मध्य प्रदेश के जिला सतना में एक थाना है नादन. 10 दिसंबर, 2019 को एक व्यक्ति 3 बालिकाओं को साथ ले कर थाना नादन के टीआई भूपेंद्र के पास पहुंचा. उस के साथ जो बालिकाएं थीं, उन की उम्र 14, 16 और 17 साल थी.

टीआई ने सोचा कि आगंतुक इतनी सर्दी में 3 लड़कियों को ले कर आया है तो कुछ न कुछ खास बात ही होगी. उन्होंने उसे कुरसी पर बैठने का इशारा किया. वह आदमी और लड़कियां कुरसियों पर बैठ गईं. टीआई भूपेंद्र पांडेय ने उस व्यक्ति से थाने आने का कारण पूछा.

कुछ देर वह चुप रहा. फिर टीकाराम नाम के उस व्यक्ति ने अपनी पीड़ा थानाप्रभारी को बताई. उस ने बताया कि उस की तीनों बेटियों के साथ कथावाचक पं. नारायण स्वरूप त्रिपाठी ने बलात्कार किया था.

क्षेत्र भर में पं. नारायण स्वरूप त्रिपाठी का खासा नाम था. टीआई भूपेंद्र पांडेय भी उसे अच्छी तरह जानते थे. लेकिन जब उस ने  अपराध किया था तो उस के खिलाफ काररवाई करनी जरूरी थी. मामला गंभीर था इसलिए टीआई ने सतना के एसपी रियाज इकबाल और डीएसपी हेमंत शर्मा को इस मामले की सूचना दे दी.

मामले की गंभीरता को देखते हुए एसपी रियाज इकबाल खुद थाना नादन पहुंच गए. एसपी साहब ने टीकाराम से बात की तो उस ने उन्हें बेटियों के साथ कथावाचक पं. नारायण स्वरूप त्रिपाठी द्वारा बलात्कार करने की बात बता दी. एसपी साहब ने उसी समय एक पुलिस टीम आरोपी को गिरफ्तार करने के लिए भेज दी.

पुलिस टीम ने रात में एक बजे पं. नारायण स्वरूप त्रिपाठी को उस के घर से हिरासत में ले लिया. सुबह होने पर जब क्षेत्र के लोगों को पता चला कि पंडितजी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है तो बड़ी संख्या में भीड़ थाने के बाहर जमा हो गई.

लेकिन पुलिस ने जब लोगों को पंडितजी के कुकर्मों की जानकारी दी तो सभी अपनेअपने घर लौट गए. पुलिस ने पं. नारायण स्वरूप त्रिपाठी से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने स्वीकार कर लिया कि टीकाराम की तीनों बेटियों को हवस का शिकार बनाया था.

विस्तार से पूछताछ करने के बाद कथावाचक की पापलीला की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी—

नादन निवासी पं. नारायण स्वरूप त्रिपाठी की सतना और आसपास के जिलों में धार्मिक संत, भजन गायक और कथावाचक के रूप में अच्छी पहचान थी. बड़ेबड़े धार्मिक आयोजनों में उस की कथा सुनने के लिए हजारों भक्तों की भीड़ उमड़ती थी. इस के अलावा लोग घरों में होने वाली पूजा के लिए भी उसे बुला लेते थे, जिस के चलते 7 दिसंबर को क्षेत्र के रहने वाले टीकाराम ने भी उसे नरसिंहजी का मायरा के लिए अपने घर बुलाया था.

पं. नारायण स्वरूप त्रिपाठी नियत समय पर उस के यहां पहुंच गया. कथा संपन्न होने के बाद पंडितजी यजमानों से बात कर रहे थे, तभी टीकाराम ने कहा, ‘‘क्या कहूं पंडितजी, बाकी तो सब कुशल है लेकिन मैं अपनी बेटियों को ले कर परेशान हूं. तीनों बेटियां आपस में लड़तीझगड़ती रहती हैं. मुझे चिंता है कि इन की यही आदत बनी रही तो ये ससुराल में कैसे निभाएंगी. आप ही कोई ऐसा उपाय करिए कि तीनों प्यार से हिलमिल कर साथ रहने लगें.’’

पंडित नारायण स्वरूप के लिए यह बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने जैसा था. क्योंकि यजमान टीकाराम के घर में आने के बाद से ही पंडितजी की नजर उस की तीनों बेटियों पर खराब हो चुकी थी. पूजा के दौरान भी वह लोगों से नजर बचा कर तीनों बहनों को बुरी नजर से घूरता रहा. जब यजमान ने बेटियों से परेशान रहने की समस्या सामने रखी, तो उस की बाछें खिल गईं.

वह समझ गया कि वक्त ने उसे मौका दिया है, जिस से वह यजमान की तीनों नादान बेटियों को अपना शिकार बना सकता है. इसलिए उस ने टीकाराम से कहा, ‘‘चिंता मत करो, मैं देखता हूं समस्या की जड़ कहां है. केवल समस्या का पता ही नहीं लगाऊंगा, बल्कि उसे जड़ से खत्म भी कर दूंगा. लाओ, तीनों की जन्मपत्रिकाएं दिखाओ, देखता हूं आखिर इन की आपस में बनती क्यों नहीं है.’’

पंडित नारायण स्वरूप ने कहा तो टीकाराम ने घर में रखे पुराने संदूक में संभाल कर रखी अपनी बेटियों की जन्म पत्रिकाएं निकाल कर उस के सामने रख दीं.

पंडित नारायण स्वरूप ने एकएक कर तीनों की कुंडलियों को गौर से देखा फिर अचानक गंभीर हो गया.

‘‘क्या हुआ पंडितजी?’’ त्रिपाठीजी को अचानक गंभीर देख कर टीकाराम ने चिंतित स्वर में पूछा.

‘‘यजमान, समस्या तो बड़ी है. दरअसल, तुम्हारी तीनों बेटियों की कुंडली में कालसर्प दोष है, जिस के चलते इन की आपस में बननी तो दूर किसी गैर के साथ भी नहीं बन सकती. लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है. तुम ने बहुत सही समय पर अपनी समस्या मेरे सामने रखी है.

‘‘2 दिन बाद ही 9 दिसंबर को बड़ा शुभ मुहूर्त है. उस दिन मैं पूजा कर इन तीनों के दोष का निवारण का दूंगा.’’ कहते हुए पंडितजी ने पूजा के सामान की लिस्ट बना कर उसे दे दी. 9 दिसंबर को पूजा के लिए आने की बात कह कर नारायण स्वरूप तीनों बहनों को आशीर्वाद दे कर चला गया.

पंडित के जाने के बाद टीकाराम पूजा की तैयारी में जुट गया. जबकि दूसरी तरफ पं. नारायण स्वरूप को रात भर नींद नहीं आई. पूजा के बहाने वह तीनों बहनों का यौनशोषण करने की ठान चुका था. इसलिए पूरी रात जाग कर वह योजना बनाता रहा कि कैसे काम को अंजाम दे कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

2 रात जाग कर पंडित ने पूरी योजना बनाई और 9 दिसंबर की सुबह टीकाराम के बुलावे का इंतजार किए बिना ही उस के घर पहुंच गया. योजनानुसार, पंडित ने पूजा के लिए बरामदे के बजाए अंदर वाला कमरा चुना और फिर कुछ देर तक तीनों बहनों और परिवार के साथ पूजा का ढोंग करता रहा. फिर उस ने सब को कमरे से बाहर निकाल दिया.

उस ने घर के सभी लोगों को हिदायत दी कि वह एकएक कर तीनों बहनों को कमरे में पूजा के लिए बुलाएगा. इस दौरान कोई भी न तो कमरे में दाखिल होगा और न ही ताकझांक करने की कोशिश करेगा.

टीकाराम का परिवार पंडितजी को अपना सब कुछ मानता था, इसलिए उस की बात मानने से इनकार करने का सवाल ही नहीं था.

अपनी योजना सफल होती देख पंडित नारायण स्वरूप मन ही मन खुश हुआ और कुछ देर तक जोरजोर से मंत्र जाप करने का नाटक करता रहा. सब से पहले उस ने 17 वर्षीय बड़ी बेटी को पूजा के लिए कमरे में बुलाया.

इस के बाद उस ने उसे बाहर भेज दिया, फिर मंझली बेटी को बुलाया. अंत में उस ने सब से छोटी बेटी को अंदर बुलाया. इस दौरान हर बहन के साथ वह लगभग एकएक घंटे तक बंद कमरे में पूजा करता रहा और बाद में टीकाराम से मोटी दक्षिणा ले कर चला गया.

पंडित के जाने के बाद तीनों बहनें काफी उदास थीं. एकदूसरे से लड़ना तो दूर वे आपस में बात भी नहीं कर रही थीं. यह देख कर टीकाराम को लगा कि शायद पंडितजी की पूजा के प्रभाव से उन की बेटियों का स्वभाव एकदम शांत हो गया है.

लेकिन सचमुच क्या हुआ था, इस का खुलासा रात में तब हुआ, जब सब से छोटी बेटी बिस्तर पर लेटेलेटे रोने लगी. मां ने उस से रोने का कारण पूछा तो पहले तो वह कुछ भी बताने से डरती रही. बाद में उस ने अपने अंग विशेष में तेज दर्द होने की बात बता दी.

बेटी की बात सुन कर मां को बहुत गुस्सा आया. इस के बाद दोनों बहनों ने भी पंडित द्वारा उन के साथ दुराचार करने की बात बताई. उन्होंने कहा कि पूजा के लिए पंडित ने कमरे में बुला कर उन के सारे कपड़े उतरवा दिए थे.

इस के बाद वह मंत्र पढ़ते समय उन के पूरे शरीर पर हाथ फेरता रहा और उन के अंगों से छेड़छाड़ करता रहा. इतना ही नहीं, इस के बाद उस ने उन के साथ गंदा काम भी किया.

तीनों बहनों ने अपनी आपबीती सुनाई तो मातापिता ने अपना सिर पीट लिया. आरोपी पंडित की इलाके में अच्छी धाक थी, इसलिए उन्हें डर था कि उन की बात पर पुलिस भरोसा नहीं करेगी. परिवार की आर्थिक हैसियत भी ऐसी नहीं थी कि कथा सुनाने के बदले में लाखों रुपए फीस के रूप में लेने वाले नारायण स्वरूप से वे टक्कर ले सकें. इस के अलावा सब से बड़ा डर उन्हें लोकलाज का भी था, इसलिए परिवार वालों ने चुप रहने में ही भलाई समझी.

दूसरे दिन 10 दिसंबर की सुबह दोनों बहनों की अर्द्धवार्षिक परीक्षा का पेपर था, सो वे स्कूल चली गईं. परीक्षा दे कर वापस आने के बाद सब से छोटी बहन अपने अंगों में दर्द होने के कारण रोने लगी तो बेटी के आंसू देख कर पिता का हृदय रो पड़ा, जिस के बाद वे तीनों बेटियों को साथ ले कर सीधे नादन थाने के टीआई भूपेंद्र पांडे के पास पहुंचा.

पं. नारायण स्वरूप त्रिपाठी से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे व तीनों बहनों को मैडिकल परीक्षण के लिए भेजा.

इस के बाद कामुक पंडित के खिलाफ बलात्कार, पोक्सो एक्ट व एससी/एसटी एक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज कर जेल भेजा दिया. कामुक कथावाचक  की हकीकत जान कर क्षेत्र के लोग आश्चर्यचकित हैं.

—कथा में टीकाराम परिवर्तित नाम है

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...