Family Dispute : अशोक ने भाई ज्योति कुमार और उस के दोस्त नवल के साथ मिल कर अपनी पत्नी और 2 मासूम बेटियों की हत्या करा दी थी. तब उस ने सोचा कि पीछा छूटा. लेकिन कानून उसे और उस के सहयोगी हत्यारों को उन के अंजाम तक ले ही गया. 25 अप्रैल, 2014 को लुधियाना के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश एस.पी. सूद की अदालत में अन्य दिनों की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही भीड़भाड़ थी. इस की वजह यह थी कि उस दिन हत्या के एक महत्वपूर्ण मुकदमे का फैसला सुनाया जाना था. मुकदमा चूंकि दिल दहला देने वाला था, इसलिए अन्य वकील भी बहस सुनने के लिए अदालत में मौजूद थे.
इस मामले में अभियुक्तों ने एक महिला सिमरन कौर उर्फ पिंकी और उस की 8 साल तथा 5 साल की 2 मासूम बेटियों दिव्या और पूजा की बेरहमी से हत्या कर दी थी. बचाव पक्ष के वकील रछपाल सिंह मंड अपने सहायकों के साथ अदालत में मौजूद थे. अभियोजन पक्ष के वकील गुरप्रीत सिंह ग्रेवाल भी पूरी तैयारी के साथ आए थे. 11 बजे जज साहब के आने पर मकुदमे की काररवाही शुरू हुई. अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश एस.पी. सूद ने फाइल पर नजर डाल कर बचाव पक्ष के वकील आर.एस. मंड से कहा, ‘‘मंड साहब, आप को इस मामले में कुछ कहना है?’’
‘‘जी सर,’’ एडवोकेट मंड ने आगे आ कर कहा, ‘‘जैसा कि मैं पहले ही अदालत को बता चुका हूं कि हत्या के इस मामले में कोई चश्मदीद गवाह नहीं है. पूरा मुकदमा हालात पर निर्भर है. अभियोजन पक्ष को एक भी ऐसा गवाह नहीं मिला, जो इस जघन्य हत्याकांड पर रोशनी डालता. हम सिर्फ यही मान कर चल रहे हैं कि ऐसा हुआ था, वैसा हुआ होगा?’’
जज साहब एडवोकेट मंड की इन बातों पर कोई टिप्पणी करते, उस से पहले ही अभियोजन पक्ष के वकील गुरप्रीत सिंह ग्रेवाल ने कहा, ‘‘सर, रात में उस सुनसान जगह पर बैठ कर कोई आदमी यह इंतजार तो करेगा नहीं कि वहां हत्याएं होने वाली हैं और उसे उन हत्याओं का चश्मदीद गवाह बनना है. मौकाए वारदात पर अभियुक्तों के जूतों के निशान, चाकू पर मिले अंगुलियों के निशान और मृतका सिमरन की मुट्ठी में मिले आरोपियों के सिर के बाल ही उन्हें दोषी ठहराने के लिए काफी हैं. इन से भी बड़ा सुबूत है, इन हत्याओं के पीछे अभियुक्तों का मकसद, जो पूरी तरह स्पष्ट हो चुका है. इसलिए मैं एक बार पुन: अदालत से दरख्वास्त करूंगा कि इन हत्याओं के लिए अभियुक्तों को फांसी दी जानी चाहिए.’’
‘‘मैं मानता हूं कि हालात मेरे मुवक्किलों के पक्ष में नहीं हैं,’’ एडवोकेट मंड ने जज साहब को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘इस के बावजूद मैं अदालत से निवेदन करूंगा कि मेरे मुवक्किलों के साथ नरमी बरती जाए और इन्हें संदेह का लाभ देते हुए बरी किया जाए.’’
‘‘सर, संदेह का तो कोई सवाल ही नहीं उठता. 5 चाकुओं पर अंगुलियों के निशान, मृतका की मुट्ठी से बरामद बाल, हत्या का उद्देश्य और गवाहों के बयान से संदेह की कोई गुंजाइश ही नहीं बची है. शीशे की तरह साफ है कि हत्याएं इन्हीं लोगों ने की थीं.’’ एडवोकेट गुरप्रीत सिंह ग्रेवाल ने कहा.
‘‘बिना चश्मदीद गवाह के किसी को सजा देना उस के साथ न्याय नहीं होगा.’’ एडवोकेट मंड ने अपना आखिरी दांव चलाया.
बहस पूरी हुई तो अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश एस.पी. सूद फैसला सुनाने की तैयारी करने लगे. अदालती फैसले से पहले आइए इस हत्याकांड की कहानी जान लें, जिस से फैसले को समझने में आसानी रहे. 28 दिसंबर, 2009 की सुबह लुधियाना पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना मिली थी कि हैबोवाल क्षेत्र में सिविल सिटी स्थित संधुनगर से गुजरने वाली रेलवे लाइन के पास खेतों में एक महिला और 2 बच्चियों की लाशें पड़ी हैं. कंट्रोल रूम ने इस की सूचना संबंधित थाना सलेम टाबरी को दे दी थी. सूचना पा कर थाना सलेम टाबरी पुलिस घटनास्थल पर तो पहुंच गई, लेकिन कोई भी काररवाई करने से मना कर दिया. उस का कहना था कि घटनास्थल थाना जीआरपी के अंतर्गत है.
इस पर थाना जीआरपी को सूचना दी गई. जीआरपी पुलिस ने आ कर कहा कि यह इलाका उन के अंडर में नहीं है. उन का कहना था कि यह क्षेत्र थाना हैबोवाल में आता है. सूचना पा कर थाना हैबोवाल पुलिस घटनास्थल पर आई. लेकिन उस ने भी काररवाई करने से मना कर दिया. इस तरह कई घंटों तक सीमा विवाद को ले कर काररवाई अटकी रही. चूंकि हत्याओं का मामला था, इसलिए यह बात काफी तेजी से शहर में फैल गई थी. मीडियाकर्मी और पुलिस अधिकारी भी आ गए थे. अंत में एसीपी हर्ष बंसल के हस्तक्षेप पर थाना हैबोवाल पुलिस को काररवाई करनी पड़ी.
थाना हैबोवाल के थानाप्रभारी इंसपेक्टर हरपाल सिंह ने अपराध संख्या 271/09 पर भादंवि की धारा 302/34 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर के जांच का कार्यभार अतिरिक्त थानाप्रभारी सबइंसपेक्टर अजायब सिंह को सौंप दिया. घटनास्थल पर लगी भीड़ में मृतका सिमरन के घर वाले भी मौजूद थे, इसलिए लाश की शिनाख्त में कोई परेशानी नहीं हुई. लाशों के निरीक्षण में मृतका सिमरन उर्फ पिंकी की मुट्ठी से कुछ बाल बरामद हुए थे, इस का मतलब था कि मृतका और हत्यारे के बीच संघर्ष हुआ था. घटनास्थल से पुलिस को मृत बच्चियों के पास से चिप्स के खाली पैकेट भी मिले थे. मृतका सिमरन और 5 वर्षीया बच्ची पूजा की लाश रेलवे लाइन के बिलकुल पास मिली थी.
जबकि 8 वर्षीया दिव्या की लाश वहां से थोड़ी दूर पर डिप्टी सिंह के खेत से मिली थी. खेत की सिंचाई की गई थी, जिस से उस में कीचड़ था. अंदाजा लगाया गया कि जान बचाने के लिए दिव्या भागी होगी, लेकिन कीचड़ होने की वजह से वह ज्यादा भाग नहीं पाई. रेलवे लाइन से करीब 200 मीटर की दूरी पर मृतका सिमरन का शौल पड़ा था. सबइंसपेक्टर अजायब सिंह ने क्राइम टीम बुला कर घटनास्थल से जरूरी साक्ष्य एकत्र कराए. उस के बाद घटनास्थल की काररवाई पूरी कर के पुलिस ने तीनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भिजवा दिया.
स्वरूपनगर निवासी मृतका के पिता विजय ने पुलिस को बताया था कि सिमरन उर्फ पिंकी सहित उन की 4 संताने हैं. सिमरन उर्फ पिंकी की शादी उन्होंने सन 2000 में करनाल, हरियाणा के कुराली निवासी अशोक के साथ की थी. उस की 2 बेटियां थीं, 8 वर्षीया दिव्या और 5 वर्षीया पूजा. शादी के बाद 6-7 सालों तक तो सब ठीकठाक रहा, पर पिछले कुछ समय से पतिपत्नी के बीच किसी बात को ले कर झगड़ा होने लगा था. यह बात तलाक तक पहुंच गई थी, लेकिन पंचायत के बीच में आ जाने से तलाक होने से बच गया. विजय ने सबइंसपेक्टर अजायब सिंह को जो बताया था, उस के अनुसार 26 दिसंबर, 2008 को सिमरन अपनी दोनों बेटियों दिव्या, पूजा और पति अशोक के साथ अपने देवर की शादी के कार्ड देने लुधियाना आई थी.
कुछ कार्ड उस ने उसी दिन पहुंचा दिए थे और कुछ कार्ड अगले दिन यानी 27 तारीख को जा कर दिए थे. 27 तारीख की शाम को सिमरन और उस के पति अशोक में किसी बात को ले कर झगड़ा हुआ. लेकिन थोड़ी ही देर में दोनों में समझौता हो गया. उस के बाद अशोक कहीं चला गया. उस के जाने के थोड़ी देर बाद सिमरन दोनों बेटियों को ले कर बाजार घुमाने गई तो लौट कर नहीं आई. अगले दिन उन की लाशें मिलीं. सिमरन और उस की बेटियों की तलाश में वे लोग रात भर भटकते रहे थे.
सबइंसपेक्टर अजायब सिंह ने मृतका के पति अशोक से पूछताछ की, उस ने भी वही सब बताया, जो उस के ससुर ने बताया था. अजायब सिंह की समझ में यह नहीं आ रहा था कि सिमरन बेटियों को ले कर बाजार गई थी तो वह रेलवे लाइनों के पास सुनसान में कैसे पहुंच गई? जरूर वह वहां किसी परिचित के साथ गई होगी, पर किस के साथ? पोस्टमार्टम के बाद तीनों लाशें घर वालों को सौंप दी गईं. पोस्टमार्टम के अनुसार, दोनों लड़कियों की हत्या गला रेत कर की गई थी. सिमरन के शरीर पर चाकू के तमाम घाव थे. इस के अलावा उस के एक पैर की नस भी काटी गई थी. तीनों की मौत शरीर का खून बह जाने की वजह से हुई थी.
पुलिस का मानना था कि इन हत्याओं में किसी परिचित का हाथ था. इसलिए पुलिस का शक बारबार मृतका के पति अशोक पर जा रहा था. इस के बाद पुलिस ने मुखबिरों से जो जानकारी जुटाई, उस के अनुसार अशोक अपनी पत्नी सिमरन उर्फ पिंकी पर संदेह करता था. उसे संदेह था कि किसी के साथ उस के अवैध संबंध हैं. इसी बात को ले कर दोनों में झगड़ा होता था और बात तलाक तक पहुंच गई थी. अशोक की करनाल रेलवे स्टेशन रोड पर साइकिल रिपेयरिंग की दुकान थी. उस की आमदनी सीमित थी, जबकि सिमरन के खर्च शाही थे. वह एक महत्वाकांक्षी और आजाद खयालों वाली महिला थी. जबकि अशोक का परिवार पुराने खयालों वाला था.
शक के आधार पर अजायब सिंह ने अशोक के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. पता चला कि अशोक ने हत्याओं से कुछ घंटे पहले और 2 घंटे बाद तक अपने भाई ज्योति से कई बार बात की थी. इस के बाद ज्योति के फोन की लोकेशन पता की गई तो उस की लोकेशन पहले करनाल की और उस के बाद लुधियाना की मिली. घटना वाले समय उस की लोकेशन घटनास्थल की पाई गई थी. अब शक की कोई गुंजाइश नहीं थी. इस के बाद पुलिस ने थोड़ी सख्ती की तो अशोक ने अपनी पत्नी सिमरन और दोनों बेटियों, दिव्या एवं पूजा की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि उस ने तीनों हत्याएं छोटे भाई ज्योति कुमार और उस के दोस्त नवल के साथ मिल कर की थीं. इस काम के लिए उस ने नवल को 20 हजार रुपए देने का वादा किया था.
अशोक पकड़ा जा चुका था. ज्योति और नवल को गिरफ्तार करने के लिए सबइंसपेक्टर अजायब सिंह करनाल गए और पूछताछ के बहाने ज्योति और उस के दोस्त नवल को लुधियाना ले आए. पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में अशोक, ज्योति कुमार और नवल से की गई पूछताछ में सिमरन, दिव्या और पूजा की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह बहुत ही शर्मनाक थी. अशोक और सिमरन की शादी सन 2000 में हुई थी. शुरूशुरू में दोनों का वैवाहिक जीवन काफी खुशहाल रहा. अशोक की साइकिल रिपेयरिंग की दुकान थी. वह मेहनती और दूर की सोच रखने वाला था, जबकि सिमरन इस से बिलकुल उलटी थी. वह आजाद पंछी की तरह जीवन गुजारने वाली महिला थी. आजाद खयाल की होने के साथसाथ, वह महत्वाकांक्षी भी थी.
बनठन कर रहना और खुले हाथों खर्च करना सिमरन की आदत में शुमार था. अशोक को यह सब बिलकुल अच्छा नहीं लगता था, लेकिन किसी तरह वह निर्वाह कर रहा था. सिमरन 2 बेटियों की मां बन गई, इस के बावजूद उस की स्वछंदता में कोई सुधार नहीं हुआ. उसी बीच मिसरन की मुलाकात अपने एक पुराने परिचित से हुई. वह लुधियाना में उस के पड़ोस में रहता था. उन दिनों वह करनाल की किसी कंपनी में नौकरी कर रहा था. सिमरन अपने उस परिचित युवक से मिलनेजुलने लगी. उन की मुलाकातें दिनोंदिन बढ़ती गईं. वह उसे अपने घर भी बुलाने लगी. जब इस बात का पता अशोक को चला तो उस ने सिमरन को डांटा. उस ने सिमरन को उस युवक से संबंध तोड़ने और उसे घर पर न बुलाने के लिए कहा, पर सिमरन उस से संबंध विच्छेद करने को तैयार नहीं थी.
इसी बात को ले कर आए दिन दोनों में झगड़ा होने लगा. अशोक ने जब अपने सूत्रों से सिमरन के बारे में पता किया तो उसे जानकारी मिली कि सिमरन के दोस्ताना संबंध उसी एक युवक से नहीं, बल्कि और भी कई युवकों से हैं. अशोक के लिए यह बात बरदाश्त से बाहर थी, जबकि सिमरन को इस की जरा भी परवाह नहीं थी. परिणामस्वरूप अच्छीखासी चल रही गृहस्थी टूटने के कगार पर आ गई. अशोक ने अपनी गृहस्थी को बचाने के लिए सिमरन को काफी समझाने की कोशिश की, ससुराल वालों से भी शिकायतें कीं. जब कोई नतीजा नहीं निकला तो अशोक उसे तलाक देने के बारे में सोचने लगा.
लेकिन जब तलाक देने की नीयत से अशोक वकील के पास सलाह लेने पहुंचा तो वकील ने जो बताया, उस से उस का मन बदल गया. वकील ने बताया था कि बालिग होने तक बेटियां मां के साथ रहेंगी, लेकिन उन का खर्च उसे देना पड़ेगा. एक तो अशोक की इतनी कमाई नहीं थी कि वह दूसरी शादी कर के बेटियों का खर्च उठाता, दूसरे उसे इस बात का भी डर सता रहा था कि मां के साथ रह कर उस की बेटियां भी चरित्रहीन हो जाएंगी. इस के अलावा उसे यह भी लगता था कि तलाक के बाद अगर बेटियां उस के साथ आ गईं तो वह उन का क्या करेगा.
उस ने इन बातों पर गहराई से विचार किया तो उसे लगा कि इन सब से छुटकारा पाने का एक ही तरीका है कि सब की हत्या कर दी जाए. इस के बाद उस ने सब की हत्या की योजना बना डाली, लेकिन समस्या यह थी कि यह काम वह अकेला नहीं कर सकता था. अशोक ने घरपरिवार की इज्जत का हवाला दे कर अपने भाई ज्योति कुमार को अपनी योजना में शामिल कर लिया. ज्योति के हामी भरने पर 2 लोग हो गए. लेकिन हत्या उन्हें 3 लोगों की करनी थी, इसलिए उस ने ज्योति से कहा, ‘‘एक आदमी और होता तो काम करने में आसानी रहती.’’
इस पर ज्योति ने अपने दोस्त नवल को 20 हजार रुपए देने का वादा कर के हत्याओं में शामिल होने के लिए तैयार कर लिया. नवल करनाल में टैक्सी चलाता था. वह पैसों की वजह से नहीं, ज्योति की दोस्ती की वजह से हत्या जैसा अपराध करने को तैयार हुआ था. अशोक की बुआ के बेटे राजेश की 7 जनवरी को शादी थी. योजना के अनुसार, राजेश की शादी के कार्ड बांटने के लिए अशोक पत्नी सिमरन और दोनों बेटियों को ले कर अपनी ससुराल लुधियाना आ गया. यह 26 दिसंबर की बात थी. कुछ कार्ड उन्होंने उसी दिन बांट दिए. इस बीच अशोक फोन से लगातार ज्योति से संपर्क बनाए रहा.
27 दिसंबर, रविवार को योजनानुसार ज्योति अपने दोस्त नवल के साथ सुबह साढ़े 9 बजे की ट्रेन पकड़ कर दोपहर को लुधियाना पहुंच गया. अपने पहुंचने की सूचना उस ने फोन द्वारा अशोक को दे दी. दोपहर को अशोक उन से जालंधर बाईपास चौक पर मिला. वहां से तीनों रेलवे लाइन के किनारेकिनारे पैदल चलते हुए सिविल सिटी संधुनगर काली मंदिर के पास पहुंचे. यही वह स्थान था, जहां उन्हें तीनों हत्याएं करनी थीं. वहां उन्होंने सलाह की कि कैसे और किस तरह तीनों को मारना है. पूरी योजना समझा कर अशोक अपनी ससुराल चला गया.
ससुराल में अशोक सिमरन और दोनों बेटियों के साथ बैठा हंसीमजाक करता रहा. दामाद और बेटी को हंसतेबोलते देख ससुराल वाले भी खुश थे. योजनानुसार कुछ ही देर में अशोक ने सिमरन से झगड़ा कर लिया, लेकिन जल्दी ही उसे मना भी लिया. शाम 7 बजे के आसपास अशोक ने सिमरन को अपने पास बुला कर कहा, ‘‘सिमरन, अभीअभी ज्योति का फोन आया था कि उस ने नई कार खरीदी है और माथा टेकने के लिए वह माता चिंतपूर्णी के दरबार जा रहा है. उस ने कहा है कि जब तक हम लोग साथ नहीं चलेंगे, वह नहीं जाएगा. अब तुम्हीं बताओ हमें क्या करना चाहिए.’’
‘‘यह तो बड़ी खुशी की बात है कि देवरजी ने कार खरीद ली है. हम जरूर साथ जाएंगे. इसी बहाने देवी के दर्शन हो जाएंगे.’’ सिमरन ने खुशी प्रकट करते हुए कहा.
इस के बाद अशोक कुछ नहीं बोला तो सिमरन ने कहा, ‘‘तुम कुछ सोच रहे हो क्या?’’
‘‘तुम जैसा सोच रही हो, वैसा नहीं हो सकता.’’
‘‘क्यों?’’ सिमरन ने पूछा.
‘‘क्योंकि तुम्हारे घर वाले हमें जाने नहीं देंगे. हमारे आने की खुशी में आज उन्होंने खानेपीने का इंतजाम किया है.’’ अशोक ने कहा, ‘‘मैं ने दादीजी से पूछा था, उन्होंने डांट कर कहा कि खबरदार जो कहीं गए.’’
‘‘तब क्या किया जाए?’’ सिमरन ने पूछा तो अशोक ने कहा, ‘‘एक तरीका है. तुम दिव्या और पूजा को बाजार घुमाने के बहाने ले कर रेलवे लाइन के उस पार पहुंचो. मैं तुम्हें वहीं मिलता हूं. फोन कर के ज्योति को भी वहीं बुला लेता हूं. वहीं से हम सभी मंदिर चलेंगे. वापसी में ज्योति हमें यहीं छोड़ देगा.’’
सिमरन अशोक की बातों में आ गई. वैसे तो सिमरन बहुत चालाक थी, लेकिन जब मौत आती है तो चालाकी काम नहीं देती. सिमरन को मना कर अशोक 7 बजे घर से निकल गया. उस के 10 मिनट बाद सिमरन भी दोनों बेटियों को बाजार घुमाने के बहाने ले कर घर से निकल पड़ी. कुछ देर में वह अशोक द्वारा बताई जगह पर पहुंच गई. अशोक भी पीछे से वहां पहुंच गया.
सिमरन ने पूछा, ‘‘ज्योति कहां है?’’
‘‘वह रेलवे लाइन के उस पार आ रहा है. तुम बच्चों को ले कर उस पार चलो. मैं अभी आ रहा हूं.’’
सिमरन दोनों बेटियों दिव्या और पूजा को ले कर लाइन के उस पार जाने लगी तो अशोक ने वहीं छिपे ज्योति और उस के दोस्त नवल को इशारा कर दिया और खुद ससुराल लौट आया, जिस से किसी को उस पर संदेह न हो. अशोक के कहने पर सिमरन दोनों बेटियों को ले कर रेलवे लाइन के उस पार जाने के लिए आगे तो बढ़ी, लेकिन उसे डर लगा, क्योंकि अंधेरा होने के साथ वहां सन्नाटा था. बहरहाल, उस ने जैसे ही रेलवे लाइन पार की, किसी चीते की तरह नवल हाथ में चाकू लिए उस पर झपटा. ज्योति ने दिव्या पर वार करना चाहा. अचानक हुए हमले से घबरा कर सिमरन ने शोर मचा दिया और दोनों बेटियों को ले कर खेत की ओर भागी. लेकिन ज्योति ने दौड़ कर पीछे से उन्हें दबोच लिया.
हाथ में लिए चाकू से ज्योति ने सिमरन की गर्दन पर पूरी ताकत से वार किया. लेकिन चाकू सिमरन की गर्दन की हड्डी में लगा, जिस से वह हत्थे के पास से टूट कर नीचे गिर गया. इस के बाद नवल ने अपने चाकू से उस की हत्या कर दी. मरने से पहले सिमरन ने जान बचाने के लिए ज्योति और नवल से खूब संघर्ष किया था. इसी संघर्ष में नवल के सिर के बाल उस की मुट्ठी में आ गए थे, जिसे बाद में पुलिस ने बरामद कर लिया था. सिमरन की हत्या करने के बाद नवल और ज्योति दिव्या और पूजा के पीछे दौड़े. मां की हत्या होते देख दोनों लड़कियां जान बचाने के लिए भागीं तो, लेकिन खेत में कीचड़ होने की वजह से भाग नहीं पाई. वैसे भी पूजा तो अभी छोटी ही थी. ज्योति ने पूजा की और नवल ने दिव्या की गला रेत कर हत्या कर दी.
मांबेटियों को मौत के घाट उतारने के बाद उन्होंने फोन द्वारा इस बात की जानकारी अशोक को दे दी. इस काम में उन्हें 20-25 मिनट लगे थे. तीनों की हत्या और अशोक को सूचना देने के बाद दोनों बस से करनाल के लिए रवाना हो गए. रास्ते में उन्होंने राजपुरा के पास चलती बस से अपनी जैकेट उतार कर फेंक दीं, क्योंकि उस पर खून के छीटें पड़ गए थे. रिमांड के दौरान जांच अधिकारी अजायब सिंह ने चाकू और जैकेट बरामद कर लिए थे. सिमरन की हत्या करने के बाद ज्योति ने कान में पहनीं उस की सोने की बालियां उतार ली थीं. अजायब सिंह ने उन्हें भी बरामद कर लिया था. दूसरी ओर जब काफी देर तक सिमरन बाजार से लौट कर नहीं आई तो योजनानुसार अशोक ने चिंता व्यक्त करते हुए अपने ससुराल में हंगामा खड़ा कर दिया.
वह रिश्तेदारों के साथ खुद भी रात भर सिमरन और बेटियों की तलाश करता रहा. सुबह वह अपने रिश्तेदारों और ससुर विजय को सिमरन की तलाश में जानबूझ कर उस ओर ले गया, जहां मांबेटियों की लाशें पड़ी थीं. इस मामले में अभियोजन पक्ष ने अपनी ओर से कुल 19 गवाह पेश किए थे, जिन में घटनास्थल के फोटो खींचने वाला फोटोग्राफर, क्राइमटीम, पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर और कुछ पुलिसकर्मियों के अलावा मुख्य गवाह था मृतका का पिता विजय. तीनों आरोपियों के इकबालिया बयान भी थे, जिन्हें अदालत ने सच माना था. अपने बयान में तीनों अभियुक्तों ने सिमरन और उस की दोनों बेटियों, दिव्या एवं पूजा की हत्या की बात स्वीकार की थी. अदालत ने 23 अप्रैल, 2014 को तीनों अभियुक्तों को दोषी ठहराते हुए फैसले की तारीख 25 अप्रैल, 2014 तय की थी.
25 अप्रैल, 2014 को एडिशनल सेशन जज श्री एस.पी. सूद ने इस तिहरे हत्याकांड का फैसला सुनाया. उन्होंने कहा, ‘‘गवाहों के बयान, पुलिस तफ्तीश, घटनास्थल से प्राप्त सुबूतों एवं अभियुक्तों के बयानों से यह सिद्ध हो गया है कि 27-28 दिसंबर, 2009 की रात अभियुक्त अशोक, जो मृतका सिमरन का पति है, ने अपनी पत्नी सिमरन और दोनों बेटियों, दिव्या एवं पूजा को एक सुनसान जगह पर ले गया और अपने भाई ज्योति कुमार तथा भाई के दोस्त नवल से तीनों की बेरहमी से हत्या करा दी.
‘‘घटनास्थल और मृतका की गर्दन से बरामद चाकुओं पर मिले फिंगरप्रिंट व फोरेंसिक जांच रिपोर्ट से स्पष्ट हो गया है कि फिंगर प्रिंट, जूतों के निशान, डीएनए रिपोर्ट और मृतका की मुट्ठी से बरामद अभियुक्त के सिर के बाल अभियुक्तों के ही हैं.
‘‘इस बात में कोई संदेह नहीं कि तीनों अभियुक्तों ने सिमरन और उस की दोनों बेटियों का बेरहमी से कत्ल किया है. इसलिए ये किसी भी तरह से रहम या माफी के काबिल नहीं हैं. अभियुक्त अशोक कुमार, अभियुक्त ज्योति कुमार और अभियुक्त नवल किशोर को सिमरन, पूजा और दिव्या की हत्या का दोषी मानते हुए जीवित रहने तक जेल में रहने की सजा दी जाती है.’’
इस तरह अशोक व उस के भाई ज्योति और उस के दोस्त नवल को अपने किए की सजा मिल गई. जज के सजा सुनाते ही पुलिस ने तीनों अभियुक्तों को अपनी कस्टडी में ले लिया. Family Dispute