Terror Attack : पेशावर में 132 मासूम बच्चों की हत्या कर के तालिबानियों ने जो कारनामा किया, उसे देखसुन कर पूरी दुनिया दहल उठी. ये पाकिस्तान के ही पाले हुए सांप हैं जो अब उसे डसने लगे हैं. अपने वजूद को बनाए रखने के लिए पाकिस्तान को अब आतंकवाद को उखाड़ फेंकना होगा, वरना ऐसी घटनाएं और भी हो सकती हैं. स्वतंत्र भारत के इतिहास में 15 अगस्त के बाद अगर कोई अतिमहत्त्वूपर्ण दिन है तो वह है 16 दिसंबर,

क्योंकि 1971 में इसी दिन भारत की सेनाओं ने एक अभूतपूर्व विजय प्राप्त की थी. इसी दिन ढाका में पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया था. जिस के बाद बांग्लादेश के रूप में एक नया देश वजूद में आया. इसलिए तभी से पाकिस्तान में 16 दिसंबर को काला दिवस के रूप में मनाया जाता है. पाकिस्तान के सामने 1971 के 16 दिसंबर की यह स्थिति 2 देशों के युद्ध के कारण आई थी. लेकिन 2014 का 16 दिसंबर पाकिस्तान में काला हुआ अपने ही लोगों के द्वारा. दुख की बात यह कि इस बार यह काला दिवस केवल पाकिस्तान के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी मानवता के लिए काला था. शर्मसार करने वाला, नश्तर से भी ज्यादा तीखा.

युद्ध भले ही कहीं भी हों, लेकिन युद्धों के दौरान अगर सब से ज्यादा खामियाजा किसी को भुगतना पड़ता है तो वे होते हैं बच्चे. 16 दिसंबर को पाकिस्तान के शहर पेशावर में घटी घटना विश्व की पहली ऐसी घटना थी, जिस में 132 बच्चों को बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया, वह भी मजहब और अल्लाह के नाम पर. इंसानियत शर्मसार हो तो हो, मांओं की गोद उजड़े तो उजडे़, घरआंगन सूने हों तो हों, इस से मजहब के नाम पर बंदूक थाम कर स्कूल में खूनखराबा करने घुसे दरिंदों को क्या? उन्हें तो सिर्फ यह दिखाना था कि वे दरिंदगी की किस सीमा तक जा सकते हैं.

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