कल्पना की अधूरी उड़ान : प्रेमिका को देनी पड़ी जान

विकास पालीवाल 

उत्तर प्रदेश के जिला मैनपुरी के थाना एलाऊ क्षेत्र में एक गांव है नगला लालमन. उसी गांव के 2 भाई यशपाल और शेषपाल सुबह 10 बजे किसी काम से जा रहे थे. गांव से लगभग एक किलोमीटर दूर स्थित जल्लापुर निवासी दिनेश यादव के खेत के पास से गुजर रहे थे. तभी उन की नजर खेत में झाड़ी की ओर गई तो वहां का दृश्य देख कर दोनों भाइयों के पैर थम गए.

झाड़ी के पीछे 21-22 साल की युवती की लाश पड़ी थी. पास जा कर देखा तो पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. वह लाश गांव के ही फेरू सिंह की 22 वर्षीय बेटी कल्पना की थी. उस के चारों ओर खून फैला हुआ था. किसी ने गोली मार कर उस की हत्या कर दी थी.

उसी समय दोनों भाइयों ने कल्पना के भाई अवधपाल सिंह को इस बात की जानकारी फोन से दे दी. यह बात अवधपाल ने अपने घर बताने के साथ ही पड़ोसियों को भी बताई.  खबर सुनते ही परिवार में कोहराम मच गया. घरवालों के साथ ही लालमन गांव के लोग खेत की ओर दौड़े.

गांव की युवती को दिनदहाड़े खेतों पर गोली मार कर मौत के घाट उतार दिया गया था. इस से गांव में सनसनी फैल गई. कुछ ही देर में वहां भीड़ जुट गई.

यह 17 मार्च, 2021 की सुबह की बात है. भाई अवधपाल व ग्रामीणों ने पास जा कर देखा तो कल्पना की कनपटी पर गोली मारी गई थी. इसी बीच किसी ने पुलिस को सूचना दे दी थी.

सूचना मिलते ही थाना एलाऊ के थानाप्रभारी सुरेशचंद्र शर्मा पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचे. युवती की हत्या की खबर आसपास के गांवों में भी फैल चुकी थी, जिस से वहां देखने वालों की भीड़ जमा हो गई.

लाश देख कर लोग आक्रोशित थे और हंगामा कर रहे थे. थानाप्रभारी ने बिना देर किए अपने उच्चधिकारियों को भी घटना से अवगत करा दिया.

सूचना मिलने पर एसपी अविनाश पांडेय, एएसपी मधुबन सिंह, सीओ (सिटी) अभय नारायण राव के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. एसपी के आदेश पर फोरैंसिक टीम, डौग स्क्वायड की टीम भी वहां पहुंच गई.

उच्चाधिकारियों ने युवती के शव का निरीक्षण किया. शव की दशा इस बात की ओर इशारा कर रही थी कि गोली मारने से पहले उस के साथ मारपीट भी की गई थी.

क्योंकि उस के दाएं हाथ पर चोट के निशान थे, जिन्हें देख कर ऐसा लग रहा था जैसे वह टूटा हुआ है. गोली बाएं कान के नीचे सटा कर मारी गई थी. इस से लग रहा था कि हत्यारे जानपहचान वाले ही होंगे. चेहरे के चारों ओर खून फैला हुआ था.

पुलिस ने मृतका के घरवालों से बात की. उन्होंने बताया कि कल्पना आज तड़के साढ़े 5 बजे अपने घर से दिशामैदान के लिए निकली थी. लेकिन जब वह 2 घंटे तक वापस नहीं आई तो घर वाले उस की तलाश में जुट गए.

जब उस की तलाश की जा रही थी, तभी उन्हें उस की हत्या की खबर मिली. घर वालों ने बताया कि कल्पना अपने पास मोबाइल रखती थी, लेकिन वह अपना मोबाइल घर पर ही छोड़ गई थी.

पुलिस अधिकारियों ने जब उन से पूछा कि उन की किसी से दुश्मनी या रंजिश तो नहीं है तो कल्पना के भाई अवधपाल सिंह ने बताया कि गांव में उन की किसी से कोई दुश्मनी नहीं है. फिर सवाल यह था कि हत्या किस ने और क्यों की है?

फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल से जरूरी सबूत जुटाए. मृतका के कपड़ों से कुछ भी नहीं मिला. हां, उस का दुपट्टा वहीं खेत की मेड़ पर तह बना कर हुआ रखा मिला.

पुलिस का खोजी कुत्ता भी घटनास्थल से कुछ दूरी तक खेतों में गया. इस पर पुलिस ने खेतों की तलाशी की. लेकिन ऐसा कोई सुराग नहीं मिल सका, जिस से हत्यारे का सुराग मिलता. पानी का डिब्बा गायब था.

कई घंटे तक जांच करने के बाद जब पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए शव को उठाना चाहा तो ग्रामीणों ने विरोध किया. उन्होंने कहा कि गुत्थी सुलझने के बाद ही कल्पना का शव उठने दिया जाएगा.

एसपी अविनाश पांडेय ने आक्रोशित ग्रामीणों को समझाया कि मृतका के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाल कर हत्यारों का पता लगाया जाएगा. उन्होंने आक्रोशित लोगों को आश्वासन दिया कि पुलिस शीघ्र ही हत्यारों को गिरफ्तार कर लेगी. उन के आश्वासन के बाद ग्रामीण शांत हो गए. तब पुलिस ने काररवाई कर शव को मोर्चरी भेज दिया.

मृतका के भाई अवधपाल ने इस संबंध में गांव के ही 2 सगे भाइयों दिनेश और विक्रम के खिलाफ कल्पना की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई. आरोपित दिनेश शिक्षक है और कुरावली क्षेत्र के प्राथमिक विद्यालय में कार्यरत है. वहीं उस का भाई विक्रम गांव में रोजगार सेवक है.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस जांच में जुट गई. पुलिस ने दोनों की गिरफ्तारी के लिए उन के घर पर दबिश दी, लेकिन वे घर पर नहीं मिले.

मृतका के घर वालों से पुलिस ने पूछताछ की. लेकिन परिवार के लोग कल्पना की हत्या का कारण नहीं बता सके. जबकि भाई अवधपाल ने गांव के ही 2 लोगों के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दर्ज कराई थी. अवधपाल ने बताया कि दोनों आरोपित घटना के समय से फरार हैं, इसलिए उन पर शक है.

घर वालों की ओर से बताए गए घटनाक्रम पर पुलिस पूरे तौर पर विश्वास नहीं कर रही थी. युवती की हत्या के मामले में पुलिस की नजर में परिवार के लोग भी शक के दायरे में थे. पुलिस किसी भी तथ्य को नजरंदाज नहीं कर रही थी.

जांच शुरू हुई तो नामजद आरोपियों के खिलाफ कोई भी साक्ष्य नहीं मिला. इस के चलते अन्य पहलुओं पर पुलिस ने जांच शुरू की. घटना का राजफाश करने के लिए सीओ (सिटी) अभय नारायण राय के नेतृत्व में स्वाट और सर्विलांस सहित 4 टीमों को लगाया गया.

शाम तक पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई. इस में गोली से मौत होने के साथ ही मृतका की बांह पर चोट के निशान थे लेकिन बांह की हड्डी नहीं टूटी थी. इस बात से यह स्पष्ट हो गया कि युवती का हत्यारे के साथ संघर्ष हुआ था. इसी के चलते उस की बांह में चोट लगी थी.

पुलिस ने ग्रामीणों से भी इस संबंध में पूछताछ की. पुलिस की जानकारी में आया कि मृतका के गांव के ही एक युवक से प्रेम संबंध थे. पुलिस ने इस बीच कल्पना का मोबाइल फोन कब्जे में ले लिया. काल डिटेल्स की जांच की गई. मोबाइल में एक नंबर ऐसा था, जिस पर सब से ज्यादा बातें होती थीं.

पुलिस ने जब इस संबंध में जानकारी की तो पता चला कि यह नंबर गांव के ही अजब सिंह का है. अजब सिंह की तलाश हुई तो वह गायब था. इस से पुलिस के शक की सुई उस की तरफ घूम गई.

जांच के दौरान पता चला कि अजब सिंह अपनी ससुराल फर्रुखाबाद में है. सर्विलांस के जरिए पुलिस को उस के बारे में अहम सुराग मिलने शुरू हो गए.

दूसरे दिन गुरुवार की रात इंसपेक्टर एलाऊ सुरेशचंद्र शर्मा पूछताछ के लिए उसे ससुराल से थाने ले आए.  पुलिस ने जब उस से पूछताछ शुरू की उस ने युवती के घर वालों पर ही हत्या करने का आरोप लगाते हुए बताया कि जब उस के बुलावे पर कल्पना खेत पर आ गई तो हम लोग झाड़ी की आड़ में बातचीत करने लगे. इसी बीच कल्पना के घर वाले आ गए.

हम लोगों को बातचीत करते देख उन लोगों ने कल्पना के साथ मारपीट शुरू कर दी. जब मैं ने उन्हें रोका तो मेरे साथ भी मारपीट की. कल्पना को गोली मारने के बाद उस के परिवार वाले उसे भी गाड़ी में डाल कर ले गए थे.

एक स्थान पर उसे मुंह बंद करने की हिदायत दे कर वे लोग गाड़ी से उतार कर चले गए थे. राहगीरों ने उसे अस्पताल में भरती कराया. इस के बाद वह अपनी ससुराल चला गया.

इतनी बड़ी घटना के बाद भी पुलिस को घटना की सूचना क्यों नहीं दी? पुलिस के सवालों में वह उलझ गया. पुलिस की सख्ती करने पर फिर उस ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया.

अजब सिंह ने बताया कि उसी ने नाराज हो कर अपनी प्रेमिका कल्पना की गोली मार कर हत्या की थी. उस की निशानदेही पर पुलिस ने घटना में प्रयुक्त बाइक और तमंचा तथा अजब सिंह का मोबाइल भी बरामद कर लिया.

19 मार्च को प्रैस कौन्फ्रैंस में एसपी अविनाश पांडेय ने इस हत्याकांड का खुलासा कर दिया. शादीशुदा और 2 बच्चों के पिता आरोपी अजब सिंह और मृतका के बीच प्रेम संबंध थे.

कल्पना की शादी तय होने की जानकारी मिलने के बाद अजब सिंह बौखला गया था. उस ने कल्पना के सामने हमेशा साथ रहने की फरमाइश रख दी. जब इस बात पर वह राजी नहीं हुई तो उस ने उस की गोली मार कर हत्या कर दी.

इस घटना को औनर किलिंग का मामला बनाने के लिए उस ने ड्रामा रचा, लेकिन पुलिस ने सर्विलांस के आधार पर उसे गिरफ्तार कर लिया. इस संबंध में जो खौफनाक कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

कल्पना का पिता फेरू सिंह दिल्ली में काम करता है. अवधपाल की गांव में खुद की जमीन कम होने के कारण वह उगाही पर गांव के लोगों की जमीन ले कर खेती करता था. गांव के ही अजब सिंह की छोटी उम्र में ही शादी हो गई थी. वह 2 बच्चों का पिता है.  खेतीकिसानी के कारण उस के कल्पना के घर वालों के साथ अच्छे संबंध थे. उस का कल्पना के घर भी आनाजाना था.

एक दिन अजब सिंह की नजर उस पर पड़ी. कल्पना सुंदर थी. वह उस की सुंदरता देख ठगा सा रह गया. उस ने उसी क्षण उस से दोस्ती करने का निर्णय ले लिया.

अजब सिंह टकटकी लगाए उसे निहारता रहा. कल्पना को भी इस बात का अहसास हो गया कि अजब सिंह उसे देख रहा है. अजब सिंह कसी हुई कदकाठी का युवक था. जवानी की दलहीज पर पहुंची कल्पना का दिल भी उस पर रीझ गया. उसे देख कल्पना का दिल तेजी से धड़कने लगा था.

अब जब भी अजब सिंह कल्पना के घर आता, वह पीने के लिए पानी मांगता. जब कल्पना उसे पानी का गिलास देती वह उस का धीरे से हाथ दबा देता. कल्पना उस के मन की बात जान कर मुसकरा देती. धीरेधीरे दोनों की दोस्ती हुई फिर प्यार हो गया.

दोनों ने एकदूसरे को अपने फोन नंबर दे दिए थे, जिस से फोन पर भी उन की बातें होने लगीं. इस के बाद उन का प्यार और गहराता गया. उन के प्रेम संबंधों की किसी को भनक तक नहीं लगी.

अजब सिंह के शादीशुदा होने से कल्पना के परिजनों को उस पर शक नहीं हुआ. इसी आड़ में वह लगातार कल्पना से मिलताजुलता रहा और उस पर काफी पैसा खर्च करने लगा.

कल्पना अब जवान हो गई थी. घर वालों को उस की शादी की चिंता होने लगी. घर वालों ने भागदौड़ कर कल्पना की शादी तय कर दी थी. इस की जानकारी अजब सिंह को हो गई थी.

17 मार्च की सुबह साढ़े 5 बजे अजब सिंह ने मैसेज कर कल्पना को मिलने खेत पर बुलाया. वह भी अपने खेतों की सिंचाई के बहाने बाइक से वहां पहुंच गया था.

कुछ ही देर में कल्पना भी आ गई. अजब सिंह ने उस से कहा, ‘‘कल्पना, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. लेकिन अब मैं देख रहा हूं कि जब भी फोन करता हूं तुम्हारा फोन बिजी मिलता है. तुम शायद अपने मंगेतर से ज्यादा बातें करती हो. कल्पना, तुम अपने मंगेतर से बात करना बंद कर दो.’’

अजब सिंह और कल्पना के बीच पिछले 4 साल से दोस्ती थी. दोनों के बीच गहरे प्रेम संबंध थे. अजब सिंह अपनी 2 बीघा जमीन भी प्यार की भेंट चढ़ा चुका था. वह कल्पना पर बहुत पैसा खर्च करता था. उस ने 4 सालों में कई मोबाइल फोन भी ला कर उसे दिए थे.

सब कुछ ठीक चल रहा था. कल्पना के घर वालों ने कल्पना की शादी तय कर दी थी. यह बात प्रेमी अजब सिंह को नागवार गुजरी. उस ने कल्पना से कहा, ‘‘कल्पना, मैं तुम्हें पहले की तरह प्यार करता रहूंगा. तुम्हारी शादी जरूर हो रही है लेकिन तुम शादी के बाद भी मुझ से संबंध खत्म मत करना.’’

‘‘देखो, मेरे और तुम्हारे बीच अब तक जो कुछ था, वह अब सब खत्म हो गया है. अब तुम मुझे फोन और मुझ से मिलने की कोशिश भी मत करना. क्योंकि मेरी शादी होने वाली है. और हां, मैं अपने मंगेतर से बात करनी बंद नहीं करूंगी.’’ कल्पना ने जवाब दिया.

अपनी प्रेमिका की इस बेरुखी से अजब सिंह बौखला गया. उसे डर था कि शादी के बाद उस की मोहब्बत उस से छिन जाएगी. इसी बात को ले कर दोनों के बीच बहस होने लगी. गुस्से में उस ने कल्पना की बांह मोड़ दी, जिस से वह दर्द से कराह उठी और खेत में गिर गई.

इसी बीच अजब सिंह ने तमंचा निकाल कर उस की कनपटी पर रख कर गोली चला दी. कुछ देर तड़पने के बाद कल्पना ने दम तोड़ दिया. इस के बाद अजब सिंह बाइक से वहां से चला गया.

आरोपी अजब सिंह गजब का ड्रामेबाज निकला. उस ने कल्पना के घर वालों को औनर किलिंग में फंसाने के लिए पूरा घटनाक्रम तैयार किया था. उस ने हत्या करने के बाद कुछ दूरी पर अपना मोबाइल तो कुछ दूर जा कर तमंचा फेंक दिया. इस के बाद सीने पर अपने नाखूनों से खरोंच करने के बाद सिर पत्थर पर मार कर खुद को घायल किया.

फिर उस ने कानपुर नगर के बिल्हौर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के रास्ते में जा रहे राहगीरों की मदद से अपने ऊपर गांव के कुछ युवकों द्वारा मारुति वैन में डाल कर पीटने और यहां फेंकने की बात कह कर स्वास्थ्य केंद्र में भरती हो गया. वहां से खुद को कन्नौज के एक अस्पताल में रेफर कराया, जहां से अपनी ससुराल फर्रुखाबाद आ गया.

अपने ऊपर हमले की झूठी अफवाह फैलाई. पुलिस को उस की यह कहानी समझ नहीं आई थी. कल्पना के घर वालों को फंसाने में वह कामयाब होता, इस से पहले ही पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने अजब सिंह को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. इस प्रकार 2 निर्दोष भाई जेल जाने से बच गए. कल्पना ने एक बालबच्चेदार व्यक्ति से मोहब्बत कर जो भूल की थी, उस का खामियाजा उसे अपनी जान दे कर चुकाना पड़ा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार के लिए कुर्बानी : महबूब को क्यों चुकानी पड़ी कीमत

18 सितंबर, 2020 को देर रात थाना कांठ के थानाप्रभारी अजय कुमार गौतम के मोबाइल पर किसी अंजान व्यक्ति का फोन आया. फोन करने वाले ने बताया, ‘‘सर, मैं ऊमरी कलां के पास पाठंगी गांव के प्रधान शहजाद का छोटा भाई नौशाद बोल रहा हूं. सर, हमारे घर में एक युवक की मौत हो गई है. आप जल्द आ जाइए.’’

‘‘मौत कैसे हो गई, क्या हुआ था उसे?’’ अजय कुमार गौतम ने उस युवक से पूछा.

‘‘सर, संदूक में दम घुटने से…’’ युवक ने जबाव दिया.

यह जानकारी देने के बाद नौशाद ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

नौशाद की बात सुनते ही थानाप्रभारी को समझते देर नहीं लगी कि मामला कुछ गड़बड़ है. लिहाजा कुछ पुलिसकर्मियों को साथ ले कर वह पाठंगी गांव जा पहुंचे.

जिस वक्त गांव में पुलिस पहुंची, अधिकांश लोग सो चुके थे. फिर भी गांव में देर रात पुलिस की गाड़ी देख कर कुछ लोग एकत्र हो गए. पुलिस की जिप्सी रुकते ही सब से पहले नौशाद पुलिस के सामने हाजिर हुआ. वह बोला, ‘‘सर, मेरा नाम ही नौशाद अली है. मैं ने ही आप को फोन किया था. आइए सर, मैं आप को युवक की लाश दिखाता हूं.’’ कह कर नौशाद अली पुलिसकर्मियों को अपने घर के अंदर ले गया.

घर के अंदर जाते ही नौशाद ने अपने घर में रखा संदूक खोला. संदूक खुलते ही बदबू का गुबार निकला. जिस की वजह से पुलिस का वहां रुकना मुश्किल हो गया. बदबू कम हुई तो पुलिस ने मृतक की लाश देखी. फिर लोगों की मदद से लाश को संदूक से बाहर निकलवाया.

मृतक हृष्टपुष्ट युवक था. जांचपड़ताल के दौरान पता चला कि उस के शरीर पर तमाम चोटों के निशान थे. उस के सिर से काफी खून भी निकल कर जम गया था. संभवत: ज्यादा खून बहने से ही उस की मौत हुई थी.

थानाप्रभारी गौतम ने इस मामले की जानकारी सीओ बलराम सिंह को भी दे दी थी. सूचना मिलते ही सीओ साहब भी पाठंगी गांव पहुंच गए और वहां मौजूद लोगों से पूछताछ की.

फोरैंसिक टीम ने भी घटनास्थल पर पहुंच कर साक्ष्य एकत्र किए.

नौशाद के घर से ही पुलिस को मृतक का एक बैग भी मिला, जिस में से पुलिस को शराब की एक बोतल के साथसाथ 2 बीयर की बोतलें, मृतक का आधार कार्ड व अन्य दस्तावेज भी मिले. आधार कार्ड पर नाम महबूब आलम पुत्र शमशाद, निवासी मोड़ा पट्टी, कांठ लिखा था.

पुलिस ने नौशाद से मृतक युवक के बारे में पूछा तो उस ने बताया, ‘‘सर, मैं पानीपत में काम करता हूं. घर पर मेरे बीवीबच्चे रहते हैं. इसलिए मैं इस के बारे में नहीं जानता. लेकिन पत्नी नरगिस ने बताया कि यह उस का दूर का रिश्तेदार है. मैं पानीपत में था तो आज सुबह मेरी बीवी नरगिस का फोन आया. उस ने फोन पर बताया कि घर पर कुछ अनहोनी हो गई है. इसलिए जितनी जल्दी हो सके, फौरन घर पहुंचो.’’

नौशाद ने बताया कि बीवी की बात सुनते ही वह अपना कामधंधा छोड़ कर तुरंत घर चला आया था. घर आने पर पत्नी ने बताया कि महबूब उस का दूर का रिश्तेदार था. 17 सितंबर, 2020 की देर रात वह हमारे घर पहुंचा. उस वक्त तीनों बच्चे सो चुके थे. लेकिन बड़ा बेटा अचानक जाग गया. बेटे के डर की वजह से महबूब घर में रखे संदूक में छिप कर बैठ गया. बेटा 2 घंटे बाद सोया तो मैं ने संदूक खोल कर देखा. तब तक दम घुटने से वह मर चुका था.

नौशाद ने पुलिस को बताया कि घर में किसी व्यक्ति की मौत हो जाने की बात सुनते ही उस के हाथपांव फूल गए. संदूक में पड़ी लाश के बारे में सोचसोच कर उस का सिर फटा जा रहा था.

उसे अपनी बीवी पर भी कुछ शक हुआ. वह समझ नहीं पा रहा था कि अगर लड़का सोते से उठ गया तो उसे संदूक में छिपने की क्या जरूरत थी. इस घटना से उसे बीवी पर बहुत गुस्सा आया. लेकिन घर में जो बला पड़ी थी, पहले उस से कैसे निपटा जाए, वह उसे ले कर परेशान था.

दोपहर से शाम तक उस ने कई बार उस की लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई, लेकिन वह किसी भी योजना में सफल नहीं हो पा रहा था. घर की बदनामी को देखते हुए वह न तो इस बात का जिक्र अपने घर वालों से कर सकता था और न ही खुद कोई निर्णय ले पा रहा था.

जब इस मामले में उस के दिमाग ने बिलकुल काम करना बंद कर दिया तो उस ने पुलिस को सूचना देने का फैसला लिया. उस के बाद ही उस ने पुलिस को फोन कर घटना की जानकारी दी.

जब पुलिस इस मामले की जांचपड़ताल में लगी थी, नरगिस घर के आंगन में ही डरीसहमी सी बैठी थी. नौशाद की बताई कहानी से पुलिस को मामला समझने में देर नहीं लगी. लेकिन हैरत की बात यह थी कि 2 घंटे संदूक में बंद रहने से उस की मौत कैसे हो गई. क्योंकि बक्सा काफी बड़ा भी था और खाली भी था. सवाल यह था कि मृतक के शरीर पर चोटों के निशान कहां से आए.

पुलिस को मृतक की जेब से एक मोबाइल मिला, जो उस वक्त बंद था. पुलिस ने उसे औन कर के उस की जांच की तो पता चला कि उस के फोन पर नरगिस ने ही आखिरी काल की थी.

इस मामले को ले कर पुलिस ने नरगिस से भी पूछताछ की. पुलिस पूछताछ के दौरान नरगिस ने अपने पति की बताई रटीरटाई बात दोहरा दीं. उस वक्त तक रात के 12 बज चुके थे. पुलिस युवक की मौत की जांच में लगी थी. उसी दौरान मृतक के मोबाइल पर शमशाद नामक व्यक्ति का फोन आया.

फोन थानाप्रभारी गौतम ने रिसीव किया. जैसे ही उन्होंने हैलो कहा तभी दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘अरे बेटा, मैं तुम्हारा अब्बू बोल रहा हूं. तुम कहां हो? कल से तुम्हारा फोन बंद आ रहा है.’’

‘‘शमशाद जी, आप कहां से बोल रहे हैं और आप का बेटा कहां गया हुआ है?’’ अजय कुमार गौतम ने शमशाद से प्रश्न किया.

आवाज उन के बेटे की नहीं थी. मोबाइल किसी और के रिसीव करने से शमशाद हुसैन चिंतित हो उठे. वह तुरंत बोले, ‘‘आप कौन बोल रहे हैं? यह नंबर तो मेरे बेटे महबूब आलम का है. आप के पास कहां से आया?’’

‘‘मैं कांठ थाने का थानेदार अजय कुमार गौतम बोल रहा हूं.’’

पुलिस का नाम सुनते ही शमशाद अहमद घबरा गए. उन के दिमाग में तरहतरह शंकाएं घूमने लगीं.

जब उन्हें यह जानकारी मिली कि बेटे का मोबाइल पुलिस के पास है तो वे किसी अनहोनी की आशंका से परेशान हो गए. तभी अजय कुमार गौतम ने शमशाद हुसैन को बताया कि उन के बेटे के साथ एक अनहोनी हो गई है. वह तुरंत पाठंगी गांव आ जाएं.

पुलिस द्वारा जानकारी मिलने पर शमशाद हुसैन अपने घर वालों के साथ पाठंगी गांव जा पहुंचे. वहां पहुंचने पर उन्हें जानकारी मिली कि उन का बेटा महबूब अब इस दुनिया में नहीं रहा. उस की संदूक में बंद होने के कारण दम घुटने से मौत हो गई है.

यह जानकारी मिलते ही शमशाद हुसैन के परिवार में मातम छा गया. घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतक की गला घोंट कर हत्या करने की बात सामने आई. मृतक के शरीर पर भी चोटों के काफी निशान पाए गए थे, जिन से साफ जाहिर था कि मृत्यु से पहले उस के साथ मारपीट की गई थी और मृतक ने हमलावरों से काफी संघर्ष किया था.

इस केस में मृतक के पिता शमशाद हुसैन की तहरीर पर पुलिस ने नरगिस, उस के पति नौशाद, ग्रामप्रधान शहजाद और दिलशाद के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

पुलिस ने आरोपी नरगिस को उस के घर से ही गिरफ्तार कर लिया. नरगिस को थाने लाते ही पुलिस ने उस से कड़ी पूछताछ की तो उस ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. नरगिस और महबूब के घर वालों से पूछताछ के बाद इस केस की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

जिला मुरादाबाद में कांठ मिश्रीपुर रोड पर स्थित है गांव मोड़ा पट्टी. शमशाद हुसैन इसी गांव में अपने परिवार के साथ रहता था. शमशाद हुसैन पेशे से कारपेंटर था. उस की आर्थिक स्थिति शुरू से ही मजबूत थी. उस के 6 बच्चों में महबूब आलम तीसरे नंबर का था. इस समय उस के पांचों बेटे कामधंधा कर कमाने लगे थे.

महबूब ने कांठ में ही स्टील वेल्ंिडग का काम सीख लिया था. काम सीखने के बाद उस ने ठेके पर काम करना शुरू किया. धीरेधीरे शहर के आसपास उस की अच्छी जानपहचान हो गई थी.

लगभग 3 साल पहले की बात है. नरगिस अपने पति नौशाद को फोन मिला रही थी. लेकिन गलती से फोन किसी और के नंबर से कनेक्ट हो गया. बातों में पता चला कि वह नंबर गांव मोड़ा पट्टी निवासी महबूब का है. महबूब से बात करना उसे अच्छा लगा.

महबूब को भी उस की बातें अच्छी लगीं. बात खत्म हो जाने के बाद महबूब ने उसी वक्त नरगिस के नंबर को अपने मोबाइल में सेव कर लिया था.

उस के कई दिन बाद महबूब ने फिर से वही नंबर ट्राई किया तो फोन नरगिस ने ही उठाया. उस के बाद महबूब ने नरगिस को विश्वास में लेते हुए उस के घर की पूरी हकीकत जान ली.

एक बार दोनों के बीच मोबाइल पर बात करने का सिलसिला चालू हुआ तो दोस्ती पर ही जा कर रुका. दोनों के बीच प्रेम कहानी शुरू हुई तो महबूब नरगिस के घर तक पहुंच गया.

महबूब पहली बार नरगिस के घर जा कर उस से मिला तो उस ने उस का परिचय अपने बच्चों व ससुराल वालों से अपने दूर के खालू के लड़के के रूप में कराया. उस के बाद महबूब का नौशाद की गैरमौजूदगी में आनाजाना बढ़ गया. उसी आनेजाने के दौरान महबूब और नरगिस के बीच अवैध संबंध भी बन गए.

नौशाद अकसर काम के सिलसिले में घर से बाहर ही रहता था. उस के तीनों बच्चे स्कूल जाने लगे थे. वैसे भी महबूब का घर नरगिस के गांव से करीब 7 किलोमीटर दूर था. जब कभी नरगिस घर पर अकेली होती तो वह महबूब को फोन कर के बुला लेती. फिर दोनों मौके का लाभ उठाते हुए अपनी हसरतें पूरी करते. दोनों के बीच यह सिलसिला काफी समय तक चलता रहा.

इसी दौरान महबूब कांठ छोड़ कर काम करने गोवा चला गया. महबूब के गोवा जाते ही नरगिस खोईखोई सी रहने लगी. इस के बाद भी दोनों के बीच मोबाइल पर प्रेम कहानी चलती रही. गोवा में स्टील वेल्डिंग का काम कर के महबूब ने काफी पैसे कमाए. उस कमाई का अधिकांश हिस्सा वह नरगिस पर खर्च करता.

महबूब जब कभी गोवा से अपने घर कांठ आता तो वह नरगिस के साथसाथ उस के बच्चों के लिए भी काफी गिफ्ट ले कर आता था. वह सारी रात उसी के पास सोता और फिर दिन निकलते ही अपने गांव मोड़ा पट्टी चला जाता था.

महबूब का नरगिस के साथ करीब 3 साल से प्रेम प्रसंग चल रहा था, लेकिन उस ने इस बात की भनक अपने परिवार वालों को नहीं लगने दी थी. लेकिन नरगिस के ससुराल वाले जरूर महबूब और नरगिस के रिश्ते को ले कर शक करने लगे थे.

नौशाद का भाई शमशाद ग्रामप्रधान था. नरगिस के क्रियाकलापों की वजह से गांव में उस की बहुत बदनामी हो रही थी. उस के सभी भाई परेशान थे.

नौशाद का परिवार अलग घर में रहता था. उस के भाई अपनेअपने घरों में रहते थे. जिस के कारण वह महबूब और नरगिस को रंगेहाथों पकड़ने में असफल हो रहे थे.

महबूब अगस्त के महीने में घर आया और फिर गोवा वापस चला गया था. गोवा जाते ही घर पर उस की शादी की बात चली. बात तय हो जाने के बाद 18 सितंबर को रिश्ता होने की बात पक्की हो गई. जिस के लिए मजबूरी में उसे फिर से गोवा से गांव आना पड़ा.

15 सितंबर, 2020 को महबूब ने अपने भाई शकील के मोबाइल पर बात कर कहा था कि 18 सितंबर की सुबह वह घर पहुंच जाएगा. 16 सितंबर को वह गोवा से चल कर देर रात दिल्ली पहुंचा. दिल्ली के कीर्ति नगर में उस के जीजा गुड्डू रहते थे. वह सीधे अपने जीजा के पास चला गया.

16 सितंबर की रात को उस ने नरगिस से फोन पर बात की तो उसे पता चला कि उस का पति पानीपत, हरियाणा काम करने गया हुआ है. यह जानकारी मिलने पर उस ने सीधे नरगिस के घर जाने की योजना बना ली. उसी योजना के मुताबिक महबूब 17 सितंबर की देर रात दिल्ली से नरगिस के गांव पाठंगी पहुंचा. उस वक्त तक उस के बच्चे सो चुके थे. लेकिन नौशाद के बड़े भाई ग्राम प्रधान शहजाद को इस बात का पता चल गया था.

भले ही नरगिस ने महबूब को अपना रिश्तेदार बता रखा था. लेकिन उस का वक्तबेवक्त आनाजाना ससुराल वालों को खलने लगा था.

गांव में हो रही बदनामी से बचने के लिए ग्राम प्रधान शहजाद और उस का छोटा भाई दिलशाद महबूब को सबक सिखाने का मौका तलाश रहे थे.

17 सितंबर की रात नरगिस के ससुराल वालों को महबूब के आने का पता चल गया था. वे देर रात तक नरगिस के बच्चों के सोने का इंतजार करते रहे. जैसे ही उन्हें आभास हुआ कि बच्चे सो चुके हैं, दोनों भाई मौका पाते ही नौशाद के घर में घुस कर छिप गए. रात में उन्होंने नरगिस और महबूब को आपतिजनक स्थिति में देख लिया.

दोनों को उस स्थिति में देखते ही शहजाद और दिलशाद का खून खौल उठा. नरगिस को उन्होंने बुरी तरह से मारापीटा. उस के बाद दोनों ने महबूब को डंडों से मारमार कर अधमरा कर दिया. कुछ ही देर में महबूब की मौत हो गई. इस के बाद उन्होंने उस की लाश छिपाने के उद्देश्य से घर में रखे संदूक में डाल दी. फिर वे उस की लाश ठिकाने लगाने की जुगत मे लग गए.

लेकिन उन्हें लाश ठिकाने लगाने का मौका नहीं मिला तो नरगिस को वही पाठ पढ़ा कर घर से गायब हो गए, जो उस ने अपने पति और पुलिस वालों को बताया था.

उधर 17 सितंबर, 2020 को महबूब ने अपने घर फोन कर जानकारी दी थी कि वह गोवा से दिल्ली गुड्डू जीजा के घर आ गया है और कल सुबह गांव पहुंच जाएगा. उस के बाद उस का मोबाइल फोन बंद हो गया था.

घर वालों ने सोचा कि शायद उस के मोबाइल की बैटरी डिस्चार्ज हो गई होगी. फिर भी उन्हें तसल्ली इस बात की थी कि वह गोवा से ठीकठाक दिल्ली पहुंच गया था. उस के बाद भी उस के परिवार वाले बीचबीच में उस का नंबर मिलाते रहे. लेकिन उस से बात नहीं हो पा रही थी.

जब काफी समय बाद भी महबूब से बात नहीं हो सकी. तो शमशाद हुसैन ने अपने दामाद गुड्डू को फोन किया. गुड्डू ने बताया कि महबूब उन के घर 16 सितंबर की रात पहुंचा था और 17 सितंबर की दोपहर में ही वह घर जाने की बात कह कर चला गया था. यह सुन कर घर वाले परेशान थे. पुलिस द्वारा फोन करने पर ही उन्हें हत्या की जानकारी हुई.

इस केस के खुलते ही पुलिस ने शमशाद की तहरीर पर मृतक महबूब की प्रेमिका नरगिस, उस के पति नौशाद, जेठ शहजाद तथा दिलशाद के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज किया.

हालांकि नरगिस और उस के पति नौशाद ने स्वयं स्वीकार किया था कि हत्या से उन का कोई लेनादेना नहीं है. नौशाद ने बताया कि हत्या वाली रात वह पानीपत में था. जांच में बेकुसूर पाए जाने पर पुलिस ने नौशाद को छोड़ दिया.

18 सितंबर को पुलिस ने नरगिस को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया था. अन्य अभियुक्तों की तलाश जारी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दरवाजे के पार-भाग 2 : क्यों किया अपनों ने वार

आज सोना 12 बजे आई थी. बंद कमरे में दोनों का झगड़ा हो रहा था. तेज आवाजें आ रही थीं. लेकिन हम लोगों ने ध्यान नहीं दिया. घटना की जानकारी तब हुई, जब मकान मालकिन चीखी.

किराएदारों से पूछताछ में एक किराएदार कमल ने बताया कि आशीष ने एक बार बताया था कि वह कानपुर के गजनेर का रहने वाला है.

सीओ मनोज कुमार गुप्ता अभी किराएदारों से पूछताछ कर ही रहे थे कि मृतका सोना की मां गीता, बहन बरखा, निशू, भाभी ज्योति तथा भाई विक्की, सूरज, सनी और पीयूष आ गए. सोना का शव देख सभी दहाड़ मार कर रोने लगे. किसी तरह पुलिस अधिकारियों ने उन्हें शव से अलग किया और फिर पूछताछ की.

एसपी अपर्णा गुप्ता को मृतका की मां गीता ने बताया कि 3 साल पहले उन की बेटी सोना की आशीष से दोस्ती हो गई थी. दोनों एक ही फैक्ट्री में काम करते थे. जब उसे दोनों की दोस्ती की बात पता चली तो उस ने सोना का विवाह कर दिया. लेकिन सोना की अपने पति व ससुरालियों से नहीं पटी, वह मायके आ कर रहने लगी. अपने खर्चे के लिए उस ने गोविंद नगर स्थित एक स्कूल में नौकरी कर ली.

इस बीच आशीष ने सोना को फिर अपने प्रेम जाल में फंसा लिया और वह उसे अपने कमरे पर बुलाने लगा. कभीकभी वह घर भी आ जाता था. हम सब उसे अच्छी तरह जानते थे. पिछले कुछ दिनों से वह सोना पर शादी करने का दबाव डाल रहा था, लेकिन सोना शादी को राजी नहीं थी. आज भी आशीष ने सोना को अपने रूम में बुलाया और शादी का दबाव डाला. उस के न मानने पर आशीष ने जोरजबरदस्ती की और बेटी को मार डाला.

सोना को मौत की नींद सुलाने के बाद आशीष ने मेरी बहू ज्योति के मोबाइल पर हत्या की सूचना दी कि आ कर लाश ले जाओ. तब उस के सभी बेटे काम पर गए थे. वह बहू ज्योति को साथ ले कर दबौली आई और मकान मालकिन पुष्पा से मिली. लेकिन पुष्पा ने यह कह कर लौटा दिया कि आशीष अभी घर पर नहीं है. पुष्पा अगर हमें आशीष के कमरे तक जाने देती तो शायद उस की बेटी की जान बच जाती.

पूछताछ के बाद एसपी अपर्णा गुप्ता ने थानाप्रभारी अनुराग सिंह को आदेश दिया कि वह मृतका के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजे और रिपोर्ट दर्ज कर के कातिल आशीष को गिरफ्तार करें. उस की गिरफ्तारी के लिए उन्होंने सीओ मनोज कुमार गुप्ता के निर्देशन में एक पुलिस टीम भी गठित कर दी.

पुलिस अधिकारियों के आदेश पर थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने घटनास्थल से बरामद खून सनी कैंची, सोना का मोबाइल फोन और पर्स आदि चीजें जाब्ते की काररवाई में शामिल कर लीं. इस के बाद मृतका के शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय अस्पताल भेज दिया गया. थाने लौट कर अनुराग सिंह ने मृतका के भाई सूरज की तहरीर पर धारा 302 आईपीसी के तहत आशीष के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया.

मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस टीम आशीष की गिरफ्तारी के प्रयास में जुट गई. पुलिस टीम ने मृतका सोना का मोबाइल फोन खंगाला तो आशीष का नंबर मिल गया, जिसे सर्विलांस पर लगा दिया गया.

सर्विलांस से उस की लोकेशन गीतानगर मिली. पुलिस टीम रात 2 बजे गीतानगर पहुंची, लेकिन वहां पहुंचने से पहले ही आशीष का फोन स्विच्ड औफ हो गया, जिस से उस की लोकेशन मिलनी बंद हो गई. निराश हो कर पुलिस टीम वापस लौट आई.

निरीक्षण के दौरान एक किराएदार ने सीओ मनोज कुमार गुप्ता को बताया था कि आशीष कानपुर देहात के गजनेर कस्बे का रहने वाला है. इस पर उन्होंने एक पुलिस टीम को गजनेर भेज दिया, जहां आशीष की तलाश की गई. सादे कपड़ों में गई पुलिस टीम ने दुकानदारों व अन्य लोगों को आशीष की फोटो दिखा कर पूछताछ की.

लेकिन फोटो में आशीष चश्मा लगाए हुए था, जिस की वजह से लोग उसे पहचान नहीं पा रहे थे. पुलिस टीम पूछताछ करते हुए जब मुख्य रोड पर आई तो एक पान विक्रेता ने फोटो पहचान ली. उस ने बताया कि वह अजय ठाकुर है जो कस्बे के लाल सिंह का छोटा बेटा है.

आशीष के पहचाने जाने से पुलिस को अपनी मेहनत रंग लाती दिखी. पुलिस टीम लाल सिंह के घर पहुंची. पुलिस ने लाल सिंह को फोटो दिखाई तो वह बोला, ‘‘यह फोटो मेरे बेटे आशीष सिंह की है. घर के लोग उसे अजय ठाकुर के नाम से बुलाते हैं. आशीष कानपुर में नौकरी करता है. मेरा बड़ा बेटा मनीष सिंह भी गीतानगर, कानपुर में रहता है. पर आप लोग हैं कौन और आशीष की फोटो क्यों दिखा रहे हैं. उस ने कोई ऐसावैसा काम तो नहीं कर दिया?’’

पुलिस टीम ने अपना परिचय दे कर बता दिया कि उन का बेटा सोना नाम की एक युवती की हत्या कर के फरार हो गया है. पुलिस उसी की तलाश में आई है. अगर वह घर में छिपा हो तो उसे पुलिस के हवाले कर दो, वरना खुद भी मुसीबत में फंस जाओगे.

पुलिस की बात सुन कर लाल सिंह घबरा कर बोला, ‘‘हुजूर, आशीष घर पर नहीं आया है. न ही उस ने मुझे कोई जानकारी दी है.’’

यह सुन कर पुलिस ने लाल सिंह को हिरासत में ले लिया. चूंकि लाल सिंह का बड़ा बेटा गीतानगर में रहता था और आशीष के मोबाइल फोन की लोकेशन भी गीता नगर की ही मिली थी. पुलिस को शक हुआ कि अजय ठाकुर उर्फ आशीष सिंह अपने बड़े भाई के घर में छिपा हो सकता है.

पुलिस टीम लाल सिंह को साथ ले कर वापस कानपुर आ गई और उस के बताने पर गीता नगर स्थित बड़े बेटे मनीष के घर छापा मारा. छापा पड़ने पर घर में हड़कंप मच गया. पिता के साथ पुलिस देख कर आशीष ने भागने का प्रयास किया, लेकिन पुलिस टीम ने उसे दबोच लिया और थाना गोविंद नगर ले आई.

थाना गोविंद नगर में जब आशीष सिंह से सोना की हत्या के संबंध में पूछा गया तो उस ने सहज ही हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. आशीष ने बताया कि शादी के पहले से दोनों के बीच प्रेम संबंध थे. सोना के घर वालों को पता चला तो उन्होंने उस की शादी कर दी, लेकिन सोना की पति से पटरी नहीं बैठी.

दरवाजे के पार-भाग 1 : क्यों किया अपनों ने वार

उस दिन मार्च, 2020 की 17 तारीख थी. शाम के 4 बजे थे. मकान मालकिन पुष्पा किचन में चाय बनाने जा रही थी. तभी किसी ने डोरबैल बजाई. पुष्पा ने दरवाजा खोला तो दरवाजे पर 2 महिलाएं खड़ी थीं. उन में एक जवान थी, जबकि दूसरी अधेड़ उम्र की थी. पुष्पा ने अजनबी महिलाओं को देख कर परिचय पूछा तो उन्होंने कोई जवाब न दे कर पर्स से एक फोटो निकाली और पुष्पा को दिखाते हुए पूछा, ‘‘क्या यह आप के मकान में रहता है?’’

पुष्पा ने फोटो गौर से देखी फिर बोली, ‘‘हां, यह तो आशीष है. अपनी पत्नी सोना के साथ पिछले 6 महीने से हमारे मकान में रह रहा है. उस की पत्नी सोना कहीं बाहर काम करती है. इसलिए सप्ताह में 2-3 दिन ही आ पाती है. आज वह 12 बजे घर आई थी. आशीष भी घर पर था, लेकिन आधा घंटा पहले कहीं चला गया है.’’

मकान मालकिन पुष्पा से पूछताछ करने के बाद दोनों महिलाएं वापस चली गईं. दरअसल, ये महिलाएं गीता और उन की बहू ज्योति थीं, जो सरायमीता पनकी, कानपुर की रहने वाली थीं. सोना गीता की बेटी थी और आशीष सोना का प्रेमी था.

आशीष ने कुछ देर पहले ज्योति के मोबाइल पर काल कर के जानकारी दी थी कि उस ने उस की ननद सोना को मार डाला है और उस की लाश दबौली निवासी पुष्पा के मकान में किराए वाले कमरे में पड़ी है, आ कर लाश ले जाओ. ज्योति ने यह बात अपनी सास गीता को बताई. फिर सासबहू जानकारी लेने के लिए पुष्पा के मकान पर पहुंची, लेकिन वहां हत्या जैसी कोई हलचल न होने से दोनों वापस लौट आई थीं.

चाय पीतेपीते पुष्पा के मन में आशीष को ले कर कुछ शंका हुई तो वह पहली मंजिल स्थित उस के कमरे पर पहुंची. कमरे के दरवाजे की कुंडी बाहर से बंद थी और अंदर से खून बह कर बाहर की ओर आ रहा था.

खून देख कर पुष्पा चीख पड़ी. मालकिन की चीख सुन कर अन्य किराएदार कमल, सुनील, टिंकू तथा शिवानंद आ गए. इस के बाद पुष्पा ने कमरे का दरवाजा खोल कर अंदर झांका तो उन की आंखें फटी रह गईं.

कमरे में फर्श पर खून से लथपथ सोना की लाश पड़ी थी. लाश से खून रिस कर कमरे के बाहर तक आ गया था. सोना की लाश देख कर किराएदार भी भयभीत हो उठे. इस के बाद तो हत्या की खबर थोड़ी देर में पूरे दबौली (उत्तर) में फैल गई. लोग पुष्पा के मकान के बाहर जुटने लगे.

शाम लगभग 5 बजे पुष्पा ने थाना गोविंद नगर फोन कर के किराएदार आशीष की पत्नी सोना की हत्या की जानकारी दे दी. हत्या की सूचना मिलते ही थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने इस घटना से अधिकारियों को अवगत कराया और पुलिस टीम के साथ दबौली (उत्तर) स्थित पुष्पा के मकान पर जा पहुंचे.

मकान के बाहर भीड़ जुटी थी. लोग तरहतरह की बातें कर रहे थे. भीड़ को पीछे हटा कर थानाप्रभारी अनुराग सिंह पुलिस टीम के साथ मकान की पहली मंजिल स्थित उस कमरे में पहुंचे जहां लाश पड़ी थी.

सोना की हत्या बड़ी निर्दयता से की गई थी. लाश के पास ही खून से सनी कैंची तथा मोबाइल पड़ा था. देखने से लग रहा था कि हत्या के पहले मृतका से जोरजबरदस्ती की गई थी. विरोध करने पर उस के पति आशीष ने कैंची से वार कर उस की हत्या कर दी थी. न केवल सोना के पेट में कैंची घोंपी गई थी, बल्कि उस के गले को भी कैंची से छेदा गया था.

थानाप्रभारी अनुराग सिंह अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि एसएसपी अनंत देव, एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता और सीओ (गोविंद नगर) मनोज कुमार गुप्ता भी वहां आ गए. अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया था.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया और इंसपेक्टर अनुराग सिंह से घटना के संबंध में जानकारी हासिल की. फोरैंसिक टीम ने निरीक्षण कर घटनास्थल से साक्ष्य जुटाए. कैंची, दरवाजा और मेज पर रखे गिलास से फिंगरप्रिंट उठाए. जमीन पर फैले खून का नमूना भी जांच हेतु लिया गया.

निरीक्षण के दौरान सीओ मनोज कुमार गुप्ता की नजर मेज पर रखे लेडीज पर्स पर पड़ी. उन्होंने पर्स की तलाशी ली तो उस में साजशृंगार का सामान, कुछ रुपए तथा एक आधार कार्ड मिला. आधार कार्ड में युवती का नाम सोना सोनकर, पिता का नाम मुन्ना लाल सोनकर, निवासी सराय मीता, पनकी कानपुर दर्ज था. गुप्ताजी ने 2 सिपाहियों को आधार कार्ड में दर्ज पते पर सूचना देने के लिए भेज दिया.

एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता ने मकान मालकिन पुष्पा देवी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस के पति देवकीनंदन की मृत्यु हो चुकी है. 2 बेटे हैं, अजय व राकेश, जो बाहर नौकरी करते हैं. मकान के भूतल पर वह स्वयं रहती है, जबकि पहली मंजिल पर बने कमरों को किराए पर उठा रखा है.

मकान में 4 किराएदार शिवानंद, कमल, सुनील व टिंकू पहले से रह रहे थे. 6 महीना पहले आशीष नाम का युवक एक युवती के साथ किराए पर कमरा लेने आया था.

उस ने उस युवती को अपनी पत्नी बताया, साथ ही यह भी बताया कि उस की पत्नी सोना दूरदराज नौकरी करती है. वह सप्ताह में 2 या 3 दिन ही आया करेगी. मैं ने उसे रूम का किराया 1600 रुपए बताया तो वह राजी हो गया और किराएदार के रूप में रहने लगा. उस की पत्नी सोना सप्ताह में 2 या 3 दिन आती थी.

पुष्पा ने बताया कि आज 12 बजे सोना आशीष से मिलने आई थी. उस के बाद कमरे में क्या हुआ, उसे मालूम नहीं. आशीष 3 बजे चला गया था. उस के जाने के बाद 2 महिलाएं उस के बारे में पूछताछ करने आईं. लेकिन आशीष रूम में नहीं था, यह जान कर वे दोनों चली गईं. महिलाओं की बातों से मुझे कुछ शक हुआ, तो मैं आशीष के रूम पर गई. वहां कमरे के बाहर खून देख कर मैं चीखी तो बाकी किराएदार आ गए. उस के बाद मैं ने यह सूचना पुलिस को दे दी.

घटनास्थल पर अन्य किराएदार कमल, सुनील, टिंकू व शिवानंद भी मौजूद थे. सीओ मनोज कुमार गुप्ता ने उन से पूछताछ की तो उन सब ने बताया कि आशीष ने उन से सोना को अपनी पत्नी बताया था. वह हफ्ते में 2-3 बार आती थी. कमरा बंद कर दोनों खूब हंसतेबतियाते थे, कभीकभी उन दोनों में तूतूमैंमैं भी हो जाती थी.

आगे पढ़िए क्या थी सोना और आशीष की कहानी…

दरवाजे के पार-भाग 4 : क्यों किया अपनों ने वार

मांभाइयों के कड़े प्रतिबंध के कारण सोना का आशीष से मिलन बंद हो गया. इस से सोना और आशीष परेशान हो उठे. दोनों मिलन के लिए बेचैन रहने लगे.

इधर मुन्नालाल की खोज भीमसागर पर समाप्त हुई. भीमसागर का पिता रामसागर दादानगर फैक्ट्री एरिया के मिश्रीलाल चौराहे के निकट रहता था. नहर की पटरी के किनारे उस का मकान था. रामसागर लकड़ी बेचने का काम करता था. उस का बेटा भीमसागर भी उस के काम में मदद करता था.

मुन्नालाल ने भीमसागर को देखा तो उसे सोना के लिए पसंद कर लिया. हालांकि सोना ने शादी से इनकार किया, लेकिन मुन्नालाल ने उस की एक नहीं सुनी. अंतत: सन 2017 के जनवरी महीने की 10 तारीख को सोना का विवाह भीमसागर के साथ कर दिया गया.

भीमसागर की दुलहन बन कर सोना ससुराल पहुंची तो सभी ने उसे हाथोंहाथ लिया. सुंदर पत्नी पा कर भीमसागर भी खुश था, वहीं उस के मातापिता भी बहू की तारीफ करते नहीं थक रहे थे. सब खुश थे, लेकिन सोना खुश नहीं नहीं थी.

सुहागरात को भी वह बेमन से पति को समर्पित हुई. भीमसागर तो तृप्त हो कर सो गया, पर सोना गीली लकड़ी की तरह सुलगती रही. न तो उस के जिस्म की प्यास बुझी थी, न रूह की.

उस रात के बाद हर रात मिलन की रस्म निभाई जाने लगी. चूंकि सोना इनकार नहीं कर सकती थी, सो अरुचि से पति की इच्छा पूरी करती रही.

घर वालों की जबरदस्ती के चलते सोना ने विवाह जरूर कर लिया था, पर वह मन से भीमसागर को पति नहीं मान सकी थी. अंतरंग क्षणों में वह केवल तन से पति के साथ होती थी, उस का प्यासा मन प्रेमी में भटक रहा होता था.

3-4 महीने तक सोना ने जैसेतैसे पति से निभाया, उस के बाद दोनों के बीच कलह होने लगी. कलह का पहला कारण सोना का एकांत में मोबाइल फोन पर बातें करना था. भीमसागर को शक हुआ कि सोना का शादी से पहले कोई यार था, जिस से वह चोरीछिपे एकांत में बातें करती है.

दूसरा कारण उस की फैशनपरस्ती तथा घर से बाहर जाना था. भीमसागर के मातापिता चाहते थे कि बहू मर्यादा में रहे और घर के बाहर कदम न रखे. लेकिन सोना को घर की चारदीवारी में रहना पसंद नहीं था. वह स्वच्छंद हो कर घूमती थी. इन्हीं 2 बातों को ले कर सोना का भीमसागर और ससुराल के लोगों से झगड़ा होने लगा. आजिज आ कर साल बीततेबीतते सोना ससुराल छोड़ कर मायके आ कर रहने लगी. गीता ने सोना को बहुत समझाया और ससुराल भेजने का प्रयास किया, लेकिन वह नहीं मानी. 6 महीने तक सोना घर में रही, उस के बाद उस ने गोविंद नगर स्थित एक स्कूल में आया की नौकरी कर ली. वह सुबह 8 बजे घर से निकलती, फिर शाम 5 बजे तक वापस आती. इस तरह वह मांबाप पर बोझ न बन कर खुद अपना भार उठाने लगी.

एक शाम सोना स्कूल से लौट रही थी कि दादानगर चौराहे पर उस की मुलाकात आशीष से हो गई. बिछड़े प्रेमी मिले तो दोनों खुश हुए. आशीष उसे नजदीक के एक रेस्तरां में ले गया, जहां दोनों ने एकदूसरे को अपनी व्यथाकथा सुनाई. बातोंबातों में आशीष उदास हो कर बोला, ‘‘अरमान मैं ने सजाए और तुम ने घर किसी और का बसा दिया.’’

सोना के मुंह से आह सी निकली, ‘‘हालात की मजबूरी इसी को कहते हैं. घर वालों ने मेरी मरजी के बिना शादी कर दी. मैं ने मन से उसे कभी पति नहीं माना. साल बीतते उस से मेरा मनमुटाव हो गया और मैं उसे छोड़ कर मायके आ गई.’’ आशीष मन ही मन खुश हुआ. फिर बोला, ‘‘क्या अब भी तुम मुझे पहले जैसा प्यार करती हो?’’

‘‘यह भी कोई पूछने की बात है. सच तो यह है कि मैं तुम्हें कभी भुला ही नहीं पाई. सुहागरात को भी तुम्हारी ही याद आती रही.’’ इस के बाद सोना और आशीष का फिर मिलन होने लगा. दोनों के बीच शारीरिक रिश्ता भी बन गया. आशीष कभीकभी सोना के घर भी जाने लगा. गीता को आशीष का घर आना अच्छा तो नहीं लगता था, पर उसे मना भी नहीं कर पाती थी. हालांकि गीता निश्चिंत थी कि सोना की शादी हो गई है. अब आशीष जूठे बरतन में मुंह नहीं मारेगा. पर यह उस की भूल थी.

सोना के कहने पर आशीष ने अगस्त, 2019 में दबौली (उत्तरी) में किराए पर एक कमरा ले लिया. कमरा पसंद करने सोना भी आशीष के साथ गई थी.

उस ने मकान मालकिन को बताया कि सोना उस की पत्नी है. मकान में अन्य किराएदार थे, उन को भी आशीष ने सोना को अपनी पत्नी बताया था.

सोना अब इस कमरे पर आशीष से मिलने आने लगी. सोना के आते ही दरवाजा बंद हो जाता और शारीरिक मिलन के बाद ही खुलता. किसी को ऐतराज इसलिए नहीं होता था, क्योंकि उन की नजर में सोना उस की पत्नी थी.

आशीष के रूम में आतेजाते सोना को एक रोज एक फोटो हाथ लग गई, जिस में वह एक युवती और एक मासूम बच्चे के साथ था. इस युवती और बच्चे के संबंध में सोना ने आशीष से पूछा तो वह बगलें झांकने लगा. अंतत: उसे बताना ही पड़ा कि वह शादीशुदा है और तसवीर में उस की पत्नी व बच्चा है.

लेकिन मनमुटाव के चलते पत्नी घाटमपुर स्थित अपने मायके में रह रही है. यह पता चलने के बाद सोना का आशीष से झगड़ा हुआ. लेकिन आशीष ने किसी तरह सोना को मना लिया.

आशीष को लगा कि सच्चाई जानने के बाद सोना कहीं उस का साथ न छोड़ दे. इसलिए वह उस पर दबाव डालने लगा कि वह अपने पति को तलाक दे कर उस से शादी कर ले. लेकिन सोना ने यह कह कर मना कर दिया कि पहले तुम अपनी पत्नी को तलाक दो. तभी मैं अपने पति से तलाक लूंगी. इस के बाद तलाक को ले कर दोनों में अकसर झगड़ा होने लगा. 17 मार्च की दोपहर 12 बजे सोना दबौली स्थित आशीष के रूम पर पहुंची. आशीष ने उसे फोन कर के बुलाया था. सोना के आते ही आशीष ने रूम बंद कर लिया फिर दोनों में बातचीत होने लगी.

बातचीत के दौरान आशीष ने सोना से कहा कि वह अपने पति से तलाक ले कर उस से शादी कर ले, पर सोना इस के लिए राजी नहीं हुई. उलटे पलटवार करते हुए वह बोली, ‘‘पहले तुम अपनी पत्नी से तलाक क्यों नहीं लेते, एक म्यान में 2 तलवारें कैसे रहेंगी?’’

तलाक को ले कर दोनों में गरमागरम बहस होने लगी. बहस के बीच आशीष ने प्रणय निवेदन किया, जिसे सोना ने ठुकरा दिया. इस पर आशीष जबरदस्ती पर उतर आया और सोना के कपड़े खींच कर उसे अर्धनग्न कर दिया. सोना भी बचाव में भिड़ गई.

तलाक लेने से इनकार करने और शारीरिक संबंध न बन पाने से आशीष का गुस्सा आसमान पर जा पहुंचा. उस ने सामने अलमारी में रखी कैंची उठाई और सोना के पेट में घोंप दी.

सोना पेट पकड़ कर फर्श पर तड़पने लगी. उसी समय आशिष ने सोना के गले को कैंची से छेद डाला. सोना पेट पकड़ कर तड़पने लगी. उसी समय उस ने सोना के गले को कैंची से छेद डाला. कुछ देर बाद सोना ने दम तोड़ दिया.

सोना की हत्या करने के बाद आशीष ने कमरे के दरवाजे की कुंडी बाहर से बंद की और मकान के बाहर आ गया. बाहर आ कर उस ने सोना की भाभी ज्योति को सोना की हत्या की जानकारी दी, फिर फरार हो गया.

इस घटना का भेद तब खुला, जब मकान मालकिन पुष्पा पहली मंजिल पर स्थित आशीष के कमरे पर पहुंची. पुष्पा ने इस घटना की सूचना थाना गोविंद नगर को दे दी. जांच में अवैध रिश्तों में हुई हत्या की बात सामने आई. 20 मार्च, 2020 को थाना गोविंद नगर पुलिस ने अभियुक्त आशीष सिंह को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट ए.के. सिंह की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दरवाजे के पार-भाग 3 : क्यों किया अपनों ने वार

वह ससुराल छोड़ कर मायके में आ कर रहने लगी. उस के बाद दोनों के बीच फिर से अवैध संबंध बन गए. सोना के कहने पर ही उस ने किराए का कमरा लिया था, जहां दोनों का शारीरिक मिलन होता था.

आशीष ने बताया कि घटना वाले दिन सोना 12 बजे आई थी. आशीष ने उस से कहा कि वह पति को तलाक दे कर उस से शादी कर ले. लेकिन वह नहीं मानी. इसी बात को ले कर दोनों में झगड़ा हुआ. झगड़े के बीच आशीष ने यह सोच कर प्रणय निवेदन किया कि यौन प्रक्रिया में गुस्सा शांत हो जाता है, लेकिन सोना ने उसे दुत्कार दिया.

शादी की बात न मानने और प्रणय निवेदन ठुकराने की वजह से आशीष को गुस्सा आ गया और उस ने पास रखी कैंची उठा कर सोना के पेट में घोंप दी. फिर उसी कैंची से उस का गला भी छेद डाला. हत्या करने

के बाद वह फरार हो गया था. चूंकि आशीष सिंह ने सोना की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया था और पुलिस आला ए कत्ल भी बरामद कर चुकी थी, इसलिए थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने अजय ठाकुर उर्फ आशीष सिंह को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस पूछताछ में जो कहानी सामने आई, वह इस तरह थी—

कानपुर महानगर के पनकी थाना क्षेत्र में एक मोहल्ला है सराय मीता. मुन्नालाल सोनकर अपने परिवार के साथ इसी मोहल्ले में रहता था. मुन्नालाल सोनकर नगर निगम में सफाई कर्मचारी था. उसे जो वेतन मिलता था, उसी से परिवार का भरणपोषण होता था.

मुन्नालाल अपनी बड़ी बेटी बरखा की शादी कर चुका था. बरखा से छोटी सोना 18 साल की हो गई थी. वह चंचल स्वभाव की थी. पढ़ाईलिखाई में मन लगाने के बजाए वह सजनेसंवरने पर ज्यादा ध्यान देती थी. नईनई फिल्में देखना, सैरसपाटा करना और आधुनिक फैशन के कपड़े खरीदना उस का शौक था. मुन्नालाल सीधासादा आदमी था. रहनसहन भी साधारण था. वह बेटी की फैशनपरस्ती से परेशान था.

सोना अपनी मां गीता के साथ दादानगर स्थित एक लोहा फैक्ट्री में काम करती थी. वहां से उसे जो वेतन मिलता था, उसे वह अपने फैशन पर खर्च करती थी. जिद्दी स्वभाव की सोना को बाजार में जो कपड़ा या अन्य सामान पसंद आ जाता, वह उसे खरीद कर ले आती. मातापिता रोकतेटोकते तो वह टका सा जवाब दे देती, ‘‘मैं ने सामान अपने पैसे से खरीदा है. फिर ऐतराज क्यों?’’

उस के इस जवाब से सब चुप हो जाते थे. सोना की अपनी भाभी ज्योति से खूब पटरी बैठती थी.

सोना दादानगर स्थित जिस लोहा फैक्ट्री में काम करती थी, आशीष सिंह उसी में सुपरवाइजर था. वह मूलरूप से जिला कानपुर के देहात क्षेत्र के कस्बा गजनेर का रहने वाला था. उस का घरेलू नाम अजय था. लोग उसे अजय ठाकुर कहते थे. उस के पिता गांव में किसानी करते थे. सोना लोहा फैक्ट्री में पैकिंग का काम करती थी.

निरीक्षण के दौरान एक रोज आशीष सिंह की निगाह खूबसूरत सोना पर पड़ी. दोनों की नजरें मिलीं तो दोनों कुछ देर तक आकर्षण में खोए रहे. जब आकर्षण टूटा तो सोना मुसकरा दी और नजरें झुका कर पैकिंग में जुट गई. नजरें मिलने का सुखद अहसास दोनों को हुआ.

अगले दिन सोना कुछ ज्यादा ही बनसंवर कर आई. आशीष उस के पास पहुंचा और इशारे से उसे अपने औफिस के कमरे में आने को कहा. वह उस के औफिस में आई तो आशीष ने उस से कुछ कहा, जिसे सुन कर सोना सकपका गई. वह यह कह कर वहां से चली गई कि कोई देख लेगा. सोना की ओर से हरी झंडी मिली तो आशीष बहुत खुश हुआ.

आशीष सिंह पढ़ालिखा हृष्टपुष्ट युवक था. वह अच्छाखासा कमा भी रहा था. लेकिन वह शादीशुदा और एक बच्चे का बाप था. उस की पत्नी से नहीं बनी तो वह घाटमपुर स्थित अपने मायके में रहने लगी थी. आशीष सिंह ने सोना से यह बात छिपा ली थी. उस ने उसे खुद को कुंवारा बताया था.

सोना सजीले युवक आशीष से मन ही मन प्यार करने लगी और मां से नजरें बचा कर आशीष से फैक्ट्री के बाहर एकांत में मिलने लगी. दोनों के बीच प्यार भरी बातें होने लगीं. धीरेधीरे आशीष सोना का दीवाना हो गया. सोना भी उसे बेपनाह मोहब्बत करने लगी.

प्यार परवान चढ़ा तो देह की प्यास जाग उठी. एक रोज आशीष सोना को अपने दादानगर वाले कमरे पर ले गया, जहां वह किराए पर रहता था. सोना जैसे ही कमरे में पहुंची, आशीष ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. आशीष के स्पर्श से सोना को बहकते देर नहीं लगी. आशीष जो कर रहा था, सोना को उस की अरसे से तमन्ना थी. इसलिए वह भी आशीष का सहयोग करने लगी.

कुछ देर बाद आशीष और सोना अलग हुए तो बहुत खुश थे. इस के बाद तो यह सिलसिला ही बन गया. जब भी मन होता, शारीरिक संबंध बना लेते. आशीष कमरे में अकेला रहता था, जिस से दोनों आसानी से मिल लेते थे. लेकिन कहते हैं कि प्यार चाहे जितना चोरीछिपे किया जाए, एक न एक दिन उस का भेद खुल ही जाता है.

एक शाम सोना और गीता एक साथ फैक्ट्री से निकली तो कुछ दूर चल कर सोना बोली, ‘‘मां, मुझे गोविंद नगर बाजार से कुछ सामान लेना है. तुम घर चलो, मैं आ जाऊंगी.’’

गीता ने कुछ नहीं कहा. लेकिन उसे सोना पर संदेह हुआ. इसलिए उस ने सोना का गुप्तरूप से पीछा किया और उसे आशीष के साथ रंगेहाथ पकड़ लिया.

गीता ने सोना को फटकारा और भलाबुरा कहा. साथ ही प्रेम से सिर पर हाथ रख कर समझाया भी, ‘‘बेटी, आशीष ठाकुर जाति का है और तुम दलित की बेटी हो. आशीष के घर वाले दलित की बेटी को कभी स्वीकार नहीं करेंगे. इसलिए मेरी बात मानो और आशीष का साथ छोड़ दो, इसी में हम सब की भलाई है.’’

गीता का पति मुन्नालाल सफाईकर्मी था और शराब पीने का आदी. स्वभाव से वह गुस्सैल था. इसलिए गीता ने सोना की असलियत उसे नहीं बताई. इस के बजाए उस ने पति पर सोना का विवाह जल्द से जल्द करने का दबाव बनाया. इसी के साथ गीता ने सोना का फैक्ट्री जाना भी बंद करा दिया और उस पर कड़ी नजर रखने लगी. उस ने अपनी बहू ज्योति तथा बेटों को भी सतर्क कर दिया था कि वह जहां भी जाए, उस के साथ कोई न कोई रहे.

छीन ली सांसों की डोर-भाग 3 : एकतरफा प्यार की सजा

ग्रामप्रधान कृपाशंकर तिवारी का बेटा प्रिंस भी उसी के नक्शेकदम पर चल रहा था. पिता की ही तरह प्रिंस भी अभिमानी स्वभाव का था. जिसे चाहे वह उस से उलझ जाता था और मारपीट पर आमादा हो जाता था. वह जब भी चलता था उस के साथ 5-7 लड़कों की टोली चलती थी.

उस की टोली में नीरज तिवारी, सोनू तिवारी और दीपू यादव खासमखास थे. ये तीनों प्रिंस के लिए किसी भी हद तक जाने को हमेशा तैयार रहते  थे. इसीलिए वह इन पर पानी की तरह पैसा बहाता था.

घातक बनी एकतरफा मोहब्बत

प्रिंस रागिनी से एकतरफा मोहब्बत करता था. उसे पाने के लिए वह किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार था जबकि रागिनी उस से प्यार करना तो दूर उस से बात तक करना उचित नहीं समझती थी.

रागिनी के प्यार में प्रिंस इस कदर पागल था कि उस ने खुद को कमरे में कैद कर लिया था. न तो यारदोस्तों से पहले की तरह ज्यादा मिलता था और न ही उन से बातें करता था. प्रिंस की हालत देख कर उस के दोस्त नीरज और दीपू परेशान रहने लगे थे. यार की जिंदगी की सलामती के खातिर तीनों दोस्तों ने फैसला किया कि चाहे कुछ भी क्यों न हो जाए, वह उस का प्यार यार के कदमों में ला कर डालेंगे.

नीरज, सोनू और दीपू तीनों ने मिल कर एक दिन रागिनी और सिया को स्कूल जाते समय रास्ते में रोक लिया. तीनों के अचानक से रास्ता रोकने से दोनों बहनें बुरी तरह से डर गईं, ‘‘ये क्या बदतमीजी है? तुम ने हमारा रास्ता क्यों रोका? हटो हमें स्कूल जाने दो.’’ रागिनी हिम्मत जुटा कर बोली.

‘‘हम तुम्हारे रास्ते से भी हट जाएंगे और तुम्हें स्कूल भी जाने देंगे, बस तुम्हें हमारी कुछ बातें माननी होंगी.’’ नीरज बोला.

‘‘न तो मैं तुम्हारी कोई बात मानूंगी और न ही सुनूंगी. बस तुम हमारा रास्ता छोड़ दो. हमें स्कूल के लिए देर हो रही है.’’ रागिनी नाराजगी भरे लहजे में बोली.

‘‘देखो रागिनी, ये किसी की जिंदगी और मौत की सवाल है. मेरी बात सुन लो, फिर चली जाना.’’ नीरज ने कहा.

‘‘मैं ने कहा न, मैं तुम्हारी कोई बात नहीं सुनने वाली. क्या मुझे ऐसीवैसी लड़की समझ रखा है. जो राह चलते आवारा किस्म के लड़के के मुंह लगे.’’ रागिनी बोली.

‘‘देखो रागिनी, तुम्हारा गुस्सा अपनी जगह जायज है. मैं जानता हूं कि तुम ऐसीवैसी लड़की नहीं, खानदानी लड़की हो. लेकिन तुम ने मेरी बात नहीं सुनी तो मेरा भाई जो तुम से प्यार करता है, मर जाएगा. तुम उसे बचा लो.’’ नीरज रागिनी के सामेन गिड़गिड़ाया.

‘‘तुम्हारा भाई मरता है तो मेरी बला से. मैं उसे प्यार नहीं करती. एक बात कान खोल कर सुन लो कि आज के बाद इस तरह की वाहियात बात फिर मेरे सामने मत दोहराना, वरना इन का परिणाम बहुत बुरा होगा, समझे.’’ नीरज को खरीखोटी सुनाती हुई रागिनी और सिया चली गईं.

रागिनी की बातें नीरज के दिल को लग गई थी. उसे कतई उम्मीद नहीं थी कि रागिनी उसे ऐसा जवाब दे सकती है. रागिनी की बातों से उसे काफी गहरा आघात पहुंचा था. चूंकि मामला उस के भाई के प्यार से जुड़ा हुआ था इसलिए उस ने रागिनी के अपमान को अमृत समझ कर पी लिया था. उस समय तो नीरज और उस के दोस्तों ने उसे कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन नीरज ये बात अपने तक सीमित नहीं रख सका.

उस ने घर जा कर यह बात प्रिंस से बता दी. भाई की बात सुन कर प्रिंस गुस्से से उबल पड़ा कि रागिनी की ऐसी मजाल जो उस ने उस के प्यार को ठुकरा दिया. अगर वो मेरे प्यार को ठुकरा सकती है तो मैं भी उसे जीने नहीं दूंगा. अगर वो मेरी नहीं हो सकती तो मैं किसी और की भी नहीं होने दूंगा.

प्रिंस के गुस्से को नीरज और उस के दोस्तों ने और हवा दे दी थी. रागिनी के प्यार में मर मिटने वाला जुनूनी आशिक प्रिंस ठुकराए जाने के बाद एकदम फिल्मी खलनायक बन गया था.

उस दिन के बाद से रागिनी जब भी कहीं आतीजाती दिखती थी, प्रिंस चारों दोस्तों के साथ मिल कर अश्लील शब्दों की फब्तियां कस कर उसे जलील करता, उसे छेड़ता रहता था. और तो और वह दोस्तों को ले कर उस के घर तक धमकाने के लिए पहुंच जाता था.

लिख दिया मौत का परवाना

प्रिंस के इस रवैये से उस के घर वाले परेशान हो गए थे. डर के मारे रागिनी ने घर से बाहर निकलना छोड़ दिया था. उस ने स्कूल जाना भी  बंद कर दिया था. प्रिंस का खौफ रागिनी के दिल में बैठ गया था. जब बात हद से आगे बढ़ गई तो रागिनी ने पिता जितेंद्र दुबे ने बांसडीह रोड थाने में प्रिंस और उस के दोस्तों के खिलाफ लिखित शिकायत की.

लेकिन प्रधान कृपाशंकर की राजनैतिक पहुंच की वजह से मामला वहीं रफादफा हो गया था. इस के बाद प्रिंस और भी उग्र हो गया. वह सोचता था कि जितेंद्र दुबे ने उस के खिलाफ थाने में शिकायत करने की जुर्रत कैसे की.

बात अप्रैल, 2017 की है. प्रिंस अपने तीनों दोस्तों नीरज, सोनू और दीपू यादव को ले कर जितेंद्र दुबे के घर गया और उन्हें धमकाया कि आज के बाद तुम्हारी बेटी रागिनी अगर स्कूल पढ़ने गई तो वो दिन उस की जिंदगी का आखिरी दिन होगा.

इस की धमकी के बाद रागिनी के घर वाले डर गए. उन्होंने उसे स्कूल भेजना बंद कर दिया. वह कई महीनों तक स्कूल नहीं गई.

इस वर्ष उस का इंटरमीडिएट था. स्कूल में परीक्षा फार्म भरे जा रहे थे. परीक्षा फार्म भरने के लिए वह 8 अगस्त, 2017 को छोटी बहन सिया के साथ स्कूल जा रही थी. पता नहीं कैसे प्रिंस को रागिनी के आने की खबर मिल गई और उस ने उस का गला रेत कर हत्या कर दी.

बहरहाल, पुलिस ने रागिनी हत्याकांड के नामजद 5 आरोपियों में से 2 आरोपियों प्रिंस और दीपू यादव को तो गिरफ्तार कर लिया. बाकी के 3 आरोपी प्रधान कृपाशंकर, नीरज तिवारी और सोनू फरार होने में कामयाब हो गए. आरोपियों को गिरफ्तार करने को ले कर मृतका की बड़ी बहन नेहा तिवारी सैकड़ों छात्रछात्राओं के साथ कलेक्ट्रेट परिसर पहुंची और धरने पर बैठ गई.

उन लोगों ने परिवार के सदस्यों को मिल रही धमकी के लिए पुलिस प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया. कांग्रेस के नेता सागर सिंह राहुल ने भी लापरवाही बरतने के लिए पुलिस प्रशासन को कोसा. तब कहीं जा कर बाकी के आरोपियों प्रधान कृपाशंकर तिवारी, सोनू तिवारी और नीरज तिवारी ने कोर्ट में आत्मसमर्पण किया.

कथा लिखे जाने तक पांचों में से किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हुई थी. होनहार बेटी की मौत से पिता जितेंद्र दुबे काफी दुखी हैं. उन्होंने शासनप्रशासन से गुहार लगाई है कि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा देने वाली सरकारें यदि बेटियों की सुरक्षा नहीं कर सकतीं तो उन्हें पैदा होने से पहले ही कोख में मार देने की इजाजत दे दें, ताकि बेटियों को ऐसी जिल्लत और जलालत की मौत रोजरोज न मरना पड़े.        ?

  – कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

छीन ली सांसों की डोर-भाग 2 : एकतरफा प्यार की सजा

पुलिस ने मामले की जांच की तो पता चला कि ग्रामप्रधान कृपाशंकर का बेटा प्रिंस सालों से रागिनी को तंग किया करता था. वह रागिनी से एकतरफा प्यार करता था. कई बार वह रागिनी से अपने प्यार का इजहार कर चुका था लेकिन रागिनी न तो उस से प्यार करती थी और न ही उस ने उस के प्रेम पर अपनी स्वीकृति की मोहर ही लगाई थी.

पहले तो रागिनी उस की हरकतों को नजरअंदाज करती रही. लेकिन जब पानी सिर के ऊपर जाने लगा तो उस ने अपने घर वालों को प्रिंस की हरकतों के बारे में बता दिया.

बेटी की परेशान जान कर जितेंद्र को दुख भी हुआ और गुस्सा भी आया. बात बेटी के मानसम्मान से जुड़ी हुई थी, भला वह इसे कैसे सहन कर सकते थे. वह उसी समय शिकायत ले कर ग्राम प्रधान कृपाशंकर तिवारी के घर जा पहुंचे. संयोग से कृपाशंकर घर पर ही मिल गए. जितेंद्र ने उन के बेटे की हरकतों का पिटारा उन के सामने खोल दिया. लेकिन कृपाशंकर ने उन की शिकायत पर कोई ध्यान नहीं दिया. प्रधानी के घमंड में चूर कृपाशंकर तिवारी ने जितेंद्र को डांटडपट कर भगा दिया.

जितेंद्र दुबे ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि प्रधान से उस के बेटे की शिकायत करनी उन्हें भारी पड़ जाएगी. अगर उन्हें इस बात का खयाल होता तो वह शिकायत कभी नहीं करते.

बाप ने दी बेटे को शह

शिकायत का परिणाम उल्टा यह हुआ कि शाम के समय जब प्रिंस कहीं से घूम कर घर लौटा तो कृपाशंकर ने उस से पूछा, ‘‘बांसडीह के पंडित जितेंद्र तुम्हारी शिकायत ले कर यहां आए थे. वे कह रहे थे कि उन की बेटी को आतेजाते तंग करते हो, क्या बात है?’’

इस पर प्रिंस ने सफाई देते हुए कहा, ‘‘पापा, यह सब गलत है, झूठ है. मैं ने उस की बेटी के साथ कभी बदसलूकी नहीं की. मैं तो उस की बेटी को जानता तक नहीं, छेड़ने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता. मुझे बदनाम करने के लिए पंडितजी झूठ बोल रहे होंगे.’’

‘‘ठीक है, मैं जानता हूं बेटा. मुझे तुझ पर पूरा भरोसा है कि तू ऐसावैसा कोई काम नहीं करेगा. वैसे मैं ने पंडितजी को डांट कर भगा दिया है.’’

‘‘ठीक किया पापा,’’ प्रिंस के होंठों पर जहरीली मुसकान उभर आई.

प्रिंस ने उस समय तो पिता की आंखों में धूल झोंक कर खुद को बचा लिया. पुत्रमोह में अंधे कृपाशंकर को भी बेटे की करतूत दिखाई नहीं दी. नतीजा यह हुआ कि प्रिंस की आंखों में दुबे की बेटी रागिनी के लिए नफरत और गुस्से का लावा फूट पड़ा. उसे लगा कि पंडित की हिम्मत कैसे हुई कि उस के घर शिकायत करने आ गया. प्रिंस ने उन्हें सबक सिखाने की ठान ली. आखिर उस ने वही किया, जो उस ने मन में ठान लिया था.

दिनदहाड़े रागिनी की हत्या के बाद आसपास के इलाके में दहशत फैल गई थी. मामला बेहद गंभीर था, इसलिए एसपी सुजाता सिंह ने अपराधियों को गिरफ्तार करने के सख्त आदेश दिए. कप्तान का आदेश पाते ही एसआई बृजेश शुक्ल अपनी पुलिस टीम के साथ आरोपियों को तलाशने में जुट गए.

8 अगस्त, 2017 को पुलिस ने जिले से बाहर जाने वाले सभी रास्तों को सील कर दिया. पुलिस को इस का लाभ भी मिला. बलिया से हो कर गोरखपुर जाने वाली रोड पर 2 आरोपी प्रिंस उर्फ आदित्य तिवारी और दीपू यादव उस समय पुलिस के हत्थे चढ़ गए जब वह जिला छोड़ कर गोरखपुर जा रहे थे.

दोनों को गिरफ्तार कर के पुलिस उन्हें थाना बांसडीह रोड ले आई. दोनों आरोपियों से रागिनी दुबे की हत्या के बारे में गहनता से पूछताछ की गई. पहले तो प्रिंस ने पुलिस को अपने पिता की ताकत की धौंस दिखाई लेकिन कानून के सामने उस की अकड़ ढीली पड़ गई. आखिर दोनों ने पुलिस के सामने घुटने टेकने में ही भलाई समझी. उन्होंने अपना जुर्म कबूल कर लिया. बाकी के 3 आरोपी मौके से फरार हो गए थे.

दोनों आरोपियों से की गई पूछताछ और बयानों के आधार पर दिल दहला देने वाली जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.

55 वर्षीय जितेंद्र दुबे मूलत: बलिया जिले के बांसडीह में 6 सदस्यों के परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां और 1 बेटा अमन था. निजी व्यवसाय से वह अपने परिवार का भरण पोषण करते थे. उन का परिवार संस्कारी था.

बेटियों पर गर्व था दुबेजी को

उन की तीनों बेटियां गांव में मिसाल के तौर पर गिनी जाती थीं, क्योंकि तीनों ही अपने काम से काम रखती थीं. वे न तो अनर्गल किसी दूसरे के घर उठतीबैठती थीं और न ही फालतू की गप्पें लड़ाती थीं. वे पढ़ाई के साथ घर के काम में भी हाथ बंटाती थीं. दुबेजी बेटियों को बेटे से कम नहीं आंकते थे. तभी तो उन की पढ़ाई पर पानी की तरह पैसा बहाते थे. बेटियां भी पिता के विश्वास पर हमेशा खरा उतरने की कोशिश करती थीं.

तीनों बेटियों में नेहा बीए में पढ़ती थी, रागिनी 11वीं पास कर के 12वीं में गई थी जबकि सिया 11वीं में थी. स्वभाव में रागिनी नेहा और सिया दोनों से बिलकुल अलग थी. रागिनी पढ़ाईलिखाई से ले कर घर के कामकाज तक सब में अव्वल रहती थीं. वह शरमीली और भावुक किस्म की लड़की थी. जरा सी डांट पर उस की आंखों से आंसुओं की धारा बह निकलती थी.

बात 2015 के करीब की है. रागिनी और सिया दोनों सलेमपुर के भारतीय संस्कार स्कूल में अलगअलग कक्षा में पढ़ती थीं. उस समय रागिनी 10वीं में थी और सिया 9वीं में. दोनों बहनें घर से रोजाना बजहां गांव हो कर पैदल ही स्कूल के लिए जातीआती थीं. बजहां गांव के ग्राम प्रधान कृपाशंकर तिवारी का बेटा प्रिंस उर्फ आदित्य उन्हें स्कूल आतेजाते बड़े गौर से देखा करता था.

प्रिंस पहली ही नजर में रागिनी पर फिदा हो गया था. थी तो रागिनी साधारण शक्लसूरत की, मगर उस में गजब का आकर्षण था. रागिनी और सिया जब भी स्कूल जाया करती, वह उन के इंतजार में गांव के बाहर 2-3 दोस्तों के साथ खड़ा रहता था.

वह उन्हें तब तक निहारता रहता था जब तक रागिनी और सिया उस की आंखों से ओझल नहीं हो जाती थीं. जबकि दोनों बहनें उस की बातों को नजरअंदाज कर के बिना कोई प्रतिक्रिया किए स्कूल के लिए निकल जाती थीं.

ऐसा नहीं था कि दोनों बहनें उन के इरादों से अंजान थीं, वे उन के मकसद को भलीभांति जान गई थीं. रागिनी प्रिंस से जितनी दूर भागती थी, प्रिंस उतना ही उस की मोहब्बत में पागल हुआ जा रहा था.

17 वर्षीय आदित्य उर्फ प्रिंस उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के बजहां गांव का रहने वाला था. उस का पिता कृपाशंकर तिवारी गांव का प्रधान था. प्रधान तिवारी की इलाके में तूती बोलती थी. उस से टकराने की कोई हिमाकत नहीं करता था. जो उस से टकराने की जुर्रत करता भी था, वह उसे अपनी पौवर का अहसास करा देता था. उस की सत्ता के गलियारों में अच्छी पहुंच थी. ऊंची पहुंच ने प्रधान तिवारी को घमंडी बना दिया था.