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अर्जन इति को भागने को बोलता है. अंधेरे में मुठभेड़ होती है, क्रिस्टोफर अर्जन का गला दबाने लगता है, तभी इति वो ट्यून चला देती है. क्रिस्टोफर का ध्यान उधर जाते ही अर्जन क्रिस्टोफर को मार गिराता है, तभी दिव्या भी वहां आ जाती है. अर्जन, दिव्या और इति लिपट जाते हैं और फिल्म का नीरस अंत हो जाता है.

'कठपुतली’ (Cuttputlli) एक थ्रिलर (Thriller) के रूप में डिजाइन की गई है, लेकिन कहानी और स्क्रीनप्ले में इतने झोल हैं कि दर्शक पहले ही किलर के बारे में समझ जाते हैं. लेखक तुषार त्रिवेदी और असीम अरोड़ा ने अपनी सहूलियत के हिसाब से इस मूवी को लिखा है और यह बात भूल गए कि दर्शक भी सोचने समझने की शक्ति रखते हैं. घुप्प अंधरे में किया फिल्मांकन दर्शकों को निराश करता है.

'कठपुतली’ में क्राइम है, थ्रिल का कोई नामोनिशान नहीं. इसे देखते हुए आप के मन में क्रिमिनल को जान लेने की जिज्ञासा नहीं जागती. बेहद सपाट तरीके से कहानी आगे बढ़ती है. लगातार मर्डर होते रहते हैं. पर फिल्म में किसी तरह की इंटेसिटी नहीं है.

क्या सिर्फ हर 15 से 20 मिनट में एक मर्डर दिखा देना ही क्राइम थ्रिलर होता है? क्लाइमैक्स में जब इस सेटअप से पेबैक की बारी आती है तो फिल्म हाथ खड़े कर देती है. कहने को फिल्म एक साइकोलौजिकल थ्रिलर बताई जाती है लेकिन इस से बढिय़ा साइकोलौजिकल थ्रिलर (Psychological Thriller) तो राधिका आप्टे की 'अहिल्या’ है, जो यूट्यूब पर फ्री में उपलब्ध है.

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