दूसरा पहलू : अपनों ने बिछाया जाल – भाग 2

बारात जनवासे पहुंच गई. मिंटू साए की तरह मनु के आगेपीछे घूम रही थी. सुकृति रिश्तेदारों में व्यस्त थी, इसलिए मनु को समय नहीं दे पा रही थी. उस ने देखा कि उस की चचेरी बहन उस की जिम्मेदारी निभा रही है. मनु बोर नहीं हो रहा, यही उस के लिए पर्याप्त था. मिंटू ने लहंगाओढ़नी पहना था.

दुलहन सी सजी मिंटू ने मनु से पूछा, ‘‘मैं कैसी लग रही हूं जीजू?’’

‘‘माइंड ब्लोइंग रियली.’’ मनु ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘जीजू, झूठी प्रशंसा कर के आप मुझे झाड़ पर चढ़ा रहे हैं.’’

ऐसी बात कह कर शायद मिंटू मनु को और कुरेदना चाह रही थी. अब तक मनु भी काफी खुल चुका था, इसलिए उस ने कहा, ‘‘मिंटू, अपनी लाइफ में मैं ने इतनी सुंदर लड़की पहले नहीं देखी. जी चाहता है कि…’’

मनु का वाक्य पूरा होता, उस के पहले ही मिंटू तपाक से बोली, ‘‘क्या चाहता है जीजू आप का दिल? जरा हमें भी तो पता चले.’’

मिंटू की इस बात से मनु का साहस बढ़ा. उस ने बिना कुछ सोचेसमझे कहा, ‘‘अगर सामने कोई खूबसूरत अप्सरा खड़ी हो तो पुरुष का दिल क्या चाहेगा?’’

‘‘क्या चाहेगा, आप ही बता दीजिए?’’ मिंटू ने मुसकराते हुए पूछा.

मनु ने कोई जवाब नहीं दिया तो पल भर बाद मिंटू ही बोली, ‘‘आप तो लड़कियों की तरह शरमा रहे हैं. आय एम योर फ्रैंड जीजू, प्लीज बताइए ना.’’

मनु अपने ऊपर नियंत्रण नहीं रख पाया और दिल की ख्वाहिश जाहिर करते हुए बोला, ‘‘वांट ए किस, आई मीन लव…’’

‘‘इस में इतना शरमाने की क्या बात थी जीजू? मैं ने तो सोचा था आप…’’ इस बार मिंटू ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी. लेकिन मनु की बात उस के दिल को भेद गई थी. थोड़ा रुक कर मिंटू बोली, ‘‘मैं आप को एक गिफ्ट देना चाहती हूं जीजू.’’

‘‘क्या?’’ मनु ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘एक ऐसा गिफ्ट, जो आप को बहुत पसंद आएगा.’’ मिंटू ने हंसते हुए कहा.

‘‘दीजिए, देखें तो क्या दे रही हैं अपने जीजू को?’’ मनु ने पूछा.

‘‘अभी नहीं. समय आने दो, फिर देखना.’’

मनु कुछ और कहता, जानवासे से बारात चल पड़ी. बारातियों में तमाम लोग डांस कर रहे थे. लेकिन जब मिंटू ने डांस शुरू किया तो उस ने तुरंत भीड़ से मनु को अपने साथ डांस करने के लिए खींच लिया. सुकृति भी अब उस के साथ डांस करने लगी.

बारात लड़की वालों के घर पहुंच गई. अचानक सुकृति को याद आया कि वह अपना सूटकेस लौक करना भूल गई थी. उस ने यह बात मनु से कही तो वह अपनी कार से जनवासे जाने लगा. वह पंडाल से बाहर आया था कि पीछे से दौड़ती हुई मिंटू आई और उस के साथसाथ चलने लगी. चलते हुए ही उस ने पूछा, ‘‘जनवासे जा रहे हैं क्या जीजू?’’

‘‘हां, तुम्हें भी कोई काम है क्या?’’

‘‘मुझे भी वहां से अपनी एक ड्रेस लानी है.’’ मिंटू ने कहा.

मनु के साथ मिंटू भी कार में बैठ गई. कार में सिर्फ वही दोनों थे. कार थोड़ी दूर ही चली होगी कि मिंटू ने मनु का हाथ दबा कर कार रुकवा ली. मनु कुछ समझ पाता, बिजली की सी फुर्ती से मिंटू ने मनु के गाल पर चुंबनों की बौछार कर दी. मनु भौचक्का रह गया. मिंटू ने कहा, ‘‘जीजू मेरी गिफ्ट कैसी लगी? बदले में अब आप मुझे गिफ्ट में क्या दे रहे हैं?’’

मनु की भी भावनाएं भड़क उठी थीं. उस ने भी आगे बढ़ कर मिंटू के होठों पर अपने होंठ रख दिए. मनु ने स्वयं को जैसेतैसे संयत किया. रिश्तों की नाजुकता ने आवेश पर ब्रेक लगाया तो कार आगे बढ़ी. जनवासा आ चुका था. मनु कार में ही बैठा रहा. मिंटू जा कर सुकृति का सूटकेस और अपनी ड्रेस ले आई.

भावावेश में यह सब जो हुआ था, मनु को पश्चाताप हो रहा था. उसे परेशान देख कर मिंटू ने कहा, ‘‘इतने टैंस क्यों हो रहे हैं जीजू? मैं आप की साली ही तो हूं. साली यानी आधी घर वाली. इतना हक तो बनता ही है आप का?’’

मनु थोड़ा संयत हुआ. मिंटू की दिलकश अदाएं उस पर भारी पड़ने लगी थीं. दोनों बारात में शामिल हो गए. लड़की वालों का घर आ गया. शादी की वह रात इसी तरह हंसीमजाक में बीत गई. सुबह दुलहन की विदाई के बाद सुकृति मनु की कार में बैठ गई थी. शादी निपट चुकी थी. मनु को अपना बिजनैस देखना था, इसलिए उसे लौटना था. वह चला आया, लेकिन सुकृति 2-4 दिनों के लिए रुक गई. रश्मि और उस की बेटी मिंटू के व्यवहार ने उस की जिंदगी में नए रंग भर दिए थे. मिंटू उस से रुकने के लिए जिद कर रही थी, लेकिन बिजनैस की वजह से उस का रुकना संभव नहीं था.

मनु रास्ते में ही था कि उस के मोबाइल फोन पर मिंटू के एसएमएस धड़ाधड़ आने लगे. मनु के पास इतना समय नही था कि वह जवाब देता. 2-4 के जवाब दिए, बाकी फोन पर बात कर ली. 2-4 दिनों बाद मिंटू मां के साथ अहमदाबाद चली गई.

सुकृति ने शायद उन के बीच बढ़ती प्रगाढ़ता को भांप लिया था, इसलिए मनु को सचेत किया, ‘‘आप इन लोगों से ज्यादा नजदीकी मत बढ़ाइए. आप उन लोगों को नहीं जानते, धोखा उन की रगरग में बसा है.’’

मनु पशोपेश में पड़ गया. अपनों के बारे में सुकृति के विचार जान कर उसे बड़ा अजीब लगा. इस के बाद उस ने सुकृति को उन लोगों के बारे में बताना बंद कर दिया. मिंटू बारबार मनु से अहमदाबाद आने की जिद कर रही थी. उस की डिमांड पर मनु ने कुरियर से उस के लिए एक कीमती मोबाइल सेट और कुछ शानदार ड्रेसेज भेज दी थीं. यह सब पा कर मिंटू बहुत खुश हुई थी.

मनु अकसर मिंटू के लिए कुछ न कुछ भेजने लगा था. उस के मोबाइल में पैसे डलवाना तो आम बात थी. वह थी ही इतनी बातूनी. वही क्या, उस की मम्मी यानी रश्मि भी मनु से घंटों बातें करती थी. मनु को मोबाइल के बिल की उतनी चिंता नही थी, लेकिन उस के पास समय नहीं होता था.

शोरूम में ग्राहकों के सामने ज्यादा देर मोबाइल पर बात नहीं कर सकता था. इधर वह मोबाइल में इतना उलझा रहने लगा था कि शोरूम का सिस्टम गड़बड़ाने लगा था. उस में आए इस बदलाव से शोरूम के कर्मचारी हैरान थे.

भांजी की गवाही से बलात्कारी को सजा-ए-मौत – भाग 2

भांजी ने बनवारी के खिलाफ दी गवाही

लाडो कटघरे में आ कर खड़ी हो गई. उस ने बड़ी निर्भीकता से कहना शुरू किया, “उस रात दिव्या की मां ने दिव्या को लाला की दुकान पर सुई लाने भेजा था. उसे मैं मिल गई तो वह मेरे साथ लाला की दुकान पर गई थी. वहां बनवारी जो मेरा मामा लगता है और डहरुआ में ही रहता है, हमें मिल गया. उस ने हमें पास बुला कर कहा, ‘कोल्डड्रिंक पिओगी तुम दोनों.’

“हम ने हां कर दी तो वह लाला से कोल्डड्रिंक ले आया. उस ने गिलास, नमकीन, सौस और प्लेट खरीदी. बनवारी मामा हम दोनों को बाइक पर बिठा कर एक गांव मावली में बाजरे के खेत में ले गया. हम ने वहां लाने के बारे में पूछा तो बोला कि तुम यहां आराम से कोल्डड्रिंक पीना, मैं दारू पी लूंगा. वहां बनवारी ने हमें गिलास में कोल्डड्रिंक भर कर पीने को दी. हम कोल्डड्रिंक पी रही थीं, मामा दारू पी रहा था.

“जब वह दारू पी चुका तो उस ने अचानक दिव्या को दबोच लिया. दिव्या चीखी तो उसे थप्पड़ मार कर जमीन पर गिरा दिया, उस की पाजामी उतार कर यह उस के साथ गंदा काम करने लगा. दिव्या रोती चीखती रही, मैं भी बदहवास हो कर चीखती रही. इस ने दिव्या को लहूलुहान कर के छोड़ा. वह दर्द से रोने लगी थी. कहने लगी मां को बताऊंगी. इस  पर मामा ने उस का गला पकड़ कर दबाया तो वह छटपटा कर मर गई. इस ने मुझे धमकाया कि किसी से गांव में कहा तो मेरा भी गला दबा देगा.

“मैं बहुत डर गई थी. यह मुझे बाइक पर बिठा कर मेरी मां कंचन के नौगांव ले गया और जब मेरी मां ने मेरे लिए परेशान हो रहे छोटे मामा को बताया कि मुझे बनवारी घर ले आया है तब मेरे छोटे मामा भोला हमें दिव्या के पिता और चाचा के साथ गांव में ढूंढ रहे थे. दिव्या के दोनों चाचा संतोष और दाजू ने कहा कि वेनौगांव आ रहे हैं तो मां को मामा बनवारी यह कह कर भाग गया कि उसे कोई जरूरी काम है. मैं ने सब अपनी आंखों से देखा है.”

एडवोकेट किशन बेधडक़ गहरी सांस भर कर कुरसी पर आ बैठे. अब उन के पास कहने को कुछ नहीं बचा था. पूरी कहानी समझने के लिए हमें घटना के अतीत में जाना होगा.

बनवारी की नीयत हुई खराब

रात के 8 बजने को आए थे. परचून की दुकान पर दाल लेने गई दिव्या अभी तक वापिस नहीं आई थी.

“कहां मर गई यह लडक़ी. आधा घंटे से ऊपर हो गया दुकान पर गए, अभी तक नहीं लौटी.” दिव्या की मां अपने आप में बड़बड़ाने लगी.

“अरी क्या हुआ, क्यों बड़बड़ा रही हो?” दिव्या के पिता ने हाथ का थैला खूंटी पर टांगते हुए पूछा.

“आप की लाडली को आधा घंटा पहले लाला की दुकान पर दाल लेने भेजा था, अभी तक वापस नहीं आई है.”

“आधा घंटा हो गया?” दिव्या का पिता हैरानी से बोला, “तुम ने देखा नहीं जा कर?”

“मैं मसाला पीसने बैठी थी… अब जा कर देखती हूं.”

“ठहरो, मैं देख कर आता हूं.” दिव्या के पिता ने कहा और तेजी से वह बाहर निकल गया.

मथुरा के यमुनापार की इस बस्ती में लाला की परचून की दुकान थी. दिव्या का पिता दुकान पर पहुंचा तो लाला दुकान बंद करने के लिए सामान अंदर रख रहा था. वहां लाला के अलावा कोई और नहीं था. दिव्या के पिता की धडक़नें बढ़ गईं. वह अपनी बेटी को वहां न देख कर घबरा गया.

उस ने लाला से पूछा, “मेरी बेटी दिव्या आधा घंटा पहले यहां दाल लेने आई थी लाला, वह घर नहीं पहुंची है.”

“दाल लेने आई थी? नहीं, दिव्या बेटी ने तो मुझ से दाल नहीं मांगी, वह तो यहां अपनी सहेली लाडो के साथ आई थी. फिर मुझे नहीं पता, मैं सामान देने में व्यस्त था.”

“कहां चली गई यह लडक़ी,” बड़बड़ाते हुए वह घर लौट आया. उस ने अपनी पत्नी को बताया कि दिव्या दुकान पर और रास्ते में कहीं नहीं दिखाई दी है तो उस की पत्नी घबरा गई. वह तेजी से घर से निकली, पीछे उस का पति भी था. बेटी को ले कर मांबाप हुए परेशान दोनों अपनी बेटी को बस्ती में तलाश करने लगे.

दिव्या की मां लाडो के घर भी गई. मालूम हुआ वह भी घर पर नहीं है. वह भी अपनी बेटी के लिए परेशान हो गए. अब दोनों ही अपनीअपनी बेटी को तलाश करने लगे. दिव्या और लाडो साथ ही थीं. दोनों में से कोई एक भी मिल जाती तो मालूम हो जाता दूसरी कहां पर है.

पूरी बस्ती छान डाली गई, लेकिन दोनों लड़कियों का कुछ पता नहीं चला. एक घंटे से ऊपर होने को आया, तब लाडो की अच्छी खबर फोन द्वारा मिली. लाडो की ममेरी बहन कंचन ने फोन कर पापा को बताया कि लाडो अपने मामा बनवारी के साथ उस के घर आई है. बनवारी अच्छा आदमी नहीं था. उस का नाम सुनते ही दिव्या के पिता और मां घबरा गए.

“कंचन से पूछो लाडो वहां आई है तो दिव्या कहां पर है?” दिव्या की मां ने परेशान स्वर में कहा.

“कंचन… लाडो के साथ दिव्या भी थी. दिव्या भी वहां आई होगी?”

“नहीं, दिव्या तो यहां नहीं आई है.” कंचन ने बताया, “बनवारी केवल लाडो को ही साथ लाया है.”

“तुम बनवारी को रोक कर रखो, हम तुम्हारे घर आ रहे हैं.” लाडो के पिता ने कहा और फोन काट कर बोला, “बनवारी बुरा आदमी है. मुझे कुछ गड़बड़ लग रही है. अभी बनवारी कंचन के यहां ही है. उस से मालूम होगा, दिव्या कहां पर है. आओ.”

सभी लगभग भागते हांफते हुए कंचन के घर पहुंचे जो उसी बस्ती में था. वहां कंचन और लाडो ही मिली. बनवारी वहां से नौ दो ग्यारह हो चुका था.

“तुम ने बनवारी को क्यों जाने दिया?” दिव्या के पिता ने गुस्से से पूछा.

“मैं ने रोका, लेकिन वह एक जरूरी काम की कह कर चला गया.” कंचन ने बताया.

उन लोगों ने लाडो से दिव्या के विषय में पूछा तो वह कुछ भी नहीं बता पाई. वह बहुत डरी हुई और सदमे में नजर आ रही थी.

पहली सितंबर, 2020 को थाना यमुनापार में दिव्या का पिता रोते हुए पहुंचा. एसएचओ महेंद्र प्रताप चतुर्वेदी उस वक्त अपने कक्ष में आ कर सुबह का अखबार पढ़ रहे थे. उस ने एसएचओ को बेटी के गायब होने की पूरी बात बता दी.

एसएचओ ने दिव्या की गुमशुदगी दर्ज करवा दी. एक कांस्टेबल ने आ कर एसएचओ को बताया, “साहब, कंट्रोल रूम से एक संदेश हमारे लिए फ्लैश किया जा रहा है. हमारे थाना क्षेत्र के गांव मावली में एक लडक़ी की क्षतविक्षत लाश पड़ी हुई है. हमें तुरंत वहां पहुंचने के लिए कहा गया है.”

एसएचओ चतुर्वेदी के जेहन में तुरंत खयाल आया. कहीं वह लाश दिव्या की न हो. कुछ सोच कर उन्होंने दिव्या के पिता से कहा, “कंचन से हम बाद में मिल लेंगे. पास के मावली गांव में किसी लडक़ी की लाश पड़ी होने की सूचना मिल रही है. आओ, पहले मावली गांव चलते हैं.”

कुछ ही देर में यमुना पार थाने की पुलिस मावली गांव की ओर रवाना हो गई थी.

बच्ची के साथ बलात्कार के मिले संकेत

मावली गांव के एक खेत में 9 साल की मासूम लडक़ी का क्षतविक्षत शव पड़ा हुआ था. उस के शरीर पर नोंचखसोट के चिह्न थे. उस के नीचे के कपड़े फटे हुए थे और खून के धब्बे उस पर दिखाई दे रहे थे. पहली नजर में लग रहा था कि उस मासूम के साथ दुष्कर्म हुआ है.

लाश देख कर दिव्या का पिता दहाड़ मार कर रोने लगा. एसएचओ को उस के रोने से ही पता चल गया कि यह बच्ची उस की बेटी दिव्या है, जिस की गुमशुदगी की वह रिपोर्ट लिखवाने आया था. एसएचओ ने फोरैंसिक टीम को घटनास्थल पर बुलवा लिया और उच्चाधिकारियों को इस लाश की जानकारी दे दी.

मौके पर आसपास के खेत वाले इकट्ठा हो गए थे. आवश्यक काररवाई निपटा लेने के बाद एसएचओ फोरैंसिक टीम का कार्य पूरा होने का इंतजार करते रहे. फिर उन्होंने दिव्या की लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

थाने में आ कर उन्होंने अज्ञात बलात्कारी और हत्यारे के खिलाफ एफआईआर 287/2020 में आईपीसी की धाराएं 363, 366, 302, 376 और 201 लगा कर उस पर पोक्सो एक्ट की धारा-6 भी लगा दी.

अब उन्हें दिव्या के हत्यारे तक पहुंचना था. सुखिया के अनुसार दिव्या के साथ लाडो भी थी और लाडो अपने मामा के साथ रात को 11 बजे अपनी मौसी कंचन के घर आ गई थी. दिव्या लापता थी जिस के विषय में वह कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं थी.

कैसे पकड़ा गया मासूम दिव्या का अपराधी? पढ़िए कहानी के अगले अंक में.

पति ने किया अर्चना की जिंदगी का सूर्यास्त – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला पीलीभीत के थाना गजरौला कलां का संतरी बरामदे में खड़ा इधरउधर ताक रहा था. उसी समय एक युवक तेजी से  आया और थानाप्रभारी भुवनेश गौतम के औफिस में घुसने लगा तो उस ने टोका, ‘‘बिना पूछे कहां घुसे जा रहे हो भाई?’’

युवक रुक गया. वह काफी घबराया हुआ लग रहा था. उस ने कहा, ‘‘साहब से मिलना है, मेरी पत्नी को बदमाश उठा ले गए हैं.’’

‘‘तुम यहीं रुको, मैं साहब से पूछता हूं, उस के बाद अंदर जाना.’’ कह कर संतरी थानाप्रभारी के औफिस में घुसा और पल भर में ही वापस आ कर बोला, ‘‘ठीक है, जाओ.’’

संतरी के अंदर जाने के लिए कहते ही युवक तेजी से थानाप्रभारी के औफिस में घुस गया. अंदर पहुंच कर बिना कोई औपचारिकता निभाए उस ने कहा, ‘‘साहब, मैं लालपुर गांव का रहने वाला हूं. मेरा नाम प्रमोद है. मैं अपनी पत्नी को विदा करा कर घर जा रहा था. गांव से लगभग 2 किलोमीटर पहले कुछ लोग बोलेरो जीप से आए और मेरी पत्नी को उसी में बैठा कर ले कर चले गए.’’

थानाप्रभारी भुवनेश गौतम ने प्रमोद को ध्यान से देखा. उस के बाद मुंशी को बुला कर उस की रिपोर्ट दर्ज करने को कहा. मुंशी ने प्रमोद के बयान के आधार पर उस की रिपोर्ट दर्ज कर ली. रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद प्रमोद ने थानाप्रभारी के औफिस में आ कर कहा, ‘‘साहब, अब मैं जाऊं?’’

थानाप्रभारी भुवनेश गौतम ने उसे एक बार फिर ध्यान से देखा. प्रमोद ने उन से एक बार भी नहीं कहा था कि वह उस की पत्नी को तुरंत बरामद कराएं. उस के चेहरे के हावभाव से भी नहीं लग रहा था कि उसे पत्नी के अपहरण का जरा भी दुख है.

उन्होंने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘तुम हमें वह जगह नहीं दिखाओगे, जहां से तुम्हारी पत्नी का अपहरण हुआ है? अपहर्त्ता जिस बोलेरो जीप से तुम्हारी पत्नी को ले गए हैं, उस का नंबर तो तुम ने देखा ही होगा. वह नंबर नहीं बताओगे?’’

थानाप्रभारी की बातें सुन कर प्रमोद के चेहरे के भाव बदल गए. वह एकदम से घबरा सा गया. उस ने हकलाते हुए कहा, ‘‘साहब, मैं गाड़ी का नंबर नहीं देख पाया था. यह सब इतनी जल्दी और अचानक हुआ था कि गाड़ी का नंबर देखने की कौन कहे, मैं तो यह भी नहीं देख पाया कि अपहर्त्ता कितने थे.’’

‘‘ठीक है, हम अभी तुम्हारे साथ चल कर वह जगह देखते हैं, जहां से तुम्हारी पत्नी का अपहरण हुआ है. तुम घबराओ मत, हम नंबर और अपहर्त्ताओं के बारे में भी पता कर लेंगे.’’ कह कर थानाप्रभारी ने गाड़ी निकलवाई और सिपाहियों के साथ प्रमोद को भी गाड़ी में बैठा कर घटनास्थल की ओर चल पड़े. सिपाहियों के साथ बैठा प्रमोद काफी परेशान सा लग रहा था.

जिस की पत्नी का अपहरण हो जाएगा, वह परेशान तो होगा ही, लेकिन उस की परेशानी उस से हट कर लग रही थी. थानाप्रभारी जब गांव के मोड़ पर पहुंचे तो प्रमोद ने कहा, ‘‘साहब, मुझे तो अब याद ही नहीं कि अपहरण कहां से हुआ था? मैं तो पत्नी के साथ पैदल ही जा रहा था. अंधेरा होने की वजह से मैं वह जगह ठीक से पहचान नहीं सका.’’

‘‘तुम ने शोर मचाया था?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब, शोर मचाने का मौका ही कहां मिला. वह आंधी की तरह आए और मेरी पत्नी को जीप में जबरदस्ती बैठा कर ले गए.’’ प्रमोद ने कहा.

थानाप्रभारी को प्रमोद की इस बात से लगा कि मामला अपहरण का नहीं, कुछ और ही है. पूछने पर प्रमोद यह भी नहीं बता रहा था कि उस की ससुराल कहां है. संदेह हुआ तो उन्होंने गुस्से में कहा, ‘‘सचसच बता, क्या बात है?’’

प्रमोद कांपने लगा. थानाप्रभारी को समझते देर नहीं लगी कि यह झूठ बोल रहा है. उन्होंने उसे जीप में बैठाया और थाने आ गए. थाने ला कर उन्होंने उस से पूछताछ शुरू की. शुरूशुरू में तो प्रमोद ने पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की, लेकिन जब उस ने देखा कि पुलिस अब सख्त होने वाली है तो उस ने रोते हुए कहा, ‘‘साहब, अपने दोस्त मुकेश के साथ मिल कर मैं ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी है और लाश एक गन्ने के खेत में छिपा दी है.’’

रात में तो कुछ हो नहीं सकता था, इसलिए पुलिस सुबह होने का इंतजार करने लगी. सुबहसुबह पुलिस लालपुर पहुंची तो गांव वाले हैरान रह गए. उन्हें लगा कि जरूर कुछ गड़बड़ है. जब प्रमोद ने गन्ने के खेत से लाश बरामद कराई तो लोगों को पता चला कि प्रमोद ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी है. थोड़ी ही देर में वहां भीड़ लग गई.

पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया. मृतका की उम्र 20 साल के करीब थी. वह साड़ीब्लाउज पहने थी. गले पर दबाने का निशान स्पष्ट दिखाई दे रहा था. गांव वालों से जब प्रमोद के घर वालों को पता चला कि प्रमोद ने अर्चना की हत्या कर दी है तो वे भी हैरान रह गए. उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि प्रमोद ऐसा भी कर सकता है. लेकिन जब वे घटनास्थल पर पहुंचे तो अर्चना की लाश देख कर सन्न रह गए. पुलिस ने मृतका अर्चना के पिता डालचंद को भी फोन द्वारा सूचना दे दी थी कि उन की बेटी अर्चना की हत्या हो चुकी है.

इस सूचना से डालचंद और उन की पत्नी शारदा हैरान रह गए थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब कैसे हो गया. कल शाम को ही तो उन्होंने बेटी को विदा किया था. उस समय तो सब ठीकठाक लगा था. रास्ते में ऐसा क्या हो गया कि अच्छीभली बेटी की हत्या हो गई.

डालचंद ने सिर पीट लिया. उन के मुंह से एकदम से निकला, ‘‘किस ने मेरी बेटी को मार दिया? उस ने आखिर किसी का क्या बिगाड़ा था?’’

‘‘हमारी बेटी को किसी और ने नहीं, प्रमोद ने ही मारा है.’’ रोते हुए शारदा ने कहा.

पत्नी की इस बात से डालचंद हैरान रह गया, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है?’’

‘‘तुम्हें पता नहीं है. दामाद का गांव की ही किसी लड़की से चक्कर चल रहा था. उसी की वजह से उस ने मेरी बेटी को मार डाला है.’’ शारदा ने कहा.

पत्नी भले ही कह रही थी कि अर्चना की हत्या प्रमोद ने की है, लेकिन डालचंद को विश्वास नहीं हो रहा था. सूचना पाने के बाद डालचंद परिवार के कुछ लोगों के साथ थाना गजरौला कलां जा पहुंचा. अर्चना की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया था. थानाप्रभारी ने जब उसे बताया कि अर्चना की हत्या उस के दामाद प्रमोद ने ही की है, तब कहीं जा कर उसे विश्वास हुआ.

पूछताछ में शारदा ने बताया कि अर्चना ने उन से बताया था कि प्रमोद का गांव की ही किसी लड़की से प्रेमसंबंध है. लेकिन उस ने बेटी की इस बात को गंभीरता से नहीं लिया था. उसे लगा कि हो सकता है शादी के पहले रहे होंगे. शादी के बाद संबंध खत्म हो जाएंगे. उसे क्या पता कि उसी संबंध की वजह से प्रमोद उस की बेटी को मार डालेगा.

फूल खिलने से पहले ही उजड़ गया गुलिस्तां – भाग 1

मन में हजारों सपने संजोए हरप्रीत कौर ने दहलीज से बाहर कदम रखा तो उस के पांव जमीन पर नहीं टिक रहे थे. भावी पिया की डोर से बंधने में  केवल 3 घंटे बचे थे. इसलिए वह अपने होने वाले पति की सूरत मन में बसाए इंद्रधनुषी सपनों की डोर में बंधी दूर उड़ी जा रही थी. 3 घंटे बाद यानी 10 बजे लुधियाना के महंगे और प्रसिद्ध स्टर्लिंग रिजौर्ट में उस की शादी हरप्रीत सिंह के साथ होनी थी.

रिजौर्ट में शादी का मंडप सजा हुआ था. मात्र 3 घंटे बाद उसे हरप्रीत सिंह की अर्धांगिनी बन जाना था. इसी सुखद अहसास और कल्पनाओं में वह खोई हुई थी. तभी उस की मां दविंदर कौर ने आवाज दी तो उस की तंद्रा टूटी. वह बोली, ‘‘जी मम्मी.’’

‘‘बेटा क्या सोच रही हो? 7 बज चुके हैं, जल्दी चलो. ब्यूटीपार्लर में तुम्हें काफी टाइम लगेगा.’’ दरअसल हरप्रीत को मेकअप कराने के लिए ब्यूटीपार्लर जाना था.

‘‘हां मम्मीजी, चलो मैं तैयार हूं.’’ हरप्रीत कौर बोली.

इस के बाद हरप्रीत कौर अपने मातापिता और सखियों के साथ इनोवा कार से साढ़े 7 बजे लुधियाना के सराभानगर स्थित लैक्मे सैलून नाम के ब्यूटीपार्लर पहुंच गई. उस के मेकअप के लिए लैक्मे सैलून को पहले से ही बुक करा रखा था. सैलून संचालक को 3 हजार रुपए भी पेशगी दे दिए थे.

सैलून पहुंचते ही संचालक संजीव गोयल ने हरप्रीत का मेकअप कराना शुरू कर दिया. उस समय हरप्रीत बहुत खुश थी. उसी दौरान करीब 9 बजे एक युवक पार्लर में घुसा. उस ने स्वेटशर्ट से अपना सिर ढक रखा था और मुंह पर रूमाल बांध रखा था. संजीव ने सोचा कि युवक ने ठंड से बचने के लिए यह किया होगा. उस के हाथ में प्लास्टिक का एक डिब्बा था.

पार्लर में घुसते ही वह उधर ही गया, जिधर हरप्रीत कौर का मेकअप किया जा रहा था. जितने बेधड़क तरीके से वह मेकअप केबिन में घुसा इसे देख कर संजीव गोयल ने सोचा कि यह शायद हरप्रीत कौर का कोई परिचित होगा और डिब्बे में दुलहन के लिए नाश्ता वगैरह लाया होगा. इसीलिए उस ने उस युवक को रोकने की कोश्शि नहीं की.

वह युवक लंबेलंबे डग भरता हुआ हरप्रीत के पास पहुंचा और ऊंची आवाज में धमकी देते हुए बोला, ‘‘मैं यह शादी हरगिज नहीं होने दूंगा.’’

उस अनजान युवक को यह कहता देख हरप्रीत चौंकी. वह समझ नहीं पा रही थी कि यह युवक न मालूम कौन है, जो इस तरह की बातें कर रहा है. वह उस युवक से बोली, ‘‘आप कौन हैं और इस तरह की बातें क्यों कर रहे हैं?’’

उस की बात का कोई जवाब देने के  बजाय उस युवक ने एक पत्र हरप्रीत को पकड़ा दिया. हरप्रीत सोचने लगी कि पता नहीं यह कौन है और उस से क्या चाहता है? फिर भी उस ने उस युवक द्वारा दिए गए पत्र पर एक नजर डाली और गुस्से से उस पत्र को जमीन पर फेंक दिया. इस से पहले कि वह उस युवक से कुछ कह पाती, उस युवक ने डिब्बे में पड़ा तरल पदार्थ हरप्रीत के चेहरे पर फेंक दिया और उस डिब्बे को वहीं फेंक कर भाग खड़ा हुआ. यह सारा घटनाक्रम केवल 8 सेकेंड में घटा था, इसलिए कोई कुछ समझ नहीं पाया.

कुछ सेकेंड बाद हरप्रीत ने चीखना शुरू किया. हरप्रीत को तैयार कर रही ब्यूटीशियनों और बराबर की सीट पर बैठी एक और लड़की ने हरप्रीत की तरफ देखा तो उस के शरीर से धुआं उठ रहा था. यह देखते उन सभी को समझते देर न लगी कि उस युवक ने हरप्रीत के ऊपर तेजाब डाला है. वे चीखने लगीं.

आवाज सुन कर संजीव गोयल केबिन में पहुंचे तो पता चला कि जो युवक अंदर आया था, उस ने मेकअप करा रही हरप्रीत कौर के ऊपर तेजाब डाल दिया है. उस युवक को पकड़ने के लिए संजीव गोयल जब तक सैलून से बाहर आया, तब तक वह युवक मारुति जेन कार से भाग गया था. संजीव ने उस की कार का नंबर देख लिया था. उस कार में अन्य कई लोग बैठे थे.

हरप्रीत की हालत बहुत नाजुक थी. तेजाब इतनी अधिक मात्रा में डाला गया था कि वह उस के चेहरे से ले कर छाती, जांघों आदि से होता हुआ उस चेयर तक पहुंच गया था, जिस पर वह बैठी थी. तेजाब से उस चेयर की सीट तक जल गई थी. हरप्रीत तेजाब की जलन से तड़प रही थी. तेजाब की छीटें ब्यूटीशियनों पर भी पड़ी थीं.

संजीव ने तुरंत पुलिस कंट्रोल रूम को घटना की खबर दे दी और हरप्रीत कौर व अन्य घायलों को डीएमसी अस्पताल ले गया. सूचना मिलते ही सराभानगर के थानाप्रभारी हरपाल सिंह ग्रेवाल पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां उन्हें पता चला कि घायलों को डीएमसी अस्पताल पहुंचाया गया है तो वह भी अस्पताल पहुंच गए.

हरप्रीत की हालत बेहद नाजुक थी, इसलिए उसे आईसीयू में शिफ्ट कर के इलाज शुरू कर दिया गया. अन्य घायलों को उपचार के बाद अस्पताल ने छुट्टी कर दी. मामला बेहद गंभीर था, इसलिए थानाप्रभारी ने इस की सूचना आला अधिकारियों को दे दी. जिस के बाद लुधियाना के पुलिस आयुक्त निर्मल सिंह ढिल्लो, अतिरिक्त आयुक्त जोगिंदर सिंह, सहायक आयुक्त हर्ष बंसल सहित कई उच्चाधिकारी डीएमसी अस्पताल पहुंच गए.

हरप्रीत के ऊपर तेजाब डालने की खबर उस के घरवालों और ससुराल पक्ष के लोगों को मिली तो वे भी अस्पताल पहुंच गए. हरप्रीत की हालत देख कर वे स्तब्ध थे और समझ नहीं पा रहे थे कि यह सब किस ने और क्यों किया, क्योंकि उन की किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं थी.

इस के बाद तो जिस ने भी यह खबर सुनी, वह डीएमसी अस्पताल की तरफ चल दिया, जिस से कुछ ही देर में अस्पताल के अंदर और बाहर लोगों का हुजूम जमा हो गया. हरप्रीत से पहले शहर में ही राजवंत और उस की 2 सहेलियों पर भी तेजाब डाला गया था, जिन में से एक लड़की की मौत भी हो गई थी और राजवंत 50 प्रतिशत से अधिक जल गई थी. इसी कारण स्वयंसेवी संस्थाओं, सामाजिक संगठनों के अलावा आम जनता में पहले से आक्रोश भरा हुआ था. आंदोलनों के जरिए इन का गुस्सा पुलिस प्रशासन पर फूट पड़ा था.

डीएमसी अस्पताल के अंदर और बाहर लगे हुजूम में आक्रोश था. लोग कह रहे थे कि पुलिस के निष्क्रिय रहने की वजह से एक और तेजाब कांड हो गया. अगर पुलिस राजवंत और उस की सहेलियों पर तेजाब डालने वालों के खिलाफ कठोर काररवाई करती तो तेजाब डालने की यह घटना कतई न होती. भीड़ को देखते हुए भारी मात्रा में पुलिस भी अस्पताल पहुंच गई थी. उधर डाक्टरों ने बताया कि हरप्रीत कौर 50 प्रतिशत से अधिक जली है और उस की हालत नाजुक है. इस वजह से पुलिस उस का बयान भी नहीं ले पा रही थी.

थानाप्रभारी हरपाल सिंह को यह मामला प्रेमसंबंध का लग रहा था. क्योंकि जितने भी इस प्रकार के तेजाब कांड हुए हैं, उन में से ज्यादातर केसों में सिरफिरे मजनुओं का ही हाथ रहा है. थानाप्रभारी ने जो जानकारी जुटाई, उस से पता चला कि सुबह 10 बजे हरप्रीत कौर की कोलकाता के रहने वाले हरप्रीत उर्फ हनी से शादी होने वाली थी. हनी के घरवालों ने शादी का प्रोग्राम लुधियाना के स्टर्लिंग रिजौर्ट में रखा था. वे सब लुधियाना के होटल में ठहरे हुए थे.

अब सवाल यह था कि ऐसा कौन सा शख्स था, जिस ने शादी से कुछ समय पहले ही शादी की खुशी को मातम में बदल दिया था. लेकिन इतना तो तय था कि वारदात में हरप्रीत कौर के किसी परिचित का हाथ रहा होगा, जिसे हरप्रीत कौर के यहां होने वाले हर कार्यक्रम की जानकारी थी.

इस बारे में पुलिस को हरप्रीत कौर, उस के घरवालों या ससुराल पक्ष के लोगों से बात कर के कोई क्लू मिलने की संभावना थी. हरप्रीत बयान देने की पोजीशन में नहीं थी और अन्य लोगों से थानाप्रभारी ने बाद में बात करना मुनासिब समझा. वह पहले उस ब्यूटीपार्लर में पहुंच गए, जहां यह घटना घटी थी.

ब्यूटीपार्लर में कई सीसीटीवी कैमरे लगे थे. थानाप्रभारी हरपाल सिंह ने सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवा कर देखी और उस पत्र को भी देखा, जो हमलावर ने हरप्रीत कौर को दिया था. पत्र लिखने वाले ने अपना नाम विशाल लिखा था. सीसीटीवी फुटेज में जो शख्स दिखा था, उस ने अपने चेहरे पर रूमाल बांध रखा था और अपने सिर को स्वेटशर्ट से ढक रखा था. जिस से उस शख्स की शिनाख्त नहीं हो सकी थी.

पार्लर के संचालक संजीव से पुलिस को हमलावर की मारुति जेन कार का नंबर पीबी11-जेड9090 मिला. थानाप्रभारी को इस कार नंबर से हमलावर तक पहुंचने की उम्मीद थी, लेकिन जांच की गई तो यह कार नंबर फरजी पाया गया, जिस से थाना पुलिस की तफ्तीश आगे नहीं बढ़ सकी.

बचपन का मजा, जवानी में बना सजा – भाग 1

खटखट की आवाज से असलम की आंख खुली तो आंखों की कड़वाहट से ही वह समझ गया कि अभी सवेरा नहीं हुआ है. लाइट जला कर उस ने समय देखा तो रात के 2 बज रहे थे. उतनी रात को कौन आ गया? असलम सोच ही रहा था कि दोबारा खटखट की आवाज आई. वह झट से उठा. रात का मामला था, इसलिए बिना पूछे दरवाजा खोलना ठीक नहीं था. उस ने पूछा, ‘‘कौन?’’

बाहर से सहमी सी आवाज आई, ‘‘भाईजान, मैं रुखसाना.’’

रुखसाना का नाम सुन कर उस ने झट से दरवाजा खोल दिया. क्योंकि वह उस की पड़ोसन थी. सामने खड़ी रुखसाना से उस ने पूछा, ‘‘भाभीजी आप, सब खैरियत तो है?’’

‘‘माफ कीजिएगा भाईजान, आप को इतनी रात को तकलीफ दी.’’ रुखसाना ने कहा तो असलम बोला, ‘‘जाबिरभाई और बच्चे तो ठीक हैं न?’’

‘‘असलम भाई, मुझे लगता है, मेरे घर कोई अनहोनी हो गई है. काफी देर पहले जाबिर टौयलेट के लिए ऊपर गए थे. लेकिन अभी तक वह नीचे नहीं आए हैं. मेरा जी घबरा रहा है.’’

‘‘नीचे नहीं आए, क्या मतलब? मैं समझा नहीं?’’ असलम ने हैरानी से कहा.

‘‘आज उन की तबीयत ठीक नहीं थी. शाम को भी देर से आए थे. खाना खाने के बाद दवा ली और सो गए. थोड़ी देर बाद वह टौयलेट जाने के लिए उठे. नीचे वाला टौयलेट खराब था, इसलिए मैं ने उन्हें ऊपर जाने को कहा. वह ऊपर वाले फ्लोर पर चले गए. जबकि मैं लेटी ही रही. काफी देर हो गई और वह ऊपर से नीचे नहीं आए तो मेरा जी घबराने लगा. इसलिए मैं आप के पास आ गई.’’

‘‘आप ने ऊपर जा कर नहीं देखा?’’ असलम ने पूछा.

‘‘जा रही थी, लेकिन सीढि़यों के दरवाजे की दूसरी ओर से कुंडी बंद थी, इसलिए जा नहीं सकी. मैं ने कई आवाजें दीं. दूसरी ओर से कोई जवाब नहीं मिला. मुझे लगता है, कोई गड़बड़ हो गई है?’’ रुखसाना ने भर्राई आवाज में कहा.

‘‘आप परेशान मत होइए भाभीजान. चलिए मैं देखता हूं.’’ कह कर असलम अपनी पत्नी के साथ रुखसाना के घर की ओर चल पड़ा.

रुखसाना, उस का बेटा साजिद, असलम और उस की पत्नी ऊपर जाने के लिए सीढि़यों पर चढ़ने लगे. ऊपर जाने वाले दरवाजे की कुंडी दूसरी ओर से बंद थी, इसलिए सभी को वहीं रुकना पड़ा. असलम ने वहीं से कई आवाजें लगाईं, लेकिन दूसरी ओर से कोई जवाब नहीं मिला. सभी नीचे उतरने लगे तो एकाएक असलम की नजर बालकनी पर चली गई. उसे लगा, वहां चादर में लिपटा कुछ पड़ा है. उस ने उस ओर इशारा कर के कहा, ‘‘भाभीजान, उधर देखिए, वह क्या पड़ा है?’’

रुखसाना ने उधर देखा. उस का बेटा साजिद वहां भाग कर पहुंचा. उस में से खून बह रहा था. उस ने झुक कर चादर हटाई. इस के बाद एकदम से चीखा, ‘‘अम्मी. यह तो अब्बू हैं.’’

रुखसाना चीखी, ‘‘या खुदा यह क्या हो गया? जाबिर तुम्हारा यह हाल किस ने किया?’’

साजिद भी जोरजोर से रोने लगा था.

असलम ने अपने मोबाइल फोन से पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दी. फिर तो थोड़ी ही देर में पीसीआर की गाड़ी वहां पहुंच गई. पीसीआर पुलिस ने चादर हटाई तो उस में खून से सनी जाबिर की लाश लिपटी थी. पीसीआर पुलिस ने संबंधित थाना जीटीबी एन्क्लेव को घटना के बारे में सूचित किया. कुछ देर बाद थाना जीटीबी एन्क्लेव के थानाप्रभारी नरेंद्र सिंह चौहान और इंसपेक्टर एटीओ राकेश कुमार दोहाना पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे.

घटनास्थल का मुआयना करने के दौरान ही पुलिस को खून सना एक चाकू मिला. पुलिस ने उसे कब्जे में ले लिया, क्योंकि हत्या उसी से की गई थी. पुलिस ने पूछताछ की तो रुखसाना ने वही बातें बताईं, जो वह असलम को पहले ही बता चुकी थी. स्थिति को देखते हुए पुलिस उस से ज्यादा पूछताछ नहीं कर सकी. लेकिन घटनास्थल के हालात से साफ था कि यह हत्या लूटपाट की वजह से नहीं हुई थी. क्योंकि घर का सारा सामान जस का तस था.

चूंकि मकान में आनेजाने का एक ही दरवाजा था, इसलिए पुलिस ने अंदाजा लगाया कि हत्या किसी जानकार ने की है या फिर इस में घर के किसी सदस्य का हाथ है. पुलिस परिवार वालों और रिश्तेदारों के नामपते तथा फोन नंबर ले रही थी, तभी क्राइम टीम और फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट ने आ कर अपनी काररवाई निपटा ली. इस के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया.

थाना जीटीबी एन्क्लेव में उसी दिन यानी 16 जून, 2013 को जाबिर की हत्या का यह मुकदमा अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कर लिया गया. इस के बाद मामले के खुलासे के लिए डीसीपी वी.वी. चौधरी एवं स्पेशल सेल के डीसीपी संजीव कुमार यादव ने स्पेशल सेल के इंसपेक्टर अत्तर सिंह यादव के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गठित की, जिस में सबइंसपेक्टर प्रवीण कुमार, संदीप कुमार, हेडकांस्टेबल संजीव, दिलावर, सुरेश और राजवीर को शामिल किया गया.

पुलिस को पता था कि जाबिर के मकान में आनेजाने के लिए एक ही दरवाजा था, इसलिए हत्यारा उसी दरवाजे से आया होगा और जाबिर की हत्या कर के उस की लाश को चादर में लपेट कर उसी दरवाजे से बाहर गया होगा. जाबिर का हत्यारा या तो जानपहचान का था या फिर घर का ही कोई सदस्य था.

पुलिस ने सभी नंबरों को सर्विलांस पर लगा दिया था. इसी के साथ मुखबिरों को भी सतर्क कर दिया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला था कि जाबिर के शरीर पर चाकू के 32 वार किए गए थे. पुलिस जांच में क्या हुआ, यह जानने से पहले आइए थोड़ा जाबिर और रुखसाना के बारे में जान लें.

जाबिर और रुखसाना उत्तर प्रदेश के जिला बदायूं के गांव रमजानपुर के रहने वाले थे. जाबिर 30-32 साल का रहा होगा, तभी उसे 15 साल की रुखसाना से प्यार हो गया था. इस की वजह यह थी कि जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही वह फूल की तरह महक उठी थी, जिस पर भंवरे मंडराने लगे थे.

रुखसाना के घर से निकलते ही चाहने वाले उस के पीछे लग जाते थे. कोई उसे परी कहता तो कोई जन्नत की हूर तो कोई अप्सरा तो कोई दिल की रानी. वह फूल कर कुप्पा हो जाती. फिर तो जल्दी ही वह न जाने कितनों के दिलों की रानी बन गई. उस के ये प्रेमी उसे घुमानेफिराने और मौज कराने लगे. ये लड़के उसे ऐसे ही नहीं मौज करा रहे थे, वे उस के शरीर से अपनी एकएक पाई वसूल रहे थे.

रुखसाना को भी इस में मजा आ रहा था. धीरेधीरे वह इस की आदी हो गई. हालत यह हो गई कि जब तक वह किसी लड़के से शारीरिक संबंध न बना लेती, उस का मन बेचैन रहता. उस के ऐसे ही यारों में एक जाबिर भी था. जाबिर उस से उम्र में बड़ा जरूर था, लेकिन शारीरिक संबंधों की आदी बन चुकी रुखसाना के लिए अब उम्र के कोई मायने नहीं रह गए थे.

जाबिर भी उसी मोहल्ले में रहता था, जिस मोहल्ले में रुखसाना रहती थी. वह नौशे मियां का बेटा था. जाबिर अन्य लड़कों से थोड़ा अलग था. दरअसल वह उस के दिल का राजा बनना चाहता था. रुखसाना को वह अपनी बीवी बनाना चाहता था. लेकिन लाख कोशिशों के बाद रुखसाना इस के लिए तैयार नहीं थी. इस की वजह यह थी कि वह उम्र में उस से काफी बड़ा था. रुखसाना का कहना था कि मौजमस्ती की बात दूसरी है और बीवी बन कर रहने की बात दूसरी.

पत्नी के लिए पिता के खून से रंगे हाथ – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला एटा की कोतवाली देहात के गांव नगला समल में रहता था रुकुमपाल. शहर के नजदीक और सड़क के किनारे बसा होने की वजह से गांव के लोग खुश और संपन्न थे. रुकुमपाल के पास खेती की जमीन ठीकठाक थी और वह मेहनती भी था, इसलिए गांव के हिसाब से उस के परिवार की गिनती खुशहाल परिवारों में होती थी. हंसीखुशी के साथ जिंदगी गुजार रही थी कि एक दिन अचानक रुकुमपाल की पत्नी श्यामश्री की मौत हो गई.

श्यामश्री की मौत हुई थी तो बेटी आशा 6 साल की थी और बेटा शीलेश 4 साल का. छोटेछोटे बच्चों को संभालना मुश्किल था, इसलिए घर वाले ही नहीं, रिश्तेदार भी उस की दूसरी शादी कराना चाहते थे. लेकिन रुकुमपाल ने शादी से तो मना किया ही, खुद को संभाला और बच्चों को भी संभाल लिया.

पत्नी की मौत के बाद बच्चों को मां रामरखी के भरोसे छोड़ कर रुकुमपाल परिवार और जिंदगी को पटरी पर लाने की कोशिश करने लगा था. शादी से उस ने मना ही कर दिया था, इसलिए दोनों बच्चों को बाप के साथसाथ वह मां का भी प्यार दे रहा था. इस में उसे परेशानी तो हो रही थी लेकिन बच्चों के लिए वह इस परेशानी को झेल रहा था. क्योंकि वह बच्चों के लिए सौतेली मां नहीं लाना चाहता था.

समय जितना जालिम होता है, उतना ही दयालु भी होता है. समय के साथ बड़ेबड़े जख्म भर जाते हैं. रुकुमपाल की जिंदगी भी सामान्य हो चली थी. बच्चे भी मां को भूल कर अपनीअपनी जिंदगी संवारने में लग गए थे.

आशा पढ़लिख कर शादी लायक हो गई तो रुकुमपाल ने एटा के ही गांव नगला बेल के रहने वाले विनोद कुमार के साथ उस का विवाह कर दिया था. विनोद वन विभाग में नौकरी करता था. नौकरी की वजह से वह एटा में रहता था, इसलिए आशा भी उस के साथ एटा में ही रहने लगी थी.

रुकुमपाल बेटे को पढ़ाना चाहता था, लेकिन शीलेश इंटर से ज्यादा नहीं पढ़ सका. पढ़ाई छोड़ कर वह दिल्ली चला गया और किसी फैक्ट्री में नौकरी करने लगा. हालांकि रुकुमपाल चाहता था कि शीलेश गांव में ही रहे, क्योंकि उस के पास जमीन ठीकठाक थी. लेकिन शीलेश को जो आजादी दिल्ली में मिल रही थी, शायद वह गांव में नहीं मिल सकती थी, इसलिए उस ने रुकुमपाल से साफ कह दिया था कि वह जहां भी है, वहीं ठीक है.

पत्नी की मौत के बाद रुकुमपाल ने अपना पूरा जीवन यह सोच कर बच्चों के लिए होम कर दिया था कि यही बच्चे बुढ़ापे का सहारा बनेंगे. बेटी तो ससुराल चली गई थी. बचा शीलेश, वह उस की कल्पना से अलग ही स्वभाव का लग रहा था. उस का सोचना था कि पिता ने अपना फर्ज पूरा किया है, उस के लिए कोई कुर्बानी नहीं दी है.

अपनी इसी सोच की वजह से कभीकभी शीलेष रुकुमपाल को ऐसी बात कह देता था कि उस के मन को गहरी ठेस पहुंचती थी. लेकिन उस के लिए शीलेश अभी भी बच्चा ही था. इसलिए वह उस की इन बातों को दिल से नहीं लेता था.

रुकुमपाल को अपने फर्ज पूरे करने थे, इसलिए वह शीलेश की शादी के लिए जीजान से जुट गया. आखिर उस की तलाश रंग लाई और एटा के ही गांव निछौली कलां के रहने वाले सोबरन की बेटी ममता उसे पसंद आ गई. फिर उस ने धूमधाम से उस की शादी कर दी.

सोबरन की 4 बेटियों में ममता सब से छोटी थी. उस का एक ही भाई था किशोरी. अंतिम बेटी होने की वजह से सोबरन ने ममता की शादी खूब धूमधाम से की थी.

ममता के आने से सब से ज्यादा खुशी दादी रामरखी को हुई थी. क्योंकि घर में दुलहन के आ जाने से उसे एक सहारा मिल गया था. कुछ दिन गांव में रह कर ममता शीलेश के साथ दिल्ली चली गई थी.

ममता गर्भवती हुई तो शीलेश उसे गांव छोड़ गया. कुछ दिनों बाद ममता ने एक बेटी को जन्म दिया. बेटी पैदा होने के बाद भी ममता दिल्ली नहीं गई. अब महीने, 2 महीने में शीलेश ही पत्नी और बिटिया से मिलने गांव आ जाता था.

बेटी 2 साल की हुई तो ममता एक बार फिर गर्भवती हुई. इस बार उस ने बेटे को जन्म दिया. ममता दिल्ली जाना तो नहीं चाहती थी, लेकिन रुकुमपाल और रामरखी ने उसे जबरदस्ती दिल्ली भेज दिया. दिल्ली आने के बाद कुछ दिनों में ममता को लगा कि पति की कमाई से घर ठीक से नहीं चल सकता तो वह गांव लौट आई और रुकुमपाल से साफ कह दिया कि अब वह दिल्ली नहीं जाएगी.

ममता मजबूरी में गांव में रह रही थी, क्योंकि एक तो पति की कमाई में गुजर नहीं होता था, दूसरे उस के छोटे से कमरे में बच्चों के साथ उसे घुटन सी होती थी. गांव में दिन तो कामधाम में कट जाता था, लेकिन पति के बिना रात काटना मुश्किल हो जाता था. जिस्म की भूख और अकेलापन काटने को दौड़ता था.

ममता ने शीलेश से कई बार कहा कि वह आ कर गांव में रहे, लेकिन शीलेश को शहर का जो चस्का लग चुका था, वह उसे गांव वापस नहीं आने दे रहा था. पति की इस उपेक्षा से नाराज हो कर ममता मायके चली गई थी. लेकिन अब मायके में तो जिंदगी कट नहीं सकती थी, इसलिए मजबूर हो कर उसे ससुराल आना पड़ा. फिर मांबाप ने भी कह दिया था कि वह जैसी भी ससुराल में है, उसे उसी में खुश रहना चाहिए.

ममता को ससुराल में कोई भी परेशानी नहीं थी. परेशानी थी तो सिर्फ यह कि पति का साथ नहीं मिल पा रहा था. इस परेशानी का भी वह हल ढूंढने लगी. तभी एक दिन वह मायके जा रही थी तो एटा में उस की मुलाकात हरीश से हो गई.

हरीश और ममता एकदूसरे को शादी के पहले से ही जानते थे. हरीश उस के गांव के पास का ही रहने वाला था. दोनों एकदूसरे को तब से पसंद करते थे, जब साथसाथ पढ़ रहे थे. बसअड्डे पर हरीश मिला तो ममता ने पूछा, ‘‘हरीश गांव चल रहे हो क्या?’’

‘‘अब शाम हो गई है तो गांव ही जाऊंगा न. लगता है, तुम्हें देख कर लग रहा है कि तुम भी मायके जा रही हो?’’ हरीश ने पूछा.

‘‘हां, मायके ही जा रही हूं. अब तुम मिल गए हो तो कोई परेशानी नहीं होगी. बाकी बच्चों को ले कर आनेजाने में बड़ी परेशानी होती है.’’

‘‘किसी को साथ ले लिया करो.’’ हरीश ने कहा तो ममता तुनक कर बोली, ‘‘किसे साथ ले लूं. वह तो दिल्ली में रहते हैं. घर में बूढ़े ससुर हैं, उन्हें खेती के कामों से ही फुरसत नहीं है.’’

‘‘तुम्हारे पति तुम से इतनी दूर दिल्ली में रहते हैं और तुम यहां गांव में रहती हो?’’

‘‘क्या करूं, उन के साथ वहां छोटी सी कोठरी में मेरा दम घुटता है, इसलिए मैं यहां गांव में रहती हूं.’’

‘‘तो उन से कहो, वो भी यहां गांव में आ कर रहें. पति के बिना तुम अकेली कैसे रह लेती हो?’’ हरीश ने कहा तो ममता निराश हो कर बोली, ‘‘उन्हें गांव में अच्छा ही नहीं लगता.’’

‘‘लगता है, वहां उन्हें कोई और मिल गई है. तुम यहां उन के नाम की माला जप रही हो और वह वहां मौज कर रहे हैं.’’

‘‘भई वह मर्द हैं, कुछ भी कर सकते हैं.’’

‘‘तो औरतों को किस ने मना किया है. वह वहां मौज कर रहे हैं, तुम यहां मौज करो. तुम्हारे लिए मर्दों की कमी है क्या.’’

वैसे तो हरीश ने यह बात मजाक में कही थी, लेकिन ममता ने इसे गंभीरता से ले लिया. उस ने कहा, ‘‘मैं 2 बच्चों की मां हूं, मुझे कौन पूछेगा?’’

‘‘तुम हाथ बढ़ाओ,सब से पहले मैं ही पकड़ूंगा.’’ हरीश ने हंसते हुए कहा, ‘‘ममता, मैं तुम्हें तब से प्यार करता हूं, जब हम साथ में पढ़ते थे. लेकिन मैं अपने मन की बात कह पाता, उस के पहले ही तुम किसी और की हो गई.’’

जब ममता ने भी उस से मन की बात कह दी तो दोनों चोरीछिपे मिलने ही नहीं लगे बल्कि संबंध भी बना लिए. ममता मौका निकाल कर हरीश से मिलने लगी. हरीश से संबंध बनने के बाद ममता को शीलेश की कोई परवाह नहीं रह गई.

अधिवक्ता पत्नी की जिंदगी की वैल्यू पौने 6 करोड़ – भाग 1

कोठी का ताला तोडऩे के बाद जब पुलिस अंदर घुसी तो ड्राइंगरूम के दरवाजे को खोलने के बाद पुलिस ने घर के एकएक कमरे को चैक करना शुरू किया. रेनू सिन्हा की कोठी दोमंजिला थी. इसी बीच पुलिस दल में शामिल लोगों ने जब बाथरूम का दरवाजा खोला तो एक तरह से उन की चीख निकलतेनिकलते बची. क्योंकि वहां रेनू की लाश पड़ी थी.

रेनू के सिर और कान से थोड़ा खून जरूर बह रहा था. जिस्म के दूसरे हिस्सों में भी चोट के कई निशान दिखाई पड़ रहे थे. इस से साफ था कि रेनू सिन्हा ने हत्या से पहले कातिल के साथ संघर्ष किया था. हैरानी की बात यह थी कि घर का सारा सामान अपनी जगह था, यानी वहां कोई लूटपाट या डकैती जैसी वारदात के कोई संकेत दिखाई नहीं पड़ रहे थे. लेकिन ताज्जुब की बात यह थी कि रेनू का पति नितिन फरार था.

यह वारदात 10 सितंबर, 2023 को देश की राजधानी दिल्ली से सटे गौतमबुद्ध नगर जिला नोएडा के सेक्टर 30 में स्थित कोठी नंबर डी 40 में हुई थी, उस के कारण पूरे पुलिस विभाग की नींद उड़ गई थी. वारदात ही ऐसी थी कि उस इलाके में रहने वाले लोगों के दिलोदिमाग में भी दहशत भर गई थी.

यह ऐसा सुरक्षित व पौश इलाका है, जहां कड़ी सुरक्षा के कारण अपराधी वहां आने से पहले सौ बार सोचे. यहां स्थित जिस आलीशान कोठी में ये वारदात हुई थी, उस में दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में वकालत करने वाली 61 साल की सीनियर महिला एडवोकेट रेनू सिन्हा अपने पति नितिन नाथ सिन्हा के साथ रह रही थीं. पति ने कुछ साल पहले ही इंडियन इनफार्मेशन सर्विसेस यानी आईआईएस से वीआरएस लिया था.

दरअसल, रेनू सिन्हा पिछले शनिवार शाम से ही किसी का फोन नहीं उठा रही थीं. कोठी में 2 लोग रहते थे, रेनू सिन्हा और उन के पति नितिन नाथ सिन्हा. रेनू दिल्ली हाईकोर्ट में अभी रेगुलर प्रैक्टिस कर रही थीं, जबकि उन के पति नितिन नाथ सर्विस से वीआरएस लेने के बाद ज्यादातर वक्त घर पर ही बिताते थे. कभी वह गोल्फ कोर्स क्लब या दोस्तों से मुलाकात के लिए चले जाते थे.

हैरत की बात यह थी कि जो लोग रेनू सिन्हा से बात करना चाहते थे, जब उन का फोन नंबर नहीं मिला तो उन्होंने नितिन नाथ सिन्हा के फोन पर संपर्क करना चाहा, तब उन का फोन भी पिक नहीं हुआ. रेनू सिन्हा का फोन नहीं मिलने के कारण सब से ज्यादा चितिंत रेनू के भाई अजय सिन्हा थे.

पेशे से पत्रकार अजय सिन्हा वैसे तो मूलरूप से बिहार के पटना के रहने वाले हैं, लेकिन काफी लंबे समय से अपनी पेशेवर जिंदगी के कारण वह भी नोएडा में ही रह रहे थे. कुछ भी हो जाए, रेनू सिन्हा हर रोज अपने भाई व परिवार के लोगों से बात जरूर करती थीं, लेकिन शनिवार के बाद जब रविवार को भी उन्होंने न तो खुद किसी को फोन किया और न ही उन्होंने किसी का फोन पिक किया तो अजय सिन्हा की भी चिंता बढ़ गई.

चिंता उस समय और भी ज्यादा बढ़ गई जब रेनू की एक हमउम्र दोस्त प्रमिला सिंह रविवार सुबह करीब एक बजे उन के घर पहुंचीं तो कोठी का मेन गेट बंद था. उन्होंने रेनू व उन के पति को कई बार फोन किया, उन के फोन की घंटी तो बजती रही, लेकिन फोन पिक नहीं किया गया.

प्रमिला ने यह बात फोन कर के रेनू के भाई को बताई. तब अजय को आशंका हुई कि उन की बहन के साथ कुछ अनहोनी जरूर हो गई है. क्योंकि वह जानते थे कि अपने पति नितिन नाथ के साथ रेनू के सबंध अच्छे नहीं हैं. यह बात उन का पूरा परिवार जानता था.

किसी अनहोनी की आशंका में अजय सिन्हा ने कोतवाली सेक्टर 20 नोएडा के एसएचओ धर्मप्रकाश शुक्ला को फोन कर के बताया कि उन की बहन रेनू सिन्हा जो अपने पति के साथ सेक्टर 30 के डी 40 में रहती हैं, वह किसी का फोन नहीं उठा रही हैं. वह पुलिस को भेज कर पता कराने की कोशिश करें कि उन के साथ कोई अनहोनी तो नहीं हो गई है. दरअसल, रेनू सिन्हा का घर सेक्टर 20 थाना क्षेत्र में ही था.

बाथरूम में मिली रेनू सिन्हा की लाश

एक बात तो तय थी कि रेनू और नितिन नाथ के फोन औन थे, उन दोनों के फोन की घंटी भी बज रही थी, लेकिन फोन अन आंसर्ड जा रहा था. यानी काल नहीं उठ रही थी. यही वजह थी कि रेनू के भाई अजय सिन्हा ने सेक्टर 20 थाने के एसएचओ को फोन कर के बहन की गुमशुदगी की खबर दी.

एसएचओ धर्मप्रकाश शुक्ला ने स्थानीय चौकी के इंचार्ज को पुलिस टीम के साथ सेक्टर 30 में डी ब्लौक की कोठी नंबर 40 पर पहुंचने के लिए कहा तो वह पुलिस टीम के साथ तत्काल ही वहां पहुंच गए. उन्होंने देखा कोठी के गेट पर तो ताला लटका था.

जब यह बात एसएचओ को पता चली तो उन्होंने अजय सिन्हा को बता दिया कि कोठी पर ताला लटका है और आगे की काररवाई के लिए उन्हें थाने आना होगा. करीब ढाई बजे अजय सिन्हा अपने 1-2 परिचितों को ले कर सेक्टर 20 थाने पहुंच गए.

उन्होंने इंसपेक्टर शुक्ला को सारी बात बताई. साथ ही बताया, “अगर मेरी बहन लापता हैं तो इस का साफ मतलब है कि जीजा नितिन नाथ ने ही उन्हें या तो कोई नुकसान पहुंचा दिया है या उन्हें गायब कर दिया है.”

“ऐसा भी तो हो सकता है कि वे दोनों अपनी मरजी से कहीं चले गए हों और किसी कारणवश उन के फोन उन के पास नहीं हो.” इंसपेक्टर शुक्ला ने कहा.

“नहीं इंसपेक्टर साहब, ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि मेरी बहन कैंसर पेशेंट हैं और करीब एक महीना पहले ही अस्पताल से डिस्चार्ज हो कर घर आई हैं,” अमेरिका के अजय सिन्हा ने कहा.

“लेकिन आप ने अभी अपने जीजा पर शक जताया, इस की कोई खास वजह?” इंसपेक्टर शुक्ला ने अजय से पूछा.

इस के बाद अजय ने जो कुछ बताया, इंसपेक्टर शुक्ला के लिए यह समझने को काफी था कि नितिन नाथ पर किया गया शक बेवजह नहीं है.

अगले 2 घंटे बाद इंसपेक्टर धर्मप्रकाश शुक्ला अजय सिन्हा और पुलिस की टीम को ले कर एडवोकेट रेनू सिन्हा की कोठी पर पहुंच गए. पुलिस ने सब से पहले ताला तोडऩे वाले को बुलवा कर कोठी के मुख्य गेट पर लगे ताले को तुड़वाया तो देखा छोटे गेट की कुंडी अंदर से बंद थी.

अजय सिन्हा के किसी पत्रकार दोस्त ने पुलिस कमिश्नर (नोएडा) लक्ष्मी सिंह को भी फोन कर दिया था, जिस के कुछ देर बाद सेंट्रल नोएडा के डीसीपी हरीश चंद्र, एडिशनल डीसीपी शक्तिमोहन अवस्थी, इलाके के एसीपी सुमित शुक्ला भी मौके पर ही पहुंच गए. उच्चाधिकारियों के मौके पर पहुंचते ही सेक्टर 20 थाने की पुलिस और ज्यादा अलर्ट हो गई. इस पूरी कवायद में शाम के 7 बज चुके थे.

कोठी का ताला तोडऩे के बाद जब पुलिस अंदर घुसी तो ड्राइंगरूम के दरवाजे को खोलने के बाद पुलिस ने घर के एकएक कमरे को चैक करना शुरू किया. रेनू सिंह की कोठी दोमंजिला थी. भूतल पर ही रेनू और नितिन नाथ सिन्हा का बैडरूम था. शायद उन के कमरे से उन के लापता होने का कोई सुराग मिल जाए, यह सोच कर तमाम आला अफसर जब उन के कमरे में गए तो उन्हें वहां ऐसा कुछ संदेहजनक नहीं लगा.

इसी बीच पुलिस दल में शामिल लोगों ने जब बाथरूम का दरवाजा खोला तो एक तरह से उन की चीख निकलतेनिकलते बची. क्योंकि वहां रेनू की लाश पड़ी थी. अधिकारियों के कहने पर एक पुलिसकर्मी ने रेनू की नब्ज टटोली, लेकिन उन का शरीर पूरी तरह निर्जीव था. लाश पूरी तरह ठंडी पड़ चुकी थी, जिस का मतलब साफ था कि उन की मौत को कई घंटे बीत चुके हैं.

अजय सिन्हा और उन के घर वाले रेनू सिंह की लाश मिलने के बाद फूटफूट कर रोने लगे. आसपास के कमरों में भी छानबीन की गई. आशंका थी कि कहीं किसी ने रेनू के पति नितिन नाथ की भी तो हत्या नहीं कर दी हो, लेकिन भूतल पर कहीं कुछ नहीं मिला.

दूसरा पहलू : अपनों ने बिछाया जाल – भाग 1

मनु खड़ा इधरउधर देख रहा था, तभी उस के सामने खड़ी महिला ने कहा, ‘‘क्या हाल है जी. लगता है, आप ने मुझे पहचाना नहीं?’’ मनु ने देखा,

सामने खड़ी महिला अधेड़ उम्र की थी. लेकिन उस उम्र में भी वह काफी आकर्षक दिख रही थी. वह ताऊ ससुर के लड़के की शादी में ससुराल आया था. उस की पत्नी सुकृति घर के कामों में व्यस्त थी. गांवों में लोकलाज के भय से लड़कियां प्राय: अपने पति से दूर ही रहती हैं.

उस महिला को गौर से देखते हुए मनु ने कहा, ‘‘जी, सही कहा आप ने. मैं ने वाकई आप को नहीं पहचाना.’’

‘‘अरे मैं रश्मि, आप की चचिया सास हूं.’’

‘‘ओह, नमस्ते! सौरी मैं आप को पहचान नहीं सका.’’ मनु ने खेद व्यक्त करते हुए कहा.

‘‘जब आप ने मुझे पहले देखा ही नहीं है तो भला पहचानेंगे कैसे. बताइए आप की क्या सेवा करूं? आप तो हमारे खास मेहमान हैं.’’  खुद को रश्मि बताने वाली उस महिला ने इठलाते हुए कहा.

‘‘जी बस कुछ नहीं. मैं मेहमान नहीं, घर का सदस्य हूं. अगर मेरे लायक कोई काम हो तो बताइए.’’

‘‘पहले आप चायकौफी तो पी लीजिए, काम तो होता रहेगा.’’

‘‘कौफी?’’ मनु ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘क्यों नहीं जमाई राजा. गांव हुआ तो क्या हुआ, हमारे यहां सब चीज का इंतजाम है. मेरे रहते भला किसी चीज की कमी हो सकती है क्या.’’ रश्मि ने गर्व से सीना फुला कर कहा.

‘‘… तो फिर एक कप कौफी प्लीज…’’

मनु के इतना कहते ही रश्मि ने आवाज लगाई, ‘‘मिंटू बेटा, जरा कौफी तो बनाना अपने जीजू के लिए.’’

रश्मि के आवाज लगाते ही 22-23 साल की एक सुंदर सी लड़की आ कर खड़ी हो गई. दोनों हाथ जोड़ कर उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘नमस्ते जीजाजी, कैसे हैं आप? मैं मिंटू, आप की साली?’’

मनु उसे देखता ही रह गया. गजब का सौंदर्य पाया था उस ने. श्वेत धवल संगमरमरी बदन, घुंघराले बाल, कजरारे नयननक्श वाली मिंटू कैपरी और लाइट पिंक कलर का टौप पहने थी, जो गांव में उस के लिए थोड़ा अटपटा लग रहा था.

‘‘मैं ने आप के बारे में बहुत सुना है मनु जी.’’ चचिया सास रश्मि ने कहा.

‘‘क्या सुना है आप ने मेरे बारे में?’’ मनु ने पूछा.

‘‘यही कि आप खानदानी रईस हैं. बड़े बिजनेसमैन भी हैं. हमारी सुकृति के तो भाग्य ही खुल गए हैं, ऐसी ससुराल पा कर.’’ रश्मि ने मुसकराते हुए कहा. मनु ने कोई जवाब नहीं दिया तो रश्मि ने ही आगे कहा, ‘‘आप चुप क्यों हो गए मनुजी?’’

‘‘नहीं तो, मैं ने भी सुकृति से आप के बारे में बहुत कुछ सुना है. आप उस की फेवरेट आंटी हैं.’’ मनु ने कहा.

‘‘हां, यह बात तो सही है. सुकृति का बचपन मेरे पास ही बीता है. आप को पता नहीं होगा, उस का सुकृति नाम मैं ने ही रखा था.’’ रश्मि गर्व से बोली.

‘‘वैसे भी आप इन लोगों से थोड़ा अलग लगती हैं.’’ मनु ने कहा.

‘‘देखा नहीं आप ने, घर में जमाई आया है. लेकिन किसी को फुरसत नहीं है उस का खयाल रखने का. अगर मैं ना होती तो आप यहां गांव में बोर हो जाते.’’

मनु को लगा, आंटी बात तो सही कह रही है. सुकृति, उस के सासससुर या किसी अन्य परिजन के पास इतना समय नहीं था कि कोई उस का खयाल रखता. यह भी हो सकता था कि उन में इतनी समझ ही नहीं थी.

इतने में कौफी के 3 कप ट्रे में सजाए मुसकराती हुई मिंटू ने कमरे में प्रवेश किया. कौफी का एक कप उठा कर रश्मि बाहर निकल गई. अब कमरे में मनु और मिंटू ही रह गए. मां के जाते ही मिंटू ने कहा, ‘‘जीजाजी, कभी हमारे यहां भी आइए ना?’’

‘‘अब आप ने बुलाया है तो जरूर आऊंगा.’’ मनु ने कहा.

‘‘कौफी कैसी लगी जीजू? मैं ने आप के लिए बड़े प्यार से बनाई है.’’ मिंटू ने दिलकश अंदाज में मुसकराते हुए कहा.

‘‘प्यार से बनाई है न?’’

‘‘और नहीं तो क्या, आप हमारे स्पैशल जीजू हैं ना इसलिए…’’

बातचीत से मिंटू बहुत ही फ्रैंक नेचर की लग रही थी. बातबात में खिलखिला कर हंसना, मनु से उलटेसीधे मजाक करना, उसे कुछ ज्यादा ही अच्छा लग रहा था. थोड़ी ही देर में उस ने मनु के बारे में सब कुछ पूछ लिया. एक विचित्र से चुंबकीय आकर्षण में मनु बंधता जा रहा था.

खाने का समय हुआ तो रश्मि मनु को अपने कमरे में बुला ले गई. उन्होंने उस के खाने की व्यवस्था अलग से अपने कमरे में कर रखी थी. जबकि अन्य रिश्तेदार बाहर दालान में बैठ कर खा रहे थे. खाने के बाद कुछ अन्य बच्चे आ गए तो मनु के साथ अंताक्षरी होने लगी. लड़कपन अभी उस में भी  था. उस के विवाह को अभी 3 साल ही तो हुए थे.

सुकृति शहर की व्यस्त लाइफ में अभी तक एडजस्ट नहीं हो पाई थी. मनु सुबह जल्दी ही शोरूम पर चला जाता था तो घर लौटने में रात के 8-9 बज जाते थे. ससुराल में ऐशोआराम की कोई कमी नहीं थी, लेकिन सुकृति को इन भौतिक सुखों से कहीं ज्यादा मनु के साथ समय बिताना अच्छा लगता था, लेकिन यह संभव नहीं था.

गांव की वह रात मनु के लिए अच्छे अनुभव वाली रही. व्यस्त जीवन में बहुत कम अवसर मिलता था, जब वइ इस तरह एंजौय कर पाता था. मनु, रश्मि, मिंटू और बच्चे देर रात तक हंसीमजाक करते रहे.

अगले दिन बारात जानी थी. मिंटू ने अपनी ड्रेस मनु को दिखाई. मनु ने मजाक करते हुए कहा, ‘‘अगर मुझे पहले से पता होता कि यहां तुम्हारी जैसी साली मिलेगी तो मैं तुम्हारे लिए नएनए डिजाइन की ड्रेस ले आता.’’

मनु का इतना कहना था कि मिंटू ने दुनिया भर की फरमाइशें कर डालीं. सुकृति दूल्हे की कार से चली गई थी. रश्मि और मिंटू एक बच्चे को ले कर मनु की कार में बैठ गईं. शादी का एकएक पल मनु के लिए यादगार बनता जा रहा था.  मिंटू जैसी फ्रैंड पा कर बर्फ सी जमी उस की भावनाओं में गर्माहट आने लगी थी. मनु कार चला रहा था. उस की बगल में बैठी मिंटू उस के मोबाइल से खेल रही थी.

रश्मि ने मिंटू को मनु का मोबाइल लौटाने को कहा तो शिष्टाचारवश मनु ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं आंटी, खेलने दो मिंटू को.’’

मिंटू ने अपना मुंह मनु के कान के पास ले कर जा कर फुसफुसा कर कहा, ‘‘थैंक्यू जीजू, आपने मेरी लाज रख ली.’’

‘‘डू यू नो… साली जी, साली आधी घर वाली होती है. अब मेरा इतना हक तो बनता ही है ना?’’ मनु ने कहा.

वैसे तो यह सामान्य बात थी, लेकिन मनु के लिए अब सामान्य नहीं रह गई थी. उस का मिंटू के प्रति आर्कषण निर्णायक रूप लेने लगा था. फ्रैंक नेचर की होने की वजह से मिंटू खुल कर हंसीमजाक तो कर ही रही थी, स्पर्श करने का भी कोई मौका नहीं छोड़ रही थी. उस का यह बिंदासपन मनु के दिल में अलग तरह की भावना पैदा कर रहा था.

मौका मिलने पर मनु ने उस का दायां हाथ दबा दिया. कनखियों से निहारते हुए मिंटू मुसकराई तो मनु की हिम्मत बढ़ गई. उसे लगा, उस के जीवन के खालीपन को भरने वाला कोई सच्चा साथी मिल गया है.

भांजी की गवाही से बलात्कारी को सजा-ए-मौत – भाग 1

मथुरा के यमुनापार की पोक्सो कोर्ट में एडीजे विशेष न्यायाधीश राम किशोर यादव-3 की अदालत में आज दिनांक 25 जुलाई, 2023 दिन मंगलवार को लोगों की भारी भीड़ थी. इस की वजह यह थी कि उस दिन कोर्ट में 3 साल पहले 9 साल की नाबालिग बेटी दिव्या का बलात्कार कर हत्या करने के दोषी 42 साल के बनवारी लाल और उस की बहन कंचन को सजा सुनाई जानी थी.

सुबह से ही मीडिया जगत के लोग, वकील, पुलिस अधिकारी और डहरुआ गांव के पीडि़ता के परिजन, पड़ोसी और अन्य लोग दोषी बनवारी लाल को मिलने वाली सजा को सुननेजानने के लिए कोर्टरूम में आ चुके थे.

ठीक 10 बजे न्यायाधीश राम किशोर यादव अपने चैंबर कोर्ट रूम में अपनी कुरसी के पास आए तो सभी उन के सम्मान में उठ कर खड़े हो गए. राम किशोर यादव अपने स्थान पर बैठ गए.

अभियुक्त बनवारी लाल और उस की बहन कंचन को कटघरे में ला कर खड़ा कर दिया गया था. दोनों सिर झुका कर खड़े हुए थे. माननीय न्यायाधीश ने एक सरसरी नजर दोनों अभियुक्तों पर डालने के बाद सामने बड़ी मेज के ऊपर अपने दस्तावेजों का अवलोकन कर रहे बचाव पक्ष के वकील किशन सिंह बेधडक़ और सरकारी वकील (अभियोजन पक्ष) स्पैशल डीजीसी अलका उपमन्यु की ओर देखा.

न्यायाधीश ने उन्हें इशारा कर के कहा, “मिस्टर बेधडक़, आप आखिरी बहस के लिए तैयार हैं न. मैं पहला मौका आप को दे रहा हूं. आप अपनी दलील रखिए. सुश्री अलका उपमन्यु आप भी तैयार रहिए.”

“मैं तैयार हूं सर,” अलका उपमन्यु ने उठ कर आदर से सिर झुकाते हुए कहा.

वकीलों में जम कर हुई बहस

बचाव पक्ष के एडवोकेट किशन सिंह बेधडक़ अपनी जगह से उठ कर जज साहब के सामने आ गए. अपने कोट की कौलर ठीक करते हुए बेधडक़ ने बड़े जोश भरे स्वर में कहा, “जनाब, मैं पहले भी यह कह चुका हूं कि मेरा मुवक्किल बनवारी निर्दोष है.

उस 31 अगस्त, 2020 की रात को वह अपने घर पर ही था. वह मृतका दिव्या और अपनी भांजी लाडो को ले कर मावली गांव गया ही नहीं, क्योंकि इस का कोई सबूत मेरी अजीज दोस्त अलका उपमन्यु कोर्ट में पेश नहीं कर पाई हैं. मेरे मुवक्किल को फंसाया जा रहा है, वह निर्दोष है.”

अलका उपमन्यु मुसकराती हुई अपनी जगह से उठीं और बोलीं, “माननीय जज साहब, मैं ने 15 दिन पहले ही वे सभी साक्ष्य जो मावली गांव के बाजरे के खेत में घटनास्थल पर फोरैंसिक टीम और यमुनापार थाने के पुलिस इंसपेक्टर को जांच के दौरान मिले थे, कोर्ट के सामने रख दिए थे. मैं मिस्टर बेधडक़ की कमजोर याद्दाश्त के लिए फिर से सभी साक्ष्यों का ब्यौरा दे देती हूं.

“घटनास्थल से मृतका दिव्या की खून सनी पाजामी बरामद हुई थी, रक्त के नमूने की विधि विज्ञान प्रयोगशाला द्वारा जांच रिपोर्ट. वैजाइनल स्लाइड व स्वैब. नेल क्रीपिंग, स्कैल्प हेअर, टी शर्ट, पांव में बांधा गया काला धागा, राखी, रबर बैंड, मौके से एकत्र की गई खून आलूदा मिट्टी और सीएमओ साहब की ओर से जारी पोस्टमार्टम रिपोर्ट, जिस में 9 साल की अबोध नाबालिग बालिका के साथ हैवानियत से किए गए बलात्कार होने की पुष्टि हुई है. ये सभी चीजें मैं ने कोर्ट को पहले ही सौंप दी थीं.

“इस के अलावा घटनास्थल से बनवारी लाल द्वारा प्रयोग किया गया शराब का पौआ, बीयर की कैन, पानी के 3 पाउच, 2 खाली और एक भरा हुआ. नमकीन, खाली प्लेट, 3 सौस के पाउच और एक रौयल स्टेग क्वार्टर का खाली पौआ और प्लास्टिक के 2 खाली गिलास बरामद हुए थे.

“इन के अलावा बनवारी द्वारा घटना के वक्त पहने हुए कपड़ों का पुलिंदा, जिन पर दिव्या की वैजाइना से निकले खून के धब्बे मिले थे. ये सभी पुख्ता सबूत मैं ने कोर्ट को पहले ही दे दिए थे. इन के अलावा मैं ने इस घटना से जुड़े 11 गवाहों की पेशी कोर्ट में करवा दी है. मैं इन के नाम फिर से कोर्ट के सामने रख देती हूं. इस से पहले आप यह भी जान लें कि इस घटना के वादी दिव्या के पिता ने 31 अगस्त, 2020 को अपनी बेटी और उस के साथ गई बनवारी की भांजी लाडो की घर वापसी न होने पर पूरी रात दोनों लड़कियों को तलाश किया था.

“उस के 2 भाई सोनू और संतोष गांव नौगांव भी उसी रात गए थे, क्योंकि यह सभी लोग जब दिव्या और लाडो को गांव में और आसपास के खेतों में ढूंढ रहे थे, तब बनवारी की बहन कंचन द्वारा अपने छोटे भाई भोला को फोन द्वारा बताया गया था कि वह लाडो की चिंता न करे. लाडो को बनवारी अपनी बाइक पर बिठा कर उस के घर नौगांव, छाता (मथुरा) में ले कर आया है.

“यह सुन कर वादी संतोष और सोनू उसी रात नौगांव गए थे. वहां लाडो तो मिल गई थी, लेकिन बनवारी को कंचन ने अपने घर से भगा दिया था, इसलिए इस घटना में कंचन भी शामिल हो गई थी. इसे मालूम हो गया था कि बनवारी क्या कुछ कर के उस के घर आया है. सब जान कर भी इस ने बनवारी को भाग जाने में मदद की थी, इसलिए यह भी पूरी तरह दोषी है.”

कुछ क्षण रुकने के बाद अलका उपमन्यु बोलीं, “मैं उन 11 गवाहों के नाम दोहरा रही हूं, जो मृतका दिव्या की तलाश और तहकीकात से जुड़े हुए हैं. वादी दिव्या के पिता जिस ने पहली सितंबर, 2020 को यमुनापार थाने में अपनी बेटी दिव्या के अपहरण और बलात्कार होने की रिपोर्ट दर्ज करवाई थी. उस ने बनवारी पर दिव्या के अपहरण और बलात्कार करने का संदेह जाहिर किया था.

“संतो उर्फ सत्य प्रकाश, अशोक, डा. करीम अख्तर कुरैशी, सोनू, भोला, संतोष कुमार, डा. विपिन गौतम, इंसपेक्टर महेंद्र प्रताप चतुर्वेदी, रिटायर्ड हैडकांस्टेबल कैलाशचंद, विजय सिंह और घटना के समय वहां मौजूद रही लाडो.

“ये सब गवाह और साक्ष्य पुलिस द्वारा तैयार किए गए थे मी लार्ड,” किशन सिंह बेधडक़ ने टोका, “पुलिस झूठे गवाह और ऐसे साक्ष्य तैयार कर के मेरे मुवक्किल को फंसाना चाहती है. ऐसा एक भी गवाह अलकाजी के पास नहीं है, जो चश्मदीद हो, जिस ने मावली गांव में बनवारी को दिव्या के साथ बलात्कार करते हुए देखा हो.”

“है मी लार्ड,” अलका उपमन्यु जोश में बोली, “मैं जानती थी कि मेरे अजीज दोस्त बेधडक़ साहब ऐसी ही बात कह कर बनवारी को निर्दोष साबित करने की कोशिश करेंगे. मैं ने एक चश्मदीद गवाह को बचा कर रखा हुआ था. मैं उसे बुला रही हूं.” अलका उपमन्यु ने पेशकार को इशारा किया तो वह बाहर जा कर 12 साल की एक लडक़ी को कोर्ट रूम में ले आया.

“यह बनवारी की भांजी लाडो है मी लार्ड. मृतका दिव्या की सहेली है. यही 31 अगस्त, 2020 की शाम 8 बजे के आसपास गांव में लाला की दुकान पर दिव्या के साथ कुछ सामान लेने गई थी. बेटी लाडो, तुम इस गवाह के कटघरे में आ जाओ और कोर्ट को बताओ कि 31 अगस्त, 2020 की रात को क्या हुआ था.”

क्या बताया लाडो ने अपनी गवाही में? जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग.

लूट फार एडवेंचर