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रात 9 बजे के आसपास मारुति वैन के आने की घरघराहट ने लोगों का ध्यान अपनी ओर इसलिए खींचा था, क्योंकि उतनी रात को गांव  घोंघी रऊतापुर के असुरक्षित जंगली इलाके के उस सुनसान रास्ते पर कोई भी गाड़ी जल्दी नहीं आतीजाती थी. उतनी रात तक गांवों में वैसे भी सन्नाटा पसर जाता है. ठंड का मौसम हो तो आदमी तो क्या, कुत्ते भी दुबक जाते हैं. ऐसा ही कुछ हाल गांव घोंघी रऊतापुर का भी था. ज्यादातर लोग खापी कर रजाइयों में दुबक गए थे. गांव के  2-4 घरों के लेग ही आग जला कर उसी के पास बैठे बतिया रहे थे.

मारुति वैन के आने की आवाज जाग रहे लोगों के कानों में पड़ी तो अपने आप ही उन का ध्यान उस की ओर चला गया. वैन गांव से कुछ दूरी पर जंगली लोध के खेत के पास रुक गई. वैन के रुकते ही उस की हेडलाइट बुझ गई. अगर वैन गांव के अंदर आ जाती तो शायद उस के बारे में जानने की उतनी उत्सुकता न होती. लेकिन वह गांव के बाहर ही सुनसान जगह पर रुक गई थी, इसलिए लोगों को उस के बारे में जानने की उत्सुकता हुई.

उत्सुकतावश लोग उस के बारे में जानने की कोशिश करने लगे. सभी उसी के बारे में सोच रहे थे कि तभी वैन के पास आग की ऊंचीऊंची लपटें इस तरह उठने लगीं, जैसे कोई ज्वलनशील पदार्थ डाल कर कोई चीज जलाई जा रही हो.

उस तरह आग की लपटों को उठते देख गांव वालों को लगा कि किसी ने फसल में आग लगा दी है. इसलिए वे चीखचीख कर शोर मचाने लगे, ‘‘अरे दौड़ो भाई, किसी ने फसल में आग लगा दी है.’’

चीखपुकार सुन कर गांव वाले लाठीडंडे ले कर खेतों की ओर दौड़ पड़े. गांव वालों को शोर मचाते हुए अपनी ओर आते देख मारुति वैन से आए लोग जल्दी से वैन में बैठ कर दूसरे रास्ते से होते हुए कानपुर लखनऊ हाईवे की ओर भाग निकले. गांव वाले जब जंगली लोध के खेत के पास पहुंचे तो उन्होंने देखा आग फसल में नहीं लगी थी, बल्कि वहां एक महिला की लाश जल रही थी. वहां एक जोड़ी चप्पलें एवं पेट्रोल की एक केन पड़ी थी. चप्पलें लेडीज थीं, इसलिए अंदाजा लगाया कि ये मृतका की ही होंगी.

गांव के ही शत्रुघ्न ने अपने मोबाइल फोन से इस घटना की सूचना थाना गंगाघाट पुलिस को दे दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी मनोज सिंह सिपायिहों के साथ रवाना हो गए. घटनास्थल पर पहुंच कर थानाप्रभारी ने लाश का निरीक्षण किया. शव लगभग 95 प्रतिशत जल चुका था. वह इतना वीभत्स हो चुका था कि उस की शिनाख्त करना मुश्किल था.

पुलिस ने घटनास्थल की कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के लाश को पोस्मार्टम के लिए जिला संयुक्त चिकित्सालय उन्नाव भेज दिया. इस के बाद थाने लौट कर पुलिस अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच को आगे बढ़ाने की राह तलाश करने लगी. यह 14 नवंबर, 2013 की बात है.

अगले दिन यानी 15 नवंबर, 2013 को थानाप्रभारी मनोज सिंह ने एक सिपाही को गांव गजियाखेड़ा भेज कर गुडि़या को बुलाया. दरअसल 13 नवंबर को उस ने अपनी 18 वर्षीया बेटी कंचन की गुमशुदगी दर्ज कराई थी. मनोज सिंह ने गुडि़या को जले हुए शव का फोटो और उस के पास से बरामद चप्पलें दिखाईं तो गुडि़या शव को तो नहीं पहचान सकी, लेकिन चप्पलों के बारे में उस ने कहा कि ये तो मेरी बेटी की ही जैसी हैं.

उन चप्पलों को देख कर गुडि़या सिसकते हुए बोली, ‘‘लगता है साहब, मेरी बेटी पिता की साजिश का शिकार हो गई.’’

गुडि़या की इस बात से थानाप्रभारी मनोज सिंह का माथा ठनका. उन्होंने कहा, ‘‘पिता की साजिश का शिकार, तुम्हारे कहने का मतलब क्या है? पूरी बात विस्तार से बताओ?’’

इस के बाद गुडि़या ने थानाप्रभारी मनोज कुमार को अपने पति श्यामबाबू और बेटी कंचन के गायब होने की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी.

उत्तर प्रदेश के जिला उन्नाव के थाना गंगाघाट के गांव गजियाखेड़ा की रहने वाली 38 वर्षीया गुडि़या की शादी 22 साल पहले कानपुर के मोहल्ला बर्रा के रहने वाले रामदास के बेटे श्यामबाबू के साथ हुई थी. श्यामबाबू की शराब पीने की आदत थी. एक तो गुड़िया खास सुंदर नहीं थी, दूसरे वह मनचाहा दहेज नहीं लाई थी, इसलिए श्यामबाबू शराब पी कर लगभग रोज ही गुड़िया के साथ मारपीट करता था. भविष्य की चिंता में गुड़िया पति की मारपीट सहती रही. उसी बीच गुड़िया सोनम, कंचन और मोना, लगातार 3 बेटियों की मां बन गई.

लगातार 3 बेटियों के पैदा होने से श्यामबाबू गुड़िया से नफरत करने लगा. बेटियां पैदा करने का दोष गुडि़या पर लगाते हुए वह उस पर और अत्याचार करने लगा. उस ने गुडि़या का घर से बाहर जाना तो पहले ही बंद कर दिया था, अब वह उसे किसी से बात भी नहीं करने देता था. जब गुडि़या की सहनशक्ति खत्म हो गई तो उस ने किसी के माध्यम से अपने भाइयों को अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों की खबर भिजवाई.

खबर पा कर गुडि़या का भाई रज्जन उसे ले जाने आया तो श्यामबाबू ने गुडि़या को उस के साथ भेजने से साफ मना कर दिया. तब रज्जन पुलिस की मदद से गुडि़या और उस की तीनों बेटियों को श्यामबाबू के चंगुल से मुक्त करा कर अपने घर ले गया.

गुडि़या तीनों बेटियों के साथ मायके में रहने लगी. 8-10 महीने ही बीते होंगे कि एक दिन चुपके से श्यामबाबू तीनों बेटियों को बहलाफुसला कर अपने साथ लिवा ले गया. बेटियों के अलग होने का दुख गुडि़या को हुआ जरूर, लेकिन उस का अपना ही कोई भविष्य नहीं था, इसलिए उस ने बेटियों की ओर से संतोष कर लिया. गुजरबसर के लिए वह मातापिता की अनुमति ले कर कोई कामधंधा तलाशने लगी.

मातापिता को गुडि़या की चिंता कुछ ज्यादा ही रहती थी, इसलिए वे उस का खयाल बेटों से ज्यादा रखते थे. इस बात को ले कर घर में कलह होने लगी. स्थिति खराब होते देख मां ने एक खेत लाखों रुपए में बेच कर पूरी रकम गुडि़या को दे दी. इस बात से नाराज भाइयों ने गुडि़या और मातापिता को मारपीट कर घर से भगा दिया. घर से निकाले गए मातापिता को ले कर गुडि़या शुक्लागंज में किराए का कमरा ले कर रहने लगी. गुजरबसर के लिए वह एक ब्यूटीपार्लर में काम करने लगी.

अकेली औरत की परेशानियों को देख कर गुडि़या ने श्यामबाबू से माफी मांगते हुए अपने साथ रखने को कहा. तब श्यामबाबू ने उसे साथ रखने से मना करते हुए कहा, ‘‘साथ रखना तो दूर, अब मैं तुम्हें देखना भी नहीं चाहता. मैं तुम्हें अब कभी साथ नहीं रखूंगा.’’

गुडि़या समझ गई कि अब श्यामबाबू उसे कभी अपने साथ नहीं रखेगा. उस की जिंदगी एक कटी पतंग की तरह हो कर रह गई थी. उसी निराशा के बीच गुडि़या की मुलाकात गोलू श्रीवास्तव उर्फ अशोक कुमार से हुई. वह अमेठी का रहने वाला था. उस की शादी नहीं हुई थी. पहली ही मुलाकात में दोनों एकदूसरे के प्रति कुछ ऐसा आकर्षित हुए कि फिर मिलने का वादा कर लिया.

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