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16 जनवरी, 2014 को जौनथन प्रसाद अपने रिश्तेदारों के साथ मुलुंड और कांजुर मार्ग ईस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे के किनारे से गुजर रहे थे तो उन्हें किसी शव के सड़ने की दुर्गंध महसूस हुई. इस गंध ने उन्हें बेचैन कर दिया. मन अशांत हो उठा. न चाहते हुए भी उन्होंने उन दोनों सिपाहियों को फोन कर के वहां बुला लिया. सिपाहियों के आने पर वह उस ओर बड़े, जिधर से दुर्गंध आ रही थी.

जौनथन प्रसाद सिपाहियों के साथ सर्विस रोड से 10 फुट अंदर समुद्र के किनारे की झाडि़यों में घुसे तो वहां एक खाई में क्षतविक्षत अवस्था में एक शव पड़ा दिखाई दिया. दूर से उसे पहचाना नहीं जा सकता था, क्योंकि उसे बेरहमी से जलाने की कोशिश की गई थी. लेकिन यह साफ दिख रहा था कि वह शव महिला का था.

जौनथन प्रसाद की बेटी गायब थी. लाश महिला की थी. कहीं यह लाश ईस्टर की तो नहीं, यह सोच कर वह खाई में उतर गए. करीब से देखने पर पता चला कि वह लाश उन की बेटी ईस्टर अनुह्या की ही थी. बेटी की हालत देख कर वह रो पड़े.

लाश जहां पड़ी थी, वह स्थान थाना कांजुर मार्ग के अंतर्गत आता था. इसलिए लाश पड़ी होने की सूचना थाना कांजुर मार्ग पुलिस को दी गई. थाना पुलिस ने घटनास्थल पर पहुंच कर खाई से शव निकलवाया. घटनास्थल के निरीक्षण और काररवाई के बाद शव को पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए जे.जे. अस्पताल भिजवा दिया.

अगले दिन ईस्टर अनुह्या की हत्या का समाचार दैनिक अखबारों में छपा तो मामले ने तूल पकड़ लिया. मामला हाईप्रोफाइल परिवार का था, इसलिए मुंबई पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह ने इसे गंभीरता से लिया. उनहोंने तत्काल इस मामले की जांच की जिम्मेदारी क्राइम ब्रांच के ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर हिमांशु राय को सौंप दी.

एक ओर जहां जीआरपी थाना कुर्ला पुलिस और थाना कांजुर मार्ग पुलिस इस मामले की जांच कर रही थी, वहीं दूसरी ओर अपर पुलिस कमिश्नर निकेत कौशिक, अतिरिक्त पुलिस कमिश्नर अंबादास पोटे, सहायक पुलिस कमिश्नर प्रफुल्ल भोसले के निर्देशन में क्राइम ब्रांच की 5 यूनिटें इस मामले की जांच में लगी थीं.

पुलिस अधिकारियों ने जांच की दिशा तय करने के लिए जौनथन प्रसाद को क्राइम ब्रांच के औफिस में बुला कर विस्तार से बातचीत कर के ढेर सारी जानकारी इकट्ठा की.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से ऐसा कोई क्लू नहीं मिला था कि जांच आगे बढ़ पाती. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार उस के साथ दुष्कर्म नहीं हुआ था. इस से अंदाजा लगाया गया कि या तो दुष्कर्मी ने असफल होने पर हत्या की थी या फिर उस की हत्या लूटपाट के लिए की गई थी.

सामान के नाम पर ईस्टर के पास मोबाइल फोन, लैपटौप और कुछ कपड़े थे. ज्यादा पैसे भी नहीं थे. पुलिस ने जब इस मामले पर गहराई से विचार किया तो लगा कि इस मामले में किसी ऐसे लुटेरे का हाथ हो सकता है, जो बैग, मोबाइल और लैपटौप चोरी करता था.

ईस्टर लोकमान्य तिलक टर्मिनस पर उतरी थी. उस की लाश कांजुर मार्ग ईस्टर्न एक्सप्रेस हाइवे पर मिली थी, इसलिए पुलिस ने अपने जांच का दायरा स्टेशन से लाश मिलने के स्थान तक बनाया. टर्मिनस से ले कर कांजुर मार्ग तक टैक्सी ड्राइवर, औटोरिक्शा ड्राइवर, टर्मिनस के कुली, सफाई कर्मचारी, चरसी आदि से पूछताछ करने के साथसाथ यह पता लगाने की कोशिश की गई कि यहां इस तरह की चोरी करने वाले कौनकौन हैं.

यूनिट-1 के सीनियर इंसपेक्टर नंद कुमार गोपाल, यूनिट 25 के सीनियर इंसपेक्टर अविनाश सावंत, यूनिट 6 के सीनियर इंसपेक्टर श्रीपाद काले, यूनिट 7 के सीनियर इंसपेक्टर व्यंकट पाटिल, इंसपेक्टर संजय सुर्वे, इंसपेक्टर अशोक खोत, इंसपेक्टर अनिल ढोले की संयुक्त टीम स्टेशन पर काम करने वाले ही नहीं, वहां गलत काम करने वालों पर खुद तो नजर रख ही रही थी, मुखबिरों को भी लगा दिया गया था.

स्टेशन पर लगे सीसीटीवी कैमरे ही नहीं, हाईवे पर लगे सीसीटीवी कैमरों की भी फुटेज देखी गई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. मामले में प्रगति न होते देख जौनथन प्रसाद का धैर्य जवाब देने लगा. इंसाफ पाने के लिए वह दिल्ली गए और गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे, सीपीएम की नेता वृंदा करात, आम आदमी पार्टी के नेता योगेंद्र यादव से मिल कर ईस्टर के हत्यारों की गिरफ्तारी के लिए गुहार लगाई.

लेकिन उन की इस दौड़भाग का कोई लाभ नहीं हुआ. तमाम कोशिशों के बाद भी पुलिस ईस्टर के हत्यारों तक नहीं पहुंच पाई. धीरेधीरे 2 महीने का समय बीत गया. इस से यही लग रहा था कि ईस्टर की हत्या जिस ने भी की थी, वह काफी होशियार और शातिर था. उस ने कोई भी ऐसा सुबूत नहीं छोड़ा था कि पुलिस उस तक पहुंच पाती. पुलिस जांच का कोई दूसरा रास्ता निकालती, पुलिस के कई बड़े अधिकारियों का तबादला हो गया.

मुंबई पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. उस के बाद राकेश मारिया मुंबई के नए पुलिस कमिश्नर बने. इस के साथ क्राइम ब्रांच में भी काफी उलटपुलट हुआ. ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर हिमांशु राय और अपर पुलिस कमिश्नर निकेत कौशिक की जगह पर नए जौइंट पुलिस कमिश्नर सदानंद दाते और अपर पुलिस कमिश्नर राजवर्धन को लाया गया.

नए पुलिस कमिश्नर राकेश मारिया इस के पहले क्राइम ब्रांच के चीफ थे, इसलिए उन्हें जटिल से जटिल मामलों को सुलझाना अच्छी तरह आता था. कार्यभार संभालते ही उन्होंने चर्चा में रहे ईस्टर हत्याकांड को सुलझाने के लिए सहायकों के साथ जांच की रूपरेखा तैयार की. इस के बाद उसी रूपरेखा पर जांच की जिम्मेदारी नए क्राइम ब्रांच के जौइंट कमिश्नर सदानंद दाते, अपर पुलिस कमिश्नर राजवर्धन, सत्यनारायण चौधरी, एडिशनल कमिश्नर अंबादास पोटे और असिस्टैंट कमिश्नर प्रफुल्ल भोंसले को सौंप दी गई.

इन नए अधिकारियों के निर्देशन में एक बार फिर क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने सरगर्मी से मामले की जांच शुरू की. इस बार उन्होंने 2 हजार लोगों से पूछताछ की. मुखबिर भी जीजान से लगे थे. इसी के साथ सीसीटीवी के कैमरों की फुटेज एक बार फिर देखी गई. इस बार फुटेज देखते समय जौनाथन प्रसाद को भी साथ बैठाया गया था. इस बार की मेहनत रंग लाई और फुटेज में ईस्टर के साथ एक ऐसा आदमी दिखाई दिया, जो स्टेशन से बैग, मोबाइल और लैपटौप की चोरी करता था.

इसी के बाद 2 मार्च, 2014 को यूनिट-6 के सीनियर इंस्पेक्टर व्यंकट पाटिल ने अपने सहायक इंस्पेक्टर संजय सुर्वे, अशोक खोत और अनिल ढोले के साथ भांडूप के एक घर से उस आदमी को गिरफ्तार कर लिया गया था. उस का नाम था चंद्रभाव उर्फ चौक्या सुदाम सापन.

मिली जानकारी के अनुसार यही चंद्रभाव उर्फ चौक्या सुदाम सापन सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में ईस्टर के साथ जाता दिखाई दिया था. पूछताछ में पता चला कि वही ईस्टर का हत्यारा था. उसे क्राइम ब्रांच के औफिस ला कर पूछताछ की गई तो उस ने ईस्टर अनुह्या की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया था.

चंद्रभाव उर्फ चौक्या ने क्राइम ब्रांच अधिकारियों को ईस्टर की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी.

28 वर्षीया चंद्रभाव उर्फ चौक्या मूलरूप से नासिक जनपद के गांव मधमलाबाद का रहने वाला था. संतानों में बड़ा होने की वजह से मांबाप का कुछ ज्यादा ही लाडला था, जिस की वजह से वह आवारा हो गया था. पढ़ाई छोड़ कर वह दोस्तों के साथ मटरगश्ती किया करता था. पिता सुदाम सापन सीएसटी टर्मिनस पर कुली का काम करते थे. मुंबई में वह उपनगर कांजुर मार्ग स्थित कर्वेनगर साईंकृपा सोसायटी की इमारत नंबर वी-2 के रूम नंबर 208 में परिवार के साथ रहते थे.

चंद्रभाव चौक्या की शादी मांबाप ने यह सोच कर कर दी थी कि जिम्मेदारी पड़ने पर शायद वह सुधर जाएगा. वह एक बेटी का बाप भी बन गया, लेकिन वह जस का तस ही रहा.

2005 में सुदाम सापन गंभीर रूप से बीमार हुए तो रेलवे के अधिकारियों से पैरवी कर के अपना कुली वाला बैज चंद्रभाव उर्फ चौक्या के नाम करा दिया था. इस के बाद चंद्रभाव सीएसटी रेलवे टर्मिनस पर बाप की जगह कुली का काम करने लगा था.

जब थोड़ाबहुत पैसा आने लगा तो चंद्रभाव के शौक बढ़ने लगे. घर में खूबसूरत पत्नी के होते हुए भी वह अपनी कमाई का ज्यादा हिस्सा खानेपीने और पराई औरतों पर उड़ाने लगा. अपने यही शौक पूरे करने के लिए कभीकभी वह यात्रियों के सामान उड़ाने लगा. 2 सालों तक सीएसटी रेलवे टर्मिनस पर कुलीगीरी करने के बाद उस ने यह काम छोड़ दिया.

2007 में वह कुर्ला लोकमान्य तिलक रेलवे टर्मिनस पर आ गया, जहां उस की दोस्ती नंदकुमार साहू से हुईं. नंदकुमार साहू भी कुली था और उस में भी वे सभी बुरी आदतें थीं, जो चंद्रभाव में थी. वह भी मौजमस्ती के लिए यात्रियों के सामानों की चोरी करता था.

क्यों की चन्द्रभाव ने ईस्टर की हत्या? जानने के लिए पढ़िए इस Social Crime Story का अगला भाग.

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