Emotional Movies: शारीरिक विकलांगता पर ‘गुजारिश’ और ‘अमु’ जैसी फिल्में पहले भी बन चुकी हैं, इन में ‘गुजारिश’ बडे़ बजट की थी और ‘अमु’ छोटे बजट की लेकिन दर्शकों ने दोनों को लगभग नकार दिया था. लेकिन ‘मार्गरिटा विद ए स्ट्रा’ पक्षाघात से पीडि़त एक ऐसी लड़की की कहानी पर आधारित फिल्म है जिसे देखने का मोह कोई नहीं छोड़ सकता…
हाल ही में प्रदर्शित हुई फिल्म ‘मार्गरिटा विद ए स्ट्रा’ लीक से हट कर बनी फिल्म है, जिस का आधार है पक्षाघात से पीडि़त एक लड़की लैला. हिंदी और अंगरेजी में बनी इस फिल्म का प्रीमियर हालांकि टोरंटो फिल्म फेस्टिवल में गत वर्ष 8 सितंबर को हो चुका था, लेकिन कुछ कारणों से भारत में यह हाल ही रिलीज हुई. इस फिल्म की खासियत है अभिनेत्री कल्कि कोचलिन का जबरदस्त अभिनय. यह फिल्म एनईटीपीएसी (नेटवर्क फौर द प्रमोशन औफ एशियन सिनेमा) का अवार्ड पहले ही जीत चुकी है. पिछले साल इस पुरस्कार को जीतने वाली यह अकेली भारतीय फिल्म थी. केवल यही नहीं, पिछले साल ही एस्टोनिया में हुए ‘टैलिन ब्लैक नाइट्स फिल्म फेस्टिवल’ में इस फिल्म की नायिका कल्कि कोचलिन को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का अवार्ड भी मिला था.

फिल्म ‘मार्गरिटा विद ए स्ट्रा’ सेरेब्रल पल्सी (पक्षाघात) से पीडि़त एक युवती की कहानी है, जो व्हीलचेयर पर रहती है और उसे खानेपीने, बोलने और अन्य सामान्य गतिविधियों में भी भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. लेकिन उस के सपने सामान्य युवतियों से कहीं ऊंचे हैं. वह व्हीलचेयर पर ही अपने घर, कालेज और फ्रैंडस के साथ समय गुजारती है. उस के घर में मां है, पिता हैं और एक छोटा भाई मोनू है, जो उस का हर तरह से खयाल रखते हैं. उस के पिता म्यूजिक लवर हैं और लैला को उन से ही गाने लिखने की प्रेरणा मिलती है. लैला दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्र है, साथ ही प्रतिभाशाली गीतकार भी. वह एक बैंड के लिए गाने लिखती है. बैंड की संयोजक नीमा से उस की अच्छी दोस्ती है. इस के बावजूद लैला को लगता है कि कोई उसे प्यार नहीं करता बल्कि उसे दूसरों से अलग समझा जाता है.
आगे की स्टडी के लिए लैला को न्यूयार्क विश्वविद्यालय में एडमिशन मिल जाता है और वह अपनी मां (रेवती) के साथ वहां जा कर मैनहट्टन में रहने लगती है. वहां रहते हुए उसे उस की बंग्लादेशी दोस्त खानम से प्यार हो जाता है. धीरेधीरे दोनों के बीच समलैंगिक रिश्ते बन जाते हैं. लेकिन शारीरिक दुर्बलताएं और पारिवारिक रिश्तों की कशमकश किस तरह उस के प्यार और जीवन में आड़े आती हैं, इसे बडे़ ही मार्मिक ढंग से फिल्माया गया है. इस के अलावा कल्कि और सयानी गुप्ता (खानम) पर फिल्माया गया इंटीमेट सीन भी गजब बन पड़ा है. सही मायनों में देखा जाए तो मार्गरिटा विद ए स्ट्रा फिल्म नहीं, बल्कि ऐसा रस है, जिसे बूंदबूंद पीने पर ही मजा आता है. इस फिल्म में कल्कि का अभिनय रोमरोम को रोमांचित कर जाता है. उस का अधूरापन उस के चेहरे के हावभावों और आंखों से टपकता है. जिसे कैमरामैन ने बड़ी खूबसूरती से उभारा है.
शोनाली बोस द्वारा निर्मित, निर्देशित और लिखित ‘मार्गरिटा विद ए स्ट्रा’ भले ही शारीरिक रूप से कमतर एक ऐसी लड़की की कहानी है, जो आसमान छूना चाहती है. लेकिन इस फिल्म में कई दृश्य कविता की तरह हैं, जैसे मां अपनी जवान बेटी को स्नान कराती है. जब बेटी अपनी निजता की बात करती है तो मां इस तरह का व्यवहार करती है, जैसे वह उसे जानती ही न हो. इसी तरह बाद में जब बीमार और लाचार मां को बेटी नहलाती है तो उस वक्त मांबेटी का नाजुक रिश्ता नग्न हो कर फिर सामने आता है, जो शारीरिक नहीं बल्कि रिश्तों की नाजुक डोर से बंधा है.
इंसान की जिंदगी में ऐसे मानवीय मोड़ आते रहते हैं, जब मांबेटी अथवा बापबेटे में से किसी एक को इस तरह की भूमिकाएं निभानी पड़ती हैं. लेकिन शोनाली बोस ने जिस तरह इन दृश्यों को फिल्माया है, वह बिलकुल कविता की तरह हैं. ऐसी ही स्थितियों में पता चलता है कि वस्त्र इंसान के लिए ही नहीं बल्कि रिश्तों के लिए भी कितने महत्त्वपूर्ण हैं. वैसे यहां स्पष्ट कर दें कि इस फिल्म को शोनाली बोस ने अपनी और अपने रिश्ते की बहन मालिनी की हकीकत भरी जिंदगी के इर्दगिर्द बुना है. फिल्म के अंत में बीमारी के चलते जब हीरोइन की मां मर चुकी है और उस का अपना प्रेमसंबंध टूट चुका है तो वह ब्यूटीपार्लर जा कर अपना शृंगार कराती है और एक रेस्तरां में जा बैठती है.
वहां एक फ्रैंड का फोन आने पर वह कहती है कि किसी के साथ डेट पर जा रही है. जबकि वह वहां प्रसन्नता के मूड में बैठी मार्गरिटा पी रही होती है. इस दृश्य को देख कर लगता है कि जीवन इसी का नाम है. संभवत: इसीलिए इस फिल्म का नाम ‘मार्गरिटा विद ए स्ट्रा’ रखा गया है. कमतरी के बावजूद लैला अपने जीवन को उत्सव की तरह मनाती है, ताकि जीवन में सकारात्मकता और हौसला बना रहे. कल्कि ने अपने करेक्टर की इस सोच को अपने अभिनय से जीवंत कर दिया है. भावनात्मकता से लबरेज इस फिल्म का एक दृश्य यह भी है कि फिल्म के शुरू के दृश्यों में हकलाने वाली नायिका मां के आलाप से स्वर मिलाने की कोशिश करती है.
जबकि मां की शोकसभा में वह अपने खुद के संगीत की सीडी बजाती है. इस से लगता है जैसे मांबेटी का स्वर एक ही हो. ऐसा ही दृश्य तब भी है, जब लैला अस्पताल में मरणासन्न मां के सिरहाने बैठी है. इसे देख कर लगता है जैसे वह बेटी नहीं, मां की भूमिका निभा रही हो. इस फिल्म की लैला सिख पिता और मराठी मां की बेटी है. पतिपत्नी दोनों में खानेपीने को ले कर नोकझोंक जरूर होती है, लेकिन उन के बीच प्यार की कोई कमी नहीं है. सच तो यह है कि फिल्म में रेवती ने मां की भूमिका को जिस तरह जीवंत किया है, वह काबिलेतारीफ है. कल्कि के अभिनय का तो कहना ही क्या. इस में कोई दो राय नहीं कि इस अभिनय के लिए मिले पुरस्कार से कल्कि कोचलिन स्वयं नहीं, बल्कि पुरस्कार गौरवान्वित हुआ है.
आजकल लीक से हट कर छोटीछोटी तमाम फिल्में बन रही हैं, जिन में से कुछ को पसंद भी किया जाता है. यह एक अच्छी शुरुआत है. लेकिन ‘मार्गरिटा विद ए स्ट्रा’ न तो इतनी छोटी फिल्म है और न ही इसे उस श्रेणी की फिल्मों में रखा जा सकता है. इस तरह की फिल्में दशकों में एकदो बार ही बन पाती हैं. यह फिल्म पूरे परिवार के साथ देखी जा सकती है और हर क्लास की कसौटी पर खरा उतरने का दम रखती है.
फिल्म की निर्माता, निर्देशक शोनाली बोस के बारे में इतना ही कहा जा सकता है कि उन्होंने एक ऐसी बेहतरीन फिल्म बनाई है, जिसे दशकों तक याद किया जाएगा. इस फिल्म के कलाकारों कल्कि कोचलिन ही नहीं बल्कि रेवती, सयानी गुप्ता, हुसैन दलाल, कुलजीत सिंह और मल्हार खुशबू वगैरह सभी ने बेहतरीन अभिनय किया है. शोनाली बोस ने फिल्म की धीमी रफ्तार के बावजूद अपने निर्देशन के बूते पर कहीं भी फिल्म को पटरी से नहीं उतरने दिया है. Emotional Movies






