कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
ऑडियो में सुनें पूरी कहानी
0:00
12:24

4जून, 2019 की बात है. उस समय सुबह के यही कोई 10 बजे थे. नवी मुंबई के उपनगर पनवेल के इलाके में सुकापुर-मेथर्न रोड पर स्थित वीरपार्क होटल के मैनेजर गणेशबाबू अपने केबिन में बैठे थे. तभी होटल के एक वेटर ने आ कर उन से जो कहा, उसे सुन कर वह चौंक उठे.

वेटर ने उन्हें बताया कि कमरा नंबर 104 के कस्टमर ने दरवाजा अंदर से बंद कर रखा है. वह दरवाजा नहीं खोल रहा, जबकि उस ने कई बार दरवाजा भी खटखटाया और आवाजें भी दीं.

कमरे के अंदर कस्टमर था और वह दरवाजा नहीं खोल रहा था, यह बात चौंकाने वाली थी. तभी मैनेजर को याद आया कि कमरा नंबर-104 के कस्टमर को तो अब तक चैकआउट कर देना चाहिए था. क्योंकि उस ने कमरा सिर्फ 12 घंटे के लिए बुक किया था. फिर ऐसा क्या हुआ कि उस ने न तो कमरा खाली किया और न ही कोई सूचना दी.

मैनेजर ने कमरे के इंटरकौम पर उस कस्टमर से संपर्क करने की कोशिश की. लेकिन कई बार कोशिश करने के बाद भी जब कस्टमर ने कमरे में रखा इंटरकौम नहीं उठाया तो वह परेशान हो गए और स्वयं उस वेटर को ले कर कमरा नंबर 104 के सामने जा पहुंचे. उन्होंने कई बार कमरे की घंटी बजाई. साथ ही आवाज दे कर भी कमरे के अंदर ठहरे कस्टमर की प्रतिक्रिया जानने की कोशिश की, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

आखिरकार उन्होंने कमरे की मास्टर चाबी मंगा कर कमरे का दरवाजा खोला. लेकिन कमरे के अंदर का दृश्य देख कर उन के होश उड़ गए. कमरे में 2 लाशें थीं, उन में एक शव महिला का था जो बिस्तर पर था और दूसरा पुरुष का, जो पंखे से झूल रहा था.

मामला संगीन था, अत: उन्होंने बिना देर किए इस की जानकारी खांडेश्वर पुलिस थाने के प्रभारी नागेश मोरे को दे दी. मामला 2 लोगों की मौत का था, इसलिए थानाप्रभारी ने मामले की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम को भी दे दी और इंसपेक्टर संदीप माने, वैभव लोटे और सहायक महिला पुलिस इंसपेक्टर सुप्रिया फड़तरे को साथ ले कर घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

जब तक पुलिस होटल वीरपार्क पहुंची तब तक होटल के कर्मचारी और वहां ठहरे कस्टमर कमरे के बाहर जमा हो चुके थे. होटल के मैनेजर गणेशबाबू ने थानाप्रभारी को बताया कि यह जोड़ा शाम के करीब 8 बजे आया था और सुबह 8 बजे तक उन्हें कमरा खाली कर देना था, मगर ऐसा नहीं हुआ. 2 घंटे और निकल जाने के बाद जब होटल के वेटर ने दरवाजा खटखटाया तो कोई जवाब नहीं मिला. मास्टर चाबी से दरवाजा खोला तो दोनों इसी अवस्था में मिले.

इस के बाद पुलिस कमरे के अंदर गई. पूरे कमरे का सरसरी तौर पर निरीक्षण किया. पुलिस ने मृत व्यक्ति के शव को पंखे से नीचे उतारा. पहले तो उन्हें लगा कि दोनों ने ही आत्महत्या की होगी, लेकिन जब दोनों शवों की बारीकी से जांच की तो मामले की हकीकत कुछ और ही निकली.

दोनों लाशें हत्या और आत्महत्या की तरफ इशारा कर रही थीं. महिला की उम्र यही कोई 30-32 साल के आसपास थी, जबकि पुरुष की उम्र 45-50 के करीब थी. महिला का चेहरा झुलसा हुआ था और गले पर निशान था.

होटल का रजिस्टर चैक करने पर पता चला कि महिला का नाम वनिता चव्हाण और पुरुष का नाम रावसाहेब दुसिंग था. आमतौर पर ऐसे लोग अपना नामपता सही नहीं लिखवाते, लेकिन होटल के मैनेजर ने बताया कि उन की आईडी में भी यही नाम है.

इस के बाद पुलिस ने आईडी ले कर उन के परिवार वालों को मामले की जानकारी दे दी.

उसी दौरान नवी मुंबई के डीसीपी अशोक दुधे और एसीपी रवि गिड्डे भी घटनास्थल पर पहुंच गए. उन के साथ क्राइम ब्रांच और फोरैंसिक टीम भी थी. फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल पर सबूत जुटाने शुरू कर दिए. टीम का काम खत्म होने के बाद पुलिस ने घटनास्थल की बारीकी से जांच की.

कमरे में नायलौन की रस्सी के अलावा 2 बोतल पैट्रोल और एक लीटर किसी कैमिकल का खाली डब्बा मिला.

रावसाहेब ने नायलौन की रस्सी में पंखे से लटक कर आत्महत्या की थी. जबकि कैमिकल का उपयोग वनिता का चेहरा झुलसाने में किया गया था. लेकिन ये लोग पैट्रोल क्यों ले कर आए थे, यह पता नहीं चला. पुलिस यही मान रही थी कि रावसाहेब शायद अपनी साथी महिला की हत्या कर सबूत नष्ट करना चाहता होगा, लेकिन उसे इस का मौका नहीं मिला था.

पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई पूरी करने के बाद दोनों शव पोस्टमार्टम के लिए पनवेल के रूरल अस्पताल भेज दिए. अब तक इस मामले की खबर मृतकों के परिवार वालों को मिल चुकी थी. वे रोतेबिखलते खांडेश्वर थाने पहुंच गए.

थानाप्रभारी ने अस्पताल ले जा कर दोनों शव दिखाए तो उन्होंने उन की शिनाख्त कर ली. बाद में पोस्टमार्टम होने पर शव घर वालों को सौंप दिए गए.

दोनों मृतकों के परिजनों से की गई पूछताछ और जांच के बाद मामले की जो कहानी सामने आई, उस का सार कुछ इस प्रकार था—

वनिता चव्हाण सुंदर व महत्त्वाकांक्षी महिला थी. उस का पुश्तैनी घर महाराष्ट्र के जनपद बीड़ के एक छोटे से गांव में था. मगर उस का परिवार रोजीरोटी की तलाश में मुंबई के उपनगर चैंबूर वाशी में आ कर बस गया था.

वनिता का बचपन मुंबई के खुशनुमा माहौल में बीता था. उस की शिक्षादीक्षा सब मुंबई में ही हुई थी. उस के पिता की मृत्यु हो गई थी. घर में बड़ा भाई और मां थी. घर की पूरी जिम्मेदारी उस के बड़े भाई के कंधों पर थी. इसीलिए भाई ने सोचा कि वह पहले बहन वनिता की शादी करेगा. उस के बाद अपने विषय में सोचेगा.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...