आखिरी फैसला : साधना बनी अपनों की कातिल

उस दिन सितंबर, 2020 की 10 तारीख थी. साधना ने फैसला कर रखा था कि मां का बताया व्रत जरूर रखेगी. मां के अनुसार, इस व्रत से सुंदर स्वस्थ पुत्र की प्राप्ति होती है. लेकिन व्रत रखने से पहले ही लेबर पेन शुरू हो गया.

इस में उस के अपने वश में कुछ नहीं था, क्योंकि उसे 2 दिन बाद की तारीख बताई गई थी. निश्चित समय पर वह मां बनी, लेकिन पुत्र नहीं पुत्री की. तीसरी बार भी बेटी आई है, सुन कर सास विमला का गुस्से से सिर भन्ना गया. वह सिर झटक कर वहां से चली गई.

बच्ची के जन्म पर मां बिटोली आ गई थी. उस ने साधना को समझाया, ‘‘जी छोटा मत कर. बेटी लक्ष्मी का रूप होती है. क्या पता इस की किस्मत से मिल कर तेरी किस्मत बदल जाए.’’बेटी के मन पर छाई उदासी पर पलटवार करने के लिए मां बिटोली बोली, ‘‘आजकल बेटेबेटी में कोई फर्क नहीं होता. तेरी सास के दिमाग में पता नहीं कैसा गोबर भरा है जो समझती ही नहीं या जानबूझ कर समझना नहीं चाहती.’’

साधना क्या कर सकती थी. 2 की तरह तीसरी को भी किस्मत मान लिया. उसे भी बाकी 2 की तरह पालने लगी. वह भी बहनों की तरह बड़ी होने लगी.उस दिन अक्तूबर 2020 की पहली तारीख थी. सेहुद गांव निवासी कुलदीप खेतों से घर लौटा, तो घर का दरवाजा अंदर से बंद था. उस ने दरवाजा खुलवाने के लिए कुंडी खटखटाई, पर पत्नी ने दरवाजा नहीं खोला. घर के अंदर से टीवी चलने की आवाज आ रही थी.

उस ने सोचा शायद टीवी की तेज आवाज में उसे कुंडी खटकने की आवाज सुनाई न दी हो. उस ने एक बार फिर कुंडी खटखटाने के साथ आवाज भी लगाई. पर अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. कुलदीप का माथा ठनका. मन में घबराहट भी होने लगी.

उस के घर के पास ही भाई राहुल का घर था तथा दूसरी ओर पड़ोसी सुदामा का घर. भाई घर पर नहीं था. वह सुदामा के पास पहुंचा और बोला, ‘‘चाचा, साधना न तो दरवाजा खोल रही है और न ही कोई हलचल हो रही है. मेरी मदद करो.’’

कुलदीप पड़ोसी सुदामा को साथ ले कर भाई राहुल के घर की छत से हो कर अपने घर में घुसा. दोनों कमरे के पास पहुंचे तो मुंह से चीख निकल गई. कमरे के अंदर छत की धन्नी से लोहे के कुंडे के सहारे चार लाशें फांसी के फंदे पर झूल रही थीं. लाशें कुलदीप की पत्नी साधना और उस की बेटियों की थीं.

कुलदीप और सुदामा घर का दरवाजा खोल कर बाहर आए और इस हृदयविदारक घटना की जानकारी पासपड़ोस के लोगों को दी. उस के बाद तो पूरे गांव में सनसनी फैल गई और लोग कुलदीप के घर की ओर दौड़ पड़े. देखते ही देखते घर के बाहर भीड़ उमड़ पड़ी. जिस ने भी इस मंजर को देखा, उसी का कलेजा कांप उठा.

कुलदीप बदहवास था, लेकिन सुदामा का दिलोदिमाग काम कर रहा था. उस ने सब से पहले यह सूचना साधना के मायके वालों को दी, फिर थाना दिबियापुर पुलिस को.पुलिस आने के पहले ही साधना के मातापिता, भाई व अन्य घर वाले टै्रक्टर पर लद कर आ गए. उन्होंने साधना व उस की मासूम बेटियोें को फांसी के फंदे पर झूलते देखा तो उन का गुस्सा फूट पड़ा.

उन्होंने कुलदीप व उस के पिता कैलाश बाबू के घर जम कर उत्पात मचाया. घर में टीवी, अलमारी के अलावा जो भी सामान मिला तोड़ डाला. साधना के सासससुर, पति व देवर के साथ हाथापाई की.

साधना के मायके के लोग अभी उत्पात मचा ही रहे थे कि सूचना पा कर थानाप्रभारी सुधीर कुमार मिश्रा पुलिस टीम के साथ आ गए. उन्होंने किसी तरह समझाबुझा कर उन्हें शांत किया. चूंकि घटनास्थल पर भीड़ बढ़ती जा रही थी, अत: थानाप्रभारी मिश्रा ने इस घटना की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी और घटनास्थल पर अतिरिक्त पुलिस बल भेजने की सिफारिश की.

इस के बाद वह भीड़ को हटाते हुए घर में दाखिल हुए. घर के अंदर आंगन से सटा एक बड़ा कमरा था. इस कमरे के अंदर का दृश्य बड़ा ही डरावना था. कमरे की छत की धन्नी में लोहे का एक कुंडा था. इस कुंडे से 4 लाशें फांसी के फंदे से झूल रही थीं.

मरने वालो में कुलदीप की पत्नी साधना तथा उस की 3 मासूम बेटियां थीं. साधना की उम्र 30 साल के आसपास थी, जबकि उस की बड़ी बेटी गुंजन की उम्र 7 साल, उस से छोेटी अंजुम थी. उस की उम्र 5 वर्ष थी. सब से छोेटी पूनम की उम्र 2 माह से भी कम लग रही थी.

साड़ी के 4 टुकड़े कर हर टुकड़े का एक छोर कुंडे में बांध कर फांसी लगाई गई थी. कमरे के अंदर लकड़ी की एक छोटी मेज पड़ी थी. संभवत: उसी मेज पर चढ़ कर फांसी का फंदा लगाया गया था.

थानाप्रभारी सुधीर कुमार मिश्रा अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी सुनीति तथा एएसपी कमलेश कुमार दीक्षित कई थानों की पुलिस ले कर घटनास्थल आ गए.उन्होंने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने तनाव को देखते हुए सेहुद गांव में पुलिस बल तैनात कर दिया. उस के बाद घटनास्थल का निरीक्षण किया.

मां सहित मासूमों की लाश फांसी के फंदे पर झूलती देख कर एसपी सुनीति दहल उठीं. उन्होंने तत्काल लाशों को फंदे से नीचे उतरवाया. उस समय माहौल बेहद गमगीन हो उठा.मृतका साधना के मायके की महिलाएं लाशों से लिपट कर रोने लगीं. सुनीति ने महिला पुलिस की मदद से उन्हें समझाबुझा कर शवों से दूर किया.

फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए. घटनास्थल पर मृतका का भाई बृजबिहारी तथा पिता सिपाही लाल मौजूद थे. पुलिस अधिकारियों ने उन से पूछताछ की तो बृजबिहारी ने बताया कि उस की बहन साधना तथा मासूम भांजियों की हत्या उस के बहनोई कुलदीप तथा उस के पिता कैलाश बाबू, भाई राहुल तथा मां विमला देवी ने मिल कर की है.जुर्म छिपाने के लिए शवों को फांसी पर लटका दिया है. अत: जब तक उन को गिरफ्तार नहीं किया जाता, तब तक वे शवों को नहीं उठने देंगे. सिपाही लाल ने भी बेटे की बात का समर्थन किया.

बृजबिहारी की इस धमकी से पुलिस के माथे पर बल पड़ गए. लेकिन माहौल खराब न हो, इसलिए पुलिस ने मृतका के पति कुलदीप, ससुर कैलाश बाबू, सास विमला देवी तथा देवर राहुल को हिरासत में ले लिया तथा सुरक्षा की दृष्टि से उन्हें थाना दिबियापुर भिजवा दिया.

सच्चाई का पता लगाने के लिए पुलिस अधिकारियों ने कुलदीप के पड़ोसी सुदामा से पूछताछ की. सुदामा ने बताया कि कुलदीप जब खेत से घर आया था, तो घर का दरवाजा बंद था. दरवाजा पीटने और आवाज देने पर भी जब उस की पत्नी साधना ने दरवाजा नहीं खोला, तब वह मदद मांगने उस के पास आया. उस के बाद वे दोनों छत के रास्ते घर के अंदर कमरे में गए, जहां साधना बेटियों सहित फांसी पर लटक रही थी.

सुदामा ने कहा कि कुलदीप ने पत्नी व बेटियों को नहीं मारा बल्कि साधना ने ही बेटियों को फांसी पर लटकाया और फिर स्वयं भी फांसी लगा ली.

निरीक्षण और पूछताछ के बाद एसपी सुनीति ने मृतका साधना व उस की मासूम बेटियों के शवों को पोस्टमार्टम के लिए औरैया जिला अस्पताल भिजवा दिया.

डाक्टरों की टीम ने कड़ी सुरक्षा के बीच चारों शवों का पोस्टमार्टम किया, वीडियोग्राफी भी कराई गई. इस के बाद रिपोर्ट पुलिस को सौंप दी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, मासूम गुंजन, अंजुम व पूनम की हत्या गला दबा कर की गई थी, जबकि साधना ने आत्महत्या की थी. रिपोर्ट से स्पष्ट था कि साधना ने पहले अपनी तीनों मासूम बेटियों की हत्या की फिर बारीबारी से उन्हें फांसी के फंदे पर लटकाया. उस के बाद स्वयं भी उस ने फांसी के फंदे पर लटक कर आत्महत्या कर ली. उस ने ऐसा शायद इसलिए किया कि वह मरतेमरते भी जिगर के टुकड़ों को अपने से दूर नहीं करना चाहती थी.

थाने पर पुलिस अधिकारियों ने कुलदीप तथा उस के मातापिता व भाई से पूछताछ की. कुलदीप के पिता कैलाश बाबू ने बताया कि कुलदीप व साधना के बीच अकसर झगड़ा होता था, जिस से आजिज आ कर उन्होंने कुलदीप का घर जमीन का बंटवारा कर कर दिया था. वह छोटे बेटे राहुल के साथ अलग रहता है. उस का कुलदीप से कोई वास्ता नहीं था.

पूछताछ के बाद पुलिस ने कैलाश बाबू उस की पत्नी विमला तथा बेटे राहुल को थाने से घर जाने दिया, लेकिन मृतका साधना के भाई बृजबिहारी की तहरीर पर कुलदीप के खिलाफ भादंवि की धारा 309 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली और उसे विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस जांच में घर कलह की सनसनीखेज घटना सामने आई.

गांव अमानपुर, जिला औरेया का सिपाही लाल दिबियापुर में रेलवे ठेकेदार के अधीन काम करता था. कुछ उपजाऊ जमीन भी थी, जिस से उस के परिवार का खर्च आसानी से चलता था.

सिपाही लाल की बेटी साधना जवान हुई तो उस ने 12 फरवरी, 2012 को उस की शादी सेहुद गांव निवासी कैलाश बाबू के बेटे कुलदीप के साथ कर दी. लेकिन कुलदीप की मां विमला न बहू से खुश थी, न उस के परिवार से.

साधना और कुलदीप ने जैसेतैसे जीवन का सफर शुरू किया. शादी के 2 साल बाद साधना ने एक बेटी गुंजन को जन्म दिया. गुंजन के जन्म से साधना व कुलदीप तो खुश थे, लेकिन साधना की सास विमला खुश नहीं थी, क्योंकि वह पोते की आस लगाए बैठी थी. बेटी जन्मने को ले कर वह साधना को ताने कसने लगी थी.

घर की मालकिन विमला थी. बापबेटे जो कमाते थे, विमला के हाथ पर रखते थे. वही घर का खर्च चलाती थी. साधना को भी अपने खर्च के लिए सास के आगे ही हाथ फैलाना पड़ता था. कभी तो वह पैसे दे देती थी, तो कभी झिड़क देती थी. तब साधना तिलमिला उठती थी. साधना पति से शिकवाशिकायत करती, तो वह उसे ही प्रताडि़त करता.

गुंजन के जन्म के 2 साल बाद साधना ने जब दूसरी बेटी अंजुम को जन्म दिया तो लगा जैसे उस ने कोई गुनाह कर दिया हो. घर वालों का उस के प्रति रवैया ही बदल गया.

सासससुर, पति किसी न किसी बहाने साधना को प्रताडि़त करने लगे. सास विमला आए दिन कोई न कोई ड्रामा रचती और झूठी शिकायत कर कुलदीप से साधना को पिटवाती. विमला को साधना की दोनों बेटियां फूटी आंख नहीं सुहाती थीं. वह उन्हें दुत्कारती रहती थी.

बेटियों के साथसाथ वह साधना को भी कोसती, ‘‘हे भगवान, मेरे तो भाग्य ही फूट गए जो इस जैसी बहू मिली. पता नहीं मैं पोते का मुंह देखूंगी भी या नहीं.’’

धीरेधीरे बेटियों को ले कर घर में कलह बढ़ने लगी. कुलदीप और साधना के बीच भी झगड़ा होने लगा. आजिज आ कर साधना मायके चली गई. जब कई माह तक वह ससुराल नहीं आई, तो विमला की गांव में थूथू होने लगी.

बदनामी से बचने के लिए उस ने पति कैलाश बाबू को बहू को मना कर लाने को कहा. कैलाश बाबू साधना को मनाने उस के मायके गए. वहां उन्होंने साधना के मातापिता से बातचीत की और साधना को ससुराल भेजने का अनुरोध किया, लेकिन साधना के घर वालों ने प्रताड़ना का आरोप लगा कर उसे भेजने से साफ मना कर दिया.

मुंह की खा कर कैलाश बाबू लौट आए. उन्होंने वकील से कानूनी सलाह ली और फिर साधना को विदाई का नोटिस भिजवा दिया. इस नोटिस से साधना के घर वाले तिलमिला उठे और उन्होंने साधना के मार्फत थाना सहायल में कुलदीप तथा उस के घर वालों के खिलाफ घरेलू हिंसा का मुकदमा दर्ज करा दिया. इस के अलावा औरैया कोर्ट में कुलदीप के खिलाफ भरणपोषण का मुकदमा भी दाखिल कर दिया.

जब कुलदीप तथा उस के पिता कैलाश बाबू को घरेलू हिंसा और भरणपोषण के मुकदमे की जानकारी हुई तो वह घबरा उठे. गिरफ्तारी से बचने के लिए कैलाश बाबू समझौते के लिए प्रयास करने लगे. काफी मानमनौव्वल के बाद साधना राजी हुई. कोर्ट से लिखापढ़ी के बाद साधना ससुराल आ कर रहने लगी.

कुछ माह बाद कैलाश बाबू ने घर, जमीन का बंटवारा कर दिया. उस के बाद साधना पति कुलदीप के साथ अलग रहने लगी. साधना पति के साथ अलग जरूर रहने लगी थी, लेकिन उस का लड़नाझगड़ना बंद नहीं हुआ था. सास के ताने भी कम नहीं हुए थे. वह बेटियों को ले कर अकसर ताने मारती रहती थी. कभीकभी साधना इतना परेशान हो जाती कि उस का मन करता कि वह आत्महत्या कर ले. लेकिन बेटियों का खयाल आता तो वह इरादा बदल देती.

10 सितंबर, 2020 को साधना ने तीसरी संतान के रूप में भी बेटी को ही जन्म दिया, नाम रखा पूनम. पूनम के जन्म से घर में उदासी छा गई. सब से ज्यादा दुख विमला को हुआ. उस ने फिर से साधना को ताने देने शुरू कर दिए. छठी वाले दिन साधना की मां विटोली भी आई. उस रोज विमला और विटोली के बीच खूब नोंकझोंक हुई. सास के ताने सुनसुन कर साधना रोती रही.

विटोली बेटी को समझा कर चली गई. उस के बाद साधना उदास रहने लगी. वह सोचने लगी क्या बेटी पैदा होना अभिशाप है? अब तक साधना सास के तानों और पति की प्रताड़ना से तंग आ चुकी थी.

अत: वह आत्महत्या करने की सोचने लगी. लेकिन खयाल आया कि अगर उस ने आत्महत्या कर ली तो उस की मासूम बेटियों का क्या होगा. उस का पति शराबी है, वह उन की परवरिश कैसे करेगा. वह या तो बेटियों को बेच देगा या फिर भूखे भेडि़यों के हवाले कर देगा.

सोचविचार कर साधना ने आखिरी फैसला लिया कि वह मासूम बेटियों को मार कर बाद में आत्महत्या करेगी.1 अक्तूबर, 2020 की सुबह 7 बजे कुलदीप खेत पर काम करने चला गया. उस के जाने के बाद साधना ने मुख्य दरवाजा बंद किया और टीवी की आवाज तेज कर दी. फिर उस ने साड़ी के 4 टुकड़े किए और इन के एकएक सिरे को मेज पर चढ़ कर छत की धन्नी में लगे लोहे के कुंडे में बांध दिया.

साड़ी के टुकड़ों के दूसरे सिरे को उस ने फंदा बनाया. उस समय गुंजन और अंजुम चारपाई पर सो रही थीं. साधना ने कलेजे पर पत्थर रख कर बारीबारी से गला दबा कर उन दोनों को मार डाला फिर उन के शवों को फांसी के फंदे पर लटका दिया.

21 दिन की मासूम पूनम का गला दबाते समय साधना के हाथ कांपने लगे आंखों से आंसू टपकने लगे. लेकिन जुनून के आगे ममता हार गई और उस ने उस मासूम को भी गला दबा कर मार डाला और फांसी के फंदे पर लटका दिया. इस के बाद वह स्वयं भी गले में फंदा डाल कर झूल गई.

घटना की जानकारी तब हुई जब कुलदीप घर वापस आया. पड़ोसी सुदामा ने घटना की सूचना मोबाइल फोन द्वारा थाना दिबियापुर पुलिस को दी.

सूचना पाते ही थानाप्रभारी सुधीर कुमार मिश्रा आ गए. उन्होंने शवों को कब्जे में ले कर जांच शुरू की तो घर कलह की घटना प्रकाश में आई.

2 अक्टूबर, 2020 को थाना दिबियापुर पुलिस ने अभियुक्त कुलदीप को औरैया कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

कातिल हुई मुस्कान : मौत का कारण बनी पत्नी

8 अगस्त, 2021 की बात है. दक्षिणपूर्वी दिल्ली के न्यू फ्रैंड्स कालोनी पुलिस को क्षेत्र के नाले में एक बड़ा सूटकेस मिला. उस सूटकेस में से हाथ निकला हुआ था. इस से यह बात समझने में देर नहीं लगी कि जरूर इस में किसी की लाश है. लिहाजा तुरंत ही मौके पर क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को बुला लिया.

जब बैग खोला गया तो उस में 35-37 साल के एक व्यक्ति की लाश निकली जो फूली हुई थी. उस के दाढ़ी थी. उस की गरदन पर घाव था, जिस पर तौलिया लपेटा हुआ था. लाश के नीचे एक चादर भी थी. उस के दाहिने हाथ पर अंगरेजी में ‘नवीन’ नाम का टैटू गुदा था. पुलिस ने मौके की काररवाई कर के लाश एम्स की मोर्चरी में सुरक्षित रखवा दी और इस की सूचना दिल्ली के सभी थानों को दे दी.

इस के 5 दिन बाद खानपुर की रहने वाली मुसकान नाम की 22 वर्षीय युवती ने थाना नेब सराय में अपने पति नवीन के गायब होने की सूचना दर्ज कराई. उस ने बताया कि उस का पति 8 अगस्त से घर से लापता है. गुमशुदगी दर्ज कराने के बाद वह अपने घर चली गई. इस की जांच एएसआई सुरेंद्र को सौंपी गई.

मुसकान के थाने से चले जाने के बाद एएसआई सुरेंद्र को न्यू फ्रैंड्स कालोनी क्षेत्र में 5 दिन पहले मिली अज्ञात युवक की लाश का ध्यान आया. एम्स में रखी उस लाश को दिखाने के मकसद से उन्होंने मुसकान को फोन किया, लेकिन उस ने कौंटैक्ट के लिए जो फोन नंबर दिए थे, वह नाट रिचेबल मिले.

वह कांस्टेबल नितिन और रोहित के साथ लाश के बारे में सूचना देने के लिए मुसकान के पते पर ही खानपुर चले गए. घनी आबादी वाले इलाके  में मकान तलाशने में पुलिस को ज्यादा दिक्कत नहीं आई, लेकिन वहां कमरे के दरवाजे पर ताला लगा देख कर झटका जरूर लगा.

मुसकान ने कमरा किराए पर ले रखा था. पुलिस ने उस के बारे में मकान के दूसरे किराएदारों और आसपास के लोगों से पूछताछ की. मालूम हुआ कि मुसकान कुछ दिन पहले ही कमरे को छोड़ कर कहीं और जा चुकी है. मुसकान क्या करती थी, कहां आतीजाती थी, इस बारे में किसी को भी विशेष जानकारी नहीं थी.

उस के बाद मकान मालिक प्रदीप से पूछताछ करने पर मालूम हुआ कि मुसकान डेढ़ महीने पहले ही यहां रहने आई थी और अचानक कहीं दूसरी जगह शिफ्ट हो गई. उस के साथ एक 2 साल की बच्ची भी रहती थी. बीचबीच में खानपुर के ही दूसरे मोहल्ले में रहने वाली उस की मां मीनू भी उस के पास आती थी, लेकिन वह साथ में नहीं रहती थी.

आखिर मुसकान के पास पहुंच गई पुलिस

48 वर्षीय मीनू को मोहल्ले के कई लोग जानते थे. आजीविका के लिए वह घरेलू नर्स का काम करती थी. बताते हैं कि उस की अपने पति विजय से नहीं बनती थी.

अब पुलिस के सामने नई समस्या आ गई कि अपने लापता पति की शिकायत करने वाली ही लापता हो चुकी थी. मुसकान को तलाशने के लिए पुलिस टीम ने तसवीरें दिखा कर और हुलिया बता कर डोरटूडोर पूछताछ शुरू कर दी.

थोड़े प्रयास के बाद पुलिस को सफलता मिल गई. उस का ठौरठिकाना तो नहीं मालूम हुआ, लेकिन एक नई बात की जानकारी जरूर मिल गई. वह यह कि उस के पास एक फैशनपरस्त जमालुद्दीन नाम का एक लड़का आताजाता है. पुलिस को पता चला कि वह 18-19 साल का लड़का है. स्टाइलिश फटी जींसटीशर्ट पहनता है और स्पाइकी हेयर कट रखता है. पड़ोसियों को उस की गतिविधियां संदिग्ध लगी थीं.

वैसे तो जमालुद्दीन के बारे में पड़ोसियों से और अधिक जानकारी नहीं मिल पाई. सिर्फ इतना मालूम हुआ कि उस की बोली में बिहारी टोन था और मुसकान के कमरा छोड़ने से एक दिन पहले आधी रात को उस के कमरे से झगड़ने की काफी तेज आवाजें आई थीं.

इसी दौरान पुलिस को मुसकान का दूसरा मोबाइल नंबर 9540833333 मिल गया. उस पर काल करने पर लोकेशन खानपुर गांव की मिली. पुलिस टीम तुरंत वहां जा पहुंची. वहीं मुसकान अपनी मां मीनू और 2 साल की बच्ची तृषा के साथ मिल गई.

पुलिस टीम को घर की चौखट पर देख कर पहले तो मुसकान सकपकाई, फिर जल्द ही सहमती हुई तन कर खड़ी हो गई. पुलिस ने मुसकान से सीधा सवाल किया, ‘‘क्या तुम्हारे पति के दाएं हाथ पर नवीन नाम का टैटू गुदा हुआ था?’’

जवाब में मुसकान कुछ नहीं बोली. पुलिस ने दोबारा पूछा, ‘‘क्या तुम्हारे लापता पति के दाएं हाथ पर उस के नाम का कोई टैटू था?’’

‘‘क्यों, क्या बात है?’’ मुसकान धीमे से बोली.

‘‘बात यह है कि हमें एक युवक की लाश मिली है, जिस के दाहिने हाथ पर ‘नवीन’ गुदा हुआ है. और तुम ने भी पति का नाम नवीन ही लिखवाया है.’’ पुलिस ने बताया.

‘‘मैं उस बारे में कुछ नहीं जानती.’’ मुसकान बोली और इधरउधर झांकने लगी.

पुलिस टीम ने महसूस किया कि मुसकान कुछ छिपाने की कोशिश कर रही है. तभी एक कांस्टेबल ने मुसकान के हाथ से उस का मोबाइल फोन ले लिया.

गैलरी खोल कर उस में डाउनलोड तसवीरें खंगालने पर नवीन की हाथ उठाए हुए तसवीर मिल गई. उस से लाश की तसवीर पूरी तरह मेल खा रही थी. उस तसवीर में भी नवीन के दाएं हाथ पर ‘नवीन’ नाम का टैटू दिख रहा था. बाद में उस की पुष्टि नवीन के भाई संदीप ने भी कर दी.

पुलिस टीम ने मुसकान से पूछा, ‘‘तुम्हारे लापता पति की लाश मिली है और तुम्हें जरा भी दुख नहीं हो रहा है? आखिर बात क्या है?’’

‘‘क्या करूंगी दुखी हो कर, वह लौट तो नहीं आएगा न!’’ मुसकान बोली.

‘‘फिर भी, तुम्हारी बहुत सारी यादें जुड़ी होंगी उस के साथ? 2-4 बूंद आंसू ही बहा लो उस के नाम के.’’

‘‘फिर भी क्या सर, कैसी यादें, कैसे आंसू. कुछ भी तो नहीं. उस ने जीते जी मुझे कम दुख दिए थे, जो उस की मौत के बाद गम मनाऊं?’’ वह बोली.

‘‘मैं समझ सकता हूं तुम्हारी अभी की स्थिति. लेकिन तुम्हें नवीन के बारे में जो भी बातें मालूम हैं बता दो, ताकि उस की मौत का कारण मालूम हो सके. उस की किसी के साथ दुश्मनी या दोस्ती के बारे में… जो भी हो साफसाफ बताओ,’’ एएसआई सुरेंद्र ने पूछा.

‘‘मैं कुछ और नहीं जानती हूं सिवाय इस के कि वह मेरा पति था. और मैं ने एक गलत आदमी के साथ प्रेम किया, मम्मी के मना करने के बावजूद उस से शादी की. आज वह हमें और बच्ची को अनाथ छोड़ गया.’’ कहती हुई मुसकान रोने लगी. उस वक्त तो एसआई ने मुसकान से कुछ और नहीं पूछा, लेकिन उन्हें नवीन की हत्या के सिलसिले में एक संदिग्ध जरूर मान लिया. उन्होंने उस के बारे में जल्द ही कुछ और जानकारियां हासिल कर लीं.

एक महत्त्वपूर्ण जानकारी घटना की तारीख को रात के समय नवीन से झगड़ने वाले लड़के जमालुद्दीन के बारे में भी थी. वह भी खानपुर गांव में रहता था. पढ़ालिखा नहीं था. उस के पास कोई कामधंधा भी नहीं था. लौकडाउन खत्म होने के बाद 2 महीने पहले ही वह बिहार से आया था.

एएसआई सुरेंद्र ने सारी जानकारी थानाप्रभारी सुमन कुमार को दे दी. मामला गंभीर लग रहा था, इसलिए डीसीपी आर.पी. मीणा ने एसीपी अविनाश कुमार के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी.

ऐसे खुली मर्डर मिस्ट्री

टीम में थानाप्रभारी सुमन कुमार, इंसपेक्टर जितेंद्र कश्यप, अनिल प्रकाश, एसआई विष्णुदत्त, महावीर, कांस्टेबल सुरेंद्र, रामकिशन, नितिन, रोहित, जानी, अनिल, विक्रम आदि को शामिल किया.

पुलिस टीम गंभीरता से इस केस को खोलने में जुट गई. इस का परिणाम यह निकला कि पुलिस ने कुछ सबूतों के आधार पर 7 लोगों को गिरफ्तार कर लिया. उन से हुई पूछताछ से कई राज परत दर परत खुलते चले गए.

घटना की रात 7 अगस्त, 2021 को जमालुद्दीन मुसकान के घर पर ही था. उन दिनों नवीन कहीं और रहता था. जबकि मुसकान उस से झगड़ कर अपनी बच्ची को ले कर खानपुर में अपनी मां के घर से थोड़ी दूरी पर अलग कमरा ले कर रहती थी. वहीं पास में ही जमालुद्दीन भी रहता था.

अकेली लड़की को देख कर पहले तो वह उस के इर्दगिर्द मंडराता रहा, फिर जल्द ही मुसकान ने ही उस से जानपहचान कर ली. उसे कोई काम तलाशने के लिए कहा. हालांकि जमालुद्दीन भी काम की तलाश में था. आठवीं पास मुसकान डिलीवरी गर्ल का काम कर चुकी थी.

मर्डर मिस्ट्री का राज खुल जाने के बाद पहली गिरफ्तारी मुसकान की हुई थी. उस ने अपने पति की हत्या के बारे में विस्तार से बताया कि किस तरह से नवीन की गरदन में चाकू घोंप कर हत्या की गई.

उस की मौत के बाद कैसे जमालुद्दीन ने बाथरूम में उस की लाश को नहलाधुला कर खून के दागधब्बे साफ किए थे और उस ने खुद कमरे में फैले खून को साफ किया.

मुसकान ने बताया कि यह सब करते हुए सुबह होने वाली थी. जमाल ने अपने एक दोस्त राजपाल को नवीन की लाश वहां से हटाने में मदद के लिए बुलाया.

नवीन और जमाल ने खून सने कपड़े चिराग दिल्ली के नाले में फेंक दिए थे. तब तक दिन निकल आया था. जमाल उसी दिन अपने घर से एक ट्रौली बैग लाया. उस में नवीन की लाश ठूंसठूंस कर पैक कर दी. उस बैग को जमाल अपने दोस्त के साथ आटो से ले जा कर सुखदेव विहार के नाले में फेंक आया.

मुसकान की गिरफ्तारी के बाद पुलिस टीम को मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स मिल गई, जिस में जमाल का साथ देने वालों में विवेक उर्फ बागड़ी और कौशलेंद्र का भी नाम आ गया.

विवेक (20 वर्ष) को देवली की नई बस्ती से गिरफ्तार करने में पुलिस को सफलता मिल गई. उस ने नवीन की हत्या में शामिल होने का जुर्म कुबूल कर लिया.

तीसरी गिरफ्तारी जमाल की मुरादाबाद शहर से हुई. लाश को नाले में फेंकने के बाद वह दिल्ली से फरार हो गया था. उस ने अपना मोबाइल फोन बंद कर लिया था. वह मोबाइल नंबर बिहार का था. उस नंबर को पुलिस सर्विलांस में लगा दिया गया.

पता चला कि वह सप्तक्रांति ट्रेन से अपने घर जा रहा है. सफर के दौरान उस का नंबर तब ट्रैक हो गया, जब उस ने टीटीई को अपना कन्फर्म टिकट का मैसेज दिखाने के लिए कुछ समय के लिए मोबाइल औन किया. उस समय उस की लोकेशन मुरादाबाद की थी. वह सप्तक्रांति एक्सप्रैस से बिहार जा रहा था. दिल्ली पुलिस ने उसी समय मुरादाबाद की जीआरपी से संपर्क किया तो जीआरपी ने ट्रेन रुकवा कर तलाशा और उसे वहीं हिरासत में ले लिया. फिर दिल्ली पुलिस उसे मुरादाबाद से दिल्ली ले आई.

प्यारमोहब्बत ने जरूरतों को लगा दिए पंख

इसी तरह से विशाल की गिरफ्तारी देवली खानपुर से और कौशलेंद्र की बरेली से करने में पुलिस को सफलता मिली. छठे और सातवें अभियुक्त के रूप में राजकुमार और मुसकान की मां मीनू को भी खानपुर से हिरासत में ले लिया गया. मीनू ने बताया कि नवीन की हत्या के समय वह कमरे में ही मौजूद थी. उस की हत्या के बाद वह अपने कमरे पर वापस आ गई थी. अभियुक्तों की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल सबूत भी बरामद कर लिए.

नवीन की हत्या का राज तो खुल गया था, लेकिन मुसकान और नवीन के संबंध में आई कड़वाहट का राज खुलना अभी बाकी था. आखिर क्या वजह थी कि जिसे मुसकान ने दिलोजान से चाहा, उस की हत्या करवा दी? यह बदलते हुए महानगरिया सामाजिक परिवेश की काली सच्चाई को भी उजागर करता है.

आठवीं पास मुसकान ने जब अपने पैरों पर खड़ी होने की कोशिश शुरू की, तब उसे जोमैटो के फूड सेक्शन में एक काम मिल गया. थोड़ी सी तनख्वाह में खर्च चलाना मुश्किल हो गया. ऊपर से उम्र की नजाकत और प्यारमोहब्बत ने उस की जरूरतों को पंख लगा दिए.

वहीं उस की मुलाकात नवीन से हुई. उस ने बेहतर जिंदगी जीने के सपने दिखाए और जल्द ही उस के रूपसौंदर्य की तारीफों के पुल बांधने शुरू कर दिए. यह सब करीब साढ़े 4 साल पहले की बातें हैं. उन दिनों नवीन दक्षिणपुरी में रहता था.

मुसकान अपने प्रेम की खातिर नवीन के साथ रहने लगी. अपनी अलग दुनिया बसा ली. 2 साल बाद एक बच्ची की मां भी बन गई. संयोग से उस के एकडेढ़ साल बाद ही कोरोना महामारी का कहर उस पर भी टूटा, जिस से उस की आमदनी बंद हो गई.

दांपत्य जीवन में तनाव ही तनाव आ गया. हर रोज नवीन से उस का झगड़ा होने लगा. नवीन भी कामधंघा छूटने के चलते काफी डिप्रेशन में आ गया था. अपना गम दूर करने के लिए जो कमाता था, उसे शराब में उड़ाने लगा था. मुसकान इस का विरोध करती, तब वह मारपीट पर उतारू हो जाता था.

करीब 7 महीने पहले जनवरी में एक दिन मुसकान अपनी बच्ची को ले कर मां मीनू के पास देवली खानपुर आ गई. वहां भी नवीन बारबार आने लगा. लेकिन जब भी आता था, नशे में धुत रहता था और मुसकान को गालियां बकता था.

एक दिन ऊब कर मीनू ने उसे अपने घर से अलग कमरा दिलवा दिया ताकि नवीन की नजरों से वह दूर रहे. वहीं मुसकान की मुलाकात जमालुद्दीन से हुई. मुसकान को वह मन ही मन चाहने लगा था. मुसकान भी उसे अपनी घरेलू मदद के लिए कमरे पर आने से नहीं रोकती थी. हालांकि मुसकान के दिल में उस के प्रति अधिक जगह नहीं थी.

एक बार नवीन खानपुर के उस कमरे पर भी आ गया. मुसकान को आश्चर्य हुआ कि उसे उस के कमरे का पता कैसे चला. इस पर जमाल ने बताया कि एक बार उस ने बच्ची के साथ उसे दूध की दुकान पर देख लिया था. वहां भी उस के साथ झगड़ने लगा था. वह बारबार पूछ रहा था कि बच्ची उस के पास कैसे है? वह तो उस की बेटी है. उसी समय वह पीछा करता हुआ गली के कोने तक आया था.

बात यहीं खत्म नहीं हुई. 7 अगस्त की रात को नवीन नशे ही हालत में सीधा मुसकान के कमरे पर आ धमका. उस वक्त कमरे पर जमालुद्दीन भी था. उसे देखते ही नवीन आगबबूला हो गया और झगड़ने लगा.

इसी बीच मीनू भी आ गई. मीनू ने नवीन को समझाने की कोशिश की, लेकिन वह कुछ भी सुनने को राजी नहीं था.

मुसकान ने भी उसे समझाने की कोशिश की तो नवीन ने मुसकान के मुंह पर घूंसा मारा. उस के मुंह से खून निकलने लगा. तभी जमालुद्दीन ने नवीन को रोकने की कोशिश की. फिर कमरे में नवीन और जमाल के बीच तूतूमैंमैं हाथापाई में बदल गई. नवीन ने जमाल को भद्दीभद्दी गालियां तक देनी शुरू कर दी. यहां तक कि उस के मांबाप और कौम को ले कर भी भलाबुरा कहना शुरू किया.

कौम और मांबाप पर बात आते ही जमाल ने भी झट कमरे में छिपा कर रखा चाकू निकाला और नवीन की गरदन पर वार कर दिया. नशे की हालत में नवीन संभल नहीं पाया. जख्म भी काफी गहरा था. उस की मौत कुछ समय में ही हो गई.

जमाल लाश को देख कर पसीनेपसीने हो गया. तभी मुसकान वहां आई. पहले तो वह भी घबराई फिर जल्द ही खुद को संभाला. अपनी बच्ची को मां के हवाले किया और उसे अपने घर ले जाने के लिए कहा. उस के बाद दोनों ने लाश को ठिकाने लगाने और सबूत मिटाने के काम किए. पुलिस ने सभी आरोपियों से पूछताछ करने के बाद उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

दुबई में रची हत्या की साजिश : क्यों पत्नी का दुश्मन बना पति

रामाकृष्णनन का दुबई में अच्छा कारोबार था. पत्नी विशाला गनिगा और बेटी के साथ घरगृहस्थी हंसीखुशी से चल रही थी. इसी दौरान ऐसा क्या हुआ कि विशाला के भारत आने पर रामाकृष्णनन को दुबई में बैठ कर ही पत्नी की मौत की साजिश रचनी पड़ी?

एनआरआई विशाला दुबई में रह रहे अपने पति से विदा ले कर 2 जुलाई, 2021 को अपनी बेटी के साथ कनार्टक आई थी. उस का कर्नाटक के उडुपी

शहर में अपना अपार्टमेंट है, लेकिन उस समय वह वहां से कुछ दूरी पर स्थित एक सोसाइटी में अपने मातापिता के साथ रह रही थी.

अपने मातापिता से बैंक का काम बता कर 12 जुलाई को वह घर से बाहर निकली थी. उस ने यह भी कहा था कि कुछ समय के लिए अपने अपार्टमेंट में भी जाएगी.

जब वह कई घंटे तक भी वापस नहीं लौटी तो घर वालों को चिंता होने लगी. उस के मोबाइल नंबर पर फोन किया गया तो वह स्विच्ड औफ मिला. घर वाले चिंतित हो गए. वह उस की तलाश में उस के अपार्टमेंट पर पहुंचे तो वहां का दरवाजा भिड़ा हुआ था. उन्होंने उसे हलका सा पुश किया तो खुल गया.

अंदर का दृश्य देख कर परिजनों की चीख निकल गई. विशाला वहां मरी हुई पड़ी थी. घर का सारा सामान इधरउधर बिखरा हुआ था. विशाला के गहने भी गायब थे.

विशाला के पिता ने उसी समय ब्रह्मावर थाने को सूचना दी. सूचना मिलने के बाद थानाप्रभारी घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने गहन जांचपड़ताल की. वहां मोबाइल चार्जर का तार पड़ा मिला, लग रहा था कि उसी से गला घोंट कर विशाला की हत्या की गई थी. क्योंकि उस के गले पर निशान भी था.

घर का सारा सामान बिखरा हुआ था. उस के गहने उतार लिए गए थे. पहली नजर में मामला लूट का विरोध करने पर हत्या करने का लग रहा था.

घटनास्थल की पूरी जांच की सूचना थानाप्रभारी ने अपने बड़े अधिकारियों को भी दी. मामला एनआरआई महिला की हत्या का था, जिस से पुलिस में खलबली मच गई.

विशाला की हत्या गला घोंट कर की गई थी. इस की पुष्टि पुलिस के बड़े अधिकारियों ने भी घटनास्थल का दौरा कर की. फिर भी कई पहलुओं से जांच की गई.

हत्यारे ने वैसा कोई सुराग नहीं छोड़ा था, जिस से पुलिस हत्यारे तक पहुंच सके. उस ने जिस मोबाइल चार्जर के तार से उस का गला घोंटा गया था, वह चार्जर भी विशाला का ही था.

विशाला का पति रामाकृष्णनन उस समय दुबई में था. पुलिस ने उसे इस घटना की सूचना देने के साथसाथ तत्काल भारत आने को कहा. प्राथमिक औपचारिकताओं के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया.

उडुपी पुलिस ने विशाला की हत्या का परदाफाश करने के लिए 4 विशेष टीमों का गठन कर दिया. हत्या ब्रह्मावर के पास कुंब्रागोडु में एक निजी अपार्टमेंट में हुई थी. जिस से तटीय शहर में चर्चा होने लगी. इस शहर को दक्षिण भारत का मिनी गोवा कहा जाता है.

अपार्टमेंट वाली इमारत में कोई सीसीटीवी कैमरा नहीं लगा था, लेकिन पुलिस ने आसपास के 60 से अधिक सीसीटीवी कैमरों के फुटेज की जांच की. एसपी ने मामले की जांच के लिए 4 टीमों का गठन किया. डीजी और आईजीपी प्रवीण सूद ने मामले का खुलासा करने वाली टीम के लिए 50 हजार रुपए के ईनाम की भी घोषणा कर दी.

दुबई से बुलाया पति को

मृतक का पूरा नाम विशाला गनिगा था, जो 35 वर्ष की थी. दुबई से आ कर वह उडुपी में अपने मातापिता के यहां साल भर की बेटी के साथ महीनों से रह रही थी. उस की किसी से कोई रंजिश नहीं थी. उस के शहर में जानपहचान वाले मातापिता और उन का परिवार ही था.

पति और उस के दूसरे परिजन दुबई में थे. बावजूद इस के उस की हत्या किसी के गले नहीं उतर रही थी. तफ्तीश कर रही पुलिस की टीमें हत्यारे का कोई सुराग ढूंढ निकालने की कोशिश में थीं. पुलिस सोच रही थी कि हत्या अगर लूटपाट के तहत हुई तो हत्यारा स्थानीय हो सकता था. सभी इस तरह की कई अटकलें लगा रहे थे.

विशाला के पति रामाकृष्णनन पत्नी की मौत की सूचना पा कर दुबई से उडुपी आ गया. नम आंखों से उस ने पत्नी को अंतिम विदाई दी. उस का दुबई में अच्छा कारोबार था. पुलिस ने अंत्येष्टि के बाद रामाकृष्णनन से विशाला के संबंध में औपचारिक बातचीत की.

इसी सिलसिले में पता चला कि विशाला के साथ उस का विवाह करीब 10 साल पहले  हुआ था. उन की अरेंज मैरिज थी, लेकिन दोनों के परिजनों ने विवाह से पहले एकदूसरे को समझने का भरपूर मौका दिया था.

उन के बीच काफी समय तक मिलनाजुलना होता रहा. बातें होती रहीं. रामाकृष्णनन विशाला की सुंदरता पर मर मिटा था. उस की बड़ीबड़ी झील सी गहरी आंखें और गोरा रंग देख उस पर फिदा हो गया था. गालों पर सुर्खी और कटावदार शारीरिक बनावट के कारण साधारण लिबास भी उस पर खूब फबता था.

पुलिस के सामने रामाकृष्णनन विशाला की मौत का गम दर्शाने के साथसाथ खूबसूरती की तारीफ करते नहीं थक रहा था. उस ने बताया कि विशाला की हर अदा बेहद निराली और सभी को आकर्षित करने वाली थी.

वह रहनसहन, भोजन और लाइफस्टाइल में हमेशा सर्वश्रेष्ठ की तलाश में रहती थी. उस की जरूरतों की पूर्ति होने पर ही वह पूरी तरह संतुष्ट रहती थी.

विवाह के बाद विशाला पति के साथ दुबई चली गई थी. दुबई भले ही मुसलिम देश कहलाता हो और वहां कई तरह की कानूनी पाबंदियां हों, लेकिन कारोबार या नौकरी को ले कर वहां कोई पाबंदी नहीं है.

विशाला के दुबई जा कर घर बसाने की वजह से उस की गिनती भारत में एनआरआई महिला के रूप में थी. कुछ साल में ही विशाला ने एक बेटी को जन्म दिया. नन्ही परी दोनों की ही दुलारी थी.

पुलिस ने बातोंबातों में रामाकृष्णनन से पूछ लिया कि जब वे दुबई में सेटल थे तो फिर उन्होंने उडुपी में इतना भव्य अपार्टमेंट क्यों खरीदा था. जबकि पास में ही विशाला के मातापिता का भी अच्छाखासा मकान बना हुआ है.

इस सवाल का जवाब रामाकृष्णनन साफसाफ नहीं दे पाया कि काफी इनवैस्टमेंट कर के पत्नी को बच्ची के साथ कर्नाटक में क्यों रखता था.

चाय के प्यालों से पलटी जांच

पुलिस उलझी हुई थी. एक दिन पुलिस आईजी प्रवीण सूद मानसिक एकाग्रता के लिए चाय की चुस्की ले रहे थे. विशाला हत्याकांड की उस प्राथमिक जांच का अध्ययन कर रहे थे. घटनास्थल पर ली गई कुछ तसवीरों में एकबारगी उन की नजर चाय के 2 खाली प्यालों पर गई, जो सेंटर टेबल पर रखे थे.

वह उसे एक सीध में रखे देख चौंक उठे. उन के मुंह से अचानक निकल पड़ा यह मर्डर लूट के लिए किया गया केस नहीं हो सकता. कोई एक या 2 व्यक्ति जरूर घर में आए होंगे. वे करीबी रिश्तेदार या परिचित भी हो सकते हैं. उन्हें विशाला ने चाय पिलाई होगी. आने वाला व्यक्ति एक या 2 हो सकते हैं. एक होने की स्थिति में एक कप की चाय विशाला ने खुद पी होगी.

इस विश्लेषण के बाद विशाला के मोबाइल की काल डिटेल्स का भी अध्ययन किया. उस से मालूम हुआ कि हत्या वाले दिन ही विशाला को उस के पति की काल आई थी. फिर क्या था, यह जानकारी पुलिस के लिए उम्मीद जगा गई और उन के शक की सूई विशाला के पति रामाकृष्णनन पर जा कर रुक गई.

उस के बाद पुलिस द्वारा मामले की जांच के लिए बनाई गई टीमों को गाइडलाइन जारी कर दी गई. जिस में विशाला के पति से सख्ती से पूछताछ करनी थी. जांच टीम ने ऐसा ही किया.

विशाला के पति ने शुरू में तो पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की. बीचबीच में घडि़याली आंसू भी बहाता रहा. आखिर में पुलिस ने पूछा कि उस ने हत्या वाले दिन विशाला को किसलिए फोन किया था?

यह सुन कर रामाकृष्णनन आश्चर्य में पड़ गया. उस के मुंह से अचानक निकल गया, ‘‘आप को कैसे मालूम?’’

जांच अधिकारी हवा में तीर चलाते हुए बोले, ‘‘मुझे तो यह भी मालूम है कि तुम्हारी विशाला से क्या बातें हुईं?’’

‘‘वह कैसे हो सकता है, क्या मेरा फोन रिकौर्ड किया गया है?’’ रामाकृष्णनन बोला.

‘‘रिकौर्ड मैं ने नहीं किया है, खुद तुम्हारी पत्नी ने ऐप के जरिए फोन में ही रिकौर्ड कर रखा है.’’ जांच अधिकारी ने दावे के साथ यह भी कहा कि कहो तो अभी सुना दूं वह रिकौर्डिंग.

इतना सुनने के बाद रामाकृष्णनन की स्थिति जड़वत हो गई थी, काटो तो खून नहीं वाला शरीर बन चुका था. उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. जांच अधिकारी डपटते हुए बोले, ‘‘तुम्हारा राज खुल चुका है, गनीमत इसी में है कि तुम सब कुछ सचसच बता दो.’’

इस तरह विशाला हत्याकांड का करीब 20 दिनों में खुलासा हो गया. रामाकृष्णनन ने पुलिस को अपनी पत्नी की हत्या की जो कहानी बताई, दिलचस्प थी.

पति ने अपनी कंपनी के कर्मचारी को दी सुपारी

विशाला के पति ने अपना जुर्म स्वीकारते हुए कहा कि उस की हत्या के लिए सुपारी दी गई. उत्तर प्रदेश के गोरखपुर का एक व्यक्ति स्वामीनाथ निषाद दुबई में रामाकृष्णनन की कंपनी में नौकरी करता था.

वह बहुत विश्वासपात्र व्यक्ति था. एक दिन उस ने उस से कहा कि भारत में किसी व्यक्ति की हत्या करानी है. उस की जानकारी में कोई ऐसा सुपारी किलर है तो बताए.

स्वामीनाथ निषाद पूरी जानकारी ले कर 5 लाख रुपए में काम करवाने के लिए तैयार हो गया. वैसे भी उस का दुबई में नौकरी के अनुबंध का समय पूरा होने वाला था. उस के भारत जाने का समय भी आ गया था.

पत्नी की हत्या करवाने के बारे में उस ने पुलिस को जो कारण बताया, वह इस प्रकार है.

बात मार्च, 2021 की है. रामाकृष्णनन अपनी पत्नी विशाला और बेटी के साथ अपने घर आया. बेटी पैदा होने के बाद दोनों के दांपत्य में किसी बात को ले कर खटास पैदा हो गई थी.

विशाला चाहती थी बाकी की जिंदगी वह भारत आ कर बिताए. दुबई में एक अच्छे सेटलमेंट को छोड़ कर भारत में आ कर बसने की जिद से रिश्तों में कड़वाहट बढ़ती गई.

रामाकृष्णनन ने यह भी बताया कि विशाला भारत में किसी और व्यक्ति से प्यार करती थी, इस का उसे शक था. शक का कारण भी था कि वह मोबाइल पर काफी देर तक बातें किया करती थी. इस की जानकारी उसे किसी नजदीकी ने दी थी.

कई बार उस के सामने भी इस तरह के संदिग्ध फोन पत्नी के फोन पर आते थे, तब वह अलग जा कर काफी देर तक बातें करती रहती थी. जब उस ने उस से जानना चाहा कि वह किस से लंबी बातें करती है, तब उस ने कुछ भी बताने से इनकार कर दिया था.

उस के भारत में रहने की जिद से उस का शक और पक्का हो गया था.  रामाकृष्णनन ने कहा कि वह विशाला से बेहद प्यार करता था. उसे किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहता था. यही वजह थी कि उस ने विशाला की

भावनाओं की कद्र करते हुए ब्रह्मावर के कुंब्रागोडू में एक अच्छे अपार्टमेंट की व्यवस्था कर दी थी.

आलीशान तरीके से उस को सजायासंवारा गया. सभी सुविधाओं की व्यवस्था की गई, ताकि  विशाला को खुश किया जा सके. वह भारत में एक संपन्न परिवार की तरह सम्मानपूर्वक इस अपार्टमेंट में रह सके. इसी वर्ष मार्च के महीने में वह अपनी पत्नी और बेटी को ले कर भारत आया था.

कर्नाटक के उडुपी शहर में स्थित अपने निजी अपार्टमेंट में काफी दिनों तक साथ गुजारे थे. उस के बाद वह तीनों वापस दुबई चले गए. जितने दिन विशाला दुबई में रही, वह पति को परेशान करती रही. अंत में ऊब कर वह 2 जुलाई, 2021 को पत्नी विशाला और बेटी के साथ भारत आया. उसी दौरान उस ने स्वामीनाथ निषाद से संपर्क किया था, जो उस समय गोरखपुर आया हुआ था.

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से उडुपी, कर्नाटक की दूरी लगभग 2000 किलोमीटर से अधिक है. वहां रेलगाड़ी से पहुंचने में लगभग 2 दिन का वक्त लगता है. उस ने स्वामीनाथ को उडुपी बुला लिया. उस के उडुपी पहुंचने पर एक होटल में उस के रुकने की व्यवस्था की गई थी. ताकि जब वह घर पर आए तो फ्रैश हालत में लोकल सा मालूम हो.

चूंकि उसे पत्नी का चेहरा स्वामीनाथ को दिखाना था, इसलिए वह स्वामीनाथ को घर ले गया और पत्नी से उस की मुलाकात करवाई. उस ने स्वामीनाथ का परिचय अपने दोस्त के रूप में कराया.

पत्नी को बताया कि मेरा यह दोस्त स्वामीनाथ परेशानी या समस्या में मददगार बन सकता है. इस के कुछ दिनों बाद रामाकृष्णनन दुबई चला गया. पत्नी विशाला जब बेटी को ले कर 2 जुलाई को भारत आई थी, तब अपार्टमेंट की चाबी उसी के पास थी, लेकिन वह अपने मांबाप के पास ही रहती थी.

रामाकृष्णन ने बताया कि कौन्ट्रैक्ट किलर को विशाला के मायके की कोई जानकारी नहीं दी गई थी. विशाला की हत्या करने की योजना अपने फ्लैट में ही बनाई गई. वारदात के दिन रामकृष्णनन ने पत्नी को फोन किया कि उस का दोस्त स्वामीनाथ कोई गिफ्ट ले कर अपार्टमेंट पर पहुंचने वाला है. उसे वह रिसीव कर ले.

उस दिन वह वह आटो से बैंक जा रही थी. फोन पर बात होते ही वह तुरंत वापस अपार्टमेंट में पहुंच गई. कुछ ही देर में स्वामीनाथ भी अपने साथी के साथ वहां पहुंच गया.

पति का दोस्त होने के नाते विशाला ने उन दोनों को जलपान करवाया. चाय पिलाई. इसी बीच स्वामीनाथ ने अपना मोबाइल चार्ज करने के लिए विशाला से चार्जर मांगा. विशाला ने पास में लगे चार्जर में स्वामीनाथ का मोबाइल लगा दिया.

विशाला को क्या पता था कि वह पति का दोस्त नहीं, कोई सुपारी किलर है. उस ने अपने साथी की मदद से विशाला को तब दबोच लिया, जब वह उसे विदा करने के लिए पीछेपीछे चल रही थी.

स्वामीनाथ ने वहीं पास में रखे मोबाइल चार्जर के तार को एक झटके में विशाला की गरदन में लपेट दिया.  कुछ समय में उस की दम घुटने से मौत हो गई.

उडुपी पुलिस ने विशाला हत्याकांड की गुत्थी सुलझा ली थी, कथा लिखे जाने तक स्वामीनाथ की तलाश में जुट गई. इस के लिए पुलिस ने उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर के कई चक्कर लगाए.

गोरखपुर पुलिस के सहयोग से आखिरकार स्वामीनाथ पुलिस के हत्थे चढ़ गया. उस के दूसरे साथी को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.

उधर विशाला के घर वालों का कहना है कि विशाला का पति किसी अन्य महिला के संपर्क में था. वह विशाला को छोड़ कर किसी और महिला के साथ जीवन व्यतीत करना चाहता था. विशाला इस का विरोध करती थी, इसलिए रामाकृष्णनन ने विशाला को अपनी प्रेम कहानी को अंजाम देने के लिए विशाला को रास्ते से हटाया.

बहरहाल, पुलिस ने विशाला की हत्या के आरोप में उस के पति रामाकृष्णनन सुपारी किलर स्वामीनाथ और उस के साथी को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया.

प्रेमिका की खातिर : अपने ही परिवार का कातिल

ठीक 3 साल पहले 26 अप्रैल, 2018 की सुबह के करीब साढ़े 11 बज रहे थे. उत्तर प्रदेश के कासगंज में थाना ढोलना क्षेत्र के पास रेलवे ट्रैक पर बकरियां चराते हुए एक आदमी चला जा रहा था. ट्रैक के दोनों ओर झाड़जंगल की वजह से वह आदमी लगभग हर दिन इसी ट्रैक के पास अपनी बकरियां चराने के लिए आता था.

लेकिन उस दिन उस ने कुछ ऐसा देखा जिस से उस की रूह कांप गई थी. रेलवे ट्रैक पर एक व्यक्ति की लाश पड़ी थी. उस लाश की स्थिति इतनी भयानक थी, जिसे देख कर उस का दिल दहशत से भर गया था. उस लाश का न तो सिर था और न ही दोनों हाथों की हथेलियां.

यह देख बकरियां चराता हुआ यह शख्स अपनी बकरियां उसी ट्रैक पर छोड़ कर सीधा अपने घर की ओर भागा. उस लाश को देख कर वह इतना डर गया था कि उस के गले से आवाज तक नहीं निकल रही थी.

थोड़ा समय बीता तो वह उसी ट्रैक पर ढोलना थाने के पुलिसकर्मियों की टीम को ले कर पहुंचा और उस ने पुलिसकर्मियों को दूर से उस जगह की ओर इशारा कर के दिखाया, जहां पर वह लाश पड़ी थी.

ढोलना थाने की पुलिस लाश के पास पहुंची और उन्हें भी अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हुआ. वैसे भी बिना गरदन और हथेलियों वाली डैड बौडी हर दिन देखने को नहीं मिलती.

मौके पर पहुंची पुलिस की टीम ने आसपास के इलाके की घेराबंदी कर तुरंत जांच शुरू कर दी.

कुछ ही देर में देखते ही देखते उस इलाके में और अधिक पुलिसकर्मी आ पहुंचे और उन के साथ फोरैंसिक की पूरी टीम आ पहुंची. नियमित छानबीन करते हुए पुलिस को लाश के शरीर पर पहने कपड़ों की जेब से एक आधार कार्ड और एलआईसी का एक कागज भी मिला.

आधार कार्ड पर मृत शख्स का नाम राकेश था. आधार कार्ड को बेस बना कर पुलिस ने जल्द ही आधार कार्ड पर दिए पते पर संपर्क साधा और मृत व्यक्ति के पिता बनवारी लाल को लाश की पहचान करने के लिए जल्द से जल्द आने के लिए कहा.

कुछ ही घंटों में बनवारी लाल अपने 2 बेटों, राजीव और प्रवेश के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. तीनों का शरीर पसीने से लथपथ था.

बनवारी लाल एक रिटायर्ड पुलिसकर्मी होने के नाते मामले की गंभीरता को बहुत अच्छे से समझ सकते थे. लेकिन बात लाश की पहचान की थी, वह भी तब जब उन्हें अपने बेटे की लाश की पहचान करनी थी तो उन का दिल जोरों से धड़क रहा था.

वह घटनास्थल पर मौजूद पुलिसकर्मियों से हांफते हुए बोले, ‘‘साहब, आप ने मुझे याद किया?’’

ढोलना थानाप्रभारी ने बनवारी लाल से कहा, ‘‘जी हां, आप को एक लाश की पहचान करने के लिए बुलाया गया है. क्योंकि मृत व्यक्ति की जेब से बरामद आधार कार्ड में राकेश का नाम दिया हुआ था और कुछ एलआईसी के कागजात भी थे.’’

बनवारी लाल हांफते स्वर में डरते हुए बोले, ‘‘जी साहब, आप हमें लाश के पास ले कर चलिए.’’

यह कहते हुए वह पुलिस टीम के साथ चल दिए. पुलिस की एक टीम बनवारी लाल और उन के दोनों बेटों को वहां ले गई, जहां पर मृत लाश को नीले रंग की प्लास्टिक की शीट में लपेट कर रखा गया था.

बनवारी लाल ने की लाश की शिनाख्त

लाश के पास खड़े व्यक्ति ने बनवारी लाल और अन्य 2 लोगों को आते हुए देख कर नीली शीट में लगी चेन को नीचे की ओर पैरों तक खींचा और बनवारी लाल को मृतक को देखने देने के लिए खुद साइड में खड़ा हो गया.

मृत व्यक्ति का सिर नहीं होने की वजह से बनवारी लाल उसे एक नजर देख कर डर से कांप गए. लेकिन अगले ही पल उन का डर शोक में तब तब्दील हो गया, जब उन्होंने मृत व्यक्ति की लाश के पहने कपड़ों को देखा.

ये वही कपड़े थे जो बनवारी लाल ने कुछ महीनों पहले अपने बेटे राकेश को उस के जन्मदिन पर गिफ्ट किए थे.

कपड़े देख कर बनवारी लाल अचानक से फूटफूट कर रोनेबिलखने लगे और जोर से चिल्लाचिल्ला कर राकेश का नाम ले कर चीखने लगे.

अपने भाई की लाश की ऐसी हालत और पिता को रोताबिलखता देख कर राजीव और प्रवेश की आंखों से आंसू रोके नहीं रुके. लेकिन फिर भी पिता का सहारा बनते हुए दोनों ने बनवारी लाल को लाश से दूर किया.

कुछ देर में थानाप्रभारी वहां आए और उन्होंने रोते हुए बनवारी लाल को ढांढस बंधाया. उन्होंने बनवारी लाल से कहा, ‘‘मुझे अफसोस है आप के बेटे की मौत पर. हमारी तफ्तीश जारी है. केस को सुलझाने के लिए हमें आप से राकेश को ले कर कुछ जरूरी सवाल करने हैं. आप थाने में पहुंचिए हम यहां पर अपनी जांच कर के थाने लौट कर आप से बात करेंगे.’’

सिर और हथेलियां कटी लाश को पहचानना किसी के वश की बात नहीं थी, इसलिए थानाप्रभारी ने लाश की पहचान को पुख्ता करने के लिए लाश की डीएनए जांच करवाना जरूरी समझा.

उन्होंने जल्द ही राकेश के मातापिता से संपर्क कर उन का डीएनए सैंपल लिया और उसे आगरा स्थित विधि विज्ञान प्रयोगशाला में भेज दिया.

इस घटना को तीन साल हो गए और साल 2021 की अगस्त में एक दिन अचानक से कासगंज के ढोलना थाने में आगरा के विधि विज्ञान प्रयोगशाला से डीएनए रिपोर्ट का रिजल्ट आया.

डीएनए रिपोर्ट ने बढ़ाई पुलिस की बेचैनी

रिपोर्ट खोल कर जब थानाप्रभारी ने देखा तो उन की आंखें खुली की खुली रह गईं. उन के मन में हजारों सवाल तूफान की तरह खड़े हो उठे. 3 साल से ठंडे बस्ते में पड़ा मामला अचानक से अब एक नया मोड़ ले चुका था.

दरअसल, जिस डीएनए रिपोर्ट का इतने लंबे समय से इंतजार हो रहा था, उस रिपोर्ट में मृत व्यक्ति का डीएनए बनवारी लाल और इंद्रावती के डीएनए से कोई मैच ही नहीं था.

यह देख कर थानाप्रभारी ने 3 साल पुरानी इस केस की फाइलें निकलवाईं. मृत व्यक्ति की पहचान का पता लगाने के लिए उन्होंने अप्रैल, 2018 में उस इलाके से गुमशुदा लोगों की लिस्ट निकलवाई.

राकेश की उम्र के लोगों में उस इलाके से सिर्फ एक ही आदमी गायब हुआ था, वह था गांव नौगवां, थाना गंगीरी, अलीगढ़ का रहने वाला राजेंद्र उर्फ कलुआ.

बिलकुल समय न गंवाते हुए पुलिस तुरंत कलुआ के घर पहुंची और उन से कलुआ के बारे में पूछताछ की. कलुआ तो नहीं मिला लेकिन पुलिस को कई ऐसे तार मिल गए जोकि इस केस से जुड़े हो सकते थे.

कलुआ के मातापिता ने बताया कि उन के बेटे की दोस्ती राकेश के साथ थी. 25 अप्रैल को गायब होने के एक दिन पहले राकेश कलुआ को ले कर अपने बीवीबच्चों को ढूंढने का नाम ले कर उसे अपने साथ ले गया था. जिस के बाद कलुआ फिर कभी घर नहीं लौटा.

कलुआ के मांबाप से उन का डीएनए का सैंपल ले कर पुलिस ने फिर से आगरा स्थित विधिविज्ञान प्रयोगशाला भेज दिया. इस बार डीएनए की रिपोर्ट जल्द ही आ गई थी.

रिपोर्ट से यह साफ हो गया था कि 3 साल पहले रेलवे ट्रैक पर मरने वाला व्यक्ति राकेश नहीं बल्कि राजेंद्र उर्फ कलुआ था, क्योंकि डीएनए के सैंपल कलुआ के मांबाप से मिल गए थे.

पूरे मामले में कुछ इस तरह से मोड़ आना किसी को भी अपना सिर पकड़ने पर मजबूर कर सकता था जोकि थानाप्रभारी ने किया भी.

थानाप्रभारी ने 3 साल पहले अपने मन में उठने वाले सवालों को एक बार फिर से महसूस किया. उन्हें अचानक से वह सवाल याद आया कि सिर कटी लाश को देख कर बनवारी लाल ने एक पल में कैसे पहचान लिया कि यह उन के बेटे की लाश थी?

कलुआ से किस की कैसी दुश्मनी हो सकती थी? इस के अलावा इसी तरह के और भी कई सवाल थानाप्रभारी के मन में उठने लगे थे. इन सभी सवालों को ढूंढने के लिए पुलिस की टीम ने तत्परता से काम करना शुरू कर दिया था.

अगस्त के आखिरी दिनों तक पुलिस ने इस मामले की छानबीन के लिए प्रदेश में अपने मुखबिरों को सतर्क कर दिया था. उसी दौरान 31 अगस्त, 2021 के दिन पुलिस के एक ऐसे ही मुखबिर ने बताया कि वे जिस व्यक्ति की तलाश कर रहे हैं, उसे उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा से 10 किलोमीटर दूर बिसरख गांव में देखा गया है. यह व्यक्ति खुद राकेश ही था.

ढोलना पुलिस बिना किसी देरी के मुखबिर की दी हुई सूचना पर बिसरख गांव जाने के लिए निकल पड़ी. उसी बीच ढोलना थानाप्रभारी ने बिसरख थाने की पुलिस को इस की सूचना दी.

करीब 2 घंटे बाद मुखबिर के बताए हुए पते पर छापा मार कर पुलिस की टीम ने दिलीप शर्मा नाम के एक शख्स को पकड़ लिया, जिस का हुलिया काफी हद तक राकेश की तरह था.

दिलीप नाम का यह शख्स इलाके में प्रेमिका रूबी के घर में मौजूद था और वे दोनों कमरे में बंद हो कर एकदूसरे के साथ प्रेम प्रसंग में लीन थे. मामले की गंभीरता को देखते हुए ढोलना थानाप्रभारी बिसरख थाने में दिलीप को पूछताछ के लिए ले आए.

पूछताछ के दौरान पहले तो दिलीप ने खुद की पहचान दिलीप के नाम से बताई, लेकिन जब पुलिस की टीम ने उस की फोन लोकेशन, वाट्सऐप चैट इत्यादि के रिकौर्ड के आधार पर पूछताछ करनी शुरू की तो वह चारों खाने चित्त हो गया और अपना असली नाम राकेश बताते हुए पुलिस के सामने अपना गुनाह कुबूल कर लिया.

उस ने सिर्फ अपने दोस्त कलुआ की ही हत्या नहीं, बल्कि अपनी पत्नी और 2 बच्चों की हत्या का जुर्म भी कुबूल कर लिया, जिसे सुन कर सब की आंखें खुली की खुली रह गईं. इस शातिर कातिल के कत्ल की कहानी सुन कर किसी की भी रूह कांप जाए.

नौगवां, गंगीरी अलीगढ़ का रहने वाला राकेश ग्रेटर नोएडा में एक डाइग्नोसिस सेंटर में लैब टेक्नीशियन था. वह अपने छोटे से परिवार, जिस में उस की पत्नी रत्नेश, 3 साल की बेटी अवनि और डेढ़ साल के बेटे अर्पित के साथ ग्रेटर नोएडा से 10 किलोमीटर दूर चिपयाना गांव की पंचविहार कालोनी में रहता था. यह उस का अपना घर था.

उस के छोटे से परिवार में खुशियों की कोई कमी नहीं थी, लेकिन राकेश अपने शादीशुदा जीवन से खुश नहीं था. राकेश की शादी साल 2012 में उत्तर प्रदेश के एटा की रहने वाली रत्नेश से हुई थी. लेकिन यह शादी उस ने अपने परिवार के दबाव में की थी.

राकेश प्रेमिका से करना चाहता था शादी

दरअसल, राकेश बिसरख गांव की रहने वाली रूबी को अपनी शादी से पहले से प्यार करता था. दोनों किसी समय में साथ में पढ़ते थे. लेकिन परिवार की जिम्मेदारियों के बोझ की वजह से उस ने पहले प्राइवेट इंस्टीट्यूट से लैब टेक्नीशियन का कोर्स किया और ग्रेटर नोएडा में जौब करने लगा.

परिवार के दबाव में उस ने रत्नेश से शादी तो कर ली लेकिन रूबी के साथ उस का प्रेम संबंध खत्म नहीं हुआ, बल्कि वक्त के साथ उन का प्यार परवान चढ़ता गया. इसी दौरान रुबी की उत्तर प्रदेश में कांस्टेबल के पद पर नौकरी लग गई. राकेश के रत्नेश के साथ बच्चे भी हो गए. पहले अवनि फिर अगले साल अर्पित.

अपने परिवार में इतना उलझा हुआ होने के बावजूद वह रूबी से मिलने के लिए समय निकाल लिया करता था. रूबी और राकेश अकसर वाट्सऐप के जरिए अश्लील चैट भी किया करते थे, जिस से राकेश के मन में रूबी के लिए प्यार का तूफान उमड़ पड़ता था.

साल 2018 की वैलेनटाइंस डे (14 फरवरी) के दिन जब राकेश इसी तरह से रूबी के साथ वाट्सऐप पर सैक्स चैट में लीन था तो उस की पत्नी रत्नेश ने राकेश को उसे पीछे से रंगेहाथों पकड़ लिया. उस दिन राकेश और रत्नेश का खूब झगड़ा भी हुआ.

प्रेमिका की खातिर पत्नी व 2 बच्चों की हत्या कर आंगन में गाड़ा

दोनों के बीच झगड़ा अपने चरम पर पहुंच चुका था और राकेश ने अपना आपा खो दिया. राकेश ने आव देखा न ताव, रत्नेश पर लोहे की रौड से वार कर उस का सिर फाड़ दिया. रत्नेश की वहीं मौके पर मौत हो गई.

लेकिन रत्नेश की मौत के बाद मामला यहीं ठंडा नहीं हुआ. उस ने इस मौके का फायदा उठाया और अपने बच्चों से भी अपना पिंड छुड़ाने के बारे में विचार किया. उस ने जिस लोहे की रौड से रत्नेश की हत्या की थी, उसी से अपने दोनों बच्चों को भी मौत के घाट उतार दिया.

उस ने रातोंरात उन तीनों के लाशों को छिपाने के लिए अपने ही घर के आंगन में गहरा गड्ढा खोद दिया और उन तीनों को उसी में दफना दिया.

अगले दिन उस ने मजदूरों को बुलवा कर अपने घर के आंगन में सीमेंट की पुताई कर फर्श बनवा दिया.

यही नहीं, उस ने उसी दिन अपने स्थानीय इलाके के पुलिस थाने में जा कर अपने बीवी बच्चों की गुमशुदगी की सूचना भी दर्ज करवा दी. और यह सब उस ने अकेले नहीं किया, बल्कि अपनी प्रेमिका कांस्टेबल रूबी के दिए प्लान के अनुसार किया.

कुछ दिनों बाद जब रत्नेश के मायके से राकेश को फोन आने लगे तो पहले तो राकेश उन की बात यूं ही टालता रहा, लेकिन जब मायके वालों की तरफ से जोर बढ़ता गया तो उस ने अपनी प्रेमिका रूबी को यह बात बताई.

रूबी ने इस से बचने के लिए एक और प्लान सुझाया. जिस को सफल बनाने के लिए राकेश को एक और कत्ल करना था, जोकि उसी की उम्र और कदकाठी का होना चाहिए था. इस के लिए उस ने अपने गांव के बचपन के दोस्त राजेंद्र उर्फ कलुआ को चुना.

वह अगले दिन गांव जा कर अपनी बीवीबच्चों की तलाश करने के बहाने अपने साथ कलुआ को ले कर निकल गया. उस ने कलुआ को रास्ते में दारू भी पिलाई और खाना भी खिलाया.

जब वे रेलवे ट्रैक के पास सुनसान इलाके में पहुंचे तो राकेश ने मौका देख कर पहले से जंगलों में छिपा कर रखे गंडासे से कलुआ पर प्रहार कर दिया. कलुआ राकेश के पहले ही हमले को नहीं सह पाया और बेहाल हो कर नीचे गिर पड़ा.

राकेश ने घर वालों को किया साजिश में शामिल

राकेश ने मौके का फायदा उठा कर कलुआ पर इतने वार कर दिए कि उस की जान वहीं पर ही निकल गई.

राकेश ने उस के बाद कलुआ का सिर और हाथ के पंजे काट दिए ताकि लाश की पहचान न हो सके.

अपने इस काले कत्ल की दास्तान में उस ने अपने घरवालों को भी शरीक कर लिया. राकेश ने अपने घर वालों को लालच दिया कि अगर उस की शादी रूबी से हो गई तो मोटा पैसा दहेज में मिलेगा.

उस ने लाश की पहचान करने के लिए अपने पिता को राजी कर लिया. जिस के बाद ये सारी कहानी शुरू हुई.

इस बीच राकेश ने अपनी पहचान छिपाने के लिए एक फरजी आधार कार्ड भी बनवा लिया, जिस में उस ने अपना नाम दिलीप शर्मा रखा. रूबी की मदद से उस ने प्राइवेट अस्पताल से कुछ दिनों में कहीं बाहर जा कर अपने नाक की प्लास्टिक सर्जरी भी करवा ली. लेकिन अंत में वह पकड़ा ही गया.

पकड़े जाने के बाद पुलिस ने राकेश की निशानदेही पर पंचविहार कालोनी में उस के घर के आंगन में गड्ढा खुदवा कर उस की पत्नी और दोनों बच्चों के कंकाल और उस लोहे की रौड को बरामद कर लिया, जिस से उस ने अपने पूरे परिवार का खात्मा कर दिया था.

उस के बाद राकेश को साथ ले कर रेलवे स्टेशन के पास उस जगह पर छापा मारा, जहां पर उस ने कलुआ का कत्ल कर गंडासा छिपाया था.

पुलिस ने इस पूरे मामले में अभी तक कुल 6 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है. जिन में राकेश, उस की प्रेमिका रूबी, पिता बनवारी लाल, माता इंद्रावती व दोनों भाई राजीव और प्रवेश शामिल हैं. वे सभी फिलहाल जेल की सलाखों के पीछे हैं.

नरमुंड का रहस्य-भाग 1 : पत्नी का खतरनाक अवैध संबंध

औडियो में सुने पूरी कहानी

मुरादाबाद आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग पर एक गांव है शिमलाठेर, जो थाना कुंदरकी के अंतर्गत आता है. 9 सितंबर, 2017 को इसी गांव के रहने वाले 2 भाई लक्ष्मण और ओमकार अपने भतीजे शिवम के साथ अपने खेत में पानी लगाने पहुंचे. उन्हें दिन में ही पानी लगाना था, लेकिन दिन में बिजली नहीं थी, इसलिए वे रात में गए थे. रात होने की वजह से वे टौर्च भी ले गए थे.

वे खेत पर पहुंचे तो उन्हें कुछ आहट सी सुनाई दी. टौर्च की रोशनी में उन्होंने देखा तो वहां 4 आदमी खड़े थे. उन के हाथों में हथियार थे. उन्होंने गांव के ही बबलू को बांध कर बैठा रखा था. बबलू संपन्न आदमी था. उन्हें समझते देर नहीं लगी कि ये बदमाश हैं. डर के मारे वे जाने लगे तो एक बदमाश ने उन पर टौर्च की रोशनी डालते हुए चेतावनी दी, ‘‘अगर भागे तो गोलियों से छलनी कर दिए जाओगे. जहां हो, वहीं रुक जाओ.’’

तीनों निहत्थे थे, इसलिए अपनीअपनी जगह खड़े हो गए. बदमाश उन को वहीं ले आए, जहां बबलू बंधा बैठा था. उन्होंने उन्हें भी बांध कर बबलू के साथ बैठा दिया. बदमाशों ने बबलू के साथ मंत्रणा कर के लक्ष्मण को खोल दिया. 3 बदमाश लक्ष्मण को ले कर चले गए और एक राइफलधारी बदमाश बंधे हुए लोगों के पास चौकसी से खड़ा रहा.

कुछ देर बाद वह लक्ष्मण को ले कर लौटा तो उन में से एक ने कहा, ‘‘लड़का तो अच्छा है.’’

इस के बाद बदमाशों ने आपस में कुछ बातें की और वही 3 बदमाश उसे फिर से ले कर जंगल में चले गए. करीब 20 मिनट बाद वे लौटे तो उन के साथ लक्ष्मण नहीं था. उन में से एक बदमाश ने कहा, ‘‘काम हो गया.’’

बदमाश के मुंह से यह बात सुन कर ओमकार और शिवम घबरा गए. लक्ष्मण को ले कर उन के दिमाग में तरहतरह के खयाल उठने लगे.

इस के बाद बदमाशों ने बबलू, ओमकार और शिवम की तलाशी ली. उन के पास जो मिला, उसे ले कर उन बदमाशों ने तीनों को औंधे मुंह लिटा कर उन के ऊपर चादर डाल कर धमकी दी कि वे अपनी खैर चाहते हैं तो इसी तरह पड़े रहें. डर की वजह से वे उसी तरह पड़े रहे.

जब उन्हें लगा कि बदमाश चले गए हैं तो बबलू ने चादर हटा कर इधरउधर देखा. वहां कोई नहीं दिखा तो उस ने ओमकार और शिवम से कहा, ‘‘लगता है, वे चले गए.’’

जब मिली लक्ष्मण की सिरकटी लाश

किसी तरह बबलू ने अपने हाथ खोल कर उन दोनों के हाथ भी खोले. इस के बाद सभी तेजी से गांव की ओर भागे. गांव जा कर उन्होंने बताया कि बदमाशों ने उन्हें बंधक बना कर लूट लिया और लक्ष्मण को अपने साथ ले गए हैं. उन के इतना कहते ही गांव में शोर मच गया. लाठीडंडा व अन्य हथियार ले कर गांव वाले खेतों की तरफ दौड़ पड़े.

सब लक्ष्मण और बदमाशों को खोजने लगे. थोड़ी देर में एक खेत के पुश्ते पर गड्ढे में लक्ष्मण की सिरकटी लाश मिल गई. इस की सूचना बबलू ने वहीं से फोन द्वारा थाना कुंदरकी को दे दी. उस समय थानाप्रभारी धीरज सिंह सोलंकी हाईवे पर गश्त पर थे. सूचना मिलते ही वह घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने इस वारदात की जानकारी एसएसपी प्रीतिंदर सिंह, एसपी (देहात) उदयशंकर सिंह, सीओ (बिलारी) अर्चना सिंह को दे दी.

लक्ष्मण की हत्या की बारे में पता चलने पर उस के घर में कोहराम मच गया था. उस की पत्नी अमरवती और दोनों बच्चे बिलख रहे थे. एसएसपी के निर्देश पर रात में ही घटनास्थल के आसपास सघन चैकिंग अभियान शुरू कर दिया गया, लेकिन न बदमाशों का सुराग मिला और न ही लक्ष्मण का सिर.

सवेरा होने पर पुलिस ने घटनास्थल की जरूरी काररवाई पूरी कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए मुरादाबाद भिजवा दिया. हालांकि बबलू लक्ष्मण के घर वालों के दुख में शरीक हो कर हर काम में बढ़चढ़ कर भाग ले रहा था, लेकिन उन्हें यही लग रहा था कि लक्ष्मण की हत्या में बबलू का हाथ है, क्योंकि वह उन से अदावत रखता था.

जैसेजैसे आसपास के गांवों में बदमाशों द्वारा शिमलाठेर गांव के लक्ष्मण का सिर काट कर ले जाने वाली बात पता चली, वे घटनास्थल की तरफ चल पड़े.

वहां पहुंच कर पता चला कि इस घटना के विरोध में लोग शिमलाठेर गांव में जमा हो रहे हैं तो वे भी वहीं चले गए. लक्ष्मण के घर के सामने इकट्ठा लोगों का पुलिस के प्रति गुस्सा बढ़ता जा रहा था. लक्ष्मण का सिर न मिलने से लोगों का गुस्सा फूट पड़ा और उन्होंने मुरादाबादआगरा राजमार्ग पर जाम लगा दिया.

कुछ ही देर में राजमार्ग के दोनों तरफ कई किलोमीटर लंबा जमा लग गया. सूचना मिलने पर थाना पुलिस के अलावा सीओ अर्चना सिंह भी वहां पहुंच गईं. उन्होंने भीड़ को समझाने की कोशिश की, पर लोग वहां से नहीं हटे. तब एसएसपी प्रीतिंदर सिंह और एसपी (देहात) उदयशंकर सिंह भी वहां पहुंच गए. एसएसपी ने प्रदर्शनकारियों से कहा कि पुलिस को कुछ समय दो, लक्ष्मण का सिर व कातिल जल्द से जल्द पकड़े जाएंगे.

उन के समझाने के बाद उत्तेजित लोगों ने जाम खोल दिया. 10 सितंबर को पोस्टमार्टम के बाद लक्ष्मण का शव उस के घर वालों को सौंप दिया गया तो उसी दिन उन्होंने उस का अंतिम संस्कार कर दिया. उस समय भारी संख्या में पुलिस भी मौजूद थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया था कि लक्ष्मण का सिर किसी तेज धारदार हथियार से एक ही झटके में काटा गया था. मरने से पहले उस ने बचाव के लिए संघर्ष किया था, क्योंकि उस की कलाइयों पर गहरे चोट के निशान थे.

मृतक के भाई ओमकार की तहरीर पर पुलिस ने गांव के ही बबलू और 4 अज्ञात लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 34 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली. अगले दिन यह मामला अखबारों की सुर्खियों में आया तो इलाके में सनसनी फैल गई.

उधर एसपी देहात उदयशंकर सिंह व सीओ अर्चना सिंह जंगलों में सर्च औपरेशन चला कर लक्ष्मण का सिर ढूंढ रहे थे. जब सफलता नहीं मिली तो एसएसपी प्रीतिंदर सिंह ने सीओ अर्चना की अध्यक्षता में एक पुलिस टीम का गठन कर दिया.

टीम में थानाप्रभारी धीरज चौधरी, एसआई राजेश कुमार पुंडीर, ऋषि कपूर, कांस्टेबल अफसर अली, मोहम्मद नासिर, केशव त्यागी, कपिल कुमार, वेदप्रकाश दीक्षित के अलावा सर्विलांस टीम के एसआई नीरज शर्मा, कांस्टेबल अजय, राजीव कुमार, रवि कुमार, चंद्रशेखर आदि को शामिल किया गया था. एसओजी को भी टीम के साथ लगा दिया गया था. टीम का निर्देशन एसपी (देहात) उदयशंकर सिंह कर रहे थे.

चूंकि रिपोर्ट बबलू के नाम दर्ज थी, इसलिए पूछताछ के लिए उसे थाने ले आया गया. पूछताछ में वह खुद को बेकसूर बताने के अलावा यह भी कह रहा था कि वह दिशामैदान के लिए गया था, तभी बदमाशों ने उसे बंधक बना लिया था. उस ने बताया कि बदमाश उस की जेब से 3 हजार रुपए निकाल ले गए हैं. जब बबलू से कोई क्लू नहीं मिला तो पुलिस ने उसे घर भेज दिया.

नाकाम साजिश : बहू ने बनाई सास की हत्या की योजना

कुलदीप कौर पिछले कई महीनों से परेशान थी, लेकिन परेशानी की वजह उस की समझ में नहीं आ रही थी. उस का मन हर समय बेचैन रहता था. अजीबोगरीब विचार मन को उलझाए रखते थे. वह कितना भी अच्छा सोचने की कोशिश करती, मन सकारात्मक सोच की ओर न जा कर नकारात्मक सोच में ही डेरा जमाए रहता था.

बुरे विचारों से जैसे कुलदीप का नाता जुड़ गया था. मन को समझाने और बुरे विचारों से दूर रहने के लिए वह अपना अधिकांश समय गुरुद्वारे में व्यतीत करने लगी थी.

कुलदीप कौर की चिंता का विषय सात समंदर पार पंजाब में बैठी अपनी मां राजविंदर कौर थीं. हालांकि 57 वर्षीय राजविंदर कौर की देखभाल के लिए गांव के घर में उस की भाभी शगुनप्रीत कौर थी, लेकिन भाभी पर उसे भरोसा नहीं था.

कुलदीप के पति मनमोहन सिंह ने उसे कई बार समझाया भी था कि बेकार में चिंता करने से कोई फायदा नहीं है. अगर मन इतना ही परेशान है तो इंडिया का चक्कर लगा आओ. वहां अपनी मां से मिल लेना. लेकिन समस्या यह थी कि उन दिनों कुलदीप गर्भवती थी. डाक्टरों ने ऐसी हालत में हवाई यात्रा करने से मना कर रखा था. बहरहाल, इसी उधेड़बुन में कुलदीप कौर के दिन गुजर रहे थे.

भरापूरा परिवार था बलदेव सिंह का

कुलदीप कौर मूलत: गांव बुट्टर सिविया, थाना मेहता, जिला अमृतसर, पंजाब की रहने वाली थी. उस के जीवन के 16 बसंत भी अपने गांव बुट्टर में ही गुजरे थे. गांव में रहते ही उस ने जवानी की दहलीज पर पांव रखे थे. कुलदीप का छोटा सा परिवार था.

पिता बलदेव सिंह और मां राजविंदर कौर के अलावा उस के 2 भाई थे गगनदीप सिंह और सरबजीत सिंह. तीनों भाईबहनों का आपस में बहुत प्यार था. वे तीनों बहनभाई कम दोस्त ज्यादा लगते थे. आपस में इन की कोई बात एकदूसरे से छिपी नहीं रहती थी.

बलदेव सिंह जाट सिख किसान थे. उन के पास खेती की ज्यादा जमीन तो नहीं थी, पर जितनी थी वह परिवार की हर जरूरत पूरी करने के लिए काफी थी. इसीलिए बलदेव सिंह ने अपने तीनों बच्चों को सिर उठा कर आजादी से जीना सिखाया था.

उन्होंने तीनों बच्चों को अपनी हैसियत के हिसाब से पढ़ाया था. बच्चों के लिए अभी वह और भी बहुत कुछ करना चाहते थे, पर साल 2002 में उन की मौत हो गई.

बलदेव सिंह की मौत के बाद पूरे परिवार की जिम्मेदारियां राजविंदर कौर के कंधे पर आ गई थीं. उस वक्त उन का बड़ा बेटा गगनदीप जवानी की दहलीज पर कदम रख चुका था. वह मां का हाथ बंटा कर उस का सहारा बन गया. घर की गाड़ी फिर से अपनी स्पीड से दौड़ने लगी थी.

साल 2008 इस परिवार के लिए अच्छा साबित हुआ. इसी साल कुलदीप कौर के लिए एक अच्छे परिवार का रिश्ता आया, लड़के का नाम मनमोहन सिंह था. वह अच्छे घर का पढ़ालिखा गबरू जाट था और आस्ट्रेलिया में अपना कारोबार करता था. राजविंदर कौर को मनमोहन और उस का परिवार कुलदीप के लिए पसंद आया. कुलदीप को भी मनमोहन सिंह पसंद था. दोनों परिवारों की रजामंदी के बाद सन 2008 में कुलदीप कौर और मनमोहन सिंह की शादी धूमधाम से संपन्न हो गई. इस शादी से सभी लोग खुश थे.

अचानक हो गई गगनदीप की मौत

खुशी का माहौल था, पर कहीं अनहोनी मुंह पसारे इस परिवार की खुशियों को लीलने के लिए घात लगाए बैठी थी. कुलदीप की शादी के कुछ दिनों बाद ही इस परिवार को तब बड़ा झटका लगा, जब अचानक गगनदीप की मौत हो गई.

गगनदीप की मौत का सदमा उस की मां राजविंदर कौर और उस के छोटे भाईबहन को भीतर तक तोड़ गया. कुलदीप की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसे नाजुक मौके पर वह अपनी मां और छोटे भाई सरबजीत को अकेला छोड़ कर पति के साथ आस्ट्रेलिया जाए या यहीं रह कर उन का साथ दे.
संसार का नियम है, यहां लोग आतेजाते हैं, सब कुछ समय की गति से चलता रहता है. जबकि समय का चक्र और संसार के कामकाज कभी नहीं रुकते. वक्त का मरहम बड़े से बड़ा घाव भर देता है. बहरहाल, अपनी मां और भाई को दिलासा दे कर कुलदीप कौर अपने पति मनमोहन सिंह के साथ आस्ट्रेलिया चली गई. कुलदीप को आस्ट्रेलिया गए 10 साल बीत गए थे.

इस बीच वह सरताज सिंह और सम्राट सिंह 2 बच्चों की मां बन गई थी. उस के पीछे मायके में छोटे भाई सरबजीत सिंह की भी शगुनप्रीत कौर के साथ शादी हो गई थी. सरबजीत भी 2 बच्चों बेटी मनतलब कौर और बेटे वारिसदीप सिंह का बाप बन गया था.

कुलदीप की अपनी मां और भाई से हर हफ्ते फोन पर बातें होती रहती थीं. सभी अपनीअपनी जिंदगी में मशगूल थे कि साल 2015 की एक मनहूस खबर ने कुलदीप को अंदर तक तोड़ कर रख दिया. इस घटना से राजविंदर कौर की तो जैसे दुनिया ही उजड़ गई थी. उसे अपने पति और बड़े बेटे गगनदीप की मौत का इतना दुख नहीं हुआ था, जितना दुख सरबजीत की मौत का हुआ.

सरबजीत की मौत बड़े रहस्यमय तरीके से हुई थी. वह रात को खाना खा कर ऐसा सोया कि सोता ही रह गया. सरबजीत अपने परिवार का एकमात्र सहारा था. उस की मौत से परिवार की गाड़ी पूरी तरह लड़खड़ा गई.

वक्त ने ताजा जख्मों पर एक बार फिर से मरहम लगाया. राजविंदर कौर ने अपने आप को पूरी तरह से अकेला मान कर जीना सीख लिया था. समय का चक्र फिर से अपनी रफ्तार से चलने लगा. कुलदीप मां को फोन करकर के सांत्वना देती रहती थी. सैकड़ों मील दूर बैठी कुलदीप और कर भी क्या सकती थी. इसी तरह दिन गुजरते गए थे और साल 2016 आ गया.
दूसरे बेटे की मौत से टूट गई मां

कुलदीप कौर ने महसूस किया कि सरबजीत सिंह की मौत के बाद गांव से उस की मां के जो फोन आते थे, वह काफी मायूसी भरे होते थे. सुन कर कुलदीप को ऐसा लगता था, जैसे उस की मां बहुत परेशान और दुखी हैं. उस ने बहुत बार मां से इस बारे में पूछा भी था, पर मां ने उसे कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया था. वह बहुत दुखी लग रही थीं. ज्यादा कुरेद कर पूछने पर राजविंदर ने सिर्फ इतना ही बताया कि पिछले कुछ समय से शगुन का चालचलन ठीक नहीं है.

कुलदीप कौर ने जब शगुन से इस बारे में बात की तो उस ने बताया, ‘‘दीदी, ऐसी कोई बात नहीं है. बीजी को एक तो बेटे की मौत का सदमा है, ऊपर से अकेलापन परेशान करता है. कभीकभी शुगर की बीमारी की वजह से भी उन्हें घबराहट होने लगती है. आप चिंता न करें, मैं सब संभाल लूंगी.’’

शगुन की गोलमोल बातें कुलदीप की समझ से बाहर थीं. वह अच्छी तरह जानती थी कि शगुन बहुत चालाक है. वह सच्ची बात कभी नहीं बताएगी. इसीलिए कुलदीप ने अपने गांव के कुछ खास लोगों को फोन कर के विनती की कि वे उस के घर हो रहे क्रियाकलापों पर नजर रखें. गांव के जानकार लोगों ने कुलदीप कौर की बात मान कर राजविंदर के घर पर नजर रखनी शुरू कर दी.

बाद में उन्होंने कुलदीप को बताया कि उस की मां के घर में सामने से तो सब कुछ ठीक नजर आता है. शगुन लोगों के सामने तो राजविंदर कौर का बहुत खयाल रखती है. बाकी उन की पीठ पीछे घर में सासबहू का आपस में कैसा बर्ताव है, कुछ कहा नहीं जा सकता. बहरहाल, ऐसा जवाब सुन कर कुलदीप कौर मन मसोस कर रह जाती थी और अपनी मां की सलामती की दुआ करती थी.

29 अक्तूबर, 2016 को शगुन ने कुलदीप कौर को आस्ट्रेलिया फोन कर के खबर दी कि बीजी का देहांत हो गया है. शगुन ने मौत की वजह राजविंदर का शुगर लेवल कम हो जाना बताया था. उन दिनों कुलदीप गर्भवती थी, डाक्टरों ने उसे यात्रा के लिए मना कर रखा था सो अपने घर के एकांत में कुलदीप ने छाती पीट कर मां की मौत का मातम मना लिया. अब उस के मायके के परिवार में सिवाय उस के कोई और नहीं बचा था.

राजविंदर की मौत के बाद 2-4 बार शगुन के फोन उसे आए थे, पर वह बिना सिरपैर की बातें ही किया करती थी. एक बात थी जो हर समय कुलदीप को परेशान कर रही थी. उसे हर समय ऐसा लगता था जैसे उस की मां की मौत स्वाभाविक नहीं थी. जरूर उस के साथ कोई अनहोनी घटी थी, पर क्या हुआ और कैसे यह बात उस की समझ में नहीं आती थी.

मां सरबजीत की मौत के बाद शगुन गांव की कोठी और सारी जमीन की मालकिन बन गई थी. कुलदीप अकसर यह भी सोचा करती थी कि कहीं उस की मां की मौत किसी षडयंत्र की वजह से तो नहीं हुई.
बहरहाल, कुलदीप ने एक बार फिर से अपने गांव के भरोसेमंद लोगों से अपनी मां की मौत से परदा उठाने के लिए विनती की. इस बात का पता लगाने में गांव के कुछ खास लोगों को पौने 2 साल का समय लग गया.

जुलाई 2018 में कुलदीप कौर को सूचना मिली थी कि उस की मां राजविंदर कौर की मौत में उस की भाभी शगुन का हाथ था. यह सुन कर वह ज्यादा हैरान नहीं हुई, क्योंकि उसे शगुन पर शुरू से ही शक था. यह तो दूर का मामला था, अगर वह कहीं पास होती तो कब की अपनी मां की मौत से परदा उठा देती.
खैर, अब भी देर नहीं हुई थी और अब वह पूरी तरह से यात्रा करने लायक थी. बीती जुलाई के दूसरे सप्ताह में वह आस्ट्रेलिया से भारत अपने गांव पंजाब पहुंच गई. जब अपने मायके के घर पहुंच कर उस ने वहां का नजारा देखा तो हैरान रह गई. उस की मां के घर 2 अनजान आदमी बैठे शगुन के साथ हंसीमजाक कर रहे थे.

गुस्से से बिफरते हुए जब कुलदीप कौर ने पूछा, ‘‘भाभी, ये लोग कौन हैं?’’ तो शगुन ने मिमियाते हुए जवाब दिया, ‘‘दीदी, तुम्हारे भाई की मौत के बाद ये दोनों खेतों में काम करने में मदद करते हैं.’’

कुलदीप को शक हुआ भाभी पर

कुलदीप अच्छी तरह जानती थी कि शगुन जो बता रही है, बात वह नहीं है. पर उस वक्त उस ने चुप रहना ही बेहतर समझा. कुलदीप के आने की वजह से वे दोनों व्यक्ति वहां से चले गए. अगले दिन सुबह उठ कर कुलदीप नहाईधोई और गुरुद्वारे चली गई.

अरदास के बाद वह अपने मौसा हरदयाल सिंह को साथ ले कर सीधे एसएसपी (देहात) अमृतसर परमपाल सिंह के पास जा पहुंची. कुलदीप ने अपनी मां की हत्या का शक जताते हुए उन्हें बताया कि मां की मौत में उस की भाभी और कुछ अन्य लोगों का हाथ है.

एसएसपी परमपाल सिंह ने कुलदीप द्वारा दिए प्रार्थनापत्र पर नोट लिख कर उसे संबंधित थाना मेहता भेज दिया. साथ ही उन्होंने थानाप्रभारी अमनदीप सिंह को फोन कर आदेश दिया कि इस मामले की गुत्थी जल्द से जल्द सुलझाएं. कुलदीप कौर ने उसी दिन थानाप्रभारी अमनदीप से मिल कर आस्ट्रेलिया जाने से ले कर अपनी गैरहाजिरी में अपने भाई और मां की मौत का सारा हाल विस्तार से कह सुनाया.

कुलदीप कौर की पूरी बात सुनने के बाद अमनदीप सिंह ने तत्काल अपने खास मुखबिरों को शगुन और उस के साथियों की कुंडली खंगालने के काम पर लगा दिया. जल्दी ही उन्हें रिपोर्ट भी मिल गई.

एसएसपी के आदेश पर उन्होंने कुलदीप कौर की शिकायत को आधार बना कर उसी दिन यानी 30 जुलाई, 2018 को राजविंदर कौर की हत्या का मुकदमा भादंसं की धारा 302, 201, 120बी और 34 पर दर्ज कर के काररवाई शुरू कर दी.

अमनदीप सिंह ने उसी दिन एएसआई कमलबीर सिंह, हवलदार जतिंदर सिंह, महिंदरपाल सिंह, कांस्टेबल महकप्रीत सिंह और लेडी हवलदार हरजिंदर कौर को साथ ले कर बुट्टर गांव पहुंचे और देर शाम शगुनप्रीत कौर और उस के आशिक सतनाम सिंह को हिरासत में ले लिया.

हत्या के इस मामले का तीसरा आरोपी जसबीर सिंह भाग निकला था. संभवत: उसे पुलिस काररवाई की भनक लग गई थी. जसबीर की गिरफ्तारी के लिए पुलिस लगातार छापेमारी कर रही थी, पर वह पुलिस के हाथ नहीं लगा.

पुलिस ने की काररवाई

थानाप्रभारी अमनदीप सिंह ने जब शगुनप्रीत और सतनाम सिंह से पूछताछ की तो दोनों आरोपियों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. इस के बाद उसी दिन राजविंदर कौर की हत्या के आरोप में शगुन और सतनाम सिंह को अदालत में पेश कर आगामी पूछताछ के लिए पुलिस रिमांड पर ले लिया गया. रिमांड के दौरान पूछताछ में राजविंदर की मौत की जो कहानी पता चली, वह कुछ इस तरह थी—
शगुनप्रीत कौर बचपन से ही दिलफेंक और महत्त्वाकांक्षी थी. शादी से पहले अपने गांव में उस के कई युवकों के साथ नाजायज संबंध थे. अपने पति सरबजीत की मौत से पहले भी उस का गांव के कई युवकों के साथ नैनमटक्का चल रहा था, पर परदे के पीछे. क्योंकि तब उसे अपने पति का डर था.
लेकिन पति की मौत के बाद उस ने सरेआम यारियां जोड़नी शुरू कर दी थीं. अब उसे रोकनेटोकने वाला नहीं था. शगुन के अपने गांव के ही एक युवक सतनाम सिंह के साथ नाजायज संबंध बन गए थे. सतनाम आवारा आदमी था और नशीली वस्तुएं बेचता था.

शगुन ने प्रेमी के साथ बनाई योजना

जसबीर सिंह सतनाम के नशे के धंधे में उस का भागीदार था. उसे जब शगुन और सतनाम के संबंधों का पता चला तो बहती गंगा में हाथ धोने के लिए वह भी मचलने लगा. शगुन को इस बात से कोई ऐतराज नहीं था, बल्कि वह खुश थी कि उस के 2-2 चाहने वाले हैं. सरबजीत की मौत के बाद सतनाम सिंह शगुन के ही घर पर रहने लगा था.

यह बात राजविंदर को मंजूर नहीं थी. सतनाम के वहां रहने का वह विरोध करती थी. शगुन अपनी मनमानी पर उतर आई थी. उसे न तो सास का कोई डर था और न शरम. वह तो बस हवा में उड़ी चली जा रही थी.
जब राजविंदर कौर का विरोध बढ़ गया तो शगुन ने उसे रास्ते से हटाने की योजना बना डाली. इस के 2 फायदे थे, एक तो राजविंदर की मौत के बाद उसे कोई रोकनेटोकने वाला नहीं रहता और दूसरे सारी जमीनजायदाद उस के नाम हो जाती.

यह अलग बात थी कि राजविंदर की मौत के बाद सब कुछ उसे ही मिलने वाला था, पर उसे सब्र नहीं था. दूसरे उसे यह भी डर था कि मरने से पहले राजविंदर जायदाद किसी और के नाम न कर जाएं.
शगुनप्रीत और उस के आशिक सतनाम सिंह ने मिल कर राजविंदर कौर की हत्या की योजना बनाई. इस के लिए उन्होंने गांव के ही जसबीर सिंह को चुना और उसे ढाई लाख रुपए देने का वादा कर के तैयार कर लिया.

अपनी योजना के अनुसार, 28 अक्तूबर 2016 की आधी रात को तीनों ने मिल कर सोते समय राजविंदर कौर को गला दबा कर मार डाला. अगली सुबह योजना के तहत शगुन ने कुछ देर गांव वालों के सामने राजविंदर की बीमारी का नाटक रचा और बाद में शोर मचा कर यह खबर फैला दी कि शुगर लेवल कम होने की वजह से राजविंदर की मौत हो गई है.

इतना ही नहीं, वह इतनी शातिर निकली कि रिश्तेदारों को बताए बिना ही जल्दबाजी में गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर सास का अंतिम संस्कार भी करा दिया. बाद में उस ने कुलदीप कौर को भी फोन कर के इस की खबर दे दी थी.

राजविंदर कौर की हत्या की योजना में शगुन और सतनाम सिंह ने ढाई लाख रुपए की सुपारी दे कर जसबीर को अपने साथ शामिल तो कर लिया था, पर हत्या के बाद उन्होंने उसे पैसे देने से इनकार कर दिया था.

जसबीर काफी समय तक उन से पैसे मांगता रहा, जब उन्होंने पैसे देने से बिलकुल इनकार कर दिया तो गुस्से में आ कर उस ने गांव के कुछ लोगों के सामने इस बात का खुलासा कर दिया. गांव वाले पहले से ही तीनों पर नजर रखे हुए थे, सो उन्होंने यह खबर फोन द्वारा कुलदीप को दे दी.

रिमांड की अवधि समाप्त होने पर थानाप्रभारी अमनदीप सिंह ने शगुनप्रीत कौर और उस के प्रेमी सतनाम सिंह को अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया गया. इस अपराध का तीसरा आरोपी जसबीर सिंह फरार था.

पुलिस सूत्रों पर आधारित

आधी-अधूरी प्रेम कहानी : पिंकी की प्रेम कहानी पर पिता का वार

पिंकी जिम ट्रेनर रोशन को दिलोजान से प्यार करती थी. इस के बावजूद उस के पिता शंकर लाल ने मरजी के खिलाफ उस की शादी मुकेश से कर दी. शादी के 5 दिन बाद ही पिंकी अपने प्रेमी रोशन के साथ भाग गई. इस के बाद भी ऐसा क्या हुआ कि उस की प्रेम कहानी अधूरी ही रह गई?

इसी साल 16 फरवरी को बसंत पंचमी थी. उस दिन अबूझ सावा था. कोरोना के कारण पूरे देश में बहुत सी शादियां अटकी हुई थीं. इस का कारण था कि

शादियों के लिए सरकार ने लौकडाउन खुलने के बाद शादी समारोह में केवल 50 लोगों के शामिल होने की ही अनुमति दी थी. हालांकि बाद में कुछ राज्यों में 100 लोगों तक की छूट दे दी गई.

राजस्थान में कोरोना का संक्रमण कुछ कम होने पर इस साल जनवरी में राज्य सरकार ने शादी समारोह में 200 लोगों के शामिल होने की अनुमति दे दी थी. इस से करीब 10 महीने बाद शादियों में रौनक बढ़ गई थी. इस से पहले कोरोनाकाल में जो शादियां हो रही थीं, उन में केवल घरपरिवार के लोग और नजदीकी रिश्तेदार ही शामिल हो पा रहे थे.

बसंत पंचमी पर अबूझ सावा होने और छूट का दायरा बढ़ने के कारण सभी जगह शादियों की धूम मची हुई थी. राजस्थान के दौसा शहर में शंकर लाल सैनी की बेटी पिंकी की शादी थी. उस की शादी के लिए दौसा जिले के ही लालसोट इलाके से मुकेश (बदला हुआ नाम) की बारात आई थी.

दौसा शहर के रामकुंड इलाके में रहने वाले शंकर लाल ने अपनी हैसियत के मुताबिक बारात की आवभगत की. निकासी के बाद बारात जब शंकर लाल के मकान की दहलीज पर पहुंची, तो शादी के लाल जोड़े में सजी पिंकी की सहेलियां दूल्हे को देख कर पिंकी को छेड़ने लगीं.

अपने दूल्हे को देखने और सहेलियों की छेड़छाड़ के बावजूद पिंकी के चेहरे पर कोई खुशी नहीं थी. भले ही पिंकी ने शादी के लिए ब्यूटीपार्लर से मेकअप कराया था, लेकिन उस के चेहरे पर रौनक नहीं थी.

न तो वह अपने घरपरिवार वालों से हंसबोल रही थी और न ही सहेलियों की चुहल का कोई जवाब दे रही थी. लग रहा था जैसे वह दूसरे खयालों में खोई हुई हो. सहेलियों ने उस से पूछा भी, लेकिन पिंकी ने कोई जवाब नहीं दिया.

खाना खाते समय दूल्हे मुकेश ने भी पिंकी को हंसाने की कोशिश की, लेकिन पिंकी ने न तो अपने भावी पति की बातों पर ध्यान दिया और न ही देवरों की फरमाइश पूरी की. गुमसुम पिंकी को देख कर सब लोग सोच रहे थे कि मातापिता के घर का मोह नहीं छूट पा रहा है.

फेरों के दौरान भी पिंकी गुडि़या की तरह शांत बैठी रही. वह पंडित के बताए अनुसार वैवाहिक रस्में निभाती रही. दूल्हे के साथ अग्नि के समक्ष सात फेरे लेने के बाद भी पिंकी के हावभाव में कोई बदलाव नहीं आया. शादी के सभी नेगचार होने के बाद 17 फरवरी, 2021 को तड़के बारात विदा हो गई. पिंकी अपनी ससुराल चली गई.

ससुराल पहुंच कर भी पिंकी के चेहरे पर कोई रौनक या हंसीखुशी नहीं आई. पति मुकेश ने उसे कुरेदने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह केवल हां और न में ही सिर हिलाती रही. लगता था जैसे उस के होंठ सिले हुए हों. सास, ननद और भाभियों ने भी पिंकी की परेशानी जानने की कोशिश की, लेकिन उस ने किसी को कुछ नहीं बताया.

रस्मोरिवाज के मुताबिक नवविवाहिता शादी के 2-3 दिन बाद ही वापस अपने मायके आती है. तब वह 1-2 दिन मायके में रुकती है. इस के बाद दूल्हा अपने 2-4 घर वालों के साथ आ कर पत्नी को वापस अपने घर ले जाता है.

पिंकी भी 2 दिन ससुराल में रुकने के बाद अपने मायके दौसा आ गई. मायके में मां सहित घरपरिवार और मोहल्ले की

महिलाओं ने पिंकी से उस के दूल्हे और ससुरालवालों के बारे में तरहतरह के सवाल पूछे, लेकिन पिंकी ने किसी का भी जवाब ढंग से नहीं दिया.

शंकर लाल सैनी और घर के बाकी लोग समझ नहीं पा रहे थे कि पिंकी को क्या परेशानी है? उसे कोई दुखतकलीफ नहीं थी. फिर वह शादी से खुशी क्यों नहीं है? पिंकी के घर वालों ने उस की सहेलियों से भी इस बारे में पूछा, लेकिन कोई खास बात पता नहीं लगी.

इस बीच, 21 मार्च को लालसोट स्थित पिंकी के ससुराल से उस का पति मुकेश और परिवार के 2-4 लोग उसे लेने आने वाले थे. लेकिन इस से पहले ही 21 मार्च को पिंकी घर से गायब हो गई. परिवार वालों ने आसपड़ोस में पूछताछ की, तो पता चला कि वह अपने प्रेमी रोशन महावर के साथ भाग गई है.

रोशन दौसा शहर के ही झालरा का बास में रहता था. वह पार्षद का चुनाव लड़ चुका था. रोशन के पिता रामजीलाल महावर पूर्व पार्षद हैं. रोशन जिम ट्रेनर है. पिंकी जब रोशन के साथ चली गई, तो पिंकी के ताऊ ने रोशनलाल महावर सहित 3-4 लोगों के खिलाफ पिंकी का अपहरण कर ले जाने का मुकदमा दर्ज करा दिया.

दौसा से भाग कर रोशन और पिंकी जयपुर चले गए. जयपुर में उन्होंने हाईकोर्ट में लिवइन रिलेशनशिप में रहने के लिए याचिका दायर की. न्यायाधीश के समक्ष पिंकी ने अपनी इच्छा से प्रेमी रोशन के साथ रहने की बात कही. हाईकोर्ट ने उन्हें अनुमति दे दी. साथ ही पुलिस को निर्देश दिए कि पिंकी और रोशन को सुरक्षा मुहैया कराई जाए.

पिंकी को ले कर रोशन एक मार्च को जयपुर से दौसा में झालरा का बास स्थित अपने घर पहुंचा. पिंकी के दौसा वापस आने की जानकारी उस के मातापिता को भी मिल गई. उसी दिन कुछ घंटे बाद पिंकी के परिवार के कुछ लोग झालरा का बास पहुंचे और रोशन से मारपीट कर पिंकी को जबरन अपने साथ ले गए. इस पर रोशन ने दौसा के महिला थाने में पिंकी के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

शंकर लाल खुद पहुंचा थाने

मार्च महीने की 3 तारीख को रात के तकरीबन ढाई बजे एक अधेड़ आदमी दौसा शहर के महिला थाने पहुंचा. उस ने पेंटशर्ट पहन रखी थी. पैरों में चप्पलें थीं. उस के बाल बिखरे हुए थे और दाढ़ी बढ़ी हुई थी. वह आदमी थका और बुझा हुआ सा लग रहा था.

महिला थाने के गेट पर संतरी रायफल लिए खड़ा था. थाने में उस समय ज्यादा स्टाफ नहीं था. रात में वैसे भी वहां ज्यादा पुलिस वाले नहीं रहते.

क्योंकि महिला थाने में रात में कभीकभार ही फरियादी आते हैं. यहां न तो कोई चोरीडकैती के मामले आते हैं और न ही रात की गश्त की जिम्मेदारी होती है. इसलिए ज्यादातर पुलिस वाले अपने घर या थाने में बने क्वार्टरों में चले जाते हैं. थाने में ड्यूटी औफिसर और 2-4 पुलिस वाले ही रहते हैं. उस रात एएसआई पुखराज मीणा थाने में ड्यूटी औफिसर थे.

गेट पर खड़े संतरी ने बिजली की रोशनी में उस आदमी के चेहरे की तरफ देखते हुए पूछा, ‘‘क्या काम है, इतनी रात को क्यों आए हो?’’

उस आदमी ने लरजती जुबान से कहा, ‘‘बड़े साहब से मिलना है.’’

‘‘क्यों, क्या बात है, जो रात में साहब से मिलने के लिए आए हो.’’ संतरी ने पूछा.

‘‘साहब, मेरी बेटी का कत्ल हो गया है.’’ उस आदमी ने निराशाभरी आवाज में कहा.

कत्ल की बात सुन कर संतरी चौंका. उस ने अपनी रायफल संभाली और उस आदमी को थाने के अंदर ड्यूटी औफिसर पुखराज मीणा के पास ले गया.

खून की बात सुन कर ड्यूटी औफिसर ने उस आदमी को गौर से देखा. फिर पास में रखी कुरसी पर बैठने का इशारा करते हुए उस से पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है और कहां रहते हो?’’

‘‘साहब, मेरा नाम शंकर लाल सैनी है. मैं रामकुंड इलाके में रहता हूं.’’ उस आदमी ने कहा.

शंकर लाल सैनी का नाम सुन कर पुखराज मीणा को याद आया कि 2-3 दिन पहले ही एक युवती पिंकी का अपहरण हुआ था. वह शंकर लाल की बेटी थी. पिंकी के अपहरण का आरोप रोशन के परिवार के लोगों पर था और उन के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज था.

पिंकी और शंकर के नाम याद आने पर ड्यूटी औफिसर ने पूछा, ‘‘क्या तुम वही शंकर हो, जिस की बेटी का अपहरण हुआ था.’’

‘‘हां साहब, पिंकी मेरी ही बेटी थी.’’ शंकर ने सुबकते हुए कहा.

‘‘तुम्हारी बेटी का खून कैसे हो गया?’’ ड्यूटी औफिसर ने शंकर से सवाल किया.

‘‘साहब, मैं ने ही अपनी बेटी पिंकी को मार डाला. उस की लाश घर में ही पड़ी है.’’ शंकर ने रोते हुए बताया.

मामला गंभीर था. इसलिए ड्यूटी औफिसर पुखराज मीणा ने अपने उच्चाधिकारियों को घटना की जानकारी दी.

सूचना मिलने पर पुलिस के अधिकारी शंकर लाल के मकान पर पहुंचे. शंकर को भी पुलिस अपनी हिरासत में उस के घर ले गई. घर में पिंकी की लाश पड़ी थी. उस ने एफएसएल टीम को भी मौके पर बुला लिया. इस काररवाई में सुबह हो गई.

मौके की काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने पिंकी की लाश पोस्टमार्टम के लिए दौसा के सरकारी अस्पताल भेज दी.

महिला थाने के एएसआई पुखराज मीणा ने कोतवाली थाने में पिंकी की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई. पोस्टमार्टम होने के बाद घरवालों ने शव का दाह संस्कार कर दिया. पुलिस ने बेटी की हत्या के आरोप में शंकर को गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ के बाद अपहरण के आरोप में 4 मार्च को ही पिंकी की मां चमेली देवी के अलावा परिवार के 6 अन्य लोगों को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

आरोपियों से की गई पूछताछ के बाद औनर किलिंग की जो कहानी सामने आई, वह पिंकी की अधूरी प्रेमकथा है.

शादी के पांचवें दिन ही बेटी प्रेमी के साथ भाग गई, तो शंकर और उस के परिवार को लगा कि उन की इज्जत मिट्टी में मिल गई है. बदनामी के डर और अपनी इज्जत बनाए रखने के लिए उस ने बेटी के खून से ही अपने हाथ रंग लिए.

रामकुंड इलाके में रहने वाला 47 साल का शंकर लाल सैनी फलसब्जी का ठेला लगाता है. उस के परिवार में पत्नी चमेली देवी के अलावा 4 बेटियां और सब से छोटा 10 साल का बेटा है. 19 साल की पिंकी 12वीं तक पढ़ी थी. करीब 2 साल से उस का प्रेम प्रसंग जिम ट्रेनर रोशन से चल रहा था. वह रोशन से दिल से प्यार करती थी और उसी के साथ घर बसाना चाहती थी.

पिंकी का कर लिया अपहरण

पिंकी के घरवालों को जब उस के प्रेम प्रसंग का पता चला, तो उन्होंने उसे समझाने की कोशिश की. उसे बताया कि वह लड़का उन की जातिबिरादरी का नहीं है. पिंकी नहीं मानी तो घरवालों ने उस पर बंदिशें लगा दीं. घर वालों की रोकटोक और बंदिशों के बावजूद पिंकी के मन में रोशन के प्रति प्यार कम नहीं हुआ, बल्कि बढ़ता ही गया.

बेटी के प्रेम प्यार के चक्कर को खत्म करने के लिए शंकर ने अपनी पत्नी से बात कर जल्द से जल्द उस के हाथ पीले करने का फैसला किया.

बेटी की शादी के लिए उस ने रिश्तेदारों और मिलनेजुलने वालों से कहा. आखिर लालसोट के रहने वाले मुकेश से पिंकी का रिश्ता तय हो गया.

पिंकी इस रिश्ते के खिलाफ थी, लेकिन वह कुछ कर नहीं पा रही थी. घर वालों के कड़े पहरे के कारण वह घर से बाहर भी नहीं निकल पा रही थी.

कोरोना का संक्रमण कम होने पर लौकडाउन खुला तो शंकर ने पिंकी की शादी का मुहूर्त निकलवाया. 16 फरवरी, 2021 को मुकेश के साथ पिंकी की धूमधाम से शादी हो गई. पिंकी इस शादी के खिलाफ थी, लेकिन घर वालों के दबाव के कारण उसे अपने दिल पर पत्थर रख कर मुकेश के साथ फेरे लेने पड़े. वह पिता के घर से विदा हो कर बुझे मन से ससुराल चली गई, लेकिन वह अपने प्रेमी रोशन को नहीं भूली.

ससुराल से पहली बार मायके आने पर उसे अपने सपने पूरे होते नजर आए. 21 फरवरी को जब पति और ससुराल वाले उसे लेने को आने वाले थे, उस से कुछ देर पहले ही वह बहाना बना कर घर से निकल गई और रोशन के पास पहुंच गई. पिंकी को देख कर रोशन का प्यार भी हिलोरे मारने लगा. फिर दोनों दौसा से जयपुर चले गए.

हाईकोर्ट ने उन्हें साथ रहने की इजाजत दे दी तो पहली मार्च को वे दौसा आ गए. उसी दिन रोशन के घर से पिंकी का अपहरण हो गया. पुलिस 3 दिन तक पिंकी को ढूंढ नहीं सकी. 3 मार्च की रात पिंकी को उस के पिता ने ही मार डाला.

पिंकी की हत्या के मामले में पुलिस की दोहरी लापरवाही की बात सामने आई है. हाईकोर्ट ने जब पुलिस को इस प्रेमी जोड़े को सुरक्षा मुहैया कराने के निर्देश दिए थे तो उन्हें सुरक्षा क्यों नहीं दी गई? अगर उन्हें सुरक्षा दी जाती, तो पिंकी का अपहरण नहीं होता और शायद आज वह जीवित होती.

पिंकी के अपहरण के बाद भी पुलिस ने लापरवाही बरती. केस दर्ज होने के बाद भी पुलिस ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया और 3 दिन तक उसे ढूंढ नहीं सकी. रोशन का कहना है कि जब उन्होंने पुलिस को पिंकी के अपहरण की बात बताई, तो पुलिस ने उस से यही कहा कि उसे उस के परिवार के लोग ही तो ले गए हैं.

पुलिस की लापरवाही का मामला उठने पर दौसा के एसपी अनिल बेनीवाल ने सफाई दी कि हाईकोर्ट के आदेश की सूचना उन्हें नहीं थी. हाईकोर्ट ने कपल की सुरक्षा के लिए जयपुर की अशोक नगर थाना पुलिस को कहा था. अशोक नगर थाना पुलिस प्रेमी जोड़े की इच्छा पर उन्हें जयपुर के त्रिवेणी नगर छोड़ आई थी.

पिंकी को 3 दिन तक नहीं ढूंढ पाने के सवाल पर एसपी का कहना था कि अपहरण की शिकायत पर नाकेबंदी की गई और उस की तलाश की जा रही थी. बाद में जांच में पता चला कि पिंकी का अपहरण कर उसे करौली जिले में एक गोदाम में रखा गया था. उसे 3 मार्च की रात को हत्या से कुछ समय पहले ही दौसा में पिता के घर लाया गया था.

मानवाधिकार आयोग आया हरकत में

पुलिस की लापरवाही की बातें सामने आने पर राज्य मानवाधिकार आयोग ने 5 मार्च, 2021 को इस मामले में प्रसंज्ञान लिया. आयोग के सदस्य न्यायाधिपति महेश चंद शर्मा ने डीजीपी, आईजी (जयपुर रेंज) और दौसा एसपी को निष्पक्ष जांच करने और प्रगति रिपोर्ट संबंधित दंडनायक के समक्ष प्रस्तुत करने के आदेश दिए. दौसा कलेक्टर को भी उचित कदम उठाने के आदेश दिए गए. उन्होंने 30 मार्च को सभी अधिकारियों को तथ्यात्मक रिपोर्ट आयोग में पेश करने को कहा. न्यायाधिपति ने अपने आदेश में लिखा कि पिंकी की हत्या की खबरें पढ़ कर उन का हृदय द्रवित हो गया है.

एक पिता बेटी को पालपोस कर बड़ा करता है. उसे दुनिया की हर खुशी देना चाहता है. फिर वह कैसे उस का गला दबा कर निर्मम हत्या कर सकता है? यह अत्यंत हृदयविदारक घटना है, जो मानवता को शर्मसार करने वाली है. ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए जरूरी कदम उठाए जाने चाहिए.

जयपुर रेंज आईजी हवासिंह घुमारिया ने जांच कराई, तो इस मामले में पुलिस की लापरवाही की बातों की पुष्टि हुई. इस के बाद 5 मार्च, 2021 को दौसा के महिला थानाप्रभारी लोकेंद्र सिंह और दौसा कोतवाली थानाप्रभारी सुगन सिंह को हटा कर लाइन हाजिर कर दिया गया. 2 दिन बाद 7 मार्च को इन दोनों पुलिस इंसपेक्टरों को निलंबित कर दिया गया.

बहरहाल, दिखावे की शान और इज्जत के लिए शंकर लाल ने अपनी शादीशुदा बेटी को मौत की नींद सुला दिया. पहली गलती पिंकी के मातापिता की यह रही कि उन्होंने उस की मरजी के खिलाफ उस की शादी की. दूसरी लापरवाही पुलिस की रही.

अगर पुलिस सुरक्षा दे देती तो शायद पिंकी का अपहरण नहीं होता. पिंकी का अपहरण होने के बाद भी पुलिस सक्रिय हो जाती, तो शायद रोशन और पिंकी की प्रेम कहानी अधूरी नहीं रहती.

हताशा में दी जान : जब परिवार के बोझ से दबी रजनी

23मार्च, 2021 की शाम 5 बजे चकेरी थानाप्रभारी दधिबल तिवारी को सूचना मिली कि चंदारी स्थित 60 साइंटिस्ट हौस्टल की पांचवीं मंजिल से कूद कर रक्षा शोध संस्थान की अवर अभियंता रजनी त्रिपाठी ने खुदकुशी कर ली है. यह खबर उन्हें कृष्णानगर चौकी इंचार्ज आर.जे. गौतम द्वारा मिली थी. चूंकि मौत का यह मामला हाईप्रोफाइल था, अत: थानाप्रभारी सूचना मिलते ही घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. जाने से पहले उन्होंने पुलिस अधिकारियों को भी सूचना दे दी थी.

दधिबल तिवारी पुलिस बल के साथ चंदारी स्थित 60 साइंटिस्ट हौस्टल पहुंचे तो वहां कर्मचारियों की भीड़ जुटी थी. जेई रजनी त्रिपाठी का शव हौस्टल के बाहर खून से तरबतर पड़ा था. उन का सिर फट गया था और शरीर के अन्य भाग चकनाचूर हो गए थे.

कर्मचारियों ने उन्हें बताया कि रजनी त्रिपाठी डीएमएसआरडीई (डिफेंस मटीरियल ऐंड स्टोर रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट इस्टैब्लिशमेंट) में अवर अभियंता थी. उन के पास 60 साइंटिस्ट हौस्टल के देखरेख की भी जिम्मेदारी थी. उन्होंने पांचवीं मंजिल से कूद कर आत्महत्या की है.

दधिबल तिवारी अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि खबर पा कर एसएसपी प्रीतिंदर सिंह तथा एसपी (पूर्वी) शिवाजी भी वहां आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया. पुलिस अधिकारियों ने शव का निरीक्षण किया, फिर वे हौस्टल की पांचवीं मंजिल की छत पर पहुंचे, जहां से रजनी त्रिपाठी ने छलांग लगाई थी.

वहां पर पुलिस अधिकारियों को उन की चप्पलें, मोबाइल फोन और बैग मिला. बैग को खंगाला गया तो बैग में नींद की 15 गोलियों का पैकेट मिला, जिस में 6 गोलियां नहीं थीं. साथ ही फिनायल की बोतल मिली, जिस का ढक्कन खुला था. बैग में एक पर्स भी मिला जिस में नकदी थी. इसी बैग में सुसाइड नोट भी था. बैग को पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया.

पुलिस अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि मौत को गले लगाने से पहले जेई रजनी त्रिपाठी ने नींद की गोलियां खाई थीं और एकदो ढक्कन फिनायल भी पिया था. फोरैंसिक टीम ने भी घटनास्थल की बारीकी से जांच की. टीम ने बैग से बरामद सामान की भी जांच की तथा साक्ष्य एकत्र किए.

एसएसपी प्रीतिंदर सिंह व एसपी शिवाजी ने मृतका के मोबाइल को खंगाला तो उस में रजनी के पिता का मोबाइल नंबर सेव था. अत: उन्होंने उन के पिता परमात्मा शरण को उन की मौत की सूचना दी तथा शीघ्र घटनास्थल पर आने को कहा. बेटी की मौत की सूचना पा कर वह घबरा गए. इस के बाद तो उन के घर परिवार में सनसनी फैल गई.

बैग में मिला सुसाइड नोट

मृतका के पिता को सूचना देने के बाद पुलिस अधिकारियों ने बैग से बरामद रजनी के सुसाइड नोट का अवलोकन किया. सुसाइड नोट अंगरेजी में लिखा गया था, जिस में उन्होंने लिखा था, ‘पति शिवम मुझे प्रताडि़त करता है. रुपयों की मांग करता है. सास, जेठ, देवर भी धमकाते हैं. हमारी मासूम बेटी का इलाज भी पति नहीं कराना चाहता. वह चाहता है कि बेटी मर जाए.’

सुसाइड नोट पढ़ने के बाद पुलिस अधिकारी समझ गए कि रजनी त्रिपाठी ने पति व ससुरालीजनों की प्रताड़ना से आजिज आ कर आत्महत्या की है. उन की मौत का जिम्मेदार उन का पति व ससुराल के अन्य लोग हैं. उन्हें कानून के शिकंजे में कसना होगा.

इसी समय मृतका रजनी के परिवार के लोग आ गए. बेटी का शव देख कर परमात्मा शरण त्रिपाठी फफक पड़े. भाई निखिल भी रो पड़ा. पुलिस अधिकारियों ने उन्हें धैर्य बंधाया तथा घटना के संबंध में पूछताछ की.

परमात्मा शरण ने उन्हें बताया कि वह आईआईटी नानकारी में रहते हैं. उन्होंने मई, 2019 में बड़ी बेटी रजनी का विवाह गुजैनी निवासी शुभम पांडेय के साथ किया था. शादी के चंद माह बाद ही वह बेटी को दहेज के लिए प्रताडि़त करने लगा.

रजनी की सास शशि पांडेय तथा जेठ सत्यम व देवर हिमांशु उर्फ सनी भी उसे दहेज के लिए प्रताडि़त करते थे. उन की मांग थी कि मायके से 10 लाख रुपए ला कर दे तथा गांव की जमीन में भी हिस्सा दो. मांग पूरी न होने पर उन्होंने रजनी को जान से मारने की धमकी दी थी.

धमकी से डर कर रजनी मायके में आ कर रहने लगी थी. मार्च 2020 में जब लौकडाउन लगा तो दामाद शुभम पांडेय भी आ कर बेटी के साथ रहने लगा. यहां भी वह रजनी को प्रताडि़त करता था और वेतन का रुपया छीन लेता था. विरोध करने पर वह घर वालों से मारपीट पर उतारू हो जाता था.

ससुरालियों पर लगाया आरोप

26 फरवरी, 2020 को रजनी ने अस्पताल में बेटी को जन्म दिया था. बेटी पैदा होने से शुभम नाराज था क्योंकि वह बेटा चाहता था. जन्म के बाद मासूम को इंफैक्शन हो गया था. इलाज के लिए उसे प्राइवेट अस्पताल में भरती कराया था. लेकिन शुभम बेटी का इलाज नहीं कराना चाहता था. वह चाहता था कि वह मर जाए.

इलाज को ले कर वह रजनी तथा घर के लोगों को प्रताडि़त करता था. एक सप्ताह पहले वह रजनी से लड़झगड़ कर अपने घर गुजैनी चला गया था. तब से रजनी बेहद परेशान थी.

आज सुबह 10 बजे रजनी कार से ड्राइवर के साथ अस्पताल का बिल पास कराने अपने औफिस के लिए निकली थी. 11 बजे हमारी रजनी से बात भी हुई थी. लेकिन उस के बाद मुझे शाम को उस की मौत की सूचना मिली. रजनी की मौत का जिम्मेदार उस का पति शुभम पांडेय तथा उस के घर वाले हैं. उन दहेजलोभियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर कानूनी काररवाई की जाए.

निरीक्षण व पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने मृतका रजनी के शव को पोस्टमार्टम हेतु लाला लाजपतराय अस्पताल भिजवा दिया. चूंकि मृतका के सुसाइड नोट में उत्पीड़न की बात कही गई थी तथा मृतका के पिता ने भी दहेज उत्पीड़न की बात कही थी. अत: एसएसपी प्रीतिंदर सिंह ने चकेरी थानाप्रभारी दधिबल तिवारी को तुरंत रिपोर्ट दर्ज करने तथा आरोपियों को गिरफ्तार करने का आदेश दिया.

आदेश पाते ही दधिबल तिवारी ने मृतका रजनी के पिता परमात्मा शरण त्रिपाठी की तहरीर पर भादंवि की धारा 304 के तहत मृतका के पति शुभम पांडेय, जेठ सत्यम पांडेय, देवर हिमांशु तथा सास शशि पांडेय के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा उन की गिरफ्तारी के प्रयास में जुट गए.

24 मार्च, 2021 को जब रक्षा सामग्री और भंडार अनुसंधान और विकास प्रतिष्ठान की अवर अभियंता रजनी त्रिपाठी की मौत की खबर अखबारों में छपी तो शुभम पांडेय व उस के घर वाले घबरा उठे. उन की बेचैनी तब और बढ़ गई, जब उन्हें पता चला कि उन के खिलाफ दहेज हत्या का मुकदमा दर्ज हो चुका है और पुलिस उन की तलाश में जुटी है. वे अपने बचाव में घर से फरार हो गए और गिरफ्तारी से बचने के लिए सत्तापक्ष के नेताओं के तलवे चाटने लगे.

24 मार्च को ही कड़ी सुरक्षा के बीच मृतका रजनी के शव का पोस्टमार्टम हुआ. पोस्टमार्टम हाउस के बाहर उमड़ी भीड़ के बीच कल्याणपुर से विधायक एवं उच्च शिक्षा राज्यमंत्री नीलिमा कटियार भी पहुंचीं. उन्होंने बिलखते मृतका के पिता परमात्मा शरण त्रिपाठी को धैर्य बंधाया और कहा कि दुख की इस घड़ी में वह उन के साथ हैं. वह उन की हरसंभव मदद करेगी. दहेजलोभियों को बख्शा नहीं जाएगा. उन की गिरफ्तारी जल्द ही होगी.

चूंकि राज्यमंत्री का बयान पुलिस के जेहन में था. अत: पुलिस ने ताबड़तोड़ छापेमारी कर मृतका रजनी के पति शुभम पांडेय व जेठ सत्यम पांडेय को नाटकीय ढंग से 25 मार्च को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस पूछताछ में शुभम व सत्यम पांडेय ने खुद को निर्दोष बताया. उन्होंने मृतका के पिता द्वारा लगाए गए आरोपों को गलत बताया. उन्होंने कहा कि उन लोगों ने कभी भी रजनी का उत्पीड़न नहीं किया. उस ने प्रेम विवाह किया था. दहेज की बात कहां से आर्. रजनी जिद्दी व घमंडी थी. वह हमारे परिवार को हमेशा नीचा दिखाने की कोशिश करती थी.

जेई रजनी ने किया था प्रेम विवाह

कानपुर शहर का एक मोहल्ला नानकारी पड़ता है. आईआईटी से नजदीक होने के कारण इसे आईआईटी नानकारी के नाम से जाना जाता है. यह कल्याणपुर थाना अंतर्गत आता है. इस मोहल्ले में ज्यादातर धनाढ्य लोगों का निवास है. इसी नानकारी में परमात्मा शरण अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी गुड्डी के अलावा 3 बेटियां रजनी, अंशुल, रोषी तथा एक बेटा निखिल था. परमात्मा शरण त्रिपाठी कानपुर के मुख्य डाकघर में वरिष्ठ सहायक के पद पर थे. उन का अपना आलीशान मकान था. उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी.

परमात्मा शरण त्रिपाठी स्वयं पढ़ेलिखे थे, अत: उन्होंने अपने बच्चों को भी उच्चशिक्षा दिलाई थी. अंशुल पढ़लिख कर बैंक में मैनेजर के पद पर कार्यरत थी, जबकि बेटा निखिल आईआईटी कानपुर से पीएचडी कर रहा था. बड़ी बेटी रजनी की तमन्ना इंजीनियर बनने की थी. वह खूब मेहनत कर रही थी और इंजीनियरिंग की कोचिंग भी जाती थी.

रजनी त्रिपाठी जिस कोचिंग सेंटर में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए जाती थी, उसी में शुभम पांडेय भी पढ़ने आता था. शुभम पांडेय कानपुर के गोविंदनगर थानांतर्गत गुजैनी मोहल्ले में रहता था. उस का बड़ा भाई सत्यम पांडेय प्राइमरी स्कूल में शिक्षक था, जबकि छोटा भाई हिमांशु उर्फ सनी लेखपाल था. मां शशि पांडेय घरेलू महिला थीं. उन की आर्थिक स्थिति भी मजबूत थी.

शुभम और रजनी हमउम्र थे. दोनों साथसाथ कोचिंग कर रहे थे, अत: उन में दोस्ती थी. दोस्ती धीरेधीरे प्यार में बदल गई. प्यार का रंग गहरा हुआ तो दोनों एकदूसरे के बिना अपने को अधूरा समझने लगे. एक रोज प्यार के क्षणों में शुभम ने अपनी मोहब्बत का इजहार कर दिया तो रजनी ने उस के प्यार पर मोहर लगा दी. दोनों में तय हुआ कि डिग्री हासिल करने के बाद जब वे नौकरी करने लगेंगे, तब ब्याह रचा लेंगे.

समय बीतने के साथ शुभम ने इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल कर ली और वह एक निजी कंपनी में इंजीनियर बन गया. रजनी त्रिपाठी भी डिग्री हासिल करने के बाद डीएमएसआरडीई (रक्षा सामग्री और भंडार अनुसंधान) में अवर अभियंता के पद पर नौकरी करने लगी. उसे 60 साइंटिस्ट हौस्टल के देखरेख की जिम्मेदारी भी दी गई. हर रोज विभागीय कार ड्राइवर के साथ वह औफिस आतीजाती थी.

नौकरी लग जाने के बाद शुभम ने रजनी के समक्ष शादी का प्रस्ताव रखा, जिसे रजनी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया. दोनों ने परिवार वालों को अपने प्यार के बाबत बताया और शादी की इच्छा जताई. दोनों परिवारों की सहमति के बाद 2 मई, 2019 को रजनी और शुभम शादी के बंधन में बंध गए. शुभम की दुलहन बन कर रजनी ससुराल आ गई.

ससुराल में चंद माह बाद ही रजनी को प्रताडि़त किया जाने लगा. पति, सास, जेठ व देवर उस पर 10 लाख रुपया मायके से लाने का दबाव बनाने लगे. गांव की जमीन में भी हिस्सा देने की बात कहने लगे. रजनी ने जब बात मानने से इनकार कर दी तो उसे प्रताडि़त किया जाने लगा. उसे जानमाल की धमकी भी दी जाने लगी. प्रताड़ना से आजिज आ कर रजनी ससुराल छोड़ कर मायके आ गई.

मार्च, 2020 में जब लौकडाउन घोषित हुआ तो शुभम का काम प्रभावित हुआ. अत: वह भी रजनी के साथ नानकारी आ कर रहने लगा. ससुराल में रहते हुए भी शुभम पत्नी को प्रताडि़त करता और उस का वेतन छीन लेता. रजनी व उस के मातापिता विरोध करते तो शुभम उन के साथ मारपीट करता. लोकलाज और बेटी के भविष्य को देखते हुए परमात्मा शरण, शुभम के खिलाफ कोई काररवाई न करते.

26 फरवरी, 2021 को रजनी ने प्राइवेट अस्पताल में एक बेटी को जन्म दिया. बेटी के जन्म से शुभम का मूड खराब हो गया.

उस ने खूब हंगामा किया और रजनी को भी प्रताडि़त किया. बेटी बीमार पड़ी तो वह उस का इलाज भी नहीं कराना चाहता था. वह चाहता था कि बेटी मर जाए. लेकिन रजनी ने इलाज कराया तो वह 12 मार्च को लड़झगड़ कर तथा तरहतरह की धमकियां दे कर अपने घर गुजैनी चला गया.

पांचवीं मंजिल से लगाई छलांग

पति की प्रताड़ना से रजनी टूट चुकी थी. उसे अपना जीवन नीरस लगने लगा था. वह दिनरात अपने व अपनी मासूम बेटी के भविष्य के बारे में सोचती. वह कई दिनों तक इन्हीं झंझावात में उलझी रही.

आखिर उस ने हताश जिंदगी का अंत करने का निश्चय किया. इस के लिए उस ने 15 गोलियों वाले नींद की गोली के पत्ते को खरीदा तथा फिनायल की एक बोतल खरीदी. इसे उस ने अपने बैग में सुरक्षित कर लिया. इस के बाद रात में उस ने अंगरेजी में सुसाइड नोट लिखा और उसे भी बैग में रख लिया.

23 मार्च, 2021 की सुबह 10 बजे रजनी कार से ड्राइवर के साथ घर से निकली. लगभग 11 बजे पिता ने उस से बात की तो उस ने बताया कि वह हौस्पिटल का बिल पास कराने चंदारी स्थित औफिस जा रही है. उस के बाद रजनी शहर में घूमती रही. शाम 4 बजे वह औफिस पहुंची. कार उस ने सड़क किनारे खड़ी करा दी और 60 साइंटिस्ट हौस्टल पहुंची. फिर वह सीढि़यां चढ़ कर हौस्टल की पांचवीं मंजिल की छत पर पहुंची. यहां उस ने चप्पलें उतारीं और नींद की 6 गोलियां फिनायल के साथ निगल लीं. उस के बाद छलांग लगा दी.

हौस्टल के कर्मचारियों ने रजनी की बौडी को देखा तो वह सहम गए. उन में से एक कर्मचारी ने भाग कर कृष्णानगर चौकी इंचार्ज आर.जे. गौतम को सूचना दी. चौकी इंचार्ज ने तुरंत थानाप्रभारी दधिबल तिवारी को घटना से अवगत कराया. उस के बाद पुलिस व अधिकारी घटनास्थल पहुंचे.

26 मार्च, 2021 को पुलिस ने अभियुक्त शुभम व सत्यम पांडेय को कानपुर कोर्ट में मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक शशि व हिमांशु पांडेय को पुलिस गिरफ्तार करने का प्रयास कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

रास्ते का कांटा नहीं था वो

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सटे जनपद बाराबंकी के थाना सुबेहा क्षेत्र में एक गांव है ताला रुकनुद्दीनपुर. पवन सिंह इसी गांव में रहता था. 14 सितंबर, 2020 की शाम पवन सिंह अचानक गायब हो गया. उस के घर वाले परेशान होने लगे कि बिना बताए अचानक कहां चला गया.

किसी अनहोनी की आशंका से उन के दिल धड़कने लगे. समय के साथ धड़कनें और बढ़ने लगीं. पवन का कोई पता नहीं चल पा रहा था. पवन की तलाश अगले दिन 15 सितंबर को भी की गई. लेकिन पूरा दिन निकल गया, पवन का कोई पता नहीं लगा.

16 सितंबर को पवन के भाई लवलेश बहादुर को उस के मोबाइल पर सोशल मीडिया के माध्यम से एक लाश की फोटो मिली. फोटो लवलेश के एक परिचित युवक ने भेजी थी. लाश की फोटो देखी तो लवलेश फफक कर रो पड़ा. फोटो पवन की लाश की थी.

दरअसल, पवन की लाश पीपा पुल के पास बेहटा घाट पर मिली थी. लवलेश के उस परिचित ने लाश देखी तो उस की फोटो खींच कर लवलेश को भेज दी. जानकारी होते ही लवलेश घर वालों और गांव के कुछ लोगों के साथ बेहटा घाट पहुंच गया.

लाश पवन की ही थी. पीपा पुल गोमती नदी पर बना था. गोमती के एक किनारे पर गांव ताला रुकनुद्दीनपुर था तो दूसरे किनारे पर बेहटा घाट. लेकिन बेहटा घाट थाना सुबेहा में नहीं थाना असंद्रा में आता था.

लवलेश ने 112 नंबर पर काल कर के घटना की सूचना पुलिस को दे दी. कुछ ही देर में एसपी यमुना प्रसाद और 3 थानों असंद्रा, हैदरगढ़ और सुबेहा की पुलिस टीमें मौके पर पहुंच गईं.

पवन के शरीर पर किसी प्रकार के निशान नहीं थे और लाश फूली हुई थी. एसपी यमुना प्रसाद ने लवलेश से आवश्यक पूछताछ की तो पता चला कि वह अपनी हीरो पैशन बाइक से घर से निकला था. बाइक पुल व आसपास कहीं नहीं मिली. पवन वहां खुद आता तो बाइक भी वहीं होती, इस का मतलब था कि वह खुद अपनी मरजी से नहीं आया था. जाहिर था कि उस की हत्या कर के लाश वहां फेंकी गई थी.

पवन की बाइक की तलाश की गई तो बाइक कुछ दूरी पर टीकाराम बाबा घाट पर खड़ी मिली. यह क्षेत्र हैदरगढ़ थाना क्षेत्र में आता था. वारदात की पहल वहीं से हुई थी, इसलिए एसपी यमुना प्रसाद ने घटना की जांच का जिम्मा हैदरगढ़ पुलिस को दे दिया.

हैदरगढ़ थाने के इंसपेक्टर धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. फिर लवलेश को साथ ले कर थाने आ गए. इंसपेक्टर रघुवंशी ने लवलेश की लिखित तहरीर पर अज्ञात के विरुद्ध भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृत्यु की सही वजह पता नहीं चल पाई.

इंसपेक्टर रघुवंशी के सामने एक बड़ी चुनौती थी. क्योंकि कोई भी सुराग हाथ नहीं लगा था. उन्होंने पवन की पत्नी शिम्मी उर्फ निशा और भाई लवलेश से कई बार पूछताछ की, लेकिन कोई भी अहम जानकारी नहीं मिल पाई. पवन के विवाह के बाद ही उस की मां ने घर का बंटवारा कर दिया था. पवन अपनी पत्नी निशा के साथ अलग रहता था. इसलिए घर के अन्य लोगों को ज्यादा कुछ जानकारी नहीं थी.

स्वार्थ की शादी

समय गुजरता जा रहा था, लेकिन केस का खुलासा नहीं हो पा रहा था. जब कहीं से कुछ हाथ नहीं लगा तो इंसपेक्टर रघुवंशी ने अपनी जांच पवन की पत्नी पर टिका दी. वह उस की गतिविधियों की निगरानी कराने लगे.

घर आनेजाने वालों पर नजर रखी जाने लगी तो एक युवक उन की नजरों में चढ़ गया. वह पवन के गांव का ही अजय सिंह उर्फ बबलू था. अजय का पवन के घर काफी आनाजाना था. वह घर में काफी देर तक रुकता था.

अजय के बारे में और पता किया गया तो पता चला कि अजय ने ही पवन से निशा की शादी कराई थी. निशा अजय की बहन की जेठानी की लड़की थी. यानी रिश्ते में वह अजय की भांजी लगती थी. पहले तो उन को यही लगा कि अजय अपना फर्ज निभा रहा है लेकिन जैसेजैसे जांच आगे बढ़ी तो उन्हें दोनों के संबंधों पर संदेह होने लगा.

इंसपेक्टर रघुवंशी ने उन दोनों के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. पता चला, दोनों के बीच हर रोज काफी देर तक बातें होती थीं. दोनों के बीच जो रिश्ता था, उस में इतनी ज्यादा बात होना दाल में काला होना नहीं, पूरी दाल ही काली होना साबित हो रही थी.

7 फरवरी, 2021 को इंसपेक्टर धर्मेंद्र रघुवंशी ने अजय को टीकाराम मंदिर के पास से और निशा को गांव अलमापुर में उस की मौसी के घर से गिरफ्तार कर लिया.

जिला बाराबंकी के सुबेहा थाना क्षेत्र के गांव ताला रुकनुद्दीनपुर में अजय सिंह उर्फ बबलू रहता था. अजय के पिता का नाम मान सिंह था और वह पेशे से किसान थे. अजय 3 बहनों में सब से छोटा था. इंटर तक पढ़ाई करने के बाद अजय अपनी पुश्तैनी जमीन पर खेती करने लगा था.

निशा उर्फ शिम्मी अजय की बड़ी बहन अनीता (परिवर्तित नाम) की जेठानी की लड़की थी. शिम्मी के पिता चंद्रशेखर सिंह कोतवाली नगर क्षेत्र के भिखरा गांव में रहते थे, वह दिव्यांग थे, किसी तरह खेती कर के अपने परिवार का भरणपोषण करते थे. निशा की एक बड़ी बहन और 2 बड़े भाई बबलू और मोनू थे. बबलू पंजाब में फल की दुकान लगाता था. मोनू सऊदी अरब काम करने चला गया था.

निशा अलमापुर में रहने वाली अपनी मौसी के यहां रहती थी. हमउम्र अजय और निशा रिश्ते में मामाभांजी लगते थे. जहां निशा हसीन थी, वहीं अजय भी खूबसूरत नौजवान था. निशा ने 11वीं तक तो अजय ने इंटर तक पढ़ाई की थी.

दोनों जब भी मिलते, एकदूसरे के मोहपाश में बंध जाते. दोनों मन ही मन एकदूसरे को चाहने लगे थे. लेकिन रिश्ता ऐसा था कि वे अपनी चाहत को जता भी नहीं सकते थे. लेकिन चाहत किसी भी उम्र और रिश्ते को कहां मानती है, वह तो सिर्फ अपना ही एक नया रिश्ता बनाती है, जिस में सिर्फ प्यार होता है. ऐसा प्यार जिस में वह कोई भी बंधन तोड़ सकती है.

दोनों बैठ कर खूब बातें करते. बातें जुबां पर कुछ और होतीं लेकिन दिल में कुछ और. आंखों के जरिए दिल का हाल दोनों ही जान रहे थे लेकिन पहल दोनों में से कोई नहीं कर रहा था. दोनों की चाहत उन्हें बेचैन किए रहती थीं. दोनों एकदूसरे के इतना करीब आ गए थे कि एकदूसरे के बिना नहीं रह सकते थे. लेकिन प्यार के इजहार की नौबत अभी तक नहीं आई थी.

आखिरकार अजय ने सोच लिया कि वह अपने दिल की बात निशा से कर के रहेगा. संभव है, निशा किसी वजह से कह न पा रही हो. अगली मुलाकात में जब दोनों बैठे तो अजय निशा के काफी नजदीक बैठा. निशा के दाहिने हाथ को वह अपने दोनों हाथों के बीच रख कर बोला, ‘‘निशा, काफी दिनों की तड़प और बेचैनी का दर्द सहने के बाद आज मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं.’’ कह कर अजय चुप हो गया.

निशा अजय के अंदाज से ही जान गई कि वह आज तय कर के आया है कि अपने दिल की बात जुबां पर ला कर रहेगा. इसलिए निशा ने उस के सामने अंजान बनते हुए पूछ लिया, ‘‘ऐसी कौन सी बात है जो तुम बेचैन रहे और तड़पते रहे, मुझ से कहने में हिचकते रहे.’’

अजय ने एक गहरी सांस ली और हिम्मत कर के बोला, ‘‘मेरा दिल तुम्हारे प्यार का मारा है. तुम्हें बेहद चाहता है, दिनरात मुझे चैन नहीं लेने देता. इस के चक्कर में मेरी आंखें भी पथरा गई हैं, आंखों में नींद कभी अपना बसेरा नहीं बना पाती. अजीब सा हाल हो गया है मेरा. मेरी इस हालत को तुम ही ठीक कर सकती हो मेरा प्यार स्वीकार कर के… बोलो, करोगी मेरा प्यार स्वीकार?’’

‘‘मेरे दिल की जमीन पर तुम्हारे प्यार के फूल तो कब के खिल चुके थे, लेकिन रिश्ते की वजह से और नारी सुलभ लज्जा के कारण मैं तुम से कह नहीं पा रही थी. इसलिए सोच रही थी कि तुम ही प्यार का इजहार कर दो तो बात बन जाए. तुम भी शायद रिश्ते की वजह से हिचक रहे थे, तभी इजहार करने में इतना समय लगा दिया.’’

‘‘निशा, यह जान कर मुझे बेहद खुशी हुई कि तुम भी मुझे चाहती हो और तुम ने मेरा प्यार स्वीकार कर लिया. नाम का यह रिश्ता तो दुनिया का बनाया हुआ है, उसे हम ने तो नहीं बनाया. हमारी जिंदगी है और हम अपनी जिंदगी का फैसला खुद करेंगे न कि दूसरे लोग. रिश्ता हम दोनों के बीच वही रहेगा जो हम दोनों बना रहे हैं, प्यार का रिश्ता.’’

निशा अजय के सीने से लग गई, अजय ने भी उसे अपनी बांहों के घेरे में ले लिया. दोनों ने एकदूसरे का साथ पा लिया था, इसलिए उन के चेहरे खिले हुए थे. कुछ ही दिनों में दोनों के बीच शारीरिक रिश्ता भी कायम हो गया.

समय के साथ दोनों का रिश्ता और प्रगाढ़ होता चला गया. दोनों जानते थे कि वे विवाह के बंधन में नहीं बंध पाएंगे, फिर भी अपने रिश्ते को बनाए रखे थे. निशा का विवाह उस के घर वाले कहीं और करें और निशा उस से दूर हो जाए, उस से पहले अजय ने निशा का विवाह अपने ही गांव में किसी युवक से कराने की ठान ली. जिस से निशा हमेशा उस के पास रह सके.

पवन सिंह अजय के गांव ताला रुकनुद्दीनपुर में ही रहता था. पवन के पिता दानवीर सिंह चौहान की 2008 में मत्यु हो चुकी थी. परिवार में मां शांति देवी उर्फ कमला और 3 बड़ी बहनें और 3 बड़े भाई थे.

मनमर्जी की शादी

अजय ने निशा का विवाह पवन से कराने का निश्चय कर लिया. अजय ने इस के लिए अपनी ओर से कोशिशें करनी शुरू कर दीं. इस में उसे सफलता भी मिल गई. 2012 में दोनों परिवारों की आपसी सहमति के बाद निशा का विवाह पवन से हो गया. निशा मौसी के घर से अपने पति पवन के घर आ गई.

विवाह के बाद पवन की मां ने बंटवारा कर दिया. पवन निशा के साथ अलग रहने लगा. इस के बाद पवन की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई. पवन पिकअप चलाने लगा. लेकिन अधिक आमदनी हो नहीं पाती थी. जो होती थी, वह उसे दारू की भेंट चढ़ा देता था. कालांतर में निशा ने एक बेटी शिवांशी (7 वर्ष) और एक बेटे अंश (5 वर्ष) को जन्म दिया.

अजय ने भी निशा के विवाह के एक साल बाद फैजाबाद की एक युवती जया से विवाह कर लिया था. जया से उसे एक बेटा था. लेकिन निशा और अजय के संबंध बदस्तूर जारी थे.

पवन शराब का इतना लती था कि उस के लिए कुछ भी कर सकता था. एक बार शराब पीने के लिए पैसे नहीं थे तो पवन निशा के जेवरात गिरवी रख आया. मिले पैसों से वह शराब पी गया. वह जेवरात निशा को अजय ने दिए थे.

पवन की हरकतों से निशा और अजय बहुत परेशान थे. अपनी परेशानी दूर करने का तरीका भी उन्होंने खोज लिया. दोनों ने पवन को दुबई भेजने की योजना बना ली. इस से पवन से आसानी से छुटकारा मिल जाता. उस के चले जाने से उस की हरकतों से तो छुटकारा मिलता ही, साथ ही दोनों बेरोकटोक आसानी से मिलते भी रहते.

निशा और अजय ने मिल कर अयोध्या जिले के भेलसर निवासी कलीम को 70 हजार रुपए दे कर पवन को दुबई भेजने की तैयारी की. लेकिन दोनों की किस्मत दगा दे गई. लौकडाउन लगने के कारण पवन का पासपोर्ट और वीजा नहीं बन पाया.

पवन को दुबई भेजने में असफल रहने पर उस से छुटकारा पाने का दोनों ने दूसरा तरीका जो निकाला, वह था पवन की मौत. अजय ने निशा के साथ मिल कर पवन की हत्या की योजना बनाई.

13 सितंबर को अजय ने पवन से कहा कि वह बहुत अच्छी शराब लाया है, उसे कल पिलाएगा. अच्छी शराब मिलने के नाम से पवन की लार टपकने लगी.

अगले दिन 14 सितंबर की रात 9 बजे पवन अपनी बाइक से अजय के घर पहुंच गया. वहां से अजय उसे टीकाराम बाबा के पास वाले तिराहे पर ले गया. अजय ने वहां उसे 2 बोतल देशी शराब पिलाई.

पिलाने के बाद वह उसे पीपा पुल पर ले गया. वहां पहुंचतेपहुंचते पवन बिलकुल अचेत हो गया. अजय ने उसे उठा कर गोमती नदी में फेंक दिया. उस के बाद वह घर लौट गया.

लेकिन अजय और निशा की होशियारी धरी की धरी रह गई और दोनों पकड़े गए. आवश्यक कागजी खानापूर्ति करने के बाद इंसपेक्टर धर्मेंद्र रघुवंशी ने दोनों को न्यायालय में पेश कर दिया, वहां से दोनों को न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधार

हत्या से खुला ढाई करोड़ की चोरी का राज

कुछ इंसानों की फितरत ही धोखे और फरेब की होती है. वह अपने साथ अच्छा करने वालों के साथ भी बुरा करने से नहीं चूकते. ऐसे लोगों को अपनी करनी का फल तो जरूर भुगतना पड़ता है. लेकिन अपनी फितरत से वे दूसरों के लिए भी खतरा बन जाते हैं.

फिरोजाबाद का रहने वाला ब्रजमोहन भी इसी तरह का व्यक्ति था. उस ने रेलवे में 5 साल नौकरी की. जिस इंजीनियर पुनीत कुमार के घर पर वह काम करता था, जिन के कहने पर उस की नौकरी स्थाई हुई. उस ने उसी के घर चोरी करने की योजना बना ली.

ब्रजमोहन लालची स्वभाव का था. उस ने पुनीत कुमार की मदद करने की नहीं सोची, बल्कि उस की नजर उन के घर में आ रहे रुपयों पर थी. यह लालच ब्रजमोहन के लिए जानलेवा साबित हुआ. जिन लोगों को उस ने चोरी के लिए बुलाया. वे ही उस की जान के दुश्मन बन बैठे.

26 मार्च, 2021 को लखनऊ के कैंट थानाक्षेत्र के बंदरियाबाग में रहने वाले इंजीनियर पुनीत कुमार के सरकारी आवास पर सरकारी नौकर ब्रजमोहन की हत्या कर दी गई.

पुलिस ने घटनास्थल पर पहुंच कर जांच की तो पता चला कि बिजली के तार से पहले उस के गले को कसा गया, बाद में चाकू से रेत दिया गया था. उस के हाथ और पांव बंधे थे. पुनीत के घर का सामान बिखरा हुआ था. पता चला कि पुनीत कुमार के बैडरूम से 15-20 लाख रुपए कैश और कुछ जेवरात गायब थे.

पहली नजर में मामला चोरी के लिए हत्या का लग रहा था. पुनीत ने अपने नौकर की हत्या का मुकदमा कैंट थाने में लिखाया.

इंजीनियर का सरकारी आवास लखनऊ के बहुत ही सुरक्षित बंदरियाबाग इलाके में था. इसलिए इस केस को सुलझाना पुलिस के लिए ज्यादा चुनौती भरा काम था. लखनऊ पुलिस कमिश्नर डी.के. ठाकुर ने जौइंट पुलिस कमिश्नर (अपराध) निलब्जा चौधरी की अगुवाई में एक टीम का गठन किया.

इस टीम में डीसीपी (पूर्वी) और एडीशनल डीसीपी (पूर्वी) को भी अहम जिम्मेदारी दी गई. इस के साथ ही कैंट थाने की इंसपेक्टर नीलम राणा, एसआई जनीश वर्मा को मामले के परदाफाश की जिम्मेदारी सौंपी गई.

इंजीनियर पुनीत के घर नौकर की हत्या के समय पुनीत के फूफा चंद्रभान घर के दूसरे कमरे में टीवी देख रहे थे. उन को किसी बात का पता नहीं था. ऐसे में पुलिस को लग रहा था कि हो न हो नौकर ब्रजमोहन इस चोरी में हिस्सेदार रहा हो.

पुलिस को यह समझ नहीं आ रहा था कि अगर नौकर चोरी में शामिल था तो उस की हत्या क्यों हो गई? इस गुत्थी को सुलझाने के लिए पुलिस ने ब्रजमोहन के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स चैक करनी शुरू की. साथ ही पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज भी देखे. पता चला कुछ लोग एक टैक्सी से आए थे.

पुलिस ने छानबीन शुरू की. पुनीत कुमार 2008 बैच के भारतीय रेलवे इंजीनियरिंग सर्विस (आईआरएसई) के अधिकारी हैं. उत्तर रेलवे की चारबाग स्थित निर्माण इकाई में उन का दबदबा है.

उन के पास इस समय 800 करोड़ रुपए से अधिक के रेलवे के प्रोजेक्ट्स हैं. पहले वह इसी कार्यालय में अधीक्षण अभियंता थे, बाद में प्रमोशन पा कर यहीं पर उप मुख्य निर्माण अभियंता के रूप में काम करने लगे. नौकर ब्रजमोहन उन के घर के कामकाज देखता था.

फिरोजाबाद के कोलामऊ महरौना का रहने वाला ब्रजमोहन करीब 5 साल से पुनीत के यहां काम कर रहा था. एक साल पहले पुनीत ने ही ब्रजमोहन की नौकरी स्थाई की थी. वह पुनीत के ही आवास में बने सर्वेंट क्वार्टर में रहता था.

उस का अपने गांव से बराबर संपर्क बना हुआ था. वह अपने साहब के घर रुपयोंपैसों की आवाजाही होते देखा करता था. उसे यह भी पता होता था कि वहां कितना पैसा रखा रहता है. यह पैसा देख कर उस के मन में लालच आ गया.

ब्रजमोहन की डोली नीयत

इंजीनियर पुनीत के घर नकद रुपए देख कर नौकर ब्रजमोहन की नीयत डोलने लगी. एक दिन उसने अपने भांजे बहादुर को इस बारे में जानकारी दी और कहा कि यदि उस के मालिक पुनीत के यहां चोरी की जाए तो भारी मात्रा में नकदी के अलावा अन्य कीमती सामान मिल सकता है.

बहादुर भी फिरोजाबाद के कोलमाई मटसैना का रहने वाला था. उसे अपने मामा की सलाह अच्छी लगी. लिहाजा बहादुर ने अपने साथ मैनपुरी जिले के भोजपुरा के रहने वाले अजय उर्फ रिंकू, ऊंची कोठी निवासी मंजीत और एक अन्य दोस्त अनिकेत के साथ मिल कर चोरी की योजना तैयार की.

योजना के अनुसार, ये लोग किराए की गाड़ी ले कर 25 मार्च को इंजीनियर पुनीत के घर पहुंच गए. नौकर ब्रजमोहन की मिलीभगत से इन को चोरी के लिए घर में घुसने में कोई दिक्कत नहीं हुई. मंजीत घर के बाहर सीढि़यों पर खड़ा हो कर बाहर से आने वालों की निगरानी करने लगा.

ब्रजमोहन, बहादुर और अजय घर के अंदर चले गए. इन लोगों ने जेवर और सारे पैसे एक जगह रख लिए. वहां पर नकदी और ज्वैलरी उम्मीद से ज्यादा मिली तो ब्रजमोहन ने अपने भांजे बहादुर से कहा, ‘‘देखो जितना हम ने बताया था, उस से अधिक पैसा मिल गया है. इसलिए जो ज्यादा पैसा मिला है, इस में कोई बंटवारा नहीं होगा. यह सब मेरा होगा. बाकी तुम सब बांट लेना.’’

‘‘जी मामाजी, जैसा आप कह रहे हो वैसा ही होगा. अब हम लोग जा रहे हैं. आप भी पुलिस को कुछ नहीं बताना,’’ बहादुर बोला.

‘‘हां ठीक है. पुलिस सब से पहले हम पर ही शक करेगी. इस से बचने के लिए तुम लोग मुझे कुरसी से बांध कर बेहोश कर दो. जिस से लगे कि चोरों ने नौकर को बांध कर चोरी की और बेहोश कर के भाग गए.’’ ब्रजमोहन ने सलाह दी.

बहादुर और अजय ने ब्रजमोहन को कुरसी से बांध कर बेहोश कर दिया. इस के बाद दोनों जब रुपया रख रहे थे, तभी अजय बोला, ‘‘बहादुर, तू तो जानता है कि तेरे मामा डरपोक किस्म के हैं. कहीं ऐसा न हो कि पुलिस के आगे सब बक दे.’’

‘‘बात तो सही है, पर क्या किया जाए?’’ बहादुर ने कहा.

‘‘समय की मांग है कि हम अपने को बचाने के लिए मामा को ही रास्ते से हटा दें. इस से मामा को पैसा भी नहीं देना होगा और पुलिस हम तक भी नहीं पहुंच पाएगी.’’ अजय ने सलाह दी.

दोनों ने मिल कर सब से पहले ब्रजमोहन का गला कस दिया. वह पहले से ही बेहोश था तो कोई विरोध नहीं कर पाया. न ही कोई आवाज हुई. दोनों को लगा कि कहीं वह जिंदा न बच जाए. इसलिए चाकू से उस का गला भी रेत दिया.

ब्रजमोहन को मारने के बाद तीनों वापस मैनपुरी चले गए. मैनपुरी में ये लोग बहादुर के जानने वाले उदयराज की दुकान पर पहुंचे. उदयराज की कपडे़ की दुकान थी. यहां सभी ने अपने कपडे़ बदले. वहीं पर इन लोगों से मोहन नाम का आदमी मिला, जिसे इन लोगों ने सारे रुपए दे दिए. वह रुपए ले कर अपने घर चला गया.

इस के बाद चारों मोहन के घर गए और वहां पर रुपयों का बंटवारा हुआ. मंजीत रुपए ले कर अपने घर चला गया. उस ने रुपए अपनी पत्नी निशा को दिए और उसे इस बारे में बताया. निशा ने रुपए गमले और जमीन में दबा दिए, जिस से किसी को पता न चल सके.

पुलिस गंभीरता से केस की जांच में जुटी थी. सीसीटीवी फुटेज में जो टैक्सी दिखी थी, उसी के नंबर के सहारे वह टैक्सी चालक तक पहुंच गई. उस ने पुलिस को पूरी बात बताई. टैक्सी चालक से पूछताछ कर के पुलिस सब से पहले मंजीत के घर पहुंची. पुलिस ने मंजीत के पास से 40 लाख, उस की पत्नी निशा के पास से 16 लाख, उदयराज और मोहन के पास से 7-7 लाख रुपए बरामद किए.

कहानी लिखे जाने तक मुख्य आरोपी बहादुर फरार था. पुलिस के लिए चौंकाने वाली बात यह थी कि इंजीनियर पुनीत कुमार ने अपने घर में चोरी के मामले में 15 से 20 लाख नकद और जेवर चोरी होने का जिक्र किया था. जबकि पुलिस आरोपियों के पास से 70 लाख बरामद कर चुकी थी. मुख्य आरोपी के पास अलग से पैसा बरामद होना था.

आरोपियों ने पुलिस को बताया कि उन्हें इंजीनियर पुनीत के यहां करीब ढाई करोड़ रुपए मिले थे. पुलिस इस बारे में छानबीन कर रही है. पुलिस अजय, बहादुर और उस के लंबे बाल वाले साथी को तलाश रही है.

पूरे मामले में जिस पुलिस टीम ने सब से महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, उस में इंसपेक्टर नीलम राणा. एसआई अजीत कुमार पांडेय, रजनीश वर्मा, संजीव कुमार, हैडकांस्टेबल संदीप शर्मा, रामनिवास शुक्ला, आनंदमणि सिंह, ब्रजेश बहादुर सिंह, अमित लखेड़ा, विनय कुमार, पूनम पांडेय, सोनिका देवी और चालक घनश्याम यादव प्रमुख थे.

पुलिस ने इंजीनियर पुनीत कुमार के घर ढाई करोड़ रुपयों की चोरी की सूचना रेलवे विभाग और आयकर विभाग को भी दे दी. पुलिस का कहना है कि घर में ढाई करोड़ नकद रखने के मामले की जांच होगी.

इस बात का अंदेशा है कि यह रकम रिश्वत की रही होगी. इसीलिए हत्या की रिपोर्ट लिखाते समय इंजीनियर पुनीत कुमार ने चोरी की रकम को कम कर के लिखाया था. शुरुआत में पुनीत कुमार ने कहा था कि 15 से 20 लाख की चोरी हुई है.

पुलिस ने जब चोरों से 70 लाख नकद बरामद कर लिया तो पता चला कि कुल रकम ढाई करोड़ थी.

ब्रजमोहन को भी यही पता था कि चोरी की बात पूरी तरह से पुलिस को बताई नहीं जाएगी. ऐसे में यह लोग पुलिस के घेरे में नहीं आएंगे. लेकिन ब्रजमोहन से भी ज्यादा लालची उस के साथी निकले जिन्होंने ब्रजमोहन की हत्या कर दी. हत्या की विवेचना में चोरी दब नहीं सकी और अपराध करने वाले पकडे़ गए.