कॉलगर्ल राबिया के प्यार में Professor की मौत

अपने एक छात्र के जरिए प्रोफेसर दीपक पाटील एक कालगर्ल राबिया के चक्कर में पड़ गए. जब यह बात राबिया के हिस्ट्रीशीटर प्रेमी राज चव्हाण को पता चली तो…

महाराष्ट्र के जिला जलगांव के अमलनेर सिटी के रहने वाले दीपक पाटील जययोगेश्वर कालेज में प्रोफेसर थे. अपने सुखी वैवाहिक जीवन में मशगूल प्रो. दीपक पाटील का एक विद्यार्थी था सागर मराठे. सागर होनहार छात्र था. लेकिन एक दोस्त के माध्यम से उस की जानपहचान राबिया बानो नाम की एक कालगर्ल से हो गई थी. सागर राबिया से मिलनेजुलने लगा, जिस से उस के भी राबिया से शारीरिक संबंध बन गए थे. वैसे तो राबिया के कई ग्राहक थे लेकिन उन सब में वह सागर को बहुत चाहती थी. राबिया का जब मन होता वह सागर को फोन कर के बातें कर लेती थी. एक बार की बात है. सागर और राबिया एक रेस्टोरेंट में बैठे थे. तभी इत्तफाक से प्रो. दीपक पाटील भी वहां आ गए.

सागर ने राबिया को अपनी दोस्त बताते हुए उस की मुलाकात प्रो. दीपक पाटील से कराई. पहली ही मुलाकात में राबिया की खूबसूरती और बातों से प्रो. दीपक बहुत प्रभावित हुए. हालांकि वह शादीशुदा थे, इस के बावजूद भी राबिया को उन्होंने अपने दिल में बसा लिया. अगले दिन सागर जब कालेज आया तो उन्होंने किसी बहाने से सागर से राबिया का फोन नंबर ले लिया. प्रो. पाटील का मन राबिया से बात करने के लिए आतुर था. ड्यूटी पूरी करने के बाद उन्होंने राबिया को फोन कर के उसे अपने बारे में बताया. राबिया भी समझ गई कि यह मोटी आसामी है, इसलिए वह भी उन से रसभरी बातें करने लगी.

इस के बाद आए दिन प्रोफेसर साहब की राबिया से फोन पर बातें होने लगीं. घर में खूबसूरत बीवी होने के बावजूद वह राबिया को चाहने लगे थे. इतना ही नहीं, उस से मुलाकातें भी करने लगे थे. प्रो. दीपक पाटील का जब मन होता वह राबिया को होटल में बुला लेते और अपनी हसरतें पूरी करते. लेकिन इस के बदले में वह उसे पैसे कम देते थे. राबिया 2-4 बार तो उन से होटल में मिली लेकिन बाद में उस ने उन से मिलने के लिए मना कर दिया. इस पर प्रो. दीपक उसे बारबार फोन कर के तंग करने लगे. उन के बारबार तंग करने से राबिया परेशान हो गई. उस ने इस की शिकायत सागर मराठे से की क्योंकि उसी ने उस की मुलाकात प्रो. दीपक से कराई थी. सागर ने भी प्रोफेसर को समझाया लेकिन वह नहीं माने.

जब राबिया ने उन की काल रिसीव करनी बंद कर दी तो वह दूसरे नंबरों से उसे काल करने लगे. उस ने कई बार प्रो. दीपक को झिड़क भी दिया था, पर वह अपनी हरकत से बाज नहीं आए. अमलनेर की ही म्हाडा कालोनी में रहने वाली राबिया का एक प्रेमी था राज चव्हाण. वह हिस्ट्रीशीटर था. अलगअलग पुलिस थानों में उस पर दर्जनों केस दर्ज थे. बता दें राबिया शादीशुदा युवती थी. उस की शादी सूरत में हुई थी. शादी के कुछ ही दिनों में राबिया ने पति का घर छोड़ दिया था. बाद में वह अमलनेर में अपनी मां के यहां आ कर रहने लगी थी. पति को छोड़ने के बाद राबिया पूरी तरह आजाद हो गई थी.

राबिया का अमलनेर के रेलवे परिसर में आनाजाना लगा रहता था. इसी इलाके में राज चव्हाण भी रहता था. हर रोज दोनों की नजरें मिलने लगी थीं. कुछ ही दिनों में दोनों को एकदूसरे से प्यार हो गया था. अपराध के सिलसिले में राज चव्हाण को लंबे समय के लिए दूसरी जगहों पर जाना पड़ता था. कभी पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिए जाने पर उसे जेल जाना पड़ता तो राबिया के सामने आर्थिक समस्या खड़ी हो जाती थी. अपने प्रेमी राज चव्हाण की गैरमौजूदगी में वह जिस्मफरोशी का धंधा करती थी. राबिया को प्रो. दीपक का बारबार फोन करना पसंद नहीं था. प्रोफेसर के अलावा उसे सागर मराठे पर भी गुस्सा आता था. एक दिन उस ने प्रोफेसर दीपक और सागर की शिकायत राज चव्हाण से कर दी. अपनी प्रेमिका की शिकायत सुन कर राज का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. उस ने दोनों को सबक सिखाने की ठान ली.

राज चव्हाण का एक दोस्त था विजय डेढ़े. विजय बदलापुर मुंबई में रहता था. राज और विजय ने राबिया को परेशान करने वाले प्रोफेसर दीपक और उन के विद्यार्थी सागर को मारपीट कर सीधा करने का प्लान बनाया. वे दोनों को एक साथ बुलाना चाहते थे. यह काम राबिया ही कर सकती थी इसलिए राज ने राबिया के माध्यम से प्रो. दीपक और सागर को साथसाथ बुलाने की योजना बनाई. राज के इशारे पर राबिया ने दोनों को 3 मार्च, 2018 की रात के 10 बजे साथसाथ अमलनेर के प्रताप महाविद्यालय के पास स्थित स्टेडियम के पास पहुंचने को कह दिया. राबिया का फोन आने पर प्रोफेसर साहब फूले नहीं समा रहे थे.

चूंकि दोनों को राबिया ने बुलाया था, इसलिए प्रो. दीपक और सागर मराठे का आना निश्चित था. उन के आने से पहले ही राज चव्हाण और विजय रात के अंधेरे में स्टेडियम के पास छिप कर बैठ गए. रात 10 बजे के करीब प्रो. दीपक और सागर मराठे स्टेडियम के पास पहुंचे तो उन्हें वहां राबिया मिल गई. तभी अचानक सागर मराठे का ध्यान अंधेरे में छिप कर बैठे राज चव्हाण की तरफ चला गया. सागर उसे पहचानता था, इसलिए वहां से भाग गया. कहीं प्रोफेसर साहब भी न भाग निकलें, इसलिए छिपे बैठे राज चव्हाण और विजय ने दीपक पाटील को दबोच लिया. उन्होंने उस समय प्रोफेसर साहब से कुछ नहीं कहा, बल्कि उन्हें एक ढाबे पर ले गए, वहां पर दोनों ने मिल कर प्रो. दीपक को जबरन जरूरत से ज्यादा मात्रा में शराब पिलाई.

छात्रों को पढ़ाने वाला प्रोफेसर अय्याशी के चक्कर में 2 गुंडों के बीच बैठा जबरदस्ती शराब पी रहा था. कुछ ही देर में प्रोफेसर पर नशा छा गया, उन्हें कुछ नहीं सूझ रहा था. इस दौरान उन का बैंक एटीएम कार्ड दोनों गुंडों ने छीन लिया. उस का पासवर्ड भी विजय ने मारपीट कर पूछ लिया. एटीएम कार्ड हासिल करने के बाद दोनों ने उन की डंडे से पिटाई करनी शुरू कर दी. इस मारपीट में प्रो. दीपक बुरी तरह से घायल हो गए. उन्हें पता था कि बदनामी से बचने के लिए प्रोफेसर मारपीट की बात किसी को नहीं बताएंगे. बाद में दोनों हमलावरों ने जख्मी प्रोफेसर को उन्हीं की बाइक से शहर के डा. हजारे के क्लीनिक तक पहुंचाया. तब तक काफी रात हो चुकी थी. उन्होंने डा. हजारे को काफी आवाजें दीं, लेकिन किसी ने गेट नहीं खोला.

आखिर राज और विजय ने जख्मी प्रोफेसर को उसी हालत में क्लीनिक के पास छोड़ दिया और उन की मोटरसाइकिल से वहां से भाग निकले. प्रोफेसर का एटीएम कार्ड उन के पास ही था, जिस से उन्होंने करीब 40 हजार रुपए निकाल लिए. अस्पताल के बाहर लहूलुहान पड़े प्रो. दीपक को इलाज नहीं मिला तो उन्होंने दम तोड़ दिया. रात लगभग 2 बजे उन की लाश पर किसी की नजर पड़ी तो उस ने इस की सूचना अमलनेर पुलिस थाने में दी. खबर मिलने पर थानाप्रभारी अनिल बड़गूजर पुलिस टीम के साथ डा. हजारे के क्लीनिक के पास पहुंची. सुबह करीब साढ़े 3 बजे इस घटना की खबर मृतक प्रो. दीपक की पत्नी तथा रिश्तेदारों को मिली तो वे सब वहां पहुंच गए. सुबह होने पर पुलिस ने जब उन की लाश का निरीक्षण किया तो उन के शरीर पर चोटों के गहरे घाव थे.

लोग इसे एक सड़क दुर्घटना मान कर चल रहे थे लेकिन उन की बाइक वहां नहीं थी. इस से पुलिस उन की मौत को संदेहात्मक मान रही थी. प्रो. दीपक की पत्नी को यह हत्या का मामला लग रहा था, इसलिए उन्होंने अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करा दिया. इस घटना को ले कर अमलनेर शहर में खलबली मच गई थी. पुलिस अधीक्षक दत्तात्रेय कराले ने पूरे मामले को ध्यान में रखते हुए इस केस की जांच पर क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर सुनील कुराड़े को भी लगा दिया था. मामले की जांच थाना पुलिस के अलावा क्राइम ब्रांच के इंचार्ज सुनील कुराडे और उन की टीम भी कर रही थी.

अपराध करने के बाद राज चव्हाण, विजय डेढे और राबिया फरार हो चुके थे. इधरउधर घूमतेघूमते वे सूरत पहुंचे. सूरत में राबिया की बहन का बेटा रहता था, जिस का नाम अजीज था. कुछ दिनों तक वे अजीज के पास रहे. वहीं पर राज को पैसों की जरूरत पड़ी तो उस ने अजीज को अपना मोबाइल बेच दिया. जलगांव क्राइम ब्रांच की टीम को जांच के दौरान यह जानकारी मिल गई थी कि दीपक पाटील का राज चव्हाण की प्रेमिका राबिया के पास आनाजाना था, इसलिए यह आशंका जताई जाने लगी कि उन की हत्या में बदमाश राज चव्हाण का हाथ हो सकता है. ऐसे में पुलिस का राज चव्हाण से पूछताछ करना जरूरी था. पुलिस को राज चव्हाण का मोबाइल नंबर मिल चुका था, जो सर्विलांस पर लगा दिया था. पुलिस को उस के मोबाइल की लोकेशन सूरत की मिली. क्राइम ब्रांच की टीम तुरंत सूरत के लिए रवाना हो गई. चूंकि राज अपना फोन अजीज को बेच चुका था, इसलिए पुलिस ने अजीज को हिरासत में ले लिया. उस ने बताया कि राज और राबिया सूरत से जा चुके हैं.

राज कोई दूसरा फोन प्रयोग करने लगा था. उस से उस ने 1-2 बार अजीज को भी फोन किया था. पुलिस ने उस के दूसरे नंबर की जांच की. वह नंबर उस समय बंद आ रहा था, जिस से उस की लोकेशन नहीं मिल रही थी. जब अजीज पुलिस हिरासत में था, उसी दौरान उसे राज चव्हाण ने फोन किया. अजीज ने मोबाइल का स्पीकर औन कर के पुलिस के सामने ही उस से बात की. बातचीत के दौरान राज ने अजीज को बताया कि वह इस समय राबिया के साथ वाशीम जिले के कारंजा गांव में रह रहा है. यह जानकारी मिलने पर क्राइम ब्रांच की टीम 16 मई, 2018 को कारंजा के लिए रवाना हो गई. पुलिस ने कारंजा से लगभग 10 किलोमीटर दूर एक झुग्गी बस्ती में रह रहे राज और राबिया को हिरासत में ले लिया.

दोनों से पूछताछ की गई तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि प्रो. दीपक की हत्या विजय डेढे के साथ मिल कर की थी. क्राइम ब्रांच ने यह जानकारी अपने अधिकारियों को दी तो अमलनेर पुलिस ने विजय डेढे को भी गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने राबिया, उस के प्रेमी राज चव्हाण और विजय डेढे से विस्तार से पूछताछ करने के बाद उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. कथा लिखने तक आरोपियों की जमानत नहीं हो सकी थी. मामले की जांच थाना अमलनेर के प्रभारी अनिल बड़गूजर कर रहे हैं.

Aarushi Murder case : तलवार दंपति पर क्यों हुआ बेटी की हत्या का शक

अदालत ने परिस्थितिजन्य साक्ष्यों को आधार मान कर भारत की सब से बड़ी मर्डर मिस्ट्री माने जाने वाले आरुषि और हेमराज मर्डर केस में डा. राजेश तलवार और उन की पत्नी डा. नूपुर तलवार को सजा तो सुना दी है, लेकिन अभी भी कई सवाल ऐसे हैं जिन का जवाब किसी के पास नहीं है.

25 नवंबर, 2013 को गाजियाबाद की कचहरी में कुछ ज्यादा ही गहमागहमी थी. अदालत के बाहर और अंदर भारी संख्या में पुलिस तैनात की गई थी. इस की वजह यह थी कि उस दिन कचहरी परिसर स्थित सीबीआई की विशेष अदालत में देश के सब से चर्चित आरुषि मर्डर केस का फैसला सुनाया जाना था. यह ऐसा मामला था, जिस पर पूरे देश की निगाहें लगी हुई थीं. आरुषि मर्डर केस विशेष सीबीआई अदालत के विशेष न्यायाधीश श्याम लाल की अदालत में चल रहा था. उन की अदालत के बाहर भी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे. वकीलों और आरोपी तलवार दंपति के परिजनों के अलावा किसी अन्य को विशेष सीबीआई कोर्ट में नहीं जाने दिया जा रहा था. मीडियाकर्मियों को भी अदालत में जाने की मनाही थी. फिर भी अदालत खचाखच भरी थी. माननीय न्यायाधीश श्याम लाल जब अदालत में आ कर अपनी कुरसी पर बैठे तो माहौल एकदम शांत हो गया.

इस अदालत में आरुषि मर्डर केस की सुनवाई 5 साल 6 महीने 10 दिन चली थी और केस की 212 तारीखें पड़ी थीं. केस से जुड़े 46 लोगों ने कोर्ट में पेश हो कर गवाहियां दी थीं, जिस में 7 गवाहियां बचाव पक्ष की थीं. सीबीआई ने कोर्ट में जो चार्जशीट दाखिल की थी, उस में आरुषि की हत्या का इशारा डा. राजेश तलवार और उन की पत्नी नूपुर तलवार की ओर था. कोर्ट में अभियोजन पक्ष और बचाव पक्ष के वकीलों की जिरह पूरी होने के बाद माननीय न्यायाधीश ने 25 नवंबर को केस का फैसला सुनाने का दिन मुकर्रर किया. अदालत में मौजूद सभी लोगों की निगाहें जज साहब की तरफ लगी हुई थीं. अदालत में मौजूद आरोपी डा. राजेश तलवार और उन की पत्नी डा. नूपुर तलवार भी थे. माननीय न्यायाधीश श्याम लाल ने जब फैसला सुनाना शुरू किया तो लोगों की उत्सुकता और भी बढ़ गई.

माननीय न्यायाधीश ने अपने फैसले में कहा कि मांबाप अपने बच्चों के सब से बड़े रक्षक होते हैं. किसी की जिंदगी से किसी को भी खिलवाड़ करने का हक नहीं है. सीबीआई की जांच और परिस्थितिजन्य साक्ष्यों से यह साबित हो चुका है कि तलवार दंपति ने ही अपनी उस बेटी की जिंदगी छीन ली, जिस ने बमुश्किल 14 बसंत देखे थे. इतना ही नहीं, उन्होंने नौकर को भी मार डाला. ऐसा कर के इन्होंने धर्म और कानून दोनों का उल्लंघन किया है. माननीय न्यायाधीश ने 204 पेज के अपने आदेश में डा. तलवार दंपति को दोषी ठहराने की 26 वजहें बताई थीं. उन्होंने धर्मग्रंथों का भी जिक्र किया. कुरान का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि अल्लाह ने जो पवित्र जिंदगी बख्शी है, उसे छीना नहीं जाना चाहिए. अगर हम धर्म की रक्षा करेंगे तो धर्म हमारी रक्षा करेगा. इसी तरह अगर हम कानून की हिफाजत करेंगे तो कानून हमारी हिफाजत करेगा. दोनों ही आरोपियों ने देश के कानून का उल्लंघन किया है.

जज ने डा. राजेश और नूपुर को अपनी बेटी और नौकर हेमराज की हत्या के साथसाथ सुबूत नष्ट करने का भी दोषी माना. पतिपत्नी को दोषी करार देने के बाद उन्होंने सजा सुनाने के लिए अगला दिन यानी 26 नवंबर तय कर दिया. फैसला सुनते ही अदालत में मौजूद डा. राजेश तलवार और डा. नूपुर तलवार के चेहरों पर मुर्दनी छा गई. डा. नूपुर की आंखों में आंसू छलक आए. कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने डा. राजेश और डा. नूपुर को हिरासत में ले लिया. दोपहर बाद 3 बज कर 25 मिनट पर जज द्वारा सुनाए गए फैसले की खबर न्यूज चैनलों पर प्रसारित होने लगी. जरा सी देर में पूरी दुनिया को पता चल गया कि डा. तलवार दंपति ने ही अपनी एकलौती बेटी आरुषि और नौकर हेमराज की हत्या की थी.

आरुषि की हत्या के बाद से ही इस केस में कई उतारचढ़ाव आए थे. उत्तर प्रदेश पुलिस से जांच सीबीआई तक पहुंची. कई जांच अधिकारी बदले. आरुषि मर्डर केस आखिर शुरू से ही इतना पेचीदा क्यों रहा, यह जानने के लिए इस केस की थोड़ी पृष्ठभूमि जान लेना जरूरी है. उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्धनगर (नोएडा) के सेक्टर-25, जलवायु विहार के फ्लैट नंबर एल-32 में रहने वाले डा. राजेश तलवार के परिवार में पत्नी डा. नूपुर तलवार के अलवा एक ही बेटी थी आरुषि. तलवार दंपति जानेमाने दंत चिकित्सक थे. आरुषि उन की शादी के 8 साल बाद 24 मई, 1993 को टेस्टट्यूब तकनीक से पैदा हुई थी, इसलिए वह मांबाप की बहुत लाडली थी.

दिल्ली पब्लिक स्कूल की छात्रा आरुषि का जन्मदिन हालांकि 24 मई को था, लेकिन वह अपना जन्मदिन 15 मई को मनाती थी. इस की वजह यह थी कि 15 मई को उस के स्कूल की गरमी की छुट्टियां शुरू हो जाती थीं और उस के ज्यादातर दोस्त जन्मदिन के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आ जाते थे. सन 2008 में आरुषि के स्कूल की छुट्टियां 16 मई से हुईं तो उस ने डा. तलवार से 16 मई को ही जन्मदिन मनाने की बात कही. वह इस के लिए तैयार हो गए. डा. तलवार जन्मदिन के मौके पर बेटी को कोई न कोई महंगा गिफ्ट जरूर देते थे. जिज्ञासावश आरुषि ने इस बारे में उन से पूछा तो उन्होंने एक डिजिटल कैमरा दिखाते हुए कहा कि यही तुम्हारा बर्थडे गिफ्ट है.

कैमरा देख कर आरुषि बहुत खुश हुई. उस ने उसी समय उस से कई फोटो खींचे. डा. राजेश तलवार ने भी उसी कैमरे से आरुषि के कई फोटो लिए. 15 मई, 2008 की देर शाम बर्थडे कार्यक्रम की प्लानिंग के बाद डा. राजेश तलवार अपने कमरे में चले गए. आरुषि भी अपने कमरे में जा कर सो गई. अगले दिन 16 मई की सुबह डा. तलवार दंपति को पता लगा कि उन की 14 साल की बेटी आरुषि की हत्या हो गई है. डा. राजेश तलवार ने बेटी की हत्या की खबर पड़ोसियों को दी तो वे हैरान रह गए. पौश कालोनी में फ्लैट के अंदर हत्या हो जाना चौंकाने वाली बात थी. तलवार दंपति का रोरो कर बुरा हाल था. लोग उन्हें ढांढस बंधा रहे थे. बहरहाल, डा. राजेश तलवार ने थाना सैक्टर-20 को फोन कर के बेटी की हत्या की खबर दी. उस समय थानाप्रभारी दाताराम नौनेरिया थे.

डा. राजेश तलवार का फ्लैट सेकेंड फ्लोर पर था. पुलिस जब घटनास्थल पर पहुंची तो देखा आरुषि की लाश कमरे में उस के बेड पर पड़ी थी. उस का गला किसी तेज धारदार हथियार से कटा हुआ था. साथ ही उस के सिर पर भी गहरा घाव था. आरुषि के बगल वाले कमरे में डा. राजेश तलवार और डा. नूपुर तलवार सोते थे. जबकि दूसरे कमरे में नौकर हेमराज सोता था. तलवार दंपति ने बताया कि उन्हें बेटी के चीखने की कोई आवाज नहीं सुनाई दी. हेमराज अपने कमरे में नहीं था. उस के कमरे में बीयर की खाली बोतल और 3 गिलास रखे थे. जांच के दौरान पुलिस ने पाया कि फ्लैट के अंदर एंट्री जबरदस्ती नहीं हुई थी. वैसे भी किसी बाहरी व्यक्ति को आरुषि के कमरे तक पहुंचने के लिए 3 दरवाजों से गुजरना पड़ता. फ्लैट में आरुषि, उस के मातापिता के अलावा नौकर हेमराज रहता था.

जबकि डा. तलवार के अनुसार हेमराज फरार था. फरार होने की वजह से उस पर शक स्वाभाविक ही था. वैसे भी वह डा. तलवार के यहां 6-7 महीने से ही काम कर रहा था. शक की एक वजह यह भी थी कि दिल्ली और एनसीआर में घरेलू नौकरों द्वारा तमाम घटनाओं को अंजाम दिया गया था. घर का सारा सामान अपनी जगह था अलावा आरुषि के मोबाइल फोन के. हेमराज ने सिर्फ मोबाइल के लिए कत्ल किया होगा, यह बात गले उतरने वाली नहीं थी. हत्या की दूसरी वजह क्या हो सकती है, यह बात पोस्टमार्टम के बाद ही पता चल सकती थी. इस बीच मौके पर जिले के सभी बड़े पुलिस अधिकारी पहुंच गए थे. आवश्यक काररवाई के बाद पुलिस ने आरुषि की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

डा. राजेश तलवार ने हेमराज के खिलाफ आरुषि की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराते हुए कहा कि वह मर्डर कर के नेपाल भाग गया है. उस की गिरफ्तारी के लिए पुलिस टीम नेपाल रवाना हो गई. इस के अलावा संभावित स्थानों पर भी उस की खोज की जाने लगी. पुलिस ने उस की गिरफ्तारी पर 20 हजार रुपए का इनाम भी घोषित कर दिया था. चूंकि डा. राजेश तलवार मैडिकल क्षेत्र से थे, इसलिए उन्होंने अपने ताल्लुकात का फायदा उठाते हुए 16 मई को दोपहर 12 बजे ही डा. सुनील डोगरे से लाश का पोस्टमार्टम करा कर आरुषि का अंतिम संस्कार करा दिया और अगले दिन अस्थियां विसर्जित करने के लिए हरिद्वार चले गए. उत्तर प्रदेश पुलिस के पूर्व उपाधीक्षक के.के. गौतम नोएडा में ही रहते थे. वह डा. राजेश तलवार के भाई डा. दिनेश तलवार के मित्र थे. 17 मई, 2008 को वह भी डा. राजेश तलवार के यहां पहुंचे तो अचानक उन की नजर जीने पर पड़ी.

वहां उन्हें कुछ खून के धब्बे दिखाई दिए तो उन्होंने जीने के पास आ कर देखा. खून के धब्बे उन्हें ऊपर तक दिखाई दिए. लेकिन जीने के दरवाजे पर ताला लगा हुआ था. के. के. गौतम तेजतर्रार पुलिस अधिकारी रहे थे. उन का पुलिसिया दिमाग घूमने लगा. वहां नोएडा पुलिस भी थी. पुलिस ने डा. नूपुर तलवार से जीने का दरवाजा खोलने को कहा तो उन्होंने बताया कि उन के पास चाबी नहीं है. जब काफी खोजने के बाद भी जीने की चाबी नहीं मिली तो पुलिस ने दरवाजे पर लगा ताला तोड़ दिया. पुलिस छत पर पहुंची तो वहां भी खून के धब्बे मिले. खोजबीन में पुलिस की नजर कूलर के पास पहुंची तो वहां एक आदमी की लाश पड़ी थी. उस के ऊपर कूलर की जाली रखी हुई थी. डा. नूपुर तलवार से जब उस लाश के बारे में पूछा गया तो उन्होंने उसे पहचानने से इनकार कर दिया. बाद में दूसरे लोगों ने लाश की शिनाख्त तलवार दंपति के नौकर हेमराज के रूप में की.

आरुषि की तरह हेमराज की हत्या भी सांस की नली काट कर की गई थी. पुलिस ने डा. राजेश तलवार को हेमराज की हत्या की सूचना दे कर जल्द लौटने को कहा. उस समय वह हरिद्वार के रास्ते में थे. पुलिस के बुलाने के बाद भी वह वापस नहीं लौटे. हेमराज की लाश मिलने से आरुषि की हत्या के मामले ने नया मोड़ ले लिया. हेमराज की लाश चूंकि दूसरे दिन मिली थी, इसलिए पुलिस पर अंगुलियां उठना स्वाभाविक था. इस की गाज गिरी इस केस के जांच अधिकारी दाताराम नौनेरिया और एसपी सिटी महेश कुमार मिश्रा पर. 18 मई, 2008 को दोनों का तबादला कर दिया गया.

दाताराम की जगह नए थानाप्रभारी संतराम यादव ने इस दोहरे हत्याकांड की जांच करनी शुरू की. आरुषि की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि उस का गला सर्जिकल इक्विपमेंट से काटा गया था. उस के सिर पर भी किसी नुकीली चीज का जख्म था. रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि उस की हत्या करीब 12 घंटे पहले हुई थी. इस का मतलब यह था कि आरुषि का कत्ल 15-16 मई की रात को 12-1 बजे के बीच हुआ था. रिपोर्ट में दुष्कर्म की बात से इनकार किया गया था. हेमराज की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि उस की हत्या भी सांस की नली काट कर की गई थी. उस के सिर पर भी पीछे से किसी भारी चीज से वार किया गया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह बात साफ हो गई थी कि आरुषि और हेमराज की हत्या एक ही तरीके से की गई थी और हत्यारा भी संभवत: एक ही था.

जांच अधिकारी ने डा. राजेश तलवार से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि वह सोते समय आरुषि के कमरे में बाहर से ताला लगा कर अपने कमरे में सोते थे, लेकिन 15 मई की रात को वह ताला लगाना भूल गए थे. वहीं उन की पत्नी डा. नूपुर तलवार ने बताया कि बेटी की लाश देखने के बाद वह सीधे हेमराज के कमरे में गईं. जब वह कमरे में नहीं मिला तो उन्होंने घर के लैंडलाइन फोन से उस के मोबाइल का नंबर ट्राई किया. उस समय सुबह को 6 बज रहे थे. फोन किसी ने रिसीव तो किया, पर बात किए बिना ही काट दिया. पुलिस ने हेमराज के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो वास्तव में 16 मई को सुबह 6 बज कर 3 मिनट पर काल रिसीव हुई थी और उस समय उस का फोन जलवायु विहार स्थित मोबाइल फोन टावर के संपर्क में था. पुलिस की समझ में नहीं आ रहा था कि जब हेमराज की हत्या हो गई थी तो उस का फोन किस ने रिसीव किया?

पुलिस यह मान कर चल रही थी कि हत्यारा चाहे जो भी रहा हो, वह तलवार परिवार का करीबी रहा होगा. पुलिस ने डा. राजेश तलवार के कंपाउंडर किशन उर्फ कृष्णा से पूछताछ की और उस के मोबाइल की काल डिटेल्स भी निकलवाई. लेकिन कोई नतीजा हासिल नहीं हुआ. तलवार दंपति के यहां 4 लोग रहते थे. उन में से 2 का मर्डर हो गया था. वह भी उस स्थिति में जबकि कोई बाहरी आदमी फ्लैट में नहीं आया था. ऐसी स्थिति में पुलिस को डा. तलवार दंपति पर ही शक हो रहा था. इसी बीच इस केस की जांच संतराम यादव की जगह थाना सेक्टर-20 के इंचार्ज जगवीर सिंह को सौंप दी गई. उन्होंने केस की फाइल का अध्ययन करने के बाद घटनास्थल का मुआयना किया. केवल शक के आधार पर डा. राजेश तलवार को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता था, इसलिए पुलिस उन के खिलाफ सुबूत जुटाने की कोशिश करने लगी. इस के लिए पुलिस ने उन के क्लीनिक, फ्लैट, कार, गैरेज आदि की जांच की, लेकिन कोई सुबूत नहीं मिला.

पुलिस ने डा. राजेश तलवार का मोबाइल फोन भी इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस पर लगा दिया, ताकि फोन पर होने वाली उन की बात सुनी जा सके. पुलिस द्वारा बारबार पूछताछ के बाद डा. राजेश तलवार को लगने लगा था कि पुलिस हत्या के आरोप में कहीं उन्हें ही गिरफ्तार न कर ले. इसलिए उन्होंने अपने दोस्त वकील को फोन कर के अपनी अग्रिम जमानत के बारे में बात की. पुलिस डा. राजेश तलवार की फोन पर हो रही बातचीत को सुन रही थी. अग्रिम जमानत की बात सुन कर पुलिस को यकीन हो गया कि दोनों की हत्या में डा. राजेश तलवार का हाथ रहा होगा, इसलिए उन्होंने अपनी अग्रिम जमानत के बारे में बात की. फिर क्या था, पुलिस ने आननफानन में डा. राजेश तलवार को उठा लिया.

उन से पूछताछ करने के बाद मेरठ जोन के तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक ने एक प्रैस कौन्फ्रैंस आयोजित कर खुलासा किया कि आरुषि और हेमराज की हत्या और किसी ने नहीं, बल्कि डा. राजेश तलवार ने ही की थी. वजह थी आरुषि और हेमराज के बीच अवैध संबंध. डा. राजेश तलवार ने उन्हें आपत्तिजनक हालत में देख लिया था. परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर पुलिस ने डा. राजेश तलवार को दोहरे मर्डर केस में गिरफ्तार कर के कोर्ट में पेश किया और 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया. लेकिन रिमांड की अवधि में नोएडा पुलिस डा. राजेश तलवार से कत्ल में इस्तेमाल किए गए हथियार, खून सने कपड़े व आरुषि और हेमराज के मोबाइल फोन वगैरह बरामद नहीं कर सकी. पुलिस यह भी पता नहीं लगा सकी कि जीने पर खून के जो धब्बे मिले थे, वे कैसे लगे थे.

डा. राजेश तलवार चीखचीख कर कह रहे थे कि उन्होंने आरुषि और हेमराज की हत्याएं नहीं कीं, लेकिन नोएडा पुलिस ने उन की एक नहीं सुनी. उन के परिवार वाले भी उन की गिरफ्तारी का विरोध कर रहे थे. उन का कहना था कि पुलिस ने डा. राजेश तलवार को झूठा फंसाया है. इसलिए वह इस मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग कर रहे थे. चूंकि पुलिस ने हत्या से संबंधित एक भी सुबूत बरामद नहीं किया था, इसलिए कई राजनैतिक पार्टियों के नेताओं और सामाजिक संगठनों ने भी पुलिस के खुलासे पर अंगुली उठानी शुरू कर दी थी. वे भी सीबीआई जांच की मांग कर रहे थे. यह आवाज प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के कानों तक पहुंची तो उन्होंने इस दोहरे हत्याकांड की जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश कर दी.

इस के अलावा उन्होंने मेरठ जोन के पुलिस महानिरीक्षक गुरुदर्शन सिंह, पुलिस उपमहानिरीक्षक पी.सी. मीणा, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ए. सतीश गणेश के भी ट्रांसफर के आदेश दिए, ताकि वे जांच को प्रभावित न कर सकें. 1 जून, 2008 को जांच का आदेश मिलते ही सीबीआई जांच में जुट गई. सीबीआई की 25 सदस्यीय टीम फोरेंसिक एक्सपर्ट्स के साथ जलवायु विहार पहुंच गई. चूंकि सब से पहले घटनास्थल पर पहुंची नोएडा पुलिस ने वहां से सुबूत इकट्ठे नहीं किए थे, इसलिए तब तक सारे सुबूत नष्ट हो चुके थे. सीबीआई टीम ने आरुषि की मां डा. नूपुर तलवार, डा. राजेश तलवार के कंपाउंडर कृष्णा, डा. अनीता दुर्रानी, हेमराज के दामाद जीवन शर्मा, डा. दुर्रानी के नौकर राजकुमार, एक अन्य नौकर विजय मंडल, ट्रांसफर हुए एसपी सिटी महेश मिश्रा, पूर्व डीएसपी के.के. गौतम, डा. तलवार की नौकरानी भारती के अलावा सब्जी बेचने वालों, गार्डों और पड़ोसियों तक से पूछताछ की.

फोरेंसिक टीम ने इन्फ्रारेड कैमिकल इमेजिंग के जरिए खून के कुछ नमूने भी उठाए.  इन्फ्रारेड कैमिकल इमेजिंग एक ऐसी तकनीक है, जिस से किसी जगह या कपड़े पर पड़ा खून का पुराने से पुराना धब्बा भी खोजा जा सकता है. सीबीआई टीम ने छत पर जा कर भी कई बार जांच की. सीबीआई ने डा. राजेश तलवार का 2 बार लाई डिटेक्टर टेस्ट, साइको एनालिसिस टेस्ट व नारको एनालिसिस टेस्ट कराया. इस के अलावा उन की पत्नी डा. नूपुर तलवार का भी लाई डिटेक्टर टेस्ट व साइको एनालिसिस टेस्ट कराया गया. इस के अलावा सीबीआई ने डा. दुर्रानी के नौकर राजकुमार और डा. राजेश तलवार के पड़ोस में काम करने वाले नौकर विजय मंडल के भी पौलीग्राफिक टेस्ट कराए. इन सब टेस्ट रिपोर्टों और तफ्तीश के बाद सीबीआई ने कहा कि आरुषि और नौकर हेमराज की हत्या डा. राजेश तलवार ने नहीं, बल्कि उन के कंपाउंडर किशन उर्फ कृष्णा, डा. अनीता दुर्रानी के नौकर राजकुमार और एक अन्य नौकर विजय मंडल ने मिल कर की थी. सीबीआई के खुलासे के बाद डा. राजेश तलवार के परिजन और समर्थक खुश हुए.

सीबीआई की जांच ने नोएडा पुलिस द्वारा किए गए खुलासे की हवा निकाल दी थी और 50 दिन डासना जेल में रहने के बाद डा. राजेश तलवार घर आ गए थे. एक तरह से सीबीआई ने उन के ऊपर लगे हत्या के दाग को धो दिया था. लेकिन सीबीआई की यह थ्यौरी और पेश किए गए सुबूत अदालत के सामने टिक नहीं सके और गाजियाबाद की विशेष सीबीआई अदालत ने तीनों नौकरों, कृष्णा, राजकुमार और विजय मंडल को 12 सितंबर, 2008 को रिहा करने के आदेश दे दिए. नौकरों की रिहाई के बाद मीडिया में इस हत्याकांड को ले कर फिर से सवाल उठने लगे. न्यूज चैनलों पर फिर से इस मर्डर मिस्ट्री की कथाएं प्रसारित की जाने लगीं. जनमानस के भीतर फिर वही सवाल हिलोरें मारने लगा कि आखिर आरुषि और हेमराज का हत्यारा कौन है?

कोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने फिर से मामले की गहनता से जांच शुरू कर दी. पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर, फोरेंसिक जांच रिपोर्ट देने वाले अधिकारियों आदि के अलावा डा. तलवार दंपति से फिर से पूछताछ की गई. घूमफिर कर जांच एजेंसी को तलवार दंपति पर ही शक हो रहा था, लेकिन हत्या का कोई सुबूत नहीं मिल रहा था. जांच में जब कोई नतीजा नहीं निकला तो सीबीआई ने 29 दिसंबर, 2010 को विशेष सीबीआई अदालत में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करते हुए कहा, ‘‘अब तक की जांच के बाद आरुषि और हेमराज की हत्या का पूरा शक डा. राजेश तलवार और डा. नूपुर तलवार पर ही जाता है. लेकिन उन के खिलाफ हमारे पास पर्याप्त और पुख्ता सुबूत नहीं हैं. लिहाजा इस केस को बंद करने की अनुमति दी जाए.’’

लेकिन अदालत ने इसे स्वीकार करने के बजाए क्लोजर रिपोर्ट को ही चार्जशीट मान कर तलवार दंपति को इस हत्याकांड में आरोपी बनाया. इस के बाद 9 फरवरी, 2011 से इस मामले की फिर से सुनवाई शुरू हो गई. इस मामले के विवेचनाधिकारी ए.जी.एल. कौल ने अपनी गवाही में कोर्ट के सामने साफ तौर पर कहा कि डा. राजेश तलवार हेमराज और आरुषि को आपत्तिजनक स्थिति में देख कर आपा खो बैठे थे और उन्होंने अपनी गोल्फ स्टिक से उन की हत्या कर दी थी. जबकि बचाव पक्ष ने दुनिया के जानेमाने डीएनए विशेष डा. आंद्रे सेमीखोस्की के अलावा एम्स के पूर्व फोरेंसिक एक्सपर्ट डा. आर.के. शर्मा सहित 7 लोगों की गवाही कराई. डा. सेमीखोस्की ने सीबीआई द्वारा पेश डीएनए रिपोर्ट को आधाअधूरा बताते हुए डीएनए जांच रिपोर्ट का रा डाटा मांगा.

उन्होंने कहा कि खुखरी और दीवार के टुकड़े जिस पर सीबीआई ने खून के दाग बरामद किए, उन की लंदन में दोबारा डीएनए जांच होनी चाहिए. लेकिन अदालत ने उन की इस मांग को खारिज कर दिया. अप्रैल, 2013 में सीबीआई की तरफ से इंस्टीट्यूट औफ फोरेंसिक साइंस के उपनिदेशक महेंद्र दहिया को कोर्ट में बतौर गवाह पेश किया गया. डा. दहिया ने अदालत से कहा कि आरुषि और हेमराज दोनों पर हमला आरुषि के कमरे में ही हुआ था. दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया गया था. हेमराज की लाश को हत्या के बाद छत पर ले जाया गया था. उन्होंने अदालत से यह भी कहा कि 9 अक्तूबर, 2009 को वह सीबीआई की टीम के साथ घटनास्थल पर गए थे तो फ्लैट का नजारा देख कर लग रहा था कि उस वक्त फ्लैट की पुताई कर दी गई थी.

मकान की स्थिति देख कर जांच में पता चला कि आरुषि-हेमराज की हत्या एक ही समय पर और एक ही जगह पर की गई थी. उन की हत्या में डा. राजेश तलवार ने अपनी गोल्फ स्टिक का इस्तेमाल किया था. बाद में दोनों के गले सर्जिकल औजार से काटे गए थे. उन्होंने आगे बताया कि जांच में यह भी पता चला कि हेमराज को मारने के बाद लाश को छत पर ले जाया गया. उस का गला छत पर ही काटा गया था. हत्यारे का पैर जीने के दरवाजे के पास पडे़ पाइप में उलझ गया था, इसलिए उस का खूनी पंजा दीवार पर लग गया था. दोनों के गले एक कान से दूसरे कान तक काटे गए थे और यह काम उन के लेटे होने की अवस्था में किया गया था. आरुषि के सिर में प्रेशर से चोट पहुंचाई गई थी, इसलिए उस के खून के छींटे दीवार पर आए. सभी तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए डा. दहिया ने स्पष्ट किया था कि घटना में कोई बाहरी व्यक्ति शामिल नहीं था.

तमाम गवाहों और परिस्थितिजन्य सुबूतों के आधार पर विद्वान न्यायाधीश श्याम लाल ने 25 नवंबर, 2013 को सुनाए गए 204 पेज के अपने आदेश में डा. राजेश तलवार और उन की पत्नी डा. नूपुर तलवार को आरुषि और हेमराज की हत्या का दोषी ठहराया. सजा के लिए उन्होंने 26 नवंबर का दिन मुकर्रर कर दिया. चूंकि अदालत ने डा. तलवार दंपति को दोहरे हत्याकांड का दोषी ठहराया गया था, इसलिए लोगों में इस बात की चर्चा होने लगी थी कि उन्हें फांसी दी जाएगी या फिर उम्रकैद. 26 नवंबर को दोपहर 2 बज कर 20 मिनट पर सीबीआई के वकील आर.के. सैनी व बी.के. सिंह और बचाव पक्ष के वकील तनवीर अहमद, मनोज सिसौदिया व सत्यकेतु सिंह के बीच सजा के बिंदु पर 10 मिनट तक बहस हुई. सीबीआई के वकीलों ने हत्याकांड को रेयरेस्ट औफ रेयर करार देते हुए दोनों दोषियों को सजाएमौत देने की मांग की. जबकि बचाव पक्ष के वकीलों ने कहा कि दोनों ही चिकित्सक हैं, इन का कोई पुराना आपराधिक रिकौर्ड भी नहीं है, लिहाजा उन्हें कम से कम सजा दी जाए.

दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद न्यायाधीश ने डा. राजेश तलवार व डा. नूपुर तलवार पर आईपीसी की धारा 302, 201 (समान मकसद से हत्या करने) पर आजीवन कारावास और 10 हजार रुपए का जुर्माना, आईपीसी की धारा 201 (साक्ष्यों को मिटाना) पर 5 साल की सजा और 5 हजार रुपए का जुर्माना तथा डा. राजेश तलवार पर आईपीसी की धारा 203 (झूठी रिपोर्ट दर्ज करा कर पुलिस को गुमराह करना) पर 1 साल की सजा और 2 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई. उन्होंने यह भी आदेश दिया कि सभी सजाएं एक साथ चलेंगी. सजा सुनने के बाद डा. तलवार दंपति को डासना जेल भेज दिया गया. अब जेल में डा. नूपुर तलवार का नया पता कैदी नंबर 9343 और बैरक नंबर 13 है, जबकि डा. राजेश तलवार को बैरक नंबर 11 के कैदी नंबर 9342 के रूप में जाना जाएगा.

हालांकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आरुषि-हेमराज हत्याकांड मामले में गुरुवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में सीबीआई की विशेष अदालत का निर्णय रद्द करते हुए राजेश राजेश तलवार और नुपुर तलवार को निर्दोष करार दिया. अदालत ने इस तरह से दोनों अपीलकर्ताओं को संदेह का लाभ देते हुए विशेष सीबीआई अदालत का 26 नवंबर, 2013 का फैसला निरस्त कर दिया.  अदालत ने तलवार दंपति की अपील स्वीकार करते हुए उन्हें तत्काल रिहा करने का निर्देश दिया