Hindi Story : नौकरी करना और बात है तथा फर्ज के लिए जान की बाजी लगा देना और बात. जो फर्ज के लिए जान की बाजी लगा देते हैं, उन्हें ही बहादुर कहा जाता है. पंजाब पुलिस के डीएसपी विक्रम शर्मा ऐसे ही लोगों में हैं, तभी तो उन्हें ब्रेव सोल्जर अवार्ड मिला है. पंजाब के जिला गुरदासपुर के गांव खेहरा के रहने वाले विक्रम शर्मा के घर वाले बैठे आपस में बातें कर रहे थे, तभी अचानक 20 आतंकवादियों ने उन के घर को चारों ओर से घेर लिया और स्वचालित हथियारों से तड़ातड़ गोलियां चलाने लगे. लगभग 20 मिनट तक लगातार गोलियां चलाने के बाद चीखपुकार के बीच सरदार जैसे दिखने वाले एक आतंकवादी ने दहाड़ते हुए कहा,
‘‘कितने मर गए, कितने बच गए, इस की गिनती करने से पहले विक्रम को फोन कर के कहो कि वह संभल जाए और हम से पंगा न ले, वरना उसे इस से भी बुरे दिन देखने को मिलेंगे.’’
यह 10 अगस्त, 1992 की घटना थी. विक्रम शर्मा खेहर गांव के खेतिहर रतनचंद शर्मा का तीसरे नंबर के बेटे थे. उन के परिवार में पत्नी तारावती के अलावा 5 बेटे तेजपाल, राजपाल, यशपाल, विक्रम, बलबीरचंद और 2 बेटियां थीं. तेजपाल पंजाब होमगार्ड विभाग में नौकरी करते थे. इस लोमहर्षक आतंकी घटना से 4 साल पहले एक रात वह गुरदासपुर के एक पेट्रोलपंप पर ड्यूटी कर रहे थे, तभी कुछ आतंकवादियों ने उन्हें घेर कर कहा था, ‘‘जवान तुझे इसलिए मार रहे हैं, क्योंकि तू विक्रम शर्मा का भाई है. बस तेरा यही एक कुसूर है.’’