उस हादसे को कई साल बीत गए थे. लेकिन आज अचानक रजत के रूप में मयंक सुरबाला के सामने आ गया था. सुरबाला अभी पुरानी यादों से उबर भी नहीं पाई थी कि उस का मोबाइल बज उठा. उस ने उठने की कोशिश करते हुए मोबाइल कान से लगाया.
‘‘सुरबालाजी,’’ उधर से आवाज आई, ‘‘त्रिलोचन बोल रहा हूं, आप सुन रही हैं न?’’
‘‘जी, जी हां.’’
‘‘आप की जान को खतरा है. अपने कमरे के दरवाजे और खिड़कियां ठीक से बंद कर लीजिए और बाहर मत निकलिएगा.’’ इस के साथ ही संपर्क टूट गया. सुरबाला चेतावनी को ठीक से समझ भी नहीं पाई थी कि उस ने किसी को अंदर आते देखा. उस काली छाया के हाथ में हथियार जैसी कोई चीज मौजूद थी. सुरबाला भयभीत हो कर जोर से चीखी और गिरती पड़ती दूसरे दरवाजे से निकल कर सीढि़यों की ओर भागी. छाया हथियार ताने हुए उस के पीछे झपटी. लेकिन सास के कमरे में चली जाने की वजह से वह बच गई.
त्रिलोचन के 2 बेटे थे, नीरव और विप्लव. उन्होंने उन दोनों को अपने जासूसी के पेशे से जोड़ रखा था. विप्लव और नीरव अपनेअपने तरीके से पिता की मदद करते थे.
नीरव ने अपने सामने बैठे व्यक्ति का गौर से मुआयना किया और अपने शब्दों पर जोर देते हुए बोला, ‘‘मेजर चौहान, आप उस रात कहां थे जिस समय मयंक की हत्या हुई थी?’’
‘‘अपने घर पर, और कहां?’’
‘‘लेकिन हमारी तफ्तीश बताती है कि आप उस रात सुखनई के जंगल में मौजूद थे…’’ नीरव ने देखा, चौहान चौंक गए थे. नीरव ने बिना मौका दिए अगला सवाल दाग दिया, ‘‘क्या करने गए थे वहां?’’
‘‘शिकार…’’
‘‘जानवर का या इंसान का?’’
‘‘व्हाट डू यू मीन?’’ मेजर तैश में आ कर चिल्ला पड़े, ‘‘ठीक है, आप जासूस हैं. लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि आप मेरे ऊपर कोई भी आरोप लगा दें.’’
नीरव पर उन के चिल्लाने का कोई असर नहीं पड़ा. उस ने अपने बैग में हाथ डाल कर एक रिवाल्वर निकाली और सामने पड़ी मेज पर रख दी. रिवाल्वर बुरी तरह जंग लगी हुई थी. उसे देख मेजर के चेहरे पर विचित्र भाव उभर आए.
‘‘यह हथियार हमें उसी जंगल में मिला है और मुझे यकीन है कि यह आप का वही लाइसेंसी रिवाल्वर है, जिस की गुमशुदगी की रिपोर्ट आप ने जीतपुर थाने में दर्ज कराई थी. इस के चैंबर में अभी भी 2 खाली कारतूस मौजूद हैं. निस्संदेह आप को इस बात की जानकारी होगी कि उस रात उस जंगल में एक इंसान की जान चली गई थी.’’
मेजर के चेहरे का रंग उड़ गया, वह कुर्सी पर गिर से पड़े. नीरव ने उन से पूछताछ जारी रखी.
बरामदे में बैठे चाय पी रहे त्रिलोचन सामने बैठी पत्नी से पूछा, ‘‘विप्लव कहां है?’’
‘‘साहबजादे सो रहे हैं.’’
‘‘आप उसे बिगाड़ रही हैं, यह कोई सोने का वक्त है?’’ त्रिलोचन को गुस्सा आ गया. वह चाय का प्याला थामे विप्लव के कमरे में जा पहुंचे. उन्होंने झटके से बेटे के ऊपर से चादर खींच ली. उसी वक्त गर्म चाय की कुछ बूंदें छलक कर विप्लव की पीठ पर गिर गईं.
‘‘आ…’’ विप्लव बौखला कर उठ बैठा और अपनी पीठ सहलाने लगा.
‘‘मैं ने तुम्हें एक काम दिया था?’’
‘‘डैड, आज आप का काम हो जाएगा. लेकिन रिमाइंड करवाने का आप का यह तरीका कुछकुछ पुलिसवालों की थर्ड डिग्री जैसा है. प्लीज, आगे से ऐसा मत करिएगा.’’
त्रिलोचन मुसकुराते हुए बाहर निकल गए. चाय का प्याला उन्होंने मेज पर रखा और अपना बैग ले कर चले गए. उन का रुख बर्नेट अस्पताल की ओर था. अस्पताल में त्रिलोचन को अपने टारगेट तक पहुंचने में देर नहीं लगी.
‘‘बड़े मियां, मैं ने सुना है कि आप शायरी बहुत अच्छी करते हैं.’’ त्रिलोचन ने बर्नेट अस्पताल के उस बूढ़े क्लर्क की तारीफ की. साथ ही वह बारीकी से उस रजिस्टर के पन्ने भी निहार रहे थे, जिस के आधे से ज्यादा पृष्ठ जर्जर हो गए थे.
‘‘अमां लानत भेजिए हुजूर.’’ वह रद्दी की टोकरी में पीक थूकता हुआ बोला, ‘‘कम्बख्त यह भी कोई करने लायक काम है.’’
त्रिलोचन समझ गए कि जश्न अली बहुत काइयां है और उन के ऊपर निगाह जमाए हुए है. उस के रहते कुछ संभव नहीं होगा.
‘‘मुआफ करिएगा, एक जरूरी फोन आ रहा है.’’ त्रिलोचन मोबाइल कान से लगाते हुए बाहर निकल गए. बाहर आ कर उन्होंने अपने घर का नंबर डायल किया. मिनट भर बाद शैलजा ने फोन उठाया तो वह धीरे से बोले, ‘‘एक लैंडलाइन नंबर लिख लो और इस नंबर पर फोन कर के फोन उठाने वाले को कुछ देर उलझाए रखो.’’
पलभर बाद ही अंदर के कमरे में रखा टेलीफोन बज उठा. घंटी की आवाज सुन कर जश्न अली बुदबुदाया, ‘‘लीजिए, यह कम्बख्त भी घनघनाने लगा.’’
त्रिलोचन इसी मौके की ताक में थे, उन्होंने साथ लाए कैमरे से उस खास पेज का फोटो ले लिया.
विप्लव धुरंधर के सामने बैठा था. धुरंधर के चेहरे पर नागवारी के भाव थे. उन्होंने विप्लव को घूर कर देखा और नाराजगी भरे स्वर में बोले, ‘‘आप का पूरा परिवार ही हमारे पीछे पड़ गया है. पहले आप के पिताजी ने अच्छीखासी नौटंकी की, अब आप आ गए.’’
‘‘नौटंकी कौन कर रहा है, यह जल्दी ही पता चल जाएगा. फिलहाल तो यह बताइए कि आप अपनी भाभी सुभाषिनीजी को कब से जानते हैं?’’
‘‘जब से बड़े भैया से उन की शादी हुई.’’ धुरंधर ने बेलाग जवाब दिया.
‘‘पक्का?’’
‘‘आप कहना क्या चाहते हैं?’’
‘‘मैं कहना यह चाहता हूं…’’ विप्लव ने धुरंधर के चेहरे पर नजर जमा दी, ‘‘कि आप दोनों उस से भी काफी पहले से एकदूसरे को जानते हैं.’’
‘‘यह आप के दिमाग की उपज है?’’
‘‘नहीं जी, मेरा दिमाग इतना उपजाऊ कहां है. यह तो लखनऊ के उस कालेज की पत्रिका की उपज है, जहां आप दोनों साथसाथ पढ़ते थे.’’ विप्लव ने हाथ में थामी हुई पत्रिका खोल कर धुरंधर के आगे रख दी. बीच के पन्ने पर एक समूह फोटो छपी थी, जिस में सुभाषिनी और धुरंधर पासपास खड़े थे. फोटो देख कर धुरंधर की निगाह झुक गई. विप्लव ने धुरंधर से कई बातें पूछीं और लौट आया.
हफ्ता भर बाद बलराम तोमर ने अपने हवेलीनुमा घर में शानदार दावत का आयोजन किया. जिस बड़े हाल में आयोजन था, उस के बीचोबीच एक बड़ा सा बैनर लगा था, जिस में लिखा था, ‘मयंक तुम्हारे आने की खुशी में आज पूरा घर खुश है.’
रजत अपने मातापिता के साथ बैठा मुसकरा रहा था. उस ने धुरंधर के बेटे सुकुमार से दोस्ती कर ली थी और उस से बतिया रहा था. सुरबाला की नजर त्रिलोचन पर पड़ी तो वह तुरंत उन के पास आ पहुंची. उस के हाथ में प्लास्टर बंधा हुआ था.
‘‘उस दिन आप की मेहरबानी से बच गई, सीढि़यों से गिरने पर हाथ जरूर टूटा गया, लेकिन जान…’’
‘‘खतरा अभी टला नहीं है.’’ त्रिलोचन के स्वर में उस के लिए चेतावनी थी.
‘‘मैं उस दिन से सासू मां के साथ ही सोती हूं.’’
रात के 10 बजतेबजते खानापीना खत्म हो गया.
‘‘आज सब को यहीं विश्राम करना है.’’ बलराम तोमर ने मेहमानों से कहा तो त्रिलोचन बोले, ‘‘हम आप से माफी चाहते हैं, एक जरूरी काम है, जिसे रात में खत्म करना है, वरना हम ठहर जाते.’’
त्रिलोचन ने तोमर साहब से अनुमति ली तो नीरव और विप्लव भी उठ खड़े हुए.
‘‘और हां, आप सब के लिए एक आवश्यक सूचना है.’’ त्रिलोचन ने पलटते हुए घोषणा की, ‘‘रजत को अपने पिछले जन्म की वे तमाम बातें भी याद आ गई हैं, जिन पर अभी तक परदा पड़ा हुआ था. इस सब पर हम कल चर्चा करेंगे. मेहरबानी कर के इस बारे में रजत को अभी तंग न करें.’’
त्रिलोचन अपने दोनों बेटों विप्लव और नीरव के साथ चले गए.