एक जुर्म से बड़ा दूसरा जुर्म : बहन का कातिल भाई

8 फरवरी, 2021 की बात है सुबह के करीब 10 बजे थे. नासिर नाम का एक कबाड़ी जोया रोड के किनारे हिल्टन कौन्वेंट स्कूल के पास से गुजर रहा था, तभी उस की नजर स्कूल के पास पड़े खाली प्लौट में चली गई.

प्लौट में एक युवती की लाश पड़ी थी. लाश देखते ही नासिर ने शोर मचा दिया. उस की आवाज सुन कर तमाम लोग जमा हो गए. नासिर ने फोन कर के इस की सूचना अमरोहा देहात थाने में दे दी.

युवती की लाश की सूचना मिलते ही थानाप्रभारी सुरेशचंद्र गौतम अपनी टीम के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. वह जोया रोड स्थित हिल्टन कौन्वेंट स्कूल के पास पहुंचे तो वहां एक प्लौट में काफी लोग जमा थे.

वहीं पर युवती की लाश पड़ी थी, जो खून से लथपथ थी. उस का सिर और मुंह कुचला हुआ था. लाश के पास ही खून से सनी एक ईंट पड़ी थी. पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारे ने इसी ईंट से युवती की हत्या की होगी.

मृतका की उम्र लगभग 25 साल  थी. काले रंग की जींस, नारंगी टौप और सफेद जूते पहने वह युवती किसी अच्छे परिवार की लग रही थी. उस के गले पर भी चोट के निशान थे.

लाश के पास 2 मोबाइल फोन और 2 पर्स भी पड़े थे. पुलिस ने उस के पर्स की तलाशी ली तो उस में एक आधार कार्ड मिला. आधार कार्ड पर नाम नेहा चौधरी लिखा था.

आधार कार्ड के फोटो से इस बात की पुष्टि हो गई कि लाश नेहा चौधरी की ही है. कार्ड पर लिखे एड्रैस के अनुसार, नेहा अमरोहा देहात थाने के पचोखरा गांव निवासी दिनेश चौधरी की बेटी थी.

थानाप्रभारी ने एक कांस्टेबल को भेज कर यह खबर मृतका के घर तक पहुंचवा दी. सूचना पा कर एसपी सुनीति, एएसपी अजय प्रताप सिंह और सीओ विजय कुमार राणा भी घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने भी लाश और घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद वहां मौजूद लोगों से पूछताछ की.

उधर खबर मिलते ही मृतका नेहा चौधरी की मां वीना चौधरी, छोटा भाई अंकित और  चाचा कमल सिंह गांव के कुछ लोगों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. लाश देखते ही वीना चौधरी ने उस की शिनाख्त अपनी बेटी नेहा के रूप में कर दी. घर के सभी लोगों का रोरो कर बुरा हाल था. गांव वाले उन्हें सांत्वना दे कर चुप कराने की कोशिश कर रहे थे.

पुलिस ने मृतका के घर वालों से पूछा कि उन की किसी से कोई रंजिश वगैरह तो नहीं है. इस पर वीना चौधरी ने कहा कि हमारी गांव में क्या कहीं भी किसी से कोई रंजिश नहीं है.

मौके पर पहुंची फोरैंसिक टीम ने भी घटनास्थल से सुबूत जुटाए. इस के बाद पुलिस ने जरूरी लिखापढ़ी के बाद उस का शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. एसपी सुनीति ने इस हत्याकांड को सुलझाने के लिए 3 पुलिस टीमों का गठन किया.

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पुलिस ने वीना चौधरी से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि नेहा मेरठ की सुभारती यूनिवर्सिटी से एमबीए  कर रही थी. इस साल वह फाइनल की छात्रा थी. इस के अलावा वह पिछले 4 साल से नोएडा स्थित एक निजी बैंक में नौकरी भी कर रही थी और दिल्ली के लक्ष्मी नगर में किराए के मकान में रहती थी.

7 फरवरी यानी कल वह घर अमरोहा लौटने वाली थी. उस ने नोएडा से चलने के बाद अपने चाचा कमल सिंह को फोन कर के बता दिया था कि वह शाम तक अमरोहा पहुंच जाएगी. लेकिन वह घर नहीं पहुंची.

पुलिस ने मृतका के चाचा कमल सिंह की तरफ से अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया. पोस्टमार्टम के बाद घर वाले लाश ले कर चले गए.

पुलिस की सभी टीमें जांच में जुट गईं. जिस जगह पर नेहा चौधरी की लाश मिली थी, पुलिस ने उस के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली.

एक फुटेज में 7 फरवरी को रात करीब 8 बजे नेहा चौधरी के साथ एक युवक भी दिखाई दिया. दूसरे दिन पुलिस ने वह फुटेज नेहा के घर वालों को दिखाई तो वीना चौधरी और देवर कमल सिंह ने युवक को पहचानते हुए बताया कि यह तो  नेहा का छोटा भाई अंकित है.

यह सुन कर पुलिस हतप्रभ रह गई. वीना चौधरी के साथ अंकित भी घटनास्थल पर आया था और फूटफूट कर रो रहा था, जबकि उस की हत्या से कुछ घंटे पहले तक वह उस के साथ था. सोचने वाली बात यह थी कि हत्या से पहले आखिर वह उस के साथ क्या कर रहा था.

अब पुलिस का मकसद अंकित से पूछताछ करना था, लेकिन वह घर से गायब था. पुलिस उस की तलाश में जुट गई. अगले दिन यानी 9 फरवरी की रात 9 बजे अंकित को पुलिस ने उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब वह दिल्ली भागने की फिराक में था. थाने में पुलिस ने अंकित से सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया.

अंकित ने स्वीकार कर लिया कि उस ने ही अपनी बड़ी बहन नेहा की हत्या की थी. आखिर छोटे भाई ने अपनी सगी बहन की  हत्या क्यों की, इस बारे में पुलिस ने जब अंकित से पूछा तो नेहा चौधरी की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह चौंकाने वाली थी—

25 वर्षीय नेहा चौधरी उत्तर प्रदेश के जिला अमरोहा के गांव पचोखरा के रहने वाले दिनेश चौधरी की बेटी थी. पत्नी वीना चौधरी के अलावा दिनेश चौधरी के 2 बच्चे थे, बड़ी बेटी नेहा और छोटा अंकित चौधरी.

करीब 20 साल पहले दिनेश चौधरी अचानक गायब हो गए थे. उन्हें बहुत तलाशा गया, लेकिन कहीं पता नहीं चला. उस समय नेहा की उम्र 5 साल और अंकित की 3 साल थी.

पति के गायब हो जाने पर वीना चौधरी पर जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. दुख की इस घड़ी में उन का साथ दिया उन के देवर कमल सिंह ने. वह अमरोहा शहर के मोहल्ला पीरगढ़ में रहते थे.

भाई के गायब हो जाने के बाद वह अपनी भाभी और दोनों बच्चों को अपने साथ ले आए और अपने घर पर ही रख कर न सिर्फ उन की परवरिश की, बल्कि पढ़ाईलिखाई भी पूरी कराई.

अंकित चौधरी की ननिहाल अमरोहा जिले के ही गांव सलामतपुर में थी. वह अकसर अपनी ननिहाल जाता रहता था. बताया जाता है कि उस ने अपने ममेरे भाई अक्षय के साथ मिल कर अपनी ननिहाल के गांव की रहने वाली एक नाबालिग लड़की का अपहरण कर उस के साथ बलात्कार किया था.

लड़की के पिता ने 18 जनवरी, 2021 को थाना डिडौली में अंकित और अक्षय के खिलाफ भारतीय दंड विधान की धारा 363 376डी, 342, 516 पोक्सो ऐक्ट तथा एससी/एसटी ऐक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज कराई.

अमरोहा की अदालत में नाबालिग लड़की के बयान भी दर्ज कराए गए. जिस में उस ने साफ कहा कि अंकित और अक्षय ने उस का अपहरण करने के बाद उस के साथ दुष्कर्म किया था.

इस केस से बचने के लिए अंकित चौधरी ने अमरोहा के कई बड़े वकीलों से राय ली. उन्होंने अंकित को बताया कि मामला बहुत गंभीर है. इस में तुम बच नहीं सकते, जेल तो जाना ही पड़ेगा. तब शातिर दिमाग अंकित चौधरी ने अपने आप को बचाने के लिए एक खौफनाक योजना तैयार की.

योजना यह थी कि वह अपनी बड़ी बहन नेहा चौधरी की हत्या करने के बाद इस का आरोप उस लड़की के पिता पर लगा देगा, जिस ने उस के खिलाफ बेटी के अपहरण व बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

ऐसा करने से क्रौस केस बन जाएगा. इस के बाद केस को रफादफा करने के लिए समझौते की बात चलेगी. समझौता हो जाने पर वह जेल जाने से बच जाएगा.

उसे बहन की हत्या कैसे करनी है, इस की भी उस ने पूरी योजना बना ली थी. योजना के अनुसार 7 फरवरी, 2021 को अंकित चौधरी ने अपनी बहन नेहा चौधरी को किसी परिचित के मोबाइल से फोन किया. उस समय नेहा नोएडा में अपनी ड्यूटी पर थी.

अंकित ने उस से  कहा कि बहन मेरे ऊपर जो मुकदमा चल रहा है उस में नाबालिग लड़की के पिता से बात हो गई है. वह फैसला करने को राजी है. लेकिन फैसले के समय तुम्हारा वहां रहना जरूरी है. इसलिए मैं अमरोहा से टैक्सी ले कर तुम्हें लेने के लिए नोएडा आ रहा हूं. नेहा ने सोचा कि एकलौता भाई है, फैसला हो जाए तो अच्छा है. यही सोच कर उस ने अमरोहा आने की हामी भर दी.

योजना के अनुसार 7 फरवरी, 2021 को अमरोहा के गांधी मूर्ति चौराहे के पास स्थित टैक्सी स्टैंड से एक गाड़ी बुक करा कर अंकित नोएडा के लिए रवाना हो गया. वह उस जगह पहुंच गया, जहां उस की बहन नेहा नौकरी करती थी. नेहा अंकित के साथ नोएडा से अमरोहा के लिए चल दी.

रास्ते में नेहा ने अपने चाचा कमल सिंह को फोन कर के बता दिया था कि वह अमरोहा आ रही है और शाम 6 बजे तक घर पहुंच जाएगी.

वापसी में अंकित टैक्सी ले कर अमरोहा से थोड़ा पहले स्थित जोया रोड पर पहुंचा तो उस ने अमरोहा ग्रीन से थोड़ा पहले टैक्सी रुकवा ली. नेहा ने टैक्सी रोकने की वजह पूछी तो अंकित ने बताया कि पुलिस मेरे पीछे पड़ी है. ऐसे में टैक्सी से घर जाना सही नहीं है. हम लोग यहां से किसी दूसरे रास्ते से चलेंगे. उस ने टैक्सी वाले को पैसे दे कर वहां से भेज दिया.

इस के बाद वह नेहा को हिल्टन कौन्वेंट स्कूल के पास खाली पड़े प्लौट की तरफ ले गया. नेहा ने उस से पूछा भी कि मुझे इस अनजान, सुनसान जगह से कहां ले जा रहे हो. तब अंकित ने कहा कि इधर से शौर्टकट रास्ता है. मेनरोड पर पुलिस मुझे पकड़ सकती है इसलिए मैं शौर्टकट से जा रहा हूं. नेहा ने भाई की बात पर विश्वास कर लिया और उस के साथ चलने लगी.

नेहा को क्या पता था कि जिस भाई की कलाई पर वह हर साल अपनी रक्षा के लिए राखी बांधती है, वही भाई उस की हत्या करने वाला है.

वह कुछ ही दूर चली थी कि अंकित रुक गया. वह नेहा से बोला कि मैं बाथरूम कर लूं, तुम पीछे मुंह कर के खड़ी हो जाओ.

जैसे ही नेहा पीछे मुंह कर के खड़ी हुई, अंकित ने अपनी जेब से एक फीता निकाला और बड़ी फुरती से नेहा के गले में डाल कर कस दिया. नेहा बस इतना ही कह पाई कि भाई यह तुम क्या कर रहे हो? इस के बाद वह मूर्छित हो कर जमीन पर गिर गई. तभी अंकित ने पास पड़ी ईंट से बहन के सिर व चेहरे पर तमाम वार किए और वह उसे ईंट से तब तक कूटता रहा, जब तक कि उस की मौत न हो गई.

अपनी सगी बहन की हत्या के बाद वह वहां से चला गया. वह सीधा अमरोहा की आवास विकास कालोनी में रहने वाले अपने एक रिश्तेदार के घर गया. फिर वहां से अगली सुबह 5 बजे उठ कर चला गया.

उस के कपड़ों, जूतों आदि पर खून लगा था. इसलिए उस ने अपने कपड़े, जैकेट, जूते, टोपा और गला घोंटने वाला फीता कल्याणपुर बाईपास के पास हमीदपुरा गांव के जंगल की झाडि़यों में छिपा दिए. इस के बाद वह अपने घर चला गया.

सुबह होने पर एक सिपाही जब नेहा की हत्या की खबर देने उस के घर गया, तब वह अपनी मां और चाचा के साथ घटनास्थल पर पहुंचा और वहां फूटफूट कर रोने का नाटक करने लगा.

अंकित से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर हमीदपुरा गांव के जंगल की झाडि़यों में छिपा कर रखे गए कपड़े, जैकेट, जूते, टोपा और फीता बरामद कर लिया.

अंकित चौधरी की गिरफ्तारी के बाद सारे सबूत पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिए. 10 फरवरी, 2021 को अमरोहा की एसपी सुनीति ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर इस हत्याकांड का खुलासा कर दिया. इस पूरे मामले में एसपी सुनीति को डिडौली थाने के दरोगा मुजम्मिल की लापरवाही नजर आई. मुजम्मिल ने नाबालिग लड़की के अपहरण और बलात्कार के आरोपी अंकित और उस के ममेरे भाई अक्षय को गिरफ्तार करने में लापरवाही दिखाई थी.

यदि वह इन दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लेते तो शायद नेहा की हत्या नहीं होती. इसलिए एसपी सुनीति ने लापरवाही के आरोप में एसआई मुजम्मिल को लाइन हाजिर कर दिया. अंकित चौधरी से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जुनूनी इश्क में पत्नी ने कर दिया पति का खून

31 अक्तूबर, 2016 को गोवर्धन पूजा का दिन था. राजस्थान में इस दिन लोग एकदूसरे से मिलने जाते हैं. जिले के कस्बा ब्यावर में अपनी बीवीबच्चों के साथ रहने वाला विजय कुमार गहलोत भी दूसरे मोहल्ले में रहने वाले अपने भाइयों बंटी और कमल से मिलने गया था. उस की पत्नी मोना ने तबीयत खराब होने की बात कह कर साथ जाने से मना कर दिया था. सुबह करीब 10 बजे अपने भाइयों से मिलने पहुंचा विजय दिन भर उन्हीं के यहां रहा. चूंकि घर पर पत्नी और बेटा ही था, इसलिए शाम का खाना खा कर वह 7, साढ़े 7 बजे मोटरसाइकिल से अपने घर के लिए चल पड़ा. रात साढ़े 11 बजे के करीब कमल के मोबाइल पर विजय की पत्नी मोना ने फोन कर के कहा, ‘‘कमल, आधी रात हो रही है, अब तो विजय से कहो कि घर आ जाएं.’’

इस पर कमल ने कहा, ‘‘भाभी, आप यह क्या कह रही हैं. विजय भैया तो 7 बजे ही यहां से चले गए थे.’’

‘‘हो सकता है, वह किसी यारदोस्त के यहां चले गए हों? मैं उन्हें फोन करती हूं.’’ कह कर मोना ने फोन काट दिया.

मगर कमल को चैन नहीं पड़ा. उस ने घर में यह बात बताई तो सब चिंतित हो उठे. उस ने विजय के मोबाइल पर फोन किया. उस के फोन की घंटी तो बज रही थी, पर वह फोन नहीं उठा रहा था. कई बार ऐसा हुआ तो कमल को लगा, कहीं विजय के साथ कोई दुर्घटना तो नहीं हो गई. कमल अपने घर वालों के साथ विजय के घर पहुंचा तो उस के घर पर ताला लगा था. उस ने विजय की पत्नी मोना को फोन किया तो उस ने कहा, ‘‘आप के भैया घर नहीं आए तो मैं थोड़ी देर पहले मायके आ गई. मुझे अकेले घर पर डर लग रहा था.’’ कमल घर वालों के साथ अपने घर लौट आया. घर पर सभी परेशान थे कि आखिर ऐसी कौन सी वजह है, जो विजय फोन नहीं उठा रहा. सुबह साढ़े 3 बजे के करीब विजय के मोबाइल से कमल के मोबाइल पर फोन आया. जैसे ही कमल ने फोन रिसीव किया, दूसरी तरफ से किसी अनजान व्यक्ति ने कहा, ‘‘आप कौन बोल रहे हैं और जिस मोबाइल से मैं फोन कर रहा हूं, वह किस का है?’’

‘‘मैं कमल बोल रहा हूं और यह मोबाइल मेरे आई विजय का है. आप कौन?’’ कमल ने पूछा.

‘‘मैं थाना सदर का एएसआई माणिकचंद बोल रहा हूं. उदयपुर बाईपास रोड पर एक आदमी का एक्सीडेंट हो गया है. यह मोबाइल वहीं पड़ा मिला था. आप तुरंत यहां आ जाइए.’’

एक्सीडेंट की बात सुन कर कमल घबरा गया. थोड़ी देर में वह अपने घर वालों और परिचितों के साथ उदयपुर बाईपास रोड पर पहुंच गया. वहां सड़क के किनारे झाडि़यों के पास विजय की लाश पड़ी थी. उस के पैरों में चप्पल नहीं थे. लाश से करीब 100 फुट दूर उस की मोटरसाइकिल पड़ी थी. इस से यह मामला दुर्घटना के बजाय हत्या का लग रहा था. मोटरसाइकिल से ले कर लाश तक मोटरसाइकिल के घिसटने के निशान भी नहीं थे. लाश के पास ही शराब का एक खाली पव्वा पड़ा था. जबकि विजय शराब बिलकुल नहीं पीता था. वहीं उस का मोबाइल फोन भी पड़ा था. एएसआई माणिकचंद की सूचना पर थाना सदर के थानाप्रभारी रविंद्र सिंह भी घटनास्थल पर आ गए थे. उच्चाधिकारियों को भी घटना से अवगत करा दिया गया था. वे भी सुबह तक घटनास्थल पर आ गए थे. मौके का बारीकी से मुआयना करने के बाद विजय की लाश पोस्टमार्टम के लिए अमृतकौर चिकित्सालय भिजवा दी गई थी. पुलिस मृतक की पत्नी मोना से बात करना चाहती थी, लेकिन उस वक्त वह काफी दुखी थी. पुलिस उस के घर का निरीक्षण करना चाहती थी, पर उस के घर में ताला बंद था. पुलिस ने उसे बुलवा कर घर का ताला खुलवाया. घर के बाहर ही मृतक विजय के चप्पलें पड़ी थीं. पुलिस ने मोना से पूछा कि ये चप्पलें यहां कैसे आईं तो वह संतोषजनक जवाब नहीं दे सकी.

घर का पानी जिस नाली से बहता था, उसे देख कर ही लग रहा था कि वहां खून साफ किया गया था. इस के अलावा हौल की दीवारों और फर्श पर खून के छींटे नजर आए. बाथरूम में पानी से भरी एक बाल्टी में मोना के कपड़े और पैंटशर्ट भिगोए थे, उन में भी खून लगा था. इस सब से यही लग रहा था कि विजय की हत्या घर में ही की गई थी और हत्या में मोना के साथ कोई आदमी भी शामिल था. रविंद्र सिंह ने जब मोना से इस बारे में पूछताछ की तो उस ने आसानी से स्वीकार कर लिया कि उसी ने अपने प्रेमी दिनेश साहू के साथ मिल कर पति की हत्या की थी. सच सामने आ चुका था. पुलिस ने उस की निशानदेही पर उस के प्रेमी दिनेश साहू को भी गिरफ्तार कर लिया. दोनों को थाना सदर ला कर पूछताछ की गई तो विजय कुमार गहलोत की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

राजस्थान के जिला अजमेर से कोई 60 किलोमीटर दूर जोधपुर रोड पर स्थित है कस्बा ब्यावर. इसी कस्बे की चौहान कालोनी के रहने वाले रामभरुच सांखला के 3 बेटे और एक बेटी थी मोना. मोना बहुत खूबसूरत थी. वह सयानी हुई तो उस की शादी पाली के अपनी ही जाति के एक लड़के से कर दी गई. मोना ससुराल में खुश थी. उस के मायके वाले आर्थिक रूप से काफी मजबूत थे. इसलिए उन्होंने उस से कहा कि वे उस के लिए ब्यावर में मकान बनवा कर दे रहे हैं, इसलिए वह पति के साथ आ कर वहीं रहे. मोना ने जब यह बात अपने पति को बताई तो उस ने साफ कह दिया कि वह ससुराल में घरजमाई बन कर नहीं रहेगा. उस की मजबूरी यह थी कि उस के पिता का देहांत हो चुका था और वह विधवा मां को अकेली नहीं छोड़ना चाहता था.इसी बात पर मोना की पति से कटुता बढ़ गई और हालात यहां तक पहुंच गए कि शादी के 6 महीने बाद ही दोनों में तलाक हो गया. इस के बाद मोना अपने पिता के घर आ गई.

ब्यावर में ही मोहनलाल गहलोत अपनी पत्नी जसोदा देवी के साथ रहते थे. इन के तीन बेटे थे, बंटी कुमार, विजय कुमार और कमल किशोर. तीनों भाइयों में बड़ा स्नेह था. सब से बड़ा बेटा बंटी दिव्यांग था. दिव्यांग होने के बावजूद वह समाजसेवा में ज्यादा से ज्यादा समय बिताता था. वह ब्यावर विकलांग समिति का अध्यक्ष भी था. सोहनलाल और उन की पत्नी जसोदा की मौत के बाद तीनों भाइयों ने घरगृहस्थी और दुकानदारी संभाल ली थी.

सब बढि़या चल रहा था. बात सन 2004 की है. विजय कुमार अपने चचेरे भाई के साथ उस की ससुराल में आयोजित एक शादी समारोह में गया था. वहीं विजय की मुलाकात मोना उर्फ मोनिका से हुई. इसी मुलाकात में मोना और विजय एकदूजे को दिल दे बैठे. एक दिन वह भी आ गया, जब विजय ने अपने घर में मोना से शादी करने की बात कह दी. मोना ने भी अपने पिता से कह दिया था कि वह विजय को चाहती है और उस से शादी करना चाहती है. दोनों परिवारों की सहमति से सन 2004 में मोना और विजय की शादी हो गई.

मोना और विजय को अपनाअपना प्यार मिल गया था. उन की गृहस्थी आराम से कटने लगी. शादी की पहली वर्षगांठ से पहले ही मोना बेटे की मां बन गई, जिस का नाम नितेश रखा गया. विजय संयुक्त परिवार में रहता था, जबकि मोना पति के साथ अलग रहना चाहती थी. मोना के मायके वालों ने उसे विजयनगर में एक मकान बनवा कर दे दिया था. पति से जिद कर के वह उसी मकान में रहने चली गई. विजय की ब्यावर में फोटोफ्रैम की दुकान थी. वह सुबह दुकान पर चला जाता था तो रात को ही लौटता था. नितेश स्कूल जाने लायक हुआ तो उस का दाखिला पास के स्कूल में करा दिया गया था. विजय के घर के सामने दिनेश साहू का मैडिकल स्टोर था. उस के पिता माणक साहू ब्यावर के अमृतकौर सरकारी अस्पताल में कंपाउंडर थे और अस्पताल के पास ही रहते थे. दिनेश शादीशुदा था. मैडिकल स्टोर पर बैठने के साथ वह नर्सिंग का कोर्स भी कर रहा था.

मैडिकल स्टोर पर बैठने के दौरान ही दिनेश और मोना के नैन लड़ गए. शादीशुदा होने के बावजूद दोनों एकदूसरे को चाहने लगे. बच्चे को स्कूल भेजने के बाद मोना घर में अकेली रह जाती थी. एक दिन उस ने चाय के बहाने दिनेश को घर बुला लिया. इस के बाद दोनों रोज मिलने लगे. मोना उम्र में दिनेश से 6-7 साल बड़ी थी. मगर उस की फिगर ऐसी थी, जिस पर दिनेश मर मिटा था.

एक दिन ऐसा भी आया, जब सारी सीमाएं लांघ कर दोनों ने शारीरिक संबंध बना लिए. मोना को विजय में अब कोई रुचि नहीं रह गई थी, बल्कि वह उसे राह का कांटा लगने लगा था. दूसरी ओर दिनेश को भी अपनी पत्नी में पहले जैसी रुचि नहीं रह गई थी. वह उसे समय नहीं दे पा रहा था. राह में कांट लग रहे पति को मोना ने राह से हटाने के बारे में दिनेश से बात की तो उस ने कहा कि विजय को इस तरह ठिकाने लगाया जाए कि किसी को शक तक न हो.

‘‘तुम चिंता मत करो, इस के लिए मेरे दिमाग में एक सुपर आइडिया है. हम पहले विजय की घर में ही हत्या कर देंगे, उस के बाद लाश और मोटरसाइकिल को सड़क पर डाल देंगे. लोग समझेंगे कि उस की मौत सड़क हादसे में हुई है. मामला ठंडा होने के बाद हम नाता प्रथा के तहत शादी कर लेंगे.’’

योजना को किस तरह अंजाम देना है, यह दोनों ने तय कर लिया. 31 अक्तूबर, 2016 को गोवर्धन पूजा वाले दिन विजय कुमार गहलोत ने सुबह मोना से कहा, ‘‘आज हम लोग बंटी और कमल के घर चलते हैं?’’

‘‘मेरी तबीयत ठीक नहीं है. ऐसा करो, तुम अकेले चले जाओ. मैं फिर कभी हो आऊंगी.’’ मोना ने कहा.

पत्नी की बात पर विश्वास कर के विजय ने उस से साथ चलने की जिद नहीं की और मोटरसाइकिल उठा कर अकेला ही अपने भाइयों के यहां  चला गया. मोना ने तबीयत खराब होने की बात कही थी, इसलिए विजय भाइयों के यहां से शाम 7 बजे घर लौट आया. इस के बाद पत्नी से बातचीत कर के रात 10 बजे सो गया.

दिनेश अपने मैडिकल स्टोर पर ही बैठा था. मोना का इशारा पा कर वह दुकान में रखा हथौड़ा ले कर उस के घर आ गया. उस के घर में घुसते ही मोना ने घर का दरवाजा बंद कर दिया. दिनेश ने सो रहे विजय के सिर पर हथौड़े से वार किया. उस का सिर फट गया और वह बेहोश हो गया. इस के बाद मोना से चाकू ले कर उस ने उस का गला रेत दिया.

गला कटने से जो खून निकला, उस से मोना की साड़ीब्लाउज और दिनेश के कपड़ों पर खून लग गया. विजय तड़प कर मर गया तो लाश को बैड से नीचे उतार कर उस पर पानी डाल कर खून साफ किया गया. इस के बाद उन्होंने खून से सने कपड़े बाथरूम में भिगो दिए. दूसरे कपड़े पहन कर तौलिए से खून के छींटे साफ किए और चाकू, हथौड़ा तथा खून सना तौलिया छिपा दिया.

इस के बाद दिनेश अपने गैराज से अपनी स्कौर्पियो ले आया. लाश को स्कौर्पियो में रख कर पहले से ला कर रखा शराब का पौवा भी साथ रख दिया. लाश को गाड़ी में रखने के दौरान विजय के पैरों से चप्पलें निकल कर घर के बाहर गिर गई थीं. अंधेरा होने की वजह से मोना और दिनेश ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया. दोनों इस बात से निश्चिंत थे कि कोई उन्हें देख नहीं रहा है.

दोनों लाश ले कर उदयपुर बाईपास रोड पर पहुंचे और इधरउधर देख कर उन्होंने लाश को सड़क के पास फेंक दिया. शराब का पौवा खोल कर उन्होंने विजय के मुंह पर शराब उड़ेल दी. खाली शीशी पास ही फेंक दी. विजय का मोबाइल भी वहीं रख दिया. इतना सब कर के दोनों लौट आए. स्कौर्पियो को अपनी गैराज में खड़ी कर दिनेश पुन: मोना के घर गया. इस बार वह विजय की मोटरसाइकिल ले कर उसी जगह गया, जहां लाश फेंक कर आया था.

उधर जब कमल को पता चला कि विजय घर नहीं पहुंचा है तो वह बारबार उसे फोन करने लगा. विजय के फोन की घंटी तो बज रही थी, पर वह फोन नहीं उठा रहा था. उदयपुर बाईपास रोड पर गश्त लगा रही पुलिस को सड़क किनारे फोन की घंटी की आवाज सुनाई दी तो पुलिस वहां पहुंची. पुलिस ने वहां लाश पड़ी देखी तो हैरान रह गई. पास में पड़े फोन की घंटी तब तक बंद हो चुकी थी. इस के बाद उसी फोन से पुलिस ने कमल को फोन किया. दिनेश मोटरसाइकिल ले कर वहां पहुंचा तो पुलिस की गाड़ी खड़ी देख कर वह लाश से करीब 100 फुट दूर ही सड़क पर मोटरसाइकिल छोड़ कर भाग आया. तब तक खून वगैरह साफ कर के मोना घर में ताला लगा कर अपने मायके चली गई थी.

उस रात अमृतकौर अस्पताल में नर्सिंगकर्मियों की एक पार्टी चल रही थी. मोटरसाइकिल छोड़ कर दिनेश यारदोस्तों की उस पार्टी में शामिल हो गया. पुलिस के गश्ती दल की सूचना पर सदर थानाप्रभारी रविंद्र सिंह एवं सहायक पुलिस अधीक्षक देवाशीष देव घटनास्थल पर पहुंच गए थे.

पूछताछ के बाद पुलिस ने मोना उर्फ मोनिका और उस के प्रेमी दिनेश साहू को गिरफ्तार कर के उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त हथौड़ा, चाकू बरामद कर लिया था. इस के अलावा स्कौर्पियो कार व अन्य सबूत भी जुटा लिए गए. पोस्टमार्टम के बाद विजय का विसरा जांच के लिए प्रयोगशाला भेज दिया गया था. पुलिस ने मोना और उस के प्रेमी दिनेश को न्यायालय में पेश कर के अजमेर केंद्रीय कारागार भेज दिया. मामले की तफ्तीश थानाप्रभारी रविंद्र सिंह कर रहे थे.

कथा पुलिस सूत्रों व कमल किशोर से हुई बातचीत पर आधारित

इश्क की आग में कुछ इस तरह बरबाद हुआ एक परिवार

2 लोगों के साथ जगराओं के थाना सिटी पहुंची लक्ष्मी ने थानाप्रभारी इंसपेक्टर इंद्रजीत सिंह को बताया था कि उस के पति प्रवासराम 2 दिन पहले काम पर गए तो अब तक लौट कर नहीं आए हैं. थानाप्रभारी ने पूरी बात बताने को कहा तो लक्ष्मी ने बताया कि उस के पति प्रवासराम मूलरूप से बिहार के जिला बांका के थाना रजौली के गांव उपराम के रहने वाले थे.

कई सालों पहले वह काम की तलाश में जगराओं आ गया था और पीओपी का काम सीख कर बडे़बडे़ मकानों में पीओपी करने के ठेके लेने लगा था. उस का काम ठीकठाक चलने लगा तो वह गांव से पत्नी और बच्चों को भी ले आया. जगराओं में वह डा. हरिराम अस्पताल के पास रहता था.

सन 2001 में प्रवासराम की लक्ष्मी से शादी हुई थी. उस के कुल 6 बच्चे थे, जिन में 4 बेटियां और 2 बेटे थे. वह सुबह काम पर जाता था तो शाम 7 बजे तक वापस आता था. लक्ष्मी की बात सुन कर इंद्रजीत सिंह ने पूछा, ‘‘जिस जगह तुम्हारा पति काम करता था, वहां जा कर तुम ने पता किया था?’’

‘‘जी साहब, यह लड़का उन्हीं के साथ काम करता था.’’ साथ आए 20-22 साल के एक लड़के की ओर इशारा कर के लक्ष्मी ने कहा.

थानाप्रभारी ने उस लड़के की ओर देखा तो उस ने कहा, ‘‘साहब, मेरा नाम सोनू है, मैं उन्हीं के साथ काम करता था. वह 2 दिनों से काम पर नहीं आए हैं, जिस से हम सभी बहुत परेशान हैं. हम सभी खाली बैठे हैं.’’

इंद्रजीत सिंह ने एएसआई बलजिंदर सिंह को पूरी बात समझा कर प्रवासराम की गुमशुदगी दर्ज करा कर उस की पत्नी से उस का एक फोटो लेने को कहा. थानाप्रभारी के आदेश पर बलजिंदर सिंह ने प्रवासराम की गुमशुदगी दर्ज कर लक्ष्मी से उस का एक फोटो ले लिया. इस के बाद उन्होंने उस की फोटो के साथ सभी थानों को उस की गुमशुदगी की सूचना दे दी. यह 4 अप्रैल, 2017 की बात है. इस का मतलब प्रवासराम 2 अप्रैल से गायब था.

6 अप्रैल, 2017 को पुलिस को जगराओं के बाहरी इलाके में सेम नानकसर रोड पर स्थित एक गंदे नाले में एक लाश मिली. उसे बिस्तर में लपेट कर फेंका गया था. मौके पर पहचान न होने की वजह से पुलिस ने लाश को मोर्चरी में रखवा कर उस के पोस्टर जारी कर दिए थे. पोस्टर देख कर अगवाड़ लोपो के रहने वाले मृतक के साढू समीर ने उस की शिनाख्त डा. हरिराम अस्पताल के पास रहने वाले प्रवासराम की लाश के रूप में कर दी थी.

इंद्रजीत सिंह ने तुरंत सिपाही भेज कर लक्ष्मी को बुलवा लिया था. लाश देखते ही लक्ष्मी रोने लगी. अब शक की कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी. वह लाश उस के गुमशुदा पति प्रवासराम की ही थी. लाश की शिनाख्त होने के बाद इंद्रजीत सिंह ने प्रवासराम की गुमशुदगी की जगह अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लाश लक्ष्मी और उस के रिश्तेदारों को सौंप दी. उसी दिन शाम को उन्होंने उस का अंतिम संस्कार कर दिया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, प्रवासराम की हत्या 4 दिनों पहले गला घोंट कर की गई थी. उस की गरदन पर रस्सी के निशान थे. थानाप्रभारी ने इस मामले की जांच बलजिंदर सिंह को ही सौंप दी थी. उन्होंने मृतक की पत्नी लक्ष्मी और उस के भाइयों को बुला कर विस्तार से पूछताछ की.

मृतक के भाई अनूप का कहना था कि उस के भाई की न किसी से कोई दुश्मनी थी और न किसी तरह का कोई लेनादेना था. इस के बाद बलजिंदर सिंह ने लक्ष्मी से पूछा, ‘‘तुम सोच कर बताओ कि काम पर जाने से पहले तुम्हारी पति से कोई खास बात तो नहीं हुई थी?’’

‘‘कोई बात नहीं हुई थी साहब, रोज की तरह उस दिन भी वह अपना खाने का टिफिन ले कर सुबह साढ़े 7 बजे घर से गए तो लौट कर नहीं आए.’’

बलजिंदर सिंह ने वहां जा कर भी पूछताछ की, जहां प्रवासराम काम करा रहा था. उस के साथ काम करने वाले मजदूर ही नहीं, मकान के मालिक ने भी बताया कि प्रवासराम निहायत ही शरीफ और ईमानदार आदमी था. लड़ाईझगड़ा तो दूर, वह किसी से ऊंची आवाज में बात भी नहीं करता था. समय पर काम कर के मालिक से समय पर मजदूरी ले कर अपने मजदूरों को उन की मजदूरी दे कर उन्हें खुश रखता था.

बलजिंदर सिंह को अब तक की पूछताछ में कोई ऐसा सुराग नहीं मिला था, जिस से वह हत्यारों तक पहुंच पाते. यह तय था कि हत्यारे 2 या 2 से अधिक थे. लेकिन उन की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसे शरीफ आदमी की भला किसी की क्या दुश्मनी हो सकती थी, जो उसे मार दिया.

थानाप्रभारी इंद्रजीत सिंह से सलाह कर के बलजिंदर सिंह मुखबिरों की मदद से यह पता करने लगे कि मृतक की पत्नी का किसी से अवैध संबंध तो नहीं था. इस की एक वजह यह थी कि लक्ष्मी ने कई बार बयान बदले थे. यही नहीं, पूछताछ के दौरान वह डरीडरी सी रहती थी. कभी वह कहती थी कि 2 अप्रैल को काम से लौटने के बाद वह कुछ लेने के लिए बाजार गए थे तो लौट कर नहीं आए तो कभी कहती थी कि सुबह काम पर गए थे तो लौट कर नहीं आए थे.

उस की इन्हीं बातों पर उन्हें उस पर शक हो गया था. मुखबिरों से उन्हें पता चला था कि लक्ष्मी के घर सिर्फ 20-22 सल के सोनू का ही आनाजाना था. उसी सोनू के साथ लक्ष्मी प्रवासराम की गुमशुदगी दर्ज कराने थाने आई थी. उस की उम्र लक्ष्मी से इतनी कम थी कि उस पर संदेह नहीं किया जा सकता था. लेकिन मुखबिर ने जो खबर दी थी, उस से सोनू ही संदेह के घेरे में आ गया था. पुलिस जब उसे गिरफ्तार करने पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला.

बलजिंदर सिंह महिला सिपाही की मदद से लक्ष्मी को थाने ले आए और जब उस से कहा कि उसी ने सोनू के साथ मिल कर अपने पति की हत्या की है तो वह अपने बच्चों की कसम खाने लगी. उस का कहना था कि पुलिस को शायद गलतफहमी हो गई है. वह भला अपने पति की हत्या क्यों करेगी.

लेकिन पुलिस को मुखबिर पर पूरा भरोसा था. इसलिए जब उस के साथ थोड़ी सख्ती की गई तो उस ने अपने पति प्रवासराम की हत्या का अपराध स्वीकार करते हुए बता दिया कि उसी ने अपने प्रेमी सोनू के साथ साजिश रच कर पति प्रवासराम की हत्या कराई थी.

इस हत्या में उस का प्रेमी सोनू और उस के 2 दोस्त मिल्टन और छोटू सोनू शामिल थे.

सोनू के दोस्त का नाम भी सोनू था, इसलिए यहां उस का नाम छोटू सोनू लिख दिया गया है. लक्ष्मी ने ही प्रवासराम की हत्या करा कर उस की लाश गंदे नाले में फेंकवा दी थी.

इस के बाद लक्ष्मी की निशानदेही पर उस के प्रेमी सोनू और उस के साथी अवधेश (बदला हुआ नाम) को हिरासत में ले लिया गया था. जबकि उस का साथी सोनू फरार होने में कामयाब हो गया था. शायद उसे लक्ष्मी, अवधेश और सोनू के गिरफ्तार होने की सूचना मिल गई थी.

बलजिंदर सिंह ने उसी दिन यानी 9 अप्रैल, 2017 को तीनों अभियुक्तों लक्ष्मी, अवधेश और सोनू को जिला मजिस्टै्रट की अदालत में पेश कर के लक्ष्मी और सोनू को 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया, जबकि नाबालिग होने की वजह से अवधेश को बाल सुधारगृह भेज दिया गया. रिमांड अवधि के दौरान प्रवासराम की हत्या की जो कहानी प्रकाश में आई, वह  इस प्रकार थी-

6 बच्चों की मां बन जाने के बाद भी लक्ष्मी की देह की आग शांत होने के बजाय और भड़क उठी थी. इस की वजह यह थी कि प्रवासराम सीधासादा और शरीफ आदमी था. उस ने लक्ष्मी से कहा था कि अब उसे खुद पर संयम रखना चाहिए, क्योंकि उस के 6 बच्चे हो चुके हैं. अब उसे अपने इन बच्चों की फिक्र करनी चाहिए.

प्रवासराम दिनभर काम कर के थकामांदा घर लौटता और खाना खा कर अगले दिन काम पर जाने के लिए जल्दी सो जाता. लक्ष्मी को यह जरा भी नहीं सुहाता था. जब पति ने उस की ओर से पूरी तरह मुंह मोड़ लिया तो उस की नजरें खुद से लगभग 22 साल छोटे सोनू पर जा टिकीं.

काम से फारिग होने के बाद अकेला रहने वाला सोनू अक्सर प्रवासराम के साथ उस के घर आ जाता था. वह घंटों बैठा प्रवासराम और लक्ष्मी से बातें किया करता था. लक्ष्मी की नजरें उस पर टिकीं तो वह उस से हंसीमजाक के साथसाथ शारीरिक छेड़छाड़ भी करने लगी. युवा हो रहे सोनू को यह सब बहुत अच्छा लगता था.

एक दिन दोपहर को जब सोनू काम से छुट्टी ले कर लक्ष्मी के घर पहुंचा तो लक्ष्मी ने उसे पकड़ कर बैड पर पटक दिया और मनमानी कर डाली. सोनू के लिए यह एकदम नया सुख था. उसे ऐसा लगा, जैसे वह जन्नत की सैर कर रहा है. उस दिन के बाद यह रोज का नियम बन गया. सोनू काम के बीच कोई न कोई बहाना कर के लक्ष्मी के पास पहुंच जाता और मौजमस्ती कर के लौट जाता. यह सब लगभग एक साल तक चलता रहा. किसी तरह इस बात की जानकारी प्रवासराम को हुई तो उस ने लक्ष्मी को खरीखोटी ही नहीं सुनाई, बल्कि प्यार से समझाया भी, पर उस के कानों पर जूं नहीं रेंगी.

जब प्रवासराम ने लक्ष्मी पर रोक लगाने की कोशिश की तो सोनू के प्यार में पागल लक्ष्मी ने सोनू के साथ मिल कर प्रवासराम की हत्या की योजना बना डाली. एक दिन उस ने सोनू से कहा, ‘‘जब तक प्रवासराम जिंदा रहेगा तो हम दोनों इस तरह मिल नहीं पाएंगे. वैसे भी अब उस के वश का कुछ नहीं रहा. वह बूढा हो गया है, अब उस का मर जाना ही ठीक है.’’

लक्ष्मी के साथ मिल कर प्रवासराम की हत्या की योजना बना कर सोनू ने साथ काम करने वाले अवधेश और छोटू सोनू को कुछ रुपयों का लालच दे कर अपने साथ मिला लिया. घटना वाले दिन यानी 2 अप्रैल, 2017 को सोनू पार्टी देने के बहाने शराब की बोतल और चिकन ले कर लक्ष्मी के घर पहुंचा. अवधेश और छोटू सोनू भी उस के साथ थे. उस ने प्रवासराम से कहा, ‘‘भइया चिकन और शराब लाया हूं, आज पार्टी करने का मन है.’’

योजनानुसार चारों शराब पीने बैठ गए. खुद कम पी कर सोनू और उस के साथियों ने प्रवासराम को अधिक शराब पिला दी. रात के 11 बजे तक प्रवासराम जरूरत से ज्यादा शराब पी कर लगभग बेहोश हो गया तो लक्ष्मी ने सोनू को इशारा किया.

सोनू ने छोटू सोनू और अवधेश की तरफ देखा तो छोटू सोनू ने बेसुध पड़े प्रवासराम के दोनों पैर कस कर पकड़ लिए. अवधेश उस की छाती पर सवार हो गया तो लक्ष्मी और सोनू ने प्रवासराम के गले में रस्सी डाल कर कस दिया. प्रवासराम तड़प कर शांत हो गया तो चारों ने मिल कर लाश को बैड से उतार कर नीचे खिसका दिया.

अवधेश और छोटू सोनू तो अपनेअपने घर चले गए, जबकि सोनू लक्ष्मी के कमरे पर ही रुक गया. दोनों पूरी रात उसी बैड पर मौजमस्ती करते रहे, जिस बैड के नीचे प्रवासराम की लाश पड़ी थी.

अगले दिन यानी 3 अप्रैल की रात को अवधेश और छोटू सोनू की मदद से सोनू प्रवासराम की लाश को बिस्तर में लपेट कर रेहड़े से ले जा कर सेम नानकसर रोड पर बहने वाले गंदे नाले में फेंक आया.

रिमांड अवधि के दौरान लक्ष्मी की निशानदेही पर पुलिस ने उस के घर से वह रस्सी बरामद कर ली थी, जिस से प्रवासराम का गला घोंटा गया था. हत्या करते समय लक्ष्मी ने अपने सभी बच्चों को दूसरे कमरे में सुला कर बाहर से कुंडी लगा दी थी, जिस से बच्चों को कुछ पता नहीं चल सका था.

रिमांड अवधि समाप्त होने पर 11 अप्रैल, 2017 को लक्ष्मी और उस के प्रेमी सोनू को पुन: अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. अवधेश को पहले ही बाल सुधार गृह भेज दिया गया था.

इस हत्याकांड का एक आरोपी छोटू सोनू अभी फरर है. पुलिस उस की तलाश कर रही है. प्रवासराम की हत्या और लक्ष्मी के जेल जाने के बाद उन के सभी बच्चों को प्रवासराम का छोटा भाई अपने घर ले गया है. लक्ष्मी ने अपनी वासना में अपना परिवार तो बरबाद किया ही, 3 लड़कों की जिंदगी पर सवालिया निशान लगा दिए.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. अवधेश बदला हुआ नाम है.

बदनामी का दाग जिसने सब तबाह कर दिया

7 अगस्त, 2016 की सुबह 7 बजे सायरा ने अपनी छत से पड़ोस में रहने वाली सुनीता की छत पर देखा तो वहां का नजारा देख कर वह सन्न रह गई. छत पर सुनीता के देवर राजेश की लाश खून से लथपथ पड़ी थी. उस ने शोर मचाया तो आसपड़ोस के लोग इकट्ठा हो गए. सायरा ने 100 नंबर पर फोन कर के इस बात की सूचना पुलिस को भी दे दी थी. पीसीआर वैन कुछ ही देर में आ गई. यह स्थान दक्षिणपश्चिम दिल्ली के थाना रनहौला के अंतर्गत आता था, इसलिए कंट्रोल रूम की सूचना पर के एसआई ब्रह्मप्रकाश हैडकांस्टेबल संजय एवं कांस्टेबल नरेश कुमार के साथ सुनीता के घर पहुंच गए थे.

जैसे ही ये सभी दूसरी मंजिल पर पहुंचे, बरामदे में सुनीता की लाश पड़ी मिली. उस की हत्या चाकू से गला रेत कर की गई थी. वह चाकू लाश के पास ही पड़ा था. उन्हें सुनीता के मकान की दूसरी मंजिल की छत पर उस के देवर की लाश पड़ी होने की सूचना मिली थी, इसलिए वह छत पर गए तो छत पर बिछी चटाई पर सुनीता के देवर राजेश की लाश पड़ी थी.

राजेश का सिर फटा हुआ था. लाश के पास ही हथौड़ा पड़ा था, जिस पर खून लगा था. इस का मतलब हत्या उसी हथौड़े से की गई थी. चटाई पर शराब की एक बोतल, 2 गिलास, एक लोटे में पानी तथा एक कटोरी में तली हुई कलेजी रखी थी. इस से साफ लग रहा था कि यहां बैठ कर 2 लोगों ने शराब पी थी.

पड़ोसियों ने बताया कि मृतक राजेश कुमार हरियाणा के जिला सोनीपत के गांव हुमायूंपुर में रहता था. वह अकसर सुनीता के घर आता रहता था. पड़ोसियों ने एक बात यह भी बताई कि राजेश जब भी यहां रात को ठहरता था, सुनीता की छोटी बेटी ज्योति अपनी सहेली के घर सोने चली जाती थी. ब्रह्मप्रकाश के दिमाग में यह बात बैठ गई कि चाचा राजेश के आने पर ज्योति अपना घर छोड़ कर किसी और के यहां सोने क्यों चली जाती थी?

ब्रह्मप्रकाश ने इस दोहरे हत्याकांड की सूचना थानाप्रभारी सुभाष मलिक को भी दे दी थी. थोड़ी देर में वह भी अपने कुछ मातहतों के साथ आ गए थे. उन्होंने फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट और डौग स्क्वायड टीम को भी बुला लिया था. थानाप्रभारी की सूचना पर एसीपी (नांगलोई) आनंद राणा भी आ गए थे.

निरीक्षण के बाद जब ज्योति से पूछा गया कि अपना घर होते हुए भी वह अपनी सहेली के घर सोने क्यों गई थी तो जवाब देने के बजाय वह शरमाने लगी. इस से आनंद राणा समझ गए कि मामला कुछ ऐसा होगा, जिसे वह बताना नहीं चाहती. सारी कारवाई निपटा कर लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया.

डीसीपी ने इस मामले को सुलझाने के लिए एसीपी आनंद राणा के नेतृत्व में एक पुलिस टीम का गठन किया, जिस में थानाप्रभारी सुभाष मलिक, इंसपेक्टर एस.एस. राठी, हैडकांस्टेबल नरेंद्र, कांस्टेबल विक्रांत, अनिल, वीरेंद्र, नरेश, प्रवीण, संजीव, महिला कांस्टेबल परमिंदर आदि को शामिल किया गया.

टीम में शामिल महिला कांस्टेबल परमिंदर ने ज्योति से पूछा कि चाचा के आने पर वह उस रात दूसरे के यहां सोने क्यों गई थी तो ज्योति ने सकुचाते हुए कहा, ‘‘चाचा और मम्मी शराब पी कर अश्लील बातें ही नहीं, अश्लील हरकतें करने लगते थे. कल रात भी जब दोनों नशे में एकदूसरे से अश्लील हरकतें करने लगे तो मैं रात 10 बजे के करीब गुस्से में सहेली के घर चली गई थी.’’

‘‘सुबह तुम्हें घटना की खबर कैसे मिली?’’

‘‘करीब 8 बजे सहेली के पापा ने मुझे बताया.’’ कह कर ज्योति रोने लगी.

इंसपेक्टर एस.एस. राठी ने उसे सांत्वना दे कर पूछा, ‘‘तुम्हारे खयाल से तुम्हारी मम्मी और चाचा की हत्या कौन कर सकता है?’’

‘‘साहब, पता नहीं इन्हें किस ने मारा है, मुझे सिर्फ इतना पता है कि पापा की मौत के बाद मम्मी बेलगाम हो गई थीं.’’

एस.एस. राठी को इस हत्याकांड की वजह समझ में आ गई. उन्होंने सुनीता के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर देखी तो उस में एक नंबर ऐसा मिला, जिस पर उन्हें संदेह हुआ. वह नंबर ज्योति के पति कप्तान सिंह का था. कप्तान के नंबर पर घटना वाली रात पौने 2 बजे सुनीता के फोन से फोन किया गया था.

एस.एस. राठी की समझ में यह नहीं आया कि जब कप्तान के संबंध सास और पत्नी से ठीक नहीं थे तो उतनी रात को सुनीता ने कप्तान को फोन क्यों किया? इस बारे में उन्होंने ज्योति से बात की तो उस ने बताया कि उस के और मम्मी के कप्तान से कोई संबंध नहीं थे, इसलिए फोन पर बात करने वाली बात संभव नहीं है. उन्होंने ज्योति से कप्तान का पता ले लिया. वह हरियाणा के भालगढ़ का रहने वाला था. पुलिस ने उस के यहां छापा मारा और उसे हिरासत में ले कर दिल्ली आ गई.

कप्तान सिंह से जब इस दोहरे हत्याकांड के बारे में सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि राजेश और सुनीता की हत्या उस के छोटे भाई अमित ने अपने दोस्त सुमित शर्मा के साथ मिल कर की थी. इस के बाद कप्तान सिंह की निशानदेही पर पुलिस ने रोहतक के गांव बिचपड़ी से सुमित शर्मा और सोनीपत से अमित को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उन दोनों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. पूछताछ के बाद इस दोहरे हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

रामकुमार मूलरूप से हरियाणा के सोनीपत जिले के हुमायूंपुर के रहने वाले जिले सिंह का बेटा था. उस के पास खेती की 7 एकड़ जमीन थी. उस के परिवार में 2 बेटियों के अलावा एक बेटा अंकित था. बाद में उस ने दिल्ली के रनहौला में मकान बनवा लिया और परिवार के साथ वहीं रहने लगा.

सुनीता हरियाणा के रोहतक की रहने वाली थी. शादी से पहले ही उस के कदम बहक गए थे. जब परिवार की बदनामी होने लगी थी तो पिता ने उस का विवाह रामकुमार से कर दिया था. रामकुमार की कुछ जमीन अच्छे पैसों में बिकी थी, इसलिए वह जम कर शराब पीने लगा था. बाद में सुनीता को भी उस ने अपने रंग में रंग लिया था. लगातार ज्यादा शराब पीने से रामकुमार की बड़ी आंत में कैंसर हो गया, जिस से उस की मौत हो गई. सुनीता को पति के मरने का कोई गम नहीं हुआ, इस के बाद वह और भी स्वच्छंद हो गई. इलाके के कई युवकों से उस के नाजायज संबंध बन गए.

शराब पी कर वह रात में अपने किसी प्रेमी को बुला लेती. बड़ी बेटी का विवाह रामकुमार के सामने ही हो चुका था. छोटी बेटी ज्योति ने मां की अय्याशी पर लगाम लगाने की कोशिश की तो उस ने उस का विवाह कप्तान सिंह से कर के उसे दूर कर दिया. कप्तान सिंह सोनीपत में संगमरमर का व्यापार करता था. वह भी पक्का शराबी था. शराब पी कर वह ज्योति से मारपीट करता था. पति से तंग आ कर वह मायके आ कर रहने लगी. सुनीता के अवैध संबंध अपने सगे देवर राजेश से भी थे. शादीशुदा राजेश की नजर सुनीता की संपत्ति पर थी. इसलिए वह उसे दूसरी पत्नी के रूप में रखना चाहता था.

कप्तान का परिवार खानदानी और रईस था. कप्तान और घर वालों को सुनीता के चालचलन की जानकारी हो चुकी थी, इसलिए कप्तान के मातापिता नहीं चाहते थे कि ज्योति मायके में रहे. उन्हें इस बात का अंदेशा था कि सुनीता कहीं ज्योति को भी अपनी तरह न बना दे. इसलिए उन्होंने ज्योति को लाने के लिए कप्तान और छोटे बेटे अमित को कई बार रनहौला भेजा.

मांबेटी ने दोनों भाइयों को हर बार अपमानित कर के भगा दिया था. कप्तान और उस के घर वालों को सुनीता की हर खबर मिलती रहती थी. लोग उस की अय्याशी के किस्से सुना कर उन की हंसी उड़ाते थे. इस से अमित का खून खौल उठता था. वह अकसर भाई से कहा करता था कि उस की सास की वजह से उन लोगों की बड़ी बदनामी हो रही है. देखना एक दिन वह उसे मार देगा.

एक दिन अमित सुनीता के घर गया और सुनीता को काफी समझाया. यही नहीं, उस ने चेतावनी भी दी कि वह सुधर जाए वरना अंजाम बुरा होगा. सुनीता ने उस की धमकी पर गौर करने के बजाय उसे धक्के मार कर घर से भगा दिया. अपमानित हो कर अमित घर तो लौटा आया, लेकिन उस ने तय कर लिया कि वह उसे जीवित नहीं छोड़ेगा. अपने दोस्त सुमित शर्मा के साथ मिल कर उस ने सुनीता की हत्या की योजना बना डाली.

रोज की तरह 6 अगस्त, 2016 की रात करीब 12 बजे अमित सुमित शर्मा को ले कर सुनीता के घर पहुंचा. सुनीता ने गुस्से में कहा, ‘‘इतनी रात को तुम लोग यहां क्या लेने आए हो?’’

अमित उसे धक्का दे कर अंदर ले गया तो नशे में धुत सुनीता उसे गालियां देने लगी. दूसरी मंजिल की छत पर शराब पी रहे राजेश को पता चला कि अमित आया है तो वह भी अमित को ऊपर से गालियां देने लगा. अमित का पारा चढ़ गया. वह छत पर पहुंचा और राजेश के चेहरे पर घूंसे मारने लगा.

सुमित भी ऊपर पहुंचा. वहां रखा हथौड़ा उठा कर पूरी ताकत से उस ने राजेश के सिर पर मारा, जिस से उस का सिर फट गया और थोड़ी देर में उस की मौत हो गई. सुनीता डर कर नीचे अपने कमरे की ओर भागी तो अमित और सुमित भी उस के पीछे दौड़े. सुमित ने बरामदे में सुनीता को दबोच लिया. अमित ने रसोई से सब्जी काटने वाली छुरी ला कर सुनीता का गला रेत दिया. सुनीता भी कुछ देर में मर गई.

इस के बाद अमित ने कहा, ‘‘सुमित, अपना फोन देना. पुलिस को हमारी लोकेशन का पता न चले, इसलिए मैं अपना फोन नहीं लाया.’’

अमित की नजर बैड पर रखे सुनीता के मोबाइल पर गई तो उस ने फोन उठा कर बड़े भाई कप्तान का नंबर मिला कर कहा, ‘‘मैं ने उस कुलटा को सबक सिखा दिया है.’’

इस के बाद सुमित के साथ मकान से बाहर आया और पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुंचा, जहां से सुबह 5 बजे ट्रेन से सोनीपत चला गया. अमित निश्चिंत था कि किसी को पता नहीं चलेगा कि राजेश और सुनीता की हत्या किस ने की है मगर सुनीता की हत्या उस ने की है, लेकिन सुनीता के फोन से कप्तान को फोन कर के उस ने जो भूल की, उसी ने उसे कानून के फंदे में फंसा दिया.

8 अगस्त को पुलिस ने इस दोहरे हत्याकांड का मुकदमा अमित और सुमित के खिलाफ दर्ज कर न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. चूंकि कप्तान हत्याकांड में शामिल नहीं था, इसलिए पुलिस ने उसे छोड़ दिया. मामले की जांच एस.एस. राठी कर रहे हैं.

मामी की बेवफाई : लता बनी परिवार की बर्बादी का कारण

छाया : सोहेब मलिक

19वर्षीया काजल बेचैन हो कर अपने घर में टहल रही थी. वह बारबार रो रहे अपने छोटे भाई शिवम को चुप कराती थी, मगर शिवम मां को याद कर के बारबार रोने लगता था.

हरिद्वार जिले के गांव हेतमपुर की रहने वाली काजल व शिवम की मां लता चौहान (38) गत शाम को पास के ही कस्बे बहादराबाद में सब्जी खरीदने के लिए घर से निकली थी, मगर आज तक वह वापस घर नहीं लौटी थी.

उस का मोबाइल भी स्विच्ड औफ आ रहा था. मां के वापस न लौटने व मोबाइल के स्विच्ड औफ होने से काजल व शिवम का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था. दोनों भाईबहन पिछली शाम से ही अपने सभी रिश्तेदारों को फोन कर कर के अपनी मां के बारे में जानकारी कर रहे थे, मगर उन की मां के बारे में सभी रिश्तेदारों ने मोबाइल पर अनभिज्ञता जताई.

इस के बाद सूचना पा कर कुछ रिश्तेदारों व कुछ पड़ोसियों का भी उन के घर पर आना शुरू हो गया था. सभी भाईबहन को दिलासा दे कर चले जाते.

इसी प्रकार 3 दिन बीत गए थे, लेकिन काजल व शिवम को अपनी मां के बारे में कोई भी जानकारी नहीं मिली. इस के बाद अब उन के रिश्तेदार काजल पर लता की गुमशुदगी थाने में दर्ज कराने पर जोर देने लगे. लेकिन थाने जाने के नाम से काजल को एक अंजाना सा डर लग रहा था.

वह 14 जून, 2021 का दिन था. आखिर उस दिन काजल हरिद्वार के थाना सिडकुल पहुंच ही गई. वह थानाप्रभारी लखपत सिंह बुटोला से मिली और उन्हें अपनी मां लता चौहान के गत 4 दिनों से लापता होने की जानकारी दी.

जब थानाप्रभारी बुटोला ने काजल से उस के पिता के बारे में पूछा तो काजल ने बताया, ‘‘सर पिछले 2-3 सालों से मेरे पिता चंदन सिंह नेगी व मां लता चौहान के बीच अनबन चल रही है. मेरे पिता फरीदाबाद (हरियाणा) में रह कर ड्राइवरी करते हैं. यहां पर 2 साल पहले मेरे फुफेरे भाई अंकित चौहान ने हमें एक मकान खरीद कर दिया था. इस मकान में हम तीनों रहते हैं. घर से चलते समय मेरी मां हरे रंग का सूट सलवार व पैरों में सैंडिल पहने थी.’’

इस के बाद काजल ने मां का मोबाइल नंबर भी थानाप्रभारी बुटोला को नोट करा दिया. फिर थानाप्रभारी के कहने पर काजल वापस घर आ गई.

काजल की तहरीर पर थानाप्रभारी बुटोला ने लता की गुमशुदगी दर्ज कर ली और इस केस की जांच एसआई अमित भट्ट को सौंप दी. लता की गुमशुदगी का केस हाथ में आते ही अमित भट्ट सक्रिय हो गए.

उन्होंने सब से पहले लता के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाने के लिए साइबर थाने से संपर्क किया था और थाने के 2 सिपाहियों को लता चौहान की डिटेल्स का पता करने के लिए सादे कपड़ों में गांव हेतमपुर में तैनात कर दिया.

उसी दिन शाम को थानाप्रभारी लखपत सिंह बुटोला ने लता की गुमशुदगी की सूचना एएसपी डा. विशाखा अशोक भडाने व एसपी (सिटी) कमलेश उपाध्याय को दी.

2 दिनों में पुलिस को लता के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स मिल गई थी. काल डिटेल्स के अनुसार 10 जून, 2021 की शाम को लता चौहान व उस के भांजे अंकित चौहान की लोकेशन हेतमपुर से सलेमपुर की गंगनहर तक एक साथ थी.

इस से पहले दोनों में बातें भी हुई थीं. इस के अलावा लता के मोबाइल पर अंतिम काल अंकित चौहान के ही मोबाइल से आई थी.

इस के कुछ समय बाद लता चौहान व अंकित चौहान की लोकेशन भी अलगअलग हो गई थी. काल डिटेल्स की यह जानकारी तुरंत ही थानाप्रभारी ने एसपी (सिटी) कमलेश उपाध्याय को दी.

एसपी उपाध्याय ने थानाप्रभारी बुटोला व एसआई अमित भट्ट को अंकित चौहान से पूछताछ करने के निर्देश दिए. बुटोला व भट्ट ने जब अंकित चौहान से संपर्क करने का प्रयास किया, तो उस का मोबाइल स्विच्ड औफ मिला.

पुलिस ने जब अंकित चौहान के बारे में जानकारी की तो पता चला कि वह लता का सगा भांजा था. अंकित मूलरूप से बिजनौर जिले के गांव मानपुर शिवपुरी का रहने वाला था. अंकित एमएससी करने के बाद किसी अच्छी नौकरी की तलाश में था.  3 साल पहले जब लता के अपने पति से संबंध बिगड़ गए थे, तब से अंकित की लता से नजदीकियां बढ़ गई थीं. इस दौरान अंकित लता व उस के दोनों बच्चों का पूरापूरा खयाल रखता था. लता के रहनेखाने से ले कर वह उन्हें हर चीज मुहैया कराता था.

यह जानकारी प्राप्त होने पर बुटोला व अमित भट्ट ने अंकित की तलाश में धामपुर व हेतमपुर में कुछ मुखबिर सतर्क कर दिए थे. विवेचक अमित भट्ट ने भी अंकित की तलाश में उस के धामपुर स्थित गांव मानपुर शिवपुरी में कई बार दबिश दी, मगर अंकित उन्हें न मिल पाया.

इसी प्रकार 9 दिन बीत गए तथा पुलिस को अंकित चौहान के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई. वह 27 जून, 2021 का दिन था. शाम के 7 बज रहे थे. तभी श्री बुटोला के मोबाइल पर उन के खास मुखबिर का फोन आया.

मुखबिर ने उन्हें बताया कि सर, जिस अंकित को तलाश कर रहे हो, वह इस समय यहां हरिद्वार के रोशनाबाद चौक पर खड़ा है. यह सुनते ही बुटोला की बांछें खिल गईं.

बुटोला ने इस मामले में विलंब करना उचित नहीं समझा. उन्होंने तुरंत अपने साथ विवेचक अमित भट्ट व फोर्स को साथ लिया और 5 मिनट में ही रोशनाबाद चौक पर पहुंच गए. मुखबिर के इशारे पर उन्होंने वहां से अंकित को हिरासत में ले लिया. वह उसे थाने ले आए.

यहां पर जब बुटोला व भट्ट ने उस से लता के लापता होने के बारे में पूछताछ की, तो पहले तो वह पुलिस को गच्चा देने की कोशिश करता रहा. वह पुलिस को बताता रहा कि लता उस की मामी अवश्य थी, मगर अब वह कहां है, उस की उसे कोई जानकारी नहीं है.

लेकिन सख्ती करने पर वह टूट गया और बोला, ‘‘साहब, अब लता इस दुनिया में नहीं है. 10 जून, 2021 की रात को मैं ने अपने दोस्त अमन निवासी कस्बा शेरकोट जिला बिजनौर, उत्तर प्रदेश के साथ मिल कर उस की

गला घोंट कर हत्या कर दी थी तथा उस की लाश हम ने गांव सलेमपुर स्थित गंगनहर में फेंक दी थी. लता को मैं घुमाने की बात कह कर सलेमपुर गंगनहर तक लाया था.’’

अंकित के मुंह से लता की हत्या की बात सुन कर थानाप्रभारी बुटोला तथा वहां मौजूद अन्य पुलिस वाले सन्न रह गए. पूछताछ में उस ने लता की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली—

अंकित गांव मानपुर में अपने पिता हरगोविंद, मां सरोज तथा छोटे भाई अनुज के साथ रहता था. उस ने बताया कि 3 साल पहले जब लता का अपने पति के साथ विवाद हुआ था तो उस दौरान उस ने ही लता की काफी मदद की थी. उसी दौरान लता उस की ओर आकर्षित हो गई थी.

लता और अंकित के बीच अवैध संबंध बन गए थे. फिर अंकित ने लता को हेतमपुर में एक मकान खरीद कर दे दिया था. सब कुछ ठीक चल रहा था कि करीब 2 महीने पहले अंकित ने लता को उस के पड़ोसी के साथ आपत्तिजनक हालत में पकड़ लिया था.

यह देख कर अंकित को गुस्सा आ गया था. गुस्से में उस ने लता को उसे खरीद कर दिया हुआ मकान अपने नाम वापस करने का कहा तो वह टालने लगी और 2 लाख रुपए की मांग करने लगी.

लता की इस हरकत से अंकित परेशान हो गया था और अंत में वह उस की हत्या की योजना बनाने लगा. यह बात उस ने अपने दोस्त अमन को बताई तो वह भी अंकित का साथ देने को राजी हो गया. दोनों ने इस की योजना बनाई.

योजना के अनुसार 10 जून, 2021 को अंकित अमन के साथ रात 8 बजे लता के घर पहुंचा था. इस के बाद उसे घुमाने की बात कह कर वह लता को ले कर गंगनहर किनारे गांव सलेमपुर पहुंचा था. उस समय वहां रात का अंधेरा छाया था.

मौका मिलने पर अमन ने तुरंत ही लता को पकड़ कर उस का गला घोंट दिया था. लता के मरने के बाद दोनों ने उस की लाश गंगनहर में फेंक दी थी. उस समय रात के 11 बज चुके थे. इस के बाद अमन वापस अपने घर चला गया था. लता का मोबाइल उस समय अंकित के पास ही था.

जब उस ने 12 जून, 2021 को मोबाइल औन किया तो उस में फोन आने शुरू हो गए थे.

तब अंकित ने उस में से सिमकार्ड निकाल कर मोबाइल व सिम को सिंचाई विभाग की गंगनहर में फेंक दिया था.

इस के बाद पुलिस ने अंकित के बयान दर्ज कर लिए और लता की गुमशुदगी के मुकदमे को हत्या में तरमीम कर दिया.

पुलिस ने इस केस में आईपीसी की धाराएं 302 व 120बी और बढ़ा दी थीं. 2 जुलाई, 2021 को पुलिस ने अंकित को अदालत में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक आरोपी अंकित जेल में ही बंद था. थानाप्रभारी लखपत सिंह बुटोला द्वारा गंगनहर में लता के शव को तलाश किया जा रहा था. दूसरी ओर पुलिस दूसरे आरोपी अमन की तलाश में जुटी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

18 टुकड़ों में मिली लाश का रहस्य

टुकड़ों में बरामद लाश की पहचान करना पुलिस के लिए टेढ़ी खीर होती है. ऐसा ही एक मामला राजधानी दिल्ली में आया. हत्यारे ने लाश के 1-2, नहीं बल्कि 18 टुकड़े कर दिए थे. जानिए हत्यारे की क्रूरता की कहानी…

पश्चिमी दिल्ली में मोहन गार्डन थाने के प्रभारी राजेश मौर्या को 72 साल की वृद्धा के लापता होने की शिकायत मिली थी. शिकायतकर्ता मोहन गार्डन में ही रामा गार्डन के रहने वाले ग्रोवर दंपति थे. वे किराए के मकान में रहते थे. लापता कविता ग्रोवर मनीष ग्रोवर की मां और मेघा की सास थीं.

थानाप्रभारी ने मामले को आए दिन की सामान्य घटना मानते हुए मनीष को समझाया कि उन की मां यहीं कहीं आसपास गई होंगी, आ जाएंगी. साथ ही सुझाव भी दिया कि वह अपनी रिश्तेदारी या जानपहचान में पता कर लें. शायद वहीं मिल जाएं! फिर भी उन्होंने मनीष की तसल्ली के लिए पूछ लिया कि उन की या घर में किसी दूसरे सदस्य की मां के साथ हालफिलहाल में कोई कहासुनी तो नहीं हुई?

मनीष ने ऐसी किसी भी बात से इनकार कर दिया. लेकिन मौर्या की निगाह जब खामोश बैठी मेघा पर गई तो उन्हें थोड़ा अजीब लगा. उन्होंने मेघा की ओर सवालिया नजरों से देखा.

मेघा झट से बोल पड़ी, ‘‘सर, जब से मैं ब्याह कर आई हूं, तब से कभी भी मैं ने सास से ऊंची आवाज तक में बात नहीं की. सासूमां भी मुझे बेटी की तरह मानती थीं. वह बिना बताए ऐसे कहीं नहीं जाती थीं.’’

‘‘आप लोगों को ऐसा क्यों लग रहा है कि कविता ग्रोवर गायब हो गई हैं? मुझे थोड़ा और विस्तार से बताइए.’’ मौर्या ने कहा.

‘‘सर, हम लोग रिश्तेदारी में एक मौत की खबर पा कर 30 जून को सिरसा चले गए थे. वहां से जब 3 जुलाई को लौटे तब घर में ताला लगा मिला. हम ने दूसरी चाबी से ताला खोला. पहले तो हम ने सोचा मां इधरउधर कहीं पड़ोस में गई होंगी. थोड़ी देर में आ जाएंगी. लेकिन…’’

मेघा बोल ही रही थी कि बीच में मनीष बोलने लगे, ‘‘सर, एक पड़ोसी ने बताया कि घर में 2 दिनों से ताला लगा हुआ था. उस के बाद से ही हमें चिंता हो गई. हम ने उन की आसपास तलाश भी की.’’

‘‘ठीक है, आप लोग गुमशुदगी की सूचना दर्ज करवा दीजिए.’’ राजेश मौर्य ने कहा.

मनीष ने सूचना लिखवाने के बाद साथ लाई मां की एक फोटो भी उन्हें दे दी और वापस अपने घर आ गए. पुलिस ने काररवाई शुरू करते हुए गुमशुदा कविता ग्रोवर की तसवीर सभी थानों में भिजवा दी.

वृद्धा की तलाश तेजी से जारी थी. 4 दिन गुजर गए थे, फिर भी कोई सुराग नहीं मिल पा रहा था. मौर्या परेशान थे. पांचवें दिन 8 जुलाई, 2021 को उन्हें मेघा का फोन आया.

उन्हें लगा मेघा उन से फिर से अपनी सासूमां की तलाश नहीं हो पाने की शिकायत करेंगी. लेकिन मेघा ने उन्हें फ्लैट में ही कविता ग्रोवर के बारे में कुछ सुराग मिलने की जानकारी दी.

यह सुन कर थानाप्रभारी भागेभागे मनीष के घर आ गए. अपने साथ एसआई अनिल कुमार और हैडकांस्टेबल रतनलाल को भी ले गए थे. मनीष बिल्डिंग में थर्ड फ्लोर पर रहते थे. वे मेघा के साथ कविता के रहने के कमरे में गए. वहां एक पलंग, एक अलमारी और बैठने के लिए 2 आरामदायक कुरसियां थीं.

‘‘कमरे के सामान को हम ने जरा भी छेड़ा नहीं है. आज जब मैं ने कमरे के बिस्तर को ध्यान से देखा. तब मुझे बिस्तर की चादर काफी सिमटी दिखी. उसे देख कर मैं कह सकती हूं कि सासूमां रात भर करवटें बदलती रही होंगी.’’ मेघा बोली.

इस पर इंसपेक्टर ने ध्यान से बिस्तर का निरीक्षण किया. उन्होंने भी अनुमान लगाया कि सामान्य तरह से सोने पर बिस्तर की सिलवटें बहुत अधिक नहीं बनती हैं. तभी उन्होंने सवाल किया, ‘‘मेघाजी, आप सास का एक बैग गायब होने की बात बता रही थीं.’’

‘‘जी हां सर, सासूमां का एक बैग गायब है, जिस में उन की ज्वैलरी और बैंक के कागजात थे. और हां, मेरी सासूमां का मोबाइल भी नहीं मिल रहा है.’’ मेघा बोली.

इस पर थानाप्रभारी मौर्या ने गंभीरता दिखाते हुए कमरे का कोनाकोना छान मारा. इस सिलसिले में बाथरूम की दीवारें संदिग्ध लगीं. कारण दीवारों को रगड़रगड़ कर धोने के निशान साफ दिख रहे थे.

ध्यान से देखने पर एकदो छोटे काले निशान अभी भी दिख रहे थे. उस की जांच के लिए फोरैंसिक टीम बुलाई गई.

जांच के लिए तमाम तरह के नमूने एकत्रित किए गए. घर के बाहर सीसीटीवी कैमरे से 30 जून और एक जुलाई की रात के फुटेज निकलवाए गए.

सीसीटीवी फुटेज में 2 बड़े बैग के साथ घर से रात को निकलते हुए 2 लोग दिखे. उन की तसवीर प्रिंट करवा कर मेघा से पहचान करवाई गई. मेघा ने देखते ही कहा कि ये दोनों उन के पड़ोसी अनिल आर्या और कामिनी आर्या हैं. उन की गैरमौजूदगी में यही सासूमां का खयाल रखते थे.

पुलिस ने बताया कि ये दोनों 30 जून की रात को 11 बजे आप के घर आए थे और सुबह साढ़े 6 बजे आप के घर से निकले थे. तब उन के पास 2 बड़े बैग थे.

अब मेघा समझ चुकी थी कि जरूर कुछ गड़बड़ है. उस ने बताया कि उन की सास के पास इतना बड़ा बैग नहीं था. फिर खुद ही सवाल किया, ‘‘बैग में क्या हो सकता है, घर का सारा सामान तो यूं ही पड़ा है.’’

तहकीकात से मालूम हुआ कि आर्या दंपति गुरुद्वारा रोड पर किराए के मकान में रहते थे. पहली जुलाई के बाद से वे नहीं दिखे.

उधर फोरैंसिक जांच की रिपोर्ट से पता चला कि बाथरूम की दीवार पर वह काले निशान खून के धब्बे थे. इस का मतलब स्पष्ट था कि कविता ग्रोवर की किसी ने हत्या कर दी.

आगे की जांच के लिए जांच टीम बनाई गई और हत्यारे की तलाश की जाने लगी. इस मामले में शक की सुई पूरी तरह से अनिल आर्या और उस की पत्नी कामिनी आर्या की तरफ घूम चुकी थी. सवाल यह था कि दोनों बैग ले कर कहां लापता हो गए?

काफी पूछताछ के बाद मालूम हुआ कि दोनों उत्तराखंड में रानीखेत के मूल निवासी हैं. उन की तलाश के लिए पुलिस टीम रानीखेत पहुंची, लेकिन वे हाथ नहीं आए. केवल इतना पता चल सका कि 3 जुलाई, 2021 को टैक्सी स्टैंड पर दिखे थे.

इसी बीच दोनों के बारे में दिल्ली के एक आटो वाले से कुछ जानकारी मिली. उस ने बताया कि दोनों उस के परमानेंट ग्राहक थे. हमेशा उस के आटो से ही कहीं भी आतेजाते थे.

आटो ड्राइवर ने बताया कि 30 जून की आधी रात को मुझे फोन कर अगले रोज सुबह आने के लिए कहा था. मैं उन के पास ठीक सवा 6 बजे पहुंच गया था. अनिल आर्या और उस की पत्नी 2 बैग घसीटते हुए ले कर आए थे. उन्होंने कहा था कि दोस्त के यहां पार्टी है, उन के लिए चिकन का बैग पहुंचाना है. और वे आटो पर सवार हो गए.

थोड़ी दूर पर ही वे नजफगढ़ के पास उतर गए. उस के बाद वे कहां गए, मालूम नहीं. पूछने पर सिर्फ इतना बताया कि उन का दोस्त यहीं गाड़ी ले कर आएगा.

पुलिस ने आटो वाले से अनिल आर्या का मोबाइल नंबर ले लिया. मोबाइल से बात नहीं बनी, लेकिन आटो और दूसरे दरजनों टैक्सी वालों से पूछताछ के बाद आर्या दंपति को उत्तर प्रदेश के बरेली से 12 जुलाई को गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें दिल्ली लाया गया. उन से गहन पूछताछ की गई.

जल्द ही दोनों ने कविता ग्रोवर की हत्या की बात स्वीकार ली. उन्होंने जो बताया, वह किसी हैवानियत से जरा भी कम नहीं था. मानवता को शर्मसार करने वाली घटना को बड़ी क्रूरता से अंजाम दिया गया.

उन्होंने स्वीकार कर लिया कि 30 जून की रात को क्याक्या हुआ था. उन्होंने कविता ग्रोवर की हत्या करने का कारण भी बताया.

इवेंट मैनेजमेंट का काम करने वाले अनिल आर्या के अनुसार उस के लालच और स्वार्थ से भरे इस हत्याकांड की नींव 2 साल पहले ही पड़ गई थी. उस ने कविता ग्रोवर से जानपहचान बढ़ा कर उन से डेढ़ लाख रुपए उधार लिए थे, जिस की मांग वह लगातार करती थीं.

अनिल ने बताया कि 30 जून, 2021 को मनीष और मेघा सिरसा चले गए थे. उसी रात वह पत्नी के साथ पूरी तैयारी के साथ कविता के पास जा पहुंचा था. कविता ग्रोवर उन दोनों को अपना हितैषी समझती थीं, इसलिए देर रात को आने पर कोई सवालजवाब नहीं किया.

उन के बीच देर रात तक इधरउधर की बातें होती रहीं. इसी बीच कविता अपनी उधारी मांग बैठीं. बात बढ़ गई. कविता ने नाराजगी दिखाते हुए कह दिया कि पैसे वापस नहीं लौटाए तो वह इस बारे में अपने बहूबेटे को बता देगी.

फिर क्या था. तब तक अनिल को भी काफी गुस्सा आ गया था. उस ने तुरंत कविता के मुंह पर जबरदस्त मुक्का जड़ दिया. वह बिछावन पर वहीं गिर पड़ीं. अनिल ने उन के सीने पर सवार हो कर साथ लाई नायलौन की रस्सी से गला घोंट डाला.

कविता की मौत हो जाने के बाद अनिल लाश को बाथरूम में ले गया और साथ लाए बड़े चाकू से लाश के 18 टुकड़े कर डाले. सारे टुकड़े उस ने 2 बड़ेबड़े बैगों में भरे. इस काम में उन दोनों को करीब 4 घंटे का समय लगा.

उस की पत्नी कामिनी ने इस में पूरा साथ दिया और उस ने बाथरूम की दीवारें साफ कीं. फिर टुकड़े ठिकाने लगाने के लिए अपने जानपहचान के आटो वाले को फोन कर बुला लिया.

आटो से वह दोनों नजफगढ़ तक आए. आटो के जाने के बाद वहीं नाले में बैग फेंक दिए. उस के बाद वह उसी रोज कविता के घर से लाए जेवरों को मुथुट फाइनैंस में गिरवी रख आए. उस से मिले 70 हजार रुपए ले कर उन्होंने अपने कुछ जेवर छुड़वाए और रानीखेत चले गए.

पकड़े जाने के डर से वह वहां 2 घंटे ही रुके. यहां तक कि अपने घर भी नहीं गए. रास्ते में ही अपने मोबाइल का सिम और हत्या में इस्तेमाल चाकू आदि सामान को फेंक दिया. फिर बरेली जा कर एक कमरा किराए पर लिया और रहने लगे.

पुलिस ने उस के बताए अनुसार न केवल थैले से लाश के टुकड़े बरामद कर लिए, बल्कि हत्या में इस्तेमाल सामान भी हासिल कर लिया.

लाश के कुल 18 टुकड़े किए गए थे, जो सड़गल चुके थे. पुलिस ने मुथुट फाइनैंस से गिरवी रखे जेवर भी हासिल कर लिए. उन की शिनाख्त मेघा ग्रोवर ने कर दी.

इस तरह अनिल और कामिनी द्वारा हत्या का जुर्म स्वीकार करने के बाद अपहरण के केस को हत्या कर लाश ठिकाने लगाने की धारा 302, 201 आईपीसी में तरमीम कर दिया गया. फिर दोनों को अदालत में पेश कर तिहाड़ जेल भेज दिया गया.

बंद बोरे का खुला राज : आशिकी में की पति की हत्या

8 जून, 2021 की बात है. आगरा के थाना सदर के सेवला में रात के 11 बजे एक आदमी कंधे पर बोरा ले कर जा रहा था. अचानक बोरे के वजन के कारण उस का पैर फिसला और वह बोरे सहित  गिर पड़ा. इस पर वहां से निकल रहे लोगों की नजरें उस आदमी की तरफ गईं.

वह किसी तरह उठा और बोरे को उठाने का प्रयास करने लगा. उसी समय बोरा खुल गया और उस में से एक हाथ बाहर निकल आया. यह देखते ही लोग उस की ओर दौड़े और उसे पकड़ लिया. बोरे को खुलवा कर देखा तो उस में एक युवक का शव था जिसे देख कर सभी के होश उड़ गए.

बोरे में युवक की लाश मिलने से वहां सनसनी फैल गई. इस घटना की सूचना तुरंत पुलिस को दे दी गई.

सूचना मिलते ही थाना सदर के थानाप्रभारी अजय कौशल अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां लोग एक व्यक्ति को पकड़े हुए थे. यह माजरा देखते ही उन्होंने वहां मौजूद लोगों से जानकारी ली. लोगों ने बताया कि यही व्यक्ति कंधे पर बोरे में किसी की लाश ले कर जा रहा था. वजन के कारण वह बोरा सहित गिर गया. बोरा खुलने से लाश के बारे में पता चला.

पुलिस ने देखा तो बोरे में एक युवक की लाश थी. उस लाश की पहचान 40 वर्षीय जूता कारीगर संजय के रूप में हुई. पुलिस ने शव की पहचान होने के बाद उस के घरवालों को सूचना दी. जानकारी होते ही परिवार में कोहराम मच गया.

इस बीच घटना की जानकारी थानाप्रभारी द्वारा अपने उच्च अधिकारियों को दी गई. सूचना मिलते ही एसपी (सिटी) रोहन प्रमोद बोत्रे वहां पहुंच गए. उन्होंने लाश का निरीक्षण किया. युवक के गले  पर चोट के निशान दिखाई दे रहे थे. मौके की जरूरी काररवाई निपटा कर पुलिस ने शव को मोर्चरी भिजवा दिया.

पुलिस पकड़े गए युवक मान सिंह को हिरासत में ले कर थाने लौट आई. थाने पर उस से पूछताछ की गई. जानकारी देने पर पुलिस ने रात में ही मृतक संजय के घर पहुंच कर उस की 35 वर्षीय पत्नी सुनीता उर्फ सुषमा से पूछताछ की.

सुनीता ने बताया कि वह दवा लेने गई हुई थी. जब लौट कर आई तो पति संजय घर पर नहीं मिले. उस ने सोचा कि कहीं गए होंगे. जब देर हो गई तो उस ने पति की तलाश शुरू की. बाद में पता चला कि उस के जाने के बाद पति की किसी ने हत्या कर दी थी.

उधर हिरासत में लिए गए युवक ने बिना कुछ छिपाए पुलिस को सच्चाई बता दी. उस ने हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. उस ने बताया कि मृतक संजय की पत्नी से उस के प्रेम संबंध हैं. पति संजय इस का विरोध करता था. हम दोनों के प्यार के बीच संजय रोड़ा बना हुआ था. वह अपनी पत्नी के साथ मारपीट करता था. मुझे भी घर आने से मना करता था. इसलिए हम दोनों ने मिल कर उस की हत्या कर दी.

वह शव को बोरे में बंद कर ठिकाने लगाने ले जा रहा था. लेकिन बोरे के गिर जाने से भेद खुल गया.

पुलिस समझ गई कि मृतक की पत्नी सुनीता इस हत्याकांड में शामिल होने के बावजूद अपने को निर्दोष बता रही है. जबकि उस के प्रेमी मान सिंह ने पुलिस को सारी हकीकत बता दी थी. पुलिस ने सुनीता को भी गिरफ्तार कर लिया और फोरैंसिक टीम को बुला लिया. टीम ने मृतक के घर से कई साक्ष्य जुटाए.

9 जून, 2021 को प्रैस कौन्फ्रैंस में एसएसपी मुनिराज जी. ने इस हत्याकांड का खुलासा करते हुए हत्या में शामिल मृतक की पत्नी सुनीता उर्फ सुषमा व उस के 38 वर्षीय प्रेमी मान सिंह की गिरफ्तारी की जानकारी दी.

संजय की हत्या के पीछे जो कहानी निकल कर आई वह 2 प्रेमियों के प्यार के बीच कांटा बनने की इस प्रकार निकली—

मृतक संजय आगरा की एक जूता फैक्ट्री में कारीगर था. वह मूलरूप से निबोहरा के मूसे का पुरा का रहने वाला है. देवरी रोड पर मकान ले कर वह परिवार सहित रहता था.

उस के परिवार में पत्नी सुनीता सुषमा के अलावा 3 बच्चे भी हैं. कुछ समय पहले संजय ने अपना मकान बेच दिया. मकान बेचने के बाद वह सेवला में किराए का मकान ले कर रहने लगा.

संजय शराब पीने का शौकीन था. वह शराब पी कर अकसर सुनीता से झगड़ा करता और उस के साथ मारपीट करता था. सुनीता की दोस्ती थाना सदर के ही टुंडपुरा के रहने वाले मान सिंह से थी. दोनों की मुलाकात कुछ महीने पहले हुई थी. दोस्ती गहरी हो गई. एकदूसरे को पसंद करने लगे.

धीरेधीरे दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. सुनीता मान सिंह के साथ कई बार पति की गैरमौजूदगी में घूमने जा चुकी थी. संजय को यह जानकारी हो गई. वह पत्नी को भलाबुरा कहता था. उस के पास कोई सबूत नहीं था. इसलिए वह मौके की तलाश में रहता था.

जब संजय पत्नी के साथ मारपीट करता तो मानसिंह बीच में पड़ कर मामला शांत करा देता. कई बार उस ने सुनीता को बचाया भी था. संजय शराब पी कर सुनीता से अभद्रता करता था. मान सिंह ने इसी बात का फायदा उठाया. सुनीता के प्रति सहानुभूति दिखाते हुए उसे अपनी बातों के जाल में फंसा लिया.

पति संजय को पत्नी की मान सिंह से दोस्ती पसंद नहीं थी. वह इस का विरोध करता था. जबकि मान सिंह व सुनीता के बीच प्रेम संबंध दिनप्रतिदिन पुख्ता होते जा रहे थे. दोनों एकदूसरे के बिना रह नहीं पाते थे. पति की आदतों से अब सुनीता को वह अपना दुश्मन दिखाई देता था.

सुनीता और मान सिंह को जब भी मौका मिलता दोनों तनमन की प्यास बुझा लेते थे.

संजय को दोनों पर शक हो गया. एक दिन संजय ने दोनों को घर में आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. इस से मान सिंह तिलमिला कर रह गया.

लेकिन वक्त की नजाकत को देखते हुए मान सिंह बिना कुछ बोले उस दिन वहां से चला गया. मान सिंह के जाने के बाद संजय ने सुनीता की पिटाई कर दी. वह दोनों के संबंधों का विरोध करने लगा. सुनीता खून का घूंट पी कर रह गई थी. रंगेहाथों पकड़े जाने से वह विरोध की स्थिति में भी नहीं थी.

संजय ने सुनीता को चेतावनी दी कि यदि मान सिंह से उस ने बात करते भी देख लिया तो दोनों को जान से मार देगा. सुनीता ने दूसरे दिन प्रेमी मान सिंह से पति द्वारा की गई पिटाई और धमकी के बारे में मोबाइल पर बताया. यह सुन कर मान सिंह का खून खौलने लगा.

तब एक दिन सुनीता और मान सिंह ने अपने प्यार की राह के रोड़े को हटाने की योजना बनाई. सुनीता ने प्रेमी का प्यार पाने के लिए पति की हत्या की साजिश रची.

घटना वाले दिन सोमवार की शाम प्रेमी मान सिंह सुनीता से मिलने उस के घर गया. उस समय संजय भी घर पर मौजूद था. मान सिंह को देखते ही उस ने कहा, ‘‘जब मना कर दिया था फिर भी तू आ गया?’’

इस पर मानसिंह ने हंसते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारे लिए तुम्हारी पसंद की चीज लाया हूं.’’ यह कहते हुए उस ने साथ लाई शराब की बोतल उसे दिखाई. मान सिंह जानता था कि संजय की कमजोरी शराब है. इसलिए वह बेधड़क घर आ गया था.

मान सिंह और सुनीता ने  संजय को जम कर शराब पिलाई. जब वह नशे में बेसुध हो गया तब दोनों ने उस के गले में दुपट्टा डाल कर कस दिया. दोनों ने गला घोट कर उस की हत्या कर दी. इस से पहले सुनीता ने बच्चों को खाना खिलाया और उन्हें कमरे में टीवी चला कर बैठा दिया. कमरे की बाहर से कुंडी लगा दी थी.

हत्या के बाद दोनों ने शव को बोरे में बंद कर दिया. सुनीता ने प्रेमी मान सिंह से पति की लाश इलाके से दूर ले जा कर किसी तालाब में फेंकने को कहा. ताकि लोगों को लगे कि पानी में डूबने से उस की मौत हुई है.

तब मान सिंह शव को बोरे में भर कर कंधे पर रख उसे फेंकने के लिए रात में ही चल पड़ा. जब वह शव को ठिकाने लगाने जा रहा था तभी रास्ते में पैर फिसलने से बोरा गिर गया और हत्या का भेद खुल गया.

प्रेमी मान सिंह द्वारा लाश फेंकने से पहले ही लोगों ने उसे रंगेहाथों दबोच लिया. आशिकी में पत्नी ने पति की हत्या करा दी थी. सुनीता को अपने पति की हत्या का कोई अफसोस नहीं था.

अपने प्यार की खातिर प्रेमी के साथ मिल कर पति की हत्या करने वाली सुनीता के चेहरे पर गिरफ्तारी के बाद भी पछतावे के भाव नहीं दिखाई दिए.

इतना ही नहीं, पति की हत्या के मामले में पकड़े जाने पर बच्चों का क्या होगा? उस ने इस बारे में भी नहीं सोचा. मगर जब उसे पता चला कि अब उस की और प्रेमी दोनों की बाकी जिंदगी जेल में कटेगी तो वह रोने लगी.

सुनीता की शादी को 10 साल से अधिक हो गए थे. 3 बच्चों में सब से बड़ा बेटा 9 साल का है. लोगों की सतर्कता के चलते पुलिस ने एक हत्या का परदाफाश घटना के कुछ घंटे बाद ही कर दिया था.

पुलिस ने आरोपियों के कब्जे से फंदा लगाने वाला दुपट्टा, मृतक का मोबाइल फोन और आधार कार्ड बरामद कर दोनों को न्यायालय में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

नफरत का खौफनाक अंजाम : परिवार आया निशाने पर

1 अक्तूबर, 2021 की रात के करीब साढ़े 11 बजे फरीदाबाद के गोठड़ा मोहब्ताबाद का रहने वाला गगन (26 वर्ष) अपने परिवार के साथ खाटू श्याम के दर्शन कर के घर लौटा था. गगन हर साल इसी समय के आसपास अपने पूरे परिवार के साथ खाटू श्याम मंदिर में दर्शन के लिए जाया करता था. उस मंदिर के प्रति उस की आस्था बहुत थी.

वह इस साल अपनी माता सुमन (50 वर्ष), बहन आयशा (30 वर्ष), छोटे भांजे सक्षम (12 वर्ष) और दोस्त राजन शर्मा के साथ मंदिर में दर्शन कर के लौटा था.

गगन राजन के साथ ही फरीदाबाद सेक्टर 55-56 में प्रौपर्टी डीलिंग और पुरानी गाडि़यों की खरीदफरोख्त का काम करता था. इस से पहले गगन अपने परिवार के साथ फरीदाबाद सेक्टर 55 में किराए पर ही रहता था. लेकिन इसी साल सितंबर में उस ने गोठड़ा मोहब्ताबाद में किराए के एक मकान में, जो कि एक पूर्व सरपंच का मकान है, वहां रहने लगा था. उस के पुराने घर से इस नए मकान के बीच करीब 30 मिनट पैदल की दूरी थी.

21 अक्तूबर को मंदिर से दर्शन कर देर रात घर लौटने की वजह से गगन ने राजन को अपने घर पर ही रुकने का आग्रह किया था, क्योंकि रात बहुत हो चुकी थी और वह अपने इलाके में देर रात होने वाली घटनाओं और वारदातों के बारे में अच्छे से जानता था.

राजन ने भी गगन की बात मान ली और वह रात में उसी के घर रुक गया. देर रात को लंबा सफर कर के लौटे सभी लोग पहले फ्रैश हुए और हलकाफुलका खाना खा कर वे सब सोने के लिए अपनेअपने कमरे में चले गए.

आयशा व उस की मां सुमन मकान में नीचे के कमरे में सोने चली गईं और गगन, राजन व सक्षम पहली मंजिल पर सोने चले गए. सब थकेहारे थे तो हर किसी को जल्दी नींद भी आ गई थी और सभी गहरी नींद में सो भी गए थे. बस सक्षम ही रात को जागा हुआ था.

नींद तो सक्षम को भी तेज आ रही थी, लेकिन वह किसी का बहुत बेसब्री से इंतजार कर रहा था. वह रात को जगे हुए अपने मम्मी के फोन में गेम खेल रहा था. रात के करीब ढाई बजे के आसपास उस का फोन बजा. इस से पहले कि फोन की घंटी हर किसी को नींद से जगा देती कि उस से पहले ही सक्षम ने तुरंत फोन उठा लिया.

यह उस के पिता नीरज चावला (35 वर्ष) का फोन था. सक्षम ने फोन उठा कर फुसफुसाते हुए कहा, ‘‘हैलो पापा.’’

नीरज अपने बेटे को पुचकारते हुए बोला, ‘‘अरे मेरा बेटा कैसा है? खाटू श्याम घूम कर आ गए सब? कैसा लगा वहां घूम कर? मजा आया?’’

सक्षम ने फिर से फुसफुसाते हुए अपने पिता के सवालों का जवाब दिया, ‘‘जी पापा. वहां तो खूब मजा आया पापा. काश! आप भी साथ होते और मजा आता. हमें तो काफी रात हो गई थी वहां से वापस आते हुए.’’

ये सुन कर नीरज ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं बेटे. सुनो, जो हमारी बीच बात हुई थी तुम्हें याद है न?’’

सक्षम ने उत्सुकता के साथ कहा, ‘‘जी पापा, मुझे याद है. आप क्या लाए हो मेरे लिए?’’

नीरज ने जवाब दिया, ‘‘वो तो सरप्राइज है मेरे बच्चे. मैं अभी तुम्हारे घर के बाहर ही तो खड़ा हूं. नीचे आ कर दरवाजा खोलो और अपना गिफ्ट ले जाओ. और हां, किसी को इस बारे में बताने की जरूरत नहीं है. ये गिफ्ट स्पैशल तुम्हारे लिए मंगवाया है बाहर से. अब जल्दी से नीचे आ कर अपना गिफ्ट ले लो. इसी बहाने मैं अपने बेटे से भी मिलूंगा.’’

अपने पिता के द्वारा लाए हुए गिफ्ट की बात सुन कर सक्षम के मन में खुशी का कोई ठिकाना नहीं था. वह तुरंत अपने बिस्तर से इस तरह से उठा कि किसी और को उस के उठने की भनक तक नहीं लगी और वह जल्द ही नीचे दरवाजे की ओर भागा.

आहिस्ता से सक्षम ने अंदर से लगी दरवाजे की कुंडी खोली और धीरे से दरवाजा खोला. उस ने देखा उस के पिता दरवाजे के ठीक सामने अपने हाथों में एक थैली लिए खड़े थे.

सक्षम के दरवाजा खोलने पर नीरज ने झुक कर उसे पहले अपने गले लगा लिया और फुसफुसाते हुए उस से पूछा, ‘‘कोई जागा तो नहीं बेटा?’’

सक्षम ने भी उसी तरह से नीरज को जवाब दिया, ‘‘नहीं पापा, कोई नहीं जागा.’’

यह सुन कर नीरज ने सक्षम के कंधे पर हाथ रखा और घर के अंदर आ गया. सक्षम को यह देख कर थोड़ा अजीब लगा. उस ने अपने पिता को रोकना चाहा, लेकिन वह कहां रुकने वाला था. उन दोनों के अंदर घुसते ही बाहर से एक और आदमी मकान में आ घुसा.

यह शख्स नीरज का दोस्त लेखराज था. लेखराज के अंदर आते ही उस ने भीतर से मुख्य दरवाजे की कुंडी बंद कर दी और भाग कर पहली मंजिल पर जा पहुंचा.

लेखराज को देखते ही इस से पहले कि सक्षम कुछ कहता, नीरज ने उस के मुंह पर हाथ रख दिया और उसे अपनी गोद में उठा कर उस कमरे की ओर चल पड़ा, जहां पर उस की पत्नी आयशा और उस की सास सुमन सोए हुए थी.

एक तरफ नीचे ग्राउंड फ्लोर पर नीरज अपने बेटे के साथ था तो दूसरी ओर लेखराज पहली मंजिल पर गगन और राजन के कमरे में था. लेखराज ने अपनी कमर से एक देसी तमंचा निकाल कर सोते हुए राजन पर गोली चला दी.

गोली चलने की आवाज सुन कर गगन नींद से जाग गया और उस की नजर लेखराज और उस के हाथ में तमंचे पर पड़ी. गगन के अवचेतन दिमाग ने खुद को बचाने के लिए बिस्तर किनारे रखे फोन को लेखराज की ओर जोर से फेंका. वह फोन लेखराज के चेहरे पर जा कर लगा और कुछ पलों के लिए उस का ध्यान गगन से हट गया.

इतने में गगन भाग कर दरवाजे की ओर से निकलने ही वाला था कि लेखराज ने गगन पर पीछे से गोली चला दी, जोकि उस की कमर पर लगी. गोली लगते ही वह गिर पड़ा.

गगन के शरीर से निकला खून पूरे फर्श पर फैल चुका था, जिसे देख लेखराज को लगा कि वह मर गया है, क्योंकि गगन के शरीर से किसी तरह की कोई हरकत नहीं हो रही थी.

पहली मंजिल पर गोली चलने की आवाज सुन कर 12 साल का छोटा बच्चा इस से पहले कि कुछ समझ पाता, नीरज ने उसे नीचे उतार दिया. फिर उस ने अपने थैले में से तमंचा बाहर निकाल कर अपनी सास सुमन पर निशाना साधते हुए 2 गोलियां चला दीं.

नीरज की पत्नी आयशा जो गहरी नींद में सो रही थी, बाहर होने वाले शोर से वह भी जाग गई. इस से पहले कि वह कुछ समझ पाती, नीरज ने मौका देख कर एक गोली अपनी पत्नी की छाती पर दाग दी. गोली मारने के बाद नीरज ने इधरउधर देखा तो सक्षम वहां मौजूद नहीं था.

नीरज ने जब उसे अपनी गोद से उसे नीचे उतारा था, तब वह भाग कर बाथरूम में चला गया था. उस ने खुद को बाथरूम में बंद कर लिया. सक्षम इतनी दहशत में था कि उस ने बाथरूम में किसी तरह की कोई हरकत करने की हिम्मत नहीं दिखाई.

इतने में लेखराज अपना काम पूरा कर के नीचे आया और उस ने नीरज से पूछा, ‘‘काम हो गया, अब आगे क्या करना है?’’

नीरज ने अपने थैले में से 2 धारदार चाकू निकाले और एक उस के हाथ में थमाते हुए बोला, ‘‘ये दोनों किसी भी कीमत पर जिंदा नहीं रहने चाहिए. इन्होंने मेरा जीना हराम कर दिया है, इसलिए इन्हें पूरी तरह से खत्म कर दो.’’

कहते हुए लेखराज और नीरज दोनों सुमन और आयशा की लाश की ओर बढ़े और दोनों उन के शरीर पर चढ़ कर उन के शरीर पर लगातार चाकू से वार करने लगे. उन्होंने उन का शरीर गोदने के बाद महसूस किया कि मकान में उन का नौकर भी रहता है, उस नौकर को भी उन्होंने ठिकाने लगाना जरूरी समझा. उसी समय उन्होंने महसूस किया कि कोई मकान का मेन दरवाजा खोल रहा है.

वह उस मकान में काम करने वाला नौकर शिवा ही था. उसे देख कर नीरज उस की ओर अपना तमंचा ले कर दौड़ा. शिवा अपनी जान बचाने के लिए तेजी से भागा और दीवार फांदते हुए वह मकान के इर्दगिर्द खाली पड़े प्लौट को पार करते हुए भाग निकला.

इस बीच नीरज ने उस की ओर निशाना साध कर गोली भी चलाई थी, लेकिन गोली के तमंचे में फंस जाने की वजह से शिवा अपनी जान बचाने में कामयाब रहा. नीरज और लेखराज सक्षम को छोड़ घर में सभी को गोली मारने के बाद तुरंत वहां से नौ दो ग्यारह हो गए.

नीरज और लेखराज ने सभी को गोली तो मार दी थी, लेकिन उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि गगन को गोली लगने के बाद भी वह बच जाएगा. गगन को उस की कमर पर गोली लगी थी, उस का खून भी काफी बह चुका था लेकिन वह जिंदगी और मौत के बीच लटक गया था.

नीरज और लेखराज के वहां से निकल जाने के बाद सक्षम रोताबिलखता एकएक कर अपने परिवार के पास जा कर उन्हें देख रहा था, तभी उस ने देखा कि उस के मामा के शरीर में हरकत हो रही थी. यह देख कर फोन ले कर वह भागते हुए अपने मामा गगन के पास पहुंचा.

गगन ने 100 नंबर डायल कर पुलिस को फोन लगाया और पुलिस को कराहती आवाज में जल्द ही अपने घर पर आने के लिए कहा.

सुबह के करीब साढ़े 3 बज रहे थे, जब इस घटना की सूचना फरीदाबाद में धौज थाना क्षेत्र को मिली. धौज थाना गगन के नए घर से मात्र 5 मिनट की दूरी पर ही था.

मामले की सूचना मिलते ही धौज थानाप्रभारी दयानंद अपनी टीम के साथ कुछ ही देर में गगन के घर जा पहुंचे और उन्होंने सब से पहले मकान में गगन को ढूंढ निकाला और उसे पास के अस्पताल ले गए. उसी दौरान उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों को इस मामले की सूचना दी.

सूचना मिलने पर थोड़ी देर में जिले के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी और फोरैंसिक टीम भी वहां पहुंच गई. फोरैंसिक टीम द्वारा अपना काम निपटाने के बाद पुलिस ने दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए भेज दीं.

इस के बाद उच्चाधिकारियों के निर्देश पर थानाप्रभारी ने जांच शुरू कर दी. पुलिस ने सक्षम से उस के पिता का मोबाइल नंबर ले कर टैक्निकल टीम को दे दिया. टीम ने ट्रेसिंग कर के नीरज की लोकेशन का पता लगा लिया.

घटना के 9 घंटे बाद डीएलएफ और धौज की क्राइम ब्रांच की टीमों ने 22 अक्तूबर को एनआईटी फरीदाबाद से दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया.

इस हत्या के दोनों आरोपियों को गिरफ्तार करने के बाद उन से पूछताछ के दौरान इस पूरे हत्याकांड की वजह सामने आई. दरअसल, नीरज और उस की पत्नी आयशा के जीवन में सब कुछ सही चल रहा था, लेकिन नीरज के मन में आयशा को ले कर उसे शक होता था.

आयशा अकसर अपने बचपन के दोस्तों के साथ फोन पर बातचीत किया करती थी. कई बार वह बातों में इतनी मशगूल हो जाती थी कि आयशा का ध्यान नीरज पर होता ही नहीं था.

इस के अलावा आयशा खुले दिमाग वाली युवती थी. दोस्तों के संग बातचीत, हंसीमजाक करना उसे बेहद पसंद था. लेकिन कहीं न कहीं आयशा का इस तरह का बर्ताव करना नीरज को पसंद नहीं आता था. इसी को ले कर अकसर नीरज और आयशा के बीच झगड़े होते रहते थे.

दोनों के बीच झगड़े इतने बढ़ जाते थे कि उन के बीच सुलह के लिए आयशा के मायके वालों को आना पड़ता था.

इसी बीच पिछले साल, नीरज ने आयशा के भाई यानी अपने साले गगन से 10 लाख रुपए उधार भी मांगे थे. एनआईटी फरीदाबाद का रहने वाला नीरज अपने इलाके में एक टेलर मैटेरियल की दुकान खोलना चाहता था, जिस के लिए उसे पैसों की जरूरत थी.

उस ने गगन से पैसे ले कर साल भर में वापस करने की बात भी कही थी. लेकिन जब एक साल से ज्यादा का समय हो गया तो गगन नीरज को पैसे लौटाने के लिए कहने लगा.

कोरोना की वजह से धंधा नहीं चलने के कारण नीरज के पास गगन को लौटाने के लिए पैसा इकट्ठे नहीं हो सके. वह गगन को आज कल कह कर हर दिन पैसे लौटाने की बात किया करता, लेकिन वह पैसों का जुगाड़ नहीं कर पा रहा था. ये बात कहीं न कहीं गगन को भी समझ आ गई थी कि उस के जीजा के पास पैसे नहीं है.

जब यह बात उस ने अपने घर वालों को बताई तो आएशा की मां सुमन ने नीरज को ताना मारना शुरू कर दिया. सुमन और गगन के साथसाथ आएशा को जब कभी मौका मिलता, वे सब उसे पैसे लौटाने के लिए कहते, नहीं तो उसे किसी न किसी बहाने ताने मारते थे.

यही नहीं, पिछले एक साल से आयशा अपने बेटे सक्षम के साथ अपने मायके में ही थी. दोनों के बीच झगड़े के बाद आयशा अपने बेटे को ले कर अपने मायके रहने के लिए आ गई थी. और यह बात नीरज को काफी खटकने लगी थी.

ये सब देखते हुए और इन सभी चीजों से परेशान हो कर उस ने इस हत्याकांड की प्लानिंग अपने दिमाग में ही रच ली थी.

पूरी प्लानिंग के चलते नीरज ने बीते कुछ दिनों से ससुराल के लोगों को राजीनामे के बहाने अपनी बातों में फंसाना शुरू कर दिया, ताकि उस पर कोई शक न कर सके.

इसी के चलते 15-16 दिन पहले नीरज ससुराल के लोगों से राजीनामा करने के बहाने मोहब्ताबाद गया और पूरी कोठी को अपनी नजरों में उतार लिया था.

उस ने इस हत्याकांड को अंजाम देने के लिए पैसों का लालच दे कर अपने करीबी दोस्त लेखराज को भी इस में शामिल कर लिया था.

इस हत्याकांड को अंजाम देने के लिए नीरज ने एक महीने पहले हापुड़ से 35 हजार रुपए में 2 देसी तमंचे, 2 चाकू और कुछ कारतूस खरीद लिए थे.

नीरज ने कभी न तो हथियार रखे और न ही चलाए थे, लेकिन पत्नी के चरित्र और पैसे के लेनदेन के चलते तीनों की हत्या करने के लिए उस ने तमंचा चलाना भी सीख लिया था. फिर उस ने 21 अक्तूबर, 2021 की रात को घटना को अंजाम दे दिया.

कोई भी जीवित न बचे, इसलिए नीरज और लेखराज ने गोली चलाने के साथसाथ चाकुओं से भी वार किए.

सास सुमन को एक गोली लगी और चाकू के कई वार किए गए. आयशा को 2 गोली लगी थीं. राजन शर्मा को एक गोली सीने में लगी, जबकि गगन के कमर में गोली लगी थी.

नीरज को अनुमान था कि इस गोली से गगन की मौत हो जाएगी. लेकिन वह जीवित बच गया. दोनों आरोपियों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

मदहोश बाप : मौत के निशाने पर आया बेटा

अस्पताल में दुष्यंत की मौत हो चुकी थी. उस का मंझला भाई आशू लाश को घर लाने का प्रबंध कर रहा था. मां रेखा और भाभी दीपिका को उस ने घर भेज दिया था. घर में पुलिस पूछताछ कर रही थी. रेखा रो रही थी, उस की छोटी बेटी भी. बहू दीपिका का रोरो कर बुरा हाल था.

तभी रेखा का छोटा बेटा विमलेश आया और पुलिस इंसपेक्टर के सामने खड़ा हो गया. वह अपनी अंटी से पिस्तौल निकाल कर इंसपेक्टर की ओर बढ़ाते हुए मुसकरा कर बोला, ‘‘मैं ने मारा है भाई को, इसी से.’’इंसपेक्टर ने उस की ओर हैरानी से देखा और रूमाल में लिपटी पिस्तौल ले ली. साथ ही पास खड़े सिपाही से कहा, ‘‘गिरफ्तार कर लो इसे.’’

घर में मोहल्ले वाले भी थे, रिश्तेदार भी. यह देख कर सब हैरान रह गए. रेखा और बहू दीपिका तक का रोना थम गया था. किसी की समझ में नहीं आया कि यह सब क्या है. पुलिस ने विमलेश को थाने भेज दिया, क्योंकि वह जुर्म भी स्वीकार कर रहा था और उस के पास हत्या में इस्तेमाल किया गया हथियार भी था. रेखा का पति, बच्चों का बाप यानी घर का मालिक वीरेंद्र कौशिक घर में नहीं था. वहां मौजूद लोगों का कहना था कि बड़े बेटे दुष्यंत पर गोली वीरेंद्र ने खुद चलाई थी, जिस से उस की  मौत हुई.

दुष्यंत के गिरते ही वीरेंद्र और विमलेश बाहर भाग गए थे. अब विमलेश तो लौट आया पर वीरेंद्र का कोई पता नहीं था. रेखा का कहना था कि पति ने दुष्यंत पर ही नहीं, उस के पांव के पास भी गोली चलाई थी, जो लगी नहीं थी. दुष्यंत पर ससुर वीरेंद्र द्वारा गोली चलाने की बात दुष्यंत की पत्नी दीपिका भी कह रही थी.

इस का मतलब गोली वीरेंद्र कौशिक ने ही चलाई थी. लेकिन वह फरार था. उस ने न जाने क्यों पिस्तौल दे कर अपने नाबालिग बेटे विमलेश को आगे कर दिया था. आश्चर्य की बात यह कि उस ने जुर्म भी स्वीकार कर लिया था. गोली क्यों चलाई गई, यह अभी रहस्य ही बना हुआ था.

वीरेंद्र कौशिक के बारे में पता चला कि वह कांठ रोड स्थित एक डाक्टर के यहां सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करता है. वहां पुलिस भेजी गई, लेकिन वह नहीं मिला.

मृतक दुष्यंत मुरादाबाद की तीर्थंकर यूनिवर्सिटी के मैडिकल कालेज में वार्डबौय की नौकरी करता था. उस की ड्यूटी कोरोना वार्ड में चल रही थी. एक साल पहले 6 जनवरी, 2020 को उस की शादी दीपिका के साथ हुई थी. दीपिका का परिवार लाइनपार सूर्यनगर में रहता था. जबकि वीरेंद्र कौशिक का घर लाइनपार हनुमाननगर में था. शादी के बाद से दुष्यंत और दीपिका दोनों खुश थे.

थाना मझोला को दुष्यंत को गोली लगने और उस की मृत्यु की खबर एपेक्स अस्पताल से मिली थी. इस के तुरंत बाद थाना पुलिस अस्पताल और मृतक के घर पहुंच गई थी. थाना मझोला के क्राइम इंसपेक्टर अवधेश कुमार ने यह सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को भी दे दी थी.

सूचना पा कर मुरादाबाद के एसपी (सिटी) अमित कुमार आनंद और एएसपी कुलदीप सिंह गुनावत एपेक्स अस्पताल पहुंच गए, जहां दुष्यंत को भरती कराया गया था. पुलिस ने प्राथमिक जांच और लिखापढ़ी के बाद दुष्यंत के शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

इस बीच मृतक दुष्यंत की पत्नी दीपिका ने थाना मझोला में ससुर वीरेंद्र कौशिक और देवर विमलेश के खिलाफ दुष्कर्म और हत्या की रिपोर्ट दर्ज करा दी. उस ने यह भी बताया कि  उस का ससुर वीरेंद्र कौशिक दबंग इंसान है. उस के पास एक लाइसैंसी पिस्तौल और एक बंदूक है.

शाम तक पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई. गोली बहुत करीब से मारी गई थी जो दुष्यंत के पेट में लगी थी और पेट को चीरते हुए दाईं ओर से बाहर निकल गई थी. पुलिस अफसरों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो 2 खाली खोखे और एक बुलेट मिला. सीएफएसएल टीम ने घटनास्थल से सबूत जुटाए.

छानबीन में जो कहानी सामने आई, वह एक बेगैरत इंसान की शैतानी करतूत से जुड़ी थी. वीरेंद्र कौशिक अपनी पत्नी रेखा, 3 बेटों दुष्यंत, विमलेश, आशू और एक बेटी के साथ हनुमान नगर में रहता था. वहां ज्यादातर दूरसंचार, एफसीआई, बैंक कर्मचारियों, टीचर्स और रिटायर्ड लोगों के घर हैं. वह खुद सिक्योरिटी गार्ड था. उस के बड़े बेटे दुष्यंत की एक साल पहले दीपिका से शादी हो गई थी.

25 नवंबर, 2020 को एक करीबी रिश्तेदारी में शादी थी. रेखा विमलेश, आशू और अपनी बेटी के साथ शादी में चली गई. उन दिनों दुष्यंत की रात की ड्यूटी चल रही थी. खाना खा कर वह भी ड्यूटी पर चला गया था. घर में दीपिका और उस का ससुर वीरेंद्र रह गए.

रात करीब 11 बजे वीरेंद्र कौशिक दबेपांव दीपिका के कमरे में घुसा. उस वक्त वह गहरी नींद में थी. वीरेंद्र ने सोती हुई दीपिका को दबोच लिया. आंखें खुलीं तो दीपिका ने ससुर का भरपूर विरोध किया. कहा भी कि ससुर तो पिता समान होता है, उसे ऐसी गिरी हरकत शोभा नहीं देती. लेकिन वीरेंद्र पर वासना का भूत सवार था. उस ने दीपिका का मुंह दबोच कर उस की इज्जत तारतार कर दी.

बाद में दीपिका ने धमकी दी, ‘‘घर वाले आएंगे, दुष्यंत आ जाएंगे तो मैं तुम्हारी इस हरकत के बारे में सब को बताऊंगी. मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहोगे तुम. मैं छोड़ूंगी नहीं तुम्हें.’’

वीरेंद्र कौशिक ने एक हजार रुपए निकाल कर दीपिका के पास रखते हुए हंस कर कहा, ‘‘रख ले और अपना मुंह बंद रखना. जो चीज मुझे पसंद थी, मैं ने हासिल कर ली.’’

दीपिका ने 5-5 सौ के दोनों नोट ससुर के मुंह पर फेंक कर मारे और गुस्से से फट पड़ी, ‘‘कल पता चलेगी तुझे तेरी औकात. मैं चुप रहने वालों में नहीं हूं.’’

‘जो मन आए करना,’’ वीरेंद्र हंसते हुए बोला, ‘‘कौन करेगा तेरी बात पर यकीन? तेरी ही बदनामी होगी, मैं ससुर हूं तेरा. लोग तुझे झूठी कहेंगे. रहीबची कमी मैं पूरी कर दूंगा, तेरे 10 लक्षण गिना कर. झूठ बोलने में क्या जाता है.’’  उस रात दीपिका को नींद नहीं आई. वह रात भर रोती रही. कोई न उसे देखने वाला था, न सांत्वना देने वाला.

26 नवंबर, 2020 की सुबह दुष्यंत ड्यूटी से घर लौटा तो दीपिका उस से लिपट कर खूब रोई. उस ने रात की पूरी बात पति को बता दी. सुन कर वह गुस्से से आगबबूला हो गया. उस ने पिता को खूब खरीखोटी सुनाई.

तब तक घर के बाकी सदस्य भी लौट आए थे. दुष्यंत की मां रेखा ने सुना तो उस ने भी पति वीरेंद्र को खूब गालियां दीं. उस ने कहा, ‘‘जब यह बात परिवार वालों को पता चलेगी तो किसी को क्या मुंह दिखाएगा?’’

दीपिका रोए जा रही थी. दुष्यंत ने उसे चुप कराया, सांत्वना दी. फिर बोला, ‘‘मेरा बाप मेरे लिए मर चुका. अब हम परिवार के साथ नहीं रहेंगे. कहीं अलग किराए का कमरा ले कर रह लेंगे.’’

उसी दिन वीरेंद्र ने अपना सामान ऊपर की मंजिल पर शिफ्ट कर लिया. खानेपीने का इंतजाम भी अलग. इस बात को ले कर अगले 3 दिन तक वीरेंद्र के घर में झगड़ा चलता रहा. दुष्यंत ने फिर पिता को धमकी दी, ‘‘मैं तुम्हारी करतूत पूरे परिवार को बताऊंगा. पुलिस में भी रिपोर्ट लिखाऊंगा. छोड़ूंगा नहीं तुम्हें.’’

रेखा ने भी कहा, ‘‘मैं तेरी करतूत तेरे बहनबहनोई को बताऊंगी.’’घर में केवल छोटे बेटे विमलेश के अलावा सभी को दीपिका की बात पर यकीन था. दरअसल, वीरेंद्र दबंग आदमी था. किसी से न डरने वाला. विमलेश के वह काफी नजदीक था. पिता की तरह बदतमीज और दबंग स्वभाव का विमलेश कोई गलती करता था तो वीरेंद्र उस पर परदा डाल देता था.

वह बाहर किसी से लड़ कर आता या कोई खुराफात कर के लौटता तो वीरेंद्र उसे कुछ कहने या समझाने के बजाय शिकायत करने वालों से भिड़ जाता था. बापबेटे की यही कैमिस्ट्री नजदीकियों का कारण थी.

वीरेंद्र के घर में 3 दिनों से जो झगड़ा चल रहा था, पड़ोसी भी देखसुन रहे थे. लेकिन दीपिका से दुष्कर्म की बात किसी को पता नहीं थी. वीरेंद्र की पासपड़ोस के लोगों से बातचीत भी नहीं थी, इसलिए उस की दबंगई के कारण किसी को पूछने की हिम्मत नहीं थी.

जबकि मंझला बेटा आशू इस से सहमत था कि उस के पिता ने दुष्कर्म किया है. उस ने कह भी दिया था, ‘‘आज से बाप बेटे का रिश्ता खत्म.’’28 नवंबर को वीरेंद्र और दुष्यंत के बीच खूब कहासुनी हुई. बात हाथापाई तक पहुंच गई. बेटे ने बाप पर हाथ छोड़ दिया. इस पर वीरेंद्र का चेहरा गुस्से से लाल हो गया. उस ने अंटी से पिस्तौल निकाल कर पहले अपनी पत्नी रेखा पर गोली चलाई जो उस के पैर के पास से निकल गई. यह देख कर दुष्यंत बोला, ‘‘मेरी मां को क्यों मार रहा है. हिम्मत है तो मुझे मार. मैं नहीं डरता तेरी पिस्तौल से.’’

वीरेंद्र तैश में था, उस ने सामने खड़े दुष्यंत के पेट को निशाना बना कर गोली चला दी. खून के फव्वारे के साथ दुष्यंत निढाल हो कर फर्श पर गिर पड़ा. जरा सी देर में होहल्ला मच गया.पासपड़ोस के लोगों ने वीरेंद्र और उस के छोटे बेटे को जल्दबाजी में बाहर भागते देखा. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि वीरेंद्र के घर में गोलियां क्यों चलीं और शोर और रोनाधोना क्यों हो रहा है.

कुछ लोग घर में गए तो पता चला दुष्यंत को गोली लगी है. आशू कुछ लोगों केसाथ दुष्यंत को पास के एपेक्स अस्पताल ले गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. अस्पताल ने ही यह सूचना पुलिस को दी और पुलिस अस्पताल पहुंची.

बाद में मृतक दुष्यंत की पत्नी ने थाना मझोला में ससुर वीरेंद्र कौशिक और देवर विमलेश के खिलाफ दुष्कर्म और हत्या की रिपोर्ट लिखवाई.

उधर वीरेंद्र घर से भाग कर छोटे बेटे विमलेश के साथ मुरादाबाद कचहरी जा पहुंचा था. उस का इरादा आत्मसमर्पण करने का था. इस बारे में उस ने वकीलों से बात की. लेकिन तब तक थाना मझोला में एफआईआर दर्ज नहीं हुई थी. ऐसे में अदालत में कागजात पेश नहीं किए जा सकते थे. इस पर वीरेंद्र ने वकीलों से पूछा कि वह कैसे बच सकता है.

वकीलों ने उसे राय दी कि यह तभी संभव है जब वह खुद की जगह अपने नाबालिग बेटे विमलेश को पुलिस के सामने पेश कर दे. नाबालिग होने की वजह से उसे सजा भी कम होगी और पुलिस टौर्चर भी नहीं करेगी. तब वीरेंद्र ने विमलेश को समझा कर पिस्तौल दिया और घर भेज दिया. घर जा कर विमलेश ने पिस्तौल पुलिस को सौंप कर दुष्यंत की हत्या की बात स्वीकार कर ली. यह 11 बजे घटी घटना के 2 घंटे बाद 1 बजे की बात है. यह सब मोहल्ले वालों के सामने हुआ. जब विमलेश को गिरफ्तार कर थाना मझोला भेजा गया तब वह मुसकरा रहा था, जैसे उसे बड़े भाई की हत्या से कोई फर्क न पड़ा हो.

विमलेश से वीरेंद्र के बारे में जानकारी मिली तो पुलिस ने कचहरी में दबिश दी लेकिन वीरेंद्र नहीं मिला.  हकीकत सामने आई तो पुलिस को मामले की गंभीरता का पता चला. तब आईजी मुरादाबाद रेंज रमित शर्मा ने एसएसपी प्रभाकर चौधरी को आदेश दिया कि वीरेंद्र कौशिक को तुरंत गिरफ्तार कराएं.

वीरेंद्र पुलिस की पकड़ में नहीं आया तो दीपिका ने एसएसपी प्रभाकर चौधरी को लिखित प्रार्थनापत्र दिया कि उस की जान को खतरा है. उस का ससुर उस की भी हत्या कर सकता है, दीपिका अपने मायके सूर्यनगर चली गई थी. एसएसपी के आदेश पर उस के मायके में पुसिस तैनात कर दी गई.

एसएसपी प्रभाकर चौधरी ने 2 पुलिस टीमों का गठन किया. एक टीम को एसपी (सिटी) अमित कुमार आनंद के नेतृत्व में काम करना था और दूसरी को एएसपी कुलदीप सिंह गुनावत के नेतृत्व मे. दोनों टीमों ने तुरंत काम करना शुरू कर दिया.

मोबाइल लोकेशन से पता चला कि वीरेंद्र लाइनपार कहीं छिपा है लेकिन पुलिस जब वहां पहुंची तो वह फरार हो गया. फिर भी पुलिस ने उस का पीछा नहीं छोड़ा. आखिर मोबाइल लोकेशन से उसे 30 नवंबर को रामपुर के होटल टूरिज्म से गिरफ्तार कर लिया गया.

गिरफ्तार कर उसे मुरादाबाद लाया गया. पूछताछ में उस ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. 1 दिसंबर, 2020 को उसे अदालत पर पेश कर के जिला जेल भेज दिया गया. उस के बेटे विमलेश को पहले ही बाल कारागार भेजा चुका था.

वीरेंद्र कौशिक रंगीन तबीयत का आदमी था. एक महिला से छेड़छाड़ के मामले में वह पहले भी जेल जा चुका था. इसी रंगीनमिजाजी में उस ने अपने ही बड़े बेटे की हत्या कर के न केवल उस की पत्नी को विधवा बना दिया था बल्कि अपना ही घर उजाड़ लिया था.

उस का मझला बेटा आशू भी कह चुका है कि बाप से अब उस का कोई रिश्ता नहीं है. उधर बाद में वीरेंद्र का नाबालिग बेटा विमलेश भी अपने बयान से पलट गया. उस ने कहा कि भाई दुष्यंत पर गोली उस ने नहीं, उस के पिता वीरेंद्र कौशिक ने चलाई थी.

वीरेंद्र के पास पिस्तौल और बंदूक के 2 लाइसैंस थे. पुलिस ने दोनों लाइसैंस निरस्त कर दिए. दोनों हथियार भी बरामद कर लिए गए. इस पूरे मामले में महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि कौशिक परिवार अगर 3 दिन तक इस घटना को न छिपाता तो शायद दुष्यंत की जान न जाती.

—दीपिका और विमलेश नाम परिवर्तित हैं