Hindi Stories : कई आदिवासी समुदायों में लुप्तप्राय होने के कगार पर पहुंच चुकी कोरवा जनजाति जीवन निर्वाह के लिए संघर्ष कर रही है. चिंताजनक बात यह है कि इस बात की चर्चा न केवल संसद तक में हो चुकी है, बल्कि उन्हें संरक्षित रखने के उद्देश्य से राष्ट्रपति द्वारा इस जनजाति को दत्तक संतान का दरजा भी मिल चुका है.

अंजना के होंठों पर गहरी लाल लिपस्टिक दूर से चमक रही थी. शैंपू और कंडीशनर से चमकते लहराते बाल, आंखों के सामने लटकती लटों के बीच चेहरा पाउडर और क्रीम के मेकअप से दमक रहा था. नए कपड़े के पहनावे में उस का यौवन खिल उठा था. एक दिन पहले ही वह मुंबई से अपने गांव आई थी. हाथ में पर्स लटकाए गांव की गलियों में इठलाती घूम रही थी. कलाई में खनकती नई चूडि़यों की आवाज से गांव के हर किसी की नजर बरबस उठ रही थी. उसे देखते ही सामने से आ रही गांव की सिलमिना ने टोका, ‘‘अरे अंजना, तू तो हीरोइन लग रही है. कब आई रे?’’

‘‘कल ही तो शाम को मुंबई से आई हूं, मैं तुम्हारे घर ही जा रही थी.’’ अंजना चहकती हुई बोली.

दोनों बचपन की सहेलियां थीं. प्यार से अंजना ने पूछा, ‘‘कैसी है रे तू?’’

यह सुन कर सिलमिना का चेहरा उतर गया. उदासी से आंखें नम हो गईं. धीरे से बोली, ‘‘अब तुम्हें क्या बताऊं अपनी हालत, देख ही रही हो. यहां न भरपेट खाने को मिलता है और न ही पहनने को अच्छे कपड़े. सब कुछ तो तुम जानती ही हो, बस तरसते हुए जी रही हूं.’’ सिलमिना बोली. अंजना ने उस के हाथों को पकड़ लिया, फिर गले लग गई. उस का ऐसा करना सिलमिना को अच्छा लगा. वह थोड़ी सहज हुई. बोली, ‘‘तू तो एकदम नहीं बदली!’’

‘‘वह सब छोड़, बता तू मेरे साथ मुंबई चलेगी?’’ अंजना ने अपनी सहेली सिलमिना से सीधा सवाल किया.

इस के लिए सिलमिना तैयार नहीं थी. वह उसे एकटक देखने लगी.

‘‘अरे, तू देखती क्या है यह देख मुझे, सब कुछ मुंबई में ही तो मिला है. अरे वहां स्वर्ग है, स्वर्ग.’’ अंजना बोली.‘‘मैं तो चली चलूं, मगर मां का क्या होगा?’’ सिलमिना ने चिंता जताई.

‘‘मां की फिक्र तुम मत करो, मां के पास हर महीने पैसे भेज देना.’’ अंजना ने सुझाव दिया.

‘‘क्या, सचमुच ऐसा हो सकता है? मुझे वहां इतने पैसे मिल जाएंगे कि मैं मां को भी पैसे भेज सकती हूं.’’ सिलमिना बोली.

‘‘ और नहीं तो क्या?’’ अंजना बोली.

‘‘तो फिर जैसा तुम कहो मैं चलने को तैयार हूं.’’

अंजना से बात कर सिलमिना की आंखों में चमक आ गई थी. उसे अंजना ने एक अद्भुत आत्मविश्वास से भर दिया था. दोनों छत्तीसगढ़ के बीहड़ जंगलों में निवास करने वाली कोरवा समुदाय की थीं. वहां के लोगों के पास कोई ठोस कामधंधा नहीं था, जिस से उन का पेट भर पाता और वे सामान्य जीवन गुजार पाते. ऐसे में सभी अभावग्रस्त दर्दभरी जिंदगी गुजार रहे थे.  जब भी अंजना गांव आती थी, तब बहुत परिवारों के लिए वह आशा की किरण बन जाती. परिवार में बुजुर्ग मांबाप को लगता था कि उन की बेटी को दिल्ली या मुंबई में घरेलू नौकरानी का काम मिल जाएगा. सिलमिना अपनी सहेली अंजना के कहने पर मुंबई जाने के लिए तैयारी में जुट गई. उस के अलावा गांव की कुछ और लड़कियां भी तैयार हो गईं, जो आसपास के इलाके की थीं.

उन्हें अंजना ने विश्वास दिलाया था कि सभी को मुंबई या दिल्ली में काम मिल जाएगा. जो जहां जाना चाहे चल सकती है, उस की जानपहचान दोनों जगहों के काम दिलाने वाले खास लागों से है. उस के भरोसे पर 14 से 18 साल के उम्र की कुल 16 लड़कियां अच्छी जिंदगी की उम्मीद में गांव से महानगर के लिए निकल पड़ीं. उन्हें अंजना ने बताया कि महानगरों में घरेलू काम करने वाली लड़कियों की बहुत कमी है. घर में साफसफाई करने, कपड़ेलत्ते धोने और बरतन मांजने का काम करना होता है. उस के काम के हिसाब से महीने में पगार मिलता है. खाने और रहने का इंतजाम मालकिन द्वारा ही किया जाता है. उस का पैसा नहीं लगाता है. बीचबीच में उपहार भी मिलता रहता है. किसी अतिथि के आने पर वे अलग से पैसे दे जाते हैं. यह सब अंजना समझा ही रही थी कि एक लड़की मधु पूछ बैठी, ‘‘दीदी और क्या करना होता है?’’

‘‘और क्या करना है, घर में बच्चे हों तो उन्हें खिलाओ, घुमाओ और आराम की जिंदगी गुजारो.’

‘‘इन सब के लिए कितने पैस मिल जाते हैं दीदी?’’ उत्सुकता से मधु ने पूछा.

‘‘पैसे बहुत मिलते हैं पगली. 5 हजार रुपए महीने तो मिलेंगे ही. उस में तुम्हें एक पैसा खर्च नहीं होगा. बाकी जो मैं ने और कुछ बताया, उस के अलावा है.’’ अंजना बोली.

‘‘क्या?’’ अंजना की बात सुन कर मधु की आंखें फटी की फटी रह गईं.

‘‘लेकिन तू अभी छोटी है इसलिए 3 हजार ही मिलेंगे.’’ यह सुन कर सभी लड़कियां हंसने लगीं.

मधु ने आंखें घुमाते हुए कहा, ‘‘दीदी मुझे भी पूरे पैसे दिलवाना, मैं 2 के बराबर अकेली ही काम कर दूंगी.’’

‘‘मधु, तुम चिंता नहीं करो वहां पहुंच कर तुम्हें लगेगा कि तुम कहां पहुंच गई हो. समझो स्वर्ग है स्वर्ग. और जिंदगी की सभी खुशियां मिलेंगी, मजे करोगी, मजे!’’ कहती हुई अंजना ने उस की गालों को थपथपा दिया.

इस तरह आकर्षक सपने दिखा कर अंजना अपने साथ 16 लड़कियों को मुंबई ले गई. वहां पहुंच कर उस ने लड़कियों को अपने खास लोगों को सौंप दिया, जहां से उन्हें काम के लिए भेजा जाना था. उस के बाद लड़कियों के साथ जो हुआ, वह सब उसे दिखाए गए सपने के काफी उलट था. मधु एक्का सांवली सी सुतवां नाकनक्श की आकर्षक किशोरी थी. उसे एक प्लाई शौप के मालिक ने अपने यहां नौकरी पर रख लिया था. महीने की पगार 4 हजार रुपए तय हुई थी. इसी तरह से 18 वर्षीया सिलमिना सिदार को आरटीओ एजेंट रमेश चंद्रा ने अपने घर में घरेलू नौकरानी के तौर पर 5 हजार के मासिक वेतन पर रख लिया था.

16 साल की प्रमिला मंझवार एक व्यापारी के घर पहुंच गई थी, जबकि 17 साल की सुनीता धनुहार एक कामकाजी महिला रजनी के यहां लग गई थी. इसी तरह से सभी लड़कियां कहीं न कहीं काम पर लगा दी गई थीं. मगर जैसेजैसे समय बीतता चला गया, लड़कियों के सपने टूटते चले गए. वे अमानवीय दौर से गुजरने लगीं. उन्हें घरपरिवार से बात करने की मनाही थी. उन में कुछ लड़कियां देह के धंधे पर उतरने को विवश हो गईं. उन्हें पूरी तरह से एहसास हो गया था कि वे पिंजरे में कैद हो कर रह गई हैं. उन की अशिक्षा किसी दुर्भाग्य से कम नहीं थी. उन्हें न तो किसी अधिकार के बारे में मालूम था और न ही सामने दीवारों और पोस्टरों पर लिखी पंक्तियों का अर्थ समझ पाती थीं.

एक दिन मधु एक्का को फोन करने का मौका मिल गया. उस ने अपने एक परिचित को फोन कर दिया. फोन पर उस ने एक सांस में सारी तकलीफें बयां कर डाली. परिचित ने यह बात अपने दोस्त को बताई. बात पूरे कोरवा में फैल गई और मामला पुलिस तक जा पहुंचा. पुलिस पर जांच का दबाव भारत सरकार के गृह मंत्रालय से पड़ा. इस का असर हुआ और सभी लड़कियों की बरामदगी हो गई. फिर उन्हें कोरवा उन के परिजनों को सौंप दिया गया. उन्होंने पुलिस और परिजनों को अपनी आपबीती सुनाई. उस के बाद जो देहव्यापार की दर्दनाक दास्तान सामने आई, उस की एक झलक इस प्रकार है.

छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर, रायगढ़, जशपुर जिले में कोरवा जनजाति को राष्ट्रपति का संरक्षण प्राप्त है. उन्हें विशेष दरजा दे कर दत्तक संतान का दरजा दिया गया है. उन के जनजीवन को सुधारने के लिए सरकार की तरफ से कई योजनाएं चलाई गई हैं, फिर भी उन की आय में गिरावट बनी हुई है. उस समुदाय के बच्चे मुश्किल से 5वीं, 8वीं तक पढ़ पाते हैं. उन की जिंदगी एकदम से ठहरी हुई जंगली वातावरण सी उलझ गई है. यही कारण है कि उन पर महानगरों की प्लेसमेंट ऐजेंसियों की नजर टिकी रहती है. वे अपना निशाना कमसिन लड़कियों को बनाते हैं और उन्हें दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद आदि शहरों में नौकरी के बहाने अपने जाल में फंसा लेते हैं.

कहने को तो उन से घरेलू नौकरानी, मौल, प्राइवेट कंपनियां, औफिस में काम दिलवाने का वादा किया जाता है, लेकिन अधिकतर देह व्यापार में धकेल दी जाती हैं.  ऐसी ही एक लड़की ने बताया, ‘‘मैं काफी गरीब परिवार से हूं. मुंबई यही सोच कर गई थी कि हमें नौकरी से पैसा मिलेगा और शांति से जिंदगी गुजरेगी. लेकिन वहां देह बेचना पड़ा. इस बारे में हम किसी को बता भी नहीं सकते थे. इस का विरोध करना तो बहुत ही मुश्किल काम था. कई बार तो एक दिन में आधेआधे घंटे पर अलगअलग मर्द के साथ सोना पड़ा.’’

उस ने बताया कि कैसे उसे उस के जानपहचान वाले राजकुमार ने काम दिलाने के नाम पर दुर्गाबाई नाम की महिला के हाथों बेच दिया था. वह बिहार के रोहतास जिले की रहने वाली थी. उस ने उस की खूबसूरती और उभार वाले वदन को देख कर कीमत सवा लाख रुपए लगाई थी. इस काम में राजकुमार के साथ महेश और सरला नाम की युवती भी शामिल थे. दुर्गाबाई के पास छत्तीसगढ़ की 6 लड़कियां थीं, जिन्हें बाद में 5 जनवरी, 2021 को पुलिस ने बरामद किया था. दुर्गाबाई लड़कियों को ग्राहकों के पास भेजती थी. हर ग्राहक से उसे डेढ़ हजार से ढाई हजार रुपए तक मिलते थे, जबकि वह हर लड़की को उसी में से खर्चे के नाम पर 300 से 500 तक देती थी.

मुक्त करवाई गई एक लड़की ने बताया कि किस तरह से वह राजकुमार के जाल में फंसी. उसे पहले बिलासपुर से बिक्रमगंज लाया था. वहां महेश और सरला मिले थे. दोनों ने पतिपत्नी होने का परिचय दिया. वह उसे दुर्गाबाई के पास ले गए. महेश ने बताया कि वह उन की सास है और मुंबई में रहती हैं. उन के साथ उसे 6 महीने तक रहना होगा. बाद में दोनों जब वहां आ जाएंगे तब वह वापस आना चाहे तो आ सकती है. या फिर उन के साथ रहना चाहे तो रह सकती है. लड़की को उन की बातों में सच्चाई दिखी और वह दुर्गाबाई के साथ 27 दिसंबर, 2020 को मुंबई आ गई.

वहां उस ने देखा कि उसी के जिले की 7 और लड़कियां रह रही हैं. उन में से ही एक लड़की ने उस के कान में चुपके से बताया कि वह गलत जगह आ गई है. उस की किस्मत अच्छी थी कि एक सप्ताह बाद ही दुर्गाबाई के उस मकान पर पुलिस ने छापा मारा और वह दूसरी लड़कियों के साथ मुक्त करवा ली गई. मुक्त करवाई गई जशोपुर जिले की एक पीडि़ता की मां ने बताया कि उस की बच्ची को 15 हजार रुपए महीने पर आर्केस्ट्रा में काम दिलवाने के नाम पर ले गया था. उन्होंने बताया कि उस की बच्ची को नाचने का शौक था, इसलिए सोचा अच्छा काम है. पैसा मिलेगा और धीरेधीरे शोहरत मिलेगी तब बड़ा कलाकार भी बन सकती है. वहां से उसे अंबिकापुर लाया गया. बाद में नशीली कोल्ड ड्रिंक्स पिला कर उत्तर प्रदेश में सोनभद्र जिला ले जाया गया.

वहां बिंदास आर्केस्ट्रा ग्रुप के संचालक मनोज कुमार और अन्नू उर्फ गोलू को सौंप दिया गया. उन्होंने लड़की को छोटे से कमरे में बंद कर दिया. 3 दिन बीतने के बाद जब लड़की ने पूछा कि उस का प्रोग्राम कब होगा तब उन्होंने उस के साथ जबरदस्ती की और फिर सजासंवार कर एक ग्राहक के पास भेज दिया. इस तरह से वह कथित आर्केस्ट्रा ग्रुप की एक नई सैक्सवर्कर बना दी गई. उस की मां ने बताया कि लड़की 12 मई को किसी ग्राहक के पास भेजी जाने वाली थी. बताया गया था कि वहां उसे 6 लड़कियों के साथ एक निजी पार्टी में शामिल होना है. म्यूजिक पर नाचगाना करना होगा.

संयोग से इस पार्टी की जानकारी पुलिस को भी लग गई थी. पुलिस को किसी ने सूचना दी थी कि कोई बर्थडे सेलिब्रशन के बहाने ड्रग कारोबारियों से डील करने वाला है. लेकिन जब पुलिस ने वहां छापेमारी की तब वहां से 7 लड़कियां रंगेहाथों पकड़ी गईं. उन से पूछताछ होने पर आर्केस्ट्रा ग्रुप की आड़ में देहव्यापर का भंडाफोड़ हो गया. आर्केस्ट्रा संचालक भी पकड़े गए. उस के बाद पुलिस को नई जानकारी मिली. इस तरह देहव्यापार के दलाल कोरवा जनजाति की लड़कियों को किसी न किसी तरह से अपने जाल में फांस कर जिस्मफरोशी के धंधे में शामिल कर रहे हैं. कहानी में कुछ नाम परिवर्तित हैं. Hindi Stories

 

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