True Crime Story: जिन लोगों को नहीं सुधरना होता, वे ठोकरें खाने के बाद भी नहीं सुधरते. मंजू के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ. अच्छा घर मिलने के बाद भी वह अपनी आदत से बाज नहीं आई और…

मथुरा प्रसाद अपने परिवर के साथ जिला हरदोई के अंतर्गत आने वाले गांव गोवर्धनपुर में रहते हैं. उन के 4 बेटों में 2 बेटे रमेश और अनिल खेती करते हैं. तीसरा बेटा परशुराम लखनऊ में नौकरी करता है. उन के छोटे बेटे सुनील की उम्र 30 वर्ष थी. घर में सभी उसे कल्लू कहते थे. सुनील बड़े भाइयों की तरह खेती कर के गुजरबसर करता था. बंटवारे के बाद उसे अलग खेत मिल गए थे. उस के खेत के पास ही रेवतीराम की भी जमीन थी. रेवतीराम जब खेतों पर काम कर रहा होता तो दोपहर में उस के घर से कोई न कोई खाना पहुंचाने आता. आसपड़ोस में खेत होने के कारण रेवतीराम और सुनील के संबंध काफी अच्छे थे. घर से आए खाने को दोनों मिलबांट कर खा लेते थे.

रेवतीराम पहले गांव बेहटा, थाना बांगरमऊ, जनपद उन्नाव में रहता था. 15 साल पहले उस ने एक विवाद के चलते एक व्यक्ति की हत्या कर दी थी, जिस की वजह से उसे सालों जेल में रहना पड़ा था. जेल से निकलने के बाद उस ने गांव छोड़ दिया था और सपरिवार हरदोई के थाना मल्लावां के गांव भगवंतनगर में आ कर बस गया था. उस के परिवार में पत्नी वंदना सहित 6 औलाद थीं, 3 बेटे और 3 बेटियां. सब से छोटी मंजू बचपन से ही अल्हड़ और शोख स्वभाव की थी.

मंजू जब जवान हो गई तो रेवतीराम ने अच्छा सा परिवार देख कर उस की शादी उन्नाव के थाना बांगरमऊ के गांव बालखेड़ा निवासी श्रवणपाल से कर दी. विवाह से पूर्व मंजू ने भी हर लड़की की तरह मन में होने वाले पति और ससुराल के बारे में कई सपने संजो रखे थे. शादी के बाद जब उस ने पति को देखा तो पहले तो उसे सब कुछ ठीक लगा, लेकिन 2-4 दिनों बाद जब हकीकत सामने आई तो उसे गहरा सदमा लगा. श्रवणपाल की दिमागी हालत ठीक नहीं थी. निस्संदेह उस के साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ था. मंजू ने कभी सोचा भी नहीं था कि किस्मत उस के साथ ऐसा खेल खेलेगी. वह समझ नहीं पा रही थी कि ऐसी स्थिति में उसे क्या कदम उठाना चाहिए.

कुछ दिनों के बाद वह ससुराल से विदा हो कर मायके आ गई. उस ने यह बात अपनी मांबहनों को बताई तो श्रवणपाल की हकीकत सुन कर पूरा परिवार सकते में आ गया. उन सब का एक ही मत था कि ऐसे आदमी से मंजू के जीवन की डोर बंधे रहने से क्या फायदा, जिस की दिमागी हालत ठीक नहीं है. मंजू भी यही चाहती थी. अंतत: उस ने सदा के लिए ससुराल से नाता तोड़ लिया. जाहिर है, यह बात ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रह सकती थी. धीरेधीरे यह बात गांव भर में फैल गई कि मंजू ससुराल छोड़ कर घर बैठ गई है. इसे ले कर लोग तरहतरह की बातें करने लगे. जितने मुंह, उतनी बातें. जब रेवतीराम ने देखा कि मंजू को गांव में रखना ठीक नहीं है तो उस ने उसे उस की ननिहाल भेज दिया.

मंजू का ननिहाल पड़ोस के गांव दौलतयारपुर में था, जो कि सीमावर्ती थाना माधौगंज में आता था. ननिहाल में मंजू की मुलाकात फुरकान से हुई. उस की गिनती गांव के आवारा लड़कों में होती थी. फुरकान ने मंजू को देखा तो उस की खूबसूरती पर मर मिटा. वह दिनरात साए की तरह मंजू के आगेपीछे घूमने लगा. जल्दी ही दोनों ने लोगों की नजरों से बच कर मिलना शुरू कर दिया. कुछ ही मुलाकातों में मंजू को फुरकान के ऊपर इतना विश्वास हो गया कि वह उस के साथ कहीं भी भाग चलने के लिए तैयार हो गई. फुरकान रंगीन तबीयत का लड़का था. उस ने मंजू को ऐसे सब्जबाग दिखाए कि वह अपनी ननिहाल तथा घर की मानमर्यादा की चिंता किए बिना उस के साथ भाग गई.

फुरकान के पास जब तक पैसे रहे, वह मंजू के साथ प्रेमलीला में डूबा रहा. करीब 15 दिनों बाद जब उस के पास पैसे खत्म होने को आए तो दोनों की हालत खराब हो गई. कोई और रास्ता न देख दोनों अपनेअपने घर वापस लौट आए. मंजू की किस्मत वाकई खराब थी. पति किसी लायक नहीं था और प्रेमी उस का साथ नहीं निभा सका. रेवतीराम और उस की पत्नी वंदना को जब बेटी की शर्मसार कर देने वाली करतूतों की जानकारी हुई तो वे बहुत परेशान हुए. उन्हें इस बात की चिंता थी कि मंजू कहीं गलत हाथों में पड़ गई तो उस की जिंदगी नरक हो जाएगी. सोचविचार कर वे उसे अपने घर ले आए.

उन्होंने सोचा था कि बेटी घर में रहेगी तो कम से कम नजरों के सामने रहेगी. घर आने के बाद मंजू के ऊपर नजर रखी जाने लगी. मांबाप की निगरानी में मंजू के सारे कसबल ढीले पड़ गए. वह घर में अच्छी तरह रहने लगी. उस में आए इस बदलाव को देख कर सब ने समझा कि 2 बार ठोकर खा चुकी मंजू अब अपने कदम गलत रास्ते पर नहीं रखेगी. सुनील कुमार के खेतों के पास रेवतीराम के खेत थे. दोनों के बीच घर के दुखसुख की बातें होती रहती थीं. मंजू जब खेतों पर खाना पहुंचाने के लिए आती तो वह सुनील से थोड़ाबहुत हंसबोल लेती थी. सुनील 30 साल का होने के बावजूद अभी तक कुंवारा था. उस के मन में भी अपने बड़े भाइयों की तरह अपना घर बसाने की चाहत थी.

लेकिन रिश्तेदार जहां भी उस की शादी की बात करते, किसी न किसी वजह से बात बिगड़ जाती. मंजू जब उस से ज्यादा घुलमिल गई तो सुनील ने सोचा कि अगर मंजू की उस से शादी हो जाए तो दोनों का घर बस जाएगा. जो सोच सुनील की थी, कुछकुछ वैसे ही जज्बात मंजू के दिल में भी पनप रहे थे. सुनील के पास खेती के लायक जमीन थी, जिस से दोनों की जिंदगी बड़े आराम के साथ कट सकती थी. जब सुनील ने मंजू की आंखों में अपने लिए प्यार का सागर लहराते देखा तो उस से रहा नहीं गया. एक दिन हिम्मत जुटा कर उस ने अपने दिल की बात मंजू से कह दी. मंजू पहले से ही सुनील के मुंह से यह सब सुनने का इंतजार कर रही थी. उस ने उस का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया.

कुछ दिनों तक यह राज दोनों के दिलों तक ही सीमित रहा, लेकिन बाद में जब मंजू का खेतों पर आ कर सुनील से मिलनाजुलना बढ़ गया तो रेवतीराम और उस की पत्नी को लगा कि अगर मंजू को रोका नहीं गया तो वे लोग फिर से पहले की तरह उपहास के पात्र बन कर रह जाएंगे. सुनील अपने मातापिता और दोनों भाइयों के साथ रहता था. एक दिन उस ने अपनी मां राधा देवी को बताया कि वह मंजू से प्यार करता है और उस से शादी करना चाहता है. राधा देवी बेटे की बात सुन कर बहुत खुश हुई. उस ने पति और बेटों को सुनील की पसंद के बारे में बताया.

सुनील के भाइयों को जब इस बात का पता चला तो उन लोगों ने मंजू के बारे में पता लगाना शुरू किया. मंजू की बदनामी के बारे में जान कर उन्होंने सुनील को मंजू से शादी न करने की सलाह दी. लेकिन सुनील तय कर चुका था कि वह मंजू से ही शादी करेगा. ऐसा ही उस ने किया भी. घर वालों की इच्छा के विरुद्ध दोनों ने कोर्टमैरिज कर ली. शादी के बाद सुनील अपने पिता का घर छोड़ कर मंजू के साथ अलग घर में रहने लगा. मंजू और सुनील, दोनों की शादी कठिनाइयों के लंबे दौर से गुजरने के बाद हुई थी. इस के साथ ही मंजू की दुश्वारियां भी खत्म हो गई थीं. शादी के कुछ समय बाद मंजू के पैर भारी हुए तो सुनील की खुशी का ठिकाना न रहा.

समय के साथ मंजू ने एक स्वस्थ बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम उन्होंने अंश रखा. अंश के आने से दोनों का प्यार और बढ़ गया. सुनील और मंजू अपने इस छोटे से संसार में बेहद खुश थे. देखतेदेखते 3 साल का वक्त हंसतेखेलते गुजर गया. 6 नवंबर, 2014 को मंजू घर में आराम कर रही थी. तभी उस के मोबाइल पर एक मिस्डकाल आई. मंजू ने देखा तो मोबाइल नंबर अंजान था. मंजू के मन में उत्सुकता पैदा हुई कि फोन करने वाला कौन है? उस ने उस नंबर पर फोन किया तो दूसरी तरफ फोन करने वाले युवक ने अपना नाम शुभम शर्मा बताया.

अपरिचित नाम सुन कर मंजू ने फोन काट दिया. लेकिन शुभम को मंजू की आवाज बहुत अच्छी लगी, इसलिए वह बारबार फोन कर के मंजू से बातें करने की कोशिश करने लगा. पहले तो मंजू को लगा कि इस तरह की फालतू बातें करने का क्या फायदा, लेकिन जब शुभम ने बारबार फोन कर के उस से केवल फोन पर बातें करने की इच्छा प्रकट की तो उस की अधीरता देख कर मंजू ने उस से बात करना स्वीकार कर लिया. इस तरह शुभम और मंजू के बीच बातों का सिलसिला शुरू हो गया. मंजू केवल उसी समय शुभम से बातें करती थी, जब सुनील घर से बाहर होता था. धीरेधीरे मंजू को शुभम से बातें करने में मजा आने लगा.

कुछ दिनों के बाद एक समय ऐसा भी आया, जब वह बेसब्री से उस के फोन का इंतजार करने लगी. जब उस का फोन नहीं आता तो वह अधीर हो कर उस के मोबाइल पर मिसकाल कर देती थी. एक दिन फोन पर बातों के दौरान शुभम ने मंजू से मिलने की इच्छा जाहिर की. मंजू ने थोड़ी नानुकुर करने के बाद उसे मिलने के लिए अपने घर बुला लिया. जब शुभम मंजू से मिलने उस के घर में पहुंचा तो उस के दिलकश व्यक्तित्व को देख कर मन ही मन खुश हो गया. एक बच्चे की मां होने के बावजूद उस की शारीरिक बनावट में कोई कमी नहीं आई थी.

उस के दिल ने चाहा कि उसे अपनी बाहों में भींच कर खूब प्यार करे. लेकिन उस ने सब्र से काम लिया. अपनी हमउम्र शुभम को देख कर मंजू के दिल की चाहत भी बलवती हो उठी. चूंकि मंजू और शुभम फोन पर हर तरह की बातें करते रहते थे, इसलिए मंजू को उस के इरादे भांपने में देर नहीं लगी. लेकिन वह अपने इस प्रेमी को थोड़ा तड़पाना चाहती थी. पहली मुलाकात में दोनों ने जी भर कर बातें कीं. शुभम ने बताया कि वह लखीमपुर में औफीसर्स कालोनी में अपने पिता उमेश शर्मा के साथ रहता है तथा दुकान और आफिसों में शीशे के गेट तथा केबिन लगाने का काम करता है. इस काम में उसे अच्छी आमदनी होती है. बाद में जब सुनील के घर लौटने का समय हो गया तो मंजू ने उसे वापस भेज दिया.

सुनील को मंजू की इस नई प्रेमकहानी की कोई जानकारी नहीं हुई. इस के बाद शुभम उस वक्त मंजू के घर आता, जब सुनील घर से बाहर होता. एक दिन शुभम ने मंजू को अपनी बांहों में लिया तो मंजू उस से अमर बेल की तरह लिपट गई. जो आग शुभम के सीने में जल रही थी, वही मंजू के भी तनबदन में लगी थी. मंजू ने महसूस किया कि शुभम के प्यार करने के अंदाज में जो ताजगी है, सुनील के प्यार में नहीं है. उस दिन के बाद जब भी सुनील घर से लंबे समय के लिए कहीं बाहर होता, वह शुभम को फोन कर के घर बुला लेती थी.

कुछ दिनों तक मंजू और शुभम का यह प्यार लुकेछिपे चलता रहा. चूंकि सुनील के परिवार के अन्य सदस्यों का उस के घर में आनाजाना नहीं था, इसलिए मंजू इस बात से आश्वस्त थी कि उस के अवैधसंबंधों की बात दूसरों तक नहीं पहुंचेगी. अगर कोई उस से शुभम के मिलने आने के बारे में कुछ पूछता भी तो वह उसे अपने मायके के दूर का रिश्तेदार बता देती थी. एक दिन जब सुनील कहीं बाहर गया था तो मंजू ने मौका देख कर शुभम को अपने घर बुला लिया. अभी दोनों प्रेमलीला में डूबे ही थे कि अचानक घर के दरवाजे पर दस्तक हुई. मंजू ने जल्दी दरवाजा नहीं खोला तो सुनील ने दरवाजा पीटना शुरू कर दिया. दरअसल उस ने सोचा था कि मंजू या तो बाथरूम में होगी या सो गई होगी.

कुछ देर के बाद मंजू ने दरवाजा खोला तो उस की उखड़ी रंगत देख कर सुनील को आश्चर्य हुआ. मंजू की सांस धौंकनी की चल रही थी. वह उस से नजरें भी नहीं मिला पा रही थी. कुछ गलत होने की आशंका भांप कर वह अंदर कमरे में घुसा तो उस ने एक युवक को कोने में खड़े देखा. वह डर से थरथर कांप रहा था. सुनील को मंजू के अतीत की जानकारी थी. इसलिए उसे यह समझने में देर नहीं लगी कि यह युवक जो कोई भी है, मंजू का यार है. सुनील की जगह कोई और होता तो वह अपनी पत्नी और उस के यार की अच्छी खबर लेता. लेकिन सुनील ने ऐसा न कर के शुभम को फौरन घर से बाहर चले जाने के लिए कहा. शुभम किसी तरह अपनी जान बचाने की जुगाड़ में था. वह वहां से फौरन निकल गया. सुनील से मंजू से कहा कि वह अपनी गंदी आदतों से बाज आए और ऐसा कोई काम न करे, जिस के चलते उस का घरपरिवार तबाह हो जाए.

उस दिन के बाद मंजू ने काफी दिनों तक शुभम से बातें नहीं कीं. वह घर में ऐसे बन कर रहती, जैसी उसे अपनी गलती का अंदाजा हो गया हो और अब वह इसे दोहराने की गलती कभी नहीं करेगी. लेकिन सच्चाई इस दिखावे से एकदम परे थी. मंजू और शुभम अब भी एकदूसरे से बातें करते थे और मिलने के लिए नई योजना बना रहे थे. जैसे ही सुनील का ध्यान खेती के कामधंधों की ओर गया, मंजू ने फिर से शुभम को अपने घर बुलाना शुरू कर दिया. एक दिन जब वह अपनी बाइक पर मंजू से मिलने के लिए आया तो इत्तफाक से सड़क पर उसे सुनील ने देख लिया. सुनील ने उसे पहचान कर रुकने का इशारा किया. वह रुक गया तो सुनील ने उस के पास जा कर कहा कि अगर वह मंजू से मिलना चाहता है तो मिल सकता है, लेकिन इस के लिए उसे कीमत चुकानी होगी.

शुभम को सुनील की बात सुन कर सुखद हैरानी हुई. वह यह जान कर खुश हुआ कि मंजू का पति ही उसे उस से मिलने की इजाजत दे रहा था. उस ने बिना कुछ सोचे मंजू से मिलने के लिए सुनील को इस की कीमत देने की हामी भर ली. उस दिन के बाद जब भी शुभम को मंजू से मिलना होता तो वह पहले सुनील को इस की कीमत चुकाता इस के बाद उस के ही घर में उस की आंखों के सामने मंजू के साथ जी भर कर मौजमस्ती करता. सुनील की आंखों का पानी मर गया था, जो वह पैसे ले कर अपनी बीवी का सौदा कर रहा था. शुभम ने यह बात मंजू को बताई तो उस की नजर में शुभम का कद और बढ़ गया. वह उसे और भी ज्यादा प्यार करने लगी. जबकि उस की नजर में सुनील का कद बौना हो गया.

कुछ ही महीनों में सुनील ने शुभम से अपनी पत्नी मंजू के साथ गुलछर्रे उड़ाने के बदले एक लाख रुपए ले लिए. जब उस के पास रुपए नहीं बचे तो वह परेशान रहने लगा. उधर सुनील ने पैसा न देने पर शुभम के अपने घर में आने पर पाबंदी लगा दी. मंजू और शुभम, दोनों को ही यह बात नागवार गुजरी. मंजू ने शुभम के साथ शादी करने की इच्छा जाहिर की तो वह इस के लिए तैयार हो गया. इस के बाद मंजू और शुभम, दोनों मिल कर सुनील की हत्या की साजिश रचने लगे, क्योंकि सुनील के जीते जी ऐसा संभव नहीं था. इस योजना में शुभम ने अपने साथ काम करने वाले 2 हमउम्र युवकों, प्रदीप कुमार निवासी बेगमगंज, जनपद लखीमपुर खीरी तथा कुंवर सिंह उर्फ टानू निवासी सिकठिया, जनपद लखीमपुर खीरी को भी शामिल कर लिया. प्रदीप और टानू, दोनों को पहले से शुभम और मंजू के प्रेमप्रसंग की जानकारी थी.

11 मार्च को जब सुनील खेत पर जाने लगा तो उस ने मंजू से कहा कि वह आज रात खेत पर बने ट्यूबवेल वाले कमरे पर रुकेगा. क्योंकि उसे खेतों में सिंचाई करनी है. मंजू न जाने कब से ऐसे मौके के इंतजार में थी. उस ने फौरन अपने प्रेमी शुभम के मोबाइल पर फोन कर के कहा कि आज मौका अच्छा है, सुनील का काम तमाम कर दो. मंजू की बात सुन कर शुभम के शरीर में जैसे बिजली सी दौड़ गई. वह अपने साथी प्रदीप और टानू के साथ बाइक से हरदोई के लिए रवाना हो गया. रात साढ़े 8 बजे वह मंजू के गांव जा कर उस से मिला. मंजू ने उसे खेतों पर लगे ट्यूबवेल के कमरे के बारे में अच्छी तरह समझा दिया. शुभम बाइक अंधेरे में सड़क के किनारे खड़ी कर के दबे पांव अपने साथियों के साथ ट्यूबवेल के कमरे के बाहर पहुंचा, जहां सुनील अपने साथी ज्ञान सिंह के साथ सो रहा था.

2 आदमियों को वहां सोते देख कर तीनों सकपकाए, लेकिन शुभम किसी भी हाल में सुनील को छोड़ना नहीं चाहता था. उस ने सुनील की तरफ इशारा कर के अपने दोनों साथियों को बता दिया कि वही सुनील है. इस के बाद वे तीनों धड़धड़ाते हुए कमरे में घुस गए. सुनील के साथ सो रहा उस का साथी ज्ञान सिंह उन लोगों को देखते ही वहां से भाग खड़ा हुआ. इस के बाद टानू और प्रदीप ने सुनील के हाथपैर पकड़े और शुभम ने साथ लाए चाकू से उस पर ताबड़तोड़ वार करने शुरू कर दिए, जिस से सुनील की मौत हो गई. इस के बाद इन लोगों ने उस की लाश कमरे में बने कुएं में डाल दी.

सुनील की हत्या करने के बाद तीनों रातोंरात लखीमपुर खीरी लौट गए. सुनील की हत्या करने की बात शुभम ने मंजू को फोन कर के बता दी. मंजू यह सोच कर खुश हो गई कि उस के रास्ते का कांटा सदा के लिए दूर हो गया. उधर ज्ञान सिंह ने गांव में आ कर सुनील के घर वालों को बताया कि कुछ बदमाशों ने सुनील के ऊपर जानलेवा हमला किया है. जब तक ज्ञान सिंह उस के घर वालों के साथ वहां पहुंचता, सुनील की मौत हो चुकी थी. 12 मार्च की सुबह सुनील के बड़े भाई अनिल ने इस घटना की सूचना मल्लावां कोतवाली को दी. सूचना पा कर मल्लावां थाने के इंसपेक्टर श्याम बहादुर सिंह टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

ट्यूबवेल का 8×8 फुट का कमरा खेत के एक कोने में बना था. उस कमरे में 5×5 फुट के हिस्से में कुंआ था, जोकि 80 फुट गहरा था. इसी कुएं में सुनील की लाश पड़ी थी. श्याम बहादुर सिंह ने गांव वालों की मदद से लाश को कुएं से निकलवाया. मृतक सुनील के सीने व पेट पर लगभग 70-80 घाव थे, गले में रेते जाने के निशान भी मौजूद थे. निरीक्षण के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय हरदोई भेज दिया. इस के बाद श्याम बहादुर सिंह अनिल को ले कर कोतवाली आ गए. वहां उन्होंने अनिल की तहरीर पर सुनील की हत्या का मामला गांव की ही एक युवती अनुराधा और 2 अज्ञात व्यक्तियों के विरुद्ध दर्ज करा दिया.

श्याम बहादुर सिंह ने इस मामले की तहकीकात शुरू की तो पता चला अनुराधा टीचर थी. उस की सुनील से दुश्मनी तो थी, लेकिन उस का सुनील की हत्या में कोई हाथ नहीं था. मोबाइल सर्विलांस के आधार पर जब मृतक सुनील और उस की पत्नी मंजू की काल डीटेल्स निकाली गई तो श्याम बहादुर सिंह को मंजू के मोबाइल की काल डिटेल्स पर संदेह हुआ, क्योंकि एक नंबर पर उस की लंबीलंबी बातें होती थीं. घटना वाली रात को भी मंजू की उस नंबर पर कई बार बात हुई थी. जब उस नंबर के बारे में जांचपड़ताल की गई तो पता चला कि वह नंबर लखीमपुर खीरी के शुभम शर्मा के नाम है. मल्लावां थाने की पुलिस ने शुभम के पते पर दबिश दी तो वह अपने घर से फरार मिला. पुलिस टीम खाली हाथ वहां से लौट आई.

इस बीच मृतक की पत्नी मंजू के बारे में कोतवाली प्रभारी को जानकारी मिली कि सुनील की अनुपस्थिति में मोटर साइकिल पर सवार एक युवक उस से मिलने के लिए आता था. यह जानकारी श्याम बहादुर सिंह के लिए बड़े काम की थी. उन्होंने शुभम को पकड़ने के लिए मुखबिरों का जाल बिछा दिया.  27 मार्च को मुखबिर ने श्याम बहादुर सिंह को सूचना दी कि सुनील हत्याकांड में शामिल शुभम शर्मा अपने साथियों के साथ मल्लावां रेलवे स्टेशन पर आएगा. मुखबिर की सूचना पर श्याम बहादुर सिंह ने उसी दिन दोपहर 2 बजे शुभम को उस के दोनों साथियों प्रदीप और टानू के साथ रेलवे स्टेशन के पास से गिरफ्तार कर लिया. वे लोग सफेद रंग का जिस टीवीएस स्पोर्ट्स बाइक से आए थे, वह भी पुलिस ने अपने कब्जे में ले ली.

जब थाने में ला कर शुभम शर्मा और उस के दोनों साथियों से पूछताछ की गई, तो पहले तो उन लोगों ने सुनील की हत्या में शामिल होने से साफ इनकार कर दिया. लेकिन जब शुभम को उस के मोबाइल की काल डिटेल्स दिखाई गई तो उस का रंग सफेद पड़ गया. अंतत: उस ने अपने साथियों प्रदीप और टानू के साथ मिल कर सुनील की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया. हत्या की इस योजना में मंजू भी शामिल थी. उसी दिन शाम को मंजू को भी उस के घर से गिरफ्तार कर लिया गया. शुभम की निशानदेही पर सुनील की हत्या में इस्तेमाल किया गया चाकू घटनास्थल से 100 मीटर की दूरी पर एक झाड़ी से बरामद हुआ.

मुकदमे में मंजू, शुभम शर्मा उर्फ लल्ला, प्रदीप कुमार और टानू उर्फ कुंवर सिंह को शामिल कर के पुलिस ने चारों को 28 मार्च को सीजेएम की अदालत में पेश किया, जहां से सभी को न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारि

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