Crime Story in Hindi : ऊधम सिंह नगर में धंधा पुराना लेकिन तरीके नए

Crime Story in Hindi : देशदुनिया की शायद ही कोई औरत हो, जो अपनी इच्छा से देहव्यापार को पेशा बनाना चाहती है. किसी भी स्त्री की देह वह बेशकीमती दौलत है, जिस का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता, फिर भी इस की बोली लगाने वाले बाजारों की कमी नहीं है. ऐसा ही उत्तराखंड के काशीपुर में एक बाजार है, जो राजारजवाड़ों के जमाने से काफी विख्यात रहा है.

सदियों पहले उस दौर की बात है, जब देश में राजेरजवाड़ों का अपना साम्राज्य हुआ करता था. समूचे इलाके में उन की तूती बोलती थी. उन के मनोरंजन के 2 ही मुख्य साधन हुआ करते थे. एक, जंगली जानवरों का शिकार करना और दूसरा, सुंदर स्त्री की लुभावनी अदाओं के नाचगाने का आनंद उठाने के अलावा यौनाचार में लिप्त हो जाना. ऐसा ही कुछ आज के उत्तराखंड स्थित ऊधमसिंह नगर के काशीपुर में था. तब काशीपुर के कई मोहल्ले तो इस के लिए दूरदूर तक विख्यात थे. उस मोहल्ले की मुख्य सड़क के दोनों ओर वेश्याएं रहती थीं.

देह व्यापार में लिप्त ऐसी औरतें अब वैश्या कहलाना पसंद नहीं करतीं, उन्हें सैक्स वर्कर कहा जाता है. यहां पर कई छोटेबड़े नगरों के लोग अपनी कामपिपासा शांत करने आते थे. बाद में ऐसी औरतों की संख्या बढ़ने पर उन के धंधे को जबरन बंद करवाना पड़ा. सामाजिक दबाव और प्रशासन की सख्ती के आगे इन वेश्याओं को नगर छोड़ कर जाने पर मजबूर होना पड़ा था. उस के बाद उन्होंने मेरठ शहर के लिए पलायन कर लिया था. उन्हीं में कुछ वेश्याएं ऐसी भी थीं, जिन्होंने नगर के आसपास रह कर गुप्तरूप से चोरीछिपे धंधे में लिप्त रहीं. वही सिलसिला बदस्तूर आज भी जारी है.

पुलिस समयसमय पर उन के ठिकानों पर छापामारी करती रहती है. उन्हें हिरासत में ले कर नारी सुधार गृह या जेल भेज दिया जाता है. बात 30 जुलाई की है. पुलिस को जानकारी मिली थी कि काशीपुर के ढकिया गुलाबो मोहल्ले का एक दोमंजिला मकान काफी समय से देह व्यापार का ठिकाना बना हुआ है. इस जानकारी को ध्यान में रखते हुए सीओ अक्षय प्रह्लाद कोंडे के निर्देश पर एक पुलिस टीम गठित की गई. टीम में महिला इंसपेक्टर धना देवी, कोतवाली एसएसआई देवेंद्र गौरव, टांडा चौकी इंचार्ज जितेंद्र कुमार, कांस्टेबल भूपेंद्र जीना, देवानंद, कांस्टेबल गिरीश कांडपाल, दीपक, मुकेश कुमार शामिल थे.

पुलिस टीम ने काफी सावधानी से छापेमारी को अंजाम दिया. सभी पुलिसकर्मी सादे कपड़ों में थे. छापेमारी में उन्हें बताए गए ठिकाने से 4 महिलाएं और 2 पुरुषों को धर दबोचने में सफलता मिली. वे मकान के अलगअलग कमरों में आपत्तिजनक स्थिति में पाए गए थे. देह व्यापार मामले में आरोपी को रंगेहाथों पकड़ना जरूरी होता है. वरना वे संदेह के आधार पर आसानी से छूट जाते हैं. इस छापेमारी में देहव्यापार की सरगना फरार हो गई. पकड़े गए आरोपियों को पूछताछ के बाद जेल भेज दिया गया. वैसे काशीपुर में इस तरह की छापेमारी पहली बार नहीं हुई थी. पहले भी कई बार इलाके में देह व्यापार के ठिकानों पर छापेमारी हो चुकी थी. देह के गंदे धंधे में लगे लोग हमेशा अड्डा बदलते रहते हैं.

देह व्यापार के धंधे में आधुनिकता और बदलाव कई रूपों में सामने आया है, जिस का एक मामला हल्द्वानी पुलिस के सामने 3 अगस्त को आया. पुलिस को सूचना मिली कि हाइडिल गेट स्थित स्पा सेंटर में काफी समय से देह व्यापार का खुला खेल चल रहा है. इस सूचना के आधार पर हल्द्वानी सीओ शांतनु पराशर ने एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट की टीम को साथ ले कर स्पा सेंटर पर छापा मारा. छापेमारी के दौरान एक युवक को युवती के साथ आपत्तिजनक स्थिति में पकड़ा गया. स्पा सेंटर में पुलिस की रेड पड़ते ही हलचल मच गई. सेंटर की संचालिका दिल्ली निवासी सुमन और स्वाति वर्मा फरार हो गईं. जबकि सेंटर के मैनेजर पश्चिम बंगाल के वरुणपारा वारूईपुरा, निवासी नादिया पकड़े गए.

छापेमारी के दौरान स्पा सेंटर से देह व्यापार से संबंधित कई आपत्तिजनक वस्तुएं भी बरामद हुईं. यहां तक कि उस के बेसमेंट से 9 लड़कियां निकाली गईं. उन में 2 उत्तर प्रदेश, एक मध्य प्रदेश, एक मणिपुर, 2 पश्चिम बंगाल और 3 हरियाणा की थीं. पकड़ा गया युवक आशीष उनियाल काठगोदाम का रहने वाला निकला. वह एक निजी कंपनी में काम करता था. स्पा सेंटर में सुनियोजित तरीके से देह व्यापार का धंधा चलाया जा रहा था. धंधेबाजों ने बड़े पैमाने पर मसाज की आड़ में यौनाचार के सारे इंतजाम कर रखे थे. वहां से पकड़ी गई सभी युवतियों के रहने की व्यवस्था सेंटर के बेसमेंट में की गई थी. उन के खानेपीने की पूरी सुविधाएं वहीं की गई थीं.

ग्राहक को स्पा सेंटर आने से पहले ही वाट्सऐप पर युवती की फोटो दिखा कर उस का सौदा कर लिया जाता था. ग्राहक को युवतियों के टाइम के हिसाब से अपौइंटमेंट तय किया जाता था. स्पा सेंटर आते ही ग्राहक को रिसैप्शन पर बाकायदा बिल चुकाना होता था, जो स्पा से संबंधित होते थे. उस के बाद उसे कमरे में बने केबिन में जाने की इजाजत मिलती थी. अपने फिक्स टाइम पर ग्राहक स्पा सेंटर पहुंच जाता था. उन्हें स्पीकर पर आवाज लगाई जाती थी. उस के साथ फिक्स युवती को इस की सूचना पहले होती थी और कुछ समय में ही अपने ग्राहक के पास चली जाती थी. एक युवती को एक दिन में 3 सर्विस देनी होती थी.

सेंटर में आने वाले ग्राहकों का कोई आंकड़ा मौजूद नहीं था. जबकि उन की बिलिंग होती थी. उसे किसी रजिस्टर में दर्ज नहीं किया जाता था. फिर भी पुलिस ने जांच में पता लगाया कि सेंटर को प्रतिदिन 50 हजार की कमाई होती थी. स्पा सेंटर से बरामद सभी युवतियों ने स्वीकार किया कि वे किसी न किसी मजबूरी की वजह से मसाज की आड़ में देह बेचने का काम करती हैं. इसी के साथ उन्होंने सेंटर के मालिक पर आरोप भी लगाया कि उन्हें बहुत कम पैसा मिलने के कारण मजबूरी के चलते बेसमेंट में रहना होता है, जहां काफी मुश्किल होती है. पुलिस पूछताछ के बाद सीओ के निर्देश पर सभी युवतियों को मुखानी स्थित वन स्टौप सेंटर में भेज दिया गया. उसी दौरान 7 अगस्त, 2021 को पुलिस को पता चला कि स्पा सेंटर की आड़ में कई जगहों पर देह व्यापार चल रहा है.

इस सूचना के आधार पर एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट प्रभारी ने सीओ अमित कुमार के साथ मीटिंग कर इस अपराध को जड़ से मिटाने का निर्णय लिया. इस की जानकारी एसएसपी दलीप सिंह को दे कर अनुमति मांगी गई. अनुमति मिलते ही अमित कुमार ने ठोस कदम उठाए. उस योजना को अंजाम देने के लिए पुलिस ने नगर में चल रहे स्पा सेंटरों पर मुखबिरों का जाल बिछा दिया. पुलिस को जहां से भी जानकारी मिलती, वहां तुरंत छापेमारी की जाने लगी. इस सिलसिले में मैट्रोपोलिस सिटी बिग बाजार स्थित सेवेन स्काई स्पा सेंटर में कुछ संदिग्ध युवकयुवतियां दबोचे गए. एक कमरे के केबिन से 2 युवकों को 3 युवतियों के साथ, जबकि दूसरे कमरे में बने केबिनों में 2-2 युवकयुवतियां मसाज में तल्लीन पकड़े जाने पर दबोचा गया. सभी अर्धनग्नावस्था में थे.

सेंटर की गहन छानबीन में प्रयोग किए गए और नए महंगे कंडोम बरामद हुए. रिसैप्शन काउंटर से भी कंडोम बरामद किए गए. कस्टमर एंट्री रजिस्टर से पुलिस को ग्राहकों के एंट्री की तारीख और समय का पता चला. सेंटर की संचालिका सोनू थी. उस ने पुलिस को पूछताछ में बताया कि स्पा सेंटर का मालिक हरमिंदर सिंह हैं, उन के निर्देश पर ही सेंटर में सब कुछ होता रहा है. सेंटर से बरामद 5 युवतियों ने स्वीकार किया कि उन्हें एक ग्राहक के साथ हमबिस्तर होने पर 500 रुपए मिलते थे. इस मामले को पंतनगर थाने में दर्ज किया गया. गिरफ्तार युवकयुवतियों और सेंटर के मालिक हरमिंदर सिंह के खिलाफ रिपोर्ट लिख ली गई. बिलासपुर जिला रामपुर निवासी हरमिंदर सिंह फरार था.

पुलिस उस की तलाश में लगा दी गई थी. इसी तरह ऊधमसिंह नगर में चल रहे स्पा सेंटर पर भी 13 अगस्त को छापेमारी की गई. उस के बाद वहां बसंती आर्या ने सभी स्पा सेंटरों व होटल मालिकों को आवश्यक दिशानिर्देश जारी किए. उन से कहा गया कि सभी ठहरने वाले ग्राहकों के आईडी की फोटो कौपी रखें और उन के नाम व पते रिसैप्शन सेंटर पर जरूर दर्ज करें. साथ ही होटल में सभी जगह पर सीसीटीवी कैमरे चालू हालत में रखने अनिवार्य कर दिए गए. कहते हैं, जहां चाह वहां राह, तो इस धंधे को स्मार्टफोन से नई राह मिल गई है. देह व्यापार में लिप्त काशीपुर की सैक्स वर्करों ने स्मार्टफोन को ग्राहक तलाशने का जरिया बना लिया है. पुरुष भी धंधेबाज औरतों की तलाश आसानी से करने लगे हैं.

देह व्यापार में लिप्त महिलाएं मोबाइल पर चंद अश्लील बातें कर अपने ग्राहकों को फंसा लेती हैं. पैसे का लेनदेन भी उसी के जरिए हो जाता है. वाट्सऐप और वीडियो कालिंग तो इस धंधे के लिए वरदान साबित हो रहा है. इस पर वे अपनी अश्लील फोटो या वीडियो भेज कर उन को लुभा लेती हैं. फिर वह ग्राहक की सुविधानुसार कुछ समय के लिए किराए पर ले रखे कमरे पर ही उसे बुला लेती हैं या उस के बताए ठिकाने पर पहुंच जाती हैं. जो महिलाएं कल तक मंडी से जुड़ी हुई थीं, वे अब इसी तरीके से अपना धंधा चला रही हैं, यही उन की रोजीरोटी का साधन बन चुका है.

जांच में यह भी पता चला कि काशीपुर में कुछ ऐसी बस्तियां हैं, जहां पर कई औरतें अपना धंधा चला कर मोटी कमाई कर रही हैं. उन में कुछ औरतें अधेड़ उम्र की हैं, वे  नई लड़कियों के लिए ग्राहक ढूंढने के साथसाथ उन की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी निभाती हैं. ऐसी औरतें ही किराए का मकान या कमरा ले कर रखती हैं. उन में वह खुद रहती हैं. किसी ग्राहक की मांग आते ही वह उन से सौदा तय कर आगे के काम में लग जाती हैं. उन्हें थोड़े समय के लिए अपना घर उपलब्ध करवा देती हैं. ग्राहक को 15 मिनट से ले कर आधे घंटे तक का समय मिलता है. इसी समय के लिए 300 से 500 रुपए वसूले जाते हैं.  इस आय में आधा हिस्सा लड़की को मिलता है. कभीकभी लड़की को ज्यादा भी मिलता है.

यह ग्राहक की संतुष्टि और उस से मिलने वाले अतिरिक्त बख्शीश पर निर्भर करता है. इस गिरोह में घरेलू किस्म की औरतें, स्टूडेंट या पति से प्रताडि़त या उपेक्षित सफेदपोश संभ्रांत किस्म की महिलाएं शामिल होती हैं, जिन के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता कि उस पर भी गंदे धंधे के दाग लगे हुए हैं. उन की पब्लिसिटी पोर्न वेबसाइटों के जरिए भी होती रहती है. इस तरह के देह व्यापार का धंधा काशीपुर ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तराखंड में अपने पैर पसारता जा रहा है. बताते हैं कि यहां लड़कियां तस्करी के माध्यम से उपलब्ध करवाई जाती हैं, जिन में अधिकतर मजबूर महिलाएं और युवतियां ही होती हैं.

इसी साल जुलाई माह की भी ऐसी एक घटना 21 तारीख को रुद्रपुर में सामने आई. एंटी ह्यूमन टै्रफिकिंग यूनिट के प्रभारी को ट्रांजिट कैंप गंगापुर रोड के पास मोदी मैदान में खड़ी एक संदिग्ध कार के बारे में सूचना मिली. मुखबिर ने एक कार यूके06एए3844 में कुछ पुरुष और महिलाओं के द्वारा अश्लील हरकतें करने की जानकारी दी. इस सूचना पर काररवाई करते हुए इंसपेक्टर बसंती आर्या अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंचीं. अपनी टीम के साथ चारों तरफ से कार को घेरते हुए उस कार से 3 लोगों को पकड़ा गया. उन में एक आदमी और 2 औरतें थीं. जब वे पकड़े गए, तब उन की हरकतें बेहद आपत्तिजनक थीं. तीनों को अपनी कस्टडी में ले कर पूछताछ के लिए थाने लाया गया.

आदमी की पहचान उत्तर प्रदेश में बरेली जिले के बहेड़ी थाना के रहने वाले 29 वर्षीय भगवान दास उर्फ अर्जुन के रूप में हुई. महिला की पहचान 32 वर्षीया भारती के रूप में हुई. उस ने बताया कि वह उत्तर प्रदेश में रामपुर जिले के अंतर्गत दिनकरी की रहने वाली है, लेकिन अब वह ऊधमसिंह नगर जिला में  सिडकुल ढाल ट्रांजिट कैंप में रहती है. इसी तरह से दूसरी 21 वर्षीया युवती ने अपना नाम पूजा यादव बताया. उस ने कहा कि उस का पति उत्तर प्रदेश में बाराबंकी जिले के गांव सनसडा में रहता है. तीनों से गहन पूछताछ के बाद उन की तलाशी ली गई. तलाशी में उन के पास से 2 स्मार्टफोन बरामद हुए. मोबाइलों में तमाम अश्लील फोटो, वीडियो के साथ ही अनेक अश्लील मैसेज भी भरे हुए थे.

उन्हीं मैसेज से मालूम हुआ कि ये दोनों महिलाएं एक रात के 1000 से 1500 रुपए लेकर ग्राहकों की रातें रंगीन करती थीं. उन के साथ पकड़ा गया भगवान दास का काम ग्राहक तलाशना होता था. वह उन्हें ग्राहकों तक पहुंचाने का काम करता था. बदले में 500 रुपए वसूलता था. दास ने बताया कि वह ग्राहक की जानकारी होटलों में ठहरने वालों से जुटाता था. इस के लिए अपने संपर्क में आई युवतियों को किसी एकांत जगह पर कार में बैठा कर रखता था और फिर वहीं से ग्राहकों के फोन का इंतजार करता था. जैसे ही किसी ग्राहक का फोन आता वह 10 से 15 मिनट में उस के बताए स्थान पर लड़की को पहुंचा देता था.

तीनों 21 जुलाई को ग्राहक का फोन आने का ही इंतजार कर रहे थे. उन की कोई सूचना नहीं मिल पाने के कारण वे आपस में ही हंसीमजाक करते हुए टाइमपास कर रहे थे. ऐसा करते हुए वे बीचबीच में अश्लील हरकतें भी करने लगे थे. उस दिन भगवान दास ने दोनों को 1500-1500 रुपयों में तय किया था. लेकिन जब काफी समय गुजर जाने के बाद भी उसे कोई ग्राहक नहीं आया था. पुलिस मुखबिर की निगाह उन पर गई और उन्होंने पुलिस को इस की सूचना दे दी. पूछताछ में भगवान दास ने कई मोबाइल नंबर दिए, जो देहव्यापार करने वाली महिलाओं के थे.

वे अपनी बुकिंग एक दिन पहले करवा लेती थीं. बुकिंग के आधार पर ही उन्हें होटल या किसी निजी घर पर ले जाया जाता था. उन्हें ले जाने वाला ही उन का सौदा पक्का कर देता था. औनलाइन पेमेंट आने के बाद ही बताए जगह पर पहुंचती थीं. इस मामले को थाना ट्रांजिट कैंप में दर्ज किया गया. पकड़े गए व्यक्तियों पर  सार्वजनिक स्थान पर अश्लील हरकतें कर अनैतिक देह व्यापार करने के संबंध में रिपोर्ट दर्ज की गई. उन पर आईपीसी की धारा 294/34 लगाई गईं. इसी के साथ उन्हें अनैतिक देह व्यापार निवारण अधिनियम की धारा 5/7/8 के तहत काररवाई की गई. Crime Story in Hindi

Social Story in Hindi : होटल बना देह व्यापार का ठिकाना, पुलिस ने किया पर्दाफाश

Social Story in Hindi : कोरोना लौकडाउन के बाद धंधेबाजों ने देह व्यापार के तरीके जरूर बदल दिए हैं, लेकिन उन का मकसद एक ही होता है, लड़कियों के साथ एंजौय करना. फरीदाबाद के होटल श्री बालाजी और इंपीरियल पैलेस में पुलिस ने दबिश दे कर करीब 6-7 दरजन युवकयुवतियों को जिस तरह आपत्तिजनक स्थिति में गिरफ्तार किया, उस से यही पता चलता है कि…

कोरोना वायरस का असर कम होते ही देह कारोबार के अड्डे आबाद होने लगे. लोगों का आवागमन शुरू हुआ नहीं कि सेक्स वर्कर लड़कियां, उन के दलाल और मानव तसकरी जैसे धंधे में लगे लोगों की सक्रियता बढ़ गई. दिल्ली से सटे फरीदाबाद में ऐसे मामलों की सूचना मिलते ही पुलिस बल ने भी मुस्तैदी दिखाते हुए देह के धंधेबाजों को धर दबोचा. मौके से महीने भर में दर्जनों लड़कियां भी पकड़ी गईं. फरीदाबाद में नीलम बाटा रोड से करीब 8 किलोमीटर दूर बल्लभगढ़ के रहने वाले 48 वर्षीय आलोक को उन के जन्मदिन के बारे मे खास दोस्त प्रदीप ने याद दिलाया. वे तो भूल ही गए थे कि 4 दिनों बाद उन का जन्मदिन आने वाला है. वह फरीदाबाद के बाटा की मार्किट एसोसिएशन के प्रेसिडेंट (प्रधान) हैं.

अपना रोज का काम निपटा कर 25 जुलाई, 2021 की रात को अपनी गाड़ी में घर की ओर निकले थे. कान में इयरबड्स लगाए म्यूजिक का आनंद ले रहे थे और गाड़ी भी ड्राइव कर रहे थे. तभी उन के कान में किसी के फोन की रिंग सुनाई दी. उन्होंने सामने रखे मोबाइल पर नजर डाली. काल उन के खास दोस्त प्रदीप की थी.

‘‘हैलो भाई, कैसा है तू? 2 हफ्ते हो गए, कोई खबर नहीं मिल रही है. कहां बिजी है आजकल?’’ आलोक शिकायती लहजे में बोले.

‘‘मैं ठीक हूं. बता तू कैसा है? और सुन लौकडाउन खत्म होने के बाद लगता है बिजी मैं नहीं तू हो गया है’’ प्रदीप भी उसी अंदाज में बोले.

‘‘बस कर यार! कुछ दिनों से मार्केट में काम थोड़ा बढ़ गया था, इसीलिए फोन करने का मौका नहीं मिला. तू बता घरपरिवार में बाकि सब कैसे हैं?’’ आलोक ने पूछा.

प्रदीप जवाब देते हुए बोले, ‘‘मैं बिलकुल ठीक हूं. घर पर भी सब ठीक है. तू ये बता कि 29 को क्या कर रहा है?’’

‘‘क्यों 29 को क्या है?’’ प्रदीप ने सस्पेंस के साथ कहा, ‘‘भाई, 29 को तेरा जन्मदिन है. भूल गया है क्या?’’

प्रदीप की बात सुन कर आलोक के दिमाग में अचानक बत्ती जल उठी. उसे अपने जन्मदिन की न केवल तारीख याद आ गई, बल्कि इस मौके पर दोस्तों के साथ मौजमस्ती की पुरानी यादें ताजा हो गईं. बोला, ‘‘अरे हां! भाई सच कहूं तो अगर तू याद नहीं दिलाता तो मुझे याद ही नहीं था. पिछले साल भी कोरोना के चलते इस मौके पर कुछ ज्यादा नहीं कर पाया, लेकिन इस बार सारी कसर निकाल दूंगा. बड़ी पार्टी दूंगा, पार्टी.’’

प्रदीप और आलोक दोनों स्कूल के दिनों के दोस्त थे. वे काफी गहरे दोस्त थे. लेकिन शादी के बाद दोनों अपनीअपनी घरगृहस्थी में व्यस्त हो गए थे. हालांकि उन के बीच फोन पर बातें होती रहती थीं. फिर भी जब कभी वे किसी विशेष मौके पर मिलते थे, तब एकदूसरे की खैरखबर लेने के साथसाथ खूब जम कर मस्ती करते थे. उस रोज भी दोनों ने फोन पर ही जन्मदिन सेलिब्रेशन के मौके को यादगार बनाने की योजना बना ली थी. बाटा टूल मार्केट में आलोक की तूती बोलती थी. हर दुकानदार के लिए वह बहुत ही खास और प्रिय थे. सभी उन की काफी इज्जत करते थे. मार्केट में यदि किसी को कोई भी औजार क्यों न खरीदना हो, प्रधान आलोक के रहते ही संभव हो पाता था.

इलाके के नेताओं से भी आलोक की अच्छी जानपहचान थी. एसोसिएशन का प्रधान होने की वजह से उन का अच्छा खासा पौलिटिकल कनेक्शन भी था. अगले रोज 26 जुलाई को सुबह करीब 10 बाजे आलोक एसोसिएशन के औफिस पहुंच गए. उन्होंने सब से पहले प्रदीप को फोन कर आने का समय पूछा. उस के बाद वे छोटेमोटे काम निपटाने लगे. आधे घंटे में ही प्रदीप आ गया. आलोक ने उस की खातिरदारी चायनमकीन से की. उस के द्वारा जन्मदिन की बात छेड़ने पर कुछ अलग करने की भी योजना बताई.

‘‘रात भर में तूने कुछ और प्लानिंग कर ली क्या?’’ प्रदीप ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘हां यार, सोच रहा हूं इस बार की बर्थडे पार्टी यादगार हो, पहले के मुकाबले सब से अलग रहे.’’ आलोक बोले.

यह सुन कर प्रदीप चौंक गया. पूछा, ‘‘क्या मतलब? कैसी अलग होगी पार्टी, जरा मुझे भी तो बताओ’’

आलोक इत्मीनान से दबी आवाज में बोले, ‘‘यार सोच रहा हूं इस बार पार्टी में नाचगाने वाली कुछ लड़कियों को भी बुलाया जाए. उन से ही शराब की पैग सर्व करवाई जाए.’’

‘‘लड़कियां! क्या कह रहा है तू?’’ प्रदीप चौंकता हुआ बोला.

‘‘लड़कियों को बुलाने से पार्टी की रौनक और मजा ही कुछ और होगा. मैं ने प्लानिंग कर ली है. कोरोना के चलते जिंदगी के सारे मजे खत्म से हो गए थे. इसलिए मैं ने सोचा है कि अपने सारे दोस्तों और जिन के साथ बिजनैस करता हूं सभी को इस पार्टी में इनवाइट करूं. इसी बहाने सब से मुलाकात भी हो जाएगी और इसी के साथ बिजनैस में हुए घाटे की भरपाई करने के लिए कुछ टाइम भी मिल जाएगा.’’

यह सुन कर प्रदीप के मन में मानो खुशी के बुलबुले फूटने लगे. वह आलोक से बोला, ‘‘अरे यार, मैं ने तो यह सोचा ही नहीं था. लेकिन पार्टी के लिए आएंगी कहां से? कोई जुगाड़ है?’’

प्रदीप के इस सवाल का जवाब आलोक ने बड़ी बेफिक्री के साथ दिया. भरे अंदाज में दिया और कहा, ‘‘अरे मैं ने सारी प्लानिंग अपने दिमाग में कर के रखी है. दिल्ली वाली निशा के बारे में याद नहीं है क्या तुझे? वही जिस के पास हम शादी के बाद अकसर जाते थे? अब वो लड़कियां सप्लाई करती है. दलाल बन गई है. अच्छी जानपहचान है उस से मेरी. मैं आज ही लड़कियों के लिए फोन कर के कह दूंगा.’’

आलोक और प्रदीप ने औफिस में घंटों बैठ कर 29 जुलाई के लिए प्लानिंग कर ली. नीलम बाटा रोड पर ऐसा कोई भी दुकानदार नहीं था, जो आलोक को नहीं जानता हो. इसी का फायदा उठाते हुए आलोक ने उसी रोड पर मौजूद ‘द अर्बन होटल’ के मालिक को फोन कर 28 और 29 जुलाई के लिए होटल बुक कर लिया. होटल के मालिक की आलोक से अच्छी जानपहचान थी. होटल में कमरे समेत पार्टी के लिए बने खास किस्म के हौल की भी बुकिंग हो गई. अब बारी थी खास दोस्तों के लिस्ट बनाने की, जिन्हें आलोक बुलाना चाहता था. लिस्ट बनाने में प्रदीप ने मदद की. सभी दोस्तों को फोन से 28 जुलाई के लिए मैसेज भी कर दिया.

आलोक ने अपने जरुरी बिजनैस क्लाइंट्स को भी इस पार्टी में शामिल होने का न्यौता दे दिया. उस ने निशा को फोन कर के 15 लड़कियों को पार्टी में भेजने के लिए कहा. इस तैयारी के साथसाथ होटल मैनेजमेंट को ही कैटरिंग के इंतजाम की जिम्मेदारी दे दी. प्रदीप के मन में अभी भी ऊहापोह की स्थिति बनी हुई थी. उस से रहा नहीं गया तो उस ने उस के कान के पास मुंह सटा कर कहा,‘‘इस का मोटा खर्चा तू अकेले कैसे उठाएगा?’

आलोक मुसकराया, सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘तू आगेआगे देखता जा मैं क्या करता हूं. इसी पार्टी से तुम्हारी झोली भी भर दूंगा.’’

‘‘वो कैसे?’’ प्रदीप बोला.

‘‘मैं ने कमरे यूं ही नहीं बुक करवाए हैं? तुम सिर्फ मेरे इशारे पर नजर रखना.’’ आलोक ने बताया.

इस तरह से 28 जुलाई की शाम भी आ गई. जन्मदिन की पूर्व संध्या पर मेहमानों के लिए विशेष आयोजन किया गया था. पार्टी का इंतजाम था, जो आधी रात तक चलना था. रात के 12 बजे के बाद आलोक ने जन्मदिन का केक काटने का इंतजाम किया था. आमंत्रित मेहमान धीरेधीरे कर हौल के किनारे लगे सोफों पर आ गए. सभी पूरी तैयारी के साथ आए थे, उन के चेहरे पर मास्क जरूर लगे थे, लेकिन वे पहचाने जा रहे थे. आलोक और प्रदीप दोस्तों से मिलने में व्यस्त हो गए. वे अच्छे सजावटी कपड़े में एकदम अलग दिख रहे थे. वे कभी रिसैप्शन पर जाते तो कभी हौल में आमंत्रित दोस्तों से बातें करने लगते. दूसरी तरफ प्रदीप उन के बताए इशारे पर अपना काम करने में लगा हुआ था.

हौल में जगहजगह गोल टेबल और कुरसियां लगी थीं. दीवारों को तरहतरह के सजावटी फूलों, सामानों से सजाया गया था. मध्यम रोशनी माहौल को खुशनुमा बनाने के लिए काफी था. देखते ही देखते रात के 8 बज गए. तभी एक काल को देख कर आलोक हौल के एक कोने में चले गए. काल निशा की थी. उस ने बताया कि उस की भेजी सभी लड़कियां 2 गाडि़यों में 5 मिनट के भीतर पहुंचने वाली हैं. आलोक ने निशा को कहा कि वे लड़कियों को पीछे के दरवाजे से आने के लिए बोले. तुरंत वे रिसैप्शन पर गए. होटल के मैनेजर से इशारे में बात की और उन के साथ प्रदीप को लगा दिया. थोडी देर में प्रदीप ने आलोक को आ कर बताया कि उस ने सभी लड़कियों को उन के कमरे में ठहरा दिया है.

उस ने वहां के इंतजाम के बारे में जानकारी देने के साथसाथ आलोक को बैग दिखाया. ‘थम्स अप’ करता हुआ जाने लगा. आलोक ने टोका, ‘‘उधर नहीं, गाड़ी के पार्क में जा. बैग वहीं गाड़ी में छोड़ कर आना.’’

निशा ने अपने साथ ले कर आई सभी लड़कियों को कुछ खास हिदायतें दीं. उन्हें उन के कमरे में भेज कर मेकअप आदि कर तैयार होने को कह दिया. कब किसे हौल में आना है और किसे किस कमरे में ठहरना है. इस बारे में निशा ने लड़कियों को अलगअलग समझाया. उन्हें लोगों के साथ शालीनता के साथ पेश आने को भी कहा. साढ़े 9 बजे के आसपास हौल का माहौल और भी रंगीन हो चुका था. कुछ लड़कियां हौल में आ चुकी थीं. अतिथियों में कोई भी महिला नहीं थीं. लड़कियों को देखते ही बड़ेबड़े स्पीकर पर तेज और पार्टी वाले गाने बजने के साथ सीटियों की आवाजें भी सुनाई देने लगीं. हर टेबल पर शराब परोसने की शुरुआत हुई. कुछ लोग नशे में डांसिंग प्लेटफार्म की ओर बढ़ गए.

जल्द ही लड़कियों को जिस काम के लिए बुलाया गया था, वे काम में लग गईं. नशे में चूर अतिथियों ने जिस किसी लड़की को अपनी ओर खींचना चाहा उस ने जरा भी विरोध नहीं किया. पसंद की लड़की का हाथ पकड़ा. जेब से 2000 वाले गुलाबी नोट निकाले और उस के लोकट कपड़े में डाल दिए. लड़की झट से नोट निकालती, अंगुलियों में दबाती और सीढि़यों की ओर बढ़ जाती. पीछे से अतिथि महोदय झूमतेमटकते रह जाते. लड़की सीढि़यों पर बैठी निशा को अंगुलियों में फंसे नोट थमाती और अतिथि के साथ होटल के कमरे की ओर बढ़ जाती. इस दृश्य से इतना तो साफ हो गया था कि जन्मदिन के बहाने से बुलाए गए अतिथियों का स्वागत लड़कियों के साथ यौन संतुष्टि से किया जा रहा था. इस मौके के इंतजार में न केवल ग्राहक बने अतिथि थे, बल्कि वे लड़कियां भी थीं, जिन का धंधा पिछले कुछ समय से मंदा पड़ गया था.

इस पूरी पार्टी में आलोक और प्रदीप दोनों कहां गायब हो गए थे किसी को भी कोई खबर नहीं थी. संभवत: दोनों ने अपनी पसंद की लड़की के साथ अलगअगल कमरे में खुद को बंद कर लिया हो. यानी देह व्यापार का धंधा पूरे शबाब पर था. इस की भनक फरीदाबाद में पुलिस को भी लग गई. अनलौक के नियमों के उल्लंघन करने वालों पर नजर रखने के लिए कोतवाली पुलिस स्टेशन द्वारा फैलाए गए मुखबिरों ने इस की सूचना अधिकारियों तक पहुंचा दी थी. रात के करीब एक बजे अश्लील पार्टी के बारे में जानकारी मिलते ही थानाप्रभारी अर्जुन राठी ने एसीपी रमेशचंद्र को सूचना दे कर बिना किसी देरी के जल्द से जल्द होटल में रेड मारने की तैयारी कर दी. सभी आरोपियों को रंगे हाथों पकड़ने के लिए थाने में एक टीम का गठन किया.

जल्द से जल्द प्लान के मुताबिक टीम बिना सादा कपड़ों में होटल के बाहर पहुंची. होटल के बाहर से ही तेज गानों की आवाज आ रही थी. प्लानिंग के मुताबिक थानाप्रभारी अर्जुन राठी ने हैडकांस्टेबल मनोज के साथ एक और कांस्टेबल को सादे कपड़ों में होटल के अंदर जाने को कहा. उन के अंदर जाने से पहले राठी ने अपनी जेब से 2000 का नोट निकाला और नोट के एक किनारे पर छोटे अक्षरों में अपने हस्ताक्षर कर के उन्हें दिया. यह सारा काम प्लान के अनुसार ही था. वे दोनों पुलिस कर्मचारी बिना किसी झिझक के होटल के अंदर पहुंचे. होटल के रिसेप्शन पर बैठे व्यक्ति को उन पर किसी तरह का शक नहीं हुआ. वे दोनों सीधे होटल के हौल में जा पहुंचे.

सीढि़यों से उतरते हुए उन्होंने एक युवती को सीढि़यों के पास बैठे देखा. बाद में पता चला कि वह निशा थी. वह भी उस की बगल से एक खाली टेबल और कुरसियों पर जा कर बैठ गए. उस समय हौल में बहुत कम लोग थे. हर टेबल पर शराब के ग्लास थे. प्लेटों में स्नैक्स बिखरे पडे़ थे. हौल के एक किनारे पर 2-4 लड़कियां आपस में बातें कर रही थीं, कुछ लोग डीजे पर बजते हुए गाने पर डांस कर रहे थे. थोड़ी देर बाद हैडकांस्टेबल मनोज ने प्लान के अनुसार साइन किया हुआ 2000 का नोट हवा में लहराया तो लड़कियों के झुंड में से एक लड़की पैसे लेने के लिए उन के टेबल पर पहुंच गई.

मनोज ने इशारे से लड़की को कमरे में ले जाने का इशारा किया. लड़की ने भी इशारे से उन्हें रुकने को कहा और निशा के पास चली गई. साइन किया हुआ नोट उस ने निशा के हाथों में थमा दिया, फिर लड़की ने मनोज को वहीं से आने का इशारा किया. हेड कांस्टेबल ने कान में लगे ब्लूटूथ संचालित बड्स और बटन में छिपे मोबाइल माइक को औन कर दिया. उस के औन होते ही बाहर खड़ी पुलिस फोर्स को सूचना मिल गई. देखते ही देखते हेड कांस्टेबल के लड़की के साथ कमरे तक पहुंचने से पहले ही पुलिस की छापेमारी शुरू हो गई. थानाप्रभारी अर्जुन राठी ने होटल में रेड के दौरान सब से पहले हौल में बजने वाले तेज गानों को बंद करवाया और वहां मौजूद सभी लोगों को हिरासत में ले लिया. उसी दौरान होटल के कमरों से कई लड़कियां और अतिथि अर्धनग्नावस्था में दबोच लिए गए.

रात के 12 बजे तक चली छापेमारी की इस काररवाई में करीब 4 दरजन लोगों को हिरासत में लिया गया.  उन्हें 7 जिप्सियों में भर कर थाने लाया गया. उन से पूछताछ में ही खुलासा हुआ कि यह सैक्स रैकेट एक पार्टी में शमिल होने के नाम पर चलाया गया था. इस में होटल के मालिक की भी मिलीभगत थी. पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया.  पुलिस की रेड की बात जब तक आलोक तक पहुंची तब तक काफी देर हो चुकी थी. उसे भी एक कमरे से एक लड़की के साथ पकड़ लिया गया. उसे कमरे का दरवाजा तोड़ कर बाहर निकाला गया था. प्रदीप भी उस के बगल वाले कमरे से पकड़ा गया. पुलिस सभी आरोपियों को थाने ले गई. उन्होंने पुलिस को बताया कि वह होटल में कमेटी के ड्रा का आयोजन कर रहे थे. सभी से पूछताछ के बाद उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया.

इस के अलावा कोतवाली पुलिस ने 2 अगस्त को क्षेत्र के ही श्री बालाजी होटल में दबिश दे कर 13 लड़कियों सहित 37 लोगों को गिरफ्तार किया. यहां की गेट टुगेदर पार्टी के बहाने एंजौय का कार्यक्रम था. Social Story in Hindi

 

 

Bollywood News : करोड़ों कमाते हैं सितारों के बौडीगार्ड

Bollywood News : स्टारडम अपने आप में बहुत बड़ी बात है. किसी ऐक्टर को यह हासिल होने के बाद उन का आम लोगों के बीच निकलना बेहद मुश्किल हो जाता है. ऐसे में वह अपनी सुविधा के लिए बौडीगार्ड रखते हैं. इन की सैलरी इतनी होती है कि किसी अच्छी कंपनी के सीईओ को भी शायद नहीं मिलती होगी.   न ब्बे के दशक के दौरान जब फिल्मों की आउटडोर शूटिंग का चलन बढ़ा तो एक नई दिक्कत फिल्मी सितारों की सुरक्षा की पेश आने लगी. ऐसा नहीं कि इस के पहले आउटडोर शूटिंग नहीं होती थी और फिल्म स्टार्स के चाहने वाले उन्हें देखने और छूने के लिए बेकाबू होने की हद तक बेताब नहीं रहते थे, बल्कि ऐसा पहले भी होता था. जहां भी फिल्मों की शूटिंग हो रही होती थी, वहां लोगों की अच्छीखासी भीड़ लग जाती थी.

प्रसिद्ध साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु के आंचलिक उपन्यास ‘मारे गए गुलफाम’ पर आधारित फिल्म ‘तीसरी कसम’ के कुछ दृश्यों की शूटिंग जब मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में हो रही थी, तब फिल्म के हीरो राज कपूर और हीरोइन वहीदा रहमान को देखने के लिए लोगों का सैलाब उमड़ पड़ा था. साल 1966 में प्रदर्शित इस फिल्म का बड़ा हिस्सा बिहार के अररिया जिले के गांव औराही हिंगना में भी फिल्माया गया था. वहां भी लोग राज कपूर और वहीदा रहमान को रूबरू देखने के लिए उमड़ पड़े थे. तब आज की तरह गैजेट्स नहीं थे कि आप अपने हाथ में दबे मोबाइल की स्क्रीन पर फोटो और वीडियो जब चाहे देख लें.

तब फिल्मी सितारे या तो थिएटर में दिखते थे या फिल्म के पोस्टरों में. लेकिन उन के फोटो काट कर दीवार पर चिपकाना हो या सीने से लगाना हो तो वो मैग्जींस खरीदनी पड़ती थीं, जिन में इन के फोटो छपते थे.

‘तीसरी कसम’ की यूनिट को बिहार और मध्य प्रदेश दोनों जगह दिक्कतें पेश आई थीं. दिक्कतें इस तरह की कि राज कपूर और वहीदा रहमान को देखने के लिए कई जगह कालेज के छात्रों ने हुड़दंग किया था. शूटिंग देखने आए लोगों को काबू करने में स्थानीय पुलिस का रौब ही काफी होता था. लेकिन उस दौर के युवाओं पर भी पुलिसिया रौब नहीं चलता था. शूटिंग के दौरान एक बार जब राज कपूर और वहीदा रहमान ललितपुर से मुंबई लौट रहे थे तो विदिशा रेलवे स्टेशन पर छात्रों ने ट्रेन ही रोक ली थी. तब अधिकतर ट्रेनों में एसी कोच नहीं हुआ करते थे फर्स्ट क्लास का डब्बा होता था, जो केबिनों में बंटा रहता था.

छात्रों का जमावड़ा और हुड़दंग देख राज कपूर घबरा उठे थे और विदिशा स्टेशन पर उतर कर उन्हें छात्रों के सामने हाथ जोड़ना पड़ा था. तब कहीं जा कर आधे घंटे बाद ट्रेन रवाना हो पाई थी. आज अगर ऐसा हो तो क्या होगा, इस सवाल का जबाब यही निकलता है कि आज ऐसा नहीं हो सकता. क्योंकि तमाम बड़े और नामी फिल्म स्टार्स अपनी सिक्योरिटी की जिम्मेदारी खुद उठाते हैं और उस पर तगड़ी रकम भी खर्च करते हैं. हाल तो यह है कि फिल्म स्टार्स के बौडीगार्ड की सालाना सैलरी ही करोड़ों तक में होती है और इन बौडीगार्ड्स की शोहरत और रुतबा भी किसी फिल्म स्टार से कम नहीं होता.

सलमान और शेरा से हुई शुरुआत बात साल 1995 की है जब सलमान खान का सितारा बुलंद था. लिहाजा उन्हें एक तजुर्बेकार और भरोसेमंद बौडीगार्ड की सख्त जरूरत थी. ऐसे में चंडीगढ़ की एक पार्टी में उन की मुलाकात सिख समुदाय के शेरा, जिन का असली नाम गुरमीत सिंह है, से हुई. सलमान खान के भाई अरबाज खान को शेरा उपयुक्त लगे तो उन्होंने शेरा को बुला भेजा. बात जम गई और पहली ही मीटिंग में शेरा सलमान खान के बौडीगार्ड बन गए. अब तो आलम यह है कि शेरा को सलमान की परछाई और मालिक तक कहा जाने लगा है.

26 साल के अरसे में फिल्म इंडस्ट्री में कई उतारचढ़ाव और बदलाव आए, लेकिन इन दोनों का साथ नहीं छूटा. यह एक रिकौर्ड है कि शेरा के रहते कोई सलमान को छू भी नहीं पाया. हिफाजत करने के एवज में शेरा को सैलरी कितनी मिलती है, यह आंकड़ा सुन कर आप भी चौंक सकते हैं कि तकरीबन ढाई करोड़ रुपए सालाना यानी कम से कम 20 लाख रुपए महीना. इतनी सैलरी तो बड़ीबड़ी कंपनियों के सीईओ की भी नहीं होती और कई फिल्म स्टार्स हाड़तोड़ मेहनत के बाद भी इतना नहीं कमा पाते, जितनी शेरा जैसे कई बौडीगार्ड की तनख्वाह है.

लेकिन शेरा का काम या जिम्मेदारी सिर्फ अपने बौस के साथ या आगेपीछे बुत जैसे खड़े रहने की नहीं है, बल्कि यह बेहद चुनौतीपूर्ण काम है जिसे शेरा 26 साल से बखूबी अंजाम दे रहे हैं. सलमान जहां भी जाते हैं, वहां शेरा एक दिन पहले पहुंच कर जायजा लेते हैं. इस के लिए उन्हें कई किलोमीटर पैदल भी चलना पड़ता है. सलमान के आते ही वह उन्हें जौइन कर लेते हैं और फिर पलभर को भी नहीं छोड़ते. शेरा के रहते सलमान किसी बात की चिंता नहीं करते, क्योंकि शेरा उन के फैंस को भी बड़ी सूझबूझ से मैनेज करते हैं. असल में सलमान का बौडीगार्ड बनने से पहले शेरा हौलीवुड स्टार्स को सिक्योरटी दिया करते थे और साल 1993 में उन्होंने अपनी खुद की सिक्योरटी कंपनी खोली थी, जिस का नाम ‘टाइगर सिक्योरिटी’ था.

यह कंपनी फिल्म स्टार्स को सिक्योरिटी उपलब्ध कराती थी. उन के क्लाइंट्स में अमिताभ बच्चन का नाम भी शुमार होता है. यह वह दौर था, जब देश भर में धड़ल्ले से सिक्योरिटी कंपनियां खुल रहीं थीं और हर सेक्टर में सिक्योरिटी गार्ड्स की मांग बढ़ रही थी. लेकिन बौडीगार्ड केवल खास किस्म के लोगों की ही डिमांड और जरूरत थे. किसी हस्ती का बौडीगार्ड बनने की काबिलियत केवल तगड़ा शरीर ही नहीं, बल्कि अक्ल की भी जरूरत रहती है कि सिचुएशन देखते आप में त्वरित निर्णय लेने की क्षमता कितनी और कैसी है. शेरा इन मापदंडों पर लगातार खरे उतरते गए तो उन की चर्चा भी खूब होने लगी. जिस में शोहरत का तड़का सलमान खान अभिनीत फिल्म बौडीगार्ड से लगा.

बन जाते हैं फैमिली मेंबर इस फिल्म के टाइटल ट्रैक में दोनों एक साथ डांस करते दिखे थे और इस से भी खास बात यह थी कि सलमान ने यह फिल्म शेरा को डेडिकेट की थी. यह किसी नौकर को सम्मान देने की एक बेहतर मिसाल थी, जिस ने सलमान और शेरा को और नजदीक ला दिया. बाद में सलमान ने शेरा के बेटे टाइगर को सुलतान फिल्म का असिस्टेंट डायरेक्टर भी बनाया था.अच्छेबुरे दिनों में साथ निभाने वाले शेरा अब सलमान के फैमिली मेंबर बन गए हैं तो यह कतई हैरानी की बात नहीं. ठीक यही नामी ऐक्ट्रैस दीपिका पादुकोण के साथ भी हुआ, जो अपने बौडीगार्ड जलाल को भाई मानती हैं और रक्षाबंधन पर उन्हें राखी भी बांधती हैं. नायकों से ज्यादा नायिकाओं को फैंस का खतरा रहता है क्योंकि वे ज्यादा जोश में उन के नजदीक पहुंच कर उन्हें छू लेना चाहते हैं.

अब वह दौर गया, जब 90 फीसदी फिल्मों की शूटिंग मुंबई के स्टूडियोज में हो जाया करती थी और सितारे बंद गाड़ी मैं बैठ कर सेट पर पहुंच जाया करते थे. जिस की किसी को भनक भी नहीं लगती थी सिवाय सितारों के सेक्रेट्रियों के, जिन की अहमियत बौडीगार्ड से कमतर नहीं थी. फर्क इतना भर है कि सेक्रेट्री व्यावसायिक काम देखता है और बौडीगार्ड उन की हिफाजत का जिम्मा उठाता है. अब 90 फीसदी फिल्मों की शूटिंग देश के तमाम छोटेबड़े शहरों में होती है, इसलिए फिल्म स्टार्स को अपनी सुरक्षा की चिंता स्वाभाविक है. साल 2018 में जब दीपिका पादुकोण ने रणवीर सिंह से इटली के लेक कोमो शहर में शादी की थी, तब लड़की वालों की तरफ से प्रमुखता से जलाल वहां मौजूद थे.

हालांकि जलाल की सैलरी शेरा से आधी ही है, लेकिन वह दीपिका जैसी स्टार की हिफाजत में इतने से ही खुश हैं. यह खुशी दरअसल समय के साथसाथ बांडिंग बढ़ते जाने की भी है, जो एक खास तरह का भावनात्मक संबंध भी बना देती है फिर पैसा खास माने नहीं रखता. यही हाल शाहरुख खान और उन के बौडीगार्ड रवि सिंह का है, जो 10 साल से साथ हैं. शाहरुख खान की हर छोटीबड़ी खुशी और फंक्शन में दिखने वाले रवि को शेरा से भी ज्यादा सैलरी मिलती है तकरीबन 2.75 करोड़ रुपए सालाना, जो फिल्म इंडस्ट्री में सब से ज्यादा है.

लेकिन रवि शेरा की तरह लोकप्रिय नहीं हैं, शायद इसलिए भी कि वह सोशल मीडिया पर ज्यादा सक्रिय नहीं रहते. उलट इस के जलाल भी जब कभीकभार दीपिका की तसवीरें शेयर करते हैं तो उन की फैन फालोइंग बढ़ जाती है. आजकल के दौर में इस से बड़ा सुख और कोई है भी नहीं कि सोशल मीडिया पर आप के कितने ज्यादा फालोअर्स हैं. हिफाजत की तगड़ी कीमत सलमान, दीपिका और शाहरुख के अलावा तमाम बड़े फिल्म स्टार्स हिफाजत की कितनी कीमत अपने बौडीगार्ड्स को अदा करते हैं, इस पर नजर डालें तो आखें फटी रह जाती हैं. सुपरस्टार अमिताभ बच्चन की एक झलक पाने को प्रशंसक बेताब रहते हैं, जो उन्हें नजदीक से एक बार देख और छू लेता है उस की तो मानो जिंदगी धन्य हो जाती है.

लेकिन लोग उन तक न पहुंचें और पहुंचें तो कैसे पहुंचें, यह तय करते हैं. उन के बौडीगार्ड जितेंद्र शिंदे जो अमिताभ को घेरे रखने के डेढ़ करोड़ रुपए सालाना लेते हैं और अमिताभ खुशीखुशी देते भी हैं. आमिर खान के बौडीगार्ड युवराज घोरपडे की सैलरी 2 करोड़ रुपए सालाना है. युवराज पूरी मुस्तैदी से आमिर के इर्दगिर्द नजर आते हैं. कई बार आमिर गुपचुप यात्राएं करते हैं, जिन की खबर सिर्फ युवराज को ही रहती है. इन दोनों का साथ भी सालों का है और आमिर खान की विदेश यात्राओं में भी युवराज उन के साथ रहते हैं. युवराज की यह खूबी है कि वह आमिर के बिना कहे काफी कुछ समझ जाते हैं और एक बड़े सेलिब्रेटी का पर्सनल बौडीगार्ड होने का सोशल मीडिया पर ज्यादा ढिंढोरा नहीं पीटते.

आमिर खान के पास सिक्योरिटी की बड़ी टीम है, जिस के मुखिया युवराज हैं. श्री के नाम से मशहूर श्रेयस ठेले अपने बौस अक्षय कुमार की तरह ही फिट और तेजतर्रार हैं और हमेशा उन के साथ दिखते हैं. अक्षय के बेटे आरव की हिफाजत की भी जिम्मेदारी श्रेयस निभाते हैं. इस के एवज में उन्हें कोई सवा करोड़ रुपए सालाना मिलते हैं.  आमिर की तरह अक्षय भी इस भरोसेमंद और वफादार बौडीगार्ड को विदेशों में भी साथ रखते हैं और उन का पूरा खयाल रखते हैं. क्योंकि श्रेयस के रहते 15 साल में उन्हें कभी दुश्वारी का सामना नहीं करना पड़ा.

इन दोनों की बांडिंग का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अक्षय श्रेयस को राजू नाम से पुकारते हैं. क्रिकेटर विराट कोहली की अभिनेत्री पत्नी अनुष्का शर्मा ने भी अपने बौडीगार्ड प्रकाश सिंह को सोनू नाम दे रखा है. अकसर ग्रे कलर का सूट पहने रहने वाले सोनू की यह अहम जिम्मेदारी है कि कोई अनुष्का को टच भी न कर ले. अनुष्का और विराट दोनों सोनू को फैमिली मेंबर की तरह ही ट्रीट करते हैं. गौरतलब है कि विराट की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी सोनू के कंधों पर है. कोरोना की दूसरी लहर के दौरान सोनू अपनी मालकिन की सुरक्षा के लिए पीपीई किट पहने रहते थे. उन की सैलरी भी सवा करोड़ है.

इसी तरह श्रद्धा कपूर अपने बौडीगार्ड अतुल कांबले को 80 लाख रुपए सालाना देती हैं तो वहीं कैटरीना कैफ अपने बौडीगार्ड दीपक सिंह को साल भर में एक करोड़ रुपए पगार देती हैं. सनी लियोनी भी अपनी हिफाजत के लिए रखे यूसुफ इब्राहीम को डेढ़ करोड़ रुपए सालाना सैलरी के रूप में देती हैं. इसलिए जरूरी हैं बौडीगार्ड तमाम नामी फिल्म स्टार्स बौडीगार्ड रखते हैं क्योंकि उन्हें हिफाजत की गारंटी चाहिए रहती है. फिल्म इंडस्ट्री में अगर बेशुमार दौलत और शोहरत है तो खतरे भी कम नहीं हैं. अकसर बड़ा खतरा ज्यादा नजदीक रहता है, इसलिए बौडीगार्ड्स को मुंहमांगी सैलरी दी जाती है. क्योंकि इन अंगरक्षकों को बौस से पहले जागना और बाद में सोना नसीब होता है.

चौकन्नापन बौडीगार्ड्स की एक अतिरिक्त खूबी होती है. यानी जितना पैसा वे लेते हैं उतना सुखचैन उन्हें छोड़ना भी पड़ता है. अभी तक अच्छी बात यह है कि तमाम फिल्मी बौडीगार्ड अपने मालिकों के प्रति वफादार रहे हैं और फिल्म स्टार्स ने भी तगड़ी पगार के अलावा उन्हें अपनापन और सम्मान दोनों बराबरी से दिए हैं. क्योंकि वे समझते हैं कि जो काम बौडीगार्ड्स करते हैं, उस में आराम कम काम ज्यादा है. इन फिल्मी सितारों के लिए यह सोचना बेमानी है कि बौडीगार्ड रखना कोई स्टेटस सिंबल है बल्कि यह उन की खासी जरूरत है, जिसे पूरा करने के लिए वे अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा इन्हें देते हैं.

 

तांत्रिक ने भभूत खिलाकर परिवार के तीन लोगों की ली बली

35साल का योगेश उर्फ पप्पू नामदेव अपनी 32 वर्षीय पत्नी सुनीता व 12 साल के बेटे दिव्यांश के साथ मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के बानापुरा के वार्ड नंबर 3 दुर्गा कालोनी में रहता था. योगेश पान की दुकान चलाता था, जबकि पत्नी सुनीता घर पर ही आटा चक्की और किराना दुकान चलाती थी.

4 नवंबर की सुबह को कालोनी के लोग अपनी जरूरत का सामान लेने किराना दुकान पर आ रहे थे, लेकिन अभी तक योगेश की दुकान का दरवाजा नहीं खुला था. पड़ोसी और कालोनी के लोग इस बात को ले कर आश्चर्य भी व्यक्त कर रहे थे कि आज योगेश की दुकान क्यों नहीं खुली. क्योंकि अकसर योगेश सुबह जल्दी उठ कर किराना दुकान खोल लेता था. आसपास रहने वाले लोग अपने घरों में दीवाली की तैयारियों में जुटे थे. योगेश के घर के सामने किसी तरह की हलचल न देख कर लोगों ने यह अनुमान लगाया कि आज अमावस्या है और योगेश शायद अपने परिवार के साथ नर्मदा नदी में स्नान करने आंवली घाट गया होगा.

कालोनी के लोगों को पता था कि योगेश के मातापिता आंवली घाट में पूजन सामग्री की दुकान चलाते हैं. अकसर ही पूर्णिमा और अमावस्या पर योगेश अपने परिवार के साथ वहां जाता रहता था. पिछले पखवाड़े ही वह अपने 8 साल के बेटे को भी वहां छोड़ आया था. दीवाली की शाम करीब 4 बजे थे. तभी योगेश के घर के सामने एक बाइक आ कर रुकी. उन्होंने दरवाजे पर दस्तक दी. दरअसल, योगेश के घर के सामने उस की दुकान की शटर लगा हुआ था. वहीं से हो कर उस के घर के अंदर जाने का रास्ता था.

काफी देर तक योगेश के घर का दरवाजा (शटर) खटखटाया, मगर किसी ने शटर नहीं खोला. आवाज सुन कर पड़ोसी भी आ गए. बाइक पर सवार लोगों ने उन्हें बताया कि वे बनापुरा के ही रहने वाले हैं, आज आंवली घाट नर्मदा स्नान करने गए थे. वहां पर नारियल प्रसाद खरीदते समय योगेश के पिता से परिचय हुआ तो उन्होंने कहा, ‘‘आज दीपावली का दिन है योगेश और बच्चों के लिए देवी मां का प्रसाद ले जाना.’’ योगेश के पिता के भेजे प्रसाद को देने के लिए वे काफी देर से शटर खटखटा रहे हैं, मगर कोई अंदर से उन की बात सुन ही नहीं रहा.

उन दोनों युवकों की बात सुन कर आसपास रहने वाले लोग आ गए और उन्होंने शटर को जोरजोर से पीटना शुरू कर दिया. अंदर से कोई जवाब न मिलने पर एक युवक ने खिड़की से झांक कर देखा तो उस की आंखें फटी रह गईं. अंदर का मंजर खौफनाक था. कमरे के अंदर योगेश, उस की पत्नी और बेटे के रक्तरंजित हालत में पलंग पर पड़े हुए थे. जैसे ही कालोनी में यह खबर फैली तो योगेश के घर के सामने कालोनी के लोग जमा होने लगे. इसी बीच किसी ने सिवनी मालवा पुलिस थाने में फोन कर के मामले की जानकारी दे दी.

सिवनी मालवा पुलिस थाने के टीआई जितेंद्र सिंह यादव को जैसे ही इस घटना की सूचना मिली, उन्होंने जिले के आला अधिकारियों को सूचना दी और पुलिस बल के साथ बनापुरा की दुर्गा कालोनी पहुंच गए. योगेश के मकान में सामने की तरफ 2 शटर लगे हुए थे. एक शटर में किराना दुकान, जबकि दूसरी में आटा चक्की लगी हुई थी. आटा चक्की वाले तरफ से ही योगेश के मकान में अंदर जाने का रास्ता था.

पुलिस के वहां पहुंचते ही जब आटा चक्की दुकान का शटर खोल कर देखा तो वह अंदर से बंद नहीं था. जैसे ही पुलिस टीम ने शटर को उठाया, वह आसानी से खुल गया. उसी रास्ते से पुलिस टीम ने योगेश के घर के अंदर प्रवेश किया. अंदर बैडरूम में एक पलंग पर योगेश नामदेव उर्फ पप्पू, पत्नी सुनीता नामदेव और दूसरे पलंग पर उस के 12 साल के बेटे दिव्यांश के शव पड़े हुए थे. तीनों के सिर पर चोट के साथ गले पर किसी धारदार हथियार के निशान साफ दिख रहे थे.

पलंग समेत आसपास दीवार पर खून के छींटे साफ दिखाई दे रहे थे. घर के कमरे में सामान बिखरा हुआ था. एक कमरे में जलता हुआ दीपक और पूजा की सामग्री रखी हुई थी. इस दिल दहला देने वाली घटना की खबर सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो चुकी थी. खबर मिलते ही होशंगाबाद जिले के एसपी डा. गुरुकरन सिंह, एएसपी अवधेश प्रताप सिंह, एसडीपीओ सौम्या अग्रवाल, फोरैंसिक टीम और डौग स्क्वायड मौके पर आ चुकी थी. घटना की खबर आंवली घाट में रहने वाले योगेश के पिता को दी गई. योगेश का एक बेटा अपने दादादादी के पास रहता था. खबर मिलते ही आंवली घाट से योगेश के मातापिता उस के बेटे को ले कर आ चुके थे. अपने बेटे, बहू और पोते की मौत के सदमे से उन का रोरो कर बुरा हाल था.

पुलिस ने तीनों शवों को बरामद कर दूसरे दिन सुबह सिवनी मालवा के सरकारी अस्पताल में पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया, जिस के बाद तीनों शवों को योगेश के 70 साल के बूढ़े पिता विनोद कुमार नामदेव को सौंप दिया गया. घर से तीनों की अर्थियां एक साथ निकलीं तो दुर्गा कालोनी के रहवासियों की आंखें नम हो गईं. दीवाली पर रोशनी की जगह कालोनी में चारों तरफ सन्नाटा पसरा रहा. एसपी गुरुकरण सिंह, एएसपी अवधेश प्रताप सिंह ने मौके पर जा कर जांचपड़ताल कर घटनास्थल के कमरे को पूरी तरह सील करने का आदेश दिया. और हत्यारों की तलाश के लिए एसडीपीओ सौम्या अग्रवाल, टीआई जितेंद्र सिंह यादव, जिला पुलिस लाइन से इंसपेक्टर उमाशंकर यादव, गौरव सिंह बुंदेला के नेतृत्व में 4 अलगअलग टीमें गठित कीं.

खोजी कुत्ते के द्वारा घटनास्थल का निरीक्षण कराया गया. खोजी कुत्ते के बानापुरा रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म-1 तक जा कर रुकने से यह अनुमान लगाया गया कि शायद हत्या के आरोपी वारदात को अंजाम देने के बाद किसी ट्रेन से या प्लेटफार्म से गुजरे होंगे. दुर्गा कालोनी में दीपावली का त्यौहार मातम में बदल चुका था. एक साथ हुए 3 मर्डर की वजह से कालोनी के लोग दहशत में थे. पुलिस ने दुर्गा कालोनी के लगभग दरजन भर महिला पुरुषों के बयान दर्ज कर हत्या के कारणों को जानने की कोशिश की.

नामदेव परिवार के 3 सदस्यों की हत्या की वजह जानने के लिए पुलिस ने मृतक योगेश के पिता विनोद नामदेव, माता रुकमणी एवं 8 साल के बेटे से आंवली घाट में जा कर गहन पूछताछ की.

‘‘आप के बेटे की किसी से कोई रंजिश थी क्या?’’ टीआई जितेंद्र सिंह ने विनोद नामदेव से पूछा.

‘‘नहीं साहब, पप्पू की किसी से कोई रंजिश नहीं थी, वह तो दिन भर अपनी दुकान पर ही रहता था.’’ विनोद ने कहा.

‘‘तो फिर किसी पर शक है तुम्हें?’’

‘‘नहीं साहब, कुछ समझ नहीं आ रहा. हां, इतना जरूर है कि पिछले 2 महीने से पप्पू के घर पर अजीब तरीके से चोरी हो रही थी.’’

‘‘तो फिर चोरी की रिपोर्ट दर्ज क्यों नहीं कराई.’’

‘‘साहब, पप्पू बताता था कि घर की अलमारी से बहू सुनीता के गहने और रुपए चोरी हो रहे थे, जिस का पता लगाने के लिए योगेश ने घर पर एक तांत्रिक से तांत्रिक क्रियाएं जरूर कराई थीं.’’

विनोद नामदेव के मुंह से तांत्रिक क्रियाएं कराने की बात सुन कर पुलिस टीम के कान खड़े हो गए. पुलिस ने घटनास्थल पर जलते हुए दीपक और पूजन सामग्री को देखा था, इस से पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि दीपावली के एक दिन पहले तंत्रमंत्र का खेल हुआ था.

‘‘तांत्रिक क्रियाएं करने वाला तांत्रिक कौन था?’’ पुलिस ने विनोद से पूछा.

‘‘साहब, हरदा जिले का गणेश काशिव अकसर योगेश के घर पर आ कर तंत्रमंत्र करता रहता था. वह चोरी गई वस्तुओं को वापस दिलाने के लिए तंत्रमंत्र का सहारा लेता था. घटना वाले दिन भी गणेश मुझ से बाइक में पैट्रोल भरवाने के लिए पैसे ले कर आया था.’’ विनोद नामदेव ने साफसाफ बता दिया.

पुलिस ने योगेश के घर सहित दुर्गा कालोनी में सुरक्षा बढ़ा कर आरोपियों की तलाश शुरू की तो कालोनी के लोगों से पता चला कि योगेश के घर तांत्रिक क्रियाओं को हरदा जिले के आदमपुर गांव का तांत्रिक गणेश काशिव अंजाम देता था. तांत्रिक पिछले कुछ दिनों से मृतक के घर बारबार आ रहा था. दीपावली के एक दिन पहले भी लोगों ने उसे योगेश के घर पर देखा था. पुलिस को तीनों मृतकों योगेश नामदेव, पत्नी सुनीता बाई व बच्चे दिव्यांश के शवों पर चोटों के निशान मिले थे. मृतकों के पास पूजा का स्थान एवं उस के पास पड़े खून के छींटे, जलता हुआ दीपक ये सभी साक्ष्य पुलिस के लिए तांत्रिक क्रियाओं की तरफ इशारा कर रहे थे.

योगेश के मौसेरे भाई से भी तांत्रिक गणेश के पूजा करने की बात पुलिस को पता चली. पुलिस की एक टीम हरदा जिले के हंडिया थाना क्षेत्र के गांव आदमपुर पहुंची और शक के आधार पर तांत्रिक गणेश काशिव को ले कर सिवनी मालवा आ गई. गणेश ने तांत्रिक क्रियाएं करने की बात तो स्वीकार कर ली, मगर हत्या की बात से अंजान बनने की कोशिश करता रहा. पुलिस ने जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो वह जल्दी ही टूट गया. पुलिस पूछताछ में तांत्रिक गणेश काशिव ने अपने साथी मोनू उर्फ मोहन बामने के साथ मिल कर 3-4 नवंबर, 2021 की रात 12 बजे अमावस्या को मृतक के घर पूजा करने और उन की हत्या करने का जुर्म कुबूल कर लिया.

आरोपी गणेश ने बताया कि उस ने इंद्रजाल नामक पुस्तक से तंत्र विद्या सीखी थी. उस ने पुलिस के सामने दावा किया कि वह गायब पैसा और गायब सामग्री को वापस दिलाने की तंत्र विद्या अच्छी तरह जानता है. वैज्ञानिक अविष्कारों के बावजूद भी पढ़ेलिखे परिवार द्वारा रुपए और गहने वापस पाने के लिए अंधविश्वास के चक्कर में पड़ कर तांत्रिक से तंत्रमंत्र कराने की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

70 साल के विनोद नामदेव मूलत: होशंगाबाद जिले के आंवली घाट के निवासी हैं. नर्मदा नदी के तट पर पूजन सामग्री की दुकान से उन के परिवार की रोजीरोटी चलती है. विनोद का एकलौता बेटा योगेश पढ़लिख कर जवान हुआ तो वह काम की तलाश में गांव से 30 किलोमीटर दूर बनापुरा आ गया. बनापुरा में योगेश ने पान की दुकान खोल ली. योगेश के बनाए पान के लोग दीवाने हो गए. योगेश की पान की दुकान चल पड़ी तो रोजाना हजारों रुपए की कमाई होने लगी. सन 2008 में योगेश की शादी सुनीता से हो गई. शादी के कुछ समय बाद ही बनापुरा की दुर्गा कालोनी में योगेश और सुनीता ने प्लौट ले कर मकान बना लिया.

2 बेटे दिव्यांश और अक्षांश के जन्म के बाद सुनीता के कहने पर योगेश ने घर पर आटा चक्की और छोटी सी किराना दुकान खोल ली. योगेश घर के बाहर पान की दुकान चलाता और सुनीता घर पर रह कर आटा चक्की और किराना दुकान चलाने लगी. सुबह बच्चों को स्कूल भेज कर वह दिन भर दुकान चलाने में व्यस्त रहती. 2021 के सितंबर महीने की बात है. सुनीता अपनी अलमारी में रखे गहने देख रही थी, मगर उसे उस की सोने की बालियां और अंगूठी नहीं मिल रही थी. परेशान हो कर उस ने अपने पति योगेश को यह बात बताई तो योगेश ने कहा, ‘‘अच्छे से देख लो सुनीता, तुम ने ये चीजें कहीं दूसरी जगह रख दी होंगी.’’

सुनीता ने अलमारी का कोनाकोना छान कर देख लिया, मगर उसे अंगूठी और कान की बालियां नहीं मिलीं. इस के हफ्ते भर बाद जब सुनीता ने अपना पर्स खोल कर देखा तो उस के करीब 5 हजार रुपए पर्स से गायब थे. सुनीता इस बात को ले कर परेशान रहने लगी. उस ने योगेश से कहा, ‘‘देखो, घर से रुपए और अंगूठी, कान की बालियां गायब हो गई हैं, जरूर कोई हमारे ऊपर जादूटोना कर रहा है.’’

‘‘तुम कैसी दकियानूसी बातें कर रही हो, घर से कैसे कोई चीज गायब हो सकती है, तुम्हें कुछ याद रहता नहीं. कहीं रख दी होगी.’’ योगेश ने उसे झिड़कते हुए कहा.

सुनीता के दिमाग में शक का कीड़ा घुस गया था, उसे लग रहा था कि किसी ने उस के रुपए और गहने गायब कर दिए हैं. इसी दौरान जब योगेश की मौसी का लड़का मनीष उस के घर आया तो सुनीता ने उसे रुपए और गहने गायब होने की बात बताई तो मनीष बोला, ‘‘भाभी, मैं एक तांत्रिक बंजारा बाबा को जानता हूं, वह लोगों के गुम हो गए सामान को वापस दिला देता है.’’

‘‘भैया, तुम बंजारा बाबा से बात कर लो न, मुझे भी मेरे रुपए और गहने वापस चाहिए.’’ सुनीता के तो जैसे मन की मुराद पूरी हो गई, उस ने चहकते हुए मनीष से कहा.

मनीष 2-3 दिन बाद बंजारा बाबा को ले कर योगेश के घर आ गया. बंजारा बाबा का असली नाम गणेश काशिव था. 25 साल का गणेश काशिव हरदा जिले के हंडिया थाना क्षेत्र के गांव आदमपुर का रहने वाला था. गणेश को जिस उम्र में स्कूल की किताबें पढ़नी चाहिए थीं, उस उम्र में वह तंत्रमंत्र की किताबें पढ़ने लगा था. तंत्रमंत्र और झाड़फूंक में उस का नाम आसपास के इलाकों में प्रसिद्ध हो गया था. गणेश झाड़फूंक और तांत्रिक साधना के लिए बनापुरा आता रहता था. वह लोगों को बताता था कि उस के पास इंद्रजाल नाम की पुस्तक है, जिस में जमीन में गड़े धन का पता लगाने और चोरी किया धन वापस करने के लिए तंत्रमंत्र करने के उपाय बताए गए हैं.

बंजारा बाबा अकसर अमावस्या की रात को सुनसान जगह पर तंत्र साधना करता था. उस के इस काम में मोहन बामने उर्फ मोनू उस की मदद करता था. 30 साल का मोनू भी उस के गांव के पास रीझगांव का रहने वाला था. हमारे समाज में अंधविश्वास की जड़ें भी अमरबेल की तरह इस तरह फैली हुई हैं कि पढ़ेलिखे लोग भी इसे छोड़ने को तैयार नहीं हैं. सुनीता और योगेश भी तांत्रिक के बिछाए इंद्रजाल में फंस ही गए. गणेश अकसर योगेश के घर आ कर कहता कि उस के घर में किसी प्रेत का साया है, इसी वजह से घर का सामान गायब हो रहा है. गणेश ने योगेश को 6 ताबीज बना कर देते हुए कहा था कि इन्हें घर के सभी लोग अपने गले में हमेशा पहन कर रखें तो प्रेत का साया उन का कुछ नहीं बिगाड़ सकता.

दीपावली के सप्ताह भर पहले गणेश ने सुनीता को बताया कि दीपावली के एक दिन पहले की रात में वह उस के घर आ कर तांत्रिक साधना करेगा, इस से उस के घर से गायब सभी सामान घर में आ जाएगा. उस ने तांत्रिक साधना के लिए कुछ सामान की लिस्ट बना कर उसे दी थी. योगेश काफी मशक्कत के बाद तांत्रिक क्रिया में उपयोग होने वाले सामान जुटा पाया था. तांत्रिक गणेश के बनाए प्लान के मुताबिक वह अपने सहयोगी मोनू को ले कर योगेश के घर रूप चौदस की शाम ही पहुंच गया.

गणेश ने इंद्रजाल नाम की तंत्रमंत्र से संबंधित पुस्तक में पढ़ा था कि अमावस्या की मध्यरात्रि में किसी की बलि चढ़ाने से उसे तांत्रिक शक्तियां प्राप्त हो जाती हैं. इन शक्तियों के द्वारा वह जमीन में गड़े धन का पता लगाने के साथ खोए हुए रुपए, जेवरात वापस ला सकते हैं. गणेश तंत्रमंत्र के जरिए उन शक्तियों को हासिल करना चाहता था. इसलिए उस ने अपने साथी मोनू की मदद से दीपावली के एक दिन पहले की मध्यरात्रि में तांत्रिक अनुष्ठान कर के बलि चढ़ाने का प्लान बनाया था.

योजना के मुताबिक, वे रात 9 बजे ही पूजापाठ की तैयारियों में लग गए थे. योगेश के घर में बने एक कमरे में दीपक जला कर पूजा में उपयोग होने वाले सामान को सजा कर रख लिया गया था. सुनीता पूजा की तैयारियों के साथ खाना बनाने की तैयारी भी कर रही थी, क्योंकि गणेश ने सुनीता से बोल दिया था कि खाना तैयार कर परिवार के लोग खा लें, तांत्रिक अनुष्ठान के बाद वह खाना खा कर ही घर जाएगा.

गणेश ने एक कागज की पुडि़या सुनीता को देते हुए कहा था कि इसे सब्जी में डाल देना, इस में अभिमंत्रित भभूत (भस्म) है, जो हर बला से सब को बचा कर रहेगी. सुनीता बहुत खुश थी, उसे भरोसा था कि बंजारा बाबा के द्वारा किए जाने वाले तांत्रिक अनुष्ठान से उस के गहने वापस मिल जाएंगे. बाबा द्वारा दी गई भभूत उस ने सब्जी में डाल दी. रात के 11 बजने वाले थे तभी बाबा ने सुनीता को बुला कर कहा, ‘‘आप तीनों खाना खा कर थोड़ा आराम कर लें, तांत्रिक अनुष्ठान में 2 घंटे से भी ज्यादा का समय लगेगा.’’

तांत्रिक अनुष्ठान देखने को बाबा ने पहले ही मना कर दिया था, इसलिए सुनीता, योगेश और दिव्यांश ने एक साथ बैठ कर खाना खाया और अपनेअपने पलंग पर लेट गए. बिस्तर पर पहुंचते ही वे कब बेहोश हो गए, उन्हें पता ही नहीं चला. इधर जैसे ही तांत्रिक अनुष्ठान खत्म हुआ तो बाबा ने मोनू को अंदर जा कर देखने को कहा. मोनू ने घर के अंदर जा कर देखा तो तीनों सो चुके थे. उस ने तसल्ली के लिए आवाज दे कर पुकारा, मगर योगेश का परिवार सब्जी में मिलाई गई जहरीली भभूत के असर से बेहोश हो चुका था.

मौके का फायदा उठा कर दोनों ने तांत्रिक क्रिया में इस्तेमाल की गई धारदार कुल्हाड़ी निकाल ली. देखते ही देखते तीनों के सिर पर जोरदार प्रहार कर उन का गला भी रेत दिया. कुल्हाड़ी के वार से खून के छींटे दोनों के कपड़ों पर पड़ चुके थे. तीनों का काम तमाम कर गणेश और मोनू ने अलमारी में रखे गहने और रुपए निकाले और सारा सामान समेट कर वे बाइक से भाग गए.

जिस ढंग से दोनों ने घटना को अंजाम दिया था, उन्हें पकड़े जाने का जरा भी खौफ नहीं था. इसलिए वे रात को ही अपनी बाइक से हरदा जिले के अपनेअपने गांव पहुंच गए थे. पुलिस की सघन पूछताछ में जब इस बात का खुलासा हुआ कि गणेश और मोनू तंत्रमंत्र के लिए बनापुरा आते थे, वे पुलिस की नजरों से ज्यादा दिन छिप नहीं सके. सिवनी मालवा पुलिस ने तांत्रिक गणेश और मोनू को उन के गांव से गिरफ्तार कर लिया. आरोपियों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 460, 380 के तहत अपराध दर्ज कर 8 नवंबर, 2021 को दोनों को कोर्ट में पेश कर एक दिन के पुलिस रिमांड पर ले कर पूछताछ में सारे मामले का खुलासा हुआ.

तांत्रिक की निशानदेही पर घटना में प्रयुक्त कुल्हाड़ी, खून से सने हुए कपड़े और योगेश के घर से चुराए हुए रुपए, सोने का मंगलसूत्र बरामद कर लिया. 10 नवंबर को दोनों को कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें होशंगाबाद जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों और मीडिया रिपोर्ट पर आधारित

200 लोगों को पैरों तले रौंद दिया हाथियों के झुंड ने

खतरे में हैं हाथी

इंसान अपने स्वार्थ के लिए हाथियों का शिकार करना बंद नहीं कर रहा है. तो वहीं गुस्सैल हाथियों की चपेट में आकर हर साल अनेक लोग अपनी जान से हाथ धो रहे हैं. आखिर इंसान और हाथियों के बीच क्यों बढ़ रहा है टकराव? और इस दिशा में सरकार ने उठाया है क्या कदम?

साइलेंट वैली नैशनल पार्क, केरल में 27 मई, 2020 को मादा हाथी की दर्दनाक मौत की दास्तान आप को जरूर याद होगी. 15 वर्ष की गर्भवती मादा हाथी को किसी सिरफिरे ने पटाखों से भरा अनानास खिला दिया था. पटाखे मुंह में फटने से उस का जबड़ा बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था. इस वजह से 2 सप्ताह तक वह न तो कुछ खा सकी और न पानी पी सकी. 

मादा हाथी को हुए असहनीय दर्द का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उसे इतनी जलन और दर्द हुआ कि वह कई दिनों तक झील में खड़ी रही. आखिरकार, कमजोरी से वह झील में गिरी और डूबने से उस की और गर्भ में पल रहे बच्चे की दर्दनाक मौत हो गई.

इस घटना के बाद वन्यजीव संरक्षण के लिए काम कर रहे संगठनों के लोगों ने काफी होहल्ला मचाया और वक्त गुजरते ही यह किस्सा भी लोगों की जुबान से गायब हो गया. भारत में हाथियों और इंसानों के बीच खूनी संघर्ष आज भी जारी है. दुनिया के कई देशों में हाथी अब भी संकट में हैं, भारत में पिछले 8 सालों में हाथियों की संख्या में इजाफा तो हुआ है, मगर हाथियों की मौत भी कम नहीं हुई है.

वल्र्ड एनिमल प्रोटेक्शन संस्था के अनुसार इंसानों और हाथियों के बीच संघर्ष की वजह से भारत में औसतन रोजाना एक व्यक्ति की मौत होती है, जिस में अधिकांश किसान होते हैं. पिछले 6 सालों में हाथियों और इंसानों के बीच टकराव में जितनी मौतें हुई हैं, उन में से 48 फीसदी केवल ओडिशा, पश्चिम बंगाल और झारखंड में हुई हैं. अगर असम, छत्तीसगढ़ और तमिलनाडु को भी इस में जोड़ दें तो इन 6 राज्यों में मरने वालों की संख्या 85 प्रतिशत है. 

इन राज्यों के किसानों की शिकायत रहती है कि जंगली हाथी उन की फसलें बरबाद कर रहे हैं, इस से उन्हें भारी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ रहा है. इन राज्यों के लोगों का कहना है कि आबादी वाले क्षेत्रों में जंगली हाथियों की घुसपैठ लगातार बढ़ रही है.

 

 

केंद्रीय वन मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार भारत में हाथी और इंसानों के टकराव में हर साल 400-500 लोगों की मौत होती है, जबकि 100 हाथियों को भी इस टकराव में जान गंवानी पड़ती है.

जिस तरह देश में बाघों के संरक्षण के लिए प्रोजेक्ट बनाया गया है, उसी तरह धरती के सब से विशालकाय और आलीशान जीव हाथी को भी बाघों की तरह शेड्यूल एक के तहत संरक्षण प्राप्त है. बावजूद इस के भारत समेत दुनिया के कई देशों में इन की स्थिति काफी दयनीय बनी हुई है. 

आलम यह है कि तकरीबन 4 लाख आबादी वाले अफ्रीकी हाथियों पर गंभीर संकट मंडरा रहा है और लगभग 40 हजार जनसंख्या वाले एशियाई हाथी विलुप्त होने की कगार पर हैं. हाथियों की स्थिति में सुधार लाने के लिए 12 अगस्त, 2012 से वार्षिक विश्व हाथी दिवस (World Elephant Day) मनाया जाता है, जिस का उद्ïदेश्य हाथी के प्रति लोगों को जागरूक करना और इंसानों व हाथियों के बीच होने वाले संघर्ष का स्थाई समाधान खोजना है.  

आज विलुप्त होने की कगार पर खड़े हाथियों को भी इंसानों से ऐसे ही वचन की जरूरत है. ताकि ये विशालकाय जीव न केवल एक सुरक्षित जिंदगी जी सके, बल्कि इसे गुलामी की बेडिय़ों से भी मुक्ति मिले.

हाथियों के संरक्षण के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1992 में केंद्रीय वन मंत्रालय द्वारा प्रायोजित हाथी परियोजना (Project Elephant) की शुरुआत की थी. इस प्रोजेक्ट के 3 मुख्य उद्ïदेश्य थे, पहला हाथियों, उन के प्राकृतिक निवास और उन के कारिडोर को सुरक्षित करना. दूसरा इंसानों व जानवरों के बीच होने वाले संघर्ष का समाधान तलाशना और तीसरा बंधुआ हाथियों की स्थिति में सुधार  लाना.

केंद्रीय वन मंत्रालय ने एलिफेंट प्रोजेक्ट के तहत वर्ष 2017 में देश में हाथियों की गणना कराई थी. इस गणना के मुताबिक देश में हाथियों की कुल संख्या 29,964 थी. इन से तकरीबन 3 हजार हाथी विभिन्न लोगों, संस्थाओं अथवा मंदिरों द्वारा बंधक बना कर रखे गए हैं. एशियाई हाथियों की सबसे ज्यादा संख्या भारत में है, जो पूरी दुनिया में मौजूद एशियाई हाथियों की कुल संख्या का तकरीबन 60 फीसदी है.

मंत्रालय की रिपोर्ट में भारत में इंसानों व हाथियों के बीच संघर्ष को बड़ी चुनौती बताया है. प्रत्येक वर्ष हाथियों की वजह से एलिफेंट रेंज के करीब रहने वाले किसानों को लाखों रुपए की फसल और संपत्ति का नुकसान झेलना पड़ता है. ऐसी स्थिति से निपटने और हाथियों के उचित प्रबंधन की जिम्मेदारी राज्य वन विभाग की है.

अलगअलग राज्यों में वन विभाग ने इंसान-हाथी संघर्ष को कम करने के लिए स्थानीय परिस्थितियों को देखते हुए अल्पकालिक और स्थाई योजनाएं तैयार की हैं. बावजूद हाथी और इंसान के बीच संघर्ष थमने का नाम नहीं ले रहा है.

वन्य जीवों को बचाने के लिए वन विभाग करोड़ों रुपए खर्च तो करता है, लेकिन न तो द्वंद्व रुक रहा है न ही हाथियों की मौत रुक रही है. विशेषज्ञ कहते हैं कि वन तब तक सलामत रहेगा, जब तक उस में वन्य जीव होंगे. 

हाथियों की कब्रगाह क्यों बना छत्तीसगढ़

पिछले 23 सालों में छत्तीसगढ़ में 70 हाथियों की मौत हो चुकी है. वहीं, उन के कुचलने से 195 इंसानों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है. यहां इंसान और हाथी की लड़ाई जारी है. आज भी हाथी कई मकानों पर हमला पर उन्हें ध्वस्त कर देते हैं.

 

 

 

इस के अलावा हाथी रहवास में कोल ब्लौक आरटीआई कार्यकर्ता और वन्यजीव प्रेमी सजल मधु ने बताया कि हाथियों की मौत के आंकड़े चौंकाने वाले हैं. एलिफैंट कारिडोर बनाने के बजाय हाथियों के रहवास क्षेत्र में 17 कोल ब्लौक की अनुमति दी जा चुकी है.

छत्तीसगढ़ के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) सुधीर अग्रवाल ने बताया कि छत्तीसगढ़ में  लेमरू और बादलखोल तमोर पिंगला नाम के 2 हाथी रिजर्व हैं. 

क्यों बढ़ रहा है हाथी और इंसानों में टकराव

बीते 3 सालों में हाथियों से जानमाल की संख्या भी बेहद बढ़ी है. इन 3 सालों में हाथियों की वजह से हुए नुकसान पर कुल 58,581 प्रकरण बनाए गए. इस में वन विभाग द्वारा साढ़े 53 करोड़ रुपए का मुआवजा बांटा गया. सब से अधिक मुआवजा प्रकरण कोरबा, सरगुजा, धरमजयगढ़, जसपुर, कटघोरा, महासमुंद और गरियाबंद में बांटा गया.

छत्तीसगढ़ के बाद मध्य प्रदेश का शहडोल संभाग हाथी और इंसानों के टकराव का नया केंद्र बन गया है. पिछले 4 सालों में हाथी और मानव संघर्ष में तकरीबन 25 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. वहीं हाथियों द्वारा बड़ी संख्या में ग्रामीणों के घरों को क्षतिग्रस्त कर फसलों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है. 

2018 में छत्तीसगढ़ की सीमा पार कर उमरिया जिले के बांधवगढ़ में 40 हाथियों का समूह यहां आ गया था, जिस ने अपना रहवास यहीं पर बना लिया है. इस समूह के सदस्यों की संख्या अब बढ़ कर 80 के करीब हो गई है और ये अलगअलग समूहों में बंट गए हैं. यही जंगली हाथी ग्रामीणों की फसलों और घरों को नुकसान पहुंचा रहे हैं.

बिगड़ैल हाथियों को काबू में करने के लिए बहुत सी बातों का ध्यान रखना जरूरी है. पिछले 20 सालों से छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में हाथियों को चला रहे चंद्रभान महावत टिप्स देते हुए बताते हैं कि कोई भी हाथी 2 चीजों से ही काबू में रहता है. एक प्यार दूसरा मार, प्यार से कंट्रोल करने पर हाथी हमेशा शांत रहता है और उस के गुस्से में आने के चांस कम ही रहते हैं. 

जब कभी हाथी बिगड़ भी जाते हैं तो बहुत जल्दी कंट्रोल में आ जाते हैं. लेकिन जो जानवर मार से काबू में आते हैं, अगर वह बिगड़ जाए तो बवाल मच जाता है. हाथी बहुत बड़ा जानवर होता है और उस के बिगडऩे पर स्थिति कंट्रोल से बाहर हो जाती है. कभीकभी ऐसी स्थिति बनती है कि केवल हथिनी ही उन को कंट्रोल कर पाती है.

चंद्रभान बताते हैं कि अगर हाथी बेकाबू हो कर रहवासी इलाके या किसानों के खेतों के आसपास हैं और आप चाहते हैं कि फसलों को नुकसान न हो. 

ऐसी स्थिति में पटाखे जला कर, ढोल बजा कर, तेज गाना बजा कर या किसी भी तरह का शोर मचा कर उन्हें भगाया जा सकता है. शोर सुन कर वह जंगल की तरफ चले जाते हैं. लेकिन उन के पास भूल कर भी न जाएं, बिगड़ैल हाथी के पास जाने पर जान का खतरा बना रहता है.

भारत में तेजी से हाथियों की संख्या में गिरावट हो रही है. इस की सब से बड़ी वजह इन का अवैध शिकार है. कुछ लोग इन का हाथी दांतों के लिए अवैध शिकार कर रहे हैं. हाथी दांत की विदेशी बाजार में काफी मांग रहती है. इस का फायदा उठाने के लिए शिकारी इन का धड़ल्ले से शिकार कर रहे हैं. 

इन के दांतों का इस्तेमाल साजसजावट की चीजों को बनाने से ले कर शक्तिवर्धक दवाओं तक में भी धड़ल्ले से हो रहा है. ब्लैक मार्केट में हाथी दांत की कीमत लगभग एक लाख रुपए से शुरू होती है.

अब तक का सब से लंबा हाथी दांत 138 इंच का दर्ज हुआ है, जिस का वजन लगभग 142 किलोग्राम था. आप को बता दें कि हाथी की सामान्य आयु 70 वर्ष तक होती है और वे स्पर्श, दृष्टि, गंध और ध्वनि से संवाद करते हैं. हाथी बहुत बुद्धिमान होते हैं तथा वे भावनात्मक रूप से भी काफी परिपूर्ण होते हैं. किसी करीबी की मृत्यु हो जाने पर उन्हें उदास या रोते हुए भी देखा गया है.

देश के हाथी प्रभावित 10 बड़े राज्यों में सब से कम हाथी छत्तीसगढ़ में हैं, लेकिन 9 राज्यों में हाथियों की संख्या की तुलना में हाथियों से जनहानि सब से अधिक छत्तीसगढ़ में हुई है. छत्तीसगढ़ में आज की स्थिति में 247 हाथी हैं. बीते 3 सालों में इन हाथियों ने 200 लोगों को मौत के घाट उतारा है. 

छत्तीसगढ़ की तुलना में कनार्टक, केरल, असम, तमिलनाडु, उत्तराखंड में कई गुना अधिक हाथी हैं. कनार्टक में 6 हजार से अधिक हाथी हैं, लेकिन हाथियों से 3 सालों में 69 लोगों की मौत हुई. 

अन्य राज्यों में भी हाथियों की संख्या 24 गुना अधिक है, लेकिन हाथी और मानव के बीच टकराव की संख्या बेहद कम है. छत्तीसगढ़ में हाथियों की संख्या सब से कम होने के बावजूद जिस तरह से हादसे बढ़ रहे हैं, उसे ले कर सवाल उठने लगे हैं. हाथियों की संख्या का डंग पद्धति से की गई गणना की रिपोर्ट केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी की है.

हाथी गांव की ओर न आएं, इस के लिए छत्तीसगढ़ में हाथी विकर्षण बैरिकेड लगाए गए हैं, ताकि हाथी गांव में न घुसें. प्रदेश में कुल 53 हाथी मित्र दलों का गठन किया गया है और सजग सौफ्टवेयर बनाया गया है. 

गांव में अलर्ट सिस्टम भी बनाया गया है, जिस के जरिए हाथी के करीब आते ही गांव वालों को अलर्ट कर दिया जाता है. प्रदेश के 9 से ज्यादा प्रभावित वनमंडलों में हाथियों की बिजली के करंट से मरने की घटनाओं को रोकने के लिए 4 निजी संस्थाओं के माध्यम से अवैध हुकिंग व खुले करंट तारों को ठीक कराने का काम भी किया गया है.

हाथियों के एक स्थान से दूसरे स्थान पर पलायन के कई  कारण हैं. दक्षिण भारत की स्थिति को देखें तो वहां के जंगलों में बड़ी संख्या में हाथी पाए जाते हैं. लेकिन विगत कुछ समय से दक्षिण भारत के जंगलों में घनेणी और रानमोडी जैसी वनस्पतियों की कमी होने की वजह से हाथियों सहित दूसरे शाकाहारी जीवों के लिए प्राकृतिक भोजन की कमी हो गई है. कमोबेश यही हालत पानी को ले कर नजर आते हैं. 

एशियाई हाथियों की संख्या में तेज गिरावट का एक कारण उन के आवासीय क्षेत्र का लगातार सिकुड़ता जाना है. विकास योजनाओं के कारण उन के रहने के ठिकाने तेजी से नष्ट हो रहे हैं. एशिया के कुछ हिस्सों में हाथी दांत के लिए हाथियों का व्यापक रूप से शिकार किया जाता है. नतीजतन उन की संख्या दिनबदिन घटती जा रही है.

हाथियों के अधिकांश आवासों से रेलमार्गों का जाल बिछ चुका है. सरकार ट्रेनों की संख्या और उन की गति को बढ़ाने के लिए नागरिकों की मांगों को अधिक तरजीह दे रही है. वहीं, तेज भागती ट्रेन की टक्कर में हाथियों की मृत्यु दर का आंकड़ा भी बढ़ता ही जा रहा है.

इस के अलावा हाथियों की संख्या घटने का एक कारण बिजली के तारों से उलझ कर करंट लगने से हादसे का शिकार होना भी है. कुछ सालों में हाथियों की ज्यादातर मौतें बिजली के झटके से हो रही हैं, क्योंकि ज्यादातर जंगली जगहों पर बिजली पहुंच तो गई है, लेकिन वहां अमूमन बिजली के नंगे तार लटके रहते हैं. 

इस तरह की लापरवाही का परिणाम यह होता है कि जब कभी कोई हाथी इन बिजली के तारों में फंस जाता है तो करंट से उस की मौत हो जाती है.

भारतीय हाथियों की ही यदि बात करें तो यह मुख्यत: मध्य एवं दक्षिणी पश्चिमी घाट, उत्तरपूर्व भारत, पूर्वी एवं उत्तरी भारत तथा दक्षिणी प्रायद्वीप के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं. इन्हें भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची-1 में तथा पशुपक्षियों की संकटग्रस्त प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय में शामिल किया गया है. 

कैसे होती है हाथियों की गणना

आप की जानकारी के लिए बता दें कि भारत में हर 5 साल में हाथियों की गिनती होती है. इस के लिए 4 अलग विधियों का इस्तेमाल पिछले साल किया गया था. 

इस में पहली विधि के अंतर्गत सभी राज्य सरकारों को आदेश दिया गया कि वो डिजिटल मैप तैयार करें, ताकि जंगलों और उन से बाहर मौजूद हाथियों की संख्या को दर्ज करना आसान किया जा सके. कुल मिला कर सरकार की कोशिश है कि हाथियों की मौजूदगी को जियोग्राफिकल इंफारमेशन सिस्टम पर भी लाया जा सके. 

इन की गणना की दूसरी विधि काफी पारंपरिक है. इस के तहत वन विभाग 2 या 3 लोगों की एक टीम बनाई जाती है और उन्हें 5 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र आवंटित कर दिया जाता है. ये टीमें हाथियों की उम्र और लिंग का रिकौर्ड तैयार करती हैं और उन की फोटो भी खींचती हैं.

तीसरी विधि में गणना करने वाले हाथी की लीद से इस की गिनती करते हैं. आप को बता दें कि एक हाथी एक दिन में 15-16 बार लीद करता है. इस के जरिए अंदाजा लगाया जाता है कि हाथियों का मूवमेंट कितना है और उन की सेहत कैसी है. हाथियों की उम्र का अंदाजा उन की ऊंचाई से लगाया जाता है. अमूमन वयस्क नर हाथी की ऊंचाई 8 फीट तक और मादा हाथी की 7 फीट होती है. 

हाथियों की गणना करने के चौथे तरीके में 2 या 3 वनकर्मियों की टीमें इस विधि में भी बनाई जाती हैं. यह टीम पानी के स्रोत के पास तैनात रहती हैं. यहां भी हाथियों की उम्र और लिंग का रिकौर्ड तैयार किया जाता है.

आमतौर पर जन्म लेने वाले हाथियों में नर और मादा हाथियों की संख्या लगभग बराबर रहती है. लेकिन उम्र बढऩे पर उन का अनुपात एक नर पर 2 या 3 मादा का हो जाता है. माना जाता है कि नर हाथी कमजोर माने जाते हैं. 

आमतौर पर हाथियों के झुंड को प्रतिवर्ष तकरीबन 350-500 वर्ग किलोमीटर पलायन करने के रूप में जाना जाता है. हाथियों को बचाने या इन की संख्या को बढ़ाने के मकसद से ही हाथी गलियारे का निर्माण किया गया था. भारत में इस तरह के करीब 101 गलियारे हैं, जिन में से सब से अधिक गलियारे पश्चिम बंगाल में स्थित हैं.

भारत में उपलब्ध 33 एलिफेंट रिजर्व 80,777 वर्ग किलोमीटर में फैले हैं. साल 2017 की गणना के मुताबिक सब से ज्यादा हाथी कर्नाटक में 6,049 हैं. 5,719 हाथी असम तथा 3,054 केरल में हैं. 

आप को बता दें कि भारत में हाथियों की पिछली गणना वर्ष 2012 में संपन्न हुई थी, जिस में हाथियों की संख्या 29,391 और 30,711 के मध्य आंकी गई थी. 

इन की यह गिनती झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ में की गई थी. जबकि साल 2007 में यह संख्या 27,657 से 27,682 तक थी. अगस्त 2017 में सामने आई रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हाथियों की कुल संख्या 27,312 दर्ज की गई.

झारखंड की ही यदि बात करें तो यहां पर हाथी राजकीय पशु घोषित है. यहां पर भी हाल के कुछ समय में हाथियों की संख्या में कमी आई है. यहां पर पिछली गणना में जहां हाथियों की संख्या 688 थी, वहां यह अब घट कर 555 रह गई है. यहां पर हाथियों की संख्या में हो रही कमी का एक कारण नक्सलियों के खिलाफ चल रहे अभियान को भी माना जा रहा है.

वन विभाग के मुताबिक इन औपरेशन की वजह से हाथी यहां से पलायन कर पड़ोसी राज्यों में जा रहे हैं. हाथियों की कम होती संख्या को देखते हुए ही 12 अगस्त, 2017 को विश्व हाथी दिवसके अवसर पर देश में इन के संरक्षण हेतु एक राष्ट्रव्यापी अभियान गज यात्राको केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री डा. हर्षवर्धन द्वारा लांच किया गया था. इस अभियान में हाथियों की बहुलता वाले 12 राज्यों को शामिल किया गया था.

क्यों किया जाता है हाथियों का शिकार 

इंसान और हाथी की दोस्ती और हाथी की रक्षा करने की सच्ची कहानी दिखाने वाले, दिल छू लेने वाले भारतीय वृत्तचित्र द एलिफेंट व्हिस्परर्सने आस्कर जीता था. 2023 में द एलिफेंट व्हिस्परर्सको बेस्ट डाक्यूमेंट्री शौर्ट फिल्म आस्कर अवार्ड मिला था. द एलिफेंट व्हिस्परर्स की कहानी मुदुमलाई नैशनल पार्क में बोम्मन और बेलि नाम के एक कपल की देखभाल में रघु नाम के एक अनाथ हाथी के बच्चे की है.

देश में साल 1986 से ही हाथी दांत की तस्करी पर प्रतिबंध लगा हुआ है. इस के बावजूद इस का अवैध व्यापार तेजी से फलफूल रहा है. वन्य जीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो के आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 2018 से 2022 तक के पिछले 5 सालों में देश भर के शिकारियों और व्यापारियों से 475 किलोग्राम हाथी दांत और इस की कलाकृतियां जब्त की गईं.

1976 में भारत वन्य जीव एवं वनस्पति की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर संधि साइट्स) में शामिल होने वाला 25वां देश बना. तब से वह हाथियों के संरक्षण के प्रयास में शामिल रहा है. 

लोकसभा में दिए गए एक प्रश्न के जबाब के अनुसार शिकारियों ने साल 2018 से 2022 तक 41 हाथियों को मार डाला, इन में से 12 हाथी अकेले मेघालय और 10 ओडिशा में मारे गए. शिकार के अलावा पिछले 5 सालों में 25 हाथियों को जहर दे कर भी मार दिया गया.

पहले केवल नर हाथियों को हाथी दांत के लिए शिकार किए जाने का खतरा था, क्योंकि मादाओं के दांत नहीं होते हैं. अब, शिकारी हर उस जानवर को मार रहे हैं जो उन्हें मिल रहा है, जिस में मादा और बच्चे भी शामिल हैं. शिकारी हाथियों को जहर भरे तीरों से अपना शिकार बनाते हैं.

हाथी धीरेधीरे जहरीले तीरों के आगे झुक जाते हैं तो शिकारी मौके पर ही अपने शिकार की खाल उतार देते हैं. हाथी की खाल की चीनी मांग को पूरा करने के लिए 2013 से म्यांमार में 100 से अधिक हाथियों का शिकार किया गया था. 

हाथियों को मार कर उन की खाल उतार कर बेचने का यह कारोबार म्यांमार और चीन से होते हुए दूसरे देशों तक फैल रहा है. हाथी की खाल के व्यापार का एक प्रमुख केंद्र अराजक बर्मी सीमावर्ती शहर मोंग ला है. यह म्यांमार के सब से महत्त्वपूर्ण बौद्ध तीर्थस्थलों में से एक, गोल्डन रौक के पास एक बाजार में भी फलफूल रहा है.

हाथी की त्वचा को सुखा कर पाउडर बनाया जाता है और नारियल के तेल के साथ मिला कर एक क्रीम बनाई जाती है. इस क्रीम का इस्तेमाल त्वचा रोगों के इलाज और पाचन संबंधी समस्याओं के इलाज में किया  जाता है. तस्कर हाथी की खाल का पाउडर और पैंगोलिन स्केल भी बनाते हैं. हाथी की त्वचा से मनके, कंगन जैसे आभूषण भी बनाए जाते हैं.

हाथियों की खूब होती है खातिरदारी

जंगली हाथी साल भर वन्य जीवों के रेस्क्यू, वन एवं वन्य जीवों के सरंक्षण में विशेष योगदान देते हैं, जिस के कारण पार्क प्रबंधन उन्हें कुछ दिनों के लिए उन की खातिरदारी कर उन्हें रेस्ट भी देता है. इस दौरान इन से रेस्क्यू या सरंक्षण का कोई काम नहीं लिया जाता. हाथी रिजर्व और नैशनल पार्क में हर साल इस तरह के कैंप चलाए जाते हैं.

खाने में हाथियों को गन्ना, केला, मक्का, आम, अनानास, नारियल परोसा जाता है. फिर उन्हें जंगल में छोड़ दिया जाता है. दोपहर में हाथियों को जंगल से फिर वापस ला कर और नहला कर कैंप में लाया जाता है. फिर इन्हें रोटी, गुड़, नारियल, पपीता खिला कर दोबारा जंगल में छोड़ दिया जाता है. 

कैंप में हाथी के लिए मौका होता है. अपने साथी को चुनने का भी. कैंप के बाद हाथी तरोताजा हो कर एक बार फिर पार्क के दुर्गम क्षेत्रों की सुरक्षा में अपनी महती भूमिका निभाने के लिए निकल जाते हैं.

जंगली जानवरों के संरक्षण के लिए वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन ऐक्ट साल 1972 में पास हुआ था. इस कानून के जरिए जंगली जानवरों का ही नहीं, पौधों की अलगअलग प्रजातियों के प्रोटेक्शन का भी ध्यान रखा गया है. इस के साथ ही इन की रिहाइश, जंगली जानवरों, पौधों और उन से बने उत्पादों के व्यापार को भी इसी के जरिए नियंत्रित किया जाता है.

42वें संशोधन अधिनियम 1976 के बाद वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन को राज्य की सूची से हटा कर समवर्ती सूची में डाल दिया गया था.  समयसमय पर इस ऐक्ट में कई संशोधन किए जा चुके हैं. 2002 में किए गए संशोधन के बाद जंगली जानवरों और वनस्पतियों को नुकसान पहुंचाने पर सजा और जुरमाने की राशि बढ़ा दी गई थी.

वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन ऐक्ट में यह प्रावधान किया गया है कि अगर कोई व्यक्ति किसी वन्यजीव पर हमला करता है तो उसे कम से कम 3 साल और ज्यादा से ज्यादा 7 साल तक की जेल की सजा हो सकती है. कम से कम 10 हजार रुपए जुरमाना भी हो सकता है.

फिर क्राइम के नेचर को देखते हुए यह जुरमाना 25 हजार रुपए तक बढ़ाया जा सकता है. यही नहीं, कोई व्यक्ति किसी चिडिय़ाघर में भी किसी वन्यजीव को परेशान करता है या उसे नुकसान पहुंचाता है तो उसे 6 महीने की सजा और 2 हजार रुपए का जुरमाना चुकाना पड़ सकता है.

यदि कोई व्यक्ति टाइगर या हाथी रिजर्व क्षेत्र में शिकार या फिर कोई क्राइम करता है तो उसे सजा तो होगी ही, जुरमाना 2 लाख रुपए तक का हो सकता है. सब से ज्यादा जुरमाने का प्रावधान वन्यजीवों के खिलाफ इसी अपराध में है. 

यही नहीं, यदि कोई व्यक्ति वन्यजीवों के किसी भी हिस्से का उपयोग करता है तो भी उसे सजा हो सकती है. उदाहरण के लिए यदि कोई मोर के पंख का इस्तेमाल करता है तो उसे 3 साल तक की सजा का प्रावधान वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन ऐक्ट में किया गया है.

हाथी लुप्तप्राय श्रेणी में है और इसे वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत शेड्यूल प्रथम में रखा गया है. इस का शिकार करना, बंदी बना कर रखना, अंगों का व्यापार करना प्रतिबंधित है. ऐसे मामलों में 3 से 7 साल तक की सजा का प्रावधान है.