Hindi Story : अमीन और रूबीना की मुलाकात एक इत्तफाक की वजह से हुई थी. इसे महज औपचारिक मुलाकात समझ कर दोनों ने ही एकदूसरे को अपना नामपरिचय गलत बताया. लेकिन धीरेधीरे दोनों के संबंध गहरा गए और बात आंतरिक संबंधों तक जा पहुंची. बाद में जब इत्तफाक से दोनों की शादी हो गई तो सुहागरात को सारा रहस्य खुला. रूबीना का जन्म सियालकोट के एक मध्यवर्गीय शिक्षित घराने में हुआ था. मातापिता बेटी को
धार्मिक शिक्षा दिलाना चाहते थे, लेकिन रूबीना पढ़लिख कर प्रोफैसर बनना चाहती थी. मैट्रिक पास करने के बाद रूबीना ने इंटर की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास कर ली. बीए करने के बाद उस ने एमए करने का फैसला किया. स्टूडेंट लाइफ में उस की एक सहेली थी, जिस का एक ही भाई था सुहेल अहमद. घराना कुछ अच्छा नहीं था. उस के पिता की बाजार में मामूली सी दुकान थी, जहां कपड़ों की सिलाई का काम होता था.
सुहेल अपनी शिक्षा के खर्चे पूरे करने के लिए मोहल्ले में बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया करता था. मैट्रिक तक रूबीना भी उस के घर ट्यूशन पढ़ने जाया करती थी. मैट्रिक के बाद जब उस ने ट्यूशन छोड़ दिया तब भी सुहेल से उस की दुआसलाम जारी रही. वक्त निकाल कर वह कभी परीक्षा के लिए नोट लेने तो कभी किसी और बहाने से उस से मिल लिया करती थी. दरअसल, वह मन ही मन सुहेल को पसंद करने लगी थी क्योंकि वह बहुत मेहनती और जहीन लड़का था. लगता था कि वह आगे चल कर बहुत तरक्की करेगा. लेकिन सुहेल की सोच कुछ और ही थी. वह अधिक से अधिक शिक्षित हो कर अपने घर वालों को गरीबी की दलदल से निकालना चाहता था. वह यह बात अच्छी तरह जानतासमझता था कि उस के मातापिता उस की पढ़ाई का खर्च बड़ी मुश्किल से पूरा कर पाते हैं.
रूबीना ने अपनी पढ़ाई के साथसाथ सुहेल से भी नाता जोड़े रखा. वह समय निकाल कर अपनी सहेली से मिलने चली जाया करती थी. इस बहाने उस की सुहेल से भी बात हो जाती थी. इसे बचपन का प्यार भी कह सकते हैं, लेकिन यह प्रेम एक तरफा था. क्योंकि सुहेल की सोच कुछ और ही थी. फिर भी वह रूबीना का दिल रखने के लिए गाहेबगाहे उस से प्रेम से बातें कर लेता था. इस का नतीजा यह हुआ कि रूबीना यह समझने लगी कि वह उसे पसंद करता है. इसी तरह काफी वक्त गुजर गया. कुछ समय बाद सुहेल एलएलबी की पढ़ाई के लिए लाहौर चला गया. इस बीच रूबीना बीए पास कर चुकी थी.
रूबीना सुहेल से प्यार करने लगी थी. उस का लाहौर चले जाना उस की परेशानी का कारण बन गया. उस ने फैसला कर लिया था कि वह हर हालत में सुहेल को अपना जीवन साथी बनाएगी. सुहेल की जुदाई में उस ने पढ़ाई में भी रूची लेनी कम कर दी थी. आखिर एक दिन रूबीना ने अपनी मां से अपनी पसंद बता दी.
‘‘यह तुम क्या कर रही हो?’’ बेटी की बात सुन कर मां गुस्से से बोली, ‘‘अभी तो तुम्हारे पढ़ने के दिन हैं, पढ़ाई पूरी करने के बाद तुम्हारी पसंद या शादी विवाह के बारे में सोचा जा सकता है.’’
रूबीना वयस्क और पढ़ीलिखी थी, लेकिन घर के वातावरण को देख कर उस ने अपनी भावनाओं को अस्थाई तौर पर दबा लिया. उसे यह बात अच्छी तरह पता थी कि उस के पिता इस मामले में बहुत सख्त हैं. जब मां उस की पसंद पिता तक पहुंचाएगी तो घर में तूफान खड़ा हो जाएगा, जिसे वह सहन नही कर सकेगी. वैसे भी शादी के लिए घर में अभी उस का एक बड़ा भाई था, जिस की शादी के बाद ही उस की शादी हो सकती थी. सुहेल एलएलबी के लिए सियालकोट से लाहौर चला गया था. सोचविचार कर उस ने सुहेल के पास रहने की एक योजना बनाई.
उस ने अपनी मां को विश्वास में ले कर कहा, ‘‘अम्मी ठीक है, मैं सुहेल का विचार अपने दिल से निकाल देती हूं. आप लोग जहां मेरी शादी करना चाहेंगे, मैं मना नहीं करूंगी. लेकिन आप भी मेरी एक बात मान लें. मैं आजकल यहां बोर हो रही हूं, पढ़ने में दिल नहीं लगता. मेरी सहेलियां भी उच्च शिक्षा के लिए लाहौर यूनिवर्सिटी चली गई हैं, वहां वे गर्ल्स हौस्टल में रहती हैं. आप अब्बा से कह कर मुझे भी लाहौर यूनिवर्सिटी में दाखिला दिलवा दें.’’
मां ने बेटी की पूरी बात सुनी. वह समझ गई कि लाहौर जा कर पढ़ना तो एक बहाना है, वह सुहेल की वजह से ऐसा चाहती है. मां आखिर मां होती है, अपने बच्चों को अच्छी तरह समझने वाली. सुन कर मां के दिल में विचार आया कि इनकार करने पर बेटी कोई गलत कदम भी उठा सकती है. इसलिए उस ने रूबीना को तसल्ली दी कि वह जल्दी ही उस के पिता से बात कर के उन्हें इस के लिए राजी कर लेगी. मां ने मौका देख कर अपने पति से कहा कि रूबीना आगे की पढ़ाई लाहौर जा कर अपनी सहेलियों के साथ पूरा करना चाहती है. उस की सहेलियां वहां हौस्टल में रहती हैं. पहले तो पिता ने मना किया, लेकिन काफी बहस के बाद वह बेटी को लाहौर भेजने के लिए तैयार हो गए.
इस तरह रूबीना आगे पढ़ने के लिए लाहौर चली आई. बी ए में उस के अच्छे नंबर थे, इसलिए उसे आसानी से एमए में एडमिशन भी मिल गया और हौस्टल में जगह भी. रूबीना इस से बहुत खुश थी. उस के जीवन में अचानक बदलाव आ गया था, आजादी भरा वातावरण. वह फुरसत में शाम को अकसर अपनी नई पुरानी सहेलियों के साथ कहीं न कहीं घूमने चली जाया करती थी. उन्हें देखदेख कर वह भी आजाद पंछी हो गई थी. रूबीना की सोच केवल सुहेल तक ही सीमित थी, जिस की याद को वह सीने से लगाए हुए थी. आखिर काफी कोशिशों के बाद उस ने सुहेल को ढूंढ ही लिया. उस का पता लगते ही वह अगले दिन सुहेल के कालेज में उस से मिलने गई. सुहेल जब कालेज से बाहर आया, तो उस ने देखा रूबीना अपने हाथों में किताबें लिए खड़ी थी.
अचानक मिलने से दोनों बहुत खुश हुए. वहां से वे एक कैफे में पहुंचे, चाय वगैरह पी और इधर उधर की बातें कीं. रूबीना ने सुहेल से कहा कि वह उस की तलाश में सियालकोट से लाहौर आई है और कालेज में एडमिशन ले कर लेडीज हौस्टल में रही है. इस तरह दोनों के बीच दोबारा मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो गया. एक बार दोनों की मुलाकात हुई तो रूबीना ने बात छेड़ी, ‘‘मैं केवल तुम्हारे लिए लाहौर आई हूं. बोलो, क्या इरादा है, मैं तुम से हर हाल में शादी करना चाहती हूं.’’
‘‘तुम अच्छी तरह जानती हो कि मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है?’’ सुहेल ने रूबीना से कहा, ‘‘जब तक मेरी शिक्षा पूरी नहीं हो जाती, मेरा शादी करने का कोई इरादा नहीं है. दूसरे मुझे यह भी पता है कि तुम्हारे पिता कट्टर धार्मिक इंसान है. अगर उन्हें इस शादी का पता लग गया, तो मेरी ही क्या, मेरे घर वालों की भी हत्या करा देंगे. मैं इस तरह का कोई खतरा मोल लेना नहीं चाहता, जिस से मेरा और मेरे घर वालों का जीवन खतरे में पड़ जाए. बाकी रही मेरे रिश्ते की बात तो मैं तुम्हें अंधेरे में रखना नहीं चाहता. मेरे मातापिता मेरा रिश्ता मेरे चाचा की बेटी से तय करना चाहते हैं और मैं उन की इच्छा के खिलाफ जाने के बारे में सोच भी नहीं सकता.’’
रूबीना ने जब सुहेल के मुंह से यह बात सुनी तो वह आग बबूला हो गई. उस की सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया.
‘‘लेकिन तुम तो मुझ से प्यार की बातें करते थे.’’ रूबीना ने कहा तो सुहेल बोला, ‘‘हां, करता था, लेकिन वह मेरी भूल थी. मेरी मजबूरी यह है कि मेरे कालेज की फीस और पढ़ाई का सारा खर्च मेरे चाचा उठा रहे हैं, जो मेरे ऊपर उन का उपकार है. जबकि मेरे पिता की एक छोटी सी दुकान है, जिस से घर का खर्च भी मुश्किल से चल पाता है.’’
‘‘मैं घर से पैसा और जेवर ले जाऊंगी. क्या 5-6 लाख में हमारी शादी और तुम्हारी पढ़ाई का खर्च पूरा नहीं हो सकता?’’
‘‘नहीं, ऐसा सोचना भी नहीं, यह भावनात्मक फैसले होते हैं, जो आगे चल कर समस्या खड़ी कर देते हैं. हम ऐसा नहीं कर सकते.’’
‘‘तुम मुझे डरपोक लगते हो.’’ रूबीना ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें पहले ही समझ लेती तो अच्छा था.’’
‘‘मैं डरपोक नहीं हूं.’’ सुहेल ने कहा, ‘‘लेकिन मेरी गरीबी मुझे ऐसा करने की इजाजत नहीं दे रही. मेरी सोच तुम से अलग है. मैं अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद अपने घर वालों को गरीबी से निकालना चाहता हूं. तुम से शादी कर के मैं कुछ नहीं कर पाऊंगा. इसलिए तुम से शादी नहीं कर सकता.’’ सुहेल ने बात साफ करते हुए कहा.
यह सुन कर रूबीना ने रोना शुरू कर दिया. सुहेल उसे तसल्ली देता रहा, शिकायतें भी होती रहीं. आखिर रूबीना मायूसी की हालत में वहां से चली आई. फिर धीरेधीरे दोनों की मुलाकातें कम होती गईं. रूबीना सियालकोट से जो सपने संजो कर लाहौर आई थी, वह सब धरे के धरे रह गए. एक और सुहेल अपनी शिक्षा पर पूरा ध्यान दे रहा था. वहीं दूसरी ओर रूबीना मायूस हो कर उस से दूर होती चली गई. धीरेधीरे उस के जीवन में बहुत बदलाव आ गया. वह आए दिन अपनी सहेलियों के साथ फिल्में देखने चली जाती, उन के साथ नएनए होटलों में खाना खाया जाता, नएनए लड़कों से भेंट होती. अब रूबीना की सोच में यह बात आ गई थी कि तू नहीं तो और सही, और नहीं तो कोई और सही.
फिर अपनी बोरियत दूर करने और जीवन की नई राहों पर चलने के लिए उस ने एक और रास्ता निकाला. उस की रूम मेट शाजिया बहुत ही तेज तर्रार लड़की थी. वह रोज नएनए लड़कों से मिलती थी. हर हफ्ते बाजार से नए से नए सूट खरीद कर लाती. उस का पर्स भी हर समय नोटों से भरा रहता. मुलतान की रहने वाली शाजिया का पढ़ाई की तरफ कोई ध्यान नहीं था. वह जिंदगी को भरपूर तरीके से एंजौए करने में यकीन रखती थी. 10-15 दिन में चीफ वार्डन या हौस्टल से इजाजत ले कर एक आध दिन के लिए वह हौस्टल से गायब भी हो जाती थी. बहाना होता कि वह अपने किसी रिश्तेदार के घर जा रही है. कभीकभी वह कोई कीमती तोहफा अपनी रूम मेट रूबीना को भी दे देती थी. रूबीना उस से बहुत प्रभावित भी थी, लेकिन शाजिया को महसूस नहीं होने देती थी.
सुहेल की बेरूखी ने रूबीना को शाजिया के काफी करीब ला दिया था, अब वह भी हफ्ते में एक बार उस के साथ घूमने निकल जाती थी. उस के साथ होटल में खाना खाती और फिर घूमफिर कर हौस्टल लौट आती. अब तक रूबीना पूरी तरह शाजिया की गतिविधियां समझ गई थी. शाजिया 2 नंबर की लड़की थी इस के बावजूद वह उस के साथ घूमने जाती थी. एक वीक एंड पर शाजिया ने रूबीना से कहा कि वह आज रात अपने एक दोस्त से मिलने जा रही है और उस की वापसी रात को 9 बजे होगी. यह भी हो सकता है कि वह रात भर होटल में ठहरे और सुबह सवेरे वापस लौटे.
रूबीना ने मजाक में शाजिया से पूछा कि क्या वह भी उस के साथ चल सकती है. यह सुन कर शाजिया परेशान हो गई. वह सोचने लगी कि आज उस की सहेली ने इतनी बड़ी बात कैसे कह दी, वह तो हमेशा सुहेल के खयालों में गुम रहती है. खैर, मजाक में बात खत्म हो गई और शाजिया चली गई. शाजिया ने रूबीना को पूरी तर विश्वास में ले रखा था. वह समय निकाल कर हौस्टल से गायब हो जाती और कभीकभी रूबीना को भी साथ ले जाती. लेकिन उसे अपने मित्र से कभी नहीं मिलवाती थी. रूबीना होटल में समय बिताती. शाजिया समझती थी कि औरत ही औरत का घर उजाड़ती है और एक सहेली दूसरी सहेली की राह में रूकावट बन जाती है. रूबीना भी यह सोच कर अधिक जोर नहीं देती थी कि कहीं शाजिया के रंग में भंग न पड़े. उसे शाजिया के चरित्र से कुछ लेनादेना नहीं था. वह केवल दोस्ती पर विश्वास रखती थी.
इसी तरह दिन बीतते रहे. एक दिन रूबीना शाजिया के साथ होटल गई. शाजिया अपने दोस्त से मिलने चली गई और रूबीना होटल की लौबी में बैठ गई. शाजिया लगभग आधे घंटे बाद वापस आई और रूबीना से चलने को कहा. रूबीना पहले से ही उस के इंतजार में थी. उस ने जल्दी में टेबल पर पड़ी अपनी चीजें उठाई और होटल से रवाना हो गई. तभी जल्दबाजी में रूबीना का मिनी पर्स टेबल के नीचे कालीन पर गिर गया जिस की ओर उस का ध्यान नहीं गया. उस से कुछ दूरी पर अमीन चौधरी बैठा था, वह एक्साइज इंस्पैक्टर था. वह अपनी ड्यूटी पर होटल का रिकार्ड चैक करने आता था. अपने काम से निपट कर वह अकसर होटल की लौबी में समय गुजारता था.
अमीन चौधरी काफी देर से शाजिया और रूबीना पर नजरें टिकाए बैठा था. एक लड़की अपने एक दोस्त से मिलने होटल आती है और दूसरी को लौबी में अकेला बिठा कर कमरे में चली जाती है. उसे रूबीना अच्छी लड़की लगी. अमीन समझ गया कि वह शाजिया के चंगुल में फंसी हुई है. उस ने रूबीना का पर्स उठा लिया. पर्स खोल कर देखा तो उस में 12-13 सौ रुपए नकद और कुछ दूसरे कागज थे. अमीन पर्स ले कर तुरंत होटल के बाहर पहुंचा ताकि पर्स लौटा सके. लेकिन तब तक दोनों लड़कियां गायब हो चुकी थीं मजबूरी में वह वापस लौट आया. पर्स में कोई फोन नंबर या पता भी नहीं था. उस ने सोचा दोनों लड़कियां हफ्ते में एक बार वहां आती हैं, इसलिए जब वे आएंगी तो उन का पर्स वापस कर देगा, इस बहाने उन से परिचय भी हो जाएगा.
एक हफ्ते बाद दोनों लड़कियां होटल में आईं तो शाजिया अपने दोस्त से मिलने चली गई और रूबीना लौबी में बैठ कर अखबार पढ़ने लगी. अमीन रूबीना से मिलने के लिए बेचैन था. अच्छा मौका जान कर वह उस के पास पहुंचा और उस से बैठने की इजाजत मांगी. रूबीना ने बड़ी बेरूखी से उस पर एक नजर डाल कर कहा, ‘‘बैठ जाइए.’’ फिर वह उस की ओर देखे बिना अखबार पढ़ने लगी.
‘‘मिस, क्या एक मिनट मेरी बात सुनना पसंद करेंगी?’’ अमीन ने कहा, तो रूबीना ने एक नजर अमीन पर डाली. वह सुंदर सूट और टाई पहने था.
‘‘कहिए, क्या कहना चाहते हैं.’’ रूबीना ने कड़े तेवरों से कहा, ‘‘वैसे मैं आप को बिलकुल नहीं जानती.’’
‘‘मिस, आप तो बुरा मान गईं. मैं तो आप के भले की ही बात करना चाहता हूं. दरअसल, पिछले हफ्ते जब आप यहां आई थीं तो आप का पर्स गिर गया था.’’
‘‘हां हां, क्या आप को मेरा पर्स मिला है?’’ रूबीना ने जोश में पूछा, ‘‘उस में बारह तेरह सौ रुपए भी थे.’’
‘‘आप बेकार में नाराज हो रही थीं, पर्स मेरे पास सुरक्षित है. जब आप उठ कर गई थीं, तो मैं आप से कुछ दूरी पर बैठा हुआ था. मैं जल्दी में आप के पीछे भागा भी था, लेकिन आप आटोरिक्शा में बैठ कर गायब हो गईं. मैं ने सोचा भी कि आप के पते पर भेज दूंगा, लेकिन आप का पता या मोबाइल नंबर पर्स में नहीं था. फिर सोचा आप अगले हफ्ते तो आएंगी ही, इसलिए आप अपनी अमानत संभालिए और इस खुशी में मुंह मीठा करवाइए.’’ अमीन ने हंस कर कहा.
‘‘मैं आप के बारे में कुछ और समझ रही थी.’’ रूबीना ने कहा, ‘‘मुझे तो लगा था कि आटोरिक्शा में सफर करते हुए मेरा पर्स कहीं गिर गया है. सचमुच इस दुनिया में अभी भी अच्छे लोग हैं.’’
‘‘मैं तो एक सीधा सादा इंसान हूं. वैसे भी आप की अमानत आप तक पहुंचाना मेरा फर्ज था.’’
‘‘अच्छा बताइए क्या पिएंगे ठंडा या गर्म?’’
‘‘नहीं नहीं, कुछ नहीं, धन्यवाद.’’
‘‘यह कैसे हो सकता है, आप को कुछ न कुछ तो लेना ही होगा.’’ रूबीना ने कहा.
‘‘आप कैसी लड़की हैं, कुछ मिनट पहले तक तो आप का मूड बिगड़ा हुआ था जबकि अब आप एकदम विनम्र हो गई हैं.’’
‘‘आप मुझे शर्मिंदा न करें.’’
‘‘ठीक है, पी लेता हूं और खा भी लेता हूं. लेकिन शर्त यह है कि बिल मैं दूंगा.’’
‘‘यह नहीं हो सकता, आज बिल मैं दूंगी. फिर कभी मुलाकात हुई, तो बेशक बिल आप अदा कर देना, वैसे आप करते क्या हैं?’’ रूबीना ने पूछा. अमीन बहुत अनुभवी था, दुनिया को हर तरह से जानना समझने वाला. वह यह बात अच्छी तरह जानता था कि पहली मुलाकात में कभी भी अपना असली नामपता नहीं बताना चाहिए. क्योंकि इस से आगे चल कर कोई न कोई मुश्किल खड़ी हो सकती है. इसलिए उस ने झूठ बोल दिया, ‘‘मेरा नाम खालिद अहमद चौधरी है. फैसलाबाद का रहने वाला हूं और मैं पंजाब पुलिस में इंसपैक्टर हूं. आजकल मेरी तैनाती लाहौर में है.’’
‘‘मुझे पहले ही शक था.’’ रूबीना ने हंस कर कहा, ‘‘मेरा अनुमान ठीक निकला, आप वास्तव में जिम्मेदार और बड़े काम के आदमी हैं.’’ बातें चल ही रही थीं कि अमीन ने इशारे से वेटर को बुला कर कहा, ‘‘2 ग्लास फू्रटी आइसक्रीम ले आओ.’’
वेटर आइसक्रीम ले आया.
‘‘अब आप पर्स मिलने की खुशी में यह मेरी तरफ से खाएं.’’ अमीन बोला. रूबीना भी अमीन से कम नहीं थी. परिचय के मामले में उस ने भी अमीन वाला फार्मूला इस्तेमाल किया यानी अपना नामपता गलत बताया. उस ने अपना नाम खालिदा बता कर कहा कि वह लाहौर में फार्मेसी का कोर्स कर रही है और झेलम की रहने वाली है. समझदार लड़कियां पहली मुलाकात में लड़कों को अपना नाम पता गलत बताती हैं. ताकि कोई ब्लैकमेल न करे. आइसक्रीम खत्म होने पर वेटर बिल ले आया जो 150 रुपए का था. अमीन ने अपने पर्स से 500 का नोट निकाल कर वेटर को दे दिया. वेटर ने 350 रुपए वापस ला कर दिए तो अमीन ने उसे लौटाते हुए कहा, ‘‘ये हम दोनों की ओर से बख्शीश.’’ वेटर खुश हो कर चला गया.
‘‘आप ने वेटर को इतने ज्यादा पैसे दे दिए, हैरत है. इतने का तो बिल भी नहीं था.’’
‘‘कोई बात नहीं, इन लोगों की जिंदगी केवल टिप पर ही चलती है. मालिक लोग इन्हें मामूली सी पगार देते हैं.’’ वह हंस कर बोला. रूबीना पर अमीन का पहला प्रभाव बहुत अच्छा पड़ा. उस ने अमीन की ओर प्यार भरी नजरों से देखा. इधरउधर की बातें करते हुए लगभग आधा घंटा हो गया. अमीन जानता था कि अब थोड़ी देर में उस की सहेली वापस आ जाएगी. हो सकता है उसे खालिदा से उस का मिलन अच्छा न लगे. इसलिए उस ने उस से कहा, ‘‘अब मुझे इजाजत दीजिए, मुझे ड्यूटी पर जाना है.’’
‘‘अगली भेंट कब होगी?’’ रूबीना ने पूछा. दरअसल वह पहली ही मुलाकात में उसे दिल दे बैठी थी. जवाब में वह बोला, ‘‘मैं कल आप को इसी समय यहीं पर मिलूंगा.’’
‘‘आप से एक बात कहूं, मिस खालिदा. आप में एक कमजोरी यह है कि आप दूसरे की हर बात पर तुरंत यकीन कर लेती हैं और बिना सोचेसमझे अपने दिल की बात दूसरे को बता देती हैं. आप अपनी जिंदगी में बहुत सोचसमझ कर चलें और खुद जीना सीखें. अपने रास्ते खुद तलाश करें.’’ अमीन का इशारा उस की सहेली की ओर था.
‘‘आप अच्छी बातें करते हैं. ठीक हैं, मैं कल इसी वक्त इस जगह जरूर आऊंगी और अकेली आऊंगी. बाकी बातें कल होंगी.’’ रूबीना ने कहा. अमीन खुशीखुशी वहां से चला गया. ठीक 5 मिनट बाद शाजिया आ गई और दोनों हौस्टल चली गईं. रूबीना बहुत खुश थी, वह हर हाल में सुहेल की याद को भुलाना चाहती थी और एक नए जीवन साथी की तलाश में थी. उस ने इस मुलाकात का शाजिया से कोई जिक्र नहीं किया. समय गुजरता गया. रूबीना समय निकाल कर अपने नए साथी से हफ्ते में एकआध मुलाकात कर लेती थी. धीरेधीरे दोनों एकदूसरे के इतने करीब आ गए कि एकसाथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे. रूबीना की सहेली शाजिया ने उस में यह बदलाव महसूस किया. क्योंकि पहले वह हर वक्त चुप और उदास रहती थी, जबकि आज कल बहुत खुश नजर आने लगी थी.
अब वह नएनए लिबास खरीदती और पहनती थी. शाजिया ने उस से इस का कारण पूछा, लेकिन रूबीना ने गोलमोल जवाब दे कर बात खत्म कर दी. इस के बावजूद शाजिया इतना जरूर समझ गई कि रूबीना किसी के प्रेम जाल में फंस गई है. इसीलिए आज कल वह अकेलीअकेली रहना पसंद करती है. अमीन ने रूबीना को चेता रखा था कि शाजिया से बच कर रहे, क्योंकि वह एक कालगर्ल लगती है. एक दिन रूबीना अमीन से होटल में मिलने आई. उस दिन अमीन की नीयत बदलीबदली सी थी. दोनों ने लौबी में बैठ कर चाय पी. फिर अचानक प्रोग्राम बना कर दोनों होटल के कमरे में चले गए. अमीन इंस्पैक्टर था, विभाग की ओर से उसे होटल में सजासजाया कमरा मिला हुआ था.
रूबीना कमरे में दाखिल होते हुए बहुत खुश हुई, दोनों ने समय का खूब फायदा उठाया. जहां औरत और मर्द साथ हों वहां तीसरा शैतान होता है, जो दोनों को बहकाता है. यहां भी यही हुआ, दोनों अनजाने में वह गलती कर बैठे जो शैतान चाहता था. बाद में जब रूबीना को अहसास हुआ कि वह अपनी इज्जत का कीमती मोती लुटा चुकी है, तो वह रोने लगी. अमीन भी परेशान हो गया और उसे झूठी सच्ची तसल्ली देने लगा. उस ने उस से शादी का वादा भी किया. रूबीना कर भी क्या सकती थी, वैसे भी उस के साथ जो कुछ हुआ उस में उस की सहमति भी थी.
‘‘ठीक है अगर तुम मुझ से शादी करोगे तो चिंता की कोई बात नहीं है. लेकिन सोच लेना कि शादी से इनकार किया तो मैं तुम्हारे घर वालों को हकीकत बता दूंगी, साथ ही तुम्हारे औफिस जा कर तुम्हें बदनाम भी कर दूंगी.’’ रूबीना ने एक तरह से प्रेमभरी धमकी दी. अमीन कुछ डर सा गया. उस वक्त उस ने रूबीना को समझा तो दिया, लेकिन उस के दिल में यह डर जरूर बैठ गया कि यह लड़की आगे चल कर कहीं उस के लिए मुसीबत न बन जाए. गनीमत यही थी कि उस ने उसे अपना नामपता सब गलत बताया था.
इस के बाद धीरेधीरे दोनों की मुलाकातें कम होने लगीं. अमीन ने भी उस होटल में आनाजाना कम कर दिया था. वह दूसरेतीसरे दिन होटल की जांच के लिए जाता और 4 बजे से पहले लौट आता, जबकि रूबीना शाम के समय आती थी. रूबीना पढ़ीलिखी युवती थी. धीरेधीरे उस की समझ में यह बात आने लगी थी कि अमीन उस से आंखें चुरा रहा है. इस का नतीजा यह हुआ कि रूबीना का प्रेम बदले की भावना में ढलने लगा. अमीन ने रूबीना से अपना नाम इंसपैक्टर खालिद अहमद बताया था. वह पूछती हुई पुलिस विभाग तक पहुंच गई, लेकिन वहां उसे पता लगा कि इस नाम का कोई आदमी नहीं है. इस से रूबीना समझ गई थी कि उस के साथ धोखा हुआ है.
इसी बीच अमीन का वहां से तबादला हो गया. इस के साथ ही दोनों के मिलने का सिलसिला पूरी तरह खत्म हो गया. इस से रूबीना बहुत परेशान रहने लगी. वह सोचने लगी कि सुहेल कितना अच्छा आदमी था. उस ने उस की इज्जत को हर तरह से सुरक्षित रखा, जबकि अमीन जिस ने अपना नाम ही गलत बताया था, उस की इज्जत लूट ले गया. उधर सुहेल ने वकालत का इम्तेहान पास कर लिया और शहर के एक बड़े वकील के साथ प्रैक्टिस करने लगा. उस की शादी भी हो गई थी.
रूबीना को पहले सुहेल का दुख था, फिर उसे खालिद के गंदे सुलूक ने निढाल कर दिया. वह हर समय सोचती रहती. इसी वजह से वह पढ़ाई से भी दूर होती गई. जब मन ज्यादा दुखी हुआ तो वह अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़ कर अपने घर सियालकोट वापस चली गई. मातापिता ने बेटी में बदलाव देखा तो वे परेशान हुए. पूछने पर उस ने उन्हें कुछ नहीं बताया. कोई और रास्ता न देख उन्होंने उस की शादी की कोशिश शुरू कर दी. अच्छे रिश्ते की तलाश में 2 साल यूं ही गुजर गए. काफी कोशिशों के बाद भी कोई अच्छा रिश्ता नहीं मिला. रूबीना के अपने खानदान में कोई अच्छा पढ़ालिखा लड़का नहीं था.
रूबीना के पिता ने अपने एक रिश्तेदार से अपनी बेटी के लिए अच्छा सा लड़का ढूंढने के लिए कहा. वह लाहौर में रहते थे. उन के पड़ोस में एक सज्जन रहते थे, उन का लड़का काफी पढ़ा था और सरकारी नौकरी में था. उसे वेतन भी अच्छा मिलता था. रिश्तेदार ने बात चलाई. लड़के वाले सियालकोट आए और लड़की को पसंद कर के हां कर के चले गए. उन्होंने यह भी कहा कि समय निकाल कर लाहौर आएं और लड़के को देख लें. रूबीना के मातापिता एक दिन लाहौर गए और लड़के को देख कर बेटी के लिए पसंद कर आए. लेकिन लड़के वालों ने कहा कि उन की एक बड़ी बेटी है, पहले बेटी की शादी होगी, उस के बाद बेटे की शादी करेंगे.
रूबीना के मातापिता ने यह समस्या भी हल कर दी. उन्होंने बता दिया कि उन का एक बेटा एम ए पास है, इम्पोर्ट एक्सपोर्ट का काम करता है. उस ने कनाडा के लिए भी एप्लाई किया हुआ है, उम्मीद है कि वह एक 2 साल में कनाडा चला जाएगा. पहले तो लड़के वाले तैयार नहीं हुए, लेकिन 2-4 बार मिलने पर वह तैयार हो गए. रूबीना की शादी बहुत धूमधाम से हुई, दूल्हा सारी रस्में पूरी कर के अपनी दुल्हन को घर ले आया. अपनी शादी की पहली रात दुलहन के साथ गुजारने के लिए उस ने होटल में कमरा बुक कर रखा था.
रूबीना ने जब सजेधजे उस कमरे में कदम रखा तो वह परेशान हो गई. यह वही कमरा था जहां 2 साल पहले वह अपना सब कुछ एक धोखेबाज के हाथों लुटा बैठी थी. दूल्हे ने कमरे में दाखिल हो कर अपने कपड़े बदले. रूबीना ने चोरीचोरी अपने दूल्हे को देखने की कोशिश की तो दूल्हे के रूप में उसे जो व्यक्ति दिखाई दिया, उसे देख कर वह अवाक रह गई और उस के पांव के नीचे से जमीन निकलने लगी. उसे चक्कर आने लगे. अनायास उस के मुंह से निकला, ‘‘खालिद अहमद, मैं यह क्या देख रही हूं.’’
अमीन ने भी एक नजर दुलहन के चेहरे पर डाल कर कहा, ‘‘यह मैं क्या देख रह हूं… खालिदा तुम…’’
दोनों को अपनाअपना पाप याद आ गया. अमीन ने कहा, ‘‘मैं ने अपना नाम गलत बताया था, मेरा नाम खालिद नहीं अमीन है. मैं पुलिस इंसपैक्टर नहीं बल्कि एक्साइज इंस्पैक्टर हूं. देखो, हमारा मिलन भी क्या मिलन है?’’
रूबीना ने भी कहा, ‘‘मैं ने भी गलत बयानी से काम लिया था. मेरा नाम खालिदा नहीं बल्कि रूबीना है, जो निकाहनामे में लिखा है. कुदरत ने हमारे साथ क्या अजीब मजाक किया है.’’
दोनों सोचने लगे कि क्यों न शादी की पहली रात में ही एकदूसरे को तलाक दे दें, लेकिन बीच में रूबीना के भाई और अमीन की बहन का रिश्ता आड़े आ रहा था. इसलिए रात भर खूब सोचविचार के बाद दोनों ने यह तय पाया कि पुरानी बातों को भुला कर नए सिरे से जीवन शुरू करें, क्योंकि उस पाप में दोनों की सहमति थी. इसलिए दोनों ने कसम खाई कि दोनों साथसाथ जिएंगेमरेंगे. अगली सुबह दोनों तैयार हो कर घर पहुंचे, जहां घर वालों ने उन का भव्य स्वागत किया और उन के रास्ते में फूल बिछा दिए. ठीक एक साल बाद उन के घर में एक चांद सा बेटा आया और अगले साल एक लड़की ने जन्म लिया.
देखते ही देखते 2-3 साल का समय बीत गया, इस बीच अमीन इंसपैक्टर के पद से तरक्की पा कर ऊंचे पद पर पहुंच गया था लेकिन यह तरक्की उसे अधिक समय तक रास नहीं आई. उस पर पैसों के गबन का आरोप लग गया, एक साल तक विभागीय काररवाई चलती रही, अंत में तंग आ कर अमीन अदालत पहुंच गया और योग्य वकील की सेवाएं लीं. केस काफी दिन तक चला, अंत में वह केस जीत कर अपनी नौकरी पर वापस आ गया. वह योग्य वकील था, सुहेल अहमद एडवोकेट. जब इस बात का पता रूबीना को चला तो बहुत खुश हुई. वह अपने पति के साथ सुहेल के घर पहुंची. सुहेल ने रूबीना को देखा तो वह भी हैरान रह गया. सुहेल की पत्नी भी मिली, जिस के एक लड़का भी था.
सुहेल और रूबीना देर तक गुजरे समय की बातें करते रहे और फिर दोनों परिवारों का आपस में मेल जोल बढ़ता गया. रूबीना भी पिछली बातों को भूल गई. सुहेल अपने मातापिता और अपने आप को गरीबी से निकालने.