजर जम गई थी.

इस पूरे खेल का मास्टरमाइंड अमित कुमार उर्फ विजय कुमार उर्फ रोहित कुमार था, जिस का असली नाम रोहित चोपड़ा था. वह लुधियाना के घुमार मंडी के सिविल लाइन के रहने वाले दर्शन चोपड़ा के तीन बेटों में सब से छोटा था. लगभग 7 साल पहले उस की शादी इंदू से हुई थी, जिस से उसे 5 साल की एक बेटी थी.

रोहित बचपन से ही अति महत्त्वाकांक्षी, शातिर दिमाग था. एलएलबी करने के बाद तो उस का दिमाग शैतानी करामातों का घर बन गया था. वह रातदिन अपराध करने और उस से बचने के उपाय सोचता रहता था. स्वर्ण सिंह से मिलने के बाद जब उसे अमरजीत सिंह की दौलत, जमीनजायदाद और पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में पता चला तो वह स्वर्ण सिंह के साथ मिल कर उन की प्रौपर्टी और रुपए हथियाने के मंसूबे बनाने लगा.

एक तरह से स्वर्ण सिंह रोहित चोपड़ा के लिए मुखबिर का काम करता था. रोहित को जब स्वर्ण से पता चला कि अमरजीत सिंह बेटों से ज्यादा वास्ता नहीं रखता तो उसे अपना काम आसान होता नजर आया. स्वर्ण सिंह ने उसे बताया था कि एक बेटा भारतीय सेना में है तो दूसरा जमीनों की देखभाल करता है.

इस के बाद रोहित कुमार ने अमरजीत सिंह का माल हथियाने की जो योजना बनाई, उस के अनुसार सब से पहले उन की ओर से डिप्टी कलेक्टर को एक पत्र लिखवाया गया. जिस में उस ने लिखवाया था कि ‘मेरे दोनों बेटे गुरदीप सिंह और गुरचरण सिंह मेरे कहने में नहीं हैं. वे मेरी जमीनजायदाद हड़पने के चक्कर में मेरी हत्या करना चाहते हैं.’

अमरजीत सिंह शराब पीने के आदी थे और अभियुक्तों पर पूरा विश्वास करते थे. यही वजह थी कि शराब पीने के बाद वह उन के कहने पर किसी भी कागज पर हस्ताक्षर कर देते थे. डिप्टी कलेक्टर के नाम पत्र लिखवाने के बाद उन्होंने अमरजीत सिंह की हत्या की योजना बना डाली थी. लेकिन समस्या यह थी कि अमरजीत सिंह के पास अपना लाइसेंसी हथियार था. जरा भी संदेह या चूक होने पर उन लोगों की जान जा सकती थी. इसलिए वे मौके की तलाश में रहने लगे.

मई के अंतिम सप्ताह में उन्हें मौका मिला. अमरजीत सिंह अपने किसी मिलने वाले की जमीन के झगड़े का फैसला कराने सिंधवा वेट, जगराओं गए हुए थे. घर में भी उन्होंने यही बताया था. रोहित कुमार ने सोचा कि अगर बाहर से ही अमरजीत सिंह को कहीं ले जा कर हत्या कर दी जाए तो किसी को उस पर संदेह नहीं होगा. उस ने स्वर्ण सिंह से सलाह कर के अमरजीत सिंह को फोन किया, ‘‘जमीन का एक बढि़या टुकड़ा बिक रहा है. अगर आप देखना चाहें तो मैं आप के पास आऊं.’’

लेकिन अमरजीत सिंह ने जाने से मना कर दिया. इस तरह रोहित कुमार और स्वर्ण सिंह की यह योजना फेल हो गई. वे एक बार फिर मौका ढूंढने लगे. इसी बीच उन्होंने अमरजीत को ढाई करोड़ रुपए में एक जमीन खरीदवा दी. इस की फर्जी रजिस्ट्री भी उन्होंने करा दी. इस में भी गवाह स्वर्ण सिंह था. पार्टी को पैसे देने के नाम पर उन्होंने उन से 50-50 लाख कर के 1 करोड़ रुपए भी ले लिए.

किसी भी जमीन की रजिस्ट्री करवाने के बाद उस का दाखिल खारिज कराना जरूरी होता है. उसी के बाद खरीदार निश्चिंत हो जाता है कि उस जमीन पर किसी तरह का विवाद नहीं है. अमरजीत सिंह द्वारा खरीदी गई जमीन के दाखिल खारिज का समय आया तो स्वर्ण सिंह और रोहित कुमार को चिंता हुई, क्योंकि उस जमीन के सारे कागजात फर्जी थे. जब जमीन ही नहीं थी तो कैसी रजिस्ट्री और कैसा दाखिल खारिज.

पोल खुलने के डर से रोहित कुमार और स्वर्ण सिंह परेशान थे. ऐसे में अमरजीत सिंह की हत्या करना और जरूरी हो गया था. क्योंकि सच्चाई का पता चलने पर अमरजीत सिंह उन्हें छोड़ने वाला नहीं था.

दाखिल खारिज के लिए 10-12 दिन बाकी रह गए तो वे अमरजीत सिंह को सस्ते में जमीन दिलाने की बात कह कर खरीदने के लिए उकसाने लगे. स्वर्ण सिंह और उस की पत्नी सुखमीत कौर ने अमरजीत सिंह को बताया कि उस के भाई कुलविंदर सिंह की पृथ्वीपुर में काफी जमीन है, जिसे वह बेचना चाहता है. उसे पैसों की सख्त जरूरत है, इसलिए वह कुछ सस्ते में दे देगा.

उसी जमीन के बारे में बातचीत करने के लिए 24 अगस्त की रात स्वर्ण सिंह अमरजीत सिंह के औफिस में ही रुक गया. देर रात तक वे शराब पीते रहे. स्वर्ण सिंह अमरजीत सिंह को अधिक शराब पिला कर पृथ्वीपुर चल कर जमीन देखने के लिए राजी करता रहा. जब अमरजीत सिंह चलने के लिए तैयार हो गए तो सुबह के लगभग साढ़े 5 बजे अपने घर थरीके जा कर वह अपनी सफेद रंग की इंडिका कार ले आया, जिस का नंबर पीबी 19 ई-2277 था. उस के साथ उस की पत्नी सुखमीत कौर भी थी.

स्वर्ण सिंह ने कार ब्रह्मकुमारी शांति सदन के मोड़ पर खड़ी कर दी और अमरजीत सिंह के औफिस जा कर बोला, ‘‘भाईजी चलो, गाड़ी आ गई है.’’

नशे में धुत अमरजीत सिंह सोचनेसमझने की स्थिति में नहीं थे. वह उठे और जा कर कार में बैठ गए. उसी समय गांव के कृपाल सिंह ने उन्हें इंडिका कार में स्वर्ण सिंह के जाते देख लिया था. अंबाला दिल्ली होते हुए वे पृथ्वीपुर पहुंचे. वहां स्वर्ण सिंह के भाई गुरचरण सिंह और साले कुलविंदर सिंह ने अमरजीत सिंह का स्वागत बोतल खोल कर किया.

शराब पीतेपीते ही शाम हो गई. अब तक अमरजीत सिंह खूब नशे में हो चुके थे. उन से उठा तक नहीं जा रहा था. उसी स्थिति में उन्हें वहीं कमरे में गिरा दिया और सब मिल कर पीटने लगे. लकड़ी का एक मोटा डंडा पड़ा था. स्वर्ण सिंह उसे उठा कर अमरजीत सिंह की गरदन और सिर पर वार करने लगा. उसी की मार से अमरजीत की गरदन टूट कर एक ओर लुढ़क गई और उस के प्राणपखेरू उड़ गए.

जब उन लोगों ने देखा कि अमरजीत का खेल खत्म हो गया है तो उन्होंने लाश को कार में डाला और उसे ठिकाने लगाने के लिए चल पड़े. रामगंगा नदी के पुल पर जा कर उन्होंने अमरजीत सिंह की लाश को नदी में फेंक दिया. इस के बाद गुरचरण और कुलविंदर पृथ्वीपुर लौट गए तो स्वर्ण सिंह पत्नी सुखमीत कौर के साथ लुधियाना आ गया.

पुलिस ने स्वर्ण सिंह, सुखमीत कौर, गुरचरण सिंह और कुलविंदर सिंह को तो जेल भेज दिया, लेकिन अमित कुमार उर्फ रोहित कुमार पुलिस के हाथ नहीं लगा था. 15 दिसंबर, 2013 को इस मामले की जांच क्राइम ब्रांच को सौंप दी गई थी. कथा लिखे जाने तक अमरजीत सिंह की लाश बरामद नहीं हो सकी थी.

प्यार का जूनून

शादी के नाम पर ऐसे होती है ठगी – भाग 4

अजय परेशान था कि ऐसा क्या काम करे कि उसे मोटी कमाई हो. तभी उस के दिमाग में उच्च परिवार की तलाकशुदा ऐसी महिलाओं को ठगने का आइडिया आया जो फिर से शादी करना चाहती हों. इस के लिए उस ने जीवनसाथी डौटकौम वेबसाइट पर रजिस्ट्रेशन करा कर अपनी आकर्षक प्रोफाइल बनाई.

प्रोफाइल में उस ने अपना नाम बदल कर राजीव यादव लिखा और अपनी जगह किसी दूसरे का फोटो लगा दिया. नोएडा के छलेरा गांव के रहने वाले युवक अमित चौहान को उस ने मोटी तनख्वाह पर नौकरी पर रख लिया था.

प्रभाव जमाने के लिए अजय ने खुद को आईपीएस अफसर और मिजोरम में डीआईजी के पद पर तैनात बताया. इस आकर्षक प्रोफाइल को देख कर ही अनुष्का उस के जाल में फंसी थी. जिस से उस ने साढ़े 24 लाख रुपए ठग लिए थे

पुलिस ने जालसाज अजय यादव उर्फ राजीव यादव और अमित चौहान को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश कर जेल तो भेज दिया. लेकिन इस के बाद भी अनुष्का की मुश्किलें कम नहीं हुई हैं. अब अदालत की काररवाई में उसे कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं.

अनुष्का की ही तरह शालिनी भी शादी के विज्ञापन की वेबसाइट के जरिए एक ऐसे व्यक्ति के चंगुल में फंसी कि उस युवक ने उस के 6 लाख रुपए बड़ी आसानी से ठग लिए.

दिल्ली के कृष्णानगर इलाके के रहने वाला वरुण बीए सेकेंड ईयर किए हुए है. उस ने दरजनों संस्थानों में जौब की, लेकिन कहीं भी टिक नहीं पाया. इसी दौरान उस ने टीवी पर एक क्राइम शो देखा. शो में दिखाया गया था कि एक शख्स मैट्रीमोनियल साइट्स पर एकाउंट बना कर किस तरह महिलाओं को ठगता था. उसी टीवी शो से प्रेरित हो कर वरुण पाल ने भी मैट्रीमोनियल साइट्स के जरिए ठगी करने की योजना बनाई.

योजना के तहत उस ने मैट्रीमोनियल की 3 बड़ी वेबसाइट्स पर अपने कई एकाउंट बनाए और फेसबुक में हैंडसम दिखने वाले लड़कों की तसवीरें लगा दीं. अपनी प्रोफाइल में उस ने खुद को माइक्रोसाफ्ट कंपनी का आईटी मैनेजर बताया. अपना प्रभाव जमाने के लिए वरुण ने अपनी फेसबुक में कुछ अच्छे बंगलों की तसवीरें भी अपलोड कर दीं. उन बंगलों को वह अपने बताता था. खुद को रसूख वाला प्रोजैक्ट करने के बाद कई महिलाएं उस के जाल में फंसीं.

महिलाओं को अपने जाल में फांसने के बाद वह उन से मुलाकात करता और किसी तरह उन के न्यूड फोटोग्राफ हासिल कर लेता था. इस के बाद वरुण का ठगी का खेल शुरू हो जाता था. वह बिजनैस में मोटा घाटा होने की बात कह कर उन से मोटी रकम ऐंठता. जब कोई महिला पैसे देने में आनाकानी करती तो वह न्यूड तसवीरों के जरिए उसे ब्लैकमेल करता.

शालिनी भी मैट्रीमोनियल साइट के जरिए वरुण पाल के जाल में फंस गई. वरुण ने शालिनी को शादी के जाल में फांस कर 6 लाख रुपए ठग लिए थे. शालिनी से जब वरुण ने और पैसों की डिमांड की तो शालिनी को अहसास हो गया कि उसे ठगा जा रहा है. उस ने और पैसे देने से मना कर दिया तो वरुण ने उसे धमकी दी कि यदि पैसे नहीं दिए तो वह उस के न्यूड फोटो इंटरनेट पर डाल देगा.

शालिनी अब समझ चुकी थी कि जिसे वह अपना जीवनसाथी चुनने जा रही थी, वह बहुत शातिर ठग है. उस ने उसे सबक सिखाने के लिए दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच में लिखित शिकायत कर दी.

आर्थिक अपराध शाखा के डीसीपी एस.डी. मिश्रा ने इस मामले में त्वरित काररवाई करते हुए एक पुलिस टीम बनाई. पुलिस टीम ने 8 अगस्त, 2014 को आरोपी वरुण पाल को गिरफ्तार कर लिया.

मैट्रीमोनियल साइटों पर आज भी तमाम फरजी एकाउंट एक्टिव हैं. जिन लोगों ने ऐसे एकाउंट बना रखे हैं, उन का मकसद भोलीभाली लड़कियों, महिलाओं को अपने जाल में फंसा कर उन का आर्थिक और शारीरिक शोषण करना होता है.

ऐसे विज्ञापनों के जरिए शादी के बंधन में बंधने वालों को पहले अच्छी तरह से छानबीन कर लेनी चाहिए कि उस ने अपने प्रोफाइल में जो कुछ दे रखा है, वह सही है या नहीं. यदि बिना जांच किए शादी का प्रपोजल स्वीकार कर लिया तो अनुष्का और शालिनी की तरह पछताना पड़ सकता है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. अनुष्का और शालिनी नाम परिवर्तित हैं.

मासूम की लाश पर लिखी सपनों की इबारत – भाग 2

रात बीत गई, लेकिन कोई भी फोन नहीं आया. न तो अपहरणकर्ता ने ही दोबारा फोन किया और न ही फोन पर रुद्राक्ष के मिलने की कोई खबर मिली.

पूरी रात आंसुओं में बीतने के बाद दूसरे दिन शुक्रवार का सूरज निकल आया. पुनीत और श्रद्धा को उम्मीद थी कि आज रुद्राक्ष का पता लग जाएगा. वे दुआ मांग रहे थे कि किसी भी तरह रुद्राक्ष सुरक्षित लौट आए.

रुद्राक्ष का पता लग भी गया, लेकिन पुनीत और श्रद्धा का सब कुछ लुट चुका था. उस दिन सुबहसुबह कोटा के पास तालेड़ा इलाके में एक नहर में बच्चे का शव पड़ा होने की सूचना मिली. पुलिस मौके पर पहुंची. पुनीत और श्रद्धा को भी बुला लिया गया. शव रुद्राक्ष का ही था. बेटे का शव देख कर श्रद्धा पछाड़ खा कर गिर पड़ीं. परिवार वालों ने उन्हें संभाला और घर ले गए. अपहर्ताओं ने मासूम रुद्राक्ष को मार कर नहर में फेंक दिया था.

रुद्राक्ष का शव नहर में मिलने की बात पूरे शहर में तेजी से फैली तो लोगों में आक्रोश फैल गया. मासूम रुद्राक्ष की मौत से पूरा शहर रो पड़ा. पुलिस ने जरूरी काररवाई के बाद शव घर वालों को सौंप दिया. दोपहर में गमगीन माहौल में रुद्राक्ष का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

अब यह मामला संगीन हो चुका था. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के निर्देश पर जयपुर से भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी, कोटा के प्रभारी मंत्री यूनुस खान तथा अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (अपराध) अजीत सिंह कोटा पहुंच गए. उन्होंने पीडि़त परिवार से मिल कर सांत्वना दी और रुद्राक्ष के हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने का भरोसा दिलाया.

मासूम रुद्राक्ष की हत्या ने कोटा के नागरिकों को इतना आहत किया कि 11 अक्टूबर को पूरा शहर बंद रहा. चाय की गुमटी व पानसिगरेट तक की दुकानें नहीं खुलीं. वकीलों ने कामकाज बंद रखा. लोगों ने कैंडल मार्च निकाल कर रुद्राक्ष को श्रद्धांजलि दी.

रुद्राक्ष का शव मिलने के बाद अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक अजीत सिंह के निर्देशन में पुलिस दल ने नए सिरे से जांचपड़ताल शुरू कर दी. पुलिस की 10 से ज्यादा टीमें रुद्राक्ष के अपहरणकर्ताओं की जानकारी जुटाने लगी. सबूत मिलने लगे तो अपराध की अलगअलग कडि़यां जुड़ने लगीं. इस बीच रुद्राक्ष की हत्या को ले कर पूरे कोटा संभाग में जनाक्रोश बढ़ता जा रहा था. जगहजगह आंदोलन हो रहे थे. आसपास के शहर भी अलगअलग दिन बंद रहे. पुलिस के लिए रुद्राक्ष के अपहरण और हत्या का मामला चुनौती बन गया था.

5 दिनों तक दिनरात चली जांचपड़ताल के बाद पुलिस ने विभिन्न तरीकों से इस मामले में सभी जरूरी ठोस सबूत जुटा लिए. 14 अक्टूबर की रात पुलिस अधिकारियों ने कोटा में प्रेस कौन्फ्रैंस कर के दावा किया कि रुद्राक्ष के कातिल की पहचान कर ली गई है. रुद्राक्ष का अपहरण कर के उस की हत्या करने वाला शख्स अंकुर पाडि़या है.

अधिकारियों ने दावा किया कि जांचपड़ताल में पुलिस को अंकुर पाडि़या के बारे में कई सनसनीखेज एवं तथ्यात्मक जानकारियां मिली हैं. पुलिस का कहना था कि अंकुर पाडि़या का पर्दाफाश क्लोरोफार्म की आनलाइन शौपिंग के लिए किए गए ई-मेल से हुआ है.

प्रेस कौन्फ्रैंस में अधिकारियों ने बताया कि पुलिस की जांचपड़ताल में पता चला है कि अंकुर का रहनसहन और जीवनशैली हाईप्रोफाइल है. हाई सोसायटी में उठनाबैठना, महंगी गाडि़यों में घूमना, लड़कियों से अय्याशी करना, क्रिकेट मैच पर सट्टा लगाना उस का शौक था. अय्याशी का जीवन जीने वाला अंकुर कई बार विदेश जा चुका है. अलगअलग जगहों पर उस के कई फ्लैट हैं.

बारां रोड पर एक मल्टीस्टोरी बिल्डिंग में उस का एक फ्लैट पूरी तरह साउंडपू्रफ है. इस फ्लैट में वह केवल पार्टियां करता था. वहां ऐशोआराम की तमाम सुविधाएं हैं. ओम एन्क्लेव के एक फ्लैट से पुलिस को अंकुर की कई कीमती चीजें मिली हैं. विदेशों में भी उस के कई दोस्त हैं. जांचपड़ताल में पुलिस को अंकुर के भाई अनूप की भी जानकारी मिली. अनूप भगोड़ा था. वह 5 साल पहले पुलिस हिरासत से भाग गया था. उस पर लोगों से करोड़ों रुपए ठगने का आरोप था.

पुलिस ने अपनी छानबीन के आधार पर बताया कि अंकुर पाडि़या कोटा के ओम एन्क्लेव के सी ब्लाक में चौथी मंजिल पर अपनी पत्नी व मातापिता के साथ रहता था. उस के फ्लैट के ठीक सामने कोटा में तैनात यातायात पुलिस की डीएसपी तृप्ति विजयवर्गीय का फ्लैट है. जांच में यह बात भी सामने आई कि वारदात के बाद अंकुर अपने इस फ्लैट में आताजाता रहा, लेकिन न तो पड़ोसी डीएसपी को उस पर शक हुआ और न ही किसी और को.

जांच दलों को अंकुर के पुलिस अधिकारियों से भी अच्छे संपर्क होने की जानकारी मिली. जांच में यह भी पता चला कि रुद्राक्ष के अपहरण की रात पुलिस जब उस की निशान माइक्रा कार का सत्यापन करने के लिए उस के घर पहुंची तो उस ने जांच के लिए आए पुलिस दल को एक उच्चाधिकारी से फोन करवा कर कहलवाया कि वह गाड़ी के कागज एक दिन बाद दिखा देगा.

पुलिस ने रुद्राक्ष के अपहरण की सूचना और निशान माइक्रा कार की फुटेज मिलने के बाद उसी रात कार कंपनी के शोरूम से कोटा में चल रही निशान माइक्रा कारों और उन के मालिकों की सूची हासिल कर ली थी. इसी सूची के आधार पर घटना के कुछ घंटे बाद ही आधी रात को पुलिस अंकुर के घर उस की कार का सत्यापन करने के लिए पहुंची थी. पुलिस अधिकारियों ने माना कि अगर उस रात अंकुर की कार का सत्यापन हो जाता तो शायद रुद्राक्ष जीवित मिल जाता.

पुलिस अधिकारियों ने यह भी बताया कि जांच में यह बात सामने आई कि अंकुर पाडि़या क्रिकेट का सट्टा लगाता था. सट्टे में वह करोड़ों रुपए की रकम गंवा चुका था. इसी की भरपाई के लिए उस ने रुद्राक्ष के अपहरण की साजिश रची थी. इस के लिए उस ने कई दिनों तक पार्क की रैकी करने के बाद रुद्राक्ष को चुना था. रुद्राक्ष के पिता पुनीत हांडा बैंक मैनेजर थे और मां श्रद्धा टीचर. इस से अंकुर को उम्मीद थी कि रुद्राक्ष का अपहरण कर के उसे मोटी रकम मिल जाएगी, जिस से वह अपना कर्ज उतार देगा.

राजस्थान पुलिस ने 14 अक्टूबर की रात रुद्राक्ष के अपहरण और उस की हत्या के मामले का पर्दाफाश जरूर कर दिया, लेकिन अंकुर पाडि़या पुलिस की पकड़ से दूर था. अलबत्ता पुलिस ने दावा किया कि अंकुर के ठिकानों की जानकारी मिल चुकी है और वह जल्द से जल्द पकड़ में आ जाएगा.

पुलिस ने अंकुर पाडि़या की जन्म कुंडली और उस के भगोड़े भाई अनूप की अपराध कुंडली हासिल कर के एक मोर्चे पर सफलता हासिल कर ली थी. उसे उम्मीद थी कि अपराधी अब ज्यादा दिन भाग नहीं सकेंगे. पुलिस ने जिस तरह के दावे किए थे, उस से कोटा की जनता और रुद्राक्ष के मातापिता को भी यह उम्मीद बंधी थी कि अपराधी जल्दी ही गिरफ्तार हो जाएंगे.

लेकिन यह इतना आसान साबित नहीं हुआ. पुलिस अंकुर की गिरफ्तारी को जितना आसान मान रही थी, वह उतना ही मुश्किल साबित हो रहा था. अंकुर पुलिस से भी ज्यादा शातिर और चालाक साबित हुआ. पुलिस जब तक उस के ठिकाने पर पहुंचती, वह वहां से निकल चुका होता था. उधर कातिल का पर्दाफाश हो जाने के बावजूद गिरफ्तारी नहीं होने से कोटा में जनाक्रोश बढ़ता जा रहा था. पुलिस परेशान थी. कई टीमें अंकुर की तलाश में देश भर में उस के संभावित ठिकानों पर दबिश दे रही थीं, लेकिन सार्थक परिणाम सामने नहीं आ रहे थे.

जाना अनजाना सच : जुर्म का भागीदार – भाग 2

मेरी और मेराज की शादी भी इत्तफाक ही थी. सच कहूं तो 2 बड़े परिवारों के बीच अचानक बना एक खोखला संबंध भर. यह संबंध भी इसलिए बना था क्योंकि मेरे अब्बू अम्मी को मेरी शादी की जल्दी थी. उन की चाहत पूरी हुई और सब कुछ जल्दीजल्दी में हो गया. इस के पीछे भी एक रहस्य था जिस के लिए जिम्मेदार मैं ही थी.

बात उन दिनों की है जब मैं लखनऊ यूनिवर्सिटी में पढ़ा करती थी. एक दिन जब मैं अपनी फाइल उठा कर यूनिवर्सिटी जाने के लिए निकली तो अब्बू बोले, ‘‘सलमा, इन से मिलो, यह हैं मेरे जिगरी दोस्त जुबैर. इन के साहबजादे अनवर मियां भी लखनऊ यूनिवर्सिटी से फिजिक्स में एमएससी करने आए हैं. उन्हें हौस्टल में जगह नहीं मिल पा रही है इसलिए कुछ दिन हमारे यहां ही रहेंगे. तुम शाम तक कोठी की ऊपरी मंजिल के दोनों कमरे साफ करवा देना. अनवर शाम को आ जाएगा.’’

‘‘आदाब चचाजान’’ कह कर मैं अब्बू की तरफ मुखातिब हो कर बोली, ‘‘अब्बू, मैं शाम तक कमरे तैयार करवा दूंगी. अभी जा रही हूं, देर हुई तो मेरी क्लास छूट जाएगी.’’

खुदा हाफिज कह कर मैं सीढि़यां उतर कर चली गई. चचाजान और अब्बू हाथ हिलाते रहे. वापस आते ही मैं ने सब से पहले कमरे साफ करवाए. फूलों वाली नई चादर बिछाई, गुलदानों में नए फूल सजाए. टेबल पर अपने हाथ का कढ़ा हुआ मेजपोश बिछाया, उस पर पानी से भरा जग और नक्काशीदार ग्लास रखा.

नीचे आई तो लगा कोई दरवाजे पर दस्तक दे रहा है. मेरे कपड़े और मलिन सा चेहरा धूल से भरे हुए थे. पर मैं करती भी तो क्या, दस्तक तेज होती जा रही थी. मैं ने फाटक खोल दिया.

बाहर एक युवक खड़ा था. वह अपना परिचय देते हुए बोला, ‘‘मैं अनवर.’’

कसरती जिस्म, स्याह घुंघराले बाल, उसे देख मैं तो पलक झपकना ही भूल गई. लगा जैसे किसी ने सम्मोहन सा कर दिया हो. ‘‘आइए तशरीफ लाइए.’’ कह कर मैं ने चुन्नी सर पर डाल ली. फिर उसे कमरे में ले गई.

कमरे की सजावट देख कर वह मुसकराते हुए बोला, ‘‘ओह, तो आप कमरे की सफाई कर रही थीं, बहुत सुंदर सजाया है.’’

‘‘सुबह चचाजान से मुलाकात हुई, पता चला आप को हौस्टल में जगह नहीं मिली.’’ मैं ने कहा, ‘‘इसी बहाने हमें आप की खिदमत का मौका मिल जाएगा.’’

‘‘नाहक ही आप को परेशान किया, माफ कीजिएगा. जैसे ही वहां कमरा मिलेगा, मैं चला जाऊंगा.’’ अनवर ने कहा तो मैं बोली, ‘‘यह क्या कह रहे हैं आप? यह तो हमारी खुशकिस्मती है कि आप हमारे गरीबखाने पर तशरीफ लाए.’’

‘‘आप को एक तकलीफ और दूंगा, अगर एक कप चाय मिल जाए तो बड़ी मेहरबानी होगी.’’

‘‘ओह श्योर.’’ कह कर मैं तेजी से जीना उतरने लगी, उस वक्त मेरा दिल मेरे ही बस में नहीं था.

मैं ने उसे चाय ला कर दे दी. उस दिन बात वहीं खत्म हो गई. फिर भी न जाने क्यों मैं उसे ले कर खुश थी.

अनवर को हमारे यहां रहते लंबा वक्त गुजर गया. मैं उस का और उस की हर चीज का ध्यान रखती. उस की गैरहाजरी में उस का कमरा सजाती. अपनी ड्रैसेज पर भी खूब ध्यान देती. उस के सामने बनसंवर कर जाना, मुझे अच्छा लगता था. वह भी ऐसी ही कोशिश करता था.

मुझ में आए बदलाव पर अम्मी ने कभी भी ध्यान नहीं दिया. इस की वजह थी अब्बू का देर से घर आना. भाईभाभी अमेरिका में थे, जबकि अम्मी का ज्यादातर वक्त किटी पार्टियों में गुजरता था. घूमनेफिरने की शौकीन अम्मी को मुझ पर नजर रखने का वक्त ही नहीं मिलता था.

मैं और अनवर यूनिवर्सिटी में आतेजाते अकसर आमनेसामने पड़ जाते थे. कभी टैगोर लायब्रेरी में, कभी बौटेनिकल गार्डन में. वह जब भी मुझे देखता, उस की प्यासी नजरें कुछ पैगाम सा देती नजर आतीं. एक दिन सुबहसुबह जब मैं उस के कमरे में चाय देने गई, तो उस ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘सलमा, क्या हम दोस्ती के लायक भी नहीं हैं?’’

यह मेरे लिए अप्रत्याशित जरूर था, लेकिन मेरे मन के किसी कोने में दबी तमन्नाओं को जैसे पंख मिल गए और मैं आसमान में उड़ने लगी. कब से दबा कर रखी चाहत ने जोर मारा तो एक झटके में मन के सभी बंधन टूट गए.

उस दिन आसमान पर कालेकाले बादल छाए थे. इतवार का दिन था, मैं ने हलका मेकअप कर के फिरोजी रंग का गरारा, कुरता और फिरोजी चूडि़यां पहनी. दरअसल उस दिन मेरी खास फ्रैंड नसीमा आने वाली थी.

अम्मी तैयार हो कर निकलते हुए बोलीं, ‘‘सलमा, मैं आज पिक्चर जा रही हूं, सभी किटी मैंबर हैं. बुआ से लंच बनवा दिया है, जल्दी ही आऊंगी. ऊपर भी लंच बुआ दे आएंगीं. वह 2 बजे दोबारा आएंगी.’’

अम्मी के जाते ही मैं यह सोच कर खुशी से उछल पड़ी कि आज नसीमा से खूब दिल की बातें करूंगी.

मैं चाय ले कर ऊपर गई तो अनवर कुछ रोमांटिक मूड में लगा. मैं ने चाय रखी तो वह मेरी तरफ देख कर बोला, ‘‘आज तो आप कयामत लग रही हैं. क्या करूं, मैं खुद को रोक नहीं पा रहा हूं.’’

मैं कुछ सोच पाती, इस से पहले ही अनवर ने मुझे बाहों में भर लिया. उस की बाहों में मुझे जन्नत नजर आ रही थी. लेकिन तभी जैसे जलजला सा आ गया. मेरे पांवों के नीचे से जमीन निकल गई.

सामने अम्मी रौद्र रूप में खड़ी थीं. वह जोर से चीख कर बोलीं, ‘‘भला हुआ जो मैं अपना पर्स भूल गई थी, वरना इस नौटंकी का पता ही नहीं चलता. इसे कहते हैं आस्तीन का सांप. जिसे फ्री में खिलापिला रहे हैं, वही हमें डंस रहा है. हम ने तुम्हें पनाह दी थी और तुम ने ही हमारा गिरेबां चाक कर दिया. जाओ, चले जाओ यहां से. यहां गुंडे मवालियों का कोई काम नहीं है.’’

मैं और अनवर दोनों ही अपराधियों की तरह मुंह लटकाए खड़े थे. अम्मी बहुत गुस्से में थीं. वह अनवर का सामान उठाउठा कर नीचे फेंकने लगीं. जरा सी देर में सारा मोहल्ला इकट्ठा हो गया. अनवर गुनहगार बना खामोश खड़ा था, उस की आंखों से अंगारे बरस रहे थे. अब जाना ही उस के लिए बेहतर था. उस ने खामोशी से अपना सामान समेटा और टैक्सी स्टैंड की ओर निकल गया.

वह तो चला गया पर मेरी जिंदगी में तूफान बरपा गया. उस के जाने के बाद अम्मी ने मोहल्ले वालों से कह दिया कि किराया नहीं देता था, कब तक रखती.

अम्मी ने मुझे खूब मारा, लेकिन उन की मार मेरे प्यार की आग को बुझा नहीं सकी. एक दिन अनवर मेरे सोशियोलौजी सोशल वर्क डिपार्टमेंट के आगे खड़ा था. रूखे बाल, उदास चेहरा. मैं दौड़ कर उस के पास जा पहुंची और उसे ऊपर से नीचे तक देखते हुए बोली, ‘‘यह क्या हाल बना रखा है अनवर, मैं तुम्हारे बगैर नहीं जी सकती.’’

अनवर मेरी तरफ देख कर बोला, ‘‘यूनिवर्सिटी के पास ही एक कमरा लिया है, अम्मी भी आई हुई हैं. मैं ने उन्हें तुम्हारे बारे में सब कुछ बता रखा है. अम्मी मेरी दुलहन को देखना चाहती हैं. 2 मिनट के लिए चल सकोगी? अम्मी हमारी शादी का कोई रास्ता निकालना चाहती हैं.’’

अनवर की आवाज में जो दर्द था, उसे देख मैं रो पड़ी और उस के पीछेपीछे चल दी.

सपना का अधूरा सपना – भाग 2

सपना के परिवार में पिता कुंवरपाल सिंह यादव, मां उर्मिला यादव, 3 बहनें प्रार्थना, मधु और भावना के अलावा 1 छोटा भाई आशीष था. कुंवरपाल का दूध का अच्छाखासा व्यवसाय था. फिरोजाबाद के ही थाना सिरसागंज के गांव सिकरामऊ में उस की खेती की काफी जमीन भी थी. फिरोजाबाद के सुदामानगर की जिस नवनिर्मित कालोनी में कुंवरपाल रहता था, उस में उस की गिनती संपन्न लोगों में होती थी. उस का काफी बड़ा मकान भी था.

कुंवरपाल को राजनीति से लगाव था, इसलिए उस ने तमाम नेताओं से संबंध बना रखे थे. संबंध की ही वजह से उस के यहां तमाम नेताओं का आनाजाना लगा रहता था. सिरसागंज के विधायक से तो कुंवरपाल की दांत काटी दोस्ती थी. कुंवरपाल के 2 साले थे. दोनों ही एक राजनीतिक दल में पदाधिकारी थे. उन का अपने क्षेत्र में खासा रुतबा था. इस का असर उन की बहन यानी कुंवरपाल की पत्नी उर्मिला पर भी था. रौबरुतबे की ही वजह से पतिपत्नी कालोनी में किसी को कुछ नहीं समझते थे. वे जल्दी से किसी से बात भी नहीं करते थे.

सपना ने घर के नजदीक ही स्थित लिटिल ऐंजल्स कान्वेंट स्कूल से इंटर करने के बाद एम.जी. कालेज से ग्रैजुएशन किया. इस के बाद वह कोई प्रोफेशनल कोर्स करना चाहती थी. थोड़ी कोशिश के बाद उस का बीएड में हो गया, जिस के लिए उस ने दाऊदयाल महिला महाविद्यालय में दाखिला ले लिया.

सपना जिन दिनों हाईस्कूल में पढ़ रही थी, उन्हीं दिनों उस की मुलाकात अभिनय राणा से हुई थी. अभिनय सुदामानगर से 2 किलोमीटर दूर स्थित लोहियानगर में रहता था. उस के परिवार में पिता शिशुपाल सिंह जादौन, मां प्रेमा देवी जादौन और एक बड़ा भाई अभिषेक जादौन था. पिता उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही थे. जादौन परिवार के पास काफी पुश्तैनी प्रौपर्टी थी, इसलिए इस परिवार का रहनसहन रईसों जैसा  था. उन दिनों वह बारहवीं में पढ़ रहा था.

एक दिन सपना स्कूटी से कोचिंग से घर जा रही थी, तभी एक बाइक सवार की टक्कर से गिर पड़ी. बाइक सवार तो भाग गया, लेकिन डिवाइडर से टकराने की वजह से सपना के पैर से खून बहने लगा. पीछे से आ रहे अभिनय ने उसे उठाया और मरहमपट्टी करा कर उसे उस के घर पहुंचाया. अभिनय का यह सेवाभाव सपना के दिल को छू गया. उस की छवि उस के दिल में एक अच्छे युवक की बन गई.

सपना जिस कोचिंग में पढ़ती थी, उसी में अभिनय भी पढ़ता था. अभिनय की गिनती कोचिंग इंस्टीट्यूट में अच्छे लड़कों में होती थी. ऐसी ही बातों से वह सपना के दिल की धड़कन बन गया. आमनेसामने पड़ने पर दोनों एकदूसरे को देख कर मुसकरा देते थे. कभीकभार बातचीत भी हो जाती थी. किसी दिन दोनों ने एकदूसरे के मोबाइल नंबर ले लिए तो दोनों के बीच लंबीलंबी बातें होतेहोते प्यार का भी सिलसिला शुरू हो गया.

दोनों में प्यार गहराया तो वे एकदूसरे की पसंद का खयाल रखने लगे. इस तरह प्यार की नाव पर सवार हुए उन्हें एकएक कर के 5 साल बीत गए. इस बीच सपना ने ग्रैजुएशन कर लिया तो अभिनय बीएसपी कर के ठेकेदारी करने लगा. इस समय वह फिरोजाबाद का एक बड़ा शराब व्यवसाई माना जाता है. शहर और कस्बों में उस की अंग्रेजी शराब और देशी शराब की तमाम दुकानें हैं. उस के कई बार भी हैं. अभिनय भले ही शराब का बड़ा कारोबारी बन चुका था, लेकिन सपना के प्रति उस का प्यार वैसा ही था.

सपना ने ग्रैजुएशन कर के बीएड में दाखिला ले लिया था. 5 सालों से उस का जो प्यार चोरीछिपे चल रहा था, अब तक कई लोगों की नजरों में आ चुका था. वे कुंवरपाल के परिचित थे, इसलिए यह बात उस तक पहुंच गई. जानकारी होने पर कुंवरपाल ने सपना को बुला कर अभिनय और उस से प्यार के बारे में पूछा तो उस ने इस बात को इसलिए नहीं छिपाया, क्योंकि अभिनय हर तरह से कुंवरपाल का दामाद बनने लायक था.

लेकिन जब कुंवरपाल को पता चला कि सपना का प्रेमी ठाकुर है तो वह बौखला उठा. उस ने चीखते हुए कहा, ‘‘यादवों ने चूड़ी पहन रखी है क्या, जो ठाकुर का लौंडा उन की लड़कियों के साथ गुलछर्रे उड़ाएगा.’’

बाप के गुस्से को देख कर सपना की समझ में आ गया कि उस का बाप ऊंची जाति से भी उतनी ही नफरत करता है, जितनी नीची जाति वालों से. कुंवरपाल ने उस से साफसाफ कह दिया कि आज से ही वह उस लड़के से सारे संबंध खत्म कर ले. अगर उस के साथ कहीं दिखाई दे गई तो वह उसे काट कर रख देगा.

कुंवरपाल ने भले ही अपना आदेश सुना दिया था, लेकिन सपना को अभिनय के बिना अपनी दुनिया अंधकारमय नजर आ रही थी. इसलिए उस ने भी तय कर लिया कि कुछ भी हो जाए, वह अभिनय का साथ किसी भी हालत में नहीं छोड़ेगी. इसलिए उस ने तुरंत फोन कर के सारी बातें अभिनय को बता दीं. अभिनय ने उस का हौसला बढ़ाते हुए कहा, ‘‘चिंता करने की कोई बात नहीं है. हम दोनों ही बालिग हैं, इसलिए अपनी जिंदगी के फैसले खुद लेने में सक्षम हैं.’’

प्रेमी की इस बात से सपना को काफी सुकून मिला. लेकिन अब उस के घर से अकेली निकलने पर पाबंदी लगा दी गई. इसी के साथ कुंवरपाल ने उस की शादी के लिए लड़के की तलाश भी जोरशोर से शुरू कर दी. वह बीएड की पढ़ाई पूरी होते ही सपना की शादी कर देना चाहता था.

इधर कुंवरपाल सपना की शादी के लिए लड़का ढूंढ रहा था, उधर उस ने अभिनय से शादी करने का फैसला कर लिया था. यह अप्रैल, 2014 की बात है.

दरअसल, सपना मौका निकाल कर अभिनय से बातें तो कर ही लेती थी, कभीकभार घर वालों की चोरी से मिल भी लेती थी. कुंवरपाल को संदेह था कि बेटी कोई भी उल्टासीधा कदम उठा सकती है, इसलिए उस ने रजिस्ट्रार औफिस के कर्मचारियों से सांठगांठ कर ली थी कि अगर सपना वहां विवाह के लिए आवेदन करती है तो तुरंत उसे इस बात की जानकारी दे दी जाए.

सपना के घर से निकलने पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गई, जिस से उस का बीएड भी पूरा नहीं हो सका. उस का फोन भी छीन लिया गया था. ऐसे में सपना का साथ उस की छोटी बहन प्रार्थना ने दिया. बहन की भावनाओं का खयाल रखते हुए वह कभीकभार अपने फोन से उस की बात अभिनय से करा देती थी.

29 मई, 2014 को प्रार्थना की मदद से सपना घर से बाहर निकली और वहां पहुंच गई, जहां अभिनय 2-3 महिलाओं और 4-5 पुरुषों के साथ उस का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. उस ने फिरोजाबाद के ही उलाऊखेड़ा प्रांगण में बने आर्यसमाज मंदिर में विधिविधान से विवाह करने की व्यवस्था पहले से ही कर रखी थी, इसलिए सपना को साथ ले कर वह सीधे वहीं पहुंच गया.