Hindi Story: साधारण परिवार में पलाबढ़ा काजी कयूम किसी भी तरह रुपए जमा कर बड़ा आदमी बनना चाहता था. उस ने 2 पैसे वाली बेवा औरतों से शादी कर उन्हें ठिकाने लगा दिया, लेकिन जब तीसरी का कत्ल किया तो…
मैं ने फाइल पर हाथ मारते हुए कहा, ‘‘वकील साहब मेरे मुवक्किल को मुजरिम कह रहे हैं, यह गलत बात है. जब तक जुर्म साबित नहीं हो जाता, मेरे मुवक्किल को मुजरिम नहीं कहा जा सकता.’’
‘‘ऐतराज दुरुस्त है.’’ जज ने कहा, ‘‘वकील साहब अपने बयान से खतरनाक मुजरिम हटा दीजिए.’’
वादी वकील मुझे घूर कर रह गया. मैं ने अपने मुवक्किल की जमानत के लिए जोर देते हुए कहा, ‘‘योरऔनर, इस मुकदमे को चलते 4 महीने हो गए हैं. मेरे मुवक्किल पर कत्ल का आरोप है. लेकिन वादी अब तक कोई भी ठोस सबूत उस के खिलाफ पेश नहीं कर सका, न ही कोई खास काररवाही हो सकी है. मैं ने केस आज ही हाथ में लिया है.’’
‘‘बेग साहब, काररवाही धीमी होने की वजह वादी और बचाव, दोनों की जिम्मेदारी है. इस स्थिति में जमानत मंजूर नहीं हो सकती.’’ जज ने कहा. बचाव वकील की लापरवाही की ही वजह से यह मुकदम्मा मेरे पास आया है. मुझे पता है कि कत्ल के केस में जमानत वैसे भी मुश्किल से मिलती है. पहले वाले वकील ने केस में जरा भी मेहनत नहीं की थी. मेरा मुवक्किल खलील एक बेवा मां का बेटा था. मध्यमवर्गीय लोग थे. खलील अपनी बेवकूफी और बदकिस्मती से एक कत्ल के केस में फंस गया था. काजी कयूम एक बेहद शातिर और चालाक आदमी था. एक फ्लैट में उस ने अपना औफिस खोल रखा था.
उस की काजी ट्रेडिंग नाम से एक छोटी सी कंपनी थी. उस की यह कंपनी कई काम करती थी. एक्सपोर्ट, इंपोर्ट, मैनुफैक्चरिंग, सप्लाई आदि. वह किसी आदमी को मायूस नहीं लौटाता था. असल में वह कुछ नहीं था, महज एक फ्रौड था, जो सिर्फ जुबान से सभी को उल्लू बना रहा था. औफ द रिकौर्ड उस का असली काम था लोगों से बड़ीबड़ी रकमें इनवेस्ट करवाना, जिस पर वह बहुत ज्यादा ब्याज देता था. वह देखभाल कर, सीधेसादे, उम्र वाले रिटायर लोगों या जरूरतमंदों को शिकार बनाता था. काजी जो ब्याज देता था, वह बैंक से बहुत ज्यादा यानी 10 फीसदी होता था, इसलिए लोग लालच में उस के जाल में फंस जाते थे.
खलील के वालिद के मरने के बाद उन के डिपार्टमेंट से अच्छीखासी रकम मिली थी. उस की मां ने समझदारी से काम लेते हुए मकान की बाकी किस्तें एक साथ भर कर मकान अपने नाम करा लिया था. बाकी के छोटेमोटे कर्जे अदा करने के बाद उस के पास करीब 10 लाख रुपए बच गए थे. उसे 9 हजार रुपए पेंशन मिल रही थी. खलील एक प्रिंटिंग प्रेस में नौकरी करता था, जहां से उसे 10 हजार रुपए मिलते थे. इतने में मांबेटे का अच्छी तरह से गुजरबसर हो रहा था. लेकिन खलील इस नौकरी से संतुष्ट नहीं था. वह कोई दुकान किराए पर ले कर अपना कारोबार शुरू करना चाहता था. उस ने कारोबार करने के लिए मां से 1 लाख रुपए मांगे. तब मां ने कहा, ‘‘खलील, तुम अभी छोटे और नासमझ हो. मैं इतनी बड़ी रकम तुम्हारे हाथ में नहीं दे सकती.’’
लेकिन जब खलील ने बहुत जोर दिया तो उस ने कहा, ‘‘अच्छा मैं सोच कर बताऊंगी. तुम्हारी नौकरी अच्छी है, इसलिए मेरे खयाल से कारोबार के झंझट में मत पड़ो.’’
खलील रोज बस से अपनी नौकरी पर जाता था. एक दिन बस में उस की असद से मुलाकात हो गई. वह 28-29 साल का नवजवान था. वह टीवी की दुकान पर सेल्समैन था. एक दिन उस ने खलील से कहा, ‘‘अगर मैं 2 लाख रुपए जमा कर लूं या कहीं से जुगाड़ कर लूं तो मैं अपनी दुकान खोल सकता हूं.’’
खलील भी अपनी दुकान खोलने के चक्कर में था. अगर उसे कहीं से 1 लाख रुपए मिल जाते तो वह भी अपनी दुकान खोल सकता था. इसीलिए उस ने पूछा, ‘‘भाई, यह बताओ तुम इतने रुपए का जुगाड़ कहां से करोगे?’’
‘‘यार, काजी कयूम की एक इनवेस्टमेंट कंपनी है. उस में मैं ने अब्बा के 5 लाख रुपए लगवा दिए हैं. यह कंपनी बहुत ज्यादा ब्याज देती है. 5 लाख रुपए पर हमें 50 हजार रुपए महीने मिल रहे हैं.’’
‘‘क्या, महीने में या एक साल में?’’ खलील ने हैरानी से पूछा.
‘‘भाई, महीने में 50 हजार रुपए मिल रहे हैं. 5 महीने में मुझे ढाई लाख रुपए मिल जाएंगे. वे रुपए अब्बा से ले कर मैं अपनी दुकान खोल लूंगा. मैं ने अब्बा को बताया है कि 5 प्रतिशत ब्याज मिलेगा. इस तरह मुझे एक लाख रुपए वैसे ही मिल जाएंगे. बाकी मांग लूंगा. मेरा काम हो जाएगा.’’ असद ने कहा.
‘‘भई, यह तो बहुत बढि़या स्कीम है. इतना ब्याज तो कोई भी बैंक नहीं देता. मुझे लगता है, मैं भी इस कंपनी में पैसा लगा दूं.’’ खलील ने कहा.
अगले 10 मिनट तक असद उसे काजी कयूम की इनवेस्टमेंट कंपनी के बारे में बताता रहा. उस कंपनी के बारे में जान कर खलील बहुत कुछ सोचने पर मजबूर हो गया. ब्याज के बारे में जानकर वह लालच में आ गया. अगर वह अम्मा को राजी कर के 10 लाख रुपए 2 महीने के लिए इनवेस्ट करा दे तो उसे 2 लाख रुपए मिल जाएंगे. उस में से एक लाख रुपए ले कर बाकी रुपए वह अम्मा को वापस कर देगा. मूल रकम के साथ एक लाख रुपए उन्हें ब्याज भी मिल जाएगा. वह खुश हो जाएंगी. इस के बाद उस ने असद से पूछा, ‘‘जब तुम्हारे अब्बा के पास 5 लाख रुपए थे तो तुम ने उन से रुपए क्यों नहीं ले लिए?’’
‘‘वह मुझ पर इतना भरोसा नहीं करते थे कि मुझे अपनी रकम दे देते. लंबे फायदे की बात है, शायद इसीलिए रुपए दिए हैं.’’ असद ने कहा.
‘‘मेरी भी यही मुश्किल है. अम्मा मुझे भी नादान समझती हैं, इसलिए बड़ी रकम देना नहीं चाहतीं. मैं भी ज्यादा ब्याज बता कर ही रुपए मांगूंगा.’’
उस दिन खलील का मन काम में नहीं लगा. बारबार वह रकम इनवेस्ट करने के बारे में ही सोचता रहा. काफी सोचने के बाद एक आइडिया उस के दिमाग में आ गया. अगले दिन उस ने मां को शहर में होने वाली ठगी के बारे में खूब विस्तार से बताया. यह सब सुन कर अम्मा थोड़ी परेशान हो गईं. इस के अगले दिन भी उस ने अम्मा को ठगी के 2-4 किस्से सुना दिए. 4-5 दिनों तक वह इसी तरह करता रहा. इस के बाद इनवेस्टमेंट स्कीम के बारे में इस तरह समझाया कि ठगी से डरी हुई अम्मा 10 लाख रुपए इनवेस्ट करने को राजी हो गईं, क्योंकि फायदा खासा था. रकम जस की तस रहती, 2 महीने में खलील की दुकान भी खुल जाती.
असद खलील को ले कर काजी कयूम के औफिस गया. बड़ी सी मेज के पीछे काजी बैठा था. वह दुबलापतला छोटे कद का शातिर आदमी था. आने की वजह पूछने पर खलील ने कहा, ‘‘मैं 10 लाख रुपए आप की कंपनी में इनवेस्ट करना चाहता हूं.’’
‘‘कितने दिनों के लिए इनवेस्ट करना चाहते हो?’’ काजी ने पूछा.
‘‘मैं सिर्फ 2 महीने के लिए इनवेस्ट करना चाहता हूं.’’
‘‘भई, फिर तो मुश्किल है. बात यह है कि मैं 6 महीने से कम के लिए रकम इनवेस्ट नहीं कराता, क्योंकि कारोबार में रकम लगाना तो आसान है, लेकिन निकालना बहुत मुश्किल. फंसी रकम को निकालना बहुत दुश्वार है.’’
असद और खलील उस का मुंह देखने लगे. उन्हें शीशे में उतारने और अपनी बात उन के दिमाग में बैठाने के लिए उस ने 10 दलीलें दीं. अंत में उस ने कहा, ‘‘देखो भाई, नुकसान से बचने के लिए मैं ने कुछ अलग नियम बना रखे हैं, जैसे एक महीने के लिए इनवेस्ट करोगे तो 2 प्रतिशत ब्याज मिलेगा, 2 महीने पर 5 प्रतिशत और 6 महीने पर 10 प्रतिशत. इस तरह मैं कारोबार में नुकसन से बच सकता हूं.’’
‘‘यह हमारे लिए घाटे का सौदा होगा.’’ खलील ने कहा.
‘‘इसीलिए तो कह रहा हूं कि 6 महीने के लिए पैसे जमा कराओ.’’ काजी ने कहा.
काफी बातचीत के बाद खलील इस नतीजे पर पहुंचा कि काजी की बात मान कर रकम 6 महीने के लिए इनवेस्ट कराने के लिए मां को राजी करे. महीने के अंत में एक बड़ी रकम उन के हाथ पर रखेगा तो वह खुद ही खुश हो कर 6 महीने के लिए इनवेस्ट करने को राजी हो जाएंगी. इस तरह 2 महीने में खलील को दुकान खोलने के लिए रुपए मिल जाएंगे. मां को भरोसे में ले कर वह उन्हें सारी बात समझा देगा. यह सब सोच कर वह 6 महीने के लिए रुपए जमा कराने के लिए राजी हो गया. इस तरह खलील ने 10 लाख रुपए 6 महीने के लिए इनवेस्ट कर दिए.
महीन भर बाद वह असद के साथ अपने ब्याज के रुपए लेने काजी के औफिस पहुंचा तो काजी ने उसे 10 प्रतिशत के हिसाब से एक लाख रुपए दे दिए. असद को दूसरे महीने का ब्याज भी मिल गया. खुशीखुशी खलील मां के पास पहुंचा और उसे एक लाख रुपए दे कर बोला, ‘‘ये रुपए मैं रख लेता हूं. अगले महीने के रुपए ले कर बाकी के रुपए आप को दे दूंगा.’’
एक लाख रुपए देख कर मां खुश हो गई. ब्याज से खलील की दुकान खुल जाने की बात जान कर उसे बड़ी तसल्ली मिली. इसलिए खुशी से उस ने पैसे दे दिए, ताकि कुछ सामान खरीद कर वह काम शुरू कर सके. मां को खुश देख कर खलील ने कहा, ‘‘अम्मा, हमें ब्याज में एक मोटी रकम मिल रही है, इसलिए हम अपनी रकम 2 महीने में वापस लेने के बजाय 6 महीने में लें, जिस से हमें काफी फायदा हो जाए.’’
मां भी लालच में आ गई और राजी हो गई. अगले महीने भी सही समय पर ब्याज की रकम मिल गई. खलील ने नौकरी छोड़ कर अपनी दुकान शुरू कर दी. उस की दुकान भी चलने लगी. तीसरे महीने का ब्याज मिलने में अभी एक हफ्ता बाकी था कि असद परेशान सा उस के पास आ कर कहने लगा, ‘‘यार, काजी कयूम 3-4 दिनों से अपने औफिस में नहीं मिल रहा है. अपने पैसों के लिए मैं कई चक्कर काट चुका हूं. वह मिल ही नहीं रहा है.’’
‘‘वह रहता कहां है? उस के घर के बारे में पता करो.’’
‘‘काजी की सेक्रैट्री कंवल से कई बार पूछा, वह कहती है कि उसे नहीं मालूम. मुझे मालूम है, वह झूठ बोल रही है.’’
खलील का पैसा मिलने में अभी एक हफ्ता बाकी था. वह भी परेशान हो गया. दोनों ही मिडल क्लास परिवारों से थे. उन के लिए यह रकम बहुत बड़ी थी. अगले दिन दोनों काजी कयूम के औफिस पहुंचे. वहां सेक्रैट्री कंवल बैठी थी. काजी के बारे में पूछने पर उस ने कहा, ‘‘उन्हें तेज बुखार है, वह आराम कर रहे हैं. एकदो दिनों में ठीक हो जाएंगे तो औफिस आएंगे.’’
खलील और असद नीचे खड़ी काजी की फिएट देख चुके थे. दोनों बिना कुछ कहे काजी के कमरे की ओर बढ़े तो कंवल उन्हें रोकने लगी. लेकिन वे जबरदस्ती काजी की केबिन में घुस गए. काजी अपनी केबिन में भलाचंगा बैठा था. साफ था, उसी के कहने पर कंवल बहाने बना रही थी. खलील और असद को देख कर काजी घबरा गया. उस ने हैरानी से पूछा, ‘‘तुम… तुम दोनों… अंदर कैसे आ गए?’’
‘‘हम आप की खैरियत पता करने आए हैं. सुना है, आप को तेज बुखार है.’’
‘‘बैठो…बैठो.’’ काजी ने बौखला कर कहा, ‘‘दरअसल, मेरी तबीयत ठीक नहीं थी.’’
‘‘आप 4 दिनों से कहां थे? मैं ने कई चक्कर लगाए.’’ असद ने कहा.
‘‘भई कारोबार में उतारचढ़ाव आते ही रहते हैं. मैं ने 10 लाख रुपए का माल मिडल ईस्ट भेजा था. उस की रिकवरी में देर हो रही थी, उसी के उलझन में फंसा था.’’ काजी ने कहा.
असद ने चिढ़ कर कहा, ‘‘आप की उलझन ने मेरा तो सत्यानाश मार दिया. अभी तक इस महीने के मेरे पैसे नहीं मिले.’’
‘‘6 दिनों बाद मेरे पैसों की भी तारीख है.’’ खलील ने याद दिलाया.
‘‘बिलकुल भई. तुम लोग चिंता क्यों करते हो. आज ही चेक कैश हो जाएगा. उस के बाद तुम्हारी रकम दे दूंगा.’’
इस के बाद उस ने इतनी विनम्रता से उन्हें समझाया कि वे संतुष्ट हो कर चले आए. काजी बहुत चालाक और शातिर आदमी था, दोनों को तसल्ली और दिलासा दे कर उस ने विदा कर दिया था. लेकिन उन के दिल में एक डर बैठ गया था कि कहीं काजी उन्हें लंबी चपत न लगा दे.
3 दिनों बाद खलील की असद से मुलाकात हुई तो उस का चेहरा उतरा हुआ था. उस ने उदासी से कहा, ‘‘यार, काजी कयूम एक बार फिर गायब हो गया है. मुझे तो वह आदमी फ्राडिया लगता है. मुझे लगता है वह मेरे पैसे नहीं देना चाहता, लेकिन मैं उस से एकएक पाई वसूल लूंगा. मैं ही जानता हूं कि मैं ने अब्बा को किस मुश्किल से समझाया था.’’
असद की बातों से खलील भी परेशान हो उठा. उस ने पूछा, ‘‘उस की सेक्रैट्री कंवल क्या कहती है?’’
‘‘वह कह रही है कि शहर से बाहर गया है, पर उस के औफिस में जब भी जाओ, 3-4 लोग बैठे उस का इंतजार करते रहते हैं. अगर काजी बाहर गया है तो वे किस से मिलने आते हैं?’’ असद ने कहा.
‘‘यार, काजी मुझे पक्का फ्राडिया लगता है. उस दिन भी उस ने कंवल से झूठ कहलाया था, जबकि वह अंदर ही बैठा था. अब वह हम से बच रहा है. यार मुझे तो अभी 2 महीने का ही ब्याज मिला है. तुम्हारे सुझाने पर ही मैं ने पैसे इनवेस्ट किए थे. अगर काजी ने मेरे साथ भी यही किया तो मैं बरबाद हो जाऊंगा.’’ खलील लगभग रुआंसा हो गया.
‘‘यार घबराओ मत, मैं भी तो फंसा हुआ हूं. आज फिर उस के औफिस चलते हैं, कुछ न कुछ तो होगा ही.’’ असद ने दिलासा दिया.
दोनों काजी के औफिस पहुंचे और कंवल से काजी के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘अभी 20 मिनट पहले ही वह घर गए हैं.’’
बात बढ़ी तो वहां बैठे लोगों ने वजह पूछी. वजह जानने के बाद उन्होंने कहा कि वे भी काजी के इंतजार में बैठे हैं. उन्होंने भी मोटीमोटी रकमें इनवेस्ट कर रखी है. 3 महीने तक तो उन्हें ब्याज के पैसे मिले, अब वे भी रोज चक्कर लगा रहे हैं. काजी मिलता ही नहीं है. यह सेक्रैट्री बहाने बना कर टाल देती है.
‘‘यह तो सरासर जालसाजी है. हम ने भी उस के पास मोटी रकम इनवेस्ट कर रखी है. वह हमें भी टाल रहा है.’’ असद ने कहा.
सभी अपनाअपना रोना रोने लगे, उन लोगों ने भी लाखों रुपए इनवेस्ट कर रखे थे. सभी को 2 या 3 महीने ब्याज के रुपए मिले थे, उस के बाद सभी चक्कर लगा रहे थे. खलील और असद नाकाम हो कर लौट आए. खलील के पास अभी कुछ करने के लिए 3 दिन बाकी थे, पर असद, फैजान, सरवर और नूरखां बहुत परेशान और गुस्से में थे. उन की तारीखें निकल चुकी थीं. चारों ने काजी के औफिस में खूब हंगामा किया. काजी को घेर लिया और तोड़फोड़ भी की. इस के बाद काजी ने पुलिस बुला ली.
पुलिस चारों को गिरफ्तार कर के ले गई. बाद में चारों बड़ी मुश्किल से दे दिला कर पुलिस के चंगुल से छूटे. यह सुन कर खलील के पांवों तले से जमीन निकल गई. उस ने किसी तरह काजी के घर का पता लगा लिया. अगले दिन खलील काजी के घर पहुंच गया. उस का नरसरी के इलाके में खूबसूरत बंगला था, जहां वह अपनी खूबसूरत बीवी नौशीन के साथ रहता था. खलील को देख कर काजी हैरानपरेशान रह गया. खलील ने कहा, ‘‘आज मेरे पैसों की तारीख है. आप मेरे पैसे दे दें. मुझे तो डर लग रहा था कि कहीं आप उन चारों की तरह मुझे भी पुलिस के हवाले न कर दें.’’
काजी कयूम ने बड़े दोस्ताना लहजे में कहा, ‘‘अरे भाई, ऐसी बात नहीं है. वे तोड़फोड़ कर रहे थे, इसलिए पुलिस बुलानी पड़ी. मैं एक कारोबारी आदमी हूं, मुझे सब की तारीखें याद रहती हैं. मैं सब के रुपए दूंगा. थोड़ा धैर्य से काम लें. तुम्हारा दोस्त असद तो मारपीट और तोड़फोड़ कर रहा था. वह उन के साथ मिल कर गुंडागर्दी कर रहा था. उन्हें भी भड़का रहा था. इसलिए मजबूरन मुझे यह सब करना पड़ा. बिजनैस में जल्दबाजी नहीं होती. मैं तुम्हारे रुपए जरूर दूंगा. अभी तो शाम हो गई है, तुम कल सुबह 11 बजे यहीं आ जाना. मैं तुम्हें बैंक ले चलूंगा और तुम्हारे रुपए वहीं दे दूंगा.’’
काजी ने इतने दोस्ताना अंदाज में बात की थी कि खलील को तसल्ली हो गई. वह जाने के लिए खड़ा हुआ तो काजी ने कहा, ‘‘गुस्से और गुंडागर्दी से काम नहीं बनेगा. अपने दोस्त असद को भी समझाओ. उस के पैसे मिल जाएंगे.’’
दूसरे दिन ठीक साढ़े 10 बजे खलील काजी कयूम के बंगले पर पहुंच गया. घंटी बजाने पर गेट नौशीन ने खोला. वह 28-29 साल की खूबसूरत औरत थी. खलील ने कहा, ‘‘मैं खलील हूं, मुझे काजी कयूम ने बुलाया था.’’
‘‘आप वक्त से पहले आ गए.’’ उस ने सपाट लहजे में कहा.
‘‘मैं आधा घंटा इंतजार कर लूंगा.’’ खलील ने जल्दी से कहा.
‘‘आप इंतजार में अपना वक्त बेकार न करें. वह किसी जरूरी काम से बाहर गए हैं. शाम से पहले नहीं आएंगे.’’
‘‘मुझे बुला कर वह कहां चले गए?’’ खलील ने परेशान हो कर पूछा.
‘‘यह तो मुझे नहीं मालूम कि वह कहां गए हैं. इतना जानती हूं कि औफिस नहीं गए हैं. आप के लिए एक मैसेज छोड़ गए हैं कि आप रात 8 बजे आ कर अपने रुपए ले जाइए.’’ नौशीन ने कहा.
नौशीन गेट के अंदर बंगले के लौन में थी, जबकि खलील गेट के बाहर खड़ा था. काजी का मैसेज सुन कर उसे थोड़ा सुकून मिला. सामने हसीन औरत वादा कर रही हो तो कुछ कहा भी नहीं जा सकता था. उस ने कहा, ‘‘ठीक है, मैं रात 8 बजे आ जाऊंगा. आप काजी साहब को बता दीजिएगा.’’
‘‘जरूर बता दूंगी.’’ नौशीन ने मुसकरा कर कहा.
खलील के सिर पर तब आसमान टूट पड़ा, जब उसी दिन एक बजे पुलिस ने उसे उस की दुकान से नौशीन के कत्ल के इल्जाम में गिरफ्तार कर लिया. यह थी मेरे मुवक्किल खलील की दुखभरी कहानी. खलील ने कत्ल के इल्जाम से साफ इनकार कर दिया था. पिछली पेशी में मैं ने उस की जमानत की कोशिश की थी, पर नाकाम रहा था. अब तक मैं ने मुकदमें की फाइल ठीक से देख ली थी और जरूरी जानकारियां भी जुटा ली थीं. असद ने जानकारियां जुटाने में मेरी बहुत मदद की थी.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, नौशीन को गला दबा कर मारा गया था. पिछले 4 महीने में मुकदमे में कुछ खास नहीं हुआ था. इस पेशी पर जज ने नए सिरे से मुल्जिम का बयान रिकौर्ड कराया. वादी वकील ने पूछना शुरू किया, ‘‘मकतूल नौशीन से तुम्हारी क्या दुश्मनी थी?’’
‘‘मेरी उस से कोई दुश्मनी नहीं थी. मेरी उस से एक बार मुलाकात हुई थी, वह भी मैं गेट के बाहर था और वह अंदर लौन में. यह बात मैं अपने बयान में पहले भी बता चुका हूं.’’ खलील ने कहा.
‘‘तुम्हारा झगड़ा तो काजी कयूम से था.’’
‘‘जी नहीं, मेरा उन से भी कोई झगड़ा नहीं था. मुझे उन से अपने पैसे लेने थे.’’
‘‘तब तुम ने उन की बीवी नौशीन का कत्ल क्यों किया?’’
‘‘मुझ पर झूठा इल्जाम क्यों लगा रहे हैं. मैं ने कहा न कि मैं ने कत्ल नहीं किया. घटना वाले दिन मैं काजी से मिलने गया था. वह नहीं था तो मैं गेट के बाहर से बात कर के लौट आया था.’’
‘‘तुम्हें काजी के घर में किसी चीज की तलाश थी, जब नौशीन ने तुम्हें रोका तो तुम ने उस का गला दबा दिया?’’
‘‘यह झूठ है, मैं ने ऐसा कुछ नहीं किया. मैं घर के अंदर गया ही नहीं. मैं गेट के बाहर से ही लौट आया था.’’
वादी वकील ने 4-5 सवाल और किए, पर कोई नतीजा नहीं निकला. इस के बाद उस ने पैंतरा बदला, ‘‘योरऔनर, 3 दिनों पहले मुल्जिम के खास दोस्त असद ने 2-4 बेकार लोगों के साथ काजी कयूम के औफिस में मारपीट और तोड़फोड़ की थी. काजी ने सब को गिरफ्तार करा दिया था. उसी का बदला लेने के लिए इस ने काजी की बीवी नौशीन का कत्ल किया है.’’
मैं ने इस का जोरदार विरोध किया, ‘‘आई औब्जेक्ट योरऔनर, वादी वकील बारबार पैंतरा बदल रहे हैं. पहले इन्होंने कहा कि मुल्जिम कोई चीज तलाश रहा था, जब मकतूला ने रोका तो उस का गला दबा दिया. अब कह रहे हैं कि अपने दोस्त असद की गिरफ्तारी का बदला लेने के लिए नौशीन का कत्ल कर दिया. ये इन की बचकानी वहजे हैं.’’
‘‘कैसी बचकानी दलील है?’’ वादी वकील ने कहा.
‘‘जनाब, असद और खलील की कोई बहुत गहरी दोस्ती नहीं थी. बस में मुलाकात हुई थी. इस के बाद वे कभीकभी मिलने लगे थे. ऐसी कोई दोस्ती नहीं थी कि वह उस के लिए कत्ल जैसा जुर्म करता.’’
जज ने मेरी बात में वजन महसूस किया. उस ने कुछ नोट किया. इस के बाद जिरह की बारी मेरी थी.
मैं ने कहा, ‘‘मि. खलील, आप मकतूला को कब से जानते हैं, आप का उस से क्या ताल्लुक था?’’
‘‘मेरी मकतूला से सिर्फ एक मुलाकात हुई थी, वह भी गेट पर खड़ेखड़े. मकतूला के शौहर काजी कयूम से मेरे कारोबारी संबंध थे, करीब 3 महीने से.’’
‘‘किस किस्म के संबंध थे. आप के काजी कयूम से?’’
इस बार उस ने 10 लाख रुपए के इनवेस्ट की पूरी कहानी सुना दी. आखिर में कहा, ‘‘मैं तीसरे महीने का ब्याज लेने काजी कयूम के घर गया था, क्योंकि वह औफिस में मिल नहीं रहा था. मैं औफिस जाना भी नहीं चाहता था, क्योंकि वहां पहले ही हंगामा हो चुका था. काजी ने मुझे 11 बजे पैसे लेने के लिए बुलाया था.’’
‘‘तुम्हें असद, सरवर, नूर खां के पैसों की कोई फिक्र नहीं थी. तुम अकेले ही अपना पैसा लेने चले गए थे?’’
‘‘साहब, ऐसे मौके पर सब को अपनीअपनी पड़ी होती है.’’
मैं ने अपने सवालों के जरिए काजी का दूसरा रूप अदालत के सामने रख दिया, जो एक फ्राडी इनवेस्टर का था. खलील ने एकएक बात खोल कर रख दी थी. अन्य लोगों के पैसे डूबने की बात भी बता दी थी. वादी वकील ने 2 बार ऐतराज किया, पर जज ने रद्द कर दिया. खलील के जवाबों का खुलासा करते हुए मैं ने कहा, ‘‘योरऔनर काजी टे्रडिंग कंपनी के अलावा इनवेस्टमेंट का भी काम करता था, जो सरासर फ्राड पर आधारित था. इस ने जिन लोगों के पैसे इनवेस्ट कराए. अब वे चक्कर काट रहे हैं. 5 हमारे सामने ही मौजूद हैं. फैजान के 5 लाख, सरवर ने 8 लाख, नूरखां ने 3 लाख, असद के 5 लाख, खलील ने 10 लाख रुपए इनवेस्ट किए थे. सारे लोग तो झूठ नहीं बोल रहे हैं. मुल्जिम अपने पैसे लेने काजी के घर गया तो उसे कत्ल के इल्जाम में फंसा दिया गया. बाकी लोगों के पैसे नहीं मिले हैं.’
जज ने मेरी बातें ध्यान से सुनी और वादी वकील से पूछा, ‘‘क्या काजी कयूम अदालत में मौजूद है?’’
उस के ‘हां’ कहने पर काजी कयूम को विटनेस बौक्स में बुलाया गया. हलफ लेने के बाद जज ने उस से काजी इनवेिस्टंग के बारे में पूछा. काजी ने अदब से जवाब दिया, ‘‘हुजूर, मेरी सिर्फ काजी ट्रेडिंग कंपनी है, जो एक्सपोर्टइंपोर्ट का काम करती है. काजी इनवेस्टिंग जैसी झूठी व फ्राडी कंपनी से मेरा कोई ताल्लुक नहीं है, न ही मेरी ऐसी कोई कंपनी है.’’
वादी वकील फौरन बोला, ‘‘जज साहब, बेग साहब मेरे मुवक्किल पर झूठे इल्जाम लगा रहे हैं.’’
जज ने मुझ से पूछा, ‘‘मि. बेग, काजी साहब तो किसी इनवेस्टिंग कंपनी की बात नहीं मान रहे हैं, आप के पास कोई दस्तावेजी सबूत है?’’
‘‘दस्तावेजी सुबूत तो नहीं है, क्योंकि फ्राड का काम करने वाले बड़ी चालाकी से काम करते हैं, ताकि पकड़ में न आएं. काजी ने भी सादे कागजों पर 10 लाख रुपए की रसीद दी थी, उस में भी उस के साइन फर्जी हैं. ब्याज इतना ज्यादा था कि लोग लालच में अंधे हो कर बिना सोचेसमझे पैसे लगा रहे थे. मैं सिर्फ लुटने वाले लोगों को बुलवा कर गवाही दिला सकता हूं.’’
इसी के साथ अदालत का वक्त खत्म हो गया. वैसे भी मुझे मेरे मुवक्किल को कत्ल के इल्जाम से बचाना था. इनवेस्टमेंट की बात बाद में देखी जाएगी. नौशीन के कत्ल से उसे किस तरह छुड़ाना है, इस की पूरी प्लानिंग मेरे दिमाग में चल रही थी. बाहर मुझे खलील की मां मिली, जो लपक कर मेरे पास आई. जमानत न होने से वह बहुत दुखी थी. मैं ने उसे समझाया कि कत्ल के केस में जमानत बड़ी मुश्किल से मिलती है. आगे बेहतर होगा, इस का दिलासा दिया.
अगली पेशी पर मैं ने जज साहब से केस के इन्क्वायरी अफसर से चंद सवाल करने की इजाजत मांगी, जो इंसपेक्टर वहीद खां थे. मैं ने उन से पूछा, ‘‘इंसपेक्टर साहब, इस्तगासा के अनुसार, वारदात की खबर आप को 22 मार्च को साढ़े 11 बजे मिली थी. 12 बजे आप वहां पहुंच गए थे. आप को किस ने और क्या खबर दी थी?’’
‘‘वारदात की जानकारी मुझे काजी कयूम ने दी थी. फोन पर कहा था कि उन की बीवी नौशीन कत्ल कर दी गई है. खलील नामी किसी शख्स ने उस का कत्ल किया है.’’
‘‘आप ने घटनास्थल पर जा कर क्या देखा था?’’
‘‘पूरा घर इस तरह उलटापलटा पड़ा था, जैसे डकैती पड़ी हो, पर काजी कयूम के मुताबिक कुछ चोरी नहीं हुआ था. काजी की बीवी नौशीन की लाश ड्राइंगरूम में फर्श पर पड़ी थी.’’
‘‘इंसपेक्टर साहब, यह कत्ल 10 से साढ़े 11 के बीच हुआ था. पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के मुताबिक मौत की वजह गला घोंटना है. क्या आप ने गले पर से फिंगरप्रिंट्स उठाए थे?’’
‘‘हम ने फिंगरप्रिंट्स लेने की कोशिश की थी, पर हमें कामयाबी नहीं मिली. शायद मुल्जिम ने दस्ताने पहन रखे थे.’’ उस ने हड़बड़ाते हुए जवाब दिया.
‘‘पर आप की तैयार की गई रिपोर्ट में इस बात का कहीं कोई जिक्र नहीं है.’’
‘‘शायद यह बात रिपोर्ट में आने से रह गई है.’’
‘‘शायद नहीं, यकीनन. लेकिन यह बहुत बड़ी गलती है. अभी आप ने कहा कि बंगले की हालत से लगता था कि वहां डाका पड़ा था. आप ने बाकी जगहों के फिंगरप्रिंट्स उठाए थे?’’
‘‘मैं ने सभी जगहों से फिंगरप्रिंट्स उठाने की कोशिश की थी, पर कोई अजनबी फिंगरप्रिंट्स नहीं मिले थे. शायद इस की वजह दस्ताने थे.’’
‘‘घटनास्थल का काम निपटाने के बाद आप ने क्या किया था?’’
‘‘मैं ने मुल्जिम खलील को उस की दुकान से गिरफ्तार कर लिया था.’’ इंसपेक्टर वहीद खां ने कहा.
‘‘आप को यह बात किस ने बताई थी कि खलील दुकान पर होगा? दुकान का पता किस ने बताया था?’’ मैं ने पूछा.
‘‘दोनों बातें मुझे काजी कयूम ने बताई थीं.’’
मेरी जिरह खत्म होने के बाद गवाह अनवर की बारी आई. वह 60-65 साल का मजबूत काठी का आदमी था. उस की काजी कयूम के बंगले के पास कोल्डड्रिंक, पान, सिगरेट वगैरह की दुकान थी. वादी वकील ने उस से मामूली सवाल किए, जिस का खुलासा यह था कि वह दिन भर दुकान पर बैठता था. उस ने मुल्जिम को काजी कयूम के बंगले के पास मंडराते देखा था, उस के चेहरे पर घबराहट थी. इस के बाद मैं जिरह करने के लिए खड़ा हुआ. मैं ने पूछा, ‘‘अनवर, तुम कितने सालों से दुकान चला रहे हो और तुम्हारी दुकान कैसी चलती है?’’
‘‘मैं करीब 10 सालों से यह दुकान चला रहा हूं. बहुत अच्छी चलती है. मुझे सिर उठाने की फुरसत नहीं मिलती.’’
‘‘तुम काजी कयूम को जानते हो? उस के इनवेस्टिंग के कारोबार के बारे में भी जानते होंगे?’’
‘‘मैं काजी साहब को जानता हूं. मुझे इतना पता है कि वह कोई कंपनी चलाते हैं. इनवेस्टिंग का पता नहीं.’’
‘‘आप ने वारदात के दिन मुल्जिम को पहली बार देखा था? अब आप ने अच्छे से देख लिया कि मुल्जिम वही आदमी है, जिसे आप ने काजी के घर के पास देखा था?’’
‘‘जी हां, यह वही आदमी है.’’
‘‘आप की दूर की नजर कैसी है?’’
‘‘बहुत अच्छी, एकदम ठीकठाक.’’
मैं ने अदालत के खुले दरवाजे की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘दरवाजे में जो आदमी खड़ा वकील साहब से बातें कर रहा है, उस की टाई का रंग बताइए तो कैसा है?’’
वह बेहद परेशान नजर आने लगा, फिर उलझन से बोला, ‘‘वह टाई गे्र नहीं, डार्क ग्रीन…’’
अचानक वह खामोश हो गया. मैं ने व्यंग से कहा, ‘‘अनवर खां, आप का और दरवाजे का फासला करीब डेढ़ सौ गज है, जबकि आप की दुकान और काजी कयूम के बंगले की दूरी करीब 2 सौ गज से ज्यादा है. आप को सामने खड़े आदमी की टाई का रंग समझ में नहीं आ रहा है. वहां इतनी दूर से आप ने मुल्जिम के चेहरे के भाव देख लिए. क्या कमाल है. आप को इस गवाही के कितने पैसे मिले थे?’’
‘‘जी नहीं, दरअसल बात यह है कि कलर… मैं रुपए ले कर नहीं आया.’’ वह हड़बड़ा कर बोला.
‘‘अनवर साहब, आप ने इसे पहले नहीं देखा था, न वह आप की दुकान पर आया था. फिर आप अपनी दुकान पर इतने मसरूफ रहते हैं, उइस के बावजूद आप ने इतना देख लिया. अभी मैं ने अदालत के सामने साबित कर दिया कि यह डेढ़ सौ गज दूर की चीज नहीं देख सकते. सरासर फर्जी गवाही है जनाबेआली, एक मसरूफ आदमी इतनी दूर से इतनी बारीकी से हरगिज नहीं देख सकता, इस का दावा निराधार है.’’
जज ने कुछ नोट किया, इसी के साथ अदालत का वक्त खत्म हो गया.
विटनेस बौक्स में काजी कयूम की सेक्रैट्री कंवल खड़ी थी. वादी वकील की जिरह में सारे पौइंट्स काजी कयूम के पक्ष में जा रहे थे. उस ने इनवेस्टिंग कंपनी से साफ इनकार कर दिया था. खलील, असद को पहचानने से भी उस ने इनकार कर दिया था. उस ने सिर्फ यह बात मानी थी कि कुछ गुंडे जैसे लोगों ने दफ्तर में तोड़फोड़ की थी. वादी वकील ने पूछा, ‘‘22 मार्च को क्या हुआ था?’’
‘‘22 मार्च को काजी साहब 10 बजे औफिस आए तो उस के 5 मिनट बाद उन के घर से फोन आया कि घर में डाकू घुस आए हैं, उन्हें जल्द से जल्द घर पहुंचने को कहा गया था.’’
इस के बाद मैं ने जिरह शुरू की. मैं ने कठघरे में खड़े खलील की तरफ इशारा कर के पूछा, ‘‘क्या आप इसे जानती हैं?’’
‘‘सिर्फ इस हद तक कि यह आदमी मुकदमे का मुल्जिम है, इस पर कत्ल का इल्जाम है.’’
कंवल बड़ी सफाई और ढिठाई से झूठ बोल रही थी.
मैं ने कहा, ‘‘याद करिए, यह आदमी 3 महीने से काजी कयूम के पास आ रहा था, कभी अकेले, कभी असद के साथ. इस ने काजी के पास 10 लाख रुपए इनवेस्ट किए थे.’’
‘‘इस तरह के किसी मामले की मुझे कोई जानकारी नहीं है.’’
मैं समझ गया कि यह फ्राडी इनवेस्टमेंट के बारे में एक भी शब्द नहीं बोलेगी. मैं ने फिर पूछा, ‘‘वारदात के 4 दिन पहले औफिस में किस बात पर हंगामा हुआ था, उस की वजह क्या थी?’’
‘‘उस दिन 4-5 नवजवान औफिस में घुस आए और तोड़फोड़ तथा मारपीट करने लगे. वे किसी फायदे की बात कह रहे थे. जब काजी साहब ने इनकार कर दिया तो वे मारपीट पर उतारू हो गए. मजबूर हो कर काजी साहब को पुलिस बुला कर उन्हें गिरफ्तार कराना पड़ा, क्योंकि उन का किसी इनवेस्टमेंट से कोई ताल्लुक नहीं था.’’
बाकी उस ने हर बात से इनकार कर दिया. यहां तक कि जब असद और खलील जबरदस्ती काजी से मिलने पहुंचे थे, उस ने साफ कह दिया था कि ऐसी कोई बात वह नहीं जानती. अगली पेशी पर काजी कयूम ने अपना बयान दर्ज कराया. मैं ने जिरह शुरू की, ‘‘काजी साहब, मकतूल नौशीन से आप की शादी कब हुई थी?’’
‘‘मेरी शादी को 2 साल हो रहे हैं.’’
‘‘आप नरसरी वाले बंगले में कब शिफ्ट हुए? इस से पहले आप गुलशन इकबाल में ब्लाक, 13 में रहते थे न?’’
‘‘इस बंगले में आए मुझे 3 साल हुए हैं, पहले मैं गुलशन इकबाल में ही रहता था.’’
‘‘आप यह ट्रेडिंग कंपनी कब से चला रहे हैं?’’
‘‘करीब 8 सालों से.’’
‘‘यानी आप की पहली बीवी सूफिया के जमाने से?’’ मैं ने चुभते हुए लहजे में पूछा.
ये सारी जानकारी बड़ी मेहनत से असद ने जुटा कर मुझे दी थी. पहली बीवी का नाम सुनते ही काजी कयूम घबरा गया. उस ने उखड़े लहजे में कहा, ‘‘आप ठीक कह रहे हैं.’’
‘‘सूफिया से जब आप की शादी हुई थी, वह एक बेसहारा, पर काफी मालदार औरत थी. उस वक्त आप की जेब खाली थी. सूफिया की दौलत ने आप को मजबूत सहारा दिया. कुछ समय बाद उसी के माल से आप ने टे्रडिंग कंपनी खोल ली. फिर आप दिनरात तरक्की करते गए. 4 सालों बाद आप की बीवी सूफिया छत से गिर कर काफी जख्मी हो गई. जब आप उसे कार से अस्पताल ले जाने लगे तो उस ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया. मैं ठीक कह रहा हूं न?’’
विटनेस बौक्स में खड़ा काजी बदहवास नजर आने लगा, उस ने बौखला कर कहा, ‘‘एकदम ठीक.’’
वादी वकील ने काजी की हालत देख कर बोलना जरूरी समझा, ‘‘योरऔनर, बेग साहब नौशीन के कत्ल को भूल कर गवाह के अतीत को उखाड़ने में लग गए हैं.’’
मैं ने फौरन कहा, ‘‘योरऔनर, कत्ल काजी साहब की मौजूदा बीवी का हुआ है. उस का राज खोलने को पहली बीवी का जिक्र जरूरी है, क्योंकि काजी साहब की पहली 2 बीवियों की हादसे में मौत हो चुकी है. उस बात पर परदा डालना इंसाफ के उसूलों के विरुद्ध होगा.’’
मेरी बात खत्म होते ही जज ने जोर से कहा, ‘‘2 बीवियां और दोनों की हादसे में मौत?’’
‘‘यह बड़ी कड़वी सच्चाई है योरऔनर.’’ मैं ने मजबूती से कहा.
जज ने दिलचस्पी लेते हुए कहा, ‘‘आप इसी लाइन पर जिरह जारी रखें.’’
काजी का चेहरा फीका पड़ रहा था. मैं ने आगे पूछा, ‘‘काजी साहब, सूफिया की मौत पर आप को एक भारी रकम इंश्योरेंस से भी मिली थी. उस के बाद आप गुलशन इकबाल छोड़ कर मुस्लिमाबाद में आ बसे और वहां आप ने जमीला नाम की काफी मालदार बेवा औरत से शादी कर ली.’’
थोड़ा रुक कर मैं ने जज की ओर देखा. वह हैरान थे और कुछ लिख रहे थे. मैं ने बात आगे बढ़ाई, ‘‘काजी साहब, आप को जमीला से शादी रास नहीं आई, पर उस की दौलत तो आप के हाथ लग गई. जबकि वह बेचारी एक रोड ऐक्सीडेंट में चल बसी. कश्मीरी रोड पर उस की गाड़ी को एक वाटर टैंकर ने इतने जोर से टक्कर मारी कि वह उसी वक्त चल बसी. यह बात भी ताज्जुब की है कि वाटर टैंकर वालों का अड्डा आप के घर से दूर नहीं था. जमीला की हादसे में मौत का क्लेम आप ने 50 लाख रुपए वसूल किए. अगर मेरे बयान में कुछ गलत है तो मुझे टोक दें.’’
काजी कयूम की हालत देखने लायक थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहे. जज भी उस की घबराहट और हालत देख रहा था. मैं ने जिरह शुरू रखी, ‘‘काजी साहब, आप ने नौशीन की लाइफ पौलिसी एक करोड़ रुपए की करा रखी है. बेचारी की मौत को 8 महीने हो गए, क्या आप ने इंश्योरेंस क्लेम वसूल कर लिया है?’’
वह मुझे घूर कर रह गया. वादी वकील ने जल्दी से कहा, ‘‘जज साहब, गवाह की प्राइवेट लाइफ को उजागर करना सरासर गलत है.’’
मैं ने जल्दी से कहा, ‘‘मकतूल के क्लेम के बारे में पूछा कानूनन सही है, जवाब दें काजी साहब.’’
उस ने कमजोर लहजे में कहा, ‘‘क्लेम में कुछ कानूनी अड़चनें आ गई हैं.’’
‘‘वे कानूनी अड़चनें भी आप की लाई हुई हैं काजी साहब.’’ मैं ने कहा.
जज फौरन बोल उठे, ‘‘कैसी लाई गईं कानूनी अड़चनें? खुलासा करें बेग साहब?’’
‘‘काजी कयूम ने नौशीन से तीसरी शादी की थी, जो एक तलाकशुदा, पैसे वाली औरत थी. इस बार भी अगर काजी साहब बीवी की मौत को हादसे का रंग देते तो कुछ न बिगड़ता. कहानी एकदम सिंपल होती कि कोई नामालूम आदमी या डाकू घर में घुसा और नौशीन के विरोध करने पर उस का गला घोंट कर चला गया. अगर खलील को बीच में न फंसाते तो मामला अदालत तक नहीं पहुंचता और न ही इंश्योरेंस क्लेम मिलने में अड़चन खड़ी होती.’’
मेरे खामोश होते ही अदालत में बातें शुरू हो गईं.
मैं ने काजी से पूछा, ‘‘काजी साहब, आप इस आदमी को कब से जानते हैं?’’
मेरा इशारा खलील की ओर था.
‘‘अपनी बीवी की कत्ल की वारदात के बाद से.’’
‘‘मतलब, आप मुल्जिम के आप की इनवेस्टिंग कंपनी में 10 लाख रुपए जमा करने की बात से इनकार करते हैं?’’
‘‘इनवेस्टिंग कंपनी व भारी ब्याज की कहानी झूठी है.’’
‘‘क्या आप को मालूम था कि मुल्जिम की बिजनेस रोड पर दुकान है?’’ मैं ने तीखे लहजे में पूछा.
‘‘मुल्जिम के बारे में सारी जानकारी इस कत्ल के बाद मुझे हुई है.’’
‘‘क्या आप की या आप की बीवी की मुलिजम से कोई दुश्मनी थी?’’
‘‘ऐसी कोई बात नहीं थी.’’
‘‘फिर आप के खयाल में कत्ल का मकसद क्या हो सकता है? यूं ही तो कोई किसी को मार नहीं देता, कोई तो वजह होगी?’’
काजी घबरा कर बोला, ‘‘वह…वह… शायद चोरी की नीयत से मेरे घर में घुसा था. नौशीन के विरोध करने पर उसे मौत के घाट उतार कर फरार हो गया.’’
‘‘अब एक और नई कहानी कि चोरी करने आया था, जबकि चोरी हुई नहीं. पहले कहा था कि असद का बदला लेने घुसा और कत्ल कर दिया. ये कैसी बातें हैं कयूम साहब?’’
‘‘वह भी हो सकता है.’’ वह एकदम बौखला कर बोला.
‘‘यह भी हो सकता है, वह भी हो सकता है, अदालत में यह नहीं चलता. आप का दावा है काजी साहब कि आप मुल्जिम को बिलकुल नहीं जानते थे कत्ल होने तक. आप के बयान के अनुसार, जब आप मकतूल के खबर देने पर घर पहुंचे तो पूरा घर उलटापलटा पड़ा था और नौशीन की लाश ड्राइंगरूम में पड़ी थी. आप ने यह देख कर पुलिस को फोन किया. मेरा सवाल यह है कि घर पहुंचने के कितनी देर बाद आप ने पुलिस को हादसे की खबर दी थी?’’
‘‘लगभग 15 मिनट बाद.’’ उस ने घबराते हुए कहा.
मैं ने कहा, ‘‘पुलिस रोजनामचे के अनुसार, 22 मार्च को दिन के साढ़े 11 बजे आप ने फोन किया, जिस का जिक्र चालान में भी है. इस हिसाब से आप सवा ग्यारह बजे घर पहुंचे थे, जबकि आप की सेक्रैट्री कंवल ने कहा है कि आप सवा 10 बजे औफिस से निकले थे. आप के औफिस से आप के घर तक पहुंचने के लिए ज्यादा से ज्यादा 30 मिनट लगते हैं, फिर आप मौकाएवारदात पर एक घंटे बाद क्यों पहुंचे. आप तो अपनी कार में थे. मुश्किल से 20 मिनट लगने चाहिए थे?’’
वह कांपती आवाज में बोला, ‘‘दरअसल, रास्ते में मेरी गाड़ी खराब हो गई थी. इसलिए देर हो गई.’’
‘‘काजी साहब, इतना भी कमाल न करें, गाड़ी खराब हो गई थी तो आप टैक्सी ले सकते थे. नौशीन ने बड़ी इमरजैंसी में आप को फोन किया था. आप को तो उड़ कर वहां पहुंचना चाहिए था.’’
वह खामोश मुझे देखता रहा. हाथ मलता रहा. मैं ने एक वार और किया, ‘‘पुलिस रिकौर्ड के मुताबिक आप ने थाने फोन कर के कहा था कि खलील नाम के एक आदमी ने आप की बीवी नौशीन का कत्ल कर दिया है. जब आप हादसे से पहले मुल्जिम को जानते ही नहीं थे तो फिर आप ने उस का नाम कैसे लिया? क्या जादू से नाम पता चल गया था?’’
वह खामोश कठघरे का सहारा लिए खड़ा रहा, जो उस के मुजरिम होने का सुबूत था. मैं ने गिरती दीवार को एक धक्का और दिया, ‘‘काजी साहब, आप ने पैसे इनवेस्ट नहीं किए, आप खलील को नहीं जानते, फिर आप ने इन्क्वायरी अफसर को उस की दुकान का पता कैसे बताया. इन्क्वायरी अफसर यह बात बता चुका है कि मुल्जिम का नामपता आप ने उसे बताया था. इस सब का क्या मतलब निकलता है?’’
अब अपना रुख जज की तरफ फेरते हुए मैं ने कहा, ‘‘जनाबेआली, वादी की खामोशी यह बताती है कि वह कत्ल के पहले से ही मुल्जिम को अच्छी तरह जानता था और यह भी जानता था कि बिजनैस रोड पर उस की दुकान है. उस की गवाही कानून के उसूलों के विरुद्ध है. इस ने सरासर झूठ बोला है, नोट किया जाए.’’
मेरी बात पूरी होतेहोते अदालत का वक्त खत्म हो गया.
आगे वादी वकील ने मुल्जिम के खिलाफ तमाम दलीलें दीं, पर किसी दलील में दम नहीं था. अपनी बारी आने पर सारे झूठे बयानों का मैं ने खुलासा कर दिया. मुकदमा तो पिछली पेशी पर ही मेरी तरफ पलट चुका था. मैं ने फिंगरप्रिंट्स की रिपोर्ट गायब होने पर पुलिस पर सवाल उठाए, फिर अनवर की झूठी गवाही पर ऐतराज किया. काजी की सेक्रैट्री कंवल की झूठ बयानी और हठधर्मी पर अंगुली उठाई. रहीसही कसर काजी की 2 बीवियों की हादसे में मौत ने पूरी कर दी. अब जज पूरी तरह मेरे मुवक्किल के पक्ष में हो चुका था. फैसले की तारीख दे कर जज ने अदालत बरखास्त कर दी.
अगली पेशी पर अदालत ने मेरे मुवक्किल को बाइज्जत बरी कर दिया. इस के साथ पुलिस को आदेश दिया कि वह नौशीन के असली कातिल को गिरफ्तार कर जल्द से जल्द चालान पेश करे. पुलिस के लिए जज का हुक्म पकेपकाए हलवे से कम नहीं था. अगले ही दिन पुलिस पंजे झाड़ कर काजी कयूम के पीछे पड़ गई. काजी कयूम पुलिस की सख्ती ज्यादा देर नहीं सहन कर सका और उस ने नौशीन के साथसाथ अपनी पहली 2 बीवियों के कत्ल का भी इकरार कर लिया. मगर आखिर तक इनवेस्टिंग कंपनी के फ्राड से इनकार करता रहा.
मैं ने खलील को कत्ल से तो बाइज्जत बरी करवा लिया, पर पैसे नहीं दिला सका. शायद सब मिल कर पैसों के लिए फिर केस करें. काजी ने कत्ल का इकरार कर लिया, पर फ्राड का नहीं किया. पता नहीं यह उस के मुजरिम जेहन की कौन सी अदा थी? Hindi Story






