Hindi Best Story : राजा कर्ण सिंह ने अपने प्रधानमंत्री माधव की पत्नी रूपसुंदरी पर आसक्त हो कर न केवल उसे जबरन अपनी रानी बना लिया था, बल्कि माधव को भी जलील किया था. इस सब से दुखी माधव ने दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन से मिल कर राजा कर्ण सिंह से ऐसा बदला लिया कि वह खून के आंसू रो दिया.   दिल्ली के सुलतान अलाउद्दीन की सेनाओं के हाथों शर्मनाक पराजय के बाद देवगिरि राज्य में शरण ले कर रह रहे गुजरात के अपदस्थ राजा कर्ण सिंह को जब

यह पता चला कि उस की पटरानी कमला देवी का निकाह सुलतान से हो गया है तो उसे कोई आश्चर्य नहीं हुआ. राजा कर्ण सिंह अच्छी तरह जानता था कि अगर पराजित राजाओं की रानियां या राजकुमारियां दिल्ली के सुलतानों की सेनाओं के हाथ लग जाएं तो उन का यही हाल होता है. इसलिए वह काफी हद तक इस झटके को मानसिक रूप से झेलने को तैयार था. फिर भी वह मन ही मन बहुत दुखी हुआ. उस की हालत यह हो गई कि उस के लिए अपने पैरों पर खड़े रहना भी मुश्किल हो गया. कुछ नहीं सूझा तो वह पास पड़ी आराम शैय्या पर लेट गया. उस की निगाहें शून्य में ठहर गईं.

सोचतेसोचते राजा कर्ण सिंह को महसूस हुआ कि उस के साथ जो कुछ भी हुआ, वह शायद वैसा ही है, जैसा उस ने कभी किसी के साथ किया था. उसे अपने पुराने दंभपूर्ण दिनों का स्मरण हो आया. अचानक उस की आंखों में असहाय और अविरल आंसू बहाती हुई रूपसुंदरी का चित्र तैरने लगा. उस के कानों में रूपसुंदरी की असहाय सिसकियां और दीनतापूर्ण प्रलाप गूंजने लगा. राजा कर्ण को याद आया कि उस ने भी अपने प्रधानमंत्री माधव की पत्नी रूपसुंदरी को जबरन उस के पति से छीन लिया था. उस सब को याद कर के राजा कर्ण सिंह का मन अतीत के पन्नों पर उस वक्त की कटु यादों को कुरेदने लगा.

रूपसुंदरी राजा कर्ण सिंह के प्रधानमंत्री माधव की पत्नी थी. उस के अप्रतिम सौंदर्य को देख कर लोग दंग रह जाते थे. बचपन में उस के अनुपम रूप को देख कर उस की मां ने उस का नाम रूपसुंदरी रखा था. रूपसुंदरी को राजा कर्ण सिंह ने पहली बार अपने राजमहल में उस समय देखा था, जब वह उस की भीतीजी के विवाह में भाग लेने के लिए आ कर ठहरी थी. रूपसुंदरी राजमहल के जिस कक्ष में ठहरी थी, वह राजा कर्ण सिंह की पटरानी कमला देवी के कक्ष से जुड़ा था. दोनों कक्षों के बीच एक छोटा सा झरोखा था. हालांकि झरोखे पर छोटा सा परदा था, पर उस के आरपार आसानी से देखा जा सकता था.

विवाह के दौरान अचानक राजा कर्ण सिंह को किसी कार्यवश रानी कमला देवी के कक्ष में आना पड़ा. लेकिन रानी वहां मौजूद नहीं थी, इसलिए वह आराम शैय्या पर बैठ कर रानी की प्रतीक्षा करने लगा. जिस समय राजा कर्ण सिंह वहां बैठा रानी की प्रतीक्षा कर रहा था, उस समय रूपसुंदरी बगल के कक्ष में बैठी दासियों से अपने शरीर पर चंदन का लेप लगवा रही थी. उस की सहेलियां भी कक्ष में मौजूद थीं. उन में आपस में हंसीमजाक चल रहा था. झरोखे को पार कर के आती उन के खिलखिलाने की आवाज राजा को आनंदित कर रही थी.

राजा को मालूम था कि बगल के कक्ष में उस के प्रधानमंत्री माधव की पत्नी ठहरी हुई है. राजा कर्ण ने उस के रूपसौंदर्य की बहुत प्रशंसा सुनी थी. रूपसुंदरी को देखने की चाह में राजा ने अपने कक्ष का दरवाजा बंद कर लिया और झरोखे पर चढ़ कर बगल वाले कक्ष में देखने लगा. राजा कर्ण सिंह ने जैसे ही झरोखे के दूसरी ओर बैठी रूपसुंदरी को देखा, वह उस के अप्रतिम सौंदर्य को देख कर चकित रह गया. राजा कर्ण सिंह झरोखे से रूपसुंदरी को अपलक निहारने लगा. रानी की सहेलियां और दासियां उस के शरीर पर चंदन का लेप लगा रही थीं. रूपसुंदरी का कोमल शरीर किसी उच्चकोटि के मूर्तिकार द्वारा तराशी गई प्रस्तर प्रतिमा की तरह खूबसूरत और सुगठित था.

रंग दूध की तरह धवल और झील जैसी गहरी पनीली आंखें. राजा कर्ण सिंह मोहित हो कर उस के अंगप्रत्यंग को निहार रहा था. विशाल नेत्रों के बीच जब उस की हरीहरी पुतलियां चलतीं तो कर्ण सिंह का मन डोलने लगता. जब वह बोलती तो ऐसा लगता, जैसे किसी ने वीणा का तार छेड़ दिया गया हो. रूपसुंदरी के मोहजाल में फंसा राजा कर्ण सिंह यह भी भूल गया कि वह है कहां. गुलाब की पंखुडि़यों से गुंथे अधरों और धवल दंत पंक्ति से सुसज्जित रानी रूपसुंदरी की खिलखिलाहट राजा कर्ण सिंह को सोमरस से भी अधिक मदहोश करती महसूस हो रही थी. वह हंसती तो राजा को लगता जैसे कोई उस के दिल को गुदगुदा रहा है. राजा कर्ण की यह निर्बाध सौंदर्यपान की प्रक्रिया उस समय भंग हुई, जब कक्ष के द्वार पर किसी ने दस्तक दी.

दस्तक सुन कर राजा कर्ण सिंह झरोखे से नीचे उतर आया. उस ने द्वार खोल कर देखा तो सामने पटरानी कमला देवी खड़ी थी. वह राजा को किसी वैवाहिक रस्म को पूरा करने के लिए बुलाने आई थी. राजा कर्ण सिंह उस समय रानी के साथ चला तो गया, लेकिन रूपसुंदरी का रूप उस के हृदय और आंखों में इस तरह समा गया था कि वह हर ओर, हर जगह रूपसुंदरी को ही देखने लगा. विवाह समारोह की समाप्ति के तुरंत बाद राजा कर्ण सिंह ने रूपसुंदरी को अपने निकट लाने के प्रयास शुरू कर दिए. कभी वह प्रधानमंत्री माधव के हाथ उस की पत्नी के लिए कीमती उपहार भेजता तो कभी उसे परिवार सहित राजमहल में दावत पर बुलाता.

इस दौरान उस ने रूपसुंदरी के निकट आने और उसे रिझाने के तमाम प्रयत्न किए, किंतु रूपसुंदरी ने उस के इन हावभावों का कोई उत्तर नहीं दिया. उल्टे वह राजा कर्ण सिंह की इन हरकतों से कुपित हो कर न केवल उसे उपेक्षित नजरों से देखने लगी, बल्कि उस के सामने आने से भी कतराने लगी. रूपसुंदरी के इस उपेक्षापूर्ण व्यवहार से राजा कर्ण सिंह की चाहत कम होने के बजाय, दोगुनी होने लगी. अब वह उसे प्राप्त करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो गया. इस घटना से राजा कर्ण सिंह ने यह भलीभांति समझ लिया कि अपनी वासनापूर्ति के लिए रूपसुंदरी को जबरन प्राप्त करने के अलावा कोई और रास्ता नहीं है. फलस्वरूप उस ने अब रूपसुंदरी को जबरन हथियाने का प्रण कर लिया.

अपने प्रण के अनुसार राजा ने एक दिन प्रधानमंत्री माधव को लगान संबंधी मामलों को निपटाने के लिए बाहर जाने का आदेश दिया. माधव को राजा के इस आदेश पर थोड़ा आश्चर्य हुआ, क्योंकि लगान संबंधी मामलों के निपटारे के लिए इस के पूर्व राजा ने उसे कभी भी राजधानी से बाहर नहीं भेजा था. हालांकि कई बार ऐसी स्थितियां भी आईं, जब उस का राजधानी से बाहर जाना अति आवश्यक था, लेकिन फिर भी राजा ने उसे जाने से मना कर दिया था. इसलिए वह समझ नहीं पा रहा था कि राजा ने इस बार विशेष रूप से उसे ही जाने को क्यों कहा है?

माधव की पत्नी रूपसुंदरी भी राजा के इस असामान्य से आदेश से संशकित हो गई थी. उसे राजा के इस आदेश के पीछे किसी षडयंत्र का अंदेशा हुआ. उस ने अपनी शंका को पति पर व्यक्त भी किया, किंतु माधव ने उसे स्त्री सुलभ डर मान कर नजरअंदाज कर दिया और वह राजा का आदेश मान कर बाहर चला गया. प्रधानमंत्री के जाने के बाद राजा ने पटरानी कमला देवी को भी उस के मायके सहसपुर भेज दिया. रानी और प्रधानमंत्री के राजधानी से दूर हो जाने पर राजा कर्ण सिंह को रूपसुंदरी के प्रति रचे गए अपने षडयंत्र को पूरी तसल्ली से देने का मौका मिल गया.

योजनानुसार राजा कर्ण सिंह ने पूर्णमासी की रात को रूपसुंदरी के पुत्र रोहित को अपने महल में कैद कर दिया. इस के बाद उस ने रूपसुंदरी को सूचना भिजवाई कि उस का पुत्र रोहित महल की सीढि़यों से गिर कर बुरी तरह घायल हो गया है, अत: वह अपने पुत्र को देखने के लिए तुरंत राजमहल में आ जाए. रूपसुंदरी को जैसे ही यह समाचार मिला, वह अपनी दोनों दासियों को ले कर राजमहल जा पहुंचीं. उस वक्त वह बेहद घबराई हुई थी. राजमहल के द्वार पर उसे बताया गया कि घायल रोहित को राजा ने अपने शयनकक्ष में लिटा दिया है. इसलिए वहां केवल रूपसुंदरी ही प्रवेश कर सकती है, दासियां नहीं.

रूपसुंदरी उस समय इतनी घबराई हुई थी कि उसे आगापीछा सोचने का मौका ही नहीं मिला. वह भागती हुई राजा के शयनकक्ष में जा पहुंची, किंतु वहां पहुंच कर वह उस समय चकित रह गई, जब उस ने सजी हुई सेज पर राजा कर्ण सिंह को कुटिलता से मुस्कराते हुए पाया. रूपसुंदरी ने घबराई आवाज में पूछा, ‘‘मेरा बेटा कहां है?’’

‘‘घबराओ मत रूपसुंदरी, तुम्हारा बेटा पूरी तरह सुरक्षित है.’’ कहते हुए राजा ने बताया, ‘‘घायल रोहित नहीं, घायल तो हम हैं और इस कदर घायल हैं कि न जीवित हैं और न मर पा रहे हैं. हम तो तबसे घायल हैं, जब से तुम्हें पहली बार देखा था.’’ यह कह कर राजा कर्ण सिंह ने अपने शयनकक्ष का दरवाजा बंद कर दिया. राजा को ऐसा करते देख रूपसुंदरी को राजा का मंतव्य समझते देर नहीं लगी. वह समझ गई कि राजा कर्ण सिंह ने प्रधानमंत्री को राजधानी से दूर क्यों भेजा था. वह बुरी तरह डर गई और राजा के पैरों पर गिर कर अपनी इज्जत की भीख मांगने लगी.

हालांकि राजा कर्ण सिंह उस समय कामांध था, लेकिन रूपसुंदरी जिस बुरी तरह से रो रही थी, उस से परेशान हो कर वह उसे सामान्य होने का मौका देने की गरज से वहां से चला गया. लेकिन जातेजाते वह रूपसुंदरी को चेतावनी देता गया, ‘‘अब मुझ से तुम्हें माधव तो क्या, काल भी नहीं बचा सकता. माधव और तुम्हारे बेटे की भलाई इसी में है कि तुम पूर्ण रूप से समर्पण कर दो. अगर तुम ने ऐसा नहीं किया तो तुम अपने पति और बेटे, दोनों से हाथ धो बैठोगी. और हां, तुम ने मेरी बात मान ली तो मैं वचन देता हूं कि तुम्हें कमला देवी की तरह रानी बना कर रखूंगा. साथ ही रोहित को भी किसी रियासत का जागीदार बना दूंगा.’’

राजा कर्ण ने रूपसुंदरी को केवल धमकी ही नहीं दी थी, बल्कि उस ने वास्तव में रूपसुंदरी को अपने महल में कैद कर लिया था. वह रोजाना राजा के पैरों में गिर कर दया की भीख मांगती थी, पर कर्ण सिंह का दिल जरा भी नहीं पसीजा. उस ने रूपसुंदरी को धमकी दी कि अगर उस ने जल्दी ही कोई निर्णय नहीं लिया तो उस के सामने ही उस के पति और पुत्र की हत्या कर दी जाएगी. रूपसुंदरी को उम्मीद थी कि जब उस का पति माधव लौट कर आएगा तो उसे किसी न किसी तरह राजा के चंगुल से छुड़ा लेगा. जब माधव लौट कर आया और उसे यह सूचना मिली कि राजा ने उस की गैरमौजूदगी में रूपसुंदरी का अपहरण कर लिया है तो वह आगबबूला हो गया.

लेकिन वह अच्छी तरह जानता था कि राजा से टकराने का कोई लाभ नहीं है. इसलिए कोई और रास्ता न देख उस ने राजा से बारबार अनुरोध किया कि वह उस की पत्नी और बेटे को लौटा दे, लेकिन राजा ने उस की एक नहीं सुनी. इस की जगह उस ने माधव को चेतावनी दी कि अगर उस ने अपनी पत्नी के लिए ज्यादा उठापटक की तो वह अपने पुत्र रोहित तथा खुद अपनी जान से हाथ धो बैठेगा. राजा के इस दंभपूर्ण दुराग्रह के समक्ष माधव असहाय हो कर चुपचाप बैठ गया. उस ने प्रधानमंत्री पद भी छोड़ दिया.

अपना त्यागपत्र देते समय उस ने रुंधे गले से राजा को चेतावनी देते हुए कहा, ‘‘याद रखना, जिस तरह तुम ने मेरी प्रिय रानी व पुत्र को मुझ से जबरन छीन लिया है, उसी तरह एक दिन ऐसा आएगा, जब तुम से कोई तुम्हारी रानी छीन कर ले जाएगा और तुम मूकदर्शक बने चुपचाप देखते रह जाओगे. यही नहीं, जिस तरह से तुम ने मेरे पुत्र को कैद कर लिया है, वैसे ही तुम्हारी संतान को कोई तुम से छीन लेगा और तुम कुछ भी नहीं कर सकोगे.’’

इसी बीच रानी कमला देवी भी अपने मायके से लौट आई थी. रूपसुंदरी ने उस के सामने भी रोरो कर अपनी रिहाई की मांग की थी. रानी ने भी उस की रिहाई के लिए राजा से काफी मिन्नतें कीं, पर राजा ने उस की भी एक नहीं सुनी. यहां तक कि वह रूपसुंदरी के मामले में रानी कमला देवी को भी बुराभला कहने लगा. अपने पति व रानी कमला देवी की असफलता के बाद रूपसुंदरी की बचीखुची आशा भी खत्म हो गई.

वह महीनों तक अपने पति के समर्पित प्रेम को याद कर के आंसू बहाती रही. रूपसुंदरी जीवित नहीं रहना चाहती थी, लेकिन अपने बेटे के लिए उस ने परिस्थितियों से समझौता कर लिया था. अंतत: एक दिन उस ने राजा कर्ण सिंह के समक्ष उसी तरह से आत्मसमर्पण कर दिया, जैसे कोई कबूतर सामने जंगली बिलाव को देख मौत के डर से अपनी आंखें मूंद लेता है. पूर्व प्रधानमंत्री माधव ने अपनी प्रिय पत्नी रूपसुंदरी को खो दिया था. उसे वापस पाने की उस की आशा और इच्छा दोनों ही खत्म हो गई थीं. लेकिन उस के मन में राजा कर्ण सिंह के प्रति नफरत और प्रतिशोध की जो ज्वाला धधक रही थी, समय के साथ वह बढ़ती चली गई. राजा कर्ण सिंह से धोखा खाने के बाद माधव रातदिन केवल एक ही बात सोचता था कि वह राजा से अपना प्रतिशोध किस प्रकार ले.

राजा कर्ण सिंह से अपना हिसाब चुकता करने लिए वह शैतान से भी गठबंधन करने के लिए तैयार था. यह बात माधव अच्छी तरह समझता था कि राजा कर्ण सिंह से बदला लेने के लिए उसे एक शक्तिशाली मित्र की आवश्यकता है. वह यह भी जानता था कि राजा कर्ण सिंह के राज्य में विद्रोह करना असंभव है. क्योंकि सारे सेनापति व जागीरदार उस के इशारों पर नाचते हैं. वे लोग राजा के अत्याचारों की दबेछिपे आलोचना तो करते हैं, किंतु उस के खिलाफ खुल कर एक शब्द भी नहीं बोल पाते, हालांकि उन सब ने अपनी आंखों से देखा था कि किस तरह राजा ने उस की पत्नी को छीना था. फिर भी किसी में इतना साहस नहीं हुआ था कि वह राजा के इस जघन्य अपराध के लिए एक शब्द भी बोलता.

किसी भी प्रकार के आंतरिक विद्रोह की संभावना न होने के कारण माधव का ध्यान दूसरे राज्यों की ओर गया. गुजरात के साथ लगा हुआ एक शक्तिशाली राज्य था देवगिरि. किंतु वहां का राजा रामचंद्र देव राय, राजा कर्ण सिंह का घनिष्ठ मित्र था. ऐसे में उस की ओर से गुजरात पर हमला होना असंभव था. गुजरात से सटे राजस्थान में भी कई शक्तिशाली राजपूत राज्य थे, किंतु वे सभी मुस्लिम आक्रमणकारियों से जूझने की तैयारियों में मशगूल थे. वह बेवजह गुजरात से भिड़ कर अपनी शक्ति व्यर्थ नहीं करना चाहते थे. ऐसी स्थिति में माधव को आशा की किरण के रूप में दिखा दिल्ली का सुलतान अलाउद्दीन खिलजी.

माधव ने दिल्ली के सुलतान के पास जा कर उसे गुजरात पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित करने का निश्चय किया. इस के लिए पूरी तैयारी जरूरी थी. इसलिए दिल्ली जाने के पूर्व उस ने राजा कर्ण सिंह के राज्य के सभी गुप्त रहस्य इकट्ठा कर लिए. यही नहीं, अपने प्रधानमंत्री काल में उस ने जिनजिन व्यक्तियों की नियुक्तियां की थीं या जिनजिन लोगों की किसी भी प्रकार से सहायता की थी, उन की भावनाओं को भड़काने का भी कार्य किया. माधव ने राज्य के ब्राह्मणों की भावनाओं को भड़काते हुए कहा कि राजा ने एक ब्राह्मण स्त्री का अपहरण किया है, उसे बंधक बना कर रखा है.

उस से इस का बदला लेना चाहिए. नहीं तो ब्राह्मण नारियों का अपमान एक आम बात हो जाएगी, माधव ने बड़ी चालाकी के साथ ब्राह्मण, ज्योतिषियों एवं पुरोहितों को अपनी ओर मिला कर उन्हें इस बात के लिए प्रेरित करना शुरू कर दिया कि वे सारे राज्य में घूमघूम कर यह भविष्यवाणी करना शुरू कर दें कि एक ब्राह्मण नारी का अपमान करने के कारण राजा कर्ण सिंह का शीघ्र ही पतन होने वाला है. उत्तर की ओर से आने वाली सेनाएं गुजरात राज्य को तहसनहस कर देंगी. माधव जानता था कि ऐसी अफवाह फैलाने से सेना और प्रजा का मनोबल गिर जाएगा.

माधव ने एक और चालाकी भरा कार्य यह किया कि उस ने राजमहल के राजज्योतिषियों को इस बात के लिए तैयार कर लिया कि जैसे ही किसी बाहरी सेना का राज्य पर आक्रमण हो, वह ज्योतिष के आधार पर राजा की पराजय की भविष्यवाणी कर के उसे दक्षिण की ओर भाग जाने की सलाह दें. अपने षडयंत्र को अंजाम देने के बाद माधव ने दिल्ली की ओर प्रस्थान कर दिया. माधव चूंकि स्वयं गुजरात का प्रधानमंत्री रह चुका था, अत: वह दरबार के अधिकारियों एवं कर्मचारियों की विशेषताएं व कमजोरियों से भली भांति परिचित था. यही वजह थी कि उसे दिल्ली के राज दरबार में नौकरी प्राप्त करने में कोई कठिनाई नहीं हुई थी.

माधव बड़ी सावधानी और चालाकी से अपने कदम आगे बढ़ाता चला गया. कुछ ही दिनों में वह सुलतान से सीधे मिलने लगा. सुलतान अलाउद्दीन की सब से बड़ी खासियत यह थी कि वह जल्दी ही सामने वाले की विशेषताएं भांप लेता था. उसे यह समझते देर नहीं लगती थी कि कौन सा आदमी किस औकात का है और उस का उपयोग कब और कहां करना है. महत्त्वाकांक्षी सुलतान को यह समझते देर नहीं लगी कि माधव एक बुद्धिमान और अनुभवी व्यक्ति है. अत: वह समयसमय पर उस से सलाह लेने लगा.

एक दिन माधव को जब पता चला कि सुलतान अलाउद्दीन राजस्थान के राजपूतों के दमन के लिए एक सेना तैयार करवा रहा है तो यह सुन कर उस की बांछें खिल गईं. उसे लगा कि अब उस के बदला लेने का समय निकट आ गया है. माधव ने मन ही मन कुछ निश्चय किया और लाल व सफेद फूलों का एक बड़ा सा खूबसूरत गुलदस्ता ले कर सुलतान के पास जा पहुंचा. उस ने वह गुलदस्ता सुलतान को भेंट किया तो सुलतान ने वह सुंदर गुलदस्ता ग्रहण करते हुए कहा. ‘‘बहुत खूबसूरत है.’’

‘‘जी जहांपनाह, सुंदर तो बहुत है. लेकिन अच्छा तो तब होता, जब इस में जिंदगी की धड़कनें भी होतीं.’’

अलाउद्दीन माधव के इस कधन का अभिप्राय न समझ सका. वह चौंक कर बोला, ‘‘जिंदगी… धड़कन… तुम्हारी इन बातों का क्या मतलब है, हम समझे नहीं?’’

‘‘गुस्ताखी माफ हो हुजूर, मगर मैं ने ऐसा दृश्य स्वयं अपनी ही आंखों से देखा है. सचमुच वह मंजर बहुत ही सुहाना और दिल को गुदगुदाने वाला होता है.’’

सुलतान को माधव की बातें कुछ अजीब लगीं, मगर इस के पहले कि वह कुछ और कहता, माधव ने अपनी बात स्पष्ट करते हुए कहा, ‘‘जहांपनाह, इस नाचीज गुलाम पर रहम फरमाएं. दरअसल मैं आप से यह अर्ज करना चाहता हूं कि गुजरात की रानी कमलादेवी बला की खूबसूरत है, बिलकुल अप्सरा, किसी हूर की तरह. उस औरत का हुस्न देख कर लोग आहें भरने लगते हैं. उस के होंठ इन सुर्ख गुलाब की पंखुडि़यों की तरह नाजुक और मुलायम हैं. वह जब अपने होंठों को दबाती, चलाती या बिदकाती है तो ऐसा लगता है, जैसे किसी सुर्ख गुलाब की पंखुडि़यां आपस में लिपटचिपट कर एकदूसरे को चूम रही हों.’’

माधव ने देखा कि सुलतान उस की बातों से प्रभावित हो रहा है. वह जानता था कि हुस्न और दौलत सुलतान की कमजोरियां हैं. अत: उस ने सुलतान को दोनों का लालच देते हुए कहा, ‘‘हुजूर, रानी कमला देवी जैसी खूबसूरत औरत के बिना कोई भी हरम अधूरा है. वह जिस हरम में दाखिल हो जाएगी, दुनियां में उस का कोई सानी नहीं रहेगा.’’

कुछ पल रुकने के बाद उस ने आगे कहा, ‘‘जहांपनाह, गुजरात में हुस्न और दौलत का नायाब भंडार है. एक से बढ़ कर एक खूबसूरत औरतें हैं वहां. राजा कर्ण के हरम में रानी कमला देवी के अलावा कई हूरें मौजूद हैं. इस के अलावा वहां दौलत तो इतनी है कि उसे ढोना ही बड़ा मुश्किल काम है. आप के पास सवारियां कम पड़ जाएंगी, पर दौलत खत्म नहीं होगी. वहां हर मंदिर में बेशुमार दौलत है. आप को तो मालूम ही है कि महमूद गजनवी ने सोमनाथ के मंदिर को लूट कर बेशुमार दौलत हासिल की थी. हिंदुओं ने इस मंदिर को फिर से बनवा लिया और अब वहां फिर से बेशुमार दौलत इकट्ठा हो चुकी है.’’

दौलत और अपने हरम के लिए लाजवाब औरतें मिलने की बात सुन कर अलाउद्दीन का दिल खुशी के मारे उछलने लगा. उस की आंखों में चमक आ गई. सुलतान ने माधव से पूछा, ‘‘क्या इस समय गुजरात पर हमला करना मुनासिब होगा, क्या हमें कामयाबी हासिल हो पाएगी?’’

सुलतान के इस प्रश्न के उत्तर में माधव ने उसे समझाया, ‘‘बिलकुल सही वक्त है जहांपनाह, मेरा मशविरा यह है कि आप राजपूतों को छोड़ कर फिलहाल गुजरात पर अपना ध्यान लगाएं. राजपूताने में उतनी दौलत नहीं हैं, जितनी गुजरात में हैं. वैसे भी मंगोलों से लड़ने के लिए हुजूर को इस समय दौलत की सख्त जरूरत है.

‘‘हुजूरेआला, राजपूताने को फतह करने में जितनी दौलत, वक्त और ताकत लगेगी, उतना कुछ हासिल नहीं होगा. जबकि गुजरात पर अगर उस का सिर्फ दसवां हिस्सा भी खर्च कर दिया जाए तो न सिर्फ गुजरात को फतह कर लिया जाएगा, बल्कि दिल्ली में दौलत के पहाड़ खड़े हो जाएंगे. इस के बाद आप मंगोलों को तो क्या, सारी दुनियां को भी फतह कर सकते हैं.

‘‘जहां तक गुजरात को फतह करने का सवाल है तो दुनियां में कौन सी ऐसी ताकत है, जो हुजूर के सामने 2-3 दिनों से ज्यादा टिक सके. हुजूरेआला का तो नाम सुनते ही हिंदू राजाओं के होश उड़ जाते हैं. फिर आप का यह अदना सा गुलाम तो गुजरात के जर्रेजर्रे से वाकिफ है और हुजूर की खिदमत करने के लिए बेताब है. अगर यह गुलाम हुजूर के किसी काम आ गया तो अपनी जिंदगी को कामयाब समझेगा.’’

अलाउद्दीन को माधव की बात सही लगी. उस ने महसूस किया कि राजपूताने में प्रतिरोध अधिक है और दौलत कम. जबकि गुजरात को माधव की सहायता से जीतना भी आसान है और वहां दौलत भी खूब है. इसलिए सुलतान ने सोचविचार कर शीघ्र ही गुजरात पर आक्रमण करने की ठान ली. अपने निश्चय को मूर्तरूप देने के लिए अलाउद्दीन ने 24 फरवरी, 1299 को अपनी फौजें गुजरात के लिए रवाना कर दीं. इस शक्तिशाली फौज का नेतृत्व उस ने अपने विश्वासपात्र सिपहसलार नुसरत खां को सौंपा. यही नहीं, अपनी जीत पक्की करने के लिए उस ने अपने एक और योग्य सिपहसलार तथा सिंध के गर्वनर उलूम खां को भी आदेश दिया कि वह अपनी सारी फौज ले कर गुजरात की ओर कूच करे.

सुलतान का आदेश मिलते ही उलूम खां अपनी शक्तिशाली सेना ले कर नुसरत खां की मदद के लिए गुजरात की ओर रवाना हुआ. उस की राह में हिंदू रियासत जैसलमेर पड़ती थी, वहां पहुंचते ही उस की सेना ने जैसलमेर पर धावा बोल दिया और पूरे शहर को तहसनहस कर दिया. जैसलमेर पर अपनी जीत दर्ज करवाने के बाद उलूम खां चित्तौड़ की ओर बढ़ा, जहां दिल्ली से आई नुसरत खां की सेना पहले से ही डेरा डाले थी. उलूम खां के नेतृत्व वाली सेना ने जब चितौड़गढ़ के पास नुसरत खां की सेना द्वारा स्थापित छावनी में प्रवेश किया तो सारा आसमान ‘अल्लाहुअकबर’ के गगनभेदी नारों से गूंजायमान हो उठा. उन दो शक्तिशाली सिपहसालारों के मिलन से ऐसा लग रहा था, जैसे सम्मिलित सेना का उत्साह दो गुना नहीं, बल्कि दस गुना हो गया है.

सेना का बढ़ा हुआ मनोबल देख कर नुसरत और उमूल खां ने विचारविमर्श के बाद चितौड़ गढ़ को छोड़ कर आगे बढ़ने का निश्चय कर लिया. उन्होंने जुम्मे तक का इंतजार करना भी गवारा नहीं किया और अपनी सेना ले कर गुजरात की ओर कूच कर गए. सिपहसलार नुसरत और उलूम खां के नेतृत्व में आगे बढ़ती सेना के मार्ग में वनास नदी पड़ती थी. नदी में पानी अधिक न होने के कारण सेना को उस पार जाने में कोई कठिनाई नहीं हुई. नदी पार कर गुजरात में पहुंचते ही सेना ने अपनी चिरपरिचित शैली में लूटपाट करनी शुरू कर दी. गुजरात के लोगों ने ऐसी भयानक लूटपाट पहले कभी नहीं देखी थी. नुसरत और उलूम की भयानक लूटखोरी और दरिंदगी देख कर सारा गुजरात कराह उठा.

उन्होंने केवल सेठों, सावंतों, चौधरियों और व्यापारियों को ही नहीं लूटा, बल्कि साधारण लोगों को भी लूटपाट का शिकार बनाया. खूबसूरत औरतों का अपहरण कर के उन की इज्जत लूटी. सुलतान के सिपाही गरीब लोगों के घरों में घुस कर उन्हें मारते और घर में रखी संपति लूट लेते. कू्रर सेना ने ऐसी दरिंदगी दिखाई कि छोटे और मासूम शिशुओं को उन के मातापिता के सामने ही तलवारों और भालों पर टांग दिया. कई घरों को उन्होंने ने आग लगा कर लोगों को जिंदा ही जला दिया. जिस के हाथ जो लगा, लूटता रहा. अपनी जान बचाने के लिए अधिकांश लोग घर छोड़ कर भाग गए. लूट और अत्याचार का यह सिलसिला दिनरात चलता रहा.

सुंदर युवा लड़कियों को सैनिकों ने अपने कब्जे में ले लिया. युवा बलिष्ठ युवकों व छोटे बच्चों को गुलाम बना कर दिल्ली भेजने के लिए कैद कर लिया गया. नुसरत और उलूम खां ने इस लूटपाट और नरसंहार को केवल धनसंपत्ति के लिए अंजाम नहीं दिया था. दरअसल वह राजा कर्ण सिंह व गुजरात की जनता व सेना के दिल में तुर्कों की निर्दयता व अत्याचार का ऐसा डर पैदा करना चाहते थे कि तुर्कों का नाम सुनते ही लोग थरथर कांपने लगें. नुसरत और उलूम को माधव ने यह खबर दे दी थी कि राजा कर्ण सिंह जो 2 वर्ष पहले अपने पिता राजा सारंग देव की मृत्यु के बाद राजगद्दी पर बैठा था, काफी डरपोक किस्म का व्यक्ति है. अगर उसे डराया जाए तो संभव है, वह बिना लड़े ही तुर्कों के सामने आत्मसमर्पण कर दे.

इस नजरिए से नुसरत और उलूम की यह योजना सही साबित हुई. क्योंकि राजा कर्ण सिंह तुर्कों के कारनामे सुनसुन कर बुरी तरह आतंकित हो गया. नुसरत और उलूम खां के अत्याचारों की हकीकत जान कर वह पीपल के सूखे पते की तरह कांपने लगा था. राजा कर्ण सिंह के मन में यह बात पूरी तरह घर कर गई थी कि वह किसी भी सूरत में तुर्कों से नहीं जीत सकता. अत: उस ने दिल्ली की सेना का सामना करने के बजाय अपने राज्य को छोड़ कर गुप्त तरीके से भाग जाने का फैसला कर लिया. राजा के अधिक डर का एक कारण यह भी था कि उस के राजज्योतिषियों ने समयसमय पर यह भविष्यवाणी करनी शुरू कर दी थी कि दिल्ली की सेना ही बाजी मार ले जाएगी.

इन भविष्यवाणियों को सुन कर राज्य की सेना व जनता का उत्साह समाप्त हो गया था. हर कोई अपनी जान बचाने के फेर में पड़ गया था. राजा और उस के सैनिकों का मनोबल पूरी तरह टूट चुका था. परिणाम यह हुआ कि दिल्ली की सेना ने जब राजधानी में प्रवेश किया, तब राजा कर्ण सिंह अपनी गिरफ्तारी और मौत के डर से राजमहल छोड़ दक्षिण दिशा में देवगिरि राज्य की ओर भाग चुका था. भागते समय वह अपने प्राणों के अतिरिक्त कुछ भी नहीं ले जा सका था. अपनी अपार धनसंपत्ति, शाही खजाना और अपनी प्रिय पटरानी कमला देवी तक को वह महल में छोड़ भागा था.

गुजरात का भूतपूर्व प्रधानमंत्री माधव दिल्ली से ही शाही सेना के साथ आया था, वह नुसरत व उलूम को राजमहल की सभी महत्त्वपूर्ण जानकारियां दे रहा था. उस ने राजा कर्ण सिंह की पटरानी कमला देवी, अन्य रानियों व राजकुमारियों को उस समय पकड़वा दिया जब अपने खास सेवकों व दासियों के साथ गुप्त रास्ते से भागने का प्रयास कर रही थीं. इस काम में माधव को इसलिए कोई परेशानी नहीं हुई थी, क्योंकि राज्य का पूर्व प्रधानमंत्री होने के नाते वह राजमहल के चप्पेचप्पे से वाकिफ था. माधव ने सिपहसालार नुसरत खां को सुझाव दिया था कि वह कमला देवी को सुरक्षित दिल्ली ले जा कर अलाउद्दीन को गुजरात के एक नायाब तोहफे के रूप में भेंट करे.

दरअसल माधव चाहता था कि कमला देवी को मुसलमान बना कर उस का निकाह सुलतान अलाउद्दीन से कराया जाए. राजा कर्ण सिंह को नीचा दिखाने और उसे अधिकाधिक अपमानित करने का उसे यही सब से अच्छा तरीका लगा था. अंतत: माधव अपनी इस चाल में कामयाब रहा. पटरानी कमला देवी को दिल्ली ले जाया गया और उसे मुसलमान बना कर उस का निकाह सुलतान अलाउद्दीन से करा दिया गया. राजा कर्ण सिंह ने देवगिरि में शरण ले रखी थी. जब उसे रानी कमला देवी के सुलतान के साथ निकाह की सूचना मिली तो वह अपमान और पीड़ा से तड़प कर रोने लगा.

जबकि दूसरी ओर माधव की खुशी का कोई ठिकाना न था. उस ने अपनी पत्नी रूपसुंदरी व पुत्र राहुल के छिन जाने का बदला राजा कर्ण से ले लिया था. आखिरकार व्यक्तिगत ईर्ष्याद्वेष और जातीय मतभेदों ने गुजरात जैसे शक्तिशाली हिंदू राज्य का पतन करा दिया. Hindi Best Story

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