उत्तर प्रदेश के जनपद सीतापुर के थाना संदना का एक गांव है हरिहरपुर. रामप्रसाद का परिवार इसी गांव में रहता था. खेती किसानी करने वाले रामप्रसाद के परिवार में पत्नी सोमवती के अलावा 2 बेटियां और 2 बेटे थे. उन में संगीता सब से बड़ी थी. सांवले रंग की संगीता का कद थोड़ा लंबा था. संगीता जवान हुई तो रामप्रसाद ने उस की शादी अपने ही इलाके के गांव रसूलपुर निवासी मुन्नीलाल के बेटे परमेश्वर के साथ कर दी. यह 6 साल पहले की बात थी.

परमेश्वर के पास 7 बीघा जमीन थी, जिस पर वह खेतीबाड़ी करता था. समय के साथ संगीता 3 बच्चों रजनी, मंजू और रजनीश की मां बनी. शादी के कुछ दिनों बाद ही परमेश्वर अपने घर वालों से अलग रहने लगा, इसलिए पत्नी और बच्चों के भरणपोषण और खेतीबाड़ी की पूरी जिम्मेदारी उसी पर आ गई थी. परमेश्वर खेतों पर जी तोड़ मेहनत करता तो संगीता बच्चों और घर की जिम्मेदारी संभालती. घरगृहस्थी के चक्रव्यूह में फंस कर परमेश्वर यह भी भूल गया कि उस की पत्नी अभी जवान है और उस की कुछ   भी हैं.

यह मानव स्वभाव में है कि जब उस की शारीरिक जरूरतें पूरी नहीं होतीं तो उस में चिड़चिड़ापन आ जाता है. ऐसा ही कुछ संगीता के साथ भी था. वह परमेश्वर से अपने मन की चाह के बारे में भले ही खुल कर बता नहीं पाती थी, लेकिन चिड़चिड़ेपन की वजह से लड़ जरूर लेती थी. इस तरह दोनों के बीच कहासुनी होना आम बात हो गई थी.

गांव में ही बाबूराम का भी परिवार रहता था. उस के परिवार में पत्नी, 2 बेटियां और 4 बेटे थे. इन में छोटू को छोड़ कर बाकी सभी भाईबहनों की शादियां हो चुकी थीं.19 वर्षीय छोटू वैवाहिक समारोहों में स्टेज बनाने का काम करता था. जब काम न होता तो वह गांव में खाली घूमता रहता था. छोटू परमेश्वर को बड़े भाई की तरह मानता था, इसलिए उस का काफी सम्मान करता था.

एक दिन परमेश्वर खेत पर काम कर रहा था तो छोटू वहां पहुंच गया. उसे वहां आया देख परमेश्वर ने उसे अपने घर से खाना लाने भेज दिया. छोटू परमेश्वर के घर पहुंचा तो वहां उस की मुलाकात संगीता से हुई. संगीता उसे नहीं जानती थी. उस ने अपने बारे में बता कर संगीता से खाने का टिफिन लगा कर देने को कहा तो संगीता टिफिन में खाना लगाने लगी.

छोटू जवान हो चुका था. इस मुकाम पर महिलाओं के प्रति आकर्षण स्वाभाविक होता है. वह चोर निगाहों से संगीता के यौवन का जायजा लेने लगा. छोटू कुंवारा था, इसलिए नारी तन उस के लिए कौतूहल का विषय था. संगीता के यौवन को देख कर छोटू के तन में कामवासना की आग जलने लगी. वह मन ही मन सोचने लगा कि अगर संगीता का खूबसूरत बदन उस की बांहों में आ जाए तो मजा आ जाए.

संगीता का भी यही हाल था. उसे परमेश्वर से वह सब कुछ हासिल नहीं हो रहा था, जिस की उसे चाह थी. छोटू के बारे में ही सोचतेसोचते उस ने टिफिन में खाना लगा कर उसे थमा दिया. जब छोटू खाना ले कर जाने लगा तो संगीता भी ठीक वैसा ही सोचने लगी, जैसा थोड़ी देर पहले छोटू सोच रहा था. छोटू शारीरिक रूप से हट्टाकट्टा नौजवान ही नहीं था, बल्कि कुंवारा भी था. पहली ही नजर में वह संगीता को भा गया था.

दूसरी ओर छोटू का भी वही हाल था. वह दूसरे दिन का इंतजार करने लगा. परमेश्वर ने जब दूसरे दिन भी उस से खाना लाने को कहा तो वह तुरंत परमेश्वर के घर के लिए रवाना हो गया. वह उस के घर पहुंचा तो संगीता घर के बाहर ही बैठी थी. छोटू को देखते ही संगीता खुश हो गई. वह उसे प्यार से अंदर ले गई. जवान छोटू उसे एकटक निहार रहा था.

छोटू को अपनी ओर एकटक देखते पा कर संगीता ने उस का ध्यान भंग करते हुए कहा, ‘‘ऐसे एकटक क्या देख रहे हो, कभी जवान औरत को नहीं देखा क्या?’’

छोटू तपाक से बोला, ‘‘देखा तो है, पर तुम्हारी जैसी नहीं देखी.’’

संगीता शरमाने का नाटक करती हुई अंदर चली गई और वहीं से उस ने छोटू को आवाज लगाई, ‘‘अंदर आ जाओ, आज खाना लगाने में थोड़ी देर लगेगी.’’

उस के आदेश का पालन करते हुए छोटू अंदर आ गया. दोनों बैठ कर बातें करते हुए एकदूसरे के प्रति आकर्षित होते रहे. अब यही रोज का क्रम बन गया. स्त्रीपुरुष एकदूसरे की तरफ आकर्षित होते हैं तो मतलब की बातों का सिलसिला खुदबखुद जुड़ जाता है. मौका देख एक दिन छोटू ने संगीता की दुखती रग को छेड़ दिया, ‘‘भाभी, तुम खुश नहीं लग रही हो. लगता है, भैया तुम्हारा ठीक से खयाल नहीं रखते?’’

‘‘खुश होने की वजह भी तो होनी चाहिए. तुम्हारे भैया तो सिर्फ खेतों के हो कर रह गए हैं, घर में जवान बीवी है, इस की उन्हें कोई परवाह ही नहीं है.’’

‘‘भैया से इस बारे में बात करतीं तो तुम्हारी समस्या जरूर दूर हो जाती.’’

‘‘मैं ने कई बार उन्हें इस बात का अहसास दिलाया, लेकिन वह अपनी इस जिम्मेदारी को समझने को तैयार ही नहीं हैं. उन्हें पूरे घर की जिम्मेदारी तो दिखती है, लेकिन मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं दिखती.’’ संगीता ने बड़े ही निराश भाव से कहा. मौका देख कर छोटू ने अपने मन की बात उस के सामने रख दी, ‘‘भाभी, निराश मत हों. अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हें वह खुशियां दे सकता हूं, जो परमेश्वर भैया नहीं दे पा रहे हैं.’’

अपनी बात कह कर छोटू ने संगीता को चाहत भरी नजरों से देखा तो संगीता ने भी उस की आंखों में आंखें डाल दीं. उस की आंखों में जो जुनून था, वह उस की सुलगती कामनाओं को ठंडा करने के लिए काफी था. संगीता ने उस के हाथों में अपना हाथ दे दिया. छोटू उस की सहमति पा कर खुशी से झूम उठा. इस के बाद संगीता ने अपने तन की आग में सारी मर्यादाओं को जला कर राख कर दिया.

एक बार दोनों ने अपने नाजायज रिश्ते की इबारत लिखी तो वह बारबार दोहराई जाने लगी. इसी के साथ उन के रिश्ते में गहराई भी आती गई. रसूलपुर में ही प्रमोद नाम का एक युवक रहता था. उस के पिता हरनाम भी खेतीकिसानी करते थे. 23 वर्षीय प्रमोद अविवाहित था. वह भी परमेश्वर की पत्नी संगीता पर फिदा था और उसे अपने जाल में फांसने का प्रयास करता रहता था.

एक दिन मौका देख कर उस ने संगीता से अपने दिल की बात कह दी. लेकिन संगीता ने उस से संबंध बनाने से साफ इनकार कर दिया. प्रमोद इस से निराश नहीं हुआ. उस ने अपनी तरफ से कोशिश जारी रखी. इसी बीच उसे संगीता के छोटू से बने नाजायज संबंधों के बारे में पता चल गया. प्रमोद को यह बात बिलकुल पसंद नहीं आई कि संगीता उस के अलावा किसी और से संबंध रखे. उस ने परमेश्वर के सामने उन दोनों के नाजायज रिश्ते की पोल खोल दी. परमेश्वर को उस की बात पर विश्वास नहीं हुआ, लेकिन मन में शक जरूर पैदा हो गया.

अगले ही दिन परमेश्वर रोज की तरह छोटू से खाना लाने को कहा. छोटू खाना लाने चला गया तो परमेश्वर भी छिपतेछिपाते उस के पीछे घर की तरफ चल दिया. छोटू घर में जा कर संगीता के साथ रंगरलियां मनाने लगा. चूंकि दोपहर का समय था और किसी के आने का अंदेशा नहीं था, इसलिए दोनों बिना दरवाजा बंद किए ही एकदूसरे से गुंथ गए.

अभी कुछ पल ही बीते थे कि किसी ने भड़ाक से दरवाजा खोल दिया. अचानक दोनों ने घबरा कर दरवाजे की तरफ देखा तो सामने परमेश्वर खड़ा था. उस की आंखों से चिंगारियां फूट रही थीं. उस ने पास पड़ा डंडा उठाया तो छोटू वहां से भागा. लेकिन भागते समय परमेश्वर का डंडा उस की कमर पर पड़ गया. दर्द की एक तेज लहर उस के बदन में दौड़ गई, लेकिन वह रुका नहीं.

उस के जाने के बाद परमेश्वर ने संगीता की जम कर पिटाई की. संगीता ने परमेश्वर से किए की माफी मांग ली और आगे से कभी दोबारा ऐसा कदम न उठाने की कसम खाई. लेकिन एक बार विश्वास की दीवार में दरार आ जाए तो उसे किसी भी तरह भरा नहीं जा सकता.

ऐसे में परमेश्वर भला संगीता पर कैसे विश्वास करता? छोटू ने उस के परिवार की इज्जत से खेलने की जो हिमाकत की थी, उसे वह बरदाश्त नहीं कर पा रहा था. इस आग में घी डालने का काम किया प्रमोद ने. वह परमेश्वर को छोटू से बदला लेने के लिए उकसाने लगा.

दरअसल प्रमोद यह सब सोचीसमझी साजिश के तहत कर रहा था. उस ने सोचा था कि परमेश्वर छोटू की हत्या कर देगा तो वह छोटू के परिजनों से मिल कर परमेश्वर को जेल भिजवा देगा. इस से छोटू और परमेश्वर नाम के दोनों कांटे उस के रास्ते से हट जाएंगे. फिर संगीता को पाने से उसे कोई नहीं रोक पाएगा.

आखिर प्रमोद ने परमेश्वर को छोटू को मार कर बदला लेने के लिए मना ही लिया. परमेश्वर के कहने पर इस साजिश में वह भी शामिल हो गया. परमेश्वर के कहने पर संगीता को भी इस साजिश में शामिल होना पड़ा. क्योंकि इस के अलावा उस के सामने कोई चारा नहीं था.

24 मार्च की रात परमेश्वर ने संगीता से कह कर छोटू को अपने घर बुलाया. परमेश्वर और प्रमोद घर में ही छिप कर बैठे थे. छोटू घर आया तो संगीता उस के पास बैठ कर मीठीमीठी बातें करने लगी. देर रात होने पर परमेश्वर और प्रमोद चुपचाप बाहर निकले और पीछे से छोटू के गले में अंगौछे का फंदा बना कर डाल कर पूरी ताकत से कसने लगे.

छोटू छूटने के लिए छटपटाने लगा. इस से वह जमीन पर गिर पड़ा. छोटू के जमीन पर गिरते ही संगीता ने उस के पैर कस कर पकड़ लिए तो परमेश्वर व प्रमोद ने पूरी ताकत से अंगौछे से छोटू का गला कस दिया. कुछ ही देर में उस का शरीर शांत हो गया. उस की मौत हो गई.

प्रमोद ने छोटू की जेब से उस का मोबाइल निकाल लिया. इस के बाद परमेश्वर और प्रमोद लाश को एक बोरी में भर कर पास के गांव मेदपुर में मुन्ना सिंह के खेत में ले जा कर डाल आए. बोरी को उन्होंने सरकंडे और घासफूस से ढक दिया था. दूसरे दिन छोटू दिखाई नहीं दिया तो घर वालों ने उस की तलाश शुरू की. लेकिन जब काफी कोशिशों के बाद भी उस का कुछ पता नहीं चला तो 26 मार्च, 2014 को उस के पिता बाबूराम ने थाना संदना में उस की गुमशुदगी लिखा दी.

28 मार्च को मेदपुर में गांव के कुछ लोगों ने मुन्ना सिंह के खेत में एक लाश पड़ी देखी तो यह खबर आसपास के गांवों तक फैल गई. बाबूराम को पता चला तो वह भी अपने घर वालों के साथ वहां पहुंच गया. वहां पड़ी लाश देख कर बिलखबिलख कर रोने लगे. लोगों द्वारा सांत्वना देने के बाद सभी किसी तरह शांत हुए तो लाश की सूचना थाना संदना पुलिस को दी गई.

सूचना पा कर थानाप्रभारी राजकुमार सरोज पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचे. मृतक छोटू के गले में अगौंछा पड़ा हुआ था. गले में उस के कसे जाने के निशान भी मौजूद थे. इस से यही लगा कि उसी अंगौछे से उस की गला घोंट कर हत्या की गई थी. प्राथमिक काररवाई के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय सीतापुर भिजवा दिया.

थाने लौट कर थानाप्रभारी राजकुमार सरोज ने बाबूराम की लिखित तहरीर पर परमेश्वर और संगीता के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया. दूसरी ओर इस की भनक लगते ही पकड़े जाने के डर से परमेश्वर संगीता के साथ फरार हो गया.

30 मार्च की सुबह 8 बजे थानाप्रभारी राजकुमार सरोज ने एक मुखबिर की सूचना पर संदना-मिसरिख रोड पर भरौना पुलिया के पास से परमेश्वर और संगीता को गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर जब पूछताछ की गई तो दोनों ने छोटू की हत्या की पूरी कहानी बयां कर दी.

31 मार्च को सुबह साढ़े 7 बजे पुलिस ने प्रमोद को भी गोपालपुर चौराहे से गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पूछताछ के बाद पुलिस ने तीनों को सीजेएम की अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया.

दरअसल, प्रमोद छोटू की हत्या करवाने के बाद छोटू के घर वालों से जा कर मिल गया था. उसी ने ही उन्हें बताया था कि छोटू और संगीता के नाजायज संबंध थे, जिस के बारे में परमेश्वर को पता चल गया था. इसी वजह से परमेश्वर ने संगीता के साथ मिल कर छोटू की हत्या की थी. प्रमोद ही लाश मिलने की जगह भी बाबूराम को ले गया था. बाबूराम ने उसी की बातों के आधार पर परमेश्वर और संगीता के खिलाफ रिपोर्ट लिखाई थी. इतनी चालाकी के बावजूद भी प्रमोद खुद को कानून के शिकंजे से नहीं बचा सका और पकड़ा गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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