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सुबह सो कर उठते ही एस. जौनथन प्रसाद के घर वाले एकदूसरे से पूछने लगे थे कि ईस्टर का फोन आया या नहीं? जब सभी ने मना  कर दिया कि फोन नहीं आया तो एस. जौनथल प्रसाद और उन की पत्नी को हैरानी हुई. क्योंकि वह तो कब का कमरे पर पहुंच गई होगी, अब तक उस ने फोन क्यों नहीं किया? वह व्यस्त होगी, यह सोच कर उन्होंने फोन नहीं किया.

जब घर के सभी लोगों ने नहाधो कर नाश्ता भी कर लिया और ईस्टर का फोन नहीं आया तो जौनथन प्रसाद से रहा नहीं गया. उन्होंने खुद ही फोन मिला दिया. तब दूसरी ओर से आवाज आई कि फोन पहुंच से बाहर है. उन्होंने दोबारा फोन लगाया तो पता चला कि फोन बंद है. इस के बाद उन्होंने न जाने कितनी बार फोन मिला डाला, हर बार फोन से स्विच्ड औफ होने की ही आवाज आई.

फोन न मिलने से जौनथन प्रसाद परेशान हो उठे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि ईस्टर अनुह्या का फोन बंद क्यों है. मन में तरहतरह के खयाल आने लगे. कभी लगता कि फोन चार्ज न होने की वजह से ऐसा होगा तो कभी लगता कि किसी वजह से उस ने फोन बंद कर दिया होगा. लेकिन ईस्टर इतनी लापरवाह नहीं थी कि फोन बंद हो और उसे पता न चले. फिर उसे मुंबई पहुंच कर औफिस जाने की सूचना भी तो देनी थी.

बेटी से बात न हो पाने की वजह से जौनथन प्रसाद काफी परेशान थे. उन्हें इस तरह बेचैन देख कर पत्नी ने कहा, ‘‘मेरी समझ में यह नहीं आता कि आप इतना परेशान क्यों हैं? ईस्टर बच्ची नहीं है. किसी काम में फंस गई होगी या कोई मीटिंग वगैरह होगी, जिस की वजह से फोन बंद कर दिया होगा. मौका मिलेगा तो जरूर फोन करेगी. वह अपनी जिम्मेदारी अच्छी तरह समझती है.’’

‘‘पता नहीं क्यों मेरा दिल बहुत घबरा रहा है,’’ जौनथन प्रसाद ने कहा, ‘‘ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ. वह कितनी भी व्यस्त रही हो, फोन करने में जरा भी लापरवाही नहीं करती थी. आज पहली बार ऐसा हो रहा है, इसीलिए चिंता हो रही है.’’

जौनथन प्रसाद की इस बात का पत्नी के पास कोई जवाब नहीं था. फिर भी उन्होंने पति को धीरज बंधाया. वह पति को भले ही धीरज बंधा रही थीं, लेकिन उन का खुद का मन भी उतना ही बेचैन था. बेटी का कोई हाल समाचार न पा कर उन का खुद का दिल भी किसी अज्ञात भय से बैठा जा रहा था.

वह पूरा दिन और रात इसी इंतजार में बीत गया कि ईस्टर किसी जरूरी काम में फंसी होगी, इसलिए उस ने फोन बंद कर दिया है. इस के बावजूद जौनथन प्रसाद लगातार फोन करते रहे कि शायद अब ईस्टर का फोन चालू हो गया हो. लेकिन जब अगले दिन भी फोन चालू नहीं हुआ तो उन की हिम्मत जवाब देने लगी. इस बीच पतिपत्नी न कुछ खा सके थे और न एक पल के लिए आंखें झपका सके थे.

अगले दिन जब ईस्टर के फोन आने और मिलने की उम्मीद पूरी तरह खत्म हो गई तो जौनथन प्रसाद मुंबई के चैंबूर में अपने एक रिश्तेदार को फोन कर के सारी बात बता कर ईस्टर अनुह्या के बारे में पता लगाने की विनती की. इस के बाद उन्होंने ईस्टर की कंपनी को फोन किया तो वहां से पता चला कि पिछले दिन वह औफिस आई ही नहीं थी.

जौनथन प्रसाद को जब पता चला कि वह औफिस नहीं गई थी तो उन्होंने तुरंत उस के हौस्टल फोन किया. वहां से जब उन्हें बताया गया कि वह वहां भी नहीं पहुंची है तो वह परेशान हो उठे. अब उन्हें किसी अनहोनी की आशंका होने लगी. वह मन को सांत्वना देने के लिए ईस्टर की सहेलियों और परिचितों को फोन कर के पूछने लगे कि वह उन के यहां तो नहीं गई है या उन्हें कुछ बताया तो नहीं है? जब कहीं से ईस्टर के बारे में कुछ पता नहीं चला तो उन की बेचैनी और बढ़ गई.

दूसरी ओर जब ईस्टर की सहेलियों, परिचितों, कंपनी और हौस्टल वालों को उस के लापता होने का पता चला तो वे सब भी परेशान हो उठे, क्योंकि अब तक उसे गायब हुए 24 घंटे से अधिक बीत चुके थे. उस का किसी से भी संपर्क नहीं हुआ था, इसलिए सभी को उस के साथ किसी अनहोनी की आशंका सताने लगी थी.

23 वर्षीया ईस्टर अनुह्या प्रसाद आंध्र प्रदेश के शहर मछलीपट्टनम के रहने वाले एस. जौनथन प्रसाद की बेटी थी. वह शहर के प्रतिष्ठित नागरिक थे. राजनेताओं से अच्छे संबंध होने की वजह से स्थानीय राजनीति में भी उन की अच्छीखासी पकड़ थी. मछलीपट्टनम के सांसद पी.के. नारायण राव और उन के भाई जगन्नाथ राव से उन के पारिवारिक संबंध थे.

इस तरह के परिवार की लाडली बेटी अनुह्या बहुत ही महत्त्वाकांक्षी और तेजतर्रार लड़की थी. उस ने बंगलुरु युनिवर्सिटी से बीएससी कर के सौफ्टवेयर इंजीनियरिंग की. आगे की पढ़ाई के लिए वह जर्मनी जाना चाहती थी, लेकिन मांबाप ने इस के लिए इजाजत नहीं दी. मातापिता का कहना था कि अब आगे की पढ़ाई वह शादी के बाद करे.

मांबाप ने मना कर दिया तो आगे की पढ़ाई का खयाल छोड़ कर ईस्टर अनुह्या ने बंगलुरु में ही टीसीएस (टाटा कंसल्टेंसी सर्विस) कंपनी में नौकरी  कर ली. कुछ दिनों बाद कंपनी ने उसे एक बड़ा प्रमोशन दे कर महानगर मुंबई के उपनगर गोरेगांव स्थित कंपनी की शाखा में भेज दिया. यहां उसे असिस्टेंट सिस्टम इंजीनियर बनाया गया था. यहां उस ने अपने रहने की व्यवस्था अंधेरी के एमआईडीसी डब्ल्यूएचसीए महिला हौस्टल में की थी.

25 दिसंबर को ईसाइयों का सब से बड़ा त्यौहार होता है, जिसे ये लोग नाताल कहते हैं. इसी त्यौहार को घर वालों के साथ मनाने के लिए ईस्टर अनुह्या ने 8 दिनों की छुट्टी ली और मछलीपट्टनम आ गई थी.

छुट्टी खत्म होने पर ईस्टर अनुह्या ने 4 जनवरी, 2014 की सुबह 8 बजे मछलीपट्टनम के विजयवाड़ा रेलवे टर्मिनस से विशाखापट्टनम एक्सप्रेस पकड़ कर मुंबई के लिए रवाना हुई. उस का पूरा परिवार उसे टे्रन पर बैठाने आया था. उस का एसी (प्रथम) में रिजर्वेशन था. मांबाप ने उसे समझाबुझा कर विदा किया था कि अपना खयाल रखना, मुंबई पहुंचने तक किसी अजनबी से बात मत करना. पहुंच कर फोन करना. ईस्टर ने मुंबई पहुंचने पर मातापिता को विश्वास दिलाया था कि वह वैसा ही करेगी, जैसा उन्होंने उसे समझाया है.

5 जनवरी, 2014 की सुबह 5 बजे तक मुंबई के कुर्ला लोकमान्य तिलक टर्मिनस पहुंचने तक ईस्टर का संपर्क मांबाप से बना रहा. लेकिन उस के बाद जब संपर्क टूटा तो फिर संपर्क नहीं हो सका.

जब कहीं से भी ईस्टर के बारे मे कोई जानकारी नहीं मिली तो जौनथन प्रसाद बेटे के साथ प्लेन पकड़ कर मुंबई आ गए. हवाई अड्डे से वह सीधे अपने उस रिश्तेदार के यहां गए और उस से सारी जानकारी ली. इस के बाद वह बेटी की तलाश में उन स्थानों पर गए, जहांजहां उस के मिलने की संभावना थी, जब ईस्टर अनुह्या के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं मिली तो पुलिस के पास जाने के अलावा उन्हें कोई दूसरा रास्ता नजर नहीं आया.

पुलिस की मदद लेने के लिए जौनथन प्रसाद थाना कुर्ला पहुंचे. जब उन्होंने वहां के थानाप्रभारी से अपनी समस्या बताई तो उन्होंने कहा कि यह जीआरपी थाना विजयवाड़ा का मामला है. मजबूरन उन्हें जीआरपी थाना विजयवाड़ा जाना पड़ा. जीआरपी थाना विजयवाड़ा पुलिस ने ईस्टर अनुह्या प्रसाद की गुमशुदगी दर्ज कर के मामले को मुंबई के जीआरपी थाना कुर्ला पुलिस को ट्रांसफर कर दिया.

जीआरपी थाना विजयवाड़ा से शिकायत मिलने के बाद जीआरपी थाना कुर्ला पुलिस ने ईस्टर की तलाश शुरू कर दी. लेकिन उन की यह तलाश काफी धीमी गति से चल रही थी.

शिकायत दर्ज कराने के बाद जौनथन प्रसाद मुंबई आ गए. वह खुद भी अपने रिश्तेदारों और परिचितों के साथ मिल कर बेटी की तलाश करने लगे. एक पुलिस के उच्च अधिकारी के कहने पर उन की मदद के लिए 2 पुलिस वाले हमेशा उन के साथ लगा दिए गए थे. वह अपने हिसाब से बेटी की तलाश कर रहे थे. उन की नजर उस रास्ते पर थी, जो स्टेशन से ईस्टर के हौस्टल तक जाता था.

आखिर उन की मेहनत रंग लाई. जीआरपी थाना कुर्ला पुलिस कुछ कर पाती, उस के पहले उन्होंने खुद ही बेटी की लाश खोज निकाली. संयोग से उस समय वे दोनों पुलिस वाले भी उन के साथ वहीं थे.

क्या अनहोनी हो गयी थी ईस्टर अनुह्या के साथ? पढ़ेंगे इस Society Crimes Story के अगले अंक में.

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