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सुशीला उम्र मेंं उस से बड़ी थी, इसलिए प्रेम उसे भाभी कहता था और हंसीमजाक भी कर लेता था. सुशीला उस के मजाक का बुरा नहीं मानती थी. अब वह उस के घर भी आने लगा था. सुशीला का सौंदर्य उसे विचलित भी करने लगा था. हंसीमजाक के दौरान प्रेम उस के शरीर को स्पर्श करने से भी नहीं चूकता था. सुशीला बुरा मानने के बजाय मुसकरा कर कह देती, ‘‘आजकल तुम बड़े शरारती हो गए हो. ऐसी हरकतें अच्छी नहीं होतीं. कोई देख लेगा तो..?’’

“कोई देख लेगा तो क्या हो जाएगा भाभी?’’ प्रेम पूछ बैठता.

“तुम्हारा तो कुछ नहीं होगा प्रेम, लेकिन मैं बदनाम हो जाऊंगी.’’ हालांकि सुशीला प्रेम की हरकतों से मन ही मन खुश होती थी और उस का शरीर रोमांच से भर उठता था. प्रेम का घर आना सुशीला को अच्छा लगने लगा था. वह जब भी आता, उस के बच्चों को खानेपीने की कुछ चीजें जरूर लाता, जिस से बच्चे भी उस से घुलमिल गए थे.

एक दिन प्रेम उस के घर आया हुआ था, तभी सुशीला नहा कर बाथरूम से निकली थी. उस के बदन पर पानी की बूंदें मोती की तरह चमक रही थीं. प्रेम को देख कर सुशीला बड़ी अदा के साथ जुल्फों को झटक कर अंदर वाले कमरे में चली गई. कुछ देर बाद सुशीला आई और चाय बना कर लाई. दोनों ने साथ बैठ कर चाय पी, साथ में मुसकरा कर 2-4 बातें कीं. प्रेम उस की इन्हीं अदाओं पर मर मिटा. सुशीला जब हंसती थी तो लगता था, जैसे चूडिय़ां खनक उठी हों. उभारों की बनावट कुछ ऐसी थी जैसे लगता था कि यौवन चोली फाड़ कर बाहर आ जाएगा. यह सब प्रेम के दिमाग में बस गया था.

उस दिन प्रेम का काम में मन नहीं लगा और रात को भी उसे नींद नहीं आई. बिस्तर पर पूरी रात वह करवटें बदलता रहा. पत्नी संगीता ने 2-4 बार पूछा भी था कि आखिर बात क्या है तो उसे बहुत बुरा लगा था. प्रेम चाहता था कि उस की कल्पनाओं में कोई खलल न डाले और वह सुशीला के साथ सपने सजाता रहे. सुबह हुई, तब भी प्रेम का मन किसी काम में नहीं लगा. वह अपनी गोदाम पर गया जरूर था, लेकिन उस का दिलदिमाग सुशीला के घर पर ही था. उस के एकएक अंग प्रेम की आंखों के सामने मचल उठते थे. मन करता कि वह अभी उठे और सुशीला के पास पहुंच जाए.

शुरू हुई अवैध संबंधों की कहानी…

उधर सुशीला का भी कुछ यही हाल था. प्रेम जिन लच्छेदार बातों का सिलसिला वहां छोड़ कर आया था, सुशीला अभी तक उसी में उलझी हुई थी. दिनरात प्रेम केसरवानी की बातें उस के कानों में शहद की तरह टपकती रहतीं और उस पर मदहोशी का आलम छाया रहता. सोतेजागते अब उस की नजरों के आगे प्रेम ही प्रेम दिखाई पड़ता.

दरअसल, सुशीला तन्हा जिंदगी बिता रही थी. पति से अब उसे कोई मतलब न था. अत: वह प्रेम में पति का अक्स तलाशने लगी थी. मोहब्बत की यही तो निशानी है. हीररांझा, लैलामजनूं और न जाने कितने प्रेमीप्रेमिका चाहत की मंजिल पाने को कुरबान हो गए. अब सुशीला और प्रेम भी उसी रास्ते पर चल पड़े थे. रात होते ही सुशीला का दिल मचलने लगता, तनमन बेकाबू हो उठता और इच्छा होती कि प्रेम उसे अपनी बांहों में भर कर खूब प्यार करे.

एक रोज सुबह प्रेम केसरवानी अपनी दुकान जा रहा था. वह विल्स चौराहा पहुंचा तो देखा कि सुशीला की पान की दुकान बन्द है. वह सोचने लगा, ‘‘सुशीला तो सुबह 10 बजे के पहले ही दुकान पर आ जाती थी, फिर आज बंद क्यों है? कहीं कुछ..?’’ मन में उलटेसीधे विचार आए तो प्रेम ने अपनी स्कूटी सुशीला के घर की ओर मोड़ दी. चंद मिनटों में ही वह सुशीला के घर पहुंच गया. सुशीला घर में बैड पर लेटी थी. वह उसे देख कर तड़प उठा, ‘‘यह क्या सुशीला, तुम्हारा चेहरा इतना उतरा हुआ क्यों है? तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’

“नहींनहीं, बस यूं ही थोड़ा बुखार आ गया था.’’ सुशीला ने बिस्तर से उठने का प्रयास करते हुए कहा, ‘‘तुम खड़े क्यों हो? बैठो न प्रेम.’’

“बच्चे दिखाई नहीं पड़ रहे हैं. कहीं गए हैं क्या?’’ प्रेम ने दाएंबाएं नजर दौड़ा कर पूछा.

“बेटी स्कूल गई है और बेटे को सामान लेने बाजार भेजा है.’’

प्रेम को लगा कि यह उचित मौका है. आज उसे अपने दिल की बात कह देनी चाहिए. वह धीरे से बैड पर उसी के बगल में बैठ गया और एकटक उसे निहारने लगा. सुशीला ने उसे इस तरह निहारते देखा तो बोली, ‘‘प्रेम, तुम मुझे इस तरह क्यों देख रहे हो. दिल में जो भी बात हो, बता दो.’’

“बता दूं?’’ कहते हुए प्रेम एकदम उस के चेहरे पर झुक गया. उस की आंखों में उसी की तसवीर थी. सुशीला की सांसें गरम हो उठीं. दिल की धडक़नें बढ़ गईं. प्रेम का अंगअंग भी फडक़ने लगा. मदहोशी के आलम में उस का एक हाथ सुशीला के कमर में पहुंच गया और दूसरा छाती पर रेंगने लगा तो सुशीला के भीतर जैसे तूफान मचल उठा. वह सिसियाकर प्रेम से लिपट गई, ‘‘बस, अब और अधिक मत तड़पाओ.’’

प्रेम केसरवानी तो यही चाहता था. सुशीला का आमंत्रण पाते ही उस ने उसे अपनी बलिष्ठ भुजाओं में जकड़ लिया. सुशीला भी उस से लता की भांति लिपट गई. दोनों के बीच खड़ी शर्मोहया की दीवार कुछ ही पलों में तहसनहस हो गई. उन के बीच एक बार अनैतिक संबंध कायम हुए तो फिर यह सिलसिला शुरू हो गया. जब भी समय मिलता वे दोनों एकदूसरे में समा जाते. फिर भी लोगों को उन के प्रेम संबंधों का पता चल ही गया. वे जान गए कि सुशीला और प्रेम के बीच नाजायज रिश्ता है. लेकिन लोगों की परवाह न सुशीला ने की और न ही प्रेम ने. वे दोनों अपनी ही मस्ती में डूबे रहे.

प्रेम की पत्नी को लग गई अवैध संबंधों की भनक…

सुशीला से प्रेम का रिश्ता जुड़ा तो उस की अपनी पत्नी संगीता में दिलचस्पी कम हो गई. वह उस की उपेक्षा करने लगा. प्रेम कभी घर आता तो कभी नहीं भी आता. संगीता पूछती तो बहाना बना देता. संगीता ने जब इस की वजह जाननी चाही तो उस के हाथों के तोते उड़ गए. पता चला कि प्रेम आजकल सुशीला नाम की औरत के साथ अपनी खुशियां बांटता है. तब तो संगीता के होश उड़ गए. वह सोचने लगी कि आखिर सुशीला में ऐसा क्या है, जो उस में नहीं है. संगीता का सिर चकराने लगा. उसे अपनी हरीभरी दुनिया उजड़ती नजर आने लगी.

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