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इंसान की जिंदगी भी एक नाटक की तरह है, जिस में तरह तरह के किरदार अपनी अपनी भूमिका अदा करते हैं. मेरी भी जिंदगी में न जाने कितने किरदार आए और गए. उन्हीं में एक किरदार की यह कहानी है, जो बेहद गरीब और कमजोर औरत थी. इतनी कि गुलामों सी जिंदगी जी रही थी.

पाकिस्तान के गांवों में चौधरियों और बड़े जमींदारों के घरों में जो नौकर नौकरानियां काम करते थे, वे दासों जैसी जिंदगी जीने को मजबूर होते थे. बड़े लोग रोटीकपड़े के बदले उन्हें अपना खरीदा हुआ गुलाम सा बना लेते थे.

उन की औरतें घर के अंदर तक जाती थीं, इसलिए उन्हें अंदर तक की सारी बातें पता होती थीं. लेकिन उन की जान भले ही चली जाए. वे उन राजों को किसी को नहीं बताती थीं. क्योंकि उन्हें पता होता था कि राज मुंह से निकला नहीं कि उन का जीना मुहाल हो जाएगा. अगर किसी तरह जान बच भी गई तो गांव में वे कतई नहीं रह सकती थीं.

यह कहानी भी बड़े घर में काम करने वाली ऐसी ही एक औरत की है, जिस का नाम जरीना था. बात उन दिनों की है, जिन दिनों मैं शहर के एक थाने में तैनात था. एक दिन मैं थाने के गेट पर खड़ा आतेजाते लोगों को देख रहा था, तभी मेरे सामने एक औरत आ कर खड़ी हो गई.

उस की उम्र यही कोई 40-45 साल रही होगी. कपड़े वह भले ही ठीकठाक पहने थी, लेकिन नौकरानी जैसी लग रही थी. मुझे लगा कि वह कोई शिकायत करने आई है, इसलिए मैं ने उसे सवालिया नजरों से घूरा. उस ने मेरे चेहरे पर नजरें जमा कर कहा, ‘‘साहब, मुझे इस तरह सजा दिलवा कर आप को क्या मिला?’’

‘‘तुम ने जैसा अपराध किया होगा, उसी के हिसाब से तुम्हें सजा मिली होगी. तुम बात कहां की कर रही हो, मैं ने तो तुम्हें पहचाना नहीं?’’ मैं ने यह याद करने की कोशिश करते हुए कहा कि इसे देखा कहां है.

‘‘साहब, मेरा अपराध यही था कि मैं ने 2 हत्यारों को पकड़वाया था और मेरी गवाही पर उन्हें उम्रकैद की सजा हुई थी.’’ उस ने कहा.

इस के बाद उस ने गांव के नाम के साथ मृतक और हत्यारों के नाम बताए तो मुझे सारी घटना याद आ गई. इसी के साथ उस औरत के बारे में भी सब कुछ याद आ गया.

यह लगभग 5 साल पहले की घटना थी. उन दिनों मैं देहात के एक थाने में तैनात था. उसी थाने के एक गांव के एक जमींदार परिवार के एक लड़के का कत्ल हो गया था. उस कत्ल की तफ्तीश मैं ने ही की थी. काफी कोशिश के बाद भी हत्यारे का कोई सुराग नहीं मिल रहा था.

तब इसी औरत और इस के पति ने मुझे हत्यारों का सुराग ही नहीं दिया था, बल्कि इन्हीं दोनों की गवाहियों से हत्यारों को उम्रकैद की सजा हुई थी. हत्यारे सगे भाई थे और वे भी एक बड़े जमींदार परिवार से थे. जरीना और उस का शौहर उन्हीं के यहां काम करते थे.

पूरी घटना याद आने के बाद मैं ने उस से पूछा, ‘‘तुम यहां क्या कर रही हो?’’

‘‘मैं क्या कर रही हूं, यह तो बाद की बात है साहब. आप ने मुझे बचाने का जो वादा किया था, उसे पूरा नहीं किया. आप की वजह से मुझे बहुत परेशानी उठानी पड़ी.’’ उस औरत ने कहा.

गवाहों की हिफाजत पुलिस तभी तक करती है, जब तक मुकदमा चलता है. उस के बाद पुलिस को उन की हिफाजत की कोई चिंता नहीं रहती. इसलिए मुकदमे का फैसला आने के बाद मैं भी उसे भूल गया था. लेकिन जब वह सामने आ गई तो इंसान होने के नाते मुझे उस की कहानी सुननी जरूरी थी. उस की कहानी जानने से पहले आइए हम उस मामले के बारे में जान लें, जिस मामले में वह गवाह थी.

थाने से करीब 10 किलोमीटर दूर स्थित एक गांव में एक जमींदार परिवार के लड़के के कत्ल हो जाने की मुझे सूचना मिली. लाश गांव के किसी आदमी ने सुबह देखी थी. उस के बाद थाने को सूचना दी गई थी. सूचना मिलने के बाद सहयोगियों के साथ मैं घटना वाले गांव पहुंचा. मृतक की उम्र 25 साल के आसपास थी. अभी उस की शादी नहीं हुई थी. उस का कत्ल कुल्हाड़ी से किया गया था. मैं ने तफ्तीश शुरू की. मुझे घटनास्थल से हत्यारों के पांवों के निशानों के अलावा और कोई अन्य सुराग नहीं मिला था.

पूछताछ में पता चला था कि मृतक की किसी के साथ निजी या पारिवारिक दुश्मनी नहीं थी. गांव का हर आदमी उस की तारीफ कर रहा था. उस का चरित्र और आदतें भी साफसुथरी थीं. जिन घरों में उस की बिरादरी को लड़कियां थीं, वे उस से शादी के लिए इच्छुक थीं. लेकिन वह किसी के साथ शादी के लिए तैयार नहीं था. जबकि उन में एक से एक बढ़ कर सुंदर लड़कियां थीं. सब हैरान थे कि आखिर वह शादी के लिए मना क्यों कर रहा था.

ऐसे लड़के का कत्ल हो जाना हैरान करने वाली बात थी. उस का किसी से जायदाद का भी झगड़ा नहीं था. किसी बदमाश, संदिग्ध आदमी या औरत से भी उस की दोस्ती नहीं थी. धीरेधीरे 15 दिन गुजर गए और मैं किसी नतीजे पर न पहुंच सका था. लड़के का बाप मर चुका था. उस का एक चचा था, जिस ने मुझ से कहा कि अगर हत्यारे पकड़े नहीं जाते तो वह अधिकारियों से शिकायत करेगा कि पुलिस हत्यारों से मिली हुई है, जिस से इस मामले में जानबूझ कर लापरवाही बरती जा रही है.

मैं ने उस से कहा था कि वह किसी की ओर इशारा कर के कह दे कि उसे उस पर शक है. फिर देखे कि मैं क्या करता हूं, लेकिन वह किसी पर भी संदेह नहीं व्यक्त कर रहा था. मैं ने गहराई से जब इस मामले पर विचार किया तो मुझे लगा, किसी जवान लड़के का कत्ल किसी लड़की की ही वजह से हो सकता है, क्योंकि दुश्मनी की यहां कोई बात नहीं थी, इसलिए लड़की वाली बात को ले कर मैं ने अपनी तफ्तीश आगे बढ़ाई.

मैं पता लगाने लगा कि कोई तो लड़की रही होगी, जिस की मृतक से दोस्ती रही होगी. थोड़ी कोशिश के बाद आखिर मुझे उस लड़की के बारे में पता चल गया, जिस से मृतक की दोस्ती थी. उस का नाम नाजरा था. वह भी शादी के लिए तैयार नहीं थी, जबकि उस की मंगनी बहुत पहले ही हो चुकी थी.

पूछताछ में मृतक की बड़ी बहन ने बताया था कि उस के भाई के पीछे नाजरा लगी रहती थी. वह अकसर उस के घर भी आती रहती थी. लेकिन उस की शादी कहीं और तय थी, इसलिए वह खुल कर बात नहीं कर पाती थी. यही हाल मृतक का भी था. नाजरा की शादी तय थी, इसलिए वह भी कुछ नहीं कह पाता था. लेकिन उन के हावभाव से उन लोगों को पता चल गया था कि वे एकदूसरे को पसंद करते थे. वे एकदूसरे को देख कर खुश हो जाते थे.

नाजरा का नाम सामने आया तो मैं ने अपने मुखबिरों को उस के और उस के घर वालों के बारे में पूरी जानकारी जुटाने में लगा दिया. मुखबिरों से मिली जानकारी के हिसाब से नाजरा को अपना मंगेतर पसंद नहीं था. इसी के साथ मुखबिरों ने मुझे सलाह दी थी कि अगर नाजरा के घर काम करने वाली जरीना और उस के शौहर को थाने बुला कर कायदे से पूछताछ की जाए तो शायद कोई सुराग मिल जाए.

मैं ने आप को पहले ही बता दिया है कि मृतक बड़े जमींदार खानदान से था. उसे किसी चीज की कमी नहीं थी. गांव पर उस का सिक्का चलता था. उस का बहुत बड़ा चौबारा था. अपने खेतों में भी उस ने 2 कमरों का एक मकान बना रखा था, जिस के इर्दगिर्द छोटा सा बगीचा भी था.

मैं ने जरीना और उस के शौहर को थाने बुलाया. पहले तो वे कुछ बताने को तैयार नहीं थे. डर के मारे हाथ जोड़ रहे थे. लेकिन कब तक मना करते. उन के एक ओर कुआं था तो दूसरी ओर खाई. आखिर वे इस शर्त पर सब कुछ बताने को राजी हो गए कि वे जो बताएंगे, मैं किसी को कुछ नहीं बताऊंगा. मैं ने वादा कर के हिम्मत बंधाई कि वे जो बताएंगे, वह मैं किसी को नहीं बताऊंगा. तब जरीना ने बताया कि नाजरा और मृतक की मुलाकातें बगीचे वाले मकान में होती थीं.

उन के पैगाम ले आने और ले जाने का काम जरीना ही करती थी. कभीकभी उन की मुलाकातें रात में भी होती थीं. जरीना को यह मालूम नहीं था कि उन के ताल्लुकात पाक थे या नापाक.

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