Delhi News : प्रताप सिसोदिया और सिद्धार्थ शर्मा ने एक करोड़ रुपए की फिरौती के लिए ज्वैलर मुकेश वर्मा के बेटे उत्कर्ष का अपहरण तो कर लिया लेकिन पुलिस की सक्रियता देख कर वे घबरा गए. बच्चे से छुटकारा पाने की उन्होंने जो चाल चली, उसी चाल ने उन्हें जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. उत्कर्ष दोपहर सवा दो, ढाई बजे तक स्कूल से अपने घर लौट आता था, लेकिन 18 नवंबर को वह समय पर घर नहीं लौटा तो उस की मां ममता

सोचने लगीं कि पता नहीं उत्कर्ष अभी तक क्यों नहीं आया. अब तक तो वह आ जाता था. उन्होंने दरवाजे के बाहर झांक कर देखा. उन्हें बेटा आता हुआ नहीं दिखा तो उन्होंने कैब ड्राइवर गुरमीत को फोन किया. गुरमीत ने उन्हें बताया कि उस ने उत्कर्ष को करीब 2 बजे सत्संग रोड झील चौक पर उतार दिया था. गुरमीत उत्कर्ष को झील चौक पर छोड़ता था और वहीं से सुबह के समय स्कूल ले जाता था. वहां से करीब 100 मीटर दूर संकरी गली में उत्कर्ष का मकान था. उस गली में भीड़भाड़ रहने की वजह से कैब उस के घर तक नहीं जा सकती थी. इसलिए वह वहां से पैदल ही घर चला जाता था.

कैब ड्राइवर की बात सुन कर ममता चौंक गईं कि जब उसे झील चौक पर उतार दिया था तो वह अभी तक घर क्यों नहीं आया? वह कहां चला गया? इसी तरह के कई विचार उन के दिमाग में आए. उन्होंने कोठी में काम करने वाले एक नौकर को तुरंत बेटे को ढूंढने के लिए झील चौक की तरफ भेजा. कुछ देर बाद नौकर ने वापस आ कर जब बताया कि उत्कर्ष उधर नहीं मिला तो वह परेशान हो गईं. वह खुद भी उस जगह पर गईं जहां कैब ड्राइवर उन के बेटे को उतारता था. झील चौक से उन के घर तक व्यस्त बाजार है. गली के दुकानदार भी उत्कर्ष को पहचानते थे.

ममता ने दुकानदारों से बेटे के बारे में पूछा तो कुछ ने बताया कि उन्होंने उत्कर्ष को कैब से उतर कर घर की ओर जाते देखा था तो कुछ ने बताया कि दुकानदारी में व्यस्त होने की वजह से वह ध्यान नहीं दे पाए. यह बात कैब ड्राइवर ने भी बताई थी कि उस ने उत्कर्ष को झील चौक पर 2 बजे के करीब उतार दिया था. जिस गली के मुहाने पर उत्कर्ष को कैब से उतारा था, वह गली उन के घर पर ही खत्म होती है. अब उन की समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि 13 वर्षीय उत्कर्ष गली से कहां गायब हो गया. आसपास के लोगों को जब पता चला कि उत्कर्ष को ले कर उस के घर वाले परेशान हो रहे हैं तो वे भी उसे इधरउधर ढूंढने लगे. ममता ने पति मुकेश कुमार वर्मा को फोन कर के बेटे के बारे में खबर दे दी. मुकेश कुमार वर्मा का पूर्वी दिल्ली के रघुबरपुरा क्षेत्र में एक ज्वैलरी शोरूम है.

वह उस समय अपने शोरूम पर ही थे. जैसे ही उन्हें बेटे के घर न पहुंचने खबर मिली, वह शोरूम से घर की ओर चल दिए. घर पहुंचते ही पत्नी ने सारी बात उन्हें बता दी तो वह भी अपने स्तर से बेटे को खोज ने लगे. उन्होंने तमाम लोगों से बेटे के बारे में पता किया, लेकिन यह पता नहीं चल सका कि बेटा कहां और किस के साथ चला गया. उन्होंने फोन कर के कैब ड्राइवर गुरमीत को भी अपने यहां बुला लिया. गुरमीत ने फिर से बताया कि उस ने उत्कर्ष को दोपहर 2 बजे के करीब सत्संग रोड झील चौक पर उतार दिया था. उसे उतार कर वह अपने घर चला गया था. इस बात को गुरमीत भी नहीं समझ पा रहा था कि कैब से उतरने के बाद उत्कर्ष कहां चला गया.

बहरहाल घर के सभी लोग उत्कर्ष को ले कर परेशान हो रहे थे. जब कहीं से भी उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो मुकेश वर्मा 18 नवंबर को ही शाम करीब साढ़े 4 बजे अपने शुभचिंतकों के साथ पूर्वी दिल्ली के थाना गांधीनगर चले गए. थानाप्रभारी मनोज पंत को उन्होंने बेटे के गुम होने की जानकारी दे दी. मुकेश कुमार वर्मा बडे़ ज्वैलर और शहर के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे इसलिए थानाप्रभारी ने उन से बातचीत करने के बाद अज्ञात लोगों के खिलाफ उत्कर्ष के अपहरण का मामला दर्ज कर लिया.

मुकदमा दर्ज करते ही सब से पहले उन्होंने पुलिस कंट्रोलरूम को 13 वर्षीय उत्कर्ष का हुलिया बताते हुए उस के अपहरण की जानकारी दे दी. उन्होंने डीसीपी अजय कुमार को पूरे मामले से अवगत कराया तो उन्होंने बच्चे को ढूंढने के लिए जिले के समस्त थानों को अपनी तरफ से वायरलैस से मैसेज भिजवाया. थानाप्रभारी ने वाट्सऐप द्वारा बीट के समस्त पुलिसकर्मियों को उत्कर्ष का फोटो भी भेज दिया.

मुकेश कुमार वर्मा थाना गांधीनगर के अंतर्गत राजगढ़ कालोनी में रहते थे. थानाप्रभारी मनोज पंत एसआई सुखविंदर, प्रदीप कुमार, अजय यादव आदि के साथ उन के घर पहुंच गए. उन्होंने उस जगह का निरीक्षण किया जहां पर स्कूल कैब से उत्कर्ष को उतारा गया था. उन्होंने देखा कि वह जगह बहुत भीड़भाड़ वाली थी और वहां से संकरी गली में करीब 100 मीटर दूर उत्कर्ष अपने घर पैदल ही चला जाता था. उस गली में भी दोनों तरफ दुकानें थीं इसलिए गली में भी भीड़ रहती थी.

झील चौक पर जहां उत्कर्ष कैब से उतरा था, वहां के दुकानदारों से थानाप्रभारी ने पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि उन्होंने कैब को यहां आते हुए तो देखा था लेकिन उस में से कोई बच्चा उतरा या नहीं, इस तरफ ध्यान नहीं दिया. वहीं गली के नुक्कड़ के एक ज्वैलर शर्मा ने बताया कि उन्होंने उत्कर्ष को कैब से उतर कर गली में जाते हुए देखा था. अब इंसपेक्टर मनोज पंत असमंजस में    पड़ गए कि जब उत्कर्ष कैब से उतर कर     गली में आया था तो गली से कहां गायब हो गया. जबकि वहां से उस का घर नजदीक ही था. उत्कर्ष आसपास के जिन बच्चों के साथ खेलता था, पुलिस ने उन से भी पूछताछ की. बच्चों ने बताया कि वे आज उत्कर्ष से नहीं मिले.

इन सब बातों से थानाप्रभारी को लगने लगा कि उत्कर्ष का किसी ने अपहरण कर लिया है. उन्हें इस बात का शक होने लगा कि अपहर्त्ता कोई बाहरी व्यक्ति नहीं बल्कि ऐसा शख्स है जिसे उत्कर्ष अच्छी तरह जानता होगा. परिचित होने की वजह से उत्कर्ष उस के साथ आसानी से चला गया होगा. चूंकि भीड़भाड़ वाली गली में कार ले जाना आसान नहीं था, इसलिए अपहर्त्ता पैदल या दोपहिया वाहन पर बैठा कर उसे आसानी से ले गया होगा. उत्कर्ष का वहां से जबरदस्ती अपहरण करने की संभावना इसलिए भी नजर नहीं आ रही थी कि यदि उस के साथ जबरदस्ती की जाती तो उस के शोर मचाने पर भीड़ अपहर्त्ता को घेर लेती.

अब पुलिस को मुकेश वर्मा से बात कर के यह पता लगाना था कि ऐेसे कौनकौन लोग हैं, जिन से उत्कर्ष अच्छी तरह से परिचित था. मामले की गंभीरता को समझते हुए डीसीपी अजय कुमार ने एसीपी वाई.के. त्यागी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. जिस में थानाप्रभारी मनोज पंत, इंसपेक्टर के.जी. त्यागी, संजीव पाहवा, राकेश दीक्षित (स्पैशल स्टाफ), एसआई सुखविंदर सिंह, मुकेश कुमार, प्रदीप, अजय यादव, जयसिंह, एएसआई ओमेंद्र, हेडकांस्टेबल धर्मेंद्र, कांस्टेबल राहुल चौधरी आदि को शामिल किया गया. पुलिस अधिकारी अपनेअपने तरीके से इस केस की जांच में जुट गए.

थानाप्रभारी मनोज पंत को पहला शक कैब ड्राइवर गुरमीत पर ही हो रहा था. उन्होंने ड्राइवर गुरमीत को थाने बुला लिया. गुरमीत ने पुलिस को यही बताया कि उस ने उत्कर्ष को सत्संग रोड झील चौक पर उसी जगह उतारा था, जहां वह उसे रोजाना उतारता था और उत्कर्ष आखिरी बच्चा था. उस की बातों पर थानाप्रभारी को विश्वास नहीं हो रहा था. गुरमीत ने बताया कि उत्कर्ष को उतारने के बाद वह सीधे अपने घर चला गया था.

पुलिस की एक टीम यह जांचने में लग गई कि जिस स्थान पर उत्कर्ष को कैब से उतारा गया था, वहां और उस की गली में किनकिन लोगों ने सीसीटीवी कैमरे लगा रखे हैं. इस जांच में पुलिस को झील चौक पर ही एक फैक्ट्री के बाहर सीसीटीवी कैमरा लगा दिखा. लेकिन वह कैमरा नीचे की ओर झुका हुआ था. ऐसा शायद किसी वजनदार पक्षी के उस पर बैठने की वजह से हो गया होगा. जिस गली से उत्कर्ष अपने घर जाता था, वहां एक छोटा प्राइवेट स्कूल है. उस स्कूल के बाहर भी एक सीसीटीवी कैमरा लगा हुआ था. उस कैमरे की रिकौर्डिंग की जांच की गई तो उस में उत्कर्ष गली में आता हुआ दिखा. इस से यह निष्कर्ष निकला कि ड्राइवर गुरमीत ने उत्कर्ष को निर्धारित जगह पर उतारा था और उस का अपहरण गली का स्कूल पार करने के बाद ही किया गया है.

पुलिस ने यह भी अंदाजा लगाया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि गुरमीत ने बच्चे को कैब से उतारने के बाद अपने साथियों से उसे उठवा लिया हो. बच्चे के अपहरण की साजिश में गुरमीत का रोल है या नहीं है, जानने के लिए पुलिस ने गुरमीत से सख्ती से पूछताछ की. गुरमीत बारबार यही कहता रहा कि उत्कर्ष के बारे में उसे जानकारी नहीं है. उत्कर्ष उस की कैब का आखिरी बच्चा था. उसे उतार कर वह सीधे अपने घर गया था. गुरमीत की बात की पुष्टि करने के लिए पुलिस गुरमीत के घर गई. वहां पता चला कि गुरमीत 3 बजे के करीब अपने घर पहुंच गया था.

गुरमीत के घर के पास सड़क किनारे एक सीसीटीवी कैमरा लगा हुआ था. पुलिस ने उस कैमरे की फुटेज देखी तो उस में गुरमीत घर की तरफ आता दिखाई दे रहा था. इन सब बातों से पुलिस को गुरमीत के बेकुसूर होने की पुष्टि हो गई. फिर भी पुलिस ने उसे यह हिदायत दी कि वह थाने में बताए बिना दिल्ली से बाहर न जाए. इस के बाद पुलिस ने मुकेश कुमार वर्मा से उन की कोठी पर और उन के शोरूम पर काम करने वाले नौकरों व नौकरानियों के नामपते हासिल किए. इस के अलावा पुलिस ने उन के ऐसे रिश्तेदार, दोस्तों आदि के नाम व फोन नंबर भी ले लिए, जो उन के घर अकसर आतेजाते थे.

मुकेश वर्मा ने उन्हें यह भी बताया कि उन के शोरूम में अमित वर्मा नाम का एक लड़का नौकरी करता था, 14 साल नौकरी करने के बाद अमित 6 महीने पहले ही उन के यहां से काम छोड़ कर गया था. अमित का नौकरी के दौरान मुकेश वर्मा के घर भी आनाजाना था, जिस से घर के सभी लोग उस से अच्छी तरह से परिचित थे. अमित मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला मुरादाबाद का रहने वाला था. वह अपनी मरजी से मुकेश वर्मा के यहां से नौकरी छोड़ कर गया था. नौकरी छोड़ने के बाद भी वह उन के यहां कभीकभी आता रहता था. अभी 2-4 दिन पहले भी वह दिल्ली आया था. मुकेश वर्मा ने बताया कि अमित मुरादाबाद के डीपीएस में नौकरी करता है.

अमित 2-4 दिन पहले दिल्ली आया था, इस से थानाप्रभारी के शक की सूई अमित की तरफ भी घूम गई. थानाप्रभारी ने एसआई सुखविंदर के नेतृत्व में एक पुलिस टीम मुरादाबाद के लिए रवाना कर दी. उधर बेटे को ले कर मुकेश वर्मा और उन की पत्नी ममता परेशान थीं. मुकेश वर्मा की शादीशुदा बेटी कनिका अमेरिका में रहती है. वह परेशान न हो, इसलिए उन्होंने बेटे के गुम होने की बात बेटी तक को नहीं बताई. लेकिन किसी रिश्तेदार ने कनिका को उत्कर्ष का अपहरण होने की जानकारी दी तो वह पति के साथ घर से एयरपोर्ट की तरफ निकल पड़ी. 18 नवंबर को ही शाम के समय घर के सभी लोग कमरे में बैठे थे तभी शाम 7 बज कर 22 मिनट पर ममता के फोन की घंटी बजी.

ममता ने स्क्रीन पर देखा तो अनजान नंबर था. उन्होंने जैसे ही फोन रिसीव किया, दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘उत्कर्ष हमारे पास है. पैसे का इंतजाम कर के रखना. कल फिर फोन करेंगे.’’

इतना कह कर उस व्यक्ति ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया.ममता ने कई बार हैलोहैलो कहा लेकिन काल डिसकनेक्ट होने की वजह से उन की बात नहीं हो सकी. बेटे के अपहरण की बात सुन कर ममता के चेहरे पर घबराहट साफ दिखाई दे रही थी. साथ ही उन की आंखों में आंसू भी छलक आए. तभी पति मुकेश वर्मा ने उन से पूछा, ‘‘किस का फोन था?’’

‘‘पता नहीं कौन था, कह रहा था कि उत्कर्ष उस के पास है. उस ने पैसों का इंतजाम करने को कहा है.’’ ममता बोलीं.

यह सुनते ही मुकेश वर्मा चौंक गए. पत्नी का मोबाइल ले कर वह उस नंबर को देखने लगे जिस नंबर से फोन आया था. वह अब उस फोन करने वाले से यह जानना चाहते थे कि उत्कर्ष कैसा है और उस के बदले में वह क्या चाहता है. उन्होंने वही नंबर रिडायल कर दिया, लेकिन वह फोन स्विच्ड औफ हो चुका था. ऐसा उन्होंने कई बार किया. हर बार फोन स्विच्ड औफ ही आया. उत्कर्ष के अपहरण की बात जान कर घर के सभी लोग परेशान हो रहे थे. सभी को चिंता हो रही थी कि पता नहीं वे लोग उत्कर्ष को किस तरह रख रहे होंगे. बेटे की कुशलता को ले कर मुकेश वर्मा और पत्नी के दिमाग में तरहतरह के विचार भी आ रहे थे.

चूंकि मुकेश वर्मा बेटे के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा चुके थे, इसलिए पत्नी के मोबाइल पर अपहर्त्ता के फोन आने की सूचना उन्होंने थानाप्रभारी को दे दी. यह खबर मिलते ही थानाप्रभारी मनोज पंत मुकेश वर्मा के घर पहुंच गए. उन्होंने सब से पहले ममता के फोन से वह नंबर हासिल किया, जिस से अपहर्त्ता ने फोन किया था. वह नंबर वोडाफोन कंपनी का था. उन्होंने उस कंपनी के अधिकारियों से उस फोन नंबर की काल डिटेल्स मांगी तो पता चला कि जिस समय अपहर्त्ता ने फोन किया था, उस की लोकेश यमुनापार के ही कैलाशनगर पुश्ते की आ रही थी.

जिस व्यक्ति के नाम से वह नंबर खरीदा गया था, पुलिस ने कंपनी से उस व्यक्ति का नामपता हासिल किया और उस के पते पर पहुंची तो उस पते पर उस नाम का कोई व्यक्ति नहीं पाया गया. इस का मतलब वह नंबर फरजी आईडी पर लिया गया था. पुलिस को जांच के आगे बढ़ने की जो उम्मीद नजर आ रही थी, वह वहीं रुक गई. मामला इतना संवेदनशील था कि जिले के एडीशनल डीसीपी पुष्पेंद्र कुमार पुलिस काररवाई पर नजर रखे हुए थे. करीब सवा घंटे बाद रात 8 बज कर 43 मिनट पर मुकेश कुमार वर्मा के मोबाइल पर किसी अज्ञात नंबर से फोन आया. फोन करने वाले ने उन से कहा, ‘‘मुकेश ध्यान से बात सुन मेरी. मेरे को एक करोड़ रुपए चाहिए.’’

इतना सुनते ही मुकेश समझ गए कि फोन अपहर्त्ता का ही है. फिर भी उन्होंने पूछा, ‘‘कहां से बोल रहे हो और आप कौन हैं.’’

‘‘कहां से बोल रहा हूं, अभी बताता हूं तुझे.’’ दूसरी तरफ से कड़क आवाज आई, ‘‘बेटे को जिंदा पाना है तो ज्यादा सयाणा मत बन. मैं एक बात और बोले देता हूं कि कहीं कोई कंप्लेन की तो ध्यान रखियो. अब कल फोन करूंगा.’’ कहते ही अपहर्त्ता ने फोन काट दिया.

मुकेश हैलोहैलो करते रहे लेकिन बात नहीं हुई. वह बेटे की खैरियत के बारे में उस व्यक्ति से बात करना चाहते थे इसलिए उन्होंने उसी नंबर को कई बार रिडायल किया लेकिन वह फोन स्विच्ड औफ हो चुका था. मुकेश वर्मा ने यह बात भी थानाप्रभारी मनोज पंत को बता दी तो वह फिर मुकेश वर्मा के घर पहुंच गए. जांच में पता चला कि अपहत्ताओं ने फिरौती मांगने के लिए इस बार दूसरा फोन नंबर प्रयोग किया था. ममता के मोबाइल फोन पर पहले जो काल आई थी, वह दूसरे नंबर से आई थी. दूसरा नंबर भी वोडाफोन कंपनी का था.

पुलिस ने कंपनी से जब इस नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई तो उस की लोकेशन पूर्वी दिल्ली के ही गुरु अंगदनगर से कुछ दूर स्थित वी3एस मौल के नजदीक की मिली. इस नंबर की जांच की गई तो पता चला कि यह भी फरजी आईडी पर लिया गया था. पुलिस यह समझ गई कि अपहर्त्ता बेहद शातिर हैं. संभावना हो रही थी कि उन्होंने फरजी आईडी पर कई सिम कार्ड खरीदे होंगे, तभी तो हर काल पर नया सिम प्रयोग कर रहे हैं. ताज्जुब की बात यह थी कि दोनों सिम अलगअलग फोन सेटों में डाल कर प्रयोग किए गए थे.

पुलिस चाह रही थी कि किसी भी तरह वह अपहर्त्ताओं के चंगुल से बच्चे को सकुशल बरामद कर ले. अपहर्त्ताओं का मकसद पता चल ही चुका था. वे बच्चे के एवज में मुकेश वर्मा से मोटी रकम वसूलना चाहते थे. बताई गई रकम कहां पहुंचानी है, यह उन्होंने बताया नहीं था. इस के लिए वे फिर से फोन करेंगे, यह निश्चित था. इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए थानाप्रभारी ने उसी समय डीसीपी अजय कुमार से मुलाकात की. मामला बेहद संवेदनशील था इसलिए डीसीपी ने रात में ही स्पैशल सीपी (ला ऐंड और्डर) दीपक मिश्रा और सीपी बी.एस. बस्सी से मुलाकात कर पूरे हालात बताए. सीपी ने रात में ही दोनों फोन नंबर सर्विलांस पर लगवा दिए.

अपहर्त्ताओं ने जिन 2 नंबरों से वर्मा दंपति को फोन किए थे, सर्विलांस टीम ने उन नंबरों की जांच की लेकिन उन से ऐसा क्लू नहीं मिला जिस से जांच आगे बढ़ सके. इस के अलावा थानाप्रभारी ने वर्मा दंपति को भी समझा दिया कि अपहर्त्ताओं के फोन आने पर उन्हें किस तरह बात करनी है. रात भर पुलिस और वर्मा दंपति अपहर्त्ताओं के फोन का इंतजार करते रहे, लेकिन उन की तरफ से कोई फोन नहीं आया. अगले दिन 19 नवंबर की सुबह करीब 7 बजे लोगों ने पूर्वी दिल्ली के गीता कालोनी, रामलीला मैदान के पास नाले में एक बच्चे की लाश देखी. उस बच्चे की उम्र 12-13 साल थी और वह किसी स्कूल की ड्रैस पहने हुए था. किसी ने इस की सूचना पुलिस कंट्रोलरूम को दे दी.

वह इलाका थाना गीता कालोनी के अंतर्गत आता है इसलिए पुलिस कंट्रोलरूम से वायरलैस द्वारा यह खबर थाना गीता कालोनी को दे दी गई. पुलिस कंट्रोलरूम द्वारा जिस समय यह खबर थाना गीता कालोनी को दी जा रही थी, उसी समय गांधीनगर के थानाप्रभारी मनोज पंत ने भी अपने वायरलैस सैट पर उस सूचना को सुन लिया था. सूचना सुन कर मनोज पंत के कान खड़े हो गए. क्योंकि स्कूल की ड्रैस पहने जिस 12-13 साल के बच्चे की लाश नाले में पड़े होने की बात मैसेज में बताई गई थी, उन के इलाके से गायब हुआ बच्चा उत्कर्ष भी उसी उम्र का था. बिना देर किए वह मैसेज में बताई जगह पर पहुंच गए. तब तक गीता कालोनी थाने की पुलिस वहां नहीं पहुंची थी.

नाले के किनारे कई लोग खडे़ हो कर उस बच्चे की लाश को देख रहे थे. मनोज पंत  ने देखा कि मृतक बच्चा किसी स्कूल की ड्रैस पहने था. उन्हें शक हुआ कि कहीं यह उत्कर्ष की तो नहीं है. पुष्टि के लिए उन्होंने फोन कर के मुकेश वर्मा को वहां बुला लिया. तब तक गीता कालोनी थाने की पुलिस भी मौके पर पहुंच गई. जरूरी काररवाई कर के गीता कालोनी थाने की पुलिस ने बच्चे की लाश को नाले से बाहर निकलवा लिया. इंसपेक्टर मनोज पंत की सूचना पा कर मुकेश वर्मा भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने जैसे ही बच्चे की लाश देखी, उन की चीख निकल गई और वह जोरजोर से रोने लगे. क्योंकि वह लाश उन के बेटे उत्कर्ष की ही थी. अपहरण हुए बच्चे की हत्या होने पर पुलिस भी आश्चर्यचकित रह गई.

उत्कर्ष की हत्या की खबर पा कर मुकेश वर्मा के परिजन, परिचित और अन्य तमाम लोग भी वहां पहुंच गए. बच्चे की मौत पर परिजन और संबंधी दुखी थे. उन का कहना था कि यदि पुलिस सक्रिय रहती तो उत्कर्ष की जान बच सकती थी. लेकिन उन्हें यह पता नहीं था कि पुलिस कितनी तत्परता से इस केस में लगी हुई थी. पुलिस ने रात में ही फोन को सर्विलांस पर लगाने की काररवाई की थी. अपने हिसाब से पुलिस जो भी काररवाई कर रही थी,जरूरी नहीं था कि वह सब वर्मा दंपति को बताई जाती. खैर, पुलिस ने वर्मा दंपति को समझाया और भरोसा दिया कि वह जल्द ही अपहर्त्ताओं के चेहरे उजागर कर देगी. मौके की आवश्यक काररवाई पूरी करने के बाद गीता कालोनी पुलिस ने उत्कर्ष की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

उत्कर्ष की लाश बरामद होने के बाद डीसीपी अजय कुमार ने पुलिस टीम की एक मीटिंग की. मीटिंग में अधिकारी इस नतीजे पर पहुंचे कि हत्यारे जरूर नौसिखए रहे होंगे और बच्चा उन्हें पहचानता होगा. उन के पास बच्चे को छिपाने की उचित जगह नहीं होगी. यदि जगह होती तो वे बच्चे को 2-4 दिन वहां रख कर फिरौती वसूलने की कोशिश करते. अधिकारियों ने इस बात की भी संभावना जताई कि अपहर्त्ताओं में से कोई एक यमुनापार इलाके का जानकार जरूर रहा होगा. इन बातों पर चर्चा करने के साथ इस बात पर भी योजना बनाई गई कि हत्यारों तक कैसे पहुंचा जाए.

दिल्ली पुलिस के पास उस समय उत्कर्ष से बड़ा कोई केस नहीं था. सीपी बी.एस. बस्सी के निर्देश पर स्पैशल सेल के अलावा क्राइम ब्रांच, स्पैशल स्टाफ, एएटीएस और गांधीनगर सबडिवीजन के तीनों थानों की 8 टीमों को मिला कर कुल 15 टीमों के करीब 150 पुलिसकर्मी इस केस को सुलझाने में लग गए. एसआई सुखविंदर के नेतृत्व में जो पुलिस टीम मुकेश वर्मा के पूर्व नौकर अमित वर्मा की तलाश में मुरादाबाद गई थी, वह उसे मुरादाबाद से ले कर दिल्ली लौट आई. पुलिस ने अमित से पूछताछ की तो उस ने उत्कर्ष के अपहरण में खुद को बेकुसूर बताया.

उस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि वह उत्कर्ष के अपहरण के कुछ दिनों पहले दिल्ली आया था. वह मुकेश के ज्वैलरी शोरूम के पास भी गया था और 17 नवंबर, 2014 को वह दिल्ली से वापस मुरादाबाद लौटा. इस सब से पुलिस का शक उस की तरफ हुआ. काल डिटेल्स के आधार पर उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने स्वीकार किया कि वह दिल्ली आया जरूर था लेकिन उस समय उस के मन में कोई गलत भावना नहीं थी. उस ने बताया कि उस की पत्नी अकसर बीमार रहती है. उस की कुछ दवाएं मुरादाबाद नहीं मिलतीं, इसलिए वह दिल्ली के भागीरथ पैलेस से दवा खरीदने आया था.

इस के अलावा उस ने मुकेश के ज्वैलरी शोरूम पर काम करने वाले एक युवक को कुछ पैसे उधार दिए थे. भागीरथ पैलेस से दवा खरीदने के बाद वह ज्वैलरी शोरूम पर उस लड़के के पास अपने पैसों का तकादा करने गया था. जो बातें अमित ने बताई थीं, पुलिस ने उन की क्रौस चैकिंग की. पुलिस उसे ले कर भागीरथ पैलेस में उस दुकानदार के पास भी गई, जहां से उस ने पत्नी की दवाएं खरीदी थीं. इस के अलावा मुकेश वर्मा के शोरूम पर काम करने वाले उस नौकर से भी पूछताछ की, जिस पर अमित के पैसे उधार थे. इन से बात करने पर पुलिस को अमित की बातों पर यकीन हो गया कि वह सच बोल रहा है. इसलिए पुलिस ने बेकुसूर समझते हुए उसे घर भेज दिया.

अब पुलिस ने उन्हीं फोन नंबरों पर जांच केंद्रित कर दी, जिन से अपहर्त्ताओं ने वर्मा दंपति से फिरौती मांगी थी. जांच में पता चला कि वे फोन नंबर पूर्वी दिल्ली के ही कृष्णानगर में स्थित बालाजी कम्युनिकेशन नाम की दुकान से खरीदे गए थे. एक पुलिस टीम उक्त स्थान पर पहुंच गई. पता चला कि वह दुकान देवेंद्र कुमार गुप्ता की है. पूछताछ के लिए पुलिस उसे थाने ले आई. देवेंद्र गुप्ता ने स्वीकार किया कि कुछ दिनों पहले उस के यहां 4-5 लोग सिम लेने आए थे. उन को उस ने पहले से एक्टिवेट किए हुए वोडाफोन कंपनी के 5 प्रीपेड सिम कार्ड दिए थे. वे सारे सिम कार्ड फरजी आईडी प्रूफ पर पहले से लिए गए थे. वे सिम उस ने कंपनी के एजेंट सुशील के जरिए एक्टिवेट कराए थे. उस ने यह भी बताया कि जिन लोगों को उस ने सिम बेचे थे, उन की उम्र 18-20 साल थी.

उधर पुलिस की एक टीम एक बार फिर कैब ड्राइवर गुरमीत के घर पहुंच गई कि कहीं बच्चे को किडनैप कराने में गुरमीत की कोई परोक्ष भूमिका तो नहीं है. देवेंद्र गुप्ता से पुलिस को पता चल ही चुका था कि उस ने 18-20 साल के लड़कों को सिम बेचे थे तो थानाप्रभारी ने गुरमीत के घर मौजूद टीम से कहा कि वह गुरमीत के घर में मौजूद इस आयुवर्ग के लड़कों के बारे में जानकारी करे. गुरमीत के 2 भतीजे भी 18-20 आयुवर्ग के थे. उस समय वे भी घर में ही मौजूद थे. पुलिस ने दोनों के फोटो खींच कर तुरंत वाट्सऐप से थानाप्रभारी को भेज दिए. वे फोटो थानाप्रभारी ने अपने पास मौजूद देवेंद्र गुप्ता को दिखाए तो उस ने उन में एक को पहचानते हुए कहा कि जो लड़के उस के पास आए थे, उन में से एक यह भी था.

इतना सुनते ही थानाप्रभारी को लगा कि अब केस खुल जाएगा. उस समय उन का तनाव कुछ कम हो गया. उन्होंने गुरमीत के दोनों भतीजों को तुरंत थाने बुलवा लिया. जिस लड़के को दुकानदार देवेंद्र ने पहचाना था, उस से पुलिस ने सख्ती से पूछताछ की. वह लड़का खुद को बेकुसूर बताता रहा. उस लड़के के घर वालों और अन्य से पूछताछ करने के बाद पुलिस को भी वह लड़का बेकुसूर लगा. इस से पुलिस को विश्वास हुआ कि दुकानदार देवेंद्र झूठ बोल रहा है. पुलिस ने उन दोनों लड़कों को छोड़ कर देवेंद्र गुप्ता के खिलाफ धोखाधड़ी आदि की धाराओं में थाना कृष्णानगर में रिपोर्ट दर्ज करा दी.

पुलिस की जांच अब फिर वहीं आ कर ठहर गई, जहां से शुरू हुई थी. इतना तो तय था कि उस के अपहरण में कोई परिचित ही शामिल है. पुलिस को पता चला कि मुकेश वर्मा मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला इटावा के फक्कड़पुरा गांव के रहने वाले हैं. पुलिस को लगा कि कहीं इन के गांव के ही किसी आदमी ने दुश्मनी या अन्य किसी वजह से बच्चे का अपहरण किया हो. इसलिए पुलिस ने उन से उन के गांव के ऐसे लोगों के नाम पूछे, जिन से उन की कभी कोई दुश्मनी रही हो. मुकेश वर्मा ने गांव के किसी भी आदमी से दुश्मनी होने की बात नकार दी. इस के बावजूद भी उन के नातेरिश्तेदारों आदि के नामपते, फोन नंबर ले कर पुलिस की एक टीम गांव फक्कड़पुरा चली गई.

पुलिस टीम वहां 2-3 दिन रह कर खाली हाथ दिल्ली लौट आई. मुकेश वर्मा की कोठी के सामने एक नाई की दुकान थी. पता चला कि वह नाई उत्कर्ष से बहुत घुलामिला था. इतना ही नहीं, वह उत्कर्ष के साथ क्रिकेट भी खेलता था. पुलिस को उस नाई पर भी शक हुआ तो पुलिस ने उस से भी पूछताछ की. इस के अलावा उस की दुकान पर जो लड़के ज्यादा देर तक बैठे रहते थे, उन से भी पूछताछ की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. मुकेश वर्मा के शोरूम व कोठी में जितने भी नौकरनौकरानी थे, उन सब से पुलिस ने अलगअलग पूछताछ की. लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात. राजगढ़ कालोनी में उत्कर्ष जिस महिला टीचर से ट्यूशन पढ़ता था, उस से भी पूछताछ की. पुलिस अब तक 50-60 लोगों से पूछताछ कर चुकी थी, लेकिन हत्यारों का पता नहीं लग पा रहा था.

मुकेश वर्मा ने राजगढ़ कालोनी में जो कोठी बनवाई थी, वह 8-10 महीने पहले ही तैयार हुई थी. वह कोठी अनिल ठाकुर नाम के एक बिल्डर से बनवाई थी. कोठी तैयार करने में जिन राजमिस्त्रियों, मजदूरों आदि ने काम किया था, उन सभी से पुलिस ने पूछताछ की. इस के अलावा बिल्डर अनिल ठाकुर को पूछताछ के लिए थाने बुलवा लिया. जांच के दौरान ही पुलिस को पता चला कि बिल्डिंग तैयार होते समय बिल्डर का बेटा प्रताप सिंह सिसोदिया भी वहां अपनी बुलेट मोटरसाइकिल से आता रहता था. प्रताप को मुकेश वर्मा के परिवार के सभी लोग जानते थे. पिता के कहने पर वह मुकेश वर्मा से काम के पैसे भी ले जाता था. घर में ज्यादा आनेजाने की वजह से मुकेश वर्मा के बच्चों से भी वह ज्यादा घुलमिल गया था.

उत्कर्ष तो प्रताप के पैर छूता था. थानाप्रभारी ने प्रताप सिसोदिया को भी पूछताछ के लिए बुलवा लिया. प्रताप ने पुलिस को बताया कि वह तो उत्कर्ष को अपना छोटा भाई मानता था. उस की मौत पर उसे बहुत दुख है. अपने छोटे भाई को भला वह क्यों मारेगा. जितने आत्मविश्वास के साथ उस ने यह बात पुलिस को बताई थी, उस से पुलिस को भी लग रहा था कि प्रताप सच बोल रहा है. पुलिस के पास शक का कोना हमेशा खाली रहता है. उसी शक को दूर करने के लिए पुलिस ने प्रताप का फोन नंबर ले कर उस की काल डिटेल्स की रिक्वेस्ट संबंधित कंपनी में भेजी.

लेकिन उस कंपनी का सर्वर डाउन होने की वजह से कालडिटेल्स आने में कई दिन लगे. काल डिटेल्स का अध्ययन करने पर उस में कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं. उत्कर्ष का अपहरण वाले दिन से प्रताप की एक और फोन नंबर पर खूब बातें हुई थीं.जांच में पता चला कि वह फोन नंबर राजगढ़ कालोनी की गली नंबर-4 के रहने वाले सिद्धार्थ शर्मा का था. अपहर्त्ताओं ने जिन जगहों से उत्कर्ष के घर वालों को फिरौती के फोन किए थे, उस समय सिद्धार्थ के फोन की लोकेशन भी वहीं थी. इस के अलावा जिस जगह पर उत्कर्ष की लाश मिली थी, वहां भी प्रताप और सिद्धार्थ के फोन की लोकेशन थी. इस से पुलिस को प्रताप और सिद्धार्थ पर शक हो गया.

उस काल डिटेल्स के आधार पर पुलिस ने प्रताप सिसोदिया से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने सच्चाई उगल दी. उस ने स्वीकार कर लिया कि उत्कर्ष के अपहरण और हत्या में उसी का हाथ था. उस ने उत्कर्ष के अपहरण और हत्या की जो कहानी बताई, वह बड़ी ही चौंकाने वाली निकली. मुकेश कुमार वर्मा मूलरूप से उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के फक्कड़पुरा गांव के रहने वाले थे. बरसों पहले वह दिल्ली आए और उन्होंने पूर्वी दिल्ली के रघुबरपुरा में जैन मंदिर के सामने ज्वैलरी की दुकान खोली जो अब बड़ा शोरूम है.

उन के परिवार में एक बेटी कनिका और 2 बेटे थे. बेटी की वह शादी कर चुके हैं जो इस समय अमेरिका में पति के साथ रहती है. एक बेटा ऋषभ इंजीनियर है जिस की 24 जनवरी, 2015 को शादी होने वाली थी जबकि छोटा उत्कर्ष आनंद विहार स्थित विवेकानंद पब्लिक स्कूल में कक्षा-8 में पढ़ रहा था. मुकेश वर्मा का बिजनैस अच्छा चल रहा था इसलिए उन की गिनती धनाढ्य लोगों में होती थी. पहले वह अपने शोरूम के ऊपर ही रहते थे. उन्होंने गांधीनगर क्षेत्र की राजगढ़ कालोनी में एक प्लौट ले कर वहां एक आलीशान कोठी बनवाई. वह कोठी गीता कालोनी के बेवरली अपार्टमेंट में रहने वाले बिल्डर अनिल ठाकुर ने तैयार कराई थी.

कोठी बनाने के दौरान ही अनिल का बेटा प्रताप सिंह सिसोदिया वहां आताजाता था. वहां आनेजाने पर प्रताप के मुकेश के परिवार के सभी लोग अच्छी तरह से जानते थे. प्रताप एक आकर्षक कदकाठी का युवक था. पढ़ाई के दौरान ही उस पर मौडलिंग करने का भूत सवार हुआ और वह मौडलिंग करने लगा. मौडलिंग करतेकरते उस पर ऐसी सनक सवार हुई थी कि वह फिल्मों में काम करने के उद्देश्य से 19 साल की उम्र में घर वालों से 10 लाख रुपए ले कर मुंबई चला गया. वह मौडल भले ही था लेकिन उसे एक्टिंग की एबीसीडी पता नहीं थी. तब वह एकता कपूर के संपर्क में आया. एक्टिंग के गुर सीखने के लिए उस ने उन की एक्टिंग एकेडमी में दाखिला ले लिया.

एक्टिंग कोर्स करने के दौरान ही मंजुला नाम की एक लड़की से उस की मुलाकात हुई. वह नागपुर की रहने वाली थी और वहां का ब्यूटी कांटेस्ट जीती हुई थी. उन की मुलाकात प्यार में बदल गई. एक्टिंग कोर्स पूरा कर के उस ने बौलीवुड में एंट्री करने के लिए काफी भागदौड़ की लेकिन उसे चांस नहीं मिला तो अपनी प्रेमिका मंजुला को ले कर दिल्ली आ गया. दिल्ली के गुरु अंगदनगर में उस ने एक फ्लैट किराए पर लिया और मंजुला के साथ लिवइन रिलेशन में रहने लगा.

अब प्रताप कोई काम करने की जुगत में लग गया. किसी दोस्त की सलाह पर नोएडा में किराए की बिल्डिंग ले कर वह एक कंपनी का कालसेंटर चलाने लगा. बताया जाता है कि उसे इस काम में नुकसान हुआ और वह 15 लाख रुपए का कर्जदार हो गया. उधर उस के पिता अनिल ठाकुर को भी अपने कारोबार में लाखों का नुकसान हो गया. प्रताप को अब ऐसा कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था, जहां से वह अपने कर्ज से निजात पा सके. प्रताप का दोस्त था सिद्धार्थ शर्मा. वह राजगढ़ कालोनी में रहता था. वहीं पर मोबाइल फोन एक्सेसरीज की दुकान चलाता था. प्रताप जब मुकेश वर्मा की निर्माणाधीन कोठी पर जाता था तो वहीं उस की मुलाकात सिद्धार्थ से हुई थी जो बाद में दोस्ती में बदल गई.

प्रताप ने सिद्धार्थ से अपनी तंगहाली की बात बताई. उधर सिद्धार्थ भी अपना काम बंद कर के कार एक्सेसरीज की दुकान खोलना चाहता था. उसे भी मोटे पैसों की जरूरत थी. अब दोनों दोस्तों की जरूरत एक ही थी पैसा. वह पैसा कहां से आए, इस पर दोनों काफी देर तक विचार करते थे. सिद्धार्थ ने प्रताप को स्नैचिंग करने की सलाह दी. इस के लिए प्रताप तैयार नहीं हुआ. उस ने कहा कि रोजरोज स्नैचिंग करने पर रिस्क भी है. तब प्रताप ने कहा कि एक बार में मोटा पैसा कमाने का एक ही रास्ता है और वह है अपहरण. किसी पैसे वाले के बच्चे का अपहरण करने पर एक ही बार में पौबारह हो जाएगी. प्रताप की यह योजना सिद्धार्थ की भी समझ में आ गई.

अपहरण के बाद फिरौती की रकम वसूलने के लिए उन्हें फोन की भी जरूरत पड़ेगी. अपने फोन से फिरौती मांगने पर उन का फंसना लाजिमी था. इस के लिए वे ऐसे सिम लेने की जुगत में लग गए जो किसी और की आईडी पर खरीदे गए हों. इस बारे में उन्होंने कई दुकानदारों से बात की लेकिन उन की बात नहीं बनी. इसी दौरान उन्हें कृष्णानगर में रहने वाले देवेंद्र गुप्ता के बारे में पता चला तो वे दोनों उस की दुकान पर चले गए. एक्स्ट्रा पैसों के लालच में देवेंद्र ने उन्हें वोडाफोन कंपनी के 5 ऐसे सिमकार्ड दे दिए, जो पहले से एक्टिवेट थे और वे फरजी नामपते पर लिए गए थे. उन्होंने चाइनीज कंपनी के 5 मोबाइल फोन भी खरीद लिए.

यह काम करने के बाद दोनों अब इस बात पर विचार करने लगे कि किस के बच्चे का अपहरण किया जाए. काफी सोचनेविचारने के बाद प्रताप ने दिल्ली के कृष्णानगर में रहने वाली अपनी बुआ के 8 वर्षीय बेटे विभू के अपहरण की योजना बनाई. विभू के पिता प्रौपर्टी डीलर थे, उन्हें मोटी आमदनी थी. उन्होंने योजना बनाई कि स्कूल से लौटते समय विभू का अपहरण कर लेंगे. प्रताप और सिद्धार्थ विभू के अपहरण की रेकी करने लगे. रेकी के दौरान उन्होंने देखा कि विभू को स्कूल वैन तक पहुंचाने और छुट्टी के बाद उसे लेने के लिए घर का कोई न कोई सदस्य आता था. इसलिए उन्होंने विभू के अपहरण की योजना टाल दी.

इस के बाद प्रताप के दिमाग में मुकेश वर्मा के बेटे उत्कर्ष का ध्यान आया. उत्कर्ष प्रताप को अच्छी तरह पहचानता था और उस के अपहरण पर उन्हें मोटी फिरौती भी मिलने की उम्मीद थी. इसलिए वे उत्कर्ष का अपहरण करने से पहले रेकी करने लगे कि वह कितने बजे स्कूल जाता है, कब स्कूल से लौटता है आदि. उन्होंने पाया कि कैब से उतरने के बाद उत्कर्ष अकेला ही घर जाता है. इस से उन्हें अपनी योजना सफल होने की उम्मीद लगी. उत्कर्ष अपनी स्कूल कैब से उतर कर घर जाता था तो उस समय गली में बड़ी भीड़भाड़ रहती थी. भीड़भाड़ में कार लाना संभव नहीं था. 18 नवंबर, 2014 को उन्होंने उत्कर्ष का अपहरण करने की योजना बनाई. योजना के अनुसार प्रताप अपनी बुलेट मोटरसाइकिल से और सिद्धार्थ अपनी स्कूटी से राजगढ़ की तरफ चल दिए.

राजगढ़ से कुछ दूर प्रताप ने अपनी मोटरसाइकिल सिद्धार्थ को दे दी और उस की स्कूटी ले कर वह उस गली में खड़ा हो गया जहां से कैब से उतर कर उत्कर्ष अपने घर जाता था. जबकि सिद्धार्थ कुछ दूर उस की बुलेट मोटरसाइकिल लिए खड़ा था. दोपहर 2 बजे के करीब कैब ड्राइवर गुरमीत ने उत्कर्ष को निर्धारित जगह पर उतारा और वहां से वह अपने घर चल दिया. कैब से उतर कर उत्कर्ष कुछ दूर ही चला था कि प्रताप ने उसे रोक लिया. प्रताप को देखते ही उत्कर्ष ने उस का अभिवादन करते हुए उस के पैर छुए. तभी प्रताप ने उस से कहा, ‘‘बेटा उत्कर्ष, आज आप की दादी का देहांत हो गया है इसलिए आप के घर पर कोई नहीं है. चलो, मैं तुम्हें तुम्हारी मम्मी के पास छोड़ आऊं.’’

उत्कर्ष उस पर विश्वास करता था. उसे क्या पता था कि वह मौत के मुंह में जा रहा है. भोलाभाला उत्कर्ष प्रताप के साथ स्कूटी पर बैठ गया. प्रताप उसे ले कर उसी रास्ते की तरफ गया, जहां सिद्धार्थ मोटरसाइकिल लिए खड़ा था. सिद्धार्थ ने प्रताप के पीछे बच्चे को बैठा देखा तो खुश हो गया और कुछ दूरी बना कर प्रताप के पीछे चल दिया. प्रताप उत्कर्ष को ले कर सीधे गुरु अंगदनगर स्थित अपने फ्लैट पर ले गया. उत्कर्ष को वहां अपने परिवार का कोई नहीं दिखा तो उस ने पूछा. प्रताप ने कोई बहाना बनाया तो उत्कर्ष ने उस से अपने मांबाप के पास पहुंचाने की जिद की.

प्रताप के साथ बच्चे को देख कर प्रेमिका मंजुला चौंक गई. उस ने उस से पूछा तो प्रताप ने अलग ले जा कर उस से झूठ कह दिया कि इस बच्चे को आसिफ भाई के लिए लाया हूं, इस के बदले में वह हमें मोटी रकम देंगे. मंजुला समझ गई कि प्रताप इस बच्चे का अपहरण कर के लाया है. उस ने उसे वापस पहुंचाने को कहा लेकिन प्रताप ने उस की बात नहीं मानी. तब मंजुला ने उस से कह दिया कि बच्चे को कोई नुकसान नहीं होना चाहिए, इस बात का ध्यान रखना. प्रताप ने उत्कर्ष को खाना खिलाया और पहले से नशे की गोली मिली हुई कोल्डड्रिंक पीने को दी. कोल्डड्रिंक पीने के बाद उत्कर्ष बेहोश हो गया.

उधर उत्कर्ष के गायब होने के बाद मुकेश शर्मा के घर पर सैकड़ों लोग जमा हो चुके थे साथ ही पुलिस के अफसर भी वहां चक्कर लगा रहे थे. फ्लैट पर पहुंचने के बाद मुकेश वर्मा के घर का जायजा लेने के लिए प्रताप   ने सिद्धार्थ को राजगढ़ कालोनी भेजा. सिद्धार्थ ने वहां भीड़भाड़ व पुलिस देखी तो यह बात उस ने प्रताप को बता दी. दोनों अपहर्त्ता अब घबराने लगे कि केस हाईप्रोफाइल होने की वजह से वे अवश्य पकड़े जाएंगे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसी हालत में वे क्या करें. अगर वे उत्कर्ष को जीवित छोड़ते हैं तो वह सारी बात पुलिस को बता देगा जिस से पुलिस उन्हें पकड़ लेगी. इसलिए उन्होंने उत्कर्ष की हत्या करने का फैसला कर लिया.

बेहोश हो चुके उत्कर्ष को प्रताप ने दूसरे कमरे में सुला दिया था. शाम 7 बज कर 21 मिनट पर सिद्धार्थ ने नए चाइनीज फोन से उत्कर्ष की मां ममता के मोबाइल पर फोन कर के उत्कर्ष के अपहरण की सूचना दी. इस के बाद करीब पौने 9 बजे उस ने दूसरे फोन से उस के पिता को फोन किया. उत्कर्ष के घर वाले उस की चिंता में परेशान हो रहे थे वहीं अपहर्त्ता उत्कर्ष से निजात पाने की बाट देख रहे थे. रात को मंजुला सो गई तो प्रताप ने सोते हुए उत्कर्ष का गला दबा कर हत्या कर दी. उत्कर्ष हाथपैर न मार सके, इस के लिए सिद्धार्थ उस के पैरों पर बैठ गया था. कहीं वह जीवित न रह जाए, इसलिए वे दोनों बारीबारी से उस के गले पर खड़े हो गए.

हत्या करने के बाद वह उस की लाश ठिकाने लगाने की सोचने लगे. मंजुला को पता नहीं था कि उस के प्रेमी ने कितना बड़ा अपराध किया है. सुबह 4 बजे के करीब प्रताप और सिद्धार्थ ने 13 वर्षीय उत्कर्ष की लाश को स्कूटी पर बैठाने की पोजीशन में रख लिया. सिद्धार्थ लाश को पकड़े हुए था, जबकि प्रताप स्कूटी चला रहा था. वहां से लाश ले कर वे गीता कालोनी के ब्लौक नंबर 12 के पास रामलीला मैदान के नजदीक बह रहे नाले के किनारे पहुंच गए. मौका पाते ही उन्होंने लाश नाले में गिरा दी. उस का स्कूल बैग उन्होंने पुश्ता के किनारे की झाडि़यों में फेंक दिया तथा कुछ दूर वे मोबाइल भी फेंक दिए जिन से उन्होंने उत्कर्ष के मातापिता को फोन किए थे.

प्रताप सिसोदिया से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने 25 नवंबर को ही उस के दोस्त सिद्धार्थ शर्मा को भी उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया. दोनों अभियुक्तों को गिरफ्तार कर 26 नवंबर को कड़कड़डूमा कोर्ट में महानगर दंडाधिकारी बबीता पूनिया की अदालत में पेश किया. अदालत में पेश करते समय आक्रोशित वकीलों ने उन की पिटाई कर दी. पुलिस ने बड़ी मुश्किल से उन्हें बचाया. पुलिस को अभियुक्तों से पूछताछ के अलावा उन से कुछ सुबूत हासिल करने थे, इसलिए उन का 2 दिनों का पुलिस रिमांड लिया गया.

रिमांड अवधि में पुलिस ने उन की निशानदेही पर उत्कर्ष का स्कूल बैग, 2 मोबाइल फोन, अभियुक्तों की स्कूटी, बुलेट मोटरसाइकिल आदि बरामद किए. 28 नवंबर को उन्हें पुन: न्यायालय में पेश करने के लिए अदालत की लौकअप में बंद किया गया. वहां मौजूद बंदियों को जब पता चला कि इन दोनों ने मासूम बच्चे की हत्या की है तो उन्होंने प्रताप सिसोदिया और सिद्धार्थ की पिटाई कर दी. पुलिस ने उन्हें तुरंत अपनी सुरक्षा में लिया और न्यायालय में पेश किया. जहां से उन्हें जेल भेज दिया. इस सनसनीखेज मामले का खुलासा करने वाली पुलिस टीम को स्पैशल सीपी (ला ऐंड और्डर) दीपक मिश्रा ने बधाई के साथ सवा लाख रुपए नकद देने की घोषणा की है. मामले की तफ्तीश थानाप्रभारी मनोज पंत कर रहे हैं. Delhi News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. मंजुला परिवर्तित नाम है.

 

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