कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

कानपुर शहर के दक्षिण में बने एक रेस्टोरेंट की केबिन में बैठे प्रेम और सुशीला अपलक एकदूसरे की आंखों में झांक रहे थे. उन्होंने एकदूसरे का हाथ ऐसे पकड़ रखा था, जैसे आज के बाद फिर कभी न मिलने का डर सता रहा हो. काफी देर तक उन के बीच खामोशी छाई रही, फिर सुशीला ने ही चुप्पी तोड़ी, ‘‘प्रेम, तुुम पास होते हो तो जिंदगी बहुत सुहानी लगती है. दिल करता है कि बस यूं ही तुम्हारी आंखों में झांकते हुए तमाम उम्र गुजार दूं.’’

सुशीला के दिल में एक अजीब सी बेचैनी थी. होंठ थरथरा रहे थे. कहने लगी, ‘‘मैं जानती हूं कि तुम मुझे अपनी जान से भी ज्यादा चाहते हो. फिर भी न जाने क्यों मेरा दिल घबरा रहा है. ऐसा लग रहा है प्रेम, जैसे तुम मुझ से बहुत दूर जाने वाले हो.’’ सुशीला की आंखें भर आई थीं. उस ने धीरे से अपना सिर प्रेम की छाती पर टिका दिया था, ‘‘तुम कुछ बोलते क्यों नहीं? खामोश क्यों हो? तुम्हारी खामोशी तो मुझे आने वाले किसी तूफान का दस्तक दे रही है.’’

“घबराओ मत सुशीला, धैर्य रखो और हिम्मत से काम लो.’’ प्रेम ने सुशीला की जुल्फों में अपनी अंगुलियां फिराते हुए कहा, ‘‘मैं जानता हूं कि तुम्हारे डर की वजह क्या है, तुम संगीता के बारे में सोच रही हो न?’’

सुशीला चौंक पड़ी, ‘‘तुम्हें कैसे पता?’’

“वह मेरी पत्नी है और तुम मेरी धडक़न. मैं खुद से ज्यादा तुम्हें जानता हूं. तुम्हारी इन आंखों में कौन सा सपना है, मुझे सब पता है.’’

“तुम सही कह रहे हो प्रेम, लेकिन संगीता के डर से निजात भी तुम्हीं दिला सकते हो, सिर्फ तुम ही.’’

सुशीला उत्तर प्रदेश के कानपुर (देहात) के गजनेर कस्बा के रहने वाले रामकुमार की बड़ी बेटी थी. उस से छोटी शीला थी. सुशीला का कोई भाई नहीं था, इसलिए उन दोनों बहनों को ही घरपरिवार वाले लडक़ों की तरह चाहते थे. पिता रामकुमार व चाचा शिवकुमार, सुशीला व शीला से बहुत प्यार करते थे. उन दोनों की छोटी से छोटी फरमाइश का उन्हें पूरा खयाल रहता था.

रामकुमार की बड़ी बेटी सुशीला दिखने में सुंदर थी. प्रकृति ने न केवल उसे रूपसौंदर्य से सजाया था, बल्कि उसे स्वभाव भी बड़ा मिलनसार दिया था. उस का यही मोहक अंदाज हर किसी के मन को मोह लेता था. उस का यह माधुर्य रूप जहां युवकों की आंखों में यौवन का खुमार पैदा करता था, वहीं उस की सहेलियों में इष्र्या की भावना. सुशीला इन सभी बातों को समझते हुए भी अपने आप में मस्त रहती थी. जब भी उस की कोई सहेली कुछ व्यंग्य करती तो वह उसे हंस कर टाल देती थी.

महत्त्वाकांक्षी थी सुशीला…

बेटी के शरीर पर यौवन का भार लदता देख कर उस के पिता ने उस की शादी कानपुर शहर के बर्रा भाग 8 निवासी रामबाबू उर्फ पप्पू से कर दी. पप्पू मूलरूप से औरैया जिले के गांव मटेरा का रहने वाला था. मातापिता गांव में रहते थे. उन के पास खेती की जो थोड़ीबहुत जमीन थी, उस की खेती से घर का खर्च चलाते थे. पप्पू रोजीरोटी की तलाश में कानपुर शहर आ गया था. वह दादा नगर स्थित गत्ता बनाने वाली फैक्ट्री में काम करता था.

रामबाबू उर्फ पप्पू गठीला युवक था. सुशीला के रूप में सुंदर पत्नी पा कर वह निहाल हो गया था. विवाह के शुरुआती दिनों में पतिपत्नी के बीच शारीरिक आकर्षण ही प्रमुख रहता है. तब मन में झांकने की फुरसत नहीं होती. बस, दोनों एकदूसरे को अच्छे लगते हैं. ऐसा ही रामबाबू और सुशीला के बीच भी हुआ. लेकिन जब धीरेधीरे शारीरिक आकर्षण ठंडा पड़ा तो रामबाबू को पता चल गया कि सुशीला बहुत महत्त्वाकांक्षी किस्म की औरत है. वह रामबाबू से तरहतरह की फरमाइशें करने लगी.

प्राइवेट नौकरी करने वाला रामबाबू उस की हर फरमाइश पूरी करने में असमर्थ था. सुशीला इस बात को नहीं समझती थी बल्कि लड़ाईझगड़े पर उतर आती थी. कुछ ही सालों में दोनों का दांपत्य जीवन कड़वाहट से भर गया. कई बार तो दोनों में मारपीट तक हो जाती और फिर महीनों तक बोलचाल बंद रहती. इसी बीच सुशीला 2 बच्चों की मां बन गई. 2 बच्चों की मां बनने के बाद भी सुशीला के व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया.

पारिवारिक कलह से निजात पाने के लिए रामबाबू उर्फ पप्पू ने शराब का सहारा लिया. बाद में वह उस का आदी हो गया. खालिस शराब और घर की किचकिच से उस का स्वास्थ्य गिरता चला गया. इस का नतीजा यह हुआ कि उस की नौकरी छूट गई, वह दरदर भटकने लगा और एकएक पैसे को मोहताज हो गया. पत्नी सुशीला ने भी उस से किनारा कर लिया था. अत: रामबाबू अपने गांव में आ कर रहने लगा और पिता के साथ खेती के काम में हाथ बंटाने लगा. उस ने भी पत्नी से किनारा कर लिया.

सुशीला ने भी पति की कोई सुध नहीं ली और वह दोनों बच्चों के साथ रहने लगी. बच्चों के पालनपोषण के लिए उस ने दादानगर स्थित प्लास्टिक की एक फैक्ट्री में नौकरी कर ली. लेकिन फैक्ट्री में उस का ज्यादा दिनों तक मन नहीं लगा, अत: उस ने नौकरी छोड़ कर बर्रा के विल्स चौराहे पर पान की दुकान खोल ली. शुरू में तो दुकान कम चली, लेकिन बाद में ग्राहकों की संख्या बढ़ती गई और दुकान से आमदनी होने लगी.

सुशीला 30 साल की उम्र पार कर चुकी थी, इस के बावजूद भी उस की खूबसूरती में कोई खास कमी नहीं आई थी. उस का मांसल शरीर तथा बड़ीबड़ी आंखें किसी को भी अपनी ओर आकर्षित करने में सक्षम थीं. वह सजधज कर पान की दुकान पर बैठती थी. उस ने अपने कुशल व्यवहार से ग्राहकों का मन मोह लिया था.

एक रोज प्रेम केसरवानी नाम का युवक उस की दुकान पर पान खाने आया तो पहली ही नजर में सुशीला उस के दिल में उतर गई. इस के बाद वह अकसर सुशीला की दुकान पर आने लगा. पान खाने का तो बहाना होता, उस का असली मकसद होता सुशीला का दीदार करना और उस से हंसीठिठोली करना. सुशीला भी उस से खुल गई थी और उस की लच्छेदार बातों में दिलचस्पी लेने लगी थी.

सुशीला को चाहने लगा प्रेम…

प्रेम केसरवानी वरुण विहार (बर्रा) में रहता था. वह शादीशुदा और एक बच्चे का बाप था. उस की शादी संगीता से हुई थी. संगीता सांवले रंग की जरूर थी, लेकिन नाकनक्श अच्छा था. संगीता ने विवाह के पहले जैसे राजकुमार की कल्पना की थी, प्रेम ठीक उसी के अनुरूप था. उस का दांपत्य जीवन हंसीखुशी से गुजर रहा था. प्रेम केसरवानी कबाड़ का व्यवसाय करता था. इस काम में उस की अच्छी कमाई होती थी. इसी कमाई से उस ने दोमंजिला मकान बनवा लिया था और एक गोदाम भी किराए पर ले लिया था. वह अय्याश प्रवृत्ति का था. औरत उस की कमजोरी थी. घर में जवान बीवी होने के बावजूद वह बाहर ताकझांक करता रहता था.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...