UP News: दुर्गेश और कविता ने जिन लोगों को अपनी मेहनत और सूझबूझ से करोड़पति बनाया, आगे चल कर ऐसा क्या हुआ कि वही लोग उन के दुश्मन ही नहीं बन गए, बल्कि कविता की हत्या भी कर दी. उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर की कोतवाली के घोष कंपनी चौराहे के पास स्थित डीके टावर की रहने वाली भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश महिला प्रकोष्ठ की सदस्य और मिर्चमसाला रेस्टोरेंट की मालकिन 46 वर्षीया कविता गुप्ता उर्फ हनी कमला अस्पताल के लाइफलाइन डायग्नोस्टिक सेंटर पहुंची तो रिसैप्शनिस्ट स्तुति श्रीवास्तव खाली बैठी थी. अगले दिन कविता को पति के दोस्त के बेटे की शादी में जाना था, इसलिए उन्होंने स्तुति से मेहंदी लगाने को कहा.
कमला अस्पताल कविता गुप्ता का ही था. मालकिन के आग्रह को स्तुति कैसे ठुकरा सकती थी. अंदर रखी बेंच पर बैठा कर वह उन के हाथों में मेहंदी लगाने लगी. मेहंदी लगा कर वह खाली ही हुई थी कि तभी एक युवक रिपोर्ट लेने आ गया. स्तुति जैसे ही रिपोर्ट लेने अंदर गई, रिपोर्ट लेने आए युवक ने कमर में खोंसी पिस्तौल निकाली और बेंच पर बैठी कविता की कनपटी से सटा कर गोली मार दी. गोली लगते ही कविता बेंच पर औंधे मुंह गिर पड़ीं तो उस ने एक और गोली उन के पेट में मार दी. वह युवक गोलियां मार कर जाना ही चाहता था कि एक अन्य युवक पीछे से आया और उस के बराबर में खड़ा हो गया. शायद वह उस का साथी था. उस के हाथ में देसी पिस्तौल थी, जिस से उस ने भी एक गोली कविता के पेट में मार दी.
गोलियां चलने की आवाज सुन कर डीके टावर में अफरातफरी मच गई. जिस स्तुति के पास कविता आई थीं, वह उन्हें संभालने के बजाय गायब हो गई. टावर स्थित दुकानों के शटर धड़ाधड़ गिरने लगे. दूसरी ओर कविता को गोली मारने वाले दोनों युवक बाहर निकल रहे थे, तभी कविता के एकलौते बेटे यश ने उन्हें देख लिया. दोनों में से एक को उस ने पहचान भी लिया. वह कोई और नहीं, उस का सगा बहनोई सैयद कमर खुशनूर उर्फ शेरू था.
दरअसल, कविता रेस्टोरेंट से निकली थीं तो उन्हें बाहर जाते देख कर यश उन के पीछे लग गया था कि वह कहां जा रही हैं. टावर की ओर जाते देख वह सहम गया, क्योंकि कविता रेस्टोरेंट से बाहर बिलकुल नहीं जाती थीं. यश वहां तक पहुंचता, उस के पहले ही उस के बहनोई ने अपने किसी साथी के साथ उस की मां को मार दिया था. सड़क पर पहुंच कर शेरू एक ओर चला गया तो उस का साथी दूसरी ओर. यश ने शोर मचाया तो आसपास के लोग इकट्ठा हो गए. उन्होंने कविता को उठा कर टावर में ही स्थित कमला अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.
उसी टावर की तीसरी मंजिल पर कविता की बेटी यानी हत्या करने वाले शेरू की पत्नी अमृता गुप्ता उर्फ लकी उर्फ आलिया रहती थी. मां की गोली मार कर हत्या किए जाने की जानकारी उसे हुई तो वह नीचे आई और मां की लाश से लिपट कर रोने लगी. घटना की सूचना कोतवाली पुलिस को दे दी गई. सूचना मिलते ही 2 सिपाही बलवंत यादव और विजय कुमार दीक्षित घटनास्थल पर पहुंच गए. यश ने घटना की सूचना घर वालों और रिश्तेदारों के अलावा भाजपा महानगर अध्यक्ष धर्मेंद्र सिंह और व्यापारी नेता रमेश गुप्ता को भी दे दी थी, जिस से घर वाले और रिश्तेदार भी घटनास्थल पर पहुंचने लगे थे.
कोतवाली प्रभारी इंसपेक्टर सुनील कुमार राय की सूचना पर आईजी सतीश कुमार माथुर, डीआईजी डा. संजीव कुमार गुप्ता, एसएसपी राजकुमार भारद्वाज, एसपी सिटी सत्येंद्र कुमार सिंह और सीओ देवेंद्रनाथ शुक्ल भी घटनास्थल पर आ गए थे. यश ने मां की हत्या का आरोप अपने बहनोई सैयद कमर खुशनूर उर्फ शेरू और उस के 3 साथियों पर लगाया था. पुलिस ने घटनास्थल से 3 कारतूस बरामद किए थे. लोगों ने 3 गोलियां चलने की बात भी बताई थी. इस के अलावा मृतका का पर्स, जिस से 1 लाख रुपए नकद के साथ 2 मोबाइल फोन बरामद किए गए थे. इस के बाद जरूरी काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मेडिकल कालेज भिजवा दिया गया था.
घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने कोतवाली आ कर मृतका कविता की हत्या का मुकदमा उस के बेटे यश की ओर से उस की बहन अमृता गुप्ता उर्फ लकी उर्फ आलिया और बहनोई सैयद कमर खुशनूर उर्फ शेरू और उस के अज्ञात साथी के खिलाफ दर्ज कर लिया था. यह 13 दिसंबर, 2014 की 3 बजे के आसपास की बात थी. 14 दिसंबर, 2014 की सुबह कविता की लाश का पोस्टमार्टम हो गया तो लाश घर वालों को सौंप दी गई. घर वाले उस का अंतिम संस्कार करने के बजाय भाजपा नेताओं के साथ शव को घोष कंपनी चौराहे पर रख कर अभियुक्तों की गिरफ्तारी की मांग करने लगे. इस बात की जानकारी पुलिस प्रशासन को हुई तो एसपी सत्येंद्र कुमार सिंह मौके पर पहुंचे और अभियुक्तों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने का आश्वासन दे कर शव का अंतिम संस्कार करा दिया.
उसी दिन रात साढ़े 7 बजे कविता के मायके में एक घटना घट गई. कविता का मायका थाना गोरखनाथ के नक्कोशाह बाबा की मजार के निकट था. कविता के पिता किशनलाल गुप्ता पत्नी शशिकला, बेटे शरदराज और बेटियों के साथ मृत बेटी कविता के घर जाने की तैयारी कर रहे थे, तभी उन के घर पर बम से हमला कर दिया गया था. बम पहली मंजिल पर न पहुंच कर नीचे दीवार से टकरा कर फट गया था. इस हमले की सूचना तत्काल धर्मशाला पुलिस चौकी के प्रभारी सुनील कुमार सिंह को दी गई तो वह सिपाहियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. थोड़ी ही देर में एसपी सिटी सत्येंद्र कुमार सिंह भी आ पहुंचे. जांच में पता चला कि बदमाशों ने बालकनी में बम फेंकने की कोशिश की थी.
संयोग से वह नीचे दीवार से टकरा कर फट गया था. अगर कहीं वह घर के अंदर जा कर गिरता तो बड़ा हादसा हो सकता था. किशनलाल ने तहरीर दे कर मामले की जांच का आग्रह किया तो पुलिस ने मामला दर्ज कर के जांच शुरू कर दी. एसपी सिटी सत्येंद्र कुमार सिंह ने वादे के अनुसार घटना के तीसरे दिन यानी 15 दिसंबर को कविता हत्याकांड के मुख्य अभियुक्त सैयद कमर खुशनूर उर्फ शेरू को बख्शीपुर चौराहे से उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब वह कहीं भागने की तैयारी में था. कोतवाली ला कर शेरू से कविता की हत्या के बारे में पूछा गया तो बिना किसी हीलाहवाली के उस ने स्वीकार कर लिया कि उसी ने कविता गुप्ता उर्फ हनी की हत्या की थी. हत्या के इस मामले में उस की पत्नी अमृता गुप्ता उर्फ लकी उर्फ आलिया ने उस का पूरा साथ दिया था.
शेरू के इस बयान के बाद उसी दिन पुलिस ने डीके टावर से मृतका कविता की बेटी अमृता गुप्ता उर्फ लकी उर्फ आलिया को भी गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी के समय अमृता ने अपने 5 साल के बेटे रोशन को भी अपने साथ रखने की इच्छा जाहिर की, इसलिए पुलिस उसे भी साथ ले आई. थाने में हुई पुलिसिया पूछताछ में शेरू और अमृता ने कविता गुप्ता की हत्या की जो कहानी बताई, वह चौंकाने वाली थी. पूछताछ में कविता गुप्ता की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह पूरी कहानी कुछ इस प्रकार थी.
46 वर्षीया कविता गुप्ता उर्फ हनी मूलरूप से गोरखपुर के थाना गोरखनाथ के अंतर्गत आने वाली धर्मशाला बाजार के रहने वाले किशनलाल गुप्ता की बड़ी बेटी थीं. कविता के अलावा उन की 8 बेटियां और एकलौता बेटा शरदराज गुप्ता था. कविता की शादी उन्होंने रेती रोड बाजार के रहने वाले शंकरलाल गुप्ता के बड़े बेटे दुर्गेश कुमार गुप्ता उर्फ मुन्ना गुप्ता के साथ की थी. शंकरलाल के दो बेटे और थे, जिन के नाम थे, राजेश कुमार उर्फ राजू और सुरेश कुमार उर्फ बबलू. शंकरलाल के तीनों बेटों में बड़ा बेटा दुर्गेश काफी मेहनती था. शुरू में शंकरलाल की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी. बख्शीपुर में पुल के पास उन की हारमोनियम और लाउडस्पीकर की दुकान थी, जिस से उन्हें कोई खास कमाई नहीं होती थी. किसी तरह परिवार का गुजरबसर हो रहा था.
रुपएपैसों को ले कर घर में आए दिन किचकिच होती रहती थी. रोजरोज की किचकिच से तंग आ कर दुर्गेश ने रेती रोड पर किराए का कमरा लिया और उसी में पत्नी के साथ रहने लगा. बाकी के दोनों भाई राजेश और सुरेश मांबाप के साथ ही रहते रहे. नए घर में आते ही दुर्गेश और कविता को पहली खुशी यह मिली कि उन्हें बेटी पैदा हुई. उन्होंने उसे लकी माना और उस का नाम भी लकी रख दिया. लकी सचमुच उन के लिए लकी साबित हुई. पिता से अलग हो कर दुर्गेश ने बेटी लकी के नाम से लकी इलेक्ट्रौनिक की दुकान खोली, जो धड़ाके से चल निकली. उन दिनों टेक्सा टेलीविजन की धूम थी, दुर्गेश ने इस टीवी की एजेंसी ले ली, जिस से उस ने खूब कमाई की.
पैसे आने के बाद दुर्गेश गुप्ता ने रहने के लिए राप्तीनगर की आवास विकास कालोनी में एक एमआईजी मकान खरीदा. मकान लेने के बाद दुर्गेश ने प्रौपर्टी के कारोबार में हाथ आजमाया तो रुपयों की बरसात सी होने लगी. इस के बाद अपने इस कारोबार में उस ने छोटे भाई राजेश कुमार गुप्ता को भी शामिल कर लिया. प्रौपर्टी के कारोबार से दोनों भाइयों ने अकूत धन कमाया. उन की कमाई देख कर दुर्गेश के ससुर किशनलाल गुप्ता भी उन के साथ इस कारोबार में शामिल हो गए. लेकिन ज्यादा दिनों तक उन का साथ नहीं चल सका. किन्हीं वजहों से दुर्गेश ने उन्हें कारोबार से अलग कर दिया.
दुर्गेश के पास पैसे आए तो भूमाफियाओं की उन्हें धमकियां मिलने लगीं. माफियाओं के डर से उन्होंने राप्तीनगर का अपना मकान बेच दिया और कोतवाली के पास घोष कंपनी चौराहे से 50 मीटर की दूरी पर स्थित एक मकान खरीद लिया और उसी में परिवार के साथ रहने लगे. बाद में बैंक से कर्ज ले कर उसे कौमर्शियल कौंपलेक्स का स्वरूप दे कर नाम रखा डीके टावर. उसी में एक अस्पताल भी खोल दिया, जिस का नाम रखा कमला अस्पताल. इस के अलावा तमाम दुकानें किराए पर उठा दीं, जिन से मोटी रकम किराए के रूप में आने लगी. दुर्गेश कुमार गुप्ता अपने परिश्रम की बदौलत करोड़पति बन गए थे.
परिवार में पत्नी कविता और बेटी अमृता के अलावा कोई और नहीं था. उन के पास किसी चीज की कमी नहीं थी, जबकि उसे भोगने वाला कोई नहीं था. मांबाप के प्यार की वजह से 16-17 साल की होतेहोते अमृता जिद्दी हो गई थी. वैसे उसे ज्यादा जिद करने की जरूरत नहीं पड़ती थी. वह जो भी कह देती थी, मांबाप आंखें मूंद कर पूरी कर देते थे. बेटी पैदा होने के करीब 17 सालों बाद उन के आंगन में बेटे के रूप में दूसरा फूल खिला. इस तरह पतिपत्नी की एक बेटे की जो तमन्ना थी, वह पूरी हो गई. दुर्गेश और कविता ने प्यार से उस का नाम यश रखा.
यश के पैदा होने के बाद दुर्गेश को एक और बड़ी कामयाबी मिली. उस के मकान के पास तहसीलदार बाबू बलदेव प्रसाद सिंह श्रीवास्तव का अंगे्रजों के समय का हवेलीनुमा मकान करीब 11 हजार वर्ग फुट में बना था, जिसे उस ने खरीद लिया. उस मकान में उस ने छोटे भाई राजेश को भी 25 प्रतिशत का हिस्सेदार बनाया. दुर्गेश और कविता ने इस मकान में रेस्टोरेंट खोला, जिस का नाम मिर्चमसाला फैमिली रेस्टोरेंट रखा. बस, इसी के बाद दुर्गेश की जिंदगी में उस की अपनी ही बेटी अमृता उर्फ लकी विपत्ति बन गई. लकी थी तो खूबसूरत, लेकिन हद से ज्यादा मोटी होने की वजह से उसे लगता था कि कोई लड़का उसे पसंद नहीं करता. ऐसे में जब पड़ोस के रहने वाले सैयद कमर खुशनूर उर्फ शेरू ने उसे चाहत भरी नजरों से ताका तो वह उस के दिल में समा गया.
पहली ही नजर में इकहरे बदन के दुबलेपतले शेरू ने लकी के दिल में अपने लिए जगह बना ली. फिर लकी शेरू की ऐसी दीवानी हुई कि सुबह से शाम तक उसी के खयालों में खोई रहने लगी. सैयद कमर खुशनूर उर्फ शेरू थाना कोतवाली के अंतर्गत छोटे काजीपुर के निकट रसीद चौक का रहने वाला था. उस के पिता का नाम वहीदुल्लाह था. वह थाना गोला के धुरियापार गांव का मूल निवासी था. उस के परिवार में पत्नी सहित 12 लोग थे. उस के 10 बच्चों में 5 बेटे और 5 बेटियां थीं. 5 बेटों में सैयद कमर खुशनूर उर्फ शेरू सब से छोटा था. वहीदुल्लाह का परिवार काफी बड़ा था, जबकि कमाने वाला वह अकेला ही था. कमाई का एकमात्र जरिया थी खेती. खेती की पैदावार से ही परिवार का गुजरबसर होता था.
गांव में गुजरबसर मुश्किल हो गया तो कुछ रुपयों का इंतजाम कर के उस ने छोटे काजी में जमीन खरीद कर मकान बना लिया और स्थाई रूप से वहीं रहने लगा. बड़ा परिवार होने की वजह से वहीदुल्लाह ने बच्चों को किसी तरह पाल तो लिया, लेकिन उन्हें पढ़ालिखा नहीं सका. गरीबी की वजह से शेरू के पास एक जोड़ी कपड़े और पैरों में हवाई चप्पल के अलावा कुछ नहीं होता था. स्कूल कैसा होता है, यह उस ने बाहर से ही देखा था. दुर्गेश की कोठी के सामने से आनेजाने में उस की नजर उस की बेटी अमृता उर्फ लकी से लड़ गई थी.
शेरू की जाति ही नहीं, धर्म भी अलग था. वह था भी बहुत गरीब, इस के बावजूद लकी उसे प्यार ही नहीं करने लगी थी, बल्कि हर तरह से उस की मदद करने लगी थी. लकी और शेरू के प्रेम के बारे में भले ही मोहल्ले वालों को पता चल गया था, लेकिन पैसे कमाने के चक्कर में कविता ने बेटी की ओर ध्यान नहीं दिया. इस का नतीजा यह निकला कि एक दिन वह शेरू के साथ भाग गई. लेकिन नाबालिग होने की वजह से उसे वापस आना पड़ा. बेटी के इस कदम से दुर्गेश और कविता की बड़ी बदनामी हुई थी. बहरहाल लकी के वापस आने के बाद वे उस की शादी की तैयारी करने लगे. लड़के की तलाश भी तेजी से शुरू कर दी गई. लेकिन लकी शेरू के अलावा किसी अन्य से शादी के लिए तैयार नहीं थी. जबकि उसे पता था कि यह इतना आसान नहीं है. इस के बावजूद वह जिद पर अड़ी थी.
अमृता उर्फ लकी को बालिग होने का इंतजार था. बालिग होते ही लकी शादी के लिए रखे 25-30 लाख रुपए के सोने के गहने और 3 लाख रुपए नकद ले कर शेरू के साथ घर से भाग गई. शेरू लकी को ले कर मीरजापुर अपने रिश्तेदार के यहां पहुंचा और वहीं कोर्ट में शादी कर ली. शादी के बाद शेरू ने अमृता उर्फ लकी का नाम आलिया बेगम रख दिया. दूसरी ओर लकी के भाग जाने से घर में तूफान उठ खड़ा हुआ था. समाज में थूथू हो रही थी. दुर्गेश ने कोतवाली में शेरू के खिलाफ लकी के अपहरण और गहने तथा रुपए की चोरी की रिपोर्ट दर्ज करवा दी थी. मामला एक रसूखदार परिवार के बेटी के अपहरण और गहने तथा रुपयों की चोरी का था, इसलिए पुलिस ने तुरंत काररवाई करते हुए घर वालों पर शेरू को हाजिर करने का दबाव बनाया.
शेरू और लकी को सूचना मिल चुकी थी. दोनों सीधे अदालत में पेश हुए, जहां लकी ने बयान दिया कि वह बालिग है और अपनी मनमर्जी से जीवनसाथी चुनने की हकदार है. उस ने अपनी मर्जी से शेरू के साथ भाग कर शादी की है. लकी के इस बयान पर फैसला उस के पक्ष में आया. बेटी के इस बयान और अदालत के फैसले से दुर्गेश और कविता को गहरा आघात लगा. वे बेटी का कुछ नहीं कर पाए तो लकी को अपनी संपत्ति से बेदखल कर दिया. अदालत के फैसले के बाद शेरू लकी के साथ उसी मोहल्ले में किराए का मकान ले कर रहने लगा.
बेटी की करतूतों से दुर्गेश काफी परेशान था. उस की इस परेशानी में समाज ने ही नहीं, घर वालों ने भी उस का साथ छोड़ दिया था. यही नहीं, छोटे भाई राजेश कुमार गुप्ता ने मिर्चमसाला फैमिली रेस्टोरेंट का अपना 25 प्रतिशत का हिस्सा भी मांग लिया था. इस तरह भाई ने मुसीबत में साथ देने के बजाय और मुसीबत खड़ी कर दी थी. तब दुर्गेश ने पुरानी दुकान लकी इलेक्ट्रौनिक और कारोबार का कुछ हिस्सा देने के साथ 27 लाख रुपए का कर्ज अपने ऊपर ले कर इस मुसीबत से छुटकारा पाया था.
दुर्गेश और कविता ने भले ही अमृता उर्फ लकी को अपनी संपत्ति से बेदखल कर दिया था, लेकिन उस ने और शेरू ने उन का पीछा नहीं छोड़ा. अमृता पैसों के लिए मांबाप पर लगातार दबाव बना रही थी. ऐशोआराम में पली अमृता उर्फ आलिया शेरू जैसे कंगाल आदमी के साथ कैसे जीवन बिता सकती थी. शेरू के घर वालों ने तो उसे पहले ही अलग कर दिया था. दुर्गेश और कविता के परिचितों ने सलाह दी कि वे लकी और शेरू को कारोबार के लिए कुछ रकम दे कर उन से पीछा छुड़ा लें. दोस्तों की यह सलाह दुर्गेश को उचित लगी और वह उन्हें कुछ रकम देने को राजी हो गया, लेकिन उसी बीच उस की मां की मौत हो गई, जिस में वह उलझ गया और शेरू तथा लकी को पैसे नहीं दे सका.
दुर्गेश बेटी की हरकतों से परेशान था ही, अपनों ने भी साथ छोड़ दिया था. जिस से वह मानसिक रूप से काफी परेशान रहने लगा था. इसी मानसिक परेशानी में एक दिन उस ने अपने लाइसेंसी रिवाल्वर से कनपटी पर गोली मार ली. संयोग देखो, कनपटी पर गोली मारने के बावजूद लंबे इलाज के बाद वह बच गया. वह बच तो गया, लेकिन उस की याददाश्त काफी कमजोर हो गई थी. अमृता उर्फ लकी और शेरू ने इस मौके का खूब फायदा उठाया. मांबाप का दिल जीतने के लिए लकी ने ही नहीं, सासससुर को खुश करने के लिए शेरू ने भी दिनरात दुर्गेश की सेवा की. इस सेवा का उन्हें फायदा मिल गया. दोनों ने उन के दिलों में जगह बना ली.
दुर्गेश तो उस स्थिति में नहीं था, लेकिन कविता ने उन की गलतियों को माफ कर के उन्हें अपना लिया. इस की वजह यह थी कि दुख की इस घड़ी में कविता का साथ न ससुराल वालों ने दिया था, न मायके वालों ने. अमृता उर्फ लकी और शेरू ने दुख की घड़ी में कविता को सहारा दिया तो किसी की परवाह किए बगैर कविता ने पति के दोस्त अच्छेलाल से कह कर दामाद शेरू को उसी के साथ प्रौपर्टी डीलिंग के काम में लगा दिया. इस के अलावा उन्होंने कारोबार के लिए उसे 30 लाख रुपए भी दिए. शेरू का प्रौपर्टी डीलिंग का काम चल निकला तो उस ने अपने बड़े भाई इश्तियाक को भी अपने कारोबार में शामिल कर लिया. लेकिन यह बात कविता को अच्छी नहीं लगी.
कविता के दिल में जगह बना कर शेरू ने अपना मकसद पूरा कर लिया था. दरअसल वह कविता की पूरी संपत्ति पर कब्जा करना चाहता था. उस की इस योजना में अमृता उर्फ लकी उर्फ आलिया भी उस का साथ दे रही थी. क्योंकि लकी मांबाप के फैसले से दुखी थी. पति का साथ दे कर वह मांबाप से बदला लेना चाहती थी. दुर्गेश के बीमार होने से कविता वैसे ही परेशान थी. बेटा छोटा था. जिस दामाद को सहारा बनाना चाहा, मदद की आड़ में वह उन्हें लूटने की तैयारी करने लगा. करीब 6 सालों तक जिंदगी और मौत से जूझते हुए फरवरी, 2012 में दुर्गेश की मौत हो गई. इस के बाद कविता अकेली हो गईं. उन्होंने पूरा कारोबार अपने हाथों में ले लिया.
कैंट थाना क्षेत्र के रीड़ साहब की धर्मशाला के पास कविता का एक पुराना मकान था, जिसे बेच कर वह अपने रेस्टोरेंट को और बढ़ाना चाहती थीं. लेकिन जब उन्होंने वहां रह रहे किराएदार से बात की तो पता चला कि शेरू ने वह मकान पहले ही बेच दिया है. दामाद की इस करतूत से कविता परेशान हो उठीं और बेटीदामाद से सतर्क हो गईं. उन्होंने यह बात शेरू से पूछी तो उन का मुंह बंद रखने के लिए उस ने एक चाल चली. उस ने अपने दोस्त शमीम के साथ उन के साथ जबरदस्ती कर डाली. कविता ने विरोध किया तो बेटे की हत्या की धमकी दी.
पति मर चुका था, बेटी दुश्मन से जा मिली थी. लेदे कर एक बेटा बचा था, इसलिए बेटे की जान के लिए उन्होंने अपना मुंह बंद रखा. लेकिन जब उन्हें पता चला कि शेरू ने गोलघर की मेन बाजार स्थित मिर्चमसाला रेस्टोरेंट रामप्रसाद औप्टिशियन को 1 करोड़ 20 लाख रुपए में बेच दिया है तो उन्हें मुंह खोलना पड़ा. पहले तो उन्होंने बेटी लकी और उस के पति शेरू को घर से बाहर निकाला. उस के बाद शेरू के खिलाफ धोखाधड़ी का मुकदमा कोतवाली में दर्ज करा दिया. इस के बाद उन्होंने अपने साथ हुए दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज कराना चाहा तो पुलिस ने मुकदमा दर्ज नहीं किया. इस के बाद उन्होंने अदालत की शरण ली. अदालत के आदेश पर शेरू और शमीम के खिलाफ कोतवाली में अगस्त, 2014 में दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज हुआ. पुलिस ने मुकदमा तो दर्ज कर लिया, लेकिन किसी की गिरफ्तारी नहीं की.
शेरू करोड़ों का मालिक बन चुका था. हवाई चप्पलें पहन कर पैदल चलने वाला शेरू स्कार्पियो से चलने लगा था. उस ने कांगे्रस पार्टी की सदस्यता भी ग्रहण कर ली थी. बड़ेबड़े नताओं के बीच अपनी पैठ बनाने के लिए उस ने उन के साथ शहर में अपने नाम के होर्डिंग लगवाए थे. प्रौपर्टी और पैसे की वजह से कविता के जो अपने दुश्मन बने थे, शेरू ने उन से दोस्ती कर ली थी. शेरू तो खैर कविता का कोई अपना नहीं था, लेकिन बेटी तो अपनी थी. प्रौपर्टी और पेसे के लिए वह मां को ही नहीं, भाई को भी दुश्मन समझती थी. वह उसे भी फूटी आंख नहीं देखना चाहती थी. बेटे की जान खतरे में देख कर कविता ने उसे पढ़ने के लिए लखनऊ भेज दिया था.
कविता के अपने भी दुश्मन बने हुए थे. हर कोई उस की प्रौपर्टी हथियाने के लिए तरहतरह के हथकंडे अपना रहा था. देवर राजेश कुमार गुप्ता ने डीके टावर पर 32 लाख का दावा ठोंक दिया था तो शेरू ससुर दुर्गेश के फर्जी हस्ताक्षर से एक फर्जी एग्रीमेंट तैयार करा कर डीके टावर का किराया तो वसूल करने ही लगा था, पत्नी लकी और बेटे रोशन के साथ आ कर जबरदस्ती तीसरी मंजिल पर रहने भी लगा था. कविता ने इस की लिखित शिकायत थाने से ले कर जिले के वरिष्ठ अधिकारियों तक की, लेकिन सारी शिकायतें थाने में आ कर दब जाती थीं. कविता को जब कहीं से कोई मदद नहीं मिली तो अपनी जान को खतरे में देख कर उन्होंने राजनीतिक चोला पहनने का निश्चय किया. रामप्रसाद औप्टिशियन की मदद से उन्होंने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की तो उन्हें महिला मोर्चा की प्रदेश कार्यकारिणी का सदस्य बना दिया गया.
लेदे कर अब कविता के पास डीके टावर और मिर्चमसाला फैमिली रेस्टोरेंट ही बचा था. बाकी की सारी अचल संपत्ति शेरू एकएक कर के बेच चुका था. दोनों संपत्तियों की कीमत करीब 15-20 करोड़ थी. अमृता, उर्फ लकी शेरू को उकसाती रहती थी कि मां को रास्ते से हटा दो तो सारी संपत्ति उन की हो जाएगी. करोड़ो की संपत्ति थी. लालच में शेरू ने कविता को रास्ते से हटाने की योजना बना डाली. डीके टावर पर उस ने कब्जा जमा ही लिया था. अब लकी और शेरू टावर अपने नाम करने के लिए कविता पर दबाव डाल रहे थे. कविता इस के लिए तैयार नहीं थी. दोनों रेस्टोरेंट पर भी नजर जमाए हुए थे.
किशनलाल की एक बेटी पंजाब में डीआईजी रहे सी.डी. प्रेमी के बेटे से ब्याही थी. 29 नवंबर को उस की ननद की शादी थी. कविता को छोड़ कर सभी लोगों को निमंत्रण मिला था. यहां तक कि शेरू और लकी भी आमंत्रित थे. शेरू ने सोचा कि अगर 29 नवंबर को वह कविता को मरवा देता है तो डीआईजी साहब स्वयं कहेंगे कि 29 नवंबर को वह पंजाब में था. शेरू ने पूरी योजना बना कर कविता की हत्या की सुपारी दे दी, लेकिन सुपारी किलर 29 नवंबर को कविता की हत्या नहीं कर सका. दरअसल कहीं से इस बात की जानकारी कविता को मिल गई थी.
इस से कविता को लगा कि अब कभी भी उस की हत्या की जा सकती है. उस ने तुरंत एक वसीयतनामा तैयार कराया, जिस में उस ने लिखा कि उस के मरने के बाद उस की पूरी संपत्ति का एकलौता वारिस उस का बेटा यश होगा. अगर उसे भी कुछ हो जाता है तो उस की सारी संपत्ति साईं ट्रस्ट की हो जाएगी. सुपारी किलर अकेला काम नहीं कर सका तो शेरू ने उसे साथ ले कर कविता की हत्या की योजना बनाई. कविता हत्या के डर से मिर्चमसाला रेस्टोरेंट में ही रहने लगी थी. वहां शेरू जा नहीं सकता था. कविता को डीके टावर में बुलाने के लिए टावर के कमला अस्पताल में काम करने वाली स्तुति को डराधमका कर अपनी साजिश में शामिल कर लिया. 13 दिसंबर, 2014 को स्तुति ने मेहंदी लगाने के बहाने कविता गुप्ता को टावर स्थित लाइफलाइन डायग्नोसिस सेंटर पर बुलाया.
कविता जैसे ही डाइग्नोसिस सेंटर पहुंची, शेरू को इस बात की जानकारी हो गई. कविता मेहंदी लगवा कर जैसे ही खाली हुई, शेरू शूटर के साथ नीचे आ गया. शेरू बाहर ही रुक गया, जबकि शूटर अंदर चला गया. उस ने स्तुति को रिपोर्ट देने के बहाने वहां से हटा कर कविता की कनपटी पर निशाना साध कर गोली मार दी. वह गिर पड़ी तो दूसरी गोली उस ने पेट में मार दी. इस के बाद शेरू ने भी आ कर एक गोली कविता के पेट में मार दी. शेरू और उस के साथ आया शूटर गोली मार कर निकल रहे थे, तभी यश ने उन्हें देख लिया था.
अमृता गुप्ता उर्फ लकी उर्फ आलिया और उस के पति सैयद कमर खुशनूर उर्फ शेरू से हुई पूछताछ में ऐसे कई नाम सामने आए हैं, जो कविता की हत्या की साजिश में शामिल थे. पुलिस ने शेरू के साथी को गिरफ्तार करने के लिए कई जगहों पर छापे मारे, लेकिन वह पकड़ा नहीं जा सका. पुलिस ने वे दोनों पिस्तौलें बरामद कर ली हैं, जिन से कविता की हत्या की गई है. इस मामले की जांच में लगी है. अब देखना यह है कि इस मामले में और कौनकौन गिरफ्तार होता है. कविता की हत्या के बाद उस की ससुराल वाले ही नहीं, मायके वाले भी उन की प्रौपर्टी पर दावा कर रहे हैं. अब देखना यह है कि इस प्रौपर्टी का होता क्या है? यह अपने असली वारिस यश गुप्ता को मिलती है या इस पर कोई दूसरा ही कब्जा कर लेता है. यश इस समय अपने चाचा राजेश कुमार गुप्ता के साथ रह रहा है. UP News
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित






