Short Stories : महाराजा जय सिंह की भले ही 4 रानियां थीं, लेकिन उन्हें मर्दों की सोहबत ज्यादा पसंद थी. उन के महल में अकसर जश्न होता था, जिस में खास अफसर, मंत्री ही शामिल होते थे. इस जश्न की आड़ में महिलाओं की अदलाबदली कर रंगरलियां मनाई जाती थीं. इसी अदलाबदली में उन का वित्तमंत्री गजंफर अली एक दिन ऐसा फंसा कि…
बात उन दिनों की है, जब देश पर अंग्रेजों की हुकूमत थी. हुकूमत जरूर अंग्रेजों की लेकिन मजे कर रहे थे देश के राजामहाराजा. इन के पास काम तो कुछ था नहीं, इसलिए जनता से मिलने वाले पैसे से ये अधिकांश सिर्फ अय्याशी करते थे. ऐसे ही एक अलवर रियासत के महाराजा थे जय सिंह प्रभाकर, जिन का पूरा नाम था माननीय कर्नल एचएच राज राजेश्वर भारत धर्म प्रभाकर महाराजा श्री सवाई सर जय सिंहजी वीरेंद्र शिरोमणि देव बहादुर जीसीएसआई जीसीआईई. वह एक ऊंचे और बड़े राजवंश में पैदा हुए थे.
महाराजा जय सिंह एक बार ब्रिटेन घूमने गए थे. वैसे भी इन राजाओं के पास कोई काम तो होता नहीं था, इसलिए अकसर वे विदेशों की यात्रा पर रहते थे, जहां वे घूमघूम कर महंगीमहंगी चीजें खरीदते रहते थे.
महाराजा जय सिंह भी जब ब्रिटेन की यात्रा पर गए थे तो लंदन में वे घूमते हुए रोल्स रौयस के शोरूम के सामने से गुजर रहे थे. वहां खड़ी एक लग्जरी रोल्स रौयस कार ने उन्हें आकर्षित किया तो वह उसे देखने के लिए शोरूम के अंदर जाने लगे. उस समय वह राजाओं वाले कपड़े न पहन कर आम लोगों के कपड़ों में थे. इसलिए जब वह रोल्स रौयस के शोरूम में प्रवेश करने लगे तो दरबान ने उन्हें रोकते हुए कहा, ”वहां कहां जा रहे हैं?’’
”अंदर जा कर कार देखना चाहता हूं.’’ महाराजा जय सिंह ने कहा.
”अपनी शक्ल देखी है. आप की औकात में नहीं है यहां कार खरीदना.’’ कह कर दरबान ने उन्हें बाहर से ही लौटा दिया.
महाराज ने दरबान की बात दिल पर ले ली. क्योंकि उस ने उन का अपमान कर दिया था. उन्होंने तय कर लिया कि वह रोल्स रौयस से अपने अपमान का बदला जरूर लेंगे. वह इसे ऐसा सबक सिखाएंगे कि रोल्स रौयस वाले याद करेंगे.
अगले दिन वह राजा के कपड़े पहन कर रोल्स रौयस के शोरूम पहुंचे. इस बार शोरूम के दरबान ही नहीं, सभी कर्मचारियों को पता था कि अलवर के महाराजा जय सिंह उन के शोरूम में कार खरीदने आ रहे हैं, इसलिए उन के आने पर इस बार उन की खूब आवभगत की गई. महाराजा ने अपना समय न खराब करते हुए रोल्स रौयस की 7 कारों का और्डर दे दिया. कहा जाता है कि उन्होंने सभी कारों की कीमत कैश में अदा की थी.
इतना बड़ा और्डर पा कर वह भी नकद में, शोरूम के सारे कर्मचारी बहुत खुश हुए थे. क्योंकि तब उन्हें पता नहीं था कि राजा उन की लग्जरी कारें ले जा कर उन का क्या करेंगे. जैसे ही वे कारें भारत आईं, महाराजा ने सभी कारों को राज्य का कूड़ा उठाने में लगा दिया. जबकि उस समय भी रोल्स रौयस की कारें सब से कीमती थीं.
इस के बाद तो रोल्स रौयस की कारें मजाक बन कर रह गईं. लोग उन्हें खरीदने से कतराने लगे. क्योंकि उस समय कारें ज्यादातर राजामहाराजा, बड़े वकील या फिर बड़े सेठ ही खरीदते थे. लोगों को लगने लगा था कि जिस कार से कूड़ा उठाया जाता है, उस में बैठने पर लोग उसे भी कूड़ा ही समझेंगे. जब रोल्स रौयस कारों की बिक्री घटने लगी तो कंपनी ने पत्र लिख कर महाराजा जय सिंह से माफी मांगते हुए आग्रह किया कि उन की कार से कूड़ा न उठवाया जाए.
महाराजा जय सिंह ने दिल बड़ा करते हुए कंपनी को माफ कर दिया था और रोल्स रौयस कंपनी की कारों से कूड़ा उठवाना बंद कर दिया था. अपने इस कार्य से महाराजा जय सिंह दुनिया को यह संदेश देने में कामयाब रहे थे कि किसी भी इंसान की पहचान उस के कपड़ों से करना ठीक नहीं है. इंसान कपड़ों से अमीरगरीब नहीं बनता.
आज जो अलवर जिला है, पहले यह अलवर रियासत हुआ करती थी. पहले इस का नाम उलवर था. महाराजा जय सिंह ने ही इस का नाम बदल कर अलवर किया था. राजा जय सिंह ने अलवर रियासत पर करीब 40 साल राज किया था. 1933 में अंग्रेजों ने उन्हें देश निकाला दे दिया था. अंग्रेजों का मानना था कि अंग्रेजों के खिलाफ जो आंदोलन हो रहे हैं, उन में अलवर के राजा की मूक सहमति से ही सब हो रहा है.
साल 1925 में अलवर रियासत के नीमचूला में हुए हत्याकांड की तुलना पंजाब के जलियांवाला बाग हत्याकांड से की गई थी. इस के बाद आंदोलन और तेज हो गए थे. नाराज अंग्रेजों ने साल 1933 में राजा जय सिंह को देश निकाला दे कर अलवर रियासत पर कब्जा कर लिया था. इस के 4 साल बाद साल 1937 में अलवर रियासत की बागडोर चंदपुरा के ठाकुर गंगा सिंह के बेटे तेज सिंह को सौंप दी थी.
दरअसल, अंग्रेजों को किसी राजा से तब तक कोई समस्या नहीं होती थी, जब तक वह उन के लिए कोई समस्या नहीं खड़ी करता था. खुद को भगवान राम का अवतार कहने वाले और मर्दों के साथ हमबिस्तर होने वाले महाराजा जय सिंह ने भी कुछ ऐसी गलतियां कर दी थीं, जिन की वजह से उन्हें राजसत्ता से हाथ धोना पड़ा था.
बात तब की है, जब लार्ड विलिंग्डन वायसराय थे. एक बार उन्होंने जय सिंह को दावत पर बुलाया. दावत के दौरान लेडी विलिंग्डन की नजर जय सिंह की अंगूठी पर पड़ी. उन्होंने अंगूठी की तारीफ कर दी. उस समय परंपरा यह थी कि वायसराय या उन की पत्नी को राजा की कोई भी चीज पसंद आ जाए तो वह चीज उन्हें भेंट कर दी जाती थी.
जय सिंह ने भी अंगूठी लेडी विलिंग्डन को भेंट कर दी थी. लेकिन लेडी विलिंग्डन ने अंगूठी देख कर उन्हें लौटा दी थी. जय सिंह ने अपने वेटर को बुलाया और एक कटोरे में पानी मंगवा कर उस अंगूठी को धुलवाया. क्योंकि लेडी विलिंग्डन के अंगूठी छूने से वह अपवित्र हो गई थी.
दूसरी गलती उन्होंने पोलो के मैदान में की थी. मैच शुरू होने से पहले राजा जय सिंह का घोड़ा अड़ गया था. वह अपनी जगह से टस से मस नहीं हो रहा था. गुस्साए जय सिंह ने मिट्टी का तेल मंगवाया और वहीं पर उस के ऊपर मिट्टी का तेल डाल कर आग लगा दी थी. इस गलती को वायसराय ने उस गलती से भी ज्यादा गंभीरता से लिया, जिस में वह अपनी हवस मिटाने के लिए मर्द सैनिकों के साथ हमबिस्तर हुआ करते थे.
बस, इसी के बाद उन्होंने जय सिंह की रियासत छीनने की ठान ली. इस के बाद उन्होंने राजा के खिलाफ ब्रिटेन इतनी खराब रिपोर्ट भेजी कि विद्रोह का हवाला दे कर उन की सत्ता छीन ली गई.
जबकि महाराजा जय सिंह काफी पढ़ेलिखे और बुद्धिमान थे. उन्होंने अलवर की राजभाषा को उर्दू की जगह हिंदी बनाया था. उन्होंने खुद को भगवान राम का अवतार घोषित कर दिया था. वह कपड़े भी भगवान राम की ही तरह पहनते थे. उन के आदेश भी भगवान राम की ही तरह जारी होते थे. वह हाथों में हमेशा दस्ताने पहने रहते थे, जिस से आम लोगों के स्पर्श से उन के हाथ अपवित्र न हो जाएं.
इंग्लैंड के बादशाह से हाथ मिलाते समय भी उन्होंने दस्ताने नहीं उतारे थे. मजेदार बात तो यह थी कि उन्होंने कई पंडितों को यह हिसाब लगाने में लगा रखा था कि भगवान राम की पगड़ी कितनी बड़ी थी, ताकि वह भी उतनी ही बड़ी पगड़ी बनवाएं.
उस समय जय सिंह की गिनती देश के गिनेचुने निशानेबाजों में होती थी. एक ओर तो वह खुद को भगवान मानते थे, दूसरी ओर वह शेर का शिकार करते थे. शेर को अपने निशाने के दायरे में लाने के लिए वह बकरी या किसी जानवर का उपयोग करने के बजाय इंसान के बच्चे को शेर के आगे फेंक देते थे.
उन के सिपाही जिस का बच्चा उठा कर लाते थे, उसे यह विश्वास दिलाते थे कि राजा साहब शेर को बच्चे के पास पहुंचने से पहले ही मार देंगे, लेकिन जब कभी उन का निशाना चूक जाता था तो शेर उस बच्चे को उठा कर ले जाता था.
कहा जाता है कि महाराजा जय सिंह को औरतों से ज्यादा मर्द पसंद थे. अलवर रियासत के फौजी अफसरों की तरक्की का रास्ता महाराजा के बिस्तर से हो कर जाता था. जबकि महाराजा को औरतों की सोहबत बिलकुल पसंद नहीं थी.
महाराजा को भले ही औरतों से बिलकुल लगाव नहीं था, लेकिन उन की 4 शादियां हुई थीं. उन्हें मर्दों की सोहबत ज्यादा पसंद थी. वह अपने मंत्रियों, प्राइवेट सेक्रेटरी, सहायकों और सेना के अफसरों का चुनाव बड़ी सावधानी से करते थे. उन के दरबार में ऐसे नामवर अफसर थे, जो आजादी के बाद बड़े पदों पर आसीन हुए थे.
उन के महल में अकसर जश्न होता रहता था और इस जश्न में खूब रंगरलियां मनाई जाती थीं. इस जश्न में उन की महारानियां, चहेतियां, उन के मंत्री, खास अफसर शामिल होते थे. जश्न यानी पार्टी की आड़ में खूब मस्ती होती थी. मर्द और औरतें खूब लुत्फ उठाते थे.
इन पार्टियों में महाराजा भी मौजूद रहते थे. उन्हें इस बात पर जरा भी ऐतराज नहीं होता था कि उन के मंत्री और अफसर उन की महारानियों और महल की औरतों से जिस तरह मन होता था, उस तरह पेश आते थे. शराब का दौर चलने के साथ मंत्री और अफसर अपनी पसंद की औरतों के साथ मौज करते थे. यह सब पूरी रात चलता रहता था.
महाराजा का आदेश था कि अंग्रेज अफसरों को छोड़ कर बाकी उन के सभी अफसर और मंत्री अपनी बीवी और बेटियों को पार्टी में ले कर आएं. ऐसा करना अनिवार्य था. उन का सोचना था कि जब सभी एक ही रंग में रंग जाएंगे तो न कोई किसी की हंसी उड़ाएगा और न इस पार्टी के बारे में कहीं बात करेगा.
पार्टी में आने वाले एक थे वित्त मंत्री गजंफर अली खां, जो बाद में पाकिस्तान के हाईकमिश्नर के रूप भी तैनात हुए थे. जय सिंह को उन पर इतना अधिक विश्वास था कि उन्हें रनिवास में भी आनेजाने की खुली छूट दे रखी थी. वह आकर्षक व्यक्तित्त्व वाले रंगीनमिजाज व्यक्ति थे. कहा जाता है कि ऐसे ही आनेजाने में उन के रानियों समेत महल की कई औरतों से अंतरंग संबंध बन गए थे.
आकर्षक व्यक्तित्त्व होने के कारण महाराजा की महफिल में भी कई महिलाएं उन के इर्दगिर्द दिखाई देती थीं. यह देख कर राज्य के अन्य मंत्रियों और अफसरों को उन से जलन होने लगी थी. गजंफर अली ने महाराजा से कह रखा था कि उन का परिवार लाहौर में रहता है. एक सच्चा मुसलमान होने की वजह से उन की औरतें परदे में रहती हैं. वे गैरमर्द को चेहरा नहीं दिखा सकतीं.
गजंफर अली से जलने वाले मंत्रियों और अफसरों ने मिल कर सलाह की कि किसी भी तरह गजंफर अली को घेरा जाए. क्योंकि वह पार्टियों में खुलेआम रनिवास से ले कर सभी महिलाओं के साथ नजदीकी हासिल करता है. जबकि अपने घर की महिलाओं को कभी नहीं लाता.
एक दिन राजा जय सिंह का मूड अच्छा देख कर उन्होंने अपनी बात उन के सामने रखी कि गजंफर अली क्या करता है. वह जानबूझ कर इन पार्टियों से अपने घर की महिलाओं को दूर रखता है. इसलिए उस के घर की महिलाओं को भी पार्टियों में बुलाया जाए. सभी ने इस बात पर ऐतराज जताया कि वह उन के घर की औरतों के साथ तो अंतरंग होता है, लेकिन अपने घर की औरतों को इस सब से दूर रखता है.
यह सब सुन कर पहले तो राजा को चिढ़ सी हुई. पर बाद में जब शांत हो कर सोचा तो उन्हें भी लगा कि ये लोग जो कह रहे हैं, ठीक ही कह रहे हैं.
इस के बाद राजा जय सिंह ने गजंफर अली खां को हुक्म दिया कि इस बार जब जश्न हो तो वह उस में अपनी बीवी को जरूर ले कर आए. उस ने अनेक बहाने बनाए, पर महाराजा ने उस की एक नहीं सुनी. मजबूरन उसे राजी होना पड़ा.
उस ने कहा कि अगली बार दीवाली पर जब महल में जश्न होगा तो वह अपनी बेगम को ले कर आएगा. उस ने कुछ दिनों की मोहलत मांगी, क्योंकि उन की बेगम लाहौर में रहती थीं, साथ ही वहां जाने और आने के लिए महाराजा से कुछ पैसे भी लिए.
गजंफर अली दिल्ली आया और अपनी परेशानी अपने कुछ करीबी लोगों को बताई. क्योंकि उसे पता था कि उस की बेगम महाराजा अलवर के जश्न में शामिल होने को बिलकुल राजी नहीं होंगी. अगर वह बेगम को ले कर नहीं गया तो महाराज उसे गिरफ्तार करवा कर जेल में डाल देंगे. तब उस के करीबियों ने उसे समझाया कि वह किसी खूबसूरत तवायफ से मुताह निकाह कर के बेगम बना कर अलवर के महाराजा के जश्न में पेश कर दे.
गजंफर अली खां को दोस्तों का यह आइडिया पसंद आ गया. उस ने दिल्ली के कोठों पर एक हसीन लड़की की तलाश शुरू की. आखिर एक कोठे पर निहायत हसीन और होशियार लड़की मिल गई. उस से अनुमति ले कर मुताह की शर्तें तय कर उस से मुताह निकाह कर लिया. इस के बाद दिल्ली में एक मकान में रह कर अलवर के महल में होने वाले जश्नों में शामिल होने की ट्रेनिंग दी. उसे पूरी तरह तैयार कर के वह उसे साथ ले कर ट्रेन से अलवर आ गया.
महाराजा यह देख कर खुश हुए कि गजंफर अली खान उन की उम्मीदों पर खरा उतरा. जब वह बेगम के साथ स्टेशन पर उतरा तो महाराजा ने खुद स्टेशन पर आ कर उस की आगवानी की. गजंफर अली खां की बेगम के रहने की व्यवस्था महल में की गई थी. इस के बाद तो उस की बेगम की खूबसूरती की चर्चा दरबार में होने लगी. दरबार के मंत्री और अफसर यह सोच कर खुश हो रहे थे कि अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे.
सभी के मन में एक ही बात थी कि जिस तरह गजंफर अली खां रनिवास की महिलाओं और उन की औरतों के साथ अंतरंग होता था और सभी के साथ रंगरलियां मनाता था, अब उस की बेगम के साथ वे भी उसी तरह अंतरंग हो कर रंगरलियां मनाएंगे.
महल में जब जश्न हुआ तो गजंफर अली खान भी अपनी बेगम को ले कर जश्न में पहुंचा. उस ने बेगम को ट्रेनिंग तो दे ही रखी थी. गजंफर अली खान पार्टी में मजे लूट रहा था तो उस की बेगम भी मंत्रियों और अफसरों को खुश कर रही थी. सभी ने बेगम की खूब तारीफ की.
कुछ दिनों बाद बेगम वापस चली गई. गजंफर खान ने लाहौर जा कर पहले तो बेगम की गंभीर बीमारी का तार भेजा. कुछ दिनों बाद दूसरा तार भेजा कि बेगम का इंतकाल हो गया है. तार पढ़ कर राजा जय सिंह और दरबारियों को बहुत अफसोस हुआ. इस के बाद गजंफर अली खां जब तक अलवर रियासत में रहा, पार्टियों में उसी तरह आनंद लेता रहा.
महाराजा जय सिंह को अंग्रेजों ने 1933 में देश निकाला दे दिया था. 19 मई, 1937 को फ्रांस की राजधानी पेरिस में 54 साल की उम्र में उन का निधन हो गया था. Short Stories