Rajasthan News: जैसलमेर से जोधपुर जाने वाली नई एसी बस 4 दिन पहले ही सड़क पर उतरी थी. चलने के कुछ देर बाद ही धमाके के साथ उस में इतनी विकराल आग लगी कि 22 यात्री भस्म हो गए और 16 गंभीर रूप से घायल हो गए. आखिर ऐसी क्या वजह रही, जो यह बस एक श्मशान बन गई?
मंगलवार, 14 अक्तूबर, 2025 को अपराह्नï 3 बजे जैसलमेर से जोधपुर के लिए एक निजी बस 57 सवारियां ले कर रवाना हुई. बस जैसलमेर से मात्र 12 किलोमीटर दूर थईयात गांव के वार म्यूजियम के पास पहुंची ही थी कि अचानक उस के पिछले हिस्से से धुआं उठने लगा. बस की बैटरी में शौर्ट सर्किट होने से एसी की गैस फैल गई और बस में भीषण आग लग गई. कुछ ही देर में आग ने विकराल रूप रूप ले लिया. बस की बनावट संकरी थी तथा इमरजेंसी गेट केवल पीछे की ओर था, जबकि दोनों ओर होना आवश्यक था. नई बस में एसी की गैस पूरी भरी हुई थी. बस में फायर सेफ्टी उपकरण नहीं थे. अगर सेफ्टी उपकरण मौजूद होते तो आग पर काबू पाया जा सकता था.

बस में आग लगते ही गेट लौक हो गया, जिस से यात्री बस में ही फंस गए और यात्रियों में चीखपुकार मच गई. बस के अंदर फंसे लोग जान बचाने के लिए चीखते रहे, साक्षात मौत को सामने खड़ा देख कई यात्रियों ने खिड़कियों के कांच तोड़ कर कूदने की कोशिश की. बंबरों की ढाणी जैसलमेर निवासी पीर मोहम्मद ने चलती बस से पत्नी और साली को खिड़की से बाहर फेंक दिया, मगर उस के दोनों बच्चे डबल डेकर बस की ऊपर वाली सीट पर जिंदा जल गए. इसी तरह एकां गांव, रामदेवरा निवासी महिपाल सिंह भी झुलसने के बावजूद खिड़की से कूद गया. इस तरह कुछ लोग ही खिड़की से बाहर कूद सके.
ड्राइवर शौकत ने बस में आग लगी देखी तो बस को रोकने की कोशिश की, मगर विफल रहा. करीब 700 मीटर तक आग लगी बस चलती रही. ड्राइवर ने बस का गेट खोलना चाहा, मगर गेट लौक हो गया था. इस कारण ड्राइवर बस रोक कर नीचे कूद गया. बस में बम फटने जैसी तेज आवाज सुन कर थईयात गांव के कोजराज सिंह अपने पेट्रोल पंप से स्टाफ के साथ बस की तरफ दौड़ पडे.
पेट्रोल पंप के पास शराब के गोदाम के लोगों को भी कोजराज सिंह ने साथ में लिया और जलती बस के पास पहुंचे. आर्मी एरिया से गुजर रहे एक पानी के टैंकर को देख कर थईयात गांव के लोगों ने देखा तो कैंट एरिया का ताला तोड़ कर बाहर निकाला और आग बुझाने का प्रयास किया. आग इतनी तेज थी कि बस धूधू कर जलती रही. बस में जिंदा जल रहे लोगों की चीखपुकार सुनाई दे रही थीं.
प्रशासन और बचाव टीम क्यों पहुंची देर से
कोजराज सिंह ने फोन द्वारा घटना की सूचना 108 नंबर पर एंबुलेंस को दे दी थी. वार म्यूजियम के सामने जलती बस को सेना के लोगों ने देखा तो वे तत्काल जेसीबी ले कर मौके पर पहुंचे और आर्मी ने जेसीबी की मदद से बस का गेट तोड़ा और फंसे लोगों को बाहर निकाला. प्रत्यक्षदर्शियों के सामने बस में लोग जिंदा जल रहे थे, मगर वे लोग कुछ कर नहीं पा रहे थे. खिड़कियों से कूदे लोग जले हुए सड़क पर पड़े कराह रहे थे. वे कह रहे थे कि हमें अस्पताल ले जाओ. हमें बचा लो.
मगर दुर्भाग्य की बात यह कि फोन पर सूचना देने के 50 मिनट बाद एंबुलेंस, अग्निशमन गाडिय़ां और पुलिस प्रशासन के लोग पहुंचे, जबकि जैसलमेर जिला मुख्यालय से घटनास्थल मात्र 12 किलोमीटर दूर था. यदि सूचना मिलते ही अगर फायर ब्रिगेड की गाडिय़ां 10 मिनट में पहुंच जातीं तो शायद कुछ लोगों की जिंदगी बचाई जा सकती थी.

खैर, हमेशा से यही होता रहा है. जैसलमेर में एसी स्लीपर बस में आग लगने की घटना ने हर किसी को झकझोर दिया. घटनास्थल का दृश्य बहुत ही हृदयविदारक था. जलती हुई बस के पास शुरुआत में जो लोग पहुंचे तो उन को केवल आग की लपटों के बीच जलते लोगों का चीत्कार सुनाई दे रही थी, वहां का दृश्य देख कर उन की भी रूह कांप उठी. अंदर से सिर्फ चीखने व चिल्लाने की आवाजें आ रही थीं. लोग जैसेतैसे बस से निकलना चाह रहे थे, लेकिन वे इतने ज्यादा झुलस गए थे कि चाहते हुए भी कुछ कर नहीं पा रहे थे. मदद के लिए पहुंचे लोग भी उन की कोई सहायता नहीं कर पाए.
देखते ही देखते बस में से आवाजें आनी बंद हो गईं. मतलब साफ था कि कई लोगों ने दम तोड़ दिया था. वे जिंदा जल गए थे. सूचना देने के पौन घंटा बाद जब जैसलमेर का पुलिस प्रशासन नींद से जागा और घटनास्थल पर पहुंचा, तब तक बस जल कर खाक हो चुकी थी. जिला कलेक्टर प्रतापसिंह नाथावत, एडीएम परसा राम, एसपी शिवहरे, फायर ब्रिगेड की गाडिय़ां, एंबुलेंस एवं पुलिस टीम ने घटनास्थल पर आ कर बस की आग बुझाई.

हादसा बहुत बड़ा था, यह घटनास्थल पर आने के बाद जिला प्रशासन को पता चला. तब और एंबुलेंस मंगवाई गईं. बारीबारी से एंबुलेंस मौके पर पहुंचीं और घायलों को तत्काल जैसलमेर के सब से बड़े सरकारी अस्पताल श्री जवाहिर अस्पताल ले जाया गया, लेकिन अस्पताल की स्थिति यह थी कि वहां न तो पर्याप्त डाक्टर थे और न ही जरूरी संसाधन. घायलों को प्राथमिक उपचार के बाद जोधपुर रेफर कर दिया गया, जोकि करीब 300 किलोमीटर दूर है.
तुरंत ही एंबुलेंसों के लिए ग्रीन कारिडोर बनाया गया, ताकि तत्काल जोधपुर पहुंच सकें. 16 घायलों को गंभीर हालत में जोधपुर रेफर किया गया था. इन में से एक घायल ने रास्ते में दम तोड़ दिया. बस अग्निकांड में झुलसे 16 लोगों को अलगअलग गाडिय़ों से ग्रीन कारिडोर बना कर जैसलमेर से जोधपुर ले जाया गया. पहली एंबुलेंस रात करीब साढ़े 8 बजे महात्मा गांधी अस्पताल पहुंची. फिर रात सवा 10 बजे तक सभी घायलों को जोधपुर अस्पताल पहुंचाया गया.

15 घायलों में से 9 की हालत गंभीर थी. ये लोग 40 से 90 फीसदी तक झुलसे हुए थे. आधा दरजन घायलों को आईसीयू में वेंटिलेटर पर रखा गया. बाकी घायलों को औक्सीजन पर लिया गया. बस अग्निकांड की सूचना पहले ही एमजीएच और एमडीएम अस्पताल एवं जोधपुर जिला पुलिस एवं प्रशासन को दी जा चुकी थी. जोधपुर के तमाम प्रशासनिक अधिकारी सारी तैयारी कर के पहले से खड़े थे. जैसे ही घायलों को ले कर गाडिय़ां पहुंचीं, उन का तत्काल इलाज शुरू कर दिया गया. इधर बस अग्निकांड की खबरें व सोशल मीडिया पर जलती बस, बस में से कूदते जले पीडि़तों की फोटो और वीडियो वायरल होते ही कोहराम सा मच गया. जो लोग 3 बजे की इस बस में जैसलमेर से सवार हुए थे, उन के परिजन अनहोनी की आशंका से कांप उठे.
लोग तत्काल जैसलमेर के श्री जवाहिर अस्पताल पहुंचे, वे अपने परिजनों को घायलों में तलाशने लगे. अफरातफरी का माहौल था. जैसलमेर के सैकड़ों लोग अस्पताल में जमा हो गए थे. किसी को तो अपना परिजन घायल हालत में मिला. मगर कई लोगों का कोई अतापता नहीं था. जैसलमेर जिला पुलिस की तमाम टीमें घटनास्थल एवं अस्पताल में मौजूद थीं, जो लोग इस बस में जोधपुर, पोकरण, लाठी, सेतरावा, बासनपीर, बंबरों की ढाणी, चांपला जाने के लिए सवार हुए थे, उन में से कई लोगों के मोबाइल 14 अक्तूबर को दोपहर बाद सवा 3 बजे से बंद आ रहे थे.
बस हादसे की खबर सुन कर के.के. ट्रेवल्स की इस बस में सवार लोगों को परिजनों ने कौल किए तो मोबाइल बंद मिले. ऐसे में तमाम लोग पुलिस थाना सदर जैसलमेर से संपर्क कर अपने परिजनों के बारे में पूछने लगे. घायलों के बारे में तो पुलिस ने बता दिया. मगर कई लोग लापता थे. यानी ये सभी लोग बस में जिंदा जल गए थे. पुलिस भी कुछ कहने की स्थिति में नहीं थी.
बस में वार म्यूजियम के पास धमाका सा हुआ और बस वहीं रुक गई. बस में सवार लोगों ने सोचा कि एक्सीडेंट हुआ है. धमाके के साथ ही बस में धुआं फैल गया था. किसी को समझ में आता, उस से पहले बस आग का गोला बन गई. जब तक लोग माजरा समझे, तब तक बहुत देर हो चुकी थी. मगर कुछ लोग इमरजेंसी खिड़की से जली अवस्था में नीचे कूद गए.
जो ऊपर की स्लीपर सीट पर बैठे थे, वे जल कर मर गए. जो लोग बस से कूदे, वे भी जले हुए थे. जैसलमेर जोधपुर हाइवे पर यह घटना घटी थी. हाइवे पर गाडिय़ों की आवाजाही थी. जैसे ही लोगों ने बस को जलते देखा, उन में से कई लोगों ने 108 एंबुलेंस, फायर ब्रिगेड पुलिस कंट्रोल रूम, थाना सहर, थाना कोतवाली जैसलमेर को घटना की जानकारी दी. तब तक पुलिस प्रशासन को पता नहीं था कि इतना बड़ा हादसा हो गया है. मगर लोगों के फोन पर फोन आने लगे, तब प्रशासन जागा और घटनास्थल पर 4 बजे पहुंचा.
सहायता करने के बजाए वीडियो बना रहे थे लोग
जो लोग जलती बस से नीचे कूदे, वे भी झुलसे हुए थे. वे लोगों से अस्पताल ले जाने की गुहार कर रहे थे. मगर लोग वीडियो बनाने में मस्त थे. यहां पर इंसानियत व उन का जमीर शायद मर चुका था. तभी तो दर्द से कराहतेतड़पते घायलों को वे अस्पताल ले जाने के बजाय कह रहे थे कि एंबुलेंस आ रही है. बस में से झुलसा हुआ महिपाल सिंह चल कर एक कार में पिछली सीट पर जा बैठा तो कार ड्राइवर ने उसे गाड़ी से नीचे उतार दिया. तभी एक बाइक अमीन खान नामक युवक वहां पर पहुंचा और उस ने वीडियो बना रहे लोगों को दुत्कार लगाते हुए घायल महिपाल सिंह को बाइक पर बिठा कर अस्पताल पहुंचाया.
खैर, बस की आग बुझाने के बाद जब बस की बौडी 4 घंटे बाद ठंडी हुई, तब बस में सीटों पर चिपके जल कर राख हुए 19 शव बस से बाहर निकाले गए. इन शवों की पहचान करना बड़ा ही मुश्किल काम था, क्योंकि शव पूरी तरह जल चुके थे. बस से उतार कर शवों को पोटलियों में बांध कर एक लाइन में रखा गया तो देखने वालों की रुह कांप गई. सफेद कपड़ों में लपेट कर रखे इन शवों की दुर्दशा जिस ने भी देखी, उस की आंखें नम हो गईं. बस अग्निकांड की घटना की सूचना पर जैसलमेर जिला कलेक्टर प्रताप सिंह नाथावत घटनास्थल पर पहुंचे. उन्होंने बस हादसे पर दुख जताते हर पीडि़त परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त की. जिला प्रशासन ने हेल्पलाइन नंबर जारी किए.

बस में सवार 16 घायलों को जोधपुर रैफर किया गया था, उन का विवरण इस प्रकार है— महिपाल सिंह (20 वर्ष), भोमाराम (22 वर्ष), यूनुस (8 वर्ष), इकबाल (33 वर्ष), फिरोज (40 वर्ष), भागाबाई (59 वर्ष), मनोज भाटिया, पीर मोहम्मद (60 वर्ष), जीवराज (15 वर्ष), इमितिजा (30 वर्ष), रफीक (22 वर्ष), लक्ष्मण (22 वर्ष), उबेदुल्ला (50), विशाखा (32 वर्ष), आशीष (45 वर्ष). एक घायल हुसैन (79 वर्ष) निवासी जावेध की रास्ते में मौत हो गई. वहीं एक घायल को प्राइवेट अस्पताल में जोधपुर में भरती करवाया गया था.
समय से मदद मिलती तो बच जातीं कई जानें
अग्निकांड की जानकारी मिलने पर राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, स्वास्थ्य मंत्री गजेंद्रसिंह खींवसर जैसलमेर घटना की रात 10 बजे घटनास्थल का जायजा लेने पहुंचे और प्रशासन को उचित निर्देश दिए. उन्होंने रात सवा 11 बजे महात्मा गांधी अस्पताल जा कर हादसे का शिकार हुए लोगों के हाल जाने और हरसंभव मदद देने का वादा किया. उधर, बस हादसे पर राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु ने एक्स पर पोस्ट कर हादसे पर शोक प्रकट किया. जैसलमेर बस हादसे में प्रधानमंत्री राहत कोष से मृतकों के परिवार को 2 लाख रुपए और घायलों को 50 हजार की आर्थिक सहायता की घोषणा की गई है.

बस हादसे में जिंदा जले सभी 19 शवों को सेना की गाड़ी से जोधपुर के महात्मा गांधी अस्पताल भिजवाया गया. मरने वालों की पहचान के लिए उन के 2 परिजनों से डीएनए सैंपल ले कर शवों की पहचान की जानी थी. इस के लिए महात्मा गांधी अस्पताल जोधपुर के काटेज संख्या 4 और 5 में और जैसलमेर स्थित जवाहिर अस्पताल के ट्रामा सेंटर में विशेष व्यवस्था की गई. डीएनए सैंपल के लिए हेल्पलाइन नंबर जारी किए.
बस हादसे में मारे गए लोगों की पहचान के लिए जैसलमेर जिला प्रशासन ने कवायद शुरू कर दी है. जोधपुर से डीएनए और फोरैंसिक टीम जैसलमेर पहुंची. बस हादसे का शिकार हुए यूनुस (8 वर्ष) पुत्र पीर मोहम्मद ने बुधवार 15 अक्तूबर को इलाज के दौरान दम तोड़ दिया. वह हादसे में 70 प्रतिशत झुलस गया था. उस के मम्मीपापा और अन्य परिजन भी गंभीर रूप से झुलसे थे और इलाज जारी था. इस से पहले जैसलमेर से जोधपुर लाते समय जावंध, जैसलमेर निवासी हुसैन (79 वर्ष) की भी रास्ते में मौत हो गई थी. दोनों शव परिजन को सौंप दिए. मासूम यूनुस के दम तोड़ते ही बस अग्निकांड में मरने वालों की संख्या बढ़ कर 21 हो गई थी.
यूनुस और हुसैन के शव परिजनों को सौंप दिए गए थे. जबकि 19 शव मोर्चरी में पहचान का इंतजार कर रहे थे. विधि विज्ञान प्रयोगशाला के निदेशक अजय शर्मा ने बताया और जोधपुर एफएसएल की टीमें रिपोर्ट जल्द से जल्द तैयार करने में जुटी हैं, ताकि परिजन अपनों को अंतिम विदाई दे सकें. गांधी अस्पताल जोधपुर मोर्चरी के बाहर हवा भारी थी… वो हवा जिस में चीखें घुल गई थीं, सिसकियां जम गई थीं. गांधी अस्पताल की बर्न यूनिट से निकलते परिजनों की आंखों में उम्मीद नहीं, सिर्फ प्रतीक्षा है, ‘हमें बस अपनों के शव दे दो. 2 दिन निकाल लिए, रात कैसे काटेंगे?’ ये शब्द उन सभी मृतकों के परिजनों के थे, जो बस हादसे में बुरी तरह जल कर दुनिया को अलविदा कह चुके थे.

डीएनए मिलने पर परिजनों को शव सौंपे जाने थे. तब तक मृतकों के परिजनों को इंतजार करना था. हां, यह बात दीगर है कि जिन घरों के दीपक दीपावली से पहले बुझ गए थे, वहां पर मातम पसरा था. जैसलमेर, लवारन, बंबरों की ढाणी, जावंध, झलारिया, कोटड़ी, लाठी, बासनपीर, चांपला गांवों के लोग बस हादसे में काल का ग्रास बने थे, जहां पर सिर्फ चीखें और रुदन था. 15 अक्तूबर, 2025 को बस हादसे का शिकार हुए मृतक राजेंद्र सिंह चौहान (पत्रकार) के भाई चंदन सिंह चौहान और जैसलमेर जिले के लाठी गांव निवासी मृतक गोपीलाल दरजी के भाई जगदीश दरजी ने थाना सदर जैसलमेर में के.के. ट्रेवल्स बस के मालिक तुराब अली और बस के ड्राइवर शौकत खान के खिलाफ मामला दर्ज कराया. मामला दर्ज कर पुलिस ने जांच शुरू की.
जैसलमेर जिला एसपी अभिषेक शिवहरे के निर्देश पर एसआईटी की टीम बनाई गई. एसआईटी टीम ने नामजद आरोपियों तुराब अली और शौकत खान को 16 अक्तूबर, 2025 को जोधपुर से गिरफ्तार कर लिया और सदर थाने ला कर पूछताछ की.
4 दिन पहले ही उतरी थी बस सड़क पर
आरोपी बस मालिक तुराब अली और ड्राइवर शौकत खान ने पुलिस पूछताछ में बताया कि जैसलमेर में आग का गोला बनी बस घटना से 14 दिन पहले ही खरीदी थी. के.के. ट्रेवल्स की इस बस का पहली अक्तूबर, 2025 को ही रजिस्ट्रेशन हुआ था. 9 अक्तूबर को आल इंडिया रूट का परमिट मिला, इस के बाद जैसलमेर-जोधपुर रूट पर इसे शुरू किया गया. बस को शुरू हुए 4 दिन ही हुए थे. जैसलमेर से चौथा फेरा ही था. नौन एसी से एसी में मोडिफाइड की गई यह बस स्लीपर एयर कंडिशनर थी, जिस में 20+26 सीटें थीं. इस में 20 स्लीपर और 26 सिटिंग सीटें थीं.
जैसलमेर से 14 अक्तूबर को दिन में 3 बजे रवाना हुई थी, तब 40 सवारियां बैठी थीं. इस के बाद कुछ सवारियां बीच रास्ते में बैठीं. फिटनैस और इंश्योरेंस हाल ही में हो रखा था. परिवहन विभाग का नियम है कि बसों को मोडिफाइड नहीं कर सकते, लेकिन नियमों का ताक पर रख कर इस बस को मोडिफाई कर दिया और इमरजेंसी गेट ही नहीं रखा. ज्यादा सवारियों को बिठाने के लिए निजी बस संचालक दिन में भी स्लीपर बस चला रहा था. अन्य निजी बस संचालक भी इस बस की तरह स्लीपर बसें दिन में चला रहे हैं. ऐसे में ज्यादा सवारियां मिलती हैं तो एकएक स्लीपर में 4 से 5 सवारी को बिठा देते हैं.
परिवहन विभाग के अक्तूबर 2015 के एक परिपत्र के अनुसार स्लीपर कोच बस की यात्रा शाम 6 बजे के बाद शुरू होनी चाहिए और सुबह 8 बजे से पहले खत्म होनी चाहिए. जबकि जैसलमेर में हुए सब से बड़े हादसे की शिकार स्लीपर बस दोपहर 3 बजे रवाना हुई थी. इस के अलावा बस में ज्यादा स्लीपर व सीटें बनाने के चक्कर में बीच में मुश्किल से डेढ़ से 2 फीट की गली थी. जगह इतनी संकरी होने से 2 आदमी एक साथ निकलना भी मुश्किल रहता है. इस के अलावा बस की आंतरिक सज्जा के लिए लाइटिंग, मोबाइल चार्ज करने की सुविधा और हर स्लीपर सीट पर परदे लगा दिए जाते हैं. जगहजगह एलईडी व रोप लाइट भी लगी थीं. यह सब हादसे की वजह बने.
सिस्टम की अनदेखी के चलते एसी स्लीपर बस यात्रियों के लिए लाक्षागृह बन गई. इस बस में भी अन्य बसों की तरह इमरजेंसी गेट की जगह सीटें बना दी गई थीं. एक ही गेट था. इस के बाद भी भ्रष्ट प्रशासन की मिलीभगत से इसे चलाने की परमिशन मिल गई. नियमानुसार ऐसी बसों में 2 इमरजेंसी गेट होने ही चाहिए. इस के अलावा अधिकतर बसों की तरह इस बस में भी अग्निशमन यंत्र तक नहीं था. बस चालक और कंडक्टर भी इस बस के हिसाब से ट्रेंड नहीं होते. दूसरी सब से बड़ी लापरवाही, एसी बसों की विंडो ग्लास से कवर होती है. शीशों पर टफन ग्लास होना चाहिए, ताकि हादसे के समय तोड़ा जा सके. लेकिन पैसा बचाने के लिए लेमिनेटेड ग्लास लगा दिया जाता हैं.
ऐसे में आपातकालीन स्थिति में विंडो का ग्लास पूरी तरह से नहीं टूटता है. साथ ही फायर सिस्टम लगा होना चाहिए, मगर हादसे वाली बस में फायर सिस्टम नहीं था. यात्रियों के साथ छत पर लगेज ले कर बसें चलती हैं. राज्य सरकार ने बस हादसे की जांच के लिए 5 सदस्यीय एसआईटी टीम बनाई. इस टीम ने 16 अक्तूबर को जैसलमेर पहुंच कर जांच शुरू की. जांच टीम ने घटनास्थल एवं बस का निरीक्षण किया, जिस में कई गंभीर लापरवाहियां सामने आईं. टीम के अनुसार बस की बौडी निर्धारित लंबाई से अधिक बढ़ाई गई थी, जिस से बस भारी हो गई थी. सब से बड़ी चूक यह पाई गई कि इमरजेंसी गेट के आगे 2 सीटें बना दी गई थीं, जिस से आपात स्थिति में यात्री बाहर नहीं निकल पाए. बस के पीछे जो एग्जिट गेट था, वह इतना छोटा था कि बस में आग लगने के बाद खुल ही नहीं पाया.

बस के इंटीरियर में भी सुरक्षा मानकों की अनदेखी की गई थी. टीम ने बताया कि बस के अंदर ज्वलनशील मटेरियल का प्रयोग किया गया था, जैसे कि खिड़कियों और स्लीपर के आगे लगे परदे. यही वजह रही कि आग बस के अंदर तेजी से फैली, जबकि बस के टायर और नीचे का हिस्सा ज्यादा नहीं जला. जांच में यह भी सामने आया कि बस में पटाखे और सजावट का सामान मौजूद था, लेकिन वे आग में नहीं जले. इस से यह संकेत मिला कि आग संभवत: किसी और वजह से लगी. जांच अधिकारी इस दिशा में भी संभावित कारणों का विश्लेषण कर रहे हैं.
बस हादसे के बाद राज्य सरकार ने स्पष्ट किया है कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए बस बौडी निर्माण और फिटनैस प्रक्रिया में पारदर्शिता और सुरक्षा मानकों की सख्त पालना की जाएगी. जो भी औपरेटर या निर्माता नियमों की अनदेखी करते पाए जाएंगे, उन के खिलाफ कठोर काररवाई की जाएगी. बस में फायर डिटेक्शन सिस्टम होना जरूरी. हर स्लीपर कोच में फायर डिटेक्शन और सप्रेशन (एफडीएसएस) लगाना जरूरी. यह सिस्टम एआईएस-135:2016 मानकों के अनुसार होना चाहिए. फायर डिटेक्शन सिस्टम बस में आग लगने की शुरुआती स्थिति में ही अलार्म बजाता है. खुद आग को नियंत्रित करता है.
संयुक्त शासन सचिव ओ.पी. बुनकर के नेतृत्व में आई टीम ने जांच की और 17 अक्तूबर को जयपुर लौट गई. टीम जांच रिपोर्ट सरकार को देगी. राज्य सरकार ने बस हादसे की तकनीकी जांच पुणे (महाराष्ट्र) की एक स्वतंत्र संस्था सेंट्रल इंस्टीट्यूट औफ रोड ट्रांसपोर्ट (सीआईआरटी) को सौंपी हैं. सीआईआरटी की टीम शुक्रवार 17 अक्तूबर की शाम जैसलमेर पहुंची और मौके का निरीक्षण किया. टीम अब विस्तृत तकनीकी रिपोर्ट तैयार कर राज्य सरकार को सौंपेगी. सीआईआरटी पुणे की टीम जैसलमेर बस अग्निकांड के हादसे की वजह, किस की लापरवाही क्या कमियां रहीं, किस की जिम्मेदारी थी, इन बिंदुओं पर काम करेगी और राज्य सरकार को रिपोर्ट सौंपेगी. बौडी बनाने वाली कंपनियों की भी जांच की जाएगी.
राज्य सरकार ने निर्णय लिया है कि भविष्य में जैसलमेर जैसी घटनाएं न दोहराई जाएं, इस के लिए बस निर्माण करने वाली कंपनियों की भी जांच की जाएगी. इस के लिए एक विशेष मौनिटरिंग कमेटी गठित की है, जो उन वर्कशाप्स और फैक्ट्रियों का निरीक्षण करेगी, जहां बसों की बौडी बनाई जाती है. हादसे में जिस के.के. ट्रेवल्स की स्लीपर बस में आग लगी थी, उस कंपनी के यार्ड का निरीक्षण परिवहन विभाग की टीम ने किया. वहां कुल 66 बसें खड़ी मिली, जिन में से 35 बसों की जांच अब तक पूरी की जा चुकी है, इन में से 10 बसों में बौडी निर्माण से जुड़ी गंभीर खामियां पाई गई हैं, जिन्हें वाल्यूशन के तहत बनाया गया बताया जा रहा है और वे जांच के घेरे में हैं.
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने बस अग्निकांड में जान गंवाने वाले व्यक्ति के परिवार को 10 लाख रुपए, जिस परिवार के 3 या अधिक लोगों की मृत्यु हुई, उस परिवार को 25 लाख रुपए, गंभीर रूप से घायल व्यक्ति को 2 लाख रुपए और मामूली रूप से घायल प्रत्येक व्यक्ति को एक लाख रुपए की आर्थिक सहायता देने की घोषणा की. इस भयावह बस हादसे को लोग भूल नहीं सकेंगे. भविष्य में जब भी जैसलमेर बस हादसे की चर्चा होगी, लोगों के मष्तिष्क में रुह कंपा देने वाला यह मंजर घूमने लगेगा. अब सवाल यही है कि इस तरह के हादसे रोकने के लिए सरकार ईमानदारी से क्या कोई कदम उठाएगी? Rajasthan News






