UP Crime: अजय सिंह ने कई अपहरण कर के लाखों रुपए कमाए थे. लेकिन उस का सपना लाखों का नहीं, बल्कि करोड़ों का था. जाहिर है, ऐसे सपने मुश्किल से पूरे हो पाते हैं, जिन की बुनियाद अपराध की जमीन पर रखी गई हो. अजय के साथ भी यही हुआ. आखिर वह…

6 मई, 2015 की दोपहर की बात है. करीब 2 बज कर 30 मिनट का समय हो रहा था. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के गोमतीनगर विस्तार में स्थित शारदा अपार्टमेंट के चारों ओर खामोशी सी पसरी हुई थी. 11 मंजिल की इस इमारत में बने हर फ्लैट की खिड़कियां बंद थीं. कहीं पर किसी भी तरह की हलचल नजर नहीं आ रही थी. शारदा अपार्टमेंट के परिसर में जो इक्कादुक्का लोग दिख रहे थे, वे पुलिस के जवान थे, अलगअलग जगह पोजीशन लिए हुए ये लोग उत्तर प्रदेश और बिहार स्पैशल टास्क फोर्स के जवान थे. पुलिस ने शारदा अपार्टमेंट के गेटकीपर को पहले ही बता दिया था कि वहां रहने वाले को अपने फ्लैट में रहने के लिए कह दिया जाए.

क्योंकि अपार्टमेंट में बदमाश छिपे हैं. गेटकीपर ने सावधानी से वहां रहने वाले सभी लोगों को सचेत कर दिया था. आधे घंटे बाद करीब 3 बजे एसटीएफ के जवानों ने अपार्टमेंट की 9वीं मंजिल पर स्थित फ्लैट नंबर 906 को घेर लिया. पुलिस के जवानों से घिरा देख उस फ्लैट में रह रहे बदमाशों ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करने में ही अपनी भलाई समझी. फ्लैट में मौजूद 8 में से 7 बदमाश आत्मसमर्पण की मुद्रा में पुलिस के सामने आ गए, जबकि उन का एक साथी सब से ऊपर वाली मंजिल की छत पर बनी पानी की टंकी पर चढ़ गया. यह देख एसटीएफ के जवानों ने बड़ी होशियारी के साथ पानी की टंकी को घेर कर उस पर चढ़े बदमाश को पकड़ लिया. उस का नाम अजय कुमार सिंह था. बाकी बदमाशों ने अपने नाम मृत्युंजय कुमार, बिट्टू कुमार, विजय कुमार, अमित सिंह, सुनील कुमार, श्रवण कुमार और अनिल सिंह बताए.

1 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद पुलिस ने जब सभी बदमाशों को पकड़ लिया, तब जा कर शारदा अपार्टमेंट में रहने वालों को पता चला कि फ्लैट नंबर 906 में रहने वाले लोग बिहार के मशहूर किडनैपर हैं, जिन का सरगना अजय कुमार सिंह था. पहनावे और रहनसहन से पुलिस जवान जैसे दिखने वाले बदमाशों को देख कर शारदा अपार्टमेंट के लोग हैरान थे. महीनों साथ रहने के बाद भी वे लोग बदमाशों को पहचान नहीं पाए थे. कभीकभी अजय की पत्नी उस से मिलने शारदा अपार्टमेंट वाले फ्लैट नंबर 906 में आती थी. अजय ने अपने फ्लैट के आसपास अपनी साफसुथरी छवि बना रखी थी. वह अकसर छोटेछोटे बच्चों को खाने के लिए टौफियां दिया करता था. साथ ही वाचमैन को भी खुश रखता था. वाचमैन और आसपास के लोग अजय को कोई बड़ा अफसर या कारोबारी समझते थे.

अजय ने अपने फ्लैट को सुखसुविधा की चीजों से सजा कर रखा था. फ्लैट में जापानी कंपनी का अल्ट्रा हाईडेफिनेशन का 40 इंच का एलईडी, 450 लीटर का डबलडोर फ्रिज, फ्रंट लोडिंग वाशिंग मशीन, माइक्रोवेव ओवन और लैपटौप जैसी महंगी चीजें मौजूद थीं. पुलिस ने तलाशी ली तो अजय के वार्डरोब में महंगे ब्रांड्स की 78 टीशर्ट और 47 जींस व ट्राउजर मिले. साथ ही वार्डरोब में महंगे ब्रांड्स के परफ्यूम भी थे. वहां पुलिस को ब्रांडेड अंडरगारमेंट्स के अलावा अजय के आधा दर्जन लेदर व स्पोर्ट्स शूज भी मिले, जो उस के उच्चस्तरीय रहनसहन की गवाही देते थे.

वह खुद को फिट रखने के लिए ट्रेडमिल और डंबल का इस्तेमाल करता था. शुगर के मरीज अजय ने अपना वजन चैक करने और ब्लडप्रेशर नापने के लिए मशीनें भी ले रखी थीं. उस का फ्रिज विभिन्न ब्रांडेड कंपनियों की खानेपीने की चीजों से भरा हुआ था. अजय ऐसी शानोशौकत भरी जिंदगी जीने के लिए ही अपराध करता था. अजय की पत्नी चाहती थी कि वह अपराध की दुनिया छोड़ दे, इसीलिए वह उस से दूर दिल्ली में रहती थी. अलबत्ता वह कभीकभी उसे समझाने के लिए लखनऊ जरूर आती रहती थी. वह उसे अपने किशोर बेटे का वास्ता भी देती थी. लेकिन अजय का इरादा कोई मोटा हाथ मार कर अपराध की राह छोड़ने का था, ताकि वह प्रौपर्टी डीलिंग जैसा कोई कारोबार कर सके.

इस के लिए उस ने लखनऊ के चारबाग में एक जगह भी देख ली थी. पत्नी को भी वह यही दलील दिया करता था. अनीता को मिन्नतें कर के वह उसे इसलिए लखनऊ बुलाया करता था, ताकि पासपड़ोस के लोगों को लगे कि वह बालबच्चों वाला आदमी है. अजय कुमार सिंह बिहार के गया जिले का रहने वाला था. उस के पिता मंगल सिंह बिहार पुलिस में पीपीएस औफिसर थे, जो प्रमोशन पा कर एसएसपी के पद से रिटायर हुए थे. अजय सिंह भी पुलिस विभाग में जाना चाहता था. दिखने में भी वह किसी पुलिस अफसर से कम नजर नहीं आता था. अजय पूरी शानोशौकत के साथ रहता था. वह ब्रांडेड कपड़े पहनता था. जींस और टीशर्ट उस का पसंदीदा पहनावा था. अजय ने कई बार प्रयास किया, लेकिन वह पुलिस विभाग में नौकरी पाने में असफल रहा.

इसी बीच उस की शादी डा. अनीता सिंह से हो गई. अनीता ने समाजशास्त्र में पीएचडी की थी. वह स्कूल में नौकरी करती थी. दोनों का एक बेटा भी है. पतिपत्नी के विचार कम ही मिलते थे. इसी वजह से अनीता अपने बेटे को ले कर गया से दिल्ली चली गई थी और वसंतकुंज के एक स्कूल में पढ़ाने लगी थी. पुलिस विभाग में नौकरी पाने में असफल रहने के बाद अजय सिंह की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? उस की शादी हो चुकी थी. एक बेटा भी पैदा हो चुका था. पत्नी और बेटे की जिम्मेदारी अलग से बढ़ गई थी. जबकि छोटीमोटी नौकरी करना उसे पसंद नहीं था. ऐसे में अपनी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए अजय ने अपराध की दुनिया में कदम रख दिया. पहले छोटेमोटे अपराध किए, फिर उस ने अपना गिरोह बना लिया. गिरोह तैयार हो गया तो अजय ने पैसे वालों का अपहरण कर के फिरौती वसूल करने का धंधा शुरू कर दिया.

अजय सिंह के गिरोह में 8 से 10 लोग थे. ये सभी 20-22 साल की उम्र से ले कर 27-28 साल तक के थे. अजय अपने गिरोह के लिए महंगी गाडि़यों का इस्तेमाल करता था. इन गाडि़यों पर लाल या नीली बत्ती लगी होती थी. उसे पुलिस के लोगो लगी पुलिस की वरदी और पुलिस अफसरों का लाइफस्टाइल बहुत पसंद था. इसलिए उस ने अपने गिरोह में ऐसे युवकों को शामिल किया था, जो शारीरिक रूप से पुलिस वाले लगते थे. उस का गैंग बिहार, राजस्थान, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, झारखंड, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश तक अपना जाल फैलाए हुए था.

अजय सिंह के गिरोह ने 1995 में बोकारो के एक बड़े कारोबारी सुशील गर्ग को अगवा किया था. उस ने सुशील के घर वालों से कोलकाता के दमदम एयरपोर्ट पर फिरौती की रकम वसूली थी. इस के बाद उस ने हजारीबाग से लक्ष्मी सीमेंट के मालिक को अगवा कर के पटना में 5 करोड़ रुपए की फिरौती वसूल की थी. बिहार में उस समय अपराधियों के राजनीति में शामिल होने की होड़ लगी थी. राजनीतिक चोला पहन कर अपराधी नेता बन रहे थे. अजय ने सोचा कि अगर वह भी चुनाव लड़ कर जीत जाए तो उसे अपराध करने की जरूरत नहीं रह जाएगी. इस के बाद उस ने 1999 में समता पार्टी जौइन कर ली और औरंगाबाद से लोकसभा का चुनाव लड़ा.

समता पार्टी नईनई बनी थी, उस का अपना कोई आधार नहीं था. बिहार में समता पार्टी को केवल जार्ज फर्नांडीस के नाम से जाना जाता था. अजय सिंह के पास जो पैसा था, वह चुनाव में खर्च हो चुका था, जिस से उस की शानोशौकत की जिंदगी में रुकावट आने लगी. ऐसे में अजय ने फैसला किया कि वह फिर से अपहरण कर के लोगों से फिरौती वसूल करेगा. वैसे भी अपराध की दलदल से निकलना इतना आसान नहीं होता. अजय के साथ भी यही हुआ. उस की सोच उसे फिर से अपराध जगत में घसीट लाई. फलस्वरूप अजय ने फिर से अपराध की दुनिया में कदम रख दिए और लोगों का अपहरण कर के फिरौती वसूलने लगा. अजय चाहता था कि किसी बड़ी हस्ती का अपहरण कर के एक बार में इतना पैसा वसूल ले कि उसे अपराध करने की जरूरत ही न पड़े.

साल 2003 में अजय सिंह ने जयपुर, राजस्थान के डायमंड कारोबारी की पत्नी सुमेधा का अपरहण किया. वह डायमंड कारोबारी से ढाई सौ करोड़ की फिरौती वसूलने के चक्कर में था. अजय ने सुमेधा को 18 दिनों तक दिल्ली में रखा. इस के पहले कि वह फिरौती वसूल पाता, पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. इस मामले में अजय को सजा भी हो गई, लेकिन साल 2011 में वह पैरोल पर जेल के बाहर आया और फरार हो गया. फरार होने के बाद उस ने फिर से अपहरण का पुराना धंधा शुरू कर दिया. इस बार उस ने राजस्थान के कोटावाला चेन के मालिक और छत्तीसगढ़ के एक इंजीनियर का अपहरण किया. अजय सिंह के गिरोह के लोग ऐसे अमीरों पर नजर रखते थे, जो महंगी गाडि़यों से चलते थे. ऐसे लोगों को अपनी गिरफ्त में लेने के लिए ये लोग क्लबों के बाहर रेकी करते थे. फिर मौका देख कर शिकार का अपहरण कर लिया जाता था.

अजय सिंह ने अपहृत लोगों को बंधक बना कर रखने के लिए लखनऊ के गोमतीनगर इलाके में 2 आलीशान अपार्टमेंट में किराए पर फ्लैट ले रखे थे. एक फ्लैट में अजय और उस के गैंग के लोग रहते थे तो दूसरे में ये लोग अपनी पकड़ को रखते थे. पकड़ को यहां तक लाते या ले जाते समय नशे का इंजेक्शन दे दिया जाता था, ताकि वह कोई विरोध न कर सके. अजय सिंह ने शारदा अपार्टमेंट का फ्लैट ब्रोकर के जरिए लिया था. यह फ्लैट इंग्लैंड में रहने वाले गौरव शर्मा का था. गौरव शर्मा ने यह फ्लैट लखनऊ विकास प्राधिकरण से अपने नाम अलाट कराया था. उन्होंने ब्रोकर के जरिए यह फ्लैट 40 हजार रुपए महीने किराए पर अजय सिंह को दिया था. अजय सिंह ने दूसरा फ्लैट गोमतीनगर क्षेत्र के विश्वासखंड में किराए पर लिया था. यह फ्लैट चीफ इंजीनियर संजय मिश्रा का था.

पहली मंजिल पर स्थित इस फ्लैट को लेते समय अजय सिंह ने फर्जी वोटर आईडी का सहारा लिया था. फ्लैट लेते समय उस ने अपना नाम नीरज सिंह बताया था. उस वक्त वह अपनी पत्नी अनीता को भी साथ लाया था. नीरज यानी अजय ने यहां रहने वाले लोगों को बताया था कि बिहार में उस का कोल ब्लौक है. बाद में जब कोल ब्लौक के आवंटन रद्द हुए तो अजय ने कहा कि अब वह प्रौपर्टी के धंधे में हाथ आजमाना चाहता है. वह लखनऊ की एपी सेन रोड स्थित एक प्रौपर्टी को खरीद कर उस में कौंप्लेक्स बनाने की तैयारी भी कर रहा था. अजय हमेशा अपने घर में पढ़ेलिखे और सभ्य लोगों को बुलाता था, जिस से आसपास रहने वालों पर उस का इंप्रेशन बना रहे. अपने फ्लैट में अजय बहुत अच्छी कंपनियों का सामान रखता था. उस के रहनसहन को देख कर कोई भी उसे अपराधी नहीं मान सकता था.

अजय के गिरोह ने 22 जनवरी, 2015 को रोहतास जिले के कारोबारी रविरंजन उर्फ डंपू सिंह, उस के साथी अमरेश तथा ड्राइवर सद्दाम का अपहरण किया. इन लोगों ने रविरंजन की फार्च्युनर कार भी लूट ली थी. रविरंजन को 35 दिनों तक लखनऊ के शारदा अपार्टमेंट में बंधक बना कर रखा गया. अपहृत लोगों के घर वालों से 30 लाख की रकम वसूल करने के बाद छोड़ा गया था. अजय रविरंजन की फार्च्युनर का इस्तेमाल दूसरे अपहरणों में करने लगा था. बिहार पुलिस अभी रविरंजन अपहरण कांड को सुलझाने में ही लगी थी कि 1 मई, 2015 को इस गिरोह ने गया जिले के डा. पंकज गुप्ता और उन की पत्नी शुभ्रा का अपहरण कर लिया. डा. पंकज गुप्ता का गया में हीराहोंडा का शोरूम था और उन की पत्नी शुभ्रा रेडीमेड गारमेंट्स का बिजनैस करती थीं.

1 मई को पतिपत्नी गिरिडीह में अपने एक रिश्तेदार के यहां शादी समारोह में शामिल होने के लिए गए थे. वहां से लौटते समय ये लोग अजय सिंह के गिरोह के हत्थे चढ़ गए. अजय सिंह गिरोह के लोग डाक्टर और उन की पत्नी का अपहरण करने के बाद उन्हें लखनऊ के शारदा अपार्टमेंट में ले आए. शारदा अपार्टमेंट में करीब 188 फ्लैट हैं, जिन में 100 से अधिक फ्लैटों में लोग रहते हैं. यहां के एक फ्लैट की कीमत 50 लाख से ले कर 90 लाख के बीच है. फ्लैट नंबर 906 में पिछले 6 महीने से केवल युवक ही रहते देखे जा रहे थे. जब डा. पंकज गुप्ता और उन की पत्नी को वहां लाया गया तो अचानक एक महिला के वहां आने से आसपास के लोगों को किसी गलत काम की आशंका होने लगी.

डा. पंकज गुप्ता और उन की पत्नी के अपहरण की गुत्थी सुलझाने के लिए बिहार एसटीएफ ने रविरंजन का सहारा लिया. रविरंजन ने पुलिस को बताया कि उन्हें लखनऊ की जिस जगह पर रखा गया था, वह किसी फ्लाईओवर के पास थी. वहां आसपास कोई स्कूल भी था, जहां से स्कूल की घंटी बजने की आवाज आती थी. साथ ही पास में एक हाइवे भी दिखाई देता था. यह जानकारी मिलने पर बिहार पुलिस रविरंजन को ले कर लखनऊ आई और शारदा अपार्टमेंट तक पहुंचने में सफल हो गई. रविरंजन ने बिहार पुलिस को वह जगह भी दिखाई, जहां पर फिरौती की रकम दी गई थी. यह जगह लोहिया पार्क का गेट नंबर 2 थी. यहीं पास में विश्वासखंड भी है, जहां पर अजय ने किराए का फ्लैट ले रखा था.

इन सारी सूचनाओं को एकत्र करने के बाद बिहार के डीजीपी पी.के. ठाकुर ने उत्तर प्रदेश के डीजीपी ए.के. जैन से बात की और अपहरण के इस मामले को सुलझाने के लिए मदद मांगी. डीजीपी ए.के. जैन ने उत्तर प्रदेश एसटीएफ के आईजी सुजीत पांडेय और एसएसपी अमित पाठक को यह मामला सुलझाने का जिम्मा सौंपा. उधर गया जिले के एसपी सिटी राकेश कुमार ने पुलिस बल ले कर शारदा अपार्टमेंट की रेकी करनी शुरू कर दी. पुलिस को इस बात की जानकारी नहीं थी कि शारदा अपार्टमेंट के उस फ्लैट में कितने लोग हैं. यह भी डर था कि अगर जोरजबरदस्ती करने का प्रयास किया गया तो डाक्टर दंपति को कोई नुकसान पहुंच सकता है.

सारी बातों के मद्देनजर पुलिस के जवानों ने तरहतरह के भेष बना कर यहां की निगरानी शुरू की. कोई धोबी बना तो कोई भिखारी. कोई कारपेंटर बना तो कोई प्लंबर. कई बार ये लोग सामने के डिवाइडर पर धूप में लेट कर आनेजाने वालों पर निगाह रखते थे. प्लंबर और कारपेंटर के भेष वाले जवान फ्लैट में ताकाझांकी करने की कोशिश भी करते थे. 5 मई की शाम को गिरोह के लोग डाक्टर दंपति को कार में बिठा कर बाहर निकल गए. अंधेरे की वजह से पुलिस उन लोगों को देख नहीं पाई. देर रात गए जब कार वापस आई तो उस में डाक्टर दंपति नहीं थे. 6 मई की सुबह डा. पंकज गुप्ता के घर वालों ने जिले के डीआईजी को बताया कि डाक्टर पंकज और उन की पत्नी शुभ्रा पूर्वा एक्सप्रेस से वापस अपने घर आ गए हैं.

यह सूचना मिलते ही पुलिस ने शारदा अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर 906 पर छापा मार कर डाक्टर दंपति का अपहरण करने वाले गिरोह के सरगना अजय कुमार सिंह को उस के 7 साथियों के साथ पकड़ लिया. 1 घंटे तक चली काररवाई के बाद जब अजय सिंह को पुलिस ने पकड़ा तो वह खुद को निर्दोष बताने लगा. उस ने कहा कि डाक्टर दंपति से कोई फिरौती नहीं मांगी गई थी. डीजीपी ए.के. जैन ने भी यह बात मानी कि अजय सिंह ने डाक्टर के परिवार से कोई फिरौती नहीं ली है. अपहृत डाक्टर दंपति से पूछताछ करने वाले आईजी पटना ने भी इस बात की पुष्टि की कि फिरौती में कोई रकम नहीं दी गई.

अजय सिंह के गिरोह ने पुलिस को बताया कि डाक्टर की पत्नी के साथ होने से काफी परेशानी होने लगी थी. इसलिए गिरोह के लोग उन्हें छोड़ कर चुपचाप भाग जाना चाहते थे. लेकिन पुलिस की निगरानी के चलते वे ऐसा करने से चूक गए. इस औपरेशन के खत्म होने पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एसटीएफ टीम को 5 लाख रुपए नकद इनाम देने की घोषणा की. उत्तर प्रदेश के डीजीपी ए.के. जैन ने भी विभाग की तरफ 50 हजार रुपए इनाम देने की घोषणा की. UP Crime

 

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