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चंबल में पहली बार ऐसा हुआ, जब बदले की आग में किसी परिवार की महिलाओं को भी नहीं बख्शा गया. उन्हें भी बिना किसी हिचकिचाहट के गोलियों से भून दिया गया. बदले की आग में खून का प्यासा इंसान कितना हैवान हो सकता है, वह पीडि़त परिवार से ले कर गांव वालों ने अपनी आंखों से देखा.

दहशत का आलम यह था कि सारा गांव इस बर्बरता को मूकदर्शक बना देखता रहा, किसी ने भी लाइसेंसी हथियार होने के बाबजूद इस परिवार के बचाव में गोली नहीं चलाई. वैसे भी चंबल में कहावत है इंसान बूढ़ा हो सकता है, मगर दुश्मनी नहीं.

ग्वालियर से तकरीबन 80 किलोमीटर दूर आसन नदी के पास बसे मुरैना जिले के सिहोनिया थानांतर्गत आने वाला लेपा गांव बहुचर्चित दस्यु पान सिंह तोमर के भिडौसा गांव से सटा हुआ है. इसी गांव के रहने वाले गजेंद्र सिंह अपने परिवार के साथ 10 साल बाद अपने घर लौटे थे, तभी विरोधी पक्ष के भूपेंद्र सिंह और उस के परिवार के लोगों ने इन पर जानलेवा हमला कर दिया, जिस में 6 लोगों की मौत हो गई और कई गंभीर रूप से घायल हो गए.

janch karti police

जब लेखक लेपा गांव में पहुंचा तो वहां मातमी पसरी हुई थी. लोग सहमे सहमे से और दहशतजदा नजर आ रहे थे. लगता था कि वे अभी भी ठीक बुद्ध पूर्णिमा के दिन गजेंद्र सिंह तोमर के परिवार के साथ घटी सामूहिक नरसंहार की घटना को भुला नहीं पाए हैं.

हालांकि आपसी प्रतिशोध के जुनून में परिजनों के साथ घटी रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना की चश्मदीद गवाह 16 वर्षीय रंजन तोमर मिली. इस खूनखराबे के दौरान उस के सीने पर गोलियों के छर्रे लगे, लेकिन इस के बावजूद भी वह हत्यारों के खिलाफ पुख्ता सबूत के लिए बेझिझक वीडियो बनाती रही.

अधिकारियों, नेताओं और पत्रकारों के सवालों से आहत हो चुकी रंजना तोमर कहने लगी कि किस तरह मैं सब को बताऊं कि शुक्रवार की सुबह 10 साल बाद अहमदाबाद, मुरैना और ग्वालियर से अपने पैतृक गांव लौटे मेरे घर वालों के साथ क्याक्या घटा था, बारबार मुझे उन्हीं बातों को दोहराना पड़ता है.

काफी दबाव डालने पर तमतमा कर रंजना ने बताया कि हमारा परिवार लेपा का संपन्न परिवार था. परिवार में किसी चीज की कमी नहीं थी. सब कुछ अच्छा चल रहा था. रंजना तोमर ने बताया कि 5 मई की घटना में अपने पति, 2 बेटों सहित 3 बहुओं को हमेशा के लिए खो देने वाली मेरी दादी कुसुम तोमर हम लोगों को बताया करती है कि हमारे परिवार और गांव वालों द्वारा स्कूल के लिए दान में दी गई 16 बिस्वा जमीन पर सरकारी स्कूल बन रहा था, लेकिन स्कूल की जमीन के दाहिने भाग पर गांव के ही मुंशी सिंह के परिवार की महिलाओं ने गोबर का कचरा डालना शुरू कर दिया था.

स्कूल की भूमि पर कब्जा करने के मकसद से गोबर का कचरा डालने का तब मुन्नी सिंह के बेटे रंजीत सिंह ने खुल कर विरोध किया था. दुर्भाग्यवश मुंशी सिंह तोमर और मुन्नी सिंह तोमर के परिवार की महिलाओं में कचरा डालने को ले कर आपस में कहासुनी से शुरू हुई नोंकझोंक हाथापाई से होते हुए इतनी बढ़ गई कि मुंशी सिंह के बेटों ने गुस्से में आ कर मुन्नी सिंह तोमर के परिवार की महिलाओं के साथ मारपीट कर दी.

10 साल पहले शुरू हुई थी दुश्मनी

इस घटना ने माहौल में गरमाहट पैदा कर दी. 20 अक्टूबर, 2013 को मुंशी सिंह के परिवार के लोग लाठी, बंदूक ले कर गजेंद्र सिंह तोमर के दरवाजे पर चढ़ आए. इस विवाद में हुए खूनी संघर्ष में सोबरन सिंह और उस के बेटे वीरभान सिंह को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था. वहीं सोबरन सिंह का बेटा राधे और भिडौसा गांव का गुही नाई घायल हो गए थे.

मुंशी सिंह के 2 बेटों को ललकारते हुए गुस्से में रंजीत सिंह ने उन के हाथ से बंदूक छीन कर गजेंद्र सिंह तोमर की हवेली के घर के सामने ही गोली चला दी थी. हालांकि इस दोहरी हत्या के बाद गोली चलने की आवाज सुन कर भूपेंद्र और अजीत सिंह अपने घर से बाहर निकल कर आए.

जिस वक्त अजीत सिंह के पिता की गोली मार कर हत्या की गई. उस वक्त अजीत सिंह की उम्र महज 12 साल थी. रंजीत ने उसे भी दौड़ा लिया था. अजीत अपनी जान बचाने के लिए भागा. अजीत ने अपनी आंखों से अपने पिता को रंजीत सिंह द्वारा गोली मारते देखा था, हालांकि अजीत सिंह के चाचा शिवचरण ने हिम्मत कर के रंजीत को समझाने का भरसक प्रयास किया तो रंजीत सिंह तोमर गुट के बड़े लला उर्फ हिम्मत ने उन के कंधे पर डंडे से वार कर दिया.

इतना ही नहीं, घटनास्थल से भागने से पहले मुंशी सिंह के परिवार वालों ने अपने बचाव के लिए मुन्नी सिंह तोमर के दाहिने पैर पर गोली मार दी थी. इस घटना के बाद मुन्नी सिंह तोमर का बेटा रंजीत अपने परिवार को ले कर लेपा गांव से भिंड भाग गया था. रंजीत सिंह के भागते ही मुंशी सिंह के बेटों ने रंजीत के घर में जम कर लूटपाट करने के साथ ही उस की 100 बीघा जमीन पर कब्जा कर लिया था.

उधर मुंशी के दोनों बेटों सोबरन और वीरभान की हत्या के जुर्म में सुनील सिंह तोमर के बड़े भाई वीरेंद्र तोमर और चाचा मुन्नी सिंह का बेटा रंजीत सिंह तोमर, अविनाश बड़े लाला उर्फ हिम्मत को सलाखों के पीछे जाना पड़ गया था. वहीं शाति रदिमाग मुंशी सिंह ने अपने नाती श्याम सिंह तोमर से (गजेंद्र सिंह) के बड़े बेटे वीरेंद्र तोमर का नाम भी अपने दोनों बेटों की हत्या में शामिल होने का आरोप लगाते हुए रिपोर्ट में लिखवा दिया था. जबकि हकीकत में वीरेंद्र बेकसूर थे.

ग्रामीणों के मुताबिक घटना वाले दिन वीरेंद्र घटनास्थल पर मौजूद नहीं था. 5 मई, 2023 को जिन आधा दरजन लोगों की गोलियों से भून कर हत्या की गई, वो सभी गजेंद्र सिंह तोमर के परिवार के सदस्य थे. दरअसल, 5 मई 2023 को लेपा में हुए खूनखराबे की नींव 20 अक्टूबर, 2013 में ही मुंशी सिंह के बेटों की हत्या के दिन ही पड़ गई थी.

5 मई को हुए खूनखराबे की असल वजह एक दशक पुरानी रंजिश थी. आरोपी पक्ष ने अपने परिवार के 2 सदस्यों की हत्या का बदला 10 साल बाद गजेंद्र सिंह तोमर के परिवार के 6 सदस्यों को बड़े ही सुनियोजित ढंग से मौत के घाट उतार कर ले लिया.

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