लेखक - साहिरा अखलाक, Hindi Best Story: रात बीत गई है. बहुत दूर किसी मसजिद से अजान की आवाज आ रही है. मैं बैठीबैठी सोच रही हूं कि यह कुदरत ही है, जिस ने मुझे ढेर सारे सब्र की दौलत दी है. क्योंकि जिस जमीन पर मैं बैठी हूं, वह मेरे अपने कई लोगों को निगल चुकी है. बारिश अभीअभी थमी है. दरख्त हवा में लहरा कर झूम रहे हैं. मोतिए के पत्तों का रंग धुल कर और भी गहरा हो गया है. गुलाब के पौधे भी नहा कर तरोताजा हो गए हैं. हर चीज पर एक ताजगी और निखार सा आ गया है. मगर सावन की बारिश में जाने ऐसी क्या बात होती है कि यादें सिर उठाने ही लगती हैं.

बड़ेबड़े बगीचों, फुलवारियों और ऊंचेऊंचे दरख्तों वाला यह शम्स महल आज कितना सूना, उदास और अंधेरा पड़ा है. आयशा, मआज, अब्बा मियां, अम्मा बी और मेरे महबूब शौहर मसऊद...अब नहीं हैं. मसऊद, जिन के नाम पर मैं ने अपनी जिंदगी और जवानी खाक कर दी, वह किस आसमान के तारे हो गए? बारिश रुकते ही मेरी मामा मरजान ने मेरा पलंग लौन में लगा दिया है. अब तो बस यही मरजान मेरी जिंदगी और मौत की साथी है. अब्बा जान ने यह बेवा नौकरानी मुझे दहेज में दी थी. सगुन अच्छा नहीं था.

मैं सफेद बिस्तर पर लेटी हूं. चांदी के थाल सा चांद सफेदसफेद धुनकी हुई रूई के गालों जैसे बादलों से आंखमिचौली खेलता फिर रहा है. यह ठंडीठंडी चांदनी मेरी रूह में आग लगा रही है. मैं यों करवटें बदलती हूं, जैसे मेरे पहलू सुलग रहे हों. चित लेटती हूं तो चांद आंखों में उतर आता है. उस से नजरें बचाती हूं तो बादलों में मुझे अपने प्यारों की शक्लें बनतीबिगड़ती नजर आती हैं. बादल का एक सफेद टुकड़ा ऊंचा होता हुआ मआज की शक्ल बनाता हुआ मेरे ऊपर से गुजरा चला जा रहा है और यादें मेरा मन सुलगा रही हैं.

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