फेसबुक का प्यार कौन है हकदार – भाग 2

एसआई की थोड़ी सी सख्ती ने ही उन्हें गिड़गिड़ाने पर विवश कर दिया. अरमान डरते हुए बोला, ”छोड़ दीजिए साहब, मैं कुबूल करता हूं कि मैं ने इन दोनों दोस्तों के साथ मिल कर माहिर की जान ली थी.’’

एएसआई विपिन त्यागी ने उसी समय एसएचओ प्रवीण कुमार को बुला लिया. उन्होंने बहुत गंभीर स्वर में पूछा, ”तो तुम कुबूल करते हो कि माहिर की तुम्हीं तीनों ने हत्या की है?’’

”हां साहब,’’ अरमान हाथ जोड़ते हुए कराहते हुए बोला.

”तुम तीनों ने माहिर की हत्या क्यों की, तुम्हारी उस से ऐसी क्या दुश्मनी थी कि तीनों ने इतनी बेरहमी से माहिर की जान ले ली?’’

”माहिर मेरे प्यार में कांटा बन गया था साहब. मैं जिस लड़की से प्यार करता हूं, उसे माहिर हासिल कर लेना चाहता था, मजबूरन मुझे उसे रास्ते से हटाना पड़ा.’’

”मुझे विस्तार से बताओ.’’ एसएचओ इस ट्रिपल लव स्टोरी की हकीकत जानने के लिए उत्सुक हुए तो अरमान ने ऐसी प्रेम कहानी का खुलासा किया, जो आधुनिक प्रेम में युवकयुवती के भटकाव को दर्शाती थी. यह कहानी इस प्रकार थी—

इंस्टाग्राम पर हुई थी जैनब से दोस्ती

अरमान उम्र का 20वां साल पार कर चुका था. इस उम्र में युवा मन में किसी सुंदर लड़की की चाहत अंगड़ाई लेने लगती है. अरमान दिखने में सुंदर था. उस पर कुरता पायजामा ही नहीं, जींस और शर्ट भी खूब जंचती थी. हीरो की तरह रहने वाला अरमान अपने लिए हीरोइन की तलाश कर रहा था.

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अरमान को मोबाइल चलाने का शौक था. उसे मालूम था कि फेसबुक पर जवान जवान लड़कियां दोस्ती के लिए रिक्वेस्ट डालती हैं, उन से दोस्ती की जा सकती है.

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        आरोपी अरमान

अरमान ने फेसबुक खोल कर देखना शुरू किया तो उसे एक पोस्ट पर जैनब नाम की एक लड़की की फ्रेंड रिक्वेस्ट दिखी. जैनब ने अपनी हौबी और अपनी उम्र भी लिखी हुई थी. वह 19 साल की थी. उस की हौबी हमउम्र लड़कों से दोस्ती करना, संगीत सुनना थी. उस ने फेसबुक पर अपनी खूबसूरत फोटो भी लगा रखी थी. अरमान को वह बहुत पसंद आई.

उस ने जैनब की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया. जैनब ने उस की दोस्ती को तुरंत स्वीकार कर लिया. उस ने अरमान से शुरू में मैसेज से बातचीत की, फिर उस से फोन मिला कर बातें करने लगी. उस की सुरीली आवाज और खनकती हंसी का अरमान दीवाना हो गया.

दूसरे दिन उस ने जैनब को फोन मिला दिया, ”हैलो जैनब, कहां पर हो?’’

”घर पर ही हूं अरमान. कहो कैसे फोन किया?’’ जैनब ने पूछा.

”तुम्हें अपने सामने देखने का मन हो रहा है जैनब, क्या तुम मुझे बाहर कहीं मिल सकती हो?’’

”मिल लूंगी अरमान, बताओ कहां आऊं मैं?’’

”तुम खुद डिसाइड कर लो जैनब, तुम जहां कहोगी मैं पहुंच जाऊंगा.’’

”मैं कनाट प्लेस आ जाती हूं, तुम पालिका बाजार के गेट नंबर एक पर मेरा इंतजार करना. मैं एक घंटे में पहुंच जाऊंगी.’’ जैनब ने कह कर काल डिसकनेक्ट कर दी.

अरमान हवा में उडऩे लगा. उसे लगा कि जैसे आज मनमांगी मुराद मिल गई है. वह जल्दी जल्दी तैयार हुआ और आटोरिक्शा द्वारा कनाट प्लेस पहुंच गया. पालिका बाजार के गेट नंबर एक पर पहुंच कर उस ने मोबाइल में समय देखा तो अभी एक घंटा पूरा होने को 10 मिनट शेष दिखाई दिए. वह अपने उतावलेपन पर मुसकरा पड़ा. यहां आने में उस ने जैनब से बाजी मार ली थी.

जैनब 15 मिनट देर से आई. चूंकि फेसबुक पर उन की चैटिंग होती रहती थी, इसलिए दोनों एकदूसरे को तुरंत पहचान गए. अरमान ने लपक कर जैनब का हाथ पकड़ लिया और उस की बड़ी बड़ी आंखों में देखने लगा.

”क्या ढूंढ रहे हो तुम मेरी इन आंखों में?’’ जैनब ने इठला कर पूछा.

”देख रहा हूं मेरे लिए इन आंखों में कितना प्यार है.’’

”यह तो तुम्हें इन आंखों की गहराई में उतरने के बाद ही मालूम होगा.’’ जैनब मुसकरा कर बोली.

”तुम्हारी इजाजत चाहिए जैनब. इन आंखों में तो क्या मैं तुम्हारे दिल की गहराई में भी उतर जाऊंगा.’’ अरमान गहरी सांस भर कर बोला.

”मेरे दिल की गहराई में तुम्हें मेरा प्यार ही प्यार मिलेगा. मेरी हर धड़कन तुम्हारा ही नाम ले रही होगी अरमान.’’ जैनब सर्द आह भर कर बोली.

”बहुत दिलचस्प हो तुम जैनब, तुम्हारे साथ खूब निभेगी.’’ अरमान हंस कर बोला, ”आओ, पहले कौफी हाउस चल कर कौफी पीते हैं. फिर पालिका पार्क में बैठ कर बातें करेंगे.’’

अरमान जैनब को ले कर कौफी हाउस में आ गया. वहां कौफी पी लेने के बाद वे पालिका पार्क में आ बैठे.

”कहां रहते हो अरमान?’’ जैनब ने पूछा.

”मैं गोकलपुरी के भागीरथी विहार में रहता हूं जैनब, तुम कहां रहती हो?’’

”मैं घड़ौली, मयूर विहार फेज-3 में रहती हूं.’’ जैनब में बताया.

”जैनब मेरी जिंदगी में आने वाली तुम पहली लड़की हो.’’ अरमान जैनब की कोमल हथेली अपने हाथ में ले कर बोला, ”मैं तुम्हें अपनी जान से ज्यादा प्यार करूंगा, तुम्हें अपने दिल में बसा कर रखूंगा. तुम्हें अपनी दुलहन बनाऊंगा.’’

जैनब मुसकराई, ”अगर तुम्हारे ऐसे सपने हैं तो इन सपनों को साकार करने के लिए ढेर सारी दौलत कमानी होगी अरमान, तुम पढ़लिख कर किसी अच्छी सर्विस पर लग जाओ, फिर हम शादी कर लेंगे.’’

”मैं अपना बिजनैस करूंगा जैनब. देखना तुम, मैं पैसों का अंबार लगा दूंगा.’’

”तुम्हारी मनोकामना पूरी हो अरमान, तुम राजा बन जाओगे तो मैं तुम्हारी रानी बन जाऊंगी.’’ जैनब ने दिल से कहा.

”मैं बहुत जल्दी अपना सपना पूरा करूंगा जैनब. आओ, तुम्हें भूख लगी होगी, किसी रेस्तरां में बैठ कर कुछ खा लेते हैं.’’ अरमान उठते हुए बोला.

जैनब ने भी जगह छोड़ दी. अरमान ने उसे एक रेस्तरां में लंच करवाया. अरमान से फिर मिलने का वादा कर के जैनब अपने घर के लिए निकल गई. अरमान भी वापस आ गया. अरमान और जैनब का प्यार दिन पर दिन गहरा होता जा रहा था. अरमान समय समय पर जैनब को कुछ न कुछ तोहफे देता रहता था.

कुछ दिनों बाद अरमान का जन्मदिन था. यह बात उस ने फोन द्वारा जैनब को बता दी थी. जैनब अरमान को उस के जन्मदिन पर कोई कीमती गिफ्ट देना चाहती थी. क्या दे, वह इसी सोच में थी कि उसे माहिर का खयाल आया.

माहिर विजय विहार, लोनी (गाजियाबाद) में रहता था. वह भी जैनब का हमउम्र था. 20 साल का उभरता युवा. जैनब उस से भी प्रेम करती थी. माहिर से भी उस की जान पहचान फेसबुक के द्वारा ही हुई थी. वह माहिर के साथ भी शादी का ख्वाब पाले हुए थी. जैनब एक साथ 2-2 युवकों को फांसे हुए थी. वह जानती थी माहिर उसे बहुत प्यार करता है, इसलिए उस ने अरमान को जन्मदिन गिफ्ट देने के लिए माहिर की मदद लेने का मन बना लिया.

उस ने माहिर को फोन किया. दूसरी ओर से तुरंत उस की फोन अटेंड की गई. माहिर का उतावला स्वर उभरा, ”कहां पर हो उर्वशी, मैं तुम्हारे लिए 2 दिनों से परेशान हूं. तुम्हारा फोन नौट रीचेबल आ रहा था.’’ जैनब ने माहिर को अपना नाम उर्वशी बताया हुआ था.

”क्यों? मैं तो यहीं थी. हो सकता है नेटवर्क की प्राब्लम हो.’’ जैनब उर्फ उर्वशी ने बात घुमाई, ”मुझे तुम से शाम को मिलना है.’’

”हां मिलो न, मैं तुम्हारी खातिर बहुत बेचैन हूं. मिलोगी तब चैन आएगा. बोलो, कहां आना है?’’ माहिर की ओर से बेसब्री से पूछा गया.

”वही पुरानी जगह, इंडिया गेट आ जाना, शाम को 4 बजे.’’

”ठीक है.’’

फोन डिसकनेक्ट कर जैनब ने घड़ी देखी. दोपहर का एक बज रहा था. वह माहिर से मिलने जाने के लिए तैयार होने लगी.

शाम को माहिर और उर्वशी इंडिया गेट के पार्क में एक पेड़ के नीचे बैठे थे. माहिर के बालों में अंगुलियां चलाते हुए उर्वशी उसे एकटक देख रही थी. माहिर ने आंखें मूंद ली थीं. अपने बालों में उर्वशी की अंगुलियां घूम रही थीं तो उसे बहुत अच्छा लग रहा था.

”माहिर.’’ उर्वशी ने उसे कंधे से पकड़ कर हिलाया, ”मुझे एक अच्छा सा फोन दिलवाओ न.’’

”फोन है तो तुम्हारे पास.’’ माहिर आंखें खोल कर बोला.

”मुझे अपनी एक सहेली को उस के जन्म दिन पर गिफ्ट देना है, मुझे नया फोन चाहिए.’’

माहिर ने कुछ देर सोचा फिर बोला, ”मैं कल तुम्हें मोबाइल फोन ला कर दे दूंगा. एक नया फोन है मेरे पास. आईफोन-14. उस का लुक अच्छा है, तुम्हारी सहेली को पसंद आ जाएगा.’’

”ठीक है. मैं कल मिलती हूं तुम से.’’ कहते हुए उर्वशी खड़ी हुई तो माहिर चौंक पड़ा, ”इतनी जल्दी जा रही हो.’’

”एक काम है माहिर, घर में मेरा इंतजार हो रहा होगा. कल मिलती हूं न, फिर इत्मीनान से बैठेंगे.’’ उर्वशी बात बना कर बोली, ”कल मैं इसी समय तुम्हें यहीं मिलूंगी. फोन ले कर आना.’’

”ले कर आऊंगा.’’ माहिर ने कहा तो उर्वशी उस से विदा हो कर चली गई. माहिर को उर्वशी के इस रवैए पर हैरानी हुई, लेकिन वह चुप रह गया. उर्वशी के जाने के बाद वह पैदल ही एक ओर बढ़ गया.

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रिश्तों की आग में जली संजलि – भाग 1

18 दिसंबर, 2018 को मंगलवार था. स्कूल की छुट्टी के बाद संजलि अपनी सहेलियों के साथ साइकिल से घर जाने के लिए निकली. सहेलियों से बातचीत करती हुई वह चौराहे पर पहुंची. वहां से वह अपने गांव की सड़क की तरफ मुड़ गई. उस की सहेलियां दूसरी सड़क पर चली गईं.

संजलि ने सहेलियों से अगले दिन मिलने का वादा किया था, लेकिन उस के साथ रास्ते में एक ऐसी घटना घट गई, जो दिल को दहलाने वाली थी. रास्ते में 2 बाइक सवार युवकों ने पैट्रोल डाल कर उसे जिंदा जला दिया.

यह घटना उत्तर प्रदेश के विश्वप्रसिद्ध आगरा शहर में घटी. यहां के थाना मलपुरा का एक गांव है लालऊ. हरेंद्र सिंह अपने परिवार के साथ लालऊ गांव में ही रहते थे. संजलि उन्हीं की मंझली बेटी थी. हरेंद्र सिंह सिकंदरा स्थित एक जूता फैक्टरी में जूता कारीगर थे. उन की 15 वर्षीय बेटी संजलि घर से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर नौमील गांव स्थित अशरफी देवी छिद्दा सिंह इंटर कालेज में 10वीं कक्षा में पढ़ती थी.

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हर रोज की तरह उस दिन भी स्कूल की छुट्टी दोपहर डेढ़ बजे हुई. छुट्टी के बाद संजलि को चले अभी 10-15 मिनट ही हुए थे. जब वह घर से 500 मीटर पहले जगनेर रोड पर लालऊ नाले के पास पहुंची, तभी 2 बाइक सवार युवक पीछे से संजलि की साइकिल के बराबर में आए.

यह देख कर वह डर गई और साइकिल की गति तेज कर दी. क्योंकि कुछ दिन पहले भी 2 युवकों ने उस के साथ छेड़छाड़ की थी. वह बात उस ने अपने घर वालों को नहीं बताई थी. साइकिल की गति तेज होते ही युवकों की बाइक की गति तेज हो गई. पीछा करने वाले कौन हैं और क्या चाहते हैं, यह सोच कर संजलि परेशान थी. इस से पहले कि वह कुछ समझ पाती, बाइक पर पीछे बैठे युवक ने हाथ में पकड़ी प्लास्टिक की बोतल से संजलि के ऊपर पैट्रोल डाला और फुरती से लाइटर से आग लगा दी.

इतना ही नहीं, हमलावरों ने जलती हुई संजलि को सड़क किनारे खाई में धक्का दे दिया, इस से वह खाई में जा गिरी. दोनों युवक वारदात को अंजाम दे कर वहां से फरार हो गए.

संजलि आग की लपटों से घिर गई थी, उस के खाई में गिरने से वहां की झाडि़यों ने भी आग पकड़ ली. आग में घिरी संजलि हिम्मत कर के जैसे तैसे सड़क पर पहुंची, उस की मर्मांतक चीख सुन कर कई राहगीर रुक गए. जलती हुई लड़की को देख कर उन के होश उड़ गए.

संजलि ने जमीन पर लेट कर आग बुझाने की कोशिश की. तब तक आग से उस की पीठ पर लटका स्कूली बैग पूरी तरह जल चुका था. उसी समय वहां से एक बस गुजर रही थी. दिल दहलाने वाला मंजर देख कर बस चालक मुकेश ने बस वहीं रोक ली और बस में रखा अग्निशमन यंत्र ले कर दौड़ा लेकिन दुर्भाग्य से वह चल नहीं पाया. इस पर वह बस में रखा दूसरा यंत्र ले कर आया और आग बुझाई. इस बीच बस की सवारियां व अन्य राहगीर भी वहां एकत्र हो गए, आग बुझाने के प्रयास में बस चालक मुकेश के हाथ भी झुलस गए थे.

वहां से अजय नाम का एक युवक भी गुजर रहा था. उस ने जलन से तड़पती संजलि को पहचान लिया और फोन से संजलि के घर खबर कर दी. घटना की जानकारी मिलते ही उस के मातापिता के होश उड़ गए. वे गांव के लोगों के साथ बदहवास से घटनास्थल पर पहुंचे. आग से झुलसी संजलि ने पूरे घटनाक्रम की जानकारी अपने घर वालों को दे दी.

इसी बीच किसी ने 100 नंबर पर फोन कर के इस घटना की सूचना पुलिस को दे दी थी. सूचना मिलते ही पुलिस कंट्रोल रूम की टीम वहां पहुंच गई. पुलिस ने संजलि को आगरा के एस.एन. मैडिकल कालेज के आईसीयू में भरती कराया. डाक्टरों ने बताया कि वह 75 फीसदी जल चुकी है.

उस समय प्रदेश के डीजीपी ओ.पी. सिंह आगरा में ताजमहल के पास स्थित अमर विलास होटल में आगरा रेंज के अधिकारियों के साथ मीटिंग में थे. वहां मौजूद अधिकारियों को सरेराह एक छात्रा को जिंदा जलाने की घटना की सूचना मिली तो पुलिस अधिकारियों के होश उड़ गए.

एडीजी अजय आनंद, डीआईजी लव कुमार और एसएसपी अमित पाठक अस्पताल पहुंच गए. उधर घटनास्थल पर भी थाना पुलिस पहुंच गई थी. पुलिस टीम ने घटनास्थल से प्लास्टिक की एक खाली बोतल व लाइटर जब्त किया.

पुलिस अधिकारियों ने संजलि से बात कर पूरे घटनाक्रम की जानकारी ली. झुलसी अवस्था में वह रुकरुक कर बात कर पा रही थी. उस ने बताया कि 15 दिन पहले 2 युवकों ने उस का पीछा किया था. वह उन्हें नहीं जानती.

पुलिस को संजलि के घर वालों से पता जला कि 23 नवंबर को संजलि के पिता हरेंद्र पर मलपुरा नहर के पास 2 अज्ञात लोगों ने हमला किया था, जिस में हरेंद्र को मामूली चोटें आई थीं. लेकिन उन्होंने इस की थाने में रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई थी. मारपीट करने वाले कौन थे, हरेंद्र पहचान नहीं पाए थे.

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कुछ नहीं समझ पा रही थी पुलिस

पुलिस की एक टीम मौके पर जांचपड़ताल करने लगी, जबकि दूसरी टीम हमलावर बाइक सवारों की तलाश में निकल गई. पुलिस पिता पर हमले की कडि़यों को बेटी के साथ हुई घटना से जोड़ कर देखने का प्रयास कर रही थी. साथ ही यह भी पता लगाने का प्रयास कर रही थी कि कुछ दिन पूर्व संजलि के साथ छेड़छाड़ करने वाले 2 युवक कौन थे.

15 साल की किशोरी की किसी से क्या दुश्मनी हो सकती है, जिस की वजह से उसे जिंदा जलाने की कोशिश की गई. पुलिस ने संजलि की सहेलियों व स्कूल स्टाफ से इस संबंध में पूछताछ की. पुलिस अनुमान लगा रही थी कि आरोपी संजलि के परिचित हो सकते हैं. ऐसा इसलिए माना जा रहा था कि दोनों ने हैलमेट लगाया था, ऐसा उन्होंने पहचान छिपाने के लिए किया होगा.

जिस स्थान पर वारदात हुई, वह घर से करीब आधा किलोमीटर पहले और स्कूल से एक किलोमीटर दूरी पर था. माना यह भी जा रहा था कि हमलावर स्कूल से ही अंजलि के पीछे लगे होंगे. संजलि और उस के परिवार वालों से पूछताछ के बाद भी पुलिस को ऐसा कोई क्लू नहीं मिला, जिस से घटना का खुलासा हो सके.

गांव के लोग भी कुछ नहीं बता रहे थे, न पुलिस को ऐसा कोई व्यक्ति मिल रहा था जिस ने हमलावरों को भागते हुए देखा हो. पुलिस ने अज्ञात हमलावरों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

गंभीर रूप से जली किशोरी की गंभीर हालत को देखते हुए उसी दिन शाम 6 बजे उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल रेफर कर दिया गया. सफदरजंग अस्पताल के डाक्टर संजलि के इलाज में जुट गए. उन का कहना था कि 48 घंटे गुजर जाने के बाद ही उस की हालत के बारे में कुछ कहा जा सकता है.

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आखिर 36 घंटे बाद 19 नवंबर की रात डेढ़ बजे संजलि जिंदगी की जंग हार गई. उसी दिन पोस्टमार्टम के बाद उस का शव शाम साढ़े 5 बजे उस के गांव लालऊ पहुंचा. संजलि जब दिल्ली के अस्पताल में जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रही थी, उस समय कई सामाजिक संगठनों व ग्रामीणों ने हमलावरों की गिरफ्तारी व पीडि़ता को आर्थिक सहायता दिए जाने की मांग को ले कर जुलूस भी निकाले थे. इसलिए संजलि के शव के साथ ही बड़ी संख्या में पुलिस फोर्स उस के गांव पहुंच गई थी.

विक्रांत वर्मा डेथ केस : अपनी मौत की खूनी स्क्रिप्ट

रमेश वर्मा जब सुबह अपने खेत पर स्थित बकरी फार्म पर गए तो देखा कि अलाव के पास कोयला जैसी जली एक लाश  पड़ी हुई है. उन के बेटे विक्रांत वर्मा (Vikrant Verma) की बाइक भी वहीं खड़ी थी. उस का जला हुआ मोबाइल फोन भी वहीं लाश के पास ही पड़ा था. इस आशंका से कि लाश उन के बेटे विक्रांत की तो नहीं है, उन के होश उड़ गए. रमेश वर्मा ने तुरंत घर फोन किया.

परिवार के अन्य लोग भी वहां आ गए. बड़े बेटे को भी सूचना दी गई. बाइक, मोबाइल और कपड़ों के जले हुए अंश से लाश की पहचान घर वालों ने 25 वर्षीय विक्रांत वर्मा के रूप में कर ली. देखते ही देखते खबर पूरे गांव में फैल गई. पुलिस को सूचना दी गई. सुलतानपुर के कोतवाली देहात की पुलिस मौके पर पहुंची और हालात का जायजा लिया.

उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर के गांव दुबेपुर में 25 वर्षीय विक्रांत वर्मा पत्नी और 2 जुड़वां बेटियों के साथ रहता था. वैसे उस के पास खेती की जो जमीन थी, उस से गुजारे भर पैदावार हो जाती थी, लेकिन विक्रांत और उस की पत्नी को उस से तसल्ली नहीं थी. वह ऐसी आमदनी चाहते थे, जिस से उन के पास भी भरपूर पैसा और आधुनिक सुखसुविधाओं के सारे साधन हों. दोनों इस पर विचारविमर्श भी करते रहते थे.

विक्रांत ने आमदनी बढ़ाने का जतन शुरू किया. उस ने बैंक से लोन ले कर पहले मुरगी पालन का काम किया. काफी मेहनत और लगन के बाद भी विक्रांत को मुरगी पालन में सफलता नहीं मिली. मुरगियों में बीमारियां लग गईं.

काफी इलाज के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका. उधर पोल्ट्री फार्म में काम करने वाले मजदूरों ने भी सही तरीके से उन की देखभाल नहीं की, जिस से काफी संख्या में मुरगियां मर गईं. उस का यह कारोबार फेल हो गया. जिस से विक्रांत को इस में काफी बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ.

विक्रांत ने सोचा कि मुरगी पालन बहुत जोखिम का कारोबार है. वह किसी भी तरीके से मुरगी पालन करने में सफल नहीं हो सकता है. इसलिए उस ने फिर बकरी पालन का काम किया, लेकिन वह उस में भी सफल नहीं हुआ. दोनों ही धंधों में असफलता उस के हाथ लगी. जिस से उस की पूंजी डूब गई और वह लाखों रुपए का कर्जदार हो गया था.

इस के बाद विक्रांत हर समय मोबाइल में लगा रहता था. मोबाइल पर लगे रहना पत्नी को अच्छा नहीं लगता था. उस की इस आदत से पत्नी बहुत दुखी थी. उस के मन में यही खयाल आते रहते थे कि कहीं उस के पति का किसी और से चक्कर तो नहीं है. घर की आर्थिक हालत सही नहीं थी. ऊपर से पति का कमाने की तरफ ध्यान नहीं था, इसलिए पत्नी ने विक्रांत को तिकतिकाना शुरू किया.

एक दिन विक्रांत ने पत्नी से कहा कि वह दिल्ली काम की तलाश में जा रहा है. किसी दोस्त ने बताया है कि किसी फैक्ट्री में उसकी नौकरी लग जाएगी.

अचानक दिल्ली जाने की बात सुन कर पत्नी को शक व आश्चर्य तो हुआ, फिर भी उस ने सहज ही हंसीखुशी उसे दिल्ली जाने के लिए घर से विदा किया.

सभी कामों से निराश हो जाने पर विक्रांत दिल्ली में नौकरी करने गया. दिल्ली में कुछ महीने नौकरी करने के बाद  वह घर आया. यह बात 15 जनवरी, 2024 की है. उस समय रात के लगभग 10 बजे थे. कुछ समय रात में अपनी पत्नी और बच्चों के साथ समय बिताने  के बाद सभी लोग सो गए.

विक्रांत को किस ने जलाया

16 जनवरी, 2024 की सुबह अपनी दैनिक क्रियाएं करने के बाद विक्रांत नाश्ते के लिए बैठ गया. पत्नी परांठे और चाय ले कर आ गई. इस बीच एक बच्ची रोने लगी पत्नी उसे बिस्तर से गोदी में उठा लाई. संभालने चुप कराने के लिए गोदी में ले कर वह पति के पास ही बैठ गई.

इस समय विक्रांत बहुत उदास था और गुमसुम सा बैठा नाश्ता कर रहा था. पत्नी को जब उस के चेहरे से परेशानी झलकती दिखाई दी तो उस ने सवाल कर ही दिया. क्या बात है? कैसे परेशान दिख रहे हो? दिल्ली में सही काम नहीं मिला तो कोई बात नहीं. आप यहीं खेती में ही फिर नए सिरे से मेहनत करो. धीरेधीरे सारी परेशानियां दूर हो जाएंगी.

विक्रांत ने भी चुप्पी तोड़ी और कहा कि मुझ पर अब तक 9 लाख का कर्ज हो चुका है. उस का तगादा हो रहा है. मुझे इसी बात की चिंता हो रही है कि यह कर्ज कैसे उतरेगा. काफी देर दोनों में विचार विमर्श हुआ फिर विक्रांत गांव में घूमने निकल गया. दोपहर में घर आया. खाना खाया और फिर मोबाइल में रम गया.

शाम लगभग 6 बजे बाइक ले कर वह अपने बकरी फार्म पर गया. पत्नी से कह कर गया कि देखते हैं, खेती में कैसे और क्या हो सकता है.

रात 10 बजे तक विक्रांत जब वापस नहीं आया, तब उस की पत्नी ने फोन किया. फोन की घंटी बजती रही, लेकिन फोन उठा नहीं. इस से पत्नी की चिंता बढ़ गई. उस ने  अपने ससुर रमेश वर्मा से यह बात बताई. उन्होंने भी फोन मिलाया, लेकिन फोन नहीं उठा.

रमेश वर्मा ने कई जगह रिश्तेदारियों में फोन कर के पूछा, पर विक्रांत का कोई पता नहीं मिला. उस की पत्नी ने भी अपने रिश्तेदारों में बात की लेकिन पता नहीं चला कि विक्रांत कहां है.

दोनों के दिमाग में यह था कि अगर फार्महाउस पर होता तो अब तक घर आ जाता. इतनी सर्दी में देर रात तक बकरी फार्म पर रुकने का कोई मतलब ही नहीं है. हो सकता है कि कहीं दोस्तों के साथ चला गया हो. बात आईगई हो गई. रात को लोग अपनेअपने कमरों में सो गए.

अगले दिन राजेश वर्मा बेटे के बकरी फार्म पर पहुंचे तो वहां अलाव में जली हुई एक लाश पड़ी थी. पास में बेटे विक्रांत की बाइक खड़ी थी. इस की सूचना उन्होंने घर वालों के अलावा कोतवाली (देहात) पुलिस को भी दे दी.

पुलिस को मामला आत्महत्या का प्रतीत हो रहा था. पास में जला हुआ एक मोबाइल फोन भी पड़ा था. घर वाले लाश की शिनाख्त विक्रांत वर्मा के रूप में पहले ही कर चुके थे. घटनास्थल पर ठंड से बचाव के लिए अलाव भी जलाया गया था, ढेर सारी राख इस बात की गवाही दे रही थी. उन दिनों शीत लहर चल रही थी, जिस से भीषण सर्दी थी. पुलिस ने मौके की जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

लाश का पोस्टमार्टम डाक्टरों के एक पैनल द्वारा किया गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया कि मृतक उस वक्त बहुत ज्यादा शराब के नशे में था और आग में जल जाने से उस की मौत हुई है. मृत्यु की बहुत ज्यादा स्थिति स्पष्ट न होने के कारण इस मामले में उस का विसरा जांच के लिए भी भेजा गया.

पुलिस क्यों नहीं कर रही थी हत्या की रिपोर्ट दर्ज

रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि हुई  कि उस ने अत्याधिक शराब का सेवन कर रखा था. ऐसे में कयास लगाया जा रहा था कि विक्रांत शराब के नशे में अलाव के पास पहुंचा और वहां आग की चपेट में आने से उस की मौत हो गई. विक्रांत के पिता इसे आत्महत्या या दुर्घटना मानने को तैयार नहीं थे. उन का मानना था कि उन का बेटा विक्रांत कितने भी डिप्रेशन में हो, लेकिन अत्यधिक शराब का सेवन नहीं कर सकता. वह आत्महत्या जैसा घातक कदम भी नहीं उठा सकता.

मौके की स्थिति भी हत्या किए जाने जैसी थी. एक जगह जलने के संकेत थे. उस ने इधरउधर भागने की कोई कोशिश नहीं की, जिस से स्पष्ट होता है कि विक्रांत को मार कर सबूत मिटाने के लिए जलाया गया है. उन्होंने अंतिम संस्कार की औपचारिकता पूरी करने के बाद दूसरे दिन थाने में हत्या की आशंका जताते हुए तहरीर दे दी.

पीडि़त पिता ने दी तहरीर में कहा कि उन्हें आशंका है कि अज्ञात व्यक्तियों ने उन के बेटे की हत्या कर के सबूत मिटाने के लिए शव जला दिया है. उन की तहरीर पर पुलिस ने हत्या की रिपोर्ट दर्ज नहीं की.

पुलिस की मानें तो घटना से एक दिन पहले मृतक ने अपने दोस्त रंजीत को काल की थी. फिर उस से मिल कर वह फूटफूट कर रोया कि अब मैं जिंदा नहीं रहूंगा. मुझे कोई अच्छी निगाह से नहीं देखता.

घर परिवार में भी कोई इज्जत नहीं है. समाज भी बुरा समझने लगा है. ऐसी जिंदगी से क्या फायदा. शुरुआती जांच के बाद पुलिस का स्पष्ट मत बन चुका था कि विक्रांत ने आत्महत्या की है. बताया जाता है कि पुलिस ने युवक के मोबाइल फोन समेत कई वस्तुओं को जांच के लिए कब्जे में लिया.

विक्रांत वर्मा की हत्या को 4 दिन बीत गए और अब तक केस दर्ज नहीं हुआ. घर वाले हत्या का आरोप लगाते हुए थाने के चक्कर लगाते रहे, लेकिन पुलिस आत्महत्या का केस दर्ज कराने के लिए परिजनों पर दबाव बनाती रही.

ऐसे में पिता ने अपने बड़े बेटे के साथ एसपी सोमेन वर्मा से मिल कर उन से हत्या का मुकदमा दर्ज कराए जाने की मांग की. थाना पुलिस के काररवाई न करने पर उन्होंने लंभुआ विधायक सीताराम वर्मा से भी हत्या का केस दर्ज कराने की गुहार लगाई.  विधायक विनोद सिंह से भी उन्होंने संपर्क किया. वह इस समय सदर सीट से विधायक हैं.

इन दोनों विधायकों की सिफारिश और बापबेटे की भागदौड़ आखिर रंग लाई और 22 जनवरी, 2024 को कोतवाली (देहात) थाने में अज्ञात के खिलाफ विक्रांत की हत्या का केस दर्ज हुआ. देहात कोतवाल श्याम सुंदर ने बताया कि विक्रांत के पिता ने बेटे की हत्या की केवल शंका जताई थी, जिस के चलते मामला दर्ज कर उन्होंने जांच शुरू की.

एसपी सोमन वर्मा ने विक्रांत वर्मा हत्याकांड के खुलासे के लिए 2 पुलिस टीमें गठित कीं. पहली टीम का नेतृत्व कोतवाल श्याम सुंदर को सौंपा गया. टीम में एसआई अखिलेश सिंह, विनय कुमार सिंह, हैडकांस्टेबल विजय कुमार, विजय यादव व आलोक यादव को शामिल किया गया.

दूसरी टीम एसओजी की गठित की. इस स्वाट टीम के प्रभारी उपेंद्र सिंह थे. इस में समरजीत सरोज, विकास सिंह, तेजभान सिंह और अबू हमजा को शामिल किया गया था. एसपी ने इस केस के खुलासे के लिए 25 हजार रुपए का इनाम भी घोषित कर दिया था. दोनों टीमों की निगरानी लंभुआ क्षेत्र के सीओ अब्दुल सलाम कर रहे थे.

मुखबिर की सूचना पर क्यों चौंकी पुलिस

जांच के दौरान ही एक दिन श्याम सुंदर को मुखबिर ने सूचना दी कि विक्रांत मोबाइल फोन से गांव में कभीकभार किसी से बात करता है. यह सुन कर कोतवाल का दिमाग चकराया कि विक्रांत तो मर गया तो फिर वह फोन पर कैसे बात कर सकता है.

उन्होंने अपने उच्चाधिकारियों को यह बात बताई. अधिकारी भी सकते में आ गए. उन्होंने कहा कि विक्रांत जब किसी से बात करता है तो वह जली हुई लाश क्या किसी और की थी? इस का मतलब यह है कि विक्रांत अभी जिंदा है.

अधिकारियों ने हरी झंडी देते हुए कहा कि मुखबिर की सूचना पर जांच आगे बढ़ाई जाए. विक्रांत जिस मोबाइल नंबर से बात करता था, वह मोबाइल नंबर पुलिस के हत्थे चढ़ गया. पता चला कि इस नंबर पर रात में किसी से कभीकभार बात होती है. दिन के बाकी समय में यह नंबर बंद रहता है.

कोतवाल श्याम सुंदर को पता चला कि यह मोबाइल नंबर एक महिला का है. मोबाइल नंबर की लोकेशन हरियाणा प्रदेश के पानीपत शहर की मिल रही थी.

इस हत्याकांड को खोलने के लिए कोतवाली पुलिस पर 2-2 विधायकों और उच्चाधिकारियों का प्रेशर बना हुआ था. पानीपत की लोकेशन मिलते ही पुलिस की टीमों को वहां भेजा गया. पुलिस मुखबिर को साथ में ले कर उस क्षेत्र की निगरानी कर रही थी. जहां पर टेलीफोन नंबर की लोकेशन मिल रही थी.

पुलिस ने सर्विलांस टीम की मदद ली. लोकेशन ट्रेस हुई. इस के बाद पुलिस ने हरियाणा के पानीपत स्थित गली नंबर- 28 (वार्ड नं. 16) विकास नगर में दबिश दी. यह इलाका थाना सेक्टर- 29 इंडस्ट्रियल एरिया का है.

कई दिनों की कड़ी मेहनत के बाद आखिर विक्रांत वर्मा हत्थे चढ़ गया. उसे जीवित देख कर पुलिस चौंक गई. पता चला कि उस ने यहां अपना नाम विक्की कुमार रख लिया था. अपनी पहचान बदलने की उस ने पूरी कोशिश की, लेकिन मुखबिर की शिनाख्त के कारण विक्रांत वर्मा को पुलिस ने दबोच लिया.

थोड़ी सी सख्ती करने पर विक्रांत वर्मा टूट गया. उस ने अपना को विक्रांत वर्मा होना स्वीकार किया तथा गुनाह कुबूल कर लिया. वहां से पुलिस ने विक्रांत, उस के साथी शक्तिमान कुमार व अनुज साहू निवासी कासगंज के तुमरिया को गिरफ्तार कर लिया.

विक्रांत ने पुलिस को जो कुछ बताया, घटना के 25वें दिन केस का खुलासा करते हुए उस की जानकारी लंभुआ के सीओ अब्दुल सलाम ने पत्रकारों को एक प्रैस कौन्फ्रैंस में दी. कोतवाल श्याम सुंदर भी उस समय वहां मौजूद थे.

विक्रांत ने क्यों उड़ाई थी अपनी आत्महत्या की खबर

जांच में पता चला कि रोजगार के लिए दिल्ली आने पर विक्रांत की मुलाकात शक्तिमान कुमार और अनुज साहू से हुई थी. उस समय विक्रांत डिप्रेशन में था. उस की परेशानी चेहरे से साफ झलक रही थी. उन दोनों ने उस के चेहरे को पढ़ लिया. पूछने लगे  किस बात से परेशान है.

विक्रांत ने बताया कि उस की जुड़वां बच्चियां हैं, जो लगभग डेढ़ साल की हो चुकी हैं. पत्नी बच्चों के पालन पोषण में लगी रहती है, जिस से उस का उस की तरफ कोई ध्यान नहीं है. जबकि एक और लड़की जो उस का पहला प्यार है, वह अब भी मेरा इंतजार कर रही है. मैं आज भी पहले प्यार को भुला नहीं पा रहा हूं.

पत्नी की बेवफाई ने प्रेमिका से प्यार और भी बढ़ा दिया है. उस की बेबसी और लाचारी मुझ से देखी नहीं जा रही. शरीर के बीच जो दूरियां बनी हुई हैं, उस से मैं बहुत दुखी हूं. वह भी दो जिस्म मगर एक जान होने के लिए तत्पर है. मुझ पर दबाव भी बना रही है. प्रेमिका ने बताया है कि अब घर वाले उस की शादी की तैयारी कर रहे हैं. उस की यह बात सुन कर मैं बहुत परेशान हूं. मैं उसे किसी हालत में खोना नहीं चाहता.

विक्रांत ने अपने साथियों को यह भी बताया कि उस का मुरगी पालन और बकरी पालन का व्यवसाय फेल हो गया. उस से कर्जदार हो गया है. करीब 9 लाख रुपए का बैंक का कर्ज है. अब उसे वह ऐसी तरकीब बताएं कि मर कर भी जिंदा रहे और सारी प्रौब्लम दूर हो जाए.

शक्तिमान कुमार और अनुज साहू ने काफी सोचविचार के बाद क्राइम मिस्ट्री तैयार की. उन्होंने बताया कि हम किसी और व्यक्ति की हत्या कर के उस की लाश को जला देंगे और वहां पर तेरा सामान बाइक, मोबाइल आदि छोड़ देंगे, जिस से पता चले कि विक्रांत ने आत्महत्या कर ली है. इस तरह तुम्हारा पत्नी से भी पीछा छूट जाएगा और प्रेमिका भी हासिल हो जाएगी और कर्ज के 9 लाख रुपए भी देने नहीं पड़ेंगे.

किस को बनाया बलि का बकरा

अपनी कार्य योजना को अंजाम देने के लिए 15 जनवरी, 2024 को विक्रांत दोनों दोस्तों के साथ अपने गांव आ गया. उस ने अपने दोनों साथियों को फार्महाउस पर ठहरने की व्यवस्था की.

16 जनवरी की दोपहर अनुज शक्तिमान के साथ अमहट क्षेत्र में स्थित सरकारी देसी शराब के ठेके पर पहुंचा. काफी देर की निगरानी के बाद वहां नशे में झूलता हुआ एक व्यक्ति मिला, जिसे उन दोनों में से कोई नहीं जानता था. वो कदकाठी में बिलकुल विक्रांत ही जैसा था.

उसे वे यह बोल कर बाइक पर बैठाकर लाए कि चलो तुम्हें घर पहुंचा दें. वह दोनों उसे अपने बकरी फार्म पर ले आए. विक्रांत ने शराब की दुकान से एक बोतल खरीदी और फिर वह भी बकरी फार्म आ गया.

वहां उन तीनों ने उस व्यक्ति को और शराब पिलाई. वह इतना बेहोश हो गया कि अपने आप हिलडुल भी नहीं सकता था. वह शराबी सफेद कुरतापाजामा ब्राउन कलर की जैकेट पहने हुआ था. मफलर भी  पहने हुए था.

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आरोपी अनुज साहू, शक्तिमान कुमार और विक्रांत वर्मा पुलिस हिरासत में

विक्रांत ने जो कपड़े पहन रखे थे, जिन्हें पहन कर वह दिन भर गांव में भी घूमा था, वह कपड़े उतार कर उस व्यक्ति को पहना दिए. उस से पहले उस व्यक्ति के सारे कपड़े उतार दिए थे. काम पूरा करने के बाद बकरी फार्म से भागने के लिए उन्होंने सारा सामान बैग में पहले तैयार कर लिया था. उस में से पैंट शर्ट निकाल कर विक्रांत ने पहन लिए.

कुछ लकडिय़ां और उपले उन लोगों ने पहले ही एकत्र कर लिए थे. जिस से कि यह पता चले कि ठंड से बचने के लिए यहां अलाव जलाया गया था. फिर उस व्यक्ति पर पेट्रोल डाल कर आग लगा दी. उस के कपड़े भी जला दिए.

उस समय रात के लगभग 9 बज चुके थे. चारों तरफ सन्नाटा था. सभी लोग ठंड में अपने घरों में थे. जब उन तीनों लोगों को विश्वास हो गया कि वह व्यक्ति मर चुका है और उस की लाश को पहचाना नहीं जा सकता, फिर वे सब वहां से फरार हो गए.

वहां से पहले लखनऊ फिर कासगंज और उस के बाद में पानीपत चले गए. पानीपत में ही विक्रांत की प्रेमिका भी रहती थी.

जिस को जलाया गया आखिर वो व्यक्ति था कौन?

यह सुन कर पुलिस के भी होश उड़ गए. पुलिस ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट को ध्यान से नहीं देखा था. क्योंकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतक की आयु लगभग 60 वर्ष जरूर बताई गई होगी. जबकि विक्रांत की उम्र मात्र 25 साल थी. पुलिस की जांच में सामने आया कि जिस व्यक्ति को शराब के नशे में धुत कर के जिंदा जलाया था, वह सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, दुबेपुर में चालक द्वारिकानाथ शुक्ला पुत्र चंद बहादुर शुक्ला था. द्वारिकानाथ शुक्ला की बंधु आकला थाने में गुमशुदगी दर्ज थी. वह इसी क्षेत्र में रहता था.

लगभग 60 वर्षीय द्वारिकानाथ शुक्ला उत्तर प्रदेश के अयोध्या जनपद के गांव रौतवां का मूल निवासी था. यह भी पता चला कि शक्तिमान इस समय पानीपत में ही रहता है. विक्रांत वर्मा ने भी यहीं पर नौकरी कर ली थी. पुलिस ने द्वारिकानाथ शुक्ला की गुमशुदगी  को हत्या में तरमीम किया.

कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद पुलिस ने शक्तिमान कुमार, अनुज साहू और विक्रांत वर्मा को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित है

फेसबुक का प्यार कौन है हकदार – भाग 1

पुलिस वैन थोड़ी ही देर में भागीरथी विहार की उस जगह पर पहुंच गई, जहां एक युवक खून से लथपथ पड़ा हुआ था. लगभग 20 साल के उस युवक ने सफेद रंग की जैकेट पहन रखी थी, जो खून से रंग गई थी. वह बुरी तरह घायल था. उस के जिस्म को पूरी तरह चाकू से गोद दिया गया था, जहां से ताजा खून उस समय भी बह रहा था. स्पष्ट था कि उस घटना को हुए ज्यादा वक्त नहीं हुआ था.

एसआई सीताराम ने युवक का बारीकी से निरीक्षण किया. उस में अभी सांस बाकी थी. उस की गरदन में चाकू धंसा हुआ था, गले में खून सना सफेद मफलर था और 2 काले रंग के मफलर उस के पैरों की तरफ पड़े थे. अनुमान लगाया गया कि यह मफलर शायद उन लोगों के हैं, जिन्होंने इस पर प्राणघातक हमला किया है.

एसआई सीताराम अभी उस युवक का मुआयना कर ही रहे थे कि उस युवक की जेब से मोबाइल की घंटी की आवाज सुनाई देने लगी. एसआई सीताराम ने उस युवक की पैंट की जेब में हाथ डाला, उस में मोबाइल था, जिस की रिंगटोन बज रही थी और स्क्रीन पर 9667531333 नंबर दिख रहा था. एसआई ने कुछ सोच कर काल रिसीव करने के लिए स्क्रीन पर टच कर दिया.

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दूसरी ओर से किसी का लताडऩे वाली आवाज सुनाई दी, ”मैं तुझे कितनी देर से फोन लगा रहा हूं, लेकिन तू फोन ही रिसीव नहीं कर रहा है. कहां पर है तू?’’

”देखिए, मैं एसआई सीताराम बोल रहा हूं… आप को बता दूँ. यह फोन उस लड़के की जेब से मैं ने निकाला है, जो बुरी तरह घायल यहां पड़ा हुआ है.’’

”क्या कह रहे हैं आप? मेरा भाई माहिर घायल पड़ा है… कैसे घायल हो गया वह? क्या उस का एक्सीडेंट हो गया है?’’ दूसरी ओर से फोन करने वाले का घबराया हुआ स्वर उभरा.

”दुर्घटना नहीं हुई है, आप के भाई पर किसी ने जानलेवा हमला किया है, आप तुरंत गोकलपुरी के भागीरथी विहार की गली नंबर 11 में पहुंच जाइए.’’ एसआई सीताराम ने गंभीर स्वर में कहा.

”मैं आ रहा हूं सर, आप मेरा इंतजार करिए.’’ दूसरी ओर से कहने के बाद संपर्क काट दिया गया.

एसआई सीताराम ने ओप्पो कंपनी का वह फोन जेब में रखा. उसी वक्त वहां थाना गोकलपुरी के एसएचओ प्रवीण कुमार पहुंच गए.

उन्होंने बुरी तरह घायल पड़े युवक को देखा. युवक पर किया गया हमला इतना घातक था कि उस के जिस्म का कोई हिस्सा ऐसा नहीं बचा होगा, जहां जख्म न हुआ हो.

लोगों ने हमलावरों को क्यों नहीं रोका

वहां अब तक काफी भीड़ जमा हो गई थी. हैडकांस्टेबल विजेंद्र शुक्ला और एएसआई विपिन त्यागी भीड़ को पीछे हटाने में लगे हुए थे. एसएचओ ने भीड़ के पास आ कर पूछा, ”इस पर किन लोगों ने हमला किया, तुम ने देखा है?’’

”साहब, वे 3 युवक थे, वे इसे घेर कर चाकू और ईंट से मार रहे थे. हम लोगों ने बीचबचाव करना भी चाहा, लेकिन उन में से एक युवक गुर्रा कर चीखा था, ‘कोई भी आगे आएगा, उसे हम जिंदा नहीं छोडेंग़े.’ साहब, इसे बुरी तरह घायल कर के चाकू को लहराते हुए इस ओर भाग गए.’’ एक अधेड़ से व्यक्ति ने हाथ से गली के सामने की ओर इशारा कर के बताया.

”क्या वे युवक इसी कालोनी के थे?’’

”यह हम नहीं बता सकते, साहब. हम ने उन्हें पहले कभी नहीं देखा.’’ दूसरा व्यक्ति बोला.

एसएचओ कुछ और पूछते उसी वक्त एक युवक बाइक पर वहां आ गया. वह काफी बदहवास था.

बाइक खड़ी कर के वह घायल पड़े युवक के पास आया. उसे देखते ही वह रोने लगा. रोते हुए ही उस ने बताया, ”साहब, यह मेरा छोटा भाई माहिर है. इस की यह हालत किस ने की है?’’

”हमलावर 3 युवक थे, वे कौन थे, यह अभी मालूम नहीं हुआ.’’ एसएचओ गंभीर स्वर में बोले.

फिर उन्होंने रोते हुए युवक से पूछा, ”क्या तुम यहीं आसपास रहते हो?’’

”नहीं सर, हम गली नंबर 2 विजय विहार, लोनी (गाजियाबाद) में रहते हैं.’’

अब तक आखिरी सांसें गिन रहा माहिर दम तोड़ चुका था. वैसे भी यह अनुमान पहले ही लगा लिया गया था कि बुरी तरह चाकुओं से गोद दिए गए युवक का बचना असंभव है. हमलावरों ने जिस तरह उस पर चाकुओं से वार किए थे, वह यही सोच कर किए थे कि माहिर किसी भी तरह बचना नहीं चाहिए. ऐसा ही हुआ था. वहां की कागजी काररवाई पूरी कर के एसआई ने फोरैंसिक टीम को बुलवा कर साक्ष्य एकत्र करवाए.

माहिर की पहचान उस के बड़े भाई उस्मान ने कर दी थी. सारी खानापूर्ति करने के बाद एएसआई विपिन त्यागी, एसआई सीताराम और एसएचओ प्रवीण कुमार वापस थाने लौट गए. हैडकांस्टेबल विजेंद्र कुमार शुक्ला ने माहिर की लाश एंबुलेंस बुलवा कर जीटीबी हौस्पिटल पहुंचा दी, जहां माहिर का पोस्टमार्टम होना था. यह बात 28 दिसंबर, 2023 की है.

उत्तरपूर्वी दिल्ली के थाना गोकलपुरी को रात 9 बजे के आसपास पीसीआर से सूचना मिली कि भागीरथी विहार की गली नंबर-11 में एक युवक खून से लथपथ पड़ा हुआ है.

हैडकांस्टेबल विजेंद्र कुमार शुक्ला ने यह सूचना एसएचओ प्रवीण कुमार को दे दी थी. तब एसएचओ ने उसी वक्त घटनास्थल पर जाने के लिए एसआई सीताराम और एएसआई विपिन त्यागी को रवाना कर दिया. इन के साथ हैडकांस्टेबल विजेंद्र शुक्ला भी थे.

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कैसे गिरफ्तार हुए आरोपी

माहिर हत्याकांड की जानकारी एसएचओ प्रवीण कुमार ने नार्थ ईस्ट के डीसीपी जौय टिर्की और एसीपी अभिषेक गुप्ता को दे दी. डीसीपी जौय टिर्की ने एसीपी अभिषेक गुप्ता के निर्देशन में यह केस हल करने की जिम्मेदारी एसएचओ प्रवीण कुमार को सौंप दी.

एसएचओ ने माहिर की हत्या के आरोपियों की तलाश करने के लिए खास मुखबिर लगा दिए. दूसरे दिन एक मुखबिर ने उन्हें सूचना दी, ”सर, माहिर की हत्या के आरोपी लड़के अशोक नगर के पास खड़े हैं, तुरंत आएंगे तो उन्हें दबोचा जा सकता है.’’

एसएचओ प्रवीण कुमार तुरंत अपने साथ 3-4 पुलिस वालों को ले कर थाने से निकले. एसआई सीताराम, हैडकांस्टेबल विपिन और विजेंद्र शुक्ला, रोहित डिवेश भी साथ में थे. रास्ते से मुखबिर भी उन के साथ बैठ गया.

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        हैडकांस्टेबल विपिन

अशोक नगर की एक गली के पास खड़े 3 युवकों को देख कर मुखबिर ने एसएचओ प्रवीण को इशारा कर के कहा, ”यही वे 3 लड़के हैं साहब.’’

मुखबिर ने वैन रोकने को कहा. एसएचओ प्रवीण कुमार ने तुरंत ही पुलिस वैन रुकवा दी और पुलिस वालों के साथ उस ओर झपटे, जहां वे युवक खड़े थे. पुलिस को अपनी तरफ आता देख कर तीनों गली में दौड़ पड़े, जिन्हें पुलिस ने पीछा करके दबोच लिया.

उन युवकों को पुलिस वैन में बिठा कर थाना गोकलपुरी लाया गया. यहां तीनों को दीवार के सहारे खड़ा कर दिया गया. इन में 2 युवक 20-21 साल के थे और एक नाबालिग दिख रहा था. पुलिस की गिरफ्त में आते ही उन के चेहरे सफेद पड़ गए थे. वह डर से थरथर कांप रहे थे.

एसएचओ ने उन्हें घूरते हुए पूछा, ”अपने नामपता बताओ.’’

”साहब, मेरा नाम अरमान खान, मेरे पिता का नाम हाशिम खान है. मैं गली नंबर 10, मकान नंबर 270, भागीरथी विहार में रहता हूं.’’

दूसरा बोला, ”मेरा नाम मोहम्मद फैसल उर्फ फिड्डी है. मेरे वालिद का नाम शमशेर अली है. पता जी-205, गली नंबर-13, भागीरथी विहार है. साहब, मैं ने कुछ नहीं किया है.’’

”मैं ने अभी यह नहीं पूछा कि तुम ने क्या किया है या नहीं किया है.’’ एसएचओ उसे एक तरफ कर के तीसरे लड़के की तरफ पलटे, ”तेरा नाम?’’

”साहब, मेरा नाम उस्मान है और मैं जी-118, गली नंबर-13 भागीरथी विहार में रहता हूं.’’ नाबालिग बोला.

”तुम माहिर को पहचानते हो?’’

”कौन माहिर साहब? यह नाम मैं ने पहले नहीं सुना.’’ अरमान खुद को संभाल कर जल्दी से बोला.

”वही जिस का भागीरथी विहार की गली नंबर 11 में तुम तीनों ने बेरहमी से कत्ल किया है.’’

”न… नहीं साहब, हम ने किसी का कत्ल नहीं किया है.’’ इस बार फैसल बोला.

”तब हमें देख कर तुम तीनों भागे क्यों थे?’’

”हम डर गए थे साहब, पुलिस से हमें बहुत डर लगता है.’’ फैसल ने कहा, ”हम तीनों निर्दोष हैं साहब, हमें छोड़ दीजिए.’’

”छोड़ देंगे, पहले तुम लोगों की खातिरदारी तो कर लें.’’ एसएचओ मुसकराए फिर उन्होंने एएसआई विपिन त्यागी को इशारा किया, ”ये बगैर सेवा किए कुछ नहीं बताएंगे, इन्हें मुंह खोलने के लिए खुराक दो.’’

एसएचओ प्रवीण कुमार अपने कक्ष में आ कर बैठ गए. उधर रिमांड रूम में एएसआई विपिन त्यागी अरमान, फैसल और उस्मान पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाते हुए बता रहे थे कि अपराध करने वालों को यहां सच बोलना पड़ता है.

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सुख की चाह में संतोष बनी कातिल

बीवी का डबल इश्क पति ने उठाया रिस्क

सूइयों के सहारे सीने में उतरी मौत

राजेश विश्वास के घर पर कोहराम मचा हुआ था. सुबहसवेरे उस की पत्नी प्रिया जोरजोर से रो रही थी और राजेश को पुकार रही थी. रोने की आवाज सुन कर पड़ोसी भी वहां आ गए. लोगों ने घर में देखा तो राजेश मृत अवस्था में पड़ा हुआ था.

लोगों ने कयास लगाया कि राजेश की  मौत हो गई है. राजेश विश्वास का बड़ा भाई  रमेश विश्वास, उस की पत्नी और समाज के लोग भी आ जुटे और फटाफट उसे यह सोच कर स्थानीय सरकारी अस्पताल ले जाया गया कि शायद उस की सांस चल रही हो, लेकिन डाक्टरों ने परीक्षण के बाद राजेश विश्वास की मृत्यु की घोषणा कर दी.

चूंकि उस की मौत संदिग्ध परिस्थितियों में हुई लग रही थी, इसलिए अस्पताल प्रशासन ने इस की सूचना धर्मजयगढ़ पुलिस को दे दी. सूचना पाते ही सुबहसवेरे एसएचओ अमित तिवारी सहयोगियों के साथ मौके पर पहुंचे और राजेश विश्वास के शव की जांच कर उस का पंचनामा बनाया गया. कागजी काररवाई पूरी कर वह थाने लौट आए.

यह करीब एक साल पहले की बात है. छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के मोवा स्थित बालाजी हौस्पिटल में एक बिस्तर पर लीवर और किडनी का इलाज करवा रहे राजेश विश्वास ने रुंधे गले से बमुश्किल कहा, ”यह लाइलाज बीमारी मेरा पीछा पता नहीं कब छोड़ेगी. कितने रुपए लग गए, मगर मैं ठीक ही नहीं हो पा रहा हूं. और शायद कभी हो भी नहीं पाऊंगा…’’

यह सुनते ही उस की पत्नी प्रिया ने अपने हाथ की अंगुलियां पति राजेश के मुंह पर रख चुप कराते हुए ढांढस बंधाते कहा, ”ऐसा नहीं कहते, मर्ज जब आता है तो धीरेधीरे ठीक भी हो जाता है…’’

इस पर दुखी स्वर में राजेश ने कहा, ”मेरे गैरेज का कामधंधा बंद हो गया, इनकम का साधन भी नहीं रहा. मैं कमाऊंगा नहीं तो मेरा इलाज कैसे होगा. फिर तुम्हारे लिए भी तो कुछ जिम्मेदारियां हैं मेरी.’’

इस पर प्रिया ने कहा, ”आप के घर वाले देखो, किस तरह हाथ पैर बांधे बैठे हुए हैं. उन्हें कम से कम इस समय तो मदद के लिए आना चाहिए. कितने दिन बीत गए, मदद की बात तो दूर कोई देखने तक भी नहीं आया है.’’

ऐसी ही अनेक परेशानियों को झेलते हुए राजेश विश्वास (32 वर्ष) और प्रिया विश्वास (24 वर्ष) युगल दंपति छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के बालाजी हौस्पिटल में महीना भर रहे. इलाज के बाद जब राजेश विश्वास कुछ स्वस्थ हुआ तो दोनों वापस रायगढ़ के धर्मजयगढ़ में स्थित अपने घर आ गए.

राजेश विश्वास का प्रिया से कुछ महीनों पहले ही विवाह हुआ था. विवाह से पहले भी वह यदाकदा बीमार रहता था, मगर प्रिया को अपनी बुरी आदत और बीमारी के बारे में बिना बताए ही विवाह की डोर में बंध गया.

उन का दांपत्य जीवन धीरेधीरे आगे बढ़ रहा था और उस के साथ ही राजेश की बीमारी सामने आती चली गई. अब सब कुछ प्रिया के सामने था. मगर विवाह बंधन के बाद उस के पास और कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था. रायपुर में इलाज चलने लगा था.

राजेश और प्रिया का जीवन इस तरह धीरेधीरे जिंदगी की दुश्वारियों से गुजरता हुआ खट्टेमीठे रिश्तों के साथ आगे बढऩे लगा.

अस्पताल में प्रिया ने की खूब सेवा

प्रिया विश्वास पति की देखरेख करती थी और जिंदगी की गाड़ी धीरेधीरे चल रही थी. वैवाहिक जीवन की शुरुआत में ही उस के चेहरे की खुशियां मानो उड़ सी गई थीं. वह चाह कर भी हंस नहीं पाती थी. पति की बीमार सूरत हमेशा उस के आगे घूमती रहती थी. वह क्या करे, जिस से कि उस का जीवन खुशियों से भर जाए. सोचती रहती थी.

उसे धीरेधीरे लगने लगा कि उस की जिंदगी रेगिस्तान बन गई है, जहां उसे आने वाले समय में दूरदूर तक कहीं भी खुशियों की आहट दिखाई नहीं दे रही थी. वह कभीकभी अपने भाग्य को रोती आंसू बहा लेती थी.

धर्मजयगढ़ के पास ही दुर्गापुर में रहने वाली प्रिया उस दिन को कोसती थी, जब उस ने राजेश को पसंद किया था और उस के प्रपोज करने पर उस के साथ जिंदगी के रास्ते तय करने की स्वीकृति दे कर विवाह बंधन में बंध गई थी.

धीरेधीरे राजेश के स्वास्थ्य को ले कर सारा सच उस के सामने आईने की तरह उजागर हो चुका था. साथ ही कभीकभी वह दुव्र्यवहार पर उतर आता था. ज्यादा शराब पीने के बाद लीवर और फिर किडनी की दिक्कत के कारण राजेश का मिजाज नरम गरम बना रहता था.

यह देखते समझते प्रिया की आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा था. क्या वह जिंदगी भर दुखदर्द से जिएगी, यह सोच कर ही प्रिया बहुत परेशान हो गई. मगर अब देर हो चुकी थी, उस के पास रास्ता क्या बचा था?

नवंबरदिसंबर 2023 के एक दिन प्रिया पति राजेश विश्वास को बालाजी हौस्पिटल में इलाज के लिए फिर रायपुर ले आई. राजेश को अस्पताल में भरती कर लिया गया था. प्रिया सब कुछ संभाल रही थी. एक स्त्री होने के बावजूद जिस तरह राजेश का सहारा बन कर पत्नी के रूप में प्रिया ने अस्पताल में भूमिका निभाई, उस से राजेश विश्वास भी मन ही मन प्रिया का मुरीद  हो गया था.

दूसरी तरफ आत्मविश्वास के साथ हौस्पिटल के डाक्टर से बात करती और दवाइयों की व्यवस्था करती. पति के इलाज के लिए उस ने अपना सोने का एक कंगन भी बेच दिया था. यह सब राजेश देख रहा था और मन ही मन प्रिया के प्रति उस का प्रेम बढ़ता चला गया.

कभीकभी राजेश सोचता कि प्रिया जैसी पत्नी उसे मिल गई, यह उस का भाग्य ही तो है वरना कौन आज किसी का इस तरह साथ देता है.

मगर प्रिया के पत्नी भाव को देख कर राजेश की आंखें भर आती हैं. आखिरकार एक दिन राजेश से रहा नहीं गया तो उस ने कहा, ”तुम ने मुझे बताया भी नहीं और अपना सोने का कंगन बेच दिया, तुम ने भला ऐसा क्यों किया?’’

इस पर इठला कर प्रिया ने कहा, ”सोने का कंगन मैं ने अपने सुहाग के लिए बेचा है तो भला क्या गलत किया है. बताओ तो सही.’’

”नहींनहीं तुम्हें अपने गहने बेचने की जरूरत नहीं है, मै कहीं से भी रुपए की व्यवस्था कर लूंगा.’’ राजेश ने कहा.

”वह जब होगा, कर लेना, आज आप के इलाज के लिए हमे यहां रुपयों की जरूरत है. भला हमें यहां कौन पैसे देगा और फिर यह सोनाचांदी होता ही इसी दुख की घड़ी के लिए तो है.’’

”तुम ठीक कर रही हो,’’ राजेश की आंखें भींग आईं.

इसी दरमियान एक दिन राजेश और प्रिया की मुलाकात अस्पताल के कंपाउंडर फिरीज यादव उर्फ कृष से हुई. उस समय राजेश को कुछ दवाइयों की जरूरत थी और प्रिया के पास रुपए खत्म हो गए थे. प्रिया सोच रही थी कि क्या करूं. प्रिया को असमंजस में देख कर फिरीज ने पूछ लिया था, ”क्या हुआ, क्या बात है? आप दवाइयां क्यों नहीं ला रही हैं?’’

प्रिया के भावशून्य चेहरे को देख कर के शायद फिरीज समझ गया. बिना कुछ कहे उस ने प्रिया के हाथ से दवाइयां लिखा कागज ले कर उधार में दवाइयां ले कर इलाज शुरू करवा दिया. इस घटना के बाद राजेश, प्रिया विश्वास और फिरीज यादव में एक तरह से आत्मीय संबंध बनते चले गए.

धीरेधीरे प्रिया का आकर्षण फिरीज यादव के प्रति बढऩे लगा. बालाजी अस्पताल में कोई भी आवश्यकता होती, इशारा करते ही फिरीज यादव सामने खड़ा होता.

दोनों ही आपस में बातें करते. प्रिया उसे अपना सारा दुखदर्द बताती कि अब तो राजेश उस के साथ मारपीट भी करने लगा है. एक दिन तो गुस्से में उस पर मिट्टी का तेल उड़ेल दिया था और वह थाने तक चली गई थी. अब तो उस की जिंदगी मानो उजाड़ हो गई है.

प्रिया की दास्तां सुन कर फिरीज यादव सहानुभूति व्यक्त कर कोई न कोई रास्ता निकल आने की बात कह तसल्ली देता.

प्रिया को चिकनीचुपड़ी बातों में फंसा लिया कंपाउंडर ने

एक दिन बातोंबातों में फिरीज यादव ने कहा, ”तुम सचमुच ग्रेट हो, आज की दुनिया में तुम जैसा मैं ने नहीं देखा. पति के प्रति तुम्हारा समर्पण प्रेम पागलपन से भरा हुआ है. मगर एक बात कहूं, बुरा मत मानना.’’

”नहींनहीं बोलिए क्या बात है, क्या कहना चाहते हैं.’’ वह बोली.

”तुम्हारे पति राजेश ने तुम्हें धोखा दिया है, तुम से झूठ बोला और शादी कर ली.’’

”क्या झूठ बोला है मेरे सुहाग ने मुझ से.’’ अंजान सी बन प्रिया विश्वास बोली.

”वह खुद बिस्तर पर है गंभीर बीमारी से घिरा हुआ है और तुम से उस ने झूठ बोल कर विवाह कर लिया. उस ने तुम्हें बताया भी नहीं कि ऐसी बीमारियों के बाद उसे तुम से प्यार और ब्याह नहीं करना चाहिए था. यह तो सरासर धोखा है. मैं तो कहता हूं कि तुम जैसी मासूम की जिंदगी बरबाद करने का उसे क्या अधिकार था.’’

”नहींनहीं, इस में सिर्फ उन की ही गलती नहीं, यह सब ऊपर वाले का दोष है.’’ आंसू बहाते हुए प्रिया विश्वास ने कहा.

इस पर फिरीज यादव उर्फ कृष ने कहा, ”तुम जैसी भोलीभाली लड़कियां इस तरह भ्रमजाल में फंस कर अपनी जिंदगी बरबाद कर लेती हैं. मगर मैं यह मानता हूं कि तुम्हारे साथ बहुत बड़ा अन्याय हुआ है.’’

धर्मजयगढ़ वापस आ जाने के बाद राजेश और प्रिया विश्वास की जिंदगी की गाड़ी धीरेधीरे चल रही थी. राजेश कभी बीमार पड़ जाता तो स्थानीय स्तर पर ही उस का इलाज करा लेते थे. उस ने बीमारी के कारण अपने गैरेज के साथ एक स्कौर्पियो खरीद ली, जिसे वह किराए पर चला रहा था, जिस से परिवार का खर्च आराम से निकल रहा था.

एक दिन फिरीज यादव को प्रिया विश्वास ने मोबाइल पर काल की. उस ने मधुर स्वर में कहा, ”प्रिया, कैसी हो, मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है. तुम्हारी जिंदगी का दर्द, तुम्हारा चेहरा मैं भूल नहीं पाता हूं और सोचता हूं कि इस में भला तुम्हारी मैं क्या मदद कर सकता हूं.’’

फिरीज यादव की बातें सुन कर प्रिया विश्वास ने कहा, ”क्या तुम मेरी कोई मदद नहीं कर सकते. मेरी जिंदगी दोराहे पर खड़ी है, जहां सिर्फ पतझड़ ही पतझड़ नजर आती है. सच कहूं तो मुझे समझ में नहीं आता कि मैं किस पिंजरे में आ कर फंस गई हूं. मेरा क्या होगा, मैं अब जिंदगी से निराश हो चली हूं.’’

”बताओ, मैं क्या कर सकता हूं?’’ फिरीज यादव ने असहाय स्वर में कहा.

”देखो, मेरी एक सहेली है पायल, मैं उस से दिल की हर बात करती हूं. वह कह रही थी कि तुम एक डाक्टर हो, इतने बड़े अस्पताल में हो, कुछ तो रास्ता होगा?’’ प्रिया विश्वास ने आशा के भाव से कहा.

”अच्छा कौन है पायल, बात करवाना मुझ से. खैर, तुम इतना कह रही हो तो मैं कुछ योजना बनाता हूं. मेरे अनुसार अगर तुम दोनों चल सकीं तो कुछ दिनों में तुम्हारी जिंदगी बदल जाएगी.’’

”सच! भला वह कैसे?’’ उत्सुकता से प्रिया विश्वास ने कहा.

इस के बाद फिरीज यादव ने प्रिया की सहेली पायल से बात की और फिर यह सिलसिला चल निकला. एक दिन प्रिया को विश्वास में लेते हुए भविष्य के लिए कुछ करने को कहा तो प्रिया तुरंत तैयार हो गई और फिर आगे एक ऐसी योजना बनाई गई, जिसे भविष्य में 4 लोगों ने अंजाम दिया.

फिल्म अभिनेत्री पायल को किया साजिश में शामिल

15 जनवरी, 2024 दिन सोमवार की शाम फिरीज यादव रायपुर से चल कर के खरसिया स्टेशन पर उतरा और वहां से बस से धर्मजयगढ़ पहुंच गया. यहां उसे प्रिया विश्वास के कहने पर शेख मुईन ने बाइक से पहुंच कर रिसीव किया और होटल सीएम में पहले बुक किए गए रूम में ठहराया. दूसरी तरफ राजेश और प्रिया विश्वास अपने घर पर सामान्य सा दिन व्यतीत कर रहे थे. राजेश ने देर शाम तक शराब पी और खाना खा कर रात 11 बजे बिस्तर पर लेट गया.

फिरीज यादव को प्रिया की पड़ोस में रहने वाली सहेली पायल विश्वास के कहने पर बौयफ्रेंड शेख मुईन रात को फिरीज यादव को होटल से ले कर आ गया. उस समय राजेश गहरी नींद में सो रहा था. मौका देख कर फिरीज एक इंजेक्शन राजेश के सीने में लगा रहा था तभी आधी नींद में राजेश ने चीख कर एक लात पैरों के पास खड़ी प्रिया को मारी. फिरीज यादव घबरा गया, जिस से इंजेक्शन की सुई भी टेढ़ी हो गई. मगर राजेश विश्वास अभी भी नींद में था और उस पर इंजेक्शन का असर दिखाई देने लगा था.

इस के बाद सोए हुए राजेश विश्वास के पैर उस की पत्नी प्रिया विश्वास ने पकड़े, हाथों को शेख मुईन ने पकड़ लिया और राजेश के सीने में फिरीज यादव ने एनेस्थीसिया के कुल 3 इंजेक्शन एकएक कर के लगा दिए.

इस से निपट कर फिरीज यादव ने कहा, ”प्रिया, मेरे अनुमान से अब यह कभी होश में नहीं आएगा…’’

और वह रहस्यमय ढंग से मुसकराने लगा. इस पर प्रिया बोली, ”मुझे तो शक है, कहीं यह होश में आ गया तो?’’

कुछ सोचविचार करने के बाद फिर फिरीज ने कहा, ”ऐसा है तो मैं कुछ और इंजेक्शन लगा देता हूं.’’ और उस ने 3 इंजेक्शन और सीने में लगा दिए. थोड़ी ही देर में उन्होंने महसूस किया कि राजेश विश्वास की नींद में ही मौत हो गई है.

16 जनवरी, 2024 को सुबह के समय प्रिया के रोने की आवाज सुन कर आसपड़ोस के लोग जमा हो गए. सभी लोग अचानक राजेश की मौत पर अचंभे में पड़ गए. राजेश का भाई तुरंत राजेश को अस्पताल ले गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. अस्पताल प्रशासन की सूचना पर पुलिस भी अस्पताल पहुंच गई. पुलिस ने शव को कब्जे में ले कर आवश्यक काररवाई शुरू कर दी.

इस दरमियान डाक्टरों की टीम ने सनसनीखेज खुलासा किया कि मृतक राजेश विश्वास के सीने में 6 निशान सूई से इंजेक्ट हैं. यह सुनते ही एसएचओ अमित तिवारी के कान खड़े हो गए. उन्हें लगभग 10 साल पहले हुए एक हत्याकांड की याद आ गई.

छत्तीसगढ़ के बालोद शहर में ऐसे ही हृदय के पास इंजेक्शन दे कर 2 व्यक्तियों की हत्या की गई थी, जिस का आरोपी पकड़ते पकड़ते बच निकला था. अमित तिवारी ने दृढ़ निश्चय किया कि राजेश की हत्या के मामले में तत्काल जांचपड़ताल शुरू की जाएगी, ताकि आरोपी कानून की जद से बच न सके.

एसएचओ अमित तिवारी ने तत्काल अपने उच्चाधिकारियों से मार्गदर्शन लिया और जांच तेज कर दी. दूसरी तरफ राजेश विश्वास के घर और शहर का माहौल गमगीन बन गया था. राजेश विश्वास लोकप्रिय शख्स था, जिस के कारण लोग और परिचित तरहतरह की बातें करने लगे थे. पुलिस ने पोस्टमार्टम के बाद राजेश विश्वास का शव परिजनों को अंतिम संस्कार के लिए सौंप दिया.

17 जनवरी को आशीष विश्वास अध्यक्ष बंग समाज, धर्मजयगढ़ के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने थाने पहुंच कर के एसडीपीओ दीपक मिश्रा से मुलाकात की और मृतक राजेश विश्वास की संदिग्ध मृत्यु को ले कर एक ज्ञापन सौंपा और निष्पक्ष जांच कर के दोषियों को पकडऩे की गुहार लगाई.

राजेश विश्वास का मामला दीपक मिश्रा के निगाहों में था. उन्होंने एसपी (रायगढ़) सदानंद कुमार से मार्गदर्शन लिया और एसएचओ अमित तिवारी व साइबर सेल को जांच कर के आरोपियों को पकडऩे की जिम्मेदारी दे दी.

प्रिया ने उगल दिया सारा राज

राजेश विश्वास की पत्नी प्रिया से एसएचओ अमित तिवारी ने पूछताछ शुरू की और पहला सवाल किया, ”यह बताओ कि राजेश विश्वास की हत्या करने में और किस ने तुम्हारा साथ दिया है?’’

यह सुनते ही प्रिया विश्वास घबरा कर इधरउधर देखने लगी और कोई जवाब नहीं दिया.

इस पर अमित तिवारी ने उसे अलग से बुला कर कहा, ”देखो, अगर तुम से अनजाने में यह भूल हो गई है तो सच बता दो. आज तो मैं जा रहा हूं, मगर कल तुम्हें मैं हिरासत में ले लूंगा.’’

पुलिस ने प्रिया विश्वास के मोबाइल को अपने कब्जे में ले लिया और दूसरे दिन पाया कि बहुत सी जानकारियां मोबाइल से डिलीट कर दी गई हैं. साइबर क्राइम के सहयोग से जब मोबाइल की जानकारियां रिकवर की गईं तो कई ऐसी बातें सामने आ गईं, जिस से प्रिया विश्वास के फिरीज यादव से बातचीत और वाट्सऐप और सीसीटीवी के सबूतों से खुलासा होता चला गया कि प्रिया विश्वास का पति राजेश विश्वास की हत्या में हाथ है.

इस के बाद तथ्यों को सामने रखते हुए मनोवैज्ञानिक तरीके से प्रिया से पूछताछ की तो आखिरकार प्रिया विश्वास टूट गई और अपना अपराध स्वीकार कर के अपना इकबालिया बयान दिया, जिस की पुलिस ने वीडियो रिकौर्डिंग भी करा ली.

प्रिया से पूछताछ के बाद फिरीज यादव को रायपुर  पुलिस की मदद से मोवा में पकड़ लिया. उस से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि प्रिया विश्वास के प्यार में पागल हो कर उस ने राजेश विश्वास के सीने में बेहोशी के इंजेक्शन में काम आने वाली एनेस्थीसिया का प्रयोग किया था और राजेश को मौत की नींद सुला दिया. उसे विश्वास था कि पोस्टमार्टम होते होते एनेस्थीसिया का असर खत्म हो जाएगा और उसे कोई पकड़ नहीं सकता.

राजेश विश्वास की हत्या में इस तरह प्रिया विश्वास, उस की खास सहेली छत्तीसगढ़ी फिल्म अभिनेत्री और धर्मजयगढ़ निवासी पायल विश्वास और उस के बौयफ्रेंड शेख मुईन ने साथ दिया था. पुलिस ने इन्हें भी हिरासत में ले लिया और उन के बयान दर्ज कर लिए.

19 जनवरी, 2024 को पुलिस अधिकारियों ने प्रैस कौन्फ्रेंस कर के मामले का खुलासा कर दिया. एसडीपीओ (धर्मजयगढ़) दीपक मिश्रा ने मीडिया को बताया कि आरोपियों के कब्जे से हत्या की वारदात में प्रयुक्त मोटरसाइकिल, फिरीज यादव से बस टिकट, होटल के फुटेज, इस्तेमाल किए गए ग्लव्स और सिरिंज, घटना के समय फिरीज यादव द्वारा पहने गए कपड़े, सभी के मोबाइल फोन पुलिस द्वारा जब्त कर लिए.

पूछताछ में पता चला कि वारदात को अंजाम देने के लिए मृतक की पत्नी प्रिया विश्वास, प्रेमी फिरीज यादव, फिल्म अभिनेत्री पायल विश्वास और उस के प्रेमी शेख मुईन राजा ने मिल कर योजना बनाई. योजना के तहत फिरीज यादव के रुकने की व्यवस्था करने के लिए पायल विश्वास ने नकद और फोन पे के जरिए पैसे शेख मुईन को दिए थे. उस ने धर्मजयगढ़ के होटल सीएम पार्क में अपनी आईडी से रूम बुक किया.

चारों आरोपी गिरफ्तार कर भेजे जेल

फिरीज यादव उर्फ कृष रायपुर बस से 15 जनवरी की शाम धर्मजयगढ़ पहुंचा. इस केबाद शेख मुईन से वाट्सऐप काल के जरिए बात की. फिर चारों ने 15 की रात तक राजेश की हर गतिविधि पर नजर रखी और मौका देख कर जब प्रिया ने काल की तो फिरीज यादव होटल से राजेश के घर पंहुच गया.

एसएचओ अमित तिवारी के नेतृत्व में प्रिया विश्वास और पायल विश्वास को धर्मजयगढ़ के निवास से गिरफ्तार किया गया. शेख मुईन खान पहले से भाग कर छाल में छिपा बैठा था. पुलिस टीम ने छाल हाटी रोड पर घेराबंदी कर उसे गिरफ्तार कर लिया. वारदात के बाद फिरीज यादव रायपुर आ गया था. प्रिया विश्वास की गिरफ्तारी के बाद पहले से रायपुर में उपस्थित एसडीओपी दीपक मिश्रा ने रायपुर एएसपी और क्राइम डीएसपी की निगरानी में पंडरी मोवा थाना पुलिस

की मदद से उसे हिरासत में लिया.

पुलिस की जांच में यह बात सामने आई  कि फिरीज यादव ने अपने सोशल मीडिया में स्वयं को डाक्टर बताया है. पुलिस ने चारों आरोपियों फिरीज यादव उर्फ कृष उर्फ बबलू यादव (24 साल) निवासी गोपाल भौना, जिला सारंगढ़- बिलाईगढ़ हाल मुकाम दलदल सिवनी, जिला रायपुर, शेख मुईन राजा (20 साल) निवासी बेहरा पारा, धरमजयगढ़, जिला रायगढ़, प्रिया विश्वास (24 साल) निवासी धर्मजयगढ़ जिला रायगढ़ और पायल उर्फ मोनी विश्वास (28 साल) को भादंवि की धारा 302, 201, 120 के तहत गिरफ्तार कर लिया.

चारों आरोपियों को गिरफ्तार कर पुलिस ने 19 जनवरी, 2024 को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में पेश किया, जहां से चारों आरोपियों को पुलिस रिमांड में जिला जेल रायगढ़ भेज दिया.

कथा लिखे जाने तक पुलिस की जांच जारी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सुख की चाह में संतोष बनी कातिल – भाग 3

गड़े धन के लालच में क्यों फंसा अजय शुक्ला

परिवार व गांव वालों ने नीरज विश्वकर्मा को ले कर अजय शुक्ला के कान भरने शुरू किए तो उस ने उस के घर आने पर पूरी तरह से रोक लगा दी. इस के बाद संतोष कुमारी ने प्रेम प्रसंग में बाधा बन रहे पति को समझाने की काफी कोशिश की, लेकिन उस ने उस की एक भी बात नहीं मानी.

संतोष कुमारी जानती थी कि उस का पति गड़े धन के लालच में कुछ भी कर सकता है. क्योंकि इस से पहले भी वह गड़े धन की लालसा में कई बार तांत्रिकों से मिल चुका था.

उस के बाद भी वह गड़ा धन पाने के लिए कुछ न कुछ हरकतें करता ही रहता था. इस के लालच में वह कहीं भी जा सकता है, जिस के सहारे उसे मौत की नींद सुलाना भी बहुत ही आसान काम था. प्रेमी को पाने के लिए उस ने उस के पति को ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया.

इस के बाद वह एक दिन नीरज विश्वकर्मा की दुकान पर जा कर मिली और उसे अपनी योजना के बारे में बताया. नीरज विश्वकर्मा तो पूरी तरह से संतोष कुमारी का दीवाना हो चुका था. वह उसे पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार था. संतोष कुमारी की बात सुनते ही वह उस का साथ देने को तैयार हो गया.

फिर उसी योजना के तहत एक दिन गड़े धन का लालच दे कर नीरज ने अजय शुक्ला से बात की. कहीं पर गड़े धन की जानकारी मिलते ही अजय शुक्ला उस के साथ जाने के लिए तैयार हो गया.

यह बात अजय शुक्ला ने अपनी पत्नी संतोष कुमारी को बताई तो उस ने भी उस की हां में हां कर दी. वह तो पहले से ही चाहती थी कि वह किसी तरह से उस के प्रेमी नीरज विश्वकर्मा के साथ चला जाए.

योजना बनाने के बाद नीरज विश्वकर्मा और उस की प्रेमिका संतोष ने टीवी पर क्राइम स्टोरीज के सीरियल देखने शुरू किए. क्राइम सीरियलों में हमेशा ही अपराध करना और उस से बचने के उपायों को बहुत ही अच्छे तरीके से समझाया जाता है. उन सीरियलों को देख कर संतोष कुमारी को पूरा विश्वास हो गया था कि वह भी अपने पति की हत्या करवा कर उस के जुल्म से पूरी तरह से बच जाएगी.

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10 बच्चे कैसे हुए अनाथ 

एक दिन नीरज विश्वकर्मा का फोन आते ही अजय घर से बाइक उठा कर चलने को तैयार हुआ तो संतोष कुमारी ने उस का मोबाइल घर पर ही यह कह कर रखवा लिया कि कहीं रात में गिर गया तो कहां कहां ढूंढोगे.

संतोष कुमारी जानती थी कि पुलिस मोबाइल की लोकेशन निकाल कर उस का पता कर सकती है. अगर उस के पास मोबाइल नहीं होगा तो उस के मरने के बाद पुलिस भी उस का अता पता नहीं कर पाएगी और जंगली जानवर उस की लाश को खा जाएंगे.

पत्नी के कहने पर अजय शुक्ला ने मोबाइल घर पर ही छोड़ दिया. उस के बाद वह सीधा नीरज विश्वकर्मा की दुकान पर जा कर उस से मिला. उस वक्त तक शाम हो चुकी थी. अजय शुक्ला के दुकान पर पहुंचते ही नीरज विश्वकर्मा अपनी बाइक से अजय शुक्ला के साथ चल दिया. नीरज कुमार ने अपनी बाइक रास्ते में पडऩे वाले पैट्रोल पंप पर खड़ी कर दी.

फिर वह अजय शुक्ला की बाइक पर बैठ कर उसे ले कर रामसनेही घाट कोतवाली के प्रतापपुरवा के जंगल में ले गया. वहां पर जा कर नीरज विश्वकर्मा ने अजय शुक्ला को एक जगह दिखाते हुए बताया कि गड़ा धन इसी जगह के नीचे है. इस जगह को किसी तरह से खोदना होगा.

अजय शुक्ला गड़े धन के लालच में पूरी तरह से पागल सा हो गया था. उस के मन में अमीर बनने के सपने घूमने लगे थे. जैसे ही अजय शुक्ला अपनी बाइक से उतर कर उस जगह की तरफ को जाने लगा तो पीछे से मौका पाते ही नीरज विश्वकर्मा ने उसी के हेलमेट से उस के सिर पर जोरदार वार कर दिया.

अचानक सिर पर ताबड़तोड़ हैलमेट की चोट से अजय शुक्ला बेहोश हो कर जमीन पर गिर पड़ा. उस के बाद नीरज ने चाकू से उस की हत्या कर दी.

अजय शुक्ला की हत्या करने के बाद नीरज विश्वकर्मा अपने घर चला आया. अजय शुक्ला की हत्या करने के बाद नीरज शुक्ला ने उसी के नंबर पर फोन कर उस की सूचना अपनी प्रेमिका संतोष कुमारी को दी, ताकि अगर यह भेद खुलता भी है तो पुलिस उस की बीवी पर शक न कर सके.

इस केस के खुलते ही पुलिस ने अपने पति की हत्या की साजिश रचने वाली संतोष्ज्ञ कुमारी और नीरज विश्वकर्मा को अजय शुक्ला को अगवा कर उस की हत्या करने के आरोप में कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया था.

इस मामले में मृतक अजय शुक्ला की पत्नी की तरफ से 5 लोगों के खिलाफ दर्ज कराई गई रिपोर्ट में बदलाव किया गया. उसी अभियोग में धारा 34 भादंवि को जोड़ दिया गया तथा आलाकत्ल चाकू की बरामदगी के आधार पर धारा 4/25 आम्र्स ऐक्ट व धारा 120 बी/201 भी जोड़ दी गई. भले ही अपने प्रेम प्रसंग को छिपाने और अपने प्रेम में बाधा बने अजय शुक्ला को उसी की पत्नी ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर षडयंत्र के तहत रास्ते से हटा दिया था, लेकिन पुलिस की सतर्कता के चलते दोनों ही जेल की सलाखों के पीछे चले गए थे.

उन के जेल जाते ही 10 बच्चे पूरी तरह से अनाथ हो गए थे. आरोपी नीरज विश्वकर्मा के भी 5 बच्चे थे और संतोष कुमारी के भी 5.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सुख की चाह में संतोष बनी कातिल – भाग 2

इस कहानी की शुरुआत होती है उत्तर प्रदेश के जिला बाराबंकी के थाना असंद्रा के एक छोटे से गांव मल्लपुर मजरे सुपामऊ से. 40 वर्षीय अजय शुक्ला इसी गांव का रहने वाला था और वह किसी तरह अपने परिवार का भरणपोषण करता था. उस की शादी कई साल पहले संतोष कुमारी के साथ हुई थी.

समय के साथसाथ संतोष कुमारी 5 बच्चों की मां बनी. घर में बच्चों के हो जाने के बाद अजय शुक्ला बहुत ही खींचतान कर बच्चों का लालनपालन कर पाता था.

घर की आर्थिक स्थिति डगमगाने से वह लगभग 15 लाख रुपयों के कर्ज के बोझ में दब गया था. नशे और जुए का आदी होने के कारण उस ने अपनी जुतासे की जमीन भी बेच डाली थी. लेकिन जमीन बेच कर उस ने पैसे जुए और शराब में उड़ा दिए. जिस के बाद उस की पत्नी हर वक्त उस से खफा रहती थी.

अब से लगभग 6 साल पहले संतोष कुमारी कुछ सामान खरीदने के लिए महमूदपुर गई थी. नीरज कुमार विश्वकर्मा महमूदपुर में ही एक घड़ी और मोबाइल की दुकान चलाता था. अपने घर का सामान खरीदने के बाद वह जैसे ही अपने घर वापस आ रही थी, उस की नजर एक मोबाइल की दुकान पर बैठे नीरज कुमार पर पड़ी.

संतोष कुमारी का चलते वक्त मोबाइल नीचे गिर गया था, जिस के कारण उस का मोबाइल का स्क्रीन गार्ड टूट गया था. वह स्क्रीन गार्ड लगवाने के लिए उस के पास पहुंची. उसी दौरान दोनों की पहली मुलाकात हुई थी. नीरज कुमार के व्यवहार से संतोष कुमारी पहली ही मुलाकात में काफी प्रभावित हुई थी.

जब तक नीरज कुमार ने उस के मोबाइल पर स्क्रीन गार्ड लगाया, तब तक उस ने नीरज से सारी जानकारी जुटा ली थी. उस के बाद वह उस का मोबाइल नंबर भी ले आई थी.

उस दिन के बाद नीरज कुमार संतोष कुमारी के दिल में बस गया. संतोष कुमारी उस से बात करने के लिए बेचैन हो उठी. उस ने कई बार उसे फोन मिलाने की कोशिश की, लेकिन वह हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी. उस की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि वह किस बहाने से उसे फोन करे.

आखिरकार उस ने एक दिन हिम्मत कर के उस ने फोन मिलाया. नीरज कुमार तुरंत ही उस की आवाज पहचान गया. फिर उस दिन दोनों की काफी समय तक बात हुई. दोनों के बीच एक बार फोन पर बात हुई तो आगे यह सिलसिला बढ़ता ही गया.

दरअसल, संतोष कुमारी को नीरज कुमार से प्यार हो गया, जिस से वह अकसर उस से घंटों घंटों तक बात करने लगी थी. उस के बाद दोनों ही मिलने के लिए बेचैन रहने लगे थे. संतोष कुमारी उस से मिलने के लिए कोई न कोई बहाना बना कर घर से निकल जाती और फिर उस की दुकान पर पहुंच जाती. अजय शुक्ला तो सुबह ही रिक्शा ले कर घर से निकल जाता और देर शाम को ही घर पहुंचता था.

इस दौरान संतोष कुमारी नीरज कुमार को फोन करती. वह नीरज कुमार से अपने घर आने के लिए कहती, लेेकिन नीरज अपनी दुकान के चलते उस के पास नहीं आ पाता था. फिर उस के घर आने पर उस के अन्य परिवार वाले भी ऐतराज उठा सकते थे.

हसरतों ने इस तरह भरी उड़ान

इसी सब से बचने के लिए संतोष कुमारी के दिमाग में एक आइडिया आया. उस ने सोचा कि अगर किसी तरह से उस के पति की दोस्ती नीरज कुमार से हो जाए तो उस के घर आने की सारी बाधाएं खत्म हो जाएंगी. यही सोच कर उस ने एक दिन अपने मोबाइल का स्क्रीन गार्ड जानबूझ कर तोड़ दिया.

अगली सुबह जब उस का पति अजय शुक्ला घर से निकल रहा था तो उस ने कहा, ”तुम महमूदपुर में तो आते जाते रहते हो. मेरा मोबाइल ले जाओ.’’

उस के बाद उस ने नीरज कुमार की दुकान का हवाला देते हुए कहा, ”आप उस पर नीरज की दुकान से स्क्रीन गार्ड लगवा लाना.’’

अजय शुक्ला अपनी बीवी का मोबाइल ले कर नीरज कुमार की दुकान पर पहुंचा. उस के पहुंचने से पहले ही संतोष कुमारी ने नीरज को फोन कर समझा दिया था कि आज मेरे पति तुम्हारी दुकान पर आएंगे. किसी भी तरह से तुम उन के साथ दोस्ती गांठ लेना. अगर तुम ने उन से दोस्ती कर ली तो हमारा मिलनेजुलने का रास्ता साफ हो जाएगा.

अजय शुक्ला के दुकान पर पहुंचते ही नीरज कुमार ने उस के साथ मीठीमीठी बातें की, जिस के बाद अजय शुक्ला भी उस से काफी प्रभावित हुआ. फिर जल्दी ही दोनों के बीच दोस्ती भी हो गई. उसी दोस्ती की आड़ में नीरज कुमार उस के घर आनेजाने लगा था. जिस के बाद दोनों प्रेमियों के बीच मिलने का रास्ता साफ हो गया था.

अजय शुक्ला हमेशा ही शाम को शराब के नशे में धुत हो कर अपने घर पहुंचता था. उस के बाद नीरज कुमार भी अपनी दुकान बंद कर के अजय शुक्ला के घर आ जाता था. देखते ही देखते दोनों में दांत काटी दोस्ती हो गई, जिस के बाद वह अजय शुक्ला के हर दुखसुख में काम आने लगा था.

कभी कभार ज्यादा रात हो जाने के कारण नीरज कुमार अजय शुक्ला के घर पर ही रुक जाता था. इस दौरान जब कभी भी अजय शुक्ला को पैसे की जरूरत होती तो नीरज ही उस के काम आता था.

धीरेधीरे अजय शुक्ला नीरज कुमार का लाखों रुपयों का कर्जदार हो गया था. जिस के कारण अजय शुक्ला नीरज कुमार के अहसानों तले दबता चला गया, जिस का नीरज कुमार भरपूर लाभ ले रहा था.

जब नीरज कुमार विश्वकर्मा का उस के घर कुछ ज्यादा ही आनाजाना हो गया तो उस के परिवार वाले ऐतराज करने लगे. उन्होंने कई बार इस बात की शिकायत अजय शुक्ला से की, लेकिन उस ने हर बार उन की बातों को एक कान सुना और दूसरे से निकाल दिया.

यही बात जब घर से निकल कर गांव में फैलनी शुरू हुई तो अजय शुक्ला को थोड़ा बुरा लगने लगा. उस के बाद उसे भी अपनी पत्नी और नीरज विश्वकर्मा के बीच अवैध संबंधों का शक हो गया था. जिस के बाद अजय शुक्ला अकसर ही अपनी पत्नी से झगडऩे लगा था, जिस की जानकारी संतोष कुमारी ने नीरज विश्वकर्मा को भी दे दी थी.

अजय ने कई बार नीरज को अपने घर आने जाने से रोकना चाहा तो उस ने उस से साफ कहा कि भाई मेरा पैसा मुझे वापस कर दो. मैं तुम्हारे घर क्या तुम्हारे गांव की तरफ नहीं आऊंगा. लेकिन अजय शुक्ला को उस समय बहुत ही मजबूरी थी. न तो वह जुआ खेलना ही छोड़ सकता था और न ही वह बिना शराब के रह सकता था.

सुख की चाह में संतोष बनी कातिल – भाग 1

लाश की सूचना पाते ही पुलिस घटनास्थल पर पहुंची. पुलिस ने देखा तो वहां पर एक व्यक्ति की लाश क्षतविक्षत हालत में पड़ी हुई थी. पुलिस ने वहां पर मौजूद लोगों से उस लाश की शिनाख्त करानी चाही लेकिन किसी ने भी उसे नहीं पहचाना. उस के बाद पुलिस को ध्यान आया कि उसी दिन के अखबारों में एक व्यक्ति की गुमशुदगी की खबर छपी थी.

इस बात के सामने आते ही पुलिस ने सब से पहले असंद्रा थाने से संपर्क किया, क्योंकि वह गुमशुदगी की खबर उसी थाने की थी. असंद्रा थाने से संपर्क होते ही पुलिस ने उस फोटो से मृतक का चेहरा मिलाया तो शिनाख्त हुई कि मृतक अजय शुक्ला ही था.

पुलिस काररवाई कर रही थी कि उसी समय संतोष कुमारी नाम की महिला रोती बिलखती अपने 5 बच्चों के साथ घटनास्थल पर पहुंची.

लाश को देखते ही संतोष कुमारी अपना आपा खो बैठी. क्योंकि वह लाश उस के पति अजय शुक्ला की थी. वह पति की लाश से लिपट लिपट कर बुरी तरह से रोने चिल्लाने लगी. उस के बच्चों का भी रोरो कर बुरा हाल था. पुलिस ने किसी तरह से संतोष कुमारी को शांत कराया. उस के बाद पुलिस ने जांचपड़ताल की तो अजय शुक्ला के सिर व पेट पर चोटों के काफी निशान थे.

इस से एक दिन पहले ही संतोष कुमारी 18 दिसंबर, 2023 की शाम के वक्त बाराबंकी जिले के थाना असंद्रा पहुंची थी. उस ने एसएचओ संतोष कुमार सिंह को बताया था कि वह मल्लपुर मजरे सुपामऊ गांव की रहने वाली है. सुबह लगभग 11 बजे उस के पति अजय कुमार शुक्ला बाइक से किसी काम से मस्तान बाबा की कुटी पर जाने के लिए निकले थे. लेकिन उस के बाद वह वापस नहीं लौटे.

उस ने बताया था कि जाने से पहले वह अपना मोबाइल भी घर पर ही भूल गए थे. एसएचओ ने संतोष कुमारी से उस के पति के बारे में कुछ और जानकारी हासिल करने के बाद अजय कुमार की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर ली थी.

उसी जांचपड़ताल के तहत सब से पहले एसएचओ पुलिस टीम के साथ गांव मल्लपुर मजरे सुपामऊ से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर रह रहे मस्तान बाबा की कुटिया पर पहुंचे. कुटिया पर पहुंच कर उन्होंने वहां पर अजय कुमार शुक्ला के बारे में जानकारी ली तो पता चला कि अजय कुमार शुक्ला वहां पर आया ही नहीं था. उस के बाद पुलिस ने अजय कुमार शुक्ला की हर जगह तलाश की, लेकिन कहीं भी उस का अतापता नहीं चला.

इस के बाद पुलिस ने उस के गुमशुदा होने की सूचना स्थानीय अखबारों में छपवाई, लेकिन उस के बाद भी पुलिस को कोई सफलता नहीं मिली. इस सब का कारण था कि अजय शुक्ला अपने साथ मोबाइल नहीं ले गया था, जिस के कारण उसे तलाशने में पुलिस के सामने बड़ी समस्या आ खड़ी हुई थी.

उसी दौरान 19 दिसंबर, 2023 को गांव प्रताप पुरवा के पास एक व्यक्ति की लाश पड़ी होने की सूचना रामसनेही घाट कोतवाली को मिली. सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंच गई. रामसनेही घाट पुलिस ने इस की सूचना असंद्रा थाने में भी दे दी थी, क्योंकि उस थाने के एक लापता व्यक्ति की सूचना अखबार में छपी थी.

इस जानकारी के मिलते ही सब से पहले असंद्रा पुलिस ने उस की पत्नी संतोष कुमारी को इस की जानकारी दी. उस के तुरंत बाद ही असंद्रा थाने के एसएचओ भी उस जगह पहुंच गए, जहां पर अजय शुक्ला की लाश मिली थी. संतोष कुमारी ने उस लाश की शिनाख्त अपने पति अजय शुक्ला के रूप में कर ली.

घटनास्थल से समस्त जानकारी जुटाने के बाद पुलिस ने अपनी काररवाई आगे बढ़ाई. फिर उस की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. उस के बाद पुलिस ने संतोष कुमारी से पूछा कि गांव में तुम्हारे पति की किसी से कोई दुश्मनी तो नहीं थी.

यह बात सुनते ही संतोष कुमारी पहले तो चुप्पी साध गई, फिर उस ने बताया कि उस के पति का गांव के ही कुछ लोगों से जमीन को ले कर विवाद चल रहा था, जिस के कारण ही उन लोगों ने उन की हत्या की होगी.

संतोष कुमारी के शक के आधार पर पुलिस ने गांव के ही 5 लोगों माताबदल, महेश, रामकुमार, बाबा सोनी व प्रदीप को हिरासत में ले लिया. पुलिस ने संतोष कुमारी की तरफ से शक के आधार पर इन पांचों पर भादंवि की धारा 302/34 के तहत मामला दर्ज कर लिया.

इन पांचों से पुलिस ने कड़ी पूछताछ की, लेकिन किसी ने भी उस की हत्या की जिम्मेदारी नहीं ली. पुलिस ने इस मामले में उन के गांव जा कर अन्य लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि पांचों ही लोग बेहद ही शरीफ और सज्जन इंसान थे.

गांव वालों की जानकारी से पुलिस को भी लगने लगा था कि कहीं न कहीं ये पांचों निर्दोष हैं. उसी दौरान गांव वालों का संतोष कुमारी पर दबाव बना तो वह भी उन की गिरफ्तारी को ले कर कुछ ढीली नजर आई. उस के बाद वह भी उन की पैरवी पर उतर आई थी, जिस के बाद अजय शुक्ला की हत्या के शक की सूई संतोष कुमारी की ओर ही घूम गई थी.

फिर पुलिस ने उस के परिवार वालों के साथसाथ गांव वालों से भी उस के चरित्र के बारे में जानकारी हासिल की तो पता चला कि अजय शुक्ला के एक दोस्त नीरज विश्वकर्मा का उस के घर पर आनाजाना था. वह अजय शुक्ला की गैरमौजूदगी में भी उस के घर आयाजाया करता था. उस के बाद संतोष कुमारी स्वयं ही पुलिस की शक की निगाहों में चढ़ गई थी.

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पुलिस को मृतक की पत्नी पर क्यों हुआ शक

शक की सूई संतोष कुमारी की तरफ घूमते ही पुलिस ने उस के और मृतक अजय शुक्ला और उस की पत्नी के मोबाइल नंबरों को सर्विलांस पर लगाया. इस से पुलिस को एक खास जानकारी मिली.

तहकीकात के दौरान पता चला कि संतोष कुमारी काफी समय से महमूदपुर निवासी नीरज कुमार विश्वकर्मा से मोबाइल पर बात करती थी. घटना वाले दिन भी संतोष कुमारी ने नीरज कुमार से बात की थी.

इस बात की जानकारी मिलते ही सब से पहले पुलिस नीरज कुमार के घर पहुंची, लेकिन नीरज कुमार घर से लापता मिला. उस के बाद पुलिस ने उस के मोबाइल पर कई बार काल की तो पहले तो उस ने उठाया नहीं, दूसरी बार करने पर उस ने फोन स्विच्ड औफ कर दिया. इस के बावजूद भी पुलिस ने उस की लोकेशन के आधार पर उसे अपनी हिरासत में ले लिया.

पुलिस ने उस से अजय शुक्ला की हत्या के संबंध में कड़ी पूछताछ की तो उस ने हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. फिर उस ने हत्या के पीछे की जो कहानी बताई, वह चौंकाने वाली निकली—

संतोष कुमारी भले ही पढ़ीलिखी नहीं थी, लेकिन उस का दिमाग इतना तेज था कि वह अपने पति अजय शुक्ला को कुछ भी नहीं समझती थी. अजय शुक्ला एक रिक्शाचालक था. उस के 5 बच्चे थे, जिस से परिवार की गुजरबसर ठीक से नहीं हो पा रही थी. उस के साथ ही उस में शराब पीने की लत भी थी.

यही कारण रहा कि उस ने नीरज कुमार विश्वकर्मा के साथ दोस्ती होते ही अपने पति को अपनी जिंदगी का कांटा समझ कर उसे हटाने के लिए एक सुनियोजित रास्ता चुना. लेकिन पुलिस के लंबे हाथों से वह बच नहीं पाई.