जीजा साली का जुनूनी इश्क

एक हत्या ऐसी भी : कौन था मंजूर का कातिल? – भाग 4

रात को मैं थाने आ गया, जिन की जरूरत थी, उन सब को थाने ले आया. उन में रशीद भी था. रशीद मेरे लिए बहुत खास संदिग्ध था.

रात काफी हो चुकी थी. मैं आराम करने नहीं गया, बल्कि रशीद को लपेट लिया. उस की ऐसी हालत हो गई जैसे बेहोश हो जाएगा. मैं ने अपना सवाल दोहराया, तो उस की हालत और बिगड़ गई.

मैं ने उस का सिर पकड़ कर झिंझोड दिया, ‘‘तुम मंजूर के जाने के बाद जब बाग से निकले तो तुम्हारे हाथ में कुल्हाड़ी थी और तुम ने मुझे बताया कि सूरज डूबते ही तुम घर आ गए थे. मुझे इन सवालों का संतोषजनक जवाब दे दो और जाओ, फिर मैं कभी तुम्हें थाने नहीं बुलाऊंगा.’’

उस ने बताया, ‘‘हत्या करने से मुझे कुछ नहीं मिलना था. हुआ यूं था कि वह सूरज डूबने से थोड़ा पहले मेरे पास आया था. मैं उसे देख कर हैरान हो गया. मुझे यह खतरा नहीं था कि वह मेरे साथ झगड़ा करने आया था, सच बात यह है कि मंजूर झगड़ालू नहीं था.’’

‘‘क्या वह कायर या निर्लज्ज था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं, वह बहुत शरीफ आदमी था. अब मुझे दुख हो रहा है कि मैं ने उस के साथ बहुत ज्यादती की थी. परसों वह मेरे पास आया था, मैं क्यारियों में पानी लगा रहा था. मंजूर ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे कमरे के ऊपर ले गया. मैं समझा कि वह मुझ से बंटवारे की बात करने आया है. मैं ने सोच लिया था कि उस ने उल्टीसीधी बात की तो मैं उसे बहुत पीटूंगा, लेकिन उस ने मुझ से बहुत नरमी से बात की.

‘‘उस ने कहा, ‘हम लोग एक ही दादा की संतान हैं. हमें लड़ता देख कर दूसरे लोग हंसते हैं. मैं चाहता हूं कि हम सब भाइयों की तरह से रहें.’ मैं ने उस से कहा कि बाद में फिर झगड़ा करोगे तो उस ने कहा, ‘नहीं, मैं ये सब बातें भूल चुका हूं.’ वह रात होने तक बैठा रहा और जाते समय हाथ मिला कर चला गया.

‘‘मैं उस के जाने के आधे घंटे बाद बाग से निकला. उस वक्त मेरे हाथ में एक डंडा था, वह मैं आप को दिखा सकता हूं. मेरा रास्ता वही था, जहां मंजूर की लाश पड़ी थी. मैं उस जगह पहुंचा और माचिस जला कर देखा तो वह मंजूर की लाश थी. हर ओर खून ही खून फैला था.

‘‘मैं ने माचिस जला कर दोबारा देखा तो मुझे पूरा यकीन हो गया. दूर जहां से घाटी ऊपर चढ़ती है, मैं ने वहां एक आदमी को देखा. मैं उस के पीछे दौड़ा, हत्यारा वही हो सकता था. लेकिन वह अंधेरे में गायब हो चुका था. आगे खेत थे, मुझे इतना यकीन है कि वह आदमी गांव से ही आया था.’’

‘‘तुम ने यह बात पहले क्यों नहीं बताई?’’

‘‘यही बात तो मुझे फंसा रही है,’’ उस ने कहा, ‘‘मेरा फर्ज था कि मैं आमना को बताता, फिर अपने घर वालों को बताता. शोर मचाता, थाने जा कर रिपोर्ट करता, लेकिन मुझे एक खतरा था कि मंजूर की मेरे साथ लड़ाई हुई थी. सब यही समझते कि मैं ने उसे मारा है.

‘‘पैदा करने वाले की कसम, हुजूर मैं ने सारी रात जागते हुए गुजारी है. जब आप ने बुलाया तो मेरा खून सूख गया कि आप को पता लग गया है कि मरने से पहले मंजूर मेरे पास आया था.’’

मैं ने कहा, ‘‘दुश्मनी के कारण बहुत से होते हैं, हत्याएं हो जाती हैं.’’

‘‘हां हुजूर, जमीन के बंटवारे के अलावा मैं ने आमना पर भी बुरी नजर रखी थी. उस की इज्जत पर भी हाथ डाला था. मंजूर की जगह कोई और होता तो मेरी हत्या कर देता. सच बात तो यह है कि हत्या मेरी होनी थी, लेकिन मंजूर की हो गई.’’

मैं उठ कर बाहर गया और एक कांस्टेबल से कहा कि वह आमना को ले कर आ जाए. फिर अंदर जा कर रशीद का बयान सुनने लगा. वह सब बातें खुल कर कर रहा था. मुझे आमना से यह पूछना था कि वास्तव में उस ने मंजूर को रशीद के पास भेजा था, जबकि उस ने यह कहा था कि उसे पता ही नहीं था कि मंजूर कहां गया था.

‘‘एक बात सच सच बता दो रशीद, आमना कैसे चरित्र की है?’’

‘‘आप ने लोगों से पूछा होगा आमना के बारे में, सब ने उसे सज्जन ही बताया होगा. मेरी नजरों में भी आमना एक सज्जन महिला है, क्योंकि उस ने मुझे दुत्कार दिया था. लेकिन उस ने अपनी संतुष्टि के लिए एक आदमी रखा हुआ है, वह है कयूम.’’

‘‘कयूम तो पागल है.’’

‘‘पागल बना रखा है,’’ उस ने कहा, ‘‘लेकिन अपने मतलब भर का.’’

‘‘मैं ने सुना है कि उसे कोई भी अपनी बेटी का रिश्ता नहीं देता, क्योंकि वह पागल है?’’

‘‘यह बात नहीं है हुजूर, बेटियों वाले इसी गांव में हैं. वे देख रहे हैं कि कयूम आमना के जाल में फंसा हुआ है.’’

बहुत से सवालों के जवाब के बाद मुझे यह लगा कि रशीद सच बोल रहा है, लेकिन फिर भी मुझे इधरउधर से पुष्टि करनी थी. रशीद यह भी कह रहा था कि उसे हवालात में बंद कर के तफ्तीश करें.

गामे के 3 आदमी थाने में बैठे थे, मैं ने उन्हें बारी बारी बुला कर पूछा कि हत्या की पहली रात गामे कहां था और क्या उन्हें पता है कि मंजूर की हत्या गामे शाह या तुम में से किसी ने की है.

मैं ने पहले भी बताया था कि ऐसे लोगों से थाने में पूछताछ दूसरे तरीके से होती है. ये तीनों तो पहले ही थाने के रिकौर्ड पर थे. मैं ने एक कांस्टेबल और एक एएसआई बिठा रखा था. मैं एक से सवाल करता था और फिर उन्हें इशारा कर देता था, वे उसे थोड़ी फैंटी लगा देते थे.

सुबह तक यह बात सामने आई कि गामे शाह दूसरी औरतों की तरह आमना को भी खराब करना चाहता था. गामे शाह ने उन तीनों को तैयार करना चाहा था कि वे मंजूर की हत्या कर दें, लेकिन वे तैयार नहीं हुए. उस के बाद वह आमना का अपहरण कर के उसे बहुत दूर पहुंचाना चाहता था, लेकिन हत्या कोई मामूली बात नहीं थी, जो ये छोटेमोटे जुआरी करते.

कोई भी तैयार नहीं हुआ तो गामे शाह ने कहा कि वह खुद बदला लेगा. तीनों ने बताया कि उस शाम जब वे गामे शाह के मकान पर गए तो वह घर पर नहीं मिला. वे वहीं बैठ गए. बहुत देर बाद गामे शाह आया तो उस के हाथ में कुल्हाड़ी थी. उन्होंने उस से पूछा कि वह कहां गया था, उस ने कहा कि एक शिकार के पीछे गया था. इस के अलावा उस ने कुछ नहीं बताया.

एक हत्या ऐसी भी : कौन था मंजूर का कातिल? – भाग 3

रात आधी से अधिक बीत चुकी थी. मेरे सामने एक जटिल विवेचना थी. मैं थोड़ा सा आराम करने के लिए लेट गया. मेरे बुलाए गामे शाह के तीनों आदमी आ गए थे. उन से भी मुझे पूछताछ करनी थी. ऐसे लोगों से जांच थाने में ही होती है. मैं ने उन्हें यह कह कर थाने भेज दिया कि मेरा इंतजार करें.

सुबह मेरी आंख खुली. नाश्ते के बाद मैं ने सब से पहले रशीद को बुलवाया. वह भी सुंदर जवान था. मैं ने उसे अपने सामने बिठाया, वह घबराया हुआ था. उस की आंखें जैसे बाहर को आ रही थीं.

मैं ने कहा, ‘‘तुम ही कुछ बताओ रशीद, मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूं. मंजूर की हत्या किस ने की है?’’

‘‘मैं क्या बता सकता हूं सर,’’ उस के मुंह से ये शब्द मुश्किल से निकले थे.

‘‘इतना मत घबराओ, जो कुछ तुम्हें पता है, सचसच बता दो. मुझे जो दूसरों से पता चलेगा वह तुम ही बता दो. फिर देखो, मैं तुम्हें कितना फायदा पहुंचाता हूं.’’

‘‘मैं कुछ नहीं जानता सर,’’ उस ने आंखें झुका लीं.

‘‘ऊपर देखो, तुम सब कुछ जानते हो. तुम्हें बोलना ही पड़ेगा. मंजूर अपना हिस्सा लेने की कोशिश कर रहा था, तुम ने सोचा इसे दुनिया से ही उठा दो.’’

‘‘नहीं सर,’’ वह तड़प कर बोला, जैसे उस में जान आ गई हो. वह अपने आप को निर्दोष साबित करने लगा.

हत्या के जितने भी कारण बताए गए थे. मैं ने एकएक कर के उस के सामने रखे. वह सब से इनकार करता रहा. मैं ने जब उस से पूछा कि हत्या के समय वह कहां था तो उस ने बताया कि वह घर पर ही था.

‘‘सूरज डूबने के कितनी देर बाद घर आए थे?’’

‘‘मैं तो सूरज डूबते ही घर आ गया था.’’

‘‘इस से पहले कहां थे?’’

‘‘बाग में.’’

चूंकि वह मेरी नजरों में संदिग्ध था, इसलिए मैं ने उस से खास तरह की पूछताछ की. रशीद से जो बातें हुईं, मैं ने उन्हें अपने दिमाग में रखा और बाहर आ कर चौकीदार से कहा कि रशीद के बाग में जो मजदूर काम करता है, उसे और उस की पत्नी को ले आए.

रशीद को मैं ने बाहर बिठा दिया और उस के बाप को बुलाया. बाप आ गया तो मैं ने उस से पूछा, ‘‘हत्या के दिन रशीद घर किस समय आया था?’’

उस ने बताया कि वह सूरज डूबने के बाद आया था.

‘‘एक घंटा या 2 घंटे बाद?’’

‘‘डेढ़ घंटा समझ लें.’’

यह रशीद का बाप था, इसलिए मैं उस से उम्मीद नहीं रख सकता था कि वह सच बोलेगा.

रशीद का नौकर जो बाग में रहता था, मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम इन लोगों के रिश्तेदार नहीं हो, नौकर हो. इन के गले की फांसी का फंदा अपने गले में मत डलवाना. मैं जो पूछूं, सचसच बताना. तुम जानते हो कल रात मंजूर की हत्या हुई है. शाम को रशीद बाग में था, क्या यह सही है?’’

‘‘हां हुजूर, वह बाग में ही था.’’

‘‘पहले तो वह अकेला ही था,’’ मजदूर ने जवाब दिया, ‘‘पनेरी लगानी थी. रशीद हमारे साथ था, फिर मंजूर आ गया था.’’

‘‘कौन मंजूर?’’ मैं ने हैरानी से कहा.

‘‘वही मंजूर सर, जिस की हत्या हुई है.’’

मुझे ऐसा लगा, जैसे अंधेरे में रोशनी की किरन दिखाई दी हो.

‘‘हां, फिर क्या हुआ?’’ मैं ने इस आशा से पूछा कि वह यह कहेगा कि उन की लड़ाई हुई थी.

‘‘मंजूर रशीद को अलग ले गया.’’ मजदूर ने कहा, ‘‘फिर वे चारपाई पर बैठे रहे.’’

‘‘कितनी देर बैठे रहे?’’

‘‘सूरज डूबने तक बैठे रहे.’’

‘‘तुम में से किसी ने उन की बातें सुनीं?’’

‘‘नहीं हुजूर, हम दूर क्यारियों में पनेरी लगा रहे थे. जब अंधेरा हो गया तो हम काम छोड़ कर अपने कोठों में चले गए.’’

‘‘ये बताओ, क्या वे ऊंची आवाज में बातें कर रहे थे? मेरा मतलब क्या वे झगड़ रहे थे?’’

‘‘नहीं हुजूर, वे तो बड़े आराम से बातें कर रहे थे. जब अंधेरा हुआ तो दोनों ने हाथ मिलाया और मंजूर चला गया.’’

‘‘…और रशीद?’’

‘‘वह कुछ देर बाग में रहा, उस ने हम से पनेरी के बारे में पूछा और फिर वह भी चला गया.’’

‘‘तुम ने उसे जाते हुए देखा था? उस के हाथ में कुल्हाड़ी थी?’’

‘‘नहीं हुजूर,’’ उस ने जवाब दिया, ‘‘जाने से पहले वह कमरे में गया था. जब वापस आया तो अंधेरा हो गया था. उस के हाथ में क्या था, हमें दिखाई नहीं दिया.’’

मैं ने उस की पत्नी को बुला कर उस से पूछा कि क्या मंजूर पहले कभी बाग में आया था. उस ने बताया कि परसों से पहले वह तब आया था, जब उन का झगड़ा चल रहा था. मैं ने उस से पूछा कि रशीद जब बाग से निकल रहा था तो क्या उस के हाथ में कुल्हाड़ी थी?

‘‘हां थी हुजूर.’’

‘‘अंधेरे में तुम्हें कैसे पता चला कि उस के हाथ में कुल्हाड़ी है?’’

‘‘डंडा होगा या कुल्हाड़ी होगी. अंधेरे में साफसाफ नहीं दिखा.’’

मैं ने मजदूर को अंदर बुलाया और कुछ बातें पूछ कर जाने दिया. उस के बाद मेरे 2 मुखबिर आ गए. उन्होंने वही बातें बताईं जो मुझे पहले पता लग गई थीं. उन्होंने विश्वास के साथ कहा कि आमना चरित्रवान औरत है. कयूम के बारे में बताया कि वह दिमागी तौर पर कमजोर है, लेकिन बात खरी करता है. उन्होंने भी रशीद पर शक किया.

उन में से एक ने कहा, ‘‘जनाब, आप गामे शाह को भी सामने रखें. कयूम और मंजूर ने उसे ऐसी फैंटी लगाई थी कि वह काफी देर तक बेहोश पड़ा रहा था. वह बहुत जहरीला आदमी है, बदला जरूर लेता है.’’

‘‘लेकिन उस ने कयूम से तो बदला नहीं लिया?’’

‘‘वह कहता था कि मंजूर को ठिकाने लगा कर उस की बीवी का अपहरण करेगा.’’

उस समय तक मृतक का अंतिम संस्कार हो चुका था. मैं ने मंजूर की पत्नी को बुलवाया. उस की आंखें सूजी हुई थीं. लेकिन मुझे पूछताछ करनी थी. अभी तक मुझे आमना और कयूम पर ही शक था.

‘‘मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहता आमना. यह समय पूछने का तो नहीं है, लेकिन मैं केस की जांच कर रहा हूं. मैं चाहता हूं कि तुम से यहीं कुछ पूछ लूं, नहीं तो तुम्हें थाने में आना पड़ता, जो अच्छा नहीं होता. तुम जरा अपने आप को संभालो और मुझे बताओ कि मंजूर और रशीद की दुश्मनी का क्या मामला था?’’

उस ने वही बातें बताईं जो पहले बता चुकी थी.

‘‘क्या रशीद ने तुम्हारे साथ कोई छेड़छाड़ की थी?’’ मैं ने आमना से पूछा. उस ने बताया कि 2 बार की थी. मैं ने तंग आ कर यह बात अपने पति को बता दी थी. कयूम को भी पता लग गया. दोनों उस का वही हाल करना चाहते थे जो उन्होंने गामे शाह का किया था.

‘‘मैं ने सुना है कि वह रशीद के बाग में गया था. वह वहां से निकला तो लेकिन घर नहीं पहुंचा. क्या तुम्हें पता है कि वह रशीद के बाग में गया था?’’

आमना ने जवाब दिया, ‘‘नहीं, वह बताता भी कैसे. आप के कहने के मुताबिक वह वहां से निकला तो लेकिन घर नहीं पहुंच सका. जाहिर है, रशीद ने उस की हत्या कर दी थी.’’

‘‘यह तो तुम कभी नहीं बताओगी कि कयूम के साथ तुम्हारे संबंध कैसे थे?’’

उस कहा, ‘‘मैं तो बता दूंगी, लेकिन आप यकीन नहीं करेंगे. वह मेरा भाई है.’’

‘‘आमना…सच्ची बात कहनी है तो खुल कर कहो. कयूम के साथ तुम्हारे संबंध कैसे हैं, मेरा इस से कुछ लेना देना नहीं. मैं ने मंजूर के हत्यारे को पकड़ना है. क्या तुम्हारे दिल में वैसी ही मोहब्बत है, जैसी कयूम के दिल में तुम्हारे लिए है.’’

‘‘नहीं,’’ आमना ने कहा, ‘‘जब वह महज 12-13 साल का था, तभी से हमारे यहां आता था. अब वह जवान हो गया है. मुझे डर था कि मेरा शौहर आपत्ति करेगा, लेकिन उस ने कोई आपत्ति नहीं की. मैं ने कयूम से कहा था, जवान औरत से जवान आदमी की मोहब्बत किसी और तरह की होती है. कयूम ने मेरी ओर हैरानी से देखा और देखते ही देखते उस की आंखों में आंसू आ गए.

‘‘वह मुझ से 4-5 साल छोटा है. मैं ने उसे अपने गले से लगा लिया तो वह हिचकियां ले कर रोने लगा. मैं ने उसे चुप कराया. वह बोला, ‘आमना, यह कहने से पहले मुझे जहर दे देती.’ इस मोहब्बत को देख कर लोगों ने उसे रिश्ते देने बंद कर दिए.

‘‘मैं ने उस से कहा, मैं तुम्हारा किसी और जगह रिश्ता करवा दूंगी. उस ने दोटूक जवाब दिया, जब तक तुम जिंदा हो, मैं कहीं शादी नहीं कर सकता. अगर किसी लड़की से मेरी शादी हो भी जाती है और वह मुझे अच्छी लगती है तो मैं उसे पत्नी नहीं समझूंगा, क्योंकि उस में मुझे तुम दिखाई दोगी और मैं तुम्हें बहुत पवित्र समझता हूं.’’

मैं ने आमना को जाने की इजाजत दे दी, लेकिन अपने दिमाग में उसे संदिग्ध ही रखा.

मासूम से दुश्मनी : चचेरे भाई ने ले ली जान – भाग 3

थानाप्रभारी नवीन सिंह को जब मुखबिर के जरिए पता चला कि शिवम फरार हो गया है तो उन का माथा ठनका. उन्होंने इस बाबत जब शिवम के पिता विनोद विश्नोई से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि शिवम बहुत परेशान था. वह खाना भी ठीक से नहीं खा पा रहा था. कोई बात पूछने पर उलझ जाता था. फिर अकस्मात कहीं चला गया. वह कहां गया और किस हालत में है उन्हें नहीं पता.

यकीन नहीं था भाई ही ऐसा करेगा

शिवम पर शक गहराया तो पुलिस टीम उस के पीछे पड़ गई. सर्विलांस सेल प्रभारी राजीव कुमार ने उस के मोबाइल फोन के नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया. स्वाट टीम प्रभारी रोहित तिवारी भी शिवम की टोह में जुट गए. पुलिस टीम ने अपने खास मुखिबर भी शिवम की सुरागरसी में लगा दिए.

उस की लोकेशन कभी रनियां में मिलती तो कभी पुखरायां में. बारबार लोकेशन बदलने से वह पुलिस की पकड़ में नहीं आ रहा था.

10 नवंबर, 2018 की दोपहर थानाप्रभारी नवीन कुमार सिंह, एसपी द्वारा गठित टीम के साथ विचारविमर्श कर रहे थे, तभी उन्हें एक मुखबिर द्वारा सूचना मिली कि शिवम, राजपुर औरैया रोड स्थित एक ढाबे पर मौजूद है.

मुखबिर की सूचना महत्त्वपूर्ण थी, इसलिए उन्होंने बिना देर किए पुलिस टीम के साथ मुखबिर की निशानदेही पर ढाबे पर छापा मारा. पुलिस को आया देख कर शिवम भागा, लेकिन पुलिस टीम ने उसे दबोच लिया. शिवम को थाना राजपुर लाया गया.

थाने पर जब शिवम ने आकाश की हत्या के संबंध में पूछा गया तो वह रिश्तों की दुहाई दे कर पुलिस को गुमराह करने की कोशिश करने लगा. लेकिन जब पुलिस ने सख्ती की तो वह टूट गया.

उस ने हत्या का राज खोलते हुए बताया कि आकाश ने उस की बहन को बदनाम किया था. बदनामी न करने के लिए उस ने आकाश को बहुत समझाया. वह नहीं माना तो उस ने उसे अपहृत कर के बंबे में डुबोडुबो कर मार डाला. हालांकि वह आकाश को बहुत चाहता था और उस की हत्या नहीं करना चाहता था.

गिरफ्तारी के बाद पुलिस टीम ने घटना को रिक्रिएट किया. रिक्रिएशन के दौरान शिवम ने जिस तरह आकाश का अपहरण किया तथा जिस तरह उसे बंबे में डुबो कर मारा, सब कर के दिखाया. इस से यह बात स्पष्ट रूप से साबित हो गई कि शिवम ही आकाश का हत्यारा था. थानाप्रभारी नवीन कुमार सिंह ने आकाश की हत्या का राज खोलने तथा हत्यारे को पकड़ने की जानकारी एसपी राधेश्याम को दे दी.

चूंकि अभियुक्त शिवम ने आकाश की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था. इसलिए थानाप्रभारी नवीन कुमार सिंह ने शिवम को अपहरण व हत्या की धारा 363, 302 आईपीसी के तहत विधिवत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस की जांच और अभियुक्त शिवम के बयानों से पूरी साजिश का पता चल गया.

कानपुर देहात जनपद का कस्बा राजपुर कानपुर मुख्यालय माती से लगभग 30 किलोमीटर दूर है. सुनील विश्नोई राजपुर कस्बे में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी रानी के अलावा 2 बेटे आकाश, अंशु और एक बेटी राधा थी. सुनील सीधासादा व्यवसाई था. व्यवसाय से ही वह अपने परिवार का पालनपोषण करता था.

सुनील विश्नोई पानतंबाकू से संबंधित चीजों का व्यवसाय करता था. यह सामान वह अकबरपुर, पुखरायां, भोगनीपुर व रनियां आदि कस्बों में पान की दुकानों व जनरल स्टोर्स पर सप्लाई करता था. इस के अलावा वह आसपास के बाजारों में भी अपना सामान बेचता था. इस काम में उसे अच्छी कमाई हो जाती थी.

सुनील विश्नोई का 12 वर्षीय पुत्र आकाश पढ़ने में जितना तेज था, उस से कहीं ज्यादा शरारती भी था. पढ़ाई के साथसाथ वह अपने पिता के व्यवसाय में हाथ बंटाता था. आकाश की मां रानी व बहन राधा भी काम में हाथ बंटाती थीं.

पतिपत्नी नहीं समझ पाए शिवम की नीयत

सुनील के घर से 2 मकान आगे उस का बड़ा भाई विनोद रहता था. विनोद किसान था. खेती की उपज से वह अपने परिवार का पालनपोषण करता था. विनोद के बेटे का नाम शिवम था. वह खेती के कामों में अपने पिता का हाथ बंटाता था. विनोद गुस्सैल स्वभाव का था. इसलिए मोहल्ले के लोग उसे पसंद नहीं करते थे.

सुनील और विनोद दोनों भाइयों में खूब पटती थी. दोनों का एकदूसरे के घरों में आनाजाना व उठनाबैठना था. सुनील का बेटा आकाश व विनोद का बेटा शिवम चचेरे भाई थे. उन में भी खूब पटती थी. दोनों एक दूसरे के घरों में बेरोकटोक आतेजाते थे.

शिवम की बहन मोहल्ले के एक युवक से प्यार करती थी. दोनों चोरीछुपे मिलते थे. एक रोज आकाश ने दोनों को हंसते बतियाते और अश्लील हरकत करते देख लिया.

आकाश ने प्रेमप्रसंग वाली बात पहले मां रानी को बताई फिर मोहल्ले के अन्य लोगों को भी बता दी. इस से यह बात पूरे क्षेत्र में फैल गई. शिवम को जानकारी हुई तो उस ने आकाश को फटकारा और आइंदा जुबान बंद रखने को कहा. लेकिन आकाश नहीं माना.

बहन के प्रेमप्रसंग को ले कर शिवम की बदनामी हो रही थी. उस का गली से निकलना दूभर हो गया था. उस ने आकाश को सबक सिखाने की ठान ली और उचित समय का इंतजार करने लगा.

21 सितंबर, 2018 को जब आकाश स्कूल से लौटा और खेलने के लिए पार्क में पहुंचा तो उस पर शिवम की नजर पड़ गई. जब आकाश खेल चुका तो शिवम ने उसे बुलाया और बहलाफुसला कर अपने साथ कस्बे के बाहर बंबे पर ले आया.

कुछ देर वह आकाश से बतियाता रहा, फिर अकस्मात उस का गला दबाने लगा. आकाश छटपटाने लगा तो शिवम ने उसे बंबे में धकेल दिया और डुबोडुबो कर मौत के घाट उतार दिया. हत्या करने के बाद उस ने शव को पत्थर से दबा दिया और वापस घर आ गया.

इधर आकाश खेल कर घर वापस नहीं आया तो उस की मां रानी को चिंता हुई. वह उसे खोजने घर से निकल पड़ी.

आकाश तो किसी को नहीं मिला लेकिन 4 दिन बाद उस की लाश बंबे में उतराती मिली. पूछताछ के बाद पुलिस ने शिवम को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जिंदगी के रंग निराले : कुदरत का बदला या धोखे की सजा?

एक हत्या ऐसी भी : कौन था मंजूर का कातिल? – भाग 2

मैं ने दूसरों से बाहर बैठने को कहा. जब वे चले गए तो मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम्हारे खास दोस्त की हत्या हो गई. जब तुम्हें उस की हत्या की सूचना मिली तो तुम ने सोचा होगा कि हत्यारा कौन हो सकता है?’’

‘‘यह तो स्वाभाविक है. लेकिन मंजूर ऐसा आदमी था कि दुश्मनी को दबा लेता था. कोशिश करता था कि किसी के साथ लड़ाईझगड़ा न हो.’’

‘‘क्या तुम बता सकते हो कि उस के दुश्मन कौन कौन थे?’’

‘‘इतनी गहरी दुश्मनी तो उस की किसी के साथ नहीं थी, लेकिन मंजूर मुझ से एक ही आदमी की बात करता था और उस के दिल में उस आदमी से दुश्मनी बैठी हुई थी. वह उस के चाचा का लड़का है. वे 3 भाई हैं, वह बीच का है.’’

‘‘उस के साथ क्या दुश्मनी थी?’’

‘‘यह दुश्मनी जमीन के बंटवारे पर हुई थी. सब जानते हैं कि उन्होंने मंजूर की जमीन का कुछ हिस्सा धांधली से हड़प लिया था. मंजूर ने चाचा को बताया था, चाचा मान गया था कि मंजूर ठीक कहता है. उस का बड़ा बेटा भी मान गया था लेकिन बीच वाला, जिस का नाम रशीद है, वह नहीं माना था. यहां तक कि वह मरने मारने पर उतर आया था.

‘‘मंजूर अपना यह दुखड़ा मुझे सुनाता रहता था. उस के दादा का एक बाग है, जिस में उस के बाप ने कुआं, रेहट भी लगवाई थी. उस ने इस बाग में बहुत मेहनत की थी. बाप मर गया तो मंजूर ने बाग में जाना शुरू कर दिया. रशीद भी जाने लगा और धीरेधीरे बाग पर कब्जा कर लिया. मंजूर की मजबूरी यह थी कि वह अकेला था, 2-3 भाई होते तो किसी की हिम्मत नहीं होती.’’

उस ने बताया कि रशीद मंजूर को छेड़ता रहता था. 2-3 बार मंजूर सीधा हुआ तो उस ने रशीद से कहा कि मैं परिवार की इज्जत की वजह से चुप रहता हूं, अगर तुम ने अपनी जबान बंद नहीं की तो मैं तुम्हारी जबान बंद कर के दिखा दूंगा.

उन की दुश्मनी का एक और कारण था. बिरादरी के एक परिवार ने अपनी बेटी का रिश्ता मंजूर को दे दिया. बात पक्की हो गई. मंजूर ने लड़की को कपड़े और अंगूठी भेज दी. 8-10 दिन बाद अंगूठी वापस आ गई, साथ ही कपड़े भी. यह भी कहा गया था कि मंगनी तोड़ दी गई है. 2-3 दिन बाद उस की मंगेतर के घर वालों ने उस की शादी रशीद से कर दी और कुछ दिन बाद मंजूर की शादी आमना से हो गई.

‘‘आमना का चालचलन कैसा है?’’

उस ने कहा, ‘‘सर, वह चालचलन की बहुत अच्छी है.’’

‘‘यह कयूम का क्या चक्कर है?’’

‘‘कोई चक्कर नहीं है सर, उस के घर में आने पर और काफीकाफी देर तक बैठने पर न तो आमना को ऐतराज था और न मंजूर को.’’

‘‘आमना के साथ कयूम का कैसा संबंध था?’’

‘‘सर, संबंध एकदम पाक था. उस के अच्छे चरित्र का एक उदाहरण सुनाता हूं. 10 साल तक जब उसे कोई बच्चा नहीं हुआ तो आमना गामे शाह के पास गई. गामे शाह चरित्रहीन व्यक्ति है. उस के पास चरित्रहीन औरतें आती हैं और उन औरतों ने ही गामे शाह को मशहूर कर रखा है कि वह निस्संतान औरतों को संतान देता है.

‘‘आमना भी गामे शाह के घर पहुंच गई. उस ने आमना की इज्जत पर हाथ डाला तो वह गाली गलौज कर के चली आई. अगर वह चरित्रहीन होती तो उस से संतान ले कर आ जाती और मंजूर उसे अपनी संतान समझ कर पाल लेता.’’

‘‘यह घटना कब की है?’’

‘‘4-5 दिन पहले की बात है. जब आमना ने गामे शाह की बात मंजूर को बताई तब कयूम वहीं बैठा हुआ था. कयूम भड़क गया, वे दोनों उस के घर गए और उसे बाहर बुला कर इतना पीटा कि वह बहुत देर तक उठ नहीं सका. उस के पास 2-3 जुआरी शराबी रहते थे. वे गामे शाह को बचाने आए तो दोनों ने उन्हें भी पीटा.’’

‘‘अगर मैं कहूं कि मंजूर का हत्यारा कयूम है तो तुम क्या कहोगे?’’ मैं ने मंजूर के दोस्त से कहा.

‘‘मैं नहीं मानूंगा,’’ उस ने जवाब दिया, ‘‘मुझ से अगर पूछोगे तो मैं 2 आदमियों के नाम लूंगा. एक तो गामे शाह और दूसरा रशीद.’’

मैं इस सोच में पड़ गया कि हो सकता है मंजूर और रशीद का कहीं आमनासामना हो गया हो और उन का झगड़ा हुआ हो. इसी झगड़े में रशीद ने उसे मार डाला हो. यह घटना ऐसी थी, जिस का कोई प्रत्यक्ष गवाह नहीं था.

सूरज डूबने वाला था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई थी. उस में हत्या का समय लगभग सूरज छिपने के डेढ़-2 घंटे बाद का लिखा था. सर्जन ने सिर पर 2 ही घाव लिखे थे, जो मैं ने देखे थे. उस ने यह भी लिखा था कि वह इन घावों के कारण ही मरा था.

मैं ने कयूम को बुलाने के लिए कहा. कुछ देर बाद एक सुंदर जवान मेरे सामने लाया गया. नंबरदार ने बताया कि यही कयूम है.

‘‘आओ जवान,’’ मैं ने दोस्ताना तौर पर कहा, ‘‘हमें तुम्हारी जरूरत थी.’’

मैं ने नंबरदार को इशारा किया तो वह बाहर चला गया.

मेरे पूछने पर उस ने रशीद के बारे में वही सब बातें कहीं जो मंजूर के दोस्त ने सुनाई थी. मैं ने उस से सवाल किया, ‘‘एक बात बताओ कयूम, मंजूर ने कभी यह कहा था कि वह रशीद की हत्या कर देगा?’’

कयूम ने तुरंत जवाब नहीं दिया. पहले उस ने दाएंबाएं फिर ऊपर देखा. फिर मेरी ओर देख कर ऐसे सिर हिलाया, जैसे उसे पता न हो. ‘‘शायद कभी कहा हो.’’ उस ने मरी सी आवाज में कहा. फिर बोला, ‘‘मंजूर, उस से बहुत परेशान था. सरकार, उसे तो मैं ही पार लगाने वाला था, लेकिन आमना भाभी ने रोक लिया.’’

‘‘कोई खास बात हुई थी या पुरानी बातों पर तुम उसे खत्म करना चाहते थे?’’

‘‘बड़ी खास बात थी सरकार. कोई डेढ़-2 महीने पहले की बात है. रशीद मंजूर के घर किसी काम से गया था. उस कमीने ने आमना भाभी को अकेला देख कर उन्हें फांसने की कोशिश शुरू कर दी थी. आमना भाभी ने उसे उसी समय भलाबुरा कह कर घर से बाहर कर दिया था.

‘‘2-3 दिन बाद आमना भाभी खेतों में गईं तो रशीद उन्हें रोक कर बोला, ‘‘पता नहीं, तुम मंजूर जैसे कमजोर और कायर आदमी के साथ कैसे गुजर कर रही हो.’’

आमना भाभी ने कहा, ‘‘शायद तुम जिंदा नहीं रहना चाहते हो. तुम तो दुनिया में नहीं रहोगे लेकिन तुम्हारे पीछे रहने वाले लोग मान जाएंगे कि मंजूर कमजोर नहीं था.’’

मंजूर से मैं ने यह बात बहुत बाद में सुनी. मैं ने उस से कहा कि उस ने यह बात पहले क्यों नहीं बताई. जवाब में मंजूर ने कहा, ‘‘मुझे जो करना था, कर दिया.’’

मैं ने उस से पूछा कि उस ने क्या किया था. उस ने बताया कि उस ने रशीद की गरदन अपनी बांहों में ऐसे दबा ली थी कि उस की आंखें बाहर निकल आई थीं. फिर उस की गरदन छोड़ कर कहा, ‘‘जा इस बार छोड़ दिया.’’

रशीद ने दूर जा कर कहा, ‘‘मंजूरे, मैं तुझ से बदला जरूर लूंगा.’’

‘‘उस के बाद रशीद ने तो कोई हरकत नहीं की?’’

‘‘अगर करता तो आज मैं आप के सामने नहीं होता और न रशीद दुनिया में होता. मैं ने एक दिन खेत में उस का कंधा हिला कर कहा था, गांव में सिर उठा कर मत चलना. और हां, मंजूर को कमजोर मत समझना. तेरी मौत उसी के हाथों लिखी है.’’

‘‘उस ने कुछ जवाब दिया?’’

‘‘वह कांपने लगा, ऐसा लगा जैसे माफी मांग रहा हो. वास्तव में मंजूर और आमना में बहुत मोहब्बत थी.’’

‘‘आमना तो तुम से भी मोहब्बत करती थी,’’ मैं ने कहा.

‘‘सरकार, किस बहन और भाई में मोहब्बत नहीं होती. अंतर यह है कि हम दोनों के मांबाप अलग अलग थे, लेकिन मैं महसूस करता हूं कि हम दोनों एक ही मां के पेट से पैदा हुए थे.’’

‘‘मुझे किसी ने बताया था कि कोई तुम्हें अपनी बेटी का रिश्ता नहीं देता?’’

‘‘कोई रिश्ता देगा भी तो मैं कबूल नहीं करूंगा. जब तक आमना मेरे सामने मौजूद है, मैं किसी और औरत का रिश्ता कबूल नहीं करूंगा.’’

मैं ने उस का अर्थ यह निकाला कि उस का और आमना का संबंध दूसरी तरह का था. मतलब आमना को बहन कहना परदा डालने जैसा था.

मंजूर के घर से रोने और चीखने की आवाजें आ रही थीं. आमना की चीख सुनाई दी तो कयूम ने कहा, ‘‘थानेदार साहब, आप मुझे इजाजत दें, जब आप बुलाएंगे मैं हाजिर हो जाऊंगा.’’ मैं ने उसे जाने दिया.

मासूम से दुश्मनी : चचेरे भाई ने ले ली जान – भाग 2

3 दिन बाद आई मौत की खबर

25 सितंबर, 2018 की सुबह 10 बजे थानाप्रभारी नवीन कुमार सिंह क्षेत्र के एक कुख्यात अपराधी की फाइल का निरीक्षण कर रहे थे, तभी उन के मोबाइल पर एक काल आई. उन्होंने काल रिसीव की तो दूसरी तरफ से पूछा गया, ‘‘आप इंसपेक्टर साहब बोल रहे हैं?’’

‘‘जी हां, मैं इंसपेक्टर राजपुर नवीन कुमार सिंह बोल रहा हूं, कहिए क्या बात है?’’

‘‘सर, यहां बंबे में एक लाश उतरा रही है. आप जल्दी आइए.’’

‘‘लाश स्त्री की है या पुरुष की?’’

‘‘सर, लाश न स्त्री की है न पुरुष की. देखने से लगता है लाश किसी 10-12 साल के बच्चे की है.’’

‘‘बच्चे की लाश?’’ सुनते ही थानाप्रभारी नवीन कुमार सिंह का माथा ठनका. नवीन सिंह ने एसआई देशराज सिंह, हेडकांस्टेबल सुरेशचंद्र तथा आकाश के पिता सुनील विश्नोई को साथ लिया और राजपुर स्थित बंबे पर पहुंच गए. वहां काफी भीड़ जुटी थी, लोग तरहतरह की चर्चाएं कर रहे थे.

इंसपेक्टर नवीन कुमार सिंह भीड़ को हटा कर बंबे के किनारे पहुंचे. उन्होंने बंबे में तैरती लाश को बाहर निकलवाया. सुनील विश्नोई ने जब लाश देखी तो वह फफक कर रोते हुए बोला, ‘‘साहब, लाश मेरे बेटे आकाश की है.’’ रोते हुए ही उस ने बेटे की हत्या की खबर अपने घर वालों को दी. सुनते ही उस के घर में कोहराम मच गया.

आकाश की लाश की शिनाख्त होने के बाद नवीन कुमार सिंह ने अपहृत आकाश की हत्या करने और लाश मिलने की सूचना पुलिस अधिकारियों को दे दी. सूचना मिलते ही पुलिस कप्तान राधेश्याम विश्वकर्मा और सीओ (अकबरपुर) अर्पित कपूर घटनास्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने लाश का मुआयना किया.

ऐसा लग रहा था जैसे आकाश की हत्या गला दबा कर की गई हो. या फिर उसे पानी में डुबो कर मारा गया हो. उस के शरीर पर चोटों के निशान नहीं थे.

एसआई देशराज सिंह ने शव को माती स्थित पोस्टमार्टम हाउस भेज दिया. इस के साथ ही आज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज अपहरण के मामले में हत्या की धारा भी जोड़ दी गई. पोस्टमार्टम के बाद आकाश की लाश उस के घर वालों को सौंप दी गई. उसी शाम उस का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

पुलिस इस मामले को काफी संवेदनशील मान कर चल रही थी. हालांकि आकाश एक छोटे व्यवसाई का बेटा था, फिर भी पुलिस को डर था कि कहीं व्यापारी इस के विरोध में न उतर आएं. इसी के मद्देनजर पुलिस अधिकारी सुनील के सीधे संपर्क में थे और उसे आश्वासन दे रहे थे कि जल्दी ही हत्यारों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा.

एसपी राधेश्याम विश्वकर्मा ने आकाश के अपहरण और हत्या के मामले की तह तक पहुंचने के लिए सीओ (अकबरपुर) अर्पित कपूर की निगरानी में एक पुलिस टीम बनाई.

इस टीम में राजपुर थानाप्रभारी नवीन कुमार सिंह, हेडकांस्टेबल सुरेशचंद्र, कांस्टेबल राकेश कुमार, स्वाट टीम प्रभारी रोहित तिवारी, सर्विलांस सेल के राजीव कुमार, प्रहलाद सिंह, मोहित तिवारी, अनूप कुमार तथा प्रशांत को शामिल किया गया.

आकाश के गायब होने के बाद, उस के घर वालों के पास फिरौती के लिए कोई फोन नहीं आया था. न ही पत्र के माध्यम से कोई सूचना आई थी. इस से स्पष्ट था कि उस का अपहरण फिरौती के लिए नहीं किया गया था. इस से पुलिस टीम को लग रहा था कि आकाश की हत्या दुश्मनी या किसी अन्य वजह से की गई होगी.

2 लोगों पर जताया शक

आकाश के पिता सुनील विश्नोई का पान, तंबाकू से संबंधित सामान सप्लाई करने का व्यवसाय था. पुलिस ने सोचा कि हो न हो उस की किसी दुश्मनी का खामियाजा उस के बेटे को भुगतना पड़ा हो. इसलिए इंसपेक्टर नवीन कुमार सिंह ने सुनील विश्नोई से पूछा कि उस की किसी से कोई रंजिश वगैरह तो नहीं है.

‘‘सर, हम लोग छोटे व्यवसाई हैं. रंजिश की बात तो दूर अगर कोई हम से नाराज हो कर चार बातें कह भी जाए तो हम सुन कर चुप रह जाते हैं.’’ सुनील विश्नोई ने दिमाग पर जोर डाल कर बताया कि 3 साल पहले कस्बे के 2 युवकों से उस का माल जबरदस्ती छीनने को ले कर विवाद हुआ था. उन्होंने उसे सबक सिखाने की धमकी भी दी थी.

सुनील विश्नोई के बयान के आधार पर पुलिस बिना देरी किए उन युवकों के घर पहुंच गई. दोनों युवकों को थाने लाया गया पुलिस टीम ने दोनों से अपने तरीके से पूछताछ की. पूछताछ में दोनों बेकसूर लगे तो उन्हें छोड़ दिया गया.

मतलब जांच जहां से शुरू हुई, वहीं आ कर रुक गई. पुलिस अधीक्षक राधेश्याम व सीओ अर्पित कपूर पुलिस टीम के सीधे संपर्क में थे. उन के दिशा निर्देश के बाद टीम ने आकाश के पिता सुनील विश्नोई और मां रानी से पुन: बात की.

दरअसल, पुलिस टीम को जांच आगे बढ़ाने के लिए कहीं से कोई क्लू नहीं मिल रहा था. इसलिए टीम को शक हुआ कि कहीं हत्यारा विश्नोई परिवार का कोई करीबी तो नहीं है. क्योंकि ऐसे लोग अपना काम आसानी से कर जाते हैं और उन पर किसी को शक भी नहीं होता है.

पुलिस टीम ने सुनील, उस की पत्नी रानी व अन्य लोगों से आकाश के गुम होने के बाद परिवार वालों की गतिविधियों के बारे में पूछताछ की. हालांकि इस बात पर सुनील व कुछ अन्य घर वालों ने ऐतराज भी किया. उन का सगा सबंधी या पारिवारिक सदस्य ऐसा क्यों करेगा? लेकिन जब पुलिस टीम ने उन्हें समझाया तो वे पिछली बातें याद करने के लिए दिमाग पर जोर डालने लगे.

कुछ देर बाद सुनील विश्नोई ने बताया कि जब वे लोग आकाश को तलाश कर रहे थे तो घर वाले 2-2, 3-3 के ग्रुप में थे. लेकिन शिवम सब से अलग अकेला घूम रहा था. इतना ही नहीं वह कुछ घबराया हुआ भी दिख रहा था. पति की बात खत्म होते ही रानी ने बताया कि घटना वाली रात जब वह आकाश को देखने शिवम के घर गई थीं तो उस ने उसे दरवाजे पर ही रोक दिया था और खुद घर में देखने चला गया था.

सुनील विश्नोई के मकान के तीसरे नंबर का मकान शिवम का था. पुलिस शिवम के घर पहुंची. उस से पूछताछ की गई तो उस ने कहा, ‘‘आकाश मेरा चचेरा भाई था. मैं उसे बहुत प्यार करता था. भला मैं उस के साथ ऐसा कैसे कर सकता हूं? उसे ढूंढने के लिए मैं ने रात दिन एक कर दिया और आप उसे मारने की बात कह रहे हैं.’’

शिवम ने बिना घबराए जिस तरह अपनी बात कही, उस से पुलिस को लगा कि शायद शिवम सच बोल रहा है. अत: पुलिस ने उसे हिदायत दे कर छोड़ दिया. शिवम पुलिस की पकड़ से बच तो गया, लेकिन अब उसे डर सताने लगा. इसी डर से वह घर में किसी को बिना कुछ बताए फरार हो गया.

एक हत्या ऐसी भी : कौन था मंजूर का कातिल? – भाग 1

मेरी पोस्टिंग सरगोधा थाने में थी. मैं अपने औफिस में बैठा था, तभी नंबरदार, चौकीदार और 2-3 आदमी  खबर लाए कि गांव से 5-6 फर्लांग दूर टीलों पर एक आदमी की लाश पड़ी है. यह सूचना मिलते ही मैं घटनास्थल पर गया. लाश पर चादर डली थी, मैं ने चादर हटाई तो नंबरदार और चौकीदार ने उसे पहचान लिया. वह पड़ोस के गांव का रहने वाला मंजूर था.

मरने वाले की गरदन, चेहरा और कंधे ठीक थे लेकिन नीचे का अधिकतर हिस्सा जंगली जानवरों ने खा लिया था. मैं ने लाश उलटी कराई तो उस की गरदन कटी हुई मिली. वह घाव कुल्हाड़ी, तलवार या किसी धारदार हथियार का था.

मैं ने कागज तैयार कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने का प्रबंध किया. लाश के आसपास पैरों के कोई निशान नहीं थे, लेकिन मिट्टी से पता लगता था कि मृतक तड़पता रहा था. खून 2-3 गज दूर तक बिखरा हुआ था.

इधरउधर टीले टीकरियां थीं. कहीं सूखे सरकंडे थे तो कहीं बंजर जमीन. घटनास्थल से लगभग डेढ़ सौ गज दूर बरसाती नाला था, जिस में कहींकहीं पानी रुका हुआ था. मैं ने यह सोच कर वहां जा कर देखा कि हो न हो हत्यारे ने वहां जा कर हथियार धोए हों. लेकिन वहां कोई निशानी नहीं मिली.

मैं मृतक मंजूर के गांव चला गया. नंबरदार ने चौपाल में चारपाई बिछवाई. मैं मंजूर के मांबाप को बुलवाना चाहता था, लेकिन वे पहले ही मर चुके थे. 2 भाई थे वे भी मर गए थे. मृतक अकेला था. एक चाचा और उस के 2 बेटे थे. मैं ने नंबरदार से पूछा कि क्या मंजूर की किसी से दुश्मनी थी.

पारिवारिक दुश्मनी तो नहीं थी, लेकिन पारिवारिक झगड़ा जरूर था. नंबरदार ने बताया, मंजूर की उस के चाचा के साथ जमीन मिलीजुली थी, पर एक साल पहले जमीन का बंटवारा हो गया था. मंजूर का कहना था कि चाचा ने उस का हिस्सा मार लिया है, इस पर उन का झगड़ा रहता था.

‘‘उन की आपस में कभी लड़ाई हुई थी?’’

नंबरदार ने बताया, ‘‘मामूली कहासुनी और हाथापाई हुई थी. मृतक अकेला था. उस का साथ देने वाला कोई नहीं था. दूसरी ओर चाचा और उस के 3 बेटे थे, इसलिए वह उन का मुकाबला नहीं कर सकता था.’’

‘‘क्या ऐसा नहीं हो सकता था कि मंजूर ने उन से झगड़ा मोल लिया हो और उन्होंने उस की हत्या कर दी हो?’’

अगर झगड़ा होता तो गांव में सब को नहीं तो किसी को तो पता चलता. नंबरदार ने जवाब दिया, ‘‘मैं गांव की पूरी खबर रखता हूं. हालफिलहाल उन में कोई झगड़ा नहीं हुआ.’’

‘‘मंजूर के चाचा के लड़के कैसे हैं, क्या वह किसी की हत्या करा सकते हैं?’’

‘‘उस परिवार में कभी कोई ऐसी घटना नहीं हुई. लेकिन किसी के दिल की कोई क्या बता सकता है.’’ नंबरदार ने आगे कहा, ‘‘आप कयूम पर ध्यान दें. वह 25-26 साल का है. वह रोज उन के घर जाता है. मंजूर की पत्नी के कारण वह उस के घर जाता है. लोग कहते हैं कि मंजूर की पत्नी के साथ कयूम के अवैध संबंध हैं. लेकिन कुछ लोग यह भी कहते हैं कि वे दोनों मुंहबोले बहनभाई की तरह हैं.’’

‘‘कयूम शादीशुदा है?’’

‘‘नहीं,’’ नंबरदार ने बताया, ‘‘उस की पूरी उमर इसी तरह बीतेगी. उसे किसी लड़की का रिश्ता नहीं मिल सकता. एक रिश्ता आया भी था लेकिन कयूम ने मना कर दिया था.’’

‘‘रिश्ता क्यों नहीं मिल सकता?’’

‘‘देखने में तो ठीक लगता है, लेकिन उस के दिमाग में कुछ कमी है. कभी बैठेबैठे अपने आप से बातें करता रहता है. उस का बाप है, 3 भाई हैं 2 बहनें हैं. चौबारा है, अच्छा धनी जमींदार का बेटा है.’’

‘‘क्या तुम विश्वास के साथ कह सकते हो कि कयूम के मंजूर की बीवी के साथ अवैध संबंध थे?’’ मैं ने पूछा, ‘‘मैं शकशुबहे की बात नहीं सुनना चाहता.’’

‘‘मैं यकीन से नहीं कह सकता.’’

‘‘इस से तो यह लगता है कि कयूम ने मृतक को दोस्त बना रखा था.’’

‘‘बात यह भी नहीं है,’’ नंबरदार ने कहा, ‘‘मैं ने मंजूर से कहा था कि इस आदमी को मित्र मत बनाओ. कोई उलटीसीधी हरकत कर बैठेगा. वैसे भी लोग तरहतरह की बातें बनाते हैं.’’

‘‘उस की पत्नी का कयूम के साथ कैसा व्यवहार होता था?’’ मैं ने पूछा.

नंबरदार ने कहा, ‘‘मंजूर ने मुझे बताया था कि उस की पत्नी कयूम से बात कर लेती है. वास्तव में बात यह है जी, मंजूर कयूम के परिवार के मुकाबले में कमजोर था और अकेला भी, इसलिए वह कयूम को अपने घर से निकाल नहीं सकता था.’’

‘‘मृतक के कितने बच्चे हैं?’’

‘‘शादी को 10 साल हो गए हैं, लेकिन एक भी औलाद नहीं हुई.’’ नंबरदार ने बताया.

यह बात सुन कर मेरे कान खड़े हो गए, ‘‘10 साल हो गए लेकिन संतान नहीं हुई. कयूम उन के घर जाता है, मृतक को यह भी पता था कि कयूम उस की पत्नी से कुछ ज्यादा ही घुलामिला है. लेकिन मृतक में इतनी हिम्मत नहीं थी कि अपने घर में कयूम का आनाजाना बंद कर देता.’’

मैं ने इस बात से यह निष्कर्ष निकाला कि मृतक कायर और ढीलाढाला आदमी था और इसीलिए उस की पत्नी उसे पसंद नहीं करती थी. पत्नी कयूम को चाहती थी और कयूम उस पर मरता था. दोनों ने मृतक को रास्ते से हटाने का यह तरीका इस्तेमाल किया कि कयूम उस की हत्या कर दे.

2 आदमियों ने विश्वास के साथ बताया कि मृतक की पत्नी के साथ उस के अवैध संबंध थे और उन दोनों ने मृतक को धोखे में रखा हुआ था. मैं ने अपना पूरा ध्यान कयूम पर केंद्रित कर लिया, उस की दिमागी हालत से मेरा शक पक्का हो गया. मैं ने कयूम से पहले मृतक की पत्नी से पूछताछ करनी जरूरी समझी.

मेरे बुलाने पर वह आई तो उस की आंखें सूजी हुई थीं. नाक लाल हो गई थी. वह हलके सांवले रंग की थी, लेकिन चेहरे के कट्स अच्छे थे. आंखें मोटी थीं. कुल मिला कर वह अच्छी लगती थी. उस की कदकाठी में भी आकर्षण था.

मैं ने उसे सांत्वना दी. हमदर्दी की बातें कीं और पूछा कि उसे किस पर शक है?

उस ने सिर हिला कर कहा, ‘‘पता नहीं, मैं नहीं जानती कि यह सब कैसे हुआ, किस ने किया.’’

‘‘मंजूर का कोई दुश्मन हो सकता है?’’

‘‘नहीं, उस का कोई दुश्मन नहीं था. न ही वह दुश्मनी रखने वाला आदमी था.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘मंजूर घर से कब निकला?’’

‘‘शाम को घर से निकला था.’’

‘‘कुछ बता कर नहीं गया था?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘क्या शाम को हर दिन इसी तरह जाया करता था?’’

‘‘कभीकभी, लेकिन उस ने कभी नहीं बताया कि वह कहां जा रहा है.’’

‘‘तुम्हें यह तो पता होगा कि कहां जाता था?’’ मैं ने पूछा, ‘‘दोस्तों यारों में जाता होगा. वह जुआ तो नहीं खेलता था?’’

‘‘नहीं, उस में कोई बुरी आदत नहीं थी.’’

‘‘आमना,’’ मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारे पति की हत्या हो गई है. यह मेरा फर्ज है कि मैं उस के हत्यारे को पकड़ूं. तुम मेरी जितनी मदद कर सकती हो, दूसरा कोई नहीं कर सकता. अगर तुम यह नहीं चाहती कि हत्यारा पकड़ा जाए तो भी मैं अपना फर्ज नहीं भूल सकता. अगर कोई राज की बात है तो अभी बता दो. इस वक्त बता दोगी तो मैं परदा डाल दूंगा. आज का दिन गुजर गया तो फिर मैं मजबूर हो जाऊंगा.’’

‘‘आप अफसर हैं, जो चाहे कह सकते हैं. लेकिन आप ने यह गलत कहा कि मैं अपने पति के हत्यारे को पकड़वाना नहीं चाहती. मैं ने आप से पहले ही कह दिया है कि मुझे कुछ पता नहीं, यह सब किस ने और क्यों किया है?’’

‘‘एक बात बताओ, मंजूर ने किसी और औरत से तो रिश्ते नहीं बना लिए थे. कहीं ऐसा तो नहीं कि उस औरत के रिश्तेदारों ने उन्हें कहीं देख लिया हो?’’

‘‘नहीं, वह ऐसा आदमी नहीं था?’’ आमना ने जवाब दिया.

‘‘तुम यह बात पूरे यकीन के साथ कह सकती हो?’’

‘‘हां, वह इस तरह की हरकत करने वाला आदमी नहीं था.’’

मेरे पूछने पर उस ने 3 आदमियों के नाम बताए, जिन्हें मैं ने पूछताछ के लिए बुलवा लिया. उन तीनों से मैं ने कहा कि जो मृतक का सब से घनिष्ठ मित्र हो, वह मेरे सामने बैठ जाए.

मासूम से दुश्मनी : चचेरे भाई ने ले ली जान – भाग 1

स्कूल से घर लौटने के बाद आकाश ने अपना बैग मेज पर रखा और फौरन बाहर की तरफ दौड़ लगा दी. मां रानी ने उसे कई आवाजें  दीं, लेकिन वह यह कहते हुए घर से निकल गया कि खेलने जा रहा है. आकाश अकसर स्कूल से लौटने के तुरंत बाद खेलने चला जाता था. थोड़ी देर खेल कर वह घर लौट आता था. इसलिए रानी उस की ओर से ध्यान हटा कर घर के काम में लग गई. यह 21 सितंबर, 2018 की शाम 4 बजे की बात है.

आकाश आधे एक घंटे में खेल कर घर लौट आता था. लेकिन उस दिन जब वह साढ़े 6 बजे तक नहीं लौटा तो रानी को उसे बुलाने के लिए घर से निकलना पड़ा. घर से कुछ ही दूरी पर पार्क था. पार्क में जो बच्चे खेल रहे थे, उन में आकाश नहीं था. रानी ने बच्चों से आकाश के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि आकाश कुछ देर पहले बच्चों के साथ क्रिकेट खेल रहा था.

आकाश जिन बच्चों के साथ क्रिकेट खेल रहा था, वह भी रानी के पासपड़ोस में रहते थे. रानी उन बच्चों के घर गई तो उन्होंने बताया कि कुछ देर पहले वे खेलबंद कर के घर लौट आए थे. आकाश वहीं रह गया था.

रानी ने अपनी बेटी राधा को साथ लिया और पार्क में खेलने वाले बच्चों और पार्क के आसपास रहने वाले लोगों से आकाश के बारे पता करने लगी. लेकिन आकाश का कोई पता नहीं लगा. मायूस हो कर घर लौटी रानी ने आकाश के लापता होने की बात अपने पति सुनील विश्नोई को बताई.

सुनील उस समय बाजार में था. बेटे के लापता होने की खबर मिली तो वह आननफानन में घर आ गया. फिर वह भी बेटे को ढूंढने के लिए घर से निकल पड़ा. रानी और उस की बेटी राधा कस्बे की गलियों में आकाश को खोजने लगीं. लेकिन आकाश का कोई पता नहीं लगा, पतिपत्नी दोनों परेशान थे. अचानक रानी ने सोचा कि कहीं आकाश खेल कर शिवम के घर तो नहीं चला गया.

शिवम विश्नोई, रानी के जेठ विनोद विश्नोई का बेटा था. उस का घर रानी के घर से 2 घर छोड़ कर था. घबराई हुई रानी शिवम के घर पहुंची और आकाश के बारे में पूछा. शिवम ने बताया, ‘‘चाची, आकाश आया जरूर था, लेकिन थोड़ी देर बतिया कर चला गया था.’’

तब तक 9 बज चुके थे और रात गहराने लगी थी. आकाश का जब कुछ पता नहीं चला तो उस के पिता सुनील विश्नोई ने पुलिस कंट्रोल रूम के 100 नंबर पर फोन कर के बता दिया कि राजपुर कस्बे की गली नंबर 9 से 12 साल का एक लड़का गायब हो गया है. राजपुर कस्बा कानपुर देहात जिले के थाना राजपुर क्षेत्र में आता है. पुलिस कंट्रोल रूम ने लड़के के गायब होने की सूचना थाना राजपुर को दे दी.

सूचना मिलते ही एसआई देशराज सिंह हेडकांस्टेबल सुरेशचंद्र को साथ ले कर राजपुर कस्बे स्थित सुनील के घर पहुंच गए. सुनील विश्नोई और उस की पत्नी रानी घर पर थे. शिवम भी उन के साथ था. उन्होंने आकाश के गायब होने की जानकारी उन्हें दी. एसआई देशराज सिंह सुनील विश्नोई का बयान दर्ज कर के थाने लौट आए.

थानाप्रभारी नवीन कुमार सिंह उस समय थाने पर मौजूद थे. एसआई देशराज सिंह ने 12 वर्षीय आकाश के गुम होने की जानकारी उन्हें दे दी. उन्होंने अज्ञात लोगों के खिलाफ अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करवा दी और इस मामले की जांच देशराज सिंह को ही सौंप दी.

एसआई देशराज सिंह आकाश की खोजबीन में जुट गए. सूचना पा कर रानी के मातापिता भी आ गए. उन्होंने रानी से कहा कि वह एक बार ठीक से देख लें कि वह घर में ही तो नहीं सो गया है. रानी ने घर के सारे कमरे छान मारे लेकिन आकाश नहीं मिला. आकाश कहीं शिवम के घर न सो गया हो, यह सोच कर रानी शिवम के घर गई तो वह दरवाजे पर ही मिल गया.

रानी ने जब उस से आकाश को घर में देखने की बात कही तो वह बोला, ‘‘चाची, वैसे तो आकाश यहां से चला गया था, फिर भी तुम कहती हो तो मैं एक बार और देख लेता हूं.’’

शिवम घर में चला गया, जबकि रानी दरवाजे पर ही खड़ी रही. कुछ देर बाद शिवम ने बाहर आ कर बताया कि आकाश यहां नहीं है.

फिरौती के लिए नहीं हुआ अपहरण

इधर इंसपेक्टर नवीन कुमार सिंह ने आकाश अपहरण पर गहन विचारविमर्श किया. उन के विचार से आकाश का अपहरण फिरौती के लिए नहीं किया गया था. क्योंकि सुनील विश्नोई की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि उस के बेटे का अपहरण 2-4 लाख की फिरौती के लिए किया जाता. दूसरे फिरौती की बात इसलिए भी गले नहीं उतर रही थी, क्योंकि अभी तक अपहर्त्ता का कोई फोन नहीं आया था.

नवीन कुमार सिंह का अनुमान था कि आकाश का अपहरण किसी और कारण से किया गया है. यह कारण क्या हो सकता है, इस का पता लगाना जरूरी था. फिर भी इंसपेक्टर नवीन कुमार सिंह ने पुखरायां, घाटमपुर, भीमसेन रेलवे स्टेशन के अलावा कानपुर देहात के सभी प्रमुख बस अड्डों पर छानबीन के लिए आकाश के फोटो के साथ अलगअलग पुलिस टीमें रवाना कर दीं.

एसआई देशराज सिंह थाना क्षेत्र के नदी, नालों और सड़क किनारे की झाडि़यों पार्कों आदि में इस आशंका से आकाश को खोज कर रहे थे कि कहीं किसी ने उस की हत्या न कर दी हो.

कस्बा राजपुर में सड़क किनारे एक शिव मंदिर था. मंदिर के पास वाले मैदान में बच्चे खेलते थे. पुलिस आकाश की खोज में वहां भी गई, लेकिन उस का पता नहीं चला. पुलिस ने नमाज के समय मसजिद से आकाश के हुलिए सहित उस के गुम होने की सूचना प्रसारित कराई, पर कोई सफलता नहीं मिली.

उधर आकाश के लापता होने से विश्नोई परिवार की आंखों की नींद उड़ी हुई थी. घर के सभी लोगों को इस बात की चिंता सता रही थी कि उन की आंखों का चिराग पता नहीं कहां और किस हाल में होगा. वे लोग पूरी रात बैठे रहे. उन के दिमाग में तरहतरह के खयाल आ रहे थे.

अंधेरा छंटते ही वे लोग फिर 2-2, 3-3, के ग्रुप में आकाश की खोज में निकल पड़े. उधर पुलिस ने आकाश के गुम होने की सूचना उस के हुलिए के साथ कानपुर देहात जनपद के सभी थानों को दे दी थी.

ज्योंज्यों समय बीतता जा रहा था त्योंत्यों  सुनील और उस की पत्नी रानी की चिंता बढ़ती जा रही थी. दोनों की समझ में नहीं आ रहा था कि आकाश चला कहां गया? रानी बेटे के गम में सब से ज्यादा दुखी थी. उस का रोरो कर बुरा हाल था. उस ने खानापीना भी छोड़ दिया था.

धीरेधीरे 3 दिन बीत गए, लेकिन अब तक आकाश का पता न तो घर वाले लगा पाए थे और न ही पुलिस को सफलता मिली थी. पुलिस आकाश की खोज में जीजान से जुटी थी. उस ने क्षेत्र के हर रेलवे स्टेशन व बस अड्डे पर आकाश की फोटो सहित सूचना चस्पा कर दी थी.

पुलिस आपराधिक प्रवृत्ति के युवकों को पकड़ कर थाने लाई और उन से सख्ती से पूछताछ की. लेकिन आकाश के बारे में कोई जानकारी हासिल नहीं हुई. आखिर पुलिस को मजबूरन उन युवकों को रिहा करना पड़ा. पुलिस का मुखबिर तंत्र भी आकाश का पता लगाने में नाकाम रहा.

मुट्ठी भर उजियारा : क्या साल्वी सोहम को बेकसूर साबित कर पाएगी?