Punjab Crime News: गैस एजेंसी के कामों में व्यस्त रहने की वजह से राजिंद्र कौर बेटी इंद्रराज कौर को पैसे तो उस के मनमाफिक देती थीं लेकिन संस्कार नहीं दे सकीं. इस से बेटी के कदम बहक गए. इसी दौरान ऐसा क्या हुआ कि इंद्रराज कौर अपनी ही मां का खून कर बैठी?
दीदार सिंह औजला भारतीय सेना में थे और 1971 के भारतपाक युद्ध में देश के लिए लड़ते हुए शहीद हो गए थे. देश के लिए दी गई बहादुरी भरी शहादत के पुरस्कार स्वरूप केंद्र सरकार ने उन के परिवार को एक गैस एजेंसी अलौट कर दी थी, जो इस समय अमृतसर शहर में दीदार गैस एजेंसी के नाम से जानी जाती है. इस गैस एजेंसी को वर्षों से दीदार सिंह की विधवा राजिंद्र कौर चला रही थीं. राजिंद्र कौर की 2 संतानें थीं, एक बेटा और एक बेटी. बेटे का नाम तेजिंद्र सिंह जबकि बेटी का इंद्रराज कौर उर्फ विक्की. उम्र में काफी बड़े हो चुके तेजिंद्र सिंह और इंद्रराज कौर दोनों ही अभी तक अविवाहित थे.
दरअसल गैस एजेंसी के कामों में व्यस्त रहने की वजह से राजिंद्र कौर स्वयं और बच्चों पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाती थीं. जब बच्चे मांबाप के दिशानिर्देश और साए से महरूम रहते हैं तो उन में कई खामियां पैदा हो जाती हैं. राजिंद्र कौर अपने बच्चों में बढ़ती विसंगतियों पर कोई खास ध्यान नहीं दे पाईं. समय रहते शादी न होने की वजह से राजिंद्र कौर की बेटी इंद्रराज कौर के चालचलन पर भी असर पड़ा. जिस्म की वासनाजन्य नैसर्गिक भूख के कारण इंद्रराज कौर के कदम बहकने लगे. इतना ही नहीं अपनी मां के प्रति उस के तेवर भी बगावती होने लगे.
दरअसल, इंद्रराज के मन के किसी कोने में यह बात घर करने लगी थी कि अपने सुख और विलासिता के चलते उस की मां को उस की कोई चिंता नहीं है. यह बात इंद्रराज के मन का बहम था या सच्चाई, कहना मुश्किल है. लेकिन यह सच था कि इंद्रराज जन्म देने वाली मां से नफरत करने लगी थी. इस नफरत के पीछे उस की हताशा थी. मां के रूप में राजिंद्र कौर अपने बच्चों पर ज्यादा ध्यान भले ही नहीं दे पाती थी, लेकिन उन्हें रुपएपैसों की कोई कमी नहीं होने देती थी. गैस एजेंसी से राजिंद्र कौर को मोटी आमदनी थी. रुपएपैसों की कोई कमी न होने की वजह से वह अपने दोनों बच्चों को खर्च करने के लिए खुल कर पैसे देती थी.
इंद्रराज ने खर्चे के लिए मां से मिलने वाले पैसों का इस्तेमाल जिस्मानी रूप से रंगरलियां मनाने के लिए किया. पैसों के जोर पर वह अपने से कहीं कम उम्र के युवकों के साथ सैक्स संबंध बनाने लगी. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो पैसों के जोर पर इंद्रराज ने कई प्रेमी पाल लिए थे. उस के इन सभी प्रेमियों की स्थिति एक तरह से सैक्स दासों जैसी थी. पैसे दे कर वह उन्हें अपनी सैक्स जरूरतों के लिए मनमाने ढंग से इस्तेमाल करती थी. इंद्रराज उर्फ विक्की के तमाम प्रेमियों में से उस के सब से करीब और विश्वसनीय था मूल रूप से हिमाचल प्रदेश के नूरपुर का निवासी गणेश शर्मा.
शारीरिक रूप से काफी मजबूत गणेश शर्मा भुल्लर अस्पताल में काम करता था. भुल्लर अस्पताल अमृतसर के गोल्डन एवेन्यू स्थित इंद्रराज के घर के एकदम करीब ही था. गणेश का राजिंद्र कौर के घर में काफी आनाजाना था. दरअसल राजिंद्र कौर जब कभी भी अस्पताल जाती थीं, उन्हें इंजेक्शन लगाने और उन का ब्लड प्रैशर चैक करने गणेश ही आता था. इसी वजह से गणेश राजिंद्र कौर का काफी विश्वासपात्र बन गया था. गणेश से सैक्स संबंध बनाने में इंद्रराज को काफी आसानी हुई थी. गणेश आर्थिक रूप से कमजोर और जरूरतमंद था. उसे पैसों की मदद दे कर मनमाने ढंग से नचाया जा सकता था. वैसे भी घर के पास के अस्पताल में काम करने की वजह से मां की गैरमौजूदगी में वह उस के साथ कभी भी सैक्स संबंध बना सकती थी.
इंद्रराज का भाई तेजिंद्र सिंह घर के मामलों में ज्यादा ध्यान नहीं देता था. वह गैस एजेंसी के काम में अपनी मां का थोड़ाबहुत हाथ जरूर बंटाता था. लेकिन ज्यादातर अपने यारदोस्तों की पार्टियों में ही मस्त रहता था. अपनी रंगरलियों के लिए इंद्रराज कौर अकसर अपनी मां राजिंद्र कौर से पैसों की मांग करती रहती थी. पैसों को ले कर इंद्रराज की बढ़ती मांग से राजिंद्र कौर भी काफी परेशान हो गई थी. जब कभी राजिंद्र कौर इंद्रराज से दिए हुए पैसों का हिसाब मांगती तो वह कोई संतोषजनक जवाब नहीं देती थी. जबकि राजिंद्र कौर के लिए वह जानना जरूरी था कि वह उसे जो पैसे देती है, वह उस का करती क्या है?
पैसों के इस्तेमाल को ले कर इंद्रराज के टालमटोल वाले रवैये से आखिर राजिंद्र कौर को शक होने लगा कि कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं है. उसे अचानक अपनी बेटी के चालचलन पर ही शक होने लगा था. एक रोज जब इंद्रराज ने राजिंद्र कौर से पैसे मांगे तो उस ने देने से इनकार करते हुए कहा, ‘‘जब तक तुम यह नहीं बताओगी कि तुम ने पहले पैसे कहां खर्च किए हैं, मैं तुम्हें एक फूटी कौड़ी भी नहीं दूंगी.’’
राजिंद्र कौर के पैसे देने से इनकार करते ही इंद्रराज शेरनी की तरह बिफर पड़ी, ‘‘मैं कोई दूध पीती बच्ची नहीं जो मुझ से इस तरह रुपएपैसे का हिसाब मांग रही हो.’’
‘‘तुम बच्ची न सही, मगर मैं एक मां हूं. मेरे लिए कुछ बातों का जानना जरूरी है. पैसों का ज्यादा इस्तेमाल कई बार गलत रास्तों की तरफ भी ले जाता है.’’
‘‘तुम्हारे कहने का मतलब कहीं यह तो नहीं मम्मी कि मैं गलत हो गई हूं?’’ इंद्रराज ने तीखे स्वर में पूछा.
‘‘मैं एजेंसी के काम में बिजी जरूर रहती हूं, लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि बाहर कहां क्या हो रहा है, इस की मुझे कोई जानकारी नहीं है.’’ राजिंद्र कौर की आवाज तलख थी.
मां द्वारा पैसे देने से इनकार करने से इंद्रराज को अपनी रंगरलियों के ऊपर खतरा मंडराता हुआ नजर आने लगा. क्योंकि इस के सारे प्रेमी पैसे से पाले हुए थे. वह उन की जरूरतें पूरी करती थी और इस के बदले में वह उस की जिस्मानी जरूरतों की पूर्ति करते थे. उसे डर सताने लगा कि पैसों के अभाव में उस के सभी प्रेमी उस से मुंह तोड़ लेंगे. बात उस की बरदाश्त के बाहर थी. हालांकि राजिंद्र कौर पैसे देना नहीं चाहती थी. लेकिन इंद्रराज लड़झगड़ कर उस से पैसे ले कर ही मानी. इंद्रराज ने झगड़ा कर के मां से पैसे ले जरूर लिए, लेकिन उसे इस बात का अच्छी तरह एहसास हो गया था कि भविष्य में उसे आसानी से पैसे नहीं मिलेंगे.
एकाएक जन्म देने वाली मां ही इंद्रराज को अपनी सब से बड़ी दुश्मन नजर आने लगी और वह अंदर ही अंदर उबलने लगी. यह उबाल इतना खतरनाक था कि वह कुछ भी कर सकती थी. धीरेधीरे इंद्रराज की अय्याशी की सारी कहानियां राजिंद्र कौर के सामने उजागर होने लगीं. उसे पता लग गया कि इंद्रराज पैसे कहां और किन लोगों पर बरबाद कर रही है. पछताने से कोई फायदा नहीं था. किसी भी समस्या का हल एकदम मुश्किल नहीं होता. थोड़ा सब्र से काम लेते हुए राजिंद्र कौर ने मां की तरह बेटी को समझाबुझा कर सही रास्ते पर लाने की कोशिश की, लेकिन इस का कोई फायदा नहीं हुआ.
जब मांबेटी के रिश्ते में तनातनी और रस्साकशी चल रही थी, तभी पड़ोस के अस्पताल में काम करने वाला गणेश लगातार राजिंद्र कौर के घर में आता रहा, कभी उस का ब्लड प्रैशर चैक करने के बहाने तो कभी इंजेक्शन लगाने के बहाने. हकीकत में राजिंद्र कौर असली धोखा गणेश के मामले में ही खा रही थीं. वह इस बात से बेखबर थीं कि गणेश इंद्रराज के कई प्रेमियों में से एक था. राजिंद्र कौर गणेश को बेटे की तरह मानती थीं और उस पर बहुत भरोसा करती थीं. उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि गणेश एक दिन आस्तीन का सांप साबित होगा. एक तरह से इस की जिम्मेदार इंद्रराज ही थी, उसी ने गणेश को अपने वासना के जाल में फंसा कर उसे अपनी मां के खिलाफ ही इस्तेमाल करने का फैसला किया.
वासना की आग में सुलगती इंद्रराज जरा सा मौका मिलते ही गणेश को भूखी शेरनी की तरह दबोच लेती थी. गणेश के इनकार और विरोध की गुंजाइश को वह उस की जेब गर्म कर के खत्म कर देती थी. उधर राजिंद्र कौर को भी लगने लगा था कि इंद्रराज सुधरने वाली नहीं है. अगर उस को मौका मिला तो वह उस की सारी दौलत अपनी अय्याशी पर बरबाद कर देगी. वह बीमार रहती थीं इसलिए इंद्रराज की हरकतों को देखते हुए वह भविष्य के बारे में भी काफी संजीदगी से सोचने लगी थीं. भविष्य के बारे में संजीदगी से सोचते हुए लंबी कशमकश के बाद राजिंद्र कौर ने आखिर एक बड़ा फैसला कर लिया. यह फैसला था उन की वसीयत का.
अपनी वसीयत में राजिंद्र कौर ने एकाएक अपना सब कुछ अपने बेटे तेजिंद्र सिंह के नाम कर दिया. इस बात का पता जब इंद्रराज को लगा तो वह गुस्से से आगबबूला हो गई. वह गुस्से में मां से भिड़ गई, ‘‘मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी कि एक मां हो कर भी तुम मेरे साथ ऐसी नाइंसाफी करोगी?’’
‘‘मैं ने जो भी किया है, बिलकुल ठीक किया है. मैं ने यह सब दिनरात की मेहनत से बनाया है. मैं कभी भी यह बरदाश्त नहीं करूंगी कि मेरे मरने के बाद तुम इसे अपनी अय्याशियों पर बरबाद कर दो. वैसे भी तुम्हारी ओछी हरकतों से शहर में मेरी इतनी बदनामी हो रही है कि तुम्हें सजा देना मेरे लिए जरूरी हो गया था.’’ राजिंद्र कौर ने कठोर लहजे में कहा.
‘‘तुम ने ठीक नहीं किया मम्मी, इस का अंजाम बहुत बुरा होगा.’’ तिलमिलाई इंद्रराज ने एक तरह से मां को धमकी दे डाली.
राजिंद्र कौर बेटी के धमकी भरे लहजे में गंभीरता से न ले कर बोली, ‘‘अगर तुम सही रास्ते पर आ जाओ और खुद को सुधार लो तो मैं वसीयत को बदल भी सकती हूं.’’
इस पर इंद्रराज और भड़क गई और आक्रामक तेवरों के साथ बोली, ‘‘मुझे अपना हक खैरात के रूप में नहीं चाहिए मम्मी, मां हो कर भी तुम ने मेरे साथ जो दुश्मनी की है, उसे मैं कभी भी नहीं भूलूंगी.’’
इस के बाद इंद्रराज पांव पटकती हुई वहां से चली गई. उस के अंदर जैसे आग सी लगी हुई थी. ऐसी आग जिस में इंसान रिश्तेनाते सब कुछ भूल जाता है. राजिंद्र कौर को इतना तो मालूम था कि उस की बेटी बहुत बिगड़ चुकी है, मगर उन्हें यह इल्म नहीं था कि उन की बिगड़ी हुई बेटी बदले की भावना से भर कर किस हद तक जा सकती है. बेटी को अपनी वसीयत से बेदखल कर अनजाने में ही राजिंद्र कौर ने अपनी मौत के वारंट पर हस्ताक्षर कर दिए थे. गुस्से से उबल रही इंद्रराज अपने मन में भयानक इरादा कर चुकी थी. अपने इसी इरादे को अंजाम तक पहुंचाने के लिए उस ने गणेश को अपने पास बुलाया. अपने इरादे के बारे में प्रेमी को बताने से पहले उस ने उस के सामने अपना जिस्म परोसा. जब गणेश इंद्रराज के जिस्म से खिलवाड़ कर रहा था तो इंद्रराज ने उस को अपने इरादे के बारे में बताया.
इंद्रराज के इरादे जान कर गणेश हक्काबक्का रह गया. उसे जैसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था.
‘‘तुम जानती हो तुम क्या कह रही हो?’’ उस ने कहा.
‘‘हां, जानती हूं और मेरे लिए यह काम तुम्हें ही करना है.’’ इंद्रराज ने भावहीन स्वर में कहा. उस का चेहरा एकदम सपाट था.
‘‘नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकता.’’ गणेश ने अपने सूखे अधरों पर जुबान फेरते हुए इनकार किया.
‘‘तुम्हें यह सब करना ही होगा. मैं जानती हूं, तुम मुफ्त में कुछ भी नहीं करते इसलिए मैं तुम्हें इस काम के एवज में 5 लाख रुपए दूंगी.’’ रकम बड़ी थी. गणेश सोच में पड़ गया.
‘‘लेकिन इस काम में खतरा बहुत है.’’ गणेश ने कहा तो इंद्रराज बोली, ‘‘5 लाख रुपए भी कम नहीं हैं.’’
‘‘तुम बहुत गुस्से में हो, मैं कहता हूं एक बार ठंडे दिमाग से सोचना. फिर मुझे बताना कि तुम कितना गलत सोच रही हो.’’ गणेश ने कहा तो वह बोली, ‘‘मेरा दिमाग ठंडा ही है, और मैं अच्छी तरह जानती हूं कि मैं तुम से क्या करने के लिए कह रही हूं. और हां, मेरा इरादा बदलने वाला नहीं है.’’ इंद्रराज के इस रूप को देख कर एक बार तो गणेश के बदन में भी झुरझुरी फैल गई. इस तरह खामोशी से एक ऐसी खौफनाक साजिश की नींव रखी गई जो इंसानी रिश्तों को शर्मशर करने वाली थी. इस साजिश को अमलीजामा पहनाने के लिए बस सिर्फ एक सही मौके की तलाश थी.
साजिश तो रची जा चुकी थी, मगर फिर भी इंद्रराज के मन में कहीं यह डर था कि गणेश कहीं बीच में ही साथ न छोड़ जाए. इसी डर के चलते वह लगातार गणेश को अपने मादक जिस्म के आकर्षण में बांधे रखना चाहती थी. यही वजह थी कि 13 फरवरी को जब सभी खुले में आग जला कर लोहड़ी का त्यौहार मना रहे थे, इंद्रराज अपने प्रेमी के साथ घर के भीतर कामक्रीड़ाओं में लीन थी. इस बीच आखिर वह अवसर आ ही गया जिस के इंतजार में इंद्रराज कौर ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर एक भयानक साजिश रची थी. लोहड़ी के बाद तेजिंद्र सिंह ने अपने दोस्तों के साथ हिल स्टेशन डलहौजी जाने का प्रोग्राम बनाया और वह कुछ दिनों के लिए वहां से चला गया.
तेजिंद्र के डलहौजी चले जाने के बाद एकाएक इंद्रराज ने भी किसी बहाने से दिल्ली जाने का कार्यक्रम बना लिया. 19 जनवरी को सुलहसफाई वाले माहौल में इंद्रराज राजिंद्र कौर को कह कर दिल्ली के लिए रवाना हो गई. अब राजिंद्र कौर अपने बडे़ से घर में अकेली थी. 20 जनवरी को राजिंद्र कौर ने हमेशा की तरह गैस एजेंसी के सारे कामकाज निपटाए और गोल्डन एवेन्यू स्थित अपने घर आ गई. 21 जनवरी की सुबह 9 बजे के करीब गैस एजेंसी का एक कर्मचारी एजेंसी के दफ्तर की चाबियां लेने राजिंद्र कौर के घर में पहुंचा तो घर का दरवाजा खुला मिला.
दरवाजा खुला मिलने से कुछ सशंकित और हैरानपरेशान होते हुए वह कर्मचारी अंदर दाखिल हुआ तो उसे घर की ऊपरी मंजिल पर स्थित राजिंद्र कौर के बेडरूम में लहूलुहान अवस्था में उन का शव दिखाई दिया. शव के आसपास भी बहुत सारा खून बिखरा नजर आ रहा था. ऐसा लगता था जैसे उन्हें बडी ही बेरहमी के साथ मारा गया हो. इस भयानक दृश्य को देख भयभीत और बदहवास कर्मचारी ने घर से बाहर निकल कर शोर मचाया, जिससे आसपड़ोस में रहने वाले लोगों की भीड़ जमा हो गई. घटना की जानकारी पुलिस को दी गई. कुछ ही देर में पुलिस के आला अधिकारियों समेत कई पुलिस थानों के प्रभारी घटनास्थल पर पहुंच गए.
प्रारंभिक जांच में पुलिस को मामला लूट और हत्या का लगा. लेकिन जैसे ही जांच कुछ आगे बढ़ी तो पुलिस को अपना यह विचार बदलना पड़ा. दरअसल में घर की हर चीज अपनी जगह सहीसलामत थी और वहां से कुछ भी नहीं लूटा गया था. लेकिन घर में जैसे जगहजगह खून बिखरा था, उसे देख कर लग रहा था कि राजिंद्र कौर ने हत्यारे के साथ काफी संघर्ष किया था. हत्यारा घर के अंदर दाखिल हुआ? यह भी एक अहम सवाल था. सब से पहली संभावना यह थी कि हत्यारा राजिंद्र कौर की जानपहचान वाला ही कोई रहा होगा. जिस वजह से उन्होंने खुद ही घर का दरवाजा खोल कर उसे अंदर बुलाया होगा.
लेकिन जब घटनास्थल की बारीकी से जांच की गई तो पुलिस की यह संभावना भी खारिज हो गई. मगर पुलिस के दिमाग में इस बात का शक जरूर बना रहा कि हत्यारा कोई घर का भेदी और जानपहचान वाला ही हो सकता है. पुलिस ने गैस एजेंसी के कर्मचारियों और राजिंद्र कौर की जानपहचान के लोगों से जब पूछताछ की तो भी यही बात सामने निकल कर आई कि हत्यारा घर का ही कोई भेदी ही है. राजिंद्र कौर के घर का दरवाजा इस तरह का था जो घर के अंदर से बंद होने के बाद भी उसे बाहर से भी खोला जा सकता था. इस बात को राजिंद्र कौर के परिवार के सदस्यों के अलावा कुछ खास लोग ही जानते थे. दरअसल दरवाजे के अंदर लोहे का एक ऐसा लौक लगा था जिस के साथ एक रस्सी बंधी थी.
इस रस्सी का दूसरा सिरा घर की ऊपरी मंजिल की बालकनी तक जाता था. बालकनी से ही उस रस्सी को खींच कर नीचे आए बिना ही दरवाजे को खोला जा सकता था. मगर लौक के साथ बंधी उसी रस्सी को दरवाजे के ऊपर बने लोहे के बने जंगले में हाथ डाल कर खींच कर बाहर से भी खोला जा सकता था. इस बात को घर वालों के अलावा कोई भी नहीं जानता था. इन्हीं बातों से पुलिस ने अनुमान लगाया कि यह कांड करने वाला कोई राजिंद्र कौर का खास व्यक्ति ही रहा होगा. राजिंद्र कौर ने एक कुत्ता भी पाल रखा था. किसी पड़ोसी ने हत्या वाली रात को उस के भौंकने की आवाज भी नहीं सुनी थी. इससे भी पुलिस को शक हुआ कि हत्यारा राजिंद्र कौर की जानपहचान वाला कोई ऐसा व्यक्ति ही है, जिस का उन के यहां आनाजाना हो. तभी तो उस के घर में घुसने पर कुत्ता नहीं भौंका.
राजिंद्र कौर की लाश का मुआयना करने से साफ पता चल रहा था कि हत्यारे ने उन के सिर पर किसी भारी चीज से इतनी जोर से वार किया था कि उन का सिर फट गया था. राजिंद्र कौर की हत्या की खबर लगते ही उन की बेटी इंद्रराज कौर दिल्ली से और बेटा तेजिंद्र सिंह डलहौजी से अमृतसर पहुंच गए. जिन हालात में हत्या हुई थी उस के मद्देनजर वो दोनों भी पुलिस के शक के दायरे से बाहर नहीं थे. पुलिस ने शक के आधार पर कुछ लोगों को हिरासत में ले कर पूछताछ की. लेकिन उन से हत्यारों का पता नहीं लग सका. तब पुलिस ने अपने मुखबिरों से मृतक राजिंद्र कौर के करीबी लोगों के बारे में जरूरी जानकारी हासिल की.
इस से पुलिस को कुछ ऐसी बातें पता चलीं जो अंधेरे में हाथपांव मार रही पुलिस की जांच को एक दिशा देने वाली थीं. इस से पुलिस को मृतका की बेटी इंद्रराज कौर और उस के प्रेमी गणेश पर शक हो गया. पुलिस को उन के संबंधों के बारे में जानकारी ही नहीं मिली बल्कि इस बात का पता भी चला कि हत्या वाली रात को इंद्रराज कौर दिल्ली में न हो कर अमृतसर के ही एक होटल में थी. यह जानकारी पुलिस को चौंकाने वाली थी कि हत्या वाली रात को इंद्रराज अमृतसर शहर में मौजूद थी. जबकि वह खुद को दिल्ली में होने की बात कह रही थी. अब सवाल यह था कि वह इतना बड़ा झूठ क्यों बोल रही थी?
गणेश के साथ इंद्रराज के अवैध रिश्ते और हत्या वाली रात को दिल्ली में न हो कर उस का गुपचुप तरीके से अमृतसर में होना राजिंद्र कौर की हत्या की उलझी कडि़यों को जोड़ रहा था. पुलिस ने बिना देरी किए इंद्रराज के प्रेमी गणेश को हिरासत में ले कर उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने राजिंद्र कौर की हत्या का सरा सच उगल दिया. उस ने माना कि उस ने राजिंद्र कौर की हत्या पैसों के लालच में इंद्रराज कौर के कहने पर की थी. हत्या में प्रयुक्त हथियार के रूप में उस ने लोहे की एक रौड का इस्तेमाल किया था. सब कुछ योजना बना कर किया गया था. तेजिंद्र सिंह अपने दोस्तों के संग डलहौजी गया हुआ था.
किसी को उस पर शक न हो यह खयाल कर के इंद्रराज बहाना बना कर 19 जनवरी को दिल्ली अपने किसी अन्य प्रेमी के साथ ठहर गई थी. लेकिन 20 जनवरी, 2015 को चुपके से वापस आ कर एक होटल में अपने किसी अन्य प्रेमी के साथ ठहर गई थी. इस बीच वह गणेश से भी मिली और उस से कहा कि हत्या से पहले और हत्या के बाद वह मोबाइल फोन से उस से कोई बात न करे, जब घर के अंदर दाखिल हो कर गणेश बेरहमी से राजिंद्र कौर की हत्या को अंजाम दे रहा था, उस समय इंद्रराज होटल के एक कमरे में अपने एक प्रेमी के संग रंगरलियां मना रही थी.
इंद्रराज का एक प्रेमी उस के लिए हत्या कर रहा था तो दूसरा उस की वासना की प्यास बुझा रहा था. कैसी विडंबना थी. 24 जनवरी को पुलिस ने इंद्रराज कौर को अपनी मां की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी के वक्त इंद्रराज के चेहरे पर कोई पछतावा नहीं था. वह एकदम भावविहीन थी. इस समय इंद्रराज कौर और गणेश शर्मा, दोनों ही जेल में हैं, पुलिस शीघ्र ही उन का चालान अदालत में पेश करेगी.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित






