लेखक – गीतांजलि, Hindi Kahani: अनुज और आरुषि को बेटे के बाद एक बेटी की तमन्ना थी, लेकिन डाक्टर ने आगे बच्चा पैदा करने के लिए मना किया था. उन की यह तमन्ना पूरी तो हुई, लेकिन कैसे…

अनुज और आरुषि की शादी 6 साल पहले हुई थी. दोनों ही एकदूसरे को बहुत ज्यादा प्यार करते थे. वे मानसिक रूप से एकदूसरे के बहुत करीब थे. उस स्थिति में भी जब जन्म के 3 महीने बाद ही उन की बेटी की मौत हो गई थी, तब भी दोनों ने एकदूसरे का बहुत खयाल रखा था. दोनों को ही बच्ची के मरने का बहुत दुख था. वे चाहते थे कि जल्दी ही उन के यहां कोई संतान हो जाए. कुछ महीनों बाद आरुषि एक बार फिर जब उम्मीद से हुई तो दोनों ने बहुत ज्यादा सावधानी रखी, ताकि कुछ गलत न हो जाए.

जब अगली बार उन के यहां बेटा पैदा हुआ तो उन की खुशी का ठिकाना न रहा. लेकिन इस के साथ ही उन्हें डाक्टर ने चेतावनी भी दी कि अब वे कोई बच्चा न करें. उन्होंने अपने बेटे का नाम अनुग्रह रखा. अनुग्रह को हर वह खुशी मिली, जो उस के मातापिता दे सकते थे. बेटे के जन्म के बाद भी आरुषि अपनी बेटी को याद कर के दुखी हो जाया करती थी और उस की आंखों से आंसू बह निकलते थे. वह जानती थी कि अनुज को भी कम से कम एक और बच्चे की तीव्र इच्छा है. उस का मानना था कि परिवार में एक लड़की होना जरूरी है. लेकिन उस ने कभी भी अपनी जुबान से इस बारे में कुछ नहीं कहा. यही बात आरुषि को और ज्यादा तकलीफ देती थी.

कभीकभी आरुषि सोचती थी कि उन्हें एक लड़की गोद ले लेनी चाहिए, क्योंकि डाक्टर ने बच्चा पैदा करने के लिए मना कर दिया था. उस की समझ में नहीं आता था कि वह अनुज से इस बारे में कैसे बात करे. कई बार ऐसा होता था कि आरुषि और अनुज अकसर एकदूसरे को अपनी शादी से पहले के जीवन के किस्से सुनाया करते थे. आरुषि अपने कालेज के दिनों के किस्से सुनाती और दोस्तों की चर्चा करती. दोनों में अनुज का स्वभाव मंत्रमुग्ध कर देने वाला था. वह आरुषि को ब्रायनगंज में बीते अपने बचपन के किस्से सुनाता था. ब्रायनगंज एक छोटा कस्बा था, जहां एक बहुत बड़ी फैक्ट्री थी. अनुज के पिता पीतांबर उसी फैक्ट्री में नौकरी करते थे. इस कस्बे में केवल एक ही इंग्लिश मीडियम स्कूल था, जो केवल 5वीं कक्षा तक था. उस के बाद बच्चों को पढ़ने के लिए शहर के स्कूल जाना पड़ता था.

एक बार जब अनुज और आरुषि बैठे बातें कर रहे थे तो अनुज ने कहा, ‘‘आज मैं तुम्हें अपनी शादी से पहले की प्रेम की दास्तान सुनाता हूं.’’

‘‘क्या बात कर रहे हो?’’ आरुषि ने आश्चर्य से कहा.

‘‘तुम्हें डरने की जरूरत नहीं है. मेरा एक ही परिवार है और मैं इसी को प्यार करता हूं. हम तीनों के अलावा हमारी जिंदगी में अब कोई नहीं है. मैं तो बस तुम्हें अपने पहले प्यार के बारे में बता रहा हूं. वैसे मैं उस का किस्सा तुम्हें सुनाऊंगा तो तुम मेरा मजाक उड़ाओगी.’’

इस के बाद अनुज ने अपनी कहानी शुरू की, ‘‘जब मैं किंडरगार्टन में पढ़ रहा था, तब से ही मैं अपनी कक्षा में पढ़ने वाली एक छोटी सी सुंदर लड़की के प्यार में गिरफ्तार हो गया था. मुझे आज भी नहीं मालूम कि उस लड़की में ऐसा क्या और कैसा आकर्षण था, जिस की वजह से मैं उस का दीवाना हो गया था. शायद उस की खूबसूरती, उस की खामोशी और इस से भी बढ़ कर उस का विनम्रता भरा रवैया इस की वजह था.’’

ऐसा लगता था, जैसे अनुज बीते दिनों में पहुंच कर अपनी यादें ताजा करने की कोशिश कर रहा था. वह बताने लगा, ‘‘तीसरी कक्षा के बाद मेरा एक दूसरे शहर के बोर्डिंग स्कूल में दाखिला हो गया, इसलिए हम दोनों केवल छुट्यों में ही मिल पाते थे.’’

अनुज के चेहरे पर ऐसी दुविधा झलक रही थी, जैसे उसे इस बात का यकीन नहीं था कि लड़की भी उसे पसंद करती थी. उस के पास ऐसा कोई तरीका भी नहीं था, जिस से वह इस हकीकत को जान सकता. अनुज ने अपनी बात जारी रखी, ‘‘सीधेसीधे पूछने का सवाल ही पैदा नहीं होता था, क्योंकि मैं ऐसा करने के बारे में सोच भी नहीं सकता था. मगर मुझे यकीन था कि वह भी मुझे पसंद करती थी, क्योंकि कई बार उस के द्वारा किए गए इशारों में इस बात का इजहार झलकता था.

‘‘बाद में परिस्थितियों ने कुछ ऐसा पलटा खाया कि मेरे परिवार ने ब्रायनगंज को अलविदा कह दिया. मेरे पापा के तमाम दोस्तों ने ब्रायनगंज छोड़ दिया था या फिर वे एकएक कर के रिटायर हो गए थे. लेकिन इस के बाद भी मैं कई सालों तक ब्रायनगंज जाता रहा, केवल अपने प्यार से मिलने के लिए.’’

पलभर रुक कर अनुज ने आगे कहना शुरू किया, ‘‘ऐसे ही आखिरी बार जब मैं ब्रायनगंज गया तो वह लड़की मुझे मिली और उस ने मुझ से कहा, ‘मेरी मम्मी का कहना है कि इस साल जब मैं 20 साल की हो जाऊंगी तो मेरी शादी के लिए यह समय बहुत ही उपयुक्त होगा. उन्होंने मेरे लिए लड़का भी तलाशना शुरू कर दिया है.’ मुझे एक तगड़ा झटका लगा. इतना तगड़ा कि लगभग सड़क पर ही गिर गया.

‘‘मैं केवल 21 साल का था, उसी साल मैं ने अपना स्नातक पूरा किया था और मेरे पास कोई नौकरी नहीं थी. इसलिए शादी करने का विचार भी मेरे मन में नहीं आया. वैसे भी तब मैं शादी करने की स्थिति में नहीं था. इस के अलावा भी एक समस्या और थी. हम दोनों के धर्म अलगअलग थे. उस समय मेरे चेहरे पर हैरानगी और दुख की छाया दिखाई देने लगी थी, बिलकुल उलझन में फंसे एक युवा की तरह.

‘‘अचानक ब्रायनगंज का कारखाना बंद हो गया और सारे लोग वहां से अपनेअपने गांव चले गए. कुछ अपने राज्य लौट गए तो कुछ अन्य शहरों में नौकरी के लिए निकल गए. ब्रायनगंज में कोई नहीं बचा. मैं ने अपनी ओर से बहुत कोशिश की, लेकिन मुझे वहां ऐसा कोई नहीं मिला, जो मेरे प्यार के बारे में बता सकता कि वह कहां पर है. तब से मैं उस से नहीं मिला, न उस के संपर्क में हूं.’’

‘‘यही कहानी है मेरी,’’ अनुज ने एक लंबी सांस ली, ‘‘मुझे कभी इस का मौका ही नहीं मिला कि मैं जान पाता कि वह मेरे बारे में क्या विचार रखती है. मैं ने तुम्हें यह बात इसलिए बताई कि मेरा दिल बिलकुल साफ है. यह मेरे जीवन की सिर्फ यादें हैं, इस के अलावा और कुछ नहीं है.’’

आरुषि ने अपनी हंसी रोेकने की कोशिश की, लेकिन रोक नहीं पाई.

‘‘मैं ने तुम से पहले ही कहा था कि यह सब सुन कर तुम हंसोगी, क्या ऐसा नहीं हुआ?’’ अनुज ने बड़ी सावधानी से कहा. उसे ऐसा लग रहा था, जैसे उस ने अपने दिल की बात कह कर शायद बहुत बड़ी बेवकूफी की हो.

‘‘नहीं, हकीकत में मैं तो अपने आप पर हंस रही थी, क्योंकि मुझे डर तब लग रहा था, जब तुम ने मुझ से कहा था कि तुम मुझे अपने प्रेम के बारे में बताने जा रहे हो.’’ आरुषि बोली. कुछ क्षणों बाद उस ने पूछा, ‘‘अनुज, आप ने अपनी कहानी में उस का नाम नहीं बताया?’’

अनुज ने धीमे से मुसकराते हुए कहा, ‘‘बस, यही मेरा राज है और इसे राज ही रहने दो.’’ इस के बाद दोनों ही जोर से हंस पड़े और एक अटूट विश्वास के साथ एकदूसरे के आगोश में सिमट गए. एक दिन जब अनुज अपने औफिस से वापस लौटा तो उस के आने के थोड़ी देर बाद दरवाजे की घंटी बजी. आरुषि ने दरवाजा खोला और थोड़ी देर बाद अनुज को आवाज लगाई, ‘‘अनुज, कोई 2 महिलाएं तुम से मिलना चाहती हैं. मैं ने उन्हें ड्राइंगरूम में बैठा दिया है.’’

अनुज जब ड्राइंगरूम में पहुंचा तो देखा 2 बूढ़ी औरतें ड्राइंगरूम में बैठी उस का इंतजार कर रही थीं. उन के पहनावे से ही लग रहा था कि वे ईसाई थीं. उन का स्वागत कर के अनुज ने उन के यहां आने की वजह जाननी चाही. उन में से एक महिला बिलकुल शांत थी, जबकि दूसरी औरत बहुत गहराई के साथ उस के चेहरे पर नजरें गड़ाए हुए थी. फिर उस ने कहा, ‘‘अनुज, यह मत कहना कि तुम ने मुझे पहचाना नहीं, क्योंकि बहुत ज्यादा लंबा समय नहीं हुआ है. मैं सही कह रही हूं न?’’

अनुज अचानक खुशी से उछल पड़ा. वही आवाज, वही नाकनक्श और अब तेजी के साथ चेहरे के भावों में उभरती जानीपहचानी शख्सियत.

‘‘इग्नेस आंटी!’’ वह आश्चर्य से उछल पड़ा, ‘‘मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा है. मैं ने तो कभी सोचा भी नहीं था कि ऐसा भी हो सकता है.’’ अपनी यादों में उन्हें ढूंढते हुए उस ने आगे पूछा, ‘‘आप कैसी हैं और अंकल कैसे हैं और…ग्लोरिया?’’

जैसे ही उस के मुंह से ग्लोरिया का नाम निकला, आरुषि को लगा जैसे उस का कुछ खो गया है. उसे महसूस हुआ कि अनुज के लिए इस नाम में बहुत कुछ खास है. अनुज ने आरुषि को ड्राइंगरूम में आने को कहा. वह आ गई तो अनुज ने बताया कि यह मिसेज इग्नेस डिसूजा हैं. ब्रायनगंज में यह भी हमारे पड़ोस में रहती थीं और उसी स्कूल में टीचर थीं, जहां वह पढ़ता था. उस ने यह भी बताया कि मिसेज डिसूजा उस की बचपन की क्लासमेट और दोस्त ग्लोरिया की मां हैं. आरुषि ने मन ही मन सोचा कि अनुज के पहले प्यार का नाम ग्लोरिया था, लेकिन उस की मां यहां क्यों आई हैं, इस बात को ले कर उस की जिज्ञासा बढ़ गई.

उसी समय इग्नेस ने एक धमाका किया, ‘‘मुझे यह कहते हुए बहुत दुख हो रहा है अनुज कि ग्लोरिया अब इस दुनिया में नहीं है.’’

यह कहते हुए उन की आंखों में आंसू छलक आए थे. अनुज और आरुषि दोनों को झटका सा लगा. उन की सोच का सिलसिला टूट गया. अनुज की काल्पनिक दुनिया तबाह हो गई. कुछ क्षण तक उस के गले से कोई आवाज नहीं निकली. कुछ देर के बाद वह बोला, ‘‘क्या हुआ था आंटी ग्लोरिया को और कब?’’

थोड़ी देर पहले उस के चेहरे पर जो खुशी थी, वह एक पल में गम में बदल गई थी.

‘‘करीब 2 महीने पहले कैंसर ने उस की जान ले ली. अनुज मेरे लिए वह बहुत कठिन समय था. तुम्हारे अंकल तो उसी समय हमें अकेला छोड़ गए थे, जब ब्रायनगंज वाली फैक्ट्री बंद हुई थी. तब तक ग्लोरिया की शादी भी नहीं हुई थी. कुछ दिनों बाद उस ने मेरे सामने तुम्हारे प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त किया था. यह तुम्हारे ब्रायनगंज से चले जाने के कई सालों बाद की बात है. हम दोनों ने सोचा कि तुम्हारी शादी हो चुकी होगी और तुम अपने जीवन में खुश होगे. इसलिए इस बारे में सोचना बेकार है. इस के बाद ग्लोरिया ने शादी का इरादा ही छोड़ दिया था. लेकिन मेरे बहुत जोर देने पर वह जार्ज से शादी करने को राजी हुई थी. शादी के बाद दोनों विदेश चले गए थे. लेकिन बेचारी ग्लोरिया…’’ इग्नेस आंटी रोने लगीं.

‘‘शादी के कुल 10 महीने बाद ही जार्ज की मौत हो गई. इस के बाद वह स्वदेश लौट आई और मेरे साथ ही रहने लगी. उस समय वह उम्मीद से थी. अब वह दूसरी शादी के बारे में बात करने तक को तैयार नहीं थी. इस के 6 महीने बाद ही पता चला कि उसे कैंसर है और 2 महीने पहले ही उस ने अपनी अंतिम सांस ली.’’

अनुज के गालों पर आंसू बह रहे थे. वह सोचने लगा कि उस ने तो ग्लोरिया को उसी वक्त खो दिया था, जब पिछली बार वह ब्रायनगंज गया था. हकीकत जान कर वह बहुत ज्यादा दुखी हो गया, उस के गले से आवाज नहीं निकल रही थी. आरुषि को भी इस तरह हालात का रुख बदलने से बहुत दुख हो रहा था. उस ने बड़ी मुश्किल से अपने आप को संभाल कर पूछा, ‘‘आंटी, आप कह रही थीं कि ग्लोरिया जब वापस आई तो उस समय वह उम्मीद से थी. उस का बच्चा कहां है?’’

‘‘हां, मैं इसी बात पर आ रही हूं,’’ इग्नेस आंटी ने खुद को संभालते हुए कहा, ‘‘ग्लोरिया की एक बेटी है. वह गोवा में मेरे साथ ही रहती है.’’

अनुज ने नजर उठा कर देखा, उस की आंखों में दुख साफ झलक रहा था. उस ने तुरंत पूछा, ‘‘आंटी, मैं ग्लोरिया की बेटी से मिल सकता हूं? वह अभी कितनी बड़ी है? उस का नाम क्या है?’’

‘‘हां…हां, क्यों नहीं. तुम टीना से बिलकुल मिल सकते हो अनुज,’’ इग्नेस आंटी ने कहा, ‘‘अगले महीने वह 5 साल की हो जाएगी. असल में मैं तुम्हें यह बताना चाहती थी कि अपने अंतिम समय में ग्लोरिया ने मुझ से एक वादा लिया था. उस ने मुझ से कहा था कि टीना को पालने में मुझे परेशानी होगी, इसलिए मैं तुम से कहूं कि तुम उसे अपने परिवार के सदस्य की तरह पालो.

‘‘मैं ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की कि वह यह विचार छोड़ दे. लेकिन वह अपनी बात पर अड़ी रही. उस ने कहा था कि अपने जीवन में 3 बार बदकिस्मत साबित होने के बाद भी उसे विश्वास है कि उस की यह अंतिम इच्छा जरूरी पूरी होगी.’’ मिसेज डिसूजा सुबकती रहीं और उन्होंने कहना जारी रखा, ‘‘बस, मैं इस में इतना और जोड़ना चाहती हूं कि मैं तुम्हें टीना को अपने परिवार में जोड़ने के लिए कोई दबाव नहीं डाल रही हूं. मैं नहीं चाहती कि हमारी वजह से तुम्हारे जीवन में कोई तूफान उठ खड़ा हो.’’

अनुज भी बहुत असमंजस में था. उस ने घबराई हुई सी नजर आरुषि पर डाली. एक तरफ उस का पहला प्यार ग्लोरिया थी, जिसे उस ने खो दिया था. इग्नेस आंटी के आगमन ने उस की यह उम्मीद भी धराशायी कर दी थी कि जीवन में कभी वह जान भी पाएगा या नहीं कि इस समय ग्लोरिया कहां और कैसी है. एक तो ग्लोरिया की मौत का गम, दूसरे टीना की चिंता. अगर यह बात केवल उसी तक सीमित होती तो वह ग्लोरिया की अंतिम इच्छा पूरी करने में एक क्षण भी नहीं लगाता. लेकिन इस बारे में वह अकेला कोई फैसला नहीं कर सकता था. परेशानी यह थी कि वह अपने दिल में उठती भावनाओं को आरुषि के सामने प्रकट करने की भी हिम्मत नहीं कर सकता था.

उसी समय अचानक आरुषि ने पूछा, ‘‘हम टीना से कब मिल सकते हैं आंटी?’’

इग्नेस आंटी आरुषि की ओर देख कर बोलीं, ‘‘क्यों, अभी मिल लो. वह डोरोथी की बेटी कैरोल के साथ बाहर ही खड़ी है. यह मेरी दोस्त डोरोथी है. जब एक आदमी से मुझे पता चला कि तुम यहां हो, तब मुझे याद आया कि डोरोथी भी इसी शहर में रहती है और यह मेरी मदद कर सकती है.’’

इग्नेस आंटी ने डोरोथी की ओर देख कर सिर से इशारा किया. डोरोथी ने अपनी बेटी को फोन लगा कर उसे घर के अंदर आने को कहा. एक मिनट के भीतर ही कैरोल और टीना ड्राइंगरूम में आ गईं. टीना बहुत ही सुंदर बच्ची थी. लेकिन अनुज को जिस बात ने सब से ज्यादा आकर्षित किया, वह थी टीना का ग्लोरिया की तरह होना. बचपन में ग्लोरिया बिलकुल उसी की तरह नजर आती थी. इस का एकएक स्टाइल, एकएक कदम उठाना, बैठना, सब कुछ बिलकुल ग्लोरिया की तरह था. अनुज इतनी समानता पर हैरान था. उस के दिल में तीव्र इच्छा पैदा हुई कि वह उठे और टीना को अपने सीने से लगा ले. लेकिन वह रुका रहा, क्योंकि उसे नहीं पता था कि आरुषि के दिलदिमाग में क्या चल रहा है.

आरुषि के मन में एक अन्य ही विचार तूफान मचाए हुए था. लेकिन उस का स्वभाव बहुत यथार्थवादी था. वह और अनुज एकदूसरे से बहुत प्यार करते थे और विश्वास भी. वे दोनों हर वह काम करने को तैयार रहते थे, जिस से एकदूसरे को खुशी मिले. उन के यहां संतान होने का सिलसिला काफी पहले ही रुक गया था और इस मामले में वे चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते थे.

‘‘मम्मी ने मुझ से कहा था कि मैं इसे आप को दे दूं.’’ टीना ने अनुज से मुखातिब होते हुए कहा.

उस के हाथ में एक सीडी थी. उस के कहने पर अनुज ने वह सीडी कंप्यूटर में लगा दी और आश्चर्य के साथ देखने लगा. कुछ ही देर में कंप्यूटर के मौनिटर पर ग्लोरिया की छवि उभरी. वह थकी हुई सी मालूम पड़ रही थी, लेकिन आरुषि और अनुज सांस रोक कर उस की तसवीर देखने लगे. अनुज को ग्लोरिया को फिर से देखने की खुशी थी तो आरुषि उसे आश्चर्य से पहली बार देख रही थी. ग्लोरिया की गोद में छोटी टीना खेल रही थी. ऐसा लगता था, जैसे वह सीधे अनुज की आंखों में देख रही हो. तभी उस की आवाज सुनाई दी, ‘‘अनुज, कैसे हो तुम? मौत से लुकाछिपी खेलते हुए काफी लंबा समय हो गया. खैर, यह एक लंबी कहानी है. जब तुम्हें यह सीडी मिलेगी, मम्मी तुम्हें बता चुकी होंगी कि मैं बहुत दूर जा चुकी हूं.

‘‘मुझे एक ऐसे इंसान की जरूरत है, जो टीना की देखभाल कर सके और उस से उतना ही प्यार कर सके, जितना मैं करती हूं. जब इस बारे में सोचती हूं तो मेरी आंखों के सामने तुम्हारी सूरत घूम जाती है. मैं तुम्हारे मौजूदा जीवन के बारे में नहीं जानती, लेकिन मुझे विश्वास है कि इस बार मुझे किस्मत से न्याय जरूर मिलेगा. हो सके तो तुम टीना को अपना लेना. मैं अपना जीवन तो नहीं संवार सकी, पर इस का जीवन संवर जाएगा.’’

इस के बाद ग्लोरिया की आवाज भर्रा गई, ‘‘अनुज, तुम्हें और तुम्हारे परिवार को मेरा बहुतबहुत प्यार.’’

आगे का दृश्य दिल दहला देने वाला था. पता नहीं क्या बड़बड़ाते हुए ग्लोरिया धराशायी हो गई. नन्हीं टीना उस से लिपट कर रोने लगी. ग्लोरिया की विदाई के बाद अनुज के धैर्य का बांध टूट गया और वह फूटफूट कर रोने लगा. आंसू उस की आंखों से झरने की तरह बह निकले. किसी आदमी को इस तरह रोते देख कर कोई भी आश्चर्य में रह जाता. अब अनुज को किसी की भी परवाह नहीं थी. वह तेजी के साथ उठा और टीना को अपने आगोश में भर लिया. इग्नेस आंटी भी रो रही थीं. उन के साथ डोरोथी और कैरोल के आंसू भी नहीं रुक रहे थे. आरुषि की आंखों से भी आंसू बह निकले थे.

वह अनुज और टीना के पास गई और दोनों को अपनी बांहों के घेरे में ले लिया. उसे अभी कुछ देर पहले लिए गए अपने फैसले पर बहुत संतोष और खुशी हो रही थी. वह इग्नेस आंटी की ओर मुड़ी और उन से मुखातिब हो कर बोली, ‘‘निश्चिंत रहिए, टीना हमारे परिवार की सदस्य बन कर रहेगी. यही नहीं, आप भी हमारे परिवार का ही हिस्सा हैं. आप इस की नानी हैं, आप के लिए इस घर के दरवाजे हमेशा खुले रहेंगे.’’

अचानक पूरे माहौल में सनाटा सा छा गया. हर कोई आरुषि की बात और उस की भावना को समझने की कोशिश कर रहा था. कुछ देर बाद सारे लोग एक बार फिर रोने लगे. मगर अब की बार आंसू खुशी और आरुषि के प्रति कृतज्ञता के थे. जब अनुज कुछ सामान्य हुआ तो वह आरुषि को कृतज्ञता भरी नजरों से देखते हुए बोला, ‘‘तुम्हारा बहुतबहुत धन्यवाद, तुम ने आज जो कुछ मुझे दिया है, उस के लिए मैं तुम्हें अपना पूरा जीवन दे सकता हूं. बहुतबहुत धन्यवाद तुम्हारा.’’

आरुषि कुछ कहने को थी, तभी टीना ने अनुज का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘आप मेरे डैडी हैं न और यह मेरी नई मम्मी?’’

अनुज ने उसे बांहों में समेटते हुए कहा, ‘‘हां टीना. और हां, तुम्हारा एक भाई भी है अनुग्रह. लेकिन तुम्हें यह सब कैसे पता?’’

टीना ने कहा, ‘‘मेरी मम्मी ने मुझ से कहा था कि एक दिन नानी मुझे मेरे डैडी और नई मम्मी के पास ले जाएंगी और वह मुझे देख कर इतना खुश होंगे कि चीखने लगेंगे.’’

इस के बाद टीना ने पूछा, ‘‘मेरा भाई अनुग्रह कहां है, क्या मैं उस से मिल सकती हूं?’’

जरा सी देर में माहौल सुखद हो गया. आरुषि अनुग्रह को बैडरूम से ले आई और टीना की गोद में बिठा दिया. सभी के चेहरे खुशी से दमक रहे थे. इस के एक महीने बाद जब टीना की 5वीं वर्षगांठ थी, अनुज और आरुषि टीना और अनुग्रह को साथ ले कर ब्रायनगंज गए. वहां का सारा क्षेत्र उजड़ा पड़ा था. चारों ओर वीरानी ही वीरानी थी. लकड़ी के दरवाजे, चौखटे, खिड़कियां, बिजली की फिटिंग; जो भी सामान ले जाने लायक था, लोग उखाड़ ले गए थे. हर तरफ बरबादी ही बरबादी नजर आ रही थी. अपने जन्मस्थान को इस हालत में देख कर अनुज को बहुत दुख हुआ.

उस ने आरुषि और दोनों बच्चों को वह जगह दिखाई, जहां उस का बचपन बीता था. जहां से उस की बहुत सारी यादें जुड़ी थीं, साथ ही कस्बे की दूसरी जगहों के बारे में भी बताया. इस के बाद वे लोग 2 ब्लौक दूर एक और घर की ओर गए. आरुषि समझ गई कि अनुज वहां क्यों आया है. उस घर में अंगरेजी के एल अक्षर के आकार का एक कमरा था, जो शायद डायनिंग रूम के रूप में काम आता रहा होगा. यह वही कमरा था, जहां ग्लोरिया ने अपने जीवन के शुरुआती साल बिताए थे और जहां आखिरी बार भी आई थी.

अनुज को लगा, जैसे उस के गले में कुछ अटक सा गया हो. उस के गले से बिलकुल भी आवाज नहीं निकल रही थी. निश्चित ही कस्बा उजड़ने के बाद भी ग्लोरिया वहां आई थी. दीवार पर लिखी उस की कविता और अन्य निशानों से कुछ महसूस नहीं हो रहा था. शायद वह अपनी नई जिंदगी शुरू करने से पहले अपने बचपन की हसीन यादों को अलविदा कहने यहां आई थी. इस के अलावा और कोई वजह नहीं हो सकती थी. दीवार पर लिखी अपनी कविता में उस ने अपनी आंतरिक भावनाओं को, जिन्हें उस ने बरसों तक अपने सीने में दबाए रखा था, जाहिर कर दिया था. अनुज उस के शब्दों पर बहुत देर तक हाथ फेरता रहा. उसे लग रहा था, जैसे उस कविता में अभी तक ग्लोरिया का स्पर्श मौजूद है.

उस की आंखें नम हो गईं. आरुषि यह सब देख रही थी. उसे अनुज की दिली भावनाओं का अनुमान था. उस ने जल्दी से अपना पर्स खोला और आईलाइनर पेंसिल निकाल कर अनुज के हाथ में थमा दी. अनुज ने भी चुपचाप पेंसिल ले ली और ग्लोरिया के शब्दों के नीचे लिख दिया, ‘मैं भी तुम से बहुत…’

शाम होने से पहले ही वे लोग ब्रायनगंज से वापस आ गए. टीना इस तरह से घूमने से बहुत खुश थी. लेकिन वह समझ नहीं पा रही थी कि वे लोग इतनी वीरान और उजाड़ जगह पर घूमने क्यों आए. आरुषि भी बहुत खुश थी, उसे भी बहुत मजा आया. क्योंकि पिछले एक महीने में उस ने जीवन की बहुत सी खुशियां हासिल कर ली थीं. अब उस का परिवार हर लिहाज से एक पूरा परिवार बन गया था. अनुज भी शांत था. उस के जीवन की सब से बड़ी उलझन का समाधान उसे मिल गया था और उस ने उस पुराने घर में ग्लोरिया की आत्मा का स्पर्श महसूस कर लिया था. Hindi Kahani

 

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