
दुर्लभ के स्टाइल में उतरी सोनिया
अक्तूबर, 2022 में वाराणसी के सिगरा में भाजपा नेता पशुपतिनाथ सिंह की हत्या के आरोप में पुलिस ने जिन लडक़ों को गिरफ्तार किया था, उन में से अधिकतर दुर्लभ कश्यप के फैन निकले थे. मुठभेड़ में गिरफ्तार 307 गैंग के सरगना राहुल सरोज के मोबाइल में दुर्लभ कश्यप पर बने कई वीडियो भी मिले थे.
यही नहीं, राहुल के इंस्टाग्राम पर रील और फेसबुक पर वीडियो भी दुर्लभ कश्यप से हूबहू मेल खाती है. माथे पर तिलक, आंखों में काजल, कंधे पर गमछा, हलकी दाढ़ी और गले में रुद्राक्ष की माला पहनने वाला राहुल भी दुर्लभ की स्टाइल में रहता था. उस के 307 गैंग में जयप्रकाश नगर, चंदुआ, छित्तूपुर, शिवपुरवा, माधोपुर के 40 से 45 नौजवान शामिल हैं. सभी वाट्सऐप ग्रुप 307 के सदस्य हैं, जिस का एडमिन राहुल सरोज, विकास राजभर और पवन हैं.
क्राइम ब्रांच ने राहुल और पवन के मोबाइल खंगाले तो कई वीडियो और फोटो निकल कर सामने आए. राहुल के इंस्टाग्राम और फेसबुक पर पोस्ट भी खतरनाक और चेतावनी वाले थे. दुर्लभ कश्यप का तो अंत हो गया, लेकिन आज भी कई युवा उसे अपना रोल मौडल मानते हैं.
ऐसी ही एक युवती को उज्जैन पुलिस ने जनवरी 2023 में गिरफ्तार किया. युवती ने सोशल मीडिया पर रिवौल्वर और चाकू के साथ अपने कुछ फोटो और वीडियो अपलोड किए थे. उस ने दुर्लभ की तरह ही माथे पर टीका लगा कर और गले में गमछा डाले हुए कुछ फोटो भी अपलोड किए तो पुलिस ने उस के खिलाफ आम्र्स ऐक्ट के तहत केस दर्ज कर लिया.
उज्जैन के पंवासा मल्टी के पास से एक युवती को रास्ते में धारदार चाकू लहराते हुए आतेजाते लोगों को धमकाते हुए देखा गया था. सूचना मिलने पर पुलिस ने घेराबंदी कर युवती को गिरफ्तार कर उस के पास से चाकू बरामद किया. युवती का नाम सोनिया उर्फ नेपु थापा था. वह 19 साल की थी और नानाखेड़ा के आनंद नगर इलाके में रहती थी.
छोटी उम्र में ही उस के पिता का देहांत हो गया था, तब से मां के साथ अकेली रहती थी. सोशल मीडिया पर सोनिया काफी ऐक्टिव है, जब पुलिस ने उस का इंस्टाग्राम अकाउंट देखा तो पिस्टल के साथ और नशा करते हुए कई फोटो दिखाई दिए. उस ने कुछ फोटो के कैप्शन में 307 और 302 भी लिख रखा था. इस के अलावा हुक्का पीते, डांस करते, सिगरेट के छल्ले उड़ाते और शराब पीते हुए वह अन्य कई फोटो व वीडियो में नजर आ रही थी.
दुर्लभ कश्यप सोशल मीडिया पर काफी पापुलर था और सोनिया उस से काफी प्रभावित है. वह उस की तरह दिखना चाहती है और उसे अपना रोल मौडल समझती है. उस ने पुलिस को बताया था कि दुर्लभ कश्यप की वीडियो वह सोशल मीडिया पर देखा करती थी और उस ने कुछ फोटो और वीडियो डाले हैं, जिस में खुद को दुर्लभ जैसा लुक देने की कोशिश की है.
दुर्लभ की मौत की कहानी
18 साल की उम्र में दुर्लभ कश्यप के खिलाफ 9 केस दर्ज हो गए थे. वह जेल से भी गैंग चलाता रहा. 2 साल जेल में बंद रहने के बाद कोरोना काल के दौरान साल 2020 में उस की रिहाई हो गई. वह कुछ दिन इंदौर में रह कर मां के पास उज्जैन लौट आया.
कहा जाता है कि बुराई का अंजाम बुरा ही होता है. ठीक वैसे ही दुर्लभ का बढ़ता कद अपराध की दुनिया के दूसरे बादशाहों को खटकने लगा था. उस की दुश्मनी दिनरात बढ़ती जा रही थी. ऐसे में उज्जैन के ही शाहनवाज गैंग ने दुर्लभ को खत्म करने का प्लान बनाया था.
6 सितंबर, 2020 को दुर्लभ अपने घर में कुछ दोस्तों के साथ मां के हाथ की बनाई दाल बाटी खाने के बाद रात को अपने साथियों के साथ घर से निकला था.
देर रात सडक़ों पर घूमते हुए दुर्लभ अपने साथियों से बोला, “यार, चाय पीने का मन हो रहा है, लेकिन आसपास की दुकानें तो बंद नजर आ रही हैं.”
“भाई, उधर हेलावाड़ी इलाके की एक दुकान देर रात तक खुली रहती है, वहां पर चल कर चाय की चुस्कियां लेंगे.” गैंग का एक साथी राजदीप बोला.
इस के बाद बाइक से दुर्लभ अपने साथियों के साथ हेलावाड़ी इलाके की चाय की दुकान पर पहुंच गया. इस दौरान पहले से शाहनवाज गैंग के लोग वहां मौजूद थे. जब दुर्लभ का शाहनवाज से आमनासामना हुआ तो दुर्लभ ने शाहनवाज पर गोली चला दी. गोली उस की गरदन के पास से हो कर निकली थी.
बदले में शाहनवाज के साथियों ने दुर्लभ को घेर कर चाकू से उस के पेट, पीठ, चेहरे, गरदन पर ताबड़तोड़ 34 वार किए. दुर्लभ के दोस्त इस दौरान उसे छोड़ कर भाग गए थे. दोनों के बीच जबरदस्त गैंगवार हुई, जिस में दुर्लभ की चाकुओं से गोदगोद कर हत्या कर दी गई.
घटना के बाद सुबह 4 बजे जीवाजीगंज थाने की पुलिस व उज्जैन के तत्कालीन सीएसपी ए.आर. नेगी मौके पर पहुंचे थे. एफएसएल अधिकारी डा. प्रीति गायकवाड़ ने घटनास्थल से 3 चप्पलें भी जब्त कराई थीं. पुलिस ने दुर्लभ की मां पद्मा को घटनास्थल पर ले जा कर दुर्लभ की शिनाख्त कराई. दुर्लभ के पिता भी सुबह अस्पताल पहुंचे.
चाय की दुकान चलाने वाला अमन उर्फ भूरा घटना का मुख्य चश्मदीद था, जिसे पुलिस ने फरियादी बनाया. उस की रिपोर्ट पर दुर्लभ, राजदीप, अमित सोनी, अभिषेक शर्मा समेत एक अन्य के खिलाफ हत्या के प्रयास समेत अन्य धारा में केस दर्ज किया.
दुकानदार ने बताया, “दुर्लभ ने कहासुनी के बाद जैसे ही गोली चलाई, शाहनवाज घायल हो कर सडक़ पर बैठ गया. इस के बाद भगदड़ मच गई. इरफान व अमन उस्ताद उसे अस्पताल ले कर भागे. मैं भी घबरा कर भाग गया था.”
दूसरे पक्ष से दुर्लभ के खास साथी अभिषेक शर्मा की रिपोर्ट पर जीवाजीगंज पुलिस ने घायल शाहनवाज, शादाब, हिस्ट्रीशीटर रमीज, राजा व भूरा के खिलाफ हत्या की धाराओं में केस दर्ज किया.
अभिषेक ने बताया, “दुर्लभ के घर दाल बाटी खाने के बाद रात करीब डेढ़ बजे सिगरेट व चाय पीने दुकान पर गए थे. वहां शाहनवाज व शादाब से किसी बात पर दुर्लभ का झगड़ा हो गया और दुर्लभ को चाकू मारने लगे. चायवाला अमन उर्फ भूरा चिल्ला कर कह रहा था कि शादाब भाई इसे जान से खत्म कर दो, जिंदा मत छोडऩा.”
दुर्लभ की मां इस सदमे को बरदाश्त नहीं कर सकी थीं. उज्जैन में वह एकदम अकेले पड़ गई थीं, यही वजह रही कि उन्होंने भी बेटे के गम में 7 महीने बाद दम तोड़ दिया था.
दुर्लभ के जीवन पर बनी फिल्में
छोटी उम्र में अपराध की दुनिया का एक ऐसा बेताज बादशाह जिस की दहशत से न सिर्फ धार्मिक नगरी उज्जैन कांपती थी, बल्कि मालवा के इलाकों में उस के अपराध की तूती बोलने लगी थी. एक ऐसा गैंगस्टर जो औनलाइन गैंग चलाता था और कई वारदातों को अंजाम दे कर उज्जैन में बड़े गैंगस्टरों की लिस्ट में शामिल हो गया था.
उज्जैन का दुर्लभ कश्यप एक ऐसा ही गैंगस्टर था, जिस ने नाबालिग अवस्था में ही जुर्म की दुनिया में अपना नाम बनाया. उसी समय उज्जैन के एसपी सचिन अतुलकर हुआ करते थे.
एक बार जेल विजिट के दौरान उन्होंने दुर्लभ को देख कर कहा था, “तू जेल में ही सेफ है, उम्र से ज्यादा दुश्मनी पाल ली है, बाहर निकलेगा तो कोई मार देगा.”
दुर्लभ कश्यप अपने आसपास के युवाओं के बीच इतना प्रसिद्ध था कि लोग उसे लायन औफ उज्जैन कहते थे. आज भी उस के नाम पर उज्जैन में गैंग चल रहे हैं. इतना ही नहीं, दुर्लभ कश्यप के जीवन पर फिल्में भी बन चुकी हैं. ‘शूटर’ फिल्म में शानदार अभिनय करने वाले पंजाबी फिल्मों के अभिनेता जय रंधावा ने इस फिल्म में दुर्लभ की भूमिका निभाई है.
गैंगस्टर दुर्लभ पर फिल्म निर्माता मोहित मनाल, निर्देशक रोहित कुमार आर्यन ने ‘गैंगस्टर दुर्लभ कश्यप’ नाम की फिल्म बनाई है. यूट्यूब चैनल और ओटीटी प्लेटफार्म पर भी दुर्लभ के जीवन से जुड़ी फिल्में आसानी से देखी जा सकती हैं. कुछ भी हो, अपराध की दुनिया के युवाओं के लिए दुर्लभ कश्यप एक रोल मौडल है.
—कथा मीडिया रिपोर्ट पर आधारित
दुर्लभ और उस के साथी उज्जैन के दानी गेट इलाके में उस जगह बैठा करते थे, जहां मुर्दों का दाह संस्कार किया जाता था. दाह संस्कार करने वाले कुछ लोग काला पंछा यानी गमछा कंधे पर डाला करते थे. अपने आप को वजनी दिखाने के लिए इस गैंग के लोगों ने भी गमछा डालना शुरू कर किया. बाद में कंधों पर पंछा और खड़ा लाल टीका दुर्लभ गैंग की पहचान बन गए.
सोशल मीडिया के जरिए दिखाई ताकत
दुर्लभ कश्यप का फेसबुक अकाउंट था, जिस के जरिए वह अपराध फैलाता था. दुर्लभ सोशल मीडिया पर हमेशा सक्रिय रहता था. वह खुद को और अपने गैंग को प्रमोट करने के लिए फेसबुक का सहारा लेता था. दुर्लभ ने अपने एक सोशल मीडिया प्रोफाइल पर अपने आप को कुख्यात बदमाश और नामी अपराधी लिख रखा था.
दुर्लभ कश्यप का फेसबुक पर स्टेटस था कि वह कुख्यात बदमाश, हत्यारा और अपराधी है. कोई सा भी विवाद हो, कैसा भी विवाद हो तो उस से संपर्क करें. टीनएज में ही उसे अपराध करने का शौक चढ़ गया था. सोशल मीडिया पर उस के स्टाइल और पर्सनैलिटी से प्रभावित हो कर टीनएजर और युवा उस से जुडऩे लगे थे.
दुर्लभ कश्यप की फैन फालोइंग हर उगते सूरज के साथ बढऩे लगी. लोगों का साथ पा कर वह और मजबूत होने लगा. इस से वह शहर में छोटीमोटी वारदातें करने लगा. जुर्म करने के लिए अपने पेज पर विज्ञापन भी लिखता था. इस के अलावा सोशल मीडिया पर ही लोगों को धमकियां भी देता था. उस के अपराध का मुख्य जरिया सोशल मीडिया था. वह फेसबुक और वाट्सऐप के जरिए आपराधिक कामों को अंजाम देता था. वह हर रोज फेसबुक पोस्ट के जरिए रंगदारी, हफ्ता वसूली, लूटपाट और सुपारी लेता था.
दुर्लभ कश्यप चर्चा में उस वक्त आया, जब उस ने खुलेआम फेसबुक पर यह कहना शुरू कर दिया कि वह किसी से भी किसी के लिए विवाद कर सकता है, एवज में बस उसे पैसा चाहिए. दुर्लभ का सब से बड़ा हथियार था सोशल मीडिया. दुर्लभ गैंग के लोगों की प्रोफाइल पर हथियारों के साथ धमकाने और दहशत फैलाने वाली पोस्ट भी डाली जाती थी.
गैंग के लोगों की फेसबुक आईडी का संचालन करने के लिए भी उस ने एक टीम बना रखी थी, जो दहशत फैलने वाली पोस्ट करते थे. इस आईडी से जेल में बंद लोगों की भी फोटो पोस्ट की गई थी. उज्जैन में कम उम्र के लडक़ों के बीच दुर्लभ की लोकप्रियता बढऩे लगी थी. उस के गैंग में धीरेधीरे 100 से भी ज्यादा लड़के जुड़ चुके थे, जिन का उज्जैन में आतंक फैल चुका था. उस के नाम से चाय वाले से ले कर बड़ेबड़े बिजनैसमैन तक थरथर कांपते थे.
इस से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि एक 16 साल की लड़के ने किस तरह का आतंक मचा रखा था.
दुर्लभ कश्यप गैंग किसी कारपोरेट कंपनी की तरह काम करता था. गैंग का अपना स्टाइल और ड्रेस कोड था. बड़े बाल, माथे पर लाल टीका, आंखों में सुरमा, काला गमछा दुर्लभ गैंग की पहचान थी. गैंग के इसी स्टाइल के युवा और टीनएजर फैन हुए जा रहे थे.
सोशल मीडिया पर लोकप्रियता के चलते देखते ही देखते यह ग्रुप गैंग में बदल गया. दुर्लभ कश्यप का गैंग फेसबुक से चल रहा था. दुर्लभ कश्यप ने 17 साल की उम्र में फेसबुक पर एक पोस्ट डाल कर दहशत फैला दी थी. 18 साल की उम्र में कई सारे अपराध कर के वह बहुत ही कम उम्र में गैंगस्टरों की लिस्ट में शामिल हो गया.
वह गैंग के सदस्यों से रंगदारी, हफ्ता वसूली, लूटपाट जैसे अपराध करवाता था. जब सोशल मीडिया पर उस ने अपने इन्हीं कामों के लिए सुपारी लेने की पोस्ट शेयर की तो पुलिस ने इन्हें उठाना शुरू किया. तत्कालीन एसपी सचिन अतुलकर ने 2018 में दुर्लभ कश्यप के गैंग का परदाफाश कर दिया और 2 दरजन से अधिक लडक़ों को गिरफ्तार कर लिया.
दुर्लभ कश्यप बना युवा अपराधियों का रोल मौडल
कच्ची उम्र में ही दुर्लभ के इरादे जुर्म की दुनिया का बादशाह बनने के थे. उस के रहनसहन और कपड़े पहनने का अंदाज इस कदर युवाओं में पापुलर हो गया था कि कई लोग उस के इस अंदाज को फालो करने लगे थे. उसे बिल्लियों से बहुत प्यार था. वह अपने साथ कई बार बिल्ली भी रखता था.
पिछले साल 2022 में मध्य प्रदेश के सागर शहर में 60 साल के शिवकुमार दुबे, 57 साल के कल्याण लोधी, मंगल अहिरवार की सिर कुचल कर हत्या की गई. अगले दिन सोनू वर्मा नाम के युवक का भी मर्डर हो गया. इन सब में एक बात कौमन थी कि ये सभी चौकीदार थे.
कत्ल में एक नाम खुला 19 साल के शिवप्रसाद धुर्वे का. उसे भोपाल के कोहएफिजा इलाके के बसस्टैंड से पकड़ा गया. शिव प्रसाद धुर्वे ने जो नाम लिया, उसे सुन कर पुलिस चौंक गई. उस ने बताया, “वह भी दुर्लभ कश्यप की तरह मशहूर होना चाहता था.”
गिरफ्तारी के दौरान शिवकुमार धुर्वे पुलिस से हंसते हुए बोला, “एक और को निपटा दिया. काम के वक्त सोने वाले लोग मुझे पसंद नहीं. जितने भी चौकीदारों की हत्या की गई, वे सब काम के वक्त सो रहे थे. “
दुर्लभ गैंग का एक और सदस्य चयन बोहरा 14 जुलाई, 2022 को इंस्टाग्राम पर लाइव देखा गया. चयन और उस के साथी पार्टी कर रहे थे. इस पार्टी से 2 दिन पहले ही चयन और उस के एक साथी ने इंदौर में अनिल दीक्षित नाम के एक हिस्ट्रीशीटर पर गोलियां दागी थीं. जिस रोज चयन इंस्टाग्राम पर लाइव था, उसी दिन अनिल की मौत हुई. चयन ने इस वारदात को अंजाम देने से पहले इंस्टाग्राम पर ऐलान तक किया था. पुलिस ने इन पर 30 हजार रुपए का ईनाम घोषित किया. दोनों को 10 दिनों के भीतर अरेस्ट किया गया.
उज्जैन से 500 किलोमीटर दूर महाराष्ट्र का औरंगाबाद शहर. फरवरी, 2022 में एक दिन पुलिस को शिकायत मिली कि शुभम नाम के युवक पर हमला किया गया है. शुभम के पिता मनगटे अपने घर से कुछ ही दूरी पर किराने की दुकान चलाते हैं.
6 फरवरी, 2022 की रात का वक्त. कुछ लडक़ों ने मनगटे से सिगरेट देने को कहा. मनगटे बोले कि आधी रात का वक्त हो गया है और अब दुकान बंद कर रहे हैं. यह सुन सिगरेट मांग रहे युवकों ने लोहे की रौड और धारदार हथियार से मनगटे और उन के 22 साल के बेटे शुभम पर हमला कर दिया.
शुभम पर हमला करने वाले लडक़ों ने खुद को दुर्लभ कश्यप गैंग का बताया. जानकारी इस बात की भी मिली कि इस गैंग के लोग दुकानदारों से मुफ्त सामान लेते हैं और आनेजाने वाले लोगों को परेशान करते हैं. दिलचस्प बात यह है कि दुर्लभ अपनी जिंदगी में कभी औरंगाबाद नहीं आया. फिर इस गैंग ने खुद को दुर्लभ के साथ कैसे जोड़ा?
साल 2018 के अक्तूबर महीने की बात है. 2 महीने बाद मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने थे. विधानसभा चुनाव में सुरक्षा के मद्देनजर अपराधियों की धरपकड़ में उज्जैन पुलिस लगी हुई थी. उस समय महाकाल की नगरी उज्जैन शहर में कम उम्र के लड़कों के एक गैंग का तहलका मचा हुआ था. यह गैंग आए दिन शहर में बलवा कर शहर की शांति व्यवस्था को भंग कर रहा था.
इस गैंग का सरगना एक नाबालिग उम्र का मासूम सी सूरत वाला लड़का दुर्लभ कश्यप था, जिसे पुलिस ने शांति भंग करने के अपराध में गिरफ्तार किया था. उज्जैन के तत्कालीन एसपी सचिन अतुलकर एक प्रैस कौन्फ्रैंस कर रहे थे. दुर्लभ कश्यप और उस के 23 साथियों की मीडिया के सामने परेड कराई गई. सचिन अतुलकर की कोशिश थी कि चुनाव से पहले पेशेवर अपराधियों को नियंत्रण में कर लिया
जाए.
उस वक्त दुर्लभ 18 साल का भी नहीं था और मीडिया वाले उस के चेहरे से भी अनजान थे. प्रैस कौन्फ्रैंस चल ही रही थी कि एक पत्रकार ने सवाल किया, “इन लड़कों में से दुर्लभ कौन है?”
“आप देखिए, वो खुद ही हाथ उठा कर बताएगा,” एसपी ने जबाव दिया.
फिर पुलिस अधिकारियों के पीछे खड़े लड़कों की टोली में से एक फटी शर्ट वाले लड़के ने बहुत अलग अंदाज में अपना हाथ ऊपर उठाया. दुर्लभ के इस अनोखे अंदाज में उठाए हाथ का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. यह वही वक्त था, जिस के साथ दुर्लभ सोशल मीडिया पर लोगों के बीच पहचान हासिल करने में सफल हो गया. दुर्लभ कश्यप ने अपने आप को गैंगस्टर साबित करने के लिए सोशल मीडिया साइट फेसबुक पर बाकायदा इश्तहार दे रखा था.
दुर्लभ कश्यप का जन्म 8 नवंबर, 2000 को उज्जैन में जीवाजीगंज के अब्दालपुरा में हुआ था. वह पिता मनोज कश्यप तथा माता पद्मा का इकलौता बेटा था. दुर्लभ की मां पद्मा कश्यप उज्जैन के क्षीरसागर स्कूल में शिक्षिका थीं. दुर्लभ के पिता मुंबई में नौकरी करने के बाद इंदौर शिफ्ट हो गए.
दुर्लभ का कुछ समय इंदौर में भी बीता. एक संभ्रांत व संपन्न परिवार के मनोज कश्यप ने बाद में अपना व्यवसाय शुरू किया. तब से ही इन का परिवार उज्जैन में रहने लगा था. मनोज कश्यप व पद्मा ने अपने बेटे का नाम ‘दुर्लभ’ भी इसलिए रखा था कि वह बड़ा हो कर कुछ अलग और अच्छा करेगा.
उन की उम्मीद थी कि वह सब से हट कर कुछ बड़ा काम करेगा, जिस से उन का नाम रोशन हो. दुर्लभ पढ़लिख कर डाक्टर या इंजीनियर बने, इस के लिए दुर्लभ की मां पद्मा ने उसे शहर के नामी स्कूल में दाखिला कराया था.
एक दिन दुर्लभ को स्कूल भेजते वक्त मां ने दुर्लभ से कहा, “बेटा, अच्छे से पढ़ाई करना और एक दिन हमारा नाम रोशन करना.”
“मां तुम ने मेरा नाम दुर्लभ रखा है, देखना एक दिन मेरा नाम इस शहर की गलीगली में गूंजेगा.” दुर्लभ ने मां को जबाब देते हुए कहा. दुर्लभ का नाम रोशन हुआ भी, पर अपराध की दुनिया में.
दुर्लभ के मातापिता कुछ निजी समस्याओं के कारण एकदूसरे से अलग रहने लगे थे. दुर्लभ भी कभी अपनी मां के साथ तो कभी अपने पिता के साथ रहता था. मातापिता दोनों ही उसे अपनी जान से ज्यादा प्यार करते थे. घर में किसी भी चीज की कमी नहीं थी. दुर्लभ की हर ख्वाहिश मांबाप पूरी करते थे, जिस का नतीजा यह हुआ कि लाड़प्यार में वह बिगड़ गया.
दुर्लभ सिगरेट पीने का आदी हो गया. काली शर्ट पहने हुए लड़के , आंखों में काजल, माथे पर अलग तरह का खड़ा लाल टीका, कंधे पर काला पंछा या कहें गमछा और एक नाम दुर्लभ कश्यप. फेसबुक पर तलाशेंगे तो इस नाम के कई अकाउंट्स, पेज और ग्रुप सामने आ जाएंगे. युवाओं में दुर्लभ खासा प्रचलित था.
वह अपने गैंग में अकसर कम उम्र के लड़कों को शामिल किया करता था. दुर्लभ वैसे तो बहुत ही शांत स्वभाव का था, लेकिन बचपन में ही बुरी संगत में पड़ गया था. वह कुछ गैंगस्टरों की दबंगई और
ठाठबाट से बहुत प्रभावित हुआ, इसलिए उस ने कच्ची उम्र में ही बड़ा गैंगस्टर बनने का ख्वाब देख लिया और उसी राह पर निकल पड़ा.
आवारा किस्म के लड़के स्कूल में पढ़ते वक्त ही दुर्लभ के फैन बन चुके थे. वे उसे कोहिनूर के नाम से बुलाते थे. महज 15 साल की उम्र में उस ने फेसबुक पर हथियारों के साथ फोटो डालने शुरू कर दिए और अपनी बदमाशी का प्रचार करना शुरू कर दिया. दुर्लभ का मकसद था कि वह अपना खुद का एक गैंग बनाए, जिस में वह कामयाब भी हुआ. कई नाबालिग लड़के उस के साथ जुड़ते चले गए.
दुर्लभ कश्यप कैसे बना गैंगस्टर
दुर्लभ कश्यप ने 15 साल की उम्र में 10वीं क्लास का इम्तिहान दिया, लेकिन 10वीं में फेल होते ही उस की संगति आवारा किस्म के लड़कों के साथ बढऩे लगी. जिस तरह पूत के पांव पालने में दिखाई दे जाते हैं, ठीक उसी तरह दुर्लभ के तौरतरीकों ने स्कूल में पढ़ते समय ही यह साबित कर दिया था कि वह एक दिन अपराधी ही बनेगा.
देखते ही देखते वह उज्जैन का मशहूर हिस्ट्रीशीटर बन गया था. दुर्लभ कश्यप जब 16 साल का हुआ तो पढ़ाई छोड़ उसे गैंगस्टर बनने की धुन सवार हो गई. वह निकल पड़ा ऐसे रास्ते पर जहां जाना तो बड़ा आसान था, लेकिन वहां से वापसी करना बहुत ही मुश्किल था.
उज्जैन में कार्तिक मेले में उठने वाले पार्किंग के ठेके से दुर्लभ के गैंगस्टर बनने की कहानी शुरू होती है. हेमंत बोखला के जरिए दुर्लभ डागर परिवार के करीबी राहुल किलोसिया के कौन्टैक्ट में आया था. किलोसिया को अपना कारोबार चलाने के लिए कुछ लड़कों की जरूरत थी. यहीं से दुर्लभ और उस के साथियों को पनाह दी जाने लगी.
राहुल किलोसिया ने उज्जैन के बाहरी इलाके में मौजूद एक फार्महाउस को दुर्लभ और उस के साथियों के लिए खोल दिया था. गैंग के लड़के यहां आते और शराबगांजे के नशे में डूब कर खूब मौजमस्ती करते. बदले में ये लड़के किसी भी वारदात को अंजाम देने के लिए तैयार रहते थे.
दुर्लभ कश्यप पर जनवरी, 2018 में पहली बार हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ था. 11-12 जनवरी, 2018 की दरमियानी रात दुर्लभ और उस के साथियों का सामना टाक परिवार से जुड़े कुछ लड़कों से हुआ. इस गैंगवार में कई लड़के घायल हुए. दोनों गुट अपनेअपने साथियों को ले कर उज्जैन के सिविल अस्पताल पहुंचे तो यहां फिर से दोनों गैंग आपस में टकरा गए.
दुर्लभ गैंग के लड़कों ने अर्पित उर्फ कान्हा पर चाकू से हमला किया. 13 जनवरी, 2018 को उस की मौत हो गई. इस मामले में दुर्लभ और उस के साथियों को आरोपी बनाया गया. दुर्लभ और उस का साथी राजदीप उस वक्त नाबालिग थे, जिस की वजह से उन्हें उज्जैन के बाल सुधार गृह भेज दिया गया. 4 महीने काटने के बाद दोनों को इस केस में जमानत मिल गई. दुर्लभ को फोटो खिंचवाने का बहुत शौक था. वह उज्जैन के अलगअलग पेशेवर फोटोग्राफर्स से अपनी फोटो खिंचवाता था.
मुंबई में शायद वह कामयाब हो भी जाता, लेकिन जिन दिनों वह रवींद्र भवन में काम करता था, उन्हीं दिनों उस की मुलाकात इसी इलाके के 2 बदमाशों उजेब और अजीज उल्ला से हुई थी. ये दोनों नशा करने और कराने के लिए रवींद्र भवन के पास ही मंडराते रहते थे. इन दोनों की संगत में पड़ कर राम नशा करने लगा था. लेकिन इस के एवज में उसे अपना शोषण कराना पड़ता था.
अजीज और उजेब ने उस का पीछा मुंबई तक किया तो वह परेशान हो उठा. उस में इन बदमाशों से टकराने की हिम्मत नहीं थी. मुंबई से पहले वह भोपाल आया और फिर भोपाल से विदिशा आ गया. लेकिन इन दोनों बदमाशों से उसे छुटकारा नहीं मिला. ये दोनों विदिशा जा कर उस का शोषण करने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे. राम नायडू जब बहुत परेशान हो गया तो उस ने अपने भोपाल वाले मामा के साथ मिल कर विदिशा में अजीज उल्ला की हत्या कर दी.
यह सन 2003 की बात है. उस का यह जुर्म छुपा नहीं रह सका. पुलिस ने राम नायडू और उस के मामा को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. सन 2006 में हत्या का आरोप साबित होने पर अदालत ने उसे और उस के मामा को आजीवन उम्रकैद की सजा सुनाई.
सन 2011 तक राम नायडू जेल में रहा. इसी बीच ग्वालियर हाईकोर्ट में दायर राम नायडू और उस के मामा की जमानत याचिका मंजूर हो गई. मामाभांजा दोनों जमानत पर जेल से बाहर आ गए. राम नायडू बाहर तो आ गया, पर उस के सामने हजार तरह की दुश्वारियां मुंह बाए खड़ी थीं. उस के ऊपर कातिल का ठप्पा लगा था. ऐसे में उसे नौकरी मिलना मुश्किल था. जबकि कोई कामधंधा वह जानता नहीं था, जिस से अपना गुजरबसर कर लेता.
जब आदमी को कोई राह नहीं मिलती तो वह अपने लिए टेढ़ी राह चुन लेता है. यही राम नायडू के साथ हुआ. कामधंधा न होने के बावजूद वह हैरतअंगेज तरीके से अमीर होता गया. उस का रहनसहन ठाठबाट देख कर उसे जानने वाले चकित थे कि जेल से छूटे मुजरिम के पास इतना पैसा कहां से आ रहा है.
पूछने पर वह लोगों को बताता था कि वह प्रौपर्टी डीङ्क्षलग का धंधा कर रहा है, जिस से दलाली में अच्छाखासा पैसा मिल जाता है. इसी दौरान भोपाल के कोलार इलाके में उस ने नगद पैसे दे कर एक महंगा फ्लैट खरीद लिया. उन दिनों राम नायडू की रईसी और अय्याशी शबाब पर थी.
हकीकत यह थी कि जेल से जमानत पर छूटने के बाद उस ने नया धंधा चुन लिया था. यह धंधा था उम्रदराज लड़कियों से शादी कर के उन से पैसे झटकने का. मध्य प्रदेश की जिन जगहों में उस ने ठगी की, उन में सागर, ग्वालियर, बीना, ङ्क्षछदवाड़ा, खंडवा, खरगोन और सीहोर सहित दर्जन भर शहरों की लड़कियां शामिल थीं. राम के निशाने पर वे लड़कियां रहती थीं, जो 40 की उम्र के लगभग थीं और उन के घर में कोई पुरुष सदस्य नहीं होता था.
धंधा चल निकला तो वह बीवियों के पैसे से अय्याशी करने लगा. जिस को वह ठगता था, वे रिपोर्ट दर्ज नहीं कराती थीं, क्योंकि इस से सिवाय बदनामी के कुछ हासिल नहीं हो सकता था. इस प्लेबौय की कितनी पत्नियां हैं, इस की गिनती कथा लिखे जाने तक जारी थी. लेकिन हैरानी की बात यह है कि तमाम शहरों की लड़कियां यह तो स्वीकार रही हैं कि इस रंगीनमिजाज नटवरलाल ने उन्हें ठगा, पर रिपोर्ट अभी भी दर्ज नहीं करा रहीं.
सिर्फ एक पीडि़ता विजया उस के खिलाफ खुल कर सामने आई, जो जबलपुर मैडिकल कालेज में नर्स है. हैरानी की बात यह है कि उस ने विजया से शादी मृणालिनी को चूना लगाने के बाद बीते 12 नवंबर को भोपाल के आर्यसमाज मंदिर में की थी. शादी के 2-4 दिनों बाद उस ने विजया को समझाबुझा कर या कहें बेवकूफ बना कर इस बात पर राजी कर लिया था कि वह जबलपुर जा कर नौकरी करे. फिर कहीं सेटल होने के बारे में सोचेंगे.
मृणालिनी से ठगे पैसों से उस ने भोपाल के ही नेहरूनगर इलाके में एक और फ्लैट खरीदा था और साथ ही एक पुरानी कार भी खरीद ली थी. इस के बाद भी उस के पास पैसे बच गए थे, जिन से रंगीनमिजाज ठग राम नायडू सीधा बैंकाक जा पहुंचा, जहां वह एक होटल में ठहरा. इस के लिए उस ने जेल से छूटते ही मामा के घर के पते पर पासपोर्ट बनवा लिया था. बैंकाक में उस ने एक कालगर्ल बुक कर रखी थी. यानी शादी की मृणालिनी और विजया सरीखी दर्जनों लड़कियों से और हनीमून मनाने गया विदेश कालगर्ल के साथ.
पूरी तरह फंसने और पुराने पाप उजागर होने के बाद भी राम नायडू ने पूरी बेशर्मी से स्वीकारा कि वह अखबार में वैवाहिक विज्ञापन देख कर शादी का प्रस्ताव भेजता था, शिकार फांसता था, शादी करता था और पत्नियों से शारीरिक संबंध भी बनाता था. भले ही वे इस से मुकरती रहें.
उस ने एक अजीब बात और भी मानी कि उस ने भले ही कई शादियां कीं, पर विजया आज भी उस का सच्चा प्यार है. उस से उस की मुलाकात जबलपुर में उस वक्त हुई थी, जब उस का एक दोस्त वहां इलाज के लिए भर्ती था.
कई पत्नियों वाले इस राम का लंबा नपना तय है, क्योंकि उस के खिलाफ पुलिस तमाम पुख्ता सबूत हासिल कर चुकी है. दाद देनी होगी मृणालिनी की हिम्मत की, जिस ने लोकलाज की परवाह न कर के पहल की. नहीं तो यह अय्याश ठग न जाने और कितनी लड़कियों की जिंदगी से खिलवाड़ कर के उन के पैसे लूटता रहता.
देश भर में उम्रदराज लड़कियां तख्तियां हाथ में लटका कर नारे लगा रही हैं कि अकेले हैं पर कमजोर नहीं. उन्हें एक दफा राम नायडू की अय्याशी से सबक लेना चाहिए, वजह उस ने जाने कितनी अधेड़ अविवाहित महिलाओं की इज्जत और जज्बातों से खिलवाड़ कर के उन का पैसा लूटा है. इस मामले से यह भी साबित होता है कि अकेली रह रही उम्रदराज लडक़ी भावनात्मक रूप से कमजोर होती ही है, जिस का फायदा राम नायडू जैसे ठग आसानी से उठा लेते हैं.
—कथा में लड़कियों के नाम बदले हुए हैं.
बातों ही बातों में राहुल ने अपनी आगे की प्लानिंग भी बता दी कि अब वह इंदौर में ही रह कर कोई कारोबार करेगा और काम जमते ही मृणालिनी से शादी कर लेगा. मां तो घरजवांई चाहती ही थीं, लिहाजा उन्होंने तुरंत हां कर दी. दिल के हाथों मजबूर मृणालिनी भी इनकार नहीं कर पाईं. अगले 2 दिनों में ही राहुल ने मृणालिनी को बताया कि वह उस के लिए पिता की करोड़ों की जायदाद छोड़ आया है.
राहुल की लच्छेदार बातों का जादू और उस से भी ज्यादा उस की जरूरत, मांबेटी दोनों के सिर चढ़ कर बोल रही थी, इसलिए दोनों ने आंख मूंद कर उस की बातों पर विश्वास कर लिया. राहुल घर में घुसा तो वहीं का हो कर रह गया.
हफ्ते भर में ही फैसला ले लिया गया कि राहुल को बिजनैस शुरू करने के लिए पैसा मांबेटी देंगी. जब राहुल भी दुकान के लिए भागदौड़ करने लगा तो शक की कोई गुंजाइश नहीं रही. जल्द ही उस ने मृणालिनी को बताया कि न्यू पलासिया इलाके में एक दुकान की बात हो गई है, जिस में वह आटोमोबाइल पाट्र्स का बिजनैस शुरू करेगा.
दुकान का किरायाभाड़ा और पाट्र्स खरीदने के लिए राहुल ने करीब 15 लाख रुपए की जरूरत बताई. अपना सबकुछ राहुल को सौंप चुकी मृणालिनी ने अपनी अब तक की बचत के 5 लाख रुपए और उज्जैन में पड़े एक प्लौट को बेच कर मिले 10 लाख रुपए यानी 15 लाख रुपए राहुल को दे दिए.
जून की भीषण गर्मी खत्म हो चुकी थी. ढलती जुलाई की वह उमस भरी 26 तारीख थी, जब सुबहसुबह राहुल ने घर आ कर बताया कि माल आ गया है. मैं सामान का पेमेंट कर के और दुकान पर सामान लगवा कर कुछ घंटों में आता हूं. तैयारी पहले से हो रही थी, इसलिए मां बेटी ने पैसा देने में कोई ऐतराज नहीं किया. राहुल पैसा ले कर गया तो फिर वापस लौट कर नहीं आया.
रविवार 26 जुलाई, 2015 की देर रात तक मृणालिनी और उन की मां राहुल का इंतजार करती रहीं, पर वह घर नहीं लौटा तो वे चिंता में पड़ गईं. मृणालिनी ने राहुल को फोन किया तो उस का मोबाइल स्विच्ड औफ मिला, इस से मांबेटी और घबरा उठीं.
मन में दबा शक यकीन में बदलने लगा था कि कहीं भोलाभाला, मायूस सा दिखने वाला और मीठीमीठी बातें करने वाला राहुल कोई ठग तो नहीं था, जो उन्हीं के घर में रह कर बड़े इत्मीनान से 15 लाख का चूना लगा गया. जैसेजैसे दोनों इस शक को दबाने की कोशिश करतीं, वैसेवैसे वह उन्हें और ज्यादा डराने लगता.
सदमे की सी हालत में आ चुकीं मृणालिनी बारबार इस उम्मीद के साथ राहुल का नंबर डायल कर रही थीं कि शायद इस बार घंटी जाए और काल रिसीव कर के एक महीने के ही सही राहुल जानेपहचाने अंदाज में कहे कि सौरी मोबाइल खराब हो गया था या उस की बैटरी डिस्चार्ज हो गई थी, इसलिए काल पिक नहीं कर पाया.
पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. मांबेटी ने सारी रात बुरे खयालों के साथ करवटें बदलते काटी. उन्हें जरा बहुत उम्मीद थी कि शायद सुबह को राहुल वापस आ जाए, लेकिन उसे नहीं आना था, सो नहीं आया. नतीजतन जल्द ही उन के सामने यह सच आ गया कि राहुल वाकई एक नंबर का ठग था और उस की बताई सारी बातें झूठी थीं. 15 लाख का तो दुख अपनी जगह था ही, लेकिन उस से भी बड़ा दुख यह था कि राहुल मृणालिनी को कहीं का नहीं छोड़ गया था.
कुछ दिन मृणालिनी और उन की मां ने राहुल के वापस आने की झूठी उम्मीद में काटे. लेकिन धोखा खाई मृणालिनी का दिल जानता था कि उस पर क्या गुजर रही है. मां की भी हालत ठीक नहीं थी. उन्होंने जिस आदमी पर बेटे जैसा भरोसा किया, वही सब कुछ लूट कर भाग गया था. महिलाओं का अकेलापन कभीकभी कैसे अभिशाप बन जाता है, यह मांबेटी की हालत देख कर समझा जा सकता था.
लेकिन मृणालिनी खामोश नहीं बैठी. कुछ ही दिनों में उन्होंने खुद को संभाल लिया और एक दिन ‘वी केयर फार यू’ के दफ्तर जा पहुंची, जो इंदौर में पीडि़त महिलाओं की मदद के लिए जाना जाता है. ‘वी केयर फार यू’ की इंचार्ज इंस्पेक्टर सीमा मलिक ने मृणालिनी की दास्तान सुनी और लिखित दरख्वास्त ले ली. परेशानी यह थी कि मृणालिनी के पास राहुल की कोई पुख्ता पहचान नहीं थी. ईमेल किया हुआ केवल एक फोटो भर था, जिस के सहारे राहुल को ढूंढ़ पाना भूसे के ढेर में सुई ढूंढऩे जैसी बात थी. दूसरा जरिया राहुल का मोबाइल नंबर था, जो लगातार बंद जा रहा था.
लंबे वक्त तक जब वी केयर फार यू मृणालिनी के लिए कुछ नहीं कर पाया तो वह अक्तूबर के शुरू में इंदौर के आईजी संतोष कुमार सिंह से मिलीं और सारी बात उन्हें बताईं. संतोष कुमार सिंह ने इस मामले को पूरी गंभीरता से लेते हुए थाना क्राइम ब्रांच के प्रभारी कैलाशचंद पाटीदार को सौंप दिया. कैलाशचंद पाटीदार ने अपनी टीम बना कर ठग राहुल की खोजबीन शुरू कर दी. राहुल तक पहुंचने का एकमात्र जरिया उस का मोबाइल नंबर था, जो 26 जुलाई से ही बंद था.
पुलिस टीम ने जब उस के नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो हैरान रह गई, क्योंकि उस में जितने भी नंबर थे, वे सभी ऐसी महिलाओं के थे, जो अधेड़ थीं. इन में से कुछ से बातचीत करने पर राहुल का असली चेहरा सामने आ गया. वह एक पेशेवर और शातिर ठग था, जो अखबारों के वैवाहिक विज्ञापन देख कर उम्रदराज और हालात की मारी महिलाओं से संपर्क कर के शादी की पेशकश करता था और जहां बात जम जाती थी, वहां इसी तरह शादी कर लेता था.
लेकिन शादी कर के वह किसी के साथ जन्म भर नहीं, बल्कि 7 दिनों या 7 सप्ताह तक ही रहता था. इसी बीच वह अपनी बीवियों का मालमत्ता लपेट कर रफूचक्कर हो जाता था. मृणालिनी के मामले में भी उस ने ऐसा ही किया था. ज्यादा हैरान कर देने वाली दूसरी बात यह थी कि वह हर एक लडक़ी को अलग मोबाइल नंबर देता था, पर फोटो सभी को एक ही भेजता था. हां, अपना नाम जरूर सब को अलगअलग बताता था.
पुलिस टीम के सामने नई परेशानी यह थी कि ठगी की शिकार लड़कियां पूरा सच बताने में हिचकिचा रहीं थीं. वजह थी लोकलाज और बदनामी का डर. अधिकांश ने यह भी कहा था कि राहुल ने उन्हें ठगा भर है. उन से शारीरिक संबंध नहीं बनाए थे. जैसे ऐसा कहने भर से उन्हें कोई चरित्र प्रमाण पत्र प्राप्त हो रहा हो. जाहिर है, यह खुद को खुद के पाकसाफ होने का दिलासा देने वाली बात थी.
बहरहाल, पुलिस के सामने राहुल की असल पहचान का संकट अभी भी मुंह बाए खड़ा था. कोई भी पीडि़ता पुख्ता तौर पर उस के बारे में जानकारी नहीं दे पा रही थी. आखिरकार काल डिटेल्स खंगालते- खंगालते जांच टीम की नजर एक मिसकाल पर पड़ी. इसे छोड़ कर राहुल ने दूसरे सभी नंबरों पर बात की थी. करने को कुछ और था नहीं, लिहाजा पुलिस वालों ने इसी मिसकाल को टारगेट किया. वजह उस के दूसरे तमाम नंबर फर्जी तरीके से हासिल किए गए निकल रहे थे. हर एक को ठगने या शादी करने के बाद वह इस्तेमाल किया नंबर हमेशा के लिए बंद कर देता था.
जब इस मिसकाल वाले नंबर की जांच की गई तो वह विदिशा का निकला. इस की जानकारी ले कर क्राइम ब्रांच ने विदिशा जा कर दबिश दी तो यह नंबर किसी राम नायडू का निकला, जो विदिशा की कृष्णा कालोनी में रहता था. काफी मशक्कत के बाद इस राम नायडू नाम के शख्स को पुलिस टीम ने इंदौर के ही नौलखा इलाके से गिरफ्तार करने में कामयाबी हासिल कर ली.
राहुल दीक्षित और राम नायडू का क्या संबंध है यह पहेली सुलझाने में पुलिस को ज्यादा देर नहीं लगी. पता चला कि राम नायडू ही राहुल दीक्षित था, जिस के कई और भी नाम थे.
पूछताछ में पता चला कि राम नायडू के पिता पी. वेंकटेश्वर आंध्र प्रदेश के रहने वाले थे. पहले वह नागपुर में सेना में नौकरी करते थे. रिटायरमेंट के बाद वह बीएसएनएल में टैक्नीशियन के पद पर काम करने लगे थे. उन्होंने विदिशा में ही मकान बना लिया था. जब पुलिस ने राम नायडू उर्फ राहुल दीक्षित की जन्मकुंडली टटोली तो कई चौंका देने वाली बातें सामने आईं.
राम नायडू विदिशा में ही पैदा हुआ था, लेकिन उस के पिता ने पढ़ाई के लिए उसे भोपाल में रहने वाले उस के मामा ईश्वर प्रसाद के पास भेज दिया था. भोपाल में उस का दाखिला एक प्राइवेट स्कूल में करा दिया गया था. पढ़ाई में राम नायडू ठीकठाक था.
स्कूली पढ़ाई के बाद उस ने एम.पी. नगर प्रैस कौंप्लेक्स के पास नवीन कालेज में दाखिला ले लिया था. जब वह बीए के दूसरे साल में था तो उसे रंगमंच का शौक लग गया. अपनी चाहत पूरी करने के लिए वह देशभर में मशहूर भोपाल के कला केंद्र रवींद्र भवन से जुड़ गया. यहां उस की मुलाकात मशहूर कलाकार आलोक चटर्जी से हुई.
बड़े और प्रसिद्ध कलाकारों का सान्निध्य और प्रोत्साहन मिला तो उस का ध्यान पढ़ाई से उचट गया. वह मुंबई जा कर फिल्म इंडस्ट्री में जमने के सपने देखने लगा. राम नायडू चूंकि महत्त्वाकांक्षी था, इसलिए वह पढ़ाई अधूरी छोड़ कर मुंबई चला गया.
‘‘बेटी, कब तक मुझ बूढ़ी की तीमारदारी में अपनी जिंदगी खराब करती रहेगी. मेरी मान तो कोई अच्छा सा लडक़ा देख कर शादी कर ले और अपना घर बसा ले, मेरा क्या है, आज हूं कल नहीं. मैं चैन से तभी मर पाऊंगी, जब तेरा बसा हुआ घर देख लूंगी.’’
प्रोफेसर मृणालिनी (बदला हुआ नाम) जब थकीहारी कालेज से घर लौटती थीं तो उन्हें रोज किसी न किसी रूप में मां के इसी तरह के शब्द सुनने को मिलते थे. धीरेधीरे स्थिति यह हो गई थी कि मां जिस दिन ऐसी कोई बात नहीं कहती थीं, मृणालिनी को उन की तबीयत खराब होने का अंदेशा होने लगता था. 37 वर्षीया मृणालिनी इंदौर के एक नामी कालेज में प्रोफेसर थीं और एरोड्रम इलाके में रहती थीं.
पिता की मौत के बाद मृणालिनी ने मां की सेवा करने की ठान ली थी. ठान ही नहीं ली थी, बल्कि ऐसा कर भी रही थीं. घर में कोई और नहीं था, जो मां की देखभाल कर पाता. ऐसे में मृणालिनी को यह ठीक नहीं लगा कि वह मां को उन के हाल पर अकेला छोड़ कर शादी कर लें और ससुराल चली जाएं. इसलिए वह शादी, प्यार, रोमांस और घरगृहस्थी जैसे लफ्जों को भूल कर बेटे की भूमिका में आ गईं थीं. उन्होंने मां की सेवा और देखभाल को ही अपनी जिंदगी का मकसद बना लिया था.
लेकिन बूढ़ी मां की अपनी अलग परेशानी थी, वह नहीं चाहती थीं कि उन की वजह से अच्छीखासी पढ़ीलिखी और सुंदर बिटिया अविवाहित रह जाए. इसलिए वे तरहतरह से उस पर शादी के लिए दबाव बनाती रहती थीं.
मृणालिनी जैसी मिसाल कायम करने वाली दृढ़विश्वासी बेटियों की समाज में कमी नहीं है, जो अपने सुख से ज्यादा मांबाप की सेवा को प्राथमिकता देती हैं, भले ही उन्हें तन्हा जिंदगी क्यों न गुजारनी पड़े. पिछले कुछ दिनों से जैसेजैसे मां की जिद बढ़ती जा रही थी, उसे देख कर मृणालिनी भी सोचने को मजबूर हो गई थीं.
कभी मृणालिनी शादी के बारे में सोचतीं तो वह भी अन्य युवतियों की तरह अल्हड़ युवती में तब्दील हो जातीं. एक ऐसी युवती जो अपने लिए सुहाने सपने देखती है, पति के साथ घूमतीफिरती है, होटलों और मौल में जाती है. दूरदराज के पर्यटनस्थल पर अपने जीवनसाथी के हाथ में हाथ डाले रूमानी बातें करती हैं.
मृणालिनी चूंकि परिपक्व और जिम्मेदार थीं, इसलिए जल्द ही ऐसे ख्वाबोंखयालों को झटक देती थीं और मां के पास बैठ कर बतियाने लगती थीं. ज्यादा बोरियत होने पर वह सहेलियों से फोन पर बातें कर लेती थीं या फिर टीवी पर अपने पसंदीदा सीरियल देखने बैठ जाती थीं. उन से भी जी भर जाता था तो वह पत्रपत्रिकाओं के पन्ने पलटने लगती थीं.
मृणालिनी की सोच में आ रहा यह बदलाव आखिरकार उन के इरादों पर भारी पड़ा. हालांकि उन की सोच यह थी कि कोई कमाऊ जीवनसाथी मिल जाए तो मां की सेवा और देखभाल की जिम्मेदारी भी पूरी होती रहेगी और गृहस्थी भी बस जाएगी. भले ही वह साथ क्यों न रहें. लेकिन यह महज सोचने भर की बात थी, क्योंकि अभी तक कोई ऐसा प्रस्ताव नहीं आया था. खुद मृणालिनी ने भी अपनी तरफ से इस तरह की कोई पहल नहीं की थी.
जब अरमानों और जज्बातों की लड़ाई में अरमान भारी पडऩे लगे तो बीते साल जून के महीने में मृणालिनी ने यह सोचते हुए एक अखबार में अपनी शादी का विज्ञापन दे दिया कि ढंग का कोई जीवनसाथी मिला तो ठीक, नहीं मिला तो कोई बात नहीं. विज्ञापन देते वक्त एक तरह से उन्होंने उम्मीद के साथ नाउम्मीदी के लिए भी खुद को तैयार कर लिया था.
विज्ञापन का वाजिब असर हुआ. उस के छपते ही मृणालिनी के मोबाइल पर धड़ाधड़ प्रस्ताव आने लगे. लेकिन हर आने वाले फोन के साथ उन का उत्साह ठंडा पडऩे लगा. वजह यह थी कि आने वाले अधिकांश प्रस्ताव उन की चाहत के अनुरूप नहीं थे. कोई तलाकशुदा था तो कोई विधुर, उन में से भी अधिकतर बच्चों वाले थे.
कुछ प्रस्तावों पर तो उन्होंने साफ महसूस किया कि प्रस्ताव भेजने वाले की नजर उन के अच्छेभले वेतन, पद और घर पर थी. कुछ ऐसे फोन भी आए, जिन में उम्मीदवार करता धरता कुछ नहीं था, बस पुरुष भर होना ही उस की योग्यता थी. सलीके के अगर कुछ प्रस्ताव आए भी तो उन्होंने यह जान कर आगे दिलचस्पी नहीं ली कि मृणालिनी के घर उन के अलावा सिर्फ एक बूढ़ी मां हैं.
इस सब से मृणालिनी की समझ में आ गया था कि इस उम्र और हालात में अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करना आसान नहीं है. लिहाजा उन्होंने उम्मीद का दामन छोडऩे की सोच ली. तभी जबलपुर से एक फोन आया. फोन करने वाला राहुल दीक्षित नाम का व्यक्ति था, जिस ने अपना परिचय पूरे आत्मविश्वास और आत्मीयता से दिया था.
राहुल ने खुद को जबलपुर के एक बड़े कारोबारी का एकलौता बेटा बताते हुए मृणालिनी से कहा था कि चूंकि उसे अब तक कोई मनपसंद लडक़ी नहीं मिली, इसलिए शादी नहीं की. दोनों के बीच इधरउधर की कुछ और भी औपचारिक बातें हुईं. फोन पर मृणालिनी की मां ने भी राहुल से बात की.
अब तक आए तमाम प्रस्तावों में से यही एक बेहतर प्रस्ताव था. लिहाजा मांबेटी ने रायमशविरा कर के राहुल को इंदौर आने का न्यौता दे दिया, ताकि आमनेसामने साफसाफ बात हो सकें और वे लडक़े को देख भी लें. इस आमंत्रण पर राहुल ने हां करते हुए कहा कि वह जल्द ही इंदौर आएगा.
चंद दिनों के बाद राहुल मृणालिनी के इंदौर स्थित घर जा पहुंचा. जिंदगी में कई बार ऐसा होता है कि आप पहली बार किसी से मिलते हैं तो यही लगता है कि जिस की तलाश थी, वही यह है. ऐसा ही कुछ मृणालिनी और उन की मां के साथ भी हुआ. राहुल से चंद घंटों की बातचीत के बाद दोनों इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने रिश्ते के लिए हां कर दी.
पूरी बातचीत में राहुल ने कोई शर्त नहीं रखी थी. न ही मृणालिनी की नौकरी और वेतन पर चर्चा के अलावा लेनदेन की कोई बात की थी. अलबत्ता पढ़ेलिखे आदमी की तरह उस ने सारी जानकारी जरूर ले ली थी. यह कोई काबिलेऐतराज बात नहीं थी, क्योंकि रिश्ते के मामले में ये बातें बेहद आम और जरूरी होती हैं. मां बेटी को राहुल औरों से हट कर लगा.
पहली ही मुलाकात में बात औपचारिक से अनौपचारिक हो गई थी. जातेजाते राहुल इशारा कर गया कि उस की तरफ से तो कोई दिक्कत नहीं है. अब आगे की बात घर वाले करेंगे. इस के बाद जो हुआ, वह आजकल के हिसाब से बहुत सामान्य है. मृणालिनी और राहुल फोन पर लंबीलंबी बातें करने लगे. इन बातों में भविष्य के सपने भी होते थे. मृणालिनी की मां तो राहुल जैसा नेक और शरीफ लडक़ा पाने की कल्पना से ही खुश थीं. मांबेटी दोनों साथ बैठ कर बातें करती थीं तो यह खुशी दोगुनी हो जाती थी.
मृणालिनी राहुल को चाहने लगी थीं. वह इंतजार कर रही थीं कि उस के कहे मुताबिक उस के घर वाले बात आगे बढ़ाएं. इस बीच उस में काफी बदलाव आया था. वह खुश रहने लगी थीं और फिर से सपने देखने लगी थीं. अधेड़ उम्र की बेटी को मुद्दत बाद यूं खुश देख मां भी फूली नहीं समाती थीं. उन्हें खुशी इस बात की थी कि जीतेजी बेटी का घर बसते देख लेंगी.
कुछ दिनों बाद एक दिन अचानक राहुल परेशान और बदहवास सा मृणालिनी के घर आ पहुंचा तो मांबेटी दोनों उस की हालत देख न केवल चौंकीं, बल्कि खुद भी परेशान हो उठीं. बारबार पूछने और कुरेदने पर राहुल ने बड़ी मासूमियत से बताया कि उस के घर वाले इस शादी पर राजी नहीं हैं, इसलिए वह हमेशा के लिए घर छोड़ कर आ गया है. साथ ही उस ने यह भी बताया कि वह बिजनैस के लिए घर से 20 लाख रुपए ले कर चला था, लेकिन इटारसी जंक्शन पर उस के पैसे और सामान चोरी हो गया.
उस ने अपनी बात कुछ इस ढंग से कही थी कि मृणालिनी और उन की मां चाह कर भी उस पर अविश्वास नहीं कर पाईं. राहुल खाली हाथ था, इसलिए उसे घर में रहने की अघोषित अनुमति मिल गई.