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इस पर दोनों ने तय किया कि सुरेश साहू और उस के परिवार को यह विश्वास कर लेना चाहिए कि तंत्र साधना के बाद भी गड़ा हुआ धन नहीं मिल रहा है, तो फिर आगे दूसरा उपाय भी किया जा सकता है. जब यह बात सुरेश साहू को माखन ने बताई तो वह सिर पीट कर रह गया और बोला, ‘‘बड़े भैया तो मुझे घर से निकाल देंगे. उन्होंने साफसाफ कहा था कि ऐसा मत करो, मगर मैं ही नहीं माना. तुम लोगों ने तो मुझे बुरी तरह लूट लिया.’’

इस पर सुभाष ने कहा, ‘‘देखो, विश्वास में बड़ी ताकत होती है. आस्था रखो, एक दिन अगर गड़ा धन नहीं मिला है तो मैं अपनी तंत्र साधना से रुपयों की बारिश आसमान से करवा दूंगा. या फिर अगर तुम्हारा गड़ा धन किसी ने खींच लिया है, या कहीं चला गया है तो उस के लिए भी साधना कर छीन लाऊंगा. लेकिन इस में समय लगेगा. तुम्हें धैर्य रखना होगा.’’

आखिरकार सुरेश ने हाथ जोड़ कर के विवश हो तांत्रिकों के आगे घुटने टेक दिए. कई महीने के बाद एक दिन अचानक सुरेश साहू से माखन की मुलाकात हो गई. औपचारिक बातचीत करने के बाद सुरेश ने सुभाषदास का हालचाल पूछ लिया. माखन ने बताया कि वे बड़ी साधना में लगे हुए हैं.

‘‘मगर तुम्हारे गुरु ने तो हमारा बेड़ा गर्क कर दिया,’’ सुरेश ने नाराजगी दिखाई.

‘‘देखो भाई, विश्वास रखो. तंत्र साधना कोई मजाक या जादू की छड़ी नहीं है. हर किसी का इस से भला भी नहीं होता. हालांकि हमारे गुरु सुभाषदास बहुत पहुंचे हुए हैं. उस वक्त या तो तुम्हारा समय अच्छा नहीं चल रहा था या फिर तुम्हारे भाई और परिवार को विश्वास नहीं था. इस कारण भी साधना में कमी आ सकती है. मैं तो कहता हूं कि अगर तुम्हें विश्वास है तो गुरु की शरण में आ जाओ, फिर देखो कैसे तुम मालामाल हो जाते हो.’’

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